10 साल बाद सलमान संग रोमांस करेंगी प्रियंका चोपड़ा

बौलीवुड से हौलीवुड की तरफ रूख करने वाली अदाकारा प्रियंका चोपड़ा हाल ही में भारत लौटीं. जैसे ही उन्होंने भारत की धरती पर अपना कदम रखा, उनके फैंस ने बेहद ही गर्मजोशी के साथ उनका से स्वागत किया. कोई फूलों का गुलदस्ता लेकर एयरपोर्ट पहुंचा, तो कोई चौकलेट्स लेकर. अब साफ हो गया है कि प्रियंका चोपड़ा के भारत लौटने की खास वजह क्या है. 

खबरे हैं कि वह फिल्म ‘भारत’ के लिए भारत लौटी हैं. जी हां, सलमान खान की अली अब्बास जफर वाली फिल्म भारत की हीरोइन की तलाश अब प्रियंका चोपड़ा पर जाकर रूकी है. माना जा रहा है कि ‘भारत’ प्रियंका चोपड़ा का अगला बौलीवुड प्रोजेक्ट है.

एक अखबार की मानें तो फिल्म के लिए अली ने प्रियंका को लंदन में ही अप्रोच किया था जहां वो क्वांटिको की शूटिंग कर रही थीं और अब प्रियंका ने ये प्रोजेक्ट फाइनल कर दिया है. फिल्म की स्क्रिप्ट तगड़ी है और प्रियंका चोपड़ा सलमान खान के साथ इस फिल्म में रोमांस करती नजर आएंगी. यह एक कोरियन फिल्म ओड टू माय फादर का रीमेक है.

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वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सलमान और प्रियंका एक साथ 10 साल बाद परदे पर दिखाई देंगे. इससे पहले साल 2004 में प्रियंका और सलमान ने फिल्म ‘मुझसे शादी करोगी’ में साथ काम किया था. इसके बाद प्रियंका और सलमान फिल्म ‘सलाम-ए-इश्क’ और ‘गौड तुस्सी ग्रेट हो’ में नजर आए थे. ‘गौड तुस्सी ग्रेट हो’ साल 2008 में आई थी.

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इस फिल्म को अतुल अग्निहोत्री प्रोड्यूस करेंगे. खबर है कि सलमान ने ट्यूबलाइट के बाद ही अतुल का अगला प्रोजेक्ट करने का वादा किया था. सलमान ने खुद अली को इसे डायरेक्ट करने के लिए कहा है. इससे पहले अली अब्बास सलमान की ‘सुल्तान’ और ‘टाइगर जिंदा है’ को भी डायरेक्ट कर चुके हैं.

आई हेट यू पापा : बेटियों को सुरक्षा का हक देने पर चुप क्यों है समाज

पिता और पुत्री का प्यार असीम और मांबेटी के प्यार के मुकाबले ज्यादा गहरा और गंभीर होता है. फिर भी कितने ही पिता अपनी बेटी के संरक्षक और रक्षक बनने की जगह भक्षक बन जाते हैं. पुलिस रिकौर्ड ऐसे क्रूर पिताओं के मामलों से भरे पड़े हैं जिन में पिता ने ही बेटी की इज्जत लूटी और उसे न केवल अबोध अवस्था में रोताबिलखता छोड़ दिया, जिंदगी भर के लिए उस पर एक काला साया भी थोप दिया.

साल 2014 में दिल्ली में 23 साल की एक युवती ने अपने 3 मित्रों की सहायता से अपने पिता की हत्या इसलिए कर दी, क्योंकि टैक्सी ड्राइवर पिता उस की मां के मरने के बाद अपनी यौन इच्छा बेटी से पूरी करता था. बेटी ने गुस्से और बदले की भावना में एक रात अपने दोस्तों को बुला लिया जिन्होंने उसे सोते वक्त डंडों से पीटपीट कर मार डाला और फिर उस की लाश को जंगल में फेंक आए.

यह मामला केवल अपराध का नहीं है. यह पितापुत्री संबंधों का है. समाज अभी भी इस कदर सैक्स भूख को स्वीकार करता है कि उसे किस से पूरा किया जा रहा है इस पर सवाल नहीं किए जाते. सब से बड़ी बात तो वे गालियां हैं, जो खुलेआम अनपढ़ों और पढ़ेलिखों सब में दी जाती हैं जिन में मां, बहन, बेटी को सैक्स का निशाना बनाया जाता है.

जो समाज इन शब्दों के किसी धर्म गुरु या देवता के बारे में कहने पर भड़क उठे वह मां, बेटी, बहन के बारे में कहे जाने पर शब्दों को अनसुना कर देता है. गालियों के नाम पर ये शब्द इस तरह दोहराए जाते हैं मानो भगवान के नाम के मंत्र पढ़े जा रहे हों. इस का अर्थ होता है कि इन्हें सामाजिक मान्यता दी जा रही है. गाली में मां, बहन व बेटी का इस्तेमाल खुलेआम करना समाज की गत दर्शाता है. हम कहां हैं, यह बताता है. हमारा नैतिक स्तर क्या है बताता है. गेरुए या काले कपड़ों वाले धर्म के सौदागरों के बावजूद समाज को 4 सही शब्द नहीं सिखा पाना हमारी सभ्यता पर निशान खड़ा करता है.

बेटी का पिता से सुरक्षा का हक जन्म से है पर यह सुरक्षा कवच खुद शरीर को खाने लगे तो इस से बढ़ कर बुरी बात कोई और नहीं हो सकती. अफसोस तो यह है कि देश विकास की बात करता है, गरीबों के हकों की बात करता है, मंदिर वहीं बनाएंगे की बात करता है, पर बेटियों को सुरक्षा का हक देंगे, इस पर चुप है.

क्या मांएं बोर्डरूम को चला सकती हैं? अब बड़ा अहम होता जा रहा है ये सवाल

क्या मांएं बोर्डरूम को चला सकती हैं? यह सवाल अब अहम होता जा रहा है, क्योंकि पढ़ीलिखी, अनुभवी, सफल युवतियां मां भी बनना चाहती हैं और कार्यक्षेत्र में अपनी उपलब्धियों को बनाए भी रखना चाहती हैं. आमतौर पर साधारण कामकाजी युवती को मां बनने के बाद बच्चे की देखभाल के लिए साल 2 साल की छुट्टी लेनी पड़ती है और इस दौरान उन के पुरुष सहयोगी सफलता की कई सीढि़यां चढ़ चुके होते हैं.

कामकाजी मांओं को घर में बच्चों के लिए दिन में 10-12 घंटे देने ही होते हैं. इसलिए अगर वे औफिस में और 10 घंटे लगाएं तो न सोने का समय मिलेगा, न सुस्ताने का और न ही पढ़नेलिखने का. बच्चों की ललक प्रकृति की देन है और बच्चा होने के बाद औरत सारा समय उस के बारे में सोचती रहती है, चाहे वह बोर्डरूम में बैठी हो या बौयफ्रैंड के साथ हो.

बच्चों के साथ बोर्डरूम चलाने के लिए यदि विश्वस्त नैनी या सास/मां मिल भी जाए तो कुछ हद तक काम बन सकता है. पर बच्चे बच्चे होते हैं वे कब दादीनानी या आया के हाथ से निकलने लगें, कहा नहीं जा सकता. पर इस का अर्थ यह नहीं कि मांएं अपने वर्षों के परिश्रम को बच्चों पर गंवा दें.

आज का युग हर समस्या का हल ढूंढ़ने का है. आज बहुत से काम तकनीक के सहारे दफ्तरों से दूर रह कर भी किए जा सकते हैं. बड़ी कंपनियां चलाने वाले सालों अपने खुद के दफ्तरों या कारखानों में नहीं जाते. पुरुष अधिकारी अकसर अपना समय गोल्फ खेलते हुए या अपनी स्टेनो के साथ रंगरेलियां मनाते हुए बिताते रहते हैं और जब वे इन कामों के लिए समय निकाल सकते हैं तो महिला मुख्य अधिकारी क्यों नहीं बच्चों के लिए समय निकाल सकतीं?

हां, उन्हें अपना घर दफ्तर के पास ढूंढ़ना होगा. बच्चों का स्कूल भी घर और दफ्तर के पास हो ताकि वे कभी भी बच्चों के पास कुछ मिनटों में पहुंच सकें. उन्हें अपने दूसरे शहरों के दौरे इस तरह बनाने होंगे कि वे बच्चों को सहायिका या दादीनानी के साथ ले जा सकें. बड़ी कंपनियां अपने मुख्य अधिकारियों को इतनी सुविधाएं आसानी से दे सकती हैं.

बच्चों को कामकाजी युवतियों को 3-4 साल ही देने होते हैं और अगर 2 बच्चे हों तो 5-7 साल में वे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं. कामकाजी युवतियों को अपना साथी भी ऐसा चुनना होगा जो क्लब में ताश के पत्तों की जगह डाइपर बदलने में भी मजा ले.

यह धारणा कि बच्चों के कारण युवतियां जोखिम भरे काम हाथ में नहीं ले सकतीं, असल में संस्कृति की देन है जिस के पीछे पुरुषों की चाल है. जब औरतों के 10-12 बच्चे होते थे, तो प्रति बच्चा कितना समय देती थीं वे? आज भी बच्चों को उतना समय दे कर पाला जा सकता है.

मांएं बच्चों का ध्यान रख सकें, रसोई चला सकें, उन पर हर समय नजर रख सकें, इस की तकनीक बहुत धीरेधीरे विकसित जा रही है पर पुरुष पोर्न देख सकें, जुआ खेल सकें, महिला मित्र बना सकें, शेयर बाजार के सैकंडसैकंड के उतारचढ़ाव को देख सकें, उस की तकनीक रोज विकसित हो रही है. मांओं को भी यदि इसी तरह की तकनीक की सुविधा मिलने लगे तो वे कहीं से कहीं पहुंच जाएं. बच्चे किसी औरत के लिए जंजीर नहीं, उस का आत्मबल हैं, उपलब्धि हैं, भविष्य की सुरक्षा हैं और उसे कार्य की जगह दृढ़ता देते हैं.

आमों का सरताज ‘अल्फांसो’

अल्फांसो भारत का सब से खास किस्म का आम है. अल्फांसो अंगरेजी नाम है. महाराष्ट्र में इस आम को हापुस, कर्नाटक में आपुस के नाम से भी जाना जाता है. अल्फांसो का नाम पुर्तगाल के मशहूर सैन्य रणनीतिकार अफोंसो दि अल्बूकर्क के नाम पर पड़ा है. अफोंसो दि अल्बूकर्क को बागबानी का बहुत शौक था. गोवा में जब पुर्तगालियों का शासन था उस समय अफोंसो दि अल्बूकर्क ने इस आम के पेड़ लगाए थे. अंगरेजों को यह आम बहुत पसंद था. अफोंसो दि अल्बूकर्क के सम्मान में इस का नाम अल्फांसो रखा गया. अंगरेजों की पसंद के ही कारण आज भी यह आम सब से अधिक यूरोपीय देशों में भेजा जाता है. इस साल यूरोपीय देशों ने अल्फांसो के आयात पर रोक लगा दी तो मसला ब्रिटेन की संसद में उठाया गया.

खासीयत

अल्फांसो आम का वजन 150 से 300 ग्राम के बीच होता है. यह मिठास, सुगंध और स्वाद में दूसरे किस्म के आम से अलग होता है. इस की सब से बड़ी खासीयत यह होती है कि यह पकने के 1 सप्ताह बाद तक भी खराब नहीं होता. इस खास गुण के कारण ही देश से बाहर निर्यात किए जाने वाले आमों में अल्फांसो सब से ज्यादा निर्यात किया जाता है. कीमत के मामले में भी यह सब से महंगा होता है. देश का यह पहला आम है, जो किलोग्राम के भाव नहीं दर्जन के भाव में बिकता है.

थोक बाजार में इस की कीमत रू. 700 दर्जन है. अल्फांसो की कीमत इस के वजन के अनुसार कम अथवा ज्यादा होती रहती है. फुटकर बाजार में अल्फांसो की कीमत रू.25 सौ से रू.3 हजार दर्जन तक होती है. यह देश का सब से महंगा आम है. 90 फीसदी अल्फांसो बाहरी देशों में भेजा जाता है.

अल्फांसो का कारोबार

अप्रैल, मई में तैयार होने वाला यह आम जून, जुलाई तक चलता है. महाराष्ट्र के कोंकण इलाके के सिंधुगण जिले की देवगढ़ तहसील के 70 गांवों में 45 हजार एकड़ जमीन पर अल्फांसो की बागबानी होती है. देवगढ़ समुद्र तट से 200 किलोमीटर अंदर पड़ता है. यहां पैदा होने वाले अल्फांसो सब से बेहतर किस्म के होते हैं. देवगढ़ के किसानों ने अल्फांसो की औनलाइन बिक्री शुरू की है.

महाराष्ट्र के ही रत्नागिरी, गुजरात के वलसाड़ और नवसारी में सब से अधिक पैदा होता है. देश से हर साल करीब 200 करोड़ का अल्फांसो आम केवल यूरोपीय देशों को निर्यात किया जाता है. इस के अलावा दुबई, सिंगापुर और मध्य एशिया के दूसरे देशों में भी इस का निर्यात होता है. हर साल करीब 50 हजार टन अल्फांसो आम का उत्पादन होता है.

अल्फांसो का मुख्य कारोबार नबी मुंबई के वाशी स्थित कृषि उत्पाद बाजार समिति से होता है. हर साल करीब 600 करोड़ का अल्फांसो का कारोबार होता है.

दूसरे आमों से अलग

यह आम अपनेआप में सब से अलग होता है. इसी कारण इस को आमों का सरताज कहा जाता है. अल्फांसो की खासीयत में देवगढ़ के बागों की जमीन और वहां की जलवायु का खास असर होता है. इस कारण अल्फांसो भारत के ही नहीं दुनिया के दूसरे आमों से पूरी तरह से अलग होता है. भारत के दूसरे इलाकों में भी किसानों ने अल्फांसो के बाग लगाए हैं. वहां जा कर यह आम बदल जाता है. इस की खासीयत खत्म हो जाती है. लखनऊ में अल्फांसो की बागबानी करने वाले सुरेश चंद्र शुक्ला के आम के बाग में 217 किस्म के आम हैं. वे कहते हैं, ‘‘अल्फांसो की सैल्फ लाइफ अच्छी होने से उस का सब से अधिक निर्यात होता है. ’’

सुरेश चंद्र शुक्ला ने अपने बाग में हुस्नआरा नाम से आम की एक अलग प्रजाति तैयार की है. इस की सैल्फ लाइफ भी काफी अच्छी होती है.

बनाएं किचन को मौड्यूलर : बदलते समय के साथ बदल रहा है किचन का रंगरूप

एक समय था जब घर में किचन को सब से कम महत्त्व दिया जाता था. तब किचन का मतलब एक छोटे से कमरे से होता था, जहां बस जैसेतैसे खाना पक सके. उस में किसी भी तरह के कोई आधुनिक उपकरण नहीं होते थे और न ही किसी तरह की कोई सजावट होती थी. अगर कभी कोई खास पकवान बनाना हो तो घंटों समय लग जाता था.

धीरेधीरे बदलते समय के साथ किचन के रूप में भी बदलाव आने लगा. किचन सिटिंग की जगह स्टैंडिंग होने लगा. इंडियन स्टाइल किचन की जगह आधुनिक कौंसैप्ट ने ले ली और किचन को मौड्यूलर किचन कहा जाने लगा.

इंटीरियर डिजाइनर मनोज पांडेय कहते हैं, ‘‘ये किचन देखने में पहली नजर में भले ही महंगे और शोबाजी वाली चीज लगें पर ये काफी यूजरफ्रैंडली होते हैं. मौड्यूलर किचन को इंस्टौल करना काफी ईजी होता है. इस में काफी ट्रैंडी फिटिंग्स, जैसे किचन कैबिनेट्स, बास्केट्स, कौर्नर ट्रौलीज, शैल्फ्स, स्लाइडिंग ड्राअर्स आदि लगे होते हैं. इन में आप रसोई का सामान, उपकरण वगैरह व्यवस्थित ढंग से रख सकते हैं.’’

आधुनिक उपकरणों से तैयार मौड्यूलर किचन में हर चीज की जगह फिक्स होती है. कोई भी सामान निकालने और काम करने में दिक्कत नहीं होती. रसोई में स्टोरेज की पर्याप्त सुविधा होने की वजह से काफी जगह रहती है क्योंकि सामान कैबिनेट्स और ट्रौलीज के अंदर रखा जाता है. ये गोल, टेढ़ेमेढ़े व त्रिकोणीय सभी प्रकार के किचन में आसानी से फिट हो जाते हैं. नतीजतन, खाना बनाने में समय की भी बचत होती है.

मौड्यूलर किचन को कई अलगअलग वैराइटी, डिजाइन व रंगों में तैयार किया जा सकता है, जैसे कैबिनेट्स को मैटल, वुड, स्टील या ग्लास का बनाया जा सकता है और इन के कलर टिपिकल गे्र, ब्राउन व बेज आदि रखने के बजाय रैड, लीफी ग्रीन, रौयल ब्लू जैसे विकल्पों को चुन कर किचन को अट्रैक्टिव लुक दिया जा सकता है.

मौड्यूलर किचन का बजट मुख्य रूप से इस के साइज पर निर्भर करता है. अगर आप 8×6 फुट का किचन बनवाना चाहती हैं तो इस की कीमत लगभग 1 लाख रुपए हो सकती है. जैसेजैसे आप के किचन का साइज बढ़ता है, इस की कीमत भी बढ़ती जाती है. लेकिन इस किचन को आप कम बजट व अपनी पसंद के अनुसार भी आसानी से तैयार करवा सकती हैं.

बाजार में आज आधुनिक और ट्रैंडी किचन ऐप्लाएंसेज की कमी नहीं है. ये ऐप्लाएंसेज आप के मौड्यूलर किचन को एक स्टाइलिश लुक देते हैं. आइए, एक नजर डालें, ऐसे ही कुछ ऐप्लाएंसेज पर.

माइक्रोवेव ओवन

सब से पहले यह जरूरी है कि आप यह तय कर लें कि आप माइक्रोवेव ओवन लेना चाहती हैं या सिंपल ओवन. ये दोनों अलगअलग काम करते हैं. सिंपल ओवन का काम सामान को बेक करना होता है, वहीं माइक्रोवेव ओवन में आप खाने की चीजों को गरम कर सकती हैं, उबाल सकती हैं और पका भी सकती हैं. मार्केट में कई कंपनियों के माइक्रोवेव ओवन उपलब्ध हैं, जिस की शुरुआत लगभग 3 हजार रुपए से है.

हुड्स ऐंड होब्स

हुड्स यानी चिमनी और होब्स यानी स्टोव्स (गैसचूल्हा). इन दोनों ऐप्लाएंसेज के बिना किचन अधूरी रहती है क्योंकि एक के बिना भोजन तैयार नहीं हो सकता तो दूसरे के बिना खूबसूरत किचन.

बाजार में बर्नर्स की भी कई किस्में उपलब्ध हैं, जैसा कि आप जानती ही होंगी कि पहले बर्नर ब्रास के बनाए जाते थे, लेकिन अब यह एलोय के बने होते हैं. इन की खासीयत यह होती है कि ये कभी काले नहीं पड़ते. इस के अलावा कई बर्नर वाले होब्स भी बाजार में आ रहे हैं. जिन की मदद से आप एक ही समय में 3-4 रैसिपीज बना सकती हैं. इस से आप के समय की काफी बचत होगी.

अगर चिमनी की बात की जाए तो इस में ज्यादा बदलाव तो नहीं हुए हैं, लेकिन फिल्टर वाली चिमनी आने लगी हैं जो धुएं को बाहर निकालने की जगह घर के वातावरण में ही घुला देती हैं, वह भी वातावरण को बिना नुकसान पहुंचाए.

एयरफ्रायर

यह आधुनिक रसोई में एक बेहतरीन उपकरण है. साथ ही, यह कई सारे भारतीय व्यंजनों को पकाने में तेल की 80 फीसदी तक बचत करता है. पैटेंटेड रैपिड एयर तकनीक से सुसज्जित यह उपकरण तीव्रता से घूमता हुआ गरम हवा को ग्रिल ऐलिमैंट के साथ जोड़ कर तेलरहित स्वादिष्ठ फ्राइड फूड पकाता है. इस की कीमत बाजार में 14,995 रुपए से शुरू होती.

फ्रिज

बदलते वक्त के साथ अब लोगों की जरूरतें भी बदलती जा रही हैं, खासकर फूड हैबिट की. अब लोग विधिपूर्ण खाना पकाने से ज्यादा ‘रेडी टु ईट’ फूड खाना पसंद कर रहे हैं, जिन्हें फ्रिज में ही स्टोर कर के रखना होता है. रसोई में यह सब से जरूरी चीज है. मार्केट में एक नौर्मल फ्रिज 8 हजार रुपए में उपलब्ध है.

हैंडब्लैंडर

किसी चीज को छोटेछोटे टुकड़ों में काटना हो या फिर पेस्ट तैयार करना हो, अब यह मिनटों का खेल है. हैंड ब्लैंडर तकनीक ने इस काम को काफी आसान बना दिया है. मार्केट में अलगअलग कंपनियों के हैंड ब्लैंडर अलगअलग रेंज में उपलब्ध हैं. इस की शुरुआती कीमत 700 रुपए है.

इलैक्ट्रिक केटल

रसोई में केटल आजकल जरूरी ऐप्लाएंसेस में से एक है. इस में पानी, दूध, चाय, कौफी व मैगी आसानी से बनाई जा सकती है. ये 700-2500 रुपए के बीच उपलब्ध हैं.

रोटी मेकर

आज के जमाने में रोटी बनाना भी आसान हो गया है. अब रोटी बनाने के लिए बारबार बेलने की जरूरत नहीं है. बस, आटे की लोई को मशीन में रख कर दबाया और रोटी तैयार. अगर आप रोटी मेकिंग मशीन खरीदना चाहती हैं तो इस की कीमत 1 हजार रुपए रुपए से शुरू होती है.

मिक्सर ग्राइंडर

मिक्सर ग्राइंडर किचन के उपयोगी उपकरणों में से एक है. इस के बिना किचन अधूरी है. मार्केट में यह 2 हजार से ले कर 5 हजार रुपए तक के बीच उपलब्ध हैं.

मौडर्न कुकर

कुकर 2 तरह के होते हैं. पहला इलैक्ट्रिक कुकर और दूसरा स्टीम कुकर. इलैक्ट्रिक कुकर में चावल, पुलाव इत्यादि बनाना आसान होता है. वहीं, स्टीम कुकर में खासकर स्टीम प्रोडक्ट, जैसे मोमोज, इडली इत्यादि बनाना आसान होता है. इसलिए इसे खरीद कर आप अपनी रसोई को ईजी टू कुक बना सकती हैं.

इलैक्ट्रिक तंदूर

आज के समय में संभव नहीं है कि किचन में तंदूर रखा जाए. इसलिए तंदूरी व्यंजन बनाने के लिए मार्केट में इलैक्ट्रिक तंदूर आ गए हैं. इस की मदद से अलगअलग प्रकार के तंदूरी व्यंजन तुरंत तैयार हो जाते हैं. इस की शुरुआती कीमत 3 हजार रुपए है.

मेजरिंग इक्विपमैंट

कभीकभी खाना बनाते समय समझ नहीं आता कि चीजों को किस अनुपात में मिक्स किया जाए. अगर किसी भी चीज को थोड़ा ज्यादा डाल दिया जाए तो खाने में मजा नहीं आता. इसलिए रसोई में मेजरिंग इक्विपमैंट जरूर रखें.

आइसक्रीम मेकर

आधुनिक रसोई में यह एक नई तकनीक आई है. इस में बिना फ्रिज के भी आसानी से आइसक्रीम बनाई जा सकती है. मार्केट में आइसक्रीम मेकर की कीमत 4 हजार रुपए से शुरू होती है.

कुछ ऐसे रखें किचन

किचन में आधुनिक उपकरण लगाने के साथसाथ जरूरी है कि उसे अच्छी तरह से सजाया भी जाए ताकि वह ट्रैंडी के साथसाथ व्यवस्थित भी नजर आए. किचन की दीवारें हमेशा लाइट कलर की रखें ताकि कीड़ेमकोड़े और गंदगी का पता जल्दी चल सके.

किचन ऐसी हो कि उस में स्वच्छता और हाईजीन साफ नजर आए. इसलिए साफसफाई का ध्यान रखें. किचन को प्रदूषणरहित रखने के लिए चिमनी लगवा लें ताकि किचन धुआंरहित रहे. किचन की दीवार पर एक सुंदर बड़ा प्लानर लगा लें ताकि उस पर गैस लगाने की तिथि, अखबार, दूध वाले और हाउस हैल्पर के पैसे की तिथि नोट की जा सके. किचन में रेडियो या टैलीविजन का स्पीकर लगवा लें, इस से आप काम के साथ एंजौय भी कर सकती हैं.

अब जमाना बदल रहा है तो फिर आप का किचन क्यों पीछे रहे. देर किस बात की. आज ही अपने किचन का कायापलट कर डालिए और आधुनिक उपकरणों का मजा लीजिए.

समर मेकअप : क्या लगाएं क्या नहीं, एक्सपर्ट से जानिए

हर मौसम में खूबसूरत दिखना महिलाओं की पहली तमन्ना होती है. इसीलिए वे मौसम के हिसाब से और खुद पर सूट करता हुआ मेकअप करना पसंद करती हैं. लेकिन जब बात गरमी के मौसम की हो तो चिलचिलाती धूप में टपकते पसीने की वजह से मेकअप को बचाए रखना सचमुच महिलाओं के लिए एक चुनौती होती है.

इस बाबत दिल्ली के ग्रेस ऐंड ग्लैमर सैलून की मेकअप आर्टिस्ट प्रिया कालरा कहती हैं, ‘‘जिस तरह मौसम के अनुसार फैशन ट्रैंड बदलता रहता है, ठीक उसी तरह हर सीजन में मेकअप भी बदल जाता है. अच्छा होगा आप गरमियों में सिंपल और हलका मेकअप ही करें. इस से मेकअप बारबार ठीक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मेकअप त्वचा पर लंबे समय तक टिका रहे, इस के लिए कुछ खास मेकअप टिप्स फौलो करने होंगे.’’

तो आइए जानते हैं प्रिया से कुछ आसान व खास टिप्स जिन पर अमल कर आप इस हौट सीजन में भी कूलकूल नजर आएंगी.

मेकअप बेस

किसी भी तरह के मेकअप की शुरुआत मेकअप बेस से होती है इसलिए समर मेकअप के लिए भी पहले मेकअप बेस तैयार किया जाता है. गरमी के मौसम में फाउंडेशन लगाने से चेहरा थोड़ा हैवी दिख सकता है. अत: फाउंडेशन की जगह कंसीलर का प्रयोग करें. यह चेहरे के दागधब्बों को मिटाता है और बेदाग खूबसूरती को सामने लाता है. अगर सिंपल दिखना है, तो लिक्विड कंसीलर का प्रयोग करें. ध्यान रहे चेहरे पर कंसीलर किसी ठंडी जगह ही लगाएं. इस से मेकअप करते समय पसीना नहीं आएगा और कंसीलर सही तरह लग जाएगा.

कौंपैक्ट पाउडर

कंसीलर लगाने के बाद नाक, चिन और जौ लाइंस के आसपास की त्वचा पर डस्ट वाला कौंपैक्ट पाउडर लगाएं. कौंपैक्ट पाउडर लगाते समय त्वचा को हलका सा स्ट्रैच कर लें. इस से कौंपैक्ट पाउडर पूरे चेहरे पर अच्छी तरह लग जाएगा. ज्यादा कौंपैक्ट पाउडर के इस्तेमाल से बचें क्योंकि यह चेहरे के पोर्स को बंद कर देता है.

ब्लशऔन

गरमी के मौसम में पाउडरयुक्त ब्लशर का प्रयोग करें. ब्लशर लगाते समय अपनी स्किनटोन का ध्यान रखें. अपनी स्किनटोन के अनुसार गुलाबी या लाइट ब्राउन कलर का ब्लशर लगाएं. लाइट समर लुक के लिए मेकअप को बिलकुल सिंपल रखें. सिर्फ ऊपर के गालों पर ब्लशर लगाएं. चेहरे पर पाउडर वाला ब्लशर लगाएं. क्रीमयुक्त ब्लशर के प्रयोग से बचें, क्योंकि इसे लगाने से चेहरे पर जल्दी पसीना आता है.

लिपस्टिक

होंठों को लिपलाइनर से आकार दे कर मैट लिपस्टिक लगाएं. फिर इस के ऊपर लिप सीलर लगाएं. हलके और खिले हुए रंग इन दिनों काफी अच्छे लगेंगे, इसलिए न्यूड कलर ही पसंद करें. वैसे इस समर में नियौन कलर्स भी ट्रैंड में हैं. अत: आप अपनी ड्रैस से मैच करता हुआ कलर भी चुन सकती हैं. गरमी में होंठों से लिपस्टिक बहुत जल्दी उतर जाती है. अत: इसे देर तक टिकाए रखने के लिए आप होंठों पर प्राइमर प्रयोग कर सकती हैं. इस मौसम में लिपग्लौस न लगाएं, क्योंकि यह टिकाऊ नहीं होती है और फैल जाती हैं.

काजल

अगर आप मेकअप हलका कर रही हैं तो डार्क काजल के प्रयोग से बचें. खासकर दिन के समय हलका काजल ही लगाएं. अगर रात में किसी पार्टी या फंक्शन में जा रही हैं तो डार्क काजल लगा सकती हैं. अगर आप चाहती हैं कि आप का आईलाइनर व आईशैडो लंबे समय तक आंखों पर टिका रहे, तो इस के लिए आप वैक्सयुक्त आईशैडो प्राइमर यूज कर सकती हैं.

ध्यान रखें काजल लगाने से पहले आंखों के नीचे कौंपैक्ट पाउडर लगाएं, फिर काजल लगाएं, इस से काजल फैलेगा नहीं. आंखों में लिक्विड आईलाइनर का प्रयोग न करें. इस की जगह पैंसिल वाला आईलाइनर लगाएं.

यह भी रहे ध्यान

1. गरमी में मेकअप के लिए कौस्मैटिक लेते समय आप औयलबेस्ड मेकअप की जगह वाटरप्रूफ मेकअप का चयन करें.

2. इस सीजन में ब्राइट मेकअप की जगह लाइट मेकअप करें.

3. यदि आप की त्वचा बेदाग है तो बेवजह उस पर फाउंडेशन का प्रयोग न करें.

4. मेकअप की शुरुआत चेहरे व गले पर ऐस्ट्रिजैंट लोशन लगा कर करें. यह लोशन आप के चेहरे का अतिरिक्त तेल सोख लेगा.

5. इस मौसम में चेहरे पर अधिक मात्रा में पाउडर न लगाएं, क्योंकि ऐसा करने से चेहरे के रोमछिद्र पसीने के बहाव को ब्लौक कर सकते हैं.

6. पाउडर लगाने के बाद गीले स्पंज या पफ को हलके हाथ से चेहरे पर थपथपाएं. ऐसा करने से पाउडर लंबे समय तक चेहरे पर टिका रहेगा.

7. आंखों के आसपास अधिक मात्रा में पाउडर न लगाएं.

8. आईशैडो पैंसिल आई मेकअप का एक महत्त्वपूर्ण औजार है. ब्राउन या ग्रे कलर की आईशैडो पैंसिल आंखों के मेकअप को सौफ्ट और स्मोकी लुक देती हैं.

9. चिलचिलाती गरमी के इस मौसम में प्लेन लिपग्लौस ही लिप मेकअप के लिए काफी है या फिर लाइट कलर की लिपस्टिक लगा कर उस पर लिपग्लौस लगा सकती हैं.

10. इस मौसम में लिपस्टिक के डार्क शेड अवाइड करें.

11. गरमी में टी जोन में सब से ज्यादा पसीना आता है, इसलिए जरूरी है कि आप औयल सोखने वाले पैड यूज करें. इन्हें औयल औबर्र्ज्व पैड कहते हैं. इन के इस्तेमाल से चेहरा फ्रैश दिखेगा.

12. मेकअप उतारने के लिए अलकोहलफ्री मेकअप रिमूवर का प्रयोग करें.

सिर्फ 15 मिनट में घूम सकती हैं आप दुनिया के ये खूबसूरत शहर

आपको कहीं भी घूमने के लिए कितने दिनों की जरूरत होती है? किसी भी जगह पर ठीक से घूमने के लिए कम से कम एक दिन तो चाहिए, लेकिन इस बात से उलट दुनिया में कुछ शहर इतने छोटे हैं. जहां घूमने के लिए 15 मिनट काफी है. छोटा होने के साथ साथ ये जगह बेहद खूबसूरत और आकर्षक भी है, इन जगहों के छोटे होने का सहसे बड़ा फायदा यह होता है कि हर कुछ हमें हमारे आस पास ही मिल जाती है. किसी चीज की तलाश में हमें ज्यादा भटकना नहीं पड़ता. आप यहां भी घूम सकती हैं. आइए, जानते हैं ऐसे ही शहरों के बारे में.

यूरोप, वेटिकन सिटी

दुनिया के इस सबसे छोटे देश को ‘The Holy See’ के नाम से भी जाना जाता है. यूरोप के रोम इटली से घिरे इस देश में अपना वीकेंड स्पेंड करने के लिए टूरिस्ट दूर-दूर से आते है. 0.44 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस शहर की आबादी केवल 842 है.

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पश्चिमी यूरोप, मोनाको

पश्चिमी यूरोप में स्थित यह दुनिया का दूसरा सबसे छोटा देश है. फ्रांस और भूमध्य सागर से घिरे इस देश में घूमने के लिए कई बुटीक, नाइटक्लब, लिक्सी होटल और रेस्तरां हैं.

अमेरिका, सेंट जोन्स

कैरिबियन सागर और आंध्र महासागर के बीच में स्थित सेंट जोन्स भी दुनिया के सबसे छोटे देशों में गिना जाता है. पर्यटन के क्षेत्र पर अंतररष्ट्रीय स्तर में अपनी एक अलग पहचान वाले इस देश में घूमने के लिए खूबसूरत समुद्र तट, वर्षावन और रिसौर्ट हैं.

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औस्ट्रेलिया, नाउरू

औस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में माइक्रोनेशिया में स्थित इस छोटे से द्वीप पर भी घूमने के लिए कई टूरिस्ट आते हैं. यह तीसरे सबसे छोटा देश कोरल रीफ्स और सफेद रेतीले तटों से घिरा हुआ है.

कैरिबियाई सागर, ग्रेनाडा

कैरिबियाई सागर के दक्षिणी किनारे पर स्थित ग्रेनाडा देश 6 द्वीपों से मिलकर बना है. इसके बावजूद भी यह दुनिया के सबसे छोटे देशों में शामिल हैं. यहां पर घूमने के लिए खूबसूरत समुद्र के साथ-साथ जायफल बागानों का घर और कई खूबसूरत जगहें हैं.

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मालदीव

अपनी खूबसूरती के लिए दुनियाभर में मशहूर इस द्वीप पर घूमने के लिए हर साल पर्यटकों की भीड़ लगती है. कपल्स के लिए हनीमून डेस्टीनेशन के लिए मशहूर इस शहर को भी सबसे छोटा देश माना जाता है.

अफ्रीका, माल्टा

यह उत्तरी अफ्रीकी यूरोपीय महादीप का एक विकसित देश है, जहां हर साल कई टूरिस्ट आते हैं. 316 वर्ग क्षेत्रफल वाले इस देश में आप खूबसूरत समुद्र के साथ-साथ कई और जगहें देख सकती हैं.

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ज्वाइंट होम लोन लेकर बचा सकती हैं 7 लाख तक का टैक्स

आयकर की धारा 80सी और सेक्शन 24बी के अंतर्गत आप होम लोन की अदायगी पर कर छूट का भारी लाभ ले सकती हैं. होम लोन की अदायगी पर मूलधन में 1.50 लाख रुपए तक और ब्याज के हिस्से पर 2 लाख रुपए तक की इनकम टैक्स छूट का प्रावधान है. साथ ही यदि आपका पार्टनर भी वर्किंग हैं और आपने ज्वाइंट होम लोन लिया है तो यह कर छूट 7 लाख रुपए तक हो सकती है. हम अपनी इस खबर में आपको इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं.

ऐसे समझिए कर छूट को

टैक्स एक्सपर्ट के मुताबिक 80 सी के अंतर्गत हम जीवन बीमा, पीपीएफ, ईएलएसएस जैसे तमाम निवेश विकल्पों में निवेश करके 1.50 लाख रुपए तक इनकम टैक्स बचा सकती हैं. साथ ही यह 1.50 लाख रुपए की सीमा होम लोन की अदायगी में मूलधन के हिस्से पर भी लागू होती है. उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति ने पूरे वित्त वर्ष के दौरान 2,00,000 रुपए का होम लोन चुकाया है. जिसमें 1.50 लाख मूलधन और 50 हजार ब्याज है.

ऐसी स्थिति में करदाता किसी अन्य विकल्प में निवेश न करके पूरी 1.50 लाख रुपए की छूट का दावा कर सकता है. मूलधन की तरह ही सेक्शन 24 बी के तहत कोई भी करदाता वित्त वर्ष के दौरान ब्याज की अदायगी पर 2 लाख रुपए तक की कर छूट ले सकता है.

ज्वाइंट होम लोन का कैसे मिलेगा लाभ

यदि आपने अपने पार्टनर के साथ ज्वाइंट होम लोन ले रखा है तो आप सालभर के दौरान 7 लाख रुपए तक की छूट का फायदा ले सकती हैं. सालभर के दौरान जितना भी होमलोन अदा किया गया है उसके मूलधन और ब्याज की राशि पर दोनों करदाता आधी राशि पर आयकर की छूट क्लेम कर सकती हैं. उदाहरण के तौर पर यदि सालभर के दौरान कुल 7 लाख रुपए का होम लोन चुकाया गया है, जिसमें 3 लाख मूलधन और 4 लाख ब्याज है. ऐसी स्थिति में दोनों करदाता 3.5 लाख रुपए तक की छूट क्लेम कर सकते हैं.

एग फ्रीजिंग कैंसर रोगियों के लिए वरदान

भारत में हर साल करीब 1.25 करोड़ लोग कैंसर से पीड़ित पाए जाते हैं. इन में 5,99,000 से अधिक महिलाएं होती हैं. आंकड़े दर्शाते हैं कि इन में से करीब 50 प्रतिशत कैंसर रोगियों की उम्र 50 वर्ष से कम होती है.

युवा कैंसर रोगियों की इस तेजी से बढ़ती संख्या से उन की प्रजनन क्षमता को संरक्षित रखने को ले कर चिंता व्यक्त की जाने लगी है. अब तक तो किसी कैंसर पीड़ित को ले कर चिकित्सकों का मुख्य फोकस इस पर होता था कि कैंसर कोशिकाओं को हटा कर किसी तरह से मरीज की जान बचाई जाए. प्रजनन और बच्चे पैदा करने की क्षमता आदि के बारे में कम ही ध्यान दिया जाता था. परंतु, प्रौद्योगिकी में सुधार और चिकित्सा में प्रगति होने के साथ अब मरीज की जान बचाने के अलावा यह भी देखा जाने लगा है कि इलाज के बाद उस व्यक्ति को संतानोत्पत्ति योग्य भी बनाया जाए.

कैंसर रोगी अब अकसर बचा लिए जाते हैं और चिकित्सकीय प्रगति इस बीमारी पर भारी पड़ने लगी है. ऐसे में कैंसर से बचाए जा चुके लोग अब संतानोत्पत्ति और पारिवारिक जीवन के बारे में सोच सकते हैं.

कैंसर और बांझपन का खतरा

 एक कैंसर रोगी के बांझपन का खतरा कैंसर के प्रकार और उसे दिए जा रहे विशेष उपचार पर निर्भर करता है. विभिन्न प्रकार के कैंसर और उन के उपचार, जैसे- कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी, सर्जरी, टारगेटेड और जैविक (इम्यून) चिकित्सा, बोन मैरो या स्टेम सैल प्रत्यारोपण आदि गर्भधारण करने में रोगी की क्षमता को विभिन्न तरह से प्रभावित कर सकते हैं. ऊसाइट (प्रजनन में शामिल जर्म सैल) पर विषैले प्रभाव के कारण कीमोथेरैपी एक कैंसर रोगी की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है.

रोगी की आयु, दवाओं की मात्रा और उन के प्रकार के आधार पर नुकसान का अंदाजा लगाया जा सकता है. कीमोथेरैपी में प्रयोग होने वाली मेथोट्रेक्जेट जैसे एंटीमेटाबोलाइट्स से बांझपन का कम खतरा होता है, जबकि साइक्लोफौस्फेमाइड जैसे एल्काइलेटिंग एजेंटों से यह खतरा बढ़ जाता है. रेडिएशन थेरैपी से बांझपन का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन ओवरी ट्रांसपोजीशन जैसी विधियां सुरक्षित हैं, जिन में ओवरीज को सर्जरी के जरिए रेडिएशन वाले क्षेत्र से अस्थायी तौर पर हटा दिया जाता है. जोखिम को कम करने के लिए रेडिएशन शील्डिंग का प्रयोग किया जाता है. यदि प्रजनन अंग में कोई बदलाव न हुआ हो, तो कैंसर की सर्जरी में आमतौर पर बांझपन का खतरा कम ही रहता है.

स्तन कैंसर या अन्य किसी कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली हार्मोन थेरैपी एक महिला की बच्चे पैदा करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है. टेमहृक्सीफैन लेने वाली महिलाएं गर्भवती हो सकती हैं, लेकिन इस से शिशु में जन्मजात दोष हो सकते हैं, इसलिए इसे लेते समय प्रभावी बर्थ कंट्रोल का उपयोग करने की सलाह दी जाती है. अन्य हार्मोन चिकित्साएं अंडे बनने की प्रक्रिया को पूरी तरह से रोक सकती हैं क्योंकि ऐसी महिला रोगी को एक तरह से अस्थायी रजोनिवृत्ति या मेनोपौज की स्थिति में रखा जाता है. कुछ नए उपचारों के बांझपन संबंधी जोखिम अस्पष्ट रहते हैं. यह सच है कि कई टारगेटेड उपचार एंजाइमों को रोकते हैं, लेकिन उन सभी एंजाइमों की प्रतिक्रिया के बारे में अधिक जानकारी नहीं है.

क्या होती है एग फ्रीजिंग

युवा कैंसर रोगियों के लिए एग फ्रीजिंग तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है, विशेषकर उन के लिए जो विवाह योग्य हैं. यह एक सामान्य तथ्य है कि कीमोथेरैपी, रेडिएशन थेरैपी और सर्जरी आदि के दौरान कैंसर पीड़ित स्त्रियों के डिंब या एग्स नष्ट हो जाते हैं जिस से प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. इसलिए, कैंसर की प्रकृति, इलाज की विधि, और संबंधित खतरों को ध्यान में रखते हुए एक युवा महिला रोगी को एग फ्रीजिंग की सलाह दी जा सकती है.

क्या है प्रक्रिया

 क्रायोप्रिजर्वेशन महिलाओं में प्रजनन क्षमता को बरकरार रखने की एक जांचीपरखी विधि है और इस में काफी हद तक सफलता मिल जाती है. यह ऐसे मरीजों के लिए लाभकारी विधि है जिन्होंने अभी अपने परिवार की योजना नहीं बनाई है, लेकिन आगे ऐसी इच्छा रखते हैं. इस प्रक्रिया में शुक्राणुओं के संपर्क से बचे परिपक्व एग्स को अलग कर शीतलन हेतु सुरक्षित कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया को एग बैंकिंग भी कह सकते हैं.

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फ्रोजन एग को बाद में एक शुक्राणु से निषेचित करा कर उस महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जो शिशु को जन्म देने की इच्छुक है. हालांकि, कुछ मामलों में, जो कैंसर एस्ट्रोजन पर निर्भर हैं, इस विधि को विशेष सावधानी से प्रयोग में लाया जाता है, ताकि घूम रहा एस्ट्रोजन कैंसर को आगे न फैला दे.

उदाहरण के तौर पर, यदि एक 32 वर्षीया अविवाहित महिला को स्तन कैंसर है. उस की कीमोथेरैपी से पहले ही 18 अंडे फ्रीज किए हुए थे. वह 3 साल बाद वापस लौटती है और इस बार उस की शादी हो चुकी है. उस का गर्भाशय तैयार था, अंडे डीफ्रीज किए गए, और उस के पति से प्राप्त शुक्राणुओं का उपयोग कर के अंडों को निषेचित यानी फर्टिलाइज किया गया. इस प्रक्रिया को इंट्रोसिस्टोप्लाज्मिक स्पर्म इंजैक्शन (आईसीएसआई) कहते हैं. इस से 8 भ्रूण प्राप्त किए गए और 3 को उस महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया गया. अन्य भू्रणों को फ्रीज कर दिया गया. इस तरह से वह गर्भवती हो गई और अब उस के एक वर्ष का लड़का है. यदि वह दूसरे बच्चे के लिए फिर क्लिनिक आती है, तो फ्रीज किए गए बाकी भू्रण प्रयोग किए जा सकते हैं. यह किसी वैज्ञानिक उपलब्धि से कम नहीं है, जिस की सुविधा 5 वर्षों पहले तक हमारे देश में नहीं थी.

कैंसर के इलाज और रेडिएशन थेरैपी लेने के बाद किसी की प्रजनन क्षमता के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. इसलिए, एग फ्रीजिंग तकनीक के सहारे, ठीक हो चुके ऐसे कैंसर रोगियों से संतानोत्पत्ति की अपेक्षा की जा सकती है जिन की प्रजनन क्षमता भले ही खत्म हो चुकी हो. यह तकनीक निश्चिततौर पर कैंसरपीड़ित युवा महिलाओं के लिए एक वरदान की तरह है.       –

(लेखक ब्लूम आईवीएफ ग्रुप के मैडिकल डायरैक्टर हैं.)

इस बार श्रद्धा कपूर नहीं बल्कि कैटरीना के साथ डांस करेंगे वरुण धवन

बौलीवुड एक्टर वरुण धवन इंडस्ट्री के ऐसे एक्टर हैं जिनकी आज तक रिलीज हुई सारी फिल्में सुपरहिट रही हैं. दर्शक केवल उनके लुक्स को ही नहीं बल्कि उनकी एक्टिंग को भी पसंद करते हैं. चाहे वह सीरीयस रोल निभाए या फिर कौमेडी हर तरह के किरदार में दर्शक उन्हें पसंद करते हैं. कुछ वक्त पहले वरुण सलमान खान की फिल्म ‘जुड़वा’ के सीक्वल में नजर आए थे.

इस फिल्म में वरुण की एक्टिंग ने दर्शकों को काफी हंसाया और अब वह जल्द ही सलमान खान की फेवरेट एक्ट्रेस कैटरीना कैफ के साथ भी फिल्म करने वाले हैं. माना जा रहा है कि यह फिल्म ‘एबीसीडी’ का सीक्वल है और इस बार वरुण श्रद्धा कपूर को छोड़ कैटरीना कैफ के साथ डांस करते हुए नजर आएंगे.

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दरअसल, रेमो डीसूजा के निर्देशन में बनी फिल्म ‘एबीसीडी 2’ के बाद अब वह ‘एबीसीडी’ के तीसरे पार्ट को बनाने की तैयारी कर रहे हैं और इस फिल्म में वरुण धवन लीड रोल में नजर आएंगे. फिल्म में उनका साथ इस बार कैटरीना कैफ देंगी. ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श के एक ट्वीट के मुताबिक इस बार फिल्म में वरुण के साथ कैटरीना नजर आएंगी. यहां आपको यह भी बता दें कि वरुण और कैटरीना की एक साथ यह फिल्म पहली फिल्म है.

बता दें, अब तक इस फिल्म का नाम तय नहीं हुआ है लेकिन फिल्म को सबसे बड़ी डांस फिल्म बताया जा रहा है. इस फिल्म को रेमो और भूषण कुमार द्वारा मिल कर बनाया जा रहा है. फिल्म में प्रभूदेवा भी नजर आएंगे. वहीं राघव जुयल, धर्मेश और पुल्कित पाठक भी इस फिल्म में नजर आएंगे. इस फिल्म को अगले साल नवंबर में रिलीज किया जाएगा. गौरतलब है कि इससे पहले रेमो ‘एबीसीडी’ और ‘एबीसीडी 2’ जैसी दो डांस फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं और ये दोनों फिल्में बौक्स औफिस पर हिट रहीं थी.

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