निजी स्कूलों की मनमानी और खाली होती अभिभावकों की जेब

पढ़ाई के नाम पर कमाई की दुकान का दूसरा नाम बन चुके प्राइवेट स्कूलों को न तो बच्चों की पढ़ाई की चिंता है न उन की सुरक्षा की, उन्हें चिंता है तो बस अपने हित साधने की. क्लासरूम में बच्चों के लिए भले ही सहूलियतें न हों पर वे फीस समय पर वसूलते हैं. आनेजाने की नियमित सुविधा दें या न दें पर बस का किराया पूरा व समय पर लेते हैं.

शिक्षा के नाम पर किताबकौपियां, बस किराया, वरदी, जूते आदि से ले कर बिल्ंिडग फंड के नाम पर भी अभिभावकों से लाखों वसूले जाते हैं.

दिल्ली के एक निजी स्कूल को उदाहरणस्वरूप लेते हैं, जिस में 11वीं कक्षा की 3 महीने की फीस का लेखाजोखा कुछ इस तरह है :

ट्यूशन फीस के नाम पर पेरैंट्स पर दोहरी मार पड़ती है क्योंकि वे स्कूल में भी ट्यूशन फीस देते हैं और बाहर कोचिंग की भी. हर 3 महीने में डैवलपमैंट फीस लेने का क्या औचित्य है? फीस में ऐक्टिविटी चार्जेज तो जोड़ दिए जाते हैं लेकिन अधिकांश स्कूलों में अलग से भी इस की वसूली की जाती है.

स्कूल हर साल बिना किसी रोक के फीस बढ़ा देते हैं, भले ही अभिभावक लाखों धरनाप्रदर्शन करें. सरकार कैसे भी कड़े नियम बनाए, इन की दुकानदारी न तो रुकती है और न ही इन पर कोई बंदिश लगती है. फीस बढ़ाने का कोई न कोई बहाना स्कूल ढूंढ़ ही लेते हैं.

हाल में निजी स्कूलों ने 7वें वेतन आयोग को लागू करने के नाम पर फीस में भारी वृद्धि की है. उन का कहना है कि स्कूली खर्च व 7वें वेतन आयोग के एरियर को देने के लिए फीस वृद्धि जरूरी है. 7वें वेतन आयोग के अनुसार शिक्षकों का वेतन बढ़ाया गया है पर इस की असल मार तो अभिभावक ही सह रहे हैं. जो शिक्षक कम वेतन पर काम करने को तैयार थे और उसी लायक थे, उन्हें वेतन में भारी वृद्धि, बिना कुछ किए मिल गई.

लूट का खेल

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि निजी स्कूल सेवा देने के बजाय लूट रहे हैं. सच ही है कि कभी फीस के नाम पर तो कभी ऐडमिशन के लिए लाखों के डोनेशंस लिए जाते हैं. पिछले साल ईस्ट दिल्ली के एक निजी स्कूल में अपने बच्चे का दाखिला करवाने के लिए एक मां को काफी परेशान होना पड़ा.

असल में पूरा माजरा यह था कि उस का अपने पति से किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था जिस कारण वह अपने मायके में रह रही थी. वहां रह कर जब वह अपने बच्चे का ऐडमिशन करवाने एक निजी स्कूल में गई तो उस से मातापिता दोनों की उपस्थिति को जरूरी बताया गया. जब उस ने स्कूल प्रशासन को वास्तविक स्थिति से अवगत कराया तो स्कूल ने उस के बच्चे को ऐडमिशन देने से मना कर दिया.

बच्चे की मां रिक्वैस्ट करने लगी तो प्रिंसिपल ने साफ शब्दों में कहा, ‘‘हम आप के बच्चे को ऐडमिशन सिर्फ एक ही शर्त पर देंगे जब आप हमें डोनेशन देंगी.’’ उस बेचारी मां, जिस की कोई गलती भी नहीं थी, को अपने बच्चे के ऐडमिशन की खातिर लाखों रुपए देने पड़े.

यही नहीं, जो काम सस्ती किताबों से चल सकता है उस की आड़ में भी कमीशन कमाने के चक्कर में पेरैंट्स पर जबरदस्ती स्कूल से ही किताबकौपियां, यूनीफौर्म तक खरीदने का दबाव डाला जाता है. छोटे बच्चों की जो किताबें बाहर से 2,000-2,500 रुपए में आसानी से मिल जाती हैं उन्हें स्कूल वाले पब्लिशर्स से सांठगांठ कर महंगे दामों पर बेच कर अपनी जेबें भरते हैं.

आज शिक्षक कक्षा में जाते जरूर हैं लेकिन वे सीमित पाठ्यक्रम पढ़ाने में ही विश्वास रखते हैं वरना उन का निजी ट्यूशन पढ़ाने वाला बिजनैस पिट जाएगा. शिक्षक बच्चों को अच्छे मार्क्स दिलाने का भरोसा दिलवा कर उन्हें बाहर ट्यूशन पढ़ने पर मजबूर करते हैं. 7वें वेतन आयोग में बढ़ी पगार के साथ ट्यूशन की दरें भी बढ़ा दी गई हैं.

स्कूल में पढ़ाने में ज्यादा मेहनत न करने के बावजूद टीचरों को पूरी पगार मिल रही होती है, वहीं ट्यूशन का बिजनैस भी जोरों से चल रहा होता है.

असुरक्षा का बोलबाला

स्कूल को बच्चों का दूसरा घर कहा जाता है. पेरैंट्स अपने बच्चों के लिए ऐसे स्कूलों का चयन करते हैं जो उन के बच्चों को ऐडवांस स्टडीज देने के साथसाथ उन की सुरक्षा की भी पूरी गारंटी दें.

यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐडमिशन देने के वक्त सुरक्षा के लाख दावे किए जाते हैं, लेकिन एक बार ऐडमिशन होने के बाद ऐसे सारे दावे खोखले साबित होते हैं. आएदिन स्कूल बस ड्राइवर की गलती से कोई न कोई बच्चा ऐक्सिडैंट और शिक्षकों की हवस का शिकार होता है.

इन सब के बावजूद उन के खिलाफ कोई खास कार्यवाही नहीं होती. हाल ही में दिल्ली के निकट गुरुग्राम के एक स्कूल में दूसरी शिक्षा में पढ़ने वाले छात्र की स्कूल के वाशरूम से बौडी मिली. इस हादसे के बाद पेरैंट्स के मन में एक डर बना रहता है जब तक कि उन का बच्चा स्कूल से सहीसलामत घर वापस नहीं लौट आता.

सरकारी बनाम निजी स्कूल

हर जगह निजी स्कूलों का ही शोर है. यहां तक कि पेरैंट्स भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाना चाहते हैं. क्योंकि एक तो यह स्टेटस सिंबल बन चुका है और दूसरा उन्हें लगता है कि उन का बच्चा प्राइवेट स्कूल में ही अच्छी पढ़ाई कर पाएगा. माना तो यह भी जाता है कि निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं.

हालांकि, यह सोच गलत है. सरकारी स्कूलों के टीचर्स ज्यादा क्वालीफाइड होते हैं क्योंकि वे कई परीक्षाएं पास कर नौकरी हासिल करते हैं, जबकि निजी स्कूलों में कम सैलरी लेने वाले शिक्षक को प्रमुखता दे कर रखा जाता है.

हमारे देश में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता. पेरैंट्स भी अपने बच्चों को ऐसे बच्चों से बात करने से मना करते हैं. ‘हिंदी मीडियम’ फिल्म में भी यही दर्शाया गया.

विदेशों की तरह भारत में भी समान शिक्षा के अधिकार कानून पर सख्ती से पालन किया जाना चाहिए ताकि सब को सामान शिक्षा मिले और निजी स्कूलों का लूट का गोरखधंधा रुक सके.

सरकारी स्कूलों के प्रति बेरुखी का एक कारण यह भी है कि इन में हर जाति, धर्म, वर्ग व गरीब के घरों से बच्चे आ रहे हैं और ऊंची जातियों के मातापिता नहीं चाहते कि उन के बच्चे नीची जातियों के घरों के बच्चों के साथ पढ़ें चाहे उन का घरेलू आर्थिक स्तर कैसा भी क्यों न हो.

आप को बता दें कि इन सब के लिए कहीं न कहीं अभिभावक भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वे फुली स्मार्ट क्लासेज, स्कूल की शानदार बिल्ंिडग को देख कर अपने बच्चों का ऐडमिशन ऐसे स्कूलों में करवा देते हैं. ऐसा वे अपने स्टेटस के लिए करते हैं. भले ही उस स्कूल की फैकल्टी अच्छी हो या न हो. अगर अभिभावक इस चकाचौंध से बाहर निकलें तो निजी स्कूलों की मनमानी बहुत जल्द रुक जाएगी और पेरैंट्स खुद को लुटने से बचा पाएंगे.

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बाबागीरी का गोरखधंधा : चमत्कारों से भरे कार्यक्रम क्यों दिखा रहे हैं चैनल

– ‘बाबा की ऐयाशी का अड्डा’

– ‘गुफा का रहस्य’

– ‘दत्तक पुत्री का सच’

आजकल लगभग हर न्यूज चैनल ऐसी कितनी ही कहानियां और गुफा के आभासी वीडियो दिखा कर लोगों को भ्रमित कर रहा है.

सवाल उठता है कि खोजी मीडिया चैनल्स इतने सालों से कहां थे? न तो बाबा नए हैं, न ही गुफाएं रातोंरात बन गई हैं. फिर यह कैसी दबंग पत्रकारिता है जो अब तक सो रही थी. अब बाबाओं के जेल जाते ही यह मुखरित होने लगी है.

इन स्वार्थी और अवसरवादी चैनलों पर भी जानबूझ कर जुर्म छिपाने का आरोप लगना चाहिए, क्योंकि ये दावा करते हैं कि–देशदुनिया की खबर सब से पहले, आप को रखे सब से आगे… वगैरहवगैरह.

किसी भी बाबा का मामला उजागर होते ही सारा इलैक्ट्रौनिक मीडिया एक सुर में अलापना शुरू कर देता है कि लोग इतने अंधविश्वासी कैसे हो गए?

चैनल्स राशिफल, बाबाओं के प्रवचन, तथाकथित राधे मां या कृष्णबिहारी का रंगारंग शो, प्यासी चुडै़ल, नागिन का बदला, कंचना, स्वर्गनरक, शनिदेव जैसे तमाम अंधविश्वासों पर आधारित कार्यक्रम दिनरात चला कर लोगों के दिमाग में कूड़ा भरते हैं और बेशर्म बन कर टीवी पर चोटी कटवा जैसे मुद्दे पर डिबेट करवाते हैं. फिर पूछते हैं कि लोग अंधविश्वासी कैसे बन गए.

अगर सच में आप जनता को सचाई दिखाना चाहते हैं तो अपने जमीर को जिंदा कर दिखाएं. गरीबी से जूझ रहे लोगों, बढ़ती बेरोजगारी, रोजाना बढ़ रही महंगाई, अस्पतालों की अवस्था, डाकू बने डाक्टरों, जगहजगह पड़े कचरे के ढेरों, भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी तंत्रों की जमीनी हकीकत और निष्पक्ष जांच न्याय प्रणालियों को दिखाओ. तब जा कर नए भारत का सपना कुछ हद तक सही हो सकता है.

पिछले दिनों एक दैनिक अखबार के मुखपृष्ठ पर एक विज्ञापन छपा था. अखबार के एक ही एडिशन में उस के छपने की कीमत कम से कम डेढ़दो लाख रुपए तो होगी ही. ऐसे न जाने कितने एडिशनों में यह विज्ञापन छपा था.

समझ में यह नहीं आता कि इतने महान बाबाओं के समागमों और प्रवचनों के बावजूद देश में असमानता, हिंसक वारदातें, अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं. यही न कि धर्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाते रहो और अपनी दुकान चलाते रहो.

विज्ञापन में यह दावा भी किया गया कि इस कथित ब्रह्मांडरत्न को साक्षात श्रीहरि ने देवराज इंद्र को प्रदान किया था.

कहते हैं कि जिस देश की प्रजा जैसी होती है, उसे वैसा ही राजा मिल जाता है. इस में कमी हम भारतीयों की भी नहीं है. किसी गरीब को 10 रुपए मेहनत के देने हों तो उसे पाठ पढ़ा देंगे, लेकिन मंदिरमसजिदों में, बाबाजी के समागमों में हजारों खर्च कर देंगे.

मीडिया भी है जिम्मेदार

आध्यात्मिक या धार्मिक पोंगापंथ फैलाने वाले चैनल्स व समाचारपत्र बाबाओं की एक ऐसी फौज खड़ी कर रहे हैं जो देश में धर्म के नाम पर लूटखसोट मचा रही है. लगातार बढ़ रही इन की फेहरिस्त और इन पर हर रोज चलने वाले बाबाओं के प्रवचनों में आध्यात्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाया जा रहा है.

धर्मभीरू जनता का जितना शोषण धार्मिकता का लबादा ओढ़े इन बाबाओं ने किया है, उस में चैनलों और समाचारपत्रों का भी बराबर या उस से भी ज्यादा हाथ है. चैनल अपने फायदे को कैश करने के लिए बाबाओं को बराबर पब्लिसिटी और एंकर तक मुहैया करवा कर उन का तथाकथित धार्मिक सामान बेचने का औफर दे रहे हैं.

पाखंडी बाबा किसी भी तरह से अपनी जेबें भरने में जुटे हुए हैं. इन की प्रौपर्टी और बैंकबैलेंस का मुकाबला कुबेरपति भी नहीं कर सकते. भक्तों के बीच ये ऐसे महात्मा हैं जिन का माहात्म्य विवादों में उलझ कर रह गया है. ये मोहमाया छोड़ने का आह्वान करते हैं जबकि वे खुद गले तक मोह और माया में जकड़े हुए हैं.

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अंडे के छिलके में छिपा है खूबसूरती का राज, बस इस तरह करें इस्तेमाल

अंडे का इस्तेमाल न केवल सेहत बनाने के लिए किया जाता है बल्क‍ि ये रूप निखारने के भी काम आता है. अंडा का सफेद हिस्सा हो या फिर उसकी जर्दी, दोनों ही सेहत और सुंदरता के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है. पर क्या आपने कभी अंडे के छिलके से रूप निखारने की बात सुनी है? कम ही लोगों को पता होगा कि अंडे के छिलके का इस्तेमाल त्वचा से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने के लिए किया जा सकता है.

विशेषज्ञों की मानें तो अंडे के छिलके से त्वचा से जुड़ी कई तरह की परेशानियों से छुटकारा पाया जा सकता है. इसके साथ ही अंडे के छिलके के सही इस्तेमाल से त्वचा साफ होती है और नेचुरल ग्लो आता है.

अब सवाल ये उठता है कि अंडे के छिलकों का इस्तेमाल किया किस तरह जाए? अंडे के छिलके का इस्तेमाल करने से पहले उसे अच्छी तरह सुखा लेना बहुत जरूरी है. अंडे को फोड़ने के बाद छिलके को धूप में सुखा लें. उसके बाद इसे पीसकर पाउडर बना लें. आप चाहें तो इस पाउडर में कई दूसरे पोषक तत्व भी मिला सकती हैं और उसके बाद इस्तेमाल में ला सकती हैं.

अंडे के छिलके को इस्तेमाल में लाने के कई तरीके हो सकते हैं. जैसे, अगर आपको साफ-सुथरी और दाग-धब्बों से रहित त्वचा चाहिए तो अंडे के छिलके के पाउडर में सिरका मिलाकर पेस्ट बना लीजिए. इस पेस्ट से चेहरे पर हल्के हाथों से मसाज कीजिए. इस उपाय से कुछ ही दिनों में आपको गोरी-निखरी त्वचा नजर आने लगेगी.

किस तरह करें इस्तेमाल?

1. अंडे के छिलके से बने पाउडर में नींबू का रस या फिर सिरका मिलाकर लगाने से त्वचा पर मौजूद दाग-धब्बे तो साफ हो ही जाते हैं साथ ही संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है. अगर आपको किसी तरह का स्क‍िन इंफेक्शन है तो भी ये उपाय बहुत फायदेमंद रहेगा.

2. अंडे के छिलके में दो चम्मच शहद मिलाकर लगाएं. इस उपाय से जहां चेहरे पर चमक आएगी वहीं उसकी नमी भी बनी रहेगी. पाउडर और शहद को मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें और उसे प्रभावित जगह पर लगाएं. एक सप्ताह के भीतर आपकी त्वचा में फर्क नजर आने लगेगा.

3. अंडे के छिलके से बने पाउडर में थोड़ी सी मात्रा में चीनी पाउडर मिला लें. इसमें अंडे के सफेद हिस्से को डालकर अच्छी तरह फेंट लें. इस मास्क को सप्ताह में एकबार लगाए. कुछ बार के इस्तेमाल से ही आपको फर्क नजर आने लगेगा.

4. आप ब्रश तो हर रोज करते होंगे लेकिन क्या उसके बावजूद आपके दांत पीले हैं? अगर आपके दांत पीले हैं तो इस पाउडर से दांतों पर नियमित मसाज करें. इससे दांत नेचुरल तरीके से सफेद हो जाएंगे.

5. आप चाहें तो इस पाउडर में एलोवेरा जेल मिलाकर भी चेहरे पर लगा सकते हैं. इसके इस्तेमाल से त्वचा की आवश्यक नमी बनी रहती है और चेहरे पर निखार आता है.

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लाजवाब है बेसन कप, तो आज शाम यही ट्राई करें

सामग्री

– 50 ग्राम बेसन

– 20 ग्राम आटा

– 2 छोटे चम्मच चीनी पाउडर

– 50 ग्राम मक्खन

– 2 छोटे चम्मच तेल

– 1/2 छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर

– चुटकी भर कालीमिर्च पाउडर

– चुटकी भर लालमिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

सामग्री फिलिंग की

– 1 शिमलामिर्च

– 1 प्याज

– 150 ग्राम मोजरेला चीज कसा हुआ

– 10 ग्राम मटर

– 50 ग्राम मेयोनीज

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच ओरिगैनो

– 50 ग्राम अमेरिकन कौर्न

– थोड़ा सा तेल

नमक स्वादानुसार

विधि कप की

बेसन, आटा व बेकिंग पाउडर को एकसाथ मिलाएं और फिर इस में मक्खन, नमक, कालीमिर्च, अजवाइन, लालमिर्च पाउडर और गरममसाला डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. अब थोड़ा तेल डाल कर गूंध लें. थोड़ा पानी छिड़कें और कड़ा गूंधें. अब इसे 10 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें. ओवन को 190 डिग्री पर गरम करें. मफिन ट्रे पर हलका तेल लगाएं. अब छोटीछोटी रोटियां बनाएं और मफिन मोल्ड्स में रख कर

10 मिनट तक सुनहरा होने तक बेक करें.

विधि फिलिंग की

प्याज और शिमलामिर्च को काट लें. पैन में तेल गरम करें. अब इस में प्याज, शिमलामिर्च, मटर और कौर्न को तेज आंच में फ्राई करें. फिर आंच धीमी करें और मिश्रण में नमक, कालीमिर्च, ओरिगैनो डालें. अब ढक कर मटरों को पकने तक पकाएं. अब आंच से उतार कर मिश्रण में चीज और मेयोनीज डालें. अब मिश्रण को कपों में भरें और सर्व करें.

व्यंजन सहयोग:

रुचिता कपूर जुनेजा

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दो तरह के होते हैं कार और बाइक इंश्योरेंस, आपके लिये कौन सा है बेहतर

कार और बाइक की खरीद पर लाखों रुपए खर्च करने वाले आम तौर पर व्हीकल इंश्योरेंस करवाते ही हैं. लेकिन ये लोग व्हीकल इंश्योरेंस से जुड़े डेट इंश्योरेंस कवर के बारे में कम जानकारी रखते हैं. हम अपनी इस खबर में आपको इसी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं. साथ ही हम आपको यह भी बताएंगे कि यह सामान्य मोटर इंश्योरेंस कवर से कितना अलग होता हैं.

जीरो डेप्रिशियएशन इंश्योरेंस कवर सामान्य मोटर इंश्योरेंस कवर से कितना अलग: ये एक विशेष प्रकार का इंश्योरेंस कवर होता है, जिसमें व्हीकल के डेप्रिसिएशन के बाद भी फुल इंश्योरेंस की सुविधा दी जाती है. इसे डेट इंश्योरेंस भी कहा जाता है. इसमें आपको सिर्फ फाइल चार्ज देना होता है. एक बार इंश्योरेंस अप्रूवल मिलने के बाद किसी भी नुकसान की पूरी भरपाई कंपनियों की ओर से की जाती है, जबकि जनरल मोटर इंश्योरेंस कवर में आपको सिर्फ व्हीकल के चुनिंदा पार्ट्स को ही कवर करने की सुविधा मिलती है. जनरल इंश्योरेंस में सिर्फ चुनिंदा पार्ट्स पर ही कवर मिलता है लिहाजा इसका प्रीमियम कम होता है जबकि डेट इंश्योरेंस कवर का प्रीमियम काफी ज्यादा होता है क्योंकि इसमें गाड़ी के पार्ट्स नहीं बल्कि पूरी गाड़ी को कवर किया जाता है. इसमें इंश्योरेंस की वैल्यू निकालते दौरान डेप्रिसिएशन को शामिल नहीं किया जाता है.

क्या होती है डेप्रिसिएशन की दर?

डेप्रिसिएशन का मतलब यह होता है कि एक निश्चित अवधि के दौरान व्हीकल की कीमत में नुकसान के कारण कितनी गिरावट आ चुकी है. कार के अलग अलग हिस्सों के हिसाब से डेप्रिसिएशन की दर अलग अलग होती है. यह इंश्योरेंस पौलिसी के हिसाब से तय होती है. मानक दरें इस प्रकार से होती हैं:

  • डेप्रिसिएशन की 50 फीसद की दर कार के उन हिस्सों के लिए होती है जो हाई वियर और टियर से जुड़े होते हैं जैसे कि कार में प्लास्टिक और रबड़ से बने सामान, बैटरी, टायर/ट्यूब इत्यादि.
  • डेप्रिसिएशन की 50 फीसद की दर फाइबर ग्लास पार्ट से जुड़ी होती है.
  • वहीं 0 से 50 फीसद की दर मैटेलिक पार्ट से जुड़ी होती है, जो कि कार की खरीद समय से निर्धारित होती है, यानी कि कार कितनी पुरानी है.

एक्सपर्ट की राय

एक्सपर्ट्स का मानना है कि जीरो डेप्रिसिएशन कवर मोटर इंश्योरेंस पर लागू होता है. दरअसल आपकी गाड़ी हर साल डेप्रिसिएट होती है, तो आप जब भी मोटर इंश्योरेंस रिन्यू करवाते हैं तो आपके इंश्योरेंस की वैल्यू डैप्रिसिएशन के हिसाब से कम हो जाती है. मान लीजिए आपने 3 से 4 लाख में कोई मारूति 800 खरीदी थी तो 10 साल बाद उसकी इंश्योरेंस वैल्यू मुश्किल से 75,000 के आसपास रह जाएगी, क्योंकि गाड़ी की कीमत तब तक काफी गिर चुकी होगी. यह लोगों के लिए घाटे की बात थी. इसीलिए कंपनियों ने जीरो डेप्रिसिएशन के साथ इंश्योरेंस कवर लेने की सुविधा दी, जिसमें एडिशनल प्रीमियम के साथ आप इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं. मतलब यह हुआ कि आपकी गाड़ी के इंश्योरेंस की वैल्यू पिछले साल जितनी थी उसी कीमत पर आपको इस साल भी इंश्योरेंस कवर मिल जाएगा. जीरो डेप्रिसिएशन कवर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें इंश्योरेंस की वैल्यू निकालने के लिए डैप्रिसिएशन को नहीं जोड़ा जाता है. यानी आप समान कीमत पर हर साल इंश्योरेंस कवर प्राप्त कर सकते हैं.

क्या होता है थर्ड पार्टी इंश्योरेंस: जब मोटर वाहन से कोई दुर्घटना होती है तो कई बार इसमें बीमा कराने वाला व बीमा कंपनी के अलावा एक तीसरा पक्ष भी शामिल होता है, जो प्रभावित होता है. यह प्रावधान इसी तीसरे पक्ष यानी थर्ड पार्टी के दायित्वों को पूरा करने के लिए बनाया गया है. भारत में जब वाहन खरीदा जाता है, उसी समय वाहन डीलर बीमा कवेरज की गणना करके कीमत में जोड़ देता है. इस बीमा कवरेज में थर्ड पार्टी कवरेज का हिसाब भी होता है. थर्ड पार्टी कवरेज कुल बीमा का एक छोटा सा हिस्सा होता है.

मोटर वाहन के लिए क्यों है जरूरी?

आपको बता दें यह पौलिसी बीमा कराने वाले को नहीं, बल्कि जो तीसरा पक्ष दुर्घटना से प्रभावित होता है, उसे कवरेज देती है. कई बार ऐसा होता है मोटर वाहन चलाते समय किसी दुर्घटना में सामने वाले की मृत्यु होने या उसके घायल होने का पता चलता है और आपके पास उसके इलाज के लिए इतने पैसे नहीं होते. तो सरकार ने इस स्थिति में उस इंसान के लिए इस थर्ड पार्टी बीमा का प्रावधान रखा है, जिसे हर मोटर वाहन के लिए कानूनी तौर पर अनिवार्य कर दिया गया है. इस थर्ड पार्टी बीमा के तहत दुर्घटना में प्रभावित सामने वाले पक्ष को मुआवजा दिया जाएगा. इसलिए हर साधारण बीमा कंपनी को इस बारे में प्रावधान करना होता है.

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फिल्मों की हैं शौकीन, तो जरूर घूमें दुनिया के ये फिल्म म्यूजियम

आपको फिल्में देखने का शौक है, तो आपको फिल्मों से जुड़ा इतिहास या किस्से कहानियों को जानने में भी दिलचस्पी होगी. तो क्यों ना आज हम आपको इसी बारे में कुछ बताएं. आज हम आपको ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां न सिर्फ आपको घूमने-फिरने में मजा आएगा बल्कि आपको फिल्मों से जुड़ी कई बात जानने को भी मिलेगी.

आज हम आपको जिन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं वहां जाकर आपको फिल्मी इतिहास के बारें में जानने को बहुत कुछ मिलेगा तथा जिन जगहों की सैर पर हम आपको ले जाने के लिये आएं है वे जगह खुद में मशहूर पर्यटन स्थल का स्थान रखते हैं, जिसके बारे में हमने अपने पिछले कुछ लेखों में जिक्र किया है. तो आइए, जानते हैं दुनिया के मशहूर फिल्म म्यूजियम के बारे में.

चीन नेशनल फिल्म म्यूजियम

बीजिंग में दुनिया का सबसे बड़ा चीन नेशनल फिल्म म्यूजियम बना हुआ है, जो लगभग 65 एकड़ में फैला हुआ है. इस म्यूजियम को 2005 में बनाया गया था. म्यूजियम में 1500 फिल्म के प्रिंट, फोटोग्राफ्स और कई एग्जीबिशन हौल भी है. इस म्यूजियम को देखने के लिए हर साल लाखों लोग आते है.

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हौलीवुड म्यूजियम

इस म्यूजियम को वर्ल्ड सिनेमा की राजधानी भी कहा जाता है, जो हौलीवुड के लिए समर्पित माना जाता है. यह म्यूजियम हौलीवुड सिटी में मौजूद है. यहां आपके हौलीवुड से जुड़ी चीजें जैसे कैमरा,कौस्ट्यूम और प्रिंट अन्य आदि देखने को मिलेगा. अनुमान है कि यहां हर एक साल में लगभग 50 लाख से ज्यादा लोग पहुंचते है.

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लंदन फिल्म म्यूजियम

लंदन फिल्म म्यूजियम की स्थापना फरवरी 2008 में हुई, जिसका निर्माण जोनाथन रेत के द्वारा किया गया है. इसे म्यूजियम औफ लंदन भी कहा जाता है. यहां आपको फिल्म सेट्स, कौस्ट्यूमस अन्य आदि चीजें देखने को मिलेंगी.

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म्यूजियम औफ सिनेमा

पेरिस में बने म्यूजियम औफ सिनेमा को 1936 में बनाया गया. यहां आपको सिनेमा की हर बेहतरीन फिल्मों की कौपी देखने को मिलती है. इतना ही नहीं, यहां आपको फ्रेंच सिनेमा का इतिहास भी देखने को मिल जाएंगा.

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इन म्यूजियम्स को घूमने के साथ अगर आप उन जगहों को घूमना चाहती हैं जहां ये फिल्म म्यूजियम हैं तो इसके लिये आपको हमारे पिछले लेखों पर नजर दौड़ाने की जरूरत है, जिन में हमने चीन, पेरिस, हौलीवुड, तथा लंदन के पर्यटन स्थलों का विस्तार से जिक्र किया है.

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फिल्म से पहले मैगजीन के कवर पर नजर आएंगी सुहाना

बौलीवुड के बादशाह शाहरुख खान की तरह उनकी बेटी सुहाना, बेटा आर्यन और अबराम भी हमेशा उतनी ही सुर्खियां बटोरते हैं जितना वह खुद. कभी भी सुहाना, आर्यन या अबराम कहीं स्पौट होते हैं तो उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी तेजी से वायरल हो जाती हैं और खबरें बन जाती हैं.

वहीं शाहरुख ने भी कई मौकों पर बताया है कि सुहाना फिल्म इंडस्ट्री में ही अपना करियर बनाना चाहती हैं. वहीं हाल ही में सुहाना की मां गौरी ने भी एक इवेंट के दौरान इस बात का खुलासा किया है कि वह जल्द ही मैगजीन के लिए फोटोशूट कर सकती हैं.

दरअसल, बीते रविवार को मुंबई में आयोजित हुए एक अवौर्ड शो में शाहरुख अपनी पत्नी गौरी के साथ पहुंचे थे. इस शो के दौरान एक बात-चीत करते हुए गौरी ने कहा कि सुहाना एक मैगजीन के लिए शूट कर रही हैं और मैं उस मैगजीन का नाम तो नहीं बता सकती लेकिन मैं इसके लिए काफी उत्साहित हूं.

बता दें, इस अवौर्ड शो में रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण भी शामिल हुए थे और दोनों को यहां एंटरटेनर औफ द ईयर के अवौर्ड से सम्मानित किया गया.

वहीं सुहाना की बात करें तो यह सब ही जानते हैं कि वह जल्द ही बौलीवुड में एंट्री कर सकती हैं और शाहरुख खान ने भी कुछ वक्त पहले एक इंटरव्यू के दौरान खुलासा किया था और बताया था कि सुहाना बॉलीवुड में काम करना चाहती हैं. इसके साथ उन्होंने यह भी कहा था कि वह अभी से ही एक्टिंग सीख रही हैं और उन्होंने स्कूल प्ले में हमेशा ही अच्छा काम किया है. शाहरुख ने यह भी कहा था कि उन्हें सुहाना के फिल्म इंडस्ट्री में काम करने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन सुहाना को इस इंडस्ट्री का हिस्सा बनने से पहले अपनी पढ़ाई खत्म करनी होगी.

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साइनोसाइटिस से बचना है तो आजमाएं ये उपाय

गर्मी का मौसम आ गया है, इस बदलते मौसम में की गई जरा सी लापरवाही आप पर भारी पड़ सकती है. इस समय साइनोसाइटिस की की ज्यादा समस्या देखने को मिल रही है. ऐसे में इससे बचना बेहद जरूरी है.

आइये जानते हैं यह समस्या कब और कैसे होती है-

हमारी नाक के आस-पास मौजूद साइनस में वायरल इन्फेक्शन, प्रदूषण, इम्यूनिटी की कमी की वजह से, ठंडे पानी या कूलर के ज्यादा इस्तेमाल आदि से साइनोसाइटिस की समस्या सामने आती है. ऐसे में नाक में ज्यादा म्यूकस (नाक का पानी) बनने लगता है, जिससे बार-बार नाक आना, सिरदर्द, बुखार, नाक बंद होना, सर्दी-खांसी, बदन दर्द, आंखों से आंसू आना, दांतों में दर्द या छींक आना जैसी समस्या होने लगती है. साइनस दरअसल नाक के अंदर खतरनाक धूलकणों को पहुंचने से रोकने के काम आता है.

ऐसे रोके साइनोसाइटिस होने से

हमेशा हाइड्रेटेड रहें

दिन में ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की कोशिश करें. इससे शरीर हाइड्रेटेड तो रहता ही है साथ ही म्यूकस भी पतला होता है, जिससे नाक की ब्लॉकेज खत्म होती है और साइनोसाइटिस को रोकने में मदद मिलती है.

नाक को हमेशा रखें साफ

साइनोसाइटिस से बचने के लिए नाक को साफ रखना बेहद जरूरी है. इसके लिए सवेरे-सवेरे अपनी नाक में थोड़ा पानी डालकर सफाई करें. यह काम आप सोने से ठीक पहले भी कर सकते हैं.

नाक के प्रति बरतें नरमी

साइनोसाइटिस या नाक की किसी भी समस्या से परेशान होकर नाक के साथ ज्यादती करने से बचें. इसे जोर से मसलना हानिकारक हो सकता है.

भाप लें

नाक को साफ रखने का सबसे बेहतरीन तरीका होता है भाप लेना. भाप लेने से साइनस में ज्यादा मात्रा में बनने वाला म्यूकस पिघलता है और नाक साफ रहती है. भाप लेने के लिए एक लीटर पानी को उबालकर उसमें थोड़ा सा कपूर मिलाएं. अब इससे तकरीबन 10-15 मिनट तक भाप लें. आराम मिलने तक इसे दुहराते रहें.

रूखे वातावरण से रहें दूर

अगर आपके पास वायु को नम रखने वाला ह्यूमिडिफायर है तो इसका इस्तेमाल कम कर दें. यह आपके नसल पासेज को रूखा बना देता है. इससे साइनस में सूजन को रोकने में मदद मिलती है. शुष्क वातावरण में देर तक बैठने से भी परहेज करें.

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‘द जोया फैक्टर’ में इस ऐक्टर के साथ रोमांस करेंगी सोनम कपूर

बौलीवुड एक्ट्रेस सोनम कपूर इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की शूटिंग में बिजी हैं. इस फिल्म के बाद सोनम जल्द ही अनुजा चौहान के बेस्ट सेलिंग उपन्यास ‘द जोया फैक्टर’ पर बन रही फिल्म में नजर आएंगी. इस फिल्म में सोनम के साथ दलकीर सलमान नजर आएंगे. दलकीर सलमान कन्नड़ फिल्मों के सुपरस्टार हैं. यानी कि एक बार फिर बौलीवुड में नौर्थ और साउथ का मिलन होने वाला है.

इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने में अभी वक्त है, लेकिन इसके लिए फोटोशूट हो चुका है. इसमें सलमान और सोनम काफी मजेदार अंदाज में नजर आ रहे हैं. सोनम कपूर जोया का किरदार निभा रही हैं जबकि दलकेर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान निखिल खोड़ा का किरदार निभाएंगे.

बता दें कि जोया फैक्टर राजपूत लड़की जोया सोलंकी की कहानी है, और एक विज्ञापन एजेंसी में एग्जीक्यूटिव है. अपने काम के दौरान उसकी मुलाकात भारतीय क्रिकेट टीम से होती है, 2010 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में वे टीम का लकी चार्म बन जाती है. जोया सोलंकी का जन्म 1983 तब हुआ था जब भारत ने क्रिकेट विश्व कप जीता था. इस रोमांटिक कौमेडी को ‘तेरे बिन लादेन’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके निर्देशक अभिषेक शर्मा कर रहे हैं.

फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक शर्मा का कहना है, क्रिकेट को रोमांटिक कौमेडी में पिरोया गया है, और इसमें अंधविश्वास से लेकर लक तक जैसा दिलचस्प पहलू जुड़े हुए हैं. इस किताब में कई लेयर्स, कैरेक्टर्स और ट्रैक हैं. जोया के किरदार के लिए मेरे दिमाग में सबसे पहला नाम सोनम का ही आया था.

सलमान को साउथ फिल्म इंडस्ट्री में हिट मशीन के तौर पर जाना जाता है. वह ‘बेंगलूरू डेज’, ‘ओ कधाल कनिमणि’ और ‘कमातिपादम’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में नजर आ चुके हैं. सलमान पहले रोनी स्क्रूवाला की फिल्म कारवां की शूटिंग पूरी करेंगे. इसमें वह इरफान खान के साथ काम कर रहे हैं. इसके बाद वह जोया फैक्टर की शुटिंग में शामिल होंगे. सोनम कपूर और साउथ के स्टार दलकेर सलमान की फ्रेश जोड़ी फिल्म ‘द जोया फैक्टर’ 5 अप्रैल, 2019 को रिलीज होगी.

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