शराब है खराब : घर, परिवार, समाज और प्रतिष्ठा सब को होगा नुकसान

एक बोध कथा है जिस में  अलौकिकता पर न जाएं. कथा के अनुसार, एक दिन शैतान मनुष्य के पास आया और बोला, ‘तुम सब मरने ही वाले हो. मैं तुम्हें मौत से बचा सकता हूं बशर्ते, तुम अपने नौकर को मार डालो, अपनी पत्नी की पिटाई करो या यह शराब पी लो.’

मनुष्य ने कहा, ‘मुझे जरा सोचने दीजिए अपने विश्वसनीय नौकर की हत्या करना मेरे लिए संभव नहीं, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करना बेतुकी बात होगी. हां, मैं यह शराब पी लूंगा.’ उस के बाद उस ने शराब पी ली और नशे में धुत हो कर पत्नी को पीटा तथा जब नौकर ने उस की पत्नी का बचाव करने की कोशिश की तो नौकर को मार डाला.

उपरोक्त बोधकथा से मद्यपान के हमारे जीवन पर पड़ने वाले कुप्रभाव को भलीभांति समझा जा सकता है. निसंहेद मद्यपान का हमारे जीवन पर घातक प्रभाव पड़ता है. किंतु इस के बावजूद आज जिधर देखो उधर युवाबूढ़े, स्त्रीपुरुष, अमीरगरीब सभी इस घातक जहर की चपेट में नजर आते हैं. शराब पीना आजकल फैशन सा बन गया है. फैशनपरस्त लोगों ने साजसिंगार तथा वेशभूषा तक ही सीमित न रह कर शराब को भी उस के दायरे में समेट लिया है. शराब पीने से इनकार करने वाले को अब पुराने विचारों का तथा रूढि़वादी करार दिया जाता है और अपने को आधुनिक व प्रभावशाली साबित करने का इच्छुक हर व्यक्ति उस के खतरों को नजरअंदाज करते हुए या जानेअनजाने में इस के जानलेवा जाल में फंसता जा रहा है.

क्यों पीते हैं शराब

इस के कई कारण हैं. अकसर देखने में आता है कि मानसिक तनाव के कारण लोग शराब पीते हैं. जब व्यक्ति किसी समस्या का हल पाने में असफल होता है तो शराब पी कर उसे भूलने की चेष्टा करता है. अधिकांश मामलों में यही देखा गया है कि हताशा मद्यपान का कारण बनती है. पारिवारिक कलह, आर्थिक अभाव या कभीकभी शारीरिक यंत्रणा से मुक्ति पाने के लिए लोग इसे मुंह से लगा बैठते हैं. किंतु क्या इसे उचित कहा जा सकता है? शराब किसी समस्या का समाधान तो नहीं हो सकती या शराब पी कर भूलने से आप की समस्या का अंत तो नहीं हो जाता. किसी भी परेशानी से घबरा कर शराब पीना एक और परेशानी को गले लगाना है, उस से छुटकारा पाना नहीं.

शराब पीने के लिए लोगों के पास बहानों की कमी नहीं है. कुछ व्यक्ति केवल इसलिए शराब पीते हैं कि लोग उन्हें विशिष्ट समझें, वे शराब को स्टेटस व संपन्नता का प्रतीक मानते हैं. वे यह भूल जाते हैं कि शराब का सेवन करना दिमागी खोखलेपन की निशानी भी है. दिनभर मेहनत करने के बाद शाम को शराब पीने वालों का तर्क होता है कि इस से थकान दूर हो जाती है. ये लोग शराब पीने के बाद डगमगा कर चलने व बेहोश हो जाने को ही शायद थकान का दूर होना समझते हैं.

आजकल किसी भी सामाजिक उत्सव या त्योहार पर गिलासों की खनखनाहट होनी आम बात होती है. ऐसे अवसरों पर अकसर ही यह सुना जाता है कि सोसायटी में रहना है तो उस के हिसाब से ही चलना होगा, और फिर सोसायटी में यह सब चलता ही है. इन चीजों को अपनाए बगैर कोई भी उन्नति नहीं कर सकता. यहां ये लोग शायद यह भूल जाते हैं कि कोई भी व्यक्ति अपने परिश्रम व लगन से उन्नति करता है, शराब पीने से नहीं.

शराब के संपर्क में आने के बाद व्यक्ति के पास चरित्र नाम की कोई चीज नहीं रह जाती है. कहने को इस के बचाव में वह कुछ भी कहता रहे, शराब पी कर वह केवल अपनेआप को धोखा देता है और जो व्यक्ति अपनेआप को धोखा देता है उस का क्या चरित्र हो सकता है.

विचारशक्ति खत्म होती है

कभीकभी कुछ व्यक्ति केवल झगड़ा करने के लिए शराब पीते हैं ताकि स्फूर्ति आ जाए. जबकि, ऐसा होता नहीं है. शराब पीने के बाद आदमी सामान्य नहीं रह पाता है क्योंकि हमारे मस्तिष्क में कुछ ऐसे तंत्र होते हैं जो हमारे बोलनेचालने या काम करने के तौरतरीके आदि को नियंत्रित करते हैं. शराब पीने के बाद वह नियंत्रण समाप्त हो जाता है और आदमी के सोचनेसमझने की शक्ति खत्म हो जाती है. वह उचितअनुचित का भेद नहीं कर पाता है और सभ्यता व शिष्टाचार की सीमा लांघ कर अपशब्द बोलने लगता है. इस के अतिरिक्त, कुछ व्यक्ति यह सोच कर भी शराब पीते हैं कि वे जिस से झगड़ा करने जा रहे हैं वह उन्हें नशे में देख कर डर जाएगा. पर मजा तो तब आता है जब इस का उलटा होता है और इन की पिटाई हो जाती है क्योंकि नशे में इन की प्रतिरोध क्षमता खत्म हो जाती है.

जो व्यक्ति शराब के आदी नहीं होते हैं वे कभीकभी मित्रों आदि पर रोब गांठने के लिए पी लेते हैं तो कुछ लोग यह सोचते हैं कि जहां अन्य सभी पीने वाले हों, वहां एक व्यक्ति शराब को हाथ नहीं  लगाता है तो लोग उसे बेवकूफ समझेंगे और उसे इग्नोर करने लगेंगे. इसलिए वह न चाहते हुए भी अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए पीतापिलाता रहता है. ऐसा कर के वह सोचता है कि वह भी आधुनिक और उच्च श्रेणी में आ गया है. किंतु पीने के बाद यही व्यक्ति नशें में धुत हो कर जब घर जाता है और अपनी पत्नी व बच्चों को पीटता है तो ऐसा कर के वह अपनी नीचता का ही प्रदर्शन करता है, आधुनिकता या श्रेष्ठता का नहीं.

छोटेछोटे बालक शुरू में अपने बड़ेबुजुर्गों की देखादेखी शराब पीना शुरू करते हैं, क्योंकि जब वे उन्हें पीता देखते हैं तो उन के बालसुलभ मन में भी वैसा ही करने की स्वाभाविक इच्छा जागृत होती है. इस तरह वे छिप कर शराब पीना शुरू कर देते हैं और आगे चल कर इस के आदी हो जाते हैं.

पीने की आदत

एक बार शराब का सेवन करने के बाद व्यक्ति इस की गिरफ्त में आ जाता है और फिर एक आदत बन जाती है. पहली बार शराब का सेवन करते समय आदमी यह सोचता है कि वह शराब का आदी थोड़े ही बन रहा है. पर वह यह नहीं जानता है कि एक बार पीना शुरू कर देने पर इतना विवेक किस में होता है कि अच्छाबुरा सोच सके.

शराब पीने की आदत पड़ जाने पर लोग पैसा न हो तो उधार ले कर पीना शुरू कर देते हैं. उधार न मिलने पर शराब प्राप्त करने के लिए लोग चोरी, जेबकतरी और रिश्वतखोरी आदि करते हैं. घर में कलह शुरू होता है और घर बरबाद हो जाता है. शराब के नशे में गाडि़यां चला कर दुर्घटनाएं, हत्याएं, बलात्कार व अन्य जघन्य अपराध करने के समाचार हम प्रतिदिन पढ़ते, सुनते व देखते हैं. ऐसा कौन सा कुकृत्य है जो शराब के नशे में और शराब को प्राप्त करने के लिए नहीं किया जाता.

इन सब बातों के विपरीत कोई शराबी यह नहीं चाहता कि उस की संतान शराब को हाथ लगाए. वह यह  भी नहीं चाहता कि उस के निवास स्थान के पास शराब की दुकान या होटल आदि हो. क्या यह तथ्य यह बात सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि एक शराबी भी शराब को घृणा की दृष्टि से देखता है.

इन सब बातों को जानते व समझते हुए भी बहुत से लोग शराब पीना छोड़ना नहीं चाहते हैं. कुछ लोग छोड़ना चाहते हुए भी कहते हैं कि क्या करें, छूटती ही नहीं. माना शराब मनुष्य की बहुत बड़ी कमजोरी है पर कमजोरियों पर विजय भी तो मनुष्य ने ही पाई है. ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे मनुष्य पूरी इच्छा से करना चाहे और न कर सके. आवश्यकता केवल दृढ़प्रतिज्ञ होने की है.

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सरकारी नौकरी का मोह और देश में बेरोजगार युवाओं की तादाद

‘‘अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम,’’ संत दास मलूक की यह पंक्ति आज के वक्त में बिलकुल ठीक बैठती है. खासकर बात जब सरकारी नौकरी की हो. देश में लाखों लोग सरकारी नौकरी में लगे हुए हैं जिन में कई लाख केंद्र सरकार में नौकरी कर रहे हैं और बाकी लोग विभिन्न राज्यों में. केंद्र और राज्य सरकारें इन कर्मचारियों पर अरबों रुपए हर माह खर्च करती हैं, लेकिन सरकार के खर्च के अनुरूप सरकारी मुलाजिम काम नहीं करते.

21वीं सदी में भारत जैसे विकासशील देश में हर युवा की यही ख्वाहिश होती है कि पढ़लिख कर किसी भी तरीके से उसे सरकारी नौकरी का तमगा मिल जाए. दुनिया में जहां विकसित देश के युवाओं का रुझान प्राइवेट जौब की तरफ है, वहीं हमारे देश में सरकारी नौकरी का मोह हर किसी को है. सरकारी नौकरी आज के दौर में भारत के नौजवानों की पहली पसंद बनी होने की कई वजहें हैं.

बेरोजगारी का आलम

आज के युवाओं की सीधी सी सोच है कि किसी भी तरह 12वीं पास या ज्यादा से ज्यादा ग्रेजुएशन कर के सरकारी नौकरी की तलाश में लग जाएं. देश में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है और नौकरियां काफी कम. पहले तो सरकारी नौकरियां निकलती नहीं, अगर निकलती भी हैं तो पदों की संख्या काफी कम रहती है जबकि आवेदक काफी होते हैं.

देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में क्लर्क की वैकेंसी में 250 से अधिक आवेदन पीएचडीधारकों ने भेजे थे. इस बात से साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए वे किस कदर बेचैन हैं.

सरकारी नौकरी में सिर्फ एक ही पेंच है और वह है आप को किसी भी तरह एक बार नौकरी मिल जाए, फिर तो आप राजा बन गए. जो लोग सरकार की तरफ से सारी सुखसुविधाओं का भोग करते हैं, उन में से ज्यादातर लोग कामचोरी करते हैं. काम करने का भी उन का अलग अंदाज होता है. हर काम के लिए चढ़ावा (रिश्वत) लेते हैं. चढ़ावा भी काम के हिसाब से रहता है. अगर  छोटा काम तो कम पैसों में बात बन जाती है, वरना मोटी रकम अदा करनी पड़ती है. यह हाल देश के लगभग सभी विभागों का है.

बात चाहे लाइसैंस बनवाने की हो, वोटर आईडी कार्ड की हो, पैंशन की हो या किसी भी प्रकार की, हर जगह कुछ ऐसे लोग मिल जाएंगे, जो बिना रिश्वत के आप की फाइल को आगे नहीं बढ़ाते. सरकारी नौकरी का सब से ज्यादा सुख प्राथमिक स्कूल के शिक्षक भोग रहे हैं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के स्कूलों का सब से बुरा हाल है. वहां के स्कूलों में शिक्षक कम हैं और जो हैं भी, वे पढ़ाते नहीं.

उत्तर प्रदेश में तो शिक्षक कईकई दिनों तक स्कूलों की शक्ल भी नहीं देखते. सरकार ने तमाम तरीके अपना लिए हैं, लेकिन शिक्षकों की कामचोरी पर अभी तक लगाम नहीं लग पाई. सरकारी नौकरी क्यों लोगों की पहली पसंद बनी हुई है? आखिर क्या कारण है कि लाखों रुपए के पैकेज को छोड़ कर सरकारी नौकरी करने की चाहत आज भी कम नहीं हो पा रही? इस के एक नहीं, बल्कि कई कारण हैं, जिन के चलते युवा सरकारी नौकरी पाने के पीछे कई साल लगा देते हैं.

सरकारी बनाम प्राइवेट जौब

प्राइवेट नौकरी में आप को अपने बौस के सीट से उठने का इंतजार होता है और देररात तक औफिस में रुक कर बौस के मेलमैसेज आने का इंतजार करना पड़ता है. मेल नहीं तो कभी किसी और जरूरी काम से रुकना पड़ता है. वहीं, सरकारी नौकरी में ऐसा कोई चक्कर ही नहीं है. यहां आप सिर्फ 8 घंटे के कर्मचारी हैं. उस के बाद तो कुरसी से उठ कर बेहतरीन सी अंगड़ाई लीजिए और घर जा कर परिवार के साथ मस्त शाम बिताइए.

प्राइवेट नौकरी में तरक्की और सैलरी पैकेज आप की परफौर्मेंस पर निर्भर करते हैं. आप अगर औफिस में बौस के मुताबिक अच्छा परफौर्म नहीं कर पाए तो सालों तक एक ही पद पर और एक ही सैलरी स्केल पर काम करना पड़ सकता है. वहीं, सरकारी नौकरी में अगर सैंट्रल गवर्नमैंट ने पे-कमीशन लागू कर दिया तो आप भले ही कामचोर या निकम्मे कर्मचारी हों, आप की तनख्वाह बढ़नी तय है.

प्राइवेट नौकरी में तो अकसर ओवरटाइम के नाम पर औफिस के पैंडिंग कामों को पूरा करने के लिए संडे को भी बुला लिया जाता है. अब बेचारे क्या करें, बौस का आदेश है. नौकरी करनी है तो परिवार के साथ एंजौयमैंट को भूलना ही पड़ेगा. वहीं, सरकारी मुलाजिम की तो हर हफ्ते छुट्टियां तय हैं. संडे तो संडे, हर शनिवार भी औफिस का गोला लग ही जाता है.

अगर आप प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं और आप का ऐक्सिडैंट हो जाता है तो आप को जितने दिनों की छुट्टियां चाहिए, उतने दिनों की पगार कटवानी होगी. इस के विपरीत सरकारी मुलाजिमों को मैडिकल लीव मिलती है और उस पर पूरे महीने की पगार भी मिलती है. सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए मैडिकल की सुविधा दे रखी है. इलाज के लिए सरकार की तरफ से मैडिकल अलाउंस यानी चिकित्सा भत्ता मिलता है. इस भत्ते से पीडि़त का पूरा इलाज भी होता है. यही नहीं, किसी भी सरकारी अस्पताल में पूरी तरह से फ्रीचैकअप की भी सुविधा मिलती है.

सरकारी कर्मचारियों को अपने पदों के अनुसार घरकिराया भत्ता भी मिलता है. इस के अलावा उच्च पदों वाले सरकारी कर्मचारियों को तो वेलमेंटेंड आवासीय भत्ता दिया जाता है. ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों को तो बड़े घरों की सुविधा मिलती है, जिस में लौन और आंगन जरूर होता है. एक आईएएस औफिसर को बड़े सरकारी घर के साथ घर में काम करने वाले नौकर व सिक्योरिटी गार्ड तक मिलते हैं. इस के अलावा सरकारी कर्मचारियों को दूसरी सहूलियतें भी मिलती हैं.

आज के दौर में कंपीटिशन इतना ज्यादा बढ़ गया है कि प्राइवेट संस्थान आप को तभी पगार देगा जब आप अपनी पगार से कई गुना ज्यादा संस्थान को कमा कर दें. मंदी के समय प्राइवेट संस्थान में काम करने वालों को दिनरात टैंशन में काम करना पड़ता है. हर वक्त नौकरी जाने का खतरा सताता रहता है. अगर एक बार आप की नौकरी गई तो सेविंग्स के अलावा आप के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं होगा. वहीं, सरकारी नौकरी लग गई तो जीवनभर की फुरसत. नौकरी से रिटायर होने के बाद भी आप को तनख्वाह के तौर पर घर बैठे पैंशन व अन्य लाभ मिलते रहेंगे.

प्राइवेट नौकरी पर रहते हुए अगर आप किसी काम के लिए बैंक में लोन के लिए अप्लाई करते हैं, तो आप को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इस का कारण यह है कि आप की जौब कभी भी जा सकती है. इस के अलावा उस पर जुड़ने वाला इंट्रैस्ट रेट हर महीने आप को डराता है. सरकारी मुलाजिमों को सरकारी नौकरी के आधार पर आसानी से लोन भी मिल जाता है और उस पर ब्याज की दर भी कम पड़ेगी.

सुरक्षित भविष्य का मोह

उपरोक्त तमाम बातों से साफ है कि आज के आधुनिक युग में भी हमारे देश के युवाओं की पहली पसंद सरकारी नौकरी करना है. सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर कोचिंग संस्थान अरबों रुपए का बिजनैस कर रहे हैं. सिविल सर्विसेज परीक्षा में हर साल लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं, जिन में से बामुश्किल कुछ सौ परीक्षार्थियों को नौकरी मिल पाती है. इतना सब होने के बाद भी सरकारी नौकरी से युवाओं का मोह भंग नहीं हो रहा है.

अगर आप किसी विभाग में बड़े ओहदे पर पहुंच गए तो आप की अफसरशाही अलग ही रहेगी. कुल मिला कर सरकारी नौकरी मिलने से भविष्य सुरक्षित हो जाता है और यह सुकून रहता है कि जिंदगी की गाड़ी अगर बहुत तेज भी न चली, तो इस बात पर शक नहीं है कि आराम से चलती रहेगी.

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अब गर्मियों में निखरे मसाज से, हम आपको बताते हैं इससे कितने हैं फायदे

मार्च का महीना आ गया है और सर्दियों की सुरमई शामें विदा ले चुकी हैं और गर्मियों का मौसम बाहें फैला रहा है. अब गर्म कपड़ो की बजाय हल्के-फुल्के कपड़ो में तितली की तरह उड़ते जाने को हर किसी का मन बेताब है. मगर धूप और गर्म मौसम हमारे सारे उत्साह को खत्म कर देता है, पर यदि ऐसे में मसाज ली जाए तो तन-मन में ताजगी आ जाती है और हमारा पूरा बदन निखर उठता है.

मसाज को लेकर ज्यादातर लोगो का मानना यह है कि मसाज सिर्फ सर्दियों में ही ज्यादा लाभ पहुंचाती है और गर्मियों में तो इसकी कल्पना करना मुश्किल है. झुलसाती गर्मियां और उस पर तेल का चिपचिपापन! सच तो यह है कि यह सिर्फ ऊपरी और गलत तस्वीर है. मसाज थेरैपी, सुंदरता और स्वास्थ्य निखारने का एक ऐसा जरिया है, जो हर मौसम में लाभ पहुंचता है.

गर्मियों में और जरूरी है मसाज

मसाज की जरूरत गर्मियों में और ज्यादा इसलिए भी हो जाती है, क्योकि ऋतु परिवर्तन के समय शरीर में मौजूद विकारो को अगर ठीक न किया जाए तो यह गर्मियों के दौरान कई समस्याओं को बढ़ा सकता है. इसके अलावा गर्मियों में हमारे शरीर की ऊर्जा शक्ति पसीने और बाहरी वातावरण के ताप से काफी कमजोर हो जाती है. मसाज से इसमे भी राहत मिलती है और ऊर्जा शक्ति बढ़ती है .

मसाज से न सिर्फ शरीर को गहराई तक आराम मिलता है, बल्कि संवेदनाएं भी जागृत होती है. तेज रक्त संचार से शरीर में मौजूद विषाणु पसीने और मूत्र के रूप में बाहर आ जाते हैं. यह शरीर के अतिरिक्त ताप को कम करता है और बाहर से शरीर की मृत त्वचा भी साफ होती है, जिससे शरीर की चमक और नैसर्गिकता बढ़ती है.

मसाज करने से आपकी त्वचा में भी निखार आता है और आप दिन भर खिला खिला महसूस करती हैं.

मसाज का जरूरी है सही तरीका

मसाज थेरैपी से जुड़े फायदे तो बहुत है, मगर यह सार्थक तभी होगा  जब इसे सही तरीके से किया जाए. इसके लिए जरूरी है कुछ सावधानियां –

-गर्मियों मे मसाज करने के लिए सबसे पहले जिस जगह मसाज करनी हो, उस जगह के तापमान पर ध्यान दे. मसाज एयरकंडीशनर कमरे में बिलकुल न कराएं. कमरे का तापमान सामान्य होना चाहिए. मसाज किये जाने वाला पानी न तो काफी ठंडा हो न हो गर्म.

-कमरे में रोशनी बहुत ही हल्की होनी चाहिए, जिससे पूरी तरह से आराम महसूस किया जा सके. धीमें संगीत की स्वरलहरी इस माहौल को प्रभावी बना सकती है.

-सिरहाने पानी के बर्तन में जलता सुगंधित दीया (अरोमा थेरैपी में खासतौर से प्रयोग होता है) मानसिक शांति में बहुत कारगर साबित होता है.

-गर्भावस्था के दौरान भी मसाज न लें .

-मसाज हमेशा हल्के हाथों और सही प्रेशर प्वाइंट्स पर दबाब डालते हुए ही की जानी चाहिए और स्पर्श सहलाने जैसा होना चाहिए. इसलिए विशेषज्ञ से मसाज करना फायदेमंद रहता है.

-मसाज के लिए प्रयोग होने वाला तेल या क्रीम हमेशा व्यक्ति के शरीर की प्रवृत्ति व मौसम के अनुसार ही प्रयोग में लाना चाहिए.

-मसाज के बाद स्टीम बाथ और शावर ली जा सकती है.

-मसाज के बाद कुछ देर आराम जरूर करे और तुरंत ही तेज धूप या तेज हवा में ना निकले. अगर ऐसा करना ही पड़े तो शरीर पर पहले सनस्क्रीन लोशन वगैरह जरूर लगा लें.

-तंबाकू और एल्कोहल (अगर लेते हो तो) का प्रयोग अगले 24 घंटों तक बिलकुल न करें.

-पानी ज्यादा-से-ज्यादा पिए, जिससे मसाज से निकलने वाले विषैले तत्व तेजी से शरीर के बाहर निकल सके.

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ऐसे करें सिर के छोटे और खड़े बालों को सेट

आज के समय में अधिकतर लड़कियों के साथ ये समस्या होती है कि जब वह अपने बालों की चोटी बनाती हैं तो कुछ छोटे बाल खड़े हो जाते हैं. अक्सर आपके साथ होगा कि आप कहीं बाहर पार्टी में अच्छी सी हेयर स्टाइल बना कर जाती हैं, लेकिन ये छोटे बाल खड़े हो जाते हैं. जिसके कारण आपका पूरा लुक खराब हो जाता है. इन्हें फ्लाई-अवे कहते हैं. इनके कारण आपके बाल सेट नहीं लगते हैं. इसके साथ एक सबसे बड़ी समस्या होती है कि यह बढ़ते नहीं हैं. जस के तस बने रहते हैं. जिसके कारण आप कोई भी हेयर स्टाइल कैरी नहीं कर पाती हैं.

अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो हम आपको उपायों के बारे में बता रहे हैं. जिन्हें करके आप आसानी से अपने इन छोटे बालों को एक लुक दे सकती हैं. जानिए इन टिप्स के बारे में.

– अगर आपके बाल बिल्कुल स्ट्रेट हैं या फिर आप स्ट्रेटनर का इस्तेमाल कर रही हैं. अगर आपकी नजर में छोटे बाल आते हैं तो उनकी जगह पर थोड़ी सी वैसलीन लगा लें. इससे आपके बाल स्ट्रेट हो जाएगे. साथ ही इस बात क ध्यान रहे कि थोड़ी मात्रा में ही वैसलीन का इस्तेमाल करें, नहीं तो आपके बाल ऑयली हो जाएंगे.

– कभी भी शावर लेने के बाद बालों को तौलिए से रगड़कर न खुलाएं, क्योंकि इससे आपके बाल कमजोर होंगे साथ ही अधिक मात्रा में टूटेंगे भी. इसलिए धोने के बाद मुलायम कपड़े से तौलिया बनाकर बालों को पोंछे.

– अगर आप पोनी चोटी बना रही हैं, तो बालों के ऊपर थोड़ा सा बादाम का तेल, ऑलिव आयल लगाकर बालों को बिठाएं. इससे आसानी से आपके बाल नहीं दिखेंगे.

– ऐसे में ब्लो ड्रायर काम आते हैं. इसके इस्तेमाल से फ्लाई-अवे हेयर सेट हो जाते हैं. बस ऊपर से नीचे की ओर ब्लो ड्राई करें और कंघा करें.

– आप एक टूथब्रश लें और उसमें थोड़ा हेयर स्प्रे डालें. इस टूथब्रश से बालों को ब्रश करें. इससे बाल काफी घंटों के लिए सेट हो जाएंगे. इस तरीके से लगाए जाने पर हेयर स्प्रे आपके बालों को चिपचिपा भी नहीं बनाएगा और उन्हें बहुत देर तक सेट रखेंगे.

– ड्राई हेयर होने पर ज्यादा टूटे और उड़ने वाले बाल नजर आते हैं. ऐसे में मॉश्चराइजिंग शैंपू का ही इस्तेमाल करें. बालों को सॉफ्ट बनाने और सेट रखने के लिए सप्ताह में एक बार हेयर मास्क का इस्तेमाल जरूर करें.

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स्पैनिश वैलेंसिया प्रौंस

सामग्री

12 मध्यम आकार की प्रौंस (झींगा मछली)

1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

1 छोटा चम्मच झींगा मछली पाउडर

1 चुटकी केसर

1 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

1 छोटा प्याज और 10-12 कली लहसुन कटा व फ्राई किया

नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में कालीमिर्च पाउडर, झींगा मछली पाउडर, केसर, नमक और तेल को अच्छी तरह से मिला लें. अब इस में भुना प्याज और लहसुन मिलाएं. झींगा मछली को छील कर साफ कर लें और उस में नीबू का रस मिलाएं. फिर इसे मैरिनेट होने के लिए 20 मिनट रख दें. अब आंच में इसे ग्रिल करें. चटनी के साथ गरमगरम परोसें.

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टाइट फिटिंग ड्रैस में अट्रैक्टिव लुक

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आपके लिए कहां निवेश करना है ज्यादा बेहतर, हम से जानिये

वित्त वर्ष 2017-18 खत्म होने में अब सिर्फ एक महीने का ही समय बचा है. अभी भी तमाम लोग ऐसे होंगे जो ऐसे निवेश विकल्पों की तलाश में हैं जो उनके लिए इस वित्त वर्ष टैक्स की बचत करने में मदद कर सकें. आपको बता दें कि एक वित्त वर्ष के दौरान किसी भी निवेश पर तभी टैक्स फायदा मिलता है जब उसे 31 मार्च से पहले शुरू कर दिया गया हो. हम अपनी इस खबर में आपको बताएंगे कि जिन करदाताओं ने अब तक निवेश नहीं किया है उनके लिए अब कहां निवेश करना और कहां निवेश न करना बेहतर होगा.

कहां ना करें निवेश

टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बीमा खरीदना सरासर मूर्खता है. आपको आपके ऊपर निर्भर व्यक्तियों की आर्थिक सुरक्षा के लिए ही बीमा खरीदना चाहिए और वो भी औनलाइन टर्म प्लान. इसलिए आप सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बीमा पौलिसी न खरीदें न ही कोई यूलिप प्लान खरीदें.

वैसे ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) एक अच्छा विकल्प है. लेकिन यहां मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है. ऐसे में इस विकल्प में एकमुश्त राशि निवेश करना समझदारी नहीं होगी. ईएलएसएस में निवेश पूरे साल में औसत तरीके से किया जाना चाहिए.

finance

कहां करें निवेश

अब चूंकि ब्याज की दरें कम हो रही हैं और इसके भविष्य में भी कम होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. आपको निवेश ऐसे विकल्प में करना चाहिए जहां ब्याज दरों के कम होने के बाद भी आपका रिटर्न न घटे. मेरे हिसाब से पांच साल की टैक्स सेविंग फिक्सड डिपौजिट या नेशनल सेविंग सर्टीफिकेट में निवेश किया जा सकता है. बैंक एफडी में आपको 6.50 फीसद से 7.50 फीसद तक का रिटर्न अगले पांच वर्षों तक मिलेगा. वहीं एनएससी में मौजूदा ब्याज दर 8 फीसद है, जो आने वाले पांच वर्षों के लिए निश्चित है. आरबीआई की ओर से ब्याज दरें घटाने का भी इस रिटर्न पर कोई असर नहीं पड़ेगा. बैंक एफडी की तुलना में एनएससी ज्यादा आकर्षक है.

एफडी से ज्यादा एनएससी आकर्षक क्यों?

बैंक एफडी के मुकाबले एनएससी ज्यादा आकर्षक विकल्प है क्योंकि जरूरत पड़ने पर आप एनएससी के सामने बैंक से लोन भी ले सकती हैं. इसके अलावा एनएससी पर मिलने वाला ब्याज आपकी आय में जुड़ता है लेकिन शुरू के चार वर्षों में मिले ब्याज पर आप सेक्शन 80सी में कटौती का लाभ भी ले सकती हैं.

फिक्सड डिपौजिट और एनएससी के अलावा तीसरा वित्तीय उत्पाद जिसमें आप अभी भी निवेश कर सकती हैं वह पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) है. चूंकि आप पीपीएफ खाते से कर्ज भी ले सकती हैं और कुछ समय बाद निकासी भी कर सकती हैं. लेकिन आपकी ओर से जमा करवाया हुआ पूरा पैसा आप सिर्फ 15 साल बाद ही निकाल सकती हैं. हालांकि पीपीएफ पर मिलने वाला ब्याज पूरी तरह करमुक्त है. परंतु भविष्य में होने वाली ब्याज दर में कटौती का असर आपके पीपीएफ खाते के पूरे बैलेंस पर पड़ेगा. अत: आप अपनी भविष्य की जरूरत के हिसाब से निश्चित कर सकती हैं कि आप पीपीएफ में निवेश करेंगे या बैक एफडी और एनएससी जैसे विकल्प आपके लिए बेहतर होंगे.

VIDEO : आप भी पा सकती हैं गुलाबों से भी गुलाबी होंठ

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ये हैं भारत के बेस्ट स्प्रिंग डेस्टिनेशन, ट्रिप के लिये हो जाएं तैयार

इस साल होली से कुछ दिनों पहले ही ठंड चली गई. होली के बाद से दोपहर में तेज धूप और गर्मी का माहौल देखने को मिल रहा है. ऐसे में कहा जा रहा है कि चिलचिलाती गर्मी भी वक्त से पहले ही पड़ने लग जाएगी. ऐसे में माना जा रहा है कि बसंत ऋतु का असर कम ही देखने को मिलेगा. फिर भारत में ऐसी खूबसूरत जगहें हैं,  जहां जाकर आपको बहुत मजा आएगा. क्योंकि इन जगहों का मौसम हमेशा अच्छा बना रहता है तो चलिए आपको ले चलते हैं इस ट्रिप पर.

दार्जिलिंग

ऐसे समय में जब मैदानी इलाके गर्मी से तपने शुरू हो जाते हैं तो आपको पूर्वी हिमालय की तरफ ड्राइव करते हुए जाना चाहिए, जहां आप खुद को प्रकृति की बांहों में पाएंगे. दार्जिलिंग को क्वीन औफ हिल्स भी कहा जाता है और यहां जाकर आपको बेहतरीन प्राकृतिक नजारे देखने को मिलेंगे. टाइगर हिल का सनराइज हो या टौय ट्रेन की यात्रा या फिर चाय के खूबसूरत बगान ये सभी आपको बेहद सुंदर लगेंगे.

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वायनाड

केरल जिसे गौड्स ओन कंट्री भी कहते हैं. यहां पहुंचकर भी आपको स्प्रिंग सीजन के बेहतरीन नजारे दिखेंगे. केरल का वायनाड भी भारत में बसंत ऋतु को महसूस करने की बेहतरीन जगह है. यहां चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली है. यहां का पहाड़ी इलाका अपने वाइल्ड लाइफ के लिए भी मशहूर है.

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कसौल

हिमाचल प्रदेश में बसा कसौल भले ही सर्दी के मौसम में ठंड से जम जाता हो लेकिन बसंत ऋतु आते ही यहां की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. यह भारत के बेस्ट स्प्रिंग डेस्टिनेशन्स में से एक है. अगर आपको प्रकृति से प्यार है, तो आप यहां जरूर जाएं. पार्टी और एडवेंचर पसंद लोग भी यहां अक्सर जाते हैं.

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जीरो वैली

अरुणाचल प्रदेश स्थित जीरो वैली भारत की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है. यह जगह अपने जीरो फेस्टिवल के लिए भी मशहूर है. यहां चारों तरफ मौजूद हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. मार्च से मई के बीच अगर आप यहां जाएं तो घाटी से बहती रोमांटिक हवा और चारों तरफ फैली शांति में आप खुद को महसूस कर पाएंगी.

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गोवा

वैसे तो गोवा किसी भी सीजन में जा सकती हैं लेकिन स्प्रिंग सीजन में यहां की बात ही कुछ और है. अगर आप यहां मार्च के महीने में जाएं तो आप यहां होने वाले शिगमो फेस्टिवल का हिस्सा भी बन सकती हैं. करीब 15 दिनों तक चलने वाला यह फेस्टिवल दुनियाभर में मशहूर है.

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किसी भी रिश्ते को आप प्रेडिक्ट नहीं कर सकते : इलियाना डिक्रुज

मौडलिंग और तेलगू फिल्म से अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली चुलबुली और खुबसूरत अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज ने कम समय में दर्शकों का दिल जीता है. बौलीवुड में उन्हें पहला ब्रेक अनुराग बासु की फिल्म ‘बर्फी’ से मिला. फिल्म हिट रही और इलियाना सबकी नजर में आ गयीं. उन्होंने कई अलग-अलग तरह की फिल्मों में काम कर अपना नाम शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में शामिल कर लिया है. जब इलियाना दस साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई से गोवा शिफ्ट हो गया था. उनका बचपन गोवा में व्यतीत हुआ है, इसलिए इलियाना को जब भी समय मिलता है, गोवा जाना पसंद करती हैं. वह कई सालों से रिलेशनशिप में हैं और खुलकर बात करने से नहीं कतराती. अभी उनकी फिल्म ‘रेड’ रिलीज पर है. उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.

इस फिल्म को करने का उत्साह कैसे पैदा हुआ ?

फिल्म ‘बादशाहों’ के दौरान अजय देवगन ने इस फिल्म की कहानी को सुनने के लिए कहा था. जब मैंने सुना, तो कहानी बहुत अच्छी लगी. ये एक अलग तरह की सच्ची कहानी है, जो 80 के दशक की है और स्ट्रोंग है, जिसमें उस समय की महिला को भी बहुत मजबूत इरादों वाली दिखाया गया है. जबकि उस समय जब कोई पुरुष बाहर जाता था, तो कब आयेगा उसकी पत्नी को पता भी नहीं चलता था, इसके बावजूद भी वह किसी भी परिस्थिति में मजबूत हुआ करती थीं, जो काबिले तारीफ है.

ऐसी 3 चीजें जो आपको खुश रखती है?

एंड्रू नीबोंस, जो मेरा बौयफ्रेंड है, इसके अलावा मेरा काम जिसे मैं बहुत पसंद करती हूं और मेरी ये लाइफ जो अब सही चल रही है.

आप अपने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस कैसे करती हैं?

ये बहुत कठिन होता है, क्योंकि जब आप फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हैं, तो आपको चुनना पड़ता है कि आप कैरियर पर ध्यान देंगे या पर्सनल लाइफ पर. मैंने इन दोनों में हमेशा सामंजस्य बिठाने की कोशिश की है, क्योंकि अगर मैं बैलेंस नहीं करुंगी, तो थोड़े समय बाद क्रेजी हो जाउंगी. मुझे फैमिली के साथ रहना, उन्हें देखना पसंद है. इसलिए जब भी समय मिलता है उनसे मिलने चली जाती हूं. काम भी मेरे लिए बेहद अहमियत रखता है. थोडा कुछ काम करते रहने से भी मैं खुश रहती हूं. कम काम मिलने पर भी मैं व्यस्त नहीं होती. सही काम का मिलना मेरे लिए काफी अहमियत रखता है.

अभी की दो तीन फिल्में लगातार सफल होने के बाद अभी कितना प्रेशर इस फिल्म का है?

मैं किसी भी फिल्म को लेकर अधिक तनाव नहीं लेती. इसमें तो मुझे पता है कि अजय देवगन जैसे बड़े कलाकार मेरे को-स्टार हैं. ये एक अलग वास्तविक फिल्म है, जो किसी भी फिल्म से अलग है. ऐसी फिल्मों को करने में चुनौती बहुत होती है.

80 के दशक के लुक के लिए क्या तैयारियां की है?

मैंने उसके लिए वर्कशौप अटेंड किये हैं. ‘रुस्तम’ फिल्म की स्टाइलिस्ट अमीरा पुनवानी ने मुझे काफी सहयोग दिया. वह लखनऊ की है और वहां के परिधान को जानती है. इसके अलावा अभिनेत्री रेखा के लुक को भी फौलो किया, जो नेचुरल है.

किसी रिलेशनशिप को आप कैसे एक्सप्लेन करेंगी? एंड्रू को पसंद करने की खास वजह क्या है?

हर रिलेशनशिप अलग होता है, मेरे माता-पिता के सम्बन्ध से मैं बहुत प्रभावित हूं, मेरा सम्बन्ध एंड्रू के साथ भी अलग है. आप किसी भी रिश्ते को प्रेडिक्ट नहीं कर सकते. समय के साथ-साथ सामंजस्य करते रहना पड़ता है.

एंड्रू बहुत ही रोमांटिक इंसान है, बहुत अच्छी बातें करता है. वह फिल्मी नहीं, बल्कि रियल है. उसके साथ अगर मुझे काम करने को मिले तो मुझे खुशी होगी.

आप किसे अपना आदर्श मानती हैं? इंडस्ट्री की किस एक्ट्रेस से आप अधिक प्रभावित हैं?

मैं अपनी मां को हमेशा आदर्श मानती हूं. माधुरी दीक्षित और काजोल के अभिनय से मैं बहुत प्रभावित हूं.

एक्ट्रेस होने के नाते क्या आप पर हमेशा अच्छे दिखने का प्रेशर होता है?

इंडस्ट्री ऐसी है कि इसमें आपको सुंदर दिखना पड़ता है और ये प्रेशर नहीं, क्योंकि ये आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लेते हैं. मैं इस पर अधिक विचार नहीं करती. मेरे हिसाब से जिंदगी एक है, इसमें आपको जो खाने की इच्छा हो आप खा लें. मैं फिट रहना चाहती हूं, पर अधिक नहीं सोचती.

अब तक की जर्नी से आप कितनी संतुष्ट हैं?

मैं खुश हूं कि मुझे अभी महिला प्रधान फिल्में अधिक मिल रही है. इंडस्ट्री में ये अच्छा बदलाव आया है कि पहले एक्टर निश्चित करते थे कि हिरोइन कौन होगी? अभी तो एक्ट्रेस बताती है कि हीरो कौन होगा और ये अच्छी बात है.

क्या कोई सामाजिक काम आप करना चाहती हैं?

महिलाओं की सुरक्षा और उनकी शिक्षा पर काम करना चाहती हूं. साथ ही लोगों के माइंड सेट को भी बदलने की जरुरत है.

आप अपनी सुरक्षा पर कितना ध्यान देती हैं?

मैं किसी भी नार्मल कंडीशन में कभी शूट नहीं करती, लेकिन कई बार असुरक्षा की भावना घर पर रहते हुए भी महसूस करती हूं. मसलन मैं अपने घर के बाहर टहल नहीं सकती. इसे बदलने की जरुरत है, क्योंकि इससे कई बार असहजता महसूस होती है.

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ट्रैफिक जाम का यही है समाधान, बस पहल आप को खुद करनी होगी

रात के लगभग 12 बजे थे. उनींदी सी नीरा की बगल में लेटते हुए पति अजीत बोले, ‘‘मुझे सुबह जल्दी उठा देना.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कल बौस के साथ मीटिंग है. घर से 9 बजे निकलता हूं तो ट्रैफिक में फंस जाने के कारण देर हो जाती है.’’

‘‘तुम्हारी भी क्या जिंदगी है? सुबह जल्दी जाओ और रात में देर से आओ.’’

‘‘क्या करूं? शाम को तो मैं जानबूझ कर देर से निकलता हूं. कम से कम ट्रैफिक से तो बच जाऊं.’’

‘‘ट्रैफिक में ही जिंदगी बीत जाएगी, ऐसा लगता है.’’

शिशिर ट्रैफिक में फंसा झल्ला रहा था. आज उस की बेटी अवनी का बर्थडे जो था. तभी फोन की घंटी बज उठी, ‘‘शिशिर, कहां हो? अवनी की फ्रैंड्स केक काटने के लिए शोर मचा रही हैं. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

‘‘अवनी को फोन दो. सौरी, बेटा मैं ट्रैफिक में फंसा हूं. तुम केक  काट लो. वीडियो बना लेना. मैं आ कर देखूंगा. शिशिर भुनभुना कर बोला, ‘‘यह ट्रैफिक जाम तो जान का दुश्मन बन गया है.’’

नेहा गूगल मैप पर रोड ट्रैफिक देख कर घर से निकली थी, लेकिन स्कूल के पास वाले ट्रैफिक सिगनल के कारण पहुंचने में देर हो गई और आज भी उस की बायोमीट्रिक प्रेजैंट में देर हो चुकी थी. प्रिंसिपल साहब की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा वह अलग. यह ट्रैफिक जाम तो जीवन की मुसीबत बन चुका है.

सुरेशजी को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टर ने हौस्पिटल ले जाने को कहा. ऐंबुलैंस आने में ही 1 घंटा लग गया.

शशांक ने अपनी पत्नी के औफिस के पास फ्लैट इसलिए लिया था ताकि वह, पत्नी श्वेता और बेटा सुयश दोनों आसानी से अपने स्कूल पहुंच सकें. परंतु उस की कीमत शशांक को चुकानी पड़ रही है. अब उस का औफिस 35 किलोमीटर दूर है. रास्ते में मिलने वाला ट्रैफिक उसे सुबह से ही थका और परेशान कर देता है. कभीकभी तो उसे 2 घंटे लग जाते हैं.

महानगर हो या छोटे शहर, हर जगह ट्रैफिक जाम में ही बीतती है जिंदगी. दरअसल, इस के पीछे शहरों की बढ़ती आबादी, एकल परिवारों का चलन और बिना किसी योजना के शहरों का विस्तारीकरण है. आज गाड़ी संपन्नता की निशानी नहीं वरन् जरूरत बन चुकी है. हमारे शहरों में बढ़ती भीड़, सड़कों के दोनों ओर दुकानदारों का बढ़ता अतिक्रमण, बिना किसी हिचक के यहांवहां गाड़ी रोक कर शौपिंग करना, ये सब ट्रैफिक जाम के मुख्य कारण हैं.

अपने देश में शहरों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है, परंतु उस अनुपात में शहरों की आधारभूत संरचना का विकास नहीं हो रहा है. यही कारण है कि शहरों में ट्रैफिक एक बड़ी समस्या बन रही है.

सार्वजनिक परिवहन की कमी और खराब ट्रैफिक व्यवस्था के कारण आज ट्रैफिक जाम ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में मैट्रो ट्रेन के जरीए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, परंतु अन्य शहरों की बात करें तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति अच्छी नहीं है.

मध्यवर्ग की आमदनी बढ़ने के कारण महानगरों में कारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जिस के कारण पतली गलियों तक में जाम लगा रहता है. छोटे शहरों के लोगों ने बताया कि जाम के कारण रोज 1 घंटा तो निश्चित रूप से बरबाद होता ही है.

आज पूरे विश्व में यह समस्या महामारी की तरह फैल चुकी है. बारबार ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर इस का बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

द न्यूजीलैंड हेराल्ड रिपोर्ट का कहना है कि दिल के दौरे का खतरा अचानक बढ़ने का सब से बड़ा कारण है गाड़ी से निकलने वाला धुआं, शोरशराबा और होने वाला मानसिक तनाव.

हवा में जहर: ज्यादातर गाड़ियों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन औक्साइड और कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं. कई गाड़ियां विशेषरूप से जो डीजल से चलती हैं धुएं के साथ बड़ी तादाद में छोटेछोटे कण छोड़ती हैं. ये लोगों की सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए हैं. जिन इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या अधिक है, वहां फेफड़ों में संक्रमण का प्रतिशत और भी ज्यादा है.

अम्ल वर्षा का कारण: गाड़ियों से निकलने वाले नाइट्रोजन औक्साइड और सल्फर औक्साइड अम्ल वर्षा का एक कारण हैं. अम्ल वर्षा के कारण झीलों और नदियों का पानी दूषित हो जाता है. वह पानी जीवजंतु, पेड़पौधे सभी के लिए हानिकारक है. इस से निकली गैस पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार है.

ड्राइवरों में बढ़ता तनाव और क्रोध: जैसेजैसे गाड़ियों की आवाजाही बढ़ती जा रही है, ट्रैफिक जाम के कारण ड्राइविंग करने वालों का क्रोध बढ़ता जा रहा है. ड्राइवर पलभर में आगबबूला हो कर अपना आपा खो बैठते हैं. गालीगलौज, लड़ाई और मारपीट की नौबत आ जाती है, जिस का परिणाम हर सूरत में नुकसानदेह होता है.

आर्थिक नुकसान: ट्रैफिक जाम से पैसे बरबाद होते हैं. अकेले कैलिफोर्निया के लास एंजिल्स में 4 अरब लिटर ईंधर बरबाद हो जाता है.

ट्रैफिक जाम के कारण ईंधन के बरबाद होने वाले नुकसान से देश का आर्थिक ढांचा कमजोर हो जाता है.

आज पूरा विश्व ट्रैफिक जाम की समस्या से पीड़ित है. यूरोपियन कमीशन का सर्वे कहता है कि अगर हम अपने यातायात के तरीकों में भारी बदलाव नहीं करेंगे तो आने वाले वर्षों में पूरे के पूरे शहर सड़क पर खड़ेखड़े बेकार में इंतजार करते नजर आएंगे.

एशियाई देशों का भी यही हाल है. काम पर जाने और घर लौटने के समय के दौरान सड़कों पर ट्रैफिक की जैसे बाढ़ सी आ जाती है.

आज स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. जापानी कंपनी एनईसी के सहयोग से 60 शहरों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 2015 में 12 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए. इस के मुकाबले आतंकी घटनाओं में जान गंवाने या घायल होने वालों की तादाद लगभग 30 हजार है.

अपने देश में ट्रैफिक जाम के कारण हर साल अरबों रुपयों का घाटा होता है और यह घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है.

जनता की भी जिम्मेदारी: कई लोगों की आदत होती है कि वे सो कर देर से उठते हैं और फिर भागदौड़ कर तैयार होते हैं. अब चूंकि पहले ही देर हो चुकी होती है, इसलिए ट्रैफिक जाम उन के तनाव को और बढ़ा देता है. यदि इस तनाव से बचना है तो अगले दिन की शुरुआत की तैयारी पहले दिन से ही करनी होगी. बच्चों के कपड़े, अपना ब्रीफकेस, लंच सब कुछ तैयार कर लीजिए. जाहिर सी बात है, सुबह के काम का तनाव नहीं होगा, तो नींद भी अच्छी आएगी.

सुबह जल्दी उठने के कई और भी फायदे हैं जैसे ट्रैफिक में बहुत देर फंसे रहने से मांसपेशियों में तनाव आ जाता है. सुबह की हुई थोड़ीबहुत कसरत आप को चुस्तदुरुस्त बना सकती है. नाश्ता अच्छी तरह करने से तन और मन दोनों प्रसन्न रहेंगे.

गाड़ी को सही हाल में रखें: गाड़ी को सही हालत में रखें. ऐसा न हो कि ट्रैफिक जाम के समय गाड़ी में कोई समस्या उत्पन्न हो जाए. उस के ब्रेक, टायर, एसी वगैरह सही हालत में हों. सब से आवश्यक है कि आप की गाड़ी में पैट्रोल, डीजल भरपूर मात्रा में हो.

जानकारी रखें: सफर शुरू करने से पहले मौसम, सड़क बंद होने के बारे में टीवी, अखबारों से जानकारी ले कर निकलें. जिस रास्ते पर जाना है, उस का मैप अवश्य साथ रखें.

आराम से बैठें: गाड़ी की खिड़की खोल कर अपनी सीट पर आराम से बैठें. गाड़ी में रेडियो, सीडी प्लेयर से मनपसंद संगीत सुनने से दिल को सुकून और राहत मिलती है.

वक्त का लाभ उठाएं: मन ही मन ट्रैफिक जाम पर कुढ़ने के बजाय अपने जरूरी कामों के विषय में सोचविचार कर के निर्णय ले सकते हैं. गाड़ियों की लंबी कतारें देखने से तनाव बढ़ता है. आप अपने साथ मनपसंद किताब, अखबार रख कर पढ़ सकते हैं. अपने लैपटौप पर मेल चैक कर के उन का उत्तर दे सकते हैं.

सही नजरिया रखें: अगर आप के लिए ट्रैफिक जाम रोज की समस्या है तो निश्चित है कि आज भी आप ट्रैफिक जाम में फंसेंगे. इसलिए मानसिक रूप से तैयार रहें और उस समय के सदुपयोग के विषय पर योजना बना कर ही घर से निकलें.

रोड सैफ्टी का ध्यान रखें: अगर आप खुद गाड़ी चला रहे हैं तो ड्राइव करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें. लेन में चलें व बारबार हौर्न न बजाएं. गाड़ी तेज रफ्तार में न चलाएं. कभी भी नशे की हालत में ड्राइविंग सीट पर न बैठें.

ट्रैफिक जाम की समस्या से निबटने के लिए शहरों का नवीनीकरण बेहद आवश्यक है. लोगों का विचार है कि आधुनिक ट्रैफिक सिस्टम, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार, बसों के लिए अलग कौरिडोर और मैट्रो सेवा इस के बेहतर समाधान हो सकते हैं.

आशा है निकट भविष्य में ट्रैफिक जाम से जनता को राहत देने के लिए सरकार भी ओवरब्रिज आदि बना कर सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करेगी. साथ ही हम लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि हम सार्वजनिक बस, मैट्रो या लोकल आदि का उपयोग कर के सड़कों पर ट्रैफिक कम करने की कोशिश करें.

हम आपस में बात कर के गाड़ी पूल कर के कई लोग एकसाथ औफिस, स्कूल जा कर ट्रैफिक में कमी ला सकते हैं. अपनी आदतों में बदलाव लाने का प्रयास करें. छोटीछोटी दूरी के लिए साइकिल जैसी सवारी को उपयोग में लाएं. थोड़ाबहुत पैदल भी चलें.

अंधाधुंध बढ़ती गाड़ियों की संख्या के कारण ट्रैफिक जाम से परेशान हो कर यह कहने से कि ‘ट्रैफिक जाम में ही बीत जाएगी जिंदगी’ उस के समाधान का प्रयास करें.

मोबाइल ऐप

मुंबई में ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान हो कर बृजराज और रवि ने एक मोबाइल ऐप बनाया है, जो ट्रैफिक की ताजा जानकारी लोगों के पास उन के फोन द्वारा पहुंचाता है. किसी भी मार्ग दुर्घटना की सूचना 1 मिनट के अंदर उन के ऐप के द्वारा लोगों तक पहुंच जाती है.

इस ऐप का नाम ‘ट्रैफ लाइन’ है. मैट्रिक्स पार्टनर इंडिया का ध्यान भी इस ऐप की उपयोगिता पर गया है. कंपनी ने ट्रैफ लाइन ऐप पर निवेश कर के इसे पूरे देश में ले जाने का इरादा जताया है.

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