VIDEO : आप भी पा सकती हैं गुलाबों से भी गुलाबी होंठ
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वित्त वर्ष 2017-18 खत्म होने में अब सिर्फ एक महीने का ही समय बचा है. अभी भी तमाम लोग ऐसे होंगे जो ऐसे निवेश विकल्पों की तलाश में हैं जो उनके लिए इस वित्त वर्ष टैक्स की बचत करने में मदद कर सकें. आपको बता दें कि एक वित्त वर्ष के दौरान किसी भी निवेश पर तभी टैक्स फायदा मिलता है जब उसे 31 मार्च से पहले शुरू कर दिया गया हो. हम अपनी इस खबर में आपको बताएंगे कि जिन करदाताओं ने अब तक निवेश नहीं किया है उनके लिए अब कहां निवेश करना और कहां निवेश न करना बेहतर होगा.
कहां ना करें निवेश
टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बीमा खरीदना सरासर मूर्खता है. आपको आपके ऊपर निर्भर व्यक्तियों की आर्थिक सुरक्षा के लिए ही बीमा खरीदना चाहिए और वो भी औनलाइन टर्म प्लान. इसलिए आप सिर्फ टैक्स बचाने के लिए बीमा पौलिसी न खरीदें न ही कोई यूलिप प्लान खरीदें.
वैसे ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) एक अच्छा विकल्प है. लेकिन यहां मिलने वाला रिटर्न शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है. ऐसे में इस विकल्प में एकमुश्त राशि निवेश करना समझदारी नहीं होगी. ईएलएसएस में निवेश पूरे साल में औसत तरीके से किया जाना चाहिए.
कहां करें निवेश
अब चूंकि ब्याज की दरें कम हो रही हैं और इसके भविष्य में भी कम होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. आपको निवेश ऐसे विकल्प में करना चाहिए जहां ब्याज दरों के कम होने के बाद भी आपका रिटर्न न घटे. मेरे हिसाब से पांच साल की टैक्स सेविंग फिक्सड डिपौजिट या नेशनल सेविंग सर्टीफिकेट में निवेश किया जा सकता है. बैंक एफडी में आपको 6.50 फीसद से 7.50 फीसद तक का रिटर्न अगले पांच वर्षों तक मिलेगा. वहीं एनएससी में मौजूदा ब्याज दर 8 फीसद है, जो आने वाले पांच वर्षों के लिए निश्चित है. आरबीआई की ओर से ब्याज दरें घटाने का भी इस रिटर्न पर कोई असर नहीं पड़ेगा. बैंक एफडी की तुलना में एनएससी ज्यादा आकर्षक है.
एफडी से ज्यादा एनएससी आकर्षक क्यों?
बैंक एफडी के मुकाबले एनएससी ज्यादा आकर्षक विकल्प है क्योंकि जरूरत पड़ने पर आप एनएससी के सामने बैंक से लोन भी ले सकती हैं. इसके अलावा एनएससी पर मिलने वाला ब्याज आपकी आय में जुड़ता है लेकिन शुरू के चार वर्षों में मिले ब्याज पर आप सेक्शन 80सी में कटौती का लाभ भी ले सकती हैं.
फिक्सड डिपौजिट और एनएससी के अलावा तीसरा वित्तीय उत्पाद जिसमें आप अभी भी निवेश कर सकती हैं वह पब्लिक प्रोविडेंट फंड (पीपीएफ) है. चूंकि आप पीपीएफ खाते से कर्ज भी ले सकती हैं और कुछ समय बाद निकासी भी कर सकती हैं. लेकिन आपकी ओर से जमा करवाया हुआ पूरा पैसा आप सिर्फ 15 साल बाद ही निकाल सकती हैं. हालांकि पीपीएफ पर मिलने वाला ब्याज पूरी तरह करमुक्त है. परंतु भविष्य में होने वाली ब्याज दर में कटौती का असर आपके पीपीएफ खाते के पूरे बैलेंस पर पड़ेगा. अत: आप अपनी भविष्य की जरूरत के हिसाब से निश्चित कर सकती हैं कि आप पीपीएफ में निवेश करेंगे या बैक एफडी और एनएससी जैसे विकल्प आपके लिए बेहतर होंगे.
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इस साल होली से कुछ दिनों पहले ही ठंड चली गई. होली के बाद से दोपहर में तेज धूप और गर्मी का माहौल देखने को मिल रहा है. ऐसे में कहा जा रहा है कि चिलचिलाती गर्मी भी वक्त से पहले ही पड़ने लग जाएगी. ऐसे में माना जा रहा है कि बसंत ऋतु का असर कम ही देखने को मिलेगा. फिर भारत में ऐसी खूबसूरत जगहें हैं, जहां जाकर आपको बहुत मजा आएगा. क्योंकि इन जगहों का मौसम हमेशा अच्छा बना रहता है तो चलिए आपको ले चलते हैं इस ट्रिप पर.
दार्जिलिंग
ऐसे समय में जब मैदानी इलाके गर्मी से तपने शुरू हो जाते हैं तो आपको पूर्वी हिमालय की तरफ ड्राइव करते हुए जाना चाहिए, जहां आप खुद को प्रकृति की बांहों में पाएंगे. दार्जिलिंग को क्वीन औफ हिल्स भी कहा जाता है और यहां जाकर आपको बेहतरीन प्राकृतिक नजारे देखने को मिलेंगे. टाइगर हिल का सनराइज हो या टौय ट्रेन की यात्रा या फिर चाय के खूबसूरत बगान ये सभी आपको बेहद सुंदर लगेंगे.
वायनाड
केरल जिसे गौड्स ओन कंट्री भी कहते हैं. यहां पहुंचकर भी आपको स्प्रिंग सीजन के बेहतरीन नजारे दिखेंगे. केरल का वायनाड भी भारत में बसंत ऋतु को महसूस करने की बेहतरीन जगह है. यहां चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली है. यहां का पहाड़ी इलाका अपने वाइल्ड लाइफ के लिए भी मशहूर है.
कसौल
हिमाचल प्रदेश में बसा कसौल भले ही सर्दी के मौसम में ठंड से जम जाता हो लेकिन बसंत ऋतु आते ही यहां की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. यह भारत के बेस्ट स्प्रिंग डेस्टिनेशन्स में से एक है. अगर आपको प्रकृति से प्यार है, तो आप यहां जरूर जाएं. पार्टी और एडवेंचर पसंद लोग भी यहां अक्सर जाते हैं.
जीरो वैली
अरुणाचल प्रदेश स्थित जीरो वैली भारत की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है. यह जगह अपने जीरो फेस्टिवल के लिए भी मशहूर है. यहां चारों तरफ मौजूद हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है. मार्च से मई के बीच अगर आप यहां जाएं तो घाटी से बहती रोमांटिक हवा और चारों तरफ फैली शांति में आप खुद को महसूस कर पाएंगी.
गोवा
वैसे तो गोवा किसी भी सीजन में जा सकती हैं लेकिन स्प्रिंग सीजन में यहां की बात ही कुछ और है. अगर आप यहां मार्च के महीने में जाएं तो आप यहां होने वाले शिगमो फेस्टिवल का हिस्सा भी बन सकती हैं. करीब 15 दिनों तक चलने वाला यह फेस्टिवल दुनियाभर में मशहूर है.
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मौडलिंग और तेलगू फिल्म से अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली चुलबुली और खुबसूरत अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज ने कम समय में दर्शकों का दिल जीता है. बौलीवुड में उन्हें पहला ब्रेक अनुराग बासु की फिल्म ‘बर्फी’ से मिला. फिल्म हिट रही और इलियाना सबकी नजर में आ गयीं. उन्होंने कई अलग-अलग तरह की फिल्मों में काम कर अपना नाम शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में शामिल कर लिया है. जब इलियाना दस साल की थीं, तब उनका परिवार मुंबई से गोवा शिफ्ट हो गया था. उनका बचपन गोवा में व्यतीत हुआ है, इसलिए इलियाना को जब भी समय मिलता है, गोवा जाना पसंद करती हैं. वह कई सालों से रिलेशनशिप में हैं और खुलकर बात करने से नहीं कतराती. अभी उनकी फिल्म ‘रेड’ रिलीज पर है. उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.
इस फिल्म को करने का उत्साह कैसे पैदा हुआ ?
फिल्म ‘बादशाहों’ के दौरान अजय देवगन ने इस फिल्म की कहानी को सुनने के लिए कहा था. जब मैंने सुना, तो कहानी बहुत अच्छी लगी. ये एक अलग तरह की सच्ची कहानी है, जो 80 के दशक की है और स्ट्रोंग है, जिसमें उस समय की महिला को भी बहुत मजबूत इरादों वाली दिखाया गया है. जबकि उस समय जब कोई पुरुष बाहर जाता था, तो कब आयेगा उसकी पत्नी को पता भी नहीं चलता था, इसके बावजूद भी वह किसी भी परिस्थिति में मजबूत हुआ करती थीं, जो काबिले तारीफ है.
ऐसी 3 चीजें जो आपको खुश रखती है?
एंड्रू नीबोंस, जो मेरा बौयफ्रेंड है, इसके अलावा मेरा काम जिसे मैं बहुत पसंद करती हूं और मेरी ये लाइफ जो अब सही चल रही है.
आप अपने पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस कैसे करती हैं?
ये बहुत कठिन होता है, क्योंकि जब आप फिल्म इंडस्ट्री में काम करते हैं, तो आपको चुनना पड़ता है कि आप कैरियर पर ध्यान देंगे या पर्सनल लाइफ पर. मैंने इन दोनों में हमेशा सामंजस्य बिठाने की कोशिश की है, क्योंकि अगर मैं बैलेंस नहीं करुंगी, तो थोड़े समय बाद क्रेजी हो जाउंगी. मुझे फैमिली के साथ रहना, उन्हें देखना पसंद है. इसलिए जब भी समय मिलता है उनसे मिलने चली जाती हूं. काम भी मेरे लिए बेहद अहमियत रखता है. थोडा कुछ काम करते रहने से भी मैं खुश रहती हूं. कम काम मिलने पर भी मैं व्यस्त नहीं होती. सही काम का मिलना मेरे लिए काफी अहमियत रखता है.
अभी की दो तीन फिल्में लगातार सफल होने के बाद अभी कितना प्रेशर इस फिल्म का है?
मैं किसी भी फिल्म को लेकर अधिक तनाव नहीं लेती. इसमें तो मुझे पता है कि अजय देवगन जैसे बड़े कलाकार मेरे को-स्टार हैं. ये एक अलग वास्तविक फिल्म है, जो किसी भी फिल्म से अलग है. ऐसी फिल्मों को करने में चुनौती बहुत होती है.
80 के दशक के लुक के लिए क्या तैयारियां की है?
मैंने उसके लिए वर्कशौप अटेंड किये हैं. ‘रुस्तम’ फिल्म की स्टाइलिस्ट अमीरा पुनवानी ने मुझे काफी सहयोग दिया. वह लखनऊ की है और वहां के परिधान को जानती है. इसके अलावा अभिनेत्री रेखा के लुक को भी फौलो किया, जो नेचुरल है.
किसी रिलेशनशिप को आप कैसे एक्सप्लेन करेंगी? एंड्रू को पसंद करने की खास वजह क्या है?
हर रिलेशनशिप अलग होता है, मेरे माता-पिता के सम्बन्ध से मैं बहुत प्रभावित हूं, मेरा सम्बन्ध एंड्रू के साथ भी अलग है. आप किसी भी रिश्ते को प्रेडिक्ट नहीं कर सकते. समय के साथ-साथ सामंजस्य करते रहना पड़ता है.
एंड्रू बहुत ही रोमांटिक इंसान है, बहुत अच्छी बातें करता है. वह फिल्मी नहीं, बल्कि रियल है. उसके साथ अगर मुझे काम करने को मिले तो मुझे खुशी होगी.
आप किसे अपना आदर्श मानती हैं? इंडस्ट्री की किस एक्ट्रेस से आप अधिक प्रभावित हैं?
मैं अपनी मां को हमेशा आदर्श मानती हूं. माधुरी दीक्षित और काजोल के अभिनय से मैं बहुत प्रभावित हूं.
एक्ट्रेस होने के नाते क्या आप पर हमेशा अच्छे दिखने का प्रेशर होता है?
इंडस्ट्री ऐसी है कि इसमें आपको सुंदर दिखना पड़ता है और ये प्रेशर नहीं, क्योंकि ये आप पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे लेते हैं. मैं इस पर अधिक विचार नहीं करती. मेरे हिसाब से जिंदगी एक है, इसमें आपको जो खाने की इच्छा हो आप खा लें. मैं फिट रहना चाहती हूं, पर अधिक नहीं सोचती.
अब तक की जर्नी से आप कितनी संतुष्ट हैं?
मैं खुश हूं कि मुझे अभी महिला प्रधान फिल्में अधिक मिल रही है. इंडस्ट्री में ये अच्छा बदलाव आया है कि पहले एक्टर निश्चित करते थे कि हिरोइन कौन होगी? अभी तो एक्ट्रेस बताती है कि हीरो कौन होगा और ये अच्छी बात है.
क्या कोई सामाजिक काम आप करना चाहती हैं?
महिलाओं की सुरक्षा और उनकी शिक्षा पर काम करना चाहती हूं. साथ ही लोगों के माइंड सेट को भी बदलने की जरुरत है.
आप अपनी सुरक्षा पर कितना ध्यान देती हैं?
मैं किसी भी नार्मल कंडीशन में कभी शूट नहीं करती, लेकिन कई बार असुरक्षा की भावना घर पर रहते हुए भी महसूस करती हूं. मसलन मैं अपने घर के बाहर टहल नहीं सकती. इसे बदलने की जरुरत है, क्योंकि इससे कई बार असहजता महसूस होती है.
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रात के लगभग 12 बजे थे. उनींदी सी नीरा की बगल में लेटते हुए पति अजीत बोले, ‘‘मुझे सुबह जल्दी उठा देना.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कल बौस के साथ मीटिंग है. घर से 9 बजे निकलता हूं तो ट्रैफिक में फंस जाने के कारण देर हो जाती है.’’
‘‘तुम्हारी भी क्या जिंदगी है? सुबह जल्दी जाओ और रात में देर से आओ.’’
‘‘क्या करूं? शाम को तो मैं जानबूझ कर देर से निकलता हूं. कम से कम ट्रैफिक से तो बच जाऊं.’’
‘‘ट्रैफिक में ही जिंदगी बीत जाएगी, ऐसा लगता है.’’
शिशिर ट्रैफिक में फंसा झल्ला रहा था. आज उस की बेटी अवनी का बर्थडे जो था. तभी फोन की घंटी बज उठी, ‘‘शिशिर, कहां हो? अवनी की फ्रैंड्स केक काटने के लिए शोर मचा रही हैं. सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’
‘‘अवनी को फोन दो. सौरी, बेटा मैं ट्रैफिक में फंसा हूं. तुम केक काट लो. वीडियो बना लेना. मैं आ कर देखूंगा. शिशिर भुनभुना कर बोला, ‘‘यह ट्रैफिक जाम तो जान का दुश्मन बन गया है.’’
नेहा गूगल मैप पर रोड ट्रैफिक देख कर घर से निकली थी, लेकिन स्कूल के पास वाले ट्रैफिक सिगनल के कारण पहुंचने में देर हो गई और आज भी उस की बायोमीट्रिक प्रेजैंट में देर हो चुकी थी. प्रिंसिपल साहब की घूरती आंखों का सामना करना पड़ा वह अलग. यह ट्रैफिक जाम तो जीवन की मुसीबत बन चुका है.
सुरेशजी को दिल का दौरा पड़ा. डाक्टर ने हौस्पिटल ले जाने को कहा. ऐंबुलैंस आने में ही 1 घंटा लग गया.
शशांक ने अपनी पत्नी के औफिस के पास फ्लैट इसलिए लिया था ताकि वह, पत्नी श्वेता और बेटा सुयश दोनों आसानी से अपने स्कूल पहुंच सकें. परंतु उस की कीमत शशांक को चुकानी पड़ रही है. अब उस का औफिस 35 किलोमीटर दूर है. रास्ते में मिलने वाला ट्रैफिक उसे सुबह से ही थका और परेशान कर देता है. कभीकभी तो उसे 2 घंटे लग जाते हैं.
महानगर हो या छोटे शहर, हर जगह ट्रैफिक जाम में ही बीतती है जिंदगी. दरअसल, इस के पीछे शहरों की बढ़ती आबादी, एकल परिवारों का चलन और बिना किसी योजना के शहरों का विस्तारीकरण है. आज गाड़ी संपन्नता की निशानी नहीं वरन् जरूरत बन चुकी है. हमारे शहरों में बढ़ती भीड़, सड़कों के दोनों ओर दुकानदारों का बढ़ता अतिक्रमण, बिना किसी हिचक के यहांवहां गाड़ी रोक कर शौपिंग करना, ये सब ट्रैफिक जाम के मुख्य कारण हैं.
अपने देश में शहरों की आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है, परंतु उस अनुपात में शहरों की आधारभूत संरचना का विकास नहीं हो रहा है. यही कारण है कि शहरों में ट्रैफिक एक बड़ी समस्या बन रही है.
सार्वजनिक परिवहन की कमी और खराब ट्रैफिक व्यवस्था के कारण आज ट्रैफिक जाम ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, बैंगलुरु जैसे महानगरों में मैट्रो ट्रेन के जरीए सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, परंतु अन्य शहरों की बात करें तो सार्वजनिक परिवहन की स्थिति अच्छी नहीं है.
मध्यवर्ग की आमदनी बढ़ने के कारण महानगरों में कारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जिस के कारण पतली गलियों तक में जाम लगा रहता है. छोटे शहरों के लोगों ने बताया कि जाम के कारण रोज 1 घंटा तो निश्चित रूप से बरबाद होता ही है.
आज पूरे विश्व में यह समस्या महामारी की तरह फैल चुकी है. बारबार ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर इस का बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
द न्यूजीलैंड हेराल्ड रिपोर्ट का कहना है कि दिल के दौरे का खतरा अचानक बढ़ने का सब से बड़ा कारण है गाड़ी से निकलने वाला धुआं, शोरशराबा और होने वाला मानसिक तनाव.
हवा में जहर: ज्यादातर गाड़ियों से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन औक्साइड और कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं. कई गाड़ियां विशेषरूप से जो डीजल से चलती हैं धुएं के साथ बड़ी तादाद में छोटेछोटे कण छोड़ती हैं. ये लोगों की सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए हैं. जिन इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या अधिक है, वहां फेफड़ों में संक्रमण का प्रतिशत और भी ज्यादा है.
अम्ल वर्षा का कारण: गाड़ियों से निकलने वाले नाइट्रोजन औक्साइड और सल्फर औक्साइड अम्ल वर्षा का एक कारण हैं. अम्ल वर्षा के कारण झीलों और नदियों का पानी दूषित हो जाता है. वह पानी जीवजंतु, पेड़पौधे सभी के लिए हानिकारक है. इस से निकली गैस पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार है.
ड्राइवरों में बढ़ता तनाव और क्रोध: जैसेजैसे गाड़ियों की आवाजाही बढ़ती जा रही है, ट्रैफिक जाम के कारण ड्राइविंग करने वालों का क्रोध बढ़ता जा रहा है. ड्राइवर पलभर में आगबबूला हो कर अपना आपा खो बैठते हैं. गालीगलौज, लड़ाई और मारपीट की नौबत आ जाती है, जिस का परिणाम हर सूरत में नुकसानदेह होता है.
आर्थिक नुकसान: ट्रैफिक जाम से पैसे बरबाद होते हैं. अकेले कैलिफोर्निया के लास एंजिल्स में 4 अरब लिटर ईंधर बरबाद हो जाता है.
ट्रैफिक जाम के कारण ईंधन के बरबाद होने वाले नुकसान से देश का आर्थिक ढांचा कमजोर हो जाता है.
आज पूरा विश्व ट्रैफिक जाम की समस्या से पीड़ित है. यूरोपियन कमीशन का सर्वे कहता है कि अगर हम अपने यातायात के तरीकों में भारी बदलाव नहीं करेंगे तो आने वाले वर्षों में पूरे के पूरे शहर सड़क पर खड़ेखड़े बेकार में इंतजार करते नजर आएंगे.
एशियाई देशों का भी यही हाल है. काम पर जाने और घर लौटने के समय के दौरान सड़कों पर ट्रैफिक की जैसे बाढ़ सी आ जाती है.
आज स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. जापानी कंपनी एनईसी के सहयोग से 60 शहरों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक 2015 में 12 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए. इस के मुकाबले आतंकी घटनाओं में जान गंवाने या घायल होने वालों की तादाद लगभग 30 हजार है.
अपने देश में ट्रैफिक जाम के कारण हर साल अरबों रुपयों का घाटा होता है और यह घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है.
जनता की भी जिम्मेदारी: कई लोगों की आदत होती है कि वे सो कर देर से उठते हैं और फिर भागदौड़ कर तैयार होते हैं. अब चूंकि पहले ही देर हो चुकी होती है, इसलिए ट्रैफिक जाम उन के तनाव को और बढ़ा देता है. यदि इस तनाव से बचना है तो अगले दिन की शुरुआत की तैयारी पहले दिन से ही करनी होगी. बच्चों के कपड़े, अपना ब्रीफकेस, लंच सब कुछ तैयार कर लीजिए. जाहिर सी बात है, सुबह के काम का तनाव नहीं होगा, तो नींद भी अच्छी आएगी.
सुबह जल्दी उठने के कई और भी फायदे हैं जैसे ट्रैफिक में बहुत देर फंसे रहने से मांसपेशियों में तनाव आ जाता है. सुबह की हुई थोड़ीबहुत कसरत आप को चुस्तदुरुस्त बना सकती है. नाश्ता अच्छी तरह करने से तन और मन दोनों प्रसन्न रहेंगे.
गाड़ी को सही हाल में रखें: गाड़ी को सही हालत में रखें. ऐसा न हो कि ट्रैफिक जाम के समय गाड़ी में कोई समस्या उत्पन्न हो जाए. उस के ब्रेक, टायर, एसी वगैरह सही हालत में हों. सब से आवश्यक है कि आप की गाड़ी में पैट्रोल, डीजल भरपूर मात्रा में हो.
जानकारी रखें: सफर शुरू करने से पहले मौसम, सड़क बंद होने के बारे में टीवी, अखबारों से जानकारी ले कर निकलें. जिस रास्ते पर जाना है, उस का मैप अवश्य साथ रखें.
आराम से बैठें: गाड़ी की खिड़की खोल कर अपनी सीट पर आराम से बैठें. गाड़ी में रेडियो, सीडी प्लेयर से मनपसंद संगीत सुनने से दिल को सुकून और राहत मिलती है.
वक्त का लाभ उठाएं: मन ही मन ट्रैफिक जाम पर कुढ़ने के बजाय अपने जरूरी कामों के विषय में सोचविचार कर के निर्णय ले सकते हैं. गाड़ियों की लंबी कतारें देखने से तनाव बढ़ता है. आप अपने साथ मनपसंद किताब, अखबार रख कर पढ़ सकते हैं. अपने लैपटौप पर मेल चैक कर के उन का उत्तर दे सकते हैं.
सही नजरिया रखें: अगर आप के लिए ट्रैफिक जाम रोज की समस्या है तो निश्चित है कि आज भी आप ट्रैफिक जाम में फंसेंगे. इसलिए मानसिक रूप से तैयार रहें और उस समय के सदुपयोग के विषय पर योजना बना कर ही घर से निकलें.
रोड सैफ्टी का ध्यान रखें: अगर आप खुद गाड़ी चला रहे हैं तो ड्राइव करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें. लेन में चलें व बारबार हौर्न न बजाएं. गाड़ी तेज रफ्तार में न चलाएं. कभी भी नशे की हालत में ड्राइविंग सीट पर न बैठें.
ट्रैफिक जाम की समस्या से निबटने के लिए शहरों का नवीनीकरण बेहद आवश्यक है. लोगों का विचार है कि आधुनिक ट्रैफिक सिस्टम, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार, बसों के लिए अलग कौरिडोर और मैट्रो सेवा इस के बेहतर समाधान हो सकते हैं.
आशा है निकट भविष्य में ट्रैफिक जाम से जनता को राहत देने के लिए सरकार भी ओवरब्रिज आदि बना कर सुविधाएं प्रदान करने का प्रयास करेगी. साथ ही हम लोगों का भी कर्तव्य बनता है कि हम सार्वजनिक बस, मैट्रो या लोकल आदि का उपयोग कर के सड़कों पर ट्रैफिक कम करने की कोशिश करें.
हम आपस में बात कर के गाड़ी पूल कर के कई लोग एकसाथ औफिस, स्कूल जा कर ट्रैफिक में कमी ला सकते हैं. अपनी आदतों में बदलाव लाने का प्रयास करें. छोटीछोटी दूरी के लिए साइकिल जैसी सवारी को उपयोग में लाएं. थोड़ाबहुत पैदल भी चलें.
अंधाधुंध बढ़ती गाड़ियों की संख्या के कारण ट्रैफिक जाम से परेशान हो कर यह कहने से कि ‘ट्रैफिक जाम में ही बीत जाएगी जिंदगी’ उस के समाधान का प्रयास करें.
मोबाइल ऐप
मुंबई में ट्रैफिक जाम की समस्या से परेशान हो कर बृजराज और रवि ने एक मोबाइल ऐप बनाया है, जो ट्रैफिक की ताजा जानकारी लोगों के पास उन के फोन द्वारा पहुंचाता है. किसी भी मार्ग दुर्घटना की सूचना 1 मिनट के अंदर उन के ऐप के द्वारा लोगों तक पहुंच जाती है.
इस ऐप का नाम ‘ट्रैफ लाइन’ है. मैट्रिक्स पार्टनर इंडिया का ध्यान भी इस ऐप की उपयोगिता पर गया है. कंपनी ने ट्रैफ लाइन ऐप पर निवेश कर के इसे पूरे देश में ले जाने का इरादा जताया है.
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लोकप्रिय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी के जीवन पर बनी फिल्म ‘महेंद्र सिंह धौनी-द अनटोल्ड स्टोरी’ के एक दृश्य में महेंद्र सिंह धौनी को अपने दोस्तों से एक मैच का विश्लेषण करते हुए बताया गया है कि कूच बिहार क्रिकेट ट्रौफी टूर्नामैंट में पंजाब की टीम से बिहार की टीम क्यों हारी थी.
यह मैच 16 दिसंबर, 1999 को हुआ था. उस समय अंडर-19 की राष्ट्रीय टीम के खिलाडि़यों का चयन होना था. पंजाब की तरफ से युवराज सिंह और बिहार से महेंद्र सिंह धौनी का चयन तय माना जा रहा था. लेकिन बिहार की टीम के हार जाने की वजह से धौनी का चयन नहीं हो पाया था.
अपनी टीम की हार की वजह गिनाते किशोर महेंद्र सिंह धौनी दोस्तों को फ्लैशबैक में जाते बता रहा है कि दरअसल, हार तो तभी गए थे जब मैच के पहले ही दिन स्टेडियम से गुजरते युवराज सिंह के सामने हमारा आत्मविश्वास लड़खड़ा गया था. इस दृश्य में दिखाया गया है कि पंजाब का यह धुरंधर, उभरता बल्लेबाज कानों में ईयरफोन लगाए हाथ से ट्रौलीबैग घसीटते बड़ी बेफिक्री व आत्मविश्वास से जमीन को रौंदते हुए जा रहा है और बिहार के खिलाड़ी उस की इस अदा को भौचक देख रहे हैं.
फिल्म बनी थी महेंद्र सिंह धौनी की जिंदगी पर, लेकिन एक दृश्य में ही सही, कैमरे का फोकस युवराज सिंह पर करना अगर निर्देशक की मजबूरी हो गई थी तो बिलाशक इस की वजह युवराज सिंह का वह गजब का आत्मविश्वास व दृढ़ इच्छाशक्ति थी जो आंकड़ों और मैदान से परे उन की व्यक्तिगत जिंदगी में भी दिखी जब वे कैंसर का शिकार हो गए थे.
युवराज के हिम्मती हौसले
मैदान पर कीर्तिमान गढ़ते रहने वाले युवराज सिंह को 2012 की शुरुआत में कैंसर ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था. ठीक इस के पहले 2011 में भारत को क्रिकेट वर्ल्डकप जिताने में भी उन की भूमिका अहम रही थी.
फरवरी 2012 में जैसे ही यह खबर आम हुई कि युवराज सिंह के फेफड़े में ट्यूमर है तो उन के प्रशंसकों ने उन के मैदान तो मैदान, जिंदगी के मैदान में भी बने रहने पर शंकाएं व्यक्त करनी शुरू कर दी थीं. इस की वजह तय है कैंसर के प्रति पूर्वाग्रह और इसे असाध्य बीमारी मानना, जबकि ऐसा है नहीं.
युवराज सिंह के फिजियो डाक्टर जतिन चौधरी ने फरवरी 2012 में ही युवराज सिंह के बारे में उड़ रही अफवाहों को विराम देते स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें असामान्य और कैंसर ट्यूमर है. अब यह फैसला डाक्टरों को करना है कि वे कीमोथेरैपी कराएं या फिर दवाइयां दें. ट्यूमर का हिस्सा युवराज सिंह के दिल की धमनी के ऊपर था जिस के फटने की आशंका से डाक्टर इनकार नहीं कर रहे थे.
देर न करते हुए युवराज सिंह बोस्टन के कैंसर अनुसंधान केंद्र जा पहुंचे जहां उन्हें कीमोथेरैपी दी गई. बहुत जल्द युवराज सिंह ठीक हो कर भारत आए और क्रिकेट के मैदान में भी दमखम दिखाते दिखे तो कैंसर से डरने वालों को सुखद आश्चर्य हुआ था कि अरे, यह तो ठीक हो जाता है.
युवराज सिंह के ठीक होने में यानी कैंसर को हराने में इलाज के अलावा उन का वह आत्मविश्वास अहम था जिस का जिक्र 1999 में बिहार कूच ट्रौफी के दौरान महेंद्र सिंह धौनी ने किया था. कैंसर से अपने संघर्ष की दास्तां बयां करती किताब ‘द टैस्ट औफ माइ लाइफ’ में युवराज ने लिखा है, ‘‘जब आप बीमार होते हैं, जब आप पूरी तरह निराश होने लगते हैं तो कुछ सवाल एक भयावह सपने की तरह बारबार आप को सता सकते हैं लेकिन आप को सीना ठोक कर खड़ा होना चाहिए और उन मुश्किल सवालों का सामना करना चाहिए.’’
मनीषा की जिंदादिली
‘सौदागर’ फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री में दाखिल हुईं अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने भी कैंसर को हंसतेहंसते हराया. कई फिल्मों में बोल्ड सीन देने वाली मनीषा कैंसर का पता चलने के बाद भी बोल्ड रहीं. उन्हें ओवेरियन कैंसर था. यह इत्तफाक की बात थी कि मनीषा कोइराला के कैंसर का निदान भी 2012 में हुआ थ
मनीषा कोइराला की सर्जरी न्यूयौर्क में हुई थी. ठीक होने के बाद उन्होंने कहा था, ‘‘कैंसर के आगे अगर मैं घुटने टेक देती तो हार जाती पर मैं ने कैंसर का डट कर मुकाबला किया और मैं जीत गई.’’
अब कैंसर की ब्रैंड एंबैसेडर बन कर जागरूकता फैला रहीं मनीषा सामान्य जीवन जी रही हैं. मनीषा की तरह अभिनेत्री लीजा रे भी स्तन कैंसर की शिकार हुईं. कई सालों के इलाज के बाद उन्होंने हौलीवुड में अपने अभिनय की नई पारी शुरू की. और आज वहां की एक लोकप्रिय अभिनेत्री हैं लीजा.
शेफाली का आत्मविश्वास
जरूरी नहीं है कि कैंसर सैलिब्रिटीज का ही ठीक हो और उस के लिए महंगा इलाज कराने को बोस्टन या न्यूयौर्क जाना पड़े. इलाज कहीं भी हो, जरूरी यह है कि मरीज हौसला और हिम्मत बनाए रखें. लाखों मरीजों की तरह भोपाल की शेफाली चक्रवर्ती और लखनऊ की नीलम वैश्य सिंह के उदाहरण आश्वस्त करते हैं कि कैंसर से जीतना अब नामुमकिन नहीं रहा.
शेफाली के पति अमित चक्रवर्ती भोपाल स्थित बीएचईएल कंपनी में काम करते हैं. इस दंपती के 2 बच्चे हैं. बेटी 12 साल की और बेटा 8 साल का है. चक्रवर्ती दंपती की जिंदगी में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अब से कोई 4 साल पहले पता चला कि शेफाली को जीभ का कैंसर है.
शेफाली बताती हैं कि जिस दिन बायोप्सी की रिपोर्ट आई थी, अमित ने यह नहीं कहा कि तुम्हें कैंसर है, बल्कि यह कहा कि हमें एक लड़ाई लड़नी है और किसी भी हालत में जीतना है.
शेफाली सकते में थी कि कैसे एक झटके में परिवार की खुशियों को ग्रहण लग गया था. डाक्टरों से मिलीं तो पता चला कि जीभ का औपरेशन होगा और मुमकिन है इस से उन की आवाज भी जाती रहे
यानी वे कभी बोल ही न पाएं. मुंबई के टाटा मैमोरियल में शेफाली का इलाज व औपरेशन हुआ और सफल भी रहा. शेफाली ने इस दौरान हिम्मत नहीं हारी. पति और नातेरिश्तेदारों ने भी पूरा सहयेग दिया जिस के चलते एक दुर्गम रास्ते से हो कर वे मंजिल तक आ पाईं. अब शेफाली पूरी तरह स्वस्थ व सामान्य हैं. कैंसर से जंग उन्होंने जीत ली है तो इस की एक बड़ी वजह वही आत्मविश्वास है.
डर कर जीना नहीं
कैंसर का पता शुरुआती दौर में जांच रिपोर्ट में आसानी से नहीं आता है. लखनऊ की रहने वाले नीलम वैश्य सिंह बहुत ही फिट व जागरूक महिला हैं. जब उन का वजन घटना शुरू हुआ और बौडी स्टैमिना कम होने लगा तो वे अपने फैमिली डाक्टर के पास गईं. कुछ समय पहले वे मैमोग्राफी करा चुकी थीं. उस में कोई जानकारी नहीं मिली थी. डाक्टर की सलाह पर दोबारा मैमोग्राफी टैस्ट कराया. इस में भी सही जानकारी नहीं मिल सकी. मैमोग्राफी के बाद अल्ट्रासाउंड यूएसजी कराया. इस में कुछ संकेत मिले. जिस की पुष्टि के लिए दिल्ली जा कर एफएनसी कराया. एफएनसी बहुत पीड़ादायक टैस्ट था. इस टैस्ट के बाद ही ब्रैस्ट कैंसर का पता चला. नीलम के लिए वे पल बहुत संघर्ष वाले थे. परिवार और बेटी को ले कर तमाम तरह की चिंताएं होने लगीं. नीलम के लिए अच्छा यह था कि पूरा परिवार उन के साथ हर तरह से सक्षम खड़ा था.
दिल्ली के बाद मुंबई जा कर सब से बेहतर इलाज की दिशा में प्रयास शुरू हुए. कई अलगअलग विशेषज्ञ डाक्टरों की राय और काउंसलिंग के बाद नीलम में आत्मविश्वास वापस आना शुरू हुआ. उन्होंने खुद को मजबूत किया. किसी भी औरत के लिए सब से कमजोर पहलू उस के खूबसूरत बाल होते हैं. ब्रैस्ट कैंसर में सुदंरता को ले कर अलग धारणा मन में थी. सर्जरी के पहले डाक्टर ने जब यह बता दिया कि इस में ब्रैस्ट को कोई नुकसान नहीं होगा और बाल वापस आ जाएंगे, तब मन मजबूत हुआ. नीलम कहती हैं, ‘‘सर्जरी करने वाले डाक्टर से बात करने के बाद मेरी सारी चिंताएं शांत हो गईं. सर्जरी से पहले हर तरह के टैस्ट किए जाने के बाद औपरेशन हुआ. औपरेशन के बाद एक ट्रेनपाइप लगा कर मुझे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. दवाओं का शरीर पर बुरा प्रभाव था. इस के बाद भी मैं खुद को व्यस्त रखना चाहती थी. मैं पार्टी, शौपिंग सबकुछ करने लगी.
‘‘सर्जरी के बाद कीमोथेरैपी शुरू हुई. हर 21 दिन पर 4 बार कीमोथेरैपी होने लगी. पहली थेरैपी के बाद ही मेरे बाल गिरने लगे. कई लोगों ने राय दी कि विग लगा लो. मेरा मन विग के लिए तैयार नहीं था. मैं ने अपने सिर के सारे बाल मुड़वा दिए. यह फैसला मेरे लिए और मेरे जानने वाले लोगों के लिए कठिन था.
‘‘मैं डर में नहीं जीना चाहती थी. बिना बाल के ही लोगों से मिलना, पार्टी और शौपिंग करना शुरू कर दिया.
‘‘अब मेरे बाल वापस आने लगे हैं. मैं ने कभी विग नहीं लगाई. जैसे नैचुरल बाल रहे उस की स्टाइल बना ली. हमेशा अपने को समाज के सामने रखा. कभी हिम्मत हार कर खुद को घर में कैद नहीं किया.
‘‘मेरा मानना है कि इस मर्ज में सब के साथ खुद की ताकत बहुत जरूरी होती है. कैंसर का इलाज बहुत खर्चीला है. इलाज के बाद भी जीवनभर दवाओं और जांच पर टिके रहना होता है. ऐसे में इलाज की कीमत का अंदाजा लगाना कठिन होता है. मेरे मामले में केवल डाक्टरी खर्च, दवा और जांच में 35 से 40 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं. यह कमज्यादा भी हो सकता है.’’
मुमताज भी हैं मिसाल
60-70 के दशकों में धूम मचा देने वाली अभिनेत्री मुमताज अब 68 साल की हो रही हैं. साल 2000 में मुमताज को ब्रैस्ट कैंसर हुआ था. उन के बाएं स्तन में गांठ थी. मैमोग्राफी से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि बगैर औपरेशन के वह ठीक नहीं हो सकती तो मुमताज ने सर्जरी कराने का फैसला ले लिया. जब कैंसर का पता चला, उस पूरी रात मुमताज सो नहीं पाई थीं. यह वह दौर था जब वे गुजराती मूल के व्यवसायी मयूर वाधवानी से शादी कर इंगलैंड में जा बसी थीं. वे फिल्मों को अलविदा कह चुकी थीं. मुमताज शुरू से ही हार न मानने वाली अभिनेत्री रही हैं. यही आत्मविश्वास कैंसर से लड़ कर जीतने में भी काम आया. औपरेशन हुआ, कीमोथेरैपी और रेडियोथेरैपी भी हुईं जिस से उन का खानापीना बंद हो गया था. मुमताज ने हार नहीं मानी और एक दिन ऐसा भी आया जब डाक्टरों ने उन्हें विजयी यानी कैंसरमुक्त घोषित कर दिया.
कैंसर को दी मात
कई कामयाब और हिट फिल्मों के निर्देशक अनुराग बासु की सकारात्मकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे कहते हैं कि उन्होंने कैंसर का नहीं, बल्कि कैंसर ने उन का सामना किया. साल 2004 में अनुराग को ल्यूकेमिया नाम का कैंसर हुआ था. तब वे फिल्म ‘तुम सा नहीं देखा’ का निर्देशन कर रहे थे. प्रोयाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया एक तरह का ब्लड कैंसर होता है जिस से ठीक होने की बाबत डाक्टर कोई गांरटी नहीं देते.
आज अगर अनुराग को देखें तो लगता नहीं कि यह वही शख्स है जिसे डाक्टरों ने कह दिया था कि उस के पास 2-3 महीने का ही वक्त है. अनुराग ने कैंसर के आगे सिर नहीं झुकाया और 3 वर्षों के लंबे इलाज के बाद वे जीत गए. दृढ़ इच्छाशक्ति वाले डायरैक्टर ने 17 दिन वैंटीलेटर पर भी गुजारे थे.
मौत के मुंह से वापस आए अनुराग बासु अब कैंसर पर फिल्म बनाने की सोच रहे हैं जिस में उन के व्यक्तिगत अनुभव स्वाभाविक तौर पर शामिल होंगे.
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हर किसी को ग्लोइंग स्किन की चाहत होती है हर कोई चाहता है कि हमारी त्वचा हर मौसम में दमकती रहे, पर गर्मी के मौसम सूर्य की तेज गर्मी और ताप गरम हवाओं के साथ त्वचा को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. गर्मी का यह मौसम त्वचा को रूखा और बेजान बना देता है और त्वचा के रोम छिद्र पसीने, धूल और गंदगी की वजह से बंद हो जाते हैं इसीलिए भी इस मौसम में त्वचा को स्वस्थ और उज्जवल बनाए रखने के लिए खास देखभाल की जरूरत पड़ती है.
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे उपाय जिसे अपनाकर आप गर्मी के मौसम में भी अपनी त्वचा को उज्जवलता दे सकती हैं.
बादाम फेस पैक
बादाम से बने फेस पैक को लगाकर आप गर्मियों में भी अपने चेहरे को निखार देकर जवान बनी रह सकती हैं. गोरी और निखरी त्वचा के लिए बादाम फेस पैक बनाते समय 3 से 4 बादाम को रात भर के लिए दूध में भिगो कर रखें, जब ये पूरी तरह भीगे हुये हों तो इसे थोड़े दूध की मदद से पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को 20 मिनट तक चेहरे में लगा रहने दें और फिर साफ पानी से चेहरा धो लें.
क्लींजिंग
त्वचा की सफाई दिन में दो बार सही क्लींजिंग माध्यम से होनी चाहिए. कच्चा दूध चेहरे को साफ करने का एक बेहतरीन माध्यम है. सादी दही और शहद का प्रयोग भी क्लीन्जर के तौर पर किया जा सकता है और ये त्वचा को नमी भी प्रदान करते हैं. इस क्लीन्जर को त्वचा पर लगाकर 10 मिनट तक रखें और फिर ठन्डे पानी से धो लें.
स्टीमिंग
स्टीमिंग बंद रोमछिद्रों को खोलता है तथा त्वचा की गन्दगी साफ करके उसे साफ सुथरी बनाता है. हफ्ते में एक बार स्टीमिंग करने पर चेहरा स्वस्थ और सुन्दर रहेगा.
टोनिंग
टोनिंग से त्वचा के गन्दगी भरे टौक्सिन्स निकलते हैं, त्वचा को नमी मिलती है, त्वचा साफ होती है तथा तरोताजा बनती है. प्राकृतिक टोनर बनाने के लिए ग्लिसरीन और गुलाबजल को बराबर मात्रा में मिलाएं. रात में इस टोनर का रोजाना प्रयोग करने से मुहांसे, काले धब्बे और टैनिंग के धब्बे हटाने के लिए करें.
मौइस्चराइजर
नरम मुलायम त्वचा पाने के लिए इसे एक पानी आधारित मौइस्चराइजर से नमी प्रदान करें. त्वचा धोने के तुरंत बाद, जब चेहरा गीला हो, तभी मौइस्चराइजर का प्रयोग करना चाहिए. रात में मौइस्चराइजर का प्रयोग करना ज्यादा फायदेमंद है क्योंकि इससे त्वचा को निखार मिलता है.
टैन
टैन हटने से त्वचा स्वस्थ और चमकदार होती है. टैन हटाने का घरेलू मास्क बनाने के लिए 2 से 3 बादाम, थोड़े से नींबू के रस तथा थोड़े दूध का पेस्ट बनाएं. इस पैक को रात में लगाएं तथा सुबह चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें.
अन्य उपाय
-शहद और नींबू के रस की बराबर मात्रा चेहरे पर लगाएं तथा 20 मिनट तक छोड़ दें. यह टैन हटाने का काफी असरदार तरीका है.
-खीरे के रस से भी सूरज की किरणों से हुई हानि को ठीक करने में मदद मिलती है. यह मुहांसे, काले धब्बे तथा त्वचा की अन्य अशुद्धियां हटाने में मुख्य भूमिका निभाता है तथा त्वचा को मुलायम बनाता है.
-बेसन, दूध तथा नींबू के रस की कुछ बूंदों को मिलाकर एक पेस्ट बनाएं. इसे 30 मिनट तक रखकर धो दें.
-संतरे के रस से त्वचा नरम तथा मुलायम होती है.
-पत्तागोभी और शहद के मिश्रण को चेहरे पर रोजाना लगाने से झुर्रियां दूर हो जाती हैं.
-कच्चे गाजर का पेस्ट चेहरे पर लगाने से दमकती त्वचा प्राप्त होती है.
-पुदीने के रस को रोजाना लगाने से दाग धब्बे दूर होते हैं.
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वजन घटाने के लिए परेशान हैं, तो डाइटिंग और जिम का चक्कर छोड़िए और घर के कुछ कामों में मन लगाएं. घर के कई काम ऐसे होते हैं जिन्हें करने से कैलोरी बर्न होती हैं. इनका फायदा एक्सरसाइज करने जैसा ही होता है और ये एक्स्ट्रा फैट कम कर सकते हैं.
1. गार्डेनिंग
गार्डेनिंग में पौधों को पानी देना, मिट्टी खोदना जैसे काम आते हैं. इससे हाथों की पूरी एक्सरसाइज होने के साथ ही अच्छे वर्कआउट का फायदा मिलता है. दरअसल, जिस मुद्रा में हम बागवानी करते हैं, उससे शरीर की मांसपेशियों की अकड़न दूर होने के अलावा अच्छी स्ट्रेचिंग भी होती है.
2. बर्तन धोना
बर्तन धोने के दौरान भी पूरा शरीर गतिशील रहता है. इस मामले में मेड पर आश्रित होने की बजाय खुद ही जूठे बर्तन धोएं. ऐसा करने से आपका शरीर गतिशील रहेगा और कैलोरी भी बर्न होगी. वहीं किचन भी ज्यादा साफ रहेगी.
3. फर्श साफ करना
पूरे घर के फर्श को साफ करना वजन घटाने का एक बेहतरीन उपाय साबित हो सकता है. अगर आपका पेट बाहर निकल आया है तो बैठकर पोंछा लगाना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा.
4. कुत्ता टहलाना
अगर आपके घर में कोई पालतू जानवर है तो आपके लिए कैलोरी बर्न करना कोई मुश्किल काम नहीं है. आप चाहें तो सुबह-शाम उसे टहलाने के बहाने सैर के लिए निकल सकते हैं. इससे भी वजन घटेगा.
5. सामान की खरीदारी
कोशिश कीजिए कि महीनेभर का राशन ऑनलाइन ऑर्डर करने या घर मंगाने की बजाय खुद जाकर लाया जाए. ऐसा करने से जहां आप अपनी जरूरत का सारा सामान ला सकेंगी, वहीं सामान खरीदने के दौरान चलते रहने से एक्स्ट्रा फैट भी कुछ कम हो जाएगा.
6. हाथ से कपड़े धोना
मशीन छोड़ें और हाथ से कपड़े धोना शुरू करें. ऐसा करने से आपकी पूरी बांह की एक्सरसाइज हो जाएगी और आपको जिम जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.
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चेहरा धोना शायद सबसे आसान काम है. पर क्या आपको पता है जिस तरीके से आप अपना चेहरा धोते हैं वो कितना खतरनाक साबित हो सकता है.
हम चेहरा धोते समय अक्सर ऐसी गलतियां करते रहते हैं जिससे चेहरा साफ होने के बजाय बेजान होता जाता है. यहां कुछ ऐसी ही गलतियों का जिक्र है जो हम सभी आमतौर पर करते हैं:
इन घरेलू उपायों से रूखे हाथ बन जाएंगे मक्खन से मुलायम
1. चेहरा धोने का पानी न तो बहुत गर्म होना चाहिए और न ही बहुत ठंडा. बहुत अधिक ठंडा और बहुत अधिक गर्म पानी चेहरे को नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में हल्के गुनगुने पानी से ही चेहरा साफ करना चाहिए.
2. अगर आप चेहरा साफ करने के लिए स्क्रबर का इस्तेमाल करती हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि कोमल हाथों से ही स्क्रबिंग करें. वरना चेहरे पर रगड़ के निशान भी बन सकते हैं.
3. अगर आपको मेकअप उतारना है तो बजाय चेहरा धोने के आप सबसे पहले उसे कॉटन से अच्छी तरह पोछ लीजिए. उसके बाद ही चेहरे को पानी से साफ कीजिए. मेकअप को सीधे पानी से धोने पर मेकअप के कण त्वचा के रोम-छिद्रों में चले जाते हैं जिससे वो बंद हो जाते हैं.
4. अगर आप अपना चेहरा धोने जा रहे हैं तो सबसे पहले अपने हाथों को साफ कर लीजिए. गंदे हाथों से चेहरा साफ करने का कोई फायदा नहीं है.
5. चेहरे को बहुत अधिक धोना भी सही नहीं है. चेहरे को बार-बार धोने से चेहरे का निखार कम हो जाता है.
6. चेहरा धोने के बाद उसे हल्के हाथों से पोछना चाहिए. चेहरे को रगड़कर पोछना बिल्कुल भी ठीक नहीं है.
7. चेहरे को साबुन से तो बिल्कुल भी नहीं धोएं. अगर आपका फेसवॉश खत्म हो गया है तो बजाय किसी रासायनिक पदार्थ के आप बेसन का इस्तेमाल कर सकती हैं.
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बैगन की सादी सब्जी खाकर परेशान हो चुकी हैं, तो आज रात के खाने में बनाएं पिकल्ड बैगन विद ग्रेवी.
सामग्री भरावन की
1 छोटा चम्मच मेथीदाना
1 छोटा चम्मच कलौंजी
1 छोटा चम्मच सौंफ
1 छोटा चम्मच हलदी
1 छोटा चम्मच लालमिर्च
1 छोटा चम्मच जीरा
सामग्री
500 ग्राम बैगन
1 छोटा चम्मच हलदी
3 बडे़ चम्मच तेल
3 प्याज का पेस्ट
4 टमाटरों का पेस्ट
1 छोटा चम्मच लहसुन व अदरक का पेस्ट
1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्च पेस्ट
2 छोटे चम्मच टोमैटो कैचअप
नमक स्वादानुसार
विधि
बैगनों को धो कर बीचोंबीच चीरा लगाएं. थोड़ाथोड़ा मसाला सभी बैगनों में भर कर अलग रखें.
ग्रेवी बनाने के लिए कड़ाही में तेल गरम कर के लहसुन व अदरक का पेस्ट भूनें. अब प्याज पेस्ट डालें और तेल छोड़ने तक भूनें. टमाटर पेस्ट डाल कर कड़ाही छोड़ने तक भूनें.
हलदी व गरममसाला डालें व भूनें. हरीमिर्च व टोमैटो कैचप मिला कर 1 मिनट भूनें. फिर मसाले भरे बैगन ग्रेवी के बीच रख कर सौफ्ट होने तक धीमी आंच पर पकाएं. आंच बंद कर के ढक दें. थोड़ी देर बाद सर्व करें.
VIDEO : आप भी पा सकती हैं गुलाबों से भी गुलाबी होंठ
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