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घर बैठे होना है मालामाल तो इन योजनाओं में लगाएं पैसा

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हर साल नई फाइनेंशियल प्लानिंग जरूरी है. लेकिन, उससे ज्यादा जरूरी है कि पहले से ही इसकी तैयारी की जाए. सुरक्षित निवेश के लिए ये जानना जरूरी है कि कौन सी स्कीम या फंड्स ऐसे हैं जहां निवेश किया जा सकता है. निवेश से लिए सिर्फ पैसा होना जरूरी नहीं, बल्कि बेहतर विकल्प की समझ जरूरी है.

ऐसे में आपके लिए यह जरूरी है कि अपनी कमाई ऐसी जगह निवेश करें, जहां दूसरे विकल्प की तुलना में आपको ज्यादा इनकम हो और आपके पैसे भी सुरक्षित भी रहें. साथ ही निवेश विकल्प का चयन करते समय उसपर लगने वाले टैक्स का भी ध्यान रखें. हम आज आपको ऐसी ही कुछ विकल्प बताएंगे, जहां आपका पैसा दूसरी स्कीमों से ज्यादा सुरक्षित रहेगा. साथ ही, उस पर बेहतर रिटर्न भी मिलेगा.

किन 5 जगहों पर लगाएं पैसे

पीपीएफ

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साल 2018 में पीपीएफ अकाउंट में पैसे डालना बेहतर औप्शन है. पीपीएफ का सबसे बड़ा फायदा है कि‍ इसमें जमा की गई रकम पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री होता है. इतना ही नहीं ब्‍याज और मैच्‍योरि‍टी पर मि‍लने वाली रकम टैक्‍स फ्री होती है. पीपीएफ पर फिलहाल सालाना 7.6 फीसदी रिटर्न मिलता है. हर तीन माह पर पीपीएफ की ब्‍याज दर की समीक्षा होती है. अकाउंट में न्‍यूनतम निवेश 500 रुपए सालाना और अधि‍कतम 150000 रुपए सालाना है.

सुकन्या समृद्धि योजना

सुकन्या समृद्धि योजना एक सरकारी योजना है. इसमें निवेश किया गया पैसा बिल्कुल सुरक्षित है. 10 साल से कम उम्र की बेटी के नाम पर बैंक या पोस्ट औफिस में इसका खाता खुलवाया जा सकता है. योजना में निवेश अवधि 14 साल तक है. बेटी के 21 साल होने पर मेच्योर हो जाएगा. अकाउंट में निवेश किए गए पैसों पर इनकम टैक्‍स की धारा 80C के तहत छूट भी मिलेगी. योजना में 8.1 फीसदी ब्‍याज मिलता है. ब्‍याज की गणना कंपाउंड आधार पर की होती है, जिससे रिटर्न थोड़ा ज्‍यादा मिलता है. हर साल मिनिमम 1000 रुपए और अधिकतम 1.5 लाख रुपए निवेश किया जा सकता है.

लिक्विड फंड

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नए साल में निवेश के लिए लिक्विड फंड बेहतर औप्शन है. इस फंड में सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज के मुकाबले ज्यादा रिटर्न मिलता है. साथ ही, इससे पैसा आसानी से निकाला जा सकता है. पिछले एक साल में ज्यादातर लिक्विड फंड योजनाओं ने 9 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है, जो एफडी पर मिल रहे मौजूदा रिटर्न से भी ज्यादा है. लिक्विड फंड एक तरह के म्युचुअल फंड हैं, जिनमें जोखिम कम होता है. इनकी कोई लौक-इन अवधि नहीं होती. मतलब आप निवेश करने के दूसरे दिन भी पैसे निकाल सकते हैं. जब चाहें एक्स्‍ट्रा पैसे जमा कराएं या निकालें. यह योजना बैंक या पोस्ट औफिस की आरडी की तरह काम करेगी.

पोस्ट औफिस

बैंक तो डिपौजिट रेट घटाने में लगे हुए हैं, लेकिन फिलहाल डाकघर की बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कमी नहीं की गई है. इनवेस्टर्स को बैंक डिपॉजिट पर अभी मैक्सिमम 6 से 7 फीसदी के बीच ब्याज मिल रहा है. जबकि, डाकघर की जमा योजनाओं पर 7.9 फीसदी ब्याज मिल रहा है. इस लिहाज से आपकी रकम इस स्कीम में 9 साल में दोगुनी हो जाएगी.

सरकारी बौन्ड्स

सरकारी बौन्ड्स में पैसा लगाना आपके लिए बैंक से बेहतर विकल्प हो सकता है. जहां बैंकों में अधिकतम 7 फीसदी तक ब्याज मिल रहा है, वहीं, सरकारी बौन्ड्स पर अभी 7.8 फीसदी ब्याज दर है. इस लिहाज से आपकी रकम भी बैंक की तुलना में यां जल्दी डबल हो जाएगी.

दोबारा मां बनी सनी लियोनी, दो नन्हे मेहमान आए घर

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बौलीवुड एक्ट्रेस सनी लियोनी ने फिर से दो बच्चों को गोद लिया है. इनका नाम अशर सिंह वेबर और नोहा सिंह वेबर रखा गया है. सनी के पति डेनियल ने सोमवार को इन दोनों की तस्‍वीरें ट्विटर पर शेयर की है. सनी द्वारा शेयर की गई इस तस्वीर में उनकी गोद ली हुई बेटी निशा कौर वेबर भी नजर आ रही हैं. सनी ने अपनी पोस्‍ट में लिखा है कि इतना खूबसूरत और बड़ा परिवार पाकर मैं और मेरे पति डेनियल बेहद खुश हैं.

पहले भी एक बच्ची को लिया है गोद

बता दें, इससे पहले सनी लियोनी और डेनियल ने कुछ वक्त पहले ही एक बच्ची को गोद लिया है. इस बच्ची का नाम उन्होंने निशा वेबर रखा है. हाल ही में एक इंटरव्यू में सनी ने बताया था कि निशा के घर आने के बाद उनके घर की रौनक लौट आई है. उन्होंने कहा था, हम दोनों पति-पत्नी में सुबह होते ही धक्का-मुक्की होने लगती है की कौन सुबह सबसे पहले उसके कमरे में जाकर उसे गुड मार्निंग विश करेगा.

बच्ची को गोद लेने के बाद से सनी खुश थीं

सनी ने बताया, बेटी को गोद लेने के बाद से वह बेहद खुश थीं. हाल ही में सनी लियोनी ने कहा कि अभिनेता राम कपूर काफी मजाकिया स्वभाव के हैं और खूब हंसाते हैं. सनी ने डिस्कवरी जीत के सीरियल ‘कौमेडी हाई स्कूल’ के दो एपिसोड लिए राम कपूर के साथ शूटिंग की. सनी ने एक बयान में कहा कि राम कपूर से मैं काफी दिनों बाद मिली.

राम कपूर के साथ की शूटिंग

सनी ने कहा कि राम कपूर काफी मजाकिया स्वभाव के हैं और खूब हंसाते हैं. राम कपूर ने भी कहा कि उन्हें भी सनी लियोनी के साथ शूटिंग में काफी मजा आया. ‘कौमेडी हाई स्कूल’ में गोपाल दत्त, पारितोष त्रिपाठी, कृष्णा भट्ट, जसमीत भाटिया और दीपक दत्ता भी नजर आएं. सनी लियोनी की भूमिका वाला एपिसोड शनिवार को प्रसारित किया गया था.

ट्रैवलिंग के दौरान ऐसे दिखें स्टाइलिश, ट्रिप बन जाएगी मजेदार

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आप घर पर हों या बाहर घूमने जा रही हों, सही तरीके से ड्रेसअप होना बेहद जरूरी है. यात्रा पर निकलने से पहले सुनिश्चित कर लें कि आप जहां जा रही हैं, उसी जगह के मुताबिक अपने आउटफिट्स का चयन करें.

पहाड़ों के लिये

इस बार गर्मियों की छुट्टी में किसी पहाड़ी इलाके में जाने की योजना बना रही हैं तो कपड़े भी वहां के मौसम के अनुसार चुनें. इन जगहों पर ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बदलते मौसम का सामना करना पड़ सकता है. इसके लिए पहले से तैयार रहें.

बहुत ढीले-ढाले या हलके कपड़े यहां के मौसम और रास्तों के अनुकूल नहीं होंगे. अपने साथ ढेर सारे भारी-भरकम कोट्स या स्वेटर रखने के बजाय कुछ ऐसे गर्म कपड़े रखें, जो देखने में हलके लगें लेकिन आपको गर्म रखें. अलग-अलग रंगों के बजाय ब्लैक, ब्राउन, ग्रे जैसे कौमन कलर्स साथ रखें ताकि उन्हें अन्य कपड़ों के साथ मैच करके पहन सकें. पैंट्स और जींस के साथ शौल भी रख सकती हैं. पहाड़ी इलाकों में चलना ज्यादा पड़ता है, इसलिए स्नीकर्स और फ्लैट्स ही लेकर जाएं. ये पैरों को आराम देंगे.

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गर्म जगहों के लिए

यदि किसी गर्म जगह पर जा रही हैं तो कौटन फैब्रिक बेहतर आइडिया है. ऐसी जगहों पर टैनिंग का खतरा रहता है इसलिए हाफ की जगह फुल स्लीव्स के आरामदायक और ढीले कपड़ों का चुनाव करें. लाइट रंग के कपड़े शरीर को ज्यादा राहत दिलाएंगे, आरामदायक होगी.

लौन्ग स्कर्ट्स भी पहनी जा सकती हैं, ताकि पैरों को धूप और टैनिंग से बचाया जा सके. यात्रा के दौरान फुटवेयर्स का चुनाव सावधानी से करें. हाई हील्स बिल्कुल न ले जाएं. अच्छे ब्रैंड के सनग्लासेज और कैप साथ में जरूर रखें.

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अगर बीच पर जाने की तैयारी

अगर किसी आईलैंड पर जाने की तैयारी कर रही हैं तो साथ में शौर्ट्स, गाउन, फ्लोइंग फैब्रिक की ड्रेसेज के साथ अच्छे स्विमवेयर्स भी रखें. स्विमिंग का मन हो तो अच्छी क्वालिटी के स्विमसूट का एक पेयर जरूर रखें. फ्लिप-फ्लौप, सनग्लासेज और अंब्रैला भी साथ में रखें. दरअसल बीच एरिया में तेज धूप से त्वचा टैन हो सकती है. इसके लिए अच्छा एसपीएफ लोशन अपने साथ जरूर ले जाएं. हैट्स जरूरी हैं. यहां हलके फ्लोरल आउटफिट्स कूल एहसास कराएंगे.

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रखें खयाल

सनग्लासेज सिर्फ धूप से ही सुरक्षा नहीं करते बल्कि बर्फ गिरने के दौरान आंखों को सुरक्षित भी रखते हैं. यात्रा के दौरान भारी भरकम और महंगी ज्यूलरी न ले जाएं. कानों में सिंपल स्टड्स पहनें, स्काव्र्स का एक पेयर जरूर रखें.

अमरूद की पत्तियां करेंगी आपके बालों की हिफाजत, जानें कैसे

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हर महिला की चाहत होती है खूबसूरत, घने और लम्बे बाल पाने की. घने और सिल्की बाल आपकी खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं, पर बदलते मौसम के साथ अक्सर ही हमें बालों से संबंधित कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. बालों में रूसी की शिकायत, कम उम्र में ही बालों का सफेद होना और उनका झड़ना ये आम समस्याएं कई बार हमारी परेशानी की बड़ी वजह होती है. कई तरह के महंगे उत्पादों का इस्तेमाल करने के बाद भी हमें इससे पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिलता.

अगर आप भी इस तरह की समस्याओं से परेशान हैं और बालों को खूबसूरत बनाने वाले महंगे शैम्पू को इस्तेमाल करके थक चुकी हैं तो ये खबर शायद आपके लिए ही है. क्या आप जानती हैं कि अमरूद की पत्‍तियों से बना पाउडर सफेद बालों को प्राकृतिक तरीके से काला करने के साथ-साथ झड़ते बालों को भी रोकता हैं. जी हां, ये बिल्कुल सच है, तो अब सारे चोचले छोड़ अमरूद के पत्‍ते इस्तेमाल करना शुरू कर दीजिए. इन पत्तियों से बना हेयर पैक न सिर्फ आपके बालों को झड़ने से रोकेगा बल्कि सफेद हो चुके बालों को भी दोबारा से काला बनाएगा.

आइये जानते हैं इसके फायदे और हेयर पैक बनाने के तरिके-

रूसी दूर करने के लिए

अमरूद की पत्‍तियों के साथ नींबू का रस मिलाकर लगाने से रूसी दूर होती है. इसके लिए 15 से 20 अमरूद की पत्‍तियों को पीस कर पाउडर बना लें. इस पाउडर में 2 से 3 बूंदे नींबू का रस मिला लें. इस पेस्ट को 20 मिनट के लिए सिर पर लगा छोड़ दें. फिर पानी से अच्छी तरह धो डालें. ऐसा करने से आपकी रूसी की समस्या दूर हो जाएगी.

असमय सफेद बालों के लिए

अमरूद की पत्‍तियों को कड़ी पत्‍तियों के साथ उपयोग करने से असमय सफेद बालों से छुटकारा मिलता है. इसके लिए 4-5 अमरूद की पत्‍तियों में मुठ्ठीभर कडी पत्‍तियां मिक्‍स कर के उबाल लें. 15 मिनट बाद इस पानी को ठंडा होने के लिये रख दें. ठंडा होने के बाद इस पानी से अपना सिर धो लें. इसके बाद 5 मिनट के बाद अपने बालों को किसी अच्छे शैंपू से धो लें. हफ्तेभर में आपके सफेद बाल काले हो जाएंगे.

बालों का झड़ना

झड़ते बालों को रोकने के लिए अमरूद की पत्‍तियों के साथ आंवले के तेल का उपयोग करें. इसके लिए सबसे पहले 1 चम्मच अमरूद की पत्‍तियों के पाउडर में 2 चम्मच आंवले का तेल मिक्‍स कर लें. इस तेल से हल्‍के हाथ से सिर पर मसाज करने के बाद 30 मिनट तक ऐसे ही लगा छोड़ दें. बाद में बालों को शैंपू से धोकर कंडीशनर लगा लें.

इस तरह से आप अमरूद की पत्‍तियों का हेयर पैक बनाकर इस्तेमाल कर सकती हैं और बालों में होने वाली तमाम समस्याओं से राहत पा सकती हैं.

7 आसान टिप्स रखें आपको फिट ऐंड फाइन

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आप चुस्तदुरुस्त रहना चाहती हैं, तो कुछ गुरों को अपनाना होगा. अपना वजन घटाने के लिए आप व्यायाम करना शुरू कर देती हैं और डाइट को भी कंट्रोल कर लेती हैं. शुरुआत तो बहुत जोशखरोश से होती है, लेकिन कुछ समय बाद यह जोश घटने लगता है और आप फास्टफूड खाना शुरू कर देती हैं. फिर धीरेधीरे उसी पुराने ढर्रे पर आ जाती हैं, ऐसा आप ही नहीं वरन हर महिला करती है.

फिट रहने के लिए करें लक्ष्य तय: आप को सब से पहले लक्ष्य तय करना होगा कि किस तरह फिटनैस चाहती हैं. इस के लिए आप बड़े नहीं छोटे लक्ष्य तय करें. फिटनैस दिवा शिल्पा शेट्टी के अनुसार फिट रहने के लिए स्मार्ट लक्ष्य तय करें. स्मार्ट लक्ष्य से तात्पर्य ऐसे व्यायाम, जिन्हें आसानी से किया जा सके और परिणाम भी जल्दी सामने आएं. लंबी दौड़ शुरू करने के शुरू के कुछ महीने कुछ ही मील दौड़ें जो कि 15-20 मिनट में पूरे किए जा सकें.

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प्लान कर के तैयार करें भोजन: काम की जल्दबाजी हो या और कोई जरूरी कार्यक्रम, खाना टाल दिया जाए या न खाना जाए या फिर जो मिला खा लिया, यह लापरवाही सही नहीं. प्लान कर के पूरे हफ्ते के लिए पोषक तत्वों से भरपूर भोजन बनाएं. थोड़ा समय निकाल कर पोषक तत्वों से भरपूर भोजन गरम कर के ग्रहण करें. यदि घर से बाहर जा रही हैं, तो अपना खाना व पानी साथ ले जाएं.

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अच्छा साथ ढूंढ़ें: फिट रहने के लिए एक अच्छे साथी का साथ बना लें. इस से आप के अंदर उत्साह रहेगा, दोनों एकदूसरे को प्रेरित करेंगे और रोज की दिनचर्या में ढील नहीं होगी. संभव हो तो किसी व्यायाम सिखाने वाले इंस्ट्रक्टर की सलाह लें.

मन को काबू में रखें: मान लीजिए बर्गर, पिज्जा, चाट आप की कमजोरी हैं और आप इन्हें देख कर खुद को काबू नहीं कर पातीं, तो अपना रास्ता बदल दीजिए. मन ललचाए, रहा न जाए वाली फीलिंग पर कंट्रोल आप के अपने हाथ में है.

व्यायाम का आनंद लें: सिर्फ कैलोरी जलानी है, यह सोच रखते हुए व्यायाम न करें. आप जिस भी कार्य को करने में आनंद महसूस करते हैं जैसे घर की सफाई, बागबानी, नृत्य आदि पूरे मनोयोग से करें. ऐंजौय करते हुए बैडमिंटन, रस्सी कूदना, टैनिस खेलना आदि फिटनैस मैंटेन करने के आसान तरीके हैं.

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अपनेआप को बदलें: अगर रोजमर्रा की जिंदगी से बोर हो रही हैं तो कुछ नया करें, जिस से आप को खुशी महसूस हो. जब दिल ऊबने लगे तो कुछ नया करें चाहे कुकिंग हो, डांसिंग हो या और कुछ भी हलकाफुलका जिस में आप ऐंजौय करें.

व्यस्त रहें स्वस्थ रहें: पतला होना है, यह सोच कर अपनेआप पर जुल्म न करें. न खाना या फिर रूखासूखा खाना सही नहीं. मन पर काबू करते हुए हलकाफुलका व पौष्टिक खाएं. खूब पानी पीएं. खाली पेट न रहें और नियमित व्यायाम करें. सच मानिए आप को देख कर आईना भी शरमा जाएगा.

रणवीर सिंह के साथ बौलीवुड में डेब्यू करेंगी ये टीवी एक्ट्रेस

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टीवी और बड़े पर्दे के बीच का अंतर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. इस साल टीवी की दुनिया की कई हौट एंड टैलेंटेड हसीनाओं को बौलीवुड में डेब्यू करने का मौका मिला है. इस लिस्ट में मोनी रौय, मृणाल ठाकुर और दीपिका कक्क्ड़ के बाद अब एक और हसीना का नाम इस जुड़ गया है.

यह कलाकार कोई और नहीं बल्कि स्टार प्लस के लोकप्रिय शो ‘मन की आवाज प्रतिज्ञा’ के जरिये घर-घर में अपनी पहचान बना चुकी अभिनेत्री पूजा गौर हैं. जी हां, अब आपकी चहेती कलाकार पूजा गौर अपनी नई पारी शुरू करने वाली हैं और आप जल्द ही उन्हें बड़े परदे पर देख सकेंगे.

हाल ही में पूजा ने रणवीर सिंह के साथ एक फोटो शेयर की है, जो कापी वायरल हो रही है. खबरों के अनुसार, पूजा रणवीर सिंह की फिल्म गली बौय से बौलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं.

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आपको बता दें कि इस फिल्म में रणवीर सिंह के अपोजिट आलिया भट्ट नजर आने वाली हैं. फिल्म में दोनों की जोड़ी पहली बार देखने को मिलेगी. चर्चा है कि रणवीर-आलिया की इस फिल्म में पूजा गौर अहम रोल में नजर आएंगी. यह फिल्म जोया अख्तर के निर्देशन में बन रही है.

मालूम हो कि पूजा टीवी पर कई शोज में नजर आ चुकी हैं. उन्होंने क्राइम शो ‘सावधान इंडिया’ को होस्ट किया है. इसके अलावा वो ‘प्यार तूने क्या किया’, ‘एक थी नायिका’ जैसे शोज कर चुकी हैं. पूजा ने हाल ही में खुलासा किया था कि वह रियलिटी शो को लेकर एक्साइटेड रहती हैं. लेकिन बिग बौस जैसे शोज से वे दूर भागती हैं. पूजा का कहना है कि वो डांस बेस्ड रियलिटी शो कर सकती हैं. मगर बिग बौस के बारे में सोच भी नहीं सकतीं.

टीवी और स्मार्टफोन नहीं, पेरैंट्स हैं इसके लिए जिम्मेदार

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साल के आखिरी महीने यानी दिसंबर 2017 में दिल्ली से सटे गौतमबुद्घनगर के ग्रेटर नोएडा में गौड़ सिटी सोसायटी में 15 वर्षीय किशोर बेटे ने अपनी मां और बहन की सिर्फ इस बात पर हत्या कर दी कि उसे पढ़ाई पर मां की डांट और छोटी बहन को मिल रहे ज्यादा प्यार पर बहुत गुस्सा आता था. जरा सोचिए, क्या एक 15 साल का मासूम मन इतना हिंसक हो सकता है कि अपने ही घर में यह खूनी खेल खेले. सच तो यही है, यही हुआ है. लेकिन सवाल है, क्यों? पेन स्टेट शेनंगो में मानव विकास और परिवार पर किए गए अध्ययन के सहयोगी प्रोफैसर विलियम मैकग्यूगन के मुताबिक, जो मातापिता अपने बच्चों को नजरअंदाज करते हैं वे बच्चे हिंसक प्रवृत्ति के होते हैं. और यह बात दुनिया के हर देश, हर परिवार व समाज पर लागू होती है. आज परिवार और पेरैंट्स के सामने भी यही समस्या सब से बड़ी बन कर उभरी है कि उन के बच्चे हिंसक होते जा रहे हैं. गौड़ सिटी वाले मामले में भी जाहिर है बच्चे को लगता था कि उस की मां उसे नजरअंदाज करती थी. इस का मतलब उपरोक्त अध्ययन बिलकुल सही इशारा कर रहा है कि अगर बच्चे पेरैंट्स द्वारा नजरअंदाज किए जाएंगे तो इस के परिणाम हिंसक होंगे.

पेरैंट्स की गलती अभिभावक और बाल मनोवैज्ञानिक तकनीक, स्मार्टफोन और इंटरनैट के सिर सारा दोष यह कह कर मढ़ देते हैं कि जब से ये गैजेट और इंटरनैट बच्चों के हाथ आया है, तभी से बच्चे हिंसक व गुस्सैल होते जा रहे हैं. हो सकता है किसी हद तक यह बात सच हो लेकिन फिर भी यह अधूरा सच होगा क्योंकि जब बच्चे का जन्म होता है और वह धीरेधीरे बढ़ता है तब तक उसे तकनीक और इंटरनैट की दुनिया से कोई वास्ता नहीं होता. लेकिन जब वह खिलौने, चित्र और आवाजें पहचानने लगता है तो अभिभावक उस के साथ समय बिताने के बजाय उसे टीवी के कार्टून्स, इंटरनैट के वीडियो और स्मार्टफोन के संसार से परिचित करा देते हैं. हां, सिर्फ परिचय के लिए ही नहीं कराते, बल्कि दैनिक स्तर पर उन्हें उस की लत लगा देते हैं ताकि उन्हें अपने कामों की फुरसत मिल सके.

जब यह लत बच्चे के मन को घेर रही होती है, उस समय पेरैंट्स यह सोच कर खुश हो रहे होते हैं कि उन का बच्चा मोबाइल में बिजी हैं और उन्हें अपने लिए या औफिस के काम के लिए समय मिल रहा है. हालांकि, जब वे बच्चे के साथ थोड़ा सा समय साथ बिताने के लिए उस से गैजेट छीनना चाहते हैं तब वह रोनेचिल्लाने लगता है. और अब वह उन के बिना खेलने से भी इनकार कर देता है. तब जा कर पेरैंट्स को इस बात का एहसास होता है कि उन्होंने बच्चे को समय न दे कर बड़ी भूल की है.

आत्महत्या और यौनशोषण

जब बच्चों को चिकित्सक या काउंसलर की जरूरत पड़ने लगे तो समझ जाइए कि हालत इस से भी बदतर हो सकती है. मोबाइल गेम्स एडिक्शन उसे हिंसक कृत्यों, आत्महत्या या यौनशोषण का शिकार भी बना सकती है. अमेरिका में हुई सैंटर्स फौर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवैंशन की रिसर्च बताती है कि किशोर उम्र के बच्चों में आत्महत्या की दर 2 दशकों तक गिरने के बाद 2010 से 2015 के बीच बढ़ गई.

ये संकेत बताते हैं कि इंटरनैट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल इस की एक वजह हो सकती है. 17 साल की काइतलिन हर्टी अमेरिका के कोलोराडो हाईस्कूल की सीनियर छात्र है, उस के मुताबिक, ‘‘कई घंटों तक इंस्टाग्राम की फीड को देखने के बाद मुझे मेरे बारे में बहुत बुरा महसूस हुआ, मैं खुद को अलगथलग महसूस कर रही थी.’’ जाहिर है यह अकेलापन ही कई बार अवसाद या आत्महत्या की मनोदशा की ओर ढकेल देता है. क्लिनिकल साइकोलौजिकल साइंस जर्नल में छपी रिसर्च के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 36 फीसदी किशोरों ने अत्यंत निराशा व दुख की अवस्था का सामना करने के साथ ही आत्महत्या पर विचार करने की बात भी मानी. रिसर्च यह साफ करती है कि जो लोग सोशल मीडिया का कम इस्तेमाल करते हैं उन के मुकाबले इन लड़कियों के तनाव में रहने की प्रवृत्ति 14 प्रतिशत ज्यादा दिखाई दी.

रिसर्च की लेखिका ज्यां ट्वेंगे सैन डिएगो की यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की प्रोफैसर हैं. उन का कहना है, ‘‘हमें यह सोचना बंद करना होगा कि मोबाइल फोन नुकसानदेह नहीं है. यह कहने की आदत बनती जा रही है कि अरे, ये तो सिर्फ अपने दोस्तों से संपर्क रख रहे हैं. बच्चों के स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर नजर रखना जरूरी है और साथ ही, उसे उपयुक्तरूप से सीमित करना भी.’’ इंटरनैट के सहारे बढ़ता बालशोषण भी एक बड़ी समस्या है. एंटीवायरस मेकर्स कंपनी मैकऐफी की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि इंटरनैट पर छोटे बच्चों के शिकारी खुलेआम घूम रहे हैं. वे लोग ऐसे बच्चों को बहलाफुसला कर उन से अपना मतलब साधते हैं. इंटरनैट पर दोस्ती बढ़ाने के बाद उन का यौनशोषण किया जाता है और कई मामलों में इसी के जरिए अपहरण भी कर लिया जाता है.

दरअसल, अब बच्चों के पास स्मार्टफोन से ले कर आईपैड तक हैं जिन से सोशल नैटवर्किंग साइटों पर लौगइन किया जा सकता है. बच्चे इन उपकरणों की सहायता से चौबीसों घंटे इंटरनैट से जुड़े रहते हैं. इन सब से बचने के लिए पेरैंट्स को बच्चे के साथ लगातार संवाद बरकरार रखना जरूरी है. वरना, वे वर्चुअल दुनिया में खो कर आत्महत्या या यौनशोषण की ऐसी अंधेरी गली में खो जाएंगे जहां से वापस आना उन के लिए आसान नहीं होगा.

पढ़ने की आदत डालें

इंटरनैट के आगे बेबस होने के बजाय अगर अभिभावक ठान लें तो बच्चों को इंटरनैट के संसार से बाहर कर उन्हें किताबी दुनिया में ला सकते हैं. इस के लिए उन में पढ़ने की आदत विकसित करनी होगी क्योंकि किताबें किसी भी बच्चे के मन को दूषित नहीं करती हैं, न ही भटकाती हैं. जब पत्रिका और अखबार घर पर बच्चे पढ़ते हैं तो उन्हें सिर्फ सार्थक जानकारियां मिलती हैं और वे रचनात्मक बातें सीखते हैं लेकिन अब मोबाइल हाथ में होने से उन से किताबें व पत्रिकाएं छीन ली गई हैं. अगर अभिभावक चाहें तो उन्हें फिर से किताबों के रोचक संसार से जोड़ सकते हैं. इस से वे सकारात्मक और ज्ञानवर्धक बातें ही सीखेंगे और नुकसानदेह तकनीकी दखल उन की जिंदगी से दूर होगा.

टैक्नो नजर जरूरी अगर बच्चे गैजेट की दुनिया से बाहर ही नहीं आना चाहते हैं और इंटरनैट के मोह में पूरी तरह फंस चुके हैं तो उन्हें इस से बचाने के लिए आप को टैक्नोसेवी होना पड़ेगा और कुछ सिक्योरिटी फिल्टर लगाने होंगे ताकि वे गलत दिशा में न भटकें. कई बार बच्चे पेरैंट्स को तकनीकी भाषा के जाल में फंसा कर यह समझा देते हैं कि वे स्मार्टफोन पर स्कूल का प्रोजैक्ट या पढ़ाई कर रहे हैं. इसलिए पेरैंट्स भी अपडेट रहें तकनीकी मोरचे पर बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए.

यह बात सच है कि कई बार जानकारियां जमा करने के लिए इंटरनैट की जरूरत पड़ जाती है और अब बच्चे लाइब्रेरी में जा कर इनसाइक्लोपीडिया या मोटीमोटी किताबों में जानकारी खोजने के बजाय एक क्लिक पर हासिल कर लेना ज्यादा समझदारी का काम समझते हैं. सब से सही तो यह रहेगा कि जब वे गैजेट का इस्तेमाल करें, आप उन के साथ ही बैठें. छोटी आयु के बच्चों को मातापिता या अन्य किसी बड़े पारिवारिक सदस्य के साथ बैठा कर ही सर्फिंग करानी चाहिए और उन को एक निश्चित समय तक ही इन का प्रयोग करने दें. इंटरनैट पर कई तरह के फिल्टरिंग और ब्लौकिंग सिस्टम भी हैं, जिन में सुविधा होती है कि आप ऐच्छिक साइट्स ही खोल सकें और अनचाही व अनुपयोगी वैबसाइट्स सर्फ ही न की जा सकें.

बेशक बच्चों की शैक्षिक यात्रा में आज कंप्यूटर, इंटरनैट और स्मार्टफोन जरूरी टूल्स बन चुके हैं लेकिन जानकारियों के अथाह सागर और मनोरंजन के सोर्स के रूप में इंटरनैट बच्चों के लिए कहीं घातक न हो जाए, इस के लिए तो पेरैंट्स को ही सजग रहना होगा. हर चीज के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते हैं. अगर अच्छे पहलू को आप फौलो करते हैं, तो आप को उस का सही फायदा मिलता है और अगर बुरे पहलू को फौलो करते हैं, तो नुकसान और भटकाव के अलावा आप को कुछ नहीं मिलता.

आजकल के बच्चों में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की आदत को देखते हुए यह लाइन उन पर बिलकुल फिट बैठती है. अभिभावक होने के नाते अब बेहतरी इसी में है कि बच्चे को समय दें और उन के साथ कदम से कदम मिला कर तकनीकी चुनौतियों का सामना करें.

वर्चुअल जगत का मनोवैज्ञानिक पहलू

मैंटल हैल्थ व बिहेवियर साइंस से जुड़े विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कच्ची उम्र के बच्चे, जो सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते, इंटरनैट के जंगल में भटक जाते हैं. स्मार्टफोन में दिखने वाली असीमित सामग्री बच्चों के मन में उथलपुथल पैदा कर देती है. बच्चे व युवा इन जानकारियों का इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों में न के बराबर कर पाते हैं और सारा दिन फेसबुक, ट्विटर, स्काइप व सब से गंभीर पोर्नोग्राफिक साइटों को ब्राउज करने में लगे रहते हैं. कोई क्लास बंक करता है तो कोई औनलाइन गेम खेलने व इंटरनैट ब्राउज करने में समय बिताता है. और तो और, सड़क पर भी वह मोबाइल पर गेम खेलने में व्यस्त रहता है. कई बार तो बच्चे अपने पेरैंट्स के साथ मनोचिकित्सक या डाक्टर के पास जाते हैं तो पता चलता है कि वे तो पूरी तरह वर्चुअल दुनिया में खोए हैं.

पेरैंट्स को समझना चाहिए कि बच्चों को इंटरनैट की दुनिया में धकेलने की गलती उन्होंने की है. और अब चिकित्सक या काउंसलर की जरूरत पड़ी है तो इस के लिए वे ही जिम्मेदार हैं. बेहतर यही है कि बच्चों को मोबाइल से दूर रखें. सप्ताह में एक दिन सिर्फ छुट्टी के दिन ही मोबाइल उन के हाथ में दें. मोबाइल सिर्फ फोन या शब्दकोष की तरह इस्तेमाल हो. बच्चा इंटरनैट पर क्या ब्राउज करता है, उस पर भी नजर रखें. बच्चों को तकनीक का सही इस्तेमाल करना सिखाएं. उन्हें किताबें या कहानियों को पढ़ना सिखाएं.

इंटरनैट व स्मार्टफोन के जंगल

बच्चों के हिंसक प्रवृत्ति के होने का एक पहलू यह भी है कि आजकल के पेरैंट्स ही बच्चों को टीवी, हिंसक गेम्स, स्मार्टफोन की असीमित दुनिया व इंटरनैट के जंगल में भटकने के लिए छोड़ते हैं जिस के परिणाम आज हादसों की शक्ल में सामने आ रहे हैं. कभी वे ब्लू व्हेल्स जैसे हिंसक गेम्स की चपेट में आ कर आत्महत्या कर रहे हैं तो कहीं चैटिंग और पोर्न के जाल में फंस कर अपने मासूम मन के अलावा अपने भविष्य के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं.

इंटरनैट में लिप्त बच्चों का बचपन रचनात्मक कार्यों की जगह स्मार्टफोन और इंटरनैट के जंगल में गुम हो रहा है. सूचना तकनीक से बच्चे और युवा इस कदर प्रभावित हैं कि एक पल भी वे स्मार्टफोन से खुद को अलग रखना गवारा नहीं समझते. इन पर हर समय एक तरह का नशा सा सवार रहता है. इसे ‘इंटरनैट एडिक्शन डिस्और्डर’ भी कहा जाता है.

क्या आपको भी भाती है गहरे लाल रंग की लिपस्टिक

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आप में से कई लोगों को गहरे रंगों से खुद को सजाने का शौक होता है. आपको भी अगर गहरे रंगों से अपने होंठो को सजाकर बोल्‍ड दिखने का शौक है तो, आप लाल रंग की लिपस्टिक लगा सकती हैं. जब भी आपको खूबसूरत दिखना होता है तब आप अपने होंठो पर लिपस्टिक लगाना बहुत पसंद करती हैं और खासकर के जब आपके लिपस्टिक का रंग लाल हो तब तो बात ही अलग होती है.

लाल रंग जैसे गहरे रंगों से अपने होठो को सजाने से आपका मूड भी बहुत अच्‍छा बनता है. आपका रंग चाहे गोरा हो या फिर सांवला. आप पर हमेशा ही रेड लिपस्टिक बहुत अच्‍छी लगेगी.

लाल रंग की या रेड शेड्स की लिपस्टिक लगाने से पहले आपको कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाहिये. आज हम आपको बताएंगे कि रेड लिपस्टिक लगाने से पहले आपको कौन-कौन सी बातो का ध्यान रखना चाहिये.

फाउंडेशन डार्क होना चाहिए

जिन लोगों का रंग अन्य लोंगो की तुलना में साफ है, उन्‍हें होंठो और अपनी लिपस्टिक का आकर्षण बढ़ाने के लिये फाउंडेशन का रंग हल्‍का रखना चाहिये.

मैचिंग कलर के साथ मिक्‍स करना चाहिए

कभी आपको लगता है कि लाल रंग दिन मे कहीं जाने के हिसाब से बहुत उत्‍तेजक या गहरा है, तो आप इसके साथ थोड़ा सा कोई अन्‍य रंग भी मिक्‍स कर सकती हैं. अगर आपके होठों का रंग अपेक्षाकृत थोड़ा गहरा है तो ही बिना मिक्स किए हुए इस कलर की लिपस्‍टिक लगाएं.

केवल उत्‍सवों के लिये खास

किन्हीं खास कार्यक्रमों या फंक्शन्स जैसे अगर आप किसी पार्टी या गेट टुगेदर के लिये निकल रही हैं, तो रेड कलर की लिपस्टिक आपके लिये एक दम परफेक्‍ट है. हम आपको यही कहना चाहते हैं कि इस तरह के डार्क शेड्स को आप वर्क प्‍लेस पर ना लगाएं.

एक या दो परते ही लगाएं

अगर आप रेड कलर की लिपस्टि की कई परते अपने होंठो पर लगाएंगो तो यह बहुत ज्‍यादा गाढ़ी हो जाएगी और आपके चेहरे पर यह काफी ज्‍यादा ब्राइट दिखेगी.

पतले होठों पर

आपको ये बात समझ लेनी चाहिए कि लाल रंग की लिपस्टिक केवल भरे हुए और मोटे होंठो पर अच्‍छी दिखती है. तो अगर आपके होंठ थोड़े भी पतले हैं तो आपको रेड लिपस्टिक लगाने से बचना चाहिये.

धार्मिक कर्मकांड : गुमराह करता अद्वैतवाद

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दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर होने के नाते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस विषय में दिलचस्पी स्वाभाविक बात है लेकिन इस का प्रदर्शन बीते 2 सालों से जिस तरह से वे कर रहे हैं वह प्रदेश को सिर्फ बरबाद कर रहा है.

साल 2005 से ले कर 2014 तक शिवराज सिंह की लोकप्रियता किसी सुबूत की मुहताज नहीं थी, क्योंकि इस वक्त तक वे धार्मिक पाखंडों को व्यक्तिगत स्तर तक सीमित रखते थे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो धर्म का दर्शन उन के सिर इस तरह चढ़ कर बोलने लगा कि तब से ले कर अब तक का अधिकांश वक्त उन्होंने धार्मिक यात्राओं व समारोहों में जाया किया.

भाजपाई और हिंदूवादियों का धर्मप्रेम आएदिन तरहतरह से उजागर होता रहता है. इस के बिना उन्हें सत्ता और जीवन व्यर्थ लगने लगते हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने धर्म को सीधे पाखंडों और कर्मकांडों के जरिए कम थोपा इस के बजाए यह कहना सटीक साबित होगा कि उन्होंने दर्शनशास्त्र और पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दों की ओट ले कर धर्म को अभिजात्य तरीके से थोपने की कोशिश की और ऐसी उम्मीद है कि पूरे चुनावी साल वे यही करते रहेेंगे.

इस के पीछे उन का मकसद सिर्फ यह है कि जनता बहुत बड़े पैमाने पर सूबे की बदहाली के बाबत सवालजवाब न करने लगे कि बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है, राज्य बिकने की हद तक कर्ज में क्यों डूबा है, प्रदेशभर में अपराधों का ग्राफ तेजी से क्यों बढ़ा है और किसान क्यों आत्महत्याएं कर व आंदोलनों के जरिए अपना दुखड़ा रो रहे हैं.

एकात्म यात्रा ने दिए जवाब

22 जनवरी को मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की108 फुट की मूर्ति की स्थापना के साथ धूमधड़ाके वाली 22 दिवसीय एकात्म यात्रा आखिरकार  समाप्त हो गई.

यह एकात्म यात्रा वाकई अद्भुत थी जो राज्य के चारों कोनों से शुरू हुई थी और इस का हर जगह सरकारी स्तर पर सरकारी पैसे से स्वागत किया गया. जगहजगह कलैक्टरों और विधायकों ने आदि शंकराचार्य की जूतियां, जिन्हें चरण पादुकाएं कहा गया, सिर पर ढो कर एक नए किस्म के पाखंड का प्रदर्शन किया तो उन की हीनता व मानसिक दरिद्रता पर तरस आना स्वाभाविक बात थी.

अधिकारी और जनप्रतिनिधि जनता के काम करने और उन की समस्याएं हल करने के लिए होते हैं या फिर

किसी धर्मविशेष के गुरु की पादुकाएं सिर पर ढोने के लिए, इस सवाल का जवाब भी जनता न चाहने लगे, इसलिए शिवराज सिंह ने चालाकी दिखाते जगहजगह शंकराचार्य के अद्वैतवाद का राग अलापा जिस का अनुसरण जनप्रतिनिधियों और अफसरों ने भी अपना फर्ज समझ कर किया.

यह अद्वैतवाद आखिर क्या बला है और क्यों इस की जरूरत आ पड़ी, यह समझनेसमझाने की किसी ने जरूरत नहीं समझी, तो स्पष्ट हो गया कि अब लोग अपनी परेशानियां भूल इस नए सम्मोहक दर्शन में खोए अपनी जिज्ञासाओं के जवाब ढूंढ़ते रहेंगे. ईश्वर साकार है या निराकार, यह सवाल सदियों से उत्सुकता से पूछा जाता रहा है पर यह कोई नहीं पूछता कि ईश्वर आखिर कहीं है भी कि नहीं, कहीं वह कोरी गप तो नहीं जिसे सच साबित करने के लिए तथाकथित विद्वान और धर्म के दुकानदार सदियों से तरहतरह की बातें करते रहे हैं.

कोई शासक नहीं चाहता कि प्रजा नास्तिक या अनीश्वरवादी हो कर तर्क करने लगे, इसलिए भगवान में भरोसा बनाए रखने के लिए तरहतरह के स्वांग रचते रहते हैं. लोकतंत्र इस परंपरा का अपवाद नहीं है. एकात्म यात्रा के समापन पर शिवराज सिंह चौहान ने अद्वैत दर्शन का सार बांच दिया कि विश्व शांति का मार्ग युद्ध में नहीं है, बल्कि आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन में है.

बकौल शिवराज सिंह चौहान, अद्वैत दर्शन मानता है कि संपूर्ण प्रकृति और प्राणियों में एक ही चेतना है और राजनीति लोगों को तोड़ती है जबकि धर्म जोड़ता है.

विरोधाभासी दर्शन

सुनने वालों ने इस फिलौसफी को हाजमे के चूर्ण की तरह फांक लिया और यह भी आत्मसात कर लिया कि एकात्म यात्रा कोई मामूली यात्रा नहीं है जिस में राज्य की 23 हजार ग्राम पंचायतों से 30 हजार कलश आए जिन में मिट्टी और धातुएं थीं. राजनीति अगर तोड़ती है तो फिर क्यों अद्वैत के पैरोकार शिवराज सिंह चौहान राजनीति करते हैं, यानी तोड़ने का गुनाह करते हैं, इस सवाल का जवाब शायद ही शिवराज ईमानदारी से दे पाएं. रही बात एक चेतना की, तो वह निहायत ही फुजूल की बात है जिस का देशप्रदेश की समस्याओं से कोई वास्ता नहीं.

एकात्म यात्रा के नाम पर हुआ सिर्फ इतना है कि ओंकारेश्वर में एक अवतार आदि शंकराचार्य का मठ बन गया है जहां कुछ साल बाद लोग जा कर पैसा चढ़ाएंगे, मन्नतें मांगेंगे और पूजापाठ करेंगे.

मुट्ठीभर बुद्धिजीवी, जो खुद को मुख्यधारा मानते हैं, धर्म और अद्वैतवाद ब्रैंड अफीम का सेवन करते बहस करते रहेंगे कि यह चेतना ही दरअसल, आत्मा है जो मृत्यु के बाद शरीर का साथ छोड़ देती है और फिर ऊपर आकाश की तरफ 84 लाख योनियों की परिक्रमा के बाद नया शरीर ढूंढ़ने लगती है. पुराना शरीर पंचतत्त्व में विलीन हो जाता है जिस के बाबत तुलसीदास ने कहा भी है कि क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंचतत्त्व मिल बना शरीरा.

वैसे भी यह एकात्म यात्रा उन जाहिलों के लिए नहीं थी जो ईश्वर को वैज्ञानिक स्तर पर समझने की कोशिश नहीं कर पाते. यह यात्रा उन ब्राह्मण विद्वानों को खुश करने के लिए थी जो वर्णव्यवस्था और मनुवाद में यकीन करते हैं. खुद आदि शंकराचार्य ब्राह्मण थे और उन का इकलौता मकसद देशभर के ब्राह्मणों को एक वैचारिक मंच के नीचे लाना था कि आपस में लड़ोगे तो रोजीरोटी चली जाएगी. लोग तेजी से नास्तिक हो रहे हैं, उन्हें रोकने के लिए जरूरी है कि ब्राह्मण आपसी विवादों को त्यागें और इस बाबत उन्होंने चारों कोनों में मठ बना कर मठाधीश भी नियुक्त कर दिए थे.

चारों पीठों के शंकराचार्य आज भी धर्मध्वज फहराते शानोशौकत की जिंदगी जी रहे हैं. ये महामानव पैदावार नहीं बढ़ाते, रोजगार के मौके मुहैया नहीं कराते और लेशमात्र भी मेहनत नहीं करते.

परेशान है तो आम जनता जो अपनी समस्याओं का हल धर्म में ढूंढ़ने की गलती दोहरा रही है. देशप्रदेश के बुद्धिजीवियों ने यह नहीं सोचा कि एकात्म जैसी धार्मिक यात्राओं पर करोड़ों रुपए फूंके जाते हैं जो जनता के हैं और क्या सरकार को उसे इस तरह बरबाद करने का हक है.

साजिश की देन हैं समस्याएं

धर्म और राजनीति दोनों एकदूसरे को ताकत देते हैं. राजा के जरिए धर्म के दुकानदार धर्म को तरहतरह से थोपते हैं जिस से वह आसानी से धार्मिक खर्चों की भरपाई करने के लिए टैक्स लगा सके और उस में से उन का हिस्सा उन्हें चढ़ावे की शक्ल में मिलता रहे. राजा का स्वार्थ यह रहता है कि लोग तंगहाली और बदहाली में जीने के बाद भी उसे सत्ता में बनाए रखें. हजारों सालों से यह षड्यंत्रकारी व्यवस्था ही लोगों को जीवनचक्र और मृत्यु के बाद क्या, जैसे फुजूल के सवालों में उलझाए रखे हुए है.

महंगाई, बेरोजगारी और बढ़ते अपराध जैसी समस्याएं इसी साजिश की देन हैं जिन से घबराए लोग इन्हीं मठमंदिरों में जा कर त्राहिमामत्राहिमाम करते हैं और तथाकथित भगवान से गुहार लगाते हैं कि हे प्रभु, बचाओ.

अब प्रभु कहीं हो, तो कुछ करे या बचाए. लेकिन राजा और पंडे बेफिक्र रहते हैं कि सबकुछ ठीकठाक चल रहा है–लोग मंदिर जा रहे हैं, पूजाअर्चना कर रहे हैं, दानदक्षिणा दे रहे हैं और थोड़े बहुत विरोध व असहमति के बाद भी सबकुछ ठीकठाक है. लोकतंत्र इस का अपवाद नहीं है, यह एक बार फिर मध्य प्रदेश सरकार की एकात्मक यात्रा से साबित हो गया है जिस के तहत मुमकिन है कुछ सालों बाद कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चार्वाक दर्शन को जीवन का सार बताते हुए देश को बेच डाले.

हालांकि चिंता की बात ऐसा शुरू हो जाना भी है. उदाहरण मध्य प्रदेश का ही लें, तो एकात्मक यात्रा के 2 दिनों बाद ही मध्य प्रदेश सरकार को यह फैसला लेने की पहल करनी पड़ी कि क्यों न सरकारी जमीनें बेच कर खजाना भरा जाए. कंगाल होते सूबे की दयनीय हालत किसी

सुबूत की मुहताज नहीं रही जो किसी द्वैतअद्वैतवाद से तो हल होने से रही. जब राज्य का मुखिया ही अधिकांश वक्त पूजापाठ और धार्मिक यात्राओं में गुजारे तोे क्या खा कर राज्यवासियों से यह उम्मीद रखी जाए कि वे उत्पादन बढ़ाने के लिए कोई कोशिश या मेहनत करेंगे.

रही बात एकात्म यात्रा के नायक शिवराज सिंह चौहान की, तो साफसाफ दिख रहा है कि वे अपना बढ़ता विरोध और बिगड़ती छवि देख घबराने लगे हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा वक्त वे धर्म व भगवान की शरण में बिता रहे हैं और सपत्नीक प्रार्थना करते रहते हैं कि हे प्रभु, इस बार भी नैया पार लगा देना. यह एहसास उन्हें है कि नीचे वाले प्रभु यानी जनता उन्हें तभी चुनेगी जब वह वास्तविकताओं से मुंह मोड़े, रामराम करती रहेगी, इसलिए उस का ध्यान द्वैतअद्वैत जहां भी हो, की तरफ मोड़े रखने में ही फायदा है.

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