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चालू वित्त वर्ष 2017-18 खत्म होने जा रहा है, ऐसे में अगर आप भी टैक्स की बचत के लिए इंश्योरेंस पौलिसी लेने की सोच रही हैं, तो आपको कुछ बातों का विशेष ख्याल करना होगा. हम अपनी इस खबर में आपको ऐसी पांच बातें बताएंगे जिन्हें इंश्योरेंस पौलिसी को लेते वक्त ध्यान में रख आप अपना फायदा करा सकती है.
क्या पौलिसी आपकी उम्मीदों के मुताबिक है
पौलिसी लेते वक्त आपको इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आप जो इंश्योरेंस पौलिसी लेने जा रही हैं क्या वो आपकी उम्मीदों के मुताबिक है. जैसा कि बाजार में तरह तरह के इंश्योरेंस प्लान उपलब्ध होते हैं लिहाजा इनमें से किसी एक का चुनाव करना थोड़ा मुश्किल होता है. जैसे कि आप टर्म प्लान चाहती हो लेकिन आपको यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान मिल जाता है. आप चाइल्ड इंश्योरेंस प्लान चाहते हो लेकिन आपको रिटायरमेंट प्लान दे दिया जाता है. ऐसे में बेहतर होगा कि आप यह पहले ही सुनिश्चित कर लें कि आपकी पौलिसी आपको वही फायदे देगी जो आप चाहती हैं.
निजी जानकारी और नौमिनी की डिटेल सही सही भरें
अगर आप अपनी निजी जानकारी और नौमिनी की डिटेल सही सही भरती हैं तो क्लेम की प्रक्रिया में काफी आसानी रहती है. ऐसा न होने की सूरत में आपको काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है. जरा कल्पना करें कि आपके न रहने की सूरत में आपकी किसी एक गलती (गलत जानकारी भरना) का खामियाजा आपके परिवार या नौमिनी को किस तरह से उठाना होगा. इसलिए हमेशा ध्यान रखें कि आप जो भी डिटेल दे रही हैं वो पूरी तरह से दुरूस्त हो.
अपने नौमिनी को दें जानकारी
सिर्फ इंश्योरेंस पौलिसी लेना ही काफी नहीं होता है, अगर हमने किसी पौलिसी के लिए फौर्म भरा है और उसमें किसी को अपना नौमिनी बनाया है तो आपको उस व्यक्ति को इसकी जानकारी देनी चाहिए. ताकि आपकी मृत्यु हो जाने के बाद आपका नौमिनी इसका लाभ ले सके. साथ ही पौलिसी से जुड़े सभी दस्तावेज एक सेफ जगह रखने चाहिए और इसकी जानकारी भी नौमिनी को देनी चाहिए, क्योंकि इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर आपका नौमिनी इसका फायदा उठा पाएगा.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
एक्सपर्ट्स का मानना है कि आपको लंबी अवधि के लिए ही इंश्योरेंस पौलिसी लेनी चाहिए. आम तौर पर लोग 3 से 5 साल के लिए ही इंश्योरेंस पौलिसी ले लेते हैं और फिर इससे पैसा निकाल लेते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए. दूसरी बात इंश्योरेंस प्लान और इन्वेस्टमेंट को अलग अलग रखना चाहिए, इसको एक नहीं मानना चाहिए. अगर आप लाइफ इंश्योरेंस पौलिसी ले रही हैं तो ध्यान रखें कि वह आपके परिवार की मदद करने वाली हो. साथ ही आपको टैक्स स्लैब का ख्याल रखना चाहिए ताकि आप अपनी पौलिसी का सही फायदा उठा पाएंगी. इसके अलावा सबसे अहम बात यह है कि आपको एक वित्त वर्ष के आखिरी तीन महीनों में लाइफ इंश्योरेंस पौलिसी लेने से बचना चाहिए.
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महाराष्ट्र के पुणे में जन्मी 35 वर्षीय जांबाज शीतल राणे महाजन देश की पहली महिला प्रोफेशनल पैराशूट जम्पर और स्काई डाइवर हैं. साल 2004 के बाद से शीतल ने स्काई डाइविंग जम्प में विश्व चैम्पियनशिप और विश्व रिकॉर्ड में प्रतिनिधित्व किया है. शीतल ने आजतक 705 पैराशूट जम्प किये हैं. ये सारे जम्प उन्होंने 13500 फीट की ऊंचाई से किये हैं. कुछ जम्प उन्होंने 18000 फीट से ओक्सीजन लेकर और एक जम्प उन्होंने 30500 फीट की ऊंचाई से ओक्सीजन मास्क के साथ किया है. इसके अलावा शीतल ने 8 अलग-अलग एयरक्राफ्ट से अलग-अलग स्थानों पर जैसे उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) और दक्षिणी ध्रुव (अंटार्कटिका), ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका, यूरोप आदि सभी जगहों से जम्प किया है. इसके अलावा उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
स्वभाव से शांत और हंसमुख शीतल को एडवेंचर बहुत पसंद है, उसने फिनलैंड के सोफ्ट्वेयर इंजीनियर वैभव राणे से 19 अप्रैल साल 2008 में जमीन से 600 फीट की ऊंचाई पर हौट एयर बैलून में शादी की और इसे ‘लिम्का बुक औफ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में दर्ज करवाया. वह इस समय दो जुड़वां बेटों की मां हैं और उन्हें साल 2011 में पद्मश्री का सम्मान भी मिल चुका है.
साल 2018 की 12 फरवरी को शीतल ने थाईलैंड के पटाया में महाराष्ट्र की रंगीन नौवारी साड़ी पहनकर 13000 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाकर सबको चौंका दिया. इसे करने के पीछे उनका मकसद था कि भारतीय महिला केवल सामान्य दिनचर्या में ही इस साड़ी को नहीं पहनती हैं, बल्कि स्काइडाइविंग जैसे एडवेंचर खेल को भी अंजाम दे सकती हैं. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ अलग करने के हिसाब से शीतल ने ऐसा किया. उनसे बात करना रोचक था, पेश है अंश.
प्र. इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?
मुझे बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी. मैंने आर्म फोर्सेज में जाने की कोशिश की थी. 10 वीं कक्षा में पढ़ते हुए पता चला कि महिलाओं के लिए आर्म फोर्सेज में जाना कठिन है और वह भी स्नातक के बाद ही संभव हो सकता है, ऐसे में स्नातक के बाद मैंने इस क्षेत्र में आने को सोची. इससे पहले मुझे कला से बहुत प्यार था. मैं अच्छा पेंटिंग भी कर लेती थी. मैं सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर से बहुत प्रभावित हूं. इसलिए वैसी ही कुछ अलग करने की इच्छा थी, ऐसे में मेरे एक दोस्त के भाई जो एनडीए में काम करता था और आर्म फोर्सेज को ट्रेनिंग देता था, मैंने उसे स्काई डाइविंग करते देखा और इस क्षेत्र में आ गयी और 21 साल की उम्र में मैंने पहला जम्प उत्तरी ध्रुव पर बिना किसी ट्रेनिंग के किया था. जिसमें मैं सफल रही. इससे मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली.
प्र. यहां तक पहुंचने में कितना संघर्ष रहा?
इस स्पोर्ट में समस्या पैसों की आती है. स्पोंसरशिप पर ये खेल चलता है. भारत सरकार इसे रेकॉगनाइज नहीं करती. पद्मश्री होने के बावजूद किसी प्रकार की सहायता सरकार से नहीं मिली. मुझे इसके लिए अपने पिता, पति और स्पोंसर पर निर्भर रहना पड़ता है. मुझे ये खेल पसंद है और मैं विश्व में इसे अपने देश के तरफ से आगे भी करती रहूंगी.
प्र. स्काई डाइविंग कितनी चुनौतीपूर्ण होती है?
स्काई डाइविंग वाकई बहुत चैलेंजिंग होती है, अगर एक पैराशूट नहीं खुला, तो दूसरा पैराशूट खोलना पड़ता है. अधिकतर स्काई डाइविंग के वक्त एक पैराशूट में दो और पैराशूट होते हैं, पहली पैराशूट जिसे हम साधारणतया खोलते हैं, उसमें समस्या आने पर इमरजेंसी में दूसरे को खोलकर सेफ लैंडिंग की जाती है, लेकिन आप अगर इमरजेंसी वाले पैराशूट को नहीं खोल पाते हैं, तो एक ऑटोमेटिक ओपन डिवाइस होता है, जो 1500 फीट की ऊंचाई पर अगर पैराशूट खोलना भूल गए, तो वह खोल देता है, इस तरह यह एक सुरक्षित स्पोर्ट है, पर डर तो सभी को लगता है. जब ऊपर उड़ती एयरक्राफ्ट के दरवाजे पर खडी होती हूं, तो उससे निकलने का नाम ही स्काई डाइवर होता है.
प्र. आपको कभी स्काई डाइविंग करते हुए डर नहीं लगा?
मुझे कभी डर नहीं लगा, क्योंकि मुझे पूरे विश्व में प्रूव करना था कि महिला होने पर भी मैं ये एडवेंचरस खेल में आगे हूं. मुझे हमेशा से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी और मैंने वह कर दिखाया. मुझे याद आता है जब मैंने पहली बार नार्थ पोल पर जम्प कर रही थी, तो मेरी पहली जम्प का पैराशूट फटा हुआ था, मुझे तब डर लगा था, लेकिन दूसरा पैराशूट खोलने के बाद मैंने पाया कि वह पैराशूट फटी हुई नहीं थी, बल्कि उसकी डिजाईन ही वैसी थी. वह समझना कठिन था. इस प्रकार मेरे डिक्शनरी में डर की कोई जगह नहीं है.
प्र. इस खेल में किस तरह की फिटनेस जरुरी है?
इसमें शारीरिक से अधिक मानसिक फिटनेस की आवश्यकता होती है, क्योंकि जब आप एयरक्राफ्ट से जम्प करते हैं, तो आपके 6 पैक ऐब्स काम नहीं आते. इसके लिए हिम्मत और मानसिक रूप से फिट होना आवश्यक है. इसके अलावा मेरे स्पोर्ट में व्यक्ति का वजन 110 किलोग्राम होना जरुरी है, जिसमें कम से कम 35 किलोग्राम होना ही चाहिए. ये शारीरिक फिटनेस का खेल नहीं है, इसमें सही अनुसाशन का होना जरुरी है, क्योंकि स्काई डाइविंग भी कई तरह के होते हैं. मेरे लिए अधिक फिटनेस जरुरी नहीं, लेकिन मानसिक रूप से फिट रहने के लिए मैं 30 मिनट योगा और मैडिटेशन करती हूं.
प्र. शादी के बाद खेल और परिवार में सामंजस्य कैसे करती है?
शादी के बाद एडजस्ट करने में मुझे थोड़ी मुश्किलें आई, क्योंकि मैं जुड़वां बेटों की मां बनी थी. परिवार वालों ने पहले सहमति नहीं जताई. परिवार ने मुझे कहा था कि मैं इस खेल को छोड़ दूं, पर मैंने उनसे कही कि मैं शादी छोड़ सकती हूं खेल नहीं. उस समय मुझे पद्मश्री अवार्ड भी मिला था.
मैंने शादी से पहले इस खेल में कदम रखा था और शादी के बाद छोड़ दूं, ये संभव नहीं था मैंने अपने पति और ससुराल वालों से शादी से पहले ही बात की थी, पर जुड़वां बच्चों के बाद मुझे समस्या आई . बच्चों के एक साल होने के बाद मैंने फिर से जम्प किया और उस समय मेरे पति मेरे सामने थे. मेरे सास-ससुर थोड़े दिनों तक विरोध में थे, लेकिन अब सब ठीक हो चुका है.
प्र. कामयाबी का श्रेय किसे देती हैं?
मेरे पिता कमलाकर महाजन ने किसी भी मुश्किल में हमेशा साथ दिया और अब भी साथ है. इसलिए मैं यहां तक पहुंच पायी. वे मेरे लाइफ में मेरे लिए सुपर हीरो हैं. कामयाबी का श्रेय उन्हें जाता है.
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देश में तेजी से बढ़ते डिजिटाइजेशन के नाम पर हर कार्य औनलाइन किए जाने की अनिवार्यता के चलते जहां आमजन परेशानी का अनुभव करता है तो वहीं औनलाइन कार्य से जुड़े कियोस्क सैंटर्स लोगों की जेब पर डाका डालने का काम कर रहे हैं. मोदी सरकार द्वारा आधार कार्ड को बैंक खाते, मोबाइल नंबर, एलपीजी गैस आदि से लिंक कराने को अनिवार्य किए जाने से देश की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपने रोजमर्रा के काम छोड़ कर आधार लिंक कराने के लिए इन औनलाइन सैंटर्स के चक्कर लगाने पर मजबूर है. सरकारी नौकरियों में अब प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए चयन होने लगा है. अखबारों के माध्यम से पद विज्ञापित कर औनलाइन पोर्टल के माध्यम से परीक्षाओं के फौर्म भरवाए जाते हैं. ऐसे में बेरोजगार युवकयुवतियां सरकारी नौकरी की आस में इन औनलाइन कियोस्क सैंटर्स के इर्दगिर्द चक्कर पर चक्कर लगा कर अपना अमूल्य समय व धन खराब करने पर मजबूर हैं.
मध्य प्रदेश में पटवारी की भरती के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल, भोपाल द्वारा आयोजित होने जाने वाली परीक्षा के 9,235 पदों के लिए 10 लाख से अधिक आवेदन इन कियोस्क सैंटर्स द्वारा भरे गए हैं. इस परीक्षा को पास कर बेरोजगार युवकयुवतियां पटवारी बन कर रोजगार प्राप्त कर पाएं या नहीं, परंतु प्रदेशभर में स्थापित हजारों कियोस्क सैंटर्स ने 15 दिनों में अंधाधुंध कमाई कर अपना रोजगार स्थापित कर लिया है.
सर्वर डाउन होने के नाम पर आवेदकों से फौर्म भरने के नाम पर 500-500 रुपए तक की राशि वसूल कर के लाचार और मजबूर आवेदकों का आर्थिक शोषण करने में इन के द्वारा कोई कसर नहीं छोड़ी गई है. मनमरजी से चलने वाले ये कियोस्क सैंटर्स ग्राहकों को खुलेआम लूट रहे हैं.
औनलाइन कियोस्क सैंटर
डिजिटल इंडिया के नाम पर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा हर गांव व शहर में औनलाइन कामकाज के लिए लोगों को सहूलियत देने हेतु कौमन सर्विस सैंटर खुलवाए गए थे. 10×10 फुट की दुकानों में स्थापित इन सर्विस सैंटर्स में कंप्यूटर सिस्टम, यूपीएस, प्रिंटर, स्कैनर की सुविधा होनी अनिवार्य है, लेकिन कई कियोस्क सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते किसी सरकारी विभाग के दफ्तर की तरह सुविधा शुल्क के नाम पर खुलेआम वसूली कर रहे हैं. शहरों में हर गलीचौराहे पर खुले इन कियोस्क सैंटर्स पर आधार कार्ड, पैन कार्ड के आवेदन, संशोधन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों के साथ केंद्र और राज्य सरकार की सभी प्रकार की भरतियों के लिए औनलाइन फौर्म भरने का काम भी किया जाता है.
बिजली बिल, टैलीफोन बिल, जीवन बीमा प्रीमियम भरने के साथ डीटीएच और मोबाइल रिचार्ज जैसे कार्य भी इन कियोस्क सैंटर्स के माध्यम से कराए जा रहे हैं. स्कूल या विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रछात्राओं की फीस हो या किसी भी प्रकार का सरकारी चालान, सरकारी विभागों की सभी प्रकार की निविदाएं भरने के कार्य भी कियोस्क सैंटर्स के माध्यम से औनलाइन ही किए जाते हैं.
औनलाइन कार्य के लिए इन सैंटर्स को पोर्टल शुल्क के नाम पर अलगअलग प्रकार के कार्यों के लिए 50 से ले कर 500 रुपए तक का कमीशन मिलता है. उपभोक्ताओं या ग्राहकों की मजबूरी यह है कि उन्हें इन कियोस्क सैंटर्स पर जा कर ही ये कार्य संपादित कराने पड़ते हैं. ऐसे में इन सैंटर्स द्वारा उन की मजबूरी का बेजा फायदा उठाया जाता है.
लूट पर नियंत्रण नहीं
आज सरकारी नौकरी के आवेदन के लिए बेरोजगारों से भारीभरकम फीस वसूल की जा रही है. सरकार के किसी भी विभाग द्वारा होने वाली परीक्षा के लिए 250 से ले कर 1,000 रुपए तक परीक्षा शुल्क लिया जा रहा है. मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तो लाइसैंस फीस ले कर हर गांवशहर में एमपी औनलाइन कियोस्क सैंटर खोले गए हैं जिन्हें परीक्षा फौर्म भरने के लिए परीक्षा शुल्क के साथ
50 से 500 रुपए तक पोर्टल शुल्क मिलता है. बावजूद इस के, ये कियोस्क सैंटर्स परीक्षा संबंधी दस्तावेजों को स्कैन व अपलोड करने के नाम पर बेरोजगारों से पोर्टल शुल्क के अलावा अतिरिक्त राशि भी धड़ल्ले से वसूल कर के उन की जेबों पर डाका डाल रहे हैं.
नवोदय विद्यालय में कक्षा में प्रवेश के लिए ली जाने वाली प्रवेश परीक्षा के फौर्म भी इस बार मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा औनलाइन भरे गए और इन सैंटर्स द्वारा नन्हेंमुन्ने बच्चों के साथसाथ अभिभावकों को भी परेशान करने के लिए उन से मनमाफिक वसूली की गई. इसी प्रकार मध्य प्रदेश सरकार की राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा के औनलाइन आवेदन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क कियोस्क सैंटर्स को न लेने के निर्देश दिए जाने के बाद भी उन के द्वारा पोर्टल शुल्क के नाम पर अवैध वसूली की गई.
फीस के नाम पर गड़बड़झाला
मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत लगभग 10 लाख छात्रछात्राओं के हाईस्कूल और हायर सैकंडरी परीक्षा के फौर्म तथा 9वीं कक्षा के नामांकन फौर्म भरने के नाम पर प्रतिपरीक्षार्थी 25 रुपए का पोर्टल शुल्क प्रतिवर्ष वसूल किया जा रहा है. नियम के अनुसार, इस पोर्टल फीस में परीक्षा फौर्म भरने के साथ परीक्षार्थी की फोटो के स्कैन करने का कार्य करना होता है, परंतु मध्य प्रदेश में परीक्षा फौर्म भरने का कार्य अधिकांश सरकारी स्कूलों द्वारा अपने संसाधनों से किया जाता है.
सरकारी स्कूल में कार्यरत एक प्राचार्य बताते हैं कि परीक्षा फौर्म के डाटा में किसी प्रकार की गड़बड़ी न हो, इस के लिए स्कूल के शिक्षकों द्वारा स्कूल के कंप्यूटर सिस्टम के माध्यम से एमपी औनलाइन की वैबसाइट पर माध्यमिक शिक्षा मंडल के लिंक पर जा कर परीक्षा फौर्म भरे जाते हैं, जबकि परीक्षार्थियों की फीस एमपी औनलाइन के माध्यम से भरी जाती है. इस में दिलचस्प बात यह है कि कियोस्क सैंटर्स भी फीस भरने के लिए ईपिन के रूप में जो पासवर्ड उपयोग करते हैं वह प्राचार्य के मोबाइल नंबर पर आता है.
साइबर क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि जब परीक्षा फौर्म प्राचार्य अपने लौगइन से भरते हैं तो फीस की पेमैंट स्कूल बैंक खाते या डैबिड, क्रैडिट कार्य के माध्यम से की जा सकती है. एमपी औनलाइन और माध्यमिक शिक्षा मंडल के उच्च अधिकारियों की मिलीभगत से यह गोरखधंधा 3 वर्षों से चल रहा है और कियोस्क सैंटर्स 25 रुपए प्रतिछात्र के हिसाब से कमीशन के रूप में करोड़ों का वारेन्यारे कर रहे हैं.
सुविधा नहीं दुविधा केंद्र
लोगों का कहना है कि जब मोबाइल के माध्यम से औनलाइन शौपिंग का चलन बढ़ रहा है और रुपयों का भुगतान भी ईवौलेट से हो रहा है, तो फिर औनलाइन पोर्टल की निर्भरता क्यों खत्म नहीं की जा रही है? इस का सीधा सा जवाब यही है कि सरकार प्रतिवर्ष लाखों रुपए लाइसैंस फीस की वसूली कर इन औनलाइन सैंटर्स? को प्रश्रय देने के साथ आम नागरिकों की जेब ढीली करने के षड्यंत्र में भागीदार है.
1/2 फूलगोभी बारीक कटी • 1/4 कप हरे प्याज के पत्ते • 1/2 कप मोजरेला चीज कसा
1/4 कप दूध • थोड़े से अनार के दाने सजाने के लिए • थोड़ी सी धनियापत्ती कटी • 1/4 कप ब्रोकली • 1/4 छोटा चम्मच ओरिगैनो
नमक स्वादानुसार.
विधि
सारी सब्जियों को एक माइक्रोवैव डिश में डालें. 2-3 चम्मच पानी मिला कर सब्जियों को 4-5 मिनट माइक्रोवैव कर लें. एक दूसरी डिश में दूध और आधा कसा चीज डाल कर 2 मिनट माइक्रोवैव करें. इस में नमक, आधा ओरिगैनो, हरे प्याज के पत्ते और सारी सब्जियां मिला कर अच्छी तरह हिलाएं. एक चौड़ी व कम गहरी डिश में इस तैयार सलाद को पलटें. ऊपर बचा चीज व ओरिगैनो बुरकें. 2-3 मिनट फिर माइक्रोवैव करें. चीज पिघल जाए तो समझें डिश तैयार है. इस पर अनार के दाने और धनियापत्ती बुरक कर गरमगरम या सामान्य तापमान पर परोसें.
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पनीर मखनी
सामग्री
250 ग्राम पनीर • 1/2 कप दूध • 1 बड़ा चम्मच मक्खन • 1 छोटा चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट • 1 छोटा चम्मच काजू पेस्ट
1/4 छोटा चम्मच देगीमिर्च • 3 बड़े चम्मच टोमैटो प्यूरी • 1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस
1 बड़ा चम्मच क्रीम • 1 छोटा चम्मच मिक्स खड़े मसाले • नमक स्वादानुसार.
विधि
एक गहरी माइक्रोवैव डिश में मक्खन और काजू पेस्ट डाल कर 2 मिनट माइक्रोवैव करें. अब टोमैटो प्यूरी, टोमैटो सौस, अदरकलहसुन की पेस्ट और मसाले डाल कर 2-3 मिनट माइक्रोवैव करें. एक बार सारी सामग्री को हिला कर थोड़ा सा पानी डाल कर फिर 2-3 मिनट माइक्रोवैव करें. अब दूध मिलाएं और 2-3 मिनट फिर पका लें, पनीर के टुकड़े काट कर इस तैयार ग्रेवी में डालें. एक बार फिर 2 मिनट माइक्रोवैव करें. पनीर को परोसने से पहले इस में क्रीम मिलाएं.
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पनीर टिक्का
सामग्री
250 ग्राम पनीर • 1/2 कप गाढ़ा दही
2-3 हरे प्याज • 1 बड़ा चम्मच तेल
1 हरी शिमलामिर्च • 1 बड़ा चम्मच तंदूरी मेयोनीज • 1 छोटा चम्मच कश्मीरी लालमिर्च
1/2 छोटा चम्मच हलदी • 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट • 1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर
थोड़ा सा चाटमसाला व नीबू का रस
नमक स्वादानुसार.
विधि
मैरिनेशन की सारी सामग्री, नमक, मिर्च, दही व हलदी को एक साथ मिला लें. पनीर के चौकोर टुकड़े काट लें. प्याज व शिमलामिर्च को भी छोटे चौकोर टुकड़ों में काट लें फिर सारी सब्जियां व पनीर मैरिनेशन में मिला कर 1 घंटा छोड़ दें. ग्रिल रैक पर सारी सब्जियां व पनीर सजाएं. ओवन को
250 डिग्री पर गरम कर पनीर को 25-30 मिनट तक ग्रिल करें. इस के लिए ओवन को कन्वैक्शन मोड पर रखें. सुनहरा होने पर निकालें. चाटमसाला और नीबू का रस छिड़क कर गरमगरम परोसें.
1 बड़ा चम्मच तेल • 1-2 तेजपत्ते • थोड़े से अदरक के लच्छे • 1-2 छोटी इलायची • 1 छोटा चम्मच जीरा • थोड़ी सी बारीक कटी हरीमिर्च, लालमिर्च व नमक स्वादानुसार.
विधि
चावलों को धो कर 1/2 घंटे के लिए भिगो कर रख दें. सारी सब्जियां बारीक काट लें. एक खुले मुंह वाली गहरी माइक्रोवैव डिश में तेल डाल कर 2 मिनट माइक्रोवैव करें. इस में तेजपत्ते, जीरा, इलायची, अदरक के लच्छे, हरीमिर्च डाल कर 2-3 मिनट भून लें. अब सारी सब्जियां व लालमिर्च डाल कर 5-6 मिनट 1/2 कप पानी के साथ माइक्रोवैव करें. फिर चावल मिलाएं. 2 कप पानी मिलाएं, 5-6 मिनट माइक्रोवैव करें. पकने के तुरंत बाद ही चावलों को हिलाएं नहीं, सामान्य तापमान पर आने पर परोसें.
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खमण ढोकला
सामग्री
11/2 कप बेसन • 1 कप पानी • 1/4 छोटा चम्मच हलदी • 2 छोटे चम्मच तेल • थोड़ी सी हरीमिर्च बारीक कटी • 1/2 छोटा चम्मच अदरक पेस्ट • 11/2 छोटे चम्मच ईनो पाउडर
1 चुटकी मीठा सोडा • नमक स्वादानुसार.
सामग्री छौंक की
1 बड़ा चम्मच तेल • 1 छोटा चम्मच राई
1 छोटा चम्मच चीनी • थोड़ी सी हरीमिर्च लंबाई में कटी • 8-10 करी पत्ते
2 बड़े चम्मच नीबू का रस • 1 कप पनीर
1 बड़ा चम्मच सिरका.
विधि
ईनो व सोडे को छोड़ कर ढोकले की बाकी सारी सामग्री मिला कर पेस्ट तैयार कर लें. ध्यान रहे कि बीच में गांठें न पड़ें. किसी चपटी माइक्रोवैवेबल डिश में तेल लगा कर उसे चिकना कर लें. अब ढोकले के पेस्ट में ईनो और सोडा मिला कर जल्दी से मिक्स करें. पेस्ट को तुरंत कुकिंग डिश में डालें. ऊपर से फौयल से ढक कर फौयल में 2-3 जगह चाकू से छेद कर दें ताकि अतिरिक्त भाप निकल सके. 5-6 मिनट के लिए माइक्रोवैव करें. फिर ढोकले को सामान्य तापमान तक आने से पहले न छेड़ें.
छौंक
एक छोटी माइक्रोवैव डिश में तेल, राई, हरीमिर्च और करीपत्ते डाल कर 3-4 मिनट माइक्रोवैव करें. पानी व चीनी मिला कर फिर 3-4 मिनट माइक्रोवैव करें. इस में सिरका व नीबू का रस मिला कर ढोकले पर डालें और प्लेट में सजा कर परोसें.
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रवा इडली
सामग्री
1 कप सूजी • 1 छोटा चम्मच उरदधुली दाल
11/2 कप छाछ • 1 छोटा चम्मच चने की दाल
थोड़ी सी हरीमिर्च कटी • पानी आवश्यकतानुसार • 1 बड़ा चम्मच ईनो पाउडर • 1 बड़ा चम्मच काजू बारीक कटे • 1 छोटा चम्मच राई • 1 बड़ा चम्मच तेल • थोड़े से अधकटे काजू इडली पर सजाने के लिए • नमक स्वादानुसार.
विधि
एक माइक्रोवैव डिश में तेल डालें. उसे 2 मिनट माइक्रोवैव करें. इस में राई, दोनों दालें और काजू डाल कर 2 मिनट माइक्रोवैव करें. सूजी को छाछ में डाल कर 1/2 घंटे के लिए रख दें. फिर इसे अच्छी तरह फेंट लें. फिर पानी की सहायता से सूजी के घोल को पकौड़ों के घोल से थोड़ा गाढ़ा तैयार कर लें. इस में तैयार किया छौंक, नमक व ईनो पाउडर मिला दें. माइक्रोवैव वाले इडली स्टैंड को चिकना कर लें. इस में यह तैयार घोल भरें. 3-4 मिनट माइक्रोवैव करें और काजू के टुकड़ों से सजाएं. इडली तैयार है, (माइक्रोवैव का इडली स्टैंड न होने पर आप अलगअलग कांच की छोटी कटोरियों में भी इडली बना सकती हैं).
दुनिया भर में सभी महिलाओं के लिए खास होता है अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस. आज हम आपको बताऐंगे ढेर सारी सकारात्मक अभिव्यक्तियों के साथ, सुंदर और आकर्षक दिखने के लिए कुछ अद्भुत सौंदर्य युक्तियां, क्योंकि आप एक महिला होकर हैं कुछ खास.
1. हमेशा खूबसूरत दिखने के लिए आपको सुबह जल्दी उठने की आदल डालनी चाहिए और वैसे भी बहुत सारे लोगों का मानना है कि “दिन शुरू करने के लिए सुबह की तरह कुछ भी नहीं”.
2. कई सौंदर्य विशेषज्ञों के अनुसार हर दम खूबसूरत दिखना बहुत आसान है. इसके लिए आपको कुछ नहीं, कोवल कुछ दिनों के अंतराल से एक्फिफाईएट करना चाहिए, अक्सर स्टीम लेना चाहिए और दैनिक रूप से एसपीएफ़ पहनना चाहिए.
” एक्फिफाईएट यानि कि आपके चेहरे को अच्छे से साफ करते रहना होता है, ताकि आपकी त्वचा की ऊपरी परतें साफ होती रहें. इसके अलावा यहां एसपीएफ़ से तात्पर्य है सनस्क्रीन प्रोटेक्शन फ्रॉम.
3. ज्यादा-ज्यादा खाने से आप स्वस्थ्य रहेंगे, ऐसा नहीं है. हर दम दमकते रहने के लिए कम खाएं पर एक स्वस्थ आहार खाएं.
त्वचा से संबंधित सलाहकार भी इस बात पर जोर देते हैं कि त्वचा को स्वस्थ्य रखने के लिए “एक्फ़िफ़िएट करते रहें, मॉइस्चराइज़ करें और साफ-सुथरा भोजन करें.
4. सौंदर्य ब्लॉगर, ब्लेक स्वॉन ब्यूटी के अनुसार आपनी सुंदरता के लिए आपको एक स्वस्थ संतुलित आहार खलेना चाहिए,हर रोज माईश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए.
5. सौंदर्य चिकित्सकों की माने आपको हमेशा बहुत सारा पानी पीते रहना चाहिए और हर समय मुस्कुराते हरना चाहिए.
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं के अस्तित्व को सेलिब्रेट करने का दिन. ये दिन आपका खुद का दिन है तो जरुरत है इस दिन खुद को और भी निखारने की, और भी सुंदर बनाने की ताकि आपको भी अपने वजूद पर गर्व हो.
आज की महिलाएं मल्टीटास्किंग हो गई हैं. उन्हें खुद के लिए भी समय नहीं मिल पाता, लेकिन ये आपका अपना दिन है इस दिन तो आपको खुद के लिए समय जरुर निकालना चाहिए. व्यस्त लाइफ के कारण खुद के हेल्थ के लिए भी समय निकाल पाना एक वर्किंग वुमन के लिए बड़ा कठिन होता है. तो आइए इस वूमंस डे पर अपनी थकावट दूर कर बनायें खुद को पहले से भी खूबसूरत.
– क्यूट चिक लुक के लिए क्रीम फाउंडेशन का इस्तेमाल करें, जो चेहरे पर आसानी से एकसाथ मिल जाए. चेहरे पर मेट लुक आपको आकर्षक दिखाएगा.
– गालों को हल्की गुलाबी रंगत देने के लिए हल्के हाथों से ब्लश लगाएं. गहरे गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगाएं.
– आंखों को क्लासिक लुक देने के लिए ब्लैक आईलाइनर लगाएं. मस्कारा लगाना नहीं भूलें.
– अगर आप बोल्ड लुक चाहती हैं तो क्रीमी, अच्छी तरह से चेहरे पर एकसार मिल जाने वाले फाउंडेशन लगाएं. फाउंडेशन अगर वाटरप्रपूफ हो तो और अच्छा है, जिससे शाम तक आपका मेकअप बरकरार रहेगा.
– साथ ही वाटरप्रूफ मस्कारा, आईलाइनर लगाएं. बेहद हल्की गुलाबी रंगत की लिपस्टिक या होठों को सिर्फ चमकदार लुक देने के लिए लिप ग्लॉस लगाएं.
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विश्वभर में कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसमें सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है. आज विश्वभर में सबसे ज्यादा मरीज इसकी चपेट में हैं. कैंसर एक ऐसी खतरनाक बीमारी है जिससे मरने वालों की संख्या AIDS जैसी घातक बीमारी से भी ज्यादा है.
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो जेनेटिक कारणों के अलावा खान-पान और जीवन शैली का भी नतीजा होती है. आज हम आपको ऐसी कुछ खाने की आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं जो कैंसर के लिए खुला निमंत्रण साबित हो सकती हैं..
कैन में पैक्ड फूड: हार्ड प्लास्टिक की केन में जो पैक्ड फूड प्रोडक्ट मार्किट में उपलब्ध हैं उनमें bisphenol-A (BPA) नाम का एक ऐसा तत्व पाया जाता है जो कि कैंसर का एक बड़ा कारक है. हालांकि इस तरह के प्रोडक्ट्स पर अक्सर BPA Free लिखा होता है लेकिन इसके बावजूद भी इस पैकिंग के बाद पैक्ड फूड में इसका पाया जाना सामान्य बात है.
स्मोक्ड फूड्स: इस तरह के सभी खाद्य पदार्थों में नाइट्रेट्स और नाइट्राइट सामान्य से बेहद ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. इनमें बड़ी मात्र में रंग और मसाले भी इस्तेमाल किये जाते हैं. इन्हें जब पकाया जाता है तो नाइट्रेट्स और नाइट्राइट ऐसे कैमिकल कमपाउंड्स में बदल जाते हैं जो कैंसर के रिस्क को और भी बड़ा देते हैं.
फार्म्ड फूड: फूड एंड वाटर वॉच की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालाब में पाली गई मछलियों में इंसानी शरीर में कैंसर पैदा करने वाले तत्व जंगली मछलियों की अपेक्षा ज्यादा पाए जाते हैं. मछलियों की पैदावार अच्छी करने के लिए भी कुछ ऐसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो इंसानी शरीर के लिए खास अच्छे नहीं माने जाते.
जेनेटिक मोडिफाइड फूड्स: रिसर्च में पाया गया है कि वो सभी खाद्य पदार्थ जो कि जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों के जरिये उगाये जाते हैं उनमें कैसर पैदा करने वाले तत्व प्राकृतिक बीजों के मुकाबले काफी ज्यादा होते हैं. इसके आलावा नॉन आर्गेनिक फूड्स जो कि पेस्टीसाइड के जरिये उगाए जाते हैं वो भी शरीर में कैंसर की संभावनाओं को जन्म देते हैं.
ग्रिल्ड मीट: मीट को लकड़ी या कोयले पर पकाने से उसमें ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन और PAHs काफी मात्रा में बढ़ जाते हैं जो कि शरीर के लिए काफी हानिकारक साबित होते हैं. मीट में मौजूद फैट आग के सीधे संपर्क में आने से जलकर जो धुंआ बनाता है वो इस तरह के फूड प्रोडक्ट को और भी खतरनाक बना देता है.
हाइड्रोजेनेटेड तेल: हारवर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की एक रिसर्च में सामने आया है कि हाइड्रोजेनेटेड तेल या ट्रांस फैट प्रोडक्ट्स का कैमिकल स्ट्रक्चर ऐसा होता है जो कि कैंसर सेल्स के लिए प्रेरक का काम करता है. ये शरीर के इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचता है और दिल की बीमारियों, स्ट्रोक और डायबिटीज के खतरे को भी पहले से कई गुना बढ़ा देता है.
माइक्रोवेव पॉपकोर्न: ऐसे रेडीमेड पॉपकोर्न जो कि माइक्रोवेव के जरिये बनाए जाते हैं उनमें जिस तेल का इस्तेमाल किया जाता है उसे भी वैज्ञानिकों ने सेहत के लिए खतरनाक बताया है.
प्रोसेस्ड फूड: कर्ड मीट जैसे दूसरे प्रोसेस्ड फूड में भी हाई नाइट्रेट्स और नाइट्राइट जैसे तत्व पाए जाते हैं. ये पेट और आतों के कैंसर की प्रमुख वजह होते हैं. इनमें आमतौर पर सफ़ेद आटा, शूगर, तेल, अप्राकृतिक रंग और फ्लेव्रिंग का इस्तेमाल किया जाता है जो कि शरीर के लिए और भी घटक साबित होते हैं.
सोडा और एनर्जी ड्रिंक: सोडा पीना या बाकी एनर्जी/स्पोर्ट्स ड्रिंक्स की न्यूट्रीशियन वैल्यू जीरो होती है लेकिन इनमें मौजूद शुगर और बाकी तत्व शरीर के लिए काफी हानिकारक होते हैं. इनमें भारी मात्रा में कैमिकल्स पाए जाते हैं और शरीर में मौजूद विटामिन बैलेंस को बिगाड़ देते हैं.
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बौलीवुड इंड्रस्टी में शाहरुख खान, आमिर खान और इमरान खान ऐसे नाम हैं जो काफी सुर्खियों में रहते है. लेकिन जितना लाइमलाइट ये सितारे बटोरते हैं उतना ही इनकी बीवियां मीडिया से दूर रहती हैं. जिस वजह से कम ही लोग हैं जो इन सितारों की बीवियों के बारे में जानते हैं. चलिए आज हम आपको बताते हैं इनके बारे में कुछ खास बातें.
ये तो सभी जानते हैं कि वो गौरी ही थीं जिन्हें ढूंढने के लिए शाहरुख खान मुंबई आए थे और बाद में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. अगल अलग धर्मों से होने की वजह से दोनों की शादी में होने में कुछ परेशानियां आई. लेकिन आखिर में जीत प्यार की हुई और शाहरुख खान ने गौरी से शादी कर ली. वहीं बौलीवुड के किंग खान बनने के बाद भी गौरी मीडिया और बौलीवुड की चकाचौंध से परे शाहरुख के घर को सजाने और बच्चों की परवरिश करने में लगी रहती हैं. इसके साथ साथ वह एक जानी मानी इंटीरियर डिजाइनर हैं. देश के ही नहीं, विदेशों के भी कई घरों और लक्जरी अपार्टमेंट्स की इंटीरियर डिजाइनिंग करती हैं. गौरी अपनी एक पहचान बना चुकी हैं.
बौलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान की भी कहानी कुछ ऐसी ही है. साल 2001 में आई फिल्म ‘लगान’ की असिस्टेंट डायरेक्टर (किरण राव) के रूप में काम करने के दौरान दोनों की मुलाकात हुई फिर मुलाकात प्यार में बदली और आखिर में आमिर ने किरण से शादी कर ली. अब किरण एक लेखिका, निर्देशिका और प्रोड्यूसर हैं जो आमिर के ही बैनर में केवल चुनिंदा प्रोजेक्ट्स पर काम करती हैं.
पीकू और हौलीवुड की बड़ी बड़ी फिल्में करने वाले मंझे हुए बेहतरीन कलाकारों में से एक इरफान खान की पत्नी के बारे में कम ही लोग जानते हैं. सुतपा और इरफान की लव स्टोरी नेशनल स्कूल औफ ड्रामा (एनएसडी) से शुरु हुई थी. साल 1985 में दोनों ने एनएसडी में एक साथ कदम रखा था. वहीं उनकी मुलाकात हुई और साल 1995 में दोनों ने शादी कर ली. सुतपा सिकंदर बौलीवुड में ही एक लेखिका के रूप में काम करती हैं. उनकी मशहूर फिल्मों में ‘खामोशी- द म्यूजिकल’ और ‘शब्द’ शुमार है. इरफान का कहना है कि उनकी पत्नी सुतपा सिकंदर सबसे बड़ी आलोचक होने के साथ उनकी प्रेरणा भी हैं.
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1988 में रिलीज हुई सलमान खान की डेब्यू फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ में सलमान खान ने एक नेगेटिव रोल प्ले किया था. सलमान खान नहीं चाहते थे कि ये फिल्म हिट हो. दरअसल, अपने पिता सलीम खान की बौलीवुड में इतनी पहचान होते हुए भी उन दिनों सलमान फिल्मों में काम करने के लिए तरस रहे थे. सलमान खान पर बचपन से ही हीरो बनने का जुनून सवार था.
हीरो बनने के खातिर उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. उन दिनों सलमान खान ने कई प्रोड्यूसर और डायरेक्टर के घर चक्कर लगाए, लेकिन हर कोई उन्हें रिजेक्ट करता रहा. ऐसे में 1988 में डायरेक्टर जे.के बिहारी ने फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ बनाने का मन बनाया. इस फिल्म के लिए उन्होंने रेखा और फारुख शेख को लीड रोल के लिए साइन किया. बिहारी को इस फिल्म के लिए एक ऐसे लड़के की तलाश थी जिसे इंडस्ट्री में कोई नहीं जानता हो.
बिहारी ने उस दौरान कई अभिनेताओं का इंटरव्यू लिया, लेकिन बिहारी किसी से खुश नहीं हुए. ऐसे में बिहारी को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करें. एक दिन उन्होंने ऐसे ही कह दिया कि जो पहला शख्स इस बिल्डिंग में एंट्री करेगा, वो ही उनकी फिल्म में काम करेगा. संयोगवश उस समय सलमान किसी काम से उस बिल्डिंग में पहुंच गए.
उन्हें देखते ही बिहारी ने कहा लो मिठाइ खाओ तुम्हें इस फिल्म में काम करना है. पहले तो डायरेक्टर की बात सुनकर सलमान को विश्वास नहीं हुआ कि उन्हें फिल्म औफर की जा रही है. सलमान ने तुरंत फिल्म शूट की तैयारी शुरू कर दी. लेकिन दिक्कत बस एक थी सलमान हीरो बनना चाहते थे और फिल्म में उनका रोल विलेन टाइप का था. जब फिल्म रिलीज हुई तो सलमान नहीं चाहते थे कि ये हिट हो, क्योंकि वह अपनी छवि खराब नहीं करना चाहते थे. लेकिन फिल्म को दर्शकों ने पसंद किया. इतना ही नहीं इस फिल्म ने एक ही थियेटर में लगातार 100 दिन चलने का रिकौर्ड भी अपने नाम कर लिया.
सवाल मैं एक युवक से बहुत प्यार करती थी और वह भी मुझे उतना ही चाहता था. मगर किसी बात के कारण हमारी बात 2 साल नहीं हो पाई, लेकिन हम दोनों एकदूसरे को नहीं भूल पाए. एक अन्य युवक, जो 2 साल से मुझे प्यार करता है और मैं भी उसे मन ही मन चाहने लगी हूं. लेकिन उसे मैं अपने पहले प्यार की तरह नहीं चाहती हूं. मगर इस युवक से मेरे घर वाले शादी के लिए मान गए हैं. अब जब शादी होने वाली है तो पहले वाला युवक मेरी जिंदगी में दोबारा आ गया है. मैं उस से अब भी प्यार करती हूं और अब वह भी मुझ से शादी करने को कह रहा है. बताएं मैं क्या करूं?
जवाब
वास्तव में आप दोनों को ही धोखा दे रही हैं. जिन कारणों से आप का पहले युवक से मनमुटाव हुआ था और 2 साल तक बात नहीं हुई, क्या वे कारण दोबारा उत्पन्न नहीं होंगे? आप अपने पेरैंट्स से बात करें. यह गुड्डेगुड्डी का खेल तो है नहीं कि चलो वह नहीं, तो दूसरा फिट हो जाएगा. सोचसमझ कर ही निर्णय लें.
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प्यार की बदलती परिभाषा
21 वर्षीया सीमा होंठों पर प्यारी सी मुसकान लिए और हाथों में गुलाब का बड़ा सा गुलदस्ता लिए दिल्ली के आईटीओ बस स्टैंड पर किसी का इंतजार कर रही है. उसे देख यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वह किस का इंतजार कर रही है. भले यह वैलेंटाइन डे की शाम न हो फिर भी उस के हावभाव कह रहे हैं, वह अपने दिलदार का इंतजार कर रही है. सीमा के हाथ में खूबसूरत से लिफाफे में बंद एक बड़ा डब्बा भी है, जो शायद उस के बौयफ्रैंड के लिए बर्थडे गिफ्ट होगा.
पिछले कुछ सालों में सीमा जैसी युवतियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. हालांकि प्यार चाहे आदिम युग में किया गया हो या इंटरनैट युग में, वह कभी नहीं बदला. लेकिन पिछले कुछ सालों में जिस तरह हर क्षेत्र में आमूलचूल ढंग से परिवर्तन देखने को मिले हैं, प्यार भी इन बदलावों से अछूता नहीं है. आज इजहार का तरीका बदल गया है, इकरार के अंदाज बदल गए हैं. इंटरनैट युग में हर चीज तुरतफुरत वाली हो गई है. ऐसे में भला प्यार कैसे पीछे रह सकता था? अब न कोई लड़का प्रेम प्रस्ताव देने के लिए कई दिनों का इंतजार करता है और न ही कोई लड़की उस की हामी में वक्त लगाती है.
अगर कहा जाए कि आज की तारीख में प्यार पहले की तुलना में ज्यादा वास्तविक हो गया है तो कतई गलत नहीं होगा. जी, हां. लैलामजनू, हीररांझा जैसे प्यार अब बमुश्किल ही देखने को मिलते हैं. इस का मतलब यह कतई नहीं है कि प्यार पहले के मुकाबले अब लोगों में कम हो गया है या फिर अब वादों और इरादों की जगह खत्म हो गई है. दरअसल, प्यार अब गिव ऐंड टेक की पौलिसी बन चुका है. बेशक ये शब्द थोड़े रूखे हैं लेकिन वास्तविकता यही है. ऐसा नहीं है कि यह बदलाव एकाएक देखने को मिल रहा है. पिछले कुछ सालों में धीरेधीरे चल कर यह बदलाव यहां तक पहुंचा है.
इस में सब से बड़ी वजह महिलाओं का आत्मनिर्भर होना है. इन बातों को बहुत समय नहीं गुजरा है जब प्रेमी जोड़े एकसाथ बाहर घूमने जाया करते थे, लड़कियां आमतौर पर लड़कों पर पूरी तरह निर्भर होती थीं. यहां तक कि कहां घूमने जाना है, क्या खाना है जैसे सारे फैसले लड़के ही करते थे. मगर अब ऐसा नहीं है.
आज लड़कियां पढ़ीलिखी हैं, समझदार हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं. आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण ही अब वे किसी और पर फैसले नहीं छोड़तीं और न ही दूसरे के फैसले खुद पर लदने देती हैं. कहीं जाना हो, कुछ खाना हो या कोई तोहफा खरीदना हो तो वे मन मार कर नहीं रहती हैं. वे बिंदास हो कर इन बातों को अपने बौयफ्रैंड से साझा करती हैं.
यही कारण है कि अब प्यार बेफिक्री का नाम भी हो गया है. लड़कियों में बढ़ती आत्मनिर्भरता के कारण लड़कों में भी बेफिक्री की आदत आ गई है. बदलते दौर के प्यार के कारण लड़कों में बचपना भर गया है. अब तक माना जाता रहा है कि जिंदगी से जुड़े तमाम फैसले सिर्फ लड़के को ही करने होते हैं. आखिर वह भविष्य में घर का मुखिया बनता है. इसलिए जवानी के दिनों से ही उसे गंभीर होना होता है. यही वजह है कि वह हमेशा अपने संबंधों में भी गंभीर ही रहता था. लेकिन लड़कियों के फैसले लेने की ताकत ने लड़कों को बेफिक्र कर दिया है. ऐसा नहीं है कि लड़कियां परेशानियों और फैसले करने के बोझ तले दबती जा रही हैं. लड़कों ने इस संबंध में लड़कियों का हाथ बराबरी देने के लिए थामा है.
अब अजय को ही लें. 26 साल का अजय 2 साल बाद अपनी गर्लफ्रैंड रैना से शादी करने वाला है. रैना एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है. उस की मासिक आय इतनी है कि एक परिवार न सिर्फ गुजरबसर कर सकता है बल्कि ऐश की जिंदगी भी जी सकता है. अजय को आर्थिक रूप से घर के लिए ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. रैना महत्त्वाकांक्षी है. लेकिन जब से उस की मुलाकात अजय से हुई है तब से रैना की जिंदगी में तमाम बदलाव हुए हैं.
पहले जहां काम के चलते रैना हमेशा परेशान दिखती थी, वहीं अब प्यार ने उस में मिठास भर दी है. उन की जिंदगी से जुड़े सारे फैसले दोनों मिल कर करते हैं. 2 साल बाद शादी का फैसला भी दोनों ने मिल कर किया है. अजय तो अपने भविष्य को ले कर बेफिक्र हुआ ही है, साथ ही रैना को भी अपनी आजादी, अपने फैसलों को लेने में कोई कठिनाई नहीं होती. वह जानती है कि अजय उस का हर मोड़ पर साथ देगा. इस संबंध में वह बिलकुल बेफिक्र है.
यह बात और है कि अब भी ऐसे प्रेमी युगलों की कमी नहीं है जहां फैसले आमतौर पर लड़के ही करते हैं. बावजूद इस के, यह कहने में हमें जरा भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि प्यार पहले की तुलना में ज्यादा वास्तविक हो गया है. अब प्यार हवाहवाई नहीं रहा. अब प्रेमी जोड़े वादे करने से हिचकते हैं. क्यों? क्योंकि वे ऐसा कोई वादा नहीं करना चाहते जो उन्हें झूठा साबित करे. अगर कोई वादा करते हैं तो उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करते हैं.
वास्तव में वे अपनी भावनाओं का सम्मान करते हैं. इसलिए दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने से डरते हैं. कहने का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि पहले के लोग दूसरों की भावनाओं का सम्मान नहीं करते थे. असल में पहले प्यार आदर्शवादी किस्म का हुआ करता था. अब वह आदर्शवादी ढांचा टूट चुका है.
लोग अब अपनी जिंदगी को महत्त्व देते हैं. वे नहीं चाहते कि उन के द्वारा लिया गया कोईर् भी फैसला उन के लिए मुसीबत बन जाए. इसलिए कुछ समय साथ गुजारने के बाद अगर वे एकदूसरे के साथ रहना नापसंद करें तो एकदूसरे को हंसतेहंसते अलविदा कह देते हैं. यह आदर्शवादी किस्म का प्यार नहीं है. आप कह सकते हैं यहां तो बात वही हो गई कि तू नहीं कोई और सही, और नहीं कोई और सही…लेकिन समझने की बात यह है कि दूसरों के सामने मिसाल बनने के लिए खुद को सूली पर चढ़ाना सही नहीं है. कुल मिला कर कहने की बात यह है कि आज की तारीख में लड़केलड़कियां दोनों कामकाजी हो गए हैं और बदलती जीवनशैली ने प्यार की परिभाषा भी बदल दी है.
हक चाहती हैं लड़कियां
यह बात कहने और सुनने में बड़ी अजीब लगती है मगर सच यही है कि लड़कों ने लड़कियों को हमेशा दबा कर रखा है. अब से पहले कभी लड़कियों को बराबरी का दरजा नहीं दिया. फिर चाहे वे दोनों एकदूसरे को बेइंतहा क्यों न चाहते रहे हों. एक बार लड़की ने किसी का हाथ थामा, उसी क्षण से उसे अपने फैसले करने का हक जाता रहा. लड़कियों की इच्छाओं को दरकिनार कर दिया जाता था. जी हां, इस किस्म के परिवेश को अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है. लड़की भी लड़के की कही हर बात को पत्थर की लकीर समझ कर मान लिया करती थी.
लेकिन अब माहौल में खासा बदलाव आया है. लड़कियां हां और ना में जवाब देने लगी हैं, अपने फैसले सुनाने लगी हैं. यहां तक कि अगर कोई लड़का उसे बीच चौराहे पर छोड़ने का फैसला कर ले तो वे उसे रोकने की जहमत भी नहीं उठातीं. सवाल है, ऐसा क्यों है? क्या लड़कियां अब भावुक नहीं रहीं? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है. असल में लड़कियां अब दूसरों के फैसलों पर सिर्फ हामी नहीं भरती हैं. प्यार के मसले में भी यह बात सौ फीसदी लागू हो रही है.
रिश्तों में पनपती साफगोई
ताज्जुब होता है कि कुछ साल पहले तक अगर लड़की को उस का बौयफ्रैंड छोड़ने की बात तक कहता था तो उस का रोरो कर बुरा हाल हो जाता था. लेकिन अब स्थिति ईद का चांद हो गई है. असल में अब रिश्तों में पहले से ज्यादा साफगोई देखने को मिलती है. कोई भी किसी को भी गले की फांस नहीं बनाना चाहता. यही बात लड़कियों के साथ भी है. अगर वह किसी को छोड़ना चाहती है तो बेझिझक एक फोन कौल से, मैसेज से या फिर मेल के जरिए अपने दिल की बात उस तक पहुंचा देती है.
कुछ लोग कह सकते हैं कि अब प्यार मजाक बन कर रह गया है. लोगों में सहनशीलता नहीं है. लोग संवेदनाहीन हो रहे हैं. लोगों में अपने प्यार को बांधे रखने की ताकत खत्म हो रही है. जबकि यह हकीकत नहीं है. अब प्यार में खुलापन आ गया है. प्यार पहले से भी ज्यादा नाजुक हो गया है. जैसा कि पहले ही जिक्र किया गया है कि कोई भी किसी की भी गले की फांस नहीं बनना चाहता है. लड़कियां अब ऐसे लड़के को एक दिन भी बरदाश्त नहीं कर सकतीं जो उन्हें अपने संबंध में बराबरी नहीं दे सकता. यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि लड़कियों को प्यार भीख में नहीं चाहिए. लड़कियां इस बात को सहज ही समझ जाती हैं कि कौन उसे प्यार करता है और कौन उस का इस्तेमाल कर रहा है. आज प्यार का सीधा सा सिद्धांत है, प्यार करोगे तो प्यार पाओगे. लड़कियां अब किसी एक लड़के को अपना सब कुछ नहीं समझ लेतीं. वे आजादीपसंद हो चुकी हैं.
असल में एक बार रिश्ते में बंध जाने के बाद लड़के को लगता है कि उस की प्रेमिका से जुड़े सारे फैसले करने का हक सिर्फ उसे ही है. लेकिन लड़कियों को अब अपनी आजादी का एहसास हो गया है. वे न तो प्यार भीख में लेती हैं और न ही आजादी. लड़कियां इस बात को भलीभांति समझ गई हैं कि आजादी और प्यार दोनों में ही उन का हक है. इन में किसी एक को ज्यादा महत्त्व देना, प्यार से बेमानी होगी.
प्यार एक मीठा एहसास है. प्यार में एकदूसरे के लिए जान लुटाने का माद्दा होता है. लेकिन वहीं प्यार का एक पहलू यह भी है कि इस में बराबरी और सम्मान का एहसास महत्त्वपूर्ण हो गया है. महिलाओं की बदलती आर्थिक स्थिति ने उन्हें यह फैसला करने का हक दिया है कि उन्हें किस के साथ बंधना है, किस के साथ रहना है. हैरानी की बात तो यह है कि लड़कियों के दोस्तों की सूची कितनी लंबी होगी, यह फैसला भी एक जमाने में लड़के ही किया करते थे. मगर अब कहानी पलट गई है. समझौता सिर्फ एक पर आश्रित बन कर नहीं रह गया है. क्योंकि प्यार अब भीख में लीदी जाने वाली चीजभर नहीं है. प्यार जरूरत भी है और चाहत भी.
क्या कहते हैं लड़कियों जैसे ये लड़के…
यह मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस हो सकता है और राजधानी दिल्ली का कनौट प्लेस भी. यह कोलकाता का सौल्ट लेक हो सकता है और हैदराबाद का बंजारा हिल्स भी. आप को ऐसे दृश्य कहीं भी देखने को मिल सकते हैं जब आप को भ्रम हो जाए कि लड़का कौन है और लड़की कौन है. एक जैसे जूते, एक जैसे ओवरकोट, एक जैसा हेयरस्टाइल. यहां तक कि पैंट और शर्ट में भी अब बहुत फर्क नहीं बचा. जी हां, यह यूनीसैक्स का दौर है. जी हां, यह बराबरी की एक नई दुनिया है.
कुछ लोगों को लग सकता है लड़कों का पतन हो रहा है. कुछ पुराने खयालों के मर्दवादी मन कह सकते हैं आजकल के लड़के तो मर्द जाति के नाम पर धब्बा हैं. लेकिन गौर से सोचें, ध्यान से देखें तो यह व्यवहार में अब दिखने लगी वह बराबरी है जिस की कहे, अनकहे ईमानदारी से सदियों से बातें की जाती रही हैं. शायद यह पहला ऐसा दौर है जब लड़के व लड़कियों में बहुत सारी चीजें एक जैसी होने लगी हैं या फिर यों कहा जाए कि जिंदगी में अब बड़ी सहजता आ गई है.
अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता जब पहनावा, बोलनेचालने का ढंग और यारदोस्तों के साथ मौजमस्ती के तमाम रंग लड़के और लड़कियों के बिलकुल अलहदा होते थे. सच बात तो यह थी कि खानेपीने में भी लड़के और लड़कियों का फर्क साफ दिखता था. पिछली सदी के 70, 80 और किसी हद तक 90 के दशक तक लड़के चाटपकौडि़यां खाने से झिझकते थे. लड़कियों की तरह सूंसूं करते मिर्च की चटनी खाते और उंगलियां चाटते लड़के नहीं दिखते थे. गोलगप्पे, पानीपूरी, दहीभल्ले इन से लड़के दूर रहते थे मगर अब बहुतकुछ बदल गया है. लड़के लड़कियों के साथ चाटपकौडि़यों की दुकान में दिखने लगे हैं.
बोलना और यहां तक कि चलना भी एक जमाने में लड़कियों और लड़कों के लिए पूरी भिन्न सीख हुआ करती थी. लड़कियों को बड़े से बड़े संकट में भी अदब से और अव्यक्त शब्दों में मदमाते हुए चलने की सीख दी जाती थी और लड़कों को तेजतेज, बेफिक्र अंदाज में कदम बढ़ाने की सीख दी जाती थी. आज लड़कियां भी लड़कों की तरह लंबेलंबे डग भरते दिख जाएंगी. वे भी उन्हीं की तरह गला फाड़ कर चिल्लाने में गुरेज नहीं करतीं जबकि एक जमाने में ऊंची आवाज में लड़कियों का बोलना बुरा समझा जाता था. माना जाता था ऐसी लड़कियों में लड़कीपन नहीं रहता…तो बदलते दौर में बहुतकुछ बदल रहा है. ये जो लड़कियों जैसे लड़के दिख रहे हैं या लड़कों जैसी लड़कियां दिख रही हैं, उन्हें हम मजाक में कुछ भी कहें, लेकिन सचाई यही है कि यह बदलाव का एक व्यावहारिक व दिखने वाला तरीका है.
VIDEO : फंकी लेपर्ड नेल आर्ट
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