दीवाली आई पति की हो गई धुलाई

दीवाली का त्योहार आने से कुछ दिनों पहले करवाचौथ का व्रत आता है, जिस में पत्नियां पूरे दिन भूखेप्यासे रह कर रात को चांद देख कर पति की पूजा करती हैं और फिर खाने पर टूट पड़ती हैं. वही सारी पत्नियां दीवाली आते ही उन पतियों को घर के काम करने में लगाने में जरा भी देरी नहीं लगातीं.

करवाचौथ पर पूजे जाने वाले वे सारे पति दीवाली पर घर के कोनेकोने के जाले, पंखे और दीवारों को साफ करते नजर आते हैं. यह हकीकत भी है और फिलहाल किया हुआ मजाक भी. लेकिन सचाई यही है कि शादी के बाद पति का सच्चा प्यार तभी नजर आता है जब वह पत्नी के साथ बराबरी करते हुए घर के कामकाज में हाथ बटाता है. अगर पत्नी हाउसवाइफ है, तो वह फिर भी पति के थोड़ेबहुत नखरे झेल लेती है लेकिन कहीं अगर वह वर्किंग वूमन है तो फिर तो उस पति की शामत ही आ जाती है जो पति निखट्टू और कामचोर है और जो दीवाली के मौके पर भी पत्नी की काम में मदद करने के बजाय मोबाइल पर गेम खेलते या यारदोस्तों के साथ बतियाते नजर आते हैं, वही पत्नी अगर उन से कोई काम बोल भी दे तो वे इतना खराब काम करते हैं कि पत्नी भी सिर पीटते हुए सोचती है की इन को बोलने से अच्छा तो मैं खुद ही कर लेती.

जोरू का गुलाम ही बनें तो अच्छा

कई बार पति जानबूझकर खराब काम करते हैं, तो कई बार सही में उन को ठीक ढंग से काम करना नहीं आता. ऐसे मौके पर पत्नी का पारा सातवें आसमान पर होता है, तो बड़े से बड़े सुरमा पति भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

शादीशुदा जिंदगी की सब से बड़ी एक सचाई यह है कि एक मर्द प्रोफैशनल लाइफ में कितने ही बड़े ओहदे पर हों लेकिन पत्नी के सामने वह जोरू का गुलाम ही होता है क्योंकि सारे शादीशुदा पति अच्छे से जानते हैं कि जो औरत उन का घर, बच्चे व परिवार संभालती है उस के सामने शांत रहना ही सब से अच्छा रास्ता है क्योंकि शांति का रास्ता ही उन की जिंदगी और घर में खुशी का माहौल बनाए रखता है.

ऐसे में वे सारे पति अपनी पत्नी से पंगा नहीं लेते जो सुखी विवाहित जीवन बिताना चाहते हैं. भले ही फिर वह देश को चलाने वाले नेता हों या 10-10 गुंडो को पीटने वाले सुपरस्टार अभिनेता. अपनी पत्नी के सामने ये सारे पति प्यारभरे रोमांटिक स्टाइल में यही कहते नजर आते हैं,”आओ हुजूर तुम को सितारों में ले चलूं…”

पेश हैं, ऐसे ही कई बेबस और वफादार पतियों पर एक नजर….

दीवाली का मौका हो और पति ने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ दावतें रख ली हो और ऐसे में घर की नौकरानी भाग जाए तो पति की शामत आना लाजिमी है.

जब पति और पत्नी दोनों नौकरी करते हैं तो उन को घर और बच्चे संभालने के लिए नौकरानी का सहारा लेना पड़ता है. ऐसे में दीवाली पर जब शेखी बघारने के लिए पति 2-3 दीवाली की पार्टी रख देता है और खुद घर के काम में कोई दिलचस्पी नहीं लेता, ऐसे में अगर अचानक नौकरानी छुट्टी ले कर गांव भाग जाए तो पति की शामत ही आ जाती है और उस को दिन में भी तारे नजर आने लगते हैं क्योंकि नौकरानी के न रहते पत्नी के साथ काम करने वाला पति अगर गलती पर गलती करता है तो घर में महाभारत का माहौल बन जाता है. ऐसे मौके पर भी अगर पति अपनी गलती मानते हुए चुप्पी साध लेता है तो उन का सुखी वैवाहिक जीवन बना रहता है. लेकिन अगर कहीं पति अपने इगो प्रौब्लम के चलते बदले में खुद भी खरीखोटी सुनाने लगता है तो यह बढ़ता हुआ झगड़ा कई बार तलाक तक भी पहुंच जाता है क्योंकि ऐसे निखट्टू पति से परेशान पत्नी कई बार ऐसा भी सोचती है कि ऐसे इंसान के साथ रहने से अच्छा मैं अकेले ही जीवन गुजार लूं.

नेता से अभिनेता तक सभी अपनी पत्नी के सामने नतमस्तक

देसी हो या विदेशी सुखी इंसान वही होता है जो अपनी पत्नी के साथ बना कर चलता है, पत्नी का सम्मान करता है, परिवार को साथ ले कर चलता है। ऐसे ज्यादातर लोगों का उच्च स्थान होता है. जैसेकि विदेश से आए ओबामा भारत भ्रमण के लिए अपनी पत्नी के साथ भारत आते हैं तो हमारे देश के लालू प्रसाद यादव भी 11 बच्चों के पैदा होने के बाद भी राबड़ी देवी को उतना ही प्यार करते हैं जितना की शुरुआत में करते थे. इतना ही नहीं बौलीवुड के सुपरस्टार्स अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर, शाहरुख खान, गोविंदा आदि सभी अपनी पत्नियों के सामने खुल कर नहीं बोल पाते.

शाहरुख और गोविंदा तो खुलेआम कहते हैं कि मैं जोरू का गुलाम बन कर रहूंगा. ऐसे में सारे मर्दों को एक बात तो समझनी होगी कि अगर वह अपने प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ में शांति, समृद्धि और तरक्की चाहते हैं तो उन को अपने घर से ही औरत का सम्मान करने की शुरुआत करनी होगी चाहे वह बीवी हो या बेटी. वरना दीवाली हो या रोजमर्रा की जिंदगी, पत्नी के प्रकोप से उन को कोई नहीं बचा पाएगा क्योंकि अगर पत्नी चंद्रमुखी है तो उस को ज्वालामुखी और सूर्यमुखी बनने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगता. इसलिए अगर सारे मर्द अपनी दीवाली अच्छी बनाना चाहते हैं तो पत्नी के साथ मिल कर चलें, इसी में उन की भलाई है.

फैमिली से रहते हैं दूर, तो मनाएं वर्चुअल दीवाली और अपनों के रहें करीब

दीवाली खुशियों और उमंग का त्योहार, जब घरघर में दीए जलते हैं और हरकोई अपने प्रियजनों के साथ होता है, तब घर से दूर रह रहे बच्चों व उन के परिवार के लिए यह समय बड़ा कठिन होता है. पढ़ाई या नौकरी की वजह से जो बच्चे घर से दूर रहते हैं, उन्हें हर त्योहार पर अपने परिवार की बहुत याद आती है. ऐसे में मातापिता की जिम्मेदारी होती है कि वे बच्चों को अपने पास होने का एहसास कराएं.

इसलिए यहां कुछ ऐसे तरीके आप को बता रहे हैं, जिस से घर से दूर होने के बावजूद वे आप को और आप के प्यार को महसूस करेंगे और उन्हें लगेगा कि वे आप के साथ ही हैं.

दीवाली सैलिब्रेशन का आयोजन करें

आज टैक्नोलौजी ने इतनी तरक्की कर ली है कि मीलों की दूरियों को भी कम कर दिया है और इस का सब से ज्यादा फायदा उन मांबाप को हुआ है जिन के बच्चे उन से दूर रहते हैं. वैसे तो उन्हें अपने बच्चे की याद हरपल आती ही है लेकिन त्योहारों जैसे खास मौकों पर याद अधिक सताती है. लेकिन अब टैंशन की बात नहीं है क्योंकि अब आप चौबीस घंटे उन के साथ वीडियो कौल पर रह सकते हैं और वीडियो कौल के जरीए वर्चुअल दीवाली मना सकते हैं. घर की सजावट, पटाखों की रोशनी और मिठाइयों का आनंद वीडियो कौल पर शेयर कर सकते हैं. इस से बच्चे भले ही शारीरिक रूप से दूर हों, लेकिन वे मानसिक और भावनात्मक रूप से आप के साथ जुड़ा महसूस करेंगे।

तैयारियों से जोड़े रखें

बच्चों को दीवाली की तैयारियों का हिस्सा बनाएं, भले ही वे घर पर न हों. उन्हें घर की सजावट, रंगोली डिजाइन या मिठाइयों के बारे में सुझाव देने के लिए कहें. इस तरह वे दूर रह कर भी घर की तैयारियों में भागीदार बन सकते हैं और उन का मन लगेगा कि वे भी त्योहार का हिस्सा हैं.

स्पैशल दीवाली गिफ्ट भेजें

बच्चों को दीवाली पर उन के पसंदीदा चीजों का एक स्पैशल गिफ्ट भेजें. इस में घर की बनी मिठाइयां, उन के पसंदीदा स्नैक्स, कुछ दीए आदि हो सकते हैं, ताकि वे अपने रहने की जगह पर भी दीवाली का आनंद ले सकें.

साथ ही, एक व्यक्तिगत संदेश या पत्र लिख कर भेजें, जिस में आप अपने प्यार और यादों को उन के साथ शेयर करें.

पुरानी यादों को ताजा करें

वीडियो कौल की मदद से बच्चों के साथ पुरानी दीवाली की यादों को शेयर करें. उन्हें याद दिलाएं कि किस तरह उन्होंने बचपन में घर सजाया था या कैसे वे पटाखे जलाने का आनंद लेते थे. ये बातें बच्चों को अपने परिवार के साथ बीते समय की याद दिलाएंगी और उन्हें आप के साथ जुड़े रहने का एहसास होगा और मन भी लगा रहेगा.

एकसाथ फिल्म या शो देखें

दीवाली के मौके पर कोई दिवाली थीम्ड फिल्म या शो बच्चों के साथ वर्चुअली देखने का प्लान बनाएं. आप नैटफ्लिक्स पार्टी या अन्य औनलाइन प्लैटफौर्म्स का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से आप एकसाथ फिल्म देख सकते हैं और मजेदार पल साझा कर सकते हैं.

बच्चों की पसंद के पकवान बनाएं

अगर आप के बच्चे किसी खास मिठाई या पकवान के शौकीन हैं, तो दीवाली पर वह पकवान बना कर उन की तसवीर या वीडियो उन्हें भेजें. इस के साथ ही, अगर संभव हो तो उन्हें वे पकवान कूरियर द्वारा भेजें. इस से उन्हें घर के स्वाद का एहसास होगा और वे खुद को आप के करीब महसूस करेंगे.

समय का सही उपयोग करें

बच्चे जब दीवाली पर घर से दूर होते हैं, तो वे खुद को अकेला महसूस कर सकते हैं. इसलिए कोशिश करें कि दीवाली के दौरान उन के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं, भले ही वह वर्चुअल ही क्यों न हो. उन से बात करें, उन के दिन के बारे में जानें और उन्हें यह महसूस कराएं कि वे आप के लिए कितने खास हैं.

भाईदूज पर शुभकामनाएं भेजें

अगर आप का बच्चा दीवाली के बाद भाईदूज या अन्य खास त्योहारों पर घर नहीं आ सकता, तो उन्हें शुभकामनाएं और स्नेह भेजें. उन्हें फोन या वीडियो कौल के माध्यम से शुभकामनाएं दें और साथ ही एक छोटा सा भाईदूज का गिफ्ट भेज कर उन्हें खुश करें.

गांव की कालेज की छात्रा से प्यार हो गया है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मुझे अपने गांव के पास के ही एक गांव की कालेज की छात्रा से प्यार हो गया है. एक दिन उस के ट्यूशन पढ़ने के लिए जाते वक्त मैं ने उसे अपने प्यार के बारे में बताने के लिए आवाज दे कर रोका. मैं कुछ कह पाता, उस से पहले ही वह मुझे पागल कह कर चली गई. वह हमेशा मेरी ओर देखा करती थी, जिस से मुझे लगा था कि वह भी मुझे पसंद करती है. मैं क्या करूं?

जवाब-

कोई राह चलती लड़की कभीकभार नजरें उठा कर देख ले तो उसे प्यार नहीं समझना चाहिए. बात साफ है कि वह आप से प्यार नहीं करती. आप से रहा न जाए, तो कोई बहाना निकाल कर एक बार उस से दोटूक बात कर लें. वह मान जाए तो आगे बढ़ें, वरना उस का पीछा करना छोड़ दें.

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जयपुर, राजस्थान के मालवीय नगर में रहने वाली 20 साला निधि कोचिंग के लिए टोंक फाटक जाती थी और वहां से ही अपने बौयफ्रैंड के साथ नारायण सिंह सर्किल के पास बने सैंट्रल पार्क की झाडि़यों में जिस्मानी संबंध बना कर उस से बाजार में खूब खरीदारी कराती थी. यही हाल कुछ समय पहले तक उस की बड़ी बहन कीर्ति का था. उस के भी कई बौयफ्रैंड थे. एक बार जब वह एक बौयफ्रैंड के साथ एक पार्क में संबंध बना रही थी कि तभी वहां 5-6 कालेज के दादा किस्म के लड़के आ गए. उन लड़कों को देख कीर्ति का बौयफ्रैंड वहां से भाग गया, मगर उन लड़कों ने कीर्ति को दबोच लिया और 3-4 घंटे तक उस का बलात्कार किया. जब कीर्ति को होश आया, तो वह गिरतेपड़ते अपने घर पहुंची. उस के बाद उस ने अपने सभी बौयफ्रैंडों से दोस्ती खत्म कर ली और अपना ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. वह आज एक बड़ी सरकारी अफसर है.

कई साल पहले राजस्थान के धौलपुर जिले के बसेड़ी कसबे में जाटव जाति का एक गरीब परिवार का लड़का चंद्रपाल जब पटवारी की नौकरी पर लगा था, तब उस के मांबाप ने उसे समझाया था कि वह अपनी नौकरी ईमानदारी से करे. अपने मांबाप की इन बातों को सुन कर चंद्रपाल ने अपना काम ईमानदारी से करना शुरू कर दिया था.

पटवारी की नौकरी करते हुए वह कुछ सालों बाद भूअभिलेख निरीक्षक बन गया और उस के बाद नायब तहसीलदार और अब तहसीलदार बन कर ईमानदारी से अपना काम कर रहा है.

30 साला मनोज एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है. कमाऊ महकमे में होने के चलते वह हजार दो हजार रुपए रोजाना ऊपर की कमाई कर लेता है. वह जयपुर के प्रताप नगर हाउसिंग बोर्ड में अपनी 23 साला बीवी सुप्रिया के साथ रहता है.

जब मनोज की बीवी 3 बच्चों की मां बन गई, तो उस का झुकाव अपनी 20 साला कालेज में पढ़ने वाली साली नेहा की ओर हो गया. वह उसे अपने पास ही रखने लगा. उस ने अपनी साली को पैसे और महंगेमहंगे तोहफे दे कर पटा लिया था. बीवी के सो जाने पर वह अपनी साली के कमरे में चला जाता था.

एक रात को अचानक नींद खुल जाने से जब मनोज की बीवी सुप्रिया ने उसे अपने बैड पर नहीं देखा, तो वह अपनी छोटी बहन नेहा के कमरे में चली गई. वहां पर उन दोनों को साथ देख वह गुस्से में आगबबूला हो उठी.

कुछ दिनों तक तो वे दोनों एकदूसरे से दूर रहे, मगर फिर होटल में मिलने लगे. एक दिन जब वे होटल में पुलिस द्वारा पकड़े गए, तो उन के मांबाप को बहुत दुख हुआ.

वे दोनों जीजासाली सोच रहे थे कि अगर सुप्रिया उन के बीच रोड़ा नहीं बनती, तो उन्हें होटल में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. लिहाजा, उन्होंने सुप्रिया की गला घोंट कर हत्या कर दी.

हत्या के बाद वे दोनों वहां से फरार हो गए. दूसरे दिन जब पड़ोस के लोगों को मालूम हुआ, तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.कई दिनों के बाद सुप्रिया की हत्या के जुर्म में मनोज और नेहा को गिरफ्तार कर लिया गया.

दूसरों की ऐसी भूल से सबक ले कर जो लोग इन्हें अपनी जिंदगी में शामिल नहीं करते हैं, वे सुख भरी जिंदगी बिताते हैं.ॉ

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Festive Special: घर पर बनाएं सौफ्ट और स्पंजी छेने के रसगुल्ले, नोट करें ये तरीका

त्योहारों ने दस्तक दे दी है ,और बिना मिठाई के तो हर त्योहार फीका सा लगता है और जब मिठाइयों की बात हो रही हो तो हम छेने के रसगुल्ले को कैसे भूल सकते है.सच कहूं तो छेने के रसगुल्ले एक ऐसी भारतीय मिठाई है जिसे किसी इंट्रोडक्शन की जरूरत नहीं है. यह मिठाई बच्चो से लेकर बुजुर्गों तक सभी को बहुत पसंद आती है. बंगाली भोजन का तो ये एक सिग्नेचर व्यंजन है.

अगर आप चीनी वाले हिस्से को थोडा सीमित कर दे तो वास्तव में छेने के रसगुल्ले सबसे स्वास्थ्यप्रद भारतीय मिठाइयों में से एक है . क्योंकि इसमें न ही घी या रिफाइंड का उपयोग होता है और न ही मैदे का. आप इन्हें Healthy और जूसी पनीर बौल भी कह सकते हैं.

पर अक्सर जब लोग घर पर रसगुल्ला बनाते है तो उनकी सबसे बड़ी समस्या ये होती है की रसगुल्ले नरम नहीं बनते.  लेकिन वास्तव में इस मिठाई को घर पर बनाना बहुत ही आसान है बस जरूरत है तो कुछ बुनियादी चीजों को ध्यान में रखने की. अगर इन चीज़ों को ध्यान में रखा जायेगा तो रसगुल्ले हमेशा सौफ्ट और स्पंजी बनेंगे.

तो चलिए आज हम बहुत ही आसान तरीके से घर पर ही रसगुल्ले बनाते है. अगर आप Begginer है यानी अगर आप पहली बार भी छेने का रसगुल्ला बनाना Try कर रहे हैं तो आप इस आसान और झटपट रसगुल्ला रेसिपी से घर पर ही सौफ्ट और स्पंजी रसगुल्ला बनाना सीख सकते हैं.

कितने रसगुल्ले बनेंगे – 8 से 10 (इसकी क्वांटिटी रसगुल्ले की साइ पर निर्भर करती है)
समय – 25 से 30 मिनट

हमें चाहिए-

दूध – 1.5 लीटर
नींबू का रस – 2 टेबल स्पून
अरारोट – 2 छोटी चम्मच
चीनी – 700 ग्राम
गुलाब जल या केवडा -1 छोटी चम्मच (ऑप्शनल)

बनाने का तरीका-

1-सबसे पहले रसगुल्ले बनाने के लिए हमें छेने की जरूरत पड़ेगी .इसलिए हम घर पर ही ताज़ा छेना बनायेंगे.

2- छेना बनाने के लिये दूध को किसी भारी तले वाले बर्तन में निकाल कर गरम कीजिये. दूध में उबाल आने के बाद, दूध को गैस से उतार लीजिये, दूध को हल्का सा ठंडा होने दीजिये.
(NOTE:एक चीज़ याद रखियेगा की छेने के लिए दूध को थोडा ठंडा करना होगा.गैस पर उबलते वक़्त ही दूध में नीम्बू न डाले, वरना छेना सख्त बनेगा.)

3-जब दूध थोडा ठंडा हो जाये तब उसमे थोड़ा थोड़ा नीबू का रस डालते हुये चमचे से चलाइये, दूध जब पूरा फट जाय और दूध में छेना और पानी अलग दिखाई देने लगे तो नींबू का रस डालना बन्द कर दीजिये.

4-अब छेने को कपड़े में छानिये और ऊपर से ठंडा पानी डाल दीजिये ताकि नीबू का स्वाद छेने में न रहे. कपड़े को चारों ओर से उठाकर हाथ से दबा कर अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये. रसगुल्ला बनाने के लिये छेना तैयार है.

5-अब छेना को किसी प्लेट में निकाल लीजिये और 4-5 मिनिट छेने को अच्छे से मसल कर चिकना कर लीजिये, अब छेना में अरारोट मिला कर फिर से उसे अच्छे से चिकना कर लीजिये ताकि वो गुथे हुये आटे की तरह दिखाई देने लगे .अब रसगुल्ला बनाने के लिये छेना तैयार है.

6-अब छेने के छोटे छोटे गोले बना कर प्लेट में रख लीजिये. सारे रसगुल्ले के लिये गोले इसी तरह बना लीजिये और किसी गीले कपड़े से ढक कर रख दीजिये.

7-अब चीनी और 2 कप पानी किसी चौड़े बर्तन में डाल कर गरम कीजिये, चाशनी में उबाल आने के बाद, छेने से बने गोले चाशनी में डाल दीजिये.

8-अब छेने के गोले और चाशनी को तेज़ आंच पर कम से कम 15 से 20 मिनट तक पकाए.कुछ देर में चाशनी गाढ़ी होने लगेगी.

9-अब चाशनी में 1 बड़े चम्मच से थोडा-थोडा करके पानी डालिये, ध्यान रहे कि चाशनी में हमेशा उबाल आता रहे, रसगुल्ला पकते समय 1 – 2 कप तक पानी डाल सकते हैं. रसगुल्ले फूल कर लगभग दुगने हो जाते हैं, रसगुल्ला पकने के बाद गैस बन्द कर दीजिये. रसगुल्ले को चीनी के पानी में ही ठंडे होने दीजिये.
10-तैयार है छेने के रसगुल्ले.अब आप इसमें गुलाब जल डाल कर इसे फ्रिज में रख कर ठंडा कर ले और फिर सर्वे करें.

कुछ मत लाना प्रिय: रश्मि की सास ने कौनसी बात बताई थी

अजय ने टूअर पर जाते हुए हमेशा की तरह मुझे किस किया. बंदा आज भी रोमांटिक तो बहुत है पर मैं उस बात से मन ही मन डर रही थी जिस बात से शादी के पिछले 10 सालों से आज भी डरती हूं जब भी वे टूअर पर निकलते हैं. मेरा डर हमेशा की तरह सच साबित हुआ, वे बोले, ”चलता हूं डार्लिंग, 5 दिनों बाद आ जाऊंगा. बोलो, हैदराबाद से तुम्हारे लिए क्या लाऊं?”

मैं बोल पङी, ”नहीं, प्लीज कुछ मत लाना, डिअर.”

पर क्या कभी कह पाई हूं, फिर भी एक कोशिश की और कहा, ‘’अरे नहीं, कुछ मत लाना, अभी बहुत सारे कपड़े पङे हैं जो पहने ही नहीं हैं.’’

‘’ओह, रश्मि, तुम जानती हो न कि जब भी मैं टूअर पर जाता हूं, तुम्हारे लिए कुछ जरूर लाता हूं, मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे लिए कुछ लाना.’’

थोङा प्यार और रोमांस के साथ (टूअर पर जाते हुए पति पर प्यार तो बहुत आ रहा होता है ) मैं ने भी अजय को भेज कर अपनी अलमारी खोली. यों ही ऊपरी किनारे में रखे कपड़ों का और बाकी कुछ चीजों का वही ढेर उठा लिया जो अजय पिछले कुछ सालों में टूअर से लाए थे. इस में कोई शक नहीं कि अजय मुझे प्यार करते हैं पर मुश्किल थोड़ी यह है कि अजय और मेरी पसंद थोड़ी अलगअलग है.

अजय हमेशा मेरे लिए कुछ लाते हैं. कोई भी पत्नी इस बात पर मुझ से जल सकती है. सहेलियां जलती भी हैं, साफसाफ आहें भी भरती हैं कि हाय, उन के पति तो कभी नहीं लाते ऐसे गिफ्ट्स. हर बार इस बात पर खुश मैं भी होती हूं पर परेशानी यह है कि अजय जो चीजें लाते हैं, अकसर मेरी पसंद की नहीं होतीं.

अब यह देखिए, यह जो ब्राउन कलर की साड़ी है, इस का बौर्डर देख रहे हैं कि कितना चौड़ा है. यह मुझे पसंद ही नहीं है और सब से बड़ी बात यह कि ब्राउन कलर ही नहीं पसंद है. अजीब सा लगता है यह पीला सूट. इतना पीला? मुझे खुद ही आंखों में चुभता है, औरों की क्या कहूं.

अजय को ब्राइट कलर पसंद है. कहते हैं कि तुम कितनी गोरी हो… तुम पर तो हर रंग अच्छा लगता है. मैं मन ही मन सोचती हूं कि हां, ठीक है, प्रिय, गोरी हूं तो कभी मेरे लिए मेरे फैवरिट ब्लू, व्हाइट, ब्लैक, रैड कलर भी तो लाओ. मुझ पर तो वे रंग भी बहुत अच्छे लगते हैं. और अभी तो अजय ने एक नया काम शुरू किया है. वह अपनेआप को इस आइडिया के लिए शाबाशी देते हैं, अब वह टूअर पर फ्री टाइम मिलते ही जब मेरे लिए शौपिंग के लिए किसी कपड़े की शौप पर जाते हैं, वीडिओ कौल करते हैं, कहते हैं कि मैं तुम्हें कपड़े दिखा रहा हूं तो तुम ही बताओ तुम्हें क्या चाहिए? मैं ने इस बात पर राहत की थोड़ी सांस ली पर यह भी आसान नहीं था.

पिछले टूअर पर अजय जब मेरे लिए रैडीमैड कुरती लेने गए, दुकानदार को ही फोन पकड़ा दिया कि इसे बता दो तुम्हें. मैं ने बताना शुरू किया कि कोई प्लेन ब्लू कलर की कुरती है?

”हां जी, मैडम, बिलकुल है.”

फिर वह कुरतियां दिखाने लगा. साइज समझने में थोड़ी दिक्कत उसे भी हुई और समझाने में मुझे भी. अजय को मैं ने व्हाट्सऐप पर मैसेज भी भेजे कि अभी न लें, साइज समझ नहीं आ रहा है, उन का रिप्लाई आया कि सही करवा लेना. एक कुरती लिया गया, फिर अजय हैदराबाद में वहां के फेमस पर्ल सैट लेने गए. मैं यहां दिल्ली में बैठीबैठी इस बात पर नर्वस थी कि क्या खरीदा जाएगा.

मैं बोली जा रही थी कि पहले वाले भी रखे हैं अभी तो. न खरीदो पर पत्नी प्रेम में पोरपोर डूबे हैं अजय. आप लोग मुझे पति के लाए उपहारों की कद्र न करने वाली पत्नी कतई न समझें. बस, जिस बात से घबराती हूं, वह है पसंद में फर्क.

रास्ते से अजय ने फोन किया, ”किस तरह का सैट लाऊं?”

”बहुत पतला सा, जिस में कोई बड़ा डिजाइन न हो, बस छोटेछोटे व्हाइट मोतियों की पतली सी माला और साथ में छोटी कान की बालियां, जो मैं कभी भी पहन पाऊं.’’

मैं ने काफी अच्छी तरह से अपनी पसंद बता दी थी. अगले दिन सुबह ही अजय को वापस आना था. हमारे दोनों बच्चों के लिए भी वे वहां से करांची बिस्कुट और वहां की मिठाई भी लाने वाले थे. अजय को दरअसल सब के लिए ही कुछ न कुछ लाने का शौक है. यह शौक शायद उन्हें अपने पिताजी से मिला है.

ससुरजी भी जब घर आते, कुछ न कुछ जरूर लाया करते. कभी किसी के लिए, तो कभी किसी के लिए कुछ लाने की उन की प्यारी सी आदत थी. सासूमां हमेशा इस बात को गर्व से बताया करतीं.

उन्होंने मुझे भी एक बार हिंट दिया, ”तुम्हारे ससुरजी को मेरे लिए कुछ लाने की आदत है. यह अलग बात है कि कभी मुझे उन की लाई चीजें कभी पसंद आती हैं, तो कभी नहीं, पर जिस प्यार से लाते हैं, बस उस प्यार की कद्र करते हुए मैं भी उन की लाई चीजें देखदेख कर थोड़ा चहकने की ऐक्टिंग कर लेती हूं जिस से वे खुश हो जाएं. तो बहू, जब भी अजय कुछ लाए, पसंद न भी हो तो खुश हो कर दिखाना,” हम दोनों इस बात पर बहुत देर तक हंसी थीं और इस बात पर जीभर कर हंसने के बाद हमारी बौंडिंग बहुत अच्छी हो गई थी.

सासूमां तो बहुत ही खुश हो गई थीं जब उन्हें समझ आया कि हम दोनों एक ही कश्ती में सवार हैं, कभी मूड में होतीं तो ससुरजी की अनुपस्थिति में अपनी अलमारी खोल कर दिखातीं, ”यह देखो, बहू, यह जितनी भी गुलाबी छटा बिखरी देख रही हो मेरे कपड़ों में, सब गुलाबी कपड़े तुम्हारे ससुरजी के लाए हुए हैं. उन्हें गुलाबी रंग बहुत पसंद हैं. वे जीवनभर मेरे लिए जो भी लाए, सब गुलाबी ही लाए. सहेलियां, रिश्तेदार गुलाबी रंग में ही मुझे देखदेख कर बोर हो गए पर तुम्हारे ससुरजी ने अपनी पसंद न छोड़ी. गुलाबी ढेर लगता रहा एक कोने में.”

मैं बहुत हंसी थी उस दिन, पर मैं ने प्यारी सासूमां की बात जरूर गांठ से बांध ली थी कि अजय जो भी लाते हैं, मैं ऐसी ऐक्टिंग करती हूं कि वे खुद को ही शाबाशी देने लगते हैं कि कितनी अच्छी चीज लाए हैं मेरे लिए. मुझे तो कुछ भी खरीदने की जरूरत ही नहीं पड़ती. ऐक्टिंग का अच्छा आइडिया दे गईं सासूमां. आज अगर वे होतीं तो अपनी चेली को देख खुश होतीं.

यह अलग बात है कि मैं अजय को यह नहीं समझा पाई कभी कि जब इतने नए कपड़े रखे रहते हैं तो मैं बीचबीच में अपनी पसंद का बहुत कुछ क्यों खरीदती रहती हूं. कुछ भी कहें लोग, पति होते तो हैं भोलेभाले और आसानी से आ जाते हैं बातों में. तभी तो आजतक जान नहीं पाए कि मैं खुद भी क्यों खरीदती रहती हूं बहुत कुछ.

दरअसल, मैं वह गलती भी नहीं करना चाहती जो मेरी अजीज दोस्त रीता ने की थी. उस ने शादी के बाद अपने पति की लाई हुई चीजें देख कर उन्हें साफसाफ समझा दिया कि दोनों की पसंद में काफी फर्क है. उसे उन का लाया कुछ पसंद नहीं आएगा तो पैसे बेकार जाएंगे. वह अपनी पसंद की ही चीजें खरीदना पसंद करती है और वे उस के लिए कुछ न लाया करें. वह जो भी खरीदेगी, आखिर होगा तो उन का ही पैसा, तो उन पति पत्नी में यहां बात ही खत्म हो गई.

जीवनभर का टंटा एक बात में साफ. पर मैं ने देखा है कि जब भी उस का फ्रैंड सर्किल उस से पूछता है कि भाई साहब ने क्या गिफ्ट दिया या क्या लाए, तो उस का चेहरा उतरता तो है, क्योंकि उन के पति ने भी उन की बात पर ध्यान दे कर फिर कभी न उन पर अपना पैसा वैस्ट किया, न ही समय. मतलब पति के लाए उपहारों में बात तो है.

खैर, रात को बच्चे खुश थे कि पापा उन के लिए जरूर कुछ लाएंगे. मैं हमेशा की तरह उन के आने पर तो खुश थी पर कुछ लाने पर तो डरी ही हुई थी, जब सुबह बच्चे अपनी चीजों में खुश थे.

अजय ने किसी फिल्मी हीरो की तरह पर्ल सैट का बौक्स मुझे देते हुए रोमांटिक नजरों से देखते हुए कहा, ”अभी पहन कर दिखाओ, रश्मि.”

मैं ने बौक्स खोला, खूब बड़ेबड़े मोतियों की माला, बड़ा सा हरा पेडैंट, कंधे तक लटकने वाली कान खी बालियां, खूब भारीभरकम सा सैट. शायद मेरे चेहरे का रंग उड़ा होगा जो अजय पूछ रहे थे, ”क्या हुआ? पसंद नहीं है?”

”अरे, नहींनहीं, यह तो बहुत ही जबरदस्त है,” मुझे सासूमां की बात सही समय पर याद आई तो मैं ने कहा.

”थैंक यू,’’ कहते हुए मैं मुसकरा दी. मैं ने बौक्स अलमारी में रखा, वे फ्रैश होने चले गए. मैं ने उन के सामने चाय रखते हुए टूअर की बातें पूछीं और साथ में लगे हाथ पूरी चालाकी से यह भी कहा, ”बहुत भारी सैट ले आए. कोई हलकाफुलका ले आते जो कभी भी पहन लेती. यह तो सिर्फ किसी फंक्शन में ही निकलेगा. कोई हलका सा नहीं था क्या?’’

”अरे, था न. बहुत वैराइटी थी. पर मैं ने सोचा कि हलका क्या लेना.’’

मन हुआ कहूं कि प्रिय, इतना मत सोचा करो, बस जो हिंट दूं, ले आया करो. पर चुप ही रही और सामने बैठी कल्पना में हलकेफुलके सैट पहने अपनेआप को देखती रही.

अजय महीने में 15 दिन टूअर पर ही रहते हैं. एक दिन औफिस से आ कर बोले, ”रश्मि, अगले हफ्ते चंडीगढ़ जाना है, बोलो, क्या चाहिए? क्या लाऊं तुम्हारे लिए?’’

मैं ने प्यार से उन के गले में बांहें डाल दीं,”कुछ नहीं, इतना कुछ तो रखा है. हर बार लाना जरूरी नहीं, डिअर.’’

”मेरी जान, पर मुझे शौक है लाने का.’’

मेरा दिल कह रहा था कि नहीं… जानते हैं न आप, क्यों कह रहा था?

इस त्योहार घर को दें रंगों से नया लुक

दीपावली का त्योहार आने वाला है- घरों में इस की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. इस त्योहार की तैयारियों में घर की साफसफाई और रंगरोगन सब से जरूरी माना जाता है. तो क्यों न हम इस दीपावली अपने घर को रंगों के सही तालमेल से नया लुक दें और अपने घर को बनाएं और भी खूबसूरत.

घर हो या कोई कमरा रंगों के सही तालमेल से उसे खूबसूरत बनाया जा सकता है. बस इस के लिए आवश्यकता है रंगों का सही चुनाव करने की. इस जानकारी के माध्यम से आप रंगों का सही तालमेल कर अपने घर को सुंदर और खूबसूरत बना सकती हैं.

सफेद या हलके रंग का चुनाव

अधिकतर लोग घर की दीवारों पर सफेद या हलके रंग का चयन करते हैं क्योंकि यह न सिर्फ क्लासी लुक देता है बल्कि हमेशा चलन में रहने वाला रंग भी है, साथ ही सफेद या हलके रंग की दीवारें उस पूरे कमरे को बड़ा और बेहतर दिखाती हैं और बेहतर रोशनी देती हैं जिस से देखने वाले का पूरा ध्यान कमरे या घर में मौजूद फर्नीचर अथवा सजावटी सामान पर केंद्रित करने में सहायक होता है.

यों चुनें रंगों को

कंट्रास्ट रंगों का चुनाव कर के भी आप अपने घर को कलरफुल बना सकते हैं. इस के लिए आप रंगों का कौंबिनेशन बनाए जैसे लाल के साथ पीला, हरे के साथ नारंगी या पीला आदि. कलर व्हील में 2 एकदम अलग छोरों पर मौजूद रंग, जैसे नीले के साथ नारंगी, लाल के साथ हरा या फिर पीले के साथ बैगनी रंग का चुनाव किया जा सकता है पर इस चुनाव में आप को एक बात का ध्यान रखना होगा कि यदि दीवारें पीले रंग में रंगी हों तो सजावट के लिए परदों का रंग, बैडशीट, कुशन या सोफे के कवर की कोई एक चीज बैगनी रखें.

यदि आप ने दीवार के लिए लाल रंग

चुना हो तो बैडशीट या कुशन हरे रंगे के चुने जा सकते हैं. इसी तरह नीले और नारंगी रंग का कंट्रास्ट कौंबिनेशन भी किया जा सकता है. इन रंगों के तालमेल से घर को सजाने पर घर जीवंत हो उठेगा.

एक ही कलर प्लेट के कई शेड्स का चुनाव

एक ही कमरे के अंदर एक ही रंग के अलगअलग शेड्स का चुनाव भी आप के घर को अलग और सुंदर लुक दे सकता है जैसे एक ही कमरे की जिस दीवार को उभारना हो उसे गहरे नीले और जिसे ज्यादा न उभारना हो उसे हलके नीले रंग से कलर करवाया जा सकता है. आजकल यह काफी चलन में है और एक दीवार पर उसी रंग से कंट्रास्ट वाल पेपर लगाने का भी ट्रैंड है. बीच में ब्रीदिंग स्पेस के लिए एकदम हलका नीला या सफेद रंग को जगह दी जा सकती है. इसी तरह अन्य रंगों के प्लेट के साथ भी किया जा सकता है.

कमरे के अनुसार हो रंग का चयन

रंगों के उचित उपयोग से घर को ऊर्जा से भरा हुआ, खुशहाल और आकर्षक बनाया जा सकता है इसलिए ध्यान रहे जिन कमरों में दिन का अधिकांश समय बिताया जाता है उन में हलके और शांतिपूर्ण रंगों का उपयोग किया जा सकता है साथ ही जिन कमरों का इस्तेमाल सिर्फ कुछ घंटों के लिए ही किया जाता है उन में चमकीले रंगों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

यदि किसी कमरे में बहुत अधिक धूप आती है, तो लाइट को कम करने के लिए गहरे रंग का उपयोग किया जा सकता है. दूसरी ओर जिस कमरे में धूप नहीं आती है उसे पीले जैसे जीवंत रंग से चमकाना चाहिए या फिर सफेद रंग भी कर सकते हैं इसलिए अलगअलग कमरों में अलगअलग रंगों का प्रयोग करना चाहिए. जैसे घर में यदि कोई कमरा- मैडिटेशन आदि के लिए हो तो वहां सफेद या किसी हलके रंग का चुनाव उपयुक्त होगा क्योंकि यह रंग शांति देता है, साथ ही किचन, बाथरूम आदि में भी सफेद रंग, पीच किसी भी हलके रंग का चुनाव कर सकते हैं ताकि पर्याप्त रोशनी आ सके.

रोशनी पर भी दें ध्यान

घर की सजावट के लिए रंगों का चुनाव करते समय इस बात को भी ध्यान में रखें कि उस जगह रोशनी कैसी है कम या ज्यादा, उस का रंग क्या है ताकि रंग सही तरीके से उठ कर दिखे. इस के लिए रोशनी का सही विभाजन होना आवश्यक है ताकि लाइट सही ऐंगल से और सही मात्रा में दीवारों पर पड़े और रंग उठ कर दिख सकें क्योंकि रंगों पर रोशनी का भी अलगअलग तरह से प्रभाव पड़ता है.

एक ही रंग सुबह, दोपहर और शाम की रोशनी में अलगअलग नजर आता है और जब उस पर किसी खास ऐंगल से लाइट पड़ती है तो उस रंग का प्रभाव बिलकुल अलग नजर आ सकता है. अत: रंगों का चुनाव करते समय इस बात पर भी ध्यान दें कि रंग का वही शेड चुनें, जो आप को हर रोशनी में अच्छा लगे.

बहुत सारे रंगों का न हो इस्तेमाल

एक ही कमरे में यदि हर चीज चमकीली हो तो आंखें चौंधिया जाती हैं. इसी तरह यदि एक ही कमरे में आप ढेर सारे रंगों को जगह देते हैं तो कमरा सुंदर लगने की जगह अजीब भी नजर आ सकता है. अत: यदि आप घर को अलगअलग रंगों से सजाना चाहते हैं तो अलगअलग कमरों में इस का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन एक ही कमरे में बहुत सारे रंगों के इस्तेमाल से बचना चाहिए ताकि इस की सुंदरता या खूबसूरती बनी रहे.

सजावट से दें घर को नई ऊर्जा

यदि आप घर के किसी कमरे को नई ऊर्जा से भरना चाहते हैं तो आप उस की ऐक्सैसरीज या सजावट में रंगों को शामिल कर सकते हैं जैसे कुशंस, परदे या रग्स इस के अलावा ताजा फूल, किताबें और लैंप्स भी आप के कमरे को तुरंत सकारात्मक ऊर्जा से भर देंगे. यदि आप रंगों के साथ कोई नया प्रयोग करना चाहते हैं तो डाइनिंगरूम से इस की शुरुआत करना सब से अच्छा रहेगा ताकि खाना खाते समय शांति का अनुभव हो.

खाने की टेबल के ऊपर एक लैंप लगाए ताकि टेबल की खूबसूरती और बढ़ा जाए. टेबल के चारों और एक सी लाइट रहे, लेकिन टेबल के ऊपर लाइट लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि लाइट सीधी आंखों पर न आए और बहुत ज्यादा ब्राइट न हो ताकि आप को खाना खाने में किसी तरह की परेशानी न हो.

रंग आप के मनोविज्ञान पर भी असर डालते हैं और उन के सही इस्तेमाल से मन शांत रहता है. फिर जब बात मन के शांत रहने की हो तो बेशक घर के ज्यादा शांति कहीं नहीं मिलती इसलिए घर के इंटीरियर के लिए रंगों का सही चुनाव बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हम यहां ज्यादा समय तक रहते हैं तब हमारे ऊपर इन रंगों का सही, सकारात्मक और खुशनुमा प्रभाव पड़ता है और हम खुश रहते हैं.

फैस्टिव लुक के लिए परफैक्ट स्किन केयर

फैस्टिव सीजन के शुरू होते ही घर की महिलाएं घर को सजाने में लग जाती हैं. इस कमरे की सफाई, उस कमरे की सफाई. पंखों की सफाई, किचन की सफाई. बस इसी में उन का सारा समय निकल जाता है. अगर कुछ समय बचता भी है तो उसे अपने घर वालों की खातिरदारी के नाम कर देती हैं. लेकिन इस बीच वे अपनेआप को कहीं पीछे छोड़ देती हैं. वे यह भूल जाती हैं कि उन्हें भी केयर की जरूरत है. अब इतने कम समय में वे फैस्टिव सीजन में कैसे अपने चेहरे को निखारें, कैसे चांद सी रोशन त्वचा पाएं. यह उन की एक बहुत बड़ी समस्या होती है क्योंकि वे भी चाहती हैं कि वे भी फैस्टिव सीजन में स्पैशल दिखें. उन की भी स्किन फ्लालैस दिखे.

हम ऐसी ही महिलाओं के लिए कुछ ऐसे स्मार्ट प्रौडक्ट्स ले कर आए हैं जो चंद मिनटों में उन्हें चांद सा चमकता हुआ चेहरा और संगमरमर सी चमकती त्वचा देते हैं. ये प्रौडक्ट्स क्या हैं, कैसे काम करते हैं, इन की कीमत क्या है, इन्हें कहां से खरीदा जा सकता है, आइए जानते हैं:

  1. एलईडी फेस मास्क

नीम, प्लम, बीटरूट, हलदीचंदन फेस मास्क अब ओल्ड फैशन हो चुके हैं. अगर आप इंस्टैंट ग्लो चाहती हैं तो एलईडी फेस मास्क आप के लिए एक बेहतरीन मास्क है. यह न सिर्फ आप के फेस को इंस्टैंट ग्लो देगा बल्कि यह आप फेस की पिगमैंटेशन की प्रौब्लम से भी आप को छुटकारा दिलाएगा. यह आप के फेस की डीप क्लीनिंग भी करेगा.

अगर आप एक अच्छे एलईडी फेस मास्क की तलाश में हैं तो आप प्रोटच का थ्री इन वन एलईडी फेस मास्क यूज कर सकती हैं. इस का मार्केट प्राइस करीब 2 हजार रुपए है. इसे आप हफ्ते में 2-3 बार कर सकती हैं. यह अमेजन और मिंतरा पर आसानी से निल जाएगा.

2. नोज स्ट्रिप्स

अगर आप की नोज पर ब्लैकहैड्स हैं और आप के पास पार्लर जाने का समय बिलकुल नहीं है तो घबराएं नहीं. नोज स्ट्रिप है न. नोज स्ट्रिप 5 मिनट में आप की नोज से सारे ब्लैकहैड्स तुरंत रिमूव कर देगी और आप की नोज को बना देगी विदाउट ब्लैकहैड्स. ये स्मार्ट स्ट्रिप्स पौकेट फ्रैंडली हैं. मात्र क्व176 में आप क्लीन नोज पा सकती हैं.

अमेजन, मिंतरा, फ्लिपकार्ट, मीशो, नायिका, अजियो से खरीद सकती हैं. ये औफलाइन भी अवेलेबल हैं.

3. पिंपल्स पैच

पिंपल्स का नाम सुनते ही इरिटेशन सी होने लगती है. यह इरिटेशन तब और बढ़ जाती है जब फैस्टिवल सीजन चल रहा होता है. वह महिला जिसे घर की डैकोरेशन और गिफ्ट्स के बीच अपने लिए वक्त नहीं मिला वह पिंपल्स से इंस्टैंट छुटकारा पाने के लिए पिंपल पैच का इस्तेमाल कर सकती है.

यह हाइड्रो कोलाइड से बना होता है. ऐंटीऐक्ने कंपोनैंट्स जैसे सैलीसिलिक ऐसिड और बैंजोइल पिरौक्साइड भी होता है, जिस की जैल जैसी ड्रैसिंग पिंपल्स पर लगाई जाती है. पिंपल्स पर इस पैच को लगाने पर वह उन्हें सुखा देता है और धीरे से उसे दबा कर फोड़ देता है. इस से वह कुछ ही घंटों में गायब हो जाता है.

ये पिंपल्स को फ्लैट दिखने में हैल्प करते हैं. यह पारदर्शी होते हैं. ये पिंपल्स के संक्रमण को बढ़ने से रोकते हैं. ध्यान रहे दिन में लगाए जाने वाले पिंपल पैच अलग होते हैं और रात के अलग. कीमत करीब 2 हजार रुपये है और अमेजन से खरीद सकती हैं.

4. ऐक्ने स्पौट कलर करेक्टर

ऐक्ने से भरा फेस किसी को नहीं भाता. यह मेकअप से भी पूरी तरह नहीं छिपता है. ऐसे में कम समय में अपनेआप को ब्यूटीफुल दिखाना किसी मैजिक से कम नहीं है. ऐसे ही एक मैजिक या कहें स्मार्ट प्रौडक्ट का नाम है ऐक्ने स्पौट करैक्टर जो आप के फेस के ऐक्ने छिपाने का काम करता है.

इसे इस्तेमाल करने के लिए आप फेस पर प्राइमर लगाने के बाद ग्रीन कलर करैक्टर का यूज करें. ग्रीन कलर करैक्टर को लगाने के लिए आप सब से छोटे साइज के कंसीलर ब्रश का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस की मार्केट कीमत करीब क्व179 से स्टार्ट है और किसी भी औनलाइन साइट से खरीद सकती हैं.

5. ऐंटीरिंकल आई सीरम पैच

औफिस और घर दोनों का काम करतेकरते महिलाओं की आंखों के नीचे काले घेरे आ जाते हैं, जिन्हें हम डार्क सर्कल्स कहते हैं. लेकिन ऐंटीरिंकल आई सीरम पैच का इस्तेमाल कर के इन से छुटकारा पाया जा सकता है.

इस की कीमत क्व250 से शुरू होती है. औनलाइन और औफलाइन दोनों जगह अवेलेबल है.

6. आईब्रो रिमूवर ट्रिमर

फैस्टिव सीजन में जब पार्लर जाने का समय न मिले तो घबराएं नहीं बस अपने घर ले आएं आईब्रो रिमूवर ट्रिमर. यह आप को 5 मिनट में पार्लर की तरह आईब्रो और अपरलिप्स की फिनिशिंग देगा. अत: आईब्रो रिमूवर ट्रिमर का इस्तेमाल कर के अपनी आईब्रोज की बिगड़ी शेप को सुंदर और अट्रैक्टिव लुक दे सकती हैं.

7. बाथ ग्लव्ज

फैस्टिव सीजन है लेकिन घर के कामकाज और औफिस की भागदौड़ के बीच आप अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाईं.

आप का पैडीक्योर मैनीक्योर सब रहता है. अब आप को टैंशन हो रही है कि आप इतने कम समय में कैसे फ्लालैस स्किन पाएंगी. इस प्रौब्लम का समाधान है बाथ ग्लव्ज.

इस ग्लव्ज की हैल्प से आप अच्छे से अपनी बौडी को स्क्रब कर सकती हैं. यह आप की बौडी को ग्लोइंग और सौफ्ट बनाता है.

इस के यूज से टैनिंग भी कम होती है. कीमत क्वालिटी पर डिपैंड करती है. शुरुआती कीमत क्व499 है.

8. फुट मास्क

जितनी केयर फेस की की जाती है अगर उतनी ही केयर पैरों की भी हो तो वे भी चमक उठेंगे. लेकिन फैस्टिव सीजन में यह आसान नहीं है. अब घर बैठे भी पैरों को चमकाया जा सकता है क्योंकि अब फुट मास्क आ गया है. इसे पैरों में पहन कर आप पैरों को ब्यूटीफुल बना सकती हैं. इतना ही नहीं यह आप के पैरों को मौइस्चराइज भी करेगा. कीमत मात्र क्व115 है. आप औनलाइन और औफलाइन दोनों ही तरीके से खरीद सकती हैं.

नीड़: सिद्धेश्वरीजी क्या समझ पाई परिवार और घर की अहमियत

सिद्धेश्वरीजी बड़बड़ाए जा रही थीं. जितनी तेजी से वे माथे पर हाथ फेर रही थीं उतनी ही तेजी से जबान भी चला रही थीं.

‘नहीं, अब एक क्षण भी इस घर में नहीं रहूंगी. इस घर का पानी तक नहीं पियूंगी. हद होती है किसी बात की. दो टके के माली की भी इतनी हिम्मत कि हम से मुंहजोरी करे. समझ क्या रखा है. अब हम लौट कर इस देहरी पर कभी आएंगे भी नहीं.’

रमानंदजी वहीं आरामकुरसी पर बैठे उन का बड़बड़ाना सुन रहे थे. आखिरकार वे बोले, ‘‘एक तो समस्या जैसी कोई बात नहीं, उस पर तुम्हारा यह बरताव, कैसे काम चलेगा? बोलो? कुल इतनी सी ही बात है न, कि हरिया माली ने तुम्हें गुलाब का फूल तोड़ने नहीं दिया. गेंदे या मोतिया का फूल तोड़ लेतीं. ये छोटीछोटी बातें हैं. तुम्हें इन सब के साथ समझौता करना चाहिए.’’

सिद्धेश्वरीजी पति को एकटक निहार रही थीं. मन उलझा हुआ था. जो बातें उन के लिए बहुत बड़ी होती हैं, रमानंदजी के पास जा कर छोटी क्यों हो जाती हैं?

क्रोध से उबलते हुए बोलीं, ‘‘एक गुलाब से क्या जाता. याद है, लखनऊ में कितना बड़ा बगीचा था हम लोगों का. सुबह सैर से लौट कर हरसिंगार और चमेली के फूल चुन कर हम डोलची में सजा कर रख लिया करते थे. पर यह माली, इस तरह अकड़ रहा था जैसे हम ने कभी फूल ही नहीं देखे हों.’’

बेचारा हरिया माली कोने में खड़ा गिड़गिड़ा रहा था. घर के दूसरे लोग भी डरेसहमे खड़े थे. अपनी तरफ से सभी ने मनाने की कोशिश की किंतु व्यर्थ. सिद्धेश्वरीजी टस से मस नहीं हुईं.

‘‘जो कह दिया सो कह दिया. मेरी बात पत्थर की लकीर है. अब इसे कोई भी नहीं मिटा सकता. समझ गए न? यह सिद्धेश्वरी टूट जाएगी पर झुकेगी नहीं.’’

घर वाले उन की धमकियों के आदी थे. उन की बातचीत का तरीका ही ऐसा है, बातबात पर कसम खा लेना, बिना बात के ही ताल ठोंकना आदि. पहले ये बातें उन के अपने घर में होती थीं. अपना घर, यानी सरकार द्वारा आवंटित बंगला. सिद्धेश्वरीजी गरजतीं, बरसतीं फिर सामान्य हो जातीं. घर छोड़ कर जाने की नौबत कभी नहीं आई. हर बात में दखल रखना वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझती थीं. सो, वे दूसरों को घर से निकल जाने को अकसर कहतीं. पर स्वयं पर यह बात कभी लागू नहीं होने देती थीं. आखिर वे घर की मालकिन जो थीं.

आज परिस्थिति दूसरी थी. यह घर, उन के बेटे समीर का था. बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत सीनियर एग्जीक्यूटिव. राजधानी में अत्यधिक, सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा हुआ टैरेस वाला फ्लैट. बेटे के अत्यधिक आज्ञाकारी होने के बावजूद वे उस के घर को कभी अपना नहीं समझ पाईं क्योंकि वे उन महिलाओं में से थीं जो बेटे का विवाह होने के साथ ही उसे पराया समझने लगती हैं. अपनी हमउम्र औरतों के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए वे जब भी समीर और शालिनी से बात करतीं तो ताने या उलटवांसी के रूप में. बातबात में दोहों और मुहावरों का प्रयोग, भले ही मूलरूप के बजाय अपभ्रंश के रूप में, सिद्धेश्वरीजी करती अवश्य थीं, क्योंकि उन का मानना था कि अतिशय लाड़प्यार जतलाने से बहूबेटे का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंच जाता है.

विवाह से पहले समीर उन की आंखों का तारा था. उस से उन का पहला मनमुटाव तब हुआ जब उस ने विजातीय शालिनी से विवाह करने की अनुमति मांगी थी. रमानंदजी सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढ़ते थे. बेटे की खुशी को ध्यान में रख कर उन्होंने तुरंत हामी भर दी थी. पत्नी को भी समझाया था, ‘शालिनी सुंदर है, सुशिक्षित है, अच्छे खानदान से है.’ पर सिद्धेश्वरीजी अड़ी रहीं. इस के पीछे उन्हें अपने भोलेभाले बेटे का दिमाग कम, एमबीए शालिनी की सोच अधिक नजर आई थी. बेटे के सीनियर एग्जीक्यूटिव होने के बावजूद उन्हें उस के लिए डाक्टर या इंजीनियर लड़की के बजाय मात्र इंटर पास साधारण सी कन्या की तलाश थी, जो हर वक्त उन की सेवा में तत्पर रहे और घर की परंपरा को भी आगे कायम रखे.

रमानंदजी लाख समझाते रहे कि ब्याह समीर को करना है. अगर उस ने अपनी पसंद से शालिनी को चुना है तो हम क्यों बुरा मानें. दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं, पहचानते हैं और सब से बड़ी बात एकदूसरे को समझते भी हैं. सो, वे अच्छी तरह से निभा लेंगे. पर सिद्धेश्वरीजी के मन में बेटे का अपनी मनमरजी से विवाह करने का कांटा हमेशा चुभता रहा. उन्हें ऐसा लगता जैसे शालिनी के साथ विवाह कर के समीर ने बहुत बड़ा गुनाह किया है. खैर, किसी तरह से निभ रही थी और अच्छी ही निभ रही थी. रमानंदजी सिंचाई विभाग में अधिशासी अभियंता थे. हर 3 साल में उन का तबादला होता रहता था. इसी बहाने वे भी उत्तर प्रदेश के कई छोटेबड़े शहर घूमी थीं. बड़ेबड़े बंगलों का सुख भी खूब लूटा. नौकर, चपरासी सलाम ठोंकते. समीर और शालिनी दिल्ली में रहते थे. कभीकभार ही आनाजाना हो पाता. जितने दिन रहते, हंसतेखिलखिलाते समय निकल जाता था. स्वाति और अनिरुद्ध के जन्म के बाद तो जीवन में नए रंग भरने लगे थे. उन की धमाचौकडि़यों और खिलखिलाहटों में दिनरात कैसे बीत जाते, पता ही नहीं चलता था.

देखते ही देखते रमानंदजी की रिटायरमैंट की उम्र भी आ पहुंची. लखनऊ में रिटायरमैंट से पहले उन्होंने अनूपशहर चल कर रहने का प्रस्ताव सिद्धेश्वरीजी के सामने रखा तो वे नाराज हो गईं.

‘हम नहीं रहेंगे वहां की घिचपिच में.’

‘तो फिर?’

‘इसीलिए हम हमेशा आप से कहते थे. एक छोटा सा मकान, बुढ़ापे के लिए बनवा लीजिए पर आप ने हमेशा मेरी बात को हवा में उछाल दिया.’

रमानंदजी मायूस हो गए थे. ‘सिद्धेश्वरी, तुम तो जानती हो, सरकारी नौकरी में कितना पैसा हाथ में मिलता है. घूस मैं ने कभी ली नहीं. मुट्ठीभर तनख्वाह में से क्या खाता, क्या बचाता? बाबूजी की बचपन में ही मृत्यु हो गई. भाईबहनों के दायित्व निभाए. तब तक समीर और नेहा बड़े हो गए थे. एक ही समय में दोनों बच्चों को इंजीनियरिंग और एमबीए की डिगरी दिलवाना, आसान तो नहीं था. उस के बाद जो बचा, वह शादियों में खर्च हो गया. यह अच्छी बात है कि दोनों बच्चे सुखी हैं.’

रमानंदजी भावुक हो उठे थे. आंखों की कोर भीग गई. स्वर आर्द्र हो उठा था, रिटायरमैंट के बाद रहने की समस्या जस की तस बनी रही. इस समस्या का निवारण कैसे होता?

फिलहाल, दौड़भाग कर रमानंदजी ने सरकारी बंगले में ही 6 महीने रहने की अनुमति हासिल कर ली. कुछ दिनों के लिए तो समस्या सुलझ गई थी लेकिन उस के बाद मार्केट रेंट पर बंगले में रहना, उन के लिए मुश्किल हो गया था. सो, लखनऊ के गोमती नगर में 2 कमरों का मकान उन्होंने किराए पर ले लिया था. जब भी मौका मिलता, समीर आ कर मिल जाता. शालिनी नहीं आ पाती थी. बच्चे बड़े हो रहे थे. स्वाति ने इंटर पास कर के डाक्टरी में दाखिला ले लिया था. अनिरुद्ध ने 10वीं में प्रवेश लिया था. बच्चों के बड़े होने के साथसाथ दादादादी की भी उम्र हो गई थी.

बुढ़ापे में कई तरह की परेशानियां बढ़ जाती हैं, यह सोच कर इस बार जब समीर और शालिनी लखनऊ आए तो, आग्रहसहित उन्हें अपने साथ रहने के लिए लिवा ले गए थे. सिद्धेश्वरीजी ने इस बार भी नानुकुर तो बहुतेरी की थी, पर समीर जिद पर अड़ गया था. ‘‘बुढ़ापे में आप दोनों का अकेले रहना ठीक नहीं है. और बारबार हमारा आना भी उतनी दूर से संभव नहीं है. बच्चों की पढ़ाई का नुकसान अलग से होता है.’’ सिद्धेश्वरीजी को मन मार कर हामी भरनी पड़ी. अपनी गृहस्थी तीनपांच कर यहां आ तो गई थीं पर बेटेबहू की गृहस्थी में तारतम्य बैठाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था उन के लिए. बेटाबहू उन की सुविधा का पूरा ध्यान रखते थे. उन्हें शिकायत का मौका नहीं देते थे. फिर भी, जब मौका मिलता, सिद्धेश्वरीजी रमानंदजी को उलाहना देने से बाज नहीं आती थीं, ‘अपना मकान होता तो बहूबेटे के साथ रहने की समस्या तो नहीं आती. अपनी सुविधा से घर बनवाते और रहते. यहां पड़े हैं दूसरों की गृहस्थी में.’

‘दूसरों की गृहस्थी में नहीं, अपने बहूबेटे के साथ रह रहे हैं सिद्धेश्वरी,’ वे हंस कर कहते.

‘तुम नहीं समझोगे,’ सिद्धेश्वरीजी टेढ़ा सा मुंह बिचका कर उठ खड़ी होतीं.

उन्हें बातबात में हस्तक्षेप करने की आदत थी. मसलन, स्वाति कोएड में क्यों पढ़ती है? स्कूटर चला कर कालेज अकेली क्यों जाती है? शाम ढलते ही घर क्यों नहीं लौट आती? देर रात तक लड़केलड़कियों के साथ बैठ कर कंप्यूटर पर काम क्यों करती है? लड़कियों के साथ तो फिर भी ठीक है, लड़कों के साथ क्यों बैठी रहती है? उन्होंने कहीं सुना था कि कंप्यूटर अच्छी चीज नहीं है. वे अनिरुद्ध को उन के बीच जा कर बैठने के लिए कहतीं कि कम से कम पता तो चले वहां हो क्या रहा है. तो अनिरुद्ध बिदक जाता. उधर, स्वाति को भी बुरा लगता. ऐसा लगता जैसे दादी उस के ऊपर पहरा बिठा रही हों. इतना ही नहीं, वह जींसटौप क्यों पहनती है? साड़ी क्यों नहीं पहनती? रसोई में काम क्यों नहीं करती आदि?

धीरेधीरे स्वाति ने उन से बात करना कम कर दिया. वह उन से दूर ही छिटकी रहती. वे कुछ कहतीं तो उन की बातें एक कान से सुनती, दूसरे कान से निकाल देती. पोती के बाद उन का विरोध अपनी बहू से भी था. उसे सीधेसीधे टोकने के बजाय रमानंदजी से कहतीं, ‘बहुत सिर चढ़ा रखा है बहू ने स्वाति को. मुझे तो डर है, कहीं उस की वजह से इन दोनों की नाक न कट जाए.’ रमानंदजी चुपचाप पीतल के शोपीस चमकाते रहते. सिद्धेश्वरीजी का भाषण निरंतर जारी रहता, ‘बहू खुद भी तो सारा दिन घर से बाहर रहती है. तभी तो, न घर संभल पा रहा है न बच्चे. कहीं नौकरों के भरोसे भी गृहस्थी चलती है?’

‘बहू की नौकरी ही ऐसी है. दिन में 2 घंटे उसे घर से बाहर निकलना ही पड़ता है. अब काम चाहे 2 घंटे का हो या 4 घंटे का, आवाजाही में भी समय निकलता है.’

‘जरूरत क्या है नौकरी करने की? समीर अच्छा कमाता ही है.’

‘अब इस उम्र में बहू मनकों की माला तो फेरने से रही. पढ़ीलिखी है. अपनी प्रतिभा सिद्ध करने का अवसर मिलता है तो क्यों न करे. अच्छा पैसा कमाती है तो समीर को भी सहारा मिलता है. यह तो हमारे लिए गौरव की बात है.’ इधर, रमानंदजी ने अपनेआप को सब के अनुसार ढाल लिया था. मजे से पोतापोती के साथ बैठ कर कार्टून फिल्में देखते, उन के लिए पिज्जा तैयार कर देते. बच्चों के साथ बैठ कर पौप म्यूजिक सुनते. पासपड़ोस के लोगों से भी उन की अच्छी दोस्ती हो गई थी. जब भी मन करता, उन के साथ ताश या शतरंज की बाजी खेल लेते थे.

बहू के साथ भी उन की खूब पटती थी. रमानंदजी के आने से वह पूरी तरह निश्चिंत हो गई थी. अनिरुद्ध को नियमित रूप से भौतिकी और रसायनशास्त्र रमानंदजी ही पढ़ाते थे. उस की प्रोजैक्ट रिपोर्ट भी उन्होंने ही तैयार करवाई थी. बच्चों को छोड़ कर शालिनी पति के साथ एकाध दिन दौरे पर भी चली जाती थी. रमानंदजी को तो कोई असुविधा नहीं होती थी पर सिद्धेश्वरीजी जलभुन जाती थीं. झल्ला कर कहतीं, ‘बहू को आप ने बहुत छूट दे रखी है.’

रमानंदजी चुप रहते, तो वे और चिढ़ जातीं, ‘अपने दिन याद हैं? अम्मा जब गांव से आती थीं तो हम दोनों का घूमनाफिरना तो दूर, साड़ी का पल्ला भी जरा सा सिर से सरकता तो वे रूठ जाती थीं.’

‘अपने दिन नहीं भूला हूं, तभी तो बेटेबहू का मन समझता हूं.’

‘क्या समझते हो?’

‘यही कि अभी इन के घूमनेफिरने के दिन हैं. घूम लें. और फिर बहू हमारे लिए पूरी व्यवस्था कर के जाती है. फिर क्या परेशानी है?’

‘परेशानी तुम्हें नहीं, मुझे है. बुढ़ापे में घर संभालना पड़ता है.’

‘जरा सोचो, बहू तुम्हारे पर विश्वास करती है, इसीलिए तो तुम्हारे भरोसे घर छोड़ कर जाती है.’

सिद्धेश्वरीजी को कोई जवाब नहीं सूझता था. उन्हें लगता, पति समेत सभी उन के खिलाफ हैं.

दरअसल, वे दिल की इतनी बुरी नहीं हैं. बस, अपने वर्चस्व को हमेशा बरकरार रखने की, अपना महत्त्व जतलाने की आदत से मजबूर थीं. उन की मरजी के बिना घर का पत्ता तक नहीं हिलता था. यहां तक कि रमानंदजी ने भी कभी उन से तर्क नहीं किया था. बेटे के यहां आ कर उन्होंने देखा, सभी अपनीअपनी दुनिया में मगन हैं, तो उन्हें थोड़ी सी कोफ्त हुई. उन्हें ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे अब एक अस्तित्वविहीन सा जीवन जी रही हों. पिछले हफ्ते से एक और बात ने उन्हें परेशान कर रखा था. स्वाति को आजकल मार्शल आर्ट सीखने की धुन सवार हो गई थी. उन्होंने रोकने की कोशिश की तो वह उग्र स्वर में बोली, ‘बड़ी मां, आज के जमाने में अपनी सुरक्षा के लिए ये सब जरूरी है. सभी सीख रहे हैं.’

पोती की ढिठाई देख कर सिद्धेश्वरीजी सातवें आसमान से सीधी धरातल पर आ गिरीं. उस से भी अधिक गुस्सा आया अपने बहूबेटे पर, जो मूकदर्शक बने सारा तमाशा देख रहे थे. बेटी को एक बार टोका तक नहीं. और अब, इस हरिया माली की, गुलाब का फूल न तोड़ने की हिदायत ने आग में घी डालने जैसा काम किया था. एक बात का गुस्सा हमेशा दूसरी बात पर ही उतरता है, इसीलिए उन्होंने घर छोड़ कर जाने की घोषणा कर दी थी.

‘‘मां, हम बाहर जा रहे हैं. कुछ मंगाना तो नहीं है?’’

सिद्धेश्वरीजी मुंह फुला कर बोलीं, ‘‘इन्हें क्या मंगाना होगा? इन के लिए पान का जुगाड़ तो माली, नौकर यहां तक कि ड्राइवर भी कर देते हैं. हमें ही साबुन, क्रीम और तेल मंगाना था. पर कहें किस से? समीर भी आजकल दौरे पर रहता है. पिछले महीने जब आया था तो सब ले कर दे गया था. जिस ब्रैंड की क्रीम, पाउडर हम इस्तेमाल करते हैं वही ला देता है.’’

‘‘मां, हम आप की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखते हैं. फिर भी कुछ खास चाहिए तो बता क्यों नहीं देतीं? समीर से कहने की क्या जरूरत है?’’

बहू की आवाज में नाराजगी का पुट था. पैर पटकती वह घर से बाहर निकली, तो रमानंदजी का सारा आक्रोश, सारी झल्लाहट पत्नी पर उतरी, ‘‘सुन लिया जवाब. मिल गई संतुष्टि. कितनी बार कहा है, जहां रहो वहीं की बन कर रहो.  पिछली बार जब नेहा के पास मुंबई गई थीं तब भी कम तमाशे नहीं किए थे तुम ने. बेचारी नेहा, तुम्हारे और जमाई बाबू के बीच घुन की तरह पिस कर रह गई थी. हमेशा कोई न कोई ऐसा कांड जरूर करती हो कि वातावरण में सड़ी मच्छी सी गंध आने लगती है.’’ पछता तो सिद्धेश्वरीजी खुद भी रही थीं, सोच रही थीं, बहू के साथ बाजार जा कर कुछ खरीद लाएंगी. अगले हफ्ते मेरठ में उन के भतीजे का ब्याह है. कुछ ब्लाउज सिलवाने थे. जातीं तो बिंदी, चूडि़यां और पर्स भी ले आतीं. बहू बाजार घुमाने की शौकीन है. हमेशा उन्हें साथ ले जाती है. वापसी में गंगू चाट वाले के गोलगप्पे और चाटपापड़ी भी जरूर खिलाती है.

रमानंदजी को तो ऐसा कोई शौक है नहीं. लेकिन अब तो सब उलटापुलटा हो गया. क्यों उन्होंने बहू का मूड उखाड़ दिया? न जाने किस घड़ी में उन की बुद्धि भ्रष्ट हो गई और घर छोड़ने की बात कह दी? सब से बड़ी बात, इस घर से निकल कर जाएंगी कहां? लखनऊ तो कब का छोड़ चुकीं. आज तक गांव में एक हफ्ते से ज्यादा कभी नहीं रहीं. फिर, पूरा जीवन कैसे काटेंगी? वह भी इस बुढ़ापे में, जब शरीर भी साथ नहीं देता है. शुरू से ही नौकरों से काम करवाने की आदी रही हैं. बेटेबहू के घर आ कर तो और भी हड्डियों में जंग लग गया है.

सभी चुपचाप थे. शालिनी रसोई में बाई के साथ मिल कर रात के खाने की तैयारी कर रही थी. और स्वाति, जिस की वजह से यह सारा झमेला हुआ, मजे से लैपटौप पर काम कर रही थी. सिद्धेश्वरीजी पति की तरफ मुखातिब हुईं और अपने गुस्से को जज्ब करते हुए बोलीं, ‘‘चलो, तुम भी सामान बांध लो.’’

‘‘किसलिए?’’ रमानंदजी सहज भाव से बोले. उन की नजरें अखबार की सुर्खियों पर अटकी थीं.

‘‘हम, आज शाम की गाड़ी से ही चले जाएंगे.’’

रमानंदजी ने पेपर मोड़ कर एक तरफ रखा और बोले, ‘‘तुम जा रही हो, मैं थोड़े ही जा रहा हूं.’’

‘‘मतलब, तुम नहीं जाओगे?’’

‘‘नहीं,’’ एकदम साफ और दोटूक स्वर में रमानंदजी ने कहा, तो सिद्धेश्वरीजी बुरी तरह चौंक गईं. उन्हें पति से ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी. मन ही मन उन का आत्मबल गिरने लगा. गांव जा कर, बंद घर को खोलना, साफसफाई करना, चूल्हा सुलगाना, राशन भरना उन्हें चांद पर जाने और एवरेस्ट पर चढ़ने से अधिक कठिन और जोखिम भरा लग रहा था. पर क्या करतीं, बात तो मुंह से फिसल ही गई थी. पति के हृदयपरिवर्तन का उन्हें जरा भी आभास होता तो यों क्षणिक आवेश में घर छोड़ने का निर्णय कभी न लेतीं. हिम्मत कर के वे उठीं और अलमारी में से अपने कपड़े निकाल कर बैग में रख लिए. ड्राइवर को गाड़ी लाने का हुक्म दे दिया. कार स्टार्ट होने ही वाली थी कि स्वाति बाहर निकल आई. ड्राइवर से उतरने को कह कर वह स्वयं ड्राइविंग सीट पर बैठ गई और सधे हाथों से स्टीयरिंग थाम कर कार स्टार्ट कर दी. सिद्धेश्वरीजी एक बार फिर जलभुन गईं. औरतों का ड्राइविंग करना उन्हें कदापि पसंद नहीं था. बेटा या पोता, कार ड्राइव करे तो उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी. वे यह मान कर चलती थीं कि ‘लड़कियों को लड़कियों की तरह ही रहना चाहिए. यही उन्हें शोभा देता है.’

इसी उधेड़बुन में रास्ता कट गया. कार स्टेशन पर आ कर रुकी तो सिद्धेश्वरीजी उतर गईं. तुरतफुरत अपना बैग उठाया और सड़क पार करने लगीं. उतावलेपन में पोती को साथ लेने का धैर्य भी उन में नहीं रहा. तभी अचानक एक कार…पीछे से किसी ने उन का हाथ पकड़ कर खींच लिया. और वे एकदम से दूर जा गिरीं. फिर उन्हीं हाथों ने सिद्धेश्वरीजी को सहारा दे कर कार में बिठाया. ऐसा लगा जैसे मृत्यु उन से ठीक सूत भर के फासले से छू कर निकल गई हो. यह सब कुछ दो पल में ही हो गया था. उन का हाथ थाम कर खड़ा करने और कार में बिठाने वाले हाथ स्वाति के थे. नीम बेहोशी की हालत से उबरीं तो देखा, वे अस्पताल के बिस्तर पर थीं. रमानंदजी उन के सिरहाने बैठे थे. समीर और शालिनी डाक्टरों से विचारविमर्श कर रहे थे. और स्वाति, दारोगा को रिपोर्ट लिखवा रही थी. साथ ही वह इनोवा कार वाले लड़के को बुरी तरह दुत्कारती भी जा रही थी. ‘‘दारोगा साहब, इस सिरफिरे बिगड़ैल लड़के को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइएगा. कुछ दिन हवालात में रहेगा तो एहसास होगा कि कार सड़क पर चलाने के लिए होती है, किसी की जान लेने के लिए नहीं. अगर मेरी बड़ी मां को कुछ हो जाता तो…?’’

सिद्धेश्वरीजी के पैरों में मोच आई थी. प्राथमिक चिकित्सा के बाद उन्हें घर जाने की अनुमति मिल गई थी. उन के घर पहुंचने से पहले ही बहू और बेटे ने, उन की सुविधानुसार कमरे की व्यवस्था कर दी थी. समीर और शालिनी ने अपना बैडरूम उन्हें दे दिया था क्योंकि बाथरूम बैडरूम से जुड़ा था. वे दोनों किनारे वाले बैडरूम में शिफ्ट हो गए थे. सिरहाने रखे स्टूल पर बिस्कुट का डब्बा, इलैक्ट्रिक कैटल, मिल्क पाउडर और टी बैग्स रख दिए गए. चाय की शौकीन सिद्धेश्वरीजी जब चाहे चाय बना सकती थीं. उन्हें ज्यादा हिलनेडुलने की भी जरूरत नहीं थी. पलंग के नीचे समीर ने बैडस्विच लगवा दिया था. वे जैसे ही स्विच दबातीं, कोई न कोई उन की सेवा में उपस्थित हो जाता.

अगले दिन तक नेहा और जमाई बाबू भी पहुंच गए. घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. उन के आने से समीर और शालिनी को भी काफी राहत मिल गई थी. कुछ समय के लिए दोनों दफ्तर हो आते. नेहा मां के पास बैठती तो स्वाति अस्पताल हो आती थी. इन दिनों उस की इन्टर्नशिप चल रही थी. अस्पताल जाना उस के लिए निहायत जरूरी था. शाम को सभी उन के कमरे में एकत्रित होते. कभी ताश, कभी किस्सेकहानियों के दौर चलते तो घंटों का समय मिनटों में बदल जाता. वे मंदमंद मुसकराती अपनी हरीभरी बगिया का आनंद उठाती रहतीं. सिद्धेश्वरीजी एक दिन चाय पी कर लेटीं तो उन का ध्यान सामने खिड़की पर बैठे कबूतर की तरफ चला गया. खिड़की के जाली के किवाड़ बंद थे, जबकि शीशे के खुले थे. मुश्किल से 5 इंच की जगह रही होगी जिस पर वह पक्षी बड़े आराम से बैठा था. तभी नेहा और शालिनी कमरे में आ गईं, बोलीं, ‘‘मां, इस कबूतर को यहां से उड़ाना होगा. यहां बैठा रहा तो गंदगी फैलाएगा.’’

‘‘न, न. इसे उड़ाने की कोशिश भी मत करना. अब तो चैत का महीना आने वाला है. पक्षी जगह ढूंढ़ कर घोंसला बनाते हैं.’’

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उन की बात सच निकली. देखा, एक दूसरा कबूतर न जाने कहां से तिनके, घास वगैरह ला कर इकट्ठे करने लगा. वह नर व मादा का जोड़ा था. मादा गर्भवती थी. नर ही उस के लिए दाना लाता था और चोंच से उसे खिलाता था. सिद्धेश्वरीजी मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें देखतीं. पक्षियों को नीड़ बनाते देख उन्हें अपनी गृहस्थी जोड़ना याद आ जाता. उन्होंने भी अपनी गृहस्थी इसी तरह बनाई थी. रमानंदजी कमा कर लाते, वे बड़ी ही समझदारी से उन पैसों को खर्चतीं. 2 देवर, 2 ननदें ब्याहीं. मायके से जो भी मिला, वह ननदों के ब्याह में चढ़ गया. लोहे के 2 बड़े संदूकों को ले कर अपने नीड़ का निर्माण किया. बच्चे पढ़ाए. उन के ब्याह करवाए. जन्मदिन, मुंडन-क्या नहीं निभाया.  खैर, अब तो सब निबट गया. बच्चे अपनेअपने घर में सुख से रह रहे हैं. उन्हें भी मानसम्मान देते हैं. हां, एक कसक जरूर रह गई. अपने मकान की. वही नहीं बन पाया. बड़ा चाव था उन्हें अपने मकान का.  मनपसंद रसोई, बड़ा सा लौन, पीछे आंगन, तुलसीचौरा, सूरज की धूप की रोशनी, खिड़की से छन कर आती चांदनी और खिड़की के नीचे बनी क्यारी व उस क्यारी में लगी मधुमालती की बेल.

वे बैठेबैठे बोर होतीं. करने को कुछ था नहीं. एक दिन उन्होंने कबूतरी की आवाज देर तक सुनी. वह एक ही जगह बैठी रहती. अनिरुद्ध उन के कमरे में आया तो अतिउत्साहित, अति उत्तेजित स्वर में बोला, ‘‘बड़ी मां, कबूतरी ने घोंसले में अंडा दिया है.’’

‘‘इसे छूना मत. कबूतरी अंडे को तब तक सहेजती रहेगी जब तक उस में से बच्चे बाहर नहीं आ जाते.’’

अनिरुद्ध पीछे हट गया था. उन्हें इस परिवार से लगाव सा हो गया था. जैसे मां अपने बच्चे के प्रति हर समय आशंकित सी रहती है कि कहीं उस के बच्चे को चोट न लग जाए, वैसे ही उन्हें भी हर पल लगता कि इन कबूतरों के उठनेबैठने से यह अंडा मात्र 4 इंच की जगह से नीचे न गिर जाए. एक दिन उस अंडे से एक बच्चा बाहर आया. सिर्फ उस की चोंच, आंखें और पंजे दिखाई दे रहे थे. अब कबूतर का काम और बढ़ गया था. वह उड़ता हुआ जाता और दाना ले आता. कबूतरी, एकएक दाना कर के उस बच्चे को खिलाती जाती. सिद्धेश्वरीजी ने अनिरुद्ध से कह कर उन कबूतरों के लिए वहीं खिड़की पर, 2 सकोरों में दाने और पानी की व्यवस्था करा दी थी. अब कबूतर का काम थोड़ा आसान हो गया था.

सिद्धेश्वरीजी अनजाने ही उस कबूतर जोड़े की तुलना खुद से करने लगी थीं. ये पक्षी भी हम इंसानों की तरह ही अपने बच्चों के प्रति समर्पित होते हैं. फर्क यह है कि हमारे सपने हमारे बच्चों के जन्म के साथ ही पंख पसारने लगते हैं. हमारी अपेक्षाएं और उम्मीदें भी हमारे स्वार्थीमन में छिपी रहती हैं. इंसान का बच्चा जब पहला शब्द मुंह से निकालता है तो हर रिश्ता यह उम्मीद करता है कि उस प्रथम उच्चारण में वह हो. जैसे, मां चाहती है बच्चा ‘मां’ बोले, पापा चाहते हैं बच्चा ‘पापा’ बोले, बूआ चाहती हैं ‘बूआ’ और बाबा चाहते हैं कि उन के कुलदीपक की जबान पर सब से पहले ‘बाबा’ शब्द ही आए. हम उस के हर कदम में अपना बचपन ढूंढ़ते हैं. अपनी पसंद के स्कूल में उस का ऐडमिशन कराते हैं.

यह हमारा प्रेम तो है पर कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ भी है. उस का भविष्य बनाने के लिए किसी अच्छे व्यावसायिक संस्थान में उसे पढ़ाते हैं. उस की तरक्की से खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं. समाज में हमारी प्रतिष्ठा बढ़ती है. हम अपनी मरजी से उस का विवाह करवाना चाहते हैं. यदि बच्चे अपना जीवनसाथी स्वयं चुनते हैं तो हमारा उन से मनमुटाव शुरू हो जाता है, हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा को बट्टा जो लग जाता है. हमारी संवेदनाओं को ठेस पहुंचती है. बच्चे बड़े हो जाते हैं, हमारी अपेक्षाएं वही रहती हैं कि वे हमारे बुढ़ापे का सहारा बनें. हमारे उत्तरदायित्व पूरे करें. हमारे प्रेम, हमारी कर्तव्यपरायणता के मूल में कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ निहित है. कुछ दिन बाद उस बच्चे के छोटे पंख दिखाई देने लगे. फिर पंख थोड़े और बड़े हुए. अब उस ने स्वयं दाना चुगना शुरू कर दिया था. फिर एक दिन उस के मातापिता उसे साथ ले कर उड़ने लगे. तीनों विहंग छोटा सा चक्कर लगाते और फिर लौट आते वापस अपने नीड़ में.

धीरेधीरे सिद्धेश्वरीजी की तबीयत सुधरने लगी. अब वे घर में चलफिर लेती थीं. अपना काम भी स्वयं कर लेती थीं. रमानंदजी को नाश्ता भी बना देती थीं. घर के कामों में शालिनी की सहायता भी कर देती थीं. अब यह घर उन्हें अपना सा लगने लगा था. दिन स्वाति उन्हें अस्पताल ले गई. मोच तो ठीक हो गई थी. फिजियोथेरैपी करवाने के लिए डाक्टर ने कहा था, सो प्रतिदिन स्वाति ही उन्हें ले जाती. वापसी में समीर अपनी गाड़ी भेज देता. अब ये सब भला लगता था उन्हें.

एक दिन उन्होंने देखा, कबूतर उड़ गया था. वह जगह खाली थी. अब वह नीड़ नहीं मात्र तिनकों का ढेर था. क्योंकि नीड़ तो तब था जब उस में रहने वाले थे. मन में अनेक सवाल उठने लगे, क्या वह बच्चा हमेशा उन के साथ रहेगा? क्या वह बड़ा हो कर मातापिता के लिए दाना लाएगा? उन की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाएगा? इसी बीच उन के मस्तिष्क में एक ऋषि और राजा संवाद की कुछ पंक्तियां याद आ गई थीं. ऋषि ने राजा से कहा था, ‘‘हे राजा, हम मनुष्य अपने बच्चों का भरणपोषण करते हैं, परंतु योग माया द्वारा भ्रमित होने के कारण, उन बच्चों से अपेक्षाएं रखते हैं. पक्षी भी अपने बच्चों को पालते हैं पर वे कोई अपेक्षा नहीं रखते क्योंकि वे बुद्धिजीवी नहीं हैं और न ही माया में बंधे हैं.’’

उन्होंने खिड़की खोल कर वहां सफाई की और घोंसला हटा दिया. धीरेधीरे तेज हवाएं चलने लगीं. उन्होंने खिड़की बंद कर दी. कुछ दिन बाद कबूतर का एक जोड़ा फिर से वहां आ गया. अपना नीड़ बनाने. वे मन ही मन सुकून महसूस कर रही थीं. अब फिर घोंसला बनेगा, कबूतरी अंडे देगी, उन्हें सेना शुरू करेगी, अंडे में से चूजा निकलेगा, फिर पर निकलेंगे और फिर कबूतर उड़ जाएगा और कपोत का जोड़ा टुकुरटुकुर उस नीड़ को निहारता रह जाएगा, उदास मन से. ठंड बढ़ने के साथसाथ मोच वाले स्थान पर हलकी सी टीस एक बार फिर से उभरने लगी थी. परिवार में उन की हालत सब के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी. रमानंदजी आयुर्वेद के तेल से उन के टखनों की मालिश कर रहे थे. स्वाति ने एक अन्य डाक्टर से उन के लिए अपौइंटमैंट ले लिया था. सिद्धेश्वरीजी ने उसे रोकने की कोशिश की, तो वह उन्हें चिढ़ाते हुए बोली, ‘‘बड़ी मां, टांग का दर्द ठीक होगा तभी तो गांव जाएंगी न.’’

स्वाति समेत सभी खिलखिला कर हंसने लगे थे. नौकर गरम पानी की थैली दे गया तो सिद्धेश्वरीजी पलंग पर लेट कर सोचने लगीं, ‘सही कहते हैं बड़ेबुजुर्ग, घर चारदीवारी से नहीं बनता, उस में रहने वाले लोगों से बनता है.’ घोंसला अवश्य उन का अस्थायी रहा पर वे तो भरीपूरी हैं. बेटेबहू, पोतेपोती से खुश, संतप्त भाव से एक नजर उन्होंने रमानंदजी की दुर्बल काया पर डाली, फिर दुलार से हाथ फेरती हुई बुदबुदाईं, ‘उन का जीवनसाथी तो उन के साथ है ही, उन के बच्चे भी उन के साथ हैं. अब उन्हें किसी नीड़ की चाह नहीं. जहां हैं सुख से हैं, संतुष्ट और संतप्त.’ उन्होंने कामवाली बाई से कह कर बक्से में से सामान निकलवाया और अलमारी में रखवा दिया. और फिर मीठी नींद के आगोश में समा गईं.

शुभस्य शीघ्रम: कौनसी घटना घटी थी सुरभि के साथ 

हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

फिर थोड़ी देर में उस का पी.जी. आ गया तो उस ने नीची नजरों से मुझे थैंक्स कहा और गाड़ी से उतर गई. मैं भी उसे बाय, गुडनाइट कहता हुआ आगे निकल गया.

अगले दिन से हम दोनों की ही नजरों में एकदूसरे के लिए कुछ विशेष था. मुझ से नजरें मिलते ही वह नजरें झका लेती थी. मौका देख कर मैं ने कहा, ‘‘सुरभि, हम दोनों का औफिस आनेजाने का रास्ता एक ही है. हम रोज साथ में आनाजाना कर सकते हैं. हां मैं इतना दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

उस ने मुसकराते हुए नीची नजरों से सहमति प्रकट कर दी.

फिर हम दोनों साथसाथ ही आनेजाने लगे.

हमारे बीच अपनत्व पनप चुका था. एक दिन मैं ने पहल करते हुए कहा, ‘‘सुरभि, हमें मिले ज्यादा समय तो नहीं हुआ, किंतु मेरा मन रातदिन तुम्हारे नाम की माला जपता रहता है. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं. मैं तुम्हारे मन की बात भी जानना चाहता हूं. और हां, मेरा नाम राज है, वही बोलो. ये सर, सर क्या लगा रखा है?’’

मेरे इतना कहने पर भी वह खामोश रही तो मैं ने उस के कंधे पर हाथ रख पूछा, ‘‘क्या बात है, सुरभि खामोश क्यों हो?’’

मेरा अपनत्व पा कर वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘राज सर, मेरा बलात्कार हो चुका है. मैं कलंकित हूं. मुझे कोई कैसे स्वीकार करेगा? मैं इस कलंक को पूरी उम्र ढोने के लिए मजबूर हूं…’’

मैं ने उस के होंठों पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘सुरभि, स्वयं को संभालो. मैं तुम्हें अपनाऊंगा. तुम से शादी करूंगा. स्वयं को हीन न समझे. चलो सब से पहले थोड़ा पानी पी कर स्वयं को संयत करो.’’

वह पानी पी कर कुछ शांत हुई, किंतु आंसू बहाती रही.

‘‘देखो सुरभि, तुम्हारे गुजरे कल से मेरा कोई सरोकार नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे साथ अपना आज और आने वाला कल संवारना चाहता हूं. किंतु हां, जो हादसा तुम्हें इतना दुखी कर गया है, उसे अवश्य बांटना चाहूंगा. तुम अपनी आपबीती, बे?िझक मुझे बताओ. तुम्हारे सामने तुम्हारा दोस्त, हितैषी, हमदर्द बैठा हुआ है.’’

वह धीमे स्वर में बोली, ‘‘राज, हमारे गांव में दादा साहब के यहां मेरे पापाजी अकाउंटैंट का काम करते थे. उन के बेटे बाबा साहब भी अपने पिता की तरह पापाजी की ईमानदारी की बहुत इज्जत करते थे और दोनों ही पापाजी से मित्रवत व्यवहार करते थे. एक दिन काम करते हुए अचानक पापाजी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. उन दोनों ने हम लोगों की सहायता के लिए हर माह पैंशन देने की घोषणा करते हुए आदेश दिया कि जब तक वे दोनों हैं तब तक पैंशन हमारे परिवार को दी जाए.

‘‘पैंशन से हम लोगों का घर खर्च चलने लगा, फिर 3 सालों में दादा साहब एवं बाबा साहब का निधन हो गया तो उन का बेटा शहर से गांव आ गया और कामकाज देखने लगा.

‘‘उस दिन हर माह की तरह मैं पैंशन लेने पहुंची थी. मैं बहुत खुश थी, क्योंकि मेरा 12वीं का रिजल्ट आ गया था और मुझे बहुत अच्छे अंक मिले थे. वहां काम करने वाले रजत से मालूम हुआ कि मुझे पैंशन लेने लंच टाइम में पुन: आना होगा, क्योंकि अभी छोटे साहब बाहर गए हुए हैं.

‘‘मैं लंच टाइम में दोबारा वहां पहुंची तो देखा वह बैठा हुआ जैसे मेरा इंतजार ही कर रहा था. मुझे देखते ही बोला, ‘बधाई हो सुरभि, सुना है तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए हैं.’

‘‘मैं ने पैंशन की बात कही तो बोला, ‘अरे बैठो, खड़ी क्यों हो? थोड़ा शरबत तो पी लो. इतनी दुपहरिया में तो आई हो.’

‘‘फिर शरबत का एक गिलास उस ने स्वयं उठा लिया तथा दूसरा मेरी ओर सरका दिया.

‘‘मैं यह सोच कर कि ये बडे़ लोग हैं, इन की कही बातों को मानना चाहिए शरबत पी गई. फिर जब होश आया तो स्वयं को निर्वस्त्र पाया. मेरे ऊपर वह दरिंदा भी निर्वस्त्र पड़ा हुआ था. सारा माहौल देख कर व अपनी शारीरिक पीड़ा से इतना तो समझ सकी कि इस दुष्ट ने मेरा सर्वनाश कर दिया है.

‘‘मेरी दशा घायल शेरनी सी हो रही थी, पर वह दरिंदा मेरी बरबादी का आनंद

लेता हुआ बोला, ‘मुफ्त में पैसा ले जाती है तो अच्छा लगता है. आज अपना हक वसूल लिया

तो काटने दौड़ती है. खबरदार, चुपचाप निकल ले. वह तेरे बाप की पैंशन रखी है, तेरी कीमत

भी बढ़ा कर उस में रख दी है. गिन ले, कम

लगे तो और ले ले. जो कीमत कहेगी दे दूंगा. बहुत आनंद मिला. तू ने मुझे अपना प्रशंसक

बना लिया है. तू तो मुझे पहली नजर में ही भा

गई थी…’ और न जाने क्याक्या वह निर्लज्ज बकता रहा.

‘‘उस के पैसे वहीं छोड़ कर, लड़खड़ाते कदमों से मैं जब घर पहुंची तो उस वक्त मां के पास पासपड़ोस की औरतें भी बैठी हुई थीं. मैं मां के गले लग कर फफकफफक कर रोती हुई सब बोल गई. मां के साथ सभी ने मेरी आपबीती सुन ली तो वे अपनेअपने ढंग से सभी ढाढ़स बंधा कर चली गईं. मां पत्थर की मूर्ति सी बन गईं.

‘‘2 दिनों तक हम मांबेटी, अपने दुख के साथ घर में अकेली बंद पड़ी रहीं. जो पासपड़ोस रातदिन हमारे घर आताजाता रहता था, कोई झंकने नहीं आया, जैसे हमारे घर में छूत की बीमारी हो गई हो. 2 दिनों बाद पड़ोस की राधा दीदी खाना ले कर आईं और बोलीं, ‘भाभी,

यों पत्थर बनने से काम नहीं चलेगा. दिल को मजबूत करो. बिट्टो की हिम्मत बन कर उसे

राह दिखाओ, मेरा कहा मानो तो इस गांव से दूर चली जाओ.’

‘‘दीदी का अपनत्व पा कर, मां के दिल में जमा दर्द आंखों से आंसू बन कर बह निकला. वे रोते हुए बोलीं, ‘दीदी, जिस गांव को अपना रक्षक मानती थी, वही तो इज्जत का भक्षक बन बैठा, अब मैं अकेली विधवा, एक जवान, खूबसूरत लड़की को ले कर कहां जाऊं?’

‘‘दीदी, मां को सस्नेह गले लगा कर बोलीं, ‘भाभी, यों हिम्मत हारने से काम नहीं बनेगा. यहां रातदिन इसी कुकर्म की चर्चा से जीना दूभर हो जाएगा. बिट्टो अच्छे अंक लाई है. यहां का घरबार बेच कर, वाराणसी चली जाओ. उसे पढ़ाओ, पैरों पर खड़ा करो. भैया भी तो यही चाहते थे. भाभी, उन का सपना पूरा करना भी तो तुम्हारा कर्तव्य है.

‘‘मां पर उन की बातों का अवश्य कुछ असर हुआ, जिस से वे कुछ शांत हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘घर के लिए इतनी जल्दी ग्राहक ढूंढ़ना भी कठिन है, सौ बातें उठेंगी.’

‘‘तो वे बोलीं, ‘भाभी, तुम उठने वाली बातों की चिंता छोड़ो, बिट्टो का जीवन संवारने की सोचो. बहुत से लोग हैं जो घरजमीन खरीदना चाहते हैं. तुम तो जाने की तैयारी करो. हां इस बात का पूरा ध्यान रखना कि किसी को कानोकान खबर न हो कि तुम कहां जा रही हो.’

‘‘दीदी की मदद से गांव का सब काम निबटा कर हम वाराणसी आ पहुंचे. यहां थोड़ी भागदौड़ के बाद मां को एक बुटीक में काम मिल गया और मुझे अच्छे कालेज में ऐडमिशन. दोनों अपनेअपने काम में तनमन से लग गईं.’’

राज, यह मां ने ही कहा था कि कभी शादी के निर्णय का समय आए, तो अपने साथी को अवश्य बता देना. अन्य किसी के सामने कभी भी इस दुष्कर्म की चर्चा न करना.’’

यह कह कर सुरभि खामोश हो गई तो मैं ने उस के हाथों पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हें और तुम्हारी मां की हिम्मत को तहे दिल से सलाम करता हूं. रोज ही टीवी पर, पेपर्स में इस तरह की दुर्घटनाएं सुनने, पढ़ने को मिल जाती हैं. हमेशा से पुरुष वर्ग स्त्रियों पर इस तरह के जुल्म करता रहा है.

‘‘इन ज्यादतियों की जड़ें हमारे धार्मिक ग्रंथों से भी जुड़ी हुई हैं. रामायण में वर्णित है कि सीता को रावण हरण कर ले जाता है तो उन के पति राम उन की पवित्रता की अग्निपरीक्षा लेते हैं. उस के बाद भी उन्हें त्याग कर वनवास हेतु मजबूर कर दिया जाता है.’’

वह दिन शनिवार का दिन था. हम दोनों लगभग 2 बजे औफिस से निकले थे और अब समय 4 से ऊपर हो चुका था. हम दोनों का मन भी कसैला हो गया था तथा कुछ भूख भी लग आई थी, इसलिए हम पास के रैस्टोरैंट में चले गए. वहां सुरभि ने आहिस्ता से कहा, ‘‘राज, मैं अपने कलंक से आप का जीवन बरबाद नहीं करना चाहती. मुझे माफ कीजिएगा, मैं बेवजह आप की राह में आ गई.’’

‘‘कैसी बातें करती हो सुरभि’’, मैं ने उस के करीब आ कर कहा, मैं तहेदिल से तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार कोई सूखा पत्ता नहीं होता, जो हवा से उड़ जाए. वह तो मजबूत चट्टान सा अडिग होता है, जो अनेक तूफानों का सामना कर सकता है.

‘‘एक अनजान पुरुष ने तुम्हारे साथ दुष्कर्म किया, उस से तुम कैसे कलंकित हो

गई? उस की सजा तुम क्यों पाओगी? जो भी सजा मिलनी चाहिए, उस दुष्कर्मी को मिलनी चाहिए, तुम स्वयं को हीन न समझे, मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों मिल कर एक खुशहाल दुनिया बसाएंगे, जहां घृणा तिरस्कार नहीं, सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.’’

‘‘राज, आप को विश्वास है कि आप के मातापिता मुझ जैसी लड़की को अपनाएंगे, स्वीकार करेंगे?’’ उस ने अपनी शंका धीरे से व्यक्त की.

‘‘हां, मुझे पूरा विश्वास है. वे दोनों बहुत समझदार हैं और दकियानूसी विचारों के नहीं हैं. मेरे परिवार में मेरे कुछ कजिंस ने अंतर्जातीय विवाह किए तो उस मौके पर सारे परिवार को समझने का काम मेरे मम्मीपापा ने ही किया.

‘‘मैं अपने मम्मीपापा को अपने प्यार

अपने निर्णय के बारे में तो बताऊंगा. मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन और समाज के प्रति

मेरी इस सकारात्मक सोच, मेरी पहल का वे स्वागत करेंगे.’’

मैं ने प्यार से उस का हाथ अपने हाथों में

ले कर कहा, ‘‘सुरभि, मेरी इस सकारात्मक

पहल में मेरा साथ दोगी न? मेरी हमसफर बन कर मेरा संबल बनोगी न? यदि मम्मीपापा को समझने में थोड़ा समय लग जाए, तो मेरा इंतजार करोगी न?’’

उस ने मुसकराते हुए सहमति से सिर हिला दिया.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ाते हुए कहा, ‘‘चलो, फिर आज ही तुम्हें मम्मीपापा से मिलवा देता हूं, देरी क्यों करना, शुभस्य शीघ्रम.’’

वह खिलखिला कर हंस पड़ी. उस की हंसी में मेरी खुशी समाहित थी, इसलिए वह खुशहाल जीवन की ओर इशारा करती प्रतीत हो रही थी.

Festival Special: इस दीवाली अपनों को दीजिए ये 7 यादगार तोहफे

पूरा साल तो घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां इतना समय ही नहीं देतीं कि अपनों को खुश करने के लिए कुछ किया जा सके, मगर दीवाली में हर कोई अपने बजट के अनुसार खरीदारी की प्लानिंग करता है. ऐसे में हम आप को बताते हैं कि बजट में किस तरह के उपहार लें ताकि अपनों की जरूरत भी पूरी हो जाए और उन के चेहरे पर उपहार पा कर मुसकान भी तैर जाए.

1. सेहत वाला तोहफा

अगर परिवार का कोई सदस्य बीमार है तो उस के लिए रियल ट्रोपिकाना जैसी कंपनियों के जूस पैक ले सकती हैं. 3 लिटर का गिफ्ट पैक ₹400 के करीब मिल जाएगा. इसी तरह बास्केट गिफ्ट में 20-30 आइटम्स होती हैं- लस्सी, कोल्ड ड्रिंक, जूस, नमकीन, कुरकुरे, चौकलेट, चिप्स, बिस्कुट आदि. यह पैक घर के हर सदस्य के स्वाद को ध्यान में रखते हुए भी तैयार कराया जा सकता है.

2. शुगर फ्री गिफ्ट

दीवाली पर बुजुर्गों को तोहफा देते समय उन की पसंद के साथसाथ उन की सेहत का भी खयाल रखना जरूरी होता है. यह बात जगजाहिर है कि बुजुर्ग मीठा बहुत पसंद करते हैं. मगर अकसर उस के साथ इंसान डायबिटीज जैसी समस्याओं से भी ग्रस्त हो जाता है. ऐसे में आप उन के लिए शुगर फ्री मिठाई ले सकते हैं. उन्हें मुरब्बा पैक या फ्रूट्स पैक आदि दे सकते हैं. इस से मुंह तो मीठा होगा ही, साथ ही सेहत भी बनेगी.

3. नटखट के लिए

मात्र ₹100, ₹200 के पैक में बच्चों के लिए आटा नूडल्स, पास्ता और मसाला नूडल्स या फिर चौकलेट्स और बिस्कुट के पैक ले सकती हैं. दीवाली में हल्दीराम, क्रोनिका, सनफीस्ट, प्रिया गोल्ड जैसी तमाम बड़ी कंपनियां नमकीनबिस्कुट की ढेरों वैराइटी उतारती हैं.

4. गिफ्ट करें गिफ्ट कार्ड

दीवाली पर आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या घर वालों को गिफ्ट देना चाहती हैं तो आप के लिए गिफ्ट कार्ड एक अच्छा औप्शन है. आप गिफ्ट कार्ड किसी भी बैंक की ब्रांच या नैटबैंकिंग के जरीए खरीद सकती हैं. इस का सब से बढि़या फायदा यह है कि इस के जरीए कोई भी व्यक्ति अपनी मरजी से शौपिंग कर सकता है. यह कार्ड मूवी टिकट, रेस्तरां बिल, औनलाइन शौपिंग आदि के लिए यूज कर सकते हैं.

एचडीएफसी बैंक गिफ्ट प्लस कार्ड, आईसीआईसीआई बैंक गिफ्ट कार्ड, ऐक्सिस बैंक गिफ्ट कार्ड, येस बैंक गिफ्ट कार्ड, स्टेट बैंक औफ इंडिया जैसे बहुत से बैंकों के ‘गिफ्ट कार्ड’ मिल जाते हैं.

5. कैंडल स्टैंड

दीवाली के मौके पर कैंडल स्टैंड गिफ्ट करना एक अच्छा औप्शन है. कैंडल्स का इस्तेमाल अब लोग आम दिनों में भी करने लगे हैं. इन की गिनती डैकोरेटिव आइटम्स के रूप में होने लगी है. कैंडल स्टैंड को घर के कोने में रखा जाए तो वह कमरे को बहुत अच्छा लुक देता है. कैंडल स्टैंड औनलाइन भी मिल जाएंगे. इन की कीमत ₹250 से ले कर ₹10 हजार तक हो सकती है.

6. ड्राई फ्रूट्स

मावा, बेसन की मिठाई में मिलावट के बढ़ते मामलों के चलते बेकरी प्रोडक्ट्स, बड़ीबड़ी कंपनियों के गिफ्ट पैक्स और ड्राई फ्रूट्स का चलन बढ़ गया है. आमतौर पर दीवाली के मौके पर ड्राई फ्रूट्स के पैकेट या डब्बे गिफ्ट के रूप में देने का चलन सब से ज्यादा रहता है. आप भी अपने करीबी लोगों को ड्राई फ्रूट्स के पैक के रूप में सेहत का वादा उपहारस्वरूप दे सकती हैं. इन की कीमत ₹1 हजार से शुरू हो कर ₹5 हजार तक हो सकती है. ये गिफ्ट औनलाइन और औफलाइन दोनों तरीकों से मिल जाते हैं.

7. पेंटिंग्स का यादगार उपहार

यह भी दीवाली गिफ्ट का एक शानदार औप्शन है. दीवाली पर जब साफसफाई होती है तो पुरानी पेंटिंग्स हटा दी जाती हैं. ऐसे में यदि आप कोई खूबसूरत पेंटिंग का उपहार देती हैं तो यह भी तारीफ पाने लायक गिफ्ट होगा. पेंटिंग की तरह ही कोई अच्छा आर्ट पीस भी गिफ्ट कर सकती हैं ताकि वह गिफ्ट उस व्यक्ति के घर के इंटीरियर में शामिल जाए. आप ऐसी पेंटिंग्स ईकौमर्स वैबसाइट, ओपन मार्केट या किसी आर्ट गैलरी से खरीद सकती हैं. यही नहीं, आप हैंडमेड चीजें जो मन के भावों को प्रदर्शित करती हैं, भी अपने हाथ से बना कर या फिर खरीद कर उपहार में दे सकती है. ऐसे उपहार आप के संबंधों को और मधुर बनाते हैं.

इन उपहारों के साथसाथ एक और बेशकीमती उपहार आप अपनों को जरूर दें. यह उपहार है आप का समय. अपनों के साथ बैठ कुछ उन की सुनें कुछ अपनी कहें और फिर देखें कि कैसे ये पल आप के दिलदिमाग को अगली दीवाली तक तरोताजा रखेंगे.

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