हैडऔफिस से ब्रांच औफिस के कर्मचारियों को अचानक निर्देश मिला कि इस काम को आज ही पूरा किया जाए, तो काम पूरा करते रात के 10 बज गए. नई नियुक्त सुरभि को उस के घर छोड़ने की जिम्मेदारी मैं ने ले ली, क्योंकि मेरा और उस का घर आसपास है.

मैं सुरभि के साथ घर के लिए रवाना हुआ, तो वह चुप बैठी थी. बातचीत मैं ने शुरू की, ‘‘तुम ने एम.बी.ए. कहां से किया सुरभि?’’

‘‘जी, वाराणसी से.’’

‘‘यहां फ्लैट में रहती हो या पी.जी. में?’’

‘‘सर, पी.जी. में.’’

‘‘घर पर कौनकौन है?’’

‘‘सर, मैं अकेली हूं.’’

‘‘हांहां यहां तो अकेली ही हो. मैं तुम्हारे घर के बारे में पूछ रहा हूं.’’

‘‘जी, मैं अकेली ही हूं.’’

‘‘क्या मतलब सुरभि, घर पर मम्मीपापा, भाईबहन तो होंगे न?’’

‘‘सर, मेरा कोई नहीं. मेरे पापा बहुत पहले चल बसे थे. 4 माह पहले मां का भी देहांत हो गया. मैं उन की इकलौती संतान हूं,’’ उस का चेहरा दुख से मलिन हो गया तथा आंखें सजल

हो गईं.

‘‘ओह सौरी, मैं ने तुम्हें दुखी कर दिया.’’

हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी पसर गई. फिर चुप्पी तोड़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें, फिल्में देखना पसंद है?’’

‘‘सर, टीवी पर देख लेती हूं. मेरा टीवी हर समय औन रहता है.’’

‘‘ओहो, पूरे समय टीवी का शोर. सिरदर्द नहीं हो जाता तुम्हें?’’

‘‘नहीं सर, बंद टीवी से हो जाता है. शांत वातावरण में मुझे अपने दुखदर्द कचोटते हैं.’’

उस ने इतनी गमगीन गंभीरता से यह बात कही तो मैं ने कहा, ‘‘सही बात है, स्वयं को व्यस्त रखने का कोई बहाना तो चाहिए ही. मैं भी हर समय म्यूजिक सुनता रहता हूं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...