गड़े मुरदे उखाड़ने की आखिर जरुरत क्या है

1984 के सिख दंगों के दौरान दिल्ली व आसपास के बहुत से इलाकों में मारे गए सिखों के हत्यारों में से 2-4 को ही सजा मिली है पर इस का हल्ला अभी भी मचाया जाता रहता है. यह हल्ला ठीक उस तरह का है जैसा औरतें अपने पतियों को आड़े हाथों लेने में करती हैं कि 20 साल पहले उन्होंने होली पर पड़ोसिन के ब्लाउज में रंग भरने की कोशिश की थी.

पति का गुलछर्रे कभीकभार उड़ा लेना गलत हो तो भी पत्नी जिंदगी भर उसे साइनबोर्ड की तरह अपनी जबान पर ले कर घूमेगी तो पतिपत्नी में खटास रहेगी और हल कुछ न होगा. ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेय’ ही जीवन का सही फौर्मूला है. किसी गलत काम को हरदम हथियार की तरह इस्तेमाल करना एकदम गलत है.

सरकारों की तरह घरों में पति, पत्नी, बच्चे, सासें, ननदें, भाभियां, बहनोई आदि बहुत कुछ ऐसा कर देते हैं जो पीड़ा देता है, वर्षों देता है. घरों में जब बंटवारा होता है, तो बहुत सी घटनाएं होती हैं, जो दशकों तक याद रहती हैं. पतिपत्नी में तलाक होता है तो एकदूसरे पर सच्चेझूठे आरोप लगाए जाते हैं.

पर हर बार 2002 के गुजरात के मुसलिम दंगों की जवाबदेही में 1984 के सिख दंगों की बात दोहराई नहीं जा सकती. यह तो कांग्रेस की भलमनसाहत है कि 1984 के दंगों से 10-15 साल पहले सिख अलगाववादियों द्वारा की गई हत्याओं की याद नहीं दिलाती जब पूरा पंजाब देश से कट गया था. उन दिनों के लिए पूरी सिख कौम को 2017 में दोषी तो ठहराया नहीं जा सकता!

इतिहास समाजों के लिए आवश्यक है पर अपनी आगे की गलतियां सुधारने के लिए, एक के किए का बदला उस की संतानों या संतानों की संतानों से लेने के लिए नहीं. हमारे यहां धर्म के प्रचार की आड़ में इस का दुष्प्रचार रातदिन करा जा रहा है और औरतों को अपरोक्ष में सलाह दी जा रही है कि किसी को भी उस के दादापरदादा के गुनाहों के लिए दोषी ठहरा देना गलत नहीं है. यह मानसिकता बहुत से परिवारों में जहर घोलती है. यही मानसिकता तब आड़े आती है जब हिंदू कर्मकांडी घर का लड़का सिख या मुसलिम लड़की को घर लाना चाहे तो उन लोगों का इतिहास खंगालना शुरू कर दिया जाता है जिस का लड़की से कोई संबंध नहीं होता है.

अदालतों ने हाल ही में 1984 के दंगों के पीडि़तों या अपराधियों के मामले फिर से खोलने के आदेश दिए हैं. यह भर गए जख्मों को कुरेदने के बराबर है. इन्हें खोलने की कोई जरूरत नहीं. ये इतिहास के पन्नों में दफन कर दिए जाएं, क्योंकि दोषियों में अधिकांश अब मर चुके हैं और जो जिंदा हैं, वे किसी काम के नहीं. देश हो या समाज अथवा घर पुरानी बातों को जरूरत से ज्यादा तूल देना नितांत बेवकूफी है.

बेटी के लिए भी करें पूंजी निवेश जो भविष्य में करे उसकी मदद

बेटी की शादी में इतना खर्च हो जाता है कि मां बाप उस के भविष्य के लिए कुछ जोड़ ही नहीं पाते. आमतौर पर मध्यवर्गीय परिवार बेटी के नाम पर जो बचत करता है वह उस की शादी में ही खर्च कर देता है. आजकल बेटी की शिक्षा भी पहले से बेहतर होने लगी है. ऐसे में मां बाप के पास इतना पैसा बचता ही नहीं कि वह शादी के बाद बेटी के नाम निवेश करने की हालत में रहे.

इस के लिए जरूरी है कि बेटी के नाम पर पहले से ही थोड़ी थोड़ी बचत करते रहे. यह बचत 3 हिस्सों में हो. पहला हिस्सा ऐेसा हो जिस में बेटी की शिक्षा के लिए पैसा जुटाया जाए जो उस की पढ़ाई पर खर्च हो सके. इस के बाद उस की शादी के हिसाब से बजट तय करें. यह रकम अलग रखें.

तीसरे हिस्से में कुछ पैसा ऐसा रखें जो शादी के बाद उस को पूंजी के रूप में दिया जा सके. असल में देखें तो यही सब से जरूरी हिस्सा होता है. पहले जो स्त्री को जेवर दिए जाते थे उन को स्त्रीधन कहा जाता था जिन का उपयोग वह अपने जरूरी काम के लिए कर सके.

शादी के बजट को कम से कम रखें. शादी में होने वाला खर्च एक तरह से दिखावा होता है. ऐसे में हरसंभव कोशिश यह रहे कि शादी कम से कम बजट में की जाए. पढ़ाई और शादी के बाद की जरूरतों के लिए बचत को तमाम योजनाओं के जरिए कर सकते हैं.

आमतौर पर बेटी के नाम की गई बचत को शादी में खर्च कर दिया जाता है. बेटी की शादी के बाद माता पिता के पास कुछ बचता ही नहीं कि वह बेटी के लिए पूंजी के रूप में कुछ निवेश कर दें. बेटी की पढ़ाई में भी अब खर्च बढ़ गया है. ऐसे में पढ़ाई का खर्च तो बेटी के स्कूल जाते ही शुरू हो जाता है. मुख्य रूप से बेटी की शादी और शादी के बाद दी जाने वाली पूंजी के लिए उचित निवेश करना जरूरी हो जाता है.

पहले बेटी को पराया धन माना जाता था. तब शादी के बाद बेटी ससुराल चली जाती थी. माता पिता के ऊपर से बेटी की आर्थिक जिम्मेदारी खत्म हो जाती थी. अब ऐसा नहीं है. शादी के बाद भी बेटी के कैरियर को ले कर माता पिता की चिंता बनी रहती है. ऐसे में जरूरी है कि लंबे समय की बचत हो जिस से बेटी की शादी के बाद मदद कर सके.

तरह तरह की बचत योजनाएं

आमतौर पर 20 से 25 साल के बीच बेटी की शादी होने लगी है. ऐसे में बेटी को दी जाने वाली पूंजी की बचत करते समय लंबे समय की बचत करें. सामान्य परिवार एक बार में ही पैसा फिक्स डिपौजिट नहीं कर सकते. ऐसे में रेकरिंग डिपौजिट योजना कारगर हो सकती है. इस के तहत किसी बैंक या पोस्ट औफिस में खाता खोल कर हर माह एक तय रकम खाते में जमा कर सकते हैं.

खाता बेटी के नाम भी खुल सकता है. जब बेटी बालिग हो जाएगी तो वह खुद खाते का संचालन कर सकेगी. रेकरिंग डिपौजिट का एक लाभ यह है कि बैंक खाता खोलते समय ब्याज देने की जो सीमा तय कर लेगा वही बाद में देगा. ब्याज दर घटने पर वह ब्याज दर को घटा नहीं सकता है. अब बैंकों में पीएफ अकाउंट भी खोले जा सकते हैं. इस में जमा होने वाला पैसा टैक्स फ्री होता है. पीएफ खाते में ब्याज की दर सामान्य खातों से अधिक होती है.

बैंक के अलावा शेयर बाजार में एसआईपी यानी सिस्टमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान में भी पैसा जमा किया जा सकता है. एसआईपी में लंबे समय के लिए खाता खोलने में मुनाफा ज्यादा होता है. सामान्य रूप से इस में लंबे समय के लिए खाता खोलने से पीएफ और बैंक से ज्यादा ब्याज मिलने की संभावना रहती है. बैंक, डाकघर और म्यूचुअल फंड में इस तरह की अलगअलग योजनाएं बेटियों को ले कर भी बनने लगी हैं. ऐसे में आप बचत का तरीका अपनी जरूरत के हिसाब से चुन सकते हैं. हर खाते की समय सीमा इस तरह से तय की जाए कि शादी के बाद वह काम आ सके.

अगर शादी के समय या शादी के पहले यह बचत खाता पैसा दे रहा हो तो वह पैसा बेटी के नाम फिक्स डिपौजिट करा दे. इस से पैसा खर्च नहीं होगा और बेटी को जरूरत के समय पूरा पैसा मिल जाएगा.

सरकार बेटियों के लिए सुकन्या समृद्धि योजना चला रही है, जिस के तहत साल में 1 हजार से ले कर डेढ़ लाख रुपए सालाना तक जमा किया जा सकता है. बेटी के नाम से खोला जाने वाला यह खाता केवल 2 बेटियों के लिए ही खोला जा सकता है. इस का ब्याज पीएफ से अधिक होता है. समय पूरा होने पर मिलने वाली रकम आयकर की धारा 80सी के तहत कर मुक्त होती है. ऐसे में कर नहीं देना पड़ता है.

सरकार की गारंटी होने के कारण इस पर लोगों का ध्यान ज्यादा जाता है. लोग इसे सुरक्षित निवेश मानते हैं. कई बार लोग बेटी के नाम पर प्रौपर्टी खरीद लेते हैं. प्रौपर्टी का हस्तातंरण मुश्किल होता है. उसे समय पर सही कीमत पर बेचना आसान नहीं होता है. ऐसे में पैसों का निवेश ही सही तरह से पूंजी को लगाने का होता है. कुल मिला कर बेटी को भी बेटे की तरह ही निवेश की सौगात दे कर उस का भविष्य सुरक्षित करना समझदारीभरा कदम होगा.

ससुराल वालों को दें निवेश की जानकारी

शादी के बाद बेटी को निवेश के पूरे पेपर और सही जानकारी दें. अगर खाते में कुछ लिखापढ़ी को ले कर बदलाव हो तो करवा दें. शादी के बाद पति को नौमिनी बना सकते हैं. पत्नी के निवेश में पति का कानूनी हक होता है. इस के साथ ही साथ पति के नौमिनी बनने से पतिपत्नी के बीच एक भरोसे का रिश्ता बनता है. पति को यह नहीं लगता कि पैसा केवल पत्नी को ही दिया गया है. ऐसे में तालमेल सरल हो जाता है.

आज के दौर में लड़कियों को पढ़ाने के लिए एजुकेशन लोन भी मिलता है. अगर ऐसा कोई लोन लड़की के नाम पर हो तो उस की जानकारी भी ससुराल वालों विशेष कर पति को जरूर होनी चाहिए. पतिपत्नी के बीच भरोसे को बनाए रखने के लिए आर्थिक समझदारी और पारदर्शिता होनी जरूरी होती है. आर्थिक समझदारी होने से भविष्य की योजनाएं बनाने में मदद मिलती है.

इन्वैस्टमैंट की जरूरतों को पूरा करने के लिए पोर्टफोलियो मैनेज करने वाले जानकार विशेष राय का कहना है, ‘‘शादी के बाद बेटी के नाम और पते में कई तरह के बदलाव होते हैं. ऐसे में खातों में उन को ठीक कराना जरूरी होता है. कई बार लड़कियों के सरनेम बदल जाते हैं. इस को देख लें. आजकल लिखापढ़ी से बचने के लिए लोग नाम के साथ सरनेम में बदलाव नहीं करते हैं. शादी के बाद बेटी के खाते या निवेश के दूसरे पेपर में बैंक को पूरी जानकारी दे कर उन को भरोसे में ले लें, जिस से किसी तरह के बदलाव में बैंक का सहयोग मिलता रहेगा.’’

वैसे बेटी हो या बेटा उस को शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा कर दें. जिस से उसे किसी और पर निर्भर रहने की जरूरत ही न पडे़. इस के बाद भी बेटी को देने के लिए पैसों का उचित प्रबंधन करें, जिस से यह पैसा बेटी को अपनी जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सके. बेटी को अपने पैसों और उस के खाते की पूरी जानकारी होगी तो उसे किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पडे़गा. शादी के बाद भी वह अपने सपनों को उस निवेश के बल पर पूरा कर सकेगी

अगर हिल स्टेशन से है प्यार, तो अरुणाचल प्रदेश जरूर जाएं

अरुणाचल प्रदेश की वादियों में घूमने का अपना अलग ही मजा है क्योंकि वहां का मौसम, वातावरण, और हिल स्टेशन अरुणाचल प्रदेश को सबसे अलग बनाता है, अगर भारत में हिल स्टेशन का असली मजा अगर आप लेना चहती हैं तो आप अरुणाचल प्रदेश की सैर पर जरुर जाएं.

हम आपको यही सलाह देंगे की इस मौसम में आप अपने काम से छुट्टियां लेकर यहां हो आएं. हम आपको अरुणाचल की कुछ चुनिंदा जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि हिल स्टेशन के लिये मशहूर है.

इटानगर

अरुणाचल प्रदेश का वाणिज्यिक केंद्र और राजधानी इटानगर भी हिल स्‍टेशन के रूप में प्रसिद्ध है. यह इलाका कई ट्रेकिंग वे के लिए जाना जाता है. इटानगर में सर्दियों में घूमने का अलग ही मजा है. यहां बना इटा किला पयर्टकों को अपनी ओर आकर्षि‍त करता है. इसके अलावा गोम्पा बौद्ध मंदिर, इटानगर संग्राहलय जैसे यहां कई आकर्षण हैं. यहां जाने के लिए गुवाहाटी से पयर्टक हवाई सफर या फिर बस सफर को चुन सकती हैं.

पासीघाट

पासीघाट अरुणाचल प्रदेश राज्‍य का काफी पुराना शहर है. पर्यटकों के बीच यह जगह वौटर स्‍पोर्ट के लिए काफी मशहूर है. समुद्रतल से 155 मीटर की ऊंचाई पर बने पासीघाट की मनोरम पहाड़ियों में घूमना काफी अच्‍छा लगता है. फोटोग्राफी के लिए सिआंग नदी के किनारे घनी हरियाली का नजारा बहुत ही खूबसूरत लगता है. यहां जंगली वन्यजीव अभयारण्य, मौलिंग नेशनल पार्क और जेनगिंग आदि रोमाचंक जगहें हैं.

जीरो

अगर आप विश्व धरोहर स्‍थल और खूबसूरत हिल स्‍टेशन घूमना चाहती हैं तो फिर अरुणाचल प्रदेश का जीरो एक अच्‍छी जगह सा‍बि‍त होगा. जीरो का सुंदर पाइन ग्रोव बेहद खूबसूरत पिकनिक स्‍थल है. जीरो हिल स्‍टेशन इटानगर से 115 किलोमीटर के दायरे में फैला है. यह जि‍तना ज्‍यादा खूबसूरत उतनी ही पयर्टकों की भीड़ कम होने से शांत रहता है. इतना ही नहीं जीरो में ब्‍यूटी हाई एल्टीट्यूड फिश फार्म देखे जा सकती हैं.

बोमडिला

बोमडिला भी अरुणाचल प्रदेश के खूबसूरत हिल स्‍टेशन में एक है. यह समुद्र तल से 8000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यह शांत बर्फ से ढंके पहाड़ों कांगटो और गोरिचेन चोटियों से घिरा हुआ है. बोमडिला का सबसे महत्वपूर्ण स्थान बोमडिला मठ है. सेसा और्किड अभयारण्य यहां के आकर्षण का मुख्‍य केंद्र है. बोमडिला फैमि‍ली ट्रि‍प के लिए अच्‍छा स्‍थान है. यहां पर साल भर पयर्टकों को आना जाना लगा रहता है.

तवांग

तवांग भारत के अरुणाचल प्रदेश में पहाड़ों के बीच में बसा है. तवांग काफी छोटा जिला है लेकिन इसकी रहस्यमयी और जादुई खूबसूरती देखते ही बनती हैं. यहां की सुंदर वादियों में घूमने का एक अलग ही मजा है. यहां सूर्योदय के समय निकलने वाली पहली किरणों के बीच बर्फ से ढकी चोटि‍यां बेहद खूबसूरत लगती हैं. यहां पर पयर्टकों को घूमने के दौरान धर्म और सांस्‍कृति का एक अनोखा रूप देखने को मिलता है.

शशि कपूर की मौत से पहले इकट्ठा हुआ था पूरा कपूर खानदान

बौलीवुड में अपनी बेहतरीन एक्टिंग और शानदार लुक की वजह से फेमस एक्टर शशि कपूर का 4 दिसंबर को निधन हो गया. उन्होंने 79 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. वह पिछले काफी समय से बीमार थे और उन्होंने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में अंतिम सांस लीं.

शशि कपूर के निधन की खबर आते ही पूरा बौलीवुड गमगीन नजर आया. उनको अंतिम विदाई देने के लिए जहां बौलीवुड से उनके करीबी दोस्तों का जमावड़ा लगा रहा वहीं इस दुखद खबर के मिलने के बाद कपूर खानदान के सदस्यों का भी एक-एक कर के आना शुरू हुआ. उनके अंतिम संस्कार में करिश्मा कपूर, करीना कपूर, ऋषि कपूर, रणबीर कपूर, संजना कपूर, सैफ अली खान समेत सभी नजर आए.

इस बीच इंटरनेट पर कपूर खानदान की एक फैमिली फोटो वायरल हो रही है. जिसमें शशि कपूर के साथ पूरा परिवार नजर आ रहा है.

ये काफी रेयर फोटो है क्योंकि ऐसा बहुत कम होता है कि पूरा कपूर परिवार एक साथ इकट्ठा हो. इस फोटो में शशि कपूर बीच में बैठे हैं और पूरा परिवार उनके इर्द-गिर्द नजर आ रहा है.

तस्वीर में ऋषि कपूर, नीतू सिंह, रणबीर कपूर, करिश्मा कपूर, कुणाल कपूर, नीतू कपूर, रणधीर कपूर, बबिता कपूर, राजीव कपूर व अन्य फैमिली मेंबर साफ नजर आ रहे हैं. फोटो को पिछले साल करिश्मा कपूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया था. ये तस्वीर पिछले साल क्रिसमस के मौके पर क्लिक की गई थी. फोटो में राजीव कपूर लाल रंग की सेंटा कैप लगाए भी दिख रहे हैं. इस तस्वीर में करीना कपूर नहीं है.

शशि कपूर ने 1950 में ब्रेटिश एक्ट्रेस जेनिफर कैंडल से शादी की थी. उस समय वह सिर्फ 20 साल के थे. इन दोनों के तीन बच्चे कुणाल कपूर, करण कपूर और संजना कपूर हैं. पहले जेनिफर और शशि कपूर एक साथ पृथ्वी थियेटर को चलाते थे. वहीं जब 1984 में जेनिफर का निधन हो गया तब उनका बेटा कुणाल इस थियेटर की देखभाल करने लगा.

कुणाल ने अन्य कामों में बिजी होने की वजह से 1990 में अपनी बहन संजना कपूर को थियेटर की पूरी जिम्मेदारी दे दी. लेकिन संजना ने शादी के बाद दिल्ली में अपने परिवार के साथ सेटल होने का और कुछ नया करने का मन बनाया जिसके बाद कुणाल को एक बार फिर पृथ्वी थियेटर की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी. कुणाल अब एड फिल्म्स के निर्माण कार्य से जुड़े हुए हैं. जबकि उनके छोटे भाई करन कपूर एक फोटग्राफर हैं.

क्या वजह है कि ‘दीपिका बचाओ अभियान’ से जुड़ने को तैयार नहीं कंगना रनोट

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ को लेकर खड़ा हुआ विवाद अब भी चर्चा में बना हुआ है. फिल्म की रिलीज को लेकर संजय लीला भंसाली और ‘पद्मावती’ का किरदार निभा रहीं दीपिका पादुकोण को कई तरह की धमकियां मिली. लोग तो इस कदर दीपिका के पीछे पड़ कि उनका पुतला तक फुंक डाला. जब विरोध कर रहे लोगों को इससे भी शान्ति नहीं मिली तो उनमें शामिल लोगों में से किसी ने दीपिका का नाक कांटने की धमकी दीं तो वहीं किसी ने उनके सिर काटने पर ईनाम घोषित कर दिया.

लेकिन बौलीवुड इंडस्ट्री के कई सेलेब्स दीपिका के साथ आकर खड़े हो गये. उन्होंने अभिनेत्री को मिली धमकियों पर विरोध प्रदर्शन किया. इसी बीच शबाना आजमी ने ‘दीपिका बचाओ कैंपेन’ की पहल की, जिसमें जया बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा, विद्या बालन, कोंकणा सेन जैसी एक्ट्रेसेस ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.

मालूम हो कि, शबाना सभी बड़े सेलेब्स से ‘दीपिका बचाओ कैंपेन’ की याचिका पर साइन करा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भेजना चाहती हैं. इसका उद्देश्य दीपिका की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है.

एक ओर जहां कुछ एक्ट्रेस इस अभियान से जुड़ने को तैयार हैं, वहीं बौलीवुड की ‘क्वीन’ कंगना रनोट ने साफ कर दिया कि वह ‘दीपिका बचाओ’ आंदोलन से नहीं जुड़ेंगी और वे इस पेपर्स पर साइन भी नहीं करेंगी.

जहा सभी अभिनेत्रियां इस आंदोलन से जुड़ रही हैं तो भला कंगना क्यों नहीं? अगर आपके मन में भी इसतरह का सवाल उठ रहा है तो ज्यादा सोचिये नहीं क्योंकि वजह हम आपको बता देते हैं.

दरअसल, दीपिका बचाओ पहल से ना जुड़ने की असली वजह कंगना और उनके बीच का कोई मन-मुटाव नहीं है. एक्ट्रेस ने एक स्टेटमेंट जारी करते हुए कहा- “मैं जोधपुर में मणिकर्णिका की शूटिंग कर रही थी, तभी मुझे अपनी खास दोस्त अनुष्का शर्मा का फोन आया. उन्होंने मुझे शबाना आजमी की लिखित याचिका के बारे में बताया. मैंने उन्हें समझाया कि दीपिका पादुकोण को मेरा पूरा सपोर्ट है और मैं उनके साथ हर वक्त खड़ी हूं. लेकिन मैं शबाना आजमी की इस तरह की राजनीति से दूर रहना चाहती हूं.”

अपने स्टेटमेंट में कंगना ने कहा, “देश में इस समय जो परिस्थितियां हैं उसपर मेरा अपना एक नजरिया है. मैं खुद की ही कई चीजों में बाधक बनती रही हूं और ‘दीपिका बचाओ’ जैसी महिलावादी आंदोलनों का हिस्सा रही हूं, लेकिन जिसके द्वारा इस अभियान को चलाया जा रहा था उसने छेड़छाड़ के बाद मेरा चरित्र हनन किया था. ऐसा लगता है कि यह उन्हीं में से एक है. अनुष्का मेरी बात को समझ गईं और मुझे खुशी है कि वो मेरे पास यह मुद्दा लेकर आईं. जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि दीपिका को मेरा पूरा सपोर्ट है. बिना किसी और का सपोर्ट लिए जो लोग मुझे सही लगते हैं उनका समर्थन करने के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से समर्थ हूं.”

दिल्ली में अमेरिका और लंदन जैसा मजा, राजधानी में खुला मैडम तुसाद म्यूजियम

अब दिल्ली में भी लंदन और अमेरिका जैसा नजारा देखने को मिलेगा. 1 दिसम्बर से मैडम तुसाद म्यूजियम में एंट्री शुरू हो गई है. इससे पहले म्यूजियम को इससे पहले नवंबर में यह संग्रहालय सिर्फ शनिवार और रविवार को ही खोला जा रहा था. अगर आप भी मैडम तुसाद म्यूजियम में घूमने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो उससे पहले म्यूजियम से जुड़ी खास बातें जान लीजिए. जिससे आपका घूमने-फिरने का मजा दुगुना हो सके.

50 मशहूर हस्तियों के साथ क्लिक करें फोटो

मैडम तुसाद में लगाए जाने वाले मोम के पुतलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान ऋतिक रोशन, माधुरी दीक्षित, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, आशा भोंसले और मिल्खा सिंह आदि के नाम शामिल हैं.

वहीं इनके अलावा दिल्ली के मैडम तुसाद में हौलीवुड की मशहूर अभिनेत्री मर्लिन मुनरो, एजेंलिना जोली समेत कई सितारों के पुतले भी हैं. इसके अलावा म्यूजियम को हेरिटेज, पार्टी, म्यूजिक और स्पोर्ट्स जोन में बांटा गया है. जहां आपको कुछ न कुछ खास देखने को मिलेगा.

इतने की मिलेगी टिकट

18 साल से ऊपर के लोगों के लिए 960 रुपए और बच्चों के लिए यानि 18 साल से कम उम्र के लिए 760 रुपये चुकाने होंगे. अगर आप औनलाइन बुकिंग करते हैं, तो आपको 100 रुपए की छूट दी जाएगी. दिल्ली के मैडम तुसाद म्यूजियम के टिकट की एडवांस बुकिंग सुविधा अभी शुरू नहीं की गई है.

वहीं फैमली और ग्रुप के लिए अलग टिकट दर रखी गई हैं, लेकिन खास बात यह है कि कनौट प्लेस में मौजूद इस मैडम तुसाद म्यूजियम में एक दिन में सिर्फ 400 लोगों को ही प्रवेश दिया जाएगा. यह संग्रहालय सुबह 10 बजे से लेकर 7:30 बजे तक ही खुला रहेगा. तो, अगर आपको भी अपने पसंदीदा सितारे का वैक्स स्टेच्यू देखना है, तो मैडम तुसाद म्यूजियम घूमकर आ सकते हैं.

अर्थव्यवस्था : खोखली उपलब्धियों का बखान

अब केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर बचाव की मुद्रा में खड़ी दिखाई देने लगी है. नोटबंदी और फिर जीएसटी को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वरदान होने का दावा करने वाले नेता बगलें झांकते दिखे. चारों ओर से विरोध के स्वर उठने के बाद सरकार को यूटर्न लेने पर मजबूर होना पड़ा. आखिर 10 नवंबर को गुवाहाटी में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में सब से बड़ा बदलाव करना पड़ा. 211 कैटेगरी की वस्तुओं पर टैक्स घटाने के साथसाथ दूसरी रियायतें भी देनी पड़ीं.

अब तक 228 कैटेगरी की वस्तुओं पर 28 प्रतिशत टैक्स था. इन में से 178 पर टैक्स 18 प्रतिशत था यानी अब केवल 50 वस्तुओं पर 29 प्रतिशत टैक्स लगेगा. इस के बावजूद अनेक कारोबारी अब भी संतुष्ट नहीं हैं.

मजे की बात है कि अब ये चीजें सस्ती होंगी, महंगी क्यों हुई थीं, किस ने कीं और अब सस्ती कौन करेगा? जीएसटी काउंसिल ने माना है कि छोटे और मझोले उद्योग क्षेत्र में मुश्किलें आ रही हैं, पर अब तक जिन लोगों को नुकसान हो चुका है, वे उबर पाएंगे, कोई गारंटी नहीं है. अब भी अनेक कारोबारों से जुड़े सामानों मसलन सीमेंट, वार्निश, पेंट पर पहले जैसा 28 प्रतिशत टैक्स रखा गया है.

जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह भी तय हुआ कि जिन कारोबारियों पर टैक्स की देनदारी नहीं है उन्हें देरी से रिटर्न फाइल करने पर रोजाना सिर्फ 20 रुपए जुर्माना देना होगा. जिन पर देनदारी है उन्हें रोजाना 50 रुपए देना पड़ेगा. अभी यह सब पर 200 रुपए था. पर कोई लाभ नहीं क्योंकि इस से व्यापारियों पर जो मानसिक दबाव की स्थिति थी वह तो अब भी बरकरार रहेगी. 200 रुपए से घटा कर 50 या 20 रुपए करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ट्रेडर्स संगठनों का मानना है कि टैक्स रेट घटाने और कंपोजीशन की लिमिट 75 लाख रुपए से 1.5 करोड़ रुपए करने से 34 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा.

रसातल में अर्थव्यवस्था

सरकार यह राजस्व कहां से जुटाएगी? उसे कहीं न कहीं से भरपाई करनी होगी. वह कारोबारियों और आम जनता से ही वसूल करेगी. इसलिए इस फैसले से फायदे की गुंजाइश कम ही है. कंपोजीशन मैन्युफैक्चरर के लिए टैक्स 2 प्रतिशत से घटा कर 1 प्रतिशत किया गया है. ट्रेडर्स के लिए 1 प्रतिशत टैक्स में बदलाव नहीं. टर्नओवर में कर टैक्सेबल और नौन टैक्सेबल दोनों वस्तुएं शामिल होंगी पर टैक्स सिर्फ टैक्सेबल गुड्स पर देना पड़़ेगा. बस यह बढ़ोतरी का फैसला गुजरात चुनावों के बाद होगा. नतीजा चाहे जो भी हो.

इस फैसले से पारदर्शिता, भ्रष्टाचार और बेईमानी पर असर नहीं होगा. रिटेल इंडस्ट्री में ग्रोथ बढ़ेगी, इस बात की गारंटी नहीं है.

सरकार ने जाली करैंसी और कालाधन रोकने का लक्ष्य घोषित किया था पर दोनों ही काम नहीं हुए. कालेधन का बड़ा हिस्सा कहीं न कहीं लगा होता है, सर्कुलेशन में होता है, इसलिए नोटबंदी से कालाधन खत्म नहीं हुआ. सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है. उलटे, नए नोटों को छापने में 30 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे. जनता के काम के लाखों करोड़ घंटे जो बर्बाद हुए उन घंटों के नुकसान का तो अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता.

पिछले साल नवंबर में नोटबंदी और इस साल जुलाई में जीएसटी लागू होने के बाद सरकार ने बारबार चुनावी लहजे में कहा था कि अब अर्थव्यवस्था की दशा सुधरने लगेगी, पर दीवाली आतेआते व्यापारियों, किसानों, कर्मचारियों, मजदूरों और आम लोगों के सब्र का बांध टूटने लगा और जहां तहां उन का आक्रोश जाहिर होने लगा. गिरती अर्थव्यवस्था की तपिश लघु एवं मध्यम उद्योग समूह भी महसूस करने लगे थे. सोशल मीडिया पर तो प्रधानमंत्री के जुमलों की खूब बखिया उधेड़ी जाने लगी.

अर्थव्यवस्था रसातल में जाती दिखने लगी. तमाम सरकारी आंकड़ों और विदेशी सर्वे रिपोर्टों में भी सरकार के दावों की पोल खुलने लगी. वित्त वर्ष 2017 की पहली तिमाही में जीडीपी 3 साल के सब से निचले स्तर 5.7 फीसदी पर पहुंच गई. पिछली तिमाही में यह 6.2 प्रतिशत थी और उस से पहले 7.0 थी जबकि 2016-17 के वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में वृद्धि 7.9 फीसदी के स्तर पर थी.

अगर 2007-08 के आंकड़ों के आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को आंका जाए तो यह दर 3.7 प्रतिशत के आसपास तक गिर गई है.

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा यही बात कह रहे हैं तो उन्हें महाभारत के पात्र शल्य कह दिया गया. हालांकि शल्य को कौरवों के साथ भेजने की साजिश कृष्ण ने ही रची थी.

पिछले 2 महीनों को छोड़ दें तो देश का आयातनिर्यात पिछले 20 महीनों में लगातार गिरा है. इस वर्ष 15 लाख लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है. निजी निवेश गिर रहा है. औद्योगिक उत्पादन घट रहा है. कृषि संकट में है. निर्माण और दूसरे सर्विस सैक्टर्स की रफ्तार कमजोर हुई है. आयात निर्यात दिक्कतें झेल रहा है.

नोटबंदी व जीएसटी की मार

गिरती अर्थव्यवस्था के बड़े कारणों में नोटबंदी और जीएसटी प्रमुख हैं. पिछले साल नवंबर में नोटबंदी की घोषणा के बाद देश में 86 प्रतिशत नकदी को अवैध करार दे दिया गया था. जिस के बाद देश में हलचल मच गई. लाखों लोग बेरोजगार हो गए. लाखों व्यापार ठप हो गए. इस दौरान निम्नवर्ग के लोगों पर इस का बुरा असर पड़ा था.

इसके बावजूद जुलाई 2017 में जीएसटी लागू किया गया. इस के लिए काफी सारी कंपनियां तैयार नहीं थीं. बहुत सी कंपनियों ने तो अपने स्टौक को कम कीमत पर बेच दिया. नाराज व्यापारियों का कहना था कि पहले जब केंद्र से कहा गया कि ज्यादा जीएसटी से आम लोगों और छोटे कारोबारियों पर बोझ बढे़गा तो सरकार ने उन की बात नहीं सुनी. अब जब गुजरात के छोटे व्यापारी नाराज हो कर सड़कों पर उतरे तो सरकार टैक्स घटाने पर राजी हुई, क्योंकि वहां चुनाव जो होने जा रहा है.

जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों का टैक्स कलैक्शन कम हुआ है. सिर्फ 5 राज्यों ने राजस्व नुकसान न होने की बात कही है. बाकी सभी ने मुआवजा मांगा. देशभर के व्यापारी जीएसटी की जटिलता का रोना रो रहे हैं.

विश्व बैंक की ईज औफ डूइंग बिजनैस की रैंकिंग में भारत भले ही 30 पायदान ऊपर आ गया पर व्यापार और अर्थव्यवस्था से जुड़े कई इंडैक्स में देश अभी काफी पीछे है. ह्यूमन डवलपमैंट में भारत 188 देशों में 131वें, इकोनौमिक फ्रीडम में 186 देशों में 143वें, ग्लोबल पीस इंडैक्स में 163 देशों में 137वें स्थान पर ही है.

पिछले साल ग्लोबल हंगर इंडैक्स में 119 देशों में 97वें नंबर पर रहने वाला भारत अब 3 पायदान नीचे खिसक कर 100वें स्थान पर पहुंच गया. वैश्विक स्तर पर महाशक्ति बनने की राह पर बताने वाले भारत के लिए यह रिपोर्ट चिंताजनक तसवीर पेश करने वाली है.

ग्लोबल हंगर इंडैक्स की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में भूख अब भी एक गंभीर समस्या है. ग्लोबल हंगर इंडैक्स भुखमरी को मापने का एक पैमाना है जो वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर भुखमरी को प्रदर्शित करता है. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष जारी किए जाने वाले इस इंडैक्स में उन देशों को शामिल नहीं किया जाता जो विकास के एक ऐसे स्तर पर पहुंच चुके हैं जहां भुखमरी नगण्य है. इन में पश्चिम यूरोप के अधिकांश देश, अमेरिका, कनाडा आदि शामिल हैं.

बैंकों पर असर

देश में बढ़ता एनपीए यानी डूबत बैंक कर्ज साढ़े 9 लाख करोड़ रुपए के रिकौर्ड स्तर पर पहुंच गया. यह दिसंबर 2014 में 2.61 लाख करोड़ रुपए था. विशेषज्ञों ने कहा कि यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि इसे समझने के लिए इतना ही काफी है कि यह पैसा तेल संपदा के धनी कुवैत जैसे देशों सहित कम से कम 130 देशों के सकल घरेलू उत्पाद में शामिल पैसों से अधिक है. यह नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक समस्याओं को न समझ पाने की भक्ति की पोल खोलती है.

डूबते बैंक कर्ज यानी एनपीए के इस दलदल में बिजली, दूरसंचार, रियल्टी और इस्पात जैसे भारी पूंजी वाले क्षेत्र भी गहरे तक धंसे हुए हैं. जब ऐसे क्षेत्र कर्ज के भारी बोझ से दबे होंगे तो फिर ये भारत के बुनियादी ढांचे में बढ़ोतरी में मदद कैसे कर सकते हैं. बुनियादी ढांचे में ही विस्तार से देश की प्रगति हो सकती है. पर देश का नेतृत्व तो गाय, योगा और ताजमहल में अपने को उलझा कर रख रहा है.

देश में औद्योगिक उत्पादन की बात करें तो सितंबर में अगस्त की तुलना में औद्योगिक उत्पादन कम रफ्तार से बढ़ा. सितंबर माह में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक यानी आईआईपी 3.8 प्रतिशत दर्ज हुआ. अगस्त महीने में यह 4.3 प्रतिशत दर्ज हुआ था जबकि एक साल पहले सितंबर माह में इस में 5 प्रतिशत की ग्रोथ देखने को मिली थी.

गैडफ्लाई के एक विश्लेषण में बताया गया कि भारत को पिछले 4 वर्षों से निजी क्षेत्र के निवेश में सूखे जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है. गिरती अर्थव्यवस्था का असर लघु एवं मध्यम उद्योग समूह भी महसूस कर रहे हैं. एनपीए लगातार बढ़ता रहा, इस बढ़ोतरी पर चिंता व्यक्त की जाती रही. छोटे व्यापारियों से लोन की वसूली में बैंक उन का खून पी लेते हैं पर बड़े लोन में बैंक अक्षम साबित होते हैं.

सरकार मानती है कि बैंकों का बढ़ता एनपीए यानी बड़े लोगों से पैसे वसूल करना बड़ी चुनौती है. वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2016-17 के अंत तक विलफुल डिफौल्टर यानी जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वालों पर सार्वजनिक बैंकों का 92,376 करोड़ रुपए का बकाया था.

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा था कि बैंकों का फंसा कर्ज 9.6 प्रतिशत तक तय सीमा से अधिक पहुंच जाने पर समस्या को सुलझाने के लिए सार्वजनिक बैंकों में नई पूंजी डालने की जरूरत है. बाद में बैंकों को यह पूंजी दी गई. यह एक तरह का बेलआउट था. गिरती अर्थव्यवस्था पर भाजपा के ही नेता व पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री जेटली पर निशाना साधा था.

भाजपा से जुड़े अरुण शौरी और सुब्रह्मण्यम स्वामी भी कुछ ऐसा ही बोलते रहे हैं. यशवंत सिन्हा ने कहा था कि मौजूदा समय में न तो युवाओं को रोजगार मिल पा रहा है और न ही देश में तेज रफ्तार से विकास हो रहा है. निवेश लगातार गिर रहा है. इस की वजह से जीडीपी भी घटती जा रही है. जीएसटी की वजह से कारोबार और रोजगार पर विपरीत असर पड़ रहा है.

आर्थिक डिप्रैशन में देश

भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी यह भी कह चुके हैं कि देश की अर्थव्यवस्था आने वाले समय में और गिर सकती है और देश आर्थिक डिप्रैशन में जा सकता है.

मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे तब लोगों की राय बंटी हुई थी कि वह हिंदुत्ववादी मुखौटे में आर्थिक सुधारक हैं या आर्थिक सुधारक के मुखौटे में एक हिंदुत्ववादी? पिछले साढे़ 3 वर्षों में लोगों को पता चलने लगा कि मोदी सरकार ने बारबार धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा दिया है. देश की सब से बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कट्टर हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया. गौरक्षा, दलितों और मुसलमानों पर हमले, मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे छाए रहे. आर्थिक सुधारों की बातें तो केवल जुमला साबित हुई हैं, उन का एक भी अपना मौलिक आर्थिक प्रयास अब तक सफल नहीं हुआ है.

वास्तव में मोदी हिंदू कट्टरपंथियों और कौर्पोरेट के समर्थक साबित होंगे. उन की सरकार ने गोमांस निर्यात व्यापार को ले कर उग्रता दिखाई और मवेशियों की खरीद बिक्री का नया कानून बना दिया. मोदी के अधीन हिंदू राष्ट्रवादी धंधेबाजों का काम सरपट तेजी से चलने लगा है. ये लोग उन लोगों को डराने लगे जो सरकार के खिलाफ बोलते या लिखते हैं ताकि उन के व्यापार पर अंकुश न लगे.

नोटबंदी और जीएसटी का मोदी कोई नए विचार ले कर नहीं आए. नोटबंदी से भ्रष्टाचार, कालेधन का कुछ नहीं बिगड़ा. उलटे, उत्पादन और व्यापार का भारी नुकसान हुआ है. नारों के अलावा नरेंद्र मोदी के कोई भी आर्थिक कदम कारगर नहीं हैं.

जीएसटी से छोटे और मझोले व्यापारियों की कमर टूट गई. हर महीने इस का रिटर्न दाखिल करने की बाध्यता ने व्यापारियों को सांसत में डाल दिया. हालांकि बाद में सरकार ने डेढ़ करोड़ रुपए तक का व्यापार करने वालों को हर तिमाही पर रिटर्न दाखिल करने की छूट दे दी. अब कुछ और रियायतें भी दी गई हैं. यह एक तरह से पंडेपुजारियों के हवाले व्यापार करना है. फर्क इतना है कि पोथी की जगह पंडे कंप्यूटर ले कर बैठे हैं.

जीएसटी से छोटे उद्योगों को नुकसान कैसे हो रहा था? एक विशेषज्ञ बताते हैं कि मान लीजिए, किसी शहर के इंडस्ट्रियल एरिया में 7 चाय की दुकानें और 6 खाने के ढाबे चलते हैं. चाय की दुकान पर 1-1 लड़का और ढाबे पर 4-4 लोग काम करते हैं. कुल 31 लोगों को काम मिला हुआ है. मालिकों को मिला लिया जाए तो कुल 44 लोगों को रोजगार मिला हुआ है. जीएसटी लागू होने के बाद इन 11 इकाइयों की जगह 3 फास्टफूड आउटलेट खुल गए. हर आउटलेट पर 4-4 कर्मचारियों को रोजगार मिला. इलाके में चाय और खाने की आपूर्ति पर कोई असर नहीं पड़ा, पहले की तरह जारी रही पर रोजगार पर विपरीत असर पड़ा. पहले 44 कर्मी कमातेखाते थे. अब 12 कर्मी कमाएंगेखाएंगे. 29 लोग बेरोजगार हो गए.

इन 29 लोगों द्वारा बाजार से कपड़े, जूते, साइकिल आदि नहीं खरीदे जाएंगे. इस से संपूर्ण बाजार में मांग में गिरावट आएगी. इस तरह जीएसटी द्वारा छोटे उद्योगों पर हुए प्रहार का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. बड़े उद्योगों को बाजार चाहिए. यह बाजार छोटे उद्यमों द्वारा बनता है. छोटे उद्योगों की बलि चढ़ा कर बड़े उद्योग अछूते नहीं रहेंगे.

भारत में बस एक इंडस्ट्री फेल नहीं है और वह है भारतीय मजदूरों को विदेशों में नौकरी. अमेरिका जैसे देश के पाबंदी के नियमों के बावजूद देश के बेरोजगार बड़ी संख्या में बाहर जा रहे हैं. वे अपने परिवार को भी ले जाते हैं और फिर कुछ समय बाद वहीं बस जाते हैं.

दुखड़ा रोए तो किस के पास

दिल्ली की त्रिनगर मार्केट में किराने के सामान से ले कर कपड़ा और फुटवेयर तक घर में काम आने वाले हर सामान का व्यवसाय है. इन के साथसाथ ब्याहशादियों के लिए यह कपड़े का अच्छा मार्केट माना जाता है.

त्रिनगर में 10/7 की दुकान में एक युवा व्यापारी अनुज चौहान की परचून की दुकान है. वह कहता है, ‘‘नोटबंदी के बाद पैसों की तंगी आ गई. पहले दुकान में पूरा सामान भरा रहता था पर अब आधा माल भी नहीं है. माल के बिना बिक्री कहां से होगी. ग्राहक आते हैं, सामान पूछते हैं पर जो सामान वह चाहता है, दुकान में नहीं होता तो ग्राहक लौट जाता है. पहले ऐसा नहीं होता था. ग्राहक की मांग पर हर सामान उपलब्ध रहता था. अब बिना माल के खाली बैठे रहते हैं. दीवाली पर पैसे उधार ले कर माल डलवाया पर ज्यादा फायदा नहीं हुआ. नोटबंदी और जीएसटी से पहले कामधंधा ठीक था.’’

साड़ी, सूट के व्यापारी मनोज गुप्ता कहते हैं, ‘‘नोटबंदी और जीएसटी का असर उन के धंधे पर पड़ा है. बिक्री घट गई. नोटबंदी से उबरे तो जीएसटी का भय हम पर हावी है. जीएसटी अभी समझ ही नहीं आ रही है. जानकारों से जानने की कोशिश कर रहे हैं. अपना काम जानकार से करा रहे हैं.’’

चूडि़यों की दुकान चलाने वाले इस्माइल कादिर कहते हैं, ‘‘हमारा काम छोटे नोटों के सहारे चलता है. नोटबंदी से नोटों की किल्लत हो गई तो काम एकदम चौपट हो गया. फिर धीरे धीरे 500 और 2 हजार रुपए के नए नोट आए तो भी बुरा हाल रहा. छुट्टे रुपए की दिक्कत आई. अब हालात ठीक होने की गुंजाइश दिखती है पर नएनए नियम कायदों से कारोबार सुरक्षित नहीं दिखता.’’

बच्चों के रेडिमेड कपड़ों के व्यापारी महेश जैन कहते हैं, ‘‘हम व्यापारियों के लिए तो अनगिनत समस्याएं हैं. सरकार के नए नए कानूनों का सब से ज्यादा असर व्यापारी को झेलना पड़ता है. खुदरा कारोबार पर नोटबंदी का ज्यादा असर पड़ा. अब जीएसटी से निबट रहे हैं. इन फैसलों से धंधा कम हुआ है. जीएसटी से नफा नुकसान का आकलन अभी किया नहीं. पर इसे ले कर मानसिक परेशानी ज्यादा बढ़ गई है.

इस मार्केट की दुकानों के दरवाजे आज भी शीशे के नहीं हैं. दुकानों के आगे गाडि़यां नहीं हैं. ये घरेलू सामान बेचते हैं. जब इन दुकानों की स्थिति ठीक नहीं है तो देश की कहां से होगी. देश में हर छोटे, मझोले दुकानदार की हालत तकरीबन ऐसी ही है. नरेंद्र मोदी इन्हें ही कालाबाजारी कह कह कर कोस रहे हैं. इन्हीं से टैक्स वसूल रहे हैं ताकि सरकार चले. पंडे उन्हीं के बल पर मंदिरों की अपनी दुकानें चलाते हैं और उन्हीं के पापों को पुण्यों में बदलते हैं.

व्यापारी फिर भी भाजपा को वोट देंगे, क्योंकि वह ही हिंदुओं की संरक्षक है, हिंदुत्व की बात करती है और व्यापारी समझते हैं कि उन का पैसा भगवान की गुल्लक से आता है, अपनी मेहनत से नहीं.

बिगड़ रहे हैं हालात

असल में यह दोष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या वित्तमंत्री अरुण जेटली का नहीं है, उस जनता का है जो चमत्कार में विश्वास करती है. नोटबंदी लागू हुई तो लोग दिनरात लाइनों में लगे रहे. इस उम्मीद से कि अब तो मोदी सारा कालाधन ला कर उन के खातों में डाल देंगे. जीएसटी से लगा कि अब टैक्स चोरी रुक जाएगी. चमत्कार होगा और जनता का भविष्य सुधर जाएगा लेकिन पिछले साढ़े 3 वर्षों में क्या कोई करिश्मा हुआ?  क्या लोगों की दशा सुधरी? लफ्फाजी खूब हो रही है पर हालात जस के तस ही नहीं है बल्कि ज्यादा बिगड़ रहे हैं.

अब नोटबंदी और जीएसटी की मार असहनीय हो गई तो लोग कराहने लगे. अगर गुजरात विधानसभा के चुनाव न आते और वहां लोगों की चीखपुकार सुनाई न पड़ती तो सरकार के कानों पर जूं तक न रेंगती. चारों ओर होहल्ले के बाद सरकार को जीएसटी की दरें कम करने पर मजबूर होना पड़ा सिर्फ चुनावों तक. चुनाव बाद सरकार फिर अपने रंग में रंग जाएगी.

नोटबंदी और जीएसटी एक नया ब्राह्मणवाद है. यह आर्थिक, सामाजिक विभाजन है. इस से गैरबराबरी पैदा हो रही है. छोटे, मझोले व्यापारी, जो निचले तबकों से आते हैं, बरबादी की कगार पर जा पहुंचे.

देशभर से ऐसे लाखों व्यापारियों की दुकानों पर ताले लग गए. दुकानदार सड़कों पर आ गए. सरकार द्वारा अब टैक्स घटाने के फैसले से भी उन के बीते दिन वापस नहीं आ सकते. एक तरफ सब से अधिक खरबपति हमारे देश में हैं जबकि दूसरी ओर भुखमरी से तबाह और कुपोषित आबादी और गरीब मर रहे हैं. यह कैसा विकास है और किस का विकास है?

देश अपनी जीडीपी की दर की रफ्तार या शेयर सूचकांक की उछाल से महान नहीं बनेगा. व्यापार में आसानी, छोटे, मझोले व्यापारी और उद्योग समूह पर ज्यादा ध्यान, उन के साथ समानता और उत्थान की नीतियों से उन की प्रगति तय होगी. सरकार है कि इस कुव्यवस्था के बावजूद अर्थव्यवस्था की खोखली उपलब्धियों का बखान किए जा रही है.

गुलशन कुमार पर बनने वाली फिल्म से अक्षय कुमार ने किया किनारा

बौलीवुड में अघोषित कर्फ्यू सा लग गया है. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह से आगे बढ़ा जाए. ऐसे ही दौर में कई फिल्मों के प्रदर्शन पर रहस्य गहरा गया है. कई फिल्मों के प्रदर्शन की नई तारीखे आ गयी है, तो कुछ अपनी फिल्मों के निर्माण पर नए सिरे से सोच रहे है.

जबकि कुछ कलाकारों ने कुछ फिल्मों से खुद को अलग कर लिया है. यह सब हो रहा है फिल्म‘‘पद्मावती’’का प्रदर्शन न होने के बाद से फिल्म‘‘पद्मावती’’का क्या होगा. यह फिल्म प्रदर्शित होगी या नहीं, यदि होगी, तो कब. यह कई सवाल है, जिनका जवाब किसी के पास नही है. मगर इस फिल्म के साथ उठे विवाद के बाद बौलीवुड में तूफान के आने से पहले जैसी खामोशी छाई हुई है.

इसी खामोशी के बीच बौलीवुड में यह खबर गर्म है कि अब टीसीरीज के मालिक स्व.गुलशन कुमार के जीवन पर बनने वाली फिल्म ‘‘मोगल’’ का निर्माण भी खटाई में पड़ गया है.

सूत्र दावा कर रहे हैं कि टीसीरीज द्वारा बनाई जाने वाली इस फिल्म में पहले अक्षय कुमार अभिनय कर रहे थे और इसे अप्रैल 2018 तक सिनेमाघरों में पहुंचना था, मगर अब तक इसकी शूटिंग भी शुरू नहीं हुई है. अब तो टीसीरीज भी अपनी इस महवाकांक्षी फिल्म के संबंध में कोई बात नही करना चाहता.

मजेदार बात यह है कि जब टीसीरीज के भूषण कुमार ने अपने पिता गुलशन कुमार के जीवन पर आधारित फिल्म ‘‘मोगल’’ को अक्षय कुमार के साथ बनाने की बात कही थी, तो खुद अक्षय कुमार ने इसका पोस्टर और इस फिल्म से जुड़ने की बात का ट्विटर पर ऐलान किया था. मगर अब वह भी इस फिल्म को लेकर खामोश हैं.

सूत्र यह नही बता पा रहे है कि आखिर अक्षय कुमार ने इस फिल्म से खुद को अलग क्यों किया. अक्षय कुमार के इस फिल्म से हटने के बाद टीसीरीज ने किसी अन्य कलाकार के साथ फिल्म ‘‘मोगल’’ क्यों नही बनाना चाहता? खैर, देखना है कि इस फिल्म को लेकर कब टीसीरीज या अक्षय कुमार की तरफ से कुछ कहा जाता है.

अनमोल रिश्ता दोस्ती का : गीता और सोनी की यह कहानी एक मिसाल है

जब पारिवारिक रिश्तों की डोर टूट जाती है तो एक और रिश्ता हमारे जीवन में काफी महत्त्व रखता है और वह है दोस्ती का, जो विश्वास, सहयोग पर टिका होता है. दोस्त राजदार भी होते हैं और सुखदुख के साथी भी. ऐसे में जो लोग शादी के बारे में नहीं सोचते, वे दोस्ती की छाया और सुरक्षा में रह सकते हैं.

केरल की बास्केटबौल खिलाड़ी गीता वी मेनन और प्लेबैक सिंगर सोनी साई उन सभी लोगों के लिए आदर्श हैं, जिन्हें जिंदगी में अकेलेपन की समस्या है. गीता और सोनी का रिश्ता सभी परिभाषाओं से परे है. आज के जीवन में जहां शादी, तलाक और निराशाएं आम बात है, वहां यह दोस्ती एक बहुत अच्छा उदाहरण है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन में एक सच्चा दोस्त होना बहुत जरूरी है. एक ऐसा दोस्त जिस से आप अपना दुखदर्द बांट कर मन के बोझ को हलका कर सकें.

दोस्ती की यों तो कई कहानियां हैं, पर यहां हम आप को ऐसी कहानी बताते हैं जो औरों से जुदा है:

पहली मुलाकात

वे पहली बार अचानक बारिश में मिली थीं. उन्हें खुद ही इस बात का पता नहीं था कि उस दिन एक छाते के नीचे 2 अजनबियों के बीच एक अनोखी दोस्ती की शुरुआत हो चुकी थी.

गायिका सोनी साई अपने बेटे के साथ उस की बास्केटबौल की प्रैक्टिस पर आई थीं.

गीता बास्केटबौल खिलाड़ी और प्रशिक्षक हैं. वे इतनी तेज बारिश में इन के लिए छाता ले कर आईं और कहा, ‘‘आओ.’’

इस एक शब्द से ही इन की दोस्ती की शुरुआत हुई.

एकदूसरे का भरपूर साथ

जब गीता और सोनी मिलीं, तब दोनों ही अपने अकेलेपन से भरी जिंदगी के उतारचढ़ाव से गुजर रही थीं. दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं, यह सोच धीरेधीरे इन के बीच पैदा होने लगी और यह सच भी हुआ. आज ये दोनों एलमकारा में एक ही घर में रहती हैं. सोनी गीता के साथ तब खड़ी रहीं जब गीता बास्केटबौल में उभरते खिलाडि़यों के लिए एक अकादमी खोलने की सोच रही थीं. सोनी ने खुद ही इस अकादमी को खोलने का सुझाव दिया था. पेगासस नाम से खुली यह अकादमी मुप्पाथदम गवर्नमैंट हायर सैकेंडरी स्कूल में काम करती है. यह जगह विशेष रूप से इसी अकादमी के लिए मिनिस्टर इब्राहिम कुंजू द्वारा सुनिश्चित की गई है.

5 से 15 वर्ष की आयु तक के बच्चों को यहां ट्रेनिंग दी जाती है. सोनी पेगासस के मैनेजर के रूप में यहां की हर छोटीबड़ी चीज पर निगरानी रखती हैं. बहुत से बच्चे जो यहां ट्रेनिंग लेने आते हैं वे थोड़े गरीब परिवारों से होते हैं, तो ऐसे में उन्हें कम शुल्क में बास्केटबौल की ट्रेनिंग दी जाती है. हालांकि यह अकादमी वित्तीय संकट से जूझ रही है.

गीता का कहना है कि वे अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटेंगी. एफएसीटी के सभी साथी खिलाडि़यों ने उन का पूरापूरा साथ दिया.

गीता कहती हैं, ‘‘सोनी ने खुद इस अकादमी को खोलने का सुझाव दिया. जब यह अकादमी शुरू हुई, तो सोनी हर समय मेरे साथ खड़ी रहीं और मुझे सहारा दिया. जब गीता मेरे साथ रिकौर्डिंग के समय स्टूडियो में होती हैं, तो मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है. जब मैं मलयालम फिल्म ‘जलेसिया’ में गाना गा रही थी तब गीता भी मेरे साथ ही थीं. वे डाइरैक्टर जिन्होंने हमारी दोस्ती की गहराई को समझा, उन्होंने गाने के पूर्वाभ्यास के सभी चित्रों में गीता को भी शामिल किया.’’

ये दोनों ही अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करती हैं, पर जब ये दोनों साथ होती हैं तब इन के व्यवसाय का ग्राफ और भी ऊपर हो जाता है. अकेली महिलाओं को भी जीने का हक है, उन्हें भी व्यवसाय की आवश्यकता है.

जब एफएसीटी की टीम ने बास्केटबौल में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे खिताब जीते तो इस का सब से अधिक श्रेय गीता वी मेनन को दिया गया. पिछले 10 वर्षों से एफएसीटी की महिलाएं सभी मुख्य टूरनामैंट्स जैसे फैडरेशन कप आदि में अपना परचम लहरा रही हैं. गीता ने तब भी इसी खेल को चुना जब उन की बहुत सी सखियां इस राह को छोड़ कर अपने परिवारों की तरफ जाने लगी थीं पर गीता के जेहन में हमेशा से ही सिटी की आवाज और खेल का जज्बा जिंदा रहा. एक ऐसी महत्त्वाकांक्षा जिस ने गीता को इस खेल में बने रहने की शक्ति दी. जिंदगी की कठिन समस्याओं में भी डट कर खड़े रहने की महत्त्वाकांक्षा ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया.

गीता की उपलब्धियां

गीता ने खेल की दुनिया में 2013 में आयोजित वेटेरंस स्पोर्ट्स में अपनी वापसी की. यह एक ऐसे सैनिक की वापसी थी, जिस पर उम्र का कोई प्रभाव नहीं हुआ. उन्होंने लौंग जंप और राष्ट्रीय स्तर पर 4,100 मीटर रिले रेस में गोल्ड मैडल जीता,

2014 में जापान में आयोजित एशियाई मास्टर्स ऐथलैटिक्स खेलों में उन्होंने सिल्वर मैडल जीता.

जापान से लौटने पर एफएसीटी ने उन का जोरदार स्वागत किया. अगस्त 2015 में पैरिस में हुई वर्ल्ड मास्टर्स ऐथलैटिक्स मीट में वे अपने सब से पसंदीदा 2 खेलों में 5वें स्थान पर रहीं. जब वे इन खेलों की तैयारी करने में इतना खतरा उठाती थीं और खूब पैसा भी लगाती थीं तो केवल जीत ही उन के दिमाग में होती थी. यह टूटे दिल पर एक मरहम की तरह काम करता था.

सोनी साई के अंदर की गायिका को पहचान की जरूरत अवश्य है पर जो गीत उन्होंने गाए हैं उन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन के सभी गाने बहुत मशहूर हैं. साई ऐसी कलाकार हैं जिन्हें खुद का प्रचार करना बिलकुल नहीं आता. वे लाइट म्यूजिक में और स्कूल में राज्य स्तर पर 1998 में मिमिक्री के लिए पहला स्थान जीत चुकी हैं. उन्होंने 4000 से भी अधिक स्टेज प्रोग्रामों में गाने गाए हैं. सोनी हरिहरन, यसुदास, एमजी श्रीकुमार, ब्रह्मानंदन, वेणुगोपाल, जयचंद्रन आदि मशहूर गायकों के साथ प्लेबैक सिंगिंग कर चुकी हैं.

सोनी साई ने पहला गाना 13 वर्ष की उम्र में ‘सुधावासम’ मूवी के लिए गाया. इस के बाद यशुदास के साथ ‘अधीना’ मूवी के लिए गाया. इस के बाद ‘कनल कन्नडी’, ‘भारथन’, ‘धीरा’, ‘बांबे मार्च 12’ व ‘निद्रा’ में गाने गाए. प्रसिद्ध गायक सोनू निगम के साथ ‘चक्कारा माविन कोमबाथु…’ भी गाया.

उन्हें बहुत से पुरस्कार भी मिले जैसे कामुकरा फाउंडेशन अवार्ड (1998), सार्क अवार्ड (1999), बैस्ट सिंगर अवार्ड, राघवन मास्टर ट्रिब्यूट (2014), अरबन डेवलपमैंट कौंसिल द्वारा रोल मौडल सिंगर का खिताब (2015) और केरला अचीवमैंट फोरम जैसे खिताबों से इन्हें नवाजा जा चुका है, इन्होंने यूके, यूएसए, यूएई और पूरे भारत में बहुत शोज किए.

– एम.के. गी  

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