हर एक भारतीय के पास हैं ये वित्तीय अधिकार

देश के मौजूदा कानून ने एक आम भारतीय को कई अधिकार दे रखे हैं, जिन से बहुत से लोग अनजान हैं. आइए जानते हैं, कुछ अहम वित्तीय अधिकारों को :

इंश्योरैंस पौलिसी वापस करने का अधिकार

अगर आप ने कोई बीमा पौलिसी खरीदी है और लेते ही आप के मन में पछतावा हो कि आप का यह निर्णय गलत हो गया तो आप पौलिसी डौक्यूमैंट मिलने के 15 दिनों के भीतर उसे वापस लौटा सकते हैं. सोचनेसमझने की यह समयावधि 3 साल या अधिक समय के लिए की गई सभी जीवन बीमा पौलिसियों व स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लिए वैध है.

पौलिसी वापस करने के लिए आप को एक आवेदनपत्र लिखना पड़ेगा. ज्यादातर बीमा कंपनियों ने इस के लिए फौर्म डाउनलोड कर रखे हैं जिन्हें आप अपनी वैबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं. इसे आप को खुद कंपनी में जमा करवाना चाहिए, क्योंकि एजेंट अपने कमीशन के चक्कर में आप को धोखा दे सकता है और जानबूझ कर 15 दिनों का समय बिता सकता है.

ऋणदाता द्वारा दुर्व्यवहार से सुरक्षा

आप ने किसी भी वित्तीय संस्था, (बैंक/फाइनैंस कंपनी) निजी कंपनी या फिर व्यक्ति से ऋण लिया है और किसी कारणवश उसे लौटा नहीं पा रहे हैं तो भी ऋणदाता या उन के रिकवरी एजेंट आप के साथ बदतमीजी से पेश नहीं आ सकते हैं. सब से पहले ऋणदाता आप को 60 दिनों का समय देते हुए एक नोटिस देगा. इस बीच आप ऋणदाता के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं.

ऋणदाता इस समयावधि में आप के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता और उसे आप ने मिलने या कौल करने के लिए सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे का ही समय चुनना होगा. आधी रात में फोन करना या धमकाना कानूनन जुर्म है. आप इस के लिए अधिकारियों से शिकायत कर सकते हैं या फिर पुलिस स्टेशन में एफआईआर भी लिखवा सकते हैं.

टैक्स रिफंड 90 दिनों के भीतर मिलना चाहिए

अगर आप का विभिन्न मदों में टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) कटा है और आप का टैक्स उस से कम बनता है तो आयकर विभाग टैक्स काटने के बाद की रकम आप को लौटा देता है. यह राशि आप को इनकम टैक्स रिटर्न जमा देने के 90 दिनों के भीतर प्राप्त करने का अधिकार है.

अगर विभाग आप की अतिरिक्त रकम लौटाने में देर करता है तो 0.5 फीसदी प्रतिमाह की दर से आप को ब्याज हासिल करने का अधिकार है. यह ब्याज आप द्वारा रिवाइज्ड टैक्स रिटर्न फाइल करने के बावजूद मिलेगा. अगर आप को 90 दिनों में टीडीएस रिफंड नहीं मिलता है तो आप संबंधित अधिकारी से निवेदन कर सकते हैं.

संपत्ति पर अधिकार समय पर प्राप्त होना चाहिए

जब आप कोई प्रौपर्टी (फ्लैट या मकान) खरीदते हैं तो खरीदारी के वक्त तय समय सीमा के भीतर उस पर कब्जा करने का अधिकार भी मिल जाता है. किसी कारणवश बिल्डर प्रोजैक्ट में देरी कर रहा हो और तय समयावधि में आप को फ्लैट या मकान में कब्जा न दे पा रहा हो तो आप ईएएमआई में लग रही ब्याज के समान दर की वसूली के हकदार हैं. आप चाहें तो उस के पास अपनी बकाया रकम की मांग भी कर सकते हैं.

आप के द्वारा दावा करने के 45 दिनों के भीतर बिल्डर को रकम लौटानी होगी. अगर बिल्डर आप की बात न सुने तो आप अपने राज्य की रीयल एस्टेट रैगुलेटरी औथरिटी के पास इस की शिकायत कर सकते हैं. प्राधिकरण द्वारा 60 दिनों में शिकायत का निबटारा अपेक्षित है.

लौकर सुविधा पाने का अधिकार

किसी बैंक में लौकर लेने के लिए आप को न तो वहां बचत खाता खोलने के लिए और न ही उन का प्रोडक्ट खरीदने के लिए बाध्य किया जा सकता है. हां, बैंक आप से एक फिक्स डिपौजिट मांग सकता है जिस में 3 साल का किराया व अन्य शुल्क वसूल हो सके. अगर बैंक लौकर उपलब्ध न होने का दावा करता है तो आप उन से वेट लिस्ट मांग सकते हैं, जिस से उन के दावे की सत्यता जांची जा सकती है.

अगर बैंक उपलब्धता के बावजूद लौकर न दें तो आप वहां की ग्रीवैंस सेल में शिकायत करें. इस के बावजूद मामले की सुनवाई न हो तो ओंबड्समैन या रिजर्व बैंक को शिकायत करें.

रैस्टोरैंट में सर्विस चार्ज न देने का अधिकार

अगर आप किसी रेस्तरां की सेवाओं से खुश नहीं हैं तो आप बिल में लगाए गए सर्विस चार्ज को देने से मना कर सकते हैं. सर्विस चार्ज सर्विस टैक्स या वैट की तरह कोई सरकारी लेवी नहीं है और यह सीधेसीधे रेस्तरां मालिक की जेब में जाती है. अगर रेस्तरां के कर्मचारी या मालिक इस के लिए जोरजबरदस्ती या झगड़ा करें तो आप उपभोक्ता मामलों के विभाग में शिकायत दर्ज करवा सकते हैं. हां, बिल अवश्य साथ में ले लें.

म्यूचुअल फंड मैंडेट में बदलाव जानने का हक

आप किसी खास म्यूचुअल फंड में पैसा तभी लगाते हैं जब आप को उस की निवेश पौलिसी पसंद आती है, लेकिन किन्हीं कारणों से अगर म्यूचुअल फंड कंपनी निवेश नीति में बदलाव करती है और पहले से बिलकुल अलग सेजमैंट में अपना पैसा निवेश करने की योजना बनाती है तो उसे अपने निवेशकों को इस की पूर्व सूचना देनी पड़ेगी. अगर आप को कंपनी की नई निवेश नीति पसंद नहीं तो आप बिना कोई एग्जिट चार्ज दिए इस में से निकल सकते हैं.

अनधिकृत कार्ड ट्रांजैक्शन के पेमैंट से इनकार

अगर आप के डैबिट या क्रैडिट कार्ड से अनधिकृत भुगतान किया गया है और आप को इस की जानकारी नहीं है तो आप इस के पेमैंट के लिए मना कर सकते हैं. लेकिन आप को यह प्रमाणित करना होगा कि आप ने ऐसा कोई ट्रांजैक्शन नहीं किया. किसी भी प्रकार के अनधिकृत लेनदेन का पता चलते ही सब से पहले बैंक से लिखित शिकायत करें और कार्ड को ब्लौक करने का निर्देश दें. इस के बाद आप को पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट भी लिखवानी चाहिए.

कमीशन की राशि जानने का अधिकार

आप को यह जानने का अधिकार है कि आप को बेची गई पौलिसी या म्यूचुअल फंड प्रोडक्ट से आप को इंश्योरैंस एजेंट या फंड डिस्ट्रीब्यूटर ने कितना कमीशन कमाया है. आप के पूछने पर इंश्योरैंस एजेंट आप को कमीशन की राशि बताने के लिए बाध्य है. इसी प्रकार म्यूचुअल फंड कंपनी डिस्ट्रीब्यूटर को कितना कमीशन दे रही है, यह अकाउंट स्टेटमैंट में लिखने का चलन है. अगर आप के चाहने के बावजूद आप को इन सूचनाओं से वंचित रखा जाता है तो आप म्यूचुअल फंड्स के लिए सेबी और इंश्योरैंस के लिए आइआरडीएआई से संपर्क कर के शिकायत कर सकते हैं.

आप को जानने का पूरा अधिकार है कि जो पौलिसी आप को बेची गई है, इंश्योरैंस एजेंट ने उस से कितना कमीशन कमाया है.

बंधनों के प्रति भी रहें सजग

आप जितने सजग अपने वित्तीय अधिकारों को ले कर रहते हैं उतना ही कानूनी बंधनों के प्रति भी सचेष्ट रहना चाहिए.

टैक्स पेमैंट

एक अच्छे नागरिक की तरह आप को अपनी आय पर जो टैक्स विभिन्न धाराओं में छूट आदि के बाद बनता है. उस का भुगतान जरूर करना चाहिए.

सच्ची जानकारी

जीवन बीमा हो या स्वास्थ्य बीमा, जब भी आप कोई पौलिसी खरीदें तो अपने बारे में सभी जानकारियां सहीसही दें. गलत जानकारी आगे चल कर आप के लिए ही नुकसानदायक साबित हो सकती है. संबंधित कंपनी को अगर पता चल गया तो आप का क्लेम रिजैक्ट किया सकता है.

सही समय पर भुगतान

ऋण की किस्त हो या क्रैडिट कार्ड की बकाया रकम, समय पर चुकाना आप का बाध्यतामूलक कर्तव्य है. देर से चुकाने पर न सिर्फ आप की साख खराब होती है बल्कि लेट फाइन के रूप में मोटी रकम भी चुकानी पड़ सकती है.

नौमिनी का नाम दें

बैंक खाते, फिक्स डिपौजिट, शेयर ब्रोकिंग फर्म औरर इंश्योरैंस पौलिसी में अपने नौमिनी का नाम जरूर लिखवाएं. किसी अनहोनी की सूरत में भुगतान का निबटारा बिना किसी झंझट के हो जाएगा. वरना आप के पारिवारिक सदस्यों को रकम वसूलने के लिए पापड़ बेलने पड़ेंगे.

(कोलकाता हाईकोर्ट के वकील इंद्रनील चंद्र, फाइनैंस एडवाइजर प्रदीप अग्रवाल, सीए जतिन मित्तल, सीए चीनू शर्मा, सीएस गौतम दुगड़ से बातचीत पर आधारित).

इन शहरों में ठंड में जाएं घूमने, सस्ते में अच्छी होगी आपकी यात्रा

दुनिया में हर प्रकार के लोग हैं अलग अलग सोच और तरीके के कुछ लोग अपने जीवन को चुपचाप बैठे बैठे गुजार देते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें सिर्फ घूमने का शौक होता है, इस तरह के लोग अक्सर मौके की तलाश में रहते हैं, कि कब मौका मिले और कब वो कहीं घूमने के लिये निकल पड़े.

लेकिन इन सबके बीच जब कई बार हम विदेश यात्रा का मन बनाते हैं तो मन में पैसों का ख्याल आता है, और हम पैसों का मुंह देखते रह जाते हैं और खर्चे हो जाने के डर से हम अपना प्लान रद्द कर लेते हैं. लेकिन अगर हम कहें की अब आप भी विदेश यात्रा पर जा सकती हैं वो भी कम खर्चों में तो आप इस बात पर यकिन नहीं करेंगी.

तो हम आपको यह बताना चाहेंगे की अब आप इस टेंशन को अलविदा कह दें क्योंकि अगर आपका मन विदेश यात्रा करने का कर रहा है और पैसे की वजह से परेशान है. तो हम आपको विदेशों के कुछ ऐसे शहरों के बारे में बताने जा रहें हैं, जहां जाकर रहना, खाना, घूमना फिरना और शौपिंग करना काफी सस्ता है लेकिन आपको यहां का सफर अगर करना है तो मेरी माने सर्दियों के मौसम में यहां जाना आपके लिये फायदे का सौदा होगा.

सेन मिगुएल डे अल्लेन्डे, मैक्सिको

मैक्सिको में सेन मिगुएल डे अल्लेन्डे बेहद खूबसूरत शहर है. नवंबर के महीने में घूमने के लिए यह जगह अच्छा और सस्ता साबित हो सकती है क्‍योंकि शुरू में मौसम ड्राई होता है. इसलिए यहां सूरज और मौसम के बारे में बिना सोचे आराम से आप घूमने जा सकती हैं और शहर की खूबसूरत जगहों का आनंद ले सकती हैं.

पेरिस, फ्रांस

पर्यटकों की लिस्‍ट में पेरिस सबसे ऊपर रहता है लेकिन गर्मियों में यहां भीड़ की वजह से यहां पयर्टकों को कमर्फट जोन कम मिलता है. बावजूद इसके यहां पर लोग जाना पसंद करते हैं. ठंड के मौसम में यह जगह काफी कूल रहता है. शौपिंग और मौज-मस्ती करने वालों के लिए यह जगह एकदम परफेक्‍ट है.

काबो सान लुकास, मैक्सिको

काबो सान लुकास शहर भी मैक्सिको में सर्दियों की छुट्टि‍यों में घूमने के लिए अच्छी जगह है. ऐसे में यहां पर ज्‍यादा भीड़ बढऩे से पहले और चीजों की कीमतें महंगी होने से पहले आप सर्दियों के अंत तक यहां जा सकती हैं. काबो में आपको मछली पकड़ने और व्हेल मछली देखने का एक गोल्‍डन चांस सा मिलता है.

रिओ डे जैनेरो, ब्राजील

सर्दियों के महीने में यहां जाने पर जन्‍नत में घूमने जैसा एहसास होगा. ब्राजील में यह एक तरह से बसंत का समय है. ऐसे में जो लोग ज्‍यादा ठंड में घूमने से बचते हैं ऐसे लोगों के लिए इस मौसम में यहां घूमना सस्ता और सबसे अच्छा होगा. पयर्टकों को यहां समुद्र तट के किनारे समय बिताना बहुत अच्‍छा लगता है.

फोएनिक्स, एरिजोना

नवंबर के महीने में घूमने के लिए एरिजोना का ये शहर भी काफी अच्‍छा है. इस समय यहां का तापमान गर्मि‍यों की तुलना में काफी गि‍र जाता है. इस लिए यहां पर दक्षिण-पश्चिमी शहर की पैदल यात्रा में अनोखे नजारे देखने को मिलेंगे. यहां पयर्टक गोल्‍फ जैसे आउटडोर गेम भी खेले सकते हैं.

रेकाजाविक, आइसलैंड

अमेरिका से यूरोप की उड़ान भरने वाले यात्रियों के लिए रेकाजाविक, आइसलैंड एक मशहूर और खूबसूरत स्टौपओवर प्‍लेस है. रेकाजाविक एक रोमांचक शहर है जो कि अपने आप ही पयर्टकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. यहां पर सस्ती उड़ानों का मजा लेने के साथ ही बहुत सारे दर्शनीय स्थल देखने को मिलेगे.

औरलैंडो फ्लोरिडा

फ्लोरिडा के औरलैंडो शहर में नवंबर में तापमान काफी सामान्य है. पयर्टकों को यहां पर गर्म मौसम का एहसास होगा. इसलिए छुट्ट‍ियां बिताने के लिए यह समय एकदम परफेक्‍ट है. शुरू में भीड़ कम होने से चीजें सस्‍ती होती हैं. ऐसे में आप यहां डिजनी वर्ल्‍ड पार्क जैसी जगहों पर आराम से मस्‍ती कर सकती हैं.

पाम स्प्रिंग्स, कैलिफोर्निया

कैलिफोर्नि‍या का पाम स्प्रिंग्स शहर भी बहुत शानदार है. लौस एंजिल्स से एक छोटी सी ड्राइव से यहां जाया जा सकता है. यहां जाने पर दुनिया से दूर एक अलग शांति का एहसास होता है. शांतिपूर्ण रेगिस्तान शहर में होटल, रिसौर्ट्स और किराये के घरों नवंबर के महीने में अच्‍छा समय बि‍ताया जा सकता है.

बार्सिलोना, स्पेन

स्‍पेन का बार्सिलोना भी दुनिया के सस्ते और अच्छे शहरों में से एक है. यहां सागर में डुबकी लगाने का एक अलग ही मजा है. हालांकि आप इस मौसम में सागर में डुबकी नहीं लगाना चाहती हैं तो भी यहां पर और भी घूमने के बहुत से दूसरी जगहें हैं, अलमुडेना गिरजाघर जिनमें से एक है.

बैंकौक, थाईलैंड

थाईलैंड के बैंकौक शहर में भी घूमने के लिए सर्दियों का महीना अच्‍छा है. इस मौसम में यहां पर हल्‍की धूप रहती है. इतना ही नहीं यहां पर उड़ाने भी काफी हद तक सस्‍ती रहती हैं. इसलिए छुट्ट‍ियों के दिनों में यहां घूमने का एक अलग ही मजा आएगा. नीले समुद्रों की खूबसूरती पयर्टकों को बहुत भाती है.

फिर आमने-सामने आए एक्स लवर्स शाहिद और करीना

बौलीवुड में कई ऐसे कपल्स थे,जिनका प्यार चर्चा में तो छाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पाई. इन कपल्स में से एक हैं शाहिद और करीना.

भले ही आज दोनों अपने-अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ हंसी-खुशी जिन्दगी बिता रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी दोनों का रिश्ता आज भी उनके फैन्स की जुबां पर है.

यही वजह है कि जब भी दोनो आमने-सामने आते हैं,  लोगों की नजरें उन पर टिक जाती है. हाल ही में ऐसा तब हुआ, जब करीना और शाहिद दोनों ही फिल्मफेयर ग्लैमर एंड स्टाइल अवार्ड में पहुंचे.

इस समारोह में एंट्री करते ही करीना मीडिया और फोटोग्राफर्स को तस्वीरें दे रही थीं, लेकिन तभी उनके पीछे-पीछे शाहिद कपूर की एंट्री हुई. शाहिद बड़े सब्र के साथ करीना के फोटोसेशन हो जाने का इंतजार करते रहे.

जब करीना को इस बात की खबर लगी की शाहिद उनके पीछे खड़े हैं, तो उन्होंने बड़ी बेरुखी से नजर घुमा ली और मीडिया को नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ गईं. इसके बाद शाहिद कपूर स्टेज पर आए और मीडिया को तस्वीरें देने लगे.

भले ही दोनों ने एक-दूसरे को इग्नोर किया हो, लेकिन इस मूमेंट को देखकर वहां मौजूद लोग जरूर उत्साहित हो गए थे. यह पूरा वाक्या एक वीडियो के तौर पर कैमरे में कैद कर लिया गया, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

चीन में ये होगा ‘बजरंगी भाईजान’ फिल्म का नाम

जैसा कि सभी जानते हैं कि भारत के बाद आमिर खान की दंगल ने चीन में तहलका मचाया था और वहां रिलीज के साथ ही सफलता के झंडे गाड़ दिए थे. जिसके बाद चीन में बौलीवुड फिल्मों की मांग बढ़ गई है. अब आमिर खान के रास्ते पर चलते हुए सलमान खान भी अपनी ब्लौक बास्टर फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ चीन में रिलीज करने जा रहे हैं.

यह फिल्म वैसे तो भारत में भी अपनी सफलता का डंका बजा चुकी है, लेकिन अब चीन में फिल्म रिलीज करने को लेकर मेकर्स के बीच काफी उत्साह है. लेकिन क्या आप जानते हैं, इस फिल्म का नाम चीन में ‘बजरंगी भाईजान’ न होकर कुछ और होगा?

जी हां, इस फिल्म का नाम चीन में ‘लिटल लोलिता मंकी किंग’ रखा गया है, जो कि अपने आप में बेहद मजाकिया नाम है. भले ही भारत के लोगों के लिए ये नाम थोड़ा अजीब हो, लेकिन मेकर्स को पूरी उम्मीद है कि यह फिल्म दंगल की ही तरह चीन में जमकर कमाई करेगी. चाइना में ये फिल्म 140 मिनट की होगी.

बता दें कि बजरंगी भाईजान को कबीर खान ने डायरेक्ट किया है और इस फिल्म में सलमान खान के अलावा करीना कपूर, हर्षाली मल्होत्रा और नवाजुद्द्दीन सिद्दीकी भी मौजूद हैं.

‘टाइगर जिंदा है’ के प्रमोशन पर फूट फूट कर रोईं कैटरीना

सलमान खान और कैटरीना कैफ की केमिस्‍ट्री कितनी जबरदस्‍त है, यह तो उन दोनों को साथ में देखकर ही समझ आ जाता है. हाल ही में बिग बौस के वीकेंड के वार में नजर आए जोया और टाइगर के बीच का जबरदस्‍त अंदाज दर्शकों को काफी पसंद आया.

लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा हुआ है जिससे जानकार इस जोड़ी के फैन्‍स काफी खुश हो जाएंगे. फिल्‍म में तो टाइगर अपनी जोया को दुखी देख नहीं पाता लेकिन इस फिल्‍म के प्रमोशन के दौरान भी सलमान खान ने कुछ ऐसा किया है कि रोती हुई कैटरीना भी मुस्‍कुरा गईं.

कैटरीना और सलमान खान की जोड़ी फिल्‍म ‘टाइगर जिंदा है’ में नजर आने वाली है और इस फिल्‍म के प्रमोशन में यह दोनों जमकर लगे हुए हैं. हाल ही में यह जोड़ी स्‍टार प्‍लस के शो ‘डांस चैंपियन’ में अपनी फिल्‍म के प्रमोशन के लिए पहुंचे. यहां इस शो के एक कंटेस्टेंट ने सलमान की फिल्म ‘तेरे नाम’ के टाइटल सौन्ग पर परफौर्म किया जिसे देखकर कैटरीना काफी इमोशनल हो गईं.

Everyday I wait for new picture of @katrinakaif ma’am ! But I never in my worst dream wanted to see this ! Ma’am when you cry in a movie I cry ! When Maya died in the film #NewYork I cried the entire day ! I love the movie but I never watch it because I don’t want to see that scene ! And these are all your performances ! That’s what acting is all about ! Its not happening in real life ! Still it hurts so much ! Now this ! You are crying in real life ! ??? ma’am its just an act please don’t ? this picture is killing me ? please don’t cry please ? this is the saddest thing ever ? please ma’am don’t cry ever ? for us ! Please ? #katrinakaif on the sets of #dancechampions ! She cried after watching a performance ! ?

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सलमान खान और भूमिका चावला की इस फिल्‍म के गाने पर डांस देखकर कैटरीना इतना इमोशनल हुईं कि शो की शूटिंग की 10 मिनट के लिए रोकनी पड़ गई.

इसके बाद सभी ने कोशिश की कि कैटरीना के आंसू बंद हो जाए लेकिन कोई भी कैटरीना को इस मानसिक स्थिति से बाहर नहीं निकाल पाया. लेकिन फिर सलमान ने उनके चेहरे पर मुस्‍कान ला दी. कैटरीना को इमोशनल देख सलमान ने अपनी फिल्म ‘सुल्तान’ के गाने ‘जग घुमेया’ पर अपना सिग्‍नेचर स्‍टैप किया और बार-बार कैटरीना की तहफ ही इशारा करते रहे.

जिसे देख कैटरीना के चेहरे पर मुस्‍कान आ गई. इसके बाद दोनों ने फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के गाने ‘दिल दिवाना’ पर परफौर्म भी किया.’

इस घटना से साफ है कि फिल्‍म हो या फिर रीयल लाइफ, सलमान को कैटरीना के चेहरे पर मुस्‍कान लाना अच्‍छे से आता है. बता दें कि ‘टाइगर जिंदा है’ 22 दिसंबर को रिलीज होने वाली है. य‍ह फिल्‍म साल 2012 में आई ‘एक था टाइगर’ का सीक्‍वेल है.

जो सही नहीं उसे मैं मानता नहीं : पुलकित सम्राट

साल 2006 में छोटे पर्दे की धारावाहिक ‘क्योंकि सांस भी कभी बहू थी’ में लक्ष्य वीरानी के नाम से चर्चित हुए अभिनेता पुलकित सम्राट दिल्ली के हैं. अभिनय की शुरुआत उन्होंने माडलिंग से की. उनका फिल्मी कैरियर फिल्म ‘बिट्टू बौस’ से शुरू हुई जो खास सफल नहीं रही. उन्हें पहचान फिल्म ‘फुकरे’ से मिली, जिसमें उन्होंने ‘हनी’ की भूमिका निभाई.

पुलकित स्वभाव से शांत हैं, पर जो बात उन्हें पसंद नहीं उसपर गुस्सा भी खूब करते हैं. उन्होंने साल 2014 में अपनी गर्लफ्रेंड श्वेता रोहिरा से शादी की, जो साल 2015 में टूट गयी. अभी वे अपने आपको सिंगल कहते हैं. पुलकित फिल्म ‘फुकरे रिटर्न’ के प्रमोशन में व्यस्त हैं. पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश.

किसी फिल्म की सीक्वल में काम करना कितना मुश्किल होता है?

ऐसी फिल्में करने के बाद अगर फिल्म बौक्स औफिस पर सफल रही, तो सारे कलाकारों को फिर से अपने आप को और अधिक ‘ग्रो’ कर आगे आने में मदद मिलती है. ये सही है कि ऐसे में चुनौती पहले से अधिक बढ़ जाती है और हर कलाकार अपनी बेस्ट देने की कोशिश करता है, लेकिन एक्टिंग प्रोफेशन के लिए मैं इसे अच्छा मानता हूं.

किसी भी चरित्र को करने में आपकी कितनी मेहनत होती है?

किसी भी फिल्म की कहानी पहले से तैयार होती है और निर्देशक का एक विजन होता है. उसमें मैं हर तरीके से पहले चरित्र को समझ कर फिर उसपर मेहनत करता हूं और कोशिश ये रहती है कि हर भूमिका में मैं फ्रेश दिखूं, किसी अभिनय को रिपीट न करूं.

कौमेडी में नेचुरल हंसी को लाना कितना मुश्किल होता है? ऐसी फिल्मों को चुनते समय आप किस बात का ध्यान रखते हैं?

नैचुरल हंसी को लाना मुश्किल होता है, लेकिन अगर साथी कलाकार सही टाइमिंग को पकड़ ले, तो कौमेडी सही होती है और लोग हंसते हैं. इसमें जरा सी भी कमी बोरियत लाती है. मैं जब भी कौमेडी फिल्म की स्क्रिप्ट सुनता हूं, तो मुझे अंत तक अगर हंसी आती है, तो मैं उसे साईन करता हूं.

आप किस तरह की फिल्मों में अभिनय करना पसंद करते हैं?

मैं हर तरह की फिल्मों में काम करना पसंद करता हूं. खासकर कौमेडी हमेशा मन को तरोताजा बनाती है. इसके अलावा मुझे हौरर फिल्में पसंद है. कुछ फिल्मों को मैं बार-बार देखना पसंद करता हूं, जैसे ‘जाने भी दो यारों’, ‘अंदाज अपना अपना’ ये ऐसी फिल्में हैं जो बहुत अलग अंदाज में बनी कौमेडी फिल्में हैं. इसके अलावा ‘हेरा फेरी’, ‘ओय लकी लकी ओय’ भी मैंने कई बार देखा है.

लगातार कौमेडी फिल्में करते रहने से क्या कुछ नयी तरह के अभिनय मिलना मुश्किल नहीं होता?

मैंने केवल कौमेडी ही नहीं, रोमांटिक फिल्में भी की है. एक्शन फिल्में अब करने की इच्छा है. मैं हर तरह की फिल्मों में काम करना चाहता हूं. कुछ अधिक अभिनय करने के बाद ही समझ पाऊंगा कि मैं किसमें फिट बैठता हूं. मुझे अभी बहुत सीखना बाकी है और अपने सिनियर से मैं हमेशा सीखता रहता हूं.

आप दिल्ली के हैं, लेकिन मुंबई में काम करते हैं, दोनों शहरों में क्या अंतर पाते हैं?

दिल्ली में अगर शूटिंग करनी हो, तो बहुत मुश्किल होती है, क्योंकि वहां लोग सुनते नहीं. इसकी वजह यह है कि वहां हर स्थान से कोई नेता जुड़ा है और उनसे शूटिंग के लिए परमिशन लेनी पड़ती है इसलिए उनके जानने वाले को मना करना मुश्किल होता है. मुंबई ऐसा नहीं है, कहीं भी शूटिंग करना आसान होता है.

आप एंग्री यंग मैन के नाम से जाने जाते हैं, इसकी वजह क्या है? आपको इतना गुस्सा क्यों आता है?

लोग मुझे ठीक से जानते नहीं है, इसलिए ऐसा नाम देते हैं. जो बात हुई थी, तब मैंने गुस्सा किया था. अब नहीं करता. झूठ बोलने वाले इंसान को मैं पसंद नहीं करता.

बौलीवुड में तो निर्माता, निर्देशक कुछ कहते हैं और होता कुछ है, कितने ‘चेक’ तक बाउंस हो जाते हैं, ऐसे में आप अपने आप को कैसे सम्भालते हैं?

ये सही है, उनके साथ कई बार कहासुनी हो जाती है, लेकिन जो सही नहीं उसे मैं नहीं मानता. अगर मैं अभिनय में कुछ गलत करता हूं, तो उसे भी मैं मानता हूं.

एक थीं नूर इनायत खान : जासूसों की दुनिया की जेम्स बांड

नूर इनायत खान का नाम द्वितीय विश्व महायुद्घ के इतिहास में गुप्तचर के रूप में शहीद होने के कारण स्वर्णाक्षरों में अंकित है. नूर इनायत खान का पूरा नाम नूर उन निसा इनायत खान था. उन के पिता हजरत इनायत खान भारतीय तथा मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के वंशज थे. उन की मां अमेरिकी थीं. नूर 4 भाई बहनों में सब से बड़ी थीं. उन का जन्म 1 जनवरी, 1914 को मास्को में हुआ था. नूर के पिता सूफी मतावलंबी तथा धार्मिक शिक्षक थे. उन्होंने भारत के सूफी मत का पाश्चात्य देशों में प्रचारप्रसार किया. नूर की रुचि अपने पिता की भांति, संगीतकला के माध्यम से पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में थी.

पहले विश्वयुद्घ के बाद नूर के पिता परिवार सहित मास्को से लंदन आ गए थे. नूर का बचपन वहीं बीता. नाटिंगहिल के एक नर्सरी स्कूल में उन की पढ़ाई शुरू हुई. 1920 में वे सब फ्रांस में पैरिस के निकट सुरेसनेस में रहने लगे. 1927 में पिता की मृत्यु के बाद 13 साल की छोटी सी उम्र में ही नूर के कंधों पर मां और 3 छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी आ गई.

स्वभाव से शांत, शर्मीली, संवेदनशील नूर ने जीविका के लिए संगीत को माध्यम चुना. वे पियानो पर सूफी संगीत का प्रचारप्रसार करने लगीं. वीणा बजाने में भी वे निपुण थीं. उन्होंने कविताएं, बच्चों के लिए कहानियां लिखीं, साथ ही साथ, फ्रैंच रेडियो में भी वे नियमित रूप से योगदान करने लगीं. 1939 में जातक कथाओं से प्रेरित हो कर उन्होंने ट्वंटी जातका टेल्स लिखी. लंदन में पुस्तक का प्रकाशन हुआ. द्वितीय विश्वयुद्घ शुरू होने पर वे अपने परिवार के साथ समुद्रीमार्ग से ब्रिटेन के फ्रालमाउथ कार्नवाल आ गईं.

संवेदनशील, शांतिप्रिय, सूफीवाद की अनुयायी नूर को नाजियों द्वारा किए जा रहे कू्रर, बर्बर अत्याचारों से गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अपने छोटे भाई के साथ मिल कर नाजी अत्याचारों के विरुद्घ लड़ने का फैसला किया.

नूर ने 19 नवंबर, 1940 को ब्रिटेन की एयरफोर्स में महिला सहायक के रूप में कार्यभार संभाला. वहां पर उन्होंने वायरलैस औपरेटर का प्रशिक्षण लिया. जून 1941 में बमवर्षक प्रशिक्षण विद्यालय की चयनसमिति के समक्ष सशस्त्र बल अधिकारी पद के लिए आवेदनपत्र प्रस्तुत किया. वहां पर सहायक अनुभाग अधिकारी के पद पर उन की नियुक्ति हो गई.

फ्रैंच भाषा की अच्छी जानकारी होने के कारण ‘स्पैशल औपरेशंस गु्रप’ के अधिकारियों का ध्यान उन की तरफ गया. उन को वायरलैस औपरेशन के द्विभाषी अनुभवी गुप्तचर के रूप में प्रशिक्षित किया गया. जून 1943 में वे डायना राउडेन (कोड नेम पादरी), सेसीली लेफोर्ट (कोड नेम एलिस शिक्षक) के साथ फ्रांस आ गई. उन का कोड नेम मेडेलीन था. वे फ्रांसिस सुततील (कोड नेम प्रोस्पर) के नेतृत्व में काम करने लगीं.

नूर एक चिकित्सकीय नैटवर्क में नर्स के रूप में शामिल हो गईं. वे वेश बदल कर भिन्नभिन्न स्थानों से ब्रिटिश अधिकारियों को महत्त्वपूर्ण सूचनाएं भेजने लगीं. द्वितीय विश्वयुद्घ में वे पहली एशियन महिला गुप्तचर थीं. नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वासपात्रों में से एक थीं. उन्होंने 3 महीने से ज्यादा समय तक अपना गुप्त नैटर्क चलाया. वे ब्रिटेन में नाजियों की गुप्त जानकारी भेजती रहीं. एक कामरेड की गर्लफ्रैंड ने ईर्ष्या के कारण उन की जासूसी की और उन को पकड़वा दिया. 13 अक्तूबर, 1943 को उन्हें जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

खतरनाक कैदी के रूप में उन को भीषण यातनाओं से गुजरना पड़ा. उन्होंने 2 बार जेल से भागने की कोशिश की लेकिन बंदी बना ली गईं.

गेस्टोपो के पूर्व अधिकारी हैंस किफर ने उन से गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने का अथक प्रयास किया लेकिन नूर के मुंह से वे कुछ भी नहीं उगलवा पाए. 25 नवंबर, 1943 को एसओई गुप्तचर जौन रेनशा और लियोन के साथ वे सिचरहिट्टसडिंट्स, पैरिस के हैडक्वार्टर से भाग निकलीं. लेकिन ज्यादा दूर तक भाग नहीं सकीं और पकड़ ली गईं. 27 नवंबर, 1943 को नूर को पैरिस से जरमनी ले जाया गया. वहां उन्हें फोर्जेम जेल में रखा गया. वहां भी अधिकारियों ने उन को कठोर यातनाएं दीं. भेजी गई गुप्त सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए, लेकिन नूर ने कोई राज नहीं खोला.

11 सितंबर, 1944 को नूर को 3 और साथियों के साथ जरमनी के डकाऊ यातना शिविर में ले जाया गया.

13 सितंबर, 1944 को चारों के सिर पर गोली मारने का आदेश हुआ. पहले नूर के 3 अन्य साथियों के सिर पर गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया गया. उस के बाद जरमनी फोर्स ने नूर को डराधमका कर ब्रिटेन भेजे गए संदेशों के बारे में जानकारी हासिल करनी चाही लेकिन निर्भीक, साहसी नूर ने अंत तक कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. हार कर सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी गई.

अंतिम सांस लेने से पहले नूर के होंठों पर एक शब्द था-स्वतंत्रता. लाख कोशिशों के बावजूद जरमन सैनिक राज उगलवाने की बात तो दूर, उन का असली नाम तक नहीं जान पाए थे. मृत्यु के समय उन की आयु केवल 30 साल की थी. वास्तव में वे एक शेरनी थीं, जिन्होंने आखिरी सांस तक अपना मुंह नहीं खोला.

धर्म प्रचार के साइड इफैक्ट्स और लोगों का आत्मविश्वास छीनता धर्म

सोशल मीडिया पर एक वीडियो खूब वायरल हुआ जिसे लोगों ने बेहद दिलचस्पी से देखा. वीडियो में युवती एक समारोह में उभरते युवा धर्मगुरु से सवाल पूछती दिखाई दे रही है. युवती के हावभाव और सवाल दोनों आक्रामक हैं. पहली नजर में देखते ही आभास होता है कि वह धर्म के नाम पर बरबाद होती सामग्री को ले कर व्यथित और आक्रोशित है.

यह वीडियो एक धार्मिक चैनल का हिस्सा है जिस में सिंहासननुमा कुरसी पर बाबा विराजमान हैं और नीचे पांडाल में खासी तादाद में श्रद्धालु बैठे हैं. माइक युवती के हाथ में आता है और वह बाबा से सवाल करती दिखाई दे रही है कि इस साल होली पर एक जगह बहुत बड़ा पेड़ जलाया गया, आखिर क्यों? एक छोटे से पौधे को पेड़ बनने में सालों लग जाते हैं और लोग उसे धर्म के नाम पर कुछ मिनटों में जला डालते हैं. अगर होली जलानी ही है तो कम से कम लकडि़यों का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता? आखिर धर्म के नाम पर बरबादी क्यों?

बाबा इस सवाल पर सकपकाए से दिखते हैं, फिर थोड़ा संभल कर युवती का परिचय पूछते हैं. बाबा को सकपकाता देख युवती की हिम्मत बढ़ती है और वह फिर शिव अभिषेक में बड़े पैमाने पर की जाने वाली दूध की बरबादी पर सवाल दाग देती है.

चूंकि सवालों में दम है इसलिए पांडाल में खामोशी सी छा जाती है. इसी बीच, जादू के जोर से युवती का पिता प्रकट होता है और माइक के जरिए बाबा को बताता है कि यह उस की बेटी है जो धर्म के बारे में ऐसे ऊटपटांग यानी निरर्थक सवाल करती रहती है, इसलिए इसे आप की शरण में लाया हूं. युवती का पिता बाबा को जानबूझ कर बताता लगता है कि उस की बेटी कौन्वैंट स्कूल में पढ़ी है. इस पर बाबा ज्ञानियों की तरह मुसकरा कर कहते हैं कि तभी तो ऐसे सवाल कर रही है.

युवती की भड़ास निकल जाने के बाद बाबा थोड़ी श्रापनुमा आक्रामक मुद्रा में आ जाता है. वह युवती से मंदिर जाने के नियम पूछता है और उस के जवाबों की बिना पर मौजूद भक्तों को यह जताने में कामयाब रहता है कि यह नई पीढ़ी है ही नास्तिक और अज्ञानी, इसलिए वह ऐसे बेहूदे सवाल पूछती है. बातचीत के दौरान बाबा टूटीफूटी अंगरेजी का भी उपयोग करता नजर आता है और युवती को ‘यार’ संबोधन इस्तेमाल करने पर डपटता भी है. इस से सिद्ध हो जाता है कि युवती पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित है, इसलिए नास्तिक सी है और हमारे धर्म व संस्कारों से नावाकिफ है.

अव्वल तो इतने से ही लोग मान जाते हैं कि लड़की नादान है पर युवती की जिज्ञासाओं का समाधान होना चाहिए, इसलिए इस डिबेट के क्लाइमैक्स पर सभी की नजरें बाबा पर ठहर जाती हैं. बाबा बताते हैं कि अगर तुम्हारे मांबाप ने जिंदगीभर लाखों रुपए कमाए हैं तो बुढ़ापे में तुम उन के इलाज पर उन के पैसों को खर्च करोगी या फिर गरीबों को दान दे दोगी. अपने जवाब को विस्तार देते बाबा शाश्वत और सनातनी मुद्दे की इस बात पर आ जाता है कि इस सृष्टि में जो भी कुछ है वह सबकुछ शिव का है. वह हम से कुछ मांगता नहीं, पर यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस के सबकुछ में से कुछ हम उसे दें और ऐसा कर हम कोई उपकार नहीं करते बल्कि सृष्टि के रचयिता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं और पाप की कमाई को पुण्य में तबदील करते हैं.

पांडाल में बैठे भक्त नास्तिक सी युवती को हारते देख तालियां पीटने लगते हैं जो इस बात पर बाबा से सहमत हो जाती है कि अब वह भी शिव अभिषेक करेगी क्योंकि वह उस का महत्त्व नहीं जानती और करने लगेगी तो ध्ीरेधीरे जान जाएगी.

यह वीडियो करोड़ों लोगों ने देखा और बाबा की खोखली तर्कशीलता के कायल हो गए कि क्यों खामखां के सवालों, जिज्ञासाओं और दलीलों में सिर खपाएं, बेहतर तो यही है कि चुपचाप पूरी आस्था से यह मान लें कि सबकुछ ऊपर वाले का है, वही हमें देता है. अब इस में से कुछ पूजापाठ, दानदक्षिणा और चढ़ावे के जरिए उस का उस को लौटा देना कोई गुनाह नहीं, बल्कि पुण्य का काम है. रही बात युवा पीढ़ी की, तो उस के बारे में बाबा ठीक कह रहे हैं कि वह भटकाव का शिकार हैं. वह गंदी फिल्में देखती है, इसलिए उस में धर्म के जरिए सुधार की जरूरत है जो कर्मकांडों से और श्रद्धा, आस्था से आ पाएगा.

मीडिया बना जरिया

मध्य प्रदेश के देवास जिले के एक धार्मिक समारोह का यह वीडियो एक खास मकसद से वायरल किया गया था जिस से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सस्पैंस और दिलचस्प तरीके से धर्म की उक्त बात ‘तेरा, तुझ को अर्पण’ वाली पहुंचाई जा सके जिस से लोग, खासतौर से युवा, मुंह मोड़ रहे हैं. इस का मकसद कर्मकांड, दानदक्षिणा, पूजापाठ और यज्ञहवन का माहौल बनाए रखना है. धर्मभक्त परेश रावल की फिल्म ‘ओह माई गौड’ का उद्देश्य भी धर्म की पोल खोलना नहीं था, धर्म की पोल खोलने वालों को कुछ तर्क दे कर मुंह बंद कराना था. इस फिल्म में ईश्वर की उपस्थिति दर्शा कर पहले दृश्य से ही यह सिद्ध कर दिया गया था कि ईश्वर तो है चाहे जो तर्क दे दो.

सोशल मीडिया किस तरह धर्मप्रचार का अड्डा या केंद्र बन चुका है, यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं रह गई है. मीडिया व्यावसायिक हो जाए, यह हर्ज की बात नहीं, चिंता की बात मीडिया का धर्म का मुहताज हो जाना है. इस से बड़ी तादाद में लोग गुमराह और अंधविश्वासी हो रहे हैं.

अखबार धर्म संबंधित समाचारों, भविष्यफल और धार्मिक रचनाओं से भरे पड़े हैं तो न्यूज चैनल भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. कोई दिन ऐसा खाली नहीं जाता जब हिंदीभाषाई चैनल धर्मप्रचार नहीं कर रहे होते. तरस तो तब ज्यादा आता है जब वे धर्म को सनसनी बना कर परोसते हैं कि देखिए, यहां भगवान राम और उन के भाइयों ने शिक्षा ली थी और यह रहा वह पाताललोक, जहां अहिरावण का राज्य था. ये चीजें पूरी शिद्दत से इस तरह से परोसी जाती हैं कि देखने वालों को लगने लगता है कि कुछ न कुछ तो सच इस में है. रामायण में जो लिखा है वह कोई कोरी कल्पना नहीं है.

जबकि, होता कुछ नहीं है. अखबारों का मकसद अपनी प्रसार संख्या और चैनल्स का मकसद अंधभक्तों को आकर्षित करना व सूचना देना होता है. धर्म को शाश्वत बनाए रखने में मीडिया का योगदान बाबाओं से कमतर नहीं, जो बगैर सोचेसमझे बड़े पैमाने पर सामाजिक नुकसान का जिम्मेदार हो चला है जबकि उस की असली जिम्मेदारी सामाजिक जागरूकता लाने की है.

भोपाल में पिछली नवरात्रि के मौके पर एक नामी अखबार ने तो मशहूर राम कथावाचक मुरारी बापू का धार्मिक समारोह, जो हफ्तेभर चला, प्रायोजित कर डाला. शहर के हर चौराहे पर कथावाचक के बड़ेबड़े होर्डिंग्स लगाए गए. अखबार में रोज विज्ञापन और समारोह के बड़ेबड़े समाचार छापे गए. रामकथा के इस धुआंधार प्रचार का नतीजा ही था जो लाखों लोग इस में शिरकत करने को टूट पड़े. करोड़ों रुपए इस आयोजन पर खर्च हुए. एवज में भक्तों को हासिल हुए वे प्रवचन जो सदियों से गुमराह करने के लिए परोसे जा रहे हैं.

कथा स्थल पर इफरात से धार्मिक साहित्य और सामग्री बिके. लोग, खासतौर से औरतें, प्रवचनों के दौरान नाचते नजर आए. यह नजारा सोचने को विवश कर गया कि आखिर इस माहौल का असर क्या होगा और समाज को किस दिशा की ओर मोड़ा जा रहा है.

खतरनाक असर

देश बहुसंख्य हिंदुओं का है जो कहने को ही धर्मनिरपेक्ष हैं. हिंदुओं में यों तो हर रोज कोई न कोई त्योहार होता है पर हर पखवाड़े एक ऐसा त्योहार भी पड़ता है जिसे धूमधाम से मनाया जाता है.

धर्म की गिरफ्त में आते समाज की हालत यह है कि लोग बगैर सोचेसमझे, बेमकसद झूम रहे हैं और कट्टरवाद बढ़ रहा है. सोशल मीडिया पर काम की और उपयोगी बातें कम होती हैं, रामराम, श्यामश्याम ज्यादा होती हैं.

इधर, बाबाओं ने भी रंग बदलते, अपने आयोजनों और प्रवचनों में नईनई बातें कहनी शुरू कर दी हैं ताकि नयापन दिखे. चालाकी दिखाते साधु, संत, बाबा और प्रवचनकर्ता अब सामाजिक सरोकारों पर जोर देने लगे हैं. मसलन, पर्यावरण के लिए पेड़ लगाओ और उन्हें काटो मत व कन्याभ्रूण की हत्या मत करो यह पाप है वगैरावगैरा. ये गौरक्षा की बात करते हैं उस में देवताओं का वास होने की दुहाई दे कर, पर यह नहीं कहते कि गाय का अपना अलग आर्थिक महत्त्व है, वह दूध देती है और उस का चमड़ा व्यावसायिक उपयोग में लाया जाता है. इसी तरह ये भविष्य के लिए पानी बचाने की बात नहीं कहते, बल्कि नदियों को पूजने के लिए उकसाते हैं ताकि पंडों को पैसा मिलता रहे.

हास्यास्पद बात यह है कि इन्हीं आयोजनों में यज्ञहवन के लिए इफरात से लकडि़यां जलाई जाती हैं. यानी धर्म और उस के दुकानदार कोई आदर्श प्रस्तुत नहीं करते. उलटे, यह जताने की कोशिश करते हैं कि उन के भी सामाजिक सरोकार हैं और लोग इस की आड़ में भी धर्म से जुड़े रह सकते हैं.

एक पूरी पीढ़ी दिमागीतौर पर एक बार फिर अपाहिज बनाई जा रही है. कोई वीडियो इसीलिए जानबूझ कर एक साजिश के तहत वायरल किया जाता है कि जिस से लोग लकडि़यां फूंकते रहें. अभिषेक के नाम पर दूध बहाते रहें और यह न पूछें कि आखिर यह बरबादी क्योें? रही बात गरीबों की मदद की, तो इस बाबत प्रवचनों में स्पष्ट कर दिया जाता है कि यह सबकुछ माया और मिथ्या है. हर आदमी अपने कर्मों के मुताबिक फल भुगत रहा है. इस ईश्वरीय व्यवस्था में हस्तक्षेप से कोई फायदा नहीं. गरीबों की मदद ऐच्छिक बात है.

भोपाल में मोरारी बापू ने 7 दिनों तक तरहतरह से यही सुनाया कि सबकुछ करो पर धर्म और संस्कारों को मत छोड़ो. लड़कियां पढ़ें, यह हर्ज की बात नहीं पर उन्हें संस्कारों का ध्यान रखना चाहिए. युवा तकनीकी तौर पर शिक्षित हों पर धर्म को न भूलें, वरना भटकाव का शिकार हो जाएंगे. इन की नजर में संस्कार का एक ही मतलब होता है कि पूजापाठ करो, दक्षिणा देते रहो.

आत्मविश्वास छीनता धर्म

धर्म का प्रचारप्रसार, दरअसल, लोगों से आत्मविश्वास छीन रहा है. रोजमर्राई जीवन में अज्ञात आशंकाएं हावी होती जा रही हैं. लोगों ने मान लिया है कि उन की परेशानियों की वजह उन के कर्म हैं और प्रारब्ध को बदला नहीं सकता. जो लिखा है वह हो कर रहेगा. अब अगर किसी काल्पनिक अनिष्ट से बचना है तो दानदक्षिणा देते रहो और पूजापाठ में लगे रहो.

यह वह दौर है जिस में लोग सब से ज्यादा परेशानियों से जूझ रहे हैं. बेरोजगारी चरम पर है और धर्म के प्रभाव के चलते शिक्षा अपना प्रभाव, महत्त्व व उपयोगिता खो रही है. यदि शिक्षित हो गए तो वह भी ऊपर वाले की मेहरबानी है. आप को रोजगार मिल गया तो यह पूजापाठ और अभिषेकों का फल है. मकान, कार और दूसरी तमाम सुखसुविधाएं धर्म की देन हैं, उन में आप की मेहनत और काबिलीयत का कोई योगदान नहीं.

भेड़चाल चलते लोग कैसे इस सम्मोहन और भ्रम की गिरफ्त में लिए जाते हैं, यह बात कम ही लोग समझ पाते हैं. दरअसल, उन्हें तरहतरह से डराया जाता है. जीवन की नश्वरता और जगत का मिथ्या होना बारबार इतनी और इस तरह से दोहराया जाता है कि लोग अपनी स्वभाविक जिंदगी नहीं जी पा रहे. लोग तर्क नहीं करते, न ही अब सवाल पूछते हैं कि ऐसा क्यों और ऐसा क्यों नहीं, बल्कि धर्म के ग्लैमर की गिरफ्त में आ कर खुद को ही अज्ञात आशंकाओं से बचाने में भलाई समझते हैं.

यह बड़ा सस्ता सौदा है कि कमाई का कुछ हिस्सा इस माहौल को बनाए रखने वालों को दान में दे दो और भूल जाओ कि इस के नतीजे क्या निकलेंगे और कैसेकैसे निकल भी रहे हैं. मामूली सी परेशानी को झेलने की ताकत खोते लोग तुरंत मंदिर की तरफ भागते हैं. वहां उन्हें सुरक्षा महसूस होती है. वे परेशानी से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. इस से होता यह है कि परेशानी ज्यों की त्यों रहती है जबकि उन में डर की मात्रा बढ़ती जाती है.

आत्मविश्वास खोने के मामले में महिलाएं तो पुरुषों से भी एक कदम आगे हैं. बच्चों की स्कूलबस 10 मिनट भी लेट हो जाए तो वे इस की वजहें समझने की कोशिश नहीं करतीं कि ट्रैफिक ज्यादा होगा, बस खराब भी हो सकती है और मुमकिन है किसी वजह से स्कूल से ही बस देर से चली हो. वे तुरंत बगल वाले मंदिर में बैठी मूर्ति को प्रसाद बोल देती हैं और जब कुछ देर बाद बस आती दिखती है तो भगवान को धन्यवाद देते प्रसाद चढ़ा भी देती हैं. यह एक छोटा सा उदाहरण है वरना तो परेशानी के दायरे के मुताबिक प्रसाद और दानदक्षिणा की राशि बढ़ती जाती है.

यह वह दौर है जिस में लड़कियों की शादी के लिए लड़के मन्नतों के जरिए ढूंढ़े जाते हैं. लड़कों की नौकरियों के लिए ब्रैंडेड बाबाओं के चक्कर काटे जाते हैं. बीमारी का इलाज तो डाक्टर से कराया जाता है पर मनाया भगवान को जाता है कि हे प्रभु, पति को जल्द ठीक कर दो, इतने व्रत रखूंगी और उतने का प्रसाद चढ़ाऊंगी.

इसलिए बढ़ रहा कट्टरवाद

इन छोटीमोटी रोजमर्राई बातों का असर बड़े खतरनाक तौर पर बड़े पैमाने पर देखने में आता है. ये अंधविश्वास, कट्टरवाद की जनक भी हैं. जब कहने को और मांगने को कुछ नहीं होता तो लोगों का धार्मिक चोला दूसरे धर्मों की आलोचना में जुट जाता है.

इसलामिक कट्टरवाद बढ़ रहा है, यह अकसर कहा जाता है क्योंकि इस के भी उदाहरण सहज मिल जाते हैं. अंदरूनी तौर पर बड़े पैमाने पर प्रचार यह होता है कि उदार आधुनिक और वैज्ञानिक सोच के दिखने के चक्कर में हिंदू अपने धर्म, संस्कृति, रीतिरिवाजों और पूजापाठ से कटते जा रहे हैं, इसलिए मुसलमान हावी हो रहे हैं, उन की जनसंख्या बढ़ रही है और वे पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं, इसलिए उन में एकता है.

पूजापाठ और धर्मांधता बढ़ने और बढ़ाए जाने की एक वजह दूसरे धर्मों से इस तरह बैर करना सिखाया जाना भी है कि एक दिन ऐसा आएगा जब तुम अपने ही देश में बेगाने, बेचारे और अल्पसंख्यक हो कर पहले की तरह गुलाम हो जाओगे.

इसलाम, ईसाई या दुनिया का कोई भी दूसरा धर्म इस मानसिकता का अपवाद नहीं है. अमेरिका में हो रही नस्लीय हिंसा इस की जीतीजागती मिसाल है. वहां डोनाल्ड ट्रंप के सत्तारूढ़ होने के बाद चुनचुन कर एशियाई मूल के लोगों को खदेड़ा जा रहा है, उन की हत्याएं की जा रही हैं. इन में भारतीय भी शामिल हैं. बहुत सपाट लहजे में कहें तो राम, हनुमान या शंकर अमेरिका में भारतीयों की रक्षा कर पाने में असमर्थ हैं. इसी तरह भारत में अफ्रीकी मूल के लोगों को प्रताडि़त किया जा रहा है. दलित और आदिवासी तो यहां के मूल निवासी हो कर भी सामाजिक व धार्मिक प्रताड़ना के शिकार और उपेक्षित हैं.

साबित यह होता है कि चैन कहीं नहीं है. धर्म के नाम पर फसाद हर जगह हो रहे हैं. इस मसले पर कोई किसी से पिछड़ना नहीं चाहता. आत्मविश्वास की कमी लोगों को दुनियाभर में हिंसक बना रही है जिस का जिम्मेदार धर्म ही है जिसे काल मार्क्स ने अफीम का नशा यों ही नहीं कहा था. एक विराम के बाद, प्रचार के जरिए धार्मिक कट्टरवाद फिर सिर उठा रहा है, तो यह दुनियाभर के लिए चिंता की बात है.

पोप, मुल्ले और पंडे बेफिक्र हैं जो इस खेल को धर्मप्रचार व धर्मग्रंथों की आड़ में खेल रहे हैं. उन का मकसद बगैर कुछ करेधरे पैसे बनाना और ऐशोआराम की जिंदगी जीना है. सो, वे तो जी रहे हैं, परेशानी आम लोग उठा रहे हैं जो उन के ग्राहक और मोहरे बने हुए हैं.

इन टिप्स को अपनाकर घर पर बनाये रखें फूड क्वालिटी

घर पर खाना बनाना अपने आप में एक हेल्दी और कम मूल्य में सही भोजन खाने की बात होती है, इससे भी अधिक खास होती है, उसकी ‘न्यूट्रीशिंयस वैल्यू’ जिसे आप हमेशा बनाये रखने की कोशिश करते है. उसी भोजन को आप एन्जॉय करते हैं, जो घर पर बने होने के साथ-साथ स्वादिष्ट और पोषक हो.

एक सर्वे में यह पाया गया है कि किसी भी भोजन को मजेदार और स्वादिष्ट बनाने में उस सामग्री का रंग और उसमें डाले गए तेल, मसाले और नमक खास होता है, इसमें थोड़ी सी उलट फेर होने पर खाना बेस्वाद हो जाता है. यही वजह है कि अगर आपने सही ढंग से सामग्रियों को स्टोर नहीं किया है, तो थोड़े दिनों बाद उसका रंग, स्वाद और पोषकता में कमी आ जाती है. फलस्वरूप खाना जो आप बनाना चाहते है, वह बन नहीं पाता.

इस बारें में ‘बारबेक्यू नेशन’ के सेफ तारक मजूमदार बताते है कि रेस्तरां में एक साथ बहुत सारा खाना बनता है, जिसमें फूड क्वालिटी के साथ-साथ उसे आकर्षक बनाने की कोशिश की जाती है, जबकि घर में किसी भी डिश की मात्रा कम होती है, ऐसे में सही नमक, मसाले के साथ उसे उसकी गुणवत्ता को मेंटेन रखने में सहायक होते है, लेकिन खाना पकाने से अधिक उसे स्टोर करने पर ध्यान देने की जरुरत होती है.

घर के खाने में फूड क्वालिटी और स्वाद सबसे अच्छा होता है, लेकिन इसे साधारण रूप से पेश न कर थोड़ी सजावट के साथ पेश करने पर उसका स्वाद और अधिक बढ़ जाता है, किसी भी डिश को हमेशा कलरफुल बनाने की जरुरत होती है. जितना अधिक उसमें रंग होगा, उतना ही वह डिश आकर्षक लगेगा, इसके लिए फ्रेश धनिया की हरी पत्तियां, पुदीना के पत्ते, हर्ब्स, नीबू आदि अधिक प्रयोग किये जाते हैं, घर की फूड क्वालिटी को बनाये रखने के टिप्स निम्न हैं.

  • एग, फिश और मटन जैसे पदार्थ को हमेशा अच्छी तरह फ्रिज में स्टोर करें, फ्रिज से निकालने के बाद उसे अपने ओरिजिनल रूप में आने के बाद ,थोड़ी तेज आंच पर पकायें, इससे बर्तन के नीचे थोड़ी चिपक जाने पर उसकी खुशबू और स्वाद दोनों ही बढ़ते है, ध्यान रहे, खाने को जलाये नहीं.
  • ग्रिल और टोस्ट करने वाले व्यंजन को उचित तापमान में सही समय तक रखे, उनके ऊपर थोड़ी देर-देर बाद तेल से ब्रश करते रहे, ताकि खाना सूखे या जले नहीं.
  • थोड़ी चीनी को आयल में डालकर कैरेमल कर लें, इससे किसी भी मीठे व्यंजन का रंग और स्वाद अलग होगा.
  • कोई भी फूड प्रोडक्ट खरीदते समय उसकी पैकेजिंग और उसके प्रयोग के समय को अच्छी तरह देख लें.
  • हरी सब्जियों को उसके रंग को बनाये रखने के लिए पकाते वक़्त थोडा नमक डाल दें.
  • खाने को रखने के लिए उसके कंटेनर को अच्छी तरह धो लें.
  • फूड क्वालिटी को बनाये रखने के लिए किचेन की साफ-सफाई पर भी अधिक ध्यान देना चाहिए, इसके लिए बीच-बीच में रसोईघर की पेस्ट कंट्रोल करवाएं.
  • खाने की क्वालिटी के लिए हाथ से फ़ूड को अधिक छुए नहीं, फ़ूड को छूने के लिए अपने हाथ में डिसपोजेबल ग्लव्स पहने, इसके अलावा खाना बनाने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धो लें.
  • पर्सनल हाईजीन के बारें में ध्यान दें, अपने बालों को अच्छी तरह किसी कपड़े या स्कार्फ से बाँध लें, कॉफिंग या स्नीज़िंग न करें.
  • खाना बनाने के बाद उसके कचरे को सही तरह से ‘डस्टबिन’ में फेकें.
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