अनमोल रिश्ता दोस्ती का : गीता और सोनी की यह कहानी एक मिसाल है

जब पारिवारिक रिश्तों की डोर टूट जाती है तो एक और रिश्ता हमारे जीवन में काफी महत्त्व रखता है और वह है दोस्ती का, जो विश्वास, सहयोग पर टिका होता है. दोस्त राजदार भी होते हैं और सुखदुख के साथी भी. ऐसे में जो लोग शादी के बारे में नहीं सोचते, वे दोस्ती की छाया और सुरक्षा में रह सकते हैं.

केरल की बास्केटबौल खिलाड़ी गीता वी मेनन और प्लेबैक सिंगर सोनी साई उन सभी लोगों के लिए आदर्श हैं, जिन्हें जिंदगी में अकेलेपन की समस्या है. गीता और सोनी का रिश्ता सभी परिभाषाओं से परे है. आज के जीवन में जहां शादी, तलाक और निराशाएं आम बात है, वहां यह दोस्ती एक बहुत अच्छा उदाहरण है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन में एक सच्चा दोस्त होना बहुत जरूरी है. एक ऐसा दोस्त जिस से आप अपना दुखदर्द बांट कर मन के बोझ को हलका कर सकें.

दोस्ती की यों तो कई कहानियां हैं, पर यहां हम आप को ऐसी कहानी बताते हैं जो औरों से जुदा है:

पहली मुलाकात

वे पहली बार अचानक बारिश में मिली थीं. उन्हें खुद ही इस बात का पता नहीं था कि उस दिन एक छाते के नीचे 2 अजनबियों के बीच एक अनोखी दोस्ती की शुरुआत हो चुकी थी.

गायिका सोनी साई अपने बेटे के साथ उस की बास्केटबौल की प्रैक्टिस पर आई थीं.

गीता बास्केटबौल खिलाड़ी और प्रशिक्षक हैं. वे इतनी तेज बारिश में इन के लिए छाता ले कर आईं और कहा, ‘‘आओ.’’

इस एक शब्द से ही इन की दोस्ती की शुरुआत हुई.

एकदूसरे का भरपूर साथ

जब गीता और सोनी मिलीं, तब दोनों ही अपने अकेलेपन से भरी जिंदगी के उतारचढ़ाव से गुजर रही थीं. दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकती हैं, यह सोच धीरेधीरे इन के बीच पैदा होने लगी और यह सच भी हुआ. आज ये दोनों एलमकारा में एक ही घर में रहती हैं. सोनी गीता के साथ तब खड़ी रहीं जब गीता बास्केटबौल में उभरते खिलाडि़यों के लिए एक अकादमी खोलने की सोच रही थीं. सोनी ने खुद ही इस अकादमी को खोलने का सुझाव दिया था. पेगासस नाम से खुली यह अकादमी मुप्पाथदम गवर्नमैंट हायर सैकेंडरी स्कूल में काम करती है. यह जगह विशेष रूप से इसी अकादमी के लिए मिनिस्टर इब्राहिम कुंजू द्वारा सुनिश्चित की गई है.

5 से 15 वर्ष की आयु तक के बच्चों को यहां ट्रेनिंग दी जाती है. सोनी पेगासस के मैनेजर के रूप में यहां की हर छोटीबड़ी चीज पर निगरानी रखती हैं. बहुत से बच्चे जो यहां ट्रेनिंग लेने आते हैं वे थोड़े गरीब परिवारों से होते हैं, तो ऐसे में उन्हें कम शुल्क में बास्केटबौल की ट्रेनिंग दी जाती है. हालांकि यह अकादमी वित्तीय संकट से जूझ रही है.

गीता का कहना है कि वे अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटेंगी. एफएसीटी के सभी साथी खिलाडि़यों ने उन का पूरापूरा साथ दिया.

गीता कहती हैं, ‘‘सोनी ने खुद इस अकादमी को खोलने का सुझाव दिया. जब यह अकादमी शुरू हुई, तो सोनी हर समय मेरे साथ खड़ी रहीं और मुझे सहारा दिया. जब गीता मेरे साथ रिकौर्डिंग के समय स्टूडियो में होती हैं, तो मुझे बहुत अच्छा महसूस होता है. जब मैं मलयालम फिल्म ‘जलेसिया’ में गाना गा रही थी तब गीता भी मेरे साथ ही थीं. वे डाइरैक्टर जिन्होंने हमारी दोस्ती की गहराई को समझा, उन्होंने गाने के पूर्वाभ्यास के सभी चित्रों में गीता को भी शामिल किया.’’

ये दोनों ही अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत करती हैं, पर जब ये दोनों साथ होती हैं तब इन के व्यवसाय का ग्राफ और भी ऊपर हो जाता है. अकेली महिलाओं को भी जीने का हक है, उन्हें भी व्यवसाय की आवश्यकता है.

जब एफएसीटी की टीम ने बास्केटबौल में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे खिताब जीते तो इस का सब से अधिक श्रेय गीता वी मेनन को दिया गया. पिछले 10 वर्षों से एफएसीटी की महिलाएं सभी मुख्य टूरनामैंट्स जैसे फैडरेशन कप आदि में अपना परचम लहरा रही हैं. गीता ने तब भी इसी खेल को चुना जब उन की बहुत सी सखियां इस राह को छोड़ कर अपने परिवारों की तरफ जाने लगी थीं पर गीता के जेहन में हमेशा से ही सिटी की आवाज और खेल का जज्बा जिंदा रहा. एक ऐसी महत्त्वाकांक्षा जिस ने गीता को इस खेल में बने रहने की शक्ति दी. जिंदगी की कठिन समस्याओं में भी डट कर खड़े रहने की महत्त्वाकांक्षा ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया.

गीता की उपलब्धियां

गीता ने खेल की दुनिया में 2013 में आयोजित वेटेरंस स्पोर्ट्स में अपनी वापसी की. यह एक ऐसे सैनिक की वापसी थी, जिस पर उम्र का कोई प्रभाव नहीं हुआ. उन्होंने लौंग जंप और राष्ट्रीय स्तर पर 4,100 मीटर रिले रेस में गोल्ड मैडल जीता,

2014 में जापान में आयोजित एशियाई मास्टर्स ऐथलैटिक्स खेलों में उन्होंने सिल्वर मैडल जीता.

जापान से लौटने पर एफएसीटी ने उन का जोरदार स्वागत किया. अगस्त 2015 में पैरिस में हुई वर्ल्ड मास्टर्स ऐथलैटिक्स मीट में वे अपने सब से पसंदीदा 2 खेलों में 5वें स्थान पर रहीं. जब वे इन खेलों की तैयारी करने में इतना खतरा उठाती थीं और खूब पैसा भी लगाती थीं तो केवल जीत ही उन के दिमाग में होती थी. यह टूटे दिल पर एक मरहम की तरह काम करता था.

सोनी साई के अंदर की गायिका को पहचान की जरूरत अवश्य है पर जो गीत उन्होंने गाए हैं उन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन के सभी गाने बहुत मशहूर हैं. साई ऐसी कलाकार हैं जिन्हें खुद का प्रचार करना बिलकुल नहीं आता. वे लाइट म्यूजिक में और स्कूल में राज्य स्तर पर 1998 में मिमिक्री के लिए पहला स्थान जीत चुकी हैं. उन्होंने 4000 से भी अधिक स्टेज प्रोग्रामों में गाने गाए हैं. सोनी हरिहरन, यसुदास, एमजी श्रीकुमार, ब्रह्मानंदन, वेणुगोपाल, जयचंद्रन आदि मशहूर गायकों के साथ प्लेबैक सिंगिंग कर चुकी हैं.

सोनी साई ने पहला गाना 13 वर्ष की उम्र में ‘सुधावासम’ मूवी के लिए गाया. इस के बाद यशुदास के साथ ‘अधीना’ मूवी के लिए गाया. इस के बाद ‘कनल कन्नडी’, ‘भारथन’, ‘धीरा’, ‘बांबे मार्च 12’ व ‘निद्रा’ में गाने गाए. प्रसिद्ध गायक सोनू निगम के साथ ‘चक्कारा माविन कोमबाथु…’ भी गाया.

उन्हें बहुत से पुरस्कार भी मिले जैसे कामुकरा फाउंडेशन अवार्ड (1998), सार्क अवार्ड (1999), बैस्ट सिंगर अवार्ड, राघवन मास्टर ट्रिब्यूट (2014), अरबन डेवलपमैंट कौंसिल द्वारा रोल मौडल सिंगर का खिताब (2015) और केरला अचीवमैंट फोरम जैसे खिताबों से इन्हें नवाजा जा चुका है, इन्होंने यूके, यूएसए, यूएई और पूरे भारत में बहुत शोज किए.

– एम.के. गी  

फिल्म के बहाने कट्टरपन को हवा

नारी अस्मिता और राजपूती गौरव का बहाना ले कर संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ पर मचाया जा रहा शोर असल में हमारी सोच के कट्टरपन की पूरी पोल खोल रहा है. 21वीं सदी में जीते हुए और एटम बम बनाने या चंद्रयान, मंगलयान भेजने वाला यह देश असल में आज भी 16वीं सदी से आगे नहीं बढ़ पाया है जब सुनीसुनाई बातों पर विश्वास करने में भारत और यूरोप में कोई फर्क नहीं था.

हम ने कहने को तो लोकतंत्र अपना लिया है, जिस में विचारों की स्वतंत्रता को महत्त्व दे दिया है पर असल में हम आज भी पौराणिक युग में ही जी रहे हैं जब औरतों को लगभग सभी समाजों में, उन समाजों में भी जिन से हमारा सीधा संबंध न के बराबर था, दबा कर, गुलामों से भी बदतर तरीके से रखा गया था.

‘पद्मावती’ में ऐसा क्या है, जिस से राजपूत कहे जाने वाले लोग बौखला रहे हैं का पता तो फिल्म के प्रदर्शन के बाद ही चलेगा पर इस में नैतिक, ऐतिहासिक और प्रस्तुतिकरण के बारे में कुछ आपत्तिजनक नहीं है, यह सुप्रीम कोर्ट के रुख से स्पष्ट है.

मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित पुस्तक ‘पद्मावत’ पर आधारित राजस्थानी पृष्ठभूमि की कथा में अगर कुछ बुरा लगने वाला है तो वह यह है कि उस युग में एक पुरुष अपनी पत्नी को बचाने के लिए उस पर सौदा करता था, उसे राजगद्दी बचाने के लिए इस्तेमाल करता था. उस की पत्नी हमलावर के पास जाना चाहती थी या नहीं यह छोडि़ए पर उस युग की औरतें संपत्ति ही थीं यह जरूर कहानी में स्पष्ट है. इस कहानी पर बनी फिल्म यदि उस काल की याद दिलाए तो इस में क्या हरज है खासतौर पर तब जब आज भी जमाना कुछ वैसा ही सा है.

कहने को तो हमारे विश्वविद्यालय लड़कियों से भरे हैं, महिलाएं मंत्री हैं, अफसर हैं, प्रबंधक हैं पर जरा सी परत कुरेदेंगे तो पता चल जाएगा कि औरतें आज भी सौदे की चीज हैं. इसे दर्शाना और पृष्ठभूमि के लिए किसी प्राचीन रचना का इस्तेमाल करना कतई गलत नहीं है. कट्टरपंथियों को यह हक नहीं कि वे इस का विरोध कर समाज में पुराने व सड़ेगले मूल्यों को फिर से स्थापित करने की कोशिश करें.

अगर हम हर जगह शिवाजी, महाराणाप्रताप, देवीदेवताओं की मूर्तियां लगाएंगे कि ये सब हमारे आदर्श हैं, तो हमें यह अवसर भी मिलना चाहिए कि इन आदर्श ऐतिहासिक, पौराणिक या धार्मिक मूर्तियों के पीछे का सच क्या है, बता सकें. असल में इन आदर्शों की गलत बातें समाज भूलता नहीं है और राम का सीता को निकालना, विष्णु का मोहिनी अवतार बनना, शिव का जहर पीना, देवताओं का अमृत छीनना, शिवाजी का जाति विशेष से होना, राजपूतों का मुगलों से समझौता कर लेना न न करते भी उदाहरण देने के काम आता है.

परदा प्रथा, घर के लिए महिलाओं की बलि देना, कन्या भू्रण हत्या, बेटी को घर में बंद रखना आदि उसी कट्टर सोच का हिस्सा हैं जिस में समाज सदियों तक जीता रहा है और आज की नई वैचारिक क्रांति के बावजूद देश भर की औरतों पर जुल्मों की कमी नहीं है. महिला आयोग के पास आने वाली  सैकड़ों शिकायतें यह स्पष्ट करती हैं कि भारतीय समाज में औरतों के साथ मारपीट, बलात्कार, छेड़खानी, संपत्ति में हिस्सा देने में आनाकानी करना अभी भी बंद नहीं हुआ है.

फिल्म ‘पद्मावती’ का विरोध करने वाले लोग वे ही हैं, जो नहीं चाहते कि पौराणिक सोच में कोई परिवर्तन हो, लोग नई चेतना, नए प्रकाश में जिएं.

ये लोग पुरोहित, पंडे, मौलवी, पादरी का तंत्र बनाए रखना चाहते हैं. अब इन्होंने राष्ट्रवाद और देशभक्ति का बहाना भी लेना शुरू कर दिया है और धार्मिक कट्टरता को देश की अस्मिता का नाम देना शुरू कर दिया है. हिंदू समाज बड़ी चतुराई से मुसलिम या ईसाई कट्टरपन की भी रक्षा करने लग गया है ताकि धर्म के हर सुधार को देशभक्ति पर उठाए सवाल के बराबर मान लिया जाए.

अभिभावक ही नहीं स्कूल भी रहें सावधान

स्कूली छात्रों द्वारा अपराध करना कोई नई बात नहीं है. दिल्ली के निकट गुरुग्राम के रेयान स्कूल के 11वीं के छात्र द्वारा दूसरी कक्षा के बच्चे की हत्या केवल इसलिए कर देना कि उस से परीक्षाएं स्थगित हो जाएंगी कोई ऐसी अनोखी बात नहीं कि इस पर आज के संचार माध्यमों को कोसा जाए. जहां भी लोग होंगे वहां अपराधी भी होंगे ही और यह अपराध करना कुछ बचपन से ही सीखने लगते हैं.

ऐसे माता पिताओं की कमी नहीं है जो बच्चों को मारनेपीटने के अपने बुनियादी हक का हर समय इस्तेमाल करते हैं. इन घरों के बच्चों के मन में गुस्सा, बदले की भावना, कुंठा, रोष, हताशा, विवेकशून्यता बहुत पहले से पैदा हो जाती है. बहुत छोटे बच्चे भी मातापिता की शह पर या प्राकृतिक कारणों से मारपीट में आनंद लेने लगते हैं. इन में से कुछ मातापिता की सही शिक्षा से सुधर जाते हैं, तो कुछ उन्हीं के और वातावरण के कारण और ज्यादा बिगड़ जाते हैं.

रेयान स्कूल के इस 11वीं कक्षा के छात्र के बारे में बहुत कुछ लिखना सही न होगा पर इस घटना पर कोई अचंभा करना भी गलत होगा. हर स्कूल में हमेशा से इस तरह के छात्र रहते रहे हैं. जब फौर्मल शिक्षा नहीं थी तब इस उम्र के किशोर गैंगों के हिस्से बन जाते थे. भारत में ही नहीं, अतिशिक्षित यूरोप व अमेरिका में भी किशोर अपराधियों के गैंग उत्पात मचाते रहते हैं. लड़कियां भी उन के साथ होती हैं और ये लड़केलड़कियों और बड़ों को परेशान ही नहीं करते, लूटते भी रहते हैं. नकल का विरोध करने पर अध्यापकों को धमकियां देना तो बहुत पुरानी बात है.

यह सोचना कि रेयान स्कूल का यह छात्र आज की सभ्यता की देन है गलत है. यह होता रहेगा और समाज के पास इस तरह के बच्चों को पकड़े जाने पर सुधारगृहों में रखने के अलावा और कोई चारा नहीं है. यह ठीक है कि इस प्रकार के किशोर आमतौर पर गलत रास्ते पर ही रहते हैं और सुधार की उम्मीद कम ही होती है और इन से ज्यादा अपेक्षाएं करना भी गलत होगा. यह सोचना कि नैतिक शिक्षा दे कर उन्हें सुधारा जा सकता है गलत सा है, क्योंकि इन पर न तो कोई पैसा खर्च करना चाहता है और न ही समय या शक्ति.

रैगिंग और नकल भी इसी उद्दंडता का रूप हैं और कई बार यह परपीड़न सुख वाली भावना इतना जोर पकड़ लेती है कि चाह कर भी कोई अंत नहीं हो पाता. अच्छा यही है कि स्कूल इस तरह के बच्चों से सीधे बच्चों को बचा कर रखें और उन्हें अपने हालबेहाल पर छोड़ दें. जिस तरह का तूल मीडिया इस कांड को दे रहा है वह गलत है.

बाइक सवारों ने किया पीछा, बौलीवुड की अदाकारा ने सिखाया सबक

ऋचा चड्ढा बौलीवुड की जानीमानी अभिनेत्री हैं, जो अपने बोल्ड और महत्वपूर्ण किरदारों के लिए पहचानी जाती हैं. वे कई बार अपने अभिनय को लेकर चर्चा में रह चुकी हैं, लेकिन इस बार वे किसी और वजह से चर्चा में छाई हुई हैं.

हाल ही में उन्होंने उन बाइक सवारों को फटकार लगाई, जो बेहद उत्साह से बाइक के जरिये उनका पीछा कर रहे थे.

उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक मैसेज लिखते हुए कहा कि ‘बांद्रा में कुछ अति उत्साहित प्रशंसकों ने बाइक पर मेरा पीछा किया. आप सड़क पर पैदल चलने वालों और अन्य वाहनों की सुरक्षा के लिए खतरा हो. फोटो खिंचाने के लिए पूछने का यह कोई तरीका नहीं होता. सुधर जाइए.’

ये तो आप सभी जानते हैं कि फैन्स अपने फेवरेट कलाकर के साथ तस्वीर खिंचवाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं. ऐसे में वे अपनी और दूसरों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखते और जान का जोखिम उठा लेते हैं.

ऐसा ही वाकया पिछले दिनों तब हुआ, जब मुंबई पुलिस ने अभिनेता वरुण धवन के नाम चालान जारी किया था क्योंकि उन्होंने एक प्रशंसक के साथ अपनी कार में से सेल्फी ली थी. इस वाकये के दौरान वरुण ने अपनी कार की खिड़की से निकलर आटोरिक्शा में यात्रा कर रही अपनी प्रशंसक के साथ सेल्फी ली थी.

मुंबई पुलिस से चालान और नसीहत मिलने के बाद वरुण ने इस गलती के लिए माफी भी मांगी थी और दोबारा ऐसी गलती न करने का वादा भी किया था.

मेकअप से आप भी छिपा सकती हैं ‘लव बाइट’

रिलेशनशिप में इंटीमेसी के दौरान कई बार लव बाइट आ जाती है. ये छोटे-छोटे लाल, नीले निशान आपके अच्छे वक्त के गवाह जरूर होते हैं लेकिन इन्हें छिपाने में ही भलाई है. नहीं तो आप कई लोगों के सामने शर्मिंदा हो सकती हैं.

वैसे ये इतनी चिंता की बात नहीं है क्योंकि लव बाइट्स स्थायी नहीं होती, इसलिए इन्हें छिपाने का अस्थायी तरीका ही काफी है. जिस तरीके से आप मेकअप से अपने पिंपल के निशान, डार्क सर्कल और बाकी की कमियों को छिपाती हैं, उसी तरह से लव बाइट्स को भी छिपाया जा सकता है. हम बताते हैं कैसे.

सबसे पहले ये ट्राई करें

जिस जगह लव बाइट के निशान हैं उसे धो लें या गीले कपड़े से साफ कर लें, या थोड़ा बर्फ लगाएं. अब इस पर मौश्चराइजर लगाएं. अपने हाथ में थोड़ा-सा प्राइमर लें और उस स्थान पर अच्छी तरीके से लगा लें.

गहरा मेकअप

लव बाइट को मेकअप के जरिये छुपाने की कोशिश करें. जैसे कि फाउंडेशन लव बाइट को छुपाने के लिए बेस्ट है. साथ ही आंखों को हेवी मेकअप दें और बड़ी बिंदी लगाएं. इससे सबका ध्यान आंखों की तरफ होगा. या फिर हेवी मेकअप करें जिससे की लोगों को ध्यान केवल आपके मेकअप पर ही जाए. साथ में बालों को खुला रखें.

फाउंडेशन की मदद लें

अपने स्किन टोन से थोड़े लाइट फाउंडेशन से लव बाइट को कवर करें. जब आप लाइट शेड के फाउंडेशन से उसे कवर करेंगी तो वो स्किन में छिप जाएगा, अलग से उभर कर नहीं आएगा.

कंसीलर का करें इस्तमाल

लाइव बाइट को कंसीलर की मदद से भी छिपाया जा सकता है. ग्रीन टिंटेड कंसीलर को चुनें क्योंकि ये आपकी लव बाइट के लाल रंग के साथ बैलेंस बना सकता है. जब लव बाइट का दाग खत्म होना शुरू होता है तो हरा या पीला सा हो जाता है. ऐसे में पिंक शेड का कंसीलर इस्तेमाल करें. ऊपर से पाउडर जरूर लगाएं.

टर्टलनेक और स्ट्रेट टीशर्ट

अगर ये लव बाइट आपको ठंड में मिले हैं तो कोई चिंता की बात नहीं है. तब आप इसे हाइनेक पहनकर ढक सकती हैं. लेकिन अगर ये आपको गर्मी के दिनों में मिले हैं तो चिंता की बात है.

क्योंकि इस मौसम में आप हाइनेक नहीं पहन सकतीं. ऐसे में आप हल्के रंग की स्ट्रेट टिशर्ट पहनें जो आपके लव बाइट के निशान को भी छुपाएंगे और आपको गर्मी भी नहीं लगने देंगे. या फिर टर्टल नेक टीशर्ट, फुल स्लीव्स और हाई कौलर टी शर्ट या टैंक टौप पहनें.

लो कैलोरी भोजन को स्वादिष्ठ बना देंगे ये खास टिप्स

आजकल हरकोई स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है और यह जरूरी भी है, क्योंकि हमारे देश में भी मोटे लोगों की संख्या में दिनोंदिन इजाफा होता जा रहा है. इस का मुख्य कारण अनियमित दिनचर्या व फास्ट फूड को माना जाता है. ऐसी कितनी ही बीमारियां हैं, जो पहले उम्रदराज होने पर होती थीं पर आजकल कम उम्र में ही होने लगी हैं.

मसलन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन, हार्ट डिजीज आदि. ऐसे में चिकित्सक यही कहते सुने जाते हैं कि वजन कम करो और खाना समय से व लो कैलोरी वाला खाओ. तलाभुना भोजन मोटापे के लिए जिम्मेदार माना जाता है.

अकसर लोग भोजन के बारे में यही सोचसोच कर परेशान होते नजर आते हैं कि क्या करें उबला खाना खाया नहीं जाता. किसी न किसी तरीके से वे पेट तो भर लेते हैं पर तृप्ति नहीं होती है.

मगर अब परेशान होने की जरूरत नहीं है. कुछ बातों का ध्यान रख कर लो कैलोरी खाने को भी स्वादिष्ठ बनाया जा सकता है.

खुशबूदार मसाले और तड़के

खुशबूदार मसालों जैसे लौंग, इलायची, दालचीनी, जीरा, हींग आदि का इस्तेमाल दाल व सब्जी में तड़का लगाने के लिए किया जाए तो दाल, सब्जी आदि बहुत स्वादिष्ठ लगती है. गरम दाल को सर्व करने से पहले अपने तड़के वाले चम्मच को खूब गरम कर उस में बिना घी या तेल डाले जीरा, हींग, साबूत लालमिर्च, लौंग आदि भून कर दाल में, कढ़ी में तड़का लगा कर ढक दें ताकि खुशबू उस में समा जाए.

दाल मक्खनी, राजमा आदि बनाते समय जब उबलने के लिए रखें तभी उन में अदरक, लहसुन, प्याज, टमाटर आदि छोटाछोटा काट कर अन्य सूखे मसालों के साथ डाल दें. ज्यादा देर उबलने के कारण उस में उन की खुशबू समा जाएगी और फिर कच्चापन भी नहीं लगेगा. इस के बाद जीरा, कसूरी मेथी, हींग आदि को बिना घी के सूखा भून कर उस में टोमैटो प्यूरी डालें और भून कर दाल, राजमा आदि में मिला दें. यकीन मानिए दाल या राजमा बिना तेल या घी के बहुत ही स्वादिष्ठ लेगेंगे.

चावलों के पानी में तेजपत्ता, लौंग, दालचीनी आदि मसाले जो आप को पसंद हैं डाल कर उबालें. चावल खुशबूदार बनेंगे.

प्याज, अदरक व लहसुन का प्रयोग

प्याज, लहसुन व अदरक का प्रयोग करते समय समस्या यह आती है कि बिना घी या तेल के इन का पेस्ट कैसे भूना जाए ताकि ग्रेवी स्वादिष्ठ बने. याद रखें, सभी आहार विशेषज्ञों का मानना है कि एक दिन में 3 छोटे चम्मच तेल या घी का इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि फिर भी आप बिलकुल भी घी या तेल का इस्तेमाल नहीं करना चाहती हों तो इन चीजों को मोटामोटा काटें और प्रैशरपैन में 1 बड़े चम्मच पानी के साथ 1 सीटी आने तक पकाएं. ठंडा कर के पीस लें. सूखे मसाले डाल कर भूनें व सब्जी डाल कर पकाएं. बिना तेल के बढि़या सब्जी तैयार है.

प्याज, लहसुन को आंच पर ऐसे ही भून कर पीस लें अथवा माइक्रोवेव है, तो उस में मसाले का पेस्ट ऐसे ही हाई पर मसाला सूख जाने तक पकाएं. बढि़या पेस्ट तैयार है.

ग्रेवी वाली सब्जी में समस्या आती है कि लालमिर्च पाउडर का इस्तेमाल न करने पर कलर नहीं आता. इस के लिए आप कश्मीरी सूखी मिर्च को थोड़ी देर कुनकुने पानी में भिगोएं. फिर बीज निकाल कर पेस्ट बना कर सब्जी में डालें. इस के अलावा देगी मिर्च पाउडर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. यदि यह भी नहीं करना तो मसाला भूनने के साथ चुकंदर का एक टुकड़ा डाल दें. जब सब्जी गल जाए तब निकाल दें. कलर आ जाएगा.

खाने के 5 यार

जैसे खिचड़ी के लिए 4 यार की बात कही जाती है- घी, पापड़, चटनी, अचार उसी तरह लो कैलोरी खाने को स्वादिष्ठ बनाने के लिए 5 यार की बात कही जाती है और ये हैं- प्याज, टमाटर, पुदीना, इमली और दही.

ये ऐसी चीजें हैं, जो किसी भी खाने को स्वादिष्ठ बनाती हैं. मसलन, पुदीनाइमली में अन्य चीजें मिक्स कर के खट्टीमीठी चटनी बनाई जा सकती है. प्याजटमाटर का सलाद दही में भी डाला जा सकता है. दही को जीरा पाउडर से सजा कर सर्व किया जा सकता है.

इन के अलावा नीबू, मौसंबी, संतरा, आंवला आदि का सेवन करने से विटामिन सी तो मिलेगा ही, साथ ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ेगी.

परफैक्ट बरतनों का चुनाव

कम तेल या घी का खाना बनाने में सही बरतनों का चुनाव बहुत ही अहम भूमिका निभाता है. अच्छी क्वालिटी के नौनस्टिक और सिरैमिक के बरतन भोजन बनाने के लिए उपयुक्त रहते हैं. इन में न तो भोजन चिपकता है और न ही जलता है. इस के अलावा माइक्रोवेव, एअरफ्रायर में भी अच्छी तरह भूना जा सकता है. स्टफ्ड शिमलामिर्च, भिंडी, टिंडे, टमाटर आदि के साथसाथ कबाब, कटलेट आदि के लिए भी ये दोनों चीजें बहुत उपयुक्त हैं.

हैल्दी कुकिंग टिप्स

कोफ्ते, कबाब आदि खाने का मन हो या मूंगदाल के पकौड़े, तो चिंता किस बात की. अप्पा पात्रम में बहुत कम तेल यानी 1 छोटे चम्मच तेल में 10-12 कोफ्ते बनाए जा सकते हैं. खांचों को चिकना करें और उन में मिश्रण डालें. उलटेंपलटें. बढि़या कोफ्ते, पकौड़े तैयार हैं. इस के अलावा भाप में पकाएं या ओवन में पका लें. इसी तरह दहीवड़े भी बनाए जा सकते हैं.

बिना प्याजलहसुन पीसे गाढ़ी ग्रेवी तैयार करनी हो तो भुने चनों को मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लें या भुनी मूंगफली को पीस कर पाउडर बनाएं और ग्रेवी में डाल दें. सब्जी स्वादिष्ठ बनेगी.

कम कैलोरी की सूखी सब्जी बनानी हो, तो थोड़ा जूसी बनाएं. प्रैशरपैन में थोड़ा सा पानी डाल कर गलाएं.

मांड निकले चावलों में कैलोरी कम होती है. अत: इन्हें खुशबूदार बनाने के लिए एक नौनस्टिक पैन को चिकना कर उस में जीरा, तेजपत्ता, दालचीनी और इच्छानुसार बाकी मसाले डाल कर भूनें और फिर चावल डाल दें. एक बार मिक्स कर के बंद कर दें. 15 मिनट में खुशबूदार चावल तैयार हो जाएंगे.

मसाले, प्याज, टमाटर व सब्जी आदि को तुरंत काट कर पकाएं. ऐसा करने पर यह ज्यादा स्वादिष्ठ लगती है.

क्या आपने देखा अक्षय कुमार का यह फनी अंदाज

अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म पैडमैन इस समय काफी चर्चा में है. इन चर्चाओं के बीच अब पैडमैन का दूसरा पोस्टर भी रिलीज किया जा चुका है.

अक्षय ने अपने फिल्म के इस दूसरे पोस्टर को अपने ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया है. इस पोस्टर में अक्षय कुमार का काफी अलग अंदाज देखने को मिल रहा है.

पोस्टर में अक्षय कुमार कौटन को अपने हाथों में लेकर मुस्कुरा रहे हैं और इसमें भी पहले वाले पोस्टर की तरह ही ‘सुपरहीरो है ये पगला’ टैगलाइन लिखा हुआ है.

अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ अरुणाचलम मुरुगनंथम नाम के एक शख्स के जीवन पर आधारित फिल्म है, अरुणाचलम ने महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियों से राहत दिलाने के लिए सस्ते दाम पर सैनिटरी नैपकिन बनाए थे और इस तरह एक क्रांतिकारी कदम को अंजाम दिया था.

‘पैडमैन’ ट्विंकल खन्ना के प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म है, जिसका डायरेक्शन आर बाल्‍की कर रहे हैं.  यह पहला मौका है जब अक्षय और उनकी पत्नी ट्विंकल खन्ना दोनों इस तरह से एक साथ किसी फिल्म से जुड़ रहे हैं. सूत्रों से पता चला है कि मिसेज फनीबोन्स के बाद ट्विंकल खन्ना ने अपने उपन्यास के 10 चैप्टर लिख लिए थे. जब वे अपने कौलम के लिए रिसर्च कर रही थीं उस समय उन्हें अरुणाचलम की कहानी के बारे में पता चला. जिसके बाद उन्होंने अपने नौवेल को छोड़कर सैनिटरी मैन की स्टोरी पर काम शुरू कर दिया.

ट्विंकल खन्ना सैनिटरी मैन की कहानी को लेकर एक छोटी सी फिल्म बनाना चाहती थीं लेकिन अक्षय और बाल्की ने इसे बड़ी फिल्म बनाने का फैसला लिया और उसपर काम भी शुरू कर दिया. ‘पैडमैन’ 26 जनवरी, 2018 को रिलीज होगी.

इन वजहों से बिग बौस 11 की विनर बन सकती है ये कंटेस्टेंट

बिग बौस 11 का मुकाबला दिनों दिन दिलचस्प होता जा रहा है. इस वीकेंड एक कंटेस्टेट कम होने के बाद बिग बौस के घर में 8 कंटेस्टेंट बचे हैं. ये हैं अर्शी खान, प्रियांक शर्मा, आकाश डडलानी, विकास गुप्ता, शिल्पा शिंदे, हिना खान, हितेन, पुनीष शर्मा और लव त्यागी. इनमें से बिग बौस 11 के विजेता के तौर पर शिल्पा शिंदे का पलड़ा सबसे मजबूत बताया जा रहा है.

शिल्पा शिंदे दर्शकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से कामयाब हो रही हैं. यहां तक की हिना खान और उनके फैन्स सलमान पर आरोप लगा रहे हैं कि वे शिल्पा शिंदे को फेवर करते हैं.

ट्विटर पर ‘शिल्पा विनिंग हर्ट’ ट्रेंड कर रहा है. बहुत से लोग शिल्पा शिंदे को ट्विटर पर सपोर्ट कर रहे हैं वहीं हिना खान और अर्शी खान के खिलाफ हैं.

शिल्पा सभी के दिल पर इस समय राज कर रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि शो की शुरुआत में शिल्पा के दुश्मन दिख रहे विकास गुप्ता ने भी बीते दिनों शिल्पा की तारीफ की थी.

शो में हिना खान से बात करते हुए विकास ने कहा था कि शिल्पा एक इंटेलिजंट प्लेयर हैं. शिल्पा सिर्फ लोगों को एंटरटेन ही नहीं कर रही हैं, बल्कि उन्हें पता है कि चीजों को अच्छे से कैसे मैनेज करना है.

जानें 5 वजह जो बना सकते हैं शिल्पा को बिग बौस 11 का विनर.

सलमान का सौफ्ट कार्नर

होस्ट सलमान का रवैया कंटेस्टेंट के प्रति नरम होना काफी अहम है. फिलहाल, शिल्पा शिंदे के प्रति सलमान बेहद कूल नजर आ रहे हैं. हाल ही में जब कैटरीना बिग बौस के घर में आईं, तब उनकी मेजबानी का जिम्मा सलमान ने शिल्पा को दिया, क्योंकि वे उन्हें जिम्मेदार मानते हैं.

लाखों में मिले ट्वीट

शिल्पा शिंदे के ट्विटर फैन्स ने उन्हें बिग बौस की अब तक की सबसे पौपुलर कंटेस्टेंट बना दिया है. “Shilpa winning hearts” के नाम से हैशटैग ट्विटर पर पर खूब ट्रेंड कर रहा है. इस हैशटैग के चलते शि‍ल्पा के फैन्स ने उनके लिए 3,29,000 ट्विट्स कि‍ए और शि‍ल्पा का नाम ट्रेंडिंग लिस्ट में शामिल हो गया. बिग बौस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी कंटेस्टेंट के लिए फैन्स ने इतनी संख्या में ट्वीट किए हैं.

बाहर निकले और एक्स कंटेस्टेंट का पौजीटिव रुख

घर से बाहर निकल चुके कंटेस्टेंट भी अब अपने व्यवहार के लिए शिल्पा से माफी मांगना चाहते हैं. इनमें बेनाफ्शा सबसे आगे हैं. इतना ही नहीं, बिन्दू दारा सिंह ने भी उनकी तारीफ में कहा कि वे बिना लड़े सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं.

विरोधी कंटेस्टेंट का जीता दिल

शिल्पा ने घर के बाकी कंटेस्टेंट का दिल भी जीता है. यहां तक कि उनके घोर विरोधी विकास से भी उनके रिश्ते अब सामान्य हैं. शिल्पा विरोधी खेमे की मदद के लिए भी तैयार रहती हैं. ये बात उनके लिए प्लस प्वाइंट बन सकता है.

हिना का बढ़ता विरोध

हिना खान का जिस तरह से लगातार विरोध हो रहा है, उसका फायदा भी शिल्पा को मिलने वाला है.

जब ‘वक्त’ के बाद बदल गया शशि कपूर का वक्त

अपने समय के मशहूर रोमांटिक अभिनेता शशि कपूर का 79 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद सोमवार 4 दिसंबर को मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में शाम पांच बजकर 20 मिनट पर निधन हो गया. शशि कपूर पिछले कई वर्षों से व्हील चेअर पर थे. किडनी की बीमारी के चलते रविवार की शाम को उन्हे मुंबई के अंधेरी स्थित कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

जब शशि कपूर ने अंतिम सांसे लीं, उस वक्त उनके पास उनके बड़े बेटे कुणाल कपूर मौजूद थे. जबकि उनकी बेटी संजना कपूर और छोटा बेटा करण कपूर मुंबई से बाहर थे, पर देर रात तक यह दोनों मुंबई पहुंच गए. मंगलवार, 5 दिसंबर को दोपहर 12बजे मुंबई में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.

शशि कपूर के निधन के साथ ही कपूर खानदान यानी कि स्व. पृथ्वीराज कपूर की दूसरी पीढ़ी का अंत हो गया, जबकि उनकी तीसरी व चौथी पीढ़ी बौलीवुड में अभिनय के क्षेत्र में कार्यरत है. स्व. पृथ्वीराज कपूर के सबसे बड़े बेटे राज कपूर, मंझले बेटेशम्मी कपूर और शशि कपूर सबसे छोटे बेटे थे. नियति का खेल भी निराला रहा. पृथ्वीराज कपूर के बाद उनके बड़े बेटे राज कपूर, फिर मंझले बेटे शम्मी कपूर और अब सबसे छोटे बेटे शशि कपूर का देहांत हुआ है.

अब कौन कहेगा ‘‘मेरे पास मां है’

शशि कपूर के देहांत की खबर से सिर्फ बौलीवुड ही नहीं, बल्कि शशि कपूर के लाखों प्रशंसक भी गम में डूब गए. हर किसी की जुबान पर सिर्फ एक सवाल है कि, अब कौन कहेगा कि ‘मेरे पास मां है.’ यूं तो हर कलाकार के उनकी सफलतम फिल्मों के कुछ संवाद उनके प्रशंसकों को हमेशा याद रहते हैं, मगर शशि कपूर के अनेक संवाद ऐसे हैं, जो कि उनके हर प्रशंसक की जुबान पर हैं. मगर उन संवादों में से फिल्म ‘दीवार’ में दो सगे भाईयों में से एक माफिया डान बने विजय वर्मा का किरदार निभाते हुए अमिताभ बच्चन अपने छोटे भाई व पुलिस इंस्पेक्टर रवि वर्मा का किरदार निभा रहे शशि कपूर से एक मोड़ पर कहते हैं कि उनके पास ‘बंगला,गाड़ी…वगैरह है..’’ तब रवि वर्मा यानी शशि कपूर उनसे कहते हैं-‘‘मेरे पास मां है.’’ जिसे सुनकर विजय वर्मा निरुत्तर हो जाते हैं. फिल्म ‘‘दीवार’’ का शशि कपूर का यह संवाद हर भारतीय के दिल में समा गया था. तब से मौके बेमौके लोग इस संवाद को अपनी निजी जिंदगी में दोहराते रहते हैं. यही वजह है कि आज शशि कपूर के इस संसार से विदा लेते ही लोगों के जेहन में पहला सवाल यही उठा कि अब कौन कहेगा ‘मेरे पास मां है’.

शशि कपूर ने खुद बनायी थी अपनी राह

इन दिनों बौलीवुड में नेपोटिजम का मुद्दा गर्माया हुआ है, जबकि पृथ्वीराज कपूर ने कभी भी बौलीवुड में आगे बढ़ने के लिए अपने बेटों की मदद नहीं की. 18 मार्च 1938 के दिन कलकत्ता, अब कोलकाता में जन्मे बलबीर पृथ्वीराज कपूर यानी कि शशि कपूर ने जब 1944 में बाल कलाकार के रूप में अभिनय करियर की शुरुआत की थी. उस वक्त उनके पिता पृथ्वीराज कपूर ने कहा था कि शशि कपूर खुद संघर्ष करें, मेहनत करें और अपनी मेहनत व प्रतिभा के बल पर अभिनेता बनें. शशि कपूर ने अपने पिता के इस कथन को गांठ बांध लिया था. पर वह अपने पिता का काफी सम्मान करते थे.

पिता के सम्मान में पृथ्वी थिएटर

अपने पिता के सपनों को याद रखते हुए शशि कपूर थिएटर से जुड़े. इतना ही नहीं शशि कपूर ने अपने पिता के सपनों को पूरा करने और थिएटर की बेहतरी, थिएटर से नई नई प्रतिभाओं को जुड़ने की प्रेरणा देने के मकसद से अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के नाम पर मुंबई में जुहू इलाके में ‘‘पृथ्वी थिएटर’’ की शुरुआत की, जहां पर हर दिन नए नए रंगकर्मी और कलाकार अपने नाटकोंका प्रक्षेपण करते रहते हैं.

इस पृथ्वी थिएटर पर अपने नाटकों का मंचन करते हुए कई प्रतिभाएं सिनेमा व टीवी की दुनिया में नित नई उंचाइयां छूती रही हैं और आज भी छू रही हैं. इतना ही नहीं सिनेमा के कई दिग्गज कलाकार भी इस पृथ्वी थिएटर पर अपने नाटकों मंचन करते हैं.शुरुआत में खुद शशि कपूर इस पृथ्वी थिएटर की देखभाल किया करते थे. वह हर रंगकर्मी के सुख दुःख सुना करते थे. उसके बाद यह जिम्मेदारी उनकी बेटी संजना कपूर ने निभाना शुरू किया. जब संजना कपूर की वाल्मीक थापर के शादी हो गयी, तब से इस जिम्मेदारी का निर्वाह शशि कपूर के बड़े बेटे कुणाल कपूर बड़ी शिद्दत के साथ कर रहे हैं. यही वजह है कि देश का हर रंगकर्मीशशि कपूर की मौत से गमगीन है?

हीरो बनने से पहले ही की विदेशी लड़की जेनिफर केंडल से विवाह

यूं तो शशि कपूर ने महज दस साल की उम्र में ही बाल कलाकार के रूप में अपने बड़े भाई राज कपूर के बचपन के किरदारों को फिल्मों में निभाना शुरू किया था, पर 16 साल की उम्र में वह अपने पिता के थिएटर जुड़ गए. जब वह 18 वर्ष के थे, तब भारत की यात्रा पर आयी एक ब्रिटेन की नाट्य मंडली ‘शेक्सपियेराना’ से जुड़ गए. जहां उन्हे इस नाट्यमंडली के मालिक की बेटी जेनिफर केंडल से प्यार हो गया और 1958 में दोनों ने शादी कर ली. जिनसे उनके दो बेटे कुणाल कपूर व करण कपूर तथा एक बेटी संजना कपूर हैं. 1984 में जेनिफर कपूर की मौत हो गयी थी. उसके बाद से उनकी दुनिया अभिनय, पृथ्वी थिएटर व अपने बच्चों तक ही सीमित होकर रह गयी थी.

विवाह के बाद किस्मत खुली

ब्रिटिश नागरिक जेनिफर केंडल से विवाह रचाने के बाद शशि कपूर की किस्मत ने जबरदस्त पलटा खाया. 1959 में उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक काम किया. फिर 1961 में उन्हे बी आर चोपड़ा निर्मित तथा उनके भाई यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘‘धर्म पुत्र’’ में माला सिन्हा के साथ हीरो बनकर आने का मौका मिला. इस फिल्म को बाक्स आफिस पर सफलता नहींमिली, मगर इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया. राष्ट्रपति ने इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रजत पदक से नवाजा. फिर बिमल राय की फिल्म ‘‘प्रेमपत्र’’ की, पर इसे भी सफलता नहीं मिली. इसके बाद ‘मेंहदी लगी मेरे हाथ’, ‘बेनजीर’ व ‘हालीडे इन बांबे’ सहित उनकी करीबन नौ फिल्में बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज नहीं कर सकी.

‘वक्त’ ने बदला उनका वक्त

‘धर्मपुत्र’ की असफलता के बावजूद बी आर चोपड़ा ने 1965 में अपनी मल्टीस्टारर फिल्म ‘‘वक्त’’ में बलराज साहनी, राज कुमार,सुनील दत्त, साधना, शर्मिला टैगोर के साथ ही शशि कपूर को भी अभिनय करने का अवसर दिया. इस फिल्म में अभिनय करना शशि कपूर के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. बलराज साहनी व राज कुमार जैसे कलाकारों के समक्ष खड़े रहना हर कलाकार के बसकी बात नहीं थी. इसके अलावा इस फिल्म में उनके साथ सुनील दत्त भी थे. यहां याद रखना होगा कि सुनील दत्त के करियर की पहली फिल्म ‘‘पोस्ट बाक्स 999’’ में शशि कपूर ने बतौर सहायक निर्देशक काम किया था.

खैर, शशि कपूर ने कड़ी मेहनत की और इस फिल्म की सफलता के साथ ही लोगों ने इस फिल्म में शशि कपूर द्वारा निभाए गए विजय उर्फ मुन्ना के किरदार को भी काफी पसंद किया. इतना ही नहीं इस फिल्म को अलग अलग कैटेगरी में कुल सात फिल्मफेअर अवार्ड भी मिले. इसी साल नंदा के साथ उनकी फिल्म ‘‘जब जब फूल खिले’’ तथा ‘‘प्यार किए जा’ ने भी धूम मचायी.

बहरहाल, फिल्म ‘वक्त’ से शशि कपूर का वक्त ऐसा बदला कि फिर उन्होंने करीबन बीस वर्ष तक बौलीवुड में रोमांटिक हीरो के रूप में अपना एकक्षत्र राज्य कायम रखा. बतौर हीरो उन्होंने 170 फिल्में की, जिसमें ‘36 चौरंगी लेन’, ‘चोर मचाए शोर’, ‘दीवार’, ‘कभी कभी’, ‘त्रिशूल’, ‘सुहाग’, काला पत्थर’,  ‘विजेता’, ‘जुनून’, ‘दिल ने पुकारा’, ‘कन्यादान’, उनकी कुछ चर्चित फिल्में हैं.

1998 में उन्होंने दो अंग्रेजी भाषा की फिल्में ‘‘जिन्ना’’ व ‘‘साइडस्ट्रीट’’ की. इसके बाद वह किसी भी फिल्म में नजर नही आए. मगर वह अपने पृथ्वी थिएटर पर हर दिन नाटक देखने जाते रहे हैं.

रोमांटिक और चाकलेटी हीरो ही नहीं, हरफनमौला कलाकार

बौलीवुड के सर्वाधिक हैंडसम और अति खूबसूरत शशि कपूर को लोग ‘चाकलेटी चेहरे’ वाला कलाकार कहते थे. शशि कपूर के ही वक्त में चाकलेटी हीरो शब्द इजाद हुआ था. शशि कपूर एकमात्र ऐसे कलाकार रहे हैं, जिन्हें सर्वाधिक सफल व अलग तरह के रोमांटिक हीरो की संज्ञा दी जाती रही. जबकि शशि कपूर ने रोमांटिक किरदारों के अलावा हास्य, एक्शन, नाटकीय किरदार भी निभाए. वह अपने समय के ऐसे कलाकार रहे हैं, जिन्होंने हिंदी के अलावा हौलीवुड फिल्में और अंग्रेजी सिनेमा भी किया. अंग्रेजी भाषा में खुद भी फिल्में बनायी. पर शशि कपूर ने रोमांटिक हीरो के रूप में जो अमिट छाप छोड़ी, वह कोई अन्य नहीं छोड़ पाया.

अमिताभ, शर्मिला, राखी के साथ सबसे ज्यादा फिल्में

शशि कपूर और अमिताभ बच्चन की जोड़ी को फिल्मों मे सर्वाधिक पसंद किया गया. इन दोनों ने ‘सुहाग’, ‘दो और दो पांच’, ‘अजूबा’, ‘दीवार’, ‘कभी कभी’ , ’शान’, ‘सिलसिला’, ‘बांबे टाकीज’, ‘नमक हलाल’, ‘जानेमन’, ‘त्रिशूल’ जैसी फिल्में की. राखी के साथ दस, शर्मिला टैगोर के साथ 12, नंदा के साथ ग्यारह यादगार फिल्में की.

व्यावसायिक फिल्मों की कमायी को कला फिल्मों में गंवाया

शशि कपूर पर विदेशी सिनेमा के अलावा कलात्मक सिनेमा का काफी प्रभाव रहा. उन्होंने मुंबईया मसाला फिल्मों में अभिनय कर जमकर पैसा कमाया. पर इस धन का उपयोग उन्होंने ‘पृथ्वी थिएटर’ को संवारने के अलावा अपनी मनपंसद कलात्मक फिल्मों के निर्माण में करते रहे.

शशि कपूर ने सबसे पहले 1978 में फिल्म ‘‘जुनून’’ का निर्माण किया था. उसके बाद ‘कलयुग’, 36 चौरंगी लेन’, ‘विजेता’, ‘उत्सव’ और ‘अजूबा’ का निर्माण किया. शशि कपूर ने 1991 में अति महंगी फिल्म ‘‘अजूबा’’ का निर्माण किया था, जिसमें अमिताभ बच्चन भी थे. इस फिल्म की असफलता से उन्हे इतना नुकसान हुआ कि वह पूरी तरह से टूट गए. उसके बाद वह 1993में अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘इन कस्टडी’ में नजर आए थे. फिर एक विदेशी टीवी पर मिनी सीरीज की. 1998 के बाद वह अभिनय व फिल्म निर्माण से पूरी तरह से दूर हो गए.

पत्नी व भाई की मौत ने तोड़ दिया

1984 में पत्नी जेनिफर की मौत, उसके बाद 1988 में बडे़ भाई राज कपूर की मौत के बाद शशि कपूर खुद को बड़ा अकेला महसूस करने लगे और पृथ्वी थिएटर की जिम्मेदारी बेटी संजना को सौंप एकांतवास की जिंदगी जीने लगे थे. पर कलात्मक इंसान कब तक चुप रहता. तो उन्होंने 1991 में ‘अजूबा’ फिल्म का निर्माण किया. इस फिल्म के डूबने से उनकी आर्थिक कमर भी टूट गयी.

उसके कुछ दिनों बाद सडक पर चलते हुए वह एक नाले में इस तरह गिरे कि उनके शरीर की कई हड्डियां टूट गयी. ब्रीच कैंडी अस्पताल में कई माह गुजारने के बाद वह व्हील चेयर पर ही अपने घर पहुंचे. उसके बाद उन्होंने लोगों और पत्रकारों से मिलना जुलना बंद कर दिया. पर सुबह वह पृथ्वी थिएटर पर नाटक देखने पहुंच जाया करते थे. उनके जन्मदिन पर पूरा कपूर खानदान इकट्ठा होता था. उनके हर जन्मदिन पर धर्मेंद्र जरूर पहुंचते थे. शशि कपूर के जन्मदिन पर यदि अमिताभ बच्चन मुंबई में हुए तो वह भी उन्हें बधाईयां देने जरूर पहुंचते थे.

व्हील चेयर पर ही मिले उन्हें 2 बड़े सरकारी सम्मान

जीवन भर कला की सेवा करते रहे शशि कपूर जब व्हील चेयर पर पहुंच गए, तब सरकार ने उन्हें याद किया. 2011 में पद्मभूषण और 2015 में सिनेमा के सबसे बडे़ सम्मान दादा साहेब फालके अवार्ड से सम्मानित किया. वैसे उन्हें अपनी फिल्मों के लिए सबसे पहला राष्ट्रीय पुरस्कार 1979 में मिला था. और कुल तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. इसके अलावा फिल्मफेयर सहित कई पुरस्कार भी उन्हें मिले.

शशि कपूर की अधूरी तमन्ना

फिल्म ‘‘अजूबा’’ बनाने से पहले शशि कपूर की तमन्ना दिलीप कुमार को लेकर एक फिल्म बनाने की थी. उन्होंने इस फिल्म के लिए पटकथा भी तैयार कर ली थी. लेकिन पहले ‘अजूबा’ की वजह से हुए घाटे और बाद में स्वास्थ्य का साथ ना मिलने की वजह से उनकी यह तमन्ना अंत तक अधूरी रही.

अमिताभ बच्चन और शशि कपूर

यूं तो शशि कपूर उम्र में अमिताभ बच्चन से पांच साल बडे थे. मगर लगभग हर फिल्म में शशि कपूर ने अमिताभ बच्चन के छोटे भाई का ही किरदार निभाया. इन दोनों कलाकारों के बीच काफी अच्छी दोस्ती रही है. 80 के दशक में बौलीवुड में कहा जाता था कि  दोनों के बीच एक एग्रीमेंट हो चुका हैं कि दो हीरो वाली फिल्में यह दोनों एक साथ करेंगे. जब कोई निर्माता इनमें से किसी एक के पास फिल्म का आफर लेकर जाता था तो यह दोनों उस एग्रीमेंट की कापी उस निर्माता को दिखा दिया करते थे. यही वजह है कि इन दोनों की जोड़ी ने एक साथ 11 फिल्में की.

लोग बताते हैं कि जब अमिताभ बच्चन संघर्ष कर रहे थे तब शशि कपूर ने उनकी काफी मदद की थी. यहां तक कि एक बार यह दोनों मुंबई कें बांदरा इलाके में उस वक्त के सीराक हाटल में दसवीं मंजिल पर एक साथ शूटिंग कर रहे थे उसी वक्त अमिताभ बच्चन को दमा का अटैक पडा था. तब शशि कपूर ने ही उन्हें पकड़कर पीछे खींचा था अन्यथा वह काफी नीचे गिर सकते थे.

अनिल कपूर के करियर में शशि कपूर का योगदान

शशि कपूर की ही तरह अनिल कपूर ने भी बौलीवुड के साथ साथ कुछ हौलीवुड फिल्मों में अभिनय किया है. शशि कपूर की ही तरह वह भी  फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं. पर बहुत कम लोगों को पता होगा कि अनिल कपूर आज जिस मुकाम पर हैं, वह अपने करियर में शशि कपूर का बहुत बड़ा योगदान मानते हैं.

कुछ दिन पहले मीडिया के सामने खुद अनिल कपूर ने कहा था -‘‘मेरे करियर में शशि कपूर साहब का बहुत बड़ा योगदान रहा है. जब मैं सेंट जेवीयर्स कालेज में पढाई कर रहा था, उन दिनों एक समारोह में शशि कपूर मुख्य अतिथि  बनकर आए थे. इसी समारोह में मैंने एक नाटक में अभिनय किया था, जिसके लिए कालेज द्वारा दिलीप कुमार के नाम पर स्थापित पुरस्कार से मुझे नवाजा गया था. मुझे बेहतरीन कलाकार का यह पुरस्कार शशि कपूर के हाथों ही मिला था. इस नाटक को देखकर शशि कपूर काफी खुश हुए थे. मुझे पुरस्कार देने के बाद वह जहां जाते थे मेरे बारे में बात करते थे. मेरी तारीफ करते थे. उस समय इंडस्ट्री के काफी बडे लोगों से उन्होंने कहा कि एक अच्छा कलाकार आ रहा है.’’

अनिल कपूर ने आगे कहा -‘‘फिर जब मैंने फिल्मों में अभिनय करने के लिए संघर्ष करना शुरू किया तो मुझे पहली फिल्म ‘तू पायल मैं गीत’ मिली थी. इसमें मुझे शशि कपूर के टीनएजर उम्र यानी कि 15 साल की उम्र का किरदार निभाने का मौका मिला था. मुझे अच्छी तरह से याद है कि यह किरदार एक संगीतकार के बेटे का था जो कि खुद एक गायक बनना चाहता है. मैंने इसमें अभिनय किया था. मगर दुर्भाग्य की बात यह रही कि यह फिल्म कभी रिलीज ही नही हो पायी. उसके बाद मुझे कभी भी शशि कपूर के साथ काम करने का मौका नही मिला.

सर्दियों के मौसम में बटन वाले श्रग से खुद के लुक को दें एक नया एहसास

सर्दियों का मौसम आ गया है. इस मौसम में अक्सर लड़कियां वूलेन कपड़े पहनने के साथ फैशनेबल दिखना पसंद करती हैं. और इस समय तो वूलेन के श्रग (shrug) फैशन में है. इसे अधिकांश युवतियों और महिलाओं द्वारा काफी पसंद भी किया जा रहा है. खुद को शालीनता के साथ फैशनेबल तरीके से लोगों के सामने प्रस्तुत करने के लिए श्रग एक खास और ट्रेंडी ड्रेस माना जाता है.

इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि, श्रग को वेस्टर्न ड्रेस और भारतीय परिधान जैसे कुर्तियों आदि के साथ भी आसानी से पहना जा सकता है. पहले आने वाले श्रग बिना किसी बटन, लेस या बेल्ट आदि के साथ होते थे, जो काफी कुछ कौटन जैकेट की ही तरह लगते थे. पर आजकल फैशन में बटन वाले श्रग हैं जिसे पहन कर आप अपने लूक को एक नया एहसास दे सकती हैं.

यहां हम आपको कुछ खास बटन वाले फैशनेबल श्रग के कलेक्शन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो श्रग खरीदने में आपकी बहुत मदद करेगा.

क्रोशिया के गोल काम वाला फैशनेबल श्रग

क्रोशिया के गोल डिजाइन से बना श्रग इस समय काफी फैशन में है. ऊन से बुना हुआ स्लीवलेस श्रग हल्की ठंड में आपको गर्मी का एहसास दिलाने के साथ स्टाइलिश लुक भी देता है. इसे आप बाजार से आसानी से खरीद सकती हैं. यह बाजार में कई रंगो में उपलब्ध है.

स्टाइलिश पीक-अ-बू श्रग

फैशनेबल श्रग कलेक्शन में चौड़े कालर के साथ एक बड़े वूडन बटन वाला खूबसूरत श्रग अभी महिलाओं द्वारा बेहद पसंद किया जा रहा है. यह श्रग हल्की सी ठण्ड में और किसी भी मौके पर एक शानदार लुक के लिए काफी है. जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि आप इस श्रग को आप किसी स्टाइलिश टॉप या कुर्ती के साथ भी पहन सकती हैं. मैचिंग ईयररिंग्स और स्कार्फ के साथ यह बहुत ही खूबसूरत लुक देगा. इन सर्दियों में किसी खास अवसर पर आप इसे ट्राई कर सकती हैं.

विंटेज नीटेट Vs कालर श्रग

अगर आप पुराने समय की डिजाइन वाले श्रग जिसमें वी शेप (v shape) में कौलर हुआ करती थी, उसे ट्राई करने जा रही हैं तो इस खास श्रग को किसी पार्टी वेयर के साथ मैच कर सकती हैं. किसी डार्क कलर के पार्टी फ्राक के साथ यह बहुत आकर्षक लुक देगा. इस क्लासी डिजाइनर ड्रेस को आप किसी पार्टी में पहनकर जाएं,  सबकी निगाहें आपकी ओर टिकी रहेंगी.

किमोनो स्लीव डार्क ग्रे हैंड नीटेड श्रग

आजकल बाजार में भी हैंड नीटेड (hand knitted) डिजाइनर कपड़ों की खास डिमांड हैं, सर्दी के मौसम में वूलन कपड़ों के साथ हैंड नीटेड डिजाइन को बहुत सराहा जा रहा है. यह श्रग काफी सिंपल पैटर्न के साथ बाजार में उपलब्ध है. इसकी लेंथ शार्ट होती है जो किसी भी डिजाइनर टाप के साथ अच्छी लगता है.

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