ये पौलिसी आपके लिये है फायदे का सौदा

कई बीमा कंपनियों ने महिलाओं की जरूरतों के मुताबिक खास प्रोडक्ट लांच किए हैं. इस प्रकार की योजनाओं में लाइफ इंश्‍योरेंस, गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएं, ब्रेस्‍ट कैंसर, गर्भाशय का कैंसर आदि विभिन्न तरह के कैंसर, कंजेनिटल डिसैबिलिटी बेनिफिट आदि शामिल हैं. आज हम खास तौर पर महिलाओं के लिये डिजाइन की गई कुछ खास बीमा पौलिसियों के बारे में जानेंगें.

HDFC लाइफ स्मार्ट वीमेन प्लान

  • यह HDFC लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की एक ULIP है. इसे खास तौर पर महिलाओं के लिए ही डिजाइन किया गया है.
  • इसमें कंप्रिहेंसिव कवरेज पौलिसी है जिसके तहत प्रेगनेंसी कंप्लीकेशंस व कंजेनिटल कंडीशंस या महिलाओं में होने वाले कैंसर को कवर किया जाता है.
  • इन गंभीर हालातों में बीमा कंपनी आपको प्रीमियम की माफी और फंडिंग मुहैया करा कर मन की शांति भी देती है ताकि आप बीमारी से उबर सकें.
  • अपनी जिंदगी को पटरी पर लाएं साथ ही आपका निवेश भी लगातार बढ़ता रहे.
  • इसका न्यूनतम प्रीमियम 24,000 रुपए और अधिकतम एक लाख रुपए सालाना है.
  • पौलिसी की अवधि 10 या 15 वर्ष हो सकती है तथा सम एश्योर्ड सालाना प्रीमियम का 40 गुना तक हो सका है.

बजाज अलियांज वीमेन क्रिटिकल इलनेस प्लान

  • बजाज अलियांज लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का यह वीमेन स्‍पेसिफिक क्रिटिकल इलनेस प्लान है जिसमें विभिन्न बीमारियों के जोखिमों को कवर किया जाता है.
  • यह फैलोपियन ट्यूब कैंसर, गर्भाशय/सर्वाइकल कैंसर, ओवेरियन कैंसर, पैरालिसिस व बर्न जैसी गंभीर बीमारियों के मामले में 100 फीसदी कवरेज देता है.
  • इसके साथ ही इसमें स्‍पाइना बिफिडा, ट्रेकियो-ओइसोफेगल फिश्चुला व डाउंस सिंड्रोम के साथ बच्चा जन्म लेने पर सम एश्योर्ड का 50 फीसदी के भुगतान का प्रावधान भी है.
  • यह प्रोडक्ट 25 से 55 वर्ष तक की महिलाओं के लिए उपलब्घ है जिसका सम एश्योर्ड 50,000- 2,00,000 लाख रुपए तक है.
  • उम्र और सम एश्योर्ड के आधार पर इसका प्रीमियम लगभग 5,500 रुपए तक है.
  • सम एश्योर्ड की एकमुश्त राशि का भुगतान पौलिसी धारक के क्रिटिकल इलनेस के डायग्‍नोसिस के 30 दिनों बाद तक जीवित रहने पर किया जाता है.

बिड़ला सन लाइफ इंश्योरेंस कंपनी का क्रिटिकल इलनेस वीमेन राइडर

  • यह राइडर इस कंपनी की किसी जीवन बीमा योजना या एंडोमेंट योजना के साथ लिया जा सकता है.
  • आपका मूल प्लान जहां जीवन बीमा कवर देता है वहीं यह राइडर हार्ट अटैक्‍स, मेजर और्गन ट्रांसप्‍लांट, कैंसर और स्‍ट्रोक होने पर राइडर के 100 फीसदी सम एश्‍योर्ड का भुगतान करता है.
  • यह राइडर 18 से 65 वर्ष तक की महिलाओं के लिए उपलब्‍ध है.
  • इसका न्‍यूनतम सम एश्‍योर्ड 75,000 रुपए और अधिकतम 50 लाख रुपए है बशर्ते मूल जीवन पॉलिसी का सम एश्‍योर्ड भी उतना ही हो.

कंजंक्टिवाइटिस : आंखों की बीमारी

कंजंक्टिवाइटिस आंखों का विकार है जिस में कंजंक्टाइवा में जलन या सूजन होती है. कंजंक्टाइवा, वास्तव में, कोशिकाओं की एक पतली पारदर्शी परत होती है, जो पलकों के अंदर के हिस्से और आंख के सफेद हिस्से को ढकती है.

अकसर पिंक आई के नाम से बुलाया जाने वाला कंजंक्टिवाइटिस आंख का सामान्य किस्म का विकार है, जो खासतौर से बच्चों को घेरता है. यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है. कंजंक्टिवाटिस के कुछ प्रकार बेहद संक्रामक होते हैं और आसानी से घर व स्कूल दोनों जगह फैल सकते हैं. यों तो कंजंक्टिवाइटिस आमतौर पर आंख का एक मामूली संक्रमण होता है लेकिन कईर् बार यह गंभीर समस्या में भी बदल जाता है.

वायरल या बैक्टिरियल संक्रमण से भी कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है. यह हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों, जैसे पौलन (परागकण) और धुआं, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन, कौस्मेटिक्स में मौजूद तत्त्वों या आंख के संपर्क में आने वाले कौंटैक्ट लैंस जैसे अन्य तत्त्वों के कारण एलर्जिक रिऐक्शन से हो सकता है. यौन संक्रमण, जैसे क्लेमाइडिया और गोनोरिया के कारण कंजंक्टिवाइटिस होने की आशंका बहुत कम होती है.

कंजंक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को ये लक्षण महसूस हो सकते हैं :

– एक या दोनों आंखों में किरकिरी महसूस होना.

– एक या दोनों आंखों में जलन या खुजली होना.

– आंख से अधिक पानी बहना.

– पलकों में सूजन.

– एक या दोनों आंखों के सफेद हिस्से में गुलाबीपन आना.

– आंखों में रोशनी चुभना.

कंजंक्टिवाइटिस की वजह

कंजंक्टिवाइटिस के 3 मुख्य प्रकार होते हैं- एलर्जिक, संक्रामक और रासायनिक. कंजंक्टिवाइटिस की वजह उस के प्रकार पर निर्भर करती है.

एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस

– एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस आमतौर पर उन लोगों को होता है जिन्हें मौसम बदलने के कारण एलर्जी होती है. उन्हें आंख के किसी ऐसे तत्त्व के संपर्क में आने पर कंजंक्टिवाइटिस होता है, जिस से आंख में एलर्जिक रिऐक्शन शुरू होता है.

– जौइंट पैपिलरी कंजंक्टिवाइटिस, एक प्रकार का एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस होता है, जो आंख में लंबे समय तक किसी बाहरी तत्त्व के रहने के कारण होता है. सख्त कौंटैक्ट लैंस, सौफ्ट लैंस पहनने लेकिन उन्हें लंबे समय तक नहीं बदलने वाले, आंख की सतह पर एक्सपोज्ड हो या प्रौस्थेटिक आंख हो, ऐसे लोगों को कंजंक्टिवाइटिस होने की आशंका अधिक होती है.

संक्रामक कंजंक्टिवाइटिस

– बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस, यह संक्रमण आप की त्वचा या श्वास प्रणाली से आने वाले स्टेफाइलोकोकल या स्ट्रैप्टोकोकल बैक्टीरिया के कारण होता है. कीट, अन्य लोगों के साथ शारीरिक संपर्क, साफसफाई नहीं होने (गंदे हाथों से आंख छूना) या प्रदूषित आई मेकअप का इस्तेमाल करना या फिर चेहरे पर लगाने वाले लोशन से भी संक्रमण हो सकता है. मेकअप सामग्री साझा करना या किसी और के कौंटैक्ट लैंस पहनने या फिर गंदे कौंटैक्ट लैंस पहनने से भी बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस हो सकता है.

– वायरल कंजंक्टिवाइटिस सब से आम प्रकार का संक्रमण है और यह सामान्य कोल्ड से जुड़े वायरसों के कारण होता है. यह किसी ऐसे व्यक्ति की खांसी या छींक के कारण हो सकता है, जिसे श्वास की नली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण हो. वायरल कंजंक्टिवाइटिस, फेफड़े, गले, नाक, टीअर डक्ट और कंजंक्टाइवा को जोड़ने वाले शरीर के म्यूकस मेंब्रेन में वायरस के प्रसार के कारण भी हो सकता है. चूंकि आंसू नाक की नली से बाहर आते हैं, ऐसे में जबरदस्ती नाक साफ करने से मुमकिन है कि वायरस आप की श्वास प्रणाली से आप की आंखों में पहुंच जाए.

– औप्थैलमिया नियोनैटोरम, एक गंभीर प्रकार का बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस है, जो नवजात शिशुओं में होता है. यह बेहद गंभीर समस्या हो सकती है और अगर इस का तुरंत इलाज नहीं किया गया तो इस से आंखों को स्थायी तौर पर नुकसान भी हो सकता है. औप्थैलमिया नियोनैटोरम की समस्या तब होती है जब गर्भाशय से निकलते समय नवजात क्लेमीडिया या गोनोरिया के संपर्क में आए.

रासायनिक कंजंक्टिवाइटिस

– कैमिकल कंजंक्टिवाइटिस की वजह वायु प्रदूषण, स्विमिंग पूल में पड़ी क्लोरीन और हानिकारक रसायनों के संपर्क में आना हो सकती है.

जांच

कंजंक्टिवाइटिस की जांच गहन आंख परीक्षण से की जा सकती है. इस में कंजंक्टाइवा और उस के आसपास की कोशिकाओं पर विशेष ध्यान से टैस्ट किए जाते हैं और इन में निम्न भी शामिल हो सकते हैं :

– रोगी का इतिहास, जिस से लक्षणों को पहचानने में मदद मिले, पता चल सके कि लक्षण कब शुरू हुए और क्या इस समस्या में पर्यावरण संबंधी या सामान्य स्वास्थ्य संबंधी समस्या का भी योगदान है.

– दृश्यता मापना जिस से यह पता लगाया जा सके कि दृश्यता प्रभावित हुई है या नहीं.

– कंजंक्टाइवा और आंखों की बाहरी कोशिकाओं का आकलन तेज रोशनी और मैग्निफिकेशन के इस्तेमाल से.

– आंख के अंदर के ढांचे का आकलन जिस से सुनिश्चित हो सके कि इस स्थिति से कोई अन्य कोशिका प्रभावित नहीं हुई है.

– पूरक टैस्टिंग, जिस में कंजंक्टाइवा से प्रभावित कोशिका का एक हिस्सा लिया जा सकता है. यह लंबे समय तक रहने वाले कंजंक्टिवाइटिस या जब इलाज के बावजूद परिस्थिति नहीं सुधर रही हो, उस मामले में बेहद महत्त्वपूर्ण होता है.

इलाज

कंजंक्टिवाइटिस इलाज के 3 मुख्य लक्ष्य होते हैं :

– रोगी का आराम बढ़ाना.

– संक्रमण या सूजन को घटाना या कम करना.

– कंजंक्टिवाइटिस के संक्रामक रूप में इस संक्रमण को फैलाने से रोकना भी इस का प्रभावी इलाज है.

कंजंक्टिवाइटिस का उपयुक्त इलाज उस के होने की वजह पर निर्भर होता है जैसे :

– एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस, पहला कदम अगर मुमकिन हो तो आंख को इरिटेट करने वाले तत्त्वों को निकालें या उन से दूर रहें. हलके मामलों में कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल आंसू असहजता दूर कर देते हैं.

ज्यादा गंभीर मामलों में नौन स्टीरौयडल ऐंटी इनफ्लेमैटरी दवाएं और ऐंटीहिस्टामिंस भी दिए जा सकते हैं. लगातार एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस होने की समस्या झेल रहे लोगों को टौपिकल स्टीरौयड आई ड्रौप की भी जरूरत होती है.

– बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस, इस प्रकार के कंजंक्टिवाइटिस को आमतौर पर एंटीबायोटिक आई ड्रौप्स या मरहम से ठीक किया जाता है. इलाज के 3 से 4 दिनों में बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस ठीक होने लगती है लेकिन यह दोबारा नहीं हो, इस के लिए रोगी को ऐंटीबायोटिक्स का कोर्स पूरा करना पड़ता है.

– वायरल कंजंक्टिवाइटिस, कोई भी ड्रौप या मरहम वायरल कंजंक्टिवाइटिस

को ठीक नहीं कर सकता है. एंटीबायोटिक्स से वायरल संक्रमण ठीक नहीं होगा. सामान्य कोल्ड की तरह वायरस का भी अपना पूरा कोर्स करना होगा, जिस में 2 से 3 सप्ताह लग सकते हैं. इन लक्षणों को कूल कंप्रैस और आर्टिफिशियल टीअर सौल्यूशंस से दूर किया जा सकता है. सब से खराब मामलों में असहजता और जलन को कम करने के लिए टौपिकल स्टीरौयड ड्रौप्स दिए जा सकते हैं. हालांकि इन ड्रौप्स से संक्रमण कम नहीं होगा. हालांकि सैकंडरी बैक्टीरियल संक्रमण होने पर ऐंटीबायोटिक ड्रौप्स दिए जा सकते हैं.

– कैमिकल कंजंक्टिवाइटिस, कैमिकल कंजंक्टिवाइटिस होने पर नमकीन पानी से लगातार अपनी आंखों को धोना सब से सामान्य इलाज है. कैमिकल कंजंक्टिवाइटिस से पीडि़त लोगों को भी टौपिकल स्टीरौयड्स इस्तेमाल करने की जरूरत हो सकती है, जिस में स्कारिंग हो सकती है, आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंच सकता है या फिर लोगों की आंखों की रोशनी जा भी सकती है. अगर आप की आंख में कोई कैमिकल गिर जाता है तो कई मिनटों तक अपनी आंखों को पानी से धोते रहें और फिर अपने डाक्टर के पास जाएं.                      

खुद देखभाल करें

कंजंक्टिवाइटिस का प्रसार रोकने के लिए साफसफाई रखना सब से जरूरी है. एक बार संक्रमण का पता चल जाए तो इन बातों का पालन करें:

– आंखों को हाथों से नहीं छुएं.

– अच्छी तरह और बारबार अपने हाथ धोएं.

– रोजाना अपना तौलिया और कपड़े बदलें, और उन्हें किसी भी अन्य के साथ साझा नहीं करें.

– आंखों के कौस्मेटिक्स का प्रयोग बंद कर दें विशेषतौर पर मस्कारा का.

– किसी अन्य व्यक्ति के आई कौस्मेटिक्स या निजी आईकेयर उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करें.

– कौंटैक्ट लैंस की सही देखभाल के लिए आंखों के डाक्टर की सलाह मानें.

– डा. नीरज संदूजा, सीनियर कंसल्टैंट, फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम.

हर लड़की के अंदर है एक पद्मावती : दीपिका पादुकोण

फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली मौडल और अभिनेत्री दीपिका पादुकोण सबसे अधिक चर्चित और लोकप्रिय हैं. उनकी प्रंसशकों की संख्या करोड़ों में है. अभिनेत्री के अलावा वह एक खिलाड़ी भी हैं, इसलिए हमेशा फिट दिखती हैं. फैशन मौडल बनने की इच्छा में उन्होंने खेल से नाता तोड़ लिया और अभिनय की ओर  बढ़ गयीं. वह शांतप्रिय हैं और हमेशा अपने काम और परिवार के ऊपर फोकस्ड रहती हैं. पद्मावती को लेकर काफी विरोध हो रहा है, जिस कारण से फिल्म की रिलीज भी टालनी पड़ी. इससे वह परेशान और दुखी हैं. उनसे मिलकर बात हुई, पेश है अंश.

इस कहानी की कौन सी बात आपको सबसे अधिक अच्छी लगी?

पद्मावती की वीरता मुझे अच्छी लगी, क्योंकि हर एक हिन्दुस्तानी लड़की के अंदर कहीं न कहीं एक पद्मावती छिपी हुई है. कुछ कह पाती हैं कुछ नहीं, लेकिन यह सब में है और यही मेरे लिए प्रेरणा थी. इसमें पद्मावती की वीरता के अलावा, खूबसूरती, कोमलता, नारीवादिता आदि सभी को मैंने पर्दे पर दिखाने की कोशिश की है. उम्मीद है सारी महिलाएं मेरी इस भूमिका से अपने आप को जोड़ पायेंगी.

ऐसी ‘लार्जर देन लाइफ’ फिल्मों को करना कैसा लगता है?

मैं गर्वित महसूस करती हूं. ऐसी फिल्मों में इतने स्तर पर काम करना पड़ता है, जिसे मैंने कभी सोचा नहीं था. यहां मैंने एक महान महिला की भूमिका निभाई है, ये मौका मिलना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है. निर्देशक भंसाली ने मुझे दिया और मेरे लिए यह एक चुनौती है कि मैं इसे उसी रूप में पर्दे पर उतारूं, जैसी वह थीं. मेरे लिए ये किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं.

आपकी पोशाक, गहने और इस लुक को बनाने में किसका हाथ रहा? आपने अपना कितना पुट दिया है?

सही लुक का होना किसी भी भूमिका में खास मायने रखता है. जब हम किसी भी चरित्र को चित्रित करते हैं, तो उसमें अभिनेत्री के तौर पर मैं अच्छा काम कर सकती हूं, इमोशन ला सकती हूं, लेकिन उसे सही तरह से दर्शकों तक पहुंचाने में हेयर, मेकअप, ड्रेस, आभूषण और लुक को बनाने वाले होते हैं. 50 प्रतिशत उनका ही योगदान होता है. सही लुक सही चरित्र को पर्दे पर उतारने में सफल होती है. इसके अलावा सिनेमेटोग्राफर का भी बहुत बड़ा हाथ होता है. क्रेडिट हमेशा एक्टर्स को ही मिलता है, पर पर्दे के पीछे जो काम करते हैं, वह बहुत बड़े होते हैं. उनके बिना मैं कुछ भी नहीं हूं.

पद्मावती की अगर हम बात करें तो रिसर्च मेटेरियल बहुत है, लेकिन तब की तस्वीरें बहुत कम है, उसमें सामंजस्य लाना बहुत जरूरी था. इसलिए लुक को नए सिरे से क्रिएट किया गया, जो बहुत सुंदर बन पड़ा है. वैसे भी पद्मावती अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती थीं. ऐसे में सुन्दरता की परिभाषा जो हमारे दिमाग में है कि सुन्दरता केवल गोरे रंग से ही मिलता है, उसे हमने तोड़कर, अलग तरीके से लुक को क्रिएट किया है जिसे सबने सराहा.

इस फिल्म की ‘कौस्ट्युम’ बहुत भारी थी, इसलिए इसे पहनकर अभिनय करना डांस करना मुश्किल था. खासकर संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक फिल्म में बारीकियों पर अधिक ध्यान देते हैं. इस फिल्म को करने में जितना समय लगा, उस दौरान मुझे बहुत त्याग भी करना पड़ा. जिसमें मुझे परिवार के साथ मिलने का समय नहीं मिलता था, लेकिन इतना मेहनत के बाद जो चीज बनकर सामने आई है, उसे देखकर बहुत अच्छा लगता है.

फिल्म की सबसे कठिन भाग कौन सी थी?

फिल्म का अंतिम भाग एक अभिनेत्री होने के नाते मेरे लिए काफी चुनौतीपूर्ण थी.

नैतिकता पर ‘पोलिसिंग’ के होने को किस हद तक सही मानती हैं?

मेरे हिसाब से जो सही लगता है, उसे हर कोई कह सकता है या अपनी राय दे सकता है. स्वाधीन भारत  में ये अनुमोदन मिलता भी है, पर जिस तरह से लोग उसे एक्सप्रेस कर रहे हैं, उससे मैं सहमत नहीं हूं. हर बार ‘क्रिएटिविटी’ को ‘एटैक’ करना ठीक नहीं. हम हिन्दुस्तानी हैं और इस ऐतिहासिक कहानी को जानते हैं. वे जो चाहते हैं, उसे ही हम सब पूरे विश्व में दिखाना और बताना चाहते हैं कि वह कितनी महान महिला थी. इस क्षण को सभी को सेलीब्रेट करना चाहिए और वह होगा.

आपने बाजीराव मस्तानी और पद्मावती दोनों हो अलग तरह की फिल्में की है, अपने आप को इन फिल्मों की चरित्र से कितना जोड़ पाती हैं?

इन दोनों फिल्मों से मैं अपने आप को जोड़ सकती हूं. खासकर उनकी वीरता उनकी बुद्धिमता और उनकी सोच से मैंने अपने आप को जोड़ा है. इन फिल्मों को बनाना आसान नहीं होता, सालों तक उसी चरित्र में सघनता से अपने आप को बनाए रखना, अपने आप में मेरे लिए एक चुनौती थी. इसके अलावा इन फिल्मों में बहुत बाधाएं आने के बाद भी हम काम करते रहे, जो मुश्किल थी.

सालों से महिलाएं मानसिक अत्याचार सहती आई है और आज भी सह रही है, लेकिन कोई महिला उसका विरोध करती तो उसे बगावती कहकर दबाने की कोशिश की जाती है, इसके जिम्मेदार कौन हैं? समाज, परिवार या धर्म?

बहुत सारे तथ्य इसके जिम्मेदार हैं, लेकिन अब बदलाव भी आ रहा है. महिलाएं अब अपनी आवाज उठा रही हैं और ये सिर्फ भारत में नहीं, हर जगह वे कर रही हैं. मुझे तब अच्छा लगता है, जब कोई अपनी सही बात कहने के लिए आगे बढ़ती है. इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हम खुद हैं, क्योंकि जब तक हम बदलाव नहीं चाहते, कोई और इसे बदल नहीं सकता.

आप अपने मानसिक स्वास्थ्य का खयाल कैसे रखती हैं? अपनी संस्था के बारें में बताएं.

मैं मानसिक स्वास्थ्य के लिए अपने मनोवैज्ञानिक डाक्टर के पास जाती हूं. जैसे हम शारीरिक व्यायाम को महत्व देते हैं, वैसे ही हमें मानसिक स्वास्थ्य की भी देख-भाल करनी चाहिए. शरीर फिट होने के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी फिट होना जरूरी है, ताकि काम बेहतर हो. मैं इस बात से नहीं शर्माती और डाक्टर के पास जाती हूं. मैं सबसे कहना चाहती हूं कि किसी को भी अपनी बात डाक्टर को कहने से घबराना नहीं चाहिए.

तीन साल पहले जब मैं मानसिक अस्वस्थता से गुजर रही थी, तो मैंने लिव, लव, लाफ संस्था की स्थापना की थी, मैंने अपनी स्टोरी सब के साथ शेयर किया था. मैं चाहती थी कि सभी अपनी समस्याओं को पहचानें. मैं इसे स्कूल में भी ले गयी, अध्यापिकाओं को इसका प्रशिक्षण दिया. कैसे ये काम कर रही है उसके बारें में जायजा भी ये संस्था लेती है. इससे मुझे बहुत बदलाव दिखा है. मेरे साथ में कई मनोचिकित्सक भी पैनल में हैं. मानसिक स्वास्थ्य की अगर बात करें तो अधिकतर देखा गया है कि लोग अपनी समस्या ही समझ नहीं पाते, जिससे उन्हें उससे निकालना या बचाना मुश्किल हो जाता है. मैंने कई कैम्पेन भी किया है. गांव और कार्पोरेट के लिए भी मैं काम कर रही हूं.

दुनिया की सोच को बदलना चाहती हूं : मानुषी छिल्लर

20 वर्षीय मेडिकल की छात्रा और अब ‘मिस वर्ल्ड 2017’ मानुषी छिल्लर को कभी लगा नहीं था कि उन्हें इतना बड़ा खिताब मिलेगा. मानुषी ये खिताब जीतने वाली छठी भारतीय सुंदरी हैं. स्वभाव से हंसमुख मानुषी से मिलना एक इवेंट के दौरान हुआ था, जब वह हरियाणा से ‘मिस इंडिया हरियाणा’ बनकर मुंबई आई थीं.

वह अपनी उपलब्धि से बहुत खुश नजर आ रही थीं. उनसे मिलकर बातचीत में वह हमेशा हंसती ही रहीं.

अपने बारे में वह बताती हैं कि मैं डाक्टर परिवार से हूं. मेरे माता-पिता दिल्ली में रहते हैं और मैं हरियाणा में रहती हूं. मेरा जन्म हरियाणा में हुआ है, लेकिन शुरुआती शिक्षा दिल्ली में हुई और मेडिकल की पढाई मैं फिर से हरियाणा से कर रही हूं. मेरा बचपन से सपना था कि मैं मिस इंडिया बनूं, लेकिन कब ये कैसे असल में परिवर्तित हो गया, पता ही नहीं चला. जब ‘मिस इंडिया’ का खिताब हरियाणा से मिला, तो खुद पर यकीन नहीं हो रहा था. मैंने कुचिपुड़ी नृत्य सीखा है. नेशनल स्कूल औफ ड्रामा का भी हिस्सा रह चुकी हूं. मिस वर्ल्ड बनने के लिए मैंने बहुत मेहनत की है. मेरी इस मेहनत में मेरे माता पिता ने हमेशा साथ दिया है.

वह आगे कहती हैं कि मिस इंडिया एक पर्सनलिटी कांटेस्ट है. अपनी सुंदरता से अधिक बाकी चीजों पर ध्यान देने की जरुरत होती है. जैसे अपने सामान्य ज्ञान को मजबूत करना, फिटनेस को बढ़ाना,जिसमें केवल पतला होना ही नहीं बल्कि अपनी स्ट्रेंथ को बढ़ाना है. इसके अलावा बातचीत का ढंग, सबसे मिलना आदि कई चीजें हैं, जिससे बेहतर करना जरूरी होता है.

कितना प्रेशर मानुषी पर रहा? पूछे जाने पर मानुषी बताती हैं कि इसमें मैंने अपने ऊपर कोई दबाव नहीं लिया, हालांकि परिवार और आयोजकों की मुझसे बहुत आशा थी और होना भी चाहिए, क्योंकि ये वन टाइम अचीवमेंट है और प्रतियोगिता काफी कठिन होती है. सब अच्छे है, ऐसे में मिस वर्ल्ड को जितना आसान नहीं होता. मिस इंडिया की सबसे अच्छी बात ये होती है कि वहां जिस तरह से सबकी ग्रूमिंग की जाती है, वे सबसे काफी जुड़े रहते है जिससे तनाव और डर दोनों निकल जाता है.

मिस वर्ल्ड के बाद क्या करना चाहेंगी? क्या बौलीवुड में आने की इच्छा है? इस बारे में मानुषी कहती हैं कि मैं मेडिकल की छात्रा हूं, मिस इंडिया में आने का अर्थ मेरे लिए ये नहीं कि में बौलीवुड में आना चाहती हूं. इसमें मैं दुनिया की सोच को बदलना चाहती हूं. जिसमें खास कर ‘प्रोजेक्ट शक्ति’ के साथ कर रही हूं. इसमें मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता पर अधिक महत्व देना चाहती हूं. इसके लिये मैं कई गांवों में घूमी, उन्हें स्वच्छता से परिचय करवाकर उनका इलाज भी करवाया है.

संगीत की दुनिया के प्रिंस : एल्विस प्रिस्ले

मनोरंजन की दुनिया में विख्यात गायक, अभिनेता एल्विस प्रिस्ले के दीवानों की आज भी कमी नहीं है. वे  अब दुनिया में तो नहीं हैं, लेकिन लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. तभी तो लाखों लोग उन की याद में उन के ग्रेस्लैंड बंगले का दीदार करने आते हैं.

एल्विस प्रिस्ले का जन्म अमेरिका के मिसिसिप्पी राज्य के टुपेलो शहर में 1935 में हुआ था. 1948 में वे टेनेसी राज्य के मेम्फिस चले आए थे. स्कूलिंग के बाद कुछ दिन उन्होंने थिएटर में काम किया, फिर ट्रक ड्राइवर का काम भी किया.

प्रिस्ले को गाने का शौक था. उन्होंने स्थानीय लोगों के बीच गाना शुरू किया. 1955 में मशहूर रिकौर्डिंग कंपनी आरसीए ने उन के गाने रिकौर्ड किए थे. उन का पहला सोलो गाना ‘हार्टब्रेक होटल’ जनवरी 1956 में निकला जो उस समय अमेरिका का नंबर वन गाना भी था. इस गाने से उन्हें काफी प्रशंसा मिली और वे सुर्खियों में आए. वे गिटार भी बखूबी बजाते थे. 20वीं सदी के ‘रौक ऐंड रोल’ के वे बादशाह माने जाते हैं. वे सभी प्रकार के गाने गाया करते थे. वे गास्पेल, बलाड, रौक और प्लेबैक सिंगर भी थे. प्रिस्ले ने अनेक अलबम बनाए. 1956 में पहला ‘रौक ऐंड रोल’ अलबम लगातार 10 हफ्ते तक बिलबोर्ड के चार्ट में अव्वल रहा था. इस के बाद से वे युवादिलों के पसंदीदा गायक बने रहे थे.

वर्ष 1958 में उन्हें सेना में सेवा के लिए बुलाया गया. वे जरमनी गए. वहां उन्हें एक लड़की प्रिसिला वाग्नर से प्रेम हुआ जिस से बाद में उन्होंने शादी कर ली. हालांकि 1970 में उन का तलाक भी हो गया था.

उन्हें अभिनय का भी शौक था. कुछ टैलीविजन शोज के बाद 1956 में पहली बार फिल्म ‘लव मी टैंडर’ में अभिनय किया था. उन्होंने करीब 33 फिल्मों में अभिनय किया. 1960 में प्रिस्ले हौलीवुड आए. यहां उन्होंने फिल्मों में अभिनय किया. 1969 में बनी फिल्म ‘चेंज औफ हैबिट’ उन की अंतिम फिल्म थी. उन की ज्यादातर फिल्में संगीतप्रधान होती थीं. 36 साल की उम्र में ही उन्हें 3 बार ग्रैमी अवार्ड मिले और 3 लाइफटाइम अचीवमैंट ग्रैमी अवार्ड मिले. इस के अतिरिक्त 8 बार उन्हें भिन्न पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था. एल्विस प्रिस्ले आज तक दुनिया के एकमात्र ऐसे गायक हैं जिन्हें संगीत के अलगअलग 3 ‘हौल्स औफ फेम’ में स्थान मिला है.

1970 में फिर उन्होंने गायन पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने 500 से अधिक लाइव कंसर्ट्स दिए थे और लगभग सभी शोज हाउसफुल होते थे. एक बार उन को अपने अलबम ‘द एड सलवान शो’ के लिए लोगों के क्रोध का सामना करना पड़ा था.

मेम्फिस में ग्रेस्लैंड के निकट अपने बंगले में 16 अगस्त, 1977 को मात्र 42 वर्ष की उम्र में उन का देहांत हो गया था. सिर्फ अमेरिका ही नहीं, अनेक देशों में करोड़ों प्रशंसकों को निराश कर एल्विस प्रिस्ले ने दुनिया को अलविदा कहा. अपनी मृत्यु के 4 दशक बाद भी वे अमेरिका के दिल में बसते हैं. इस बात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि प्रतिवर्ष लगभग 6 लाख लोग प्रिस्ले के ग्रेस्लैंड बंगले में जाते हैं.                  

तो ‘‘पद्मावती’’ के प्रदर्शन के टलने की असली वजह यह है?

जनवरी माह से ही संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘पद्मावती’’ का ‘राजपूत करणी सेना’द्वारा विरोध किया जा रहा था. मगर संजय लीला भंसाली और इस फिल्म के निर्माण से जुड़े स्टूडियो ‘‘वायकाम 18’’ ने इस विरोध की परवाह किए बगैर डेढ़ सौ करोड़ रूपए लगाकर फिल्म ‘‘पद्मावती’की शूटिंग लगातार जारी रखी. फिल्म को एक दिसंबर को प्रदर्शित करने का ऐलान भी कर दिया गया और ऐसा करते समय संजय लीला भंसाली ने अपने जनवरी माह में ‘राजपूत करणी सेना’को दिए गए लिखित वादे को भी अनदेखा कर दिया. इस वादे के मुताबिक संजय लीला भंसाली ने फिल्म को प्रदर्शित करने से पहले ‘राजपूत करणी सेना’को फिल्म दिखाने का वादा किया था. कई राजनेता भी इस फिल्म के विरोध में मुखर हो गए.

फिल्म का विरोध करने वाले कुछ संगठनों के नेताओं ने ऐसे ऐलान किए, जो कि सभ्य समाज के लिए सही नहीं कहे जा सकते. पिछले डेढ़ माह से हंगामा हो रहा था, पर संजय लीला भंसाली चुप थे. वह आज भी चुप हैं. मगर फिल्म का प्रदर्शन टल चुका है. आम जनता तक यही संदेश गया है कि ‘राजपूत करणी सेना’ के अलावा अन्य संगठन व कुछ नेता जिस तरह से फिल्म ‘पद्मावती’का विरोध कर रहे थे, उसे देखते हुए‘वायकाम 18’ ने एक दिसंबर को फिल्म का प्रदर्शन टाल दिया है. हो सकता है कि यह संगठन अब जश्न भी मनाने लगे हों. कुछ लोगों को लग रहा है कि फिल्म को ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’से प्रमाणपत्र न मिल पाना सबसे बड़ी वजह है. मगर जो सच सामने आ रहा है उसके अनुसार ‘पद्मावती’ का प्रदर्शन टलने की वजह यह बिलकुल नही है?

फिल्म तैयार नही है?

फिल्म ‘‘पद्मावती’’से जुड़े सूत्रों के अनुसार फिल्म‘पद्मावती’ अभी तक प्रदर्शन के लिए तैयार ही नही है. इस फिल्म के थ्री डी वर्जन पर काम अभी भी अजय देवगन के स्टूडियो, प्राइम फोकस स्टूडियो के अलावा अन्य दो स्टूडियो में लगातार हो रहा है. इस काम को पूरा होने में कम से कम अभी एक डेढ़ माह लगेगा. यानी कि थिएटरों में प्रदर्शित किए जाने के लिए फिल्म को अभी डेढ़ माह का वक्त चाहिए. मजेदार बात तो यह है कि पूरी फिल्म अभी तक एडिट भी नहीं हो पायी है. 15 नवंबर को संजय लीला भंसाली के प्रवक्ता ने खुद माना था कि संजय लीला भंसाली फिल्म ‘पद्मावती’की एडीटिंग में व्यस्त हैं. अब तो ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’के पूर्व अध्यक्ष और फिल्म निर्माता पहलाज निहलानी ने भी कहा है कि फिल्म पद्मावती तैयार नहीं है, इसका पोस्ट प्रोडक्शन वर्क स्टूडियो में लगातार चल रहा है. इसके मायने यह हुए कि इस फिल्म के निर्माण से जुड़ी कंपनी ‘वायकाम 18’ और संजय लीला भंसाली झूठ का सहारा लेकर फिल्म को विवादों में लाकर शोहरत बटोर रहे थे.

प्रसून जोशी के बयान का सच?

अखबारों में फिल्म ‘पद्मावती’को ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’द्वारा तकनीकी खामियों के चलते वापस भेजे जाने की खबर छपने के कुछ घंटो बाद ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड’के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने टीवी चैनल पर कहा- ‘‘फिल्म इसी सप्ताह हमारे पास आयी थी, लेकिन उसमें फिल्म काल्पनिक है या इतिहास के पन्नों पर आधारित है, इसका डिस्कलेमर नहीं था. फार्म अधूरा था. इसलिए वापस भेज दिया गया.

जानकारों के अनुसार फिल्म में डिस्कलेमर है या नहीं, यह बात तब पता चलती है, जब फिल्म परीक्षण समिति के सदस्य फिल्म को प्रमाणित करने के लिए सिनेमाघर के अंदर फिल्म देखने बैठते हैं. तो क्या सेंसर बोर्ड के किसी सदस्य ने या किसी परीक्षण समिति ने इस फिल्म को देखकर पाया कि इसमें डिस्कलेमर नहीं है. हमें याद रखना होगा कि फार्म पर इस बात का जिक्र होता है कि फिल्म सामाजिक, ऐतिहासिक, हारर या हास्य में से किस तरह की है.

सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली से वाकिफ लोग जानते हैं कि अप्रेल 2017 से फिल्म के प्रमाणपत्र का आवेदन सेंसर बोर्ड की वेबसाईट पर इंटरनेट के माध्मम से किया जाता है. उसके बाद सेंसर बोर्ड से जुड़े लोग उस आवेदन पर गौर करते हैं. फिर उस फिल्म के लिए एक परीक्षण समिति का गठन किया जाता है, दिन समय और सिनेमाघर तय किया जाता है. 24 घंटे पहले निर्माता को इसकी सूचना दी जाती है. जिस दिन परीक्षण समिति को फिल्म देखनी होती है, उसी दिन कुछ घंटे पहले निर्माता निर्देशक खुद या अपने किसी प्रतिनिधि के द्वारा फिल्म को सिनेमा घर में पहुंचाता है. अब सवाल यह है कि यदि फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है, तो निर्माता किस फिल्म को सेंसर कराने गए थे?

68 दिन के नियम का पालन कभी नहीं हुआ

‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’अध्यक्ष प्रसून जोशी एक फिल्म को प्रमाण पत्र देने के लिए सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 के नियम 41 का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि फिल्म को प्रमाणपत्र चाहिए, तो निर्माता को कम से कम 68 दिन पहले फिल्म के प्रमाणपत्र के लिए ओवदन करना चाहिए. माना कि सिनेमैटोग्राफी एक्ट में ऐसा नियम है. मगर अब तक इस नियम का कभी पालन नहीं किया गया. हर बार ‘केद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’से जुड़े गुरमीत राम रहीम की फिल्म‘‘मैसेंजर आफ गाड’’को एक ही दिन में पारित किया गया था, जबकि उस वक्त की अध्यक्ष लीला सैम्सन ने त्यागपत्र दे दिया था.

पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी, लीला सैमसन और आशा पारेख भी मानती हैं कि 68 दिन वाला नियम काफी पुराना है. पहलाज निहलानी कहते हैं- ‘‘जब से सब कुछ आनलाइन होने लगा है, तब से कोई भी शख्स नियम की अनदेखी कर या किसी भी निर्माता की फिल्म कतार से पहले प्रामणपत्र देने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बना सकता. इसलिए प्रसून जोशी कुछ नहीं कर सकते. दूसरी बात मुझे पता है कि फिल्म‘पद्मावती’का पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है. जबकि फिल्म के प्रमाणपत्र के लिए उन्हें फिल्म का फाइनल प्रिंट जमा करना होगा.’’

‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’की सलाहकार समित व फिल्म परीक्षण समिति के कई सदस्य स्वीकार करते हैं कि प्रसून जोशी के अध्यक्ष बनने के बाद भी कई फिल्में मंगलवार को परीक्षण समिति ने देखी हैं और दो दिन बाद यानी कि शुक्रवार को वह फिल्म सिनेमाघर में प्रदर्शित हुई है. जबकि नियमानुसार परीक्षण समिति द्वारा फिल्म देखे जाने के 45 दिन बाद फिल्म को प्रमाणपत्र मिलना चाहिए था और वह फिल्म 46वें दिन प्रदर्शित होनी चाहिए थी. पर अब प्रसून जोशी बार बार ‘पद्मावती’को लेकर ही इस नियम का हवाला दे रहे हैं. ऐसा करने के पीछे की मंसा तो वही जाने.

प्रसून जोशी का झूठा प्रलाप

‘‘पद्मावती’’के निर्माताओं ने अपनी फिल्म कुछ पत्रकारों को दिखायी और उन पत्रकारों ने टीवी चैनल पर फिल्म पद्मावती की समीक्षा करते हुए दावा किया कि वह फिल्म देखने के बाद कह रहे हैं कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की गयी है. उसके बाद जब सवाल उठा कि निर्माता ने राजपूत करणी सेना के नुमाइंदो को फिल्म दिखाने की बजाय पत्रकारों को बिना सेंसर वाली फिल्म कैसे दिखा दी, तब एक टीवी चैनल से बात करते हुए ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने निर्माता को फटकार लगायी कि उसने गलत किया है. यह सिस्टम के साथ समझौता और अवसरवादिता है. इसके बाद कहा जाने लगा कि सेंसर बोर्ड इस बात से नाराज है और अब इस फिल्म को 68 दिन बाद ही प्रामणपत्र मिल पाएगा. इसलिए निर्माता को अपनी फिल्म का प्रदर्शन टालना पड़ा.

जबकि प्रसून जोशी का निर्माता को डांट पिलाना गलत है. सिनैमैटोग्राफी एक्ट 1952 में ऐसा कोई नियम नही है कि फिल्मकार अपनी फिल्म का प्राइवेट प्रदर्शन नहीं कर सकता. कुछ वर्षों पहले तक लगभग हर फिल्म स्टूडियो में छोटे छोटे निजी सिनेमाघर हुआ करते थे, जिनमें निर्माता अपनी फिल्म को सेंसर होने से पहले निजी स्तर पर कुछ लोगों को बुलाकर दिखाया करते थे. इतना ही नहीं ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड’के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी भी इसमें कुछ भी गलत नही मानते हैं.

पहलाज निहलानी कहते हैं- ‘‘फिल्म निर्माता अपनी फिल्म किसी को भी निजी स्तर पर बिना सेंसर प्रमाणपत्र के दिखा सकता है, पर वह अपनी फिल्म को आम जनता के लिए सिनेमाघर में बिना सेंसर प्रमाणपत्र के नहीं दिखा सकता. मेरी निजी राय में जब निजी स्तर पर फिल्म देखने वाला इंसान अपनी राय देकर उस फिल्म से संबंधित लंबित निर्णय को प्रभावित करता है, तो वह गलत हो जाता है. टीवी चैनलों को फिल्म का प्रोपोगेंडा कर निर्णय को प्रभावित करने का काम नहीं करना चाहिए.’’

कुल मिलाकर यह समझना मुश्किल है कि पिछले कुछ दिनो के अंतराल में फिल्म ‘‘पद्मावती’’को लेकर जो कुछ हुआ, फिल्म का प्रदर्शन टला, उसमें‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’की अपनी कोई भूमिका थी या नहीं? क्या अब तक संजय लीला भंसाली अपनी फिल्म की कमियों से बचने और फिल्म के प्रदर्शन को टालने के लिए‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’का उपयोग किया है? वहीं लोग संजय लीला भंसाली की चुप्पी को लेकर भी कई तरह के सवाल उठा रहे हैं.

टीवी की सबसे पुरानी सीता ‘गालिब’ फिल्म से करेंगी कमबैक

रामानंद सागर के टीवी सीरियल ‘‘रामायण’’ में सीता का किरदार निभाने के बाद दीपिका चिखालिया ने शादी कर अपनी जिंदगी की नई शुरूआत की थी. पिछले बीस वर्षों से वह अभिनय व कैमरे की चकाचौंध से दूर थी. पर अब वह अभिनय बौलीवुड में पुनः कदम रखने जा रही हैं. इस बार वह निर्माता घनश्याम पटेल, लेखक धीरज मिश्रा और निर्देशक मनोज गिरी की फिल्म ‘‘गालिब’’ में अभिनय करते हुए नजर आने वाली हैं.

‘‘गिरिवा प्रोडक्शंन’’ के बैनर तले बनने जा रही फिल्म ‘‘गालिब’’ की कहानी 2001 में भारतीय संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरू की जिंदगी पर आधारित है, जिन्हें मुख्य दोषी करार दिए जाने पर नौ फरवरी 2013 को फांसी दे दी गयी थी. उसके बाद उनके बेटे किस तरह जिंदगी में आगे बढ़ते हुए प्रथम दर्जे से हाई स्कूल पास किया. तो फिल्म की कहानी अफजल गुरू के बेटे के नजरिए से होगी.

इस फिल्म में दीपिका चिखालिया अफजल गुरू की पत्नी व गालिब की मां के किरदार में होंगी. गालिब का किरदार नवोदित अभिनेता निखिल पिताले निभा रहे हैं. फिल्म में अनिल रस्तोगी, अनामिका शुक्ल, ज्योत्सना त्रिवेदी, इमरान हसमी, मेघा जोशी व अजय आर्य की भी अहम भूमिकाएं होंगी.

हमसे खास बातचीत करते हुए दीपिका चिखालिया ने कहा-‘‘सीता का किरदार निभाने के बाद से ही मैं किरदारों के चयन को लेकर काफी सतर्क रही हूं. सीता की छवि मेरे साथ आज भी चिपकी हुई है. सीता ऐसा किरदार है, जिसकी अमिट छाप दर्शकों के दिलो दिमाग पर छायी हुई है. इसलिए काफी सोच समझकर मैंने फिल्म ‘गालिब’ में अभिनय करना स्वीकार किया है.

फिल्म ‘गालिब’ में मेरा किरदार अफजल गुरू की जिंदगी से जुड़ा हुआ नहीं है. मेरा किरदार गालिब गुरू कि जिंदगी की घटनाओें से जुड़ा हुआ है. चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में गालिब की जिंदगी आज के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है. सिर्फ कश्मीर ही नहीं देश के हर कोने के युवा के लिए गालिब प्रेरणा स्रोत है.

गालिब का किरदार विवादित नहीं है. जब फिल्म के लेखक धीरज मिश्रा ने मुझे गालिब की मां के किरदार की गहराइयां बतायी, तो मैंने तय किया कि यह फिल्म करनी चाहिए.’’

दो दशकों तक अभिनय से दूर रहने के सवाल पर दीपिका ने कहा-‘‘मैं हमेशा सार्थक सिनेमा और सार्थक किरदारों को ही अहमियत दी है. शादी के बाद मेरी पहली प्राथमिकता पारिवारिक जिम्मेदारियों का कुशलता पूर्वक निर्वाह करना था. इसलिए कुछ दूरी रही. पर अब एक सार्थक किरदार निभा रही हूं.’’

भारी विवाद के चलते टली ‘पद्मावती’ की रिलीज

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ पहले 1 दिसंबर को रिलीज होने वाली थी, लेकिन इस पर चल रहे भारी विवाद के बाद रिलीज डेट टल गई है. हमें मिली एक खबर के मुताबिक फिल्म निर्माता की ओर से ‘पद्मावती’ की रिलीज डेट को आगे बढ़ा दिया गया है. फिल्म की निर्माता कंपनी वायकाम 18 ने सोशल मीडिया पर ‘पद्मावती’ की रिलीज डेट आगे बढ़ाने की बात कही है, लेकिन इसकी तारिख कब तक के लिए टाल दी गई है और यह कब सिनेमाघरों में उतरेगी, यह फिलहाल तय नहीं है.

मालूम हो कि, फिल्म ‘पद्मावती’ की रिलीज को लेकर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी को चिट्ठी लिखी. उन्होंने इस चिट्ठी में स्मृति ईरानी से आग्रह किया कि पद्मावती तब तक रिलीज न हो, जब तक इसमें जरूरी बदलाव नहीं कर दिए जाते, ताकि इसके रिलीज होने पर किसी भी जन समुदाय की भावनाओं को ठेस न पहुंचे.

करणी सेना के विरोध प्रदर्शन के बीच हाल ही में सेंसर बोर्ड आफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने भी फिल्म को लेकर आपत्ति जताई है. सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने कहा, “रिव्यू के लिए इसी हफ्ते फिल्म का आवेदन बोर्ड को मिला. इसके बाद मेकर्स ने खुद माना कि एप्लिकेशन अधूरा था. फिल्म काल्पनिक है या ऐतिहासिक इसका डिसक्लेमर एप्लिकेशन में अंकित नहीं किया गया था. ऐसे में बोर्ड पर प्रक्रिया को टालने का आरोप लगाना सरासर गलत है.

अब ‘पद्मावती’ के समर्थन के लिए आगे आईं ये हौलीवुड एक्ट्रेस

संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावती’ रिलीज होने को तैयार है पर अब भी उसके विरोध में किसी तरह की कमी नहीं आई है, लेकिन इस विरोध के बीच कई बौलीवुड कलाकारों ने पद्मावती का समर्थन किया है. वहीं ‘पद्मावती’ को लेकर बौलीवुड कलाकारों के समर्थन के बाद अब हौलीवुड के कलाकार भी आगे आते हुए दिखाई दे रहे हैं.

जी हां, हम बात कर रहें हैं हौलीवुड अभिनेत्री रूबी रोज की जिन्होंने पद्मावती को लेकर चल रहे विवाद के बीच एक ट्वीट कर दीपिका पादुकोण का समर्थन किया है. रूबी रोज ने ट्वीट कर लिखा कि, ‘मैं यह पढ़कर एकदम स्तब्ध हूं कि मेरी दोस्त दीपिका किन परिस्थितियों से गुजर रही हैं लेकिन मैं उनके साहस और हिम्मत को देखकर काफी हैरान भी हूं.’ हौलीवुड अभिनेत्री ने कहा, ‘मैं जितनी महिलाओं को जानती हूं, दीपिका आप उनमें मजबूत महिलाओं में से एक हैं.’आपको बता दें कि रोज ने दीपिका के साथ ‘xXx: द रिटर्न आफ जेंडर केज’ में काम किया है.

संजय लीला भंसाली के निर्देशन वाली फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली दीपिका को राजपूत करणी सेना की ओर से धमकियां मिली हैं. उसके एक नेता ने भावनाएं ‘भड़काने’ के खिलाफ उन्हें चेतावनी भी दी है. गौरतलब है कि इन धमकियों के बाद मुंबई पुलिस ने दीपिका की सुरक्षा कड़ी कर दी है.

दीपिका के बाद पद्मावती विवाद को देखते हुए संजय लीला भंसाली के घर की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है. पद्मावती का विरोध कर रहे राजपूती संगठन करणी सेना का कहना है कि भंसाली ने फिल्म में इतिहास से छेड़छाड़ की है. हालांकि भंसाली का कहना है कि वे राजपूतों की भावनाओं का सम्मान करते हैं. उन्होंने पद्मावती में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश नहीं किया है.

आखिर क्यों बार बार अपने पैर धोती हैं सनी लियोन

हर इंसान के अंदर कुछ न कुछ अच्छी तो कुछ बुरी आदतें होती हैं. वैसे जहां तक अच्छी और बुरी आदतों का सवाल है तो इससे हमारे बौलीवुड और टीवी सितारे भी अछूते नहीं हैं. इन सेलिब्रिटीज में भी आम लोगों की तरह कुछ अजीबोगरीब आदतें होती हैं या शायद अंधविश्वास. आज हम आपको ऐसी ही कुछ मशहूर हस्तियों से रूबरू कराएंगे जो हम लोगों जैसी ही अजब हरकतें करते हैं.

शाहरुख खान

बौलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख खान के दुनिया भर में कई प्रशंसक हैं. शाहरुख के फैन्स को ये बात जानकर हैरानी होगी कि किंग खान खुद को जूतों के साथ रहने का जैसे जुनून सवार है. शाहरुख खान एक साक्षात्कार में ये बात स्वीकार कर चुके हैं कि वे दिन में केवल एक बार ही बार अपने जूते उतारा करते हैं. और कई बार वे अपने जूतों के साथ ही सो भी जाया करते हैं.

सनी लियोन

बौलीवुड की सेक्सी दीवा कही जाने वाली अभिनेत्री सन्नी लियोन की एक असामान्य आदत जानकर आपको हैरानी होगी. जिस आदत के कारण कई बार सनी उनकी फिल्मों के शूट भी लेट करा देती है. सनी को अपने पैरों को बार बार धोने की आदत है. उनकी यह कुछ ऐसी जरूरत है जिसे वे अनदेखा भी नहीं कर पाती हैं. जिस्म 2 की शूटिंग के दौरान, वे सेट को हर 15 मिनट में छोड़ कर चली जाती थीं, जाहिर तौर पर वे ऐसा अपने पैरों को साफ करने के लिए ही करती थीं.

करीना कपूर

यहां हम आपको बता देना चाहते हैं कि बेबो करीना कपूर खान खुद को अपने नाखून खाने से नहीं रोक सकतीं. कई लोगों ने उनकी ये आदत छुड़ानी की कोशिश की पर सभी की सारी मेहनत बेकार गई. तो जाहिर सी बात है कि अपनी फिल्मों में वे कृतिम नाखून पहनने के लिए मजबूर हो जाती हैं.

आयुष्मान खुराना

हम सभी हमारे दांत दिन में दो बार ब्रश करते हैं या कम से कम दो बार करने का प्रयास तो हम करते ही हैं. दूसरी ओर दिलों की धड़कन चुरा लेने वाले आयुष्मान अपने दांतों को दिन में जितनी बार ब्रश कर सकते हैं, करते हैं.

जौन अब्राहम

हैंडसम कहे जाने वाले स्टड अभिनेता जौन की जो आदत है वो वास्तव में काफी आम है. जौन लगातार अपना पैर हिलाते हैं.

अमिताभ बच्चन

यह वास्तव में एक बहुत ही अजीब आदत है पर इसके पीछे बहुत सारा प्यारा छुपा हुआ है. हमारे बिग बी एक कलाई पर एक बार में दो घड़ियां पहनते हैं. दरअसल जब अभिषेक या ऐश्वर्या कहीं यात्रा कर रहे होते हैं तो बिग बी एक घड़ी भारतीय समयानुसार सेट करके पहनते हैं और दूसरी को उस क्षेत्र के समय के अनुसार निर्धारित करते हैं जहां वे लोग यात्रा कर रहे होते हैं.

सुष्मिता सेन

आपको जानकर हैरानी तो होगी ही, खूबसूरत अभिनेत्री सुष्मिता सेन के घर की छत पर ही बाथटब लगा हुआ है. वास्तव में बात ऐसी है कि उन्हें खुले में नहाने की आदत है. वे कहती हैं कि इससे उन्हें ज्यादा सुविधा होती है.

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