सर्दियों में सौफ्ट स्पौट-लेस स्किन पाना है चुनौती : इलियाना डिक्रूज

तेलुगू भाषा की रोमांटिक फिल्म ‘देवदासु’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज को हिंदी फिल्मों में ब्रेक फिल्म ‘बर्फी’ से मिला, लेकिन फिल्म ‘रुस्तम’ भी उनकी सबसे सफल फिल्म रही. मुंबई की इलियाना को हमेशा से फिल्मों में अभिनय करने की इच्छा थी, लेकिन उन्हें सबसे पहले दक्षिण की फिल्मों और कई विज्ञापनों में काम करने का अवसर मिला. विज्ञापन में काम करने से पहले इलियाना प्रोडक्ट की गुणवत्ता को हमेशा परखती हैं. उनका कहना है कि जब तक मैं किसी भी उत्पाद को एंडोर्स करने से पहले खुद प्रयोग न कर लूं, उसके बारे में दावा नहीं कर सकती, क्योंकि लोगों का मुझ पर भरोसा है और इसे मैं तोड़ नहीं सकती.

त्वचा का रखती हैं खास ध्यान

इलियाना की फ्लालेस स्किन और ग्लोइंग कौम्प्लैक्शन ही उनकी खूबसूरती का राज है. गर्मी के मौसम में आउटडोर शूटिंग पर जाने से पहले इलियाना पौंड्स व्हाइट ब्यूटी का इस्तेमाल करती हैं. उनका कहना है कि इस क्रीम की मैट फिनिश वाली खूबी के कारण इस को लगाने पर त्वचा चिपचिपी नहीं होती, साथ ही त्वचा ग्लोइंग और स्पौट-लेस लगती है.

लेकिन पहले इलियाना के पास सर्दियों में स्पौट-लेस व सौफ्ट स्किन पाने के लिए ऐसा कोई उत्पाद नहीं था जो त्वचा की नमी व ग्लो भी बनाए रखे. मगर अब पौंड्स व्हाइट ब्यूटी के नए विंटर ऐंटी-स्पौट मौइश्चराइजर के साथ सर्दियों में भी स्पौट-लेस निखार बरकरार रखने का विकल्प इलियाना को मिल गया है.

नए पौंड्स व्हाइट ब्यूटी विंटर ऐंटी स्पौट मौइश्चराइजर में विटामिन बी3, कोल्ड क्रीम के पोषण व नमी देने वाले तत्वों के साथसाथ सनप्रोटैक्शन के लिए एसपीएफ15 भी है. विटामिन बी3 पिगमेंटेशन को कमकर मेलानिन ट्रांसफर को ब्लौक करता है ताकि डार्क स्पौट घट सके. कोल्ड क्रीम के पोषण व नमी देने वाले इंग्रीडिएंट्स ग्लिसरीन त्वचा की प्राकृतिक सुंदरता बरकरार रखते हैं. एसपीएफ15 के साथ सनस्क्रीन का समावेश त्वचा को यूवी किरणों के प्रभाव से सुरक्षा देता है.

नए पौंड्स व्हाइट ब्यूटी विंटर ऐंटी स्पौट मौइश्चराइजर की खूबियां इस प्रकार हैं.

– यह त्वचा में 24 घंटे नमी को बरकरार रखता है.

– 4 हफ्तों में स्किन टोन को हल्का करता है.

– त्वचा के डार्क स्पौट्स 4 हफ्तों में हल्के पड़ने लगते हैं.

– त्वचा की कोमलता और ग्लो को बढ़ाकर उसे सेहतमंद बनाता है.

– एसपीएफ15 के साथ यह यूवीए और यूवीबी किरणों के प्रभाव से त्वचा को सुरक्षित रखता है.

बाल दिवस विशेष : मैगी पकौड़ा

मैगी किसे पसंद नहीं होता. बच्चे तो रोज मैगी खाने की जिद्द करते हैं. आपने मैगी तो कई बार खाई होगी लेकिन कभी मैगी पकौड़े ट्राई किए हैं. अगर नहीं तो इस बाल दिवस मैगी पकौड़ा बनाकर अपने बच्चों को खुश कर दें. मैगी पकौड़े बनाने की रेसिपी.

सामग्री

300 मिली पानी

2 पैकेट मैगी

2 पैकेट मैगी मसाला

70 ग्राम पत्तागोभी

70 ग्राम प्याज

70 ग्राम शिमला मिर्च

25 ग्राम धनिया

1 टीस्पून नमक

2 टीस्पून लाल मिर्च पाउडर

45 ग्राम सूजी

35 ग्राम बेसन

2 टेबलस्पून पानी

विधि

एक पैन में पानी डालकर उबालें. अब इसमें मैगी और मैगी मसाला डालकर अच्छे से मिक्स करें और पकाएं. बाद में बाउल में निकाल लें.

अब इसमें पत्तागोभी, प्याज, शिमला मिर्च, धनिया, नमक, लाल मिर्च पाउडर, सूजी, बेसन और पानी डालकर अच्छे से मिक्स कर लें.

थोड़ा-सा मिक्सचर लेकर छोटी-छोटी बाल्स बना लें और साइड रख दें. अब एक पैन में तेल गर्म कर इन्हें अच्छे से फ्राई करें. इन्हें तब तक फ्राई करें जब तक इनका रंग हल्का गोल्डन ब्राउन न हो जाएं.

मैगी पकौड़े तैयार हैं. इन्हें गर्मा-गर्म सर्व करें.

कूदासन

ज्ञान विद्रोह भी है. ज्ञान की निरंतर प्राप्ति से आदमी ने नएनए आविष्कार किए और करता जा रहा है. साथ ही, जल्दी मरण न आए, इस के लिए भी तरहतरह के प्रयास कर रहा है.  नियमित दिनचर्या में लोग योग को अपना रहे हैं. योग के आसनों का महत्त्व है. लेकिन दिल्ली के रामलीला मैदान में आधी रात को भगदड़ मची तो लोगों ने देखा कि रामदेव मंच से कूद पड़े और जनता के बीच पहुंच गए.

रामदेव के कूदने को लोगों ने ‘कूदासन’ नाम दे दिया. इसे मजाक या व्यंग्य कुछ भी कहें, दरअसल, रामदेव को कूद कर जनता के बीच जाना जरूरी था. एक तो जनता को समझाना था और दूसरे, पुलिस से बचना था.

खैर, काफी लंबी चटपटी न्यूज बनी. कहते हैं, रामदेव के योगासनों में एक आसन ‘कूदासन’ शामिल हो गया है. वैसे ‘कूदासन’ सैकड़ों वर्षों से जारी है. इतिहास में लिखा है कि राजपूत राजाओं की पत्नियां अपने पति की हार की खबर सुनते ही धधकती आग में कूद कर प्राण त्याग देती थीं.

सती प्रथा के तहत पति की मृत्यु के बाद पत्नी उस की जलती चिता में कूद पड़ती थी तो जुए और सट्टे के अड्डे पर पुलिस का छापा पड़ने पर जुआरी व सट्टेबाज नजदीकी नालों में कूद जाते हैं या भवन के ऊपर से कूदते नजर आते हैं. वैसे भी लोगों का उछलकूद करना, कूदना, दीवार फांदना, नदीनालों में कूदना सामान्य बात है.  टैलीविजन पर प्रसारित हो रहे एक सीरियल में भाग लेने वाले युवकयुवतियों को तरहतरह से कूदनाफांदना पड़ता है. पैसा और शोहरत चाहिए तो जान को जोखिम में डालना ही पडे़गा.  मकड़जाली व्यवस्था में हर चीज से वंचित करोड़ों लोगों को भी अपने विचारों, सपनों, विश्वास, मूल्यों की जरूरत है, जिस के लिए वे भी विभिन्न स्रोतों की खोज में रहते हैं, पर उन की प्रक्रिया उन के लिए बहुत कठिन है, कहें तो असंभव सी है. सो, ‘कूदासन’ को अपनाया गया.

इस के लिए खास परिश्रमअभ्यास भी नहीं करना पड़ता. बस, कूदासन के समय दिमाग को संतुलित रखने का पूरा प्रयास करें. लेकिन कूदते समय आदमी दिमाग कहां शांत रख पाता है?  सेना में जवान को और्डर मिलता है, ‘कूदो’ तो कूदना पड़ता है न. जवान को क्या, वह तो पहले से जानता है कि जान की परवा नहीं करनी है. ‘कूदो’ कहा गया तो कूदना है, इस की ट्रेनिंग भी उन्हें दे दी जाती है.

‘कूदासन’ वह आसन है जो आप की जान की रक्षा तो करता है, इस से कूद कर दूसरे की जान भी बचाई जा सकती है. दूसरों की जान बचाने का कार्य पुण्य का कार्य  होता है.

मनुष्य ने सभ्यता की यात्रा में जब यह समझा कि जैसे मेरे सुखदुख हैं वैसे ही दूसरों के भी हैं. जैसी मेरी आशाआकांक्षा हैं वैसी ही दूसरोें की भी हैं तो उस ने सोचा कि अपने मंगल के साथ दूसरों का मंगल भी साधना चाहिए. तभी इन जीवन मूल्यों की स्थापना हुई, जो शाश्वत माने जाते हैं. सो, हम कह सकते?हैं कि बाबा का ‘कूदासन’ मानवमात्र  के कल्याण के लिए आवश्यक है, है न?

‘कूदासन’ के नियमित अभ्यर्थी में चरित्र की दृढ़ता, आत्मबल और जनकल्याणोन्मुखी दृष्टि होती है. वह खुद के वैभव को निजी वैभव नहीं मानता. संपूर्ण प्रजा में समान वितरण करता है. कूदासन का समर्थक अपने हितों की अपेक्षा दूसरों के हितों के लिए समर्पित रहता है.

‘कूदासन’ का समर्थक घायल तनमन वालों को ऊर्जा प्रदान करने वाली ‘कालिख’ जानबूझ कर पोतता है कि ‘सचाई’ उजागर करने को कूदो मैदान में.

कूदो, कूदते रहो, रुको मत, आगे बढ़ो. मनुष्य को सब से ज्यादा परेशानी है, दुख से. दुख उसे आलसी बना देता है. दुख भी ऐसा कि जितना सोचो, उतना ही बढ़ता है. मानव जीवन भी बड़ा बेहया है. आदमी को गहरे से गहरा दुख भी सहन हो जाता है.  पर, दुखी क्यों रहें? दुख को क्यों सहें? मानव जीवन क्या इसीलिए है? दुख क्यों? सो, कूदासन सब से श्रेष्ठ है. कूदतेफिरते रहो. नएनए अनुभव होंगे. दुख के बाद सुख आता है पर दुख में क्यों जीएं?

यदि आप चाहते हैं कि दुख फिर न आए तो तत्काल कूदासन का अभ्यास शुरू कर दें. 40 के नहीं हुए न अभी? तो अभी कूदतेफिरते रहो. उम्र बढ़ेगी तो इस आनंद का लाभ उठा पाओगे? नहीं न?

संस्कृति या कुसंस्कृति

हम अपने देश की महान संस्कृति का राग आलापते थकते नहीं हैं. हम छाती पीटते रहते हैं कि पश्चिम की गलीसड़ी, अनैतिक संस्कृति से भारतीय पुरातन संस्कृति की महानता नष्ट हो रही है. पर एक ही दिन, 7 सितंबर का समाचारपत्र देखिए तो हमारी संस्कृति की पोल खुल जाती है.

मुख्य समाचार, संस्कृति के दावेदारों गौरक्षकों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश है जिस में अदालत ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे हर जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करें जो गौरक्षकों के आपराधिक, हिंसात्मक कृत्यों पर नजर रखें जो गौ संस्कृति के नाम पर आम लोगों को पीटने, मारने व वाहन जलाने का तथाकथित सांस्कृतिक अधिकार रखते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने तो केंद्र सरकार से यह तक पूछा है किउन (संस्कृति के रक्षक) राज्यों का क्या किया जा सकता है जो आदेश न मानें. शायद सुप्रीम कोर्ट को एहसास है कि संस्कृति रक्षकों को सुप्रीम कोर्ट असांस्कृतिक लगता है. सड़क पर गौमाता को ले जाने वालों को मार डालना कौन सी व कैसी संस्कृति है.

दूसरा समाचार है कि हमारी संस्कृति ऐसी है कि सरकार को चिंता हो रही है कि जिस रेल के डब्बों की छतों पर सोलर पैनल लगाए गए हैं उन्हें रास्ते में चोरी न कर लिया जाए. शायद, मारनेपीटने के साथ चोरी करना भी हमारी संस्कृति में शामिल है. यह ट्रेन दिल्ली से चल कर हरियाणा के फारूख नगर तक चलेगी पर रेल अधिकारी महान संस्कृति की निशानी से चिंतित हैं. जिस देश में सरकार की सार्वजनिक संपत्ति सुरक्षित न हो, वह संस्कृति का गुणगान कैसे कर सकता है?

एक समाचार है दिल्ली के निजी स्कूलों द्वारा अत्यधिक फीस लेने का. उच्च न्यायालय ने 98 स्कूलों को आदेश दिया है कि वे 75 फीसदी अतिरिक्त फीस वापस करें. जहां शिक्षा में घोटाले में हो, जहां गुरु व उन को नियुक्त करने वाले छात्रों को लूटते हों वहां कौन सी संस्कृति है और कैसी संस्कृति है.

बेंगलुरु में गौरी लंकेश की निर्मम हत्या किए जाने के बाद एक संस्कृति रक्षक निखिल दधीचि ने जो शब्द उन के लिए अपने ट्वीटर में इस्तेमाल किए हैं वे पोल खोलते हैं कि हम किस तरह की भाषा बोलते हैं. इस ट्वीटर को प्रधानमंत्री कार्यालय व मंत्री तक फौलो करते हैं. संस्कृति का हाल यह है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव में छात्र नेताओं ने सारे शहर को पोस्टरों व अपने नामों से गंदा कर दिया. छात्र इस आयु में झूठ बोलना सीख चुके हैं और वे पोस्टरों में अपने नाम की गलत स्पैलिंग लिखते हैं ताकि बाद में दीवारों को गंदा करने के अपराध से वे बच सकें. यह झूठ की संस्कृति पहले ही दिन से पढ़ाई जा रही है क्या?

यौन मामलों में हम अपनी संस्कृति का गुणगान कुछ ज्यादा करते हैं और पश्चिम की खुली हवा को जी भर के गालियां देते हैं पर हर रोज हमारे देश में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिन में 10 से 13 वर्ष की बलात्कार की शिकार लड़कियां अदालतों के दरवाजे खटखटा रही होती हैं. अगर हमारी यौन संवेदना इतनी अच्छी है तो बच्चियों के साथ तो यौन संबंध बनने ही नहीं चाहिए. एक समाचार मुंबई के उच्च न्यायालय का इसी बारे में है.

संस्कृति का राग निरर्थक है. हर समाज में अपराधी होंगे ही. उन के लिए पुलिस, अदालतें, जेलें बनेंगी ही. हर समाज में कुछ ऐसे होंगे जो बहुमत के रीतिरिवाजों के खिलाफ होंगे. संस्कृति का नाम ले कर उन की भर्त्सना न करें. जिसे सजा देनी है दें, बाकी सहन करें. हर कोई रैजीमैंटेड नहीं हो सकता. हर कोई तथाकथित संस्कृति का गुलाम नहीं हो सकता. संस्कृति का राग कमजोर आलापते हैं जिन के पास अपनी उपलब्धियां न हों.

यूनिफौर्म सिविल कोड के पीछे

ट्रिपल तलाक के बाद यूनिफौर्म सिविल कोड की मांग उठाई जा रही है. इस के पीछे भावना यह नहीं कि विवाह कानूनों में सुधार हो, भावना यह है कि दूसरे धर्मों के लोगों के कानूनों में दखल दिया जाए और उन्हें जता दिया जाए कि उन्हें हिंदू देश में हिंदू कानूनों के अंतर्गत रहना होगा.  सामान्य नागरिक संहिता का मामला इतना आसान नहीं जितना कट्टर हिंदू समझ रहे हैं. अगर यह कानून बना तो इसे देश के अपराध व दीवानी कानूनों की तरह बनाना होगा जिस में सब से पहले तो प्रावधान होगा कि कोई भी विवाह किसी धार्मिक रीतिरिवाज के साथ होगा तो मान्य न होगा.

सौ साल पहले जब कट्टर हिंदू विवाह कानूनों के रिवाजों को कुछ समाजसुधारकों ने सुधारा और सुधरे हुए हिंदू रीतिरिवाजों के अंतर्गत विवाह कराने शुरू किए तो उन विवाहों को विरासत के मामलों में चुनौती दी जाने लगी थी. बहुत से विवाह अदालतों ने खारिज किए थे और विधवाओं व बच्चों को अवैध मान कर संपत्ति में हिस्सा नहीं देने दिया था.

ब्रिटिश सरकार को हिंदू सुधारकों की मांग पर नए कानून बना कर विवाहों को मान्यता देने के कई कानून बनाने पड़े थे. 1956 में राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद की नानुकुर के बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने हिंदू विवाह कानूनों में सुधार किए पर वे सुधार सतही थे. हिंदू विवाह आज भी उन्हीं कट्टर रीतिरिवाजों से हो रहे हैं.  सामान्य नागरिक संहिता का अर्थ होगा कि पंडित द्वारा कराई गई शादी मान्य न होगी. अगर ऐसा प्रावधान न हुआ और कहा गया कि सामान्य कानून में भी पंडित, पादरी, ग्रंथी, भिक्षु और काजी विवाह करा सकते हैं तो यह सामान्य कानून शब्दों का मखौल उड़ाना होगा.  सामान्य व्यक्तिगत कानून की मांग करने वाले कट्टर हिंदुओं को पहले अपनी शादियों में जाति, वर्ण, कुंडली, पंडे, सप्तपदी, फेरे आदि को समाप्त करने को तैयार होना होगा. उन्हें हर तरह की संयुक्त परिवार की संपत्ति को छोड़ना होगा और आय व संपदा करों में संयुक्त संपत्ति शब्दों को हटवाने के लिए तैयार होना होगा.

फिर हिंदू विवाह भी अन्य विवाहों की तरह एक समझौता होगा, संस्कार नहीं. आज भी समाज इसे सात जन्मों का मेल मानता है. आज भी तलाक को यहां अपराध माना जाता है और प्रावधानों के बावजूद अदालतें तलाक ऐसे देती हैं मानो कोई अपवाद कर रही हों. संपत्ति के मामलों में आज भी मान लिया जाता है कि लड़की को दहेज में दिया गया पैसा उस का हिस्सा है और उस के बाद मातापिता की संपत्ति में वह कोई हिस्सा न मांगे. सामान्य व्यक्तिगत कानून में लड़की को हिस्सा मिलना तय होगा. जब तक हिंदू अपने पक्ष के बारे में गहराई से न सोचेंगे, संभावित सामान्य व्यक्तिगत कानून को केवल राजनीतिक शिगूफा मानना होगा. जब तक देश धर्मों, जातियों, वर्णों के हिस्सों में बंटा है, सामान्य नाम की चीज का सवाल ही नहीं उठता.

भेदभाव रहित हो शिक्षा, इसलिए हमने निकाला है ये ‘उपाय’

गुरुग्राम में शनिवार और रविवार की सुबह का नजारा गजब का होता है. वंचित परिवारों के बच्चे हाथ में किताब और कॉपी लिए तंग गलियों से होते हुए एक स्थान पर जमा होते हैं. नए आने वाले लोगों के लिए यह बड़ा ही रोचक होता है, लेकिन यहां रहने वाले लोग लंबे समय से यही देख रहे हैं.

समाज को आगे बढ़ाने के लिए ऐसे वंचित परिवारों या आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को पढ़ा-लिखाकर उन्हें मुख्य धारा में लाना अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह एक बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी है. इस जिम्मेदारी को पूरा करने का बीड़ा उठाया है संस्था ‘उपाय’ ने, जो शहर के विभिन्न इलाकों में ऐसे परिवारों के बच्चों को पढ़ाती है.

रविवार को बाल दिवस के उपलक्ष्य में ताऊ देवीलाल स्टेडियम में संस्था के विभिन्न सेंटरों में पढ़ रहे बच्चों के लिए खेल व बौद्धिक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. इस दौरान बच्चों ने लगन व मेहनत के साथ विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में भाग लिया.

इस दौरान ‘उपाय’ की सोहना सेंटर हेड सपना त्यागी, वॉलेंटियर शर्मिली गोयल, अनन्या गर्ग, अंकित, अनमोल ने बताया कि, उनकी संस्था ‘उपाय’ ने विभिन्न सेंटरों पर पढ़ने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए बाल दिवस के उपलक्ष्य में खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया. इनमें लेमन रेस, खो-खो, क्वीज कम्पटीशन, टैलेंट शो (डांस, गीत-संगीत व अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां) और एक्सटेंपोर (किसी भी चयनित विषय पर बच्चों के विचार जानना) आदि को शामिल किया गया. इन प्रतियोगिताओं में सभी बच्चों ने भाग लिया. विजेता बच्चों का पुरस्कृत भी किया गया.

सपना त्यागी ने बताया, देश में उनकी संस्था आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए उनके ही निवास के आसपास करीब 60 स्कूल चलाती है. गुरुग्राम में सिकंदरपुर, सेक्टर 51 में दो और सोहना रोड स्थित वाटिका चौक पर स्कूल चलता है. रविवार को अवकाश पर बाल दिवस के उपलक्ष्य में बच्चों के लिए खेल व बौद्धिक जांच संबंधी विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया.

सपना त्यागी ने बताया कि ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से बच्चों में मनोबल बढ़ता है. समाज में अन्य बच्चों को लेकर उनमें हीन भावना का उभार नहीं होता. वे अपने को किसी से भी कम नहीं समझते. इन्हीं सब उद्देश्यों को लेकर अक्सर महत्वपूर्ण दिवसों पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है.

साल 2011 में आईआईटी खड़गपुर से शिक्षा प्राप्त वरुण श्रीवास्तव ने उपाय फुटपाथशाला की शुरूआत की. आईआईटी की ही पासअाउट आकांक्षा स्वर्णिम ने साल 2016 में गुरुग्राम में फुटपाथशाला की शुरुआत की. आज दिल्ली और एनसीआर में कुल 6 सेंटर चलते हैं जिनमें 500 बच्चे मुफ्त में शिक्षा प्राप्‍त करते हैं.

‘उपाय’ के सचिव मनीष विजय ने बताया कि हम उन्हें मुफ्त में कुछ दान करने बजाय उन्हें पढ़ा लिखा कर आत्म सम्मान से अपने लिए कमाने को प्रोत्साहित करना चाहते हैं. यहां अधिकतर वो बच्चे हैं जो कभी स्कूल गए ही नहीं. इस प्रयास के तहत हमारी कोशिश है ज्यादा से ज्यादा बच्चों को साक्षर बनाने की. 

‘बाहुबली’ के बाद ‘देवसेना’ ने भी ठुकराई करण जौहर की फिल्म

सुपरहिट फिल्म ‘बाहुबली 2: द कन्क्लूजन’ को अपार सफलता मिली. ‘बाहुबली’ प्रभास और ‘देवसेना’ अनुष्का शेट्टी की दमदार एक्टिंग ने लोगों का दिल जीत लिया और दोनें की जमकर तारीफ हुई जिसके बाद से ऐसी अटकलें लगाई जाने लगी कि फिल्म के लीड कैरेक्टर प्रभास और अनुष्का शेट्टी जल्द ही बौलीवुड का रुख करेंगे. दरअसल ‘बाहुबली’ के हिंदी वर्जन को डिस्ट्रीब्यूट करने वाले करण जौहर का प्रौडक्शन हाउस प्रभास और अनुष्का शेट्टी को बौलीवुड में लौन्च करना चाहता था.

कुछ समय पहले ऐसी खबरें आई थीं कि करण जौहर ने तेलुगू सुपरस्टार प्रभास को एक बौलीवुड फिल्म आफर भी की थी, लेकिन प्रभास ने तो उनकी फिल्म में काम करने के लिए 20 करोड़ रुपये फीस की मांग की थी. उनकी इतनी महंगी फीस की डिमांड सुनकर करण जौहर ने प्रभास को लौन्च करने का अपना इरादा ही छोड़ दिया.

इसके बाद अब ऐसी खबरें भी आने लगी हैं कि प्रभास के बाद अब करण अपनी एक अगली फिल्म में एक खास रोल के लिए अनुष्का शेट्टी से भी संपर्क किया था लेकिन अनुष्का ने उनका आफर यह कहकर ठुकरा दिया कि उनके पास डेट्स नहीं हैं, जिसकी वजह से वो उनकी फिल्म में काम नहीं कर पाएंगी.

हालांकि अनुष्का शेट्टी का करण जौहर की फिल्म को ठुकराने की खास वजह तो मालूम नहीं है. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि चूंकि प्रभास को करण जौहर का प्रौजेक्ट नहीं मिला इसीलिए अनुष्का ने भी करण की फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया. ऐसा भी कहा जाता है कि प्रभास और अनुष्का रिलेशनशिप में हैं तो हो सकता है कि दोनों तभी किसी हिंदी फिल्म में काम करें जब दोनों को एक-दूसरे के अपौजिट साइन किया जाएगा. खैर इसकी वजह जो भी हो लेकिन लगता है कि ‘बाहुबली’ और ‘देवसेना’ को करण जौहर इतनी आसानी से अपनी फिल्मों में काम नहीं करवा पाएंगे और उन दोनों को बौलीवुड में लौंच करने की उनकी ये चाहत बस चाहत ही रह जाएगी. 

आपको बता दें कि फिलहाल तो प्रभास अपनी अगली फिल्म ‘साहो’ की शूटिंग में व्यस्त हैं, जिसमें उनके साथ श्रद्धा कपूर और नील नितिन मुकेश काम कर रहे हैं जबकि अनुष्का अभी जैकी श्राफ के साथ जी. अशोक की फिल्म ‘भागमती’ में काम कर रही हैं.

पीरियड्स में अब नो टैंशन

अधिकतर महिलाओं के लिए पीरियड्स एक छोटी सी असुविधा होती है, लेकिन कुछ महिलाओं के लिए यह बड़ी समस्या बन जाती है. पीरियड्स का अंतराल 21 दिन से 35 दिन का हो सकता है. पीरियड्स की शुरुआत 11 से 14 वर्ष के बीच होती है. फीमेल सैक्स हारमोन ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन पीरियड्स को नियंत्रित करते हैं. कुछ टिप्स अपना कर आप इन दिनों भी टैंशन फ्री रह सकती हैं:

बेटी को पहले से कैसे समझाएं

मासिकचक्र के साथ कई प्रकार की चिंताएं और डर होते हैं. कई बच्चियां घबरा जाती हैं कि यह उन के साथ क्या हो रहा है. मासिकचक्र शुरू होने से पहले ही आप को अपनी किशोर बेटी को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से इस के लिए तैयार करना पड़ेगा. हालांकि आमतौर पर पीरियड्स 12 वर्ष की आयु में शुरू होते हैं, लेकिन कई लड़कियों में इस से बहुत पहले ही यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है. मासिकचक्र शुरू होने से पहले शरीर में कई बदलाव होने शुरू हो जाते हैं. ये बदलाव शारीरिक ही नहीं होते, मनोवैज्ञानिक भी होते हैं. अपनी बेटी से 10 साल की उम्र के आसपास ही इस के बारे में चर्चा करें. उसे समझाएं कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिस से हर औरत को गुजरना पड़ता है. बचपन से किशोर उम्र में कदम रखने पर शरीर किन बदलावों से गुजरता है, यह भी उसे बताएं.

कब करें डाक्टर से संपर्क

– आप के पीरियड्स अचानक 90 दिन से अधिक समय के लिए बंद हो जाएं और आप गर्भवती न हों.

-7 दिनों से अधिक समय तक ब्लीडिंग हो.

-अत्यधिक ब्लीडिंग हो.

-पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग और दर्द हो.

-पीरियड्स का अंतराल 21 दिन से कम या 35 दिन से अधिक हो.

अत्यधिक पीरियड्स से आयरन की कमी हो जाती है. इस से ऐनीमिया, थकान, त्वचा का पीला पड़ जाना, ऊर्जा की कमी, सांस फूलना जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस)

इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) भी कहते हैं. कई महिलाओं में पीरियड्स के दौरान पीएमएस के लक्षण दिखाई देते हैं. इस समय वक्षस्थल में सूजन आ जाना, सिरदर्द, कमर दर्द, पेट फूलना या अधिक भूख लगना जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इस में मुंहासे, उत्तेजना, थकान, अनिद्रा, ऊर्जा की कमी, अवसाद और मूड बदल जाना के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं. तीव्र लक्षणों में आक्रामक बरताव या आत्महत्या का खयाल आना. ये लक्षण हर महीने गंभीर हो सकते हैं. तनाव इन लक्षणों को और गंभीर बना सकता है.

पीएमएस के लक्षणों से बचाव

-संतुलित भोजन का सेवन.

– खूब पानी पीना.

– धूम्रपान और एल्कोहल का सेवन न करना.

– पूरी नींद लें.

– तनाव न पालें.

– कुनकुने पानी से स्नान.

मासिकचक्र के दौरान जरूरी सावधानियां

आप पीरियड्स की चिंता न करें. उन दिनों आप अपना ध्यान रखेंगी तो आप का समय आसानी से गुजर जाएगा.

– साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. एक ही पैड पूरा दिन न रखें, बदलती रहें.

– अगर ब्लीडिंग अधिक हो रही हो तो रात में भी एक बार पैड बदल लें.

– अगर आप को अपने दांतों का इलाज कराना है या किसी और स्वास्थ्य समस्या के लिए डाक्टर के पास जाना चाहती हैं तो न जाएं, क्योंकि इस दौरान शरीर में ऐस्ट्रोजन हारमोन का स्तर कम होता है, इसलिए दर्द अधिक होता है.

– मासिकचक्र के दौरान वैक्ंिसग न कराएं.

– ठंडी चीजों जैसे दही, चावल, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स आदि के सेवन से रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है, जिस से गर्भाशय की अंदरूनी भित्ती निकलने में समस्या आती है.

– कैफीन का सेवन कम मात्रा में करें, क्योंकि इस से रक्तनलिकाएं संकुचित हो जाती हैं, जिस से ब्लीडिंग रुक जाती है. इस से पेट दर्द अधिक होता है.

– अपने योनि क्षेत्र को साफ करने के लिए वर्जाइना वाश का इस्तेमाल न करें. इस की जगह गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. योनि का अपना सैल्फ क्लिंजिंग मैकेनिज्म होता है, जो अपनेआप संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया को साफ कर देता है, अगर आप वैजाइना वाश का इस्तेमाल करेंगी, तो इस से नैचुरल प्रोटैक्टिव फ्लोरा मर जाएंगे.

– हमेशा ऊपर से नीचे की ओर वाश करें ताकि गुदा मार्ग से संक्रमण फैलने का डर न हो.

कई महिलाओं को जांघों या योनि क्षेत्र के आसपास रैशेज हो जाते हैं. इस से बचने के लिए साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. समय पर पैड बदलें. इस क्षेत्र को सूखा और साफ रखें. अगर आप को फिर भी समस्या होती है, तो किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञा को दिखाएं.

इनरवियर हाइजीन का रखें ध्यान

ज्यादातर महिलाएं बाहरी कपड़ों को ले कर तो बहुत सजग रहती हैं, पर अंदरूनी कपड़ों पर ध्यान नहीं देती हैं, जबकि ये भी उन के वार्डरोब का अहम हिस्सा हैं, जिन की ओर पूरा ध्यान दिया जाना अतिआवश्यक है वरना आप कई दुष्प्रभावों का शिकार हो सकती हैं. अत: जब भी इनवियर, खासतौर पर पैंटी खरीदें, निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें.

पैंटी सूती कपड़े की ही लें

सूती कपड़ा त्वचा के लिए सब से अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है. अत: पैंटी जैसे अंदरूनी वस्त्र के लिए सूती ही चुनें. हालांकि सिल्क या सिंथैटिक कपड़े की पैंटी अधिक सैक्सी लगती है. किंतु ऐसी पैंटी हवा को आरपार नहीं जाने देती है, जिस से त्वचा रोग व इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. यदि सिंथैटिक कपड़े की पैंटी खरीदनी ही हो तो उसे खरीदें, जिस के अंदर की लाइनिंग सूती कपड़े की हो.

सही नाप पर ध्यान दें

पैंटी बड़ी होने के कारण झूलती हो तो दिक्कत और यदि बहुत तंग हो तो और भी दिक्कत यानी ढीली पैंटी चलनेफिरने में परेशानी करती है, तो तंग पैंटी में हवा आरपार नहीं होती है. साथ ही त्वचा में रगड़न की भी परेशानी हो सकती है. पैंटी का साइज अपनी ब्रा के साइज से बड़ा रखना चाहिए.

रंगबिरंगी पैंटी कम पहनें

रंगबिरंगी पैंटी आकर्षक अवश्य लगती है, मगर डा. मोंटगोमरी के अनुसार कपड़े का रंग मुलायम त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है खासकर यदि त्वचा संवेदनशील हो. इसलिए सफेद पैंटी ही सर्वोत्तम है.

शेपवियर ज्यादा समय न पहनें

पतली कमर और सुडौल शरीर के आकर्षण में महिलाएं शेपवियर पहन तो लेती हैं पर क्या उन्होंने इस तरफ ध्यान दिया कि इसे कितनी देर तक पहनना उचित है? डा. श्वेता के अनुसार ज्यादा देर तक शेपवियर पहनने से शरीर को दिक्कतें आ सकती हैं. शेपवियर शरीर के मांस को दबा कर रखता है. बहुत देर तक ऐसा करने से पित्त, अम्ल प्रतिवाह आदि समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए कभीकभी ही पहनें और ज्यादा देर तक न पहनें.

वर्कआउट के समय

व्यायाम करते समय भी ध्यान दें कि आप की पैंटी कैसी हो. गलत कपड़े की या तंग नाप की पैंटी आप का पसीना सोखने में असमर्थ रहेगी जिस से बैक्टीरिया पनपने की संभावना रहेगी. इसलिए पैंटी के चयन पर खास ध्यान दें.

ऐसे ही व्यायाम के बाद पैंटी बदलने का भी पूरा ध्यान रखें. पैंटी में सोखे गए पसीने का जल्दी सूख पाना संभव नहीं होता है. ऐसे में उसे देर तक पहने रखने से त्वचा में लाल चकत्ते आदि हो सकते हैं. अत: व्यायाम के बाद पैंटी बदल लें ताकि त्वचा सांस ले सके.

स्त्रीरोग विशेषज्ञों की राय

डा. मोनिका जैन सुझाती हैं कि महिलाओं को पैंटी धोते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि उस में थोड़ाबहुत श्वेत प्रदर लगा है तो चिंता की बात नहीं पर यदि उस में बदबू भी है या वह गाढ़ा है या आप को रक्तस्राव लगा भी दिखता है तो फौरन स्त्रीरोग विशेषज्ञा से अपनी जांच करवाएं.

क्लीवलैंड क्लीनिक की डा. पिलिआंग पैंटी को धोते समय इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट के बारे में आगाह करती हैं कि डिटजैंट बिना खुशबू और रंग का होना चाहिए. उस में डाई भी नहीं होनी चाहिए ताकि त्वचा को ऐलर्जी का खतरा न हो.

ध्यान देने योग्य बातें

सोते समय पैंटी न पहनें

जिन महिलाओं को सारा दिन बंधे कपड़ों में बिताना पड़ता है, उन्हें रात को सोते समय पैंटी नहीं पहननी चाहिए. इस का कारण है कि सारा दिन नमी में रहने की वजह से इन्फैक्शन या जलन होना आम बात है. मिशिगन स्टेट विश्वविद्यालय की डा. नैंसी हरता का कहना है कि थोड़ीबहुत हवा उस हिस्से को सूखा रखने के लिए बहुत जरूरी है. कुछ दिन बिना पैंटी के सो कर देखें. आप को स्वयं फर्क लगने लगेगा.

दिन में पैंटी न पहनी तो: कुछ महिलाएं पैंटी पहनती ही नहीं हैं. ऐसा करना भी उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से कूल्हों का मांस लटक कर अपनी असली शेप खोने लगता है. पैंटी से कूल्हों का मांस बंधा रहता है, शेप बनी रहती है. पैंटी न पहनने के कारण कपड़ों से रगड़ खा कर दाने भी हो सकते हैं.

कब बदलें पैंटी

हर मौसम के साथ बदलते फैशन में रंग कर महिलाएं फटाफट अपने कपड़े, जूते आदि तो बदल लेती हैं, पर पैंटी की तरफ ध्यान नहीं देती हैं. यह सोच कर पुरानी पैंटी से ही काम चलाती रहती है कि पैंटी को भला कौन देखता है. यह बात तो सही है पर साथ ही यह भी सच है कि पुरानी ढीलीढाली पैंटी पहनने पर बेहद परेशानी भी होती है. कभी जगह से सरक जाती है. फिर सब की नजरें बचाते हुए वापस जगह पर लाना मुश्किल होता है. इसलिए थोड़ी कंजूसी कम दिखाएं और पैंटी का इलास्टिक खराब होते हीनई पैंटी खरीद लें.

हेल्दी बेक्ड जुकीनी फ्राई

सामग्री

4 जुकीनी

1/2 कप परमेसन चीज

1/2 छोटा चम्मच सूखा थाइम द्य

छोटा चम्मच ओरिगैनो

छोटा चम्मच सूखी बेसिल

1/4 छोटा चम्मच लहसुन पाउडर

2 बड़े चम्मच औलिव औयल

2 बड़े चम्मच पार्सले कटी

नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार

विधि

जुकीनी को धो कर लंबे व छोटे टुकड़ों में काट लें. एक ग्रिल को बेकिंग ट्रे में लगाएं और नौनस्टिक स्प्रे लगा कर अलग रखें. एक बाउल में जुकीनी, औलिव औयल और पार्सले छोड़ कर बाकी सारी सामग्री मिलाएं.

जुकीनी के टुकड़ों को बेकिंग ट्रे में लगाएं और ऊपर से तैयार मिश्रण व औलिव औयल डाल कर 180 डिग्री सैंटीग्रेड पर पहले से गरम ओवन में सुनहरा होने तक बेक करें. पार्सले से सजा कर तुरंत सर्व करें.

– व्यंजन सहयोग : बेबी नरूला

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें