ताकि नैपी में भी रहे बच्चा हैपी

बच्चे के लिए नैपी का चयन सोचसमझ कर करें. नैपी खरीदते समय ध्यान रखें कि वह सही फिटिंग का हो, उस की सोखने की क्षमता बेहतर हो और उस का फैब्रिक बच्चे की संवेदनशील त्वचा को नुकसान न पहुंचाए. मौसम कोई भी हो कौटन और लिनेन का नैपी सब से अच्छा रहता है. इस का फैब्रिक नमी को अवशोषित करता है और त्वचा से रिएक्शन नहीं करता है. आज बाजार में अच्छी क्वालिटी के डिसपोजेबल नैपी भी उपलब्ध हैं. नैपी को हर 3-4 घंटों में बदल देना चाहिए. अधिकतम 6 घंटे में. नैपी जितनी जल्दी बदलेंगी, संक्रमण का खतरा उतना ही कम होगा.

सही नैपी का चयन करें

नैपी बच्चे की त्वचा को गीलेपन से बचाता है. इस से जलन और रैशेज से बचाव होता है. कपड़े का नैपी बच्चे को सूखा और कंफर्टेबल रखता है. यह बच्चे को उतना ही सूखा रखता है जितना डिसपोजेबल नैपी.

इसे खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखें

सोखने की क्षमता: नैपी की सोखने की क्षमता अच्छी होनी चाहिए ताकि वह बच्चे के मलमूत्र को अवशोषित कर सके.

मुलायम: नैपी मुलायम होना चाहिए ताकि बच्चे की मुलायम त्वचा को नुकसान न पहुंचे. इस में इतना खिंचाव होना चाहिए कि अच्छी तरह फिट हो जाए.

वेटनैस इंडिकेटर: वेटनैस इंडिकेटर नैपी पर एक रंगीन रेखा होती है, जो पीले से नीली हो जाती है, तो इस का अर्थ होता है कि नैपी गीला हो गया है. उसे बदलने का समय आ गया है.

कौन सा नैपी है बेहतर: बहुत से मातापिता परेशान रहते हैं कि बच्चे के लिए किस प्रकार का नैपी का इस्तेमाल किया जाए. वैसे कौटन का नैपी अच्छा माना जाता है, लेकिन आजकल कई बेहतरीन डिसपोजेबल नैपी भी बाजार में उपलब्ध हैं. अगर महंगे ब्रैंड का नैपी आप के बजट से बाहर हो तो आप कौटन का नैपी इस्तेमाल कर सकती हैं. ब्रैंडेड नैपी को घर के बाहर और रात में इस्तेमाल कर सकती हैं. दिन में जब घर पर हों तो सामान्य कौटन का नैपी ही इस्तेमाल करें.

क्यों हो जाते हैं रैशेज: लगातार नैपी पहने रहने से बच्चे के नितंबों और जांघों पर रैशेज पड़ जाते हैं. वहां भी रैशेज पड़ जाते हैं जहां त्वचा फोल्ड होती है. रैशेज होने का सब से प्रमुख कारण नमी है. दूसरे प्रमुख कारणों में नैपी को कस कर बांधना, ठीक प्रकार से न धोना, जिस से डिटर्जैंट या साबुन नैपी में रह जाता है. जब बच्चे को डायरिया हो जाता है या दस्त लग जाते हैं, तो उसे रैशेज होने का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि मल का संपर्क त्वचा को मूत्र के संपर्क से अधिक नुकसान पहुंचाता है. नहीं पड़ेंगे रैशेज: बच्चे को रैशेज से बचाने का सब से अच्छा तरीका यह है कि नैपी वाले एरिया को साफ और सूखा रखें. गीले नैपी को तुरंत बदलें. नैपी बदलने के बाद हमेशा बच्चे के बौटम को कुनकुने पानी से साफ करें.

रैशेज ठीक करने के घरेलू उपाय

सामान्यता नैपी के रैशेज को घरेलू उपायों से ठीक किया जा सकता है. आप भी इन घरेलू उपायों को आजमा सकती हैं:

रैशेज पर ऐलोवेरा जैल लगाएं.

बच्चे को कुछ समय बिना नैपी के भी छोड़ें ताकि रैशेज तेजी से हील होने में मदद मिल सके.

रैशेज पर पैट्रोलियम जैली लगाएं.

रैशेज पर टैलकम पाउडर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, पर इस के अधिक मात्रा में इस्तेमाल से बचें वरना यह बच्चे के फेफड़ों में पहुंच कर उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है.

इन बातों का भी ध्यान रखें

बच्चे को कुनकुने और माइल्ड साबुन से नहलाएं.

कौटन के मुलायम टौवेल से हलके हाथों से पोंछें. त्वचा के पूरी तरह सूखने के बाद ही कपड़े और नैपी पहनाएं.

गीले या गंदे नैपी को तुरंत बदल दें.

रात में भी 1 बार नैपी जरूर बदलें.

26 में से 8 घंटे बच्चे को बिना नैपी के रखें ताकि त्वचा को सांस लेने का अवसर मिल सके.

ऐसे नैपी का इस्तेमाल करें, जिस में एअरटाइट प्लास्टिक का कवर हो.

कब करें डाक्टर से संपर्क

अगर बच्चे के नितंबों, जांघों और गुप्तांगों पर लाल रैशेज अधिक मात्रा में पड़ गए हैं, तो घरेलू उपायों से उन्हें ठीक करने का प्रयास करें. अगर 7 दिन में रैशेज ठीक न हों और उन में जलन हो, खुजली हो, खून निकले या बच्चे को बुखार आए तो तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

नैपी कैसे बदलें

नैपी बदलते समय इस बात का ध्यान रखें कि गंदगी बच्चे के शरीर पर न फैले. गंदा नैपी निकालने के बाद दूसरा नैपी पहनाने से पहले नैपी वाले स्थान को अच्छी तरह सूखने दें. इस के अलावा इन बातों का भी ध्यान रखें:

बच्चे को एक हाथ से टखने से पकड़ कर थोड़ा ऊपर उठा कर गंदे नैपी को बच्चे की कमर के नीचे ही मोड़ दें. ध्यान रहे, साफ भाग ऊपर होना चाहिए.

अगर बच्चे का नैपी बहुत गंदा है तो नीचे एक मुलायम टौवेल रखें या डिसपोजेबल पैड लगाएं.

बच्चे के आगे के भाग को बेबी वाइप से साफ करें. हमेशा आगे से पीछे की ओर साफ करें.

बैबी के बौटम को मुलायम टौवेल या कौटन से धीरेधीरे साफ करें, रगड़ें नहीं.

नया नैपी खोलें और आधी कमर को उस पर रखें. फिर बच्चे को ठीक से लिटाएं और आगे से नैपी को ठीक से बांधें.

नैपी बदलने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह धोएं ताकि बैक्टीरिया को दूसरे भागों में फैलने से रोका जा सके.

नैपी लगाते समय बच्चे के पैर उतने ही चौड़े करें जितने कंफर्टेबल हों. पैर अधिक चौड़े करने से बच्चे को परेशानी हो सकती है.

नैपी को इतना कस कर न बांधें कि वह त्वचा से रगड़ खाए.

अगर नवजात है तो गर्भनाल को न ढकें जब तक कि वह सूख कर हट न जाए.

नैपी धोने के टिप्स

डिसपोजेबल नैपी को धोने की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर आप कपड़े का नैपी इस्तेमाल कर रही हैं, तो उसे सावधानीपूर्वक धोएं ताकि बच्चे को साफ और संक्रमण रहित रखा जा सके.

नैपी को कुनकुने पानी में माइल्ड डिटर्जैंट से धोएं.

खुशबू वाले साबुन या डिटर्जैंट का इस्तेमाल न करें वरना रैशेज होने का खतरा हो सकता है.

अधिक गंदे नैपी को धोने से पहले थोड़ी देर ठंडे पानी में डुबोएं.

फैब्रिक सौफ्टनर का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस में खुशबू हो सकती है, जिस से बच्चे की त्वचा में जलन हो सकती है.

नैपी को धोने के बाद सिरके के पानी में डुबो लें. इस से गंध भी दूर हो जाएगी और साबुन भी पूरी तरह निकल जाएंगे. इस के बाद नैपी को एक बार फिर ठंडे और पानी से धो लें.                        

– डा. नुपुर गुप्ता, निदेशक वैल वूमन क्लीनिक   

इन रावणों का नाश कौन करेगा

हमारी रगरग में यह सोच भरी है कि अगर किसी के साथ कुछ  बुरा हुआ है, तो बुरा करने वाले से ज्यादा दोषी पीड़ित है. यह या तो उस के कर्मों का फल माना जाता है या फिर यह समझा जाता है कि ईश्वर, अल्लाह, भगवान को यही मंजूर था. आमतौर पर पीडि़त से कहा जाता है कि नुकसान से जितना जो बच गया उस के लिए ऊपर वाले को धन्यवाद करे और चुप  बैठ जाओ.  चंडीगढ़ में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की बेटी को रात 12 बजे गाड़ी में अकेले आते देख खुद को साक्षात ईश्वर सम्मत पार्टी के नुमाइंदे मानने वाले  2 युवाओं ने उस की गाड़ी रोकनी चाही. अब इन ‘निर्दोष’ बच्चों  में से चूंकि एक भारतीय जनता  पार्टी के हरियाणा अध्यक्ष का बेटा था, तो दोष तो पीडि़ता का ही  होना चाहिए.

जिस देश का वातावरण ऐसा हो गया है कि आज की हर खराबी के लिए 67 साल के कांग्रेसी राज को दोष दे कर मुक्त हो जाओ, वहां मामला सामने आते ही भाजपाइयों की फौज पीडि़ता से सवाल करने लगी है.  सुरक्षा व्यवस्था में कमजोरी की जिम्मेदारी लेने की जगह  पीडि़ता का इतिहास खंगाला जा रहा है. देश भर के भाजपाई कार्यकर्ता पार्टी की आबरू बचाने के लिए लड़की के मनमरजी के समय घूमने की आजादी पर सवाल उठाने लग गए हैं और उस की आबरू को सरेआम तारतार करने लगे.

यह मानसिकता कोई नई  हीं है और न ही भाजपा की देन  है. यह पुरानी है जिसे कांग्रेसियों  ने खूब पालापोसा पर उसी का नतीजा भाजपा सरकार है. यह मानसिकता समाजवादी पार्टी के शोहदों में भी भरपूर है. देश का शायद ही कोई कोना ऐसा होगा, जहां पार्टी चाहे  कोई हो, कानून की रक्षा सही ढंग से हो रही हो.  चोर, डाकू, बलात्कारी हर युग में, हर समाज में होंगे. फर्क यहां यह है कि उन्हें सरकारी तौर पर बचाया जा रहा है. तुरतफुरत जमानत दी जा रही है. मुख्यमंत्री मामले को टाल रहे हैं, उसे मामूली घटना बताया जा रहा है.  औरतों को गुलाम मानने और पूजापाठ में बंद रख कर गुलामी  के फूलों की जंजीरों से बांध कर रखने वालों का विचार है कि उन्हें जो जनसमर्थन मिला है वह उन के हर काम को सही सिद्ध करता है. ठीक वैसे ही जैसे जब इंद्र ने अहिल्या का बलात्कार किया था, तो दोषी बन कर अहिल्या पत्थर की शिला बन गई. चंडीगढ़ की लड़की से कहा जा रहा है कि वह दोषी है, शिला बन कर सड़क पर पड़ी रहे और सरकारी ओहदे पर बैठे ‘इंद्र’ को कुछ न कहे.

बुरा हो आज के छोटे से तार्किक, सभ्य, उदार समाज का कि वह बेबात का हल्ला मचा रहा है. भक्तों को पूरा विश्वास है कि एक दिन राम इन व्यक्ति अधिकारों के हक रक्षक रावणों का संपूर्ण नाश करेंगे, याद रखिए.

गलत चुना तो बेड़ा गर्क

घर में आने वाली बहू को बेटे के लिए चुनने और उच्च न्यायालय में जज, मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री चुनने में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है. एक मामले में घर की सुखशांति निर्भर रहती है, दूसरे में न्यायव्यवस्था और तीसरे में पूरे देश की शांति व उन्नति. तीनों मामलों में यदि गलत व्यक्ति चुन लिया गया तो समझो जो भी प्र्रभावित हो रहा है उस का बेड़ा गर्क तय है. उसे दूसरों के सामने नीचा ही नहीं देखना पड़ता, गलत निर्णयों का खमियाजा भी भुगतना पड़ता है जो कई मामलों में जानलेवा भी होता है.

मद्रास उच्च न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीश सी एस करनान के व्यवहार पर मद्रास उच्च न्यायालय के जजों को बहुत शिकायत थी और उन्होंने उन का तबादला कोलकाता उच्च न्यायालय में करा दिया. उस पर जस्टिस करनान ने बहुत हंगामा खड़ा कर दिया जो अंतत: उन के रिटायर होने पर ही समाप्त हुआ.  यदि घर में पत्नी का उत्पात शुरू हो जाए तो पति ही नहीं, सासससुर, देवर, दौरानी, ननदें, बच्चे कितने तनाव और कठिनाइयों से जूझते हैं, यह जगजाहिर है. कितनी ही बार पति आत्महत्या कर डालते हैं, बच्चों का कैरियर खराब हो जाता है, सासससुर परेशान हो कर बीमार हो जाते हैं. घर में, छोटा हो या बड़ा, एक घुटन भर जाती है.  पत्नी के चयन के समय और जिस ने उसे खोजा था उस पर सवाल खड़े होने लगते हैं. उस समय जो मन में विचार आते हैं वे इस मामले में हाल के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की निम्न राय, जो उस ने नियुक्ति के मामले में दी बहुत कुछ घरघर पर लागू होती है:

‘‘संविधान के निर्माता बड़े देशभक्त, परिपक्व और नैतिकता के उच्च मानदंडों के स्त्रीपुरुष थे. स्वाभाविक रूप से उन्होंने आशा की थी कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों का चयन उन की योग्यता, कुशलता और विश्वसनीयता के आधार पर होगा. संविधान निर्माताओं को यह आभास था कि हर चयन सही ही हो इस की कोई गारंटी नहीं है और यह संभव है कि उच्च पद पर चयनित व्यक्ति अपने पद की गरिमा के विपरीत व्यवहार करे और पद के स्तर की अपेक्षाओं पर खरा न उतरे. इसीलिए संविधान में पद से हटाने के लिए महाभियोग का प्रावधान है और राष्ट्रपति तक पर यह लागू हो सकता है.’’

घर में हो रहे विवाद पर भी कुछ ऐसा ही हो सकता है. ऊपर के वाक्यों में संवैधानिक पद शब्दों की जगह अगर पत्नी लगा दिया जाए और महाभियोग की जगह डाइवोर्स कर दिया जाए तो ये वाक्य घरघर  में लागू होते हैं. पत्नी को प्रेम के बाद चुना जाए या बिचौलियों  द्वारा सुझाई गई सैकड़ों में से हर तरीके से जांचपरख कर घर में लाया जाए, अगर वह बिफर जाए तो जस्टिस करनान की तरह ही व्यवहार करती है.

जस्टिस करनान अपने दलित होने का हवाला बारबार देते रहे हैं और पत्नियां अपनेआप को कमजोर औरत होने का और कानून, पुलिस, महिला उत्पीडन का हवाला देती हैं.  पत्नी से निबटना हर घर के लिए उतना ही मुश्किल होता है जितना सुप्रीम कोर्ट के लिए जस्टिस करनान के मामले में था. इस मामले में जजों को दसियों निर्णय लेने पड़े और तब जा कर छुटकारा मिला पर अभी भी मामला चलता रहेगा.

पत्नी को निकालना आसान नहीं होना चाहिए यह ठीक है पर आमतौर पर माहौल यह होना चाहिए कि जब अनबन होने लगे तो पत्नीपति खुद फैसला करें और शांति से अलग हो जाएं. एक जिद पर अड़ जाए तो मामला बिगड़ जाता है.  सुप्रीम कोर्ट को पसीना आ गया एक जज से तलाक पाने पर लेकिन वह नहीं जानता कि लाखों पति, पत्नी व उन के घर वाले कठिन तलाक कानूनों के कारण एक जिद्दी पक्ष के कारण कराह रहे हैं और नर्क की सी जिंदगी जी रहे हैं.

काश, कोई सुप्रीम कोर्ट को बता सकता कि जो उस ने जस्टिस करनान के मामले में कहा है वह हजारों (शायद लाखों) मामलों में भुगता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के हाथ संविधान से बंधे थे पर वह पति या पत्नी के उत्पात से बचाने में तो अपना सहयोग दे सकता है कि परेशान घर जस्टिस करनान जैसों को वर्षों तक न सहें.

दर्शकों के मूड में बदलाव कुछ सालों बाद आता है : फरहान अख्तर

फिल्म ‘दिल चाहता है’ से निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले फरहान अख्तर ने पहले तो कई फिल्मों का निर्देशन किया और उसमें अपनी पैठ जमाने के बाद एक्टिंग की ओर रुख किया और फिल्म ‘रौकऔन’ में अभिनय के अलावा गायन को भी अंजाम दिया. फिल्म ‘रौकऔन’ के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिला. वे निर्देशक के अलावा निर्माता, अभिनेता, गायक, और पटकथा लेखक भी हैं. फिल्मी परिवार में पले बड़े होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने आप को बौलीवुड में स्थापित करने के लिए माता-पिता का सहारा नहीं लिया. बहुत कम समय में उन्होंने अपने मेहनत के बल पर अपने आप को एक मुकाम तक पहुचाया है.

उनका फिल्मी करियर सफल होने के वावजूद भी उनका पारिवारिक जीवन सफल नहीं रहा. साल 2000 में उन्होंने हेयर ड्रेसर अधुना भबानी से 3 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी की, जिनसे उनकी दो बेटियां शाक्य और अकिरा हुई. साल 2017 में उन्होंने अपने 16 साल की शादी-शुदा जिंदगी को खत्म कर दिया और अपनी पत्नि से डिवोर्स ले लिया.

अभी उनकी फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने एक कैदी की भूमिका निभाई है. पेश है बातचीत के कुछ अंश.

किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का खास ध्यान रखते हैं?

मैंने जब भी कोई चरित्र चुना कोशिश किया कि वे एक दूसरे से अलग हों, अलग तरह की भूमिका से मुझे उसे करने की प्रेरणा मिलती है. ‘भाग मिल्खा भाग’ भी मेरी अलग तरह की फिल्म थी, जिसमें मैंने सरदार की भूमिका निभाई थी, मुश्किल थी, पर वही मेरे लिए चुनौती थी. मैं कुछ सोचता नहीं हूं, जो भी कहानी मेरे पास आती है, उसे पढने के बाद निर्णय लेता हूं.

एक कैदी की भूमिका करना कितना मुश्किल था?

ये कोई अधिक मुश्किल नहीं था. मैंने थोड़ी तैयारियां की थी, अधिक जानकारियां हासिल नहीं करना चाहता था. असल में जब कैदी जेल की सलाखों के पीछे जाता है, तो उसे पता नहीं होता है कि वहां उसके साथ क्या होने वाला है. धीरे-धीरे उसे सब पता चलता है. ऐसे ही मैंने अपने दृश्य में परफार्म करने की कोशिश की. लेखक असीम अरोड़ा ने काफी रिसर्च किया हुआ था. थोड़ा बहुत मुझे अंदाजा था कि मैं किस तरह के वर्ल्ड में जाने वाला हूं.

आपने अपने रिसर्च में कैदियों की लाइफ को कैसा पाया? क्या अनुभव रहा?

मुझे ये पता चला कि जो दायित्व जेलर का है, कैदियों के रिफार्म में उनका बहुत बड़ा सहयोग होता है. ये मुझे बहुत अच्छी लगी. हम इस बारे में बहुत कम सोचते हैं, क्योंकि वहां बहुत ऐसे कैदी हैं, जिन्होंने एक पल मैं एक अपराध कर लिया है, जबकि वे पहले से कोई अपराधी नहीं होते हैं. ऐसे लोगों की सुधार के लिए वहां बहुत आप्शन हैं. कुछ सालों बाद उन्हें समाज में वापस भेजा जाता है. ऐसे में जरूरी ये होता है कि समाज और परिवार उनकी पिछली गलतियों की उलाहना न देकर उन्हें एक नए माहौल में जीने और सपनों को पूरा करने का मौका दें.

आपकी पिछली फिल्म सफल नहीं रही और कई ऐसी बड़ी फिल्में आई हैं जो बौक्स आफिस पर कुछ अच्छी नहीं थी, ऐसे में इस तरह की फिल्म से आप क्या उम्मीद रखते हैं?

रौकऔन अधिक सफल नहीं होने की एक वजह यह भी थी कि उसे रिलीज के दो दिन पहले नोटबंदी का ऐलान हुआ, ऐसे में लोगों को अपने पेट भरने के लिए पैसों की व्यवस्था करने में ही मुश्किल आ रही थी. फिल्म देखना तो बहुत बड़ी बात थी. उस समय सारे थिएटर खाली पड़े थे. फिर मैं फिल्म को दोषी नहीं मान सकता. मेरी कोशिश रहती है कि हर फिल्म चले, लेकिन कई बार कुछ कारणों से फिल्म चल नहीं पाती. फिर आगे अच्छा करने के लिए मेहनत करता हूं. मेरे हिसाब से ‘सेल्फ डाउट’ अच्छी बात नहीं, इससे आप प्रोग्रेस नहीं कर सकते. फिल्म के निर्माण में बहुत सारे लोग होते हैं, सभी मेहनत करते हैं. सब कुछ करने के बावजूद दर्शक कई बार फिल्म को नकार देते हैं. इससे डरने की बात नहीं होती. दर्शकों के मूड में बदलाव कुछ सालों बाद आता रहता है.

इश्यू बेस्ड फिल्में आजकल अधिक आ रही है, क्या आप कुछ ऐसी फिल्म बनाना चाहते हैं?

मैं एक फिल्म ‘गोल्ड’ बना रहा हूं, जो हमारे इंडियन हौकी टीम से प्रेरित होकर बनायी जा रही है. इसमें हौकी के द्वारा कैसे लोग मिलते हैं, कैसे टीम बनती है, उसी को दिखाने की कोशिश की गयी है. इसके अलावा पैराओलिंपियन दीपा मलिक को लेकर भी एक फिल्म बना रहा हूं. ऐसी फिल्में बहुत कम बनी है, जहां एक लड़की शारीरिक रूप से अपंग होने के बाद भी कितनी उपलब्धियां हासिल की है. ये फिल्में दर्शकों को भी प्रेरित करेगी.

आप बहुत सारे सामाजिक कार्य करते हैं, ऐसे में जेल में रह रहीं महिला कैदी जिनकी सजा पूरी हो चुकी हो और समाज और परिवार उन्हें अपनाना नहीं चाहती, उनके लिए कुछ करने की इच्छा रखते हैं?

जो भी अपराध करते हैं, अगर उन्होंने अपनी सजा पूरी कर चुकी हो, तो समाज और परिवार को उस महिला को अपनाए जाने की जरुरत है, ये समस्या हमारे देश में है और ये सौ प्रतिशत सोचने वाली बात है कि उन्हें फिर से समाज और परिवार में रहने का हक कैसे मिले. मैंने अभी तो कुछ सोचा नहीं है, लेकिन इस विषय पर अपने साथियों के साथ मिलकर विचार करना चाहूंगा और कोशिश करूंगा कि ऐसी महिलाओं को प्रशिक्षित कर इंडस्ट्री में जौब क्रिएट कर सकूं.

एक क्रिएटर के रूप में किस क्षेत्र में आप अपनी क्रिएटिविटी को अधिक दिखा सकते हैं, फिल्मों में या डिजिटल प्लेटफार्म में?

डिजिटल में अधिक संभव होता है. फिल्मों में एक दायरा होता है, जिसके अनुसार उसे बनानी पड़ती है, लेकिन यहां यह भी जरुरी है कि फिल्मों के सर्टिफिकेशन में आप एक प्रभावशाली रेटिंग सिस्टम लागू करें और बतायें कि कौन सी फिल्म किस उम्र की व्यक्ति के लिए देखने लायक है.

आपने कई तरह के काम किये हैं, क्या कुछ और बाकी रह गया है?

मेरा पियानो सीखना बाकी है, बचपन में मैं हारमोनियम सीखता था, जो मैंने थोड़े दिनों बाद बंद कर दिया था. अभी कुछ गाने जिसे मैंने लिखा है, गिटार पर बजाता हूं, लेकिन पियानो पर वह अधिक अच्छी लगेगी. मैं और मेरी छोटी बेटी दोनों को पियानो सीखना है.

ट्रिपल तलाक के बारें में आपकी राय क्या है?

ये निर्णय एकदम सही है. ये जरुरी भी था कि महिलाओं को कुछ हक मिले. 6 महीने बाद जो इसे कानून में परिवर्तित करने की बात कही गयी है, वह भी होना आवशयक है. उसे पारित करने में समस्या तो आयेगी, पर उम्मीद करता हूं कि सकारात्मक माहौल में इसे महिलाओं तक लाया जाय.

चुपके से होती है हमारे शरीर में मधुमेह की एंट्री

शरीर में इंसुलिन नाम के हार्मोन के कम बनने से डायबिटीज होती है. ज्यादातर लोगों को सामान्य जांच के दौरान डायबिटीज होने का पता चलता है तो उन्हें धक्का पहुंचता है. डायबिटीज उतनी आम नहीं है, लेकिन यह ज्यादातर कम उम्र के लोगों को होती है. इस रोग से पीड़ित रोगियों को शुरू से ही इंसुलिन लेना पड़ता है.

मधुमेह या डायबिटीज के मरीज को हृदय संबंधी रोग के साथ-साथ कम उम्र में स्ट्रोक का खतरा भी पैदा हो जाता है. इसमें सबसे आम है टाइप-2 डायबिटीज. उसके बाद है टाइप-1 जेस्टेशनल डायबिटीज.

लक्षण

खून में शर्करा का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ने पर वजन घटना

बहुत अधिक प्यास लगना और बार-बार पेशाब आना आदि

टाइप-2 डायबिटीज

देश की 10 फीसदी आबादी को टाइप-2 डायबिटीज है. इलाज न करने पर इसके कारण आंखों, गुर्दे और नसों पर असर पडऩे लगता है.

धमनियां जल्दी बूढ़ी होने लगती हैं और ब्रेन स्ट्रोक के साथ दिल का दौरे की आशंका रहती है.

पैरों की ओर रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और पैर काटने तक की स्थिति भी आ जाती है.

इसलिए चेतावनी के शुरुआती संकेतों को समझना जरूरी है. मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप, बढ़ा हुआ लिपिड, मूत्र, शर्करा का असामान्य स्तर, हृदय रोग का पारिवारिक इतिहास है या पालिसिस्टिक ओवरी रोग या गर्भावस्था की स्थिति है तो डायबिटीज की जांच जरूर करवानी चाहिए.

गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज

महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज के टाइप-2 डायबिटीज में बदलने का अंदेशा रहता है.

डायबिटीज के इलाज

डायबिटीज के इलाज के लिए रहन-सहन में बदलाव, खानपान में संयम, कसरत के अलावा गोलियां/ इंजेक्शन या इंसुलिन लेना जरूरी है.

डायबिटीज के रोगियों को अत्यधिक कैलोरी वाली या शर्करा बढ़ाने वाली चीजें जैसे मिठाई, साफ्ट ड्रिंक से परहेज करना चाहिए. खाने के तेल की मात्रा प्रति माह प्रति व्यक्ति 500 मिलीलीटर तक सीमित करनी चाहिए.

दिनभर में चार या पांच बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कुछ न कुछ खाते रहना चाहिए. नियमित कसरत करें, खान-पान का ध्यान रखें और ध्यान लगाएं. आम, केला, अंगूर और चीकू जैसे कुछ फलों को छोड़कर सभी फल खाए और रोजाना तीस मिनट तेज चाल से चलना सबसे अच्छी कसरत है.

मधुमेह के इलाज के लिए दवाओं के आठ समूह हैं- बाइग्यूनाइड्स, सल्फोनाइल्यूरियस, मैग्लिटिनाइड्स, अल्फाग्लूकोजिडेज इनहिबिटर्स, पीपीएआर ए ऐगोनिस्ट, इन्क्रिटिन आधारित चिकित्सा (ग्लिप्टिन्स, जीएलपी-1ए), एसजीएलटी-2 रिसेप्टर इनहिबिटर्स (जल्दी ही भारतीय बाजार में मिलने लगेंगे) और इंसुलिन.

शर्करा के स्तर की नियमित जांच करें. शर्करा स्तर कम नहीं होना चाहिए.

रक्तचाप और कोलेस्ट्राल के स्तर को संतुलित रखें. रिफाइन्ड और दूसरे प्रोसेस्ड आहार की बजाए फाइबर से भरपूर आहार लें और

धूम्रपान न करें.

आंखों और पैरों का खास ख्याल रखें.

वजन संतुलित रखें. जरूरी पड़े तो वजन कम करने वाली दवा भी लें. अगर कोई और दवा फायदा नहीं कर रही हो तो इंसुलिन लेना जरूरी होगा.

डायबिटीज के रोगी इंसुलिन के नाम से ही डरते हैं.

इसकी वजह है इससे जुड़े तीन बड़े भ्रमः

पहला, इंसुलिन लेना एक बार शुरू कर दिया तो वापस गोलियों पर नहीं लौट सकते.

दूसरा, इंसुलिन के इंजेक्शन लगाने में दर्द होता है.

तीसरा, हाइपोग्लाइसीमिया यानी रक्त शर्करा में कमी आम है और इससे जान का खतरा हो सकता है.

लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है, गोलियां फिर से शुरू की जा सकती हैं, अगर इंसुलिन की शुरुआत उनके बेअसर रहने से न की गई हो या रोग ऐसी अवस्था में हो, जिसमें गोलियां नहीं ली जा सकतीं.

बालों को लंबा करना चाहती हैं तो अपनाइये ये उपाय

आप बालों को लम्बा करने की सोच रही हैं तो घबराइये नहीं क्योंकि अगर बालों की देखभाल के लिये थोड़ी सी मेहनत की जाए तो बाल अपेक्षाकृत सामान्य अवस्था से ज्यादा बढ़ते हैं और स्वस्थ भी रहते हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो स्वस्थ बाल एक महीने में आधा इंच तक बढ़ते हैं लेकिन बाल स्वस्थ नहीं हैं तो यह ग्रोथ कम भी हो जाती है.

आप जो खाते हैं उससे आपके बालों को पोषण मिलता है, इसलिए बेहतर डाइट बहुत जरूरी है. इसके लिए 8 से 10 गिलास पानी अनिवार्य रूप से पिएं और विटामिन, जिंक, सल्फर और रेशेदार भोजन को अपनी डाइट में शामिल करें.

क्लोरीन या नमकयुक्त पानी से बालों को बचाएं. स्विमिंग करें तो कैप जरूर पहनें. यह पानी भी बालों को रुखा बनाता है जिससे बालों में ब्रेकेज की समस्या हो सकती है.

रोज शैम्पू ना करें. हफ्ते में दो बार बाल धोना काफी है वो भी किसी माइल्ड या हर्बल शैम्पू से. ज्यादा शैम्पू से बाल रूखे और बेजान होते हैं और बालों के लिए जरूरी माइश्चर खत्म होता है.

गीले बालों में कंघी कभी न करें. इससे बालों की जड़ों पर खिंचाव होता है और हेयर फालिकल भी कमजोर होते हैं.

यह सच है कि ट्रिमिंग से बाल स्वस्थ होते हैं लेकिन इससे बाल बढ़ते हैं, यह गलत है. इसलिए जरुरत से ज्यादा ट्रिमिंग ना करें. इससे केवल दोमुहें बाल खत्म होते हैं.

स्ट्रेस कभी ना लें. तनाव में रहेंगे तो आपके बाल झडेंगे और कभी ग्रोथ भी नहीं कर पाएंगे.

बालों की अच्छी ग्रोथ के लिए जरूरी है उपाय

हफ्ते में एक बार गुनगुने तेल से स्कैल्प की मसाज से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है जो हेयर ग्रोथ और स्वस्थ बालों के लिए बेहद जरूरी है.

दिनभर में 2 से 3 बार बालों में कंघी करें. ज्यादा कंघी करने या एकदम कंघी ना करने से भी बालों पर प्रभाव पड़ता है. इससे बाल झड़ने लगते हैं.

घर से बाहर जाते समय अपनी त्वचा की तरह बालों को भी धूप से बचाएं.

विटामिन ए, बी, और ई के साथ ही अन्य जरूरी पोषक तत्व लें.

अच्छी नींद अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है. आप स्वस्थ रहेंगे तो हेयर ग्रोथ भी अच्छा रहेगा.

हफ्ते में एक बार हेयर मास्क का प्रयोग करें. इससे बालों को जरूरी पोषक तत्व मिलेंगे.

मास्क

मेथी दानों को रात भर पानी में भिगाकर रखे और सुबह उसका पेस्ट बनाकर बालों पर मेहंदी की तरह लगाएं.

अंडे के सफेद हिस्से में शहद और केला मिलाकर हेयर मास्क तैयार करें और बालों में लगाएं.

केला मसलकर बालों में मास्क की तरह लगाएं, यह मास्क भी बालों पर जादुई असर दिखाता है.

विदेश में अतिथि सत्कार

आमतौर पर एक गैस्ट को होस्ट करना हानि से अधिक लाभ पैदा करता है. यह अवसर गपशप, शहर की वास्तविकता साझा करने और समय व्यतीत करने के साथ आप की दोस्ती को बढ़ाता व गहरा करता है. अतिथि-मेजबान संबंध लोगों की भलाई के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. पहले के समय में संचार के साधन सीमित थे, इसलिए आगंतुक के लिए अपने आगमन की तिथि का पूर्वानुमान बताना संभव नहीं था. जिस के आगमन या प्रस्थान की कोई निश्चित तिथि नहीं थी, ऐसे व्यक्ति को चित्रित करने के लिए अतिथि शब्द गढ़ा गया था. परंतु, आजकल लोग मिलने या घूमने के लिए अपने देश से विदेश जाते हैं, इसलिए वहां के रीतिरिवाज जानना आवश्यक हैं.

भारतवासी आने वाले अतिथि का किसी भी समय सम्मान और शान से स्वागत करते हैं. भोजन के समय अतिथि को पहले खाने के लिए कहते हैं और पूछते हैं कि वह कुछ और चाहता है.  पेरू देश में भी अतिथि को पहले खाने के लिए कहा जाता है. परंतु अमेरिका में ऐसा रिवाज नहीं है. वहां खाना सब के लिए टेबल पर परोस दिया जाता है. एक पेरू निवासी ने मुझे बताया कि अमेरिका में एक बार वह अतिथि के रूप में इस बात का इंतजार करता रहा कि उस से खाने के लिए कहा जाएगा, परंतु ऐसा रिवाज न होने के कारण उसे भूखा ही उठना पड़ा.

विदेश के रिवाज के अनुसार, पहले आप को अतिथि के बजाय तिथि बनना पड़ता है, यानी पहले आप को मेजबान से पंजीकृत कराना पड़ता है. कितने सदस्य, किस तिथि से और कितने दिनों के लिए आना चाहते हैं और वे दिन होस्ट को स्वीकार हैं. अनपेक्षित रूप से अधिक दिन ठहरने पर मेजबान को परेशानी हो सकती है.  यदि आप बिना बताए किसी के यहां पहुंचते हैं तो कौलबैल या अदृश्य ताले वाला बंद दरवाजा आप का स्वागत करता है (इस विषय में पड़ोसी आप की कोई सहायता नहीं करता). होस्ट के लिए उपहार ले जाना भी आवश्यक है जैसे कि चौकलेट, फ्रूट बास्केट आदि. अपने पहुंचने से पहले उक्त पते पर होम डिलीवरी भी करवा सकते हैं.

अपने गंतव्य स्थान पहुंचने से पहले रास्ते में (या एयरपोर्ट से) कौल कर के मेजबान से पूछें कि स्टोर से ग्रोसरी की जरूरत है, एक गैलन दूध, एक दर्जन अंडे, बिस्कुट, ब्रैड आदि. इस से गरम नाश्ता बनाने के लिए मेजबान पर त्वरित बोझ नहीं पड़ेगा. मेजबान को पहले से किसी भी खाद्य एलर्जी के बारे में सूचित कर दें, यदि आप को विशेष आहार की जरूरत है तो ग्रोसरी साथ लाएं और अपना भोजन स्वयं तैयार करें.

आने की खबर करें

सप्ताहांत उत्सव के लिए उचित पोशाक ले जाएं ताकि आप को अपने मेजबान से कपड़े उधार न लेने पड़ें. अपने साथ पालतू जानवर न ले जाएं. यदि आप को छूत की बीमारी है तो स्वच्छता का ध्यान रखें. अगर आप बच्चों के साथ यात्रा करने वाले हैं और उन को कोई संक्रामक रोग, जैसे जुकाम हो जाता है तो अपनी यात्रा रद्द कर दें.  मेहमान के आने से पहले मेजबान सुनिश्चित करे कि कमरा साफ है, कमरे में स्वच्छ बिस्तर, कंबल, टीवी, घड़ी, कागज पैंसिल, पानी का जग, गिलास, हैंगर व आईना आदि हैं. अगर अतिथि बच्चों के साथ है तो छोटे मेहमानों का भी गरमजोशी से स्वागत करने के लिए एक नई कलरिंग बुक, क्रेयौंस, स्टिकर, किताबें और वीडियो बच्चों को आनंद लेने के लिए विशेष लगेगा. बाथरूम भी अतिथि रूम की तरह महत्त्वपूर्ण है, वह साफ हो और उस में अनिवार्य वस्तुएं रखें, जैसे साबुन, खाली गिलास, एक छोटी टोकरी में सैंपल साइज शैंपू, कंडीशनर, लोशन, टूथपेस्ट और तौलिया.

घर पहुंचने पर एक लंबाचौड़ा संविधान पालन करना अतिथि की विवशता होती है. उदाहरण के तौर पर वीकैंड पर 9-10 बजे के बाद चायनाश्ता. अतिथि को मेजबान से सुबह उठने, खाने और रात्रि को लाइट बंद करने का समय पूछना पड़ता है. अपने सामान को इस प्रकार रखें कि होस्ट को आनेजाने में दिक्कत न हो. यदि आप को अलग बैडरूम दिया गया है तो अपनी अनुपस्थिति में दरवाजा खुला रखें. मेजबान से हमेशा पूछ कर ही किसी चीज का उपयोग करना चाहिए. यदि आप गलत बटन दबाते हैं या गलत नौब घुमाते हैं तो उस का संभावित विनाशकारी परिणाम हो सकता है. इसलिए ध्यान से उपयोग करें और सुरक्षित रहें. बच्चों को अकेला न छोड़ें. होस्ट के पालतू जानवरों की ओर बहुत अधिक ध्यान न दें. मेजबान से पूछे बिना पालतू जानवरों को कुछ न खिलाएं.

यदि घर में केवल एक बाथरूम है तो होस्ट से पूछ लें कि आप के लिए इस का उपयोग किस समय सुविधाजनक है. शौचालय को हमेशा स्वच्छ रखें, फ्लश कर के ढक्कन नीचे डाल दें, बहस न करें कि ऐसा आप को पसंद नहीं है. बैठ कर टौयलेट करना फायदेमंद है. खड़े हो कर टौयलेट करना चाहते हैं तो पहले सीट को उठा कर रिम को साफ करें और बाद में वैसे ही वापस रख दें. लड़कियों को यदि टौयलेट सीट पर बैठना असहज लगता है तो वे पहले कागज से सीट साफ कर लें. मेजबान के सफेद तौलिए और चादर पर लिपस्टिक, काजल और मेकअप के स्थायी निशान न छोड़ें.

सुविधाओं का दुरुपयोग

घर में उन की भाषा बोलने का प्रयास करें. नल को टपकता न छोड़ें, सिंक और आईना साफ रखें. फर्श पर बाल न छोड़ें और काम समाप्त होने पर लाइट बंद कर दें. अपने कीचड़ से सने जूते दरवाजे के बाहर रखें. व्यायाम करने के बाद हमेशा स्नान करें. यदि शरीर पसीने से तर हो तो सोफे पर न बैठें. बाथरूम में रखे होस्ट के फैंसी तौलिए इस्तेमाल न करें.  जब तक कहा न जाए, उन की अलमारी में बहुमूल्य परफ्यूम, शैंपू, टूथपेस्ट, रेजर, बाल उत्पादों, लोशन आदि को न छेड़ें. मैले कपड़े जल्द से जल्द धोएं. हर रोज शावर लें परंतु कम समय के लिए. अधिक समय शावर लेने से बिजली का बिल बढ़ सकता है. यदि आप को स्नान के बाद खिड़की खोलने के लिए कहा गया है, तो बाथरूम से भाप निकलने और पेंट की रक्षा के लिए ऐसा करें. यदि आप बारबार स्नान करना चाहते हैं तो अतिरिक्त लागत के लिए उपयुक्त योगदान करें. कुछ टूटने पर उस आइटम को ठीक करवाएं या नकद भुगतान करें.

खाने के समय हमेशा रसोई में सहायता करें. यह विशेषरूप से महत्त्वपूर्ण है अगर आप के मेजबान फुलटाइम काम करते हैं. अगर आप का रिवाज है कि पुरुष घर का कामकाज नहीं करते तो भी अपनी सुविधा क्षेत्र के बाहर कदम रख कर घर के काम में योगदान करें. यदि होस्ट की अनुपस्थिति में उस की ग्रोसरी का उपयोग कर के खाना बनाते हैं तो होस्ट के लिए भी भोजन बनाएं. यह विशेषरूप से आवश्यक है कि आप बचा हुआ स्वादिष्ठ, आसानी से न बनने वाला और महंगा भोजन बिना होस्ट की अनुमति के न खाएं.  भोजन में आप अपनी पसंद का कोई आइटम बनाने की पेशकश कर सकते हैं. प्रश्न न करें, क्या यह और्गेनिक सब्जियां हैं? यदि आप एक शाकाहारी परिवार के अतिथि हैं तो उन की सेवा को हमेशा विनम्रता से स्वीकार करें और मेजबान का सम्मान करें. अगर एक विशेष प्रकार का भोजन आप की सांस्कृतिक या धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन है, तो कृपया अपने मेजबान को पहुंचने से पहले सूचित कर दें.

अपने मेजबान से पूछ कर ही उस के इंटरनैट या फोन का उपयोग करें. अपने मेजबान का कंप्यूटर उपयोग करते समय ध्यान रखें कि बस, अपने ईमेल की ही जांच करें और कंप्यूटर बंद कर दें. इस से उन के शैड्यूल में कम दखल होगा और बच्चों के होमवर्क आदि में बाधा नहीं पड़ेगी.  समूह में विनम्रता से हाथ के पीछे मुंह छिपा कर जम्हाई लें. नाक को अपनी आस्तीन के मोड़ से ढक कर छींकें. ध्यान आकर्षण करने के लिए किसी को छूने या गलती से किसी को छूने पर एक्सक्यूज मी बोलें. मेजबान के घर को होटल न समझें, रहने के लिए मुफ्त स्थान के अलावा कुछ और के लिए अपने होस्ट पर भरोसा न करें.

अगर आप अपने मेजबान के घर पर भोजन नहीं कर रहे हैं तो भी ग्रोसरी खरीदने के लिए निवेदन करें, आप को अभी भी टौयलेट पेपर की आवश्यकता है यह आमतौर पर मेजबान के लिए सब से भारी अतिरिक्त बोझ होता है. यदि लंबे समय तक रहना है तो ग्रोसरी के बिल की सहायता महत्त्वपूर्ण है. एक बार अपने मेजबान को खाने के लिए उस की पसंद के रेस्तरां में ले जाने की पेशकश करें. अगर मेजबान परिवहन प्रदान करता है तो कम से कम राउंड ट्रिप गैस के लिए भुगतान अवश्य करें. पहले मेजबान, बेजबान होता था, अतिथि की हर बात सहन करता था. याद रहे कि आप के मित्र की पत्नी आप की कुक या नौकरानी नहीं है और यदि उसे आप का व्यवहार पसंद नहीं है तो आप का मित्र आप को तुरंत वापस भेज देगा.

मेजबान से यह आशा न रखें कि उस के पास आप को घुमाने के लिए भी समय है. यदि आप की योजना स्थानीय जगहें देखने की हो तो वैकल्पिक रूप से किराए पर कार ले सकते हैं. यदि होस्ट आप को दर्शनीय स्थल दिखाने के लिए ले जाता है तो आप अपना प्रवेश भुगतान स्वयं करें. आप छुट्टी पर हैं परंतु आप का मेजबान नहीं, इसलिए अवांछित अतिथि बनने से बचें. कम ठहरना सुखद होता है तथा सब इस को अच्छा महसूस करते हैं.

बेन फें्रकलिन ने एक बार कहा भी था, ‘‘मछली और आगंतुक से 3 दिनों के बाद बदबू आने लगती है.’’

भोजन के समय दाहिने हाथ में चाकू और बाएं हाथ में कांटा (फोर्क) धारण करना अच्छा शिष्टाचार है. यदि आप ने दुर्गंध वाले लहसुन, प्याज या मूली के साथ खाना खाया है तो ब्रश जरूर करें. इस से दुर्गंध नहीं आएगी. अपने जूठे बरतन सिंक में न छोड़ें, खुद साफ करें. अगर आप महसूस करते हैं कि फर्श या कालीन गंदा है तो स्वयं द्वारा उसे साफ करने की पेशकश करें. सुबह में बहुत जल्दी उठ कर मेजबान को परेशान न करें, जोर से दरवाजा बंद न करें, आप के बैडरूम के बाहर रोशनी न जाए, इस बात का ध्यान रखें. यदि आप बहुत लंबे समय के बाद मिले हैं और कई रोमांचक कहानियां सुनाना चाहते हैं, तो भी होस्ट को देर रात न जगाए रखें. संगीत सुनने और टीवी देखने के लिए अपने इयरफोन साथ रखें ताकि मेजबान परेशान न हो.

घर से बाहर, हर समय अपना पासपोर्ट साथ रखें. यदि आप पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने गए हैं और भोजन के लिए देर हो चुकी है तो यह समझ कर घर पर भूखे न आएं कि आप का होस्ट भोजन के लिए इंतजार कर रहा होगा. ऐसे में बाहर भोजन कर लें और होस्ट के लिए भी पर्याप्त खाना लाएं. देर से लौटने पर अतिरिक्त शांत रहें, यदि आप को एक कुंजी दी गई है तो उस का उपयोग करें. यह सामान्य शिष्टाचार है कि अपने मेजबान की अनुमति के बिना घर पर अन्य लोगों को आमंत्रित न करें, इस से मेजबान पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ता है और असुविधा भी होती है. मेजबान से निजी धन, संपत्ति और वेतन के बारे में पूछना अशिष्ट और अपमानजनक है. मेज के नीचे हाथ रखना या टेबल पर कोहनी रखना अनुचित माना जाता है.

जाते समय स्थानीय पर्यटन स्थलों का भ्रमण और अन्य आकर्षणों की प्रशंसा करें. प्रवास के दौरान कभी भी गपशप में अपने मेजबान या परिवार के सदस्यों की आलोचना करना अनुचित है. यदि आप के मेजबान ने घर का बना भोजन खिलाया है तो प्रशंसा करना न भूलें. यदि आप के मेजबान ने आप के बच्चों के लिए खिलौने उपलब्ध कराए हैं तो वापस करना न भूलें. होस्ट के सामान का सम्मान करें और अपने मेजबान की जीवनशैली के अनुकूल चलें. इस के अलावा छोटे बच्चों के सामने अपनी भाषा के साथ बहुत सावधान रहें. अपने प्रवास के दौरान आप यह समझ गए होंगे कि आप के मेजबान की पसंद क्या है, अपना आभार प्रकट करने के लिए एक छोटा सा विदाई उपहार दें.

वापसी पर सामान की जांच कर लें, क्योंकि भूला हुआ सामान मेजबान को धन व्यय कर के भेजना पड़ेगा. शावर जेल की आधी खाली बोतलें, आईड्रौप और यात्रा पुस्तकें पीछे न छोड़ें. चादर, तौलिए आदि लौंड्री रूम में रख दें. आप के जाने के बाद मेजबान को ये सब धोने पड़ेंगे. मेजबान यदि हाउस क्लीनिंग सर्विस का उपयोग करता है तो उस का भुगतान करने के लिए धन प्रदान करें. यदि आप देररात या सुबह के समय में प्रस्थान कर रहे हैं तो आप मेजबान से हवाईअड्डे या बसस्टेशन पर छोड़ने की उम्मीद न रखें, जब तक कि वह स्वयं औफर न करे. घर पहुंच कर उन के आतिथ्य की सराह ना करते हुए एक कार्ड या ई-कार्ड भेज कर धन्यवाद करना न भूलें.

मध्यकालीन लंदन की गंदगी और आज का भारत

दृश्य 1 : दिल्ली के आईटीओ के पास स्थित डब्लूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन की बिल्ंिडग. कहने को तो इस बिल्ंिडग में दुनियाभर के स्वास्थ्य को दुरुस्त करने का काम जोरोंशोरों से निबटाया जाता है लेकिन बिल्ंिडग के ठीक पीछे बसी झुग्गीझोंपडि़यों में पसरी गंदगी और जमे कीचड़ को देख कर चिराग तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आती है.

झुग्गियों में बस रही आबादी या कहें जहरीली गंदगी के बीच सांस लेती सैकड़ों जिंदगियां मल, कीचड़ और दुर्गंधभरे नाले के किनारे बसी हैं, जिसे यमुना भी कह सकते हैं. पौलिथीन के टैंटनुमा बनीं इन झुग्गियों में न तो शौचालय की समुचित व्यवस्था है, न ही नहाने के ठिकाने हैं. हाल यह है कि जरा से परदे की ओट में खाना और पाखाना कार्यक्रम एकसाथ समाप्त किया जाता है. बदबू इतनी कि उस इलाके के पास से निकलने में ही बदन गंधा उठे. बारिश के दिनों का तो हाल ही मत पूछिए.

दृश्य 2 : उत्तर प्रदेश, हमीरपुर जिले का मौदहा कसबा. यहां के पूर्वी तारौस में साफसुथरा तालाब हुआ करता था. जहां आसपास के लोग नहाते और कभीकभार कपड़े भी धोते. कुछ ही दिनों में तालाब के आसपास आबादी बसने लगी और मकान बनने लगे. चूंकि मलनिकासी के लिए कोई सरकारी व्यवस्था मुहैया नहीं कराई गई और सीवर या ड्रेनेज सिस्टम न होने के चलते शौचालयों से निकलने वाला मल पाइपलाइन के जरिए तालाब में छोड़ दिया गया, इसलिए देखते ही देखते पूरा तालाब मानवमल और उस की दुर्गंध से भर गया. वहां नहाना तो दूर, पास से निकलना तक दूभर हो गया. लगातार बढ़ती दुर्गंध से बीमारियां फैलने लगीं. तालाब तो सूख गया लेकिन मल और कूड़ेकचरे के भंडार से पूरा इलाका हलकान है.

दृश्य 3 : कानपुर का जाजमऊ इलाका. यहां मृत जानवरों की खालें उतार कर चमड़ा बनाने का काम होता है. पूरे इलाके में बड़ेबड़े स्टोररूमनुमा हौल में ट्रक भरभर के जानवरों के मृत शरीर लाए जाते हैं. फिर इन की खालें निकाल कर बाकी बचे अवशेष को ट्रकों में भरा जाता है.  इस पूरी प्रक्रिया में बेतहाशा खून भी बहता है और बदबू की तो पूछिए ही मत. इस के बावजूद इस इलाके में न तो समुचित ड्रेनेज व्यवस्था है जिस से खून, अवशेष निकासी की जा सके और न ही दुर्गंध से निबटने के लिए वैंटीलेशन का कोई इंतजाम है.

यही है स्वच्छ भारत?

21वीं सदी और वर्ष 2017 में उपरोक्त दर्शाए गए सारे दृश्य प्रतिनिधि ने स्वयं देखे और भुगते हैं. यकीन मानिए ऐसे दृश्य देश के हर शहर, सोसाइटी, कसबे व झुग्गी बस्तियों में आम हैं. अगर देश की हवा में जहर घुल चुका है तो इस की वजह बेलगाम गंदगी के ढेर और इस से निबटने में सरकार व प्रशासन की नाकामी है.  दलितपिछड़ों की झुग्गीबस्तियों के हाल छोड़ दीजिए, महानगरों के संभ्रांत इलाके के बहुमंजिली भवनों की नालियां, सीवर और गटर सड़कों पर गंदगी बहा रहे हैं. अरबों रुपए सरकार गटर और मैला पानी साफ करने के संयंत्रों पर खर्च करती है, लेकिन उस का असर कहीं नहीं दिखता. सारा पैसा फाइलों में ही दबा रहता है. जितना बड़ा शहर उतने ही ज्यादा शौचालय व उतनी ही दूषित नदियां. दिल्ली में यमुना हो, चाहे बनारस में गंगा. जो नदियां हमारी मान्यता में पवित्र हैं वे वास्तव में गटर बन चुकी हैं.

सरकार ने दिल्ली और बनारस जैसे शहरों में अरबों रुपए खर्च कर मैला पानी साफ करने के संयंत्र स्थापित किए हैं, जो सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट कहलाते हैं. पर नदियां दूषित ही बनी हुई हैं. ये सब संयंत्र दिल्ली जैसे महानगर में गटर का पानी बिना साफ किए यमुना में उड़ेल देते हैं.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की धज्जियां उड़ाते उपरोक्त दृश्य हम सब को दिख जाते हैं लेकिन सरकार, सफाई के लिए जिम्मेदार संस्थान व विभाग आंख मूंद कर सोया करते हैं और कागजों में पूरा देश साफसुथरा नजर आता है.  सरकारी विज्ञापनों में झाड़ू मारते हुए नेता सिर्फ सड़कों पर गिरे पत्तों को साफ करते दिखते हैं. किसी नेता को गली में फैले कीचड़ या गटर से बाहर निकलते मल को साफ करते किसी ने देखा क्या? नहीं. सरकारी आंखों से देखें तो गंदगी के नाम पर देशभर में कुछेक पेड़ों से गिरे पत्ते हैं जो सरकारी लोग साफ कर चुके हैं. बाकी गंदगी देख कर न तो उन की नाक के बाल जलते हैं और न ही उबकाई आती है. आएगी भी कैसे, सरकारी अनुदान पर मिले बंगलों व एयरकंडीशंड कमरों की खिड़की से यह सब भला कहां नजर आता है.

देशभर के रिहायशी इलाके में जा कर देख लीजिए, ड्रेनेज सिस्टम ठप पड़ा है, सैक्टर की मार्केट हो या गली या लोकल बाजार, हाट सभी जगह ड्रेनेज सिस्टम ब्लौक है. गलियों में जलभराव की स्थिति बनी रहती है. मानसून का मौसम शुरू होते ही ठप ड्रेनेज सिस्टम से लोगों के घरों में गंदा पानी घुस जाता है. हालत यह है कि ड्रेनेज सिस्टम की सफाई के दौरान सफाई कर्मचारी कचरा वहीं पर छोड़ कर चले जाते हैं जो आने वाले समय में सड़ कर बीमारी व दुर्गंध का कारण बनता है. जगहजगह सीवर के गटर खुले हैं, जिन से बदबू व बीमारियां फैल रही हैं. रात के अंधेरे में ये गटर नजर नहीं आते और हादसे हो जाते हैं.

तब और अब का लंदन

ऐतिहासिक मानकों में आज लंदन शहर दुनिया का सब से साफसुथरा, बेहतरीन ड्रेनेज, सीवर सिस्टम से लैस और साफसुथरी नदियों के लिए जाना जाता है. आज लंदनवासी रोज नहाते हैं, घरों से कूड़ा समय पर कलैक्ट होता  है. लेकिन क्या आप को पता है कि  14-15वीं शताब्दी यानी मध्यकालीन दौर में लंदन से गंदी जगह शायद की कोई और रही हो.

गंदगी से निबटने के मामले में जो अपंगता आज भारत में दिखाई दे रही है वह कभी मध्यकालीन समय के लंदन में भी थी. आज जब लेखक डैन स्नो उस दौर के लंदन की गंदगी और दुर्गंधभरी तसवीर सामने रखते हैं तो यकीन नहीं होता कि तब का गंदा और बदबूदार लंदन आज दुनियाभर के पर्यटकों के लिए साफसुथरा मनोरम पर्यटन स्थल बन चुका है.  डैन के मुताबिक, मध्यकालीन समय में लंदनवासी दुर्गंध से भरे होते थे क्योंकि तब रोज नहाने का चलन नहीं था. पर्सनल सैनीटेशन पर ध्यान नहीं दिया जाता था. हालांकि, इस के पीछे वहां के भौगोलिक हालात भी जिम्मेदार थे. मसलन, नहाने के लिए नदियां ही एक मात्र जरिया थीं. लेकिन वे इतनी गंदगी से लबालब होती थीं कि उन में नहाना मुश्किल होता था. नदियों में मानव मल से ले कर कलकारखानों की गंदगी व रसायन जमा होते थे.

जाहिर है नदियों की हालत बेहद खराब हो जाती थी. बेहद ठंड के समय टेम्स जैसी नदी बर्फ में तबदील हो जाती थी तो नहाना और कपड़े धुलना असंभव हो जाता था ऐसे में लंदनवासी कई दिनों तक बिना नहाएधोए गंदे रहते और परफ्यूम्स से ही काम चलाते.  लंदन की गलियों का हाल तो इस से भी बुरा होता था. उस दौर में न तो सीवर व ड्रेनेज का सही सिस्टम था और नालियां भी प्रणालीबद्ध नहीं थीं. लिहाजा, घरों की गंदगी, कचरा, गोबर, मल आदि सब गलियों में पसरा रहता जिस से बीमारियां फैलतीं और राह चलना भी मुश्किल होता. हालत यह थी कि उस दौर में लोग पैटन (एक खास तरह के जूते जिन के तलों पर ऊंची लकड़ी का बेस लगा होता था ताकि सड़क की फैली गंदगी से पैर बचे रहें) इस्तेमाल करते थे.

लंदन के कसाईखानों की हालत तो इस से भी बदतर थी. जानवरों की खाल निकाल कर चमड़ा बनाने की प्रक्रिया में इतनी गंदगी और दुर्गंध फैलती कि सारा शहर दुर्गंध से पट जाता. फैक्टरियों का रसायन तो इस में उत्प्रेरक का काम करता. कई बार तो बदबू और गंदगी से पैदा होने वाली जहरीली गैसें मुंह तक जला देती थीं.  शौचालयों का हाल तो इस से भी बदतर था. अमीरवर्ग के घर से मल उठाने का काम गोंग फार्मर (मानव मल ढोने वाला तबका) करते थे. आज वही काम भारत में मैला ढोने वाले दलित करते हैं. इन्हें उस समय अच्छा मेहनताना मिलता था. रात में ये मल ढो कर कभी गड्ढों में जमा करते तो कभी नदियों में डाल देते और बारिश में कई बार यही गलियां मानव मल से भर जातीं.

कुल मिला कर उस दौर में लंदन सब से ज्यादा गंदा व बदबूदार शहर था. लेकिन ये हाल तब के हैं जब सीवर, ड्रेनेज और जलनिकासी की आधुनिक तकनीकें विकसित नहीं हुई थीं. समय बदला और अपनी मेहनत, तकनीक व कर्मण्यता के दम पर इस शहर ने अपनी गंदी और बदबूदार तसवीर को स्वच्छ लंदन में तबदील कर दिया. 

लंदन बनाम भारत

अब इतनी गंदगी में जरा सोचिए कि लंदन ने किस तरह से अपना अस्तित्व बचा कर रखा होगा. सिर्फ अस्तित्व बचा कर ही नहीं रखा, बल्कि समय के साथसाथ जलमल निकासी, गटर व ड्रेनेज सिस्टम से ले कर सीवर की आधुनिक तकनीक ईजाद की. पूरे शहर को न सिर्फ गंदगी से दूर कर सफाई की सिस्टमैटिक प्रणाली स्थापित की बल्कि आज लंदन की नदियों को दुनिया की सब से स्वच्छ नदियों में शुमार किया जाता है. हर घर से कूड़ा समय पर जमा होता है. वेस्ट मैनेजमैंट की नई तकनीकें ईजाद कर उन से गैस व अन्य सार्थक उत्पादन हासिल किए जा रहे हैं. ढकी हुई नालियां और शहर के नीचे बहते गटर दुर्गंध का नामोनिशान नहीं फैलने देते.

यही वजह है जो दुनियाभर के पर्यटक इस शहर की साफ व्यवस्था की मिसाल देते हैं. पे टौयलेट से ले कर सफाई की हर उस तकनीक का इस्तेमाल आज लंदन में होता है जो लंदन को क्लीनैस्ट सिटी बनाता है. मध्यकालीन दौर के सड़े, दुर्गंधभरे लंदन से आज के नीटक्लीन लंदन तक का सफर तय करने में वहां  की सरकार, सफाई विभाग और प्रशासन  की सक्रियता के साथ आमजन की साफसफाई को ले कर जागरूकता ने प्रमुख भूमिका निभाई.  यहां लंदन का प्रसंग इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि आज हम लंदन के उसी मध्यकालीन और गंदे दौर में जी रहे हैं जहां सिर्फ गंदगी ही गंदगी है. सीवर, ड्रेनेज, गटर और जलमल निकासी के कोई इंतजाम नहीं हैं. तब न बिजली थी, न स्टीम इंजन. तब तकनीक का नामोनिशान न था, पंप नहीं थे. पानी के पाइप नहीं थे. सीवर का पाइप बनाने की तरकीब नहीं थी. कूड़े को ढंग से जमाने की व्यवस्था नहीं थी. वाहनों के नाम पर घोड़े थे जो लोट कर सड़कों को गंदा करते थे. आज हमारे पास सब तकनीक है पर हम आज भी 14-15वीं शताब्दी के लंदन की तरह रह रहे हैं.

राजधानी में हर कोना गंदगी व बीमारी फैलाने वाले कचरे से भरा पड़ा है. किसी घर से कूड़ा समय पर नहीं उठाया जाता. यमुना नदी सिवा जहरीले कचरे के ढेर के कुछ नहीं रह गई है. कलकारखानों का कैमिकल यमुना को जहरीले नाले में तबदील कर चुका है. सरकार व सफाई महकमा सब देख कर भी आंखें बंद किए रहते हैं.  सोचने वाली बात यह है कि हम आज दुनियाभर से हर नई तकनीक, उन्नत हथियार और यहां तक कि चीनी कूड़ा तक आयात कर रहे हैं लेकिन अपने शहरों, कसबों, गलीमहल्लों के लिए लंदन सरीखी वह तकनीक आयात नहीं कर पाए जो देश को साफ रख सके. वहां के ड्रेनेज, सीवर और गटर से जुड़ी नई व्यवस्था व नई प्रणाली समझने लायक नहीं हो पाए.

आज भी देश में पिछड़े और दलित मानव मल ढोने को मजबूर किए जाते हैं. हम आज चांद पर जाने और मेक इन इंडिया के जुमले दोहरा कर खुद को विश्वशक्ति बताते फिरते हैं. प्रधानमंत्री दुनियाभर में देश का महिमागान कर लौटते हैं लेकिन अपने गलीमहल्ले की गंदगी साफ करने की कूवत नहीं है हम में. चीन से मुकाबला करने और पाकिस्तान को नेस्तानाबूद करने की भभकियां दे सकते हैं हम लेकिन देश में गंदगी से लड़ने की क्षमता विकसित नहीं कर पाए आज तक.

शौचालय से ज्यादा स्मार्टफोन

बात भले ही मजाक में कही जाती हो लेकिन सच है कि भारत में शौचालयों से ज्यादा स्मार्टफोन हैं. सरकारें मुफ्त वाईफाई और इंटरनैट डाटा देने की बात तो करती हैं लेकिन साफसफाई करने, नदियों को पूजापाठ और कर्मकांडों के कूड़ेकचरे से बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाती हैं.  जिन प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चे देश के भविष्य के लिए तैयार हो रहे होते हैं, वहां के शौचालयों के अंदर पानी के लिए बालटी और मग भी नहीं रखा जाता. मलमूत्रभरे शौचालयों में ही बच्चे शौच करने को मजबूर होते हैं. मुंह व मलद्वार के माध्यम से संक्रमण के चलते अमीबियासिस तथा जिआरडियासिस जैसी बीमारियां हो जाती हैं. लाखों लोग शहर और कसबों में शौच जाने के लिए जगह तलाशते हैं, रेलवे के ट्रैक तो मानवमल की गंदगी से पटे पड़े हैं ही.

यही हाल अस्पतालों का है. खासकर सरकारी अस्पतालों में उतनी गंदगी पसरी होती है कि अच्छाखासा आदमी वहां से दस बीमारियां ले कर लौटता है.  कहने को मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान का शिगूफा छोड़ रखा है और फिल्मी हस्तियां खानापूर्ति के नाम पर झाड़ू लगा चुकी हैं लेकिन समूचा  देश आज भी गंदगी के भंडार पर बैठा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान के लिए 9 नामीगिरामी हस्तियों को इस अभियान का अगुआ बनाया. इस प्रोजैक्ट के तहत हजारों करोड़ रुपए का बजट रखा तो गया लेकिन उत्तर प्रदेश से खबर आई कि यहां अफसरों और पंचायतीराज विभाग का सिंडिकेट पीएम के स्वच्छ भारत अभियान पर भारी पड़ रहा है.

करीब 3 हजार करोड़ रुपए के शौचालय घोटाले के खुलासे पर जांच तो बिठाई गई लेकिन उस का कोई नतीजा आज तक नहीं निकला. इस घोटाले में पूर्व विभागीय मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से ले कर तत्कालीन पंचायतीराज निदेशक डी एस श्रीवास्तव समेत तमाम नाम आए लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात. मध्य प्रदेश के उज्जैन में तो उज्जैन नगरनिगम के कर्मचारियों ने वृद्ध को ही मल साफ करने को विवश कर डाला. जबकि सफाई के नाम पर सरकारी वेतन यह विभाग खुद उठाता है.  ये हालात देख कर यह साफ हो जाता है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत सिर्फ स्वांग रचा गया जिस में न तो कोई ठोस सरकारी रणनीति अपनाई गई और न ही गंदगी से निबटने के लिए आमजन को इस अभियान से जोड़ने के लिए कोई खास सरकारी मशक्कत दिखी. फिर भी सरकार योजनाओं के ढेर पर बैठी खुद की पीठ थपथपाने से बाज नहीं आ रही है. 

हम बना सकते हैं स्वच्छ भारत

वैसे तो यह काम सरकार और निगमों का है क्योंकि हमारी मेहनत की कमाई जब टैक्स के तौर पर कटती है तब सरकारी संस्थानों में वेतन बनता है और सरकारी योजनाओं का फंड भी उसी से निकाला जाता है. इस के बावजूद अगर  देश साफ नहीं होता है तो हमें मोरचा संभालना होगा.  सरकारी स्वांग योजनाओं से इतर अगर हम अपनी मानसकिता बदल कर साफसफाई को ले कर जागरूक हो जाएं, देश को गंदगीमुक्त किया जा सकता है. सब से पहले तो हमें धार्मिक पूर्वाग्रहों से मुक्त होना पड़ेगा,  जहां यह बताया जाता है कि अपना कूड़ा साफ करने के लिए हमें दलित या पिछड़े वर्ग की जरूरत होगी. दक्षिण और पश्चिम एशिया के लोगों में अपने मलमूत्र के प्रति घृणा बहुत ज्यादा है. ये घृणा हमारे धार्मिक व सामाजिक संस्कारों में बस गई है.  अगर हम अपनी फैलाई गई गंदगी खुद ही साफ करने की आदत डाल लें तो इस समस्या से नजात मिल सकती है. देशविदेश में लोग अपना कूड़ा खुद साफ करते हैं. हम अपनी गली, महल्ले, सोसायटी की साफसफाई पर ध्यान रखना शुरू कर दें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें तो देश का एक बड़ा हिस्सा खुदबखुद गंदगी से मुक्त हो जाएगा.    अगर लंदन ने खुद को गंदगी के ढेर से हटा कर साफसुथरे शहर की छवि में कैद कर लिया है तो इस के पीछे की वजह है साफसफाई से जुड़ी उन्नत तकनीकों का प्रयोग. हमें इस मोरचे पर भी तैयार रहना होगा. कई देशों खासकर चीन, जापान, इंडोनेशिया में मलमूत्र को खाद बना कर खेतों में उपयोग करने की परंपरा रही है. हमारे यहां यह काम बड़े मानकों पर नहीं होता वरना हमें दोहरा लाभ होता. गंदगी से नजात मिलेगी और खाद व गैस का भी उत्पादन हो सकेगा.

इस के अलावा साफसफाई के काम से जुड़े श्रमिकों व कर्मचारियों के प्रति हमें अपने हेय दृष्टि से देखने वाले नजरिए को भी बदलना होगा. उन्हें उन के काम के एवज में सिर्फ धन देना काफी नहीं है. उन्हें उचित सम्मान भी देना होगा ताकि वे इस काम को ईमानदारी से करें.  कोई भी देश रातोंरात साफ या गंदा नहीं बनता. जैसे लंदन को मध्यकाल की गंदगी से निकलने में वक्त लगा, ठीक वैसे ही भारत को भी साफ होने में वक्त लगेगा. यह तभी संभव हो सकेगा जब हम लंदन और बाकी साफसुथरे देशों द्वारा अपनाए तरीकों, मेहनत व जागरूकता को अपना कर देश को साफ करने का संकल्प लें. वरना हम मध्यकालीन दौर के लंदन की गंदगी के जैसे ढेर पर यों ही बैठे रहेंगे और हमारी अगली पीढि़यां बीमार, सड़ेगले संक्रमित माहौल में सांस लेने को मजबूर रहेंगी

कंगना के खिलाफ कोर्ट जाएंगे आदित्य पंचोली

बौलीवुड एक्‍ट्रेस कंगना रनोट ने अपने बीते हुए कल पर एक बार फिर खुलकर बातचीत करते हुए ऋतिक रोशन व आदित्‍य पंचोली को आड़े हाथों लिया है. उनके इस इंटरव्‍यू के बाद कुछ लोग उनकी तरफ बोल रहे हैं तो कुछ का कहना हैं कि वो ये सब अपनी आने वाली फिल्‍म ‘सिमरन’ की पब्‍लिसिटी के लिए कर रही हैं. ऐसे में जिस पहले शख्‍स ने कंगना के इंटरव्‍यू पर प्रतिक्रिया दी है वह है आदित्‍य पंचोली. पंचोली ने पूरे मामले पर बातचीत करते हुए कहा है कि वो कंगना के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे.

एक हिन्दी चैनल में इंटरव्‍यू के दौरान कंगना ने आदित्‍य पंचोली के बारे में कहा था, उसने अपार्टमेंट तो मेरे लिए लिया था लेकिन उसमें मेरे ही दोस्‍तों को आने की इजाजत नहीं थी. यह एक तरह का हाउस अरेस्‍ट था. इसके बाद मैं उसकी बीवी से मिलने गई. उसकी बेटी मुझसे एक साल बड़ी है. मेरी फिल्‍म गैंगेस्टर रिलीज ही होने वाली थी. मैं नाबालिग थी. मुझे याद है कि किस तरह से मैं उनकी बीवी जरीना वहाब से मिली और उनसे कहा प्‍लीज, मुझे बचा लीजिए, मैं आपकी बेटी से भी छोटी हूं. मैं नाबालिग हूं और अपने घरवालों को भी नहीं बता सकती. उनकी बीवी ने मुझसे कहा, मैं तुम्‍हारी मदद नहीं कर सकती. वो घर के नौकरों व दूसरे लोगों पर हाथ उठाते हैं. वो इस वक्‍त घर पर नहीं हैं इसलिए हम आराम महसूस कर रहे हैं. उनका घर पर न होना हम सब के लिए अच्‍छी बात है.

कंगना पर पलटवार करते हुए आदित्‍य पंचोली ने कहा, कंगना पागल है. क्‍या आपने उसका इंटरव्‍यू देखा है, उसे देखकर ऐसा नहीं लगता आपको कि कोई पागल लड़की बात कर रही है? ऐसे कौन बात करता है? हम इंडस्‍ट्री में इतने सालों से हैं किसी ने कभी किसी के बारे में इस तरह बात नहीं की है. मैं क्‍या कह सकता हूं? वो पागल लड़की है. अगर आप कीचड़ में पत्‍थर मारोगे तो आपके ही कपड़े गंदे होंगे.

पंचोली ने कहा कि कंगना की बातों से मुझे बेहद दुख पहुंचा है, वह झूठ बोल रही है इसलिए मैं कानून की मदद लूंगा और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करूंगा. मुझे औरों के बारे में नहीं पता लेकिन उसने जो भी मेरे बारे में बोला, वो सब झूठ है. उसे बस ये साबित करना है कि जिसका जिक्र वो बार-बार कर रही है मैंने वो सबकुछ उसके साथ किया है. मेरे पूरे परिवार पर इसका बुरा असर पड़ रहा है. मैं और मेरी पत्‍नी दोनों ही उसके खिलाफ काननू का सहारा लेंगे.

आप भी बनाती हैं जूड़ा, तो हो सकता है नुकसान

अक्सर महिलाएं बालों के पसीने से परेशान होकर बालों में जूड़ा बना लेती हैं. कुछ महिलाएं फैशन के तौर पर भी जूड़ा बनाती हैं. लेकिन क्या आप जानती हैं कि जूड़ा बनाने से आपके बालों को नुकसान पहुंचता है. अगर नहीं तो आज हम आपको जूड़ा बनाने से होने वाले नुकसान के बारे में बताते हैं.

रूसी

बालों में हमेशा बन हेयरस्टाइल बनाने से बालों में रूसी होने की संभावना होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जूड़ा बनाने से हमारी स्कैल्प में औयल आ जाता है, जिससे रूसी हो जाती है.

कमजोर बाल

बालों में जूड़ा बनाने से बाल खिंचने लगते हैं, जिससे बालों की जड़ें कमजोर हो जाती है. इससे बाल टूटने लगते हैं और कमजोर हो जाते हैं.

रुखे बाल

बालों को बांधने से उनके रूखे होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इसलिए बालों को हमेशा बांधकर ना रखें.

जूएं

हमेशा बालों को बांध कर रखने से बाल औयली तो होते ही है, इसी के साथ इससे बालों में गंदगी भी जमा होती है. इससे जूएं होने का खतरा भी रहता है.

दोमुंहे बाल

बालों में हवा नहीं लगने के कारण व हमेशा जूड़ा बनाने के कारण बाल दोमुंहे हो जाते हैं. इसलिए आप भी आज से जूड़ा बनाना बंद कर दें.

बदबू

बालों को हमेशा बांधने से बालों में बदबू आने लगती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जूड़ा बनाने से हमारे बालों को हवा नहीं लगती है.

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