त्योहार धर्म के नहीं समाज के हैं

रोजमर्रा के आम जीवन में त्योहार सुखद परिवर्तन लाते हैं. आने वाले त्योहार को सोच कर ही मन में हर्षोल्लास तथा स्फूर्ति का संचार होने लगता है. परंपराओं व संस्कारों से घिरा हर त्योहार समाज और राष्ट्र के लिए कोई न कोई संदेश देता है, जैसे विजयदशमी असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता है, रक्षाबंधन का पावन पर्व भाईबहन के प्रेम और भाई का बहन की आजीवन रक्षा करने के संकल्प को याद करता है, ईद भाईचारे का संदेश देती है, रंगों का त्योहार होली हमें संदेश देता है कि हम आपसी कटुता व वैमनस्य को भूल कर अपने शत्रुओं से भी प्रेम करें और क्रिसमस संसार से अपराधों के अंधकार को दूर करने का संदेश देता है.  त्योहार का विचार मन में आते ही उत्सव का सा माहौल छा जाता है. किसी धर्म विशेष से जोड़ कर नहीं, बल्कि त्योहार को एक खुशी के रूप में मनाए जाने से सामाजिक एकता बढ़ती है. क्यों न ऐसे प्रयास किए जाएं जिन से त्योहारों का पर्याय केवल धूमधाम और प्रसन्नता हो, न कि धर्म की परिछाया.

सामुदायिक त्योहारों से रंगा विश्व : विश्व में कई जगह त्योहारों को धर्म से अलग कर, सामुदायिक तरीके से मनाने का रिवाज है. ब्राजील का कार्निवल जहां अनगिनत सजेधजे लोग सड़कों पर नाचतेगाते चलते हुए परेड निकालते हैं. स्पेन के ला टोमाटीना फैस्टिवल में सैकड़ों की आबादी में लोग एकदूसरे पर टमाटरों से वार कर खेलते हैं. कनाडा का हैलोवीन जिस में बच्चे आड़ेटेढ़े रूप धर कर घरघर जा कर ट्रिक या ट्रीट कहते हैं तो घर वाले उन्हें कुछ खाने के पकवान, चौकलेट आदि दे देते हैं वरना बच्चे दरवाजे पर खड़े हो, कुछ करतब दिखाते रहते हैं. आजकल तो बड़े भी भूतभूतनीचुड़ैल आदि बन हैलोवीन पार्टियां करते हैं. दक्षिण कोरिया में आयोजित मड फैस्टिवल में भाग लेने वाले सभी लोग कीचड़ में खेलते हैं. अमेरिका की थैंक्सगिविंग जहां सभी पारिवारिक सदस्य व मित्र किसी एक के घर पर एकत्रित होते हैं और साथ मिल कर भोजन करते हैं खासतौर पर अमेरिकी चिडि़या ‘टर्की’ का पकवान. लंदन में नौटिंगहिल कार्निवल, जो कि ब्राजील के कार्निवल की तरह का होता है, जहां सजेधजे लोग सड़कों पर नाचतेगाते हुए परेड निकालते हैं. थाईलैंड में सोंगक्रान के दौरान लोग पानी के गुब्बारों और फौआरों से खेलते हैं इत्यादि.

ये सभी त्योहार सामुदायिक ढंग से मनाए जाते हैं जहां पूरा ध्यान त्योहार की मस्ती पर होता है. मानने वाला किस धर्म को मानता है, या ईश्वर में विश्वास रखता है या नहीं, इन बातों से त्योहार के उल्लास पर कोई असर नहीं होता. बस, हर कोई हंसता है, नाचतागाता है, धूम मचाता है. लोग तैयार हो कर घरों से बाहर निकलते हैं, आपस में एकदूसरे को बधाइयां देते हैं, खातेपीते हैं, सड़कों पर नाचतेगाते हैं और त्योहार का भरपूर मजा लेते हैं.  विदेशों में सामुदायिक त्योहार आयोजित करने हेतु शहरविशेष की सरकारी संस्थाएं, गैरसरकारी संस्थाएं तथा महल्ला समितियां आपस में साझेदारी करती हैं. पूरे समाज में एकता की भावना प्रगाढ़ रहती है, अपने महल्ले, अपने शहर, अपने देश के प्रति गर्व और राष्ट्रभक्ति पनपती है. एक और बड़ा फायदा यह होता है कि वहां के पर्यटन में वृद्धि होती है जिस से आर्थिक लाभ होता है. सैलानी स्पेन जा कर ला टोमाटीना फैस्टिवल या बुलफाइट देखना चाहते हैं. दक्षिण कोरिया में मड फैस्टिवल और थाईलैंड में सोंगक्रान के कारण सैलानियों की भीड़ इन उत्सवों के दैरान काफी बढ़ जाती है.

त्योहारों को धर्म की जकड़ से मुक्त करना : क्रिसमस व अन्य ईसाई त्योहारों के अलावा लंदन में फरवरी माह में चीन का नववर्ष, मार्च में भारत की होली, जुलाई में ईद उल फितर पूरे हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं. और इन्हें केवल धर्मविशेष के लोग ही नहीं, बल्कि पूरा शहर वहां हो रही मस्ती, मुफ्त प्रदर्शन, सड़कों पर नाचगाना आदि का लुत्फ उठाता है. ऐसे ही चीनी त्योहारों के साथसाथ चीन में भी हैलोवीन, वैलेंटाइन डे, थैंक्सगिविंग और क्रिसमस जैसे पश्चिमी त्योहार एकता के साथ मनाए जाते हैं. जापान में भी क्रिसमस पूरे जोशोखरोश से मनाया जाता है जबकि वहां ईसाइयों की संख्या बेहद कम है.  भारत के रोशनीभरे त्योहार दीवाली की भांति कई देशों में अलगअलग मौकों पर आतिशबाजी की जाती है. किंतु जहां हमारे समाज में यह आतिशबाजी हर परिवार अलग रूप से करता है जिस का नतीजा अधिक गंदगी, अधिक प्रदूषण और आपसी होड़ बन कर रह जाता है, वहीं दूसरे देशों में यह आतिशबाजी सामुदायिक तौर पर की जाती है जिस का सभी वर्ग के लोग साथ में आनंद उठाते हैं.

भारत में भी हैं सामुदायिक त्योहारों के उदाहरण : हमारे समाज में भी कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें हम छोटेमोटे त्योहारों के रूप में देख सकते हैं- ओलिंपिक खेल, क्रिकेट या फुटबाल का मैच, कुश्ती, दंगल, दिल्ली में हाल ही में शुरू हुई नई संकल्पना ‘राहगीरी’ जिस में बहुत सुबह लोग सड़कों पर पहुंच कर भिन्न प्रकार के खेल खेलते हैं, नाटक देखते हैं, धुनों पर नाचते हैं. हमारे राष्ट्रीय पर्व जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती, शिक्षक दिवस, बाल दिवस आदि को सभी धर्मों, जातियों व संप्रदायों के लोग मिलजुल कर खुशी के साथ मनाते हैं.  त्योहारों को समाज के सभी वर्गों के साथ मनाने से सामाजिक एकता में प्रगाढ़ता आती है. जिन त्योहारों में किसी धर्म का हस्तक्षेप नहीं होता उन्हें मनाने में सभी भारतीयों में कितनी राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार होता है. लगभग हर कोई अपने फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सऐप पर राष्ट्रीय ध्वज की तसवीर लगा देता है और अपने अंदर भारतीय होने पर गर्व अनुभव करता है. ऐसे उत्सवों में पंडा, मुल्ला, पादरी का कोई हस्तक्षेप नहीं होता, इसलिए ये धर्म की दृष्टि से समाज को विभाजित करने में अक्षम हैं.

धर्म और त्योहार का संबंध : प्रकृति है तो इंसान, पशु, पक्षी, जलप्राणी सभी उसी की देन हैं. तो कोई जानवर त्योहार क्यों नहीं मनाता, पंछी उत्सव क्यों नहीं मनाते? त्योहार मनाने का सिद्धांत केवल मनुष्य में ही क्यों है? त्योहार खुशी और उल्लास के लिए हमारे जीवन में आते हैं. यदि हम ये मानते हैं कि त्योहार इंसान ने स्वयं बनाए हैं तो त्योहार में खुशी, उल्लास, जोश से अधिक धर्म की भावना क्यों? आखिर त्योहारों का धर्म से इतना गहरा नाता क्यों है?

 इस का सीधा सा उत्तर है कि धर्म के ठेकेदारों ने अपनी दुकान चलाए रखने हेतु पूरे वर्ष कोई न कोई त्योहार बना दिए? एक न एक त्योहार आते रहें जिन्हें मनाने के लिए आम आदमी को पंडेपुजारी, पादरीमौलवी की जरूरत पड़ती रहे. हर त्योहार में उल्लास से अधिक जोर उसे मनाने की जटिल प्रक्रिया पर हो ताकिआम आदमी स्वयं ही आसानी से त्योहार न मना पाए, बल्कि उस के रीतिरिवाजों में उलझ कर पंडे, मुल्ला व पादरी का रास्ता देखता रहे. त्योहार हमारे लिए खुशियां लाता है, आने वाले समय में हमें उन से लाभ मिले, ऐसे प्रलोभन दे कर पंडे, पुजारी, पादरी व मौलवी भिन्न प्रकार के पूजापाठ करवा कर अपनी जेबें भरते रहते हैं.

हर धर्म ने अंधविश्वास फैला कर टोनेटोटकों के सहारे प्राइवेट जिंदगी में घुसपैठ कर रखी है. मुसलमानों में गंडातावीज में विश्वास, हिंदुओं में नजर से बचने के लिए काला टीका लगाना, ईसाइयों में होली वाटर में विश्वास आदि रोजमर्रा की कुछ बातों से अंधविश्वास का हमारे जीवन में कितना असर है, यह आसानी से पता चलता है. मुसलमानों में बीमारी में झाड़फूंक करवाना, हिंदुओं में कालसर्प योग की लंबीचौड़ी पूजा इत्यादि से धर्म के पुरोहितों का धंधा चलता रहता है.  धर्म से जुड़ाव के कारण सामाजिक एकता को खतरा : त्योहारों के साथ किसी न किसी धर्म के जुड़े होने से भारत में कितनी बार सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं. फिर चाहे मार्च 2015 में मथुरा-वृंदावन-बरसाना की गलियों में होली के त्योहार के दौरान दंगे और झड़पें हों या गोरखपुर के रसूलपुर में जुमे की नमाज और होली का त्योहार एक ही समय पर मनाए जाने पर हिंदूमुसलमानों में टकराव हो, या फिर जून 2016 में हिंदूमुसलमान दंगे भड़काने की नीयत से रमजान के पावन महीने में हैदराबाद की चारमीनार के बगल में स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर में गोमांस रखने की साजिश.

हमारे भारतीय त्योहार जैसे रक्षाबंधन जिस की शुरुआत हिंदूमुसलमान भाईबहन की एकता से हुई, या फिर दीवाली के मेले, या होली का रंगभरा त्योहार सामुदायिक तरीके से मनाए जा सकते हैं. ईद की खीर साथ मिल कर खानी हो या क्रिसमस का केक, सामुदायिक तरीके से किसी भी त्योहार को देखने में जो आनंद है वह धर्म के चश्मे के पीछे से देखने में नहीं. त्योहारों के पीछे की मूल भावना को जो समझ सकेगा, वो यही कहेगा कि त्योहार समाज के हैं, धर्म के नहीं.

मां का दूध है बच्चे के लिए सबसे बढ़िया

मां का दूध बच्चों के लिए सबसे अच्छा होता है. हाल ही में किये गये एक रिसर्च के मुताबिक ये बच्चों का ना सिर्फ विकास करता है बल्कि बच्चों को इंफेक्शन से होने वाली बीमारियों से भी बचाता है.

शोधकर्ताओं ने रिसर्च में पाया था कि गर्भवती महिलाओं में ग्रुप बी स्ट्रेप बैक्टीरिया होते हैं और ये जर्म्स ब्रेस्टफीडिंग के जरिए नवजातों में चले जाते हैं. लेकिन चूंकि अधिकांश नवजात इस ग्रुप बी स्ट्रेप बैक्टीरिया की चपेट में आने से बच जाते हैं, इसलिए शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए रिसर्च किया कि मां के दूध में ऐसा कौन सा तत्व पाया जाता है, जो बच्चों में इन बैक्टीरियों से लड़ने का काम करते हैं.

फिर उनके द्वारा किये गये रिसर्च में पता चला कि मां के दूध में एक खास किस्म का शक्कर पाया जाता है, जो नवजातों की खतरनाक बैक्टीरियों से रक्षा करती है. दुनियाभर में गर्भवती महिलाओं में पाया जाने वाला ग्रुप बी स्ट्रेप बैक्टीरियम नवजातों में गंभीर इंफेक्शन पैदा करके उनमें सेप्सिस या निमोनिया जैसी गंभीर बीमारियां होने का खतरा पैदा करता है. नवजातों का इम्यून सिस्टम पूरी तरीके से विकसित नहीं हो पाता इसलिए इंफेक्शन के बढ़ने से बच्चों की मौत भी हो जाती है.

रिसर्च में सामने आया कि मां के दूध से मिलने वाला शक्कर एक एंटीबायोफिल्म की तरह काम करता है. मां के दूध में पाए जाने वाले इस तत्व की यह सबसे अविश्वसनीय खासियत है कि इसमें टाक्सिंस बिल्कुल नहीं होते, जैसा कि अन्य एंटीबायोटिक्स में होता है.

हम बने तुम बने एकदूजे के लिए

पति पत्नी का रिश्ता बड़ा ही खूबसूरत रिश्ता होता है. आजकल अपना हमसफर तलाशते समय जहां युवकयुवतियां अपने जीवनसाथी के लिए सुंदरता, कैरियर, लंबाई, मोटाई जैसे अनेक मानदंड निर्धारित करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन के लिए सिर्फ आंतरिक सौंदर्य और गुण ही माने रखते हैं. अनुपम तिवारी और उन की पत्नी निधि तिवारी की जोड़ी को देख कर सहसा इस कहावत पर यकीन भी होने लगता है. इन का वैवाहिक जीवन इस बात का प्रतीक है कि किसी भी प्रकार की शारीरिक अक्षमता व्यक्ति के आंतरिक गुणों से बढ़ कर नहीं हो सकती.

विवाह से पूर्व यदि लड़का या लड़की को अपने होने वाले जीवनसाथी के बारे में यह पता चलता है कि उस के होने वाले जीवनसाथी को कोई ऐसी बीमारी है, जो विवाहोपरांत उन के समस्त जीवन को ही प्रभावित कर देगी तो आमतौर पर विवाह से इनकार कर दिया जाता है. परंतु निधि तिवारी को तो विवाह से पूर्व ही पता था कि उन के पति को आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिस में उन की आंखों की रोशनी दिनप्रतिदिन कम हो कर एक दिन पूरी तरह समाप्त हो जाएगी. इस के बावजूद उन्होंने अपने परिवार वालों की इच्छा के विपरीत जा कर उन से विवाह किया. आज दोनों अपने वैवाहिक जीवन के 27 वर्ष पूरे कर चुके हैं. अनुपम तिवारी की आंखों की रोशनी पूरी तरह समाप्त हो गई है पर इस से उन के खुशहाल वैवाहिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ा है. अनुपम एक छोटी फैक्टरी के मालिक हैं और उन की पत्नी निधि तिवारी वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक काउंसलर हैं. उन की एक खूबसूरत बेटी है, जो एमबीए कर रही है. आइए, जानते हैं उन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक और प्रेरणास्पद बातें:

कैसे मुलाकात हुई आप दोनों की?

निधि: मेरी ननद ने मिलवाया था हम दोनों को.

अनुपम: मेरी मामीजी इन के पापा को जानती थीं. वे ही रिश्ता ले कर आई थीं. दीदी की सहेली इन्हें जानती थीं. अत: वे ही इन्हें मुझ से मिलाने लाई थीं.

कैसा लगा मिल कर?

निधि: मैं मनोविज्ञान की छात्रा थी. अत: इन से मिल कर मुझे लगा कि जिंदगी से निराश हो चुके हैं, परंतु अपने कारण किसी को परेशान नहीं करना चाहते.

अनुपम: मामीजी जब रिश्ता ले कर आईं तो इन के मातापिता तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थे, जो स्वाभाविक भी था, क्योंकि कोई भी मातापिता एक नेत्रहीन से अपनी बेटी का विवाह नहीं करना चाहेंगे. 1 साल तक बात आईगई हो गई. फिर एक दिन अचानक दीदी अपनी सहेली के साथ इन्हें मुझ से मिलाने ले कर आ गईं. यकीन मानिए आधे घंटे तक हम ने अकेले में बातें कीं पर मैं ने इन्हें नजर उठा कर देखा तक नहीं.

ऐसा आप ने अनुपम में क्या पाया कि सब के विरोध के बावजूद इन से ही विवाह किया?

निधि: एक सच्चा, सरल, सहज और अति संकोची इनसान जो जिंदगी की वास्तविकता से कोसों दूर था, जिस के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था अपने कारण किसी को परेशान न करना. बस इन की इसी मासूमियत पर मैं फिदा हो गई.

अनुपम: मैं तो इस शादी के लिए तैयार ही नहीं था पर एक दिन मेरी मां ने पापा की बीमारी का हवाला देते हुए अपना आंचल फैला दिया कि विवाह के लिए हां कर दो तो मैं मजबूर हो गया और कहा कि आप जहां चाहें वहां मेरा विवाह कर दें. मैं तैयार हूं. दरअसल, मैं अपने कारण किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता था.

आप दोनों के विवाह पर परिवार वालों की प्रतिक्रिया कैसी थी?

निधि: मेरे मातापिता इस विवाह के सख्त खिलाफ थे पर मैं ने उन से प्रश्न किया कि यदि विवाह के बाद मुझे कोई बड़ी और लाइलाज बीमारी हो गई, तो क्या मेरे पति मुझे छोड़ देंगे? बस इस प्रश्न पर वे निरुत्तर हो गए.

अनुपम: मेरे परिवार वालों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, क्योंकि हर मातापिता की तरह उन्होंने भी मेरे विवाह के सपने संजोए थे और आज उन के सपने पूरे होने जा रहे थे.

अब जबकि अनुपम की आंखों की रोशनी पूरी तरह समाप्त हो चुकी है, तो आप दोनों नातेरिश्तों को कैसे मैनेज करते हैं?

निधि: चूंकि मेरी ससुराल यहीं है तो आमतौर पर अधिकांश उत्तरदायित्व मैं अपने सासससुर की मदद से निभाती हूं पर हां जहां आवश्यक होता है मैं इन्हें भी अपने साथ ले जाती हूं.

अनुपम: अधिकांश जिम्मेदारियां ये स्वयं ही निभा लेती हैं.

सासससुर ने अपने व्यवहार या बातों से कभी जताया कि आप ने उन के बेटे का जीवन बना दिया?

निधि: मेरे सासससुर बेहद नेकदिल हैं. वे अकसर महसूस कराते हैं कि आज उन के बेटे का जीवन बनाने वाली मैं हूं. पर मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं ने तो जानबूझ कर विवाह किया था, क्योंकि मुझे लगता है कि केवल एक बीमारी के कारण इनसान के सारे गुणों को नकार देना कहां का न्याय है?

क्या विवाह के बाद आप दोनों को अपनी ससुराल में वही मानसम्मान प्राप्त हुआ, जो एक दामाद और एक बहू को मिलता है?

निधि: बिलकुल. ये घर के बड़े बेटे हैं, इसलिए मुझे हमेशा बड़ी बहू का ही मान मिला.

अनुपम: अपनी ससुराल से मुझे कोई गिलाशिकवा नहीं रहा. शुरू में अवश्य इन के पिताजी तैयार नहीं थे, परंतु विवाह हो जाने के बाद कभी दूसरे दामाद और मुझ में कोई फर्क नहीं किया. यहां तक कि 27 साल के वैवाहिक जीवन में कभी आंखों के बारे में बात तक नहीं हुई.

कभी अपने निर्णय पर दोनों को पछतावा हुआ?

निधि: पछतावे का तो प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि विवाह का निर्णय मेरा अपना था. किसी का कोई दबाव नहीं था.

अनुपम: कभी नहीं, क्योंकि मैं तो विवाह ही नहीं करना चाहता था. आज इन के कारण ही मैं एक पिता और पति हूं.

विवाह होने के बाद स्वयं में कितना बदलाव किया दोनों ने?

निधि: मैं जब विवाह के बाद ससुराल आई तो उस समय अनुपम एकदम पैंपर्ड चाइल्ड थे. मातापिता के प्यारे, बेचारे को दिखता नहीं है, इसलिए हर कार्य कर दिया जाता था यानी सब की दया के पात्र. मैं ने आ कर सब से पहले इन के खोए आत्मविश्वास को जगाया. अपने स्वयं के सारे कार्य इन्हें खुद करने के लिए प्रेरित किया ताकि ये स्वयं को एक सामान्य इनसान समझ सकें. आज अपने सारे कार्य स्वयं करने के साथसाथ ये पानी भरना, खाना गरम करना, फ्रिज में खाना रखना जैसे सभी कार्य खुद करते हैं.

अनुपम: सही कहा इन्होंने. मेरे मातापिता तो सदैव मेरे भविष्य को ले कर चिंतित रहते थे. इन्होंने मुझे इनसान बना दिया. मैं तो फकीरी अंदाज में रहता था. बढ़े बाल और दाढ़ी, अस्तव्यस्त कपड़े, स्लीपर डाल कर निकल जाता था पर इन्होंने मुझे ढंग से रहना सिखाया. मैं कहीं आताजाता नहीं था पर इन्होंने मुझे हर जगह जाना सिखाया.

आप के विवाह के समय आप के दोस्तों और नातेरिश्तेदारों की क्या प्रतिक्रिया थी?

निधि: हमारा समाज इस प्रकार की बातों को जल्दी हजम नहीं कर पाता. इसलिए सब से पहली प्रतिक्रिया तो यही थी कि जरूर लड़की में कोई खोट होगा, जो जानबूझ कर ऐसे लड़के से विवाह कर रही है. दूसरे सभी ने इसे बेमेल शादी कहते हुए इस की सफलता पर ही संदेह व्यक्त किया था. पर आज 27 साल के बाद सभी चुप हैं.

अनुपम: मेरे घर में तो सभी बेहद खुश थे. हां, कुछ लोग एक अंधे व्यक्ति को इतनी योग्य और खूबसूरत जीवनसाथी पाते देख कर हैरत में अवश्य थे.

कभी अपने विवाह को ले कर कोई अफसोस होता है?

निधि: इन्हें ले कर तो कभी कोई अफसोस नहीं होता पर हां चिंता अवश्य होती है इन की. सोचती हूं कि इन्हें इतना आत्मनिर्भर बना दूं कि यदि कभी मैं इन से पहले चली गई, तो भी इन्हें कोई दिक्कत न हो.

अनुपम: अकसर होता है कि मैं इन्हें और बेटी को वह जीवन नहीं दे पा रहा जो एक सामान्य व्यक्ति देता है. मैं कभी इन्हें ले कर घूमने नहीं जा पाता, क्योंकि आजकल के खराब जमाने में एक सामान्य आदमी तो अपनी बेटी को बचा नहीं पा रहा मैं अंधा क्या बचाऊंगा.

घर के आर्थिक मामले कैसे निबटाते हैं?

निधि: हम ने घर की आर्थिक जिम्मेदारियां आपस में बांट ली हैं जिन्हें मैं और ये मिल कर पूरा कर लेते हैं.

अनुपम: स्वाभाविक रूप से मैं उतना अच्छा जीवन तो नहीं दे पा रहा हूं जितना देना चाहता हूं पर हां मेरी फैक्टरी और इन की तनख्वाह से मैनेज हो जाता है. किसी बात की कमी नहीं रहती.

अपनी सैक्सुअल रिलेशनशिप के बारे में कुछ बताएं?

इस प्रश्न का उत्तर दोनों एकसाथ हंसते हुए देते हैं, ‘‘हमारी खूबसूरत बेटी अनुकृति हमारे स्वस्थ संबंधों की प्रतीक है.’’

सांवली सूरत पर भेदभाव क्यों

ब्रिटेन में एक युगल को गोद लेने का अधिकार खोना पड़ा, क्योंकि वह युगल सिख है और भारतीय मूल का है. वह युगल गोरे बच्चे को गोद लेना चाहता था, लेकिन गोद एजेंसी के अधिकारियों ने सिख युगल से भारत में ही किसी बच्चे को गोद लेने को कहा.  ऐसा नहीं है कि इंटररेशियल गोद लेने पर पाबंदी है. सैकड़ों भारतीय बच्चे गोरे मातापिताओं की गोदों में जा कर यूरोप व अमेरिका में रह रहे हैं और उन की भाषा, व्यवहार, सोच बिलकुल वहां के वातावरण की तरह है, क्योंकि वे बचपन से उसी माहौल में रह  रहे हैं.  प्रश्न है कि वह सिख दंपती आखिर क्यों गोरा बच्चा ही गोद लेना चाहता था? अगर उस का कारण अपनी नस्ल सुधारना नहीं है तो क्या है?

हम भारतीय आमतौर पर गोरों की रंगभेद नीति का पुरजोर विरोध करते हैं पर जो भेदभाव हमारे यहां गोरेकाले में है वह शायद अमेरिका में भी नहीं है, जहां काले अफ्रीका से गुलामों की तरह लाए गए थे.

हमारे देश में निम्न जातियों में अधिकांश काले ही हैं और हमारे गोरेपन के पागलपन के पीछे कारण यह है कि काले को नीची जाति का समझा जाता है. अगर ऊंची जातियों में आनुवंशिक कारणों से काले रंग का बच्चा पैदा हो जाए तो उसे जीवन भर हीनभावना से ग्रस्त रहना पड़ता है और यह उस के मानसिक व आर्थिक विकास में आड़े आता है. उसे आमतौर पर साक्षात्कारों में कम अंक मिलते हैं.

विवाह के समय तो रंग काफी महत्त्व की बात मानी जाती है.  सांवली सूरत मोहक नहीं होती, ऐसा नहीं है. कुछ समय पहले तक देश की अधिकांश नर्तकी वेश्याओं का रंग काला ही होता था, क्योंकि वे उन जातियों से आती थीं जहां काले रंग वाले ही होते थे. दक्षिण भारत से कितने ही मेधावी विचारक, वैज्ञानिक, लेखक काले थे पर फिर भी उन्हें गोरों के मुकाबले की जगह नहीं मिली.  ब्रिटेन के सिख युगल को एक तरह से सही उत्तर दिया गया कि जो समाज इतना रंगभेदी है, उसे भला गोरे क्यों प्रोत्साहित करें. फिर गोरे खुद भी तो रंगभेद में विश्वास करते हैं. सदियों से साथ रहने के बावजूद वे कालों को अपने में मिलाने को तैयार नहीं हैं.

बच्चों के लिए बनाएं वेज लौलीपौप

बच्चे सब्जियां नहीं खाना चाहते हैं और उन्हें ये समझाना भी मुश्किल होता है कि सब्जी खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलता है. अगर आपका बच्चा भी सब्जियां नहीं खाता है तो आप उसे वेज लौलीपौप बनाकर खिलाएं. वेज लौलीपौप बनाने में काफी सारी सब्जियों का प्रयोग किया जाता है, आइए आपको बताते हैं वेज लौलीपौप बनाने की विधि.

सामग्री

आलू – 1 (उबला हुआ)

फ्रेंच बीन्स – 1/2 कप (बारीक कटा हुआ)

गाजर – 1 (कददूकस किया हुआ)

हरा प्याज – 2 (बारीक कटा हुआ)

पत्ता गोभी – 1/2 कप (बारीक कटी हुई)

धनिया पत्ता -1/2 कप (बारीक कटा हुआ)

हल्दी पाउडर – 1/4 चम्मच

धनिया पाउडर – 1 चम्मच

लाल मिर्च पाउडर – 1/4 चम्मच

अदरक-लहसुन पेस्ट – 1/2 चम्मच

ब्रेड क्रम्बस – 11/2 कप

सौंफ – 1 चम्मच

टूथ पिक

मैदा – 1 चम्मच

तेल – तलने के लिए

नमक – स्वादानुसार

विधि

मिक्स वेज लौलीपौप बनाने के लिए सबसे पहले एक बड़े कटोरी में आलू मैश कर लें. अब इसमें फ्रेंच बीन्स, गाजर, हरा प्याज, पत्ता गोभी और धनिया पत्ता डालकर मिला लें.

इसके बाद अदरक-लहसुन का पेस्ट, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, नमक और आधा कप ब्रेड क्रम्बस डालकर सबको मैश कर लें. इसे ढक कर रख दें.

अब एक दूसरी कटोरी में मैदा लें और थोड़ा सा पानी मिलाकर घोल तैयार कर लें. घोल को अच्छी तरह मिलाएं ताकि गांठ न रहे.

अब एक प्लेट में बाकी का ब्रेड क्रम्बस लें. उसमे सौंफ मिला लें.

अब तैयार मिक्सचर से थोड़ा सा मिक्सचर लें और हथेलियों की सहायता से छोटे-छोटे बौल बना लें. बौल बन जाने के बाद उसे मैदा के घोल में डूबा लें.

अब उसे घोल से निकालकर ब्रेड क्रम्बस में डालें और लपेट लें. इस प्रकार एक-एक करके सारे बौल्स तैयार कर लें.

अब गैस पर कड़ाही रखकर तेल गरम करें. तेल गरम होने पर इसमें एक साथ चार-पांच बौल्स डालकर तलें. तलते समय बार-बार पलटते रहें.

अच्छी तरह तल जाने के बाद बौल्स को एक प्लेट में निकाल लें. इस प्रकार आपकी वेज बौल्स तैयार हैं.

अब इन बौल्स में टूथ पिक सेट करें और क्रिस्पी मिक्स वेज लौलीपौप बना लें.

बालों में कंघी करने का सही तरीका जानती हैं आप

हम सभी अपने बालों से बेहद प्‍यार करते हैं और इन्हें लम्बे, शाइनी और खूबसूरत बनाए रखने के लिए कई अलग-अलग तरीकों का इस्‍तेमाल भी करते हैं. लेकिन प्रदूषण और रसायनों की वजह से बाल अपनी प्राकृतिक चमक खोने लगते हैं.

इस समस्‍या से छुटकारा पाने के लिए हम कई प्राकृतिक नुस्‍खे और दवाओं का प्रयोग करते हैं. बहुत प्रयास करने के बाद भी कई बार हम अपने बालों को झड़ने और खराब होने से बचाने में विफल हो जाते हैं और हमारे बाल लगातार गिरते रहते हैं और कभी-कभी बालों का झड़ना बहुत ज्‍यादा हो जाता है.

हम लगातार कुछ ऐसी गलतियां करते हैं जिसके बारे में हमें पता नहीं होता. इन्हीं गलतियों में से एक है बालों में कंघी करना. आपको शायद पता नहीं लेकिन बालों को गलत तरीके से कंघी करने से भी उन्‍हें नुकसान पहुंचता है और वो झड़ने लगते हैं.

आज हम आपको बता रहे हैं कि किस तरह आप अपने बालों को गलत तरीके से कंघी करती हैं और आपको किस तरह अपने बालों को कंघी करनी चाहिए ताकि आपके बाल और स्‍कैल्‍प दोनों ही सुरक्षित रहें.

कंघी करने की दिशा

आप में से कई लोगों को कंघी करने की सही दिशा के बारे में पता नहीं होगा. सामान्‍य तौर पर हम सभी जड़ों से लेकर नीचे तक कंघी करते हैं लेकिन से गलत तरीका है. इससे बालों की जड़ें कमजोर होती हैं. कंघी हमेशा नीचे से शुरू कर जड़ों तक करें. धीरे-धीरे उलझे बालों को सुलझाते हुए नीचे से ऊपर जाएं.

बालों को धोने के बाद कंघी ना करें

बालों को धोने के बाद सारे बाल उलझ जाते हैं और आमतौर पर ऐसा सभी के साथ होता है. गीले बालों में कंघी कर उन्‍हें सुलझाना गलत है. ऐसा करने से बालों की जड़ें कमजोर होती हैं और जब बाल गीले होते हैं तो उनके आसानी से टूटने की संभावना भी बहुत ज्‍यादा होती है. बालों को सूखने दें और उसके बाद ही नीचे से लेकर ऊपर जड़ों तक कंघी करें. गीले बालों में कंघी करने की भूल कभी ना करें.

हेयर प्रौडक्‍ट्स लगाने के बाद ना करें कंघी

अगर आपने कोई हेयर मास्‍क, पेस्‍ट, क्रीम या अन्‍य कोई हेयर प्रौडक्‍ट लगाया है तो बालों को धोने से पहले और बाद में कंघी ना करें. इन प्रौडक्‍्टस को लगाने के बाद कई लोग उलझे हुए बालों को सुलझाने लगते हैं लेकिन ये तरीका आपके बालों को नुकसान पहुंचा सकता है. हेयर प्रौडक्‍ट्स लगाने के बाद बालों को कंघी की बजाय अपनी अंगुलियों से सुलझाना ज्‍यादा बेहतर रहेगा.

पीछे की तरफ से ना करें कंघी

पीछे की तरफ से कंघी करना आपके बालों को नुकसान पहुंचाती है और इससे बालों का झड़ना और गिरना बहुत ज्‍यादा बढ़ जाता है. सीमित समय तक ही बालों में कंघी करें और बार-बार बालों में कंघी के इस्‍तेमाल को अपनी आदत ना बनाएं. इससे बाल तो खराब होंगें ही साथ ही स्‍कैल्‍प पर भी बुरा असर पड़ता है.

ऐसे करे अपने रिटायरमेंट की बेहतर प्लानिंग

अगर बात करें रिटायरमेंट प्लान के बारे में तो हर किसी का अपना नजरिया है इस बारे में. लेकिन अगर आप अपने रिटायरमेंट को बढ़िया बनाना चाहती हैं तो इसकी शुरुआत अभी से करें तो ज्यादा बेहतर होगा. नौकरी के बाद अपने रिटायरमेंट को बेहतर बनाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप आज से ही सोचना शुरू कर दें कि आप रिटायरमेंट के बाद कैसा जीवन गुजारना चाहती हैं और उसी के हिसाब से कुछ फैसले अभी से ही लेना शुरू कर दें. एक सर्वे के मुताबिक 80 फीसदी लोग रिटायरमेंट की प्लानिंग नहीं कर पाते हैं.

जो लोग प्लानिंग करते भी हैं वे कुछ सामान्य गलतियां कर देते हैं जिसका खामियाजा रिटायरमेंट के दौरान भुगतना पड़ता है, तो आइए जानते हैं उन गलतियों के बारे में जो अक्सर लोग करते हैं, जिसे प्लानिंग के दौरान आपको ध्यान में रखना चाहिए.

खर्चों का सही अंदाजा ना लगा पाना

सबसे जरूरी है इस बात का अनुमान लगाना कि रिटायरमेंट के बाद आपका खर्च कितना होगा. यानी अपनी जरूरतों का सही अनुमान लगाना बहुत जरूरी है अगर आंकलन सही नहीं किया गया तो आपका रिटायरमेंट फंड कम पड़ सकता है. अंदाजे से काम चलाने के बजाय आप अपने पिछले कुछ महीनों के खर्चों की लिस्ट तैयार करें और एक एवरेज निकालकर फंड की राशि तैयार करें.

रुपये की घटती वैल्यू का ध्यान रखना

हम सभी महंगाई से जूझ रहे हैं, इसके बावजूद रिटायरमेंट की प्लानिंग करते वक्त इसे भूल जाते हैं. नतीजा यह होता है कि महंगाई के प्रभाव के चलते आने वाले समय में आपका फंड कम पड़ जाता है. एक सिंपल सा फंडा है आज रुपये की जो वैल्यू है वो जीवनभर नहीं रहेगी यानी आज जो चीज आप 10 रुपये में खरीद पा रहे हैं 20 साल बाद उसकी कीमत दो से ढाई गुनी बढ़ जाएगी.

रिटायरमेंट फंड से पैसे निकालते रहना

अक्सर लोग ये सोचते है कि रिटायरमेंट बहुत दूर है ऐसे में जब भी जरूरत पड़ती है लोग इसी फंड में से पैसे निकाल लेते है. बच्चों की शादी, एडमिशन आदि के लिए तो फंड से पैसे निकालना ठीक भी है, लेकिन दिक्कत तो तब होती है जब लोग लग्जरी चीजों के लिए जैसे कार खरीदना, विदेश यात्रा आदि के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं. इसलिए रिटायरमेंट फंड को हाथ लगाने से पहले यह जरूर सोच लें कि यह पैसा उस समय के लिए है जब आपके पास कमाई का कोई साधन नहीं होगा.

अलग से मेडिकल फंड रखना

रिटायरमेंट फंड में मेडिकल खर्चों के लिए अलग से कुछ व्यवस्था करनी जरूरी है क्योंकि बुढ़ापे में लोग ज्यादा बीमार पड़ते है. साथ ही अक्सर कई तरह की स्वास्थ संबंधी दिक्कतों से जूझते है. इसलिए रिटायरमेंट प्लानिंग के वक्त ही इस बारे में सोच लेना चाहिए.

पहले का लोन चुका दें

एक बात जो आपको हमेशा ध्यान रखनी चाहिए वो यह कि रिटायरमेंट से पहले ज्यादा से ज्यादा कर्ज चुका दें. क्योंकि रिटायरमेंट के बाद आपकी कमाई का जरिया खत्म हो जाता है और जिंदगी केवल उन्हीं पैसों के दम पर चलानी होती है जो आपने जमा किए हैं. इसलिए फंड में से लोन न चुकाना पड़े इस बात का ध्यान जरूर रखें.

अगर म्यांमार की सैर पर निकली हैं, तो इन जगहों पर जरूर जाएं

अगर हम दुनिया के कुछ चुनिंदा पर्यटन स्थलों की बात करें या फिर इतिहास के नजरिये से अगर हम इनकी बात करें तो एक नाम जरूर आएगा म्यांमार का, जिसने अपनी संस्कृति और अपने इतिहास को संभाले रखा है. म्यांमार भारत के पूर्व में स्थित एक छोटा सा देश है. यहां सालभर पर्यटकों का तांता लगा रहता है. दुनिया के अलग अलग हिस्सों से सालभर यहां लाखों सैलानी आते हैं. सुकून पसंद लोग यहां आना जरूर पसंद करेंगे. यहां भारतीय इतिहास से जुड़ी ऐसी कई जगहें हैं जिसे आपने कभी नहीं देखा होगा. आईये जानते हैं कुछ इस देश के बारे में.

यांगून शहर

यांगून शहर को अगर  हम भारत के मुंबई से तुलना करें, तो कोई अजीब बात नहीं होगी, क्योंकि यांगून शहर भारत के मुंबई जैसी चहल पहल से भरपूर है. इस शहर का सबसे बड़ा आकर्षण श्वेदागोन पगोडा है, जो म्यांमार एक 99 मीटर ऊंचा सोने से ढका हुआ पगोडा और स्तूप है. यह कन्डोजी झील से पश्चिम में सिन्गुटरा पहाड़ी पर स्थित है और पूरे यांगून शहर से ऊंचाई पर है. ये इस देश के सर्वाधिक पवित्र बौद्ध स्मारकों में से एक है. इस भव्‍य स्‍मारक के सोने के स्तूप पर हीरे तथा कई तरह के माणिक्य जड़े हुए हैं. यह बर्मा का सब से महत्वपूर्ण और शुभ पगोडा माना जाता है और इसमें पिछले पांच बुद्धों की कुछ यादगारें मौजूद हैं जैसे काकूसंध की छड़ी, कोणगमन की पानी की छन्नी, कश्यप के वस्त्र का एक अंश और गौतम बुद्ध के बालों के आठ रेशे. इस शहर में कई बड़े-बड़े बाग बगीचे होने के कारण इसे गार्डन सिटी औफ ईस्ट भी कहा जाता है. यांगून में ही विश्व प्रसिद्ध गोल्डन पगोडा है.

बहादुर शाह जफर की मजार

भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार म्यांमार के यांगून में ही है. बहादुर शाह जफर की मौत साल 1862 में 89 साल की उम्र में हुई थी और उन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून में ही दफना दिया था.

बागान शहर

बागान म्यांमार में स्थित एक प्राचीन शहर है. यहां पर घास के विशाल मैदान हैं जहां बौद्धों के शानदार मठ हैं. यहां के भव्य स्मारक म्यांमार के शासकों की धर्मनिष्ठता का प्रमाण हैं. यहां अनेक पगोडे यानि बौद्ध स्‍तूप हैं. 

इनले झील

म्‍यांमार में इनले झील भी एक प्रमुख आकर्षण है. खूबसूरत पहाड़ियों के बीच यह विशाल ताजे पानी की झील चावल के खेतों से घिरी है. इस झील की एक खासियत पैरों से नौकाएं खेने वाले मछुआरे हैं. इसके लिए वे एक विशेष चप्पू का प्रयोग करते हैं जिसे अपनी एक टांग से धक्का देकर वे नाव को आगे बढ़ाते हैं. इनले झील अपने तैरते द्वीपों पर बाग बगीचों और तैरते गांवों के लिए जानी जाती है. यहां के रंगबिरंगे तैरते बाजार आकर्षण का केन्द्र हैं.

ताऊंगकालत मठ

पोपा पर्वत के पास ही एक और पहाड़ पर पोपा ताऊंगकालत मठ है. ऊंचाई पर बने इस अद्भुत मठ से चारों ओर के मैदानों का प्रकृति का शानदार नजारा दिखाई देता है. यहां पहुंचने के लिए 777 सीढ़ियां चढ़ कर जाना होता है.

मेरे स्तनों में भी ढीलापन आ गया है. मेरे पति का आकर्षण मेरे प्रति कम होता जा रहा है. क्या करूं जो मेरे स्तन सुडौल और आकर्षक हो जाएं.

सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहिता हूं. कुछ समय पूर्व ही बच्चा हुआ है. मैं प्रसव के बाद से ही बहुत कमजोर होती जा रही हूं. मेरे स्तनों में भी ढीलापन आ गया है, जबकि प्रसवपूर्व मेरे स्तन काफी सुडौल थे. स्वास्थ्य भी काफी अच्छा था. मेरे पति भी मेरे स्वास्थ्य को ले कर चिंतित हैं. कभीकभी तो लगता है कि उन का आकर्षण मेरे प्रति कम होता जा रहा है. क्या करूं  जो मेरा स्वास्थ्य सुधर जाए और स्तन सुडौल और आकर्षक हो जाएं.

जवाब

बच्चा पैदा होने के बाद मां को अपने खानपान पर विशेष ध्यान देना होता है. पौष्टिक और संतुलित भोजन के अलावा अपनी डाक्टर और आहार विशेषज्ञा की राय भी लेते रहना चाहिए. यदि आवश्यक हुआ तो डाक्टर आप को टौनिक आदि लेने की सलाह दे सकती हैं.

छोटे बच्चे की परवरिश भी एक अहम काम है. यदि यह आप को अकेले करना पड़ता है, घर में सास या और कोई आप की मदद के लिए नहीं है, तो इस से भी आप का स्वास्थ्य प्रभावित हुआ होगा. आप बच्चे को संभालने के लिए या घर के कामकाज में मदद के लिए कोई मेड रख सकती हैं.

जहां तक आप के स्तनों के बेडौल होने की बात है तो ऐसा अमूमन गर्भावस्था के दौरान सही माप की ब्रा न पहनने और प्रसव के बाद बच्चे को सही तरीके से स्तनपान न कराने से होता है. इस ओर ध्यान देंगी और हलकेफुलके व्यायाम करेंगी तो स्तन सुडौल हो जाएंगे. स्वास्थ्य में सुधार होने पर भी स्तनों में फर्क पड़ेगा.

जब पति के साथ लंच पर गई ईशा को घर लौटते वक्त आटो लेना पड़ा

ईशा देओल ने हाल ही में एक फोटो इंस्टा पर डाली है, जिसमें वो आटो रिक्शा की सवारी करती हुई दिखाई दे रही हैं. दरअसल प्रेग्नेंट ईशा अपने पति भरत के साथ लंच डेट पर गई थीं. लेकिन वहां से लौटते वक्त सड़कों पर बहुत ज्यादा ट्रैफिक था. इसलिए उन्होंने अपनी लग्जरी कार को छोड़कर आटो रिक्शा से ही घर वापस आने का मन बनाया और अपने पति भरत तख्‍तानी के साथ मुंबई की सड़कों पर आटो रिक्शा की सवारी की.

मजेदार बात यह है कि ईशा ने यह आटो राइड काफी इंज्वाय की और इसका एक फोटो अपने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है. ईशा ने इसे काफी अच्‍छी राइड बताया. ईशा ने अपने पोस्‍ट में लिखा, विसर्जन के दिन लंच डेट के बाद घर वापिस आने के लिए रिक्‍शा लिया. ‘भाई का जलवा एक स्‍मूद राइड थी.’

वैसे आपको बता दें कि बौलीवुड के कई सितारों का आटो रिक्शा से सवारी करने का किस्सा मशहूर है. सलमान खान भी आटो की सवारी के लिए मशहूर हुए थे और मीटर के हिसाब से सलमान के घर तक का किराया 18 रूपये आया था, लेकिन उन्होंने आटो चालक को एक हजार रुपए दिए थे.

दिशा पटानी पिछले साल दिशा पटानी भी अपने कथित ब्वायफ्रेंड टाइगर श्राफ के साथ डिनर डेट पर गई थीं. लेकिन अफवाहों से बचने के लिए उन्होंने जाते समय टाइगर की कार की बजाय आटो रिक्शा लेना ठीक समझा.

रितिक रोशन भी जनवरी में अपने बेटे रिधान और रिहान के साथ आटो की सवारी करते नजर आ चुके हैं.

रणबीर कपूर भी इम्तियाज अली के साथ आटो में नजर आ चुके हैं. वे उनके साथ प्ले देखने पृथ्वी थिएटर पहुंचे थे.

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