अब घर पर बनाएं फ्रूट बेस्ड स्किन टोनर

केवल फलों को लगा लेन से या खा लेने से, इस अकेले इस्तेमाल से आपकी त्वचा की रंगत और चमक में ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. फ्रूट्स को मास्क्स, पैक या टोनर के रूप में इस्तेमाल करने से त्वचा की चमक ज्यादा देर तक रहती है.

हमारे द्वारा बताए जा रहे इन साधारण तरीकों से आप फ्रूट बेस्ड टोनर्स घर पर ही तैयार कर सकती हैं. इन फलों में विटामिन, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होती है, जिससे त्वचा की गुणवत्ता में सुधार होता है और ये जवां भी होती है.

ध्यान रखें कि आप टोनर्स तैयार करने के लिए ताजे फल ही अपने काम में लें. अन्य बाजारू फ्रूट फेस पैक या मास्क की तरह इन घरेलू फ्रूट टोनर्स की कोई एक्स्पायरी डेट नहीं होती है. तो आइये जानते हैं कि इन फ्रूट टोनर्स को घर पर कैसे तैयार किया जा सकता है और किस प्रकार लंबे समय तक फ्रिज में रखकर इनका इस्तेमाल किया जा सकता है.

1. खीरा

आधा कप खीरे का जूस आधा कप ग्रीन टी खीरे के टुकड़ों को ग्राइंडर में मिलाकर इनका जूस बना लें. इसके बीज हटा दें और केवल जूस ही रखें. इसमें स्ट्रांग ग्रीन बनाएं और लंबे समय तक ठंडा होने दें. खीरे का जूस और ग्रीन टी बराबर मात्रा में मिलाएं और आपका फ्रूट बेस टोनर तैयार है. आप इस टोनर में एक कप वोडका भी मिला सकती हैं.

2. आम (कच्चे)

4 से 5 कच्चे आम के बीज 2 लीटर पानी गहरे बर्तन में पानी और आम के बीजों को डालकर गैस पर उबालें. उबालने का समय 30 से 45 मिनट रखें. इसके बाद इसे एक बोतल में डालकर फ्रिज में रखें. आपका मैंगो बेस स्किन टोनर तैयार है, आप जब चाहें इसका इस्तेमाल कर सकती हैं. 3. सेब

1 मध्यम सेव 1 टेबल स्पून शहद सेव को साफ कर, छीलकर और टुकड़ों में काटकर इसका पेस्ट बना लें. अब इसमें शहद मिला लें. इसे चेहरे और शरीर पर लगाएं, ज्यादा समय तक ना छोड़ें.

4. तरबूज

1 गिलास ताजा तरबूज का जूस 1 गिलास आसुत (डिस्टिल्ड) पानी 1 टेबल स्पून सादा वोडका छीलकर, बीज हटाकर तरबूज के टुकड़े कर लें. ग्राइंडर में डालकर इसका मुलायम पेस्ट बना लें. इस जूस को एक गिलास में डाल लें. अब तरबोज का जूस, पानी और वोडका को मिला लें और इस तरबूज टोनर को फ्रिज में रखें.

5. पपीता

एक छिला पपीता, आधे कप एप्पल साइडर सिरका छीलकर पपीता को छोटे टुकड़ों में काट लें. ग्राइंडर में इसका पेस्ट बना लें. अब इस पेस्ट में एप्पल साइडर सिरका मिलाएं. कोशिश करें कि जितना हो सके ये ताजा ही हो. यह ड्राई स्किन पर बेहतर काम करता है.

बनना है खतरों के खिलाड़ी तो जाएं यहां

भारत में घूमने और एक्सप्लोर करने के लिए बहुत कुछ है वहीं कुछ जगहें ऐसी भी है जहां जाना खतरे से खाली नहीं. अगर आप खतरनाक जगहों पर जाने की शौकीन हैं और साथ ही खतरों से खेलने का शौक भी रखते हैं तो इन जगहों पर जाकर यहां का अनुभव लें.

फुग्टल मॉनेस्ट्री, लद्दाख

लद्दाख के जंस्कार में एक अलग ही तरह की मोनेस्ट्री देखने को मिलेगी जो लकड़ियों और मिट्टी से बनी हुई है. पहाड़ों पर बने इस मोनेस्ट्री को नीचे से देखने पर ऐसा लगता है जैसे मधुमक्खी का बड़ा सा छत्ता. यहां पहुंचने के लिए गाड़ी, घुड़सवारी या किसी भी अन्य तरह की सुविधा नहीं मिलती. पैदल ही सफर तय करना होता है.

सीजू केव्स, मेघालय

मेघालय का सीजू केव्स, इंडिया का पहला लाइमस्टोन(चूना पत्थर) नेचुरल केव है. इसके अलावा यहां दो पहाड़ियों को जोड़ता हुआ रोपवे ब्रिज है जो दिखने में जितना आकर्षक है उस पर चलना उतना ही खतरनाक. लगातार हिलते-डुलते इस पुल के नीचे गहरी खाई है जहां सी भी असावधानी जान के लिए खतरा बन सकती है.

खरदुंग ला, लद्दाख

खरदुंग ला दुनिया की सबसे ऊंची रोड है. यहां पर सीधी चमकती धूप, तेज हवा और कम ऑक्सीजन अधिकतर लोगों को यहां से जल्द ही वापस लौटने पर मजबूर कर देती हैं.

मानस नेशनल पार्क, असम

मानस नेशनल पार्क असम का एक प्रसिद्ध पार्क है. इसे यूनेस्को नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट के साथ-साथ प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व, बायोस्फियर रिजर्व और एलिफेंट रिजर्व घोषित किया गया है. इसकी सुंदरता में खो मत जाइएगा क्योंकि यहां पर बोडो उग्रवादियों का कब्जा है जो आपका स्वागत करने के लिए तैयार हैं.

अकसई चिन, जम्मू-कश्मीर

अक्साई चिन या अक्सेचिन चीन, पाकिस्तान और भारत की सीमा पर स्थित तिब्बती पठार के उत्तरपश्चिम में स्थित एक विवादित क्षेत्र है. यह कुनलुन पर्वतों के ठीक नीचे स्थित है. किसी खूबसूरती आपको यहां जाने पर मजबूर कर देगी लेकिन क्या आप जानते हैं यह दुनिया की सबसे खतरनाक जगहों में से एक है.

बेक्ड स्पाइसी आलू : स्वाद है कमाल का

सामग्री

2 बड़े आलू

1-2 हरी मिर्चें बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच क्रीम

1/2 बड़ा चम्मच मक्खन

2 बड़े चम्मच चीज

1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन पेस्ट

3 बड़े चम्मच दही

1 बड़ा चम्मच बेसन

नमक स्वादानुसार

विधि

एक बाउल में दही, क्रीम, चीज, अदरक व लहसुन पेस्ट, बेसन, नमक, हरीमिर्चें व नमक डाल कर अच्छी तरह फेंट लें. आलुओं को धो व छील कर गोलाकार स्लाइस में काट लें.

फिर उबलते नमक के पानी में 1-2 मिनट तक रखें. बेकिंग ट्रे को मक्खन से ग्रीस कर आलू के स्लाइस 1-1 कर ट्रे में रखें.

इस के ऊपर चीज का मिश्रण रखें और फिर 180 डिग्री पर गरम ओवन में 8 से 10 मिनट तक बेक करें.

-व्यंजन सहयोग: अनुपमा गुप्ता

ऐसे चुनें सही ज्वैलरी

घर हो या बाहर या फिर कौरपोरेट जगत, महिलाओं को आभूषणों से दूर रखना लगभग नामुमकिन है. कार्यालयों में काम करने वाली महिलाओं के लिए सही आभूषणों का चुनाव करना मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें कार्यालय के आला दर्जे के माहौल से मेल खाते आभूषण चाहिए होते हैं.

पेश हैं, कुछ टिप्स जिन्हें अपना कर आप सही आभूषण चुन सकती हैं.

भड़कीले न हों

कपड़ों की तरह आभूषण भी बहुत भड़कीले नहीं होने चाहिए. कुछ कार्यस्थलों पर ज्यादा आभूषण पहनने की अनुमति नहीं होती. कार्यस्थल के लिए आभूषणों का चुनाव बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. आखिर आप के परिधान आप के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं.

त्वचा के रंग को ध्यान में रख चुनें आभूषण

आभूषण आप की त्वचा के रंग और परिधान के अनुसार होने चाहिए. मैटल और जेमस्टोन त्वचा पर चमक लाते हैं. इन का कलर स्पैक्ट्रम गोल्ड, सिल्वर, रोज गोल्ड, टर्क्वाइज, एमेथिस्ट हो सकता है.

आभूषण शरीर के अनुरूप हों

आभूषणों का आकार भी बहुत माने रखता है. उन्हें चुनने से पहले अपने शरीर पर ध्यान दें. उदाहरण के लिए नैकलैस या इयररिंग्स का आकार ऐसा हो कि सहकर्मी या क्लाइंट की नजरें उन पर न टिकें.

जिओमैट्रिक डिजाइन चुनें

आभूषणों की डिजाइन सादा, सर्कल, आयताकार या जिओमैट्रिक हो, जो सभ्य दिखाईर् दे और सहकर्मियों का ध्यान अनावश्यक रूप से आकर्षित न करे. डिजाइन कपड़ों से भी मेल खाती हो. कौरपोरेट महिलाएं ओवल डायमंड इयररिंग्स, छोटा पैंडेंट और हलका डायमंड बैंड पहन सकती हैं.

एक बोल्ड पीस

अगर आप ने सभी आभूषणों को सीमित कर दिया है, तो एक बड़ा या बोल्ड पीस चुन सकती हैं. आप क्लासी इयररिंग्स या स्टेटमैंट रिंग पहन सकती हैं. औफिस शर्ट के साथ नैकपीस मैच कर सकती हैं या पर्ल स्ट्रिंग के साथ साइड ब्रोच का इस्तेमाल कर सकती हैं. अपनी शर्ट पर कटवर्क नैकलैस या गोल्ड इटैलियन चेन के साथ जेमस्टोन पैंडेंट पहन सकती हैं.

सभी परिधानों के लिए पर्ल यानी मोती

पर्ल यानी मोती कौरपोरेट जगत का सब से बेहतरीन आभूषण है. यह किसी भी कौरपोरेट परिधान के साथ मेल खाता है. कानों में मोती के स्टड्स, मोती का ब्रेसलेट पहनें. अगर ब्रेसलेट पहनने में सहज महसूस नहीं करतीं, तो मोतियों की सादी माला पहन सकती हैं. 

– अनुष्का जैन

ज्वैलरी डिजाइनर, वरारोहा

अब आप एटीएम से भी ले सकती हैं पर्सनल लोन

जी हां ये आपके लिए खुशखबरी है. अगर आप लोन लेना चाहती हैं तो अब आपको बैंक के चक्कर काटने की जरूरत नहीं है. अब आप एटीएम के जरिए ही 15 लाख रुपए तक का पर्सनल लोन ले सकती हैं. यह पहल आईसीआईसीआई बैंक ने शुरू की है.

मौजूदा समय में आपको पर्सनल लोन लेने के लिए काफी इनक्वायरी करनी पड़ती है. यही नहीं, बैंक भी लोन देने से पहले आपकी एलिजिब्लिटी चेक करते हैं और फिर ही आपको लोन देते हैं. लेकिन अब आप चंद सेकंडों में एटीएम के जरिए पर्सनल लोन ले सकती हैं, हालांकि इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए जरूरी है कि आपका अकाउंट इस सुविधा को देने वाले बैंक में हो.

एटीएम के स्क्रीन पर ही आ जाएगी लोन डिटेल

यह लोन चुनिंदा वेतनभोगी ग्राहक हासिल कर सकते हैं, भले ही उन्‍होंने इसके लिए पहले कोई आवेदन न किया हो. क्रेडिट इंफोर्मेशन कंपनियों से प्राप्‍त डाटा का इस्‍तेमाल करते हुए आईसीआईसीआई बैंक पर्सनल लोन के लिए योग्‍य ग्राहकों का चयन पहले ही कर लेगा.

ऐसे चुने हुए ग्राहकों को एटीएम (ATM) में ट्रांजैक्‍शन पूरा करने के बाद स्‍क्रीन पर एक मैसेज मिलेगा, जिसमें पर्सनल लोन के लिए उनकी योग्‍यता के बारे में जानकारी दी जाएगी.

5 साल की अवधि के लिए 15 लाख का लोन

बैंक ने एक बयान में कहा कि यदि कोई ग्राहक पर्सनल लोन का विकल्‍प चुनता है, तो वह पांच साल की अवधि तक के लिए 15 लाख रुपए तक का पर्सनल लोन हासिल कर सकता है. लोन की राशि तुरंत ग्राहक के एकाउंट में जमा कर दी जाएगी और ग्राहक अपने एटीएम के जरिये उसे निकाल सकेगा. बैंक ने यह सर्विस शुरू कर दी है.

लोन प्रक्रिया पूर्ण होने से पहले ग्राहकों को लोन की राशि चुनने के लिए कई अलग अलग विकल्प दिए जाएंगे. इसके बाद ग्राहकों से ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस और मंथली इंस्टॉलमेंट की जानकारी की मांग की जाएगी. आईसीआईसीआई बैंक के कार्यकारी निदेशक अनूप बागची ने बताया कि यह ग्राहकों को सहुलियत से पैसा प्राप्त करने में मदद करेगी, अगर वह पर्सनल लोन के विकल्प का चयन करते हैं. यह प्रक्रिया पूरी तरह से पेपरलेस होगी और ग्राहक एटीएम के जरिये धन राशि हासिल कर सकेंगे.

क्यों आया ऋषि कपूर को इतना गुस्सा?

फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ के बॉक्स ऑफिस पर असफल होने से अभिनेता रणबीर कपूर के अभिनय करियर पर कई तरह के सवालिया निशान लग गए हैं. पिछले चार-पांच वर्षों के अंतराल में रणबीर कपूर लगातार असफल फिल्में ही दे रहे हैं, पर इस बार ‘जग्गा जासूस’ के असफल होने से रणबीर कपूर के पिता और अपने समय के लोकप्रिय अभिनेता ऋषि कपूर तिलमिला गए हैं. अपनी इस तिलमिलाहट में एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में ऋषि कपूर ने फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ के निर्देशक अनुराग बसु को जमकर कोसने के साथ ही उन्हे एक ‘गैर जिम्मेदार निर्देशक’ का तमगा भी दे डाला. हमें यहां याद रखना चाहिए कि रणबीर कपूर को एक बेहतरीन अदाकार के रूप में पहचान अनुराग बसु निर्देशित फिल्म ‘‘बर्फी’’ से ही मिली थी.

यूं तो ‘‘जग्गा जासूस’’ से पहले रणबीर कपूर की ‘बेशरम’, ‘बांबे वेलवेट’, ‘रॉय’, ‘तमाषा’ जैसी फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल हो चुकी हैं. मगर इन फिल्मों के असफल होने पर ऋषि कपूर चुप रहे, क्योंकि इन फिल्मों के असफल होने से रणबीर कपूर यानी कि ऋषि कपूर का धन कम नहीं हुआ था. मगर ‘‘जग्गा जासूस’’ के असफल होने से बेटे रणबीर कपूर का न सिर्फ करियर दांव पर लगा, बल्कि फिल्म के असफल होने से रणबीर कपूर को जबरदस्त आर्थिक नुकसान भी हुआ है. क्योंकि रणबीर कपूर और अनुराग बसु दोनो ने मिलकर ‘जग्गा जासूस’ का निर्माण किया है, पर अनुराग बसु को कोसते और उन पर अपना गुस्सा निकालते समय ऋषि कपूर यह भूल गए कि रणबीर कपूर के साथ ही अनुराग बसु का भी पैसा डूबा है.

अंग्रेजी अखबार को खास तौर पर दिए गए इंटरव्यू में ऋषि कपूर ने केवल फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ की असफलता पर अनुराग बसु के संबंध में ही बात की है. इस इंटरव्यू में ऋषि कपूर ने कहा कि ‘‘अनुराग बसु सच में एक गैर जिम्मेदार निर्देशक हैं. वह अपनी फिल्म पूरी नहीं कर सकते. उनकी वजह से ही ‘जग्गा जासूस’ की दो-तीन प्रदर्शन की तारीखें टली.

फिल्म के प्रदर्शन से एक दिन पहले तक उन्हीं की वजह से फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन का काम रूका हुआ था. मैंने व नीतू ने गुरूवार के दिन फिल्म देखी. बुधवार तक वह मिक्सिंग कर रहे थे. फिल्म देखने पर लगा कि फिल्म ‘जग्गा जासूस’ को बेमतलब बीस मिनट तक खींचा गया है. गोविंदा से शूटिंग करवायी और फिर उन्हें फिल्म से हटा दिया गया, जबकि रणबीर फिल्म पर पैसा खर्च करने से कभी पीछे नहीं हटे..वगैरह वगैरह..’’

ऋषि कपूर ने इस इंटरव्यू में एकता कपूर से सहमत होने की बात करते हुए कहा ‘‘एकता कपूर ने अपनी फिल्म से निर्देशक को बाहर किया था, जब अनुराग बसु ने ‘काइट्स’ निर्देशित की थी, तब राकेश रोशन को भी तकलीफ हुई थी.’’

ऋषि कपूर के इस इंटरव्यू के आने के बाद गोविंदा काफी प्रसन्न हैं. गोविंदा ने ऋषि कपूर का धन्यवाद अदा करते हुए कहा है ‘‘कम से कम आपने तो इस पर ध्यान दिया. अच्छा खून कभी गलत नहीं बोलता. मैंने ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी थी, क्योंकि कपूर परिवार के प्रति मेरे मन में सम्मान है….’’

मगर खुद रणबीर कपूर चुप हैं. उन्होंने फिल्म की असफलता या अनुराग बसु के खिलाफ अब तक कुछ नहीं कहा है. उधर अनुराग बसु भी चुप हैं.

कहीं गलत तरीके से तो ब्रश नहीं करती आप?

सही तरीके से ब्रश न करने और ब्रश का चुनाव करते वक्‍त गलती के कारण भी दांतों से संबंधित समस्‍यायें हो सकती हैं. अगर सही तरीके से ब्रश न किया जाये तो दांतों में कैविटी, पायरिया, आदि की समस्‍या हो सकती है.

इसलिए ब्रश करते वक्‍त सावधानी बरतें और इसमें जल्‍दबाजी बिलकुल भी न करें. डेंटिस्‍ट भी यही सुझाव देते हैं कि सही तरीके से ब्रश करके ही दांतों की समस्‍या से बचाव किया जा सकता है. तो सही तरीके से ब्रश करने की आदत डालें और अपने दांतों को बीमारियों से बचायें.

सही ब्रश का प्रयोग

ब्रश का चुनाव करते वक्‍त हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए. ब्रश का आकार बड़ा और छोटा नहीं होना चाहिए, ब्रश मध्‍यम आकार का प्रयोग कीजिए. बड़ा ब्रश अंदर तक पहुंच नहीं पायेगा और छोटा ब्रश सफाई के लिए बहुत समय लेगा. इसके अलावा ब्रश पकड़ने में भी सही होना चाहिए, उसकी पकड़ भी अच्‍छी हो. ब्रिटिश के सेंट्रल हेल्‍थ फाउंडेशन मुलायम ब्रश का प्रयोग करने की सलाह देता है.

ब्रश की गलत आदतें

ए‍क दिन में दो बार ब्रश करने की सलाह चिकित्‍सक भी देते हैं. लेकिन अगर आप अपने दांतों और मसूड़ों को स्‍वस्‍थ रखना चाहते हैं तो किसी भी मीठे पेय पदार्थ का सेवन करने के बाद मुंह जरूर साफ करें. इसके अलावा दिन में 3 या 4 बार भी ब्रश करने से बचें. सुबह उठने के बाद और सोने से पहले ब्रश करना ही दांतों को स्‍वस्‍थ रखने के लिए पर्याप्‍त है. आराम से 2 या 3 मिनट ब्रश करना ही काफी है.

दांतों की अंदर तक सफाई

कुछ लोग ब्रश करते वक्‍त केवल बाहरी दांतों की सफाई ही करते हैं. प्‍लेक जैसी समस्‍यायें दांतों के अंदर की सतह से शुरू होती हैं. इसलिए दांतों की सफाई करते वक्‍त अंदर तक साफ करें.

ब्रश को हाइजीन मुक्‍त रखें

अगर आप ब्रश को बॉथरूम में रखते हैं तब उस जगह पर नमी होने के कारण उसमें कीटाणु पनपने लगते हैं, इसलिए जरूरी है कि ब्रश को सूखी जगह पर रखें. अगर ब्रश का कवर हो तो उसे जरूर लगायें. ब्रश करने से पहले और ब्रश करने के बाद ब्रश को जरूर साफ करें.

ब्रश न बदलना

हर डेंटल एसोसिएशन यही सुझाव देता है कि अपने ब्रश को हमेशा 3 महीने के अंतराल पर बदलते रहना चाहिए. क्‍योंकि 3 महीने के बाद ब्रश के ब्रिस्‍टल्‍स टूटने लगते हैं. इसलिए समय पर ब्रश को बदल देना चाहिए.

दातों को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है कि आप ब्रश करने के सही तरीके के साथ-साथ सही ब्रश के प्रयोग के बारे में जानें. ऐसा करके आप अपने दांतों को स्‍वस्‍थ और मजबूत रखने में मदद कर सकते हैं.

पैरों की सफाई का एक कारगर तरीका ‘फिश पेडीक्योर’

यूं तो सौंदर्य उद्योग त्वचा की देखभाल के लिए रोज नए तरीकों का इजात करता रहता है. भला किसने सोचा होगा कि मछलियों का हल्के से आपके पैरों को कुतरना आपके पैरों की त्वचा को स्वस्थ व सुंदर बना सकता है. हम यहां बात कर रहे हैं फिश पैडीक्योर की. जी हां! फिश पैडीक्योर, आपके पारे को लिए बहुत लाभदायक होता है. यहां हम आपको बता रहे हैं की क्या होता है फिश पैडीक्योर.

पेडीक्योर पैरों को स्वस्थ व सुंदर रखने का पुराना तरीका है. लेकिन अब एक नए तरह का पेडीक्योर चलन में आ रहा है. इस पेडीक्योर को फिश पेडीक्योर नाम दिया गया है. हम आपको बता देना चाहते हैं कि फिश पेडीक्योर का तुर्की सहित कई एशियाई देशों में भी प्रयोग होते रहते हैं.

क्या है फिश पेडीक्योर

इस खास तरह के पेडीक्योर में मछली का प्रयोग किया जाता है, जिसे गारा रूफा या डाक्टर फिश के नाम से जाना जाता है. ये मछलियां दांत रहित होती हैं. परंपरागत रूप से तो पैडीक्योर में गर्म या गुनगुने पानी का प्रयोग किया जाता है.

फिश पेडीक्योर में भी ऐसा ही होता है लेकिन इस पानी में मछलियां होती हैं. फिश पैडीक्योर द्वारा पैरों पर मौजूद मृत और भद्दी त्वचा को हटाया जा सकता है. फिश पैडीक्योर करने के लिए पैरों को गर्म पानी के एक टैंक में पूरी तरह से डूबा दिया जाता है जिसमें बिना दांत वाली कार्प के आकार की दर्जनों छोटी मछलियां होती हैं. ये मछलियां लगातार आपके पैरों को कुतरती रहती हैं और पैरों की मृत त्वता को चट कर जाती हैं. लगभग 30 मिनट के इस इलाज के परिणामस्वरूप आपको चिकनी और मुलायम पैर मिलते हैं.

कैसे होता है ये पेडीक्योर

आम तौर पर पेडीक्योर में मृत त्वचा निकालने के लिए रेजर (ब्लेड) का प्रयोग किया जाता है, जबकि फिश पेडीक्योर में यह काम मछली करती है. हो के मुताबिक गर्म पानी में जलीय वनस्पति का उगना मुश्किल है, जिससे मछली के भोजन की समस्या हो सकती है. लेकिन यह समस्या मृत त्वचा से हल हो सकती है.

फिश पेडीक्योर की कमियां

– फिश पेडीक्योर में सभी लोग उसी पानी और मछलियों के संपर्क में आते हैं, जिसके कारण कुछ संक्रमण एक से दूसरे को फैल सकते हैं.

– एचआईवी और हेपेटाइटिस वायरस जो कि रक्त से फैलता है और यह संभावतः टैंक के पानी के माध्यम से भी फैल सकता है.

– वे लोग जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है या मधुमेह आदि समस्याएं होती हैं उन्हें फिश पेडीक्योर न कराने की हिदायत दी जाती है.

मैं फिल्म और किताब के बैन के पक्ष में नहीं हूं : मधुर भंडारकर

मुंबई के खार उपनगर के वीडियो कैसेट लाइब्रेरी में काम कर चुके निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक मधुर भंडारकर ने ‘चांदनी बार’, ‘फैशन’, पेज थ्री जैसे रीयलिस्टिक फिल्मों से अपनी पहचान बनायी. वीडियो कैसेट लाइब्रेरी में काम करते हुए उन्हें बहुत सारी फिल्मों को देखने का मौका मिला और उन्होंने कहानी लिखना शुरू किया और फिल्म बनाने की बात सोची. उनका शुरुआती दौर बहुत संघर्षपूर्ण था, लेकिन फिल्म ‘चांदनी बार’ की सफलता उनकी बड़ी कामयाबी थी, जिससे उनका नाम निर्देशकों की सूची में सबसे ऊपर हो गयी.

इस समय वे अपनी फिल्म ‘इंदु सरकार’ को लेकर काफी व्यस्त हैं. तमाम विरोध के बाद अब 4 कट और यू/ए सर्टिफिकेट के बाद इसे पर्दे पर लाने की अनुमति मिल गयी है. उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.

फिल्म को सेंसर बोर्ड से पास करवाना कितना मुश्किल था?

सेंसर बोर्ड ने पहले 16 कट दिए थे और फिल्म का विरोध भी हुआ. ये सब होता रहता है, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और दिल्ली तक गया. मैं इस बात से काफी नाराज था कि जब मैंने ट्रेलर लौंच किया तो उसमें भी वही संवाद थे, पर तब तो किसी ने कुछ नहीं कहा. ये दोहरी मानसिकता क्यों है? ट्रेलर के लिए कुछ और फिल्म के लिए कुछ और. इस पर मुझे गुस्सा आया था. मुझे इस बात से दुःख भी हुआ कि अगर मैं कोई फिल्म बनाऊं और उसमें मुख्य बातों को न रखूं, तो फिल्म की आत्मा ही मर जाती है. इतना ही नहीं राजनेता भी इसमें शामिल हो जाते हैं, हर कोई उठकर आ जाता है कि मैं उन्हें फिल्म दिखाऊं, ये कब तक चलता रहेगा. ये गलत चेन है. राजनीतिक पार्टी के सर्टिफिकेट पर फिल्म थिएटर में नहीं चल सकती. जब मैं सर्टिफिकेट ऑथोराईस्ड कमिटी से लूंगा तब क्लियर होगा. ये गलत है कि फिल्म को लेकर आप अपनी राजीनीति की रोटियां सेंक रहे हो.

आपने हमेशा रीयलिस्टिक फिल्में बनायीं, कभी बवाल नहीं हुआ, क्या राजनीति को लेकर फिल्म बनाना रिस्क होता है?

ये सही है कि राजनीति पर फिल्में बनाने से बवाल होता है, जब मैंने साल 2003 में ‘सत्ता’ बनायी थी तो समस्या आई. तब इतना हंगामा नहीं हुआ था, क्योंकि विषय इमरजेंसी था. साथ ही सोशल मीडिया इतनी कारगर नहीं थी. आज चर्चा सोशल मीडिया के द्वारा होती है और अंत तक उसका नैरेशन ही बदल जाता है. मुझे लगता है कि लोग इस फिल्म को राजनीति से जोड़ रहे हैं, जबकि यह राजनीति की ‘बैकड्रॉप’ है. जिसमें एक लड़की इंदु की इमोशनल जर्नी के बारे में बताया गया है. जो अपने हिसाब से जीवन जीती है. इसमें मैंने 70 के दशक की सारी परिस्थिति को दिखाने के लिए बहुत मेहनत की है. डिटेलिंग पर अधिक ध्यान दिया है.

सेंसर को लेकर आजकल बहुत समस्या आ रही है, इसकी वजह क्या मानते हैं? कितनी निराशा होती है?

बहुत अधिक निराशा होती है. आप फिल्म को रोक रहे हैं, जबकि ऐसी बातें रोज टीवी और रियलिटी शो में बोली जाती है. ‘नसबंदी’ और ‘किस्सा कुर्सी का’, ‘मद्रास कैफे’ जैसी फिल्में भी पास हो गयी. ऐसे में इसे रिलीज करने में मुश्किल क्यों है. ये कुछ लोगो की ‘ईगो’ को शायद सपोर्ट करती होगी. मैं किसी भी फिल्म और किताब को ‘बैन’ के पक्ष में नहीं हूं. ये समाज के उन पहलुओं के बारें में बताती है, जिसे लोगों को पढ़ना जरुरी है. वे अपने हिसाब से इसे पढ़ते और देखते हैं. इस फिल्म को बनाने में मैंने सवा साल की मेहनत की है. पैसे लगाए हैं, कितने लोगों का भविष्य इससे जुड़ा है. इसे बैन करना उन लोगों की कोशिश है, जो वोट के लिए जनता को दिखाना चाहते है कि हम बहुत बड़ा काम कर रहे हैं.

इंडस्ट्री से कोई मदद आपको मिली?

कोई नहीं मिली, लेकिन मैं चाहूंगा कि ऐसा होने पर आपस में एकजुटता रखनी चाहिए, क्योंकि आज ये मेरे साथ हुआ है, कल किसी और के साथ होगा. हर किसी का एक ‘फ्राइडे’ आता है.

आप अपनी अबतक की जर्नी को कैसे देखते हैं?

‘त्रिशक्ति’ से मैंने जर्नी शुरू की थी. यह बहुत अच्छी थी. मैं खुश हूं कि मैंने जो सोचा, उसे पर्दे पर ला पाया. इतने सालों में मैंने कई फिल्में बनायीं, कुछ चली, कुछ नहीं चली. फिल्म ‘चांदनी बार’ से मुझे दिशा मिली. इस 17 साल में मैंने सब कुछ का अनुभव पा लिया है.

असफलता को कैसे डील करते हैं?

पूरे विश्व में कोई भी ऐसा निर्देशक नहीं है जिसकी फिल्म असफल न हुई हो. सफलता और असफलता तो चलती रहती है. असफल फिल्म होने पर सीख मिलती है और क्या गलत हुआ उसपर सोचना पड़ता है. फिल्म सफल होने पर फिर से एक अच्छी फिल्म बनाने की चुनौती होती है. मेरी तो पहली फिल्म ही नहीं चली थी. मुझे याद आता है, ‘त्रिशक्ति’ से पहले जब मैं किसी को कहानी सुनाता था, तो लोग कहते थें कि ये आर्ट फिल्म की कहानी है. फिर मैंने अपने हिसाब से ‘चांदनी बार’ बनायी, जिसमें अभिनेत्री तब्बू ने साथ दिया और एक अच्छी फिल्म बनी.

महिला प्रधान फिल्म बनाने की खास वजह क्या है?

कोई वजह नहीं. कहानी अच्छी लगती है. मेरी फिल्मों में विषय हमेशा स्ट्रॉन्ग होता है.

हम भी किसी से कम नहीं

चेहरा व्यक्तित्व को संवारता है. दिन की शुरुआत हम अपने चेहरे की खूबसूरती को देख कर ही करते हैं. लेकिन यही चेहरा अगर ऐसा हो, जिसे देख कर आप खुद ही दुखी हो जाएं, तो फिर आप क्या करेंगी? क्या आप अपनेआप को दोषी ठहराएंगी या फिर परिवार, समाज या आसपास के लोगों को, जो हर बार आप को याद दिलाते रहते हैं कि आप उन से अलग हैं, कुरूप हैं?

आप का चेहरा देखने पर उन का दिन खराब हो जाता है. तरहतरह के ताने आप को सुनने पड़ते हैं. आप का घर से निकल कर आजाद घूमना बंद हो जाता है. कोई आप से बात नहीं करता. परिवारदोस्त सब आप से किनारा करते हैं.

मगर क्या किसी ने उसे जलील किया, उसे टोका जिस की वजह से आप की ऐसी दशा हुई? आप की इच्छा के बिना, आप ऐसी जिल्लत की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं. कोर्टकचहरी से ले कर आम इनसान तक उस व्यक्ति के गुनाह को भुला देता है. लेकिन अगर आप में हौसला है, तो आप उस कठिन स्थिति का सामना हिम्मत से कर सकती हैं. खुद को सभी के आगे मजबूत कर सकती हैं.

इन की हिम्मत का जवाब नहीं

ऐसी ही सच्ची घटना की शिकार हुई थी 1 महीने की शब्बो, जो आज 21 साल की हो चुकी है और एक कौल सैंटर में काम करती है. वह महीने में 12 हजार कमा कर आत्मनिर्भर हो चुकी है और अकेले मुंबई में रहती है.

सीढि़यों से चढ़ कर जब छरहरी शब्बो सामने आई तो उस का खिला चेहरा और होंठों पर लगी लाली उस की खुशहाली को बयां कर रही थी. हंसती हुई वह बगल में बैठ गई. उस के चेहरे का आधा हिस्सा ऐसिड अटैक से पूरी तरह खराब हो चुका है. उस की एक आंख में रोशनी नहीं है. लेकिन वह आत्मविश्वास से पूरी तरह भरी हुई थी.

उसे अपने बारे में बात करने से किसी तरह की हिचक नहीं थी. उस के काम और उस की इस हालत के बारे में पूछे जाने पर वह बताती है, ‘‘जब मुझे कोई काम नहीं मिल रहा था तो स्वात कंपनी की प्रीति अरोड़ा मैडम ने मुझे अपनी कंपनी में काम दिया. मुझे बहुत अच्छा लगा. अपनी जौब छूटने के बाद मैं दूसरा काम ढूंढ़ रही थी. फेस की वजह से काम नहीं मिल रहा था.

‘‘ऐसिड अटैक फाउंडेशन चलाने वाली प्रणाली शाह ने मुझे प्रीति मैडम का नंबर दिया और कहा कि वे ऐसिड सर्वाइवर और डिसैबल्ड को काम देती हैं. मैं ने कौंटैक्ट किया. इंटरव्यू हुआ और मैं चुन ली गई. यहां सब फ्रैंड की तरह हैं.

पहले दिन से ही मुझे सब का अच्छा व्यवहार मिला. कभी किसी ने मेरे चेहरे का मजाक नहीं उड़ाया. हम सब साथ मिल कर काम भी करते हैं और घूमने भी जाते हैं.

संघर्ष जैसे जीवन का हिस्सा बन चुका

‘‘मैं ने अपना सुंदर चेहरा कभी नहीं देखा है पर अब देखना चाहती हूं. इसलिए सर्जरी करवा रही हूं. अपनी इस हालत की दोषी मैं नहीं, मेरे पिता हैं, जो जेल में हैं. जब मैं 1 महीने की थी. एक दिन मैं मां की गोद में थी, तभी मेरे पिता ने मेरी मां पर गुस्से से ऐसिड फेंक  दिया. उस का कुछ भाग मेरे चेहरे पर आ पड़ा.

मुझे बताया गया कि मां की मृत्यु उसी दौरान हो गई थी और पापा जेल चले गए थे. मुझे कुछ पता नहीं था. 5 साल तक मैं सायन हौस्पिटल में थी. इस के बाद बगल में स्थित अनाथालय श्री मानव सेवा संघ में मुझे डाल दिया गया. मेरी पढ़ाईलिखाई सब कुछ वहीं से हुआ. मुझे पढ़ने का बहुत शौक था.

‘‘एक बार जब मेरा आई क्यू टैस्ट किया गया तो मेरा टैस्ट काफी अच्छा निकला. पहले मुझे अलग स्कूल में डालने की सब की इच्छा थी, लेकिन प्रिंसिपल ने पाया कि मेरी बुद्घि साधारण बच्चों की तरह है. फिर मुझे नौर्मल स्कूल में ऐडमिशन मिला. मैं पढ़ाई में बहुत होशियार थी. हर तरह के क्विज में भाग लेती थी. अनाथालय के प्रैसिडैंट मुझे बहुत बढ़ावा देते थे. इस से मुझ में आगे बढ़ने की इच्छा पैदा होती गई. इस के बाद मैं ने मुंबई की प्रसिद्घ कालेज एसएनडीटी स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

आत्मनिर्भर होने का एहसास

शब्बो को पढ़ाई पूरी करने के बाद से एक अच्छी कंपनी में जौब मिल गई. लेकिन कुछ औफिस कर्मचारियों के आपत्ति करने पर उसे वहां से निकाल दिया गया. वह नम आंखों से कहती है, ‘‘वे कहते थे कि सुबहसुबह ऐसी सूरत देखने से पूरा दिन खराब जाता है. इसलिए 2 महीनों में ही मुझे निकाल दिया. लेकिन मैं क्या करूं? यह मेरी गलती तो नहीं कि लोग मुझे ऐसा कहते हैं.’’

इतना ही नहीं शब्बो पढ़ाई के दौरान भी कई प्रकार की समस्याओं से गुजर चुकी है. वह हंसती हुई कहती है, ‘‘मैं पढ़ने में होशियार थी, पर कोई मुझ से दोस्ती नहीं करता था. मैं अपनी क्लास कभी मिस नहीं करती थी और मेरा काम हमेशा पूरा रहता था. लेकिन जो लड़कियां कालेज बंक करती थीं, उन्हें मेरे नोट्स की जरूरत पड़ती थी. इस तरह धीरेधीरे वे मेरी दोस्त बन गईं.’’

जौब के बाद लाइफ कितनी बदली है? यह पूछे जाने पर शब्बो बताती है, ‘‘अब मैं काम करती हूं, वेतन मिलने पर उसे अपने हिसाब से खर्च कर सकती हूं. मेरा कोई भी नहीं है. मैं ने आज तक किसी रिश्तेदार को नहीं देखा है. मातापिता जब थे, तो रिश्तेदार भी अवश्य रहे होंगे, पर कोई मेरे पास नहीं आया. इसलिए मुझे आत्मनिर्भर होने का एहसास बहुत अच्छा लगता है. मैं थोड़ी दुबली हूं, इस की वजह समय से खाना न खा पाना है. अब मेरे पास पैसा है. मेरा इलाज भी नानावती हौस्पिटल में चल रहा है. मुझे अधिक धूप से बचना पड़ता है. गरमी के मौसम में त्वचा में जलन होती है.

नहीं बनीं जिंदा लाश

ऐसिड अटैक से ग्रस्त महिलाओं के लिए शब्बो संदेश देते हुए कहती है, ‘‘खुद को हमेशा मोटीवेट करें. हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई समस्या है, इसलिए जरूरी नहीं कि आप घर बैठ कर लोगों से दूर रह कर मनोरोगी बनें. यह ठीक नहीं है. बहुतों के पास परिवार हैं पर मेरे पास तो कोई भी नहीं था. किताबें पढ़ कर ही मैं अपनेआप को साहस दे पाई.

‘‘खुद से प्यार करना, खुद के बारे में सोच कर ही आप आगे बढ़ सकते हैं. मुझे देख कर कई ऐसिड अटैक से ग्रस्त लड़कियां जौब के लिए कहती हैं पर बिना शिक्षा के कुछ मिलना संभव नहीं होता, इसलिए उन्हें किसी भी हालत में शिक्षा पूरी करनी चाहिए.’’

हौसले को मिला साथ

शब्बो को पढ़नेलिखने, पेंटिंग बनाने, सिंगिंग व डांसिंग का शौक है. शब्बो को अपनी पहचान बनाने की दिशा में काम करने वाली ‘स्वात कंसल्टैंसी सर्विसेज लिमिटेड’ की ओनर और उ-मी प्रीति अरोड़ा को हमेशा लगता था कि कुछ काम इन के लिए किया जाए. उन्होंने कई बार अखबारों में देखा कि ऐसिड सर्वाइवर की जिंदगी कई प्रकार की जिल्लतों से भरी होती है. समाज उस के साथ बहुत बुरा बरताव करता है.

युवावस्था में कुछ लड़कियों के साथ ऐसे हालात हो जाते हैं. अधिकतर ऐसे केसेज वन साइड लव के होते हैं. उन के मातापिता उन्हें ले कर परेशान हो जाते हैं. वे क्या करें, कैसे उन की जिंदगी सवारें, यह एक बड़ी समस्या उन के सामने आ जाती है. अगर ये लड़कियां काम के लिए जाती हैं तो इन्हें काम नहीं मिलता. ये शारीरिक रूप से शिकार हुई हैं पर इन का मानसिक स्तर तो ठीक है, यही सोच प्रीति को इस तरफ ले आई.

वे कहती हैं, ‘‘सरकार ने ऐसिड अटैक की शिकार लड़कियों को शारीरिक विकलांग का टाइटल दे दिया है, लेकिन क्यों? वे मानसिक रूप से काफी मजबूत होती हैं. इस के अलावा सरकार केवल 3 लाख नुकसान भरपाई के

रूप में एक बार में दे देती है. इस से क्या होता है? इन की पूरी जिंदगी कैसे चलेगी? मैं इस के लिए भी लड़ रही हूं, क्योंकि इस तरह की महिलाएं केवल शारीरिक रूप से पीडि़त नहीं होतीं, बल्कि मानसिक रूप से भी कहीं अधिक पीडि़त होती हैं. पूरी जिंदगी इन्हें अपनेआप से लड़ना पड़ता है. ये एक जिंदा लाश की तरह

होती हैं.’’

सराहनीय प्रयास

ऐसिड अटैक सर्वाइवर को बसाने की दिशा में प्रीति ने कई एनजीओ का सहारा लिया है, जहां उन्हें काम के बारे में जानकारी दी जाती है. ये लोग आम कर्मचारी के बीच में रह कर काम करते हैं. प्रीति की कंपनी की शाखाएं विदेश में भी हैं. यहां आने वाली महिलाओं को उन की योग्यता के अनुसार काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

प्रीति बताती हैं, ‘‘जब मैं शब्बो से मिली थी तो बहुत शौक हो गई थी कि यह कैसे रोज अपनी सूरत को देखती होगी, जबकि हम एक मुंहासे से परेशान हो जाते हैं. लेकिन इस का आत्मविश्वास मुझे बहुत अच्छा लगा. एक आंख से वह कंप्यूटर से ले कर हर लिखापढ़ी का काम अच्छी तरह कर लेती है. काफी सर्वाइवर्स ऐसे होते हैं, जो बाहर निकलने से डरते हैं. ये लड़कियां बहुत अच्छा काम करती हैं.

‘‘कम पढ़ीलिखी सर्वाइवर्स के लिए मैं कई और कंपनियों के साथ जुड़ने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अधिकतर साथ देने से मना कर देती हैं. मैं अपनी कुछ और शाखाएं भी खोलने की कोशिश कर रही हूं, जहां मैं इन्हें ट्रेनिंग दे कर काम दे सकूं. अभी तक मैं ने सरकार से कोई अपील नहीं की है, लेकिन आगे चल कर ऐसे सर्वाइवर्स को जौब की गारंटी हो, ऐसी कोशिश जरूर करूंगी. यह जरूरी है ताकि वे किसी पर निर्भर न हों.’’

दास्तां और भी हैं

शब्बो की तरह आरती ठाकुर भी ऐसिड अटैक सर्वाइवर है और काम करती है. उस की कहानी बहुत ही दर्दनाक है. एक शाम जब वह काम से घर लौट रही थी, तो एक लड़के ने उस के पीछे से आ कर ऐसिड फेंक दिया. गनीमत थी कि उस का चेहरा दुपट्टे से ढका था. फलस्वरूप ऐसिड उस के चेहरे पर न गिर कर गरदन और छाती पर गिरा. जलन के मारे वह चिल्लाने लगी. एक पल के लिए तो उसे समझ में ही नहीं आया कि क्या करे. आसपास के लोगों ने उस पर पानी फेंका. फिर पुलिस आई. तब तक वह 10 से 15% तक जल चुकी थी.

आरती के मकानमालिक का बेटा जो आरती से एकतरफा प्यार करता था, जिसे आरती ने शादी से मना किया था, उसी ने आरती पर ऐसिड अटैक किया था. इस सिरफिरे लड़के ने आरती को अपने साथ शादी करने के लिए दबाव बनाया, जिसे आरती ने मना कर दिया. आरती पर ऐसिड अटैक उस वक्त किया गया जब वह अपने बौयफ्रैंड से शादी करने वाली थी.

सख्त कानून जरूरी

आरती अपनी 1 बहन और मां के साथ मुंबई के सबरबन एरिया में रहती है. वह बताती है, ‘‘वह दिन मेरे जीवन का सब से दुखद था, जब मैं ने अपने बदन को जलते देखा था. मैं जब हौस्पिटल में थी, तब मेरी मां और बहन ने बताया कि अपराधी पकड़ा गया है पर 6 महीने बाद वह बेल पर छूट गया. मैं इस हादसे से टूट चुकी थी. 1 साल तक बाहर नहीं निकली. डर लगता था कि कोई मेरे ऊपर नजर तो नहीं रख रहा. लेकिन जब बाहर निकलने की कोशिश की तो आसपास के लोग मुझे ऐसे घूरते थे जैसे गलती मेरी ही थी. मेरी नौकरी चली गई, शादी टूट गई. लेकिन एक दिन लगा कि मैं गलत नहीं हूं, मैं छिप कर क्यों बैठूं?

‘‘ऐसिड डालने वाला लड़का मेरे मकानमालिक का बेटा था. उस ने पहले भी मुझे 2 बार और मारने की कोशिश की थी, जो मुझे बाद में पता चला. पहली बार अटैक के बाद मैं ने मालवानी पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवाने की कोशिश की थी, क्योंकि तब मैं वहां किराए पर रहती थी. लेकिन पुलिस ने आनाकानी की और कहा कि आप लड़की हो इस झंझट में मत पड़ो. जब समझ में आया कि अपराधी कौन है तब तक देर हो चुकी थी. पुलिस भी ऐसे केसेज में लड़कियों का साथ नहीं देती. ऐसिड अटैक के बाद जब पहली बार औफिस गई तो सब मेरा मजाक उड़ाने लगे, जो काफी बुरा लगा.’’

नहीं टूटा हौसला

आरती का इलाज मुंबई के केईएम हौस्पिटल में फ्री में हो रहा है. वह अब फिर जौब कर रही है. नौकरी ने उस के मानसिक तनाव को कम कर दिया है. वह कहती है, ‘‘अब मैं डरती नहीं, मेरे हिसाब से डरना उसे चाहिए जिस ने अपराध किया है. पुलिस की लापरवाही की वजह से अधिक समस्या आ रही है, पर मैं उसे फिर से जेल भिजवा कर दम लूंगी. मैं केस लड़ रही हूं. मैं उन ऐसिड अटैक लड़कियों से भी कहना चाहती हूं कि मजबूती के साथ आगे बढ़ें. आत्मविश्वास ही आप को किसी भी स्थिति से लड़ना सिखाता है.

‘‘साथ ही मैं सरकार से भी अपील करती हूं कि ऐसे अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान तो है पर उस का ईमानदारी से पालन नहीं किया जाता, जिस से अपराधी खुलेआम घूमते हैं. सजा ऐसी होनी चाहिए कि कोई भी उस में तोड़मरोड़ न कर पाए और अगर कोई करे तो उसे भी सजा हो.’’

यह सही है कि ऐसिड अटैक सर्वाइवर की कहानी कोई नहीं सुनना चाहता, कोई काम नहीं देना चाहता. ऐसे में उन्हें फिर से नई जिंदगी देना आसान नहीं होता. प्रीति अरोड़ा की ऐसे लोगों को फिर से बसाने की मुहीम काबिलेतारीफ है. गृहशोभा के माध्यम से वे उन सभी पीडि़तों से अपील करती हैं कि ऐसिड अटैक से शिकार लड़कियां हिम्मत न खोएं. वे ऐसिड अटैक से ग्रस्त हर लड़की का घर बसाना चाहती हैं. उसे नौकरी दिला कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती हैं.                 

खुद से करें प्यार

यह सही है कि ऐसिड अटैक के बाद कोईर् भी मानसिक और शारीरिक रूप से टूट जाता है. ऐसे में उस के लिए इस सदमे से बाहर निकलना आसान नहीं होता. उसे फिर भी खुद यह समझने की जरूरत होती है कम से कम जान तो बच गई, जो बहुत कीमती है. शारीरिक कमी हुई है, पर मानसिक रूप से वह कमजोर नहीं, बल्कि मजबूत है.

इस के साथसाथ इन बातों पर भी अमल करें:

– अपने अंदर अपराधबोध की भावना न पालें, क्योंकि गलती आप ने नहीं, उस अपराधी ने की है.

– लोग क्या कहेंगे, इस बारे में सोचना बंद करें. खुद से प्यार करना सीखें. सोचें कि मैं जैसी हूं वैसी ही खुश रह सकती हूं.

– अगर आप अधिक डिप्रैस्ड महसूस करती हैं और उस से निकलने में असमर्थ हैं, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लें.

– डा. संजोय मुखर्जी, मनोवैज्ञानिक, बी पौजिटिव  

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