गर्लफ्रैंड मेरे दोस्त के बहुत क्लोज हो गई है, मैं क्या करूं ?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक युवती से बेहद प्यार करता हूं लेकिन अब वह मुझे घास नहीं डालती. दरअसल, पिछले महीने मैं ने उसे अपने एक दोस्त से मिलवाया था. हम तीनों उस दोस्त की गाड़ी से घूमने गए थे. उस के बाद से वह मुझ में कम रुचि लेती है और उस में ज्यादा. मुझे किसी से पता चला कि वह मेरे उसी दोस्त के साथ घूमतीफिरती भी है?

जवाब

आप जिस से प्यार करते हैं लगता है वह आप के बजाय पैसे से प्यार करती है, इसी कारण वह आप के गाड़ी वाले दोस्त से जल्दी इंप्रैस हो गई और उस से दोस्ती कर ली. पहले तो इस बात का पता कर लें कि क्या वाकई उन में दोस्ती हो गई है? अगर हां, तो उसे भूलने में ही भलाई है और अगर नहीं तो जानने की कोशिश करें कि अब वह आप से क्यों नहीं मिलती? अगर आप का साथ उसे प्यारा है तो आप से अवश्य मिलेगी. अगर पैसे का साथ प्यारा है तो आप तो क्या किसी भी अमीर को देख कर उस की ही हो जाएगी.

आप इसे दिल पर न लें बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति सुधारें और आगे बढ़ें. आप भी गाड़ी लें. जब उसे यह पता लगेगा तो अवश्य आप के पास आएगी. तब आप भी उसे घास मत डालिएगा और एहसास करवा दीजिएगा कि प्यार और पैसे में बहुत अंतर है.

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मात्र 24 साल की छोेटी सी उम्र में वह 2 बड़े हादसे झेल चुकी थी. पहली घटना उस के साथ 20 वर्ष की उम्र में घटी थी. तब वह बीकौम कर रही थी. उम्र के इस पड़ाव में युवाओं का किसी के प्यार में पड़ना आम बात होती है. आधुनिक शिक्षा व पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण और समाज की बेडि़यों में ढीलापन होने के कारण युवा आपस में बहुत जल्दी घुलमिल जाते हैं. उन के  संबंध जितनी तीव्रता से परवान चढ़ते हैं, उतनी ही तेजी से टूटते भी हैं. कच्ची उम्र की सोच भी कच्ची होती है और इस उम्र में युवाओं के लिए सही निर्णय लेना लगभग असभंव होता है.

मिलिंद उस का पहला प्यार था. वह भी उसी के कालेज में पढ़ता था और एक साल सीनियर था. पढ़ाई के दौरान होने वाला प्यार मात्र मौजमस्ती के लिए होता है. यह सारे युवा जानते हैं. एकदूसरे को भरोसे में लेने के लिए वे बड़ेबड़े वादे करते हैं, लेकिन जब उन के बीच शारीरिक संबंध कायम हो जाते हैं, तो उस के बाद सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. तब प्यार के बंधन ढीले पड़ने लगते हैं. फिर प्यार में कटुता पनपती है, दूरियां बढ़ती हैं और कई बार इस की परिणति बहुत दुखद होती है.

मिलिंद के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसे पता चला कि वह एक बदमाश किस्म का युवक है. छोटीमोटी लूटपाट, मारपीट ही नहीं, वह युवतियों के साथ जोरजबरदस्ती भी करता था. जो युवती उस के झांसे में नहीं आती, उसे वह अपने मित्रों के माध्यम से अगवा कर उस की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता. कालेज में वह बहुत बदनाम था, लेकिन किसी युवती ने अभी तक उस पर कोईर् दोष नहीं मढ़ा था, इसीलिए उस की हिम्मत दिनोदिन बढ़ती जा रही थी.

शादीशुदा होने के बावजूद मैं किसी दूसरी लड़की के साथ रिलेशनशिप में हूं…

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सवाल

26 वर्षीय विवाहित युवक हूं. विवाह को 5 वर्ष हो चुके हैं. 3 वर्ष का बेटा और 8 महीने की बेटी है. मेरी पत्नी के घर वालों ने उस की शिक्षा को ले कर झूठ बोला था. हम से कहा गया था कि लड़की बीए पास है, जबकि वह सिर्फ 10वीं कक्षा पास है. वह न तो मुझे ठीक से प्यार करती है और न ही बच्चों की परवरिश ठीक से कर पाती है. जिस रिश्ते की बुनियाद ही झूठ पर रखी गई हो वह रिश्ता कितने दिन टिक सकता है? मैं पत्नी को नहीं चाहता. एक और लड़की है जो हर तरह से मेरे लिए उपयुक्त है. मैं उस से शादी करना चाहता हूं. बताएं कि यह कैसे संभव है?

जवाब

रिश्ता तय होने से पहले आप को लड़की के बारे में सारी तहकीकात करनी चाहिए थी पर आप ने ऐसा नहीं किया. अब शादी के 5 साल बीत जाने और 2 बच्चों का पिता बनने के बाद पत्नी की खामियां देख रहे हैं. आप मानते हैं कि आप की बीवी अपने बच्चों की सही परवरिश नहीं कर सकती. ऐसे में बच्चों के प्रति आप की जिम्मेदारी बढ़ गई है. मगर बजाय इस ओर ध्यान देने के आप किसी लड़की के प्रेम में पड़े हैं और उस से शादी के सपने देख रहे हैं. आप को समझना चाहिए कि एक पत्नी के होते हुए दूसरा विवाह गैरकानूनी होगा. अत: किसी मुगालते में न रहें. पत्नी से तालमेल बैठाने और घरपरिवार को संभालने का प्रयास करें.

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शादी के बाद धोखा देने के क्या होते हैं कारण

धोखा देना इंसान की फितरत है फिर चाहे वह धोखा छोटा हो या फिर बड़ा. अकसर इंसान प्यार में धोखा खाता है और प्यार में ही धोखा देता है. लेकिन आजकल शादी के बाद धोखा देने का एक ट्रेंड सा बन गया है. शादी के बाद लोग धोखा कई कारणों से देते हैं. कई बार ये धोखा जानबूझकर दिया जाता है तो कई बाद बदले लेने के लिए. इतना ही नहीं कई बार शादी के बाद धोखा देने का कारण होता है असंतुष्टि. कई बार तलाक का मुख्‍य कारण धोखा ही होता है. लेकिन ये जानना भी जरूरी है कि शादी के बाद धोखा देना कहां तक सही है, शादी के बाद धोखे की स्थिति को कैसे संभालें. क्या करें जब आपका पार्टनर आपको धोखा दे रहा है.

शादी के बाद धोखा देने के कारण

असंतुष्टि- कई बार पुरूष को अपनी महिला साथी से संभोग के दौरान असंतुष्टि होती है जिसके कारण वह बाहर की और जाने पर विविश हो जाता है और जल्दी ही वह दूसरी महिलाओं के करीब आ जाता है, नतीजन वो चाहे-अनचाहे अपनी महिला साथी को धोखा देने लगता है.

खुलापन- समाज में आ रहे खुलेपन के कारण भी पुरूष अपनी महिला साथी को धोखा देने से नहीं चूकता. दरअसल, समाज में खुलापन आने के कारण लोग खुली मानसिकता के हो गए हैं जिससे उन्हें विवाहेत्तर संबंध बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं होती और महिलाएं भी बहुत बोल्ड हो गई हैं. इस कारण भी पुरूष अपनी महिला साथी का धोखा देते हैं.

संभावनाओं के कारण- आजकल विवाहेत्तर संबंध बनने की संभावनाएं अधिक हैं यानी विवाहेत्तर संबंध आसानी से बन जाते हैं. जिससे पुरूष अपनी पत्नी को धोखा देने लगते हैं, यह सोचकर कि उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा.

आपसी वार्तालाप ना होना- पुरूष अकसर चाहते हैं कि वो अपनी पत्नी से खूब बातें करें और उनकी पत्नी भी अपनी बातें शेयर करें लेकिन जब आपसी वार्तालाप या संवाद की स्थिति खत्म हो जाती है तो रिश्तों में दरार आने और धोखा देने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.

प्रयोगवादी होना- लोग आजकल नए-नए एक्सपेरिमेंट करते हैं. जब कोई पुरूष रिश्तों से उबने लगता है तो वह एक्सपेरिमेंट करने से नहीं चूकता. लेकिन जब पत्नी इसमें सहयोग नहीं देती तो पुरूष धोखा देने लगते हैं.

महिलाओं का शादी के बाद धोखा देने के कारण

अफेयर होना- आमतौर पर महिलाएं शादी के बाद पुरूषों को इसीलिए धोखा देने लगती हैं, क्योंकि उनका शादी से पहले किसी से अफेयर होता है या फिर उनका पहला प्रेमी उन्हें परेशान और ब्लैकमेल करता है जिससे वे धोखा देने पर मजबूर हो जाती हैं.

विश्वास ना होना- इसीलिए कुछ महिलाएं धोखा देने लगती हैंक्योंकि उनका पति उन पर विश्वास नहीं करता या फिर बिना किसी वजह शक करता है.

बोरियत होना- कई बार महिलाएं घर में रहकर या फिर एक ही तरह के रूटीन से बोर हो जाती हैं और अकेले रहते-रहते वे बाहर की और आकर्षित होती हैं. नतीजन कई बार उनके इससे विवाहेत्तर संबंध भी बन जाते हैं.

साथी से विचार ना मिलना- कई बार पति से विचार ना मिलना या फिर हर समय घर के झगड़े के कारण भी महिलाएं बाहर की ओर आकर्षित होती हैं.

इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं जिससे महिलाएं और पुरूष शादी के बाद भी अपने साथी को धोखा देने लगती हैं.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Shahrukh Khan की फैन निकिता दत्ता ने ‘मेहंदी लगा कर रखना’ पर लगाए गजब के ठुमके

शाहरुख खान (Shahrukh Khan) के लिए निकिता दत्ता के प्यार की कोई सीमा नहीं है. बारबार, उन्होंने शाहरुख खान के लिए अपने प्यार का इजहार किया है और हाल ही में अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वह ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के एक ट्रैक पर थिरकती नजर आ रही हैं.

अभिनेत्री अजरबैजान के बाकू में अपने समय का आनंद ले रही थी, जब वह एक दुकान पर गई जहां दुकानदार ने ‘मेहंदी लगा कर रखना’ गाना बजाया. शाहरुख खान की जबरदस्त फैन निकिता दुकान पर खड़ी हो गई और नाचने लगी.

ऐक्ट्रेस ने अपना वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया और इसे कैप्शन दिया, “एक सार्वभौमिक प्रेम भाषा है. इसे @iamsrk कहा जाता है. यह बाकू में एक बाकलावा की दुकान है! इस आदमी के पास उसके गानों से भरी पूरी प्लेलिस्ट थी.”

निकिता दत्ता ने सुपरस्टार शाहरुख खान को “सार्वभौमिक प्रेम भाषा” कहा है. इस साल की शुरुआत में निकिता ने शाहरुख खान के साथ डेट पर जाने की इच्छा शेयर की थी. अभिनेत्री ने कहा, “निस्संदेह, शाहरुख खान, मैं हमेशा उनसे प्रभावित रहती हूं और मैं उनके साथ काम करने के लिए मरी जा रही हूं.”

निकिता दत्ता पेशेवर मोर्चे पर, निकिता सिद्धार्थ आनंद की नेटफ्लिक्स प्रोडक्शन, ‘ज्वेल थीफ’ में अभिनय करने के लिए तैयार हैं, जहां वह सैफ अली खान और जयदीप अहलावत के साथ स्क्रीन शेयर करेंगी.

बिना आंखों के चढ़ गई अमेरिका का ऊंचा पर्वत, कौन है यह साहसी महिला

जब किसी के जीवन में कोई दुर्घटना घटती है, तो वह जीना छोड़ देता है. लेकिन शौन चेशायर (Shawn Chesire) ने अपनी आंखें खोने के बाद हिम्मत नहीं हारी और एथलैटिक्स की ओर रुख किया.

एक रिपोर्ट के अनुसार, शौन ने कहा,”मैं वास्तव में एक अंधेरे कोने में थी और मुझे अंधेपन से कोफ्त होता था. लेकिन खेल और शारीरिक चुनौतियों ने मुझे जीने का एक और मौका दिया.”

जब बात पैरालिंपिक की हो, तो इस खेल की खिलाड़ियों के हौसले को सलाम है. न इन्हें सिर्फ कङी मेहनत करनी पङती है बल्कि सामने कई चुनौतियां भी आती हैं, जिन का मुकाबला कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है, लेकिन पैरालिंपिक खिलाड़ियां पूरे जोश और उत्साह के साथ खेल के मैदान में जंग से जीत जाते हैं.

अंधा व्यक्ति काम नहीं कर सकता

विकलांग शब्द सुनते ही लोगों के जेहन में सिर्फ यही बात आती है कि अरे, वह कोई काम कैसे कर सकता/सकती है. आएदिन मैट्रो, बस या रास्ते में हमें विकलांग लोग देखने को मिलते हैं। कई लोग तरस खा कर उन की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, तो कई लोग उन्हें देखते ही मुंह मोड़ लेते हैं. लेकिन इन सब से अलग कई विकलांग लोगों ने दुनियाभर में अपनी बड़ी पहचान बनाई है.

आंखें खोने के बाद भी शौन क्यों नहीं रोईं

किसी ने सच ही कहा है कि अगर हौसला बुलंद हो, तो जीवन में कुछ करने की चाह होने पर बड़ीबड़ी मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं.’ ये पंक्तियां अमेरिकी सेना के पूर्व सैनिक और पूर्व पैरामैडिक ईएमटी शौन चेशायर पर फिट बैठती है. जी हां, 49 साल की शौन चेशायर ब्रेन में गहरी चोट लगने के कारण पूरी तरह से अंधी हो गई थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने दृढ़ संकल्प लिया और अपने सपने को पंख दी और फिर बड़ी कामयाबी हासिल की.

बिना किसी गाइड के कैसे बनी चैंपियन

आमतौर पर अंधे व्यक्ति को घूमने के लिए हमेशा एक गाइड की जरूरत होती है, लेकिन शौन बिना किसी गाइड के पैदल यात्रा करने वाली पहली ब्लाइंड महिला बनी. हार न मानते हुए शौन ने रोड साइक्लिंग और ट्रैक दोनों पर 13 बार पैरासाइकिलिंग यूएस नैशनल चैंपियन बनीं.

अंधे व्यक्तियों के लिए कैसे बनीं मिसाल

शौन ने कई उपलब्धियां हासिल कीं. उन्होंने 2014 में लंदन में हुए पहले इनविक्टस गेम्स और 2016 के रियो पैरालिंपिक में अमेरिका को रिप्रेजैंट भी किया था. वह यूएस आर्मी विमेंस हौल औफ फेम की सदस्य भी हैं. नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए शौन चेशायर एक बहुत बड़ी मिसाल हैं.

बिना आंखों के चढ़ गईं 22 हजार फुट की उंचाई

साल 2018 में शौन ने ग्रैंड कैनियन को 2 बार ट्रैक करने का रिकौर्ड बनाया. 22 हजार फुट की ऊंचाई के साथ 45 मील की इस यात्रा को सिर्फ 24 घंटे और 15 मिनट में पूरा किया. जब शौन ने पहली यात्रा की थी, इस की तुलना में दूसरी यात्रा कम समय में पूरा किया. बिना किसी गाइड के किसी नेत्रहीन व्यक्ति के लिए इस उपलब्धि को हासिल करना एक आसाधरण जीत है.

महिलाओं के लिए बनीं मिसाल

कहा जाता है कि वे अकसर बिना किसी तैयारी के मैराथन दौड़ में शामिल होती हैं. शौन की यह यात्रा लोगों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है.

अगर हमारे अंदर साहस, दृढ़ संकल्प और कुछ करने की इच्छाशक्ति हो, तो हम किसी भी मुश्किल का सामना कर अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं.

क्या है पैरालिंपिक खेल

पैरालिंपिक खेल विकलांगों के लिए सब से बड़ा अंतर्राष्ट्रीय आयोजन है. यह एथलीटों के लिए सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य से किया जाता है. हर 2 साल में पैरालिंपिक खेल आयोजित किए जाते हैं.

पहला पैरालंपिक खेल 1960 में रोम में आयोजित किया गया था. न्यूजीलैंड ने पहली बार 1968 में तेल अवीव में भाग लिया था.

स्पाई यूनिवर्स की छठी फिल्म ‘वार 2’ में मेन लीड में नजर आएंगी Kiara Advani, सेट से शेयर की फोटो

बौलीवुड अभिनेत्री कियारा आडवाणी (Kiara Advani) इस समय अपकमिंग फिल्म ‘वार 2’ की शूटिंग कर रही हैं. हाल ही में उन्होंने सेट से निर्देशक अयान मुखर्जी के साथ एक फोटो शेयर की, जिसमें वह व्हाइट ड्रेस में दिख रही हैं. कियारा ने फोटो के कैप्शन में लिखा, “होली संडे @ayan_mukerji.”

kiara advani

मेन लीड

‘वार 2’, जो स्पाई यूनिवर्स की सिक्स फिल्म है, इसमें कियारा में लीड के रूप में नजर आएंगी, उनके साथ ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर भी होंगे. यह पहली बार है जब कियारा ऋतिक रोशन के साथ स्क्रीन शेयर करेंगी.

विदेश में शूट

‘वार 2’ की टीम ने हाल ही में फिल्म का एक हिस्सा विदेश में शूट किया, और ऋतिक और कियारा के दृश्यों की झलक ने सोशल मीडिया पर धूम मचा दी है, जिससे उनकी औनस्क्रीन जोड़ी को लेकर उत्साह बढ़ गया है.

डिफरैंट रोल

कियारा ने 2014 में फिल्म ‘फुगली’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. दूसरी फिल्म ‘एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ 2016 में रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने एम.एस. धोनी की वाइफ का रोल निभाया था. लेकिन उनका करियर ओटीटी प्लेटफौर्म पर 2018 में रिलीज फिल्म ‘लस्ट स्टोरीज’ के साथ आगे बढ़ा. इसके बाद हिंदी फिल्में कबीर सिंह, गुड न्यूज, लक्ष्मी, इंदू की जवानी और शेरशाह में डिफरैंट रोल निभाया. जिसे उनके फैंस ने काफी पसंद किया. इस समय ‘वार 2’ के अलावा, कियारा आडवाणी के पास कई बड़ी फिल्में हैं, जिनमें राम चरण के साथ ‘गेम चेंजर’, यश के साथ ‘टौक्सिक’ और रणवीर सिंह के साथ ‘डौन 3’ शामिल हैं.

वह पगली सी लड़की: सेजल ने खत में क्या लिखा था

औफिस में आते ही मैं ने रोज की तरह अपना लैपटौप औन किया और एमएस वर्ड में जा कर एक बढि़या सब ब्लौग लिखा, जिसे मैं रास्तेभर सोचता आ रहा था. जल्द ही उसे कौपी कर के अपने ब्लौग ‘अनजाने खत’ में पेस्ट कर के उसे पोस्ट कर दिया. अपने ब्लौग से लिंकअप करते हुए मैं ने उस का भी ब्लौग देखा ‘खुशियों भरी जिंदगी.’ मगर आज भी उस ने कुछ नहीं लिखा था.

3 दिन हो गए थे, उस ने कुछ भी नहीं लिखा, जबकि वह तो रोज लिखने वालों में से है. कभीकभी तो एक दिन में 2-3 कविताएं भी लिख डालती थी. कहीं उस की तबीयत तो नहीं खराब हो गई? मैं फेसबुक पर गया. वहां भी उस की ऐक्टिविटी 3 दिन पहले की दिख रही थी. व्हाट्सऐप पर भी लास्ट सीन देखा तो वही हाल था. आखिर वह पिछले 3 दिनों से है कहां? कहीं बीमार तो नहीं? नहींनहीं वह बीमार भी होती तब भी कुछ न कुछ जरूर लिखती थी. ज्यादा बड़ा नहीं तो 2-3 पंक्तियों की कोई क्षणिका या हाईकू… कहीं उस का लैपटौप व मोबाइल तो नहीं खराब हो गया? अरे नहीं, दोनों एकसाथ कैसे खराब हो सकते हैं? चलो फोन कर के ही देखता हूं. लेकिन उस ने मु झे मैसेज या फोन करने के लिए मना कर रखा है. हमेशा वही फोन करती है. मैं खुद से ही सवालजवाब करने में उल झा था.

मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उसे फोन करूं. कहीं उस के पति ने देख लिया तो बेचारी मुसीबत में पड़ जाएगी. यही सोच कर मैं ने उसे कौल या मैसेज नहीं किया.

‘1-2 दिन और इंतजार कर लेता हूं, उस के बाद कुछ सोचूंगा,’ मैं ने अपने दिल को सम झाया और फिर अपने काम में लग गया.

मगर आज मेरा मन औफिस के कामों में बिलकुल नहीं लग रहा था. बारबार मेरा ध्यान मोबाइल पर ही जा रहा था. शायद उस की कोई कौल या मैसेज आ गया हो. लंच टाइम हो गया, फिर भी कोई मैसेज नहीं आया. उसे मेरे लंच टाइम का पता था. वह अकसर मु झे इस वक्त फोन करती थी.

मैं कभीकभी उस पर  झल्लाया भी करता था, ‘‘प्लीज लंच टाइम में फोन मत किया करो. मु झे खाते हुए बोलना पसंद नहीं.’’

‘‘तुम से बोलने को किस ने कहा. बस सुनते रहो न मैं जो कह रही हूं. तुम्हारे लंच टाइम के समय मैं भी खाना खाती हूं और तुम से बात किए बिना मु झे खाने में कोई स्वाद नहीं लगता,’’ और इस के साथ ही जोरदार हंसी.

अचानक मु झे भी हंसी आ गई. अचकचा कर मैं ने अपनी अगलबगल देखा, कहीं कोई मु झे अकेले यों हंसते हुए तो नहीं देख रहा. फिर मैं ने जल्दी से अपना लंच खत्म किया और कैंटीन की बालकनी में आ गया. कैंटीन के पीछे वाली बालकनी से एक पार्क दिखाई देता था.

जाड़े का मौसम था. बच्चे धूप में खेल रहे थे. उन की आवाजें तो नहीं सुनाई दे रही थीं, मगर चेहरे देख कर खिलखिलाहट का अंदाजा लगाया जा सकता था. वह भी तो ऐसे ही खिलखिलाती रहती थी. फोन पर या मिलने पर या फिर मैसेज में भी वह बिना स्माइली के बात नहीं करती थी. बेहद जिंदादिल थी वह.

एक कवि सम्मेलन के दौरान हम दोनों मिले थे. हम दोनों ही लेखक थे. कविता एवं ब्लौग लिखना हम दोनों का शौक था.

पहली बार जब उस ने मेरी कविता सुनी थी तो प्रोग्राम के दौरान ही बिंदास हो कर कहा था, ‘‘आप इतनी रोमांटिक कविताएं कैसे लिख लेते हो? मु झे तो आप के शब्दों से प्यार हो गया है.’’

मैं कुछ कहता उस से पहले ही उस ने अपना मोबाइल निकाल कर कहा, ‘‘मु झे अपना मोबाइल नंबर दीजिए.’’

फिर जैसे ही मैं ने अपना मोबाइल नंबर बताया उस ने मु झे कौल कर दिया, ‘‘यह मेरा मोबाइल नंबर है, सेव कर लीजिएगा. जब भी आप की कविता सुनने का दिल किया करेगा मैं आप को परेशान कर दिया करूंगी,’’ कह वह निकल गई.

‘‘पगली कहीं की,’’ अनायास ही मेरे मुंह से अभी निकल गया.

उस दिन भी तो उस के जाने के बाद यही शब्द कहे थे मैं ने. उस के नाम से ज्यादा मैं ने उसे पगली कह कर ही बुलाया है. 1 हफ्ते के अंदर ही हम दोनों व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम सब जगह एकदूसरे को लाइक, कमैंट और शेयर करने लगे थे और साथ ही लंबीलंबी चैटिंग भी. वह अकसर कहा करती कि मैं तुम्हारे शब्दों में जीती हूं. तुम्हारे ब्लौग ‘अनजाने खत’ सीधे मेरे दिल तक पहुंचते हैं.

एक दिन मैं ने उसे मैसेज किया, ‘‘सोच रहा हूं मैं ब्लौग्स लिखना छोड़ दूं.’’

‘‘फिर तो मैं भी तुम्हें छोड़ दूंगी,’’ तुरंत उस का मैसेज आया.

‘‘कोई बात नहीं, छोड़ देना. तुम्हारा भी समय बचेगा और मेरा भी. वैसे भी मेरी पत्नी को बिलकुल पसंद नहीं है मेरा कविता या ब्लौग लिखना और तुम्हारे पति को भी तो नहीं पसंद है.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी का तो पता नहीं, मगर मेरे पति को तो मैं भी पसंद नहीं… तो क्या मैं जीना छोड़ दूं? अब मैं तुम्हारी कविताओं के साथसाथ तुम से भी प्यार करने लगी हूं.’’

साथ ही एक चुंबन वाली इमोजी के साथ आया उस का यह मैसेज पढ़ कर मेरे मुंह से फिर निकला, ‘‘पगली कहीं की,’’ और न जाने कैसे रिप्लाई भी हो गया था.

‘‘तो इस पगली से मिलने पागलखाने आ जाओ न.’’

‘‘पागलखाने?’’

‘‘हां, इस रविवार को एक कवि सम्मेलन का न्योता मिला है मु झे. तुम भी आ जाओ. फिर दोनों मिल कर पागलपंती करते हैं.’’

‘‘मैं नहीं आने वाला.’’

मेरे इनकार करने के बावजूद उस ने मु झे उस कवि सम्मेलन का पता भेज दिया.

रविवार का दिन था. मैं भी उस से मिलने का लोभ संवरण न कर पाया और उस के बताए पते पर पहुंच ही गया.

‘‘क्यों छली जाती हो तुम,

कभी सीता बन कर राम से,

तो कभी राधा बन कर श्याम से?’’

जब उस ने स्त्रियों के लिए और ओज, उत्साह एवं उम्मीद से भरी हुई अपनी इस नवरचित कविता का पाठ किया तो सारा हौल तालियों से गुंजायमान हो गया. प्रोग्राम के बाद हम दोनों ही कौफी शौप में जा बैठे.

‘‘तुम्हें डर नहीं लगता इस तरह मेरे साथ खुलेआम मिलने में जबकि तुम्हारे पति बेहद सख्त किस्म के इंसान हैं?’’ मैं ने उस से संजीदा होते हुए पूछा.

‘‘डर तो बहुत लगता है, मगर क्या करूं? तुम से प्यार जो करती हूं, तुम से मिले बिना रहा नहीं जाता,’’ उस ने हमेशा की तरह खिलखिलाते हुए कहा.

‘‘फिर वही पागलों वाली बातें… मैं शादीशुदा हूं, तुम्हें पता है न और मैं अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता हूं,’’ मैं ने पहले से भी ज्यादा गंभीरतापूर्वक कहा.

‘‘मुझे पता है सबकुछ… मैं भी शादीशुदा हूं और मु झे तुम से कोई शादीवादी नहीं करनी है… और मैं ने तुम्हें कब मना किया कि तुम अपनी पत्नी से प्यार मत करो? मैं तो बस अपने दिल की बात कर रही हूं. मैं तुम से प्यार करती हूं, तो करती हूं बस… और मेरी ऐसी कोई शर्त नहीं कि बदले में तुम भी मु झे प्यार करो,’’ कहने के साथ ही वह फिर हंसी.

मगर इस बार उस की हंसी मु झे खोखली लगी. जब मैं ने उस की आंखों में  झांका तो उस ने गरम कौफी का मग मेरे हाथ से छुआ दिया और फिर खिलखिला उठी.

‘‘तुम सचमुच पागल हो… तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. किसी दिन तुम्हारे पति या तुम्हारे घर वालों को पता चल गया ये सब तो तुम्हें तो घर से निकालेंगे ही मु झे भी कहीं का नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘अरे वाह, कितना मजा आएगा… मेरे पति मु झे निकाल देंगे और तुम्हारी पत्नी तुम्हें भगा देगी घर से, फिर… हम दोनों प्रेम की गली में एक छोटा सा घर बसाएंगे, कलियां न सही कांटों से ही सजाएंगे…’’ उस ने ये बातें इस अंदाज में कहीं कि मैं जोर से हंस पड़ा.

‘‘चल हट पगली,’’ मेरे मुंह से निकल गया.

‘‘अब जल्दी चलो वरना तुम्हारे साथ रहा तो यही होने वाला है,’’ मैं ने जल्दी से कौफी का बिल चुकाया और उसे 2 मिनट बाद निकलने को बोल कर मैं बाहर निकल गया.

रास्तेभर उस की बातें मेरे मन को गुदगुदा रही थीं. मु झे बेहद आश्चर्य होता था कि वह 40 की उम्र में भी इतनी बिंदास हो सकती है जबकि मैं 35 की उम्र में भी 55 की उम्र वालों की तरह संजीदा रहने लगा हूं.

‘वह करोड़पति की पत्नी है और मैं मामूली सा बिजनैसमैन. मु झे रोज अपनी रोजीरोटी की चिंता रहती है और वह दुनियादारी से बिलकुल बेफिक्र,’ मैं ने मन ही मन सोचा.

तभी एक ठंडी हवा का  झोंका गुजरा और मु झे एहसास हुआ कि मैं यहां बहुत देर से खड़ा हूं. मैं ने उस की यादों को  झटका और औफिस के कामों में व्यस्त हो गया.

इसी तरह 1 हफ्ता बीत गया, मगर उस का कहीं कोई अतापता नहीं था.

‘काश, मु झे उस के घर का पता मालूम होता तो वहां जा कर उस का हालचाल जान लेता… कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के पति को मेरे बारे में पता चल गया हो?’ मैं मन ही मन बुदबुदाया.

आज मु झे इस आभासी दुनिया के रिश्ते पर कोफ्त हो रही थी. उस के सोशल मीडिया का पता तो मालूम था, मगर मैं ने कभी उस के घर का पता पूछने की जहमत नहीं उठाई.

तभी मु झे याद आया कि मेरी फेसबुक फ्रैंड लिस्ट में उस की छोटी बहन सेजल भी है. वह अकसर कहा करती थी कि सेजल मेरी सहेली जैसी है.

‘क्यों न मैं सेजल से पूछ लूं’ सोच मैं ने तुरंत सेजल का प्रोफाइल खोला और मैसेंजर पर एक औपचारिक मैसेज डाल दिया.

मेरी आशा के विपरीत उस ने 2 मिनट के बाद ही मु झे मैसेंजर कौल किया. मेरे कुछ पूछने से पहले ही उस ने कहा, ‘‘मु झे आप से दीदी के बारे में कुछ बातें करनी हैं. क्या हम कहीं शांत जगह मिल सकते हैं?’’

मैं ने उसे अपने औफिस के बाहर एक छोटे से रैस्टोरैंट में बुला लिया. 1 घंटे के बाद ही मैं ने अपनी सैक्रेटरी को काम सम झाया और बाहर निकल गया.

मेरे रैस्टोरैंट में पहुंचने के 5 मिनट बाद ही सेजल आ गई. वह अपनी दीदी के बिलकुल विपरीत प्रवृत्ति की लग रही थी. आंखों पर मोटा चश्मा और चेहरे पर गहरी उदासी…

‘‘सब से पहले तो मैं आप को धन्यवाद देना चाहूंगी. आप पहले पुरुष हो जिस ने मेरी दीदी की जिंदगी में ढेर सारा प्यार और खुशियां बिखेरीं,’’ सेजल ने साधारण शब्दों में ही कहा था, मगर मु झे न जाने क्यों एक व्यंग्य सा महसूस हुआ.

खुशियां तो उस ने मेरी जिंदगी में बिखेर रखी थीं. उस का चेहरा देखते ही मैं अपनी सारी परेशानियां भूल जाता था. उत्साह से लबरेज उस की बातें और ब्लौग्स पढ़ कर मैं ने जिंदगी को सकारात्मक नजरिए से देखना शुरू किया था. मगर मैं ने उस से कभी नहीं कहा और अफसोस कि आज भी सेजल के सामने सोच जरूर रहा था, मगर बोल नहीं सका.

‘‘तुम्हारी दीदी खुद भी बहुत अच्छी हैं,’’ मैं ने मुसकराते हुए बस इतना ही कहा.

‘‘और क्या जानते हैं आप मेरी दीदी के बारे में?’’ सेजल ने मेरे चेहरे को एकटक देखते हुए पूछा, तो मैं सकपका गया.

‘‘ज… ज… ज्यादा कुछ नहीं, उस ने ही बताया था कि वह एक बहुत बड़े बिजनैसमैन की पत्नी है और खाली समय में कविताएं लिखती हैं, बस,’’ मैं ने हकलाते हुए कहा.

‘‘ऊं… ह… खाली समय… समय ही कहां था दीदी के पास.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं सेजल की बातों का मतलब नहीं सम झ पाया.

‘‘अच्छा, ये सब छोड़ो. सब से पहले तुम मु झे यह बताओ कि तुम्हारी दीदी आजकल है कहां? हफ्ता बीत गया उस ने मु झ से कोई संपर्क नहीं किया… भूल गई क्या मु झे?’’ अचानक मु झे याद आया कि मैं ने जल्दी पूछ लिया.

‘‘आप को पता है, मेरी दीदी की शादी को 10 साल हो गए थे,’’ सेजल ने मेरे सवाल को नजरअंदाज करते हुए कहा.

‘‘हां, उस ने मु झे बताया तो था.’’

‘‘मगर 1 साल पहले ही दीदी ने अपने पति से तलाक ले लिया था.’’

‘‘क्या? यह तो उस ने मु झे कभी नहीं बताया,’’ मैं चौंक उठा.

‘‘कैसे बताती… पिछले 8 महीनों से आप उसे खूबसूरत जिंदगी दे रहे थे. ऐसे में वह अपनी तकलीफें बता कर आप की हमदर्दी नहीं बटोरना चाहती थी.

‘‘शादी के कई वर्षों बाद भी जब दीदी मां नहीं बन पा रही थी, तब जीजाजी ने उस का कई जगह इलाज करवाया तो पता चला कि कुछ शारीरिक कमियों के कारण दीदी कभी मां नहीं बन सकती. फिर तो जीजाजी और उन के घर वालों ने दीदी को बां झ कहकह कर ताने देना आरंभ कर दिया. उन लोगों की दिलचस्पी अब केवल दीदी की सैलरी में रहने लगी थी. मेरे जीजाजी एक मामूली से शिक्षक थे, जबकि दीदी कालेज की प्रवक्ता. दीदी के पैसों से ही सारी गृहस्थी चलती थी. फिर भी उन लोगों ने कभी मेरी दीदी का सम्मान नहीं किया,’’ सेजल की आंखों में आंसू आ गए थे.

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर सिर्फ उस की बातें सुन रहा था. मु झे सम झ नहीं आ रहा था कि मैं उस से क्या कहूं. उस ने मु झ से ये सब क्यों छिपाया?

‘‘दीदी की ससुराल वाले जीजाजी की शादी मु झ से करवाने के लिए दीदी पर दबाव डालने लगे ताकि दीदी का पैसा भी उन्हें मिलता रहे और उन की वंशबेल भी आगे बढ़े. जब दीदी ने इस का विरोध किया तो उन लोगों ने प्रताड़ना की सीमा पार करनी शुरू कर दी. इस के बाद दीदी ने जीजाजी तथा उन के परिवार वालों पर घरेलू हिंसा का केस दायर कर दिया और तलाक के लिए अपील की.

‘‘जीजाजी ने बहुत कोशिश की दीदी के साथ सम झौता करने की. धमकी देने के साथसाथ मेरी दीदी के चरित्र पर भी उंगलियां उठाईं उन्होंने, मगर मेरी दीदी विचलित नहीं हुई. वह तलाक ले कर ही मानी. तलाक के बाद दीदी अभी संभली भी नहीं थी कि उसे पता चला कि वह सर्वाइकल कैंसर की लास्ट स्टेज में पहुंच चुकी है. डाक्टर ने सिर्फ

8-10 महीने की जिंदगी बताई,’’ सेजल आगे न बोल सकी और फफकफफक कर रोने लगी.

‘‘उफ, उसे कैंसर है? उस ने मु झे बताया भी नहीं… उसे देखने से भी मु झे कभी महसूस नहीं हुआ कि वह…’’ मेरी आवाज भर्रा गई.

‘‘दीदी को कभी किसी की हमदर्दी अच्छी नहीं लगती थी. तभी तो वह कीमोथेरैपी के दुष्प्रभाव से नष्ट हुई अपनी खूबसूरती को भी विग तथा मेकअप से छिपा कर रखती थी और अपने दर्द को हंसी के मुखोटे में दबा लेती थी. अपनी ‘खुशियों भरी जिंदगी’ के माध्यम से लोगों को खुशियां बांटा करती थी और अपनी कविताओं में सभी औरतों की हौसलाअफजाई करती थी. दीदी ने कभी किसी से कुछ लिया नहीं… उस ने हमेशा देना ही जाना था,’’ सेजल ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘‘जानती थी का क्या मतलब? वह अभी कहां है? मु झे मिलना है उस से,’’ मैं ने बच्चों की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘अब वह इस दुनिया में नहीं रही,’’ सेजल ने सपाट शब्दों में कहा.

‘‘क्या? तुम यह क्या कह रही हो सेजल? मु झे सम झ नहीं आ रहा कि मैं क्या कहूं.’’

‘‘यह लिफाफा और लैपटौप उस ने मु झे आप को देने को कहा था,’’ कह सेजल ने एक लैपटौप बैग और एक लिफाफा मु झे पकड़ा दिया.

‘‘दीदी ने मु झ से कहा था कि वह तुम से जरूर संपर्क करेगा और जब तक वह तुम से संपर्क न करे तुम उसे मेरे बारे में मत बताना,’’ सेजल के कुछ और बोलने से पहले मैं लिफाफा खोल चुका था.

लिफाफे में उस का मोबाइल था और साथ में एक पत्र, जिसे उस ने

लाल स्याही से लिखा था.

‘सौरी डियर,

‘अब तक तो तुम्हें मेरी जिंदगी और मौत से जुड़ी सारी बातें पता चल ही चुकी होंगी. तुम से छिपाया इस के लिए माफ कर देना. मैं तो तुम्हारा सच्चा प्यार चाहती थी, तुम्हारी हमदर्दी नहीं. मु झे अच्छी तरह पता था कि तुम मु झ से प्यार नहीं करते थे, मगर मैं तो तुम्हारे हर ‘अनजाने खत’ पर स्वयं ही अपना नाम लिख लिया करती थी. तुम्हारे शब्दों में खुद को महसूस किया करती थी. तुम्हारे साथ बिताए 8 महीने मेरी जिंदगी का सब से खूबसूरत समय है. तुम्हारे ब्लौग्स में तुम्हारी सारी प्यारभरी बातों को मैं तुम्हारे प्यार की बारिश सम झ कर सराबोर हो जाती थी. अब तुम रोना मत, क्योंकि मैं हंसते हुए यह पत्र लिख रही हूं.

‘वैसे अच्छा ही हुआ जो तुम ने मु झ से प्यार नहीं किया वरना मु झे जिंदगी से प्यार हो जाता और मैं इतनी जल्दी आसानी से मर नहीं पाती. एक बात पूछूं…

‘जिंदगी दर्द की इतनी घनी छांव क्यों है

अपनों के इस शहर में परायों से इतना लगाव क्यों है?’

‘हो सके तो मेरी एक आखिरी इच्छा पूरी कर देना. जब भी कभी अपनी कविताओं की पुस्तक छपवाना तो उस के साथ मेरी भी कविताएं छपवा देना. मु झे लगेगा कि मैं मर के भी तुम्हारे साथ हूं.

‘अपना लैपटौप और मोबाइल तुम्हें दे रही हूं. मेरी सारी रचनाएं इसी में हैं. पासवर्ड में अपना और मेरा नाम एकसाथ लिख देना.

‘मरने से पहले तुम से नहीं मिल सकी और इतना सारा  झूठ बोलने के लिए मु झे माफ कर देना.

‘तुम्हारी पगली…’

और इस के साथ ही उस ने एक बड़ी सी स्माइली बना दी थी.

मैं ने जब नजरें उठाईं तो सेजल जा चुकी थी. दिल ने चाहा कि मैं जोर से दहाड़ें मार कर रोऊं और यहां मौजूद सारी चीजों को पटक कर तोड़ दूं. मगर मैं कुछ भी नहीं कर पाया, क्योंकि मैं उस से प्यार जो नहीं करता था. वह मेरी प्रेमिका नहीं थी, लेकिन मेरे अंदर कुछ दरक रहा था बिना आवाज.

मैं ने उस की लिखावट और उस के पत्र को होंठों से लगा लिया. ऐसा लगा जैसे वह फिर से खिलखिला उठी हो. मगर मैं ने  झल्लाते हुए कहा, ‘‘तुम बिलकुल पागल हो और आज मु झे तुम्हारी इस पागलपंती पर बहुत गुस्सा आ रहा है,’’ और मैं जोरजोर से रोने लगा बिना यह देखे कि आसपास के लोग मु झे देख रहे हैं.

एक सफर ऐसा भी: क्या था स्वरुप का प्लान

दिल्ली के प्रेमी युगलों के लिए सब से मुफीद और लोकप्रिय जगह है लोधी गार्डन. स्वरूप और प्रिया हमेशा की तरह कुछ प्यारभरे पल गुजारने यहां आए थे. रविवार की सुबह थी. पार्क में हैल्थ कौंशस लोग मौर्निंग वाक के लिए आए थे. कोई दौड़ लगा रहा था तो कोई ब्रिस्क वाक कर रहा था. कुछ लोग तरहतरह के व्यायाम करने में व्यस्त थे, तो कुछ उन्हें देखने में. झील के सामने लगी लोहे की बैंच पर बैठे प्रिया और स्वरूप एकदूसरे में खोए थे. प्रिया की बड़ीबड़ी शरारतभरी निगाहें स्वरूप पर टिकी थीं. वह उसे लगातार निहारे जा रही थी.

स्वरूप ने उस के हाथों को थामते हुए कहा, ‘‘प्रिया, आज तो तुम्हारे इरादे बड़े खतरनाक लग रहे हैं.’’

वह हंस पड़ी, ‘‘बिलकुल जानेमन. इरादा यह है कि तुम्हें अब हमेशा के लिए मेरा हाथ थामना होगा. अब मैं तुम से दूर नहीं रह सकती. तुम ही मेरे होंठों की हंसी हो. भला हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे?’’ और फिर प्रिया गंभीर हो गई.

स्वरूप ने बेबस स्वर में कहा, ‘‘अब मैं क्या कहूं? तुम तो जानती ही हो मेरी मां को… उन्हें तो वैसे ही कोई लड़की पसंद नहीं आती उस पर हमारी जाति भी अलग है.’’

‘‘यदि उन के राजपूती खून वाले इकलौते बेटे को सुनार की गरीब बेटी से इश्क हो गया है तो अब हम दोनों क्या कर सकते हैं? उन को मुझे अपनी बहू स्वीकार करना ही पड़ेगा. पिछले 3 साल से कह रही हूं… एक बार बात कर के तो देखो.’’

‘‘एक बार कहा था तो उन्होंने सिरे से नकार दिया था. तुम तो जानती ही हो कि मां के सिवा मेरा कोई है भी नहीं. कितनी मुश्किलों से पाला है उन्होंने मुझे. बस एक बार वे तुम्हें पसंद कर लें फिर कोई बाधा नहीं. तुम उन से मिलने गईं और उन्होंने नापसंद कर दिया तो फिर तुम तो मुझ से मिलना भी बंद कर दोगी. इसी डर से तुम्हें उन से मिलवाने नहीं ले जाता. बस यही सोचता रहता हूं कि उन्हें कैसे पटाऊं.’’

‘‘देखो अब मैं तुम से तो मिलना बंद नहीं कर सकती. ऐसे में तुम्हारी मां को पटाना ही अंतिम रास्ता है.’’

‘‘पर मेरी मां को पटाना

ऐसी चुनौती है जैसे रेगिस्तान में पानी खोजना.’’

‘‘ओके, तो मैं यह चुनौती स्वीकार करती हूं. वैसे भी मुझे चुनौतियों से खेलना बहुत पसंद है,’’ बड़ी अदा के साथ अपने घुंघराले बालों को पीछे की तरफ झटकते हुए प्रिया ने कहा और फिर उठ खड़ी हुई.

‘‘मगर तुम यह सब करोगी कैसे?’’ स्वरूप ने उठते हुए पूछा.

‘‘एक बात बताओ. तुम्हारी मां इसी वीक मुंबई जाने वाली हैं न किसी औफिशियल मीटिंग के लिए… तुम ने कहा था उस दिन.’’

‘‘हां, वे अगले मंगल को निकल रही हैं. आजकल में रिजर्वेशन भी करानी है मुझे.’’

‘‘तो ऐसा करो, एक के बजाय 2 टिकट करा लो. इस सफर में मैं उन की हमसफर बनूंगी, पर उन्हें बताना नहीं,’’ आंखें नचाते हुए प्रिया ने कहा तो स्वरूप की प्रश्नवाचक निगाहें उस पर टिक गईं.

प्रिया को भरोसा था अपने पर. वह जानती थी कि सफर के दौरान आप सामने वाले को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं. जब हम इतने घंटे साथ बिताएंगे तो हर तरह की बातें होंगी. एकदूसरे को इंप्रैस करने का मौका मिलेगा. यह तय हो जाएगा कि वह स्वरूप की बहू बन सकती है. उस ने मन ही मन फैसला कर लिया था कि यह उस की आखिरी परीक्षा है.

स्वरूप ने मुसकराते हुए सिर तो हिला दिया था पर उसे भरोसा नहीं था. उसे प्रिया का आइडिया बहुत पसंद आया था. पर वह मां के जिद्दी धार्मिक व्यवहार को जानता था. फिर भी उस ने हां कर दी. उसी दिन शाम उस ने मुंबई राजधानी ऐक्सप्रैस के एसी 2 टियर श्रेणी में

2 टिकट (एक लोअर और दूसरा अपर बर्थ) रिजर्व करा दिए. जानबूझ कर मां को अपर बर्थ दिलाई और प्रिया को लोअर.

जिस दिन प्रिया को मुंबई के लिए निकलना था, उस से 2 दिन पहले से वह अपनी तैयारी में लगी थी. यह उस की जिंदगी का बहुत अहम सफर था. उस की खुशियों की चाबी यानी स्वरूप का मिलना या न मिलना इसी पर टिका था. प्रिया ने वे सारी चीजें रख लीं, जिन के जरीए उसे स्वरूप की मां पर इंप्रैशन जमाने का मौका मिल सकता था.

ट्रेन शाम 4.35 पर नई दिल्ली स्टेशन से छूटनी थी. अगले दिन सुबह 8.35 ट्रेन का मुंबई अराइवल था. कुल 16 घंटों का सफर था. इन

16 घंटों में उसे स्वरूप की मां को जानना था और अपना सही और पूरा परिचय देना था.

वह समय से पहले ही स्टेशन पहुंच गई और बहुत बेसब्री से स्वरूप और उस की मां के आने का इंतजार करने लगी. कुछ ही देर में उसे स्वरूप आता दिखा, साथ में मां भी थी. दोनों ने दूर से ही एकदूसरे को आल द बैस्ट कहा.

ट्रेन के आते ही प्रिया सामान ले कर अपनी बर्थ की तरफ

बढ़ गई. सही समय पर ट्रेन चल पड़ी. आरंभिक बातचीत के साथ ही प्रिया ने अपनी लोअर बर्थ मां को औफर कर दी. उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया, क्योंकि उन्हें घुटनों में दर्द रहने लगा था. वैसे भी बारबार ऊपर चढ़ना उन्हें पसंद नहीं था. उन की नजरों में प्रिया के प्रति स्नेह के भाव झलक उठे. प्रिया एक नजर में उन्हें काफी शालीन लगी. दोनों बैठ कर दुनियाजहान की बातें करने लगीं. मौका देख कर प्रिया ने उन्हें अपने बारे में सारी बेसिक जानकारी दे दी कि कैसे वह दिल्ली में रह कर जौब कर अपने मांबाप का सपना पूरा कर रही है. दोनों ने साथ ही खाना खाया.

प्रिया का खाना चखते हुए मां ने पूछा, ‘‘किस ने बनाया तुम ने या कामवाली रखी है?’’

‘‘कामवाली तो है आंटी पर खाना मैं खुद ही बनाती हूं. मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन. अपने हाथों से बनाए खाने की बात ही अलग होती है… इस में सेहत और स्वाद के साथ प्यार जो मिला होता है.’’

उस की बात सुन कर मां मुसकरा उठीं, ‘‘तुम्हारी मां ने तो बहुत अच्छी बातें सिखाई हैं. जरा बताओ और क्या सिखाया है उन्होंने?’’

‘‘कभी किसी का दिल न दुखाओ, जितना हो सके दूसरों की मदद करो. आगे बढ़ने के लिए दूसरे की मदद पर नहीं, बल्कि अपनी काबिलीयत और परिश्रम पर विश्वास करो. प्यार से सब का दिल जीतो.’’

प्रिया कहे जा रही थी और मां गौर से सुन रही थीं. उन्हें प्रिया की बातें बहुत पसंद आ रही थीं. इसी बीच मां बाथरूम के लिए उठीं कि अचानक झटका लगने से डगमगा गईं और किनारे रखे ब्रीफकेस के कोने से पैर में चोट लग गई. चोट ज्यादा नहीं लगी थी, मगर खून निकल आया. मां को बैठाया और फिर अपने बैग में रखे फर्स्ट ऐड बौक्स को खोलने लगी.

मां ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम हमेशा यह डब्बा ले कर निकलती हो?’’

‘‘हां आंटी, चोट मुझे लगे या दूसरों को मुझे अच्छा नहीं लगता. तुरंत मरहम लगा दूं तो दिल को सुकून मिल जाता है. वैसे भी जिंदगी में हमेशा किसी भी तरह की परेशानी से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए,’’ कहते हुए प्रिया ने तुरंत चोट वाली जगह पर मरहम लगा दिया और इस बहाने उस ने मां के पैर भी छू लिए.

मां ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और पूछने लगीं, ‘‘तुम्हारे पापा क्या करते हैं? तुम्हारी मां हाउसवाइफ  हैं या जौब करती हैं?’’

प्रिया ने बिना किसी लागलपेट के साफ स्वर में जवाब दिया, ‘‘मेरे पापा सुनार हैं और वे ज्वैलरी शौप में काम करते हैं. मेरी मां हाउसवाइफ हैं. हम 2 भाईबहन हैं. छोटा भाई इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है और मैं यहां एक एमएनसी कंपनी में काम करती हूं. मेरी सैलरी अभी

80 हजार प्रति महीना है. उम्मीद करती हूं कि कुछ सालों में अच्छा मुकाम हासिल कर लूंगी.’’

‘‘बहुत खूब,’’ मां के मुंह से निकला. उन की प्रशंसाभरी नजरें प्रिया पर टिकी थीं, ‘‘बेटा और क्या शौक हैं तुम्हारे?’’

‘‘मेरी मम्मी बहुत अच्छी डांसर हैं. उन्होंने मुझे भी इस कला में निपुण किया है. डांस के अलावा मुझे कविताएं लिखने और फोटोग्राफी करने का भी शौक है. तरहतरह की डिशेज तैयार करना और सब को खिला कर वाहवाही लूटना भी बहुत पसंद है.’’

ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी और इधर प्रिया और मां की बातें भी बिना किसी रुकावट जारी थीं.

कोटा और रतलाम स्टेशनों के बीच ट्रेन 140 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज रफ्तार से चल रही थी कि अचानक एक झटके से रुक गई. दूरदूर तक जंगली सूना इलाका था. आसपास न तो आवागमन के साधन थे और न खानेपीने की चीजें थीं. पता चला कि ट्रेन करीब 8-9 घंटे वहीं खड़ी रहनी है. दरअसल, पटरी में क्रैक की वजह से ट्रेन के आगे वाला डब्बा उलट गया था. यात्री घायल तो नहीं हुए, मगर अफरातफरी जरूर मच गई थी. क्रेन आने और पलटे डब्बे को हटाने में काफी समय लगना था.

ऐक्सीडैंट 11 बजे रात में हुआ था और अब सुबह हो चुकी थी. यह

इलाका ऐसा था कि दूरदूर तक चायपानी तक की दुकान नजर नहीं आ रही थी. ट्रेन के पैंट्री कार में भी अब खाने की चीजें खत्म हो चुकी थीं. 12 बज चुके थे. मां सोच रही थीं कि चाय का इंतजाम हो जाता तो चैन आता. तब तक प्रिया पैंट्री कार से गरम पानी ले आई. अपने पास रखा टीबैग, चीनी और मिल्क पाउडर से उस ने फटाफट चाय तैयार की और फिर टिफिन बौक्स निकाल कर उस में से दाल की कचौडि़यां और मठरी आदि कागज की प्लेट में रख कर नाश्ता सजा दिया. टिफिन बौक्स निकालते समय मां ने गौर किया था कि प्रिया के बैग में डियो के अलावा भी कोई स्प्रे है.

‘‘यह क्या है प्रिया?’’ मां ने उत्सुकता से पूछा.

प्रिया बोली, ‘‘आंटी, यह पैपर स्प्रे है ताकि किसी बदमाश से सामना हो जाए तो उस के गलत इरादों को सफल न होने दूं. सिर्फ  यही नहीं अपने बचाव के लिए मैं हमेशा एक चाकू भी रखती हूं. मैं खुद कराटे में ब्लैक बैल्ट होल्डर हूं. खुद की सुरक्षा का पूरा खयाल रखती हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ मां की खुशी चेहरे पर झलक रही थी, ‘‘अच्छा प्रिया यह बताओ कि तुम अपनी सैलरी का क्या करती हो? खुद तुम्हारे खर्चे भी काफी होंगे. आखिर अकेली रहती हो मैट्रो सिटी में और फिर औफिस में प्रेजैंटेबल दिखना भी जरूरी होता है. आधी सैलरी तो उसी में चली जाती होगी.’’

‘‘अरे नहीं आंटी ऐसा कुछ नहीं है. मैं

अपनी सैलरी के 4 हिस्से करती हूं. 2 हिस्से यानी 40 हजार भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पापा को देती हूं. एक हिस्सा खुद पर खर्च करती हूं और बाकी के एक हिस्से से फ्लैट का किराया देने के साथ कुछ पैसे सोशल वर्क में लगाती हूं.’’

‘‘सोशल वर्क?’’ मां ने हैरानी से पुछा.

‘‘हां आंटी, जो भी मेरे पास अपनी समस्या ले कर आता है उस का समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करती हूं. कोई नहीं आया तो खुद ही गरीबों के लिए कपड़े, खाना वगैरह खरीद कर बांट देती हूं.’’

तभी ट्रेन फिर चल पड़ी. दोनों की बातें भी चल रही थीं. मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मेरा भी एक बेटा है स्वरूप. वह भी दिल्ली में जौब करता है.’’

स्वरूप का नाम सुनते ही प्रिया की आंखों में चमक उभर आई. अचानक मां ने प्रिया की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ बेटे कि आप का कोई बौयफ्रैंड है या नहीं? सचसच बताना.’’

प्रिया ने 2 पल मां की आंखों में झांका और फिर नजरें झुका कर बोली, ‘‘जी है.’’

‘‘उफ…’’ मां थोड़ी गंभीर हो गईं, ‘‘बहुत प्यार करती हो उस से? शादी करने वाले हो तुम दोनों?’’

प्रिया को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. इस तरह की बातों का हां में जवाब देने का अर्थ है खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना. फिर भी जवाब तो देना ही था. सो वह हंस कर बोली, ‘‘आंटी, शादी करना तो चाहते हैं, मगर क्या पता आगे क्या लिखा है. वैसे आप अपने बेटे के लिए कैसी लड़की ढूंढ़ रही हैं?’’

‘‘ईमानदार, बुद्धिमान और दिल से खूबसूरत.’’

दोनों एकदूसरे की तरफ  कुछ पल देखती रहीं. फिर प्रिया ने पलकें झुका लीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से क्या कहे और कैसे कहे. दोनों ने ही इस मसले पर फिर बात नहीं की. प्रिया के दिमाग में बड़ी उधेड़बुन चलने लगी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां ने उसे पसंद किया या नहीं. उस ने स्वरूप को वे सारी बातें मैसेज कर के बताईं. मां भी खामोश बैठी रहीं. प्रिया कुछ देर के लिए आंखें बंद कर लेट गई. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई. मां के आवाज लगाने पर वह हड़बड़ा कर उठी तो देखा मुंबई आ चुका था और अब उसे मां से विदा लेनी थी.

स्टेशन पर उतर कर वह खुद ही बढ़ कर मां के गले लग गई. मन में एक अजीब सी घबराहट थी. वह चाहती थी कि मां कुछ कहें पर ऐसा नहीं हुआ. मां से विदा ले कर वह अपने रास्ते निकल आई. अगले दिन ही फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली लौट आई.

फिर वह स्वरूप से मिली और सारी बातें विस्तार से बताईं. बौयफ्रैंड वाली बात भी. स्वरूप भी कुछ समझ नहीं सका कि मां को प्रिया कैसी लगी. मां 2 दिन बाद लौटने वाली थीं. दोनों ने 2 दिन बड़ी उलझन में गुजारे. उन की जिंदगी का फैसला जो होना था.

नियत समय पर मां लौटीं. स्वरूप बहुत बेचैन था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे. वह चाहता था कि मां खुद ही उस से प्रिया की बात छेड़े, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन और बीत गया. अब तो स्वरूप की हालत खराब होने लगी. अंतत: उस ने खुद ही मां से पूछ लिया, ‘‘मां आप का सफर कैसा रहा? सह यात्री कैसे थे?’’

‘‘सब अच्छा था,’’ मां ने छोटा सा जवाब दिया.

स्वरूप और भी ज्यादा बेचैन हो उठा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पूछे मां से. उस से रहा नहीं गया तो उस ने सीधा पूछ लिया, ‘‘और वह जो लड़की थी जाते समय साथ… उस ने आप का खयाल तो रखा?’’

‘‘क्यों पूछ रहे हो? जानते हो क्या उसे?’’ मां ने प्रश्नवाचक नजरें उस पर टिका दीं.

स्वरूप घबरा गया जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो, ‘‘जी ऐसा कुछ नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था.’’

‘‘ओके, सब अच्छा रहा. अच्छी थी लड़की,’’ मां फिर छोटा सा जवाब दे कर बाहर निकलने लगीं. लेकिन फिर ठहर गईं. बोलीं, ‘‘हां एक बात बता दूं कि मेरे साथ जो लड़की थी न उस की कई बातों ने मुझे अचरज में डाल दिया. जानते हो मेरे दाहिने पैर में चोट लगी तो उस ने क्या किया?’’

‘‘क्या किया मां?’’ अनजान बनते हुए स्वरूप ने पूछा.

‘‘मेरे दाहिने पैर में मरहम लगाने के बहाने उस ने मेरे दोनों पैरों को छू लिया. फिर जब मैं ने उस से यह पूछा कि क्या उस का कोई बौयफ्रैंड है तो 2 पलों के लिए उस के दिमाग में एक जंग सी छिड़ गई. लग रहा था जैसे वह सोच रही हो कि अब मुझे क्या जवाब दे. एक बात और जानते हो, तेरा नाम लेते ही उस की नजरों में अजीब सी चमक आई और पलकें झुक गईं. मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों है?’’

मां की बातें सुन कर स्वरूप के चेहरे पर घबराहट की रेखाएं खिंच गईं. वह एकटक मां की तरफ देखे जा रहा था जैसे मां उस के ऐग्जाम का रिजल्ट सुनाने वाली हैं.

मां ने फिर कहा, ‘‘एक बात और बताऊं स्वरूप, जब वह सो

रही थी तो उस की मोबाइल स्क्रीन पर मुझे तुम्हारे कई सारे व्हाट्सऐप मैसेज आते दिखे, क्योंकि उस ने तुम्हारे मैसेज पौप अप मोड में रखे थे. मैसेज कुछ इस तरह के थे, ‘‘डोंट वरी प्रिया. मां के साथ तुम्हारा यह सफर हम दोनों की जिंदगी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण

है. मां बस एक बार तुम्हें पसंद

कर लें फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे.

‘‘फिर तो मेरा शक यकीन में बदल गया कि तुम दोनों मिल कर मुझे बेवकूफ बना रहे हो,’’ कहतेकहते मां थोड़ी गंभीर हो गईं.

‘‘नहीं मां ऐसा नहीं है,’’ उस ने मां के कंधे पकड़ कर कहा.

मां झटके से अलग होती हुई बोलीं, ‘‘देखो स्वरूप एक बात अच्छी तरह समझ लो…’’

‘‘क्या मां?’’ स्वरूप डरासहमा सा बोला.

‘‘यही कि तुम्हारी पसंद…’’ कहतेकहते मां रुक गईं.

स्वरूप को लगा जैसे उस की धड़कनें रुक जाएंगी.

तभी मां खिलखिला कर हंस पड़ीं, ‘‘जरा अपनी सूरत तो देखो. ऐसे लग रहे हो जैसे ऐग्जाम में फेल होने के बाद चेहरा बन गया हो तुम्हारा. मैं तो कह रही थी कि तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. मुझे बस ऐसी ही लड़की चाहिए थी बहू के रूप में… सर्वगुणसंपन्न… रियली आई लाइक योर चौइस.’’

मां के शब्द सुन कर स्वरूप अपनी खुशी रोक नहीं पाया और मां के गले से लग गया, ‘‘आई लव यू मां.’’

मां प्यार से बेटे की पीठ थपथपाने लगीं.

बौलीवुड शहंशाह का है आज हैप्पी बर्थडे, जानें 82 साल के Amitabh Bachchan का डाइट प्लान

Happy Birthday Amitabh Bachchan : कला एक ऐसा माध्यम है जो समाज को तोड़ने के लिए नहीं बल्कि जोड़ने के लिए काम करता है . एक कलाकार खुद को संघर्षों की भट्टी में तपाता है, वक्त की ठोकर को सहकर जग में प्रकाश फैलाता है. ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का कहना है जिनका जन्म 11 अक्टूबर 1942 को हुआ. आज भी वह फिल्मों में ही नहीं सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह एक्टिव हैं. छोटे परदे से लेकर बड़े परदे तक उनका सक्रिय रहना सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है. सिर्फ आम दर्शक ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री वालों के भी वह रोल मौडल है . पेश है इसी सुपरस्टार से संबंधित दिलचस्प बातों के खास अंश उनके जन्मदिन शुभ अवसर पर…

अमित जी के दिल से निकली दिलचस्प बातें…

अपने जन्मदिन के अवसर पर अमिताभ बच्चन को बचपन में गिफ्ट लेना बहुत पसंद था .उनके अनुसार जब मेरे मातापिता मेरे जन्मदिन के उपलक्ष्य में घर में पार्टी रखते थे तो मेरा ध्यान सिर्फ गिफ्ट पर होता था मेरी यही इच्छा रहती थी कि मेरे लिए कौनसा गिफ्ट आ रहा है. उस दौरान मुझे बर्थडे गिफ्ट से इतना प्यार था कि मैं गिफ्ट लेकर सीधा अपने कमरे में भाग जाता था यह देखने के लिए कि गिफ्ट पौकेट के अंदर क्या है. अब इस उम्र में मुझे धूमधाम से बर्थडे मनाना पसंद नहीं है. क्योंकि जिनके साथ में बर्थडे मनाता था और मुझे खुशी मिलती थी वह मेरे पिताजी हरिवंश राय बच्चन हैं. उनके बगैर मुझे बर्थडे मनाना इतना पसंद नहीं आता. लेकिन घरवाले और मेरे प्रशंसक मेरा जन्मदिन मनाए बगैर नहीं मानते. इसलिए उनकी खुशी के लिए मैं अपना बर्थडे मना लेता हूं. क्योंकि मैंने जीवन में लोगों का प्यार पाकर ही अपनी मंजिल तय की है. इसलिए मेरा जीवन उनका है,उनको मैं नाराज नहीं कर सकता.

82 वर्षीय बौलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिटनेस का राज , उनका डाइट प्लान और फिटनेस सीक्रेट….

82 वर्षीय अमिताभ बच्चन एक ऐसे एक्टर हैं जो इस उम्र में भी एकदम फिट है पौजिटिव हैं और इस उम्र में भी अभिनय क्षेत्र में डांस ,एक्शन, कौमेडी इमोशनल दृश्य करने में नहीं हिचकिचाते. शूटिंग के दौरान जहां अन्य कलाकार अपनी वैन में जाकर बैठ जाते हैं . वही अमिताभ बच्चन सेट पर ही मौजूद रहकर अन्य कलाकारों की ना सिर्फ शूटिंग देखते हैं , बल्कि उनकी हौसला आफजाई भी करते हैं. इस उम्र में अभी भी वह फिट पौजिटिव दिखाई देते हैं . ऐसे में सभी को यह जानने की उत्सुकता रहती है कि आखिर अमित जी की फिटनेस का राज क्या है . पिछले दिनों अपने ब्लौग में अमित जी ने अपना डाइट प्लान और फिटनेस सीक्रेट शेयर किया. जिसके अनुसार अमित जी वर्कआउट रूटीन में लापरवाही नहीं बरतते, अपने ट्रेनर के कहे अनुसार वौकिंग जौगिंग, वेट ट्रेनिंग, करते हैं इसके अलावा मानसिक शांति के लिए 8 घंटे की नींद जरूर लेते हैं मेडिटेशन का सहारा लेकर वह अपने आप को मानसिक तौर पर फिट रखते हैं. वह बहुत ज्यादा खाने के शौकीन नहीं है इसलिए बहुत लिमिटेड खाना खाते हैं. ताकि आलस से दूर रह सके
खाने में शक्कर का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते. खाने में ओट्स, अंडा, साबुत अनाज, और फल सब्जी का सेवन करते हैं. दिन में 20 मिनट का वाक सुबह के टाइम जरूर करते हैं. अमित जी के अनुसार अगर आपको फिट रहना है तो पौजिटिव सोच का पालन करना बहुत जरूरी है. क्योंकि हम जितना निगेटिव सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा निगेटिव हमारी जिंदगी में होता है.

साउथ और बौलीवुड स्टार के रोल मौडल हैं अमिताभ बच्चन….

शहंशाह सुपरस्टार कहलाने वाले अमिताभ बच्चन सिर्फ आम दर्शकों के लिये ही नहीं बल्कि बौलीवुड और साउथ के स्टारों के भी दिलों पर राज करते हैं . बौलीवुड स्टार हो या साउथ के एक्टर हर कोई अमित जी को अपना रोल मौडल मानते हैं. जैसे के साउथ के प्रसिद्ध एक्टर अल्लू अर्जुन के अनुसार वह अमित जी को अपना रोल मौडल मानते हैं क्योंकि 82 साल में भी उनकी सक्रियता मुझे आश्चर्यचकित करती है और मेरी बड़ी इच्छा है कि मैं भी उनकी तरह बड़ी उम्र तक इतना ही काम करता रहूं और ऐसे ही दर्शकों का प्यार पाता रहूं. साउथ के स्टार प्रभास अमित जी के साथ काम करके अपने आप को धन्य मानते हैं प्रभास के अनुसार मैंने अपनी पूरी जिंदगी में अमित जी जितना शालीन सभ्य और बेहतरीन एक्टर नहीं देखा. वैसे तो मैं पहले से ही उनका फैन था. लेकिन अब मैं उनको अपना रोल मौडल मानता हूं.

साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत भी अमिताभ बच्चन के जबरदस्त फैन हैं क्योंकि रजनीकांत का मानना है अमित जी ने अपनी जिंदगी में बहुत सारे उतारचढ़ाव देखे हैं. एक समय ऐसा भी था जब उनका डाउनफौल हो गया था . लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी. दिन में 18 घंटे काम करके अमित जी अपना पैसा और नाम शोहरत दोनों वापस पा लिया. अमित जी के साथ मैंने जब भी काम किया है बहुत कुछ सीखा है. यही वजह है कि मैं उनको अपना रोल मौडल और गुरु मानता हूं. साउथ के स्टारों के अलावा शाहरुख खान आमिर खान, कपिल शर्मा, आदि सभी बौलीवुड स्टार्स अमिताभ बच्चन को अपना रोल मौडल मानते हैं. यही वजह है कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को महानायक के खिताब से नवाजा जाता है और वह करोड़ों दिलों पर राज करते हैं.

Festival में धर्मगुरुओं का दखल क्यों ? त्योहार तो खुशियों की है चाबी

हमारे देश में हर साल कई तरह के त्योहार (Festival) मनाए जाते हैं. ये त्योहार लोगों को उन की रोजमर्रा की दिनचर्या से सिर्फ कुछ समय का ब्रेक ही नहीं देते हैं बल्कि जश्न मनाने और अपनों के साथ रिश्ते मजबूत करने का मौका भी देते हैं. इन त्योहारों का मतलब उपवास करना या धार्मिक रीतिरिवाजों को निभाना नहीं बल्कि जिंदगी में प्यार और उत्साह भरना है. इन्हें धर्म से नहीं बल्कि खुशियों से जोड़ कर देखना चाहिए. प्राचीनकाल से हर त्योहार कुछ खास मतलब से मनाया जाता रहा है.कभी कृषि कार्य आरंभ करने की खुशी, कभी फसल काटने का हर्ष तो कभी मौसम के बदलाव का संकेत. ये बहुआयामी उत्सव हैं.

आज हम ने भले ही इन्हें रीतिरिवाजों और धार्मिक कर्मकांडों में इतना ज्यादा डुबो रखा है कि इन के असली अर्थ और आनंद को भूल गए हैं. फैस्टिवल का मतलब तो हंसीखुशी और ऐंजौय करने का दिन है न कि पूजापाठ करने का दिन. याद रखिए यह पंडितों और धर्मगुरुओं की तिजोरी भरने का दिन नहीं है बल्कि अपने लिए खुशियां ढूंढ़ कर लाने का दिन है. त्योहार की खासीयत है कि यह एकसाथ सब का होता है. आप बर्थडे मनाते हैं, ऐनिवर्सरी मनाते हैं, ये सब दिन आप के पर्सनल होते हैं, आप की फैमिली के लिए खास होते हैं. मगर फैस्टिवल्स पूरे देश में एकसाथ मनाए जाते हैं. हरकोई उसी दिन फैस्टिवल मना रहा होता है. इस का आनंद ही अलग होता है.धर्म का दखल क्योंमगर धर्म ने हमारी खुशियों, हमारे फैस्टिवल्स पर कब्जा कर रखा है. अगर इंसान पैदा होता है तो धर्म और धर्मगुरु आ जाते हैं. धर्मगुरु इस बहाने पैसा कमाते हैं. इंसान मरता है तो भी धर्मगुरुओं की चांदी हो जाती है. जबकि कोई इंसान पैदा या मर रहा है या शादी कर रहा है उस में धर्म का या धर्मगुरुओं का दखल क्यों? इसी तरह कोई भी फैस्टिवल हो धर्मगुरु, पंडित, पुजारी सब अपनी चांदी करने की कोशिश में लग जाते हैं.लोग आंख बंद कर उन के हिसाब से चलते हैं. उन के हिसाब से पूजापाठ में पूरा दिन बिताते हैं और फिर दानधर्म के नाम पर अपनी मेहनत से कमाई हुई दौलत उन पर लुटा देते हैं.

यह फैस्टिवल नहीं हुआ यह तो एक तरह से बस पंडितों की चांदी हुई.मानसिक सेहत के लिए लाभकारी हैं ये फैस्टिवल्सत्योहार यानी खुशियों को महसूस करने का मौका है. अपने सांस्कृतिक महत्त्व से परे त्योहारों का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा लाभ होता है. ये अपनेपन की भावना को बढ़ावा देने, तनाव दूर करने और सकारात्मकता फैलाने में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. त्योहार ऐसा मौका होता है जब लोग जिंदगी की तमाम चुनौतियों के बावजूद एकसाथ मिल कर मौजमस्ती करते हैं, खातेपीते हैं और खुशियां मनाते हैं. दीपावली, रक्षाबंधन और क्रिसमस जैसे आने वाले त्योहार लोगों के बीच प्यार और सद्भाव को बढ़ावा देते हैं.नवरात्रि का त्योहार हो या दीवाली, क्रिसमस हो या नइया ईयर ये सभी देश के ज्यादातर हिस्सों में काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं. त्योहार अपने साथ खुशी और उत्साह लाते हैं.

हैल्थ ऐक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि त्योहार हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालते हैं. यह एक ऐसा समय होता है जब लोग चिंताओं और परेशानियों को भूल त्योहार के रंग में रंग जाते हैं. गरबा नाइट्स से ले कर पटाखे जलाने या मिठाइयां खाने जैसी कई ऐक्टिविटीज हैं जिन में आप हिस्सा ले सकते हैं. स्वादिष्ठ खाना, करीबी लोगों के साथ वक्त बिताना, फैस्टिव वाइब सभी हम सभी को दिल से खुश कर देते हैं.तनाव से राहतत्योहारों का मौसम ऐसा होता है जब हरकोई सब से अच्छा दिखना चाहता है. महिलाएं अपनी स्किन की देखभाल करती हैं. चेहरे के मास्क से ले कर नेलपौलिश और मेहंदी लगाना या सौंदर्य प्रसाधनों के साथ प्रयोग करना उन्हें भाने लगता है. ये चीजें शरीर और मन को आराम और सुकून देती हैं. जब आप इन का इस्तेमाल करती हैं तो आप को ऐसा लगता है जैसे आप अपना खयाल रख रही हैं. यह सोच तनाव हारमोन को कम करती है. त्वचा को रगड़ना और थपथपाना जैसी सरल क्रियाएं आप की हृदय गति और चिंता को कम करने में मदद कर सकती हैं.

जब आप क्लींजिंग, टोनिंग, मौइस्चराइजिंग जैसे कामों पर ध्यान केंद्रित करती हैं तो आप शांत महसूस करती हैं जिस का आप के मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.कई अध्ययनों के अनुसार उत्सव के लिए तैयार होने के दौरान बालों को ब्रश करना और स्टाइल देना, शौपिंग करना, नईनई ड्रैसेज पहनना, मेहंदी लगाना जैसे छोटेमोटे प्रयास भी आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं और यौवन की अनुभूति देते हैं. हम खुद को खूबसूरत महसूस करते हैं. हमारा दिल और दिमाग उस दौरान काफी स्फूर्तिवान और आनंदित रहता है.त्योहारों के दौरान घर को सजाना, जश्न की तैयारी करना जैसी ऐक्टिविटीज का असर हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. भले ही हम इन सब कामों को कर थक जाते हैं लेकिन इन से दिमाग और शरीर को नई ऊर्जा मिलती है. तनाव पैदा करने वाले हारमोन का स्तर कम होता चला जाता है.

जब आप त्योहार मनाते हैं, लोगों से मिलते हैं तो आप की दिल की धड़कनें भी सही चलती हैं और बेचैनी दूर रहती है.अगर आप त्योहारों में पूरी तरह से हिस्सा लेते हैं तो आप देखेंगे कि ये किस तरह एक थेरैपी की तरह काम करते हैं. शोध से पता चलता है कि मेकअप या घर की सजावट बेचैनी को दूर करती है. इस से आप के दिमाग में स्ट्रैस कम होता है और नकारात्मक खयाल नहीं आते.आत्मविश्वास बढ़ता हैजब आप अच्छे से तैयार होती हैं और मेकअप कर खूबसूरत दिखती हैं तो इस से सुरक्षा और ताकत की भावना आती है. दरअसल, मेकअप और अच्छे कपड़े आप का आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करते हैं. सजनेसंवरने से हमारे शरीर में औक्सीटोसिन नाम का हारमोन रिलीज होता है, जिस से भावनाएं पौजिटिव होती हैं.सकारात्मक सोचत्योहार लोगों में आशा और सकारात्मक सोच का संचार करने में मदद करते हैं. इस दौरान लोग उत्साह का अनुभव करते हैं.

इस से लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. त्योहार निश्चित रूप से हमें रोजमर्रा की नीरस दिनचर्या से एक ब्रेक देते हैं. इस से लोगों में सकारात्मक भावनाएं पैदा होती हैं और बोरियत की भावना कम होती है.त्योहारों में भाग लेना और उन की तैयारी करना, डांसगाने के प्रोग्रामों में अपनी अच्छी परफौर्मैंस देना व्यक्ति को जीत का एहसास कराता है. किसी भी कार्य को पूरा करना, पकवान पकाना, दीए जलना, खुशियां फैलाना आदि लोगों में प्रेरणा और आत्मसम्मान को बढ़ावा देते हैं.त्योहार व्यक्ति को वर्तमान में मौजूद रहने के लिए प्रेरित करते हैं. ये व्यक्ति को विभिन्न गतिविधियों में शामिल करते हैं जैसेकि भोजन का स्वाद लेना, डांस करना, संगीत बजाना, हंसीखुशी से मिलनामिलाना और छोटों की सराहना करना. इस से लोगों में सकारात्मकता बढ़ती है. त्योहार हमारे जीवन में खुशियां ले कर आते हैं. हम अपने आसपास कई खुशमिजाज लोगों को देखते हैं.

इस का हमारे मूड पर सीधा असर पड़ता है, साथ ही यह एक ऐसा समय होता है जब आप अपने परिवार के लोगों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं, गपशप करते हैं और ऐसे काम करते हैं जो आप को खुश करती हैं. त्योहार हमारे जीवन का एक हिस्सा बन जाते हैं और यही कारण है कि लोग एकसाथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए इकट्ठा होते हैं.यह परिवार के साथ घूमने का अच्छा समय होता हैआजकल जीवन में अकसर लोग एकाकी हो गए हैं. हरकोई आत्मनिर्भर है फिर भी काफी व्यस्त है. ये छुट्टियां आप को एकसाथ लाती हैं और आप को अपने परिवार, आनंद और उत्सव का एहसास कराती हैं जो आप के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. त्योहार आप को महसूस कराते हैं कि आप के पास लोग हैं जिन्हें आप का साथ पसंद है. सा?ा खुशी हमेशा अकेले बैठने से बेहतर होती है. त्योहार मूड के सकारात्मक पक्ष और शरीर में खुशी के हारमोन के उत्पादन को बढ़ाते हैं. ये एकाकीपन को चुनौती देते हैं. त्योहारों के दौरान ऐसी कई गतिविधियां होती हैं जो आप का उत्साह बढ़ाती हैं और आप को अपने बारे में अच्छा महसूस कराती हैं.

कुछ नया सोचेंहमेशा जरूरी नहीं कि त्योहारों को एक ही तरह से मनाया जाए या एक ही तरह से सारी बातें की जाएं, वही पुराने रीतिरिवाज, वही पाठपूजन और वही दिनभर लेनदेन. कोशिश करें कि हर बार त्योहारों को एक नए तरीके से मनाया जाए. एक नए जज्बे के साथ कुछ अलग करें. अगर हर बार आप त्योहार पर अपने घर में धूम मचाते हैं तो इस बार किसी खास रिश्तेदार के घर चले जाएं और मिल कर फैस्टिवल मनाएं या फिर इस बार आप कुछ नया खरीदें. घर की जरूरत की कुछ बड़ी चीज जैसे गाड़ी वगैरह या रसोई का बड़ा सामान ताकि वह फैस्टिवल यादगार बन जाए. आप इस दिन नए घर में शिफ्ट कर सकते हैं या नया घर खरीद सकते हैं.यही नहीं आप फैस्टिवल के दिन किसी और के बारे में भी सोचें. किसी अनजान को खुशियों का उपहार दें. किसी अनाथालय चले जाएं या किसी वृद्धाश्रम चले जाएं. वहां सब के साथ मिल कर खुशियां मनाएं. उन लोगों के चेहरों पर मुसकान लाएं.

किसी गरीब बस्ती में चले जाएं और मिठाइयां बांटें. कुछ ऐसा कीजिए जो आप हर बार नहीं करते और उसे कर आप को बहुत खुशी मिले.कहीं घूमने जाएंजरूरी नहीं कि फैस्टिवल का मतलब घर में ही रौनक बढ़ाई जाए या घर को सजाया जाए अथवा नए कपड़े पहने जाएं. कभी आप ऐसा भी करें कि कहीं घूमने निकल जाएं. लंबी छुट्टी मिल जाती है. सैटरडेसंडे और त्योहार के 2 दिन मिला कर 3-4 दिन के लिए कहीं घूमने जा सकते हैं वरना औफिस और घर के बाद आप को कहीं जाने का समय नहीं मिलता. यही समय है अपनी जिंदगी जीने का या अपनों के करीब आने का. यही वह समय है जब आप कुछ नई जगह ऐक्सप्लोर कर सकते हैं.कहीं ऐसी जगह घूमने जाएं जहां आप अपनी पसंद के हिसाब से घूम सकें. फिर वैसे भी फैस्टिवल हर जगह मनाया जाता है तो आप कहीं भी हों वहां पर आप फैस्टिवल का मजा भी ले सकते हैं.फैस्टिवल पार्टीकभी ऐसा भी कीजिए कि फैस्टिवल के दिन या उस से 1-2 दिन पहले आप फैस्टिवल पार्टी रखें.

अपने घर में सब को बुलाएं जो आप के करीब हैं या आप के दोस्त और रिश्तेदार हैं. उन सब के साथ मिल कर कुछ वक्त साथ बिताएं. धूम मचाएं और गानों पर डांस करें. सारी परेशानी, चिंता और कमियां भूल कर बस खुशियां और खुशियां ही बटोरें. आप घर में मिठाइयां बना सकते हैं. कुछ नमकीन वगैरह तैयार करें.घर का एक कमरा अच्छे से सजा दें. सब के साथ समय बिताएं. गेम्स खेलें. एकदूसरे के दिल का हाल जाने. साथ समय बिताएं और खानापीना करें. हंसीमजाक करें. जिंदगी का एक दिन इतना खूबसूरत बना लीजिए कि उस दिन की यादें महीनोंसालों तक कायम रहें.दिल को छूने वाले गिफ्टफैस्टिवल एक ऐसा मौका है जब आप किसी को उस का मनपसंद गिफ्ट दे कर उस के चेहरे पर मुसकराहट ला सकते हैं. उस की जिंदगी को संवार सकते हैं. उसे नई खुशी दे सकते हैं.

जरूरी नहीं कि आप कोई महंगी चीज ही खरीदें. आप किसी के लिए अगर उस की जरूरत की चीज खरीदते हैं और गिफ्ट के रूप में उसे इस दिन देते हैं तो वह कभी आप को भूल नहीं पाएगा. आप गौर करें कि किस को किस चीज की जरूरत है और फिर फैस्टिवल के मौके पर उसे बहाने से वह चीज दे सकते हैं.वह शख्स आप का अपना भी हो सकता है या पराया भी, अनजान भी. मगर आप अगर इस तरह किसी को गिफ्ट देते हैं तो आप को अंदर से खुशी मिलेगी. आप का अपना कोई कई महीने से किसी चीज के लिए आप को कह रहा है तो बस यही समय है जब आप उसे वह चीज ला कर दें और फिर देखें कैसे वह आप के गले लग जाता है.पूजापाठ नहीं खुशियां बटोरेंफैस्टिवल का मतलब यह नहीं कि आप सुबह से पूजापाठ की तैयारी में लगे रहें. बाजार से पूजा का सामान ले कर आएं. पंडित के घर जा कर उस को न्योता दे कर आएं और फिर प्रसाद बनाने और पूजा का सामान व्यवस्थित करने में लग जाएं. खुद नहाधो कर पूजापाठ करने लग जाएं और फिर पंडितजी के आने का इंतजार करें.

फिर जब पंडित पूजा शुरू करें तो सुबह से रात शाम तक बस उसी में लगी रहें.फैस्टिवल का मतलब पूजापाठ में समय लगाना नहीं बल्कि खुशियां बटोरने में समय लगना होता है. फैस्टिवल हमारे लिए आते हैं ताकि हम अपने दिलोदिमाग में, अपनी जिंदगी में कुछ परिवर्तन ला सकें. कुछ खुशियां बटोर सके. लेकिन महिलाएं धार्मिक रीतिरिवाजों में सुबह से रात तक बिजी रहती हैं और फिर वे इतनी थक जाती हैं कि फैस्टिवल का आनंद ही नहीं ले पातीं.फैस्टिवल दिमाग को तनाव मुक्त करने के लिए आते हैं न कि अपने दिमाग को पूजापाठ में लगाने के लिए. अगर आप बस इसी सोच में रह जाएं कि कहीं कोई रिवाज छूट न जाए, कुछ गलत न हो जाए, पूजा में कोई कमी न रह जाए तो आप को कुछ और करने का समय ही नहीं मिलेगा. अकसर देखा जाता है महिलाएं अपने बच्चों और पति को डांटती रहती हैं कि ऐसे करो वैसे करो. यह चीज ले कर आओ वह काम करो. कई दफा खुद ही बाजार चली जाती हैं पूजा के लिए सामग्री लाने के लिए.घर में फैस्टिवल के दिन कोई पूजा के लिए लकडि़यां ला रहा है तो कोई खास तरह के पत्ते. इसी तरह खास तरह की पूजा की सामग्री लानी भी जरूरी हो जाता है. इंसान का पूरा दिन इसी सब में निकल जाता है. कुछ लोग मंदिर जाते हैं तो मसजिद, चर्च जाते हैं. पूरा दिन इस तरह से बिता देते हैं. इस तरह फैस्टिवल मनाने का कोई फायदा नहीं. आप फैस्टिवल में जिंदगी जीने का प्रयास करें. पूरे उत्साह और प्यार से इस दिन को ऐंजौय करें.

धर्म के नाम पर लड़कियों को कंट्रोल करने की साजिश, मुहरा बन रही हैं बेटियां,

9 अगस्त की रात कोलकाता के आरजी कर मैडिकल कालेज में एक ट्रेनी डाक्टर के साथ रेप और हत्या की घटना से समूचे देश में चिकित्सक समुदाय और आम जनता क्षुब्ध है. डाक्टर्स हड़ताल पर चले गए. नीट की कठोर परीक्षा पास कर डाक्टर बन कर रोगियों की सेवा का सपना देखने वाली बेटी अपने अस्पताल में ही दरिंदगी का शिकार हो गई.

पीडि़ता डाक्टर की पोस्टमार्टम और बायोप्सी रिपोर्ट में दिल दहलाने वाले खुलासे हुए हैं. दरिंदे हवस में इतने अंधे हो गए थे कि उन्होंने पीडि़ता डाक्टर के प्राइवेट पार्ट को बुरी तरह से चोट पहुंचाई. पीडि़ता के शरीर पर दरिंदगी के 25 निशान मिले, जिन में बाहर 16 और अंदरूनी भाग में 9 जख्म पाए गए. फिर बाद में उस का गला दबा कर हत्या कर दी गई. मगर यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जहां एक लड़की का रेप कर उस की हत्या कर दी गई हो. 2012 में ऐसे ही निर्भया कांड हुआ था जहां एक लड़की की बड़ी ही बेदर्दी के साथ समूहिक रेप के बाद उस की हत्या कर दी गई थी. उस के प्राइवेट पार्ट में रौड घुमाई गई थी.

इन 12 सालों में कुछ भी तो नहीं बदला और शायद न कभी बदलेगा क्योंकि कोलकाता कांड के ठीक 2 दिन बाद उत्तराखंड के रुद्रपुर में एक 20 वर्षीय नर्स की रेप के बाद हत्या कर दी गई. नर्स 30 जुलाई की रात को लापता हुई और 8 अगस्त को उस की लाश ?ाडि़यों में पड़ी मिली. उस नर्स का सिर बुरी तरह कुचल दिया गया था.बताया जा रहा है कि उसी अस्पताल के एक डाक्टर ने उस के साथ दुष्कर्म किया और उसे जान से मारने की धमकी देते हुए जातिसूचक शब्दों से अपमानित भी किया. इस घिनौने काम में एक नर्स और वार्डबौय ने उस डाक्टर का साथ दिया था.

इंसान या हैवान

12 अगस्त को ही दिल्ली से उत्तराखंड जाने वाली रोडवेज बस में एक नाबालिग लड़की से गैंगरेप किया गया. पीडि़त लड़की उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद की रहने वाली थी. जोधपुर में 3 साल की बच्ची की साथ दरिंदगी की गई. बच्ची गरीब थी और वह अपनी मां के पास मंदिर के बाहर सो रही थी. आरोपी उसे आइसक्रीम खिलाने के बहाने से ले गया और उस के साथ रेप किया फिर उसे वहीं मंदिर के बाहर छोड़ गया. बच्ची के कपड़े खून से लथपथ थे और शरीर पर कई जगह खरोंच के निशान थे. बच्ची का होंठ में काटा गया था. वहीं मेरठ में 2 साल की बच्ची के साथ रेप कर उस की हत्या कर दी गई और लाश को नाले में फेंक दिया गया.

बिहार के मुजफ्फरपुर में एक 9वीं क्लास की छात्रा के साथ गैंगरेप कर उस की हत्या कर दी गई. आरोपियों ने पीडि़त लड़की की ब्रैस्ट काट दी. प्राइवेट पार्ट पर चाकू से वार किया और उस के मुंह में कपड़ा बांध दिया. मातापिता को अपनी बेटी की लाश एक पोखर में मिली. उस के अगलबगल मांस के चिथड़े और खून के धब्बे पड़े थे. पीडि़त लड़की के मातापिता का कहना है कि रविवार रात 5 लोग उस के घर जबरन घुस आए और यह बोल कर उन की बेटी को उठा ले गए कि हम तुम्हारी बेटी के साथ रेप करेंगे.

पशु समाज

आखिर कैसे लोगों में इतनी हिम्मत आ जाती है कि वे एक लड़की का बलात्कार कर उस की हत्या कर देते हैं? लड़की को उस के घर से उस के मांबाप के सामने यह कह कर उठा ले जाते हैं कि हम तुम्हारी बेटी का रेप करेंगे. आखिर यह कैसे देश और समाज में रह रहे हैं हम जहां इंसान के भेष में दरिंदे घूम रहे हैं? यह पुरुष समाज नहीं पशु समाज है.

हमारे देश में मैडिकल क्षेत्र में महिला डाक्टर का दायरा तेजी से बढ़ रहा है. कुल डाक्टरों में लगभग 50 फीसदी महिलाएं हैं. हाल के कुछ वर्षों में चिकित्सा क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 4 में से एक महिला डाक्टर को कभी न कभी अपने कार्यस्थल पर हिंसा या यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधों में कमी दिखाई नहीं दे रही है.

भारत में महिला पहलवानों द्वारा ?ोले गए कथित यौन उत्पीड़न के हाल के मामलों में आंतरिक शिकायत समितियों के कार्यकारिणी की कमी और उत्पीड़न की रिपोर्टिंग के संबंध में ‘विशाखा दिशानिर्देश’ के पहल की आवश्यकता को उजागर किया है.

द्य इस से पूर्व एक प्रमुख पत्रकार प्रिया रमाणी का मामला चर्चित रहा था जहां 2018 में ‘मी टू’ आंदोलन में उन्होंने अपने पूर्व नियोक्ता एम.जे. अकबर पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के कुछ दशक पुराने मामले का खुलासा किया था. इस

मामले में पीडि़ता ने पुलिस में मामला दर्ज नहीं कराया था और उस जमाने में यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिए कोई आंतरिक तंत्र मौजूद नहीं था.

द्य 1997 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तैयार किए विशाखा दिशानिर्देश का सरकारी और निजी दोनों संस्थानों द्वारा पालन किया जाना चाहिए तथा नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. लेकिन इस के बावजूद हाल के वर्षों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न दुनियाभर में महिलाओं को प्रभावित करने वाले सब से अधिक दबावकारी मुद्दों में एक के रूप में उभरा है.

2022 में राष्ट्रीय महिला आयोग को महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की लगभग 31 हजार शिकायतें मिलीं जो 2014 के बाद उच्चतम संख्या को सूचित करती हैं. इन में लगभग 54.5% शिकायतें उत्तर प्रदेश से प्राप्त हुईं. दिल्ली ने 3,004 शिकायतें दर्ज कराईं, जिस के बाद महाराष्ट्र 1,381, बिहार 1,368 और हरियाणा 1, 362 का स्थान रहा.

भरती, वेतन, पदोन्नति या अवसर सभी मामलों में महिलाओं को कार्यस्थल पर प्राय: भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

नैशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हर साल जारी होने वाले आंकड़े बताते हैं कि इंडियन मैडिकल ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5 वर्षों में डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामलों में 75% की वृद्धि हुई है. कोलकाता में हुई इस घटना ने ड्यूटी पर तैनात डाक्टरों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को और बड़ी दिया है. ऐसी घटनाएं जौब करने वाली और बाहर रह कर पढ़ाई करने वाली लड़कियों के मनोबल को कमजोर कर रही हैं.

दंडनीय अपराध

सरकार ने कानून बनाने का भरोसा दिलाया था जिस में चिकित्सक क्षेत्र से जुड़ी महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में सुरक्षात्मक कदम उठाए जाएंगे- वैसे कामकाजी महिलाओं के लिए ऐसे कानून पहले से बने हैं. नौनवर्किंग महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी कानून बने हैं. घूर कर देखना, छूना, डबलमीनिंग बातें करना यह सब बलात्कार के दायरे में आता है और यह दंडनीय माना गया है. लेकिन बावजूद इस के क्या सजा हो पाती है?

यौन अपराधों के खिलाफ प्रभावी कानूनी रोकथाम के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में लागू किया गया था. इस के अलावा आपराधिक कानून अधिनियम, 2018 को 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार के लिए मृत्युदंड सहित और भी अधिक कठोर दंडात्मक प्रावधानों को निर्धारित करने के लिए लागू किया गया था. अधिनियम में अन्य बातों के साथसाथ जांच और सुनवाई को 2 महीने के

भीतर पूरा करने का भी आदेश दिया गया था. लेकिन इन सब के बावजूद ऐसे मामले रुक नहीं रहे हैं. वजह यह है कि अपराधियों को शीघ्र सजा नहीं मिलती.

लड़कियों और महिलाओं के साथ दरिंदगी करने वाले जानते हैं कि उन्हें बचाने वाला बैठा है. कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. बिलकीस बानों से गैंगरेप के 11 दोषियों को बड़े सम्मान के साथ सजा से बरी कर दिया गया था. इतना ही नहीं उन का फूलमाला से स्वागत भी किया जैसे वे कोई किला फतह कर लौटे हों.

कोलकाता रेप: मर्डर केस की आटोप्सी रिपोर्ट में कई खुलासे हुए. पोस्टमार्टम में यौन हिंसा जैसे कई सुबूत मिले. इस के अनुसार पीडि़ता के सिर, चेहरे, गरदन, हाथ और गुप्तांग पर 14 से ज्यादा चोटों के निशान हैं. साथ ही मौत की वजह हाथों से गला दबाना माना गया है. मृत्यु के तरीकों को हत्या माना गया है. साथ ही रिपोर्ट में सैक्सुअल असोल्ट की आशंका भी जताई गई है. जारी रिपोर्ट के अनुसार, पीडि़ता के गुप्तांग में सफेद, गाड़ा, चिपचिपा तरल पाया गया है और फेफड़ों में रक्तस्राव, खून के थक्के जमने की बात कही गई है. हालांकि फ्रैक्चर का कोई संकेत नहीं मिला है. बताया जा रहा है कि आधी नींद में अचानक हमले के बाद ट्रेनी डाक्टर ने बचाव के लिए चीखने की कोशिश की होगी, मगर उस का मुंह दबा दिया गया, फिर उस का गला घोंटा गया. इस कारण ट्रेनी डाक्टर की थायराइड का कार्टिलेज भी टूट गया.

ट्रेनी महिला डाक्टर की मां ने खुलासा किया कि हमले से पहले के दिनों में उन की बेटी ने अस्पताल जाने के बारे में अनिच्छा जताई थी. मां ने कहा कि वह कहती थी कि उसे अब आरजी कर जाना पसंद नहीं है.

ट्रेनी डाक्टर का सपना गोल्ड मैडल हासिल करने का था. दर्जी पिता ने अपनी एकलौती संतान को पढ़ाने के लिए दिनरात मेहनत की ताकि बेटी का सपना पूरा हो सके. बेटी ने भी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिंदगीभर परिवार ने संघर्ष किया. बेटी ने कोलकाता के घनी आबादी वाले उपनगर सोदेपुर से आरजी कर तक का सफर तय किया. अब बेटी की बारी थी अपने मातापिता का कर्ज चुकाने की लेकिन उस से पहले ही वह इस दुनिया से चली गई.

दरिंदगी की इंतिहा

इसी तरह की एक हैवानियत 51 साल पहले मुंबई के किंग एडवर्ड मैमोरियल अस्पताल में हुई थी. मुंबई के उस अस्पताल में ठीक वैसा ही कुछ हुआ था जो कोलकाता के मैडिकल कालेज में हुआ है. मुंबई में अरुणा शानबाग नाम की एक नर्स दरिंदों के निशाने पर थी मगर उसे यह बात नहीं पता थी. अरुणा शानबाग की 1 महीने बाद शादी होने वाली थी, मगर शादी के पहले ही 27 नंबर, 1973 को अस्पताल के अंदर ही सोहनाल वाल्मीकि नामक एक वार्ड बौय ने उन के साथ बलात्कार किया.

फिर पकड़े जाने के डर से उस ने कुत्ते की चेन से अरुणा शानबाग का गला घोंट दिया और उसे मरा हुआ समझ कर वहां से भाग गया. लेकिन वह मरी नहीं थी. वह कभी जिंदा भी नहीं कहलाई. वह कोमा में चली गई. इस के बाद पूरे 42 साल तक वह कोमा में रही. उस के लिए अदालत से इच्छा मृत्यु की मांग भी की गई पर अदालत ने इनकार कर दिया.

42 साल तक अरुणा जिंदगी और मौत के साथ लेटी रही जैसे बिस्तर पर दोनों साथसाथ सो रही हों. 42 साल बाद अचानक जिंदगी चुपके से बिस्तर से उतर कर चली गई. शायद मौत को उस पर दया आ गई और वह उसे अपने साथ ले कर चली गई. निमोनिया की वजह से उस की मौत हो गई. अरुणा के गुनहगार को बाद में सिर्फ 7 साल की सजा हुई. सजा काट कर वह 1980 में जेल से बाहर आ गया. रिहाई के बाद नाम और पहचान बदल कर दिल्ली के किसी अस्पताल में नौकरी भी की. यहां दोषी तो जी गया और निर्दोष जी कर भी मरी पड़ी रही पूरे 42 साल तक. कैसा इंसाफ है यह?

बदला कुछ नहीं आज भी कुछ नहीं बदला है. गुनहगार खुलेआम घूम रहा है और निर्दोष सजा काट रहा है. एक शोर उठता है, फिर खामोशी छा जाती है. फिर खामोशी टूटती है और शोर उठता है. इस बार यह खामोशी कोलकाता में टूटी और शोर भी उठा, लेकिन फिर खामोशी छा जाएगी. निर्भया से पहले और निर्भया से बाद यही तो होता रहा है.

मगर कुछ बेरहम इंसान को उस की मौत पर भी दया नहीं आई. यहां भी वे लड़की को ही दोष दे रहे हैं कि गलती लड़की की ही होगी. जरूर उस ने छोटे कपड़े पहने होंगे. रात को अकेले बाहर निकली ही क्यों? एक शख्स ने तो यह तक कह दिया कि लड़की को घर से बाहर निकलने ही मत दो. उसे घर में बंद रखो, घर के कामकाज सिखाओ. लेकिन ऐसे ज्ञान बघारने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि लड़की अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है.

देश के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि महिला डाक्टर अपने बौयफ्रैंड के साथ थी, वहीं एक और नेता का सु?ाव है कि महिलाएं रात में ड्यूटी न करें. वैसे इस का सुरक्षा से कोई लेनादेना नहीं है लेकिन महिलाओं को चाहिए कि वे देर रात बाहर न जाया करें. लेकिन कहने वाले यह भूल गए कि कैद में तो खूंख्वार जानवरों को रखा जाता है. कोलकाता मामले के बाद अभी महाराष्ट्र के एक स्कूल बदलापुर में 3 और 4 साल की 2 बच्चियों के साथ रेप हुआ.

न्याय या राजनीति

कोलकाता मामले को ले कर देश के नेतागण गुनहगारों को उन के किए की सजा दिलवाने के बदले एकदूसरे पर ही कीचड़ उछाल कर अपनीअपनी रोटियां सेंकेने में लगे हैं. ममता सरकार पर विपक्ष लगातार हमलावर है. भारतीय जनता पार्टी ने ममता बनर्जी को ‘बेशर्म’ कहा और उन के इस्तीफे की मांग की.

बीजेपी लगातार राज्य की कानून व्यवस्था को ले कर टीएमसी पर हमला कर रही है.बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी ने कोलकाता महिला डाक्टर रेप केस को ले कर ममता सरकार पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि निश्चित रूप से जब उस का रेप हो रहा था वह महिला अत्याचार से जू?ा रही थी. सवाल यह उठता है कि क्या किसी ने भी उस फ्लोर पर उस महिला के चिल्लाने की आवाज नहीं सुनी? वह कौन है जिस की वजह से अस्पताल में वह रेपिस्ट आश्वस्त था कि रेप के बाद वह घर लौट सकता है? एक लड़की का रेप होता है अपने ही अस्पताल में और किसी को पता नहीं चलता है?

स्मृति ईरानी ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए आगे कहा, ‘‘मैं दोबारा कह रही हूं कि तेरा रेप मेरा रेप की राजनीति बंद करें ममता बनर्जी. प्रदेश का होम मिनिस्टर ममता बनर्जी हैं. हैल्थ चार्ज किस के पास है? मुख्यमंत्री कौन है? तो वह किस के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं? अपने खिलाफ? प्रोटैस्टर अनसेफ हैं. रेपिस्ट और मोब सेफ हैं. यह कहां का न्याय है?’’

सरकार से सवाल

भाजपा के ही एक के बाद एक और नेता राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस में कहा कि ‘ममता बनर्जी… ममताविद्वंसक’ है. आरोप लगाए कि ममता बनर्जी ने सुबूत मिटाए और गुनहगारों का साथ दिया.

एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल में विपक्षी दल बीजेपी और सीपीआई ने ममता सरकार को घेरा वहीं अब ब्लौक के सहयोगी दलों ने भी ममता सरकार के उठाए कदमों पर सवाल खड़ा किया है. एक के बाद एक राजनेता अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं और एकदूसरे पर जम कर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे हैं.

एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पीडि़ता को न्याय दिलाने की जगह आरोपियों को बचाने की कोशिश, अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मैडिकल कालेज जैसी जगहों पर डाक्टर्स सेफ नहीं हैं तो किस भरोसे अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें?

बढ़ती आलोचना के बीच ममता बनर्जी ने भी पलटवार किया और कहा कि हाथरस, उन्नाव और मणिपुर में जब ऐसी घटनाएं हुईं तब केंद्र ने कितनी केंद्रीय टीमों को वहां भेजा था? बंगाल में अगर किसी को चूहा भी काट ले तो केंद्र की 55 टीमें आ जाती हैं.

निर्भया केस के बाद बने कठोर कानून भी ऐसे अपराधों को रोक पाने में असफल क्यों है? हाथरस, उन्नाव, बिहार, और उत्तराखंड से ले कर कोलकाता तक महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ती घटनाओं पर हर पल, हर वर्ग को मिल कर गंभीर विचार करने की जरूरत है. लेकिन यहां ‘तेरा रेप मेरा रेप’ की राजनीति चल रही है.

कोई उन परिवारों के बारे में सोचे जिन की बेटियों की रेप के बात बड़ी निर्ममता के साथ हत्या कर दी गई. लेकिन सब यहां अपनी ही रोटियां सेंकने में लगे हैं और जनता भी कुछ दिन हल्ला कर चुप हो जाएंगी क्योंकि यही तो होता आया है हमेशा.

फेसबुक पर कुछ लोगों का कहना है कि बेटियों को घर में बंद रखो. उन्हें बाहर मत निकलने दो. लेकिन क्या घर में बंद रखने से बच जाएंगी बेटियां? घर में उन के साथ कोई अपना ही उन का शोषण नहीं करेगा इस बात की क्या गारंटी है? मर्द पर जब हवस सवार होता है उस वक्त वह किसी का बाप या भाई नहीं होता, मर्द बन जाता है जिस के लिए अपनी सगी बेटी, बहन भी माल नजर आती है जिसे वे नोच खा जाना चाहता है.

धर्म के नाम पर लड़कियों को कंट्रोल करने की साजिश

देश और समाज में आज भी ऐसे दकियानूसी सोच वाले लोग हैं जो लड़कियों को कंट्रोल में रखना चाहते हैं. वे नहीं चाहते कि लड़कियां पढ़लिख कर आगे बढ़ें. धर्म के कट्टर और धर्म के ठेकेदार पूरा जोर लगा देते हैं कि लड़कियां स्कूलकालेज न जा कर धर्म मंदिरों के फेरे लगाएं, व्रतउपवास करें. शादी के बाद अपने परिवार, पति, बच्चों का खयाल रखें. धर्म के नाम पर जितनी मोटी बेडि़यां डाल सकते हैं वे महिलाओं के पैरों में डालते हैं. लेकिन लड़कों को खुला आजाद छोड़ दिया जाता है. उस के लिए कोई बंधन नहीं होता है.

धर्म के ठेकेदार नहीं चाहते कि लड़कियां पढ़लिख कर डाक्टरइंजीनियर बन कर अपने पैरों पर खड़ी हों. उन्हें लगता है कि अगर लड़कियां ज्यादा पढ़लिख गईं तो परिवार की बात नहीं मानेंगी, अपनी मनमरजी करेंगी. अगर कोई लड़की अपनी मरजी से शादी कर ले तो हायतोबा मच जाती है, लड़की का कत्ल तक करवा दिया जाता है. लेकिन वहीं लड़का करे तो कोई दिक्कत नहीं है. महिलाओं पर तरहतरह की पाबंदियां लगाने का मकसद ही यही है कि वे सदा पुरुषों के अधीन रहे.

आज भी संस्कृति, संस्कार और परिवार के नाम पर वही घिसेपिटे रिवाज हैं कि औरतों का काम घर संभालना, बच्चे पैदा करना है. आखिर यह कहां लिखा है कि घर के काम औरतें ही कर सकती हैं पुरुष नहीं? यह सब पितृसत्तात्मक चाल है ताकि पुरुषों को घरगृहस्थी की जिम्मेदारी न उठानी पड़े और वे बाहर मौज कर सकें और औरतों पर अपना हुक्म चला सकें, उन्हें अपनी निगरानी में रख सकें.

दयनीय स्थिति

क्या महिलाएं कोई गुलाम हैं या कोई वस्तु जिस पर हमेशा निगरानी रखी जानी चाहिए? मनु स्मृति में लिखा है कि महिलाओं का स्वभाव ही पुरुषों को उत्तेजित करना और बहकाना है इसलिए जो समझदार हैं वे महिलाओं से दूर रहें.

इस तरह के नियम समाज को प्रगतिशील सोच रखने से रोकते हैं. इसलिए आज ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की स्थिति दयनीय है. उन्हें केवल सैक्स की वस्तु या चीज के तौर पर देखना पुरुषवादी विकृति और समाज के लिए खतरा है. मनुस्मृति में और आज भी केवल महिलाओं के लिए ही नियम निर्धारित किए गए हैं, पुरुषों के लिए कुछ नहीं. पितृसतात्मक समाज के कारण महिलाओं को आज भी अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

लड़कियों को अपनी यौनइच्छा पर काबू रखने की सलाह दी जाती है. मगर पुरुष अपनी यौनइच्छा किसी के भी साथ कहीं पर भी, जोरजबरदस्ती से पूरी कर सकता है. कैसा न्याय है यह? आखिर मुहरा महिलाओं और लड़कियों को ही क्यों बनाया जाता है?

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