क्या है एलईडी Face Mask ? क्यों तेजी से हो रहा है यह पौपुलर

आजकल त्वचा की देखभाल के क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकें तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं और इन में से एक है एलईडी फेस मास्क. (Face Mask) पहले तो एलईडी थेरैपी (LED Therapy) त्वचा के डाक्टर द्वारा ही दी जाती थी लेकिन अब एलईडी मास्क की मदद से हम घर पर भी इस थेरैपी को ले सकते हैं.

यह मास्क घर पर उपयोग करने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है, जिस से आप अपनी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बना सकते हैं.

एलईडी फेस मास्क क्या है, कैसे यह त्वचा की समस्याओं को हल करता है, और इस में कौनकौन सी एलईडी लाइट्स का उपयोग किया जाता है, आइए जानते हैं :

एलईडी फेस मास्क क्या है

एलईडी (लाइट एमिटिंग डायोड) फेस मास्क एक विशिष्ट प्रकार का फेस मास्क है, जिस में विभिन्न रंगों की एलईडी लाइट्स लगी होती हैं.यह मास्क त्वचा के विभिन्न स्तरों पर असर डालता है और अलगअलग त्वचा की समस्याओं को हल करने के लिए विभिन्न प्रकार की लाइट्स का इस्तेमाल करता है.हर रंग की लाइट एक विशेष समस्या के उपचार में सहायक होती है।

एलईडी लाइट्स और उन के उपयोग

एलईडी फेस मास्क में आमतौर पर 3-7 विभिन्न रंगों की एलईडी लाइट्स होती हैं, जिन में से प्रत्येक एक विशिष्ट त्वचा समस्या पर काम करती है.आइए, जानते हैं कि कौन सी लाइट किस समस्या को हल करने में मदद करती है :

नीली लाइट (Blue Light 415nm) :

नीली लाइट मुख्य रूप से मुंहासों के उपचार के लिए उपयोग की जाती है.यह त्वचा के अंदर मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट करती है, जो कीलमुंहासों का कारण बनते हैं.साथ ही, यह त्वचा में औयल प्रोडक्शन को नियंत्रित करती है, जिस से त्वचा कम औयली होती है.नीली लाइट मुंहासों की सूजन को भी कम करने में सहायक होती है।

लाल लाइट (Red Light – 630nm) :

लाल लाइट को ऐंटी एजिंग के लिए सब से अधिक प्रभावी माना जाता है.यह त्वचा में कोलाजन उत्पादन को बढ़ावा देती है, जो त्वचा को जवां और ताजगीभरा बनाता है.लाल लाइट झुर्रियों, फाइन लाइंस और त्वचा का ढीलापन जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करती है.इस के अलावा, यह लाइट त्वचा की मरम्मत और पुनर्जनन को भी तेज करती है।

हरी लाइट (Green Light 520nm) :

हरी लाइट का उपयोग दागधब्बों को हलका करने और त्वचा की रंगत को समान करने के लिए किया जाता है.यह लाइट मेलानिन उत्पादन को नियंत्रित करती है, जो त्वचा पर काले धब्बों और हाइपरपिग्मैंटेशन का कारण होता है.साथ ही, हरी लाइट त्वचा को शांत करती है और लालिमा को कम करती है।

पीली लाइट (Yellow Light – 590nm) :

पीली लाइट सूजन और लालिमा को कम करने में प्रभावी होती है.यह संवेदनशील त्वचा के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है और त्वचा की ऐलर्जी या जलन को कम करती है.पीली लाइट त्वचा के रक्त परिसंचरण को भी बेहतर बनाती है, जिस से त्वचा में प्राकृतिक चमक आती है।

बैंगनी लाइट (Purple Light 600nm) :

बैंगनी लाइट नीली और लाल लाइट का संयोजन होती है और इसे त्वचा के उपचार में डूअल लाभ के लिए उपयोग किया जाता है.यह न केवल मुंहासों को ठीक करती है, बल्कि त्वचा की मरम्मत और पुनर्निर्माण प्रक्रिया को भी तेज करती है.इस के उपयोग से त्वचा की बनावट में सुधार आता है और दागधब्बे कम होते हैं।

सफेद लाइट (White Light – 510nm) :

सफेद लाइट त्वचा की गहराई तक पहुंच कर मांसपेशियों की टोन और त्वचा की लोच को सुधारने में मदद करती है.यह लाइट त्वचा को कसाव देती है और त्वचा की सतह के नीचे के टिशूज में सुधार करती है।

सियान लाइट (Cyan Light 490nm) :

सियान लाइट त्वचा में उत्तेजना और जलन को कम करने में सहायक होती है.यह त्वचा की रिकवरी प्रोसेस को तेज करती है, खासकर अगर त्वचा पर कोई चोट हो।

एलईडी फेस मास्क का उपयोग कैसे करें

एलईडी फेस मास्क का उपयोग सरल है.इसे साफ चेहरे पर पहन कर 10-20 मिनट तक उपयोग किया जा सकता है.हर प्रकार की त्वचा और समस्या के लिए अलगअलग एलईडी लाइट्स का उपयोग करना चाहिए.

इसे सप्ताह में 2-3 बार उपयोग करने की सलाह दी जाती है, हालांकि मास्क के निर्देशों का पालन करना आवश्यक है.आप इस मास्क को लगा कर अपने निजी काम भी कर सकते हैं.

क्या एलईडी फेस मास्क सुरक्षित है

एलईडी फेस मास्क का उपयोग सामान्य रूप से सुरक्षित माना जाता है, लेकिन अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या किसी विशेष समस्या से पीड़ित है, तो उपयोग से पहले त्वचा विशेषज्ञ से सलाह लें.

मास्क का उपयोग करते समय आंखों की सुरक्षा का भी ध्यान रखें, क्योंकि कुछ लाइट्स आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं.

एलईडी फेस मास्क त्वचा की देखभाल में एक क्रांतिकारी कदम है.यह विभिन्न त्वचा समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तकनीक का उपयोग करता है.

इस मास्क का नियमित उपयोग आप की त्वचा को साफ, चमकदार और युवा बनाए रखने में मदद कर सकता है.हालांकि, इस के सर्वोत्तम परिणामों के लिए इसे सही तरीके से और नियमित रूप से उपयोग करना बेहद जरूरी है.

भोर की सुनहरी किरण : नंदिता की क्या थी सच्चाई

राइटर- रेखा शाह आरबी

22 वर्षीय नंदिता बहुत सुंदर थी. मगर उस के सुंदर चेहरे पर आज सुबह से ही ?ां?ालाहट और परेशानी नजर आ रही थी. वह आज बहुत परेशान थी. सुबह से बहुत सारा काम कर चुकी थीं. फिर भी बहुत सारा निबटाना था. कंप्यूटर पर बिल अपलोड करते हुए जब सुरेश जो इस बड़ी सी शौप में चपरासी था सब की देखभाल करना उसी की जिम्मेदारी थी. सब को पानी देना, कस्टमर को चायपानी पिलाना सब उस की जिम्मेदारी थी. सुरेश ने जब आ कर कहा कि नंदिताजी आप को बौस बुला रहे हैं तो नंदिता का मन किया कि सिर दीवार से टकरा कर अपना सिर फोड़ दे.

मन में एक भददी गाली देते हुए सोचने लगी कि कमीना जब तक 4 बार देख न ले उसे चैन नहीं पड़ता है. एक तो जब उस के कैबिन में जाओ लगता है नजर से ही खा जाएगा. उस की नजर, नजर न हो कर इंचीटेप बन जाती है और इंचइंच नापने लगता है… खूसट बुड्ढे को अपनी बीवी अच्छी नहीं लगती. सारी दुनिया की औरतें अच्छी लगती हैं और लड़कियां अच्छी लगती है… हां कुदरत ने दिल खोल कर दौलत दी है तो ऐयाशी सू?ोगी ही… एक को छोड़ो 4 भी रख सकता है… पैसे की कौन सी कमी है.

लेकिन भला हो इस की बीवी का जिस ने इस की चाबुक खींच कर रखी है… और उस के आगे इस की चूं नहीं निकलती है. नहीं तो अब तक न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका होता.’’

नंदिता यह सब सिर्फ सोच सकती थी. बोल नहीं सकती थी अत: उस ने सुरेश से कहा, ‘‘भैया, आप चलिए मैं आती हूं.’’

इस बड़ी से मौलरूपी दुकान की असली मालिक तो थी. औफिस में सभी जानते थे कि गौतम और सुनिधि की लवमैरिज थी.

घर वालों ने बेटी को गंवाने के डर से गरीब गौतम को तो स्वीकार कर लिया लेकिन उस की गरीबी को नहीं स्वीकार कर सके. अमीर मांबाप सुनिधि को इतनी धनसंपत्ति दे गए कि उस की भी गिनती शहर के अमीरों में होने लगी थी.

आकर्षण की एक अवधि होती है. उस के बाद हकीकत सामने आने ही लगती है. सुनिधि को बहुत जल्दी गौतम की रंगीनमिजाजी का पता चल गया. सुनिधि खानदानी लड़की थी. गौतम की लाख छिछोरी हरकतें जानती थी लेकिन फिर भी पति के रूप में उसे मानती थी. वह उस के बच्चों का पिता था.

मगर अपनी अमीरी की धौंस जमाने से भी बाज नहीं आती थी और यह सारी कहानी पूरा औफिस जानता था. मुंह पर कोई भले ही कुछ नहीं कहता था लेकिन पीठ पीछे खूब सब बातें करते थे.

वैसे गौतम कोई बुड्ढा इंसान नहीं था. वह तो नंदिता बस खुन्नस में उसे बूढ़ा कहा करती थी और वह भी अपने मन में. गौतम 50 के आसपास हैंडसम इंसान था. कम से कम अपनी बीवी से तो ज्यादा सुंदर था. उस की सुंदरता और बात करने की कला से ही तो सुनिधि ने उस से प्रभावित हो कर उस से शादी की थी और गौतम ने उस की रईसी से प्रभावित हो कर उस से शादी की थी, जिस के मजे वह अब ले रहा था.

नंदिता को आज चौथी बार बुलावा था. मन तो कर रहा था कि सीधे उस के कैबिन में जा कर उस के मुंह पर बोल आए कि कमीने बुड्ढे मु?ो नहीं करनी है तेरी नौकरी, रख अपनी नौकरी अपने पास. लेकिन वह जानती थी चाचा ने बड़ी मुश्किल से यहां पर रखवाया था और सैलरी भी अच्छीखासी मिल रही थी. बुड्ढे को बरदाश्त करना उस की मजबूरी थी. नंदिता को यहां पर काम करने में कोई दिक्कत नहीं थी बल्कि नौकरी भी काफी ऐशोआराम वाली थी. दिनभर दुकान की खरीदबिक्री के बिल कंप्यूटर पर अपलोड करते रहना. दुकान इलैक्ट्रौनिक उपकरणों की थी.

वैसे भी नंदिता का गणित बहुत अच्छा था. हिसाबकिताब रखते रखना जिस में उसे कोई दिक्कत नहीं आती थी. बस दिक्कत उस का बौस खड़ूस गौतम ही था, जिस की हर महिला पर गंदी नजर रहती थी. नंदिता तो फिर भी जवान थी, खूबसूरत थी.

खैर, उस ने लंबी सांस छोड़ कर अपने चेहरे का जियोग्राफी सही किया और स्माइल सजा कर उस ने कैबिन का दरवाजा नोक किया.

गौतम तो जैसे इंतजार में बैठा था. बत्तीसी दिखाते हुए बोला, ‘‘आओआओ नंदिता कुरसी पर बैठो.’’

नंदिता ने स्माइल पास करते हुए पूछा, ‘‘सर आप ने किस लिए बुलाया?’’

‘‘नंदिता तुम तो आते ही बस काम के पीछे पड़ जाती हो. काम तो होता ही रहेगा. अरे कभी हम काम के अलावा भी तो बातें कर सकते हैं… एकदूसरे के दोस्त बन सकते हैं… जिंदगी जीने के लिए होती है.’’

नंदिता उस के मन के भाव खूब सम?ा रही थी पर बिलकुल अनजान बनते हुए मासूम बन कर कहा, ‘‘हां सर लेकिन वह काम पैंडिंग पड़ा है उसे पूरा करना है.’’

‘‘अरे यार… कल पूरा कर लेना. आज कोई दुनिया खत्म होने नहीं जा रही.’’

गौतम को बहुत दिनों के बाद आज नंदिता अकेले मिली थी वरना जब भी आती तो कभी अपने साथ कलीग तो कभी कोई न कोई और आ ही जाता. इसलिए वह मौके का पूरा इस्तेमाल कर लेना चाहता था.

वह अपनी कुरसी से उठ कर नंदिता की कुरसी के पास आ गया और उस के कंधों पर अपने हाथ रख कर बोला, ‘‘नंदिता बहुत दिनों से मैं ने कोई फिल्म नहीं देखी. चलो किसी दिन फिल्म देखने चला जाए अकेले फिल्म देखने को जाने को मन ही नहीं करता है.’’

नंदिता ने अपने मन में गाली देते हुए कहा कि हरामखोर मैं तेरी बेटी की उम्र की हूं और तुझे मेरे साथ फिल्म देखनी है. अपनी बेटी के साथ चला जा या अपनी बीवी के साथ क्यों नहीं जाता है?

स्माइल पास करते हुए नंदिता बोली, ‘‘सर औफिस के बाद घर पर मुझे बहुत सारा काम रहता है. मुझे अपने भाई नवीन को पढ़ाना भी होता है. उस के ऐग्जाम आने वाले हैं इसलिए मैं नहीं जा सकती कृपया मुझे माफ करें.’’

नंदिता महसूस कर रही थी कि गौतम को स्माइल से ही चारों धाम प्राप्त हो गए हैं. लेकिन आखिर क्या करती रोजीरोटी का सवाल था वरना जवाब तो वह भी अपने तमाचे के द्वारा बहुत अच्छे से दे सकती थी अपने कंधों पर हाथ रखने के बदले पर नहीं दे सकती थी.

तब तक अचानक नंदिता की नजर  गौतम के सिर के ऊपर लगी हुई एलईडी पर चली गई, जिस में पूरे औफिस का सीसीटीवी कैमरा चलता था. नंदिता ने देखा बौस की बीवी सुनिधि आ रही है.

नंदिता की तो बांछें ही खिल गईं. मगर गौतम ने अभी तक अपनी बीवी को नहीं देखा था. इसीलिए बहुत तरंग में बात कर रहा था. उस की बीवी तो बीवी थी उसे नोक कर के आने की कोई जरूरत नहीं थी.

डाइरैक्ट वह औफिस के अंदर चली आई और नंदिता को वहां बैठा देख कर और उस के आगेपीछे चक्कर काटते गौतम को देख कर वह लालपीली हो गई. लेकिन उस ने नंदिता से कुछ नहीं कहा. इधर नंदिता का दिल कर रहा था कि उस को गले लगा कर उस के गाल चूम ले गौतम की बकवास से मुक्त दिलाने के लिए.

नंदिता बौस से इजाजत ले कर अपनी टेबल पर चली आई. लेकिन अंदर जो कुछ भी हो रहा था वह कुछ अच्छा नहीं हो रहा था. वह दूर बैठी टेबल से हावभाव देख कर बखूबी अंदाजा लगा रही थी और उस को मजा आ रहा था. जैसी करनी वैसी भरनी.

कुछ देर बाद उस की बीवी उस के कैबिन से निकली और उस की टेबल के पास से गुजरते हुए अपनी आंखों से अंगारे बरसाते हुए निकल गई. नंदिता अपने कंधे उचकाते हुए अपने मन में सोच रही थी कि मु?ो आप के इस बुड्ढे में मेरी कोई रुचि नहीं है. यह तो खुद ही कमीना है. मेरे पीछे पड़ा रहता है. अगर मजबूरी नहीं होती तो कब का इसे लात मार कर यहां से चली गई होती.’’

इन सब के बीच यह बात तो भूल हो गई कि आखिर गौतम ने बुलाया किसलिए था. चाहे गौतम लाख रंगीनमिजाज सही लेकिन कर्मचारियों से काम लेने के मामले में बहुत टाइट इंसान था और इस में कोई भेदभाव नहीं करता था चाहे लड़का हो या लड़की और यही उस की सफलता का भी राज था.

वैसे भी शाम के 4 बजने वाले थे और उस की शिफ्ट पूरी हो रही थी. उस ने सोच लिया कल जा कर गौतम  से जानकारी ले लूंगी.

उधर गौतम जब शाम को घर पहुंचा तो सुनिधि भरी हुई पड़ी थी. देखते ही गौतम पर भड़क उठी और चिल्लाने लगी, ‘‘गौतम अपनी हरकतों से बाज आ जाओ. बच्चे बड़े हो रहे हैं. क्यों चाहते हो कि मैं उन के सामने तुम्हें जलील करूं. अभी तक तो मैं तुम्हारी सारी हरकतों पर परदा डालती आ रही लेकिन ऐसा ही रहा तो

तुम न घर के रहोगे न घाट के. मुझे और मेरी जायदाद को संभालने के लिए मेरे पास मेरे बच्चे हैं. मु?ो तुम्हारी इतनी भी जरूरत नहीं है कि तुम्हारी छिछोरी हरकतें बरदाश्त करती फिरूं,’’ कहते हुए कमरे का दरवाजा जोर से बंद करते हुए वह चली गई.

इधर नंदिता घर पहुंची तो उसे बहुत भूख लग आई थी. अपनी मां सुमित्रा को कुछ बनाने के लिए कहने के बजाय खुद ही बनाने के लिए किचन में चली गई. किचन क्या थी रूम के ही एक पार्ट को डिवाइड कर के एक तरफ किचन और एक तरफ नंदिता का बिस्तर लगा था.

कुछ भारी बनाने का मन नहीं था. इसलिए उसने अपने लिए थोड़ा सा पोहे बना लिया और बना कर ज्यों ही खाने के लिए बैठी तब तक उस का छोटा भाई नवीन आ गया.

हाथमुंह धो कर नवीन नंदिता के पास ही आ कर बैठ गया और उसे पोहा खाते हुए देख कर बोला, ‘‘दीदी क्या बना कर खा रही हो? मुझे भी खिलाओ. मुझे भी भूख लगी है.’’

‘‘खाना है तुझे तो उधर से चम्मच ले कर आओ और इसी में बैठ कर खा लो. बेकार में और बरतन गंदे करने की जरूरत नहीं है,’’ नंदिता खातेखाते बोली.

दोनों भाईबहन एक ही प्लेट से खाने लगे. जब भी नंदिता नवीन को देखती थी उस के अंदर वात्सल्य उमड़ पड़ता था.

दिनभर लोगों की गंदी नजरों का सामना करते हुए दुनिया में एक यही मर्द जात थी जिस पर वह आंख मूंद कर भरोसा कर सकती थी वरना दुनिया तो अकेली लड़की के लिए भेडि़या बन जाती है.

आंखों से ही बलात्कार कर लेती है, जिसे नंदिता बहुत आसानी से महसूस कर लेती थी. नंदिता क्या दुनिया की सारी लड़कियां इस बात को महसूस कर लेती हैं कि कौन किस नजर से उन्हें देख रहा है. मगर कई बार देख कर भी अनजान बनना पड़ता है.

नंदिता को सोच में डूबा हुआ और चुपचाप खाते देख कर नवीन बोला, ‘‘क्या हुआ दीदी?’’

नंदिता बोली, ‘‘कुछ नहीं हुआ चुपचाप खा.’’

‘‘लेकिन दीदी मु?ो आप को कुछ बताना है.’’

‘‘हां तो बता क्या बात है?’’

‘‘दीदी मैं और मेरे दोस्त साहिल और समर तीनों लोग सोच रहे हैं की नौकरी लगना इतना आसान नहीं है… परीक्षा के बाद हम लोग मिल कर अपनी बड़ापाव और चाइनीज फूड वैन लगाएंगे. आजकल इस बिजनैस में बहुत कमाई है. पूरे परिवार का खर्च आराम के साथ चला लूंगा. सारी तैयारी हो चुकी है. बस आप से पूछना बाकी था.’’

‘‘और यह सब तुम ने कब सोचा?’’ नंदिता आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोली.

‘‘यह तो हम लोगों ने बहुत पहले से सोचा था बस परीक्षा खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं,’’ नवीन खातेखाते बोला.

‘‘और पिकअप वैन कहां से लाओगे? वह तो बहुत महंगी मिलती है?’’

‘‘अरे दीदी उस की चिंता मत करो. हम लोग नई पिकअप नहीं लेंगे. साहिल के पापा पहले पिकअप चलाते थे जो अब जर्जर अवस्था में है लेकिन मरम्मत के बाद वह फूड वैन बनाने के काबिल हो जाएगी.’’

‘‘फिर भी कुछ तो खर्च आएगा. बरतन आदि की भी तो जरूरत पड़ेगी?’’

‘‘उन सब का इंतजाम हो चुका है. आप चिंता मत कीजिए. मैं तो बस इतना चाहता हूं कि जल्द से जल्द यह फूड वैन चालू हो जाए ताकि मैं आप और मां की जिम्मेदारी अच्छे से उठा लूं. उस के बाद आप के पास नौकरी करने की विवशता भी नहीं रहेगी.आपका मन करेगा तो कीजिएगा नहीं तो नहीं कीजिएगा.’’

‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है?’’

तो नवीन रोष में आते हुए बोला, ‘‘दीदी, क्या मुझे पता नहीं है आप का मालिक कितना

घटिया आदमी है. जब मैं उस दिन आप के औफिस गया था तो वह आप को काफी गंदी नजरों से देख रहा था.’’

नंदिता नवीन के आगे निरुत्तर थी. वह उसे क्या बताती कि दुनिया के सारे मर्द गैरलड़की के लिए जानवर ही होते हैं. बहुत कम किसी की बहनबेटी को बहनबेटी सम?ाते हैं.

‘‘ठीक है तुम्हारा काम शुरू हो जाएगा

तो मैं अपनी नौकरी के बारे में फिर से विचार करूंगी.’’

नवीन मुसकराते हुए चला गया.

नंदिता के मन में कहीं गहरे संतोष उतरने लगा. अब वह ज्यादा दिन मजबूर नहीं रहेगी और न किसी की गलत हरकतों को बरदाश्त करना पड़ेगा. इस सोच ने ही उस के चेहरे पर ढेर सारी मुसकराहट बिखेर दी. जैसे सवेरा होते ही आसमान में सूरज की सुनहरी किरणें फैल जाती हैं जैसे बादलों को चीर कर सूरज निकल आया हो.

Pregnancy में प्रोटीन की कमी हो सकती है खतरनाक, डाइट में खाएं ये फूड्स

प्रेगनेंट महिलाओं (Pregnancy) को अधिक पोषण की जरूरत होती है और इस दौरान उन्‍हें प्रोटीन समेत कई पोषक तत्‍व लेने बहुत जरूरी होते हैं ताकि शिशु का सही विकास हो सके.

गर्भावस्‍था के नौ महीनों के दौरान भ्रूण के विकास के लिए रोजाना 75 ग्राम से 100 ग्राम तक प्रोटीन लेना होता है. प्रेग्‍नेंसी में गर्भाशय के ऊतकों के विकास के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी होता है. इस के अलावा भी गर्भावस्‍था में प्रोटीन युक्‍त आहार लेने से कई फायदे होते हैं

प्रोटीन युक्‍त आहार

आप दूध से बने उत्‍पादों से प्रोटीन ले सकती हैं. दही, अंडा, दूध, चीज और पनीर को अपने भोजन में शामिल करें. इस के अलावा सूखे मेवों और बीजों में भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है. पिस्‍ता, नारियल और बादाम का नियमित इस्तेमाल करें, सूरजमुखी के बीजों, तिल के बीजों और कद्दू के बीजों में भी प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है.

छोले, दालें, सोया से बने उत्‍पाद और राजमा को भी अपने भोजन में शामिल करें. प्रोटीन के लिए नाश्‍ते में ओट्स लें. प्रोटीनयुक्‍त आहार से ब्‍लड शुगर का लैवल ठीक रहता है और शरीर को ऐनर्जी भी मिलती है. दो चम्‍मच पीनट बटर से 7 ग्राम प्रोटीन मिलता है.

प्रोटीन का है ये काम

प्रोटीन बॉडी में टिश्यू रिपेयर करने, हार्मोन बनाने, जरूरी बॉडी केमिकल बनाने और हड्डियों, त्वचा और ब्लड के लिए ब्लॉक बनाने का काम करता है.

पत्ता गोभी

पत्ता गोभी को सलाद और सब्जी दोनों तरह से खाया जा सकता है. प्रोटीन के अच्छे स्रोत खाद्य पदार्थों में यह भी खास स्थान रखती है.

​पालक

प्रोटीन से भरपूर सब्जियों में पालक भी प्रमुख स्थान रखता है. आप इसे जूस के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

​हरी मटर

आप हरी मटर का सूप बना कर भी पी सकते हैं. इस से भी आप के शरीर को काफी मात्रा में प्रोटीन की पूर्ति होगी.

मशरूम

मशरूम की सब्जी अकसर हर घर में बनती है. प्रोटीन की पूर्ति के लिए मशरूम भी बहुत बढ़िया विकल्प हो सकता है.

​केल

प्रोटीन से भरपूर सब्जियों के मामले में केल को सब से पहली गिना जाता है. इस की पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं. इस में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है.

​​ब्रोकली

प्रोटीन से भरपूर होने के साथसाथ ब्रोकली में हमारे शरीर के लिए जरूरी कई अन्य पोषक तत्व भी पाए जाते हैं.

​आलू

आलू ज्यादातर घरों में रोजाना खाया जाता है.. एक आलू में लगभग 5 से 10 ग्राम प्रोटीन की मात्रा हो सकती है.

​शतावरी

शतावरी भी हरी सब्जियों में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत मानी जाती है. कई लोग इसे फ्राई कर के भी खाते हैं.

आर्टिचोक

आर्टिचोक, प्रोटीन से भरपूर सब्जियों में खास स्थान रखती है. इसे फ्राई कर के बटर सॉस के साथ भी खाया जा सकता है.

क्‍या गर्भावस्‍था में प्रोटीन सप्‍लीमेंट ले सकते हैं

आहार से प्रोटीन लेने के अलावा प्रेगनेंट महिलाएं सप्‍लीमेंट से भी शरीर में प्रोटीन की पूर्ति कर सकती है. प्रेग्‍नेंसी में जिन पोषक तत्‍वों की सब से ज्‍यादा जरूरत होती है, सप्‍लीमेंट्स से उन की पूर्ति की जाती है. मॉर्निंग सिकनेस और पाचन संबंधी समस्‍याओं से छुटकारा पाने का ये आसान तरीका है.

हालांकि प्रेग्‍नेंसी में महिलाओं को डॉक्‍टर के परामर्श के बाद ही कोई सप्‍लीमेंट खाने चाहिए.

गर्भावस्‍था की तीसरी तिमाही में प्रोटीन

प्रेग्‍नेंसी की तीसरी तिमाही में महिलाओं को प्रोटीन की सब से ज्‍यादा जरूरत होती है. इस दौरान शिशु के मस्तिष्‍क का विकास तेजी से हो रहा होता है, इसलिए प्रोटीन की ज्यादा जरूरत पड़ती है.मछली, अंडे और मीट से सब से ज्‍यादा प्रोटीन मिलता है, इसलिए इस समय इन चीजों का सेवन अधिक करें.

शरीर में प्रोटीन की जरूरत

प्रोटीन हमारी बॉडी के लगभग हर हिस्से के लिए जरूरी होता है. यह हमारी स्किन सेल्स और बॉडी सेल्स के निर्माण में तो मदद करता ही है साथ ही, मेमॉरी सेव करने और डायजेशन को दुरुस्त रखने में भी मदद करता है.

ऐसे बनता है प्रोटीन

प्रोटीन अमीनो एसिड से बनता है. अमीनो एसिड 20 तरह के होते है, जो हमें फ्रूट्स, वेजिटेबल्स, एग्स, मीट, आदि से मिलते हैं. दालें और ड्राइफ्रूट्स भी प्रोटीन से भरपूर होते हैं. इसलिए इन का हमारी डेली डायट में शामिल होना बेहद जरूरी है.

प्रोटीन का निर्माण अलगअलग तरह के अमीनो एसिड्स से मिल कर होता है. ये अलगअलग तरह के अमीनो एसिड्स अलगअलग तरह का प्रोटीन बनाते हैं यानी प्रोटीन भी किसी एक प्रकार का नहीं होता, इस के भी कई टाइप होते हैं, जो हमें अलगअलग फूड्स के जरिए मिलते हैं.

प्रोटीन हमारे शरीर में क्या काम करता है?

प्रोटीन हमारे शरीर में मैसेंजर की तरह काम करता है. यह शरीर में आने वाले वायरस और बैक्टीरिया को पहचानने वाली सेल्स के निर्माण से ले कर इम्युनिटी सेल्स तक इन वायरस के अटैक की जानकारी पहुंचाने तक हर क्रिया में शामिल होता है.

प्रोटीन हमारी याददाश्त को बनाए रखने में मदद करता है जैसा हम ने ऊपर बताया कि प्रोटीन कई प्रकार का होता है और शरीर के अलगअलग हिस्सों में यह अलग तरह से काम करता है. बात जब ब्रेन की आती है तो प्रोटीन मेमरी स्टोरेज में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है.

प्रोटीन हमारे पाचन तंत्र को दुरुस्त बनाए रखता है. इस से हमारा पेट साफ रहता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है. खासतौर पर एक नवजात बच्चे के लिए मां का पहला दूध जीवनदायिनी औषधि की तरह होता है, क्योंकि यह दूध प्रोटीन से भरपूर होता है, जो नवजात शिशु के शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता देता है.

प्रोटीन रिच फूड्स

उपरोक्त खाद्य पदार्थों के अलावा कुछ ऐसे फूड्स हैं, जो हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी को पूरा करते हैं. इन्हें कितनी मात्रा में डेली डायट का हिस्सा बना कर हम कितना प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं यहां जानें…

-एक कप दूध में 8 ग्राम प्रोटीन होता है.
-1 अंडे में 6 ग्राम प्रोटीन होता है.
-1 कप योगर्ट में 9 ग्राम प्रोटीन होता है।
-2 चम्मच पीनट्स बटर में 8 ग्राम प्रोटीन , 4 से 5 बादाम में करीब 7 ग्राम प्रोटीन होता है.
-100 ग्राम चिकन में 25 ग्राम प्रोटीन होता है. वाइट ब्रेड की 2 स्लाइस में 5 ग्राम प्रोटीन होता है.
-100 ग्राम मछली में 20 ग्राम प्रोटीन होता है.

हर दिन कितना प्रोटीन चाहिए

महिलाओं में ९20 से 70 साल की उम्र में 45 से 50 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन चाहिए होता है. जबकि पुरुषों को हर दिन 55 से 60 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है. बच्चों में प्रोटीन की सब से अधिक जरूरत होती है. इन में 3 साल की उम्र से 20 साल की उम्र तक 15 से 45 और 50 ग्राम तक प्रोटीन की जरूरत होती है, जो इन की उम्र के अनुसार निर्धारित होती है. साथ ही दिमाग में यह बात जरूर रखें कि बच्चा जो डायट ले रहा है, उस डायट का 10 से 20 प्रतिशत प्रोटीन रिच होना चाहिए.

इन लोगों को होती है अधिक प्रोटीन की जरूरत

कुछ लोगों में सामान्य लोगों से अधिक प्रोटीन की जरूरत होती है. इन में खासतौर पर गर्भवती महिलाएं, नवजात बच्चे और जिन लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, वे लोग शामिल हैं. इन्हें प्रोटीन की सही मात्रा में और सब से अधिक जरूरत होती है.

बच्चों में एक खास बीमारी होती है जिसे क्वाशिऑरकोर (Kwashiokor) कहते हैं. यह बच्चों की ऐसी बीमारी है, जो मुख्य रूप से प्रोटीन की कमी के कारण होती है. ऐसे बच्चे बेहद दुबलेपतले होते हैं, लेकिन इन का पेट निकला होता है.

*क्वाशिऑरकोर बीमारी के शिकार बच्चों में हाथपैर में सूजन होती है.इन्हें डायरिया हो जाता है और ऐसे बच्चे आमतौर पर गुमसुम रहते हैं.

*बच्चों में प्रोटीन की कमी के कारण मेंटल रिटार्डेशन भी हो सकता है. इसलिए बच्चों की डायट प्रोटीन रिच होनी बेहद जरूरी है. अगर यहां बताए गए लक्षणों में कोई भी दिक्कत आपको बच्चे में नजर आती है तो उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाएं साथ ही प्रोटीन रिच डायट के बारे में पूरी जानकारी हासिल करें.

इन बीमारियों में नहीं लेनी चाहिए प्रोटीन डायट

-जिन लोगों को प्रोटीन से एलर्जी होती है, उन्हें ऐसी डायट लेने से बचना चाहिए.

-क्रॉनिक किडनी डिजीज से गुजर रहे मरीजों को प्रोटीन रिच डायट नहीं लेनी चाहिए.

-अगर बच्चे को फिनायलकिटोन्यूरिया (Phenylketonuria)नामक बीमारी है तो भी बच्चे को प्रोटीन डायट नहीं देनी चाहिए.

प्रोटीन की कमी से हो सकती हैं ये बीमारियां

* प्रोटीन की कमी के कारण हमें जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में अकड़न, जल्दी थकान जैसी शारीरिक दिक्कतें हो सकती हैं. कई अन्य बीमारियां भी घेर सकती हैं.

* अगर प्रोटीन की कमी बहुत अधिक हो जाती है तो शरीर में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है. साथ ही खून में वाइट ब्लड सेल्स की कमी भी हो सकती है. इस से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.

* रूखे बेजान बाल, नाखून और त्वचा में रूखापन, बारबार बीमार पड़ना. किसी दर्द का बना रहना. ये सभी दिक्कतें प्रोटीन की कमी के कारण होती हैं.

* अगर हमारे खाने में प्रोटीन की कमी होती है तो हमारा ब्रेन भी सही प्रकार से काम नहीं कर पाता है, क्योंकि ब्रेन में एक हिस्सा प्रोटीन से निर्मित होता है, जो मेमॉरी स्टोरेज की तरह काम करता है. प्रोटीन डायट के अभाव में हमारी याददाश्त कमजोर हो सकती है.

* शरीर में प्रोटीन की कमी होने पर हड्डियां कमजोर हो जाती हैं. सिर्फ कैल्शियम ही नहीं बल्कि मजबूत हड्डियों के लिए प्रोटीन की भी जरूरत होती है. क्योंकि यह हड्डियों को मजबूती देने का काम करता है. प्रोटीन से बोन्स का वॉल्यूम बना रहता है.

प्रोटीन की कमी

यदि आप गर्भावस्‍था में पर्याप्‍त मात्रा में प्रोटीन नहीं लेती हैं तो इस की वजह से वजन कम होने, बारबार संक्रमण और मांसपेशियों में थकान महसूस होती है.

इस के अलावा सूजन, बारबार मूड बदलना, कमजोरी और भूख लगना भी प्रोटीन की कमी के संकेत होते हैं. अगर ये संकेत मिल रहे हैं तो डॉक्‍टर से बात कर के अपनी डायट में प्रोटीन युक्‍त आहार की मात्रा बढ़ा दें.

* प्रोटीन की कमी का कोई भी लक्षण दिख रहा है तो डॉक्‍टर से बात करें. आप को प्रेग्‍नेंसी के किसी भी महीने या तिमाही में प्रोटीन की कमी हो सकती है. हर महीने गर्भस्‍थ शिशु के विकास पर नजर रखें और अपनी रोजाना की डायट में प्रोटीन को शामिल करें.

अगर आप शाकाहारी हैं तो सोया से बनी उत्‍पादों, बींस, नट्स, दालों और दूध से बने उत्‍पादों से अपनी प्रोटीन की जरूरत को पूरा करें.

आप को यह बात समझनी चाहिए कि गर्भावस्‍था में आप को अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने शिशु के लिए भी खाना है, इसलिए जितना हो सके अपने आहार में पौष्टिक चीजों को शामिल करें.

वाइफ की प्रैग्नेंसी का असर मैरिड लाइफ पर पड़ रहा है, मैं क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी बीवी पेट से है और 7वां महीना चल रहा है. मेरा हमबिस्तरी करने का मन करता है, पर बीवी मना करती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप को खुद पर काबू रखना चाहिए. ऐसी हालत में बिना बीवी की इच्छा के हमबिस्तरी करना बच्चे के भी लिए नुकसानदेह हो सकता है.

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प्रेगनेंसी में इन 6 उपायों से लें सेक्स का आनंद

पत्नी के प्रेगनेंट होते ही दोनों के मन में ये सवाल आने स्वाभाविक हैं कि क्या इस अवस्था में सेक्स करना ठीक है, क्या इससे गर्भस्थ शिशु को कोई हानि हो सकती है या गर्भवती स्त्री को कोई तकलीफ हो सकती है?

जैसे-जैसे गर्भावस्था बढ़ती जाती है महिला की शारीरिक परेशानी बढ़ने लगती है और सेक्स के सामान्य तरीके अपनाना इसलिए कठिन हो जाता है. प्रेगनेंसी में गर्भवती महिला के उदर पर किसी प्रकार का दबाव उसके तथा भ्रूण दोनों के लिए कष्टदायी तथा नुकसानदेह हो सकता है.

वैसे छठे या सातवें माह तक की गर्भावस्था में सेक्स किया जा सकता है, लेकिन विशेष सावधानी के साथ. इसके लिए डॉक्टर की सलाह पर विशेष प्रकार के आसन अपनाए जा सकते हैं.

गर्भावस्था में सेक्स के उपाय

पत्नी के गर्भावती होने का पता चलते ही प्रथम दो माह तक सम्बन्धों का त्याग करने का प्रयास करें. अन्तिम एक माह में भी सेक्स से दूर रहने का प्रयास करें. प्रसव के पश्चात् लगभग चार सप्ताह तो वैसे ही निकल जाते हैं. इसमें अधिकांश व्यक्ति सेक्स के प्रति इच्छुक भी नहीं रहता है.

  1. गर्भ की स्थिति के प्रथम तथा अन्तिम सप्ताह में योनि प्रवेश से बचना चाहिए. हां सप्ताह में 2-3 बार शारीरिक छेड़छाड़ द्वारा आनन्द प्राप्त किया जा सकता है. ऐसे समय पत्नी अपनी हथेलियों द्वारा स्खलन में मदद कर सकती है. अनेक स्थितियों में व्यक्ति को इसमें शारीरिक सम्बन्धों जितना आनन्द प्राप्त हो जाता है. यहां इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पत्नी पर दबाव नहीं डालें. पति को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गर्भ के समय पत्नी के साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं करें जिससे उसके मन-मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव पड़ें.
  2. लिंग प्रवेश पूरी तरह न करके सिर्फ आधा प्रवेश करें. कोहनियों को नीचे टिकायें और बहुत धीरे-धीरे घर्षण करें. शिश्न मुण्ड सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है. स्खलन में लिंग मुण्ड की संवेदनशीलता प्रमुख भूमिका निभाती है. इसलिए केवल शिश्न मुण्ड ही प्रवेश करके धीरे-धीरे घर्षण किये जायें तो भी व्यक्ति पूर्ण आनन्द प्राप्त कर सकता है. ध्यान रहे कि लिंग का पूरा प्रवेश नहीं होना चाहिए और न घर्षणों में तीव्रता होनी चाहिए. अपने शरीर का भार कोहनियों पर रखें. स्त्री शरीर पर बोझ नहीं पड़ना चाहिए.
  3. गर्भावस्था के अन्तिम तीन महीनों मे स्थिति को थोड़ा बदलें. अभी भी लिंग का प्रवेश पूरा नहीं करना है. केवल शिश्न मुण्ड ही प्रवेश करायें. हथेलियों को नीचे टिकायें और हाथ एकदम सीधे रखें. ऐसा करने से आपका शरीर स्त्री शरीर से काफी ऊंचा रहेगा. इस अवस्था में गर्भ अपने समय की पूर्णता को प्राप्त कर रहा होता है. पेट का उभार काफी बढ़ जाता है, ऐसे में अपने शरीर जितना सम्भव हो, उतना दूर रखने का ही प्रयास करें. हथेलियां नीचे टिकाकर हाथों को एकदम सीधा करने से पुरुष का शरीर पर्याप्त रूप से ऊंचा उठा रहेगा. इस स्थिति में भूलकर भी लिंग को पूरी तरह से प्रविष्ठ नहीं करना है.
  4. गर्भावस्था में करवट बदल कर भी सम्बन्ध बनाए जा सकते हैं. ऐसे में कुछ व्यक्तियों के साथ समस्या हो सकती है, लिंग प्रवेश में कठिनाई हो सकती है, फिर भी आधा अथवा केवल शिश्न मुण्ड का प्रवेश किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में पुरुष शरीर का भार स्त्री पर नहीं पड़ता है.
  5. कुछ विद्वानों का मानना है कि लिंग प्रवेश से बचने के लिए उत्तेजित लिंग को योनि पर रगड़ने मात्र से भी स्खलन किया जा सकता है. स्त्री की वेजाइना को हाथों द्वारा सहलाकर उसे भी आनन्दित किया जा सकता है. विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि गर्भावस्था में सम्बन्ध बनाने का मुख्य उद्देश्य मात्र स्खलन होता है. यह स्खलन योनि पर रगड़कर किया जा सकता है. बहुत से व्यक्ति ऐसे समय में हस्तमैथुन को भी सहीं मानते हैं किन्तु विवाह के बाद हस्तमैथुन के लिए व्यक्ति तुरन्त तैयार नहीं हो पाता. खासकर उस समय तो बिल्कुल नहीं जब पत्नी उपस्थित हो.
  6. इसके अलावा व्यक्ति यदि उचित समझे तो अपने चिकित्सक से राय ले सकता है. सम्भव है कि वह कुछ अन्य सही आसनों के बारे में राय दे सके अथवा व्यक्ति स्वयं अपनी सूझ-बूझ एवं विचार कर रास्ता निकाल सकता है.

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Kitchen को देना चाहती हैं मौडर्न और ट्रैंडी लुक, तो फौलो करें ये टिप्स

किचन (Kitchen)  घर का सब से अहम हिस्सा है, क्योंकि परिवार को सेहतमंद रखने की शुरुआत यहीं से होती है. ऐसे में किचन को स्वच्छ और खूबसूरत बनाए रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है. आजकल किचन को मौडर्न बनाने और इसे स्वच्छ रखने के कई विकल्प उपलब्ध हैं. ये विकल्प न सिर्फ आप की किचन को खूबसूरत और आधुनिक बनाते हैं, बल्कि आप की जरूरत के अनुसार किचन को व्यवस्थित भी करते हैं.

मौड्युलर किचन के नाम से प्रचलित इन विकल्पों में वुडन वर्क, टाइल्स वर्क और स्टील आयरन वर्क प्रमुख हैं. खूबसूरत और स्टाइलिश किचन में काम करने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी होता है. ऐसे वातावरण में काम करने से जहां आप का मन खुश रहता है, वहीं आप काम को बेहतर ढंग से करने की कोशिश करती हैं.

व्यवस्थित और खूबसूरत किचन

किचन को खूबसूरत बनाने के साथसाथ उसे व्यवस्थित रखना भी जरूरी है, ताकि किचन में काम करते समय आप को किसी तरह की असुविधा न हो. आइए, जानें कुछ टिप्स जिन्हें फौलो करने पर आप किचन को और्गेनाइज्ड व खूबसूरत बना सकती हैं:

  1. – अगर आप के कैबिनेट के नीचे वाले हिस्से में स्पेस है, तो आप उस हिस्से में बौक्सेज लगवा लें. इस से आप को अलग से डस्टबिन रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
  2. – किचन को आकर्षक कलरफुल जार, क्यूब कोस्टर्स, टूथपिक होल्डर्स, आर्टिफिशियल फ्रूट्स, वैजिटेबल्स, कलरफुल बास्केट्स व नैपकिंस से सजाएं.
  3. – किचन को खूबसूरत दिखाने के लिए कंट्रास्ट कलर की टाइल्स, जिन में बौर्डर और खूबसूरत मोटिफ्स बने होते हैं, लगवाएं. किचन के फ्लोर को आकर्षक दिखाने के लिए आप विनायल फ्लोरिंग, सिरैमिक टाइल्स, लैमिनेटेड टाइल्स अपनी जरूरत व पसंद के अनुसार चुन सकती हैं.
  4. – किचन में रखें मौडर्न किचन ऐप्लायंसेज, जिन से आप का वक्त तो बचेगा ही, साथ ही आप की किचन भी मौडर्न गैजेट्स से सजी अच्छी लगेगी.
  5. – किचन को तरोताजा दिखाने के लिए किचन में रखें नैचुरल फ्लौवर्स, जो आप को पौजिटिव ऐनर्जी देंगे.
  6. – किचन के काउंटर को साफ रखें. वे गैजेट्स जो रोजाना काम में आते हैं जैसे कौफी मेकर, इलैक्ट्रिक कैटल, मिक्सर ग्राइंडर, चौपर उन्हें काउंटर पर रखें जबकि टोस्टर, एयरफ्रायर आदि के लिए कैबिनेट में जगह बनाएं. ऐसा करने से किचन व्यवस्थित होने के साथसाथ आकर्षक भी दिखेगी.
  7. – किचन में लकड़ी व ग्लास की ऐसी वाल यूनिट बनवाएं, जिस में क्रौकरी आदि रखी जा सके. ऐसा करना किचन को खूबसूरत व मैनेज्ड दिखाएगा.
  8. – आजकल के कौंपैक्ट घरों में किचन स्पेस काफी कम होती है. ऐसे में उसे हाइजीनिक बनाए रखना बेहद जरूरी है. किचन को हाइजीनिक बनाए रखने में इलैक्ट्रिक चिमनी की भूमिका अहम है. यह चिमनी किचन को स्वच्छ रखने में मदद करने के साथसाथ किचन को स्टाइलिश लुक भी देती है.
  9. – किचन में खाना बनते समय गंदगी फैलती रहती है, इसलिए किचन की दीवारों और फर्श की खूबसूरती बनाए रखने के लिए टाइल्स का विकल्प चुनें. टाइल्स न सिर्फ आसानी से साफ हो जाती हैं, बल्कि आप के किचन को मौडर्न और स्टाइलिश लुक भी देती हैं.

किचन डिजाइनिंग टिप्स

चूंकि किचन आप की पसंदनापसंद, रहने के तौरतरीके को दर्शाती है, इसलिए उस का इंटीरियर करवाते समय इन बातों का रखें खयाल: मौड्यूलर किचन: मौड्यूलर किचन में अलमारियां, रैक्स और शैल्फ मीडियम डैंसिटी फाइबर या लकड़ी के बने होते हैं. ऐसी किचन में जगह का अच्छा उपयोग होता है और इन्हें अपनी जरूरत और पसंद के अनुसार बनवाया जा सकता है. इन में बिल्ट इन सिंक, ओवन, चिमनी ग्रिल और माइक्रोवेव की भी सुविधा मिलती है. किचन का कोई भी डिजाइन बनवाएं, लेकिन ध्यान रहे गैस चूल्हा, फ्रिज और सिंक ट्राइऐंग्यूलर वर्क एरिया में हों.

किचन टौप :

किचन का काउंटर टौप ग्रेनाइट का लगवाएं. ग्रेनाइट पत्थर की साफसफाई करना आसान होता है. आप चाहें तो किचन की डैकोरेशन से मैच करता ग्रेनाइट का रंग चुन सकती हैं. बाजार में कई तरह के बनेबनाए काउंटर भी मिलते हैं, जो आप की किचन के डिजाइन व कलर के साथ मैच करते हैं.

लाइटिंग :

किचन डिजाइन करते समय ध्यान रहे कि किचन में पर्याप्त रोशनी हो. रोशनी नैचुरल और इनडायरैक्ट दोनों होनी चाहिए. इनडायरैक्ट लाइटिंग में आप हैलोजन या फ्लोरोसैंट लाइटिंग करवा सकती हैं. यदि किचन को और भी अलग लुक देना हो तो पेंडैंट लाइटिंग भी करवा सकती हैं. अनेक डिजाइनों में उपलब्ध सीलिंग से एक मैटल की रौड से जुड़ी यह लाइटिंग खूबसूरत दिखने के साथसाथ उपयोगी भी होती है.

डैकोरेशन :

मौड्यूलर किचन को मौडर्न टच देने के साथसाथ उस को डैकोरेटिव बनाना भी जरूरी होता है. ऐसा करने से किचन की रौनक दोगुनी हो जाती है. किचन में रंगबिरंगी प्लेट्स व क्रौकरी का प्रयोग करें. इस के अलावा किचन को फ्रैश लुक देने के लिए बीड्स व सैंटेड कैंडल्स से भी सजा सकती हैं. किचन की दीवार को स्टाइलिश लुक देने के लिए किचन से संबंधित कोई पेंटिंग लगाएं. इस से किचन का रंगरूप तो बदलेगा ही, साथ ही किचन में नई ताजगी का एहसास भी होगा.

क्लीनिंग टिप्स

किचन की साफ सफाई के लिए पेश हैं कुछ घरेलू टिप्स:

– बरतनों को साफ करने वाला डिश बार आप के किचन की सफाई में भी बेहद काम आता है. कुकिंग टौप, किचन टौप और सिंक को साफ करने के लिए आप डिश बार का इस्तेमाल कर सकती हैं. कुनकुने पानी में थोड़ा सा डिश बार मिला कर घोल तैयार कर लें. फिर स्क्रबर या सूती कपड़े को इस घोल में डिप कर के हलके हाथों से कुकिंग टौप, किचन टौप को साफ करें और फिर सूखे कपड़े से पोंछ दें. इस घोल का इस्तेमाल आप किचन फ्लोर को साफ करने में भी कर सकती हैं.

– आप के किचन का फ्लोर हरदम चमचमाता रहे इस के लिए आप ब्लीच का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. लेकिन टाइल्स वाले किचन फ्लोर पर ब्लीच का इस्तेमाल न करें. टाइल्स पर यदि कोई दाग लग गया हो, तो कुनकुने पानी में डिटर्जैंट मिला कर कुछ देर के लिए दाग पर डाल कर छोड़ दें. अब स्क्रबर से दाग को साफ करने से दाग गायब हो जाएगा.

– ध्यान रखें कि किचन के फ्लोर, किचन टौप और सिंक के पास हरदम पानी न पड़ा रहे. किचन महिलाओं के लिए वह जगह है जो न सिर्फ उन के पूरे परिवार की सेहत का माध्यम होती है, बल्कि उन का सब से ज्यादा समय वहीं व्यतीत होता है. इसलिए घर की इस सब से महत्त्वपूर्ण जगह का स्वच्छ और सुंदर रहना बहुत जरूरी है.

लिफाफाबंद चिट्ठी : ट्रेन में चढ़ी वह महिला क्यों मदद की गुहार लगा रही थी

मैंने घड़ी देखी. अभी लगभग 1 घंटा तो स्टेशन पर इंतजार करना ही पड़ेगा. कुछ मैं जल्दी आ गया था और कुछ ट्रेन देरी से आ रही थी. इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो एक बैंच खाली नजर आ गई. मैं ने तुरंत उस पर कब्जा कर लिया. सामान के नाम पर इकलौता बैग सिरहाने रख कर मैं पांव पसार कर लेट गया. अकेले यात्रा का भी अपना ही आनंद है. सामान और बच्चों को संभालने की टैंशन नहीं. आराम से इधरउधर ताकाझांकी भी कर लो.

स्टेशन पर बहुत ज्यादा भीड़ नहीं थी. पर जैसे ही कोई ट्रेन आने को होती, एकदम हलचल मच जाती. कुली, ठेले वाले एकदम चौकन्ने हो जाते. ऊंघते यात्री सामान संभालने लगते. ट्रेन के रुकते ही यात्रियों के चढ़नेउतरने का सिलसिला शुरू हो जाता. उस समय यह निश्चित करना मुश्किल हो जाता था कि ट्रेन के अंदर ज्यादा भीड़ है या बाहर? इतने इतमीनान से यात्रियों को निहारने का यह मेरा पहला अवसर था. किसी को चढ़ने की जल्दी थी, तो किसी को उतरने की. इस दौरान कौन खुश है, कौन उदास, कौन चिंतित है और कौन पीडि़त यह देखनेसमझने का वक्त किसी के पास नहीं था.

किसी का पांव दब गया, वह दर्द से कराह रहा है, पर रौंदने वाला एक सौरी कह चलता बना. ‘‘भैया जरा साइड में हो कर सहला लीजिए,’’ कह कर आसपास वाले रास्ता बना कर चढ़नेउतरने लगे. किसी को उसे या उस के सामान को चढ़ाने की सुध नहीं थी. चढ़ते वक्त एक महिला की चप्पलें प्लेटफार्म पर ही छूट गईं. वह चप्पलें पकड़ाने की गुहार करती रही. आखिर खुद ही भीड़ में रास्ता बना कर उतरी और चप्पलें पहन कर चढ़ी.

मैं लोगों की स्वार्थपरता देख हैरान था. क्या हो गया है हमारी महानगरीय संस्कृति को? प्रेम, सौहार्द और अपनेपन की जगह हर किसी की आंखों में अविश्वास, आशंका और अजनबीपन के साए मंडराते नजर आ रहे थे. मात्र शरीर एकदूसरे को छूते हुए निकल रहे थे, उन के मन के बीच का फासला अपरिमित था. मुझे सहसा कवि रामदरश मिश्र की वह उपमा याद आ गई, ‘कैसा है यह एकसाथ होना, दूसरे के साथ हंसना न रोना. क्या हम भी लैटरबौक्स की चिट्ठियां बन गए हैं?’

इस कल्पना के साथ ही स्टेशन का परिदृश्य मेरे लिए सहसा बदल गया. शोरशराबे वाला माहौल निस्तब्ध शांति में तबदील हो गया. अब वहां इंसान नहीं सुखदुख वाली अनंत चिट्ठियां अपनीअपनी मंजिल की ओर धीरेधीरे बढ़ रही थीं. लेकिन कोई किसी से नहीं बोल रही थी. मैं मानो सपनों की दुनिया में विचरण करने लगा था.

‘‘हां, यहीं रख दो,’’ एक नारी स्वर उभरा और फिर ठकठक सामान रखने की आवाज ने मेरी तंद्रा भंग कर दी. गोद में छोटे बच्चे को पकड़े एक संभ्रांत सी महिला कुली से सामान रखवा रही थी. बैंच पर बैठने का उस का मंतव्य समझ मैं ने पांव समेट लिए और जगह बना दी. वह धन्यवाद दे कर मुसकान बिखेरती हुई बच्चे को ले कर बैठ गई. एक बार उस ने अपने सामान का अवलोकन किया. शायद गिन रही थी पूरा आ गया है या नहीं? फिर इतमीनान से बच्चे को बिस्कुट खिलाने लगी.

यकायक उस महिला को कुछ खयाल आया. उस ने अपनी पानी की बोतल उठा कर हिलाई. फिर इधरउधर नजरें दौड़ाईं. दूर पीने के पानी का नल और कतार नजर आ रहें थे. उस की नजरें मुड़ीं और आ कर मुझ पर ठहर गईं. मैं उस का मंतव्य समझ नजरें चुराने लगा. पर उस ने मुझे पकड़ लिया, ‘‘भाई साहब, बहुत जल्दी में घर से निकलना हुआ तो बोतल नहीं भर सकी. प्लीज, आप भर लाएंगे?’’

एक तो अपने आराम में खलल की वजह से मैं वैसे ही खुंदक में था और फिर ऊपर से यह बेगार. मेरे मन के भाव शायद मेरे चेहरे पर लक्षित हो गए थे. इसलिए वह तुरंत बोल पड़ी, ‘‘अच्छा रहने दीजिए. मैं ही ले आती हूं. आप थोड़ा टिंकू को पकड़ लेंगे?’’

वह बच्चे को मेरी गोद में पकड़ाने लगी, तो मैं झटके से उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं ही ले आता हूं,’’ कह कर बोतल ले कर रवाना हुआ तो मन में एक शक का कीड़ा बुलबुलाया कि कहीं यह कोई चोरउचक्की तो नहीं? आजकल तो चोर किसी भी वेश में आ जाते हैं. पीछे से मेरा बैग ही ले कर चंपत न हो जाए? अरे नहीं, गोद में बच्चे और ढेर सारे सामान के साथ कहां भाग सकती है? लो, बन गए न बेवकूफ? अरे, ऐसों का पूरा गिरोह होता है. महिलाएं तो ग्राहक फंसाती हैं और मर्द सामान ले कर चंपत. मैं ठिठक कर मुड़ कर अपना सामान देखने लगा.

‘‘मैं ध्यान रख रही हूं, आप के सामान का,’’ उस ने जोर से कहा.

मैं मन ही मन बुदबुदाया कि इसी बात का तो डर है. कतार में खड़े और बोतल भरते हुए भी मेरी नजरें अपने बैग पर ही टिकी रहीं. लौट कर बोतल पकड़ाई, तो उस ने धन्यवाद कहा. फिर हंस कर बोली, ‘‘आप से कहा तो था कि मैं ध्यान रख रही हूं. फिर भी सारा वक्त आप की नजरें इसी पर टिकी रहीं.’’

अब मैं क्या कहता? ‘खैर, कर दी एक बार मदद, अब दूर रहना ही ठीक है,’ सोच कर मैं मोबाइल में मैसेज पढ़ने लगा. यह अच्छा जरिया है आजकल, भीड़ में रहते हुए भी निस्पृह बने रहने का.

‘‘आप बता सकते हैं कोच नंबर 3 कहां लगेगा?’’ उस ने मुझ से फिर संपर्कसूत्र जोड़ने की कोशिश की.

‘‘यहीं या फिर थोड़ा आगे,’’ सूखा सा जवाब देते वक्त अचानक मेरे दिमाग में कुछ चटका कि ओह, यह भी मेरे ही डब्बे में है? मेरी नजरें उस के ढेर सारे सामान पर से फिसलती हुईं अपने इकलौते बैग पर आ कर टिक गईं. अब यदि इस ने अपना सामान चढ़वाने में मदद मांगी या बच्चे को पकड़ाया तो? बच्चू, फूट ले यहां से. हालांकि ट्रेन आने में अभी 10 मिनट की देर थी. पर मैं ने अपना बैग उठाया और प्लेटफार्म पर टहलने लगा.

कुछ ही देर में ट्रेन आ पहुंची. मैं लपक कर डब्बे में चढ़ा और अपनी सीट पर जा कर पसर गया. अभी मैं पूरी तरह जम भी नहीं पाया था कि उसी महिला का स्वर सुनाई दिया, ‘‘संभाल कर चढ़ाना भैया. हां, यह सूटकेस इधर नीचे डाल दो और उसे ऊपर चढ़ा दो… अरे भाई साहब, आप की भी सीट यहीं है? चलो, अच्छा है… लो भैया, ये लो अपने पूरे 70 रुपए.’’

मैं ने देखा वही कुली था. पैसे ले कर वह चला गया. महिला मेरे सामने वाली सीट पर बच्चे को बैठा कर खुद भी बैठ गई और सुस्ताने लगी. मुझे उस से सहानुभूति हो आई कि बेचारी छोटे से बच्चे और ढेर सारे सामान के साथ कैसे अकेले सफर कर रही है? पर यह सहानुभूति कुछ पलों के लिए ही थी. परिस्थितियां बदलते ही मेरा रुख भी बदल गया. हुआ यों कि टी.टी. आया तो वह उस की ओर लपकी. बोली, ‘‘मेरी ऊपर वाली बर्थ है. तत्काल कोटे में यही बची थी. छोटा बच्चा साथ है, कोई नीचे वाली सीट मिल जाती तो…’’

मेरी नीचे वाली बर्थ थी. कहीं मुझे ही बलि का बकरा न बनना पड़े, सोच कर मैं ने तुरंत मोबाइल निकाला और बात करने लगा. टी.टी. ने मुझे व्यस्त देख पास बैठे दूसरे सज्जन से पूछताछ आरंभ कर दी. उन की भी नीचे की बर्थ थी. वे सीटों की अदलाबदली के लिए राजी हो गए, तो मैं ने राहत की सांस ले कर मोबाइल पर बात समाप्त की. वे सज्जन एक उपन्यास ले कर ऊपर की बर्थ पर जा कर आराम से लेट गए. महिला ने भी राहत की सांस ली.

‘‘चलो, यह समस्या तो हल हुई… मैं जरा टौयलेट हो कर आती हूं. आप टिंकू को देख लेंगे?’’ बिना जवाब की प्रतीक्षा किए वह उठ कर चल दी. मुझ जैसे सज्जन व्यक्ति से मानो इनकार की तो उसे उम्मीद ही नहीं थी.

मैं ने सिर थाम लिया कि इस से तो मैं सीट बदल लेता तो बेहतर था. मुझे आराम से उपन्यास पढ़ते उन सज्जन से ईर्ष्या होने लगी. उस महिला पर मुझे बेइंतहा गुस्सा आ रहा था कि क्या जरूरत थी उसे एक छोटे बच्चे के संग अकेले सफर करने की? मेरे सफर का सारा मजा किरकिरा कर दिया. मैं बैग से

अखबार निकाल कर पढ़े हुए अखबार को दोबारा पढ़ने लगा. वह महिला तब तक लौट आई थी.

‘‘मैं जरा टिंकू को भी टौयलेट करा लाती हूं. सामान का ध्यान तो आप रख ही रहे हैं,’’ कहते हुए वह बच्चे को ले कर चली गई. मैं ने अखबार पटक दिया और बड़बड़ाया कि हां बिलकुल. स्टेशन से बिना पगार का नौकर साथ ले कर चढ़ी हैं मैडमजी, जो कभी इन के बच्चे का ध्यान रखेगा, कभी सामान का, तो कभी पानी भर कर लाएगा…हुंह.

तभी पैंट्रीमैन आ गया, ‘‘सर, आप खाना लेंगे?’’

‘‘हां, एक वैज थाली.’’

वह सब से पूछ कर और्डर लेने लगा. अचानक मुझे उस महिला का खयाल आया कि यदि उस ने खाना और्डर नहीं किया तो फिर स्टेशन से मुझे ही कुछ ला कर देना पड़ेगा या शायद शेयर ही करना पड़ जाए. अत: बोला, ‘‘सुनो भैया, उधर टौयलेट में एक महिला बच्चे के साथ है. उस से भी पूछ लेना.’’

कुछ ही देर में बच्चे को गोद में उठाए वह प्रकट हो गई, ‘‘धन्यवाद, आप ने हमारे खाने का ध्यान रखा. पर हमें नहीं चाहिए. हम तो घर से काफी सारा खाना ले कर चले हैं. वह रामधन है न, हमारे बाबा का रसोइया उस ने ढेर सारी सब्जी व पूरियां साथ रख दी हैं. बस, जल्दीजल्दी में पानी भरना भूल गया, बल्कि हम तो कह रहे हैं आप भी मत मंगाइए. हमारे साथ ही खा लेना.’’

मैं ने कोई जवाब न दे कर फिर से अखबार आंखों के आगे कर लिया और सोचने लगा कि या तो यह महिला निहायत भोली है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर. हो सकता है खाने में कुछ मिला कर लाई हो. पहले भाईचारा गांठ रही है और फिर… मुझे सावधान रहना होगा. इस का आज का शिकार निश्चितरूप से मैं ही हूं.

जबलपुर स्टेशन आने पर खाना आ गया था. मैं कनखियों से उस महिला को खाना निकालते और साथ ही बच्चे को संभालते देख रहा था. पर मैं जानबूझ कर अनजान बना अपना खाना खाता रहा.

‘‘थोड़ी सब्जीपूरी चखिए न. घर का बना खाना है,’’ उस ने इसरार किया.

‘‘बस, मेरा पेट भर गया है. मैं तो नीचे स्टेशन पर चाय पीने जा रहा हूं,’’ कह मैं फटाफट खाना खत्म करते हुए वहां से खिसक लिया कि कहीं फिर पानी या और कुछ न मंगा ले.

‘‘हांहां, आराम से जाइए. मैं आप के सामान का खयाल रख लूंगी.’’

‘ओह, बैग के बारे में तो भूल ही गया था. इस की नजर जरूर मेरे बैग पर है. पर क्या ले लेगी? 4 जोड़ी कपड़े ही तो हैं. यह अलग बात है कि सब अच्छे नए जोड़े हैं और आज के जमाने में तो वे ही बहुत महंगे पड़ते हैं. पर छोड़ो, बाहर थोड़ी आजादी तो मिलेगी. इधर तो दम घुटने लगा है,’ सोचते हुए मैं नीचे उतर गया. चाय पी तो दिमाग कुछ शांत हुआ. तभी मुझे अपना एक दोस्त नजर आ गया. वह भी उसी गाड़ी में सफर कर रहा था और चाय पीने उतरा था. बातें करते हुए मैं ने उस के संग दोबारा चाय पी. मेरा मूड अब एकदम ताजा हो गया था. हम बातों में इतना खो गए कि गाड़ी कब खिसकने लगी, हमें ध्यान ही न रहा. दोस्त की नजर गई तो हम भागते हुए जो डब्बा सामने दिखा, उसी में चढ़ गए. शुक्र है, सब डब्बे अंदर से जुड़े हुए थे. दोस्त से विदा ले कर मैं अपने डब्बे की ओर बढ़ने लगा. अभी अपने डब्बे में घुसा ही था कि एक आदमी ने टोक दिया, ‘‘क्या भाई साहब, कहां चले गए थे? आप की फैमिली परेशान हो रही है.’’

आगे बढ़ा तो एक वृद्ध ने टोक दिया, ‘‘जल्दी जाओ बेटा. बेचारी के आंसू निकलने को हैं,’’ अपनी सीट तक पहुंचतेपहुंचते लोगों की नसीहतों ने मुझे बुरी तरह खिझा दिया था.

मैं बरस पड़ा, ‘‘नहीं है वह मेरी फैमिली. हर किसी राह चलते को मेरी फैमिली बना देंगे आप?’’

‘‘भैया, वह सब से आप का हुलिया बताबता कर पूछ रही थी, चेन खींचने की बात कर रही थी. तब किसी ने बताया कि आप जल्दी में दूसरे डब्बे में चढ़ गए हैं. चेन खींचने की जरूरत नहीं है, अभी आ जाएंगे तब कहीं जा कर मानीं,’’ एक ने सफाई पेश की.

‘‘क्या चाहती हैं आप? क्यों तमाशा बना रही हैं? मैं अपना ध्यान खुद रख सकता हूं. आप अपना और अपने बच्चे का ध्यान रखिए. बहुत मेहरबानी होगी,’’ मैं ने गुस्से में उस के आगे हाथ जोड़ दिए.

इस के बाद पूरे रास्ते कोई कुछ नहीं बोला. एक दमघोंटू सी चुप्पी हमारे बीच पसरी रही. मुझे लग रहा था मैं अनावश्यक ही उत्तेजित हो गया था. पर मैं चुप रहा. मेरा स्टेशन आ गया था. मैं उस पर फटाफट एक नजर भी डाले बिना अपना बैग उठा कर नीचे उतर गया. अपना वही दोस्त मुझे फिर नजर आ गया तो मैं उस से बतियाने रुक गया. हम वहीं खड़े बातें कर रहे थे कि एक अपरिचित सज्जन मेरी ओर बढ़े. उन की गोद में उसी बच्चे को देख मैं ने अनुमान लगा लिया कि वे उस महिला के पति होंगे.

‘‘किन शब्दों में आप को धन्यवाद दूं? संजना बता रही है, आप ने पूरे रास्ते उस का और टिंकू का बहुत खयाल रखा. वह दरअसल अपने बीमार बाबा के पास पीहर गई हुई थी. मैं खुद उसे छोड़ कर आया था. यहां अचानक मेरे पापा को हार्टअटैक आ गया. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. संजना को पता चला तो आने की जिद पकड़ बैठी. मैं ने मना किया कि कुछ दिनों बाद मैं खुद लेने आ जाऊंगा पर उस से रहा नहीं गया. बस, अकेले ही चल पड़ी. मैं कितना फिक्रमंद हो रहा था…’’

‘‘मैं ने कहा था न आप को फिक्र की कोई बात नहीं है. हमें कोई परेशानी नहीं होगी. और देखो ये भाई साहब मिल ही गए. इन के संग लगा ही नहीं कि मैं अकेली सफर कर रही हूं.’’

मैं असहज सा महसूस करने लगा. मैं ने घड़ी पर नजर डाली, ‘‘ओह, 5 बज गए. मैं चलता हूं… क्लाइंट निकल जाएगा,’’ कहते हुए मैं आगे बढ़ते यात्रियों में शामिल हो गया. लिफाफाबंद चिट्ठियों की भीड़ में एक और चिट्ठी शुमार हो गई थी.

मैंने अपने मौसी के देवर से गुपचुप तरीके से शादी की है, लेकिन घरवाले इस रिश्ते को ऐक्सेप्ट नहीं कर रहे…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 25 साल की लड़की हूं, अपनी मौसी के देवर से प्यार करती हूं. वह भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं. हमने कुछ दिनों पहले शादी कर ली. इस बात को सिर्फ हमदोनों जानते हैं. हमने घरवालों को बताया तो हमारे इस रिश्ते को किसी ने स्वीकार नहीं किया और जबरदस्ती मेरे पति की दूसरी शादी की तारीख पक्की कर दी. हमदोनों कई बार संबंध भी बना चुके हैं. अब मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब

अगर आप दोनों एकदूसरे से इतना ही प्रेम करते थे तो गुपचुप तरीके से शादी करने की जरूरत नहीं थी. आप शादी के लिए अपनी फैमिली को मनाते हैं. जैसा कि आपने कहा कि आपका बौयफ्रैंड मौसी का देवर था. आप अपनी मौसी से ही इस बारे में बताती. उन्हें घरवालों से शादी की बात करने के लिए रिक्वेस्ट करती. हो सकता कि वह मान जाती. अब तो आपदोनों ने शादी कर ली है और घरवाले ने आपके पति की दूसरी शादी की डेट फिक्स कर दी है. ऐसे में आप दोनों को बहुत समझदारी से काम लेनी होगी. आप अपने फैमिली को किसी भी एक सदस्य को इस शादी को मनाने के लिए रिक्वेस्ट करें, अगर कोई एक भी तैयार हो जाता है, तो बाकी घरवाले भी मान जाएंगे.

इसके अलावा आप कोर्ट मैरिज (Court Marriage) भी कर सकते हैं, जिससे शादी मान्य होगी और आपकी शादी कोई तोड़ भी नहीं सकता.

कोर्ट मैरिज के क्या हैं नियम

अगर आप भी कोर्ट मैरिज करने का प्लान कर रहे हैं तो कुछ बातों का आपको खयाल रखना होगा. आज इस आर्टिकल में हम आपको कोर्ट मैरिज से जुड़ी नियमों के बारे में बताएंगे. कोर्ट मैरिज में किसी भी धर्म या जाति के लड़केलड़की की शादी हो सकती है. लेकिन इसमें शर्त यह है कि लड़की और लड़का दोनों बालिग होने चाहिए और दोनों अपनी मर्जी से शादी कर रहे हों.

कोर्ट मैरिज सभी तरह के दस्तावेज जमा कराने होते हैं, जिसके बाद तारीख तय होती है. इस दौरान कोई भी रीति रिवाज नहीं होते, सिर्फ पतिपत्नी को पेपर पर साइन करने होते हैं.

कोर्ट मैरिज के लिए आधार कार्ड, दसवीं की मार्कशीट, निवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो की जरूरत होती है, तो वहीं तलाकशुदा के मामले में सर्टिफिकेट और विधवा के मामले में डेथ सर्टिफिकेट दिखाना पड़ता है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मुट्ठीभर बेर: माया ने मन में क्या ठान रखा था

घने बादलों को भेद, सूरज की किरणें लुकाछिपी खेल रही थीं. नीचे धरती नम होने के इंतजार में आसमान को ताक रही थी. मौसम सर्द हो चला था. ठंडी हवाओं में सूखे पत्तों की सरसराहट के साथ मिली हुई कहीं दूर से आ रही हुआहुआ की आवाज ने माया को चौकन्ना कर दिया.

माया आग के करीब ठिठक कर खड़ी हो गई. घने, उलझे बालों ने उस की झुकी हुई पीठ को पूरी तरह से ढक रखा था. उस के मुंह से काले, सड़े दांत झांक रहे थे. वह पेड़ के चक्र से बाहर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन उस की आंखों को धुंधली छवियों के अलावा कुछ नहीं दिखाई दिया. कदमों की कोई आहट न आई.

शिकारियों की टोली को लौटने में शायद वक्त था. उस ने अपने नग्न शरीर पर तेंदुए की सफेद खाल को कस कर लपेट लिया. इस बार ठंड कुछ अधिक ही परेशान कर रही थी. ऐसी ठंड उस ने पहले कभी नहीं महसूस की. गले में पड़ी डायनासोर की हड्डियों की माला, जनजाति में उस के ऊंचे दर्जे को दर्शा रही थी. कोई दूसरी औरत इस तरह की मोटी खाल में लिपटी न थी, सिवा औलेगा के.

औलेगा की बात अलग थी. उस का साथी एक सींग वाले प्राणी से लड़ते हुए मारा गया था. पूरे 2 पूर्णिमा तक उस प्राणी के गोश्त का भोज चला था. फिर औलेगा मां भी बनने वाली थी. उस भालू की खाल की वह पूरी हकदार थी जिस के नीचे वह उस वक्त लेट कर आग ताप रही थी. पर सिर्फ उस खाल की, माया ने दांत भींचते हुए सोचा.

आग बिना जीवन कैसा था, यह याद कर माया सिहर गई. आग ही थी जो जंगली जानवरों को दूर रखती थी वरना अपने तीखे नाखूनों से वे पलभर में इंसानों को चीर कर रख देते. झाडि़यों से उन की लाल, डरावनी आंखें अभी भी उन्हें घूरती रहतीं.

माया ने झट अपने 5 बच्चों की खोज की. उस से बेहतर कौन जानता था कि बच्चे कितने नाजुक होते हैं. सब से छोटी अभी चल भी नहीं पाती थी. वह भाइयों के साथ फल कुतर रही थी. सभी 3 दिनों से भूखे थे. आज शिकार मिलना बेहद जरूरी था. आसमान से बादल शायद सफेद फूल बरसाने की फिराक में थे. फिर तो जानवर भी छिप जाएंगे और फल भी नहीं मिलेंगे. ऊपर से जो थोड़ाबहुत मांस माया ने बचा कर रखा था, वह भी उस के साथी ने बांट दिया था.

माया परेशान हो उठी. तभी उस की नजर अपने बड़े बेटे पर पड़ी. वह एक पत्थर को घिस कर नुकीला कर रहा था, पर उस का ध्यान कहीं और था. माकौ-ऊघ टकटकी लगा कर औलेगा को देख रहा था सामक-या के धमकाने के बावजूद. क्या उसे अपने पिता का जरा भी खौफ नहीं? पिछले दिन ही इस बात पर सामक-या ने माकौ-ऊघ की खूब पिटाई की थी. माकौ-ऊघ ने बगावत में आज शिकार पर जाने से इनकार कर दिया और सामक-या ने जातेजाते मांस का एक टुकड़ा औलेगा को थमा दिया. वही टुकड़ा जो माया ने अपने और बच्चों के लिए छिपा कर रखा था. माया जलभुन कर रह गई थी.

एक सरदार के लिए सामक-या का कद खास ऊंचा नहीं था. पर उस से बलवान भी कोई नहीं था. एक शेर को अकेले मार डालना आसान नहीं. उसी के दांत को गले में डाल कर वह सरदार बन बैठा. और जब तक वह माया पर मेहरबान था, माया को कोई चिंता नहीं. ऐसा नहीं कि सामक-या ने किसी और औरत की ओर कभी नहीं देखा, पर आखिरकार वापस वह माया के पास ही आता. माया भी उसे भटकने देती, बस, ध्यान रखती कि सामक-या की जिम्मेदारियां न बढ़ें. नवजात बच्चे आखिर बहुत नाजुक होते हैं. कुछ भी चख लेते हैं, जैसे जहरीले बेर.

माया की इच्छा हुई एक जहरीला बेर औलेगा के मुंह में भी ठूंस दे, पर अभी उस के कई रखवाले थे, उस का अपना बेटा भी. पूरी जनजाति उस के पीछे पड़ जाएगी. खदेड़खदेड़ कर उसे मार डालेगी.

कुछ रातों बाद…

बर्फ एक सफेद चादर की भांति जमीन पर लेटी हुई थी. कटा हुआ चांद तारों के साथ सैर पर निकला था. मैमौथ का गोश्त खा कर मर्द और बच्चे गुफा के भीतर सो चुके थे. औरतें एकसाथ आग के पास बैठी थीं. कुछ ऊंघ रही थीं तो कुछ की नजर बारबार बाहर से आती कराहने की आवाज की ओर खिंच जाती. सुबह सूरज उगने से पहले ही औलेगा छोटी गुफा में चली गई थी और अभी तक लौटी नहीं थी. रात गहराती गई. चांद ने अपना आधा सफर खत्म कर लिया. पर औलेगा की तकलीफ का अंत न हुआ. अब औरतें भी सो चली थीं, सिवा माया के.

कदमों की आहट ने उस का ध्यान आकर्षित किया. औलेगा के साथ बैठी लड़की पैर घसीटते हुए भीतर घुसी. वह धम्म से आग के सामने बैठ गई और थकी हुई, घबराई हुई आंखों से माया को देखने लगी. तभी औलेगा की तेज चीख सुनाई दी. माया झट से उठी और मशाल ले कर चल पड़ी. दूसरी मुट्ठी में उस ने बेरों पर उंगलियां फेरीं.

औलेगा का नग्न शरीर गुफा के द्वार पर, आग के सामने लेटा, दर्द से तड़प रहा था. बच्चा कुछ ही पलों की दूरी पर था. और थोड़ी ही देर में एक नन्ही सी आवाज गूंज उठी. पर औलेगा का तड़पना बंद नहीं हुआ. शायद वह मरने वाली थी. माया मुसकरा बैठी और बच्चे को ओढ़ी हुई खाल के अंदर, खुद से सटा लिया. भूखे बच्चे ने भी क्या सोचा, वह माया का दूध चूसने लगा.

अचंभित माया के हाथ से सारे बेर गिर गए. वह कुछ देर भौचक्की सी बैठी रही, औलेगा को कराहते हुए देखती रही. उस की नजर सामने की झाडि़यों से टिमटिमाती लाल आंखों पर पड़ी. बस, आग ने ही उन्हें रोक रखा था. और आग ही ठंड से राहत भी दे रही थी. औलेगा की आंखें बंद हो रही थीं. माया ने आव देखा न ताव, मुट्ठीभर मिट्टी आग पर फेंकी, बच्चे को कस कर थामा, मशाल उठाई और चलती बनी. न औलेगा की आखिरी चीखें और न ही एक और बच्चे की पहली सिसकी उसे रोक पाई.

सीरियल में लीप आने के बाद क्या अनुज-अनुपमा होंगे जुदा? आध्या पर फूटेगा डौली का गुस्सा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी कुछ ही दिनों में एक नई मोड़ लेगी. जल्द ही सीरियल में 15 साल का लीप आने वाला है, जिससे शो में कई कालाकर नजर नहीं आएंगे, तो कुछ नए चेहरे भी सीरियल अनुपमा में दिखाई देंगे. लेकिन इससे पहले इन दिनों सीरियल में हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. आइए जानते हैं अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड के बारे में…

अनुपमा अपनी बेटी की बनी ढाल

शो में डिंपी की मौत हो गई, जिससे शाह परिवार पर एक बार फिर से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. तो वहीं डिंपी ने डौली के मौत का आरोप आध्या पर लगाया है. आप शो में देख सकते हैं कि वह बारबार सबको बोल रही है कि डिंपी की मौत की जिम्मेदार आध्या है. लेकिन अनुपमा अपनी बेटी की सुरक्षा कवच बनकर खड़ी है.

आध्या हुई बेहोश

शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा सबको संभालने की कोशिश कर रही है. डिंपी की मौत के बाद आशा भवन में मातम छाया हुआ है. तो दूसरी तरफ अंश बारबार अपनी मां के बारे में पूछता है. ऐसे में पाखी उस चिल्लाती है और अंश फूटफूट कर रोने लगता है. तो वहीं आध्या का पारा हाई होता है और डिंपी का नाम लेकर चिखने लगती है. इतना ही नहीं वह अनुपमा को भी धक्का देती है, लेकिन डौली इस हालत में भी उसे डिंपी की मौत का जिम्मेदार बताती है. दूसरी तरफ अनुपमा अपनी बेटी का साथ देती है और शाह परिवार से लड़ती है. आध्या बेहोश हो जाती है. दूसरी तरफ टीटू अंश का ख्याल रखता है.

अनुज को खाई में धक्का देगा अंकुश

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज अनुपमा को बारबार फोन करेगी और तब अनुज को पता चलेगा कि आशा भवन में कुछ गलत हुआ है. अनुपमा अनुज को तुरंत आने के लिए कहेगी ऐसे भी अगली फ्लाइट की टिकट बुक कर लेता है. तभी एयरपोर्ट पर उसे लगता है कि कोई उसका पीछा कर रहा है और एयरपोर्ट के बाहर उसे अंकुश मिलेगा. अंकुश गिरगिट की तरह अपना रंग बदलेगा और उससे माफी मांगेगा. वह अनुज को कहीं सूनसान जगह पर ले जाएगा और खाई में धक्का दे देगा.

क्या अनुज कपाड़िया की शो से होगी छुट्टी

हाल ही में अनुपमा से जुड़ा एक प्रोमो सामने आया है. जिसमें लीप के बाद शो की झलक दिखाई गई है. इस प्रोमो को देखकर ये लगता है कि शो में काफी कुछ बदलने वाला है. अनुपमा का लुक पूरी तरह बदल गया है और नए कालाकार नजर आ रहे हैं. अनुपमा में अब शिवम खजुरिया लीड ऐक्टर की भूमिका निभाएंगे.  प्रोमो में शाह परिवार में पर सिर्फ बापू जी नजर आए हैं, जिस वजह से माना जा रहा है कि बाकी सभी कलाकारों की छुट्टी हो जाएगी. शो में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या लीप आने के बाद अनुज कपाड़िया की भी छुट्टी हो जाएगी?

दूसरा प्यार : क्या शादी के बाद अभिषेक को भूल पाई अहाना

सुबह के 11 बजे थे. दरवाजे की घंटी बजी तो अहाना ने बाहर आ कर देखा. यह क्या. शादी का कार्ड? किस ने भेजा होगा? लिफाफा खोला तो लाल और सुनहरे अक्षरों में ‘अभिषेक वैड्स रौशनी’ देख कर आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. नैनों से अकस्मात हुई वर्षा में मनमयूर नाच उठा. जब मन की चंचलता काबू में न रही तो वह अतीत की यादों में खो गई….

अभिषेक उस का सहपाठी था जिस के 2 ही अरमान थे. पहला आईएएस में चयन और दूसरा अहाना का जीवनपर्यंत का साथ. अभिषेक सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था और अहाना पोस्ट ग्रैजुएशन फाइनल ईयर में थी. दोनों के मन में एक ही सवाल आता कि उन की मुहब्बत अंजाम तक पहुंचेगी या नहीं? उन का साथ हमेशा के लिए होगा कि नहीं?

वह कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. जब उन के प्यार की बात अहाना के पिता तक पहुंची तो वे बुरी तरह बिफर गए. कड़क कर बोले, ‘‘पढ़ने गए थे तो पढ़ाई करते. प्यार में पड़ने की क्या जरूरत थी?’’

वैसे भी ‘जाके पैर न फटे बिवाई सो क्या जाने पीर पराई’ जो इस राह पर चले ही न हों उन्हें पैरों में चुभने वाले कांटों का अंदाजा भला कैसे होता. अभिषेक के घर में भी लगभग वही प्रतिक्रियाएं थीं. सचाई तो यह थी कि उन के प्रेम को किसी ने नहीं सम?ा. दोनों का मासूम प्यार परिवार के हित में बलि चढ़ गया.

‘‘तुम्हारे पिता का आत्मसम्मान बहुत ज्यादा है. वे टूट जाएंगे पर ?ाकेंगे नहीं. अगर उन्हें कुछ हो गया तो मैं अकेली कैसे तुम सब की देखभाल करूंगी? मेरी पूरी गृहस्थी चरमरा जाएगी. तुम्हारे बहनभाइयों का क्या होगा?’’

मां ने हर संभव मानसिक दबाव बना डाला था, जबकि अहाना अभिषेक के प्यार में आकंठ डूबी थी. उस का स्थान किसी और को देने की सोच भी नहीं सकती थी. जननी व जनक के आशीर्वाद देने वाले हाथ याचना में जुड़े थे. जो हाथ आज तक देते आए थे वे कुछ मांगने के लिए जोड़े गए थे. पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी और दिमाग सुन्न हुआ जा रहा था. उसे अपनी खुशियां देनी थीं. अपने जीवन का हक अदा करना था. मातापिता से तो जिद भी कर लेती पर बहनभाइयों के प्रति अपराधबोध ले कर कहां जाती. बड़े ही बेमन से उस ने उन की इच्छा के आगे समर्पण कर दिया. उसे पता था कि उस की सांसें चलेंगी पर जीवन न होगा और ऐसा अनर्थ आजीवन होगा.

दूल्हा, बराती, गाजेबाजे जैसे सब तैयार ही बैठे थे. मन धिक्कारता रहा, मन रोता रहा. मगर उस ने खुद को मिटा कर दुलहन का लिबास पहन लिया. चट मंगनी पट ब्याह संपन्न हो गया. दर्द जब हद से बढ़ जाये तो साथ सैलाब लाता है. एक ऐसा सैलाब जो अपने साथ सब बहा ले जाता है और ऐसा ही हुआ जब पति ने पूछा, ‘‘तुम इतनी इंटैलीजैंट और स्मार्ट हो, तुम्हारी शादी तो ‘क्लास वन अफसर’ से हो सकती थी तुम खुद भी कुछ बन सकती थी. ऐसे में मु?ो क्यों चुना? क्या तुम्हारे पेरैंट्स तुम से प्यार नहीं करते?’’

यह सुनते ही अहाना फूटफूट कर रो पड़ी. फिर तो आंसुओं के साथ सारा गुबार बाहर आ गया.

‘‘पसंद तो मैं ने भी आईएएस ही किया था भावी आईएएस पर अपने सम्मान के लिए मेरे अपनों ने मेरे सपनों पर पानी फेर दिया.’’

आकाश उस के पति के लिए यह सुनना और सम?ाना आसान न था. कुछ पलों की खामोशी के बाद अहाना को शांत करते हुए बोला, ‘‘आज से हमारे सुखदुख एक हैं. मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां लाऊंगा.’’

अहाना आश्चर्य से उस की ओर देखते हुए पूछ बैठी, ‘‘आप को मेरे प्यार की बात बुरी नहीं लगी? मैं ने तो इस विषय पर आज तक आलोचना ही सही है?’’

‘‘नहीं. प्यार तो दिलों का मेल है जो जानेअनजाने में हो जाता है. लड़कों को भी होता है. लड़कियां दिल से लगा बैठती हैं और लड़के व्यावहारिकता अपनाते हैं. तुम तो मु?ो बस यह बताओ कि मैं तुम्हारी मदद कैसे करूं?’’

‘‘यह तो मु?ो भी नहीं पता पर अपना पक्ष रखने का भी अधिकार नहीं मिला मु?ो. काश कि मैं एक बार उस से मिल पाती. उस से किया वादा न निभाने के लिए क्षमा मांग पाती…’’

पत्नी की सचाई ने मन मोह लिया. जाने कैसे पर एक दर्द का रिश्ता जुड़ गया. उसे समझ में आ गया कि जबरन हुए विवाह से अहाना घुट रही है. वर्तमान को स्वीकार करने में अभिषेक ही मददगार साबित होगा. यह सोच कर आकाश ने अहाना को उस की खोई हुई खुशियों से रूबरू कराने का फैसला किया. उस ने कालेज रिकौर्ड्स से अभिषेक का पता किया.

अभिषेक ने एअरफोर्स जौइन कर लिया था और ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद गया था. यह जानकारी मिलते ही आकाश ने दफ्तर से 1 हफ्ते की छुट्टी ली और अहाना से हनीमून के लिए सामान पैक करने के लिए कहा. आकाश की मंशा से अनजान अहाना ने सामान पैक कर लिया. वहां जा कर जो खुशियां मिलीं उस से तो वह हमेशा के लिए आकाश की हो कर रह गई.

आकाश ने अभिषेक को होटल में मिलने के लिए बुलाया. यह अहाना के लिए बहुत बड़ा सरप्राइज था. अभिषेक को देख कर बहुत खुश हुई. उसे खुश देख कर आकाश को मानसिक शांति मिल रही थी. अभिषेक थोड़ा किंकर्तव्यविमूढ़ था पर जल्द ही आकाश के स्वभाव ने उसे भी कंफर्टेबल कर दिया. वह दिन में अपनी ट्रेनिंग खत्म कर रोज शाम को मिलने आता. रात का खाना सब साथ खाते, हंसतेगुनगुनाते और फिर लंबी वाक पर निकल जाते. अभिषेक और आकाश की खूब बातें होतीं और यह देख कर अहाना को लगता जैसे उस की दुनिया फिर से खूबसूरत हो गई है.

इस तरह 5 दिन निकल गए तो छठे दिन आकाश ने अपनी खराब तबीयत का बहाना बना कर दोनों को एकसाथ टहलने भेज दिया. जानता था कि एक बार अकेले में मिल कर ही वे अपना मन हलका कर सकेंगे. अहाना का अपराधबोध से बाहर आना उन के सुखी दांपत्य के लिए जरूरी था.

‘‘तुम्हें तो आईएएस बनना था फिर एअरफोर्स क्यों जौइन कर लिया अभिषेक?’’ अहाना ने पूछा.

‘‘तुम से बिछड़ने के बाद आसमान से इश्क हो गया… देखो. कैसे सुखदुख में एक सी छत्रछाया देता है हमें…’’ अभिषेक ने कहा.

‘‘उफ, फिलौस्फर, मु?ा से नाराज हो? हम दोनों के जीवन का फैसला मैं ने न जाने अकेले क्यों ले लिया…’’ अहाना ने कहा.

‘‘न अहाना. बिलकुल नहीं. मैं जानता हूं, तुम ने हर संभव कोशिश की होगी. गलती हमारी नहीं बल्कि हमारे परिवार वालों की है जिन्होंने हमारी खुशियों पर अपनी खुशियों को तरजीह दी. उन के निर्णय का हमारी जिंदगी पर क्या असर होगा इस की भी परवाह नहीं की.’’

‘‘आखिर हम ने ऐसा क्या मांग लिया था अभि?’’

‘‘उन का अभिमान हमारे स्वाभिमान से बहुत बड़ा है सो उन्होंने अपनी ही बात ऊपर रखी. खैर, जो हो न सका उस का कितना रोना रोया जाए. बेहतरी इसी में है कि जो मिला है उस की कद्र करो. आकाश बहुत अच्छा इंसान है जिस ने तुम्हारा इतना खयाल रखा और हमारे रिश्ते को सम्मान की नजर से देखा. यह जो आज हम मिल रहे हैं यह उसी महान इंसान की बदौलत है… जो मिला है वह भी कम तो नहीं.’’

अहाना और अभिषेक इन खूबसूरत पलों को हमेशा के लिए संजो लेना चाहते थे. तभी एक जरूरतमंद इंसान ‘जोड़ी सलामत रहे’ की दुआ देते हुए पैसे मांगने लगा.

‘‘इस बार पैसे तू देगी अहाना,’’ अभि ने छूटते ही कहा तो अहाना खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘यों ही हंसती रहा कर.’’

‘‘मेरी छोड़ो अपनी बताओ अभिषेक. तुम क्या करोगे अकेले?’’ उस के स्वर में दर्द था, उस की चिंता थी.

‘‘शादी करूंगा और क्या… स्मार्ट आदमी हूं. इतनी बुरी शक्ल तो नहीं है मेरी…’’

‘‘हा… हा… हा…’’ अहाना तो उस के सैंस औफ ह्यूमर की फैन थी.

दोनों के कहकहे देर तक उन वादियों में गूंजते रहे. ऐसा लग रहा था मानो सब पर तरुणाई छा गई हो. ठंडी हवाएं उन्हें छू कर वापस लौट आती मानो पकजमपकड़ाई खेल रही हों. चांद जो उन के अद्भुत प्रेम का सब से बड़ा गवाह था, वह भी उन के मधुर वार्त्तालाप को सुन कर मंदमंद मुसकरा रहा था.

कितनी पवित्रता थी उन की सोच में… वे साथ थे और नहीं भी. ऐसे निश्छल प्रेम पर आकाश भला क्या संदेह करता. वह तो बस इतना चाहता था कि विरही व अतृप्त हृदय तृप्त हो जाएं ताकि अहाना खुशीखुशी अपनी नई जिंदगी जी सके.

अभिषेक ने घड़ी देखी 10 बज गए थे. उस ने अहाना को होटल तक

छोड़ा और उस से विदा लेते हुए एक वादा लिया, ‘‘वादा कर हमेशा खुश रहेगी?’’

‘‘वादा.’’

‘‘मेरी दुनिया भी रौशन हो जाए ऐसी दुआ करना. सुना है अपनों की दुआओं में बड़ी ताकत होती है,’’ जातेजाते अभिषेक ने अहाना से कहा.

‘‘जरूर,’’ अहाना ने हामी भरी.

इस बात के 6 महीने ही बीते और आज शादी का निमंत्रणपत्र पा कर वह अपराधबोध से बाहर आ गई. वह अभिषेक की खुशी में बहुत खुश थी. उस की दुआ जो कुबूल हो गई थी.

‘‘उफ सोचतेसोचते शाम हो गई. आकाश आते ही होंगे.’’

वह आकाश की पसंद की पोशाक पहन कर तैयार हो गई. महीनों बाद उस का मन आजाद पंछी सा उड़ना चाह रहा था.

कौन कहता है कि प्यार दोबारा नहीं होता. वह आकाश से यों ही तो नहीं जुड़ गई है. हां. इस में थोड़ा वक्त लगा. किसी भी रिश्ते की मजबूती के लिए प्यार, विश्वास व वक्त तीनों लगते हैं. रिश्ते की नींव रखते वक्त ही निवेश करना पड़ता है. आकाश ने जिस सम?ादारी से अहाना को संभाला ऐसा कम ही देखने को मिलता है.्र

सच जब 2 दिल एकदूसरे के दर्द को जीने लगते हैं तो प्यार गहरा होता जाता है. ऐसे में पहला प्यार बचपना और दूसरा ज्यादा अपना लगता है.

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