महिलाओं को सजग रहना है जरूरी, आत्मरक्षा के लिए लें ट्रेनिंग

लेखिक- शीला श्रीवास्तव 

महिलाओं के प्रति दिनबदिन बढ़ते अपराधों की खबरें यकीनन डराने वाली हैं. अपनी बेटियों को ले कर आज सभी पेरैंट्स चिंतित नजर आ रहे हैं. इस मामले में कभीकभी अपने भी संदेह के घेरे में आने लगते हैं. असुरक्षा की इस घड़ी में बेहतरी की मांग करना कतई गलत नहीं है लेकिन खुद की सुरक्षा के लिए खुद का सजग रहना भी जरूरी है.

आइए, कुछ ऐसे पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं, जिन के जरीए हम खुद अपनी सुरक्षा कर सकते हैं:

अपना व्यवहार मर्यादित रखें

सार्वजनिक जगहों पर आप के हावभाव, उठनेबैठने का तरीका, बोलचाल का ढंग सब माने रखते हैं. एक चूक सामने वाले व्यक्ति को आगे बढ़ने का मौका दे सकती है. लोगों के सामने खुद को दृढ़ और निर्भीक दर्शाएं ताकि अकेला देख कर उन्हें यह न लगे कि आप डरी हुई है. अकसर डरी हुई लड़कियों के साथ ज्यादा वारदातें होती हैं.

किसी से ज्यादा हंसीमजाक करना भी ठीक नहीं है. जहां तक संभव हो देर रात बाहर न जाएं. दूर का काम दिन में निबटा लें.

तकनीक को अपनी ताकत बनाएं

तकनीक को अपनी ताकत बनाएं. किसी भी औटो, टैक्सी, कैब में बैठने से पहले गाड़ी का नंबर नोट कर घर के किसी सदस्य को भेज दें. सोशल नैटवर्किंग साइट पर आप का एक स्टेटस भी आप की मदद कर सकता है. कुछ जरूरी इमरजैंसी नंबर भी अपने मोबाइल में सेव कर के रखें.

आत्मरक्षा के लिए ट्रेनिंग लें

अपनी सुरक्षा के लिए सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग भी ले सकती हैं जैसे कोई आक्रमणकारी आप को पकड़ने की कोशिश करे तो पीछे की ओर छुड़ाने के बजाय थोड़ा नीचे हो जाएं. इस के बाद पूरी ताकत से व्यक्ति की छाती पर अपना सिर मारें. उसे संभलने का मौका दिए बगैर उस व्यक्ति की दोनों टांगों के बीच जोर से अपना घुटना मारें.

परिस्थिति चाहे कितनी भी बुरी हो, आप को हार नहीं माननी चाहिए. मुश्किल घड़ी में फोन, आसपास रखी चींजें जैसे ईंट, पत्थर, लोहा, लकड़ी आदि सब का प्रयोग करें. हो सकता है सामने वाला व्यक्ति आप का साहस देख डर कर भाग जाए. यदि आप ऐसी किसी स्थिति में फंस जाएं तो ये ट्रिक्स अजमा सकती हैं. इस के अलावा तेज दौड़ने का भी अभ्यास रखें.

क्या रखें हमेशा साथ

अपनी सुरक्षा के लिए पैपर स्प्रे, कोई नुकीली चीज, पेपर वेट आदि हमेशा साथ रखें. जब खतरा महसूस करें तो इन का इस्तेमाल करने से न हिचकें.

घर पर भी रखें अपना ध्यान

हादसे कहीं भी हो सकते हैं इसलिए घर में भी सावधान रहें. जिसे आप नहीं जानतीं, उस के लिए दरवाजा न खोलें. अपराधी भेष बदल कर जैसे प्लंबर, गार्ड, दूध वाला, केवल वाले आदि के रूप में भी आ जाते हैं. बिना बुलाए अगर ऐसा कोई व्यक्ति आप के घर आने की कोशिश करे तो आप दरवाजा बिलकुल न खोलें.

अपनी छठी इंद्री का करें इस्तेमाल

लड़कियों के पास सिक्स्थ सैंस यानी छठी इंद्री का वरदान होता है. आने वाले खतरे को लड़कियां जल्दी भांप लेती हैं. इसलिए जब भी कुछ असहज महसूस करें तो तुरंत उस जगह से बाहर निकल जाएं.

सजग रहना जरूरी

खुद की सुरक्षा के लिए हमेशा सजग रहें.

आप चाहें अकेली हों या फिर किसी दोस्त के साथ, किसी सुनसान जगह पर टहलनेघूमने न जाएं. शौर्ट कट के चक्कर में सुनसान रास्तों से आनेजाने से बचें.

कभी औफिस में देर हो जाए तो बौस से औफिस स्टाफ कार में घर भिजवाने का निवेदन करें. औफिस की गाड़ी से घर जाते समय घर के लोगों को सूचित करें.

ड्राइव करते समय कार के शीशे और सैंट्रल लौक लगा कर रखें. सुनसान इलाकों में कार कतई न रोकें.

यात्रा के दौरान किसी पर भरोसा न करें. होटल में कमरा बुक करते समय कमरे की बारीकी से जांच कर लें. अकेले में किसी को कमरे में घुसने की अनुमति न दें. बाथरूम में कहीं कैमरा आदि तो नहीं लगा है यह चैक जरूर करें. ज्यादातर मौल और शौपिग कौंप्लैक्स की पार्किंग बेसमैंट में होती है. ऐसे में यदि रात गए किसी काम से अकेले मौल जाना पड़े तो कोशिश करें कि वाहन बाहर किसी पार्किंग में लगाएं. सूने बेसमैंट एरिया में जाने का खतरा न उठाएं.

देर रात बाहर घूमना, देर रात औफिस या कोचिंग से पैदल घर आना भी आप को खतरे में डाल सकता है. इसलिए समय का ध्यान रखें.

Married Life में दरार के क्या हैं संकेत, ‘एकदूसरे को स्पेस न देना’

आजकल शादी (Married Life) के 2-3 साल के भीतर ही तलाक होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. व्यवहार विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों की मानें तो सगाई से शादी के बीच के 2-3 महीनों और विवाह के शुरुआती 3 महीनों में भावी दंपती या विवाहित जोड़े की कंपैटिबिलिटी का पता चल जाता है. भावी या हो चुके पतिपत्नी अपने इस गोल्डन पीरियड में आपस में कैसे बातें करते हैं और एकदूसरे के साथ कैसे पेश आते हैं, इस पर रिश्ते के सफल या असफल होने का दारोमदार होता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक ये निम्न बातें यह संकेत बहुत जल्दी दे देती हैं कि यह रिश्ता टिकने वाला नहीं और यदि टिक भी गया, तो इस में सिवा कड़वाहट के कुछ नहीं रहने वाला:

व्यक्तित्व को कम कर के आंकना:

साइकोथेरैपिस्ट एवं लेखिका एबी रोडमैन का मानना है कि जब भावी पति या पत्नी एकदूसरे के व्यक्तित्व को कम कर के आंकते हैं, उन के पेशे या व्यवसाय को घटिया या दोयम दर्जे का समझते हैं या फिर किसी दूसरे को उस के बारे में बताने में संकोच महसूस करते हैं, तो ये लक्षण रिश्ते के लिए अच्छे नहीं माने जाते. ऐसे जोड़े जिंदगी भर अपने पार्टनर को कमतर समझ कर उस से खराब व्यवहार करते हैं. बारबार पार्टनर को घटिया पेशे में होने का एहसास करा कर उस का जीना दूभर कर देते हैं, उस के मन में हीनभावना भर देते हैं. नतीजतन घर में आए दिन कलह रहने लगती है और फिर जल्द ही संबंधों के तार ढीले पड़ जाते हैं.

सोच और शौक हैं अलगअलग:

लड़का और लड़की हर बात पर अलग राय रखते हैं, उन के शौक अलग हैं, पहनावे का अंदाज अलग है, सोच अलग है, तो शुरूशुरू की छिटपुट तकरार और छींटाकशी के धीरेधीरे मनमुटाव और फिर बडे़ झगड़े में तबदील होने में ज्यादा देर नहीं लगती. जहां लड़की का जरूरत से ज्यादा मौडर्न और बिंदास होना लड़के को अखरता है, वहीं लड़के की सरल जीवनशैली लड़की की नजर में उसे भोंदू और बैकवर्ड समझने के लिए काफी है. लड़का या लड़की में से कोई एक मांसाहारी हो और दूसरा शुद्ध शाकाहारी, तो भी इस गाड़ी के रास्ते में अटकने का खतरा बढ़ जाता है. पौलिटिकल सोच और मतभेद भी अनबन की वजह बन सकते हैं.

एकदूसरे को स्पेस न देना:

मनोविज्ञानी डा. अमरनाथ मल्लिक कहते हैं, ‘‘लड़का और लड़की जब एकदूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने का निर्णय लेते हैं, तो आपसी प्यार जताना, एकदूसरे पर अधिकार जमाना आदि सामान्य बातें हैं. लेकिन जब लड़का या लड़की एकदूसरे के मिनटमिनट का हिसाब चाहने लगें, दिन भर खुद से ही बातें और खुद पर ही ध्यानाकर्षण की चाह करने लगें और ऐसा न हो पाने पर ताने कसें, उलाहने दें, झगड़ा करने लगें, तो समझ जाना चाहिए कि इस संबंध का लंबा खिंचना मुश्किल है. कई बार तो देखा जाता है कि लड़का या लड़की सवाल पूछ कर नाक में दम कर देती है. कहां थे, क्या कर रहे थे, फोन क्यों नहीं किया आदि. अगर पिंड छुड़ाने के लिए कोई जवाब दे दिया जाए, तो उस की क्रौस वैरीफिकेशन करते हैं, जिस से मामला और बिगड़ जाता है.’’

रूखा और अशिष्ट व्यवहार:

मैरिज ऐंड फैमिली थेरैपिस्ट कैरिल मैकब्राइड कहते हैं, ‘‘सगाई के बाद लड़का और लड़की घूमनेफिरने भी जाते हैं और रेस्तरां में डिनर या लंच भी करते हैं. ऐसे में लड़के या लड़की का दूसरे लोगों के साथ व्यवहार, उस के स्वभाव का सही परिचायक होता है. कोई व्यक्ति खुद से आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है यह देख कर आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि लौंगटर्म में वह आप के साथ और होने वाले बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करेगा. अगर लड़का या लड़की रेस्तरां में वेटर के साथ, टैक्सी ड्राइवर या रिकशाचालक के साथ, किसी हौकर या सेल्समैन के साथ बेअदबी से बात करे, तो समझ जाएं कि यही उस का असली व्यवहार है.’’

डेटिंग ऐक्सपर्ट मरीना सबरोची इस बात की पुष्टि करते हुए कहती हैं, ‘‘रिश्ते के शुरुआती चरण में लड़का और लड़की एकदूसरे का दिल जीतने की कोशिश करते हैं, इसलिए बढ़चढ़ कर एकदूसरे के साथ कृत्रिम व्यवहार भी कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के साथ उन के व्यवहार को देख कर ही उन का वास्तविक स्वभाव सामने आता है.’’

हर बात की आलोचना:

‘मैरिड पीपल: स्टेइंग टुगैदर इन द ऐज औफ डाइवोर्स’ की लेखिका फ्रांसिन क्लैग्सब्रुन ने अपनी किताब के रिसर्च वर्क के दौरान ऐसे 87 जोड़ों से बातचीत की जो 15 या ज्यादा साल से सुखी और सफल वैवाहिक जीवन जी रहे थे. फ्रांसिन ने उन से विवाह की सफलता के महत्त्वपूर्ण तत्त्व जानने के लिए सवाल किए तो जवाब में जो सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्व सामने आया वह था- एकदूसरे का आदर करना और पार्टनर को उस की आदतों के साथ स्वीकार करना.

फ्रांसिन कहती हैं, ‘‘आदर करना प्यार की एक कला है, जो हर दंपती को आनी चाहिए. समझदार और व्यावहारिक दंपती एकदूसरे की कमियां नहीं, बल्कि खूबियां खोजते हैं, जबकि नासमझ जोड़े बातबात में एकदूसरे की आलोचना करते हैं, आदतों में खोट निकालते हैं और जानेअनजाने अपने पार्टनर की भावनाओं को आहत करते हैं. जाहिर है ऐसे जोड़ों का रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाता.’’

घर के दूसरे सदस्यों को महत्त्व न देना:

मनोविज्ञान सलाहकार डा. रूपा तालुकदार बताती हैं, ‘‘शादी होने पर पत्नी को पति के घर के दूसरे सदस्यों से तालमेल भी बैठाना होता है और उन्हें मानसम्मान भी देना पड़ता है. इसी प्रकार पति को भी पत्नी के मायके के सदस्यों के प्रति सम्मान भी जताना चाहिए और उन की भावनाओं की कद्र भी करनी चाहिए. लेकिन पति या पत्नी अगर एकदूसरे के परिवार के सदस्यों की चर्चा से चिढ़ते हों, उन के लिए सम्मानसूचक शब्दों का इस्तेमाल न करते हों और बातबात में उन के विचारों, पहनावे और आदतों का मखौल उड़ाते हों, तो यह समझना कठिन नहीं है कि यह रिश्ता लंबे समय तक निभना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि शादी के बाद सिर्फ पतिपत्नी तक ही दुनिया सीमित नहीं रहती.’’

हाइजीन मैंटेन न करना:

डा. अमरनाथ मल्लिक बताते हैं, ‘‘जो लड़केलड़कियां साफसुथरे नहीं रहते और हाइजीन मैंटेन नहीं करते उन के अलगाव की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं. वजह साफ है कि जो शुरुआती दौर इंप्रैशन जमाने का होता है उसी में अगर यह हाल है, तो आगे चल कर तो इस से भी ज्यादा लापरवाही झलकने वाली है. जरा सोचिए कि जिस व्यक्ति के पास आप को चौबीसों घंटे रहना है, उस के साथ बिस्तर शेयर करना है और शारीरिक संबंध स्थापित करने हैं, वह अगर साफसुथरा नहीं रहता, शरीर से बदबू आती है, कपड़े बेतरतीब रहते हों, तो आप उस के साथ कैसे जीवन निर्वाह कर सकते हैं? आखिर सैक्स संबंध और निकटता तो वैवाहिक जीवन की महत्त्वपूर्ण धुरी है.’’

महत्त्वपूर्ण बातें शेयर न करना:

डा. अमरनाथ मल्लिक के अनुसार, ‘‘भावी पतिपत्नी के जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण घटना हो, जैसे नौकरी छूट गई, नई जौब मिली,

बिजनैस में बड़ा नुकसान हुआ, घर में किसी का जन्मदिन है या ऐसी ही कोई और बात जिस के बारे में आप को अपने पति या पत्नी से पता न चले, बल्कि उस के फेसबुक स्टेटस या म्यूचुअल फ्रैंड्स से पता चले, तो भावनाओं का आहत होना तय है. इस से यह भी पता चलता है कि पार्टनर की नजर में आप बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं हैं या आप पर खास कौन्फिडैंस नहीं है.’’

ध्यान रखें, इन्हीं खामियों की वजह से रिश्तों की नींव बुरी तरह हिल जाती है.

मुसकान: सुनीता की जिंदगी में क्या हुआ था

‘‘आंटी, आप बारबार मुझे इस तरह क्यों घूर रही हैं?’’ मेघा ने जब एक 45 साल की प्रौढ़ा को अपनी तरफ बारबार घूरते देखा तो उस से रहा न गया. उस ने आगे बढ़ कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मेरे चेहरे पर कुछ लगा है?’’

‘‘नहीं बेटा, मैं तुम्हें घूर नहीं रही हूं. बस, मेरा ध्यान तुम्हारी मुसकराहट पर आ कर रुक जाता है. तुम तो बिलकुल मेरी बेटी जैसी दिखती हो, तुम्हारी तरह उस के भी हंसते हुए गालों पर गड्ढे पड़ते हैं,’’ इतना कह कर सुनीता पीछे मुड़ी और अपने आंसुओं को पोंछती हुई मौल से बाहर निकल गई. तेज कदमों से चलती हुई वह घर पहुंची और अपने कमरे में बैड पर लेट कर रोने लगी. उस के पति महेश ने उसे आवाज दी, ‘‘क्या हुआ, नीता?’’ पर वह बोली नहीं. महेश उस के पास जा कर पलंग पर बैठ गया और सुनीता का सिर सहलाता रहा, ‘‘चुप हो जाओ, कुछ तो बताओ, क्या हुआ? किसी ने कुछ कहा क्या तुम से?’’

‘‘नहीं,’’ सुनीता भरेमन से इतना ही कह पाई और मुंह धो कर रसोई में नाश्ता बनाने के लिए चली गई. महेश को कुछ समझ में नहीं आया. वह सुनीता से बहुत प्यार करता है और उस की जरा सी भी उदासी या परेशानी उसे विचलित कर देती है. वह उसे कभी दुखी नहीं देख सकता. वह प्यार से उसे नीता कहता है. वह उस के पीछेपीछे रसोई में चला गया और बोला, ‘‘नीता, देखो, अगर तुम ऐसे ही दुखी रहोगी तो मेरे लिए बैंक जाना मुश्किल हो जाएगा. अच्छा, ऐसा करता हूं कि आज मैं बैंक में फोन कर देता हूं छुट्टी के लिए. आज हम दोनों पूरे दिन एकसाथ रहेंगे. तुम तो जानती ही हो कि जब तुम्हारे होंठों की मुसकान चली जाती है तो मेरा भी मन कहीं नहीं लगता.’’

‘‘मुसकान तो कब की हमें छोड़ कर चली गई है,’’ सुनीता के इन शब्दों से महेश को पलभर में ही उस की उदासी का कारण समझ में आ गया. आखिरकार, जिंदगी के 20 साल दोनों ने एकसाथ बिताए थे, इतना तो एकदूसरे को समझ ही सकते थे.

‘‘उसे तो हम मरतेदम तक नहीं भूल सकते पर आज अचानक, ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें उस की याद आ गई?’’

सुनीता ने मौल में मिली लड़की के बारे में बताया, ‘‘वह लड़की हमारी मुसकान की उम्र की ही होगी, यही कोई 16-17 साल की. पर जब वह मुसकराती है तो एकदम मुसकान की तरह ही दिखती है. वही कदकाठी, गोरा रंग. मैं तो बारबार चुपकेचुपके उसे देख रही थी कि उस ने मेरी चोरी पकड़ ली और पूछ लिया, ‘आंटी, आप ऐसे क्या देख रहे हैं?’ मैं कुछ कह नहीं पाई और घर वापस आ गई,’’ सुनीता ने फिर कहा, ‘‘चलो, अब तुम तैयार हो जाओ. मैं तुम्हारा खाना पैक कर देती हूं. अब मैं ठीक हूं,’’ और वह रसोई में चली गई. महेश तैयार हो कर बैंक चला गया पर सुनीता को रहरह कर बेटी मुसकान का खयाल आता रहा. एक जवान बेटी की मौत का दर्द क्या होता है, यह कोई सुनीता व महेश से पूछे. मुसकान खुद तो चली गई, इन से इन के जीने का मकसद भी ले गई. 4 साल पहले उन्होंने अपनी इकलौती बेटी को एक दुर्घटना में खो दिया था. हर समय उन के दिमाग में यही खयाल आता था कि क्यों किसी ने मुसकान की मदद नहीं की? अगर कोई समय रहते उसे अस्पताल ले गया होता तो शायद आज वह जिंदा होती. उस पल की कल्पना मात्र से सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और वह फफकफफक कर रोने लगी.

जी भर कर रो लेने के बाद सुनीता जब उठी तो अचानक उसे चक्कर आ गया और वह सोफे का सहारा ले कर बैठ गई. ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ. थोड़ी कमजोरी महसूस हो रही थी तो वह बैडरूम में जा कर पलंग पर ढेर हो गई और फिर उसे याद नहीं कि वह कब तक ऐसे ही पड़ी रही. दरवाजे की घंटी की आवाज से वह उठी और बामुश्किल दरवाजे पर पहुंची. महेश उस के लिए उस का मनपसंद चमेली के फूलों का गजरा लाया था. चमेली की खुशबू उसे बहुत अच्छी लगती थी. पर आज ऐसा न था. आज उसे कुछ अच्छा न लग रहा था, चाह कर भी वह उस गजरे को हाथों में न ले पाई. जैसे ही महेश उस के बालों में गजरा लगाने के लिए आगे बढ़ा तो उस ने उसे रोक दिया, ‘‘प्लीज महेश, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ? क्या तुम अभी तक सुबह वाली बात से परेशान हो?’’ महेश ने कहा और उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर अपने पास बैठा लिया. ‘‘आज सुबह से ही कमजोरी महसूस कर रही हूं और चाह कर भी उठ नहीं पा रही हूं,’’ सुनीता ने बताया. महेश ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘अरे कुछ नहीं है. वह सुबह वाली बात ही तुम सोचे जा रही होगी और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तुम ने खाना भी नहीं खाया होगा.’’सुनीता चुपचाप अपने पैरों को देखती रही.

‘‘अच्छा चलो, आज बाहर खाना खाते हैं. बहुत दिन हुए मैं अपनी बीवी को बाहर खाने पर नहीं ले कर गया.’’ महेश सुनीता को उस उदासी से छुटकारा दिलाना चाहता था जो हर पल उसे डस रही थी. उस के लिए शायद यह दुनिया की आखिरी चीज होगी जो वह देखना चाहेगा – सुनीता का उदास चेहरा. उस के तो दो जहान और सारी खुशियां सुनीता तक ही सिमट कर रह गई थीं, मुसकान के जाने के बाद. दोनों तैयार हो कर पास के होटल में खाना खाने चले गए. महेश ने उन सभी चीजों को मंगवाया जो सुनीता की मनपसंद थीं ताकि वह उदासी से बाहर आ सके.

‘‘अरे बस करो, मैं इतना नहीं खा पाऊंगी,’’ जब महेश बैरे को और्डर लिख रहा था तो उस ने बीच में ही कह कर रोक दिया.

‘‘अरे, तुम अकेले थोडे़ ही न खाओगी, मैं भी तो खाऊंगा. भैया, तुम जाओ और फटाफट से सारी चीजें ले आओ. मैं अपनी बीवी को अब और उदास नहीं देख सकता.’’ एक हलकी मुसकान सुनीता के होंठों पर फैल गई. यह सोच कर कि महेश उस से कितना प्यार करता है और अपनेआप पर उसे गर्व भी हुआ ऐसा प्यार करने वाला पति पा कर. खाना खाने के बाद सुनीता की तबीयत कुछ संभल गई. दोनों मनपसंद आइसक्रीम खा कर घर लौट आए. इतनी गहरी नींद में सोई सुनीता कि सुबह देर से आंख खुली. उस ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो बादल घिरे हुए थे. फिर उस ने पास लेटे महेश को देखा. वह चैन की नींद सो रहा था. एक रविवार को ही तो उसे उठने की जल्दी नहीं होती बाकी दिन तो वह व्यस्त रहता है. फ्रैश हो कर वह रसोई में चली गई चाय बनाने. जब तक चाय बनी, महेश उठ कर बैठक में अखबार ले कर बैठ गया. रोज का उन का यही नियम होता था-एकसाथ सुबहशाम की चाय, फिर अपनेअपने काम की भागदौड़. बाहर बादल गरजने लगे और फिर पहले धीरे, फिर तेज बारिश होने लगी. अचानक सुनीता को लगा कि कोई बाहर खड़ा है. उस ने खिड़की में से झांका. एक लड़की खड़ी थी. उस ने जल्दी से दरवाजा खोला तो देखा वह वही मौल वाली लड़की थी. उसे दोबारा देख कर सुनीता बहुत खुश हुई, ‘‘अरे बेटा, तुम आ जाओ, अंदर आ जाओ.’’

‘‘नहीं आंटी, मैं यहीं ठीक हूं,’’ उस ने डरते हुए कहा. वह कौन सा उसे जानती थी जो उस के घर के अंदर चली जाती. सुनीता ने बड़े प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उसे खींच कर अंदर ले आई.

‘‘आंटी, आप यहां रहती हैं? मैं तो कई बार इधर से गुजरती हूं पर मैं ने आप को नहीं देखा.’’ ‘‘हां बेटा, मैं जरा घर में ही व्यस्त रहती हूं.’’

‘‘आंटी, आई एम सौरी. शायद मैं ने आप का दिल दुखाया,’’ मेघा ने कहा.

महेश एक पल को मेघा को देख कर हतप्रभ रह गया. उसे अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि वह मौल वाली लड़की ही है, ‘‘आओ बेटा बैठो, हमारे साथ चाय पियो.’’ उस ने घबराते हुए महेश से नमस्ते की और बोली, ‘‘अंकल, मैं चाय नहीं पीती.’’

‘‘मुसकान भी चाय नहीं पीती थी. बस, कौफी की शौकीन थी. आजकल के बच्चे कौफी ही पसंद करते हैं,’’ ऐसा बोल कर सुनीता रसोई में चली गई. मेघा भी उस के पीछेपीछे रसोई में चली गई.

‘‘तुम्हारा घर पास में ही है शायद?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां आंटी, अगली गली में सीधे हाथ को मुड़ते ही जो तीसरा छोटा सा घर है वही मेरा है,’’ मेघा ने बताया. ‘‘अच्छा, वह नरेश शर्मा के साथ वाला?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, वही. मैं रोज यहां से अपने कालेज जाती हूं. आज रविवार है सो अपनी सहेली से मिलने जा रही थी. बारिश तेज हो गई, इसलिए यहीं पर रुक गई.’’ ‘‘कोई बात नहीं बेटा, यह भी तुम्हारा ही घर है. जब मन करे आ जाया करना, तुम्हारी आंटी को अच्छा लगेगा,’’ महेश ने कहा, ‘‘जब से मुसकान गई है तब से इस ने अपनेआप को इस घर में बंद कर लिया है, बाहर ही नहीं निकलती.’’ ‘‘मेरा नहीं मन करता किसी से भी बात करने का. जब से मुसकान गई है…’’ इतना बोलते ही सुनीता की रुलाई छूट गई तो मेघा ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आंटी, यह मुसकान कौन है?’’

‘‘मुसकान हमारी बेटी थी जिसे 4 साल पहले हम ने एक ऐक्सिडैंट में खो दिया.’’ मेघा ने देखा सुनीता आंटी लाख कोशिश करे अपना दुख छिपाने की पर फिर भी उदासी उन पर, अंकल पर और पूरे घर पर पसरी हुई थी.

इस बीच महेश बोले, ‘‘हौसला रखो नीता, मैं हूं न तुम्हारे साथ, बस मुसकान का इतना ही साथ था हमारे साथ.’’ इधर, मेघा ने अब जिज्ञासा जाहिर की, ‘‘आंटी, आप मुझे विस्तार से बताइए, क्या हुआ था.’’ ‘‘बेटा, हमारी शादी के 3 साल बाद मुसकान हमारे घर आई तो हमें ऐसा लगा कि इक नन्ही परी ने जन्म लिया है. हमारे घर में उस की मुसकराहट हूबहू तुम्हारे जैसी थी, ऐसे ही गालों में गड्ढे पड़ते थे.’’

‘‘ओह, तो इसलिए उस दिन आप मुझे मौल में बारबार मुड़मुड़ कर देख रही थीं.’’ ‘‘हां बेटा, अब तुम्हें सचाई पता चल गई, अब तो तुम नाराज नहीं होना अपनी आंटी से,’’ महेश ने कहा.

‘‘नहीं अंकल, वह तो मैं कब का भूल गई.’’

‘‘खुश रहो बेटा,’’ कहते हुए महेश चाय पीने लगे. सुनीता ने मेघा को बताना जारी रखा, ‘‘मुसकान को बारिश में घूमना बहुत पसंद था. हमारे लाड़प्यार ने उसे जिद्दी बना दिया था. इकलौती संतान होने से वह अपनी सभी जायजनाजायज बातें मनवा लेती थी. जब उस ने 10वीं की परीक्षा पास की तो स्कूटी लेने की जिद की. हम ने बहुत मना किया कि तुम अभी 15 साल की हो, 18 की होने पर ले लेना, पर वह नहीं मानी. खानापीना, हंसना, बोलना सब छोड़ दिया. हमें उस की जिद के आगे झुकना पड़ा और हम ने उसे स्कूटी ले दी. मैं ने उसे ताकीद की कि वह स्कूटी यहीं आसपास चलाएगी, दूर नहीं जाएगी. इसी शर्त पर मैं ने उसे स्कूटी की चाबी दी. वह मान गई और हम से लिपट गई. ‘‘उस दिन वह जिद कर के स्कूटी से अपनी सहेली के घर चली गई. हम उस का इंतजार कर रहे थे. उस दिन भी ऐसी ही बारिश हो रही थी. 2 घंटे बीत गए तब सिटी अस्पताल से फोन आया, ‘जी, हमें आप का नंबर एक लड़की के मोबाइल से मिला है. आप कृपया कर के जल्द सिटी अस्पताल पहुंच जाएं.’ ‘‘डर और घबराहट के चलते मेरे पैर जड़ हो गए. हम दोनों बदहवास से वहां पहुंचे. देखा, हमारी मुसकान पलंग पर लेटी हुई थी, औक्सीजन लगी हुई थी, सिर पर पट्टियां बंधी हुई थीं और साथ वाले पलंग पर उस की सहेली बेहोश थी. जब उसे होश आया तो उस ने बताया, ‘हम दोनों बारिश में स्कूटी पर दूर निकल गईं. पास से एक गाड़ी ने बड़ी तेजी से ओवरटेक किया, जिस से हमें कच्चे रास्ते पर उतरना पड़ा और उस गीली मिट्टी में स्कूटी फिसल गई. हम दोनों गिर गए और बेहोश हो गए. उस के बाद हम यहां कैसे पहुंचे, नहीं मालूम.’ ‘‘इसी बीच डाक्टर आ गए. उन्होंने मुझे और महेश को बताया कि सिर पर चोट लगने से बहुत खून बह गया है. हम ने सर्जरी तो कर दी है पर फिर भी अभी कुछ कह नहीं सकते. अभी 48 घंटे अंडर औब्जर्वेशन में रखना पड़ेगा. डाक्टर की बात सुन कर हम रोने लगे. ये भी परेशान हो गए. पलभर में हमारी दुनिया ही बदल गई. नर्स ने कहा, ‘घबराइए नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ तकरीबन 2 घंटे बाद मुसकान को होश आया,’’ बोलतेबोलते सुनीता का गला रुंध आया तो वह चुप हो गई.

‘‘फिर क्या हुआ अंकल? प्लीज, आप बताइए?’’ मेघा ने डरते हुए पूछा. महेश के चेहरे पर अवसाद की गहरी परत छा गई थी तो सुनीता ने कहा, ‘‘वह जब होश में आई तो उस से कुछ कहा ही नहीं गया. बस, अपने हाथ जोड़ दिए और हमेशा के लिए शांत हो गई.’’ और फिर सुनीता फूटफूट कर रोने लगी. उन का रुदन देख कर मेघा की भी रुलाई छूट गई. उसे समझ नहीं आया कि वह उन से क्या कहे. उस ने सुनीता और महेश का हाथ अपने हाथों में ले कर बस इतना ही कहा, ‘‘मुझे अपनी मुसकान ही समझिए और मैं पूरी कोशिश करूंगी आप की मुसकान बनने की.’’

उन दोनों के मुंह से बस इतना ही निकला, ‘‘खुश रहो बेटा.’’ बाहर बारिश थम चुकी थी और अंदर तूफान गुजर चुका था. मेघा वापस आने का वादा कर के वहां से चली गई. उस से बातें कर के दोनों बहुत हलका महसूस कर रहे थे. दोनों रविवार का दिन अनाथ आश्रम में गरीब बच्चों के साथ बिताते थे. दोनों कपड़े बदल कर वहां चले गए. मेघा जब भी कालेज जाती तो अकसर सुनीता और महेश को बाहर लौन में बैठे देखती तो कभी हाथ हिलाती, कभी वक्त होता तो मिलने भी चली जाती थी. वक्त गुजरने लगा. मेघा के आने से सुनीता अपनी सेहत को बिलकुल नजरअंदाज करने लगी. यदाकदा उसे चक्कर आते थे, कई बार आंखों के आगे धुंधला भी नजर आता तो वह सब उम्र का तकाजा समझ कर टाल जाती. इंतजार करतेकरते 10 दिन हो गए पर मेघा नहीं आई, न ही वह कालेज जाती नजर आई. दोनों को उस की चिंता हुई और जब दोनों से रहा नहीं गया तो वे एक दिन उस के घर पहुंच गए. दरवाजे की घंटी बजाई तो एक 49-50 साल की अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘क्या मेघा यहीं रहती है?’’ महेश ने पूछा.

‘‘जी हां, आप सुनीता और महेशजी हैं?’’

सुनीता ने उत्सुकता से जवाब दिया, ‘‘हां, मैं सुनीता हूं और ये मेरे पति महेश हैं.’’

‘‘आप अंदर आइए. प्लीज,’’ बोल कर सुगंधा उन्हें कमरे में ले आई. पूरा घर 2 कमरों में सिमटा था. एक बैडरूम और एक बैठक, बाहर छोटी सी रसोई और स्नानघर. मेघा यहां अपनी मां सुगंधा के साथ अकेली रहती थी उस के पिताजी, जब वह बहुत छोटी थी तब ही संसार से जा चुके थे. सुगंधा एक स्कूल में अध्यापिका थी जिस से उन का घर का गुजारा चलता था. ‘‘मेघा कहां है? बहुत दिन हुए, वह घर नहीं आई तो हमें चिंता हुई. हम उस से मिलने आ गए,’’ सुनीता ने चिंता व्यक्त की.

‘‘वह दवा लेने गई है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘आप को क्या हुआ बहनजी?’’ महेश ने पूछा.

सुगंधा उदास हो गई, ‘‘मेरी दवा नहीं भाईसाहब, वह अपनी दवा लेने गई है.’’

‘‘उसे क्या हुआ है?’’ दोनों ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘2-3 साल पहले की बात है. इसे बारबार यूरीन इनफैक्शन हो जाता था. डाक्टर दवा दे देते तो ठीक हो जाता पर बाद में फिर हो जाता. पिछले 10 दिनों से इनफैक्शन के साथ बुखार भी है. पैरों में सूजन भी आ गई है. मैं ने बहुत मना किया पर फिर भी जिद कर के दवा लेने चली गई. अभी आ जाएगी.’’

‘‘डाक्टर ने क्या कहा?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘डाक्टर को डर है कि कहीं किडनी फेल्योर का केस न हो,’’ कह कर वे रोने लगीं. सुनीता ने उठ कर उन्हें गले से लगा लिया और सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, ऐसा कुछ नहीं होगा. सब ठीक हो जाएगा.’’

‘‘सुनीताजी, डाक्टर ने कुछ टैस्ट करवाए हैं. कल तक रिपोर्ट आ जाएगी,’’ सुगंधा ने बताया. इतने में मेघा आ गई. उस की मुसकान होंठों से गायब हो चुकी थी, रंग पीला पड़ गया था, आंखों के आसपास सूजन आ गई थी, वह बहुत कमजोर लग रही थी. सुनीता और महेश उसे देख कर सन्न रह गए. वे वहां ज्यादा देर न बैठ सके. चलते समय महेश ने मेघा के सिर पर हाथ रखा और सुगंधा से कहा, ‘‘बहनजी, कल हम आप के साथ रिपोर्ट लेने चलेंगे,’’ ऐसा कह कर वे दोनों अपने घर लौट आए. घर आ कर सुनीता सोफे पर ऐसी ढेर हुई कि काफी देर तक हिली ही नहीं. जब महेश ने उस से अंदर जा कर आराम करने को कहा तो वह अपनेआप को चलने में ही असमर्थ पा रही थी. महेश उसे सहारा दे कर अंदर ले गया, ‘‘परेशान न हो, सब ठीक हो जाएगा.’’ अगले दिन दोनों सुगंधा के साथ अस्पताल चले गए. उन पर पहाड़ टूट पड़ा जब डाक्टर ने बताया, ‘यह केस किडनी फेल्योर का है. अब मेघा को डायलिसिस पर रहना होगा जब तक डोनर किडनी नहीं मिल जाती.’ सुगंधा तो बेहोश हो कर गिर ही जाती अगर महेश ने उसे सहारा न दिया होता. उस ने उसे कुरसी पर बैठाया और पानी पिलाया, ‘‘हिम्मत रखिए सुगंधाजी, अगर आप ऐसे टूट जाएंगी तो मेघा को कौन संभालेगा? हम जल्दी मेघा के लिए डोनर ढूंढ़ लेंगे, आप चिंता न करें.’’

मेघा की बीमारी से दोनों परिवारों पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा. सुनीता तो अब ज्यादातर बीमार ही रहने लगी और अचानक एक दिन बेहोश हो कर गिर पड़ी. महेश अभी बैंक जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि धम्म की आवाज से रसोई में भागा तो देखा सुनीता नीचे फर्श पर बेहोश पड़ी हुई है. उस के हाथपैर फूलने लगे पर फिर हिम्मत कर के उस ने एंबुलैंस को फोन कर के बुलाया. इमरजैंसी में उसे भरती किया गया और सारे टैस्ट किए गए पर कुछ हासिल न हो सका. सुनीता हमेशा के लिए चली गई. डाक्टर ने जब कहा, ‘‘यह केस ब्रेन डैड का है, हम उन्हें बचा न पाए,’’ तो महेश धम्म से कुरसी पर गिर गया और सुनीता का चेहरा उस की आंखों के आगे घूमने लगा. पता नहीं वह कितनी देर वहीं पर उसी हाल में बैठा रहा कि अचानक वह फुरती से उठा और डाक्टर के पास जा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, मैं सुनीता के और्गन डोनेट करना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि सुनीता की किडनी मेघा को लगा दी जाए.’’ डाक्टर ने फटाफट सारे टैस्ट करवाए और सुगंधा व मेघा को अस्पताल में बुला लिया. संयोग ऐसा था कि सुनीता की किडनी ठीक थी और वह मेघा के लिए हर लिहाज से ठीक बैठती थी. खून और टिश्यू सब मिल गए. औपरेशन के बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘औपरेशन कामयाब रहा. बस, कुछ दिन मेघा को यहां अंडर औब्जर्वेशन रखेंगे और फिर वह घर जा कर अपनी जिंदगी सामान्य ढंग से जिएगी.’’

सुगंधा ने आगे बढ़ कर महेश के पांव पकड़ लिए और रोने लगीं. महेश ने उन्हें उठाते हुए कहा, ‘‘सुगंधाजी, आप रोइए नहीं. बस, मेघा का खयाल रखिए.’’ घर आ कर सब क्रियाकर्म हो गया. बारीबारी से लोग आते रहे, अफसोस प्रकट कर के जाते रहे. अंत में महेश अकेला रह गया सुनीता की यादों के साथ. उस ने उठ कर सुनीता की फोटो पर हार चढ़ाया. अपने चश्मे को उतार कर अपनी आंखों को साफ करते हुए बोला, ‘‘देखा नीता, हमारी मुसकान को तो मैं बचा नहीं पाया, पर इस मुसकान को तुम ने बचा लिया.’’ जैसे ही महेश पलटा तो उस ने देखा कि उस के पीछे मेघा खड़ी थी और उसी ‘डिंपल’ वाली मुसकान के साथ जैसे कह रही हो कि आप अकेले नहीं हैं, यह ‘मुसकान’ है आप के साथ.

Rose Water में छिपे हैं खूबसूरती के ये राज, Skin Care रूटीन में करें शामिल

गुलाब (Rose Water) जहां आपके आंगन को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं , आपकी सेंटर टेबल पर रखे फ्लावर पोट में सजकर उसकी शोभा को बढ़ाते हैं. इसकी भीनीभीनी खुशबू घर को भी महकाने का काम करती है. साथ ही गुलाब से आप अपने प्यार का भी इज़हार करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गुलाब आपकी स्किन के लिए भी मैजिक का काम करता है. तभी तो सदियों से स्किन केयर (Skin Care) रूटीन में रोज वाटर का इस्तेमाल हो रहा है. तो आइए जानते हैं कि आप समर में रोज वाटर को अपने चेहरे पर लगाकर किस तरह से उसे खूबसूरत बना सकती हैं.

स्किन को ठंडक पहुंचाए 

गर्मियों में स्किन पर सबसे ज्यादा एलर्जी की प्रोब्लम होती है. स्किन पर एक्ने होने से स्किन पर ज्यादा इर्रिटेशन होने के साथ स्किन जलती भी है. साथ ही चिलचिलाती धूप स्किन को तंग करके रख देती है. जो आपके सुकून चेन को छीनने का काम करती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोज वाटर में एंटीइंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन को ठंडक पहुंचाने के साथसाथ आपके कांप्लेक्सन को भी इम्प्रूव करने का काम करता है.

एंटी एजिंग प्रोपर्टीज 

हर कोई चाहता है कि वो हमेशा यंग ही रहे. स्किन पर कभी भी झुर्रियां नजर न आए. स्किन की रौनक गायब न हो. लेकिन यह तभी संभव है जब हम अपनी स्किन की प्रोपर केयर करते हैं. और अगर आप इस केयर में रोज वाटर को शामिल कर लेंगे तो स्किन की खोई रंगत वापिस आ जाएगी. क्योंकि इसमें ढेरों एन्टिओक्सीडैंट्स होते हैं , जो सेल्स को डैमेज होने से बचाते हैं. क्योंकि इन एन्टिओक्सीडैंट्स में लिपिड पेरोओक्सिडेशन निरोधात्मकता प्रभाव होता है,  जो सेल्स को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने का काम करता है.

दागधब्बों को कम करे 

रोज वाटर में एंटीसेप्टिक प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन पर किसी भी कारण से पड़े कट, बर्न व दागधब्बों को हटाने में सक्षम है. साथ ही ये स्किन इंफेक्शन के खतरे को भी कम करने का काम करता है. 2010 की एक स्टडी के अनुसार , गुलाब जल व गुलाब का तेल एक अत्यधिक प्रभावी जीवाणुरोधी है, जोकि  मुंहासों से जुड़े एक बैक्टीरिया प्रोपिनोबैक्टीरियम एक्ने को मारने में सक्षम है. इसलिए रोजाना रोज वाटर से फेस क्लींनिंग करना फायदेमंद साबित होता है.

पीएच लेवल को बैलेंस में रखे

अगर स्किन का पीएच लेवल बैलेंस में नहीं होता है तो स्किन ढेरों प्रोब्लम्स जैसे एक्ने, फाइन लाइन्स, ब्रेकआउट्स जैसी समस्याओं का सामना करती है. एक्सपर्ट्स की राय में स्किन का  पीएच लेवल 4. 6 से 6 के बीच होना चाहिए. और इसे बनाए रखने के लिए आप केमिकल्स वाले स्किन केयर प्रोडक्ट्स से दूर रहें. जबकि रोज वाटर स्किन के पीएच लेवल के बैलेंस को बनाए रखने का काम करता है. क्योंकि रोज वाटर का पीएच लेवल 5. 5 के मध्य होता है. इसकी ये प्रोपर्टी त्वचा को उसके सामान्य पीएच लेवल को बनाए रखने में मदद करती है.

रिफ्रेश स्किन 

अगर स्किन को हाइड्रेट व रिफ्रेश करने की बात आए तो रोज वाटर से बेस्ट कुछ नहीं. क्योंकि ये पूरी तरह से केमिकल फ्री जो होता है. साथ ही ये धूलमिट्टी व पोलुशन के कारण स्किन पर जमा गंदगी व एक्सेस आयल को रिमूव करके स्किन को हाइड्रेट व रिफ्रेश फील देने का काम करता है. वो भी बिना स्किन के  पीएच लेवल को बिगाड़े हुए .

आंखों की सूजन कम करे 

आई पफ्फीनेस व आंखों के नीचे काले घेरे आने की समस्या आम है. लेकिन ये जहां दिखने में अच्छे नहीं लगते , वहीं इर्रिटेट भी करते हैं. लेकिन रोज वाटर इसका सोलूशन है.  ये आंखों में इंफेक्शन की प्रोब्लम से भी निजात दिलवाने का काम करता है. क्योंकि इसमें एंटीइंफ्लामेटरी प्रोपर्टीज  होती हैं . जो आंखों में इंफेक्शन व जलन से राहत दिलवाने का काम करती हैं . इसके लिए आप रूई पर थोड़ा सा गुलाब जल लगाकर उसे आंखों पर लगाएं. इससे आंखों को ठंडक मिलने के साथ वे रिलैक्स होंगी और आंखो के नीचे के काले घेरे भी कम होंगे. क्योंकि इसमें स्किन लाइटनिंग क्वालिटीज जो हैं.

सनबर्न से छुटकारा दिलवाए 

सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आने से स्किन बर्न हो जाती है. जिससे स्किन टोन में बदलाव आने के साथ स्किन काफी वार्म नजर आती है. यहां तक कि स्किन पर जलन तक होने लगती है, जो स्किन पर इर्रिटेशन पैदा करने का काम करती है. जबकि रोज वाटर में एंटी इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन की रेडनेस, एक्ने को इम्प्रूव  करने के साथसाथ सनबर्न से हुई जलन को भी शांत करने का काम करता है.

पोर्स को क्लीन करे 

धूलमिट्टी के कारण हमारे स्किन के पोर्स में गंदगी जमा हो जाती है. ऐसे में अगर इन्हें क्लीन नहीं किया जाता तो ये ब्लैकहेड्स, वाइटहेड्स व एक्ने का कारण बनते हैं.  लेकिन रोज वाटर में एनस्टिंजेंट प्रोपर्टीज होती हैं , जो पोर्स को क्लीन करके स्किन को बेदाग बनाने का काम करती है.

दे पिंकी लिप्स 

हर कोई चाहता है कि उसके लिप्स हाइड्रेट रहने के साथसाथ पिंकीपिंकी लगे. इसके लिए कभी हम महंगे लिप्ग्लोस खरीदते हैं तो कभी लिप बाम. लेकिन इससे सिर्फ कुछ घंटों के लिए पिंकी लुक मिलता है. लेकिन रोज वाटर में मॉइस्चराइजिंग प्रोपर्टीज होने के कारण ये लिप्स को हाइड्रेट व नेचुरल रूप से पिंकिश लुक देने का काम करते हैं. जो  आपकी खूबसूरती की बढ़ाने का काम करता है.

बेस्ट रोज वाटर 

– कामा आयुर्वेदा प्योर रोज वाटर  , आपकी स्किन को सोफ्ट व हाइड्रेट रखने का काम करता है. साथ ही इसकी पोर्स को टाइट करने वाली क्वालिटी होने के कारण ये ऑयली व एक्ने प्रोन स्किन के लिए काफी अच्छी साबित होती है.  ये कलर व प्रेसेर्वटिवेस फ्री होने के कारण स्किन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. इसके 50 मिलीलीटर पैक की कीमत 300 रुपए के करीब है.

– इंडस वैली फेशियल टोनर, जैसा नाम वैसा काम. ये स्किन को फेशियल जैसा ग्लो देने का काम करता है. साथ ही ये स्किन को सोफ्ट बनाने के साथसाथ एजिंग, डार्क स्पोट्स व झुर्रियों को भी काफी हद तक कंट्रोल करने का काम करता है. इसके 250 मिलीलीटर पैक की कीमत 250 रुपए के करीब है.

– खादी प्योर रोज मिस्ट आपकी स्किन को डस्ट से बचाकर क्लीयर स्किन देने का काम करता है. ये प्रोडक्ट केमिकल फ्री है. इसके 100 मिलीलीटर पैक की कीमत 450  रुपए के करीब है.

– वाओ रोज मिस्ट स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में रखकर स्किन के नेचुरल मोइस्चर को बैलेंस में रखने का काम करता है. ये पैराबीन व अल्कोहल फ्री है. इसके 200 मिलीलीटर पैक की कीमत 350 रुपए के करीब है. तो फिर अपनी स्किन को रोज वाटर से रखें हाइड्रेट व ग्लोइंग.

पति से अलग रहना चाहती हूं, लेकिन वह मुझे कभी तलाक नहीं देंगे, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 35 वर्षीय विवाहिता और एक 13 वर्षीय बेटे की मां हूं. मेरे पति सरकारी अधिकारी हैं. रोज शराब पी कर लड़ाईझगड़ा करते हैं. अब तो मारपीट भी करने लगे हैं. मैं 15 सालों से यातनापूर्ण जीवन जी रही हूं. मातापिता बिरादरी में अपनी इज्जत की खातिर मायके में नहीं रखना चाहते. विवाहपूर्व में सरकारी स्कूल में टीचर थी. चाहती हूं कि पति से अलग हो कर दोबारा से किसी स्कूल में नौकरी कर लूं और अपने बच्चे को सही ढंग से पालूं. मेरे पिता सेवानिवृत्त हैं. वे या मां बीचबीच में मेरे पास आ कर रह सकते हैं. क्या मेरा निर्णय सही है? मैं जानती हूं कि मेरे पति मुझे कभी तलाक नहीं देंगे पर मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.

जवाब-

यदि आप को लगता है कि आप के पति सुधरने वाले नहीं हैं तो उन का अत्याचार सहने और बच्चे को स्वस्थ वातावरण देने के लिए आप यह कदम उठा सकती हैं. आप को चाहिए कि पहले आप अपने लिए नौकरी तलाशें. उस के बाद ही रहने की व्यवस्था हो जाने के बाद पति को अपने निर्णय से अवगत कराएं. संभव है आप के इस कठोर निर्णय से आप के पति को अपराधबोध हो और वे सुधर जाएं. कई बार दूर जाने से भी रिश्तों में मधुरता लौट आती है. 

सवाल-

मैं जानना चाहती हूं कि 2 लड़कियों के परस्पर चुंबन करने से कोई नुकसान तो नहीं होता?

जवाब-

रोमांचित होने पर एकदूसरे का चुंबन लेने से कोई नुकसान नहीं होता. यह खुशी का इजहार करने का एक तरीका है.

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स्मिता को जिस तलाक की चाह थी वह मिल गया था, लेकिन जिस रूप, जवानी पर उसे घमंड था वह वक्त के साथ ढल चुकी थी. अब वह जाए तो जाए किस के पास, कौन था उस का हाथ थामने वाला?

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

ब्रैकफास्ट में बनाएं काबुली मखाना टिक्की, ये रही रेसिपी

अगर आप फेस्टिव सीजन में हेल्दी और टेस्टी स्नैक्स ट्राय करना चाहते हैं तो काबुली मखाना टिक्की आपके लिए अच्छा औप्शन है.

सामग्री

11/2 कप सफेद उबले चने

–  1/2 कप चने की दाल –

  1 बड़ा चम्मच हरे मटर

  1/2 कप फीके मखाने

–  1/2 कप कुकिंग औयल

–  चाटमसाला, नमक, हरीमिर्च, गरममसाला और लालमिर्च आवश्यकतानुसार.

विधि

चनों को 6-7 घंटे पानी में भिगोए रखने के बाद कुकर में पानी, नमक व 1-2 बूंदें तेल की डाल कर 80% उबाल लें. ठंडा होने पर मिक्सर में पीस लें. ध्यान रहे पानी न हो. चने की दाल को भी कुकर में पानी, नमक व हलदी डाल कर 50% पका लें. मखानों को कड़ाही में रोस्ट कर के मिक्सी में दरदरा पीस लें. मटरों को भी अलग से दरदरा कर लें. अब चना दाल और मटरों को तेल में छौंक लगा कर सारे मसाले डालें. हरीमिर्च को बारीक पीस कर डालें. एक बाउल में मखाने व चने ले कर छोटेछोटे गोले बनाएं. उन में दाल व मटर की भरावन भरें और टिक्की की शेप दें. ऐसे ही सारी टिकियां बना कर नौनस्टिक तवे पर शैलो फ्राई करें. दोनों तरफ से सुनहरा होने के बाद नैपकिन पर निकालें और फिर गरमगरम ही हरी चटनी व इमली की चटनी के साथ सर्व करें.

जानें काम के बीच क्यों जरूरी है झपकी, पावर नैप के ये हैं फायदे

अकसर औफिस में लंच के बाद आलस्य या नींद हावी हो जाती है. ऐसे में कुछ काम करते ही नहीं सूझता. बारबार आंखें बंद हो जाती हैं. मन करता है कि कोई एकांत कोना मिल जाए जहां कुछ देर की झपकी ले जी जाए. वैज्ञानिक इसी झपकी को पौवर नैप कहते हैं, जिसे ले लेना बहुत जरूरी है. इस से आप का काम बिलकुल भी प्रभावित नहीं होता है, बल्कि पौवर नैप लेने के बाद आप दोगुनी ऊर्जा के साथ तेजी से अपना काम निबटा सकते हैं.

 

1. पावर नैप कितनी देर

आप को फिर से तरोताजा करने वाली पौवर नैप जरूरत के अनुसार 10 मिनट, 20 मिनट या फिर एक घंटा तक की हो सकती है. आदर्श पौवर नैप 20 मिनट की मानी जाती है. लगातार 8 घंटे काम करने के दौरान कुछ देर के लिए ली गई एक पौवर नैप आप को दोबारा रीचार्ज कर देती है और आप बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं.

इंसान पूरे दिन में 2 बार ऐसा महसूस करता है कि उसे नींद आ रही है. यह मानव शरीर का स्वभाव है. आप चाहें भी तो इसे रोक नहीं सकते. दिन में ली गई एक झपकी वास्तव में पूरी रात की नींद के बराबर आप को एनर्जी देती है.

अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार, 26 मिनट तक कौकपिट में सोने वाला पायलट बाकी पायलटों की तुलना में 54 प्रतिशत सतर्क और नौकरी के प्रदर्शन में 34 प्रतिशत ज्यादा बेहतर देखा गया है. नासा में नींद के विशेषज्ञों ने नैप के प्रभावों पर शोध करने पर पाया कि नैप लेने से व्यक्ति के मूड, सतर्कता और प्रदर्शन में काफी सुधार होता है.

10 मिनट की झपकी आप को पूरी रात की नींद जैसा फ्रैश महसूस करवा सकती है. आप 10 से 20 मिनट के बीच ली गई पौवर नैप से बिना सोए रातभर की नींद जैसा फायदा उठा सकते हैं. खास बात यह है कि 10 मिनट की झपकी लेने से मांसपेशियों के बनने से ले कर याददाश्त के मजबूत होने तक में सहायता मिलती है.

दोपहर के वक्त लंच के बाद 20 से 30 मिनट की पौवर नैप सब से अच्छी है, मगर ज्यादा नींद आती हो, तो भी एक घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए, वरना आप के शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित हो जाएगी और रात की नींद में खलल पड़ेगा.

2. नैप के लिए शांत कोना ढूंढें

पौवर नैप से अधिकतम लाभ पाने के लिए आप को एक शांतिपूर्ण, ठंडी और आरामदायक जगह ढूंढ़नी चाहिए, जहां दूसरे लोग आप को परेशान न करें. औफिस में कौन्फ्रैंस रूम का कोना हो या कार पार्किंग स्थल, 10 से 15 मिनट यहां खामोशी से आंख बंद कर के बिताए जा सकते हैं. लगभग 30 प्रतिशत कौर्पोरेट औफिस में लंच के बाद एम्प्लाइज को आधा घंटे का वक्त पौवर नैप के लिए दिया जाता है. इस से उन के काम की गति और क्षमता में बढ़ोतरी होती है.

अगर आप किसी स्कूलकालेज में पढ़ाते हैं, तो वहां की लाइब्रेरी इस काम के लिए सब से बेहतर जगह है. वहां शांति और खाली जगह होती है. आप सड़क पर जा रहे हों और आप को झपकी लगी हो तो किसी पार्किंग स्थल पर कार खड़ी कर के 10-15 मिनट की झपकी ले लेनी चाहिए.

अकसर देखा गया है कि कार ड्राइव करने वाले लोग नींद आने पर तंबाकूगुटका का सेवन नींद भगाने के लिए करते हैं, जो सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. बेहतर है कि नींद आने पर किसी सेफ जगह पर गाड़ी खड़ी कर के झपकी मार ली जाए. इस से नींद तो भागती ही है, शरीर और दिमाग पहले से अधिक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.

3. कम रोशनी का स्थान चुनें

पौवर नैप लेते वक्त लाइट औफ कर दें. बेहतर हो कि आप कोई अंधेरा कमरा चुनें ताकि आंख बंद करते ही आप को नींद आ जाए. अंधेरा होने से आप की आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और दिमागी तनाव भी दूर होगा. यदि अंधेरा स्थान उपलब्ध न हो तो आप स्लीपमास्क या धूप का चश्मा आंखों पर चढ़ा लें और आराम से सो जाएं. इस के अलावा जिस जगह आप पौवर नैप लें, वह स्थान बहुत गरम या बहुत ठंडा नहीं होना चाहिए. आप की नैपिंग आरामदायक हो, इसलिए एक शीतल लेकिन आरामदायक जगह तलाश करिए.

4. शांतिदायक संगीत सुनें

रिलैक्सिंग म्यूजिक आप के दिमाग को सही स्थिति में ला सकता है. यदि आप अपनी कार में पौवर नैप ले रहे हैं, तो कोई हलका संगीत लगा लें, इस से नींद अच्छी आती है. अगर आप काम की वजह से ज्यादा तनाव में हैं और आंख बंद करने पर भी आप को नींद नहीं आती है तो कुछ व्यायाम करें. आंख बंद कर के एक से सौ तक गिनती गिनें या कोई मनपसंद गीत गुनगुनाएं. इस के बाद आप को जल्द ही नींद आ जाएगी और जागने पर दिमाग तनावमुक्त महसूस होगा.

5. नैप की अवधि

आप खुद तय करें कि आप कितनी देर तक नैप लेना चाहते हैं. एक पौवर नैप 10 से 30 मिनट के बीच की होनी चाहिए. वैसे तो, छोटे और लंबी नैप्स भी विभिन्न लाभ प्रदान कर सकती हैं. आप का शरीर खुद आप को बता देगा कि आप को कितनी देर तक नैप लेनी है. बस उस समयसीमा का पालन आप हर दिन समान रूप से करें. यदि आप के पास अधिक समय नहीं है, लेकिन आप इतनी नींद में हैं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं, तो 2 से 5 मिनट की नैप, जिसे ‘नैनो नैप’ कहा जाता है, लें. यह आप को नींद से निबटने में मदद कर सकती है.

5 से 20 मिनट के लिए नैप आप की सतर्कता, स्टैमिना, और मोटरपरफौर्मेंस बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी होती है. इन नैप्स को ‘मिनी-नैप्स’ के रूप में जाना जाता है. 20 मिनट की नींद बहुत आदर्श नैप मानी जाती है. एक पौवरनैप मस्तिष्क को अपने शौर्टटर्म मैमोरी में एकत्रित अनावश्यक जानकारी से छुटकारा पाने में भी मदद करती है और मसलमैमोरी में सुधार भी लाती है. 20 मिनट की पौवर नैप से आप के नर्वस सिस्टम में मौजूद इलैक्ट्रिकल सिग्नल्स आप को अधिक आराम किया हुआ और सतर्क महसूस कराने के अलावा आप के मसलमैमोरी में शामिल न्यूरौन्स के बीच के संबंध को मजबूत भी करती है, जिस से आप का मस्तिष्क तेजी से और अधिक सटीक तरीके से काम करने लगता है. यदि आप बहुत से महत्त्वपूर्ण तथ्यों को याद करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरणस्वरूप किसी परीक्षा के लिए, तो पावर नैप लेनी विशेषरूप से उपयोगी हो सकती है.

6. पावर नैप से पहले कौफी पिएं

यह बात अजीब लग सकती है कि पौवर नैप से पहले कौफी पिएं क्योंकि कौफी का इस्तेमाल नींद को दूर भगाने के लिए किया जाता है. परंतु 20 मिनट की पौवर नैप लेने से पहले अगर आप कौफी का एक प्याला पी लेते हैं तो यह कौफी आप के शरीर में तुरंत अवशोषित नहीं होती है.

कौफी पहले आहार नाल से गुजरती है और फिर शरीर में अवशोषित होने में उसे 45 मिनट का वक्त लगता है. इस दौरान आप 20-25 मिनट की पौवर नैप ले लें तो जागने के बाद शरीर में मौजूद कौफी आप को और ज्यादा ताजगी से भर देगी और आप दोगुनी ऊर्जा के साथ अपने काम का संचालन कर सकते हैं. इस प्रयोग से आप 7 से 8 घंटे तक बिना रुके काम कर सकते हैं.

तरकीब: क्या खुद को बचा पाई झुमरी

लेखक- जयप्रकाश

रतन सिंह की निगाहें पिछले कई दिनों से झुमरी पर लगी हुई थीं. वह जब भी उसे देखता, उस के मुंह से एक आह निकल जाती. झुमरी की खिलती जवानी ने उस के तनमन में एक हलचल सी मचा दी थी और वह उसे हासिल करने को बेताब हो उठा था. वैसे भी रतन सिंह के लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात न थी. वह गांव के दबंग गगन सिंह का एकलौता और बिगड़ैल बेटा था. कई जरूरतमंद लड़कियों को अपनी हवस का शिकार उस ने बनाया था. झुमरी तो वैसे भी निचली जाति की थी. झुमरी 20वां वसंत पार कर चुकी एक खूबसूरत लड़की थी. गरीबी में पलीबढ़ी होने के बावजूद जवानी ने उस के रूप को यों निखारा था कि देखने वालों की निगाहें बरबस ही उस पर टिक जाती थीं. गोरा रंग, भरापूरा बदन, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें और हिरनी सी मदमस्त चाल.

इस सब के बावजूद झुमरी में एक कमी थी. वह बोल नहीं सकती थी, पर उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की थी. झुमरी घर के कामों में अपनी मां की मदद करती और खेत के काम में अपने बापू की. उस के बापू तिलक के पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा था, जिस के सहारे वह अपने परिवार को पालता था. वैसे भी उस का परिवार छोटा था. परिवार में पतिपत्नी और 2 बच्चे, झुमरी और शंकर थे. अपनी खेती से समय मिलने पर तिलक दूसरों के खेतों में भी मजदूरी का काम कर लिया करता था. गरीबी में भी तिलक का परिवार खुश था. परंतु कभीकभी पतिपत्नी यह सोच कर चिंतित हो उठते थे कि उन की गूंगी बेटी को कौन अपनाएगा?

झुमरी इन सब बातों से बेखबर मजे में अपनी जिंदगी जी रही थी. वह दिमागी रूप से तेज थी और गांव के स्कूल से 10 वीं जमात तक पढ़ाई कर चुकी थी. उसे खेतखलिहान, बागबगीचों से प्यार था. गांव के दक्षिणी छोर की अमराई में झुमरी अकसर शाम को आ बैठती और पेड़ों के झुरमुट में बैठे पक्षियों की आवाज सुना करती. कोयल की आवाज सुन कर उस का भी जी चाहता कि वह उस के सुर में सुर मिलाए, पर वह बोल नहीं सकती थी. झुमरी की इस कमी को रतन सिंह ने अपनी ताकत समझा. उस ने पहले तो झुमरी को तरहतरह के लालच दे कर अपने प्रेमजाल में फांसना चाहा और जब इस में कामयाब न हुआ, तो जबरदस्ती उसे हासिल करने का मन बना लिया. रात घिर आई थी. चारों तरफ अंधेरा हो चुका था. आज झुमरी को खेत से लौटने में देर हो गई थी. पिछले कई दिनों से उस की ताक में लगे रतन सिंह की नजर जब उस पर पड़ी, तो उस की आंखों में एक तेज चमक जाग उठी.

मौका अच्छा जान कर रतन सिंह उस के पीछे लग गया. एक तो अंधेरा, ऊपर से घर लौटने की जल्दी. झुमरी को इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उस के पीछे लगा हुआ है. वह चौंकी तब, जब अमराई में घुसते ही रतन सिंह उस का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया. ‘‘मैं ने तुम्हारा प्यार पाने की बहुत कोशिश की…’’ रतन सिंह कामुक निगाहों से झुमरी के उभारों को घूरता हुआ बोला, ‘‘तुम्हें तरहतरह से रिझाया. तुम से प्रेम निवेदन किया, पर तू न मानी. आज अच्छा मौका है. आज मैं छक कर तेरी जवानी का रसपान करूंगा.’’ रतन सिंह का खतरनाक इरादा देख झुमरी के सारे तनबदन में डर की सिहरन दौड़ गई. उस ने रतन सिंह से बच कर निकल जाना चाहा, पर रतन सिंह ने उसे ऐसा नहीं करने दिया. उस ने झपट कर झुमरी को अपनी बांहों में भर लिया.

झुमरी ने चिल्लाना चाहा, पर उस के होंठों से शब्द न फूटे. झुमरी को रतन सिंह की आंखों में वासना की भूख नजर आई. रतन सिंह झुमरी को खींचता हुआ अमराई के बीचोंबीच ले आया और जबरदस्ती जमीन पर लिटा दिया. इस के पहले कि झुमरी उठे, वह उस पर सवार हो गया. झुमरी उस के चंगुल से छूटने के लिए छटपटाने लगी. दूसरी ओर वासना में अंधा रतन सिंह उस के कपड़े नोचने लगा. उस ने अपने बदन का पूरा भार झुमरी के नाजुक बदन पर डाल दिया, फिर किसी भूखे भेडि़ए की तरह उसे रौंदने लगा. झुमरी रो रही थी, तड़प रही थी, आंखों ही आंखों में फरियाद कर रही थी, लेकिन रतन सिंह ने उस की एक न सुनी और उसे तभी छोड़ा, जब अपनी वासना की आग बुझा ली. ऐसा होते ही रतन सिंह उस के ऊपर से उठ गया. उस ने एक उचटती नजर झुमरी पर डाली. जब उस की निगाहें झुमरी की निगाहों से टकराईं, तो उस को एक झटका सा लगा. झुमरी की आंखों में गुस्से की चिनगारियां फूट रही थीं, पर अभीअभी उस ने झुमरी के जवान जिस्म से लिपट कर जवानी का जो जाम चखा था, इसलिए उस ने झुमरी के गुस्से और नफरत की कोई परवाह नहीं की और उठ कर एक ओर चल पड़ा.

इस घटना ने झुमरी को झकझोर कर रख दिया था. वह 2 दिन तक अपने कमरे में पड़ी रही थी. झुमरी के मांबाप ने जब उस से इस की वजह पूछी, तो उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया था. कई बार झुमरी के दिमाग में यह बात आई थी कि वह इस के बारे में उन्हें बतला दे, पर यह सोच कर वह चुप रह गई थी कि उन से कहने से कोई फायदा नहीं. वे चाह कर भी रतन सिंह का कुछ बिगाड़ नहीं पाएंगे, उलटा रतन सिंह उन की जिंदगी को नरक बना देगा. इस मामले में जो करना था, उसे ही करना था. रतन सिंह ने उस की इज्जत लूट ली थी और उसे इस के किए की सजा मिलनी ही चाहिए थी. पर कैसे?

झुमरी ने इस बात को गहराई से सोचा, फिर उस के दिमाग में एक तरकीब आ गई. रात आधी बीत चुकी थी. सारा गांव सो चुका था, पर झुमरी जाग रही थी. वह इस समय अमराई से थोड़ी दूर बांसवारी यानी बांसों के झुरमुट में खड़ी हाथों में कुदाल लिए एक गड्ढा खोद रही थी. तकरीबन 2 घंटे तक वह गड्ढा खोदती रही, फिर हाथ में कटार लिए बांस के पेड़ों के पास पहुंची. उस ने कटार की मदद से बांस की पतलीपतली अनेक डालियां काटीं, फिर उन्हें गड्ढे के करीब ले आई. डालियों को चिकना कर उन्हें बीच से चीर कर उन की कमाची बनाईं, फिर उन की चटाई बुनने लगी. अपनी इच्छानुसार चटाई बुनने में उसे तकरीबन 3 घंटे लग गए.

चटाई तैयार कर झुमरी ने उसे गड्ढे के मुंह पर रखा. चटाई ने तकरीबन एक मीटर दायरे के गड्ढे के मुंह को पूरी तरह ढक लिया. यह चटाई किसी आदमी का भार हरगिज सहन नहीं कर सकती थी. सुबह होने में अभी चंद घंटे बचे थे. हालांकि बांसों के इस झुरमुट की ओर गांव वाले कम ही आते थे और दिन में यह सुनसान ही रहता था, फिर भी झुमरी कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती थी. उस ने जमीन पर बिखरे बांस के सूखे पत्तों को इकट्ठा कर उन का ढेर लगा दिया. इस काम से निबट कर झुमरी ने बांस की चटाई से गड्ढे का मुंह ढका, पर उस पर पत्तों को इस तरह डाल दिया, ताकि चटाई पूरी तरह ढक जाए और किसी को वहां गड्ढा होने का एहसास न हो. गड्ढे से निकली मिट्टी को उस ने अपने साथ लाई टोकरी में भर कर गड्ढे से थोड़ी दूर डाल दिया.

काम खत्म कर झुमरी ने एक निगाह अपने अब तक के काम पर डाली, फिर अपने साथ लाए बड़े से थैले में अपना सारा सामान भरा और थैला कंधे पर लाद कर घर की ओर चल पड़ी. 7 दिनों तक झुमरी का यह काम चलता रहा. इतने दिन में उस ने 7 फुट गहरा गड्ढा तैयार कर लिया था. गड्ढे में उतरने और चढ़ने के लिए वह अपने साथ घर से लाई सीढ़ी का इस्तेमाल करती थी. काम पूरा कर उस ने पत्ते डाले, फिर अपने अगले काम को अंजाम देने के बारे में सोचती. रतन सिंह ने झुमरी की इज्जत लूट तो ली थी, परंतु अब वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं झुमरी इस बात का जिक्र अपने मांबाप से न कर दे और कोई हंगामा न खड़ा हो जाए. परंतु जब 10 दिन से ज्यादा हो गए और कुछ नहीं हुआ, तो उस ने राहत की सांस ली. अब उसे रात की तनहाई में वो पल याद आते, जब उस ने झुमरी के जवान जिस्म से अपनी वासना की आग बुझाई थी. जब भी ऐसा होता, उस का बदन कामना की आग में झुलसने लगता था.

इस बीच रतन सिंह ने 1-2 बार झुमरी को अपने खेत की ओर जाते या आते देखा था, परंतु उस के सामने जाने की उस की हिम्मत न हुई थी. पर उस दिन अचानक रतन सिंह का सामना झुमरी से हो गया. वह विचारों में खोया अमराई की ओर जा रहा था कि झुमरी उस के सामने आ खड़ी हुई. उसे यों अपने सामने देख एकबारगी तो रतन सिंह बौखला गया था और झुमरी को देखने लगा था. झुमरी कुछ देर तक खामोशी से उसे देखती रही, फिर उस के होंठों पर एक दिलकश मुसकान उभर उठी. उसे इस तरह मुसकराते देख रतन सिंह ने राहत की सांस ली और एकटक झुमरी के खूबसूरत चेहरे और भरेभरे बदन को देखने लगा. इस के बावजूद जब झुमरी मुसकराती रही, तो रतन सिंह बोला, ‘‘झुमरी, उस दिन जो हुआ, उस का तुम ने बुरा तो नहीं माना?’’

झुमरी ने न में सिर हिलाया.

‘‘सच…’’ कहते हुए रतन सिंह ने उस की हथेली कस कर थाम ली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तू फिर वह सब करना चाहती है?’’ बदले में झुमरी खुल कर मुसकराई, फिर हौले से अपना हाथ छुड़ा कर एक ओर भाग गई. उस की इस हरकत पर रतन सिंह के तनमन में एक हलचल मच गई और उस की आंखों के सामने वो पल उभर आए, जब उस ने झुमरी की खिलती जवानी का रसपान किया था. झुमरी को फिर से पाने की लालसा में रतन सिंह उस के इर्दगिर्द मंडराने लगा. झुमरी भी अपनी मनमोहक  अदाओं से उस की कामनाओं को हवा दे रही थी. झुमरी ने एक दिन इशारोंइशारों में रतन सिंह से यह वादा कर लिया कि वह पूरे चांद की आधी रात को उस से अमराई में मिलेगी. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. उस की चांदनी चारों ओर बिखरी हुई थी. ऐसे में रतन सिंह बड़ी बेकरारी से एक पेड़ के तने पर बैठा झुमरी का इंतजार कर रहा था.

झुमरी ने आधी रात को यहीं पर उस से मिलने का वादा किया था, परंतु वह अब तक नहीं आई थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे रतन सिंह की बेकरारी बढ़ रही थी. अचानक रतन सिंह को अपने पीछे किसी के खड़े होने की आहट मिली. उस ने पलट कर देखा, तो उस का दिल धक से रह गया. वह झटके से उठ खड़ा हुआ. उस के सामने झुमरी खड़ी थी. उस ने भड़कीले कपड़े पहन रखे थे, जिस से उस की जवानी फटी पड़ रही थी. जब झुमरी ने रतन सिंह को आंखें फाड़े अपनी ओर देखा पाया, तो उत्तेजक ढंग से अपने होंठों पर जीभ फेरी. उस की इस अदा ने रतन सिंह को और भी बेताब कर दिया. रतन सिंह ने झटपट झुमरी को अपनी बांहों में समेट लेना चाहा, लेकिन झुमरी छिटक कर दूर हो गई.

‘‘झुमरी, मेरे पास आओ. मेरे तनबदन में आग लगी है, इसे अपने प्यार की बरसात से शांत कर दो,’’ रतन सिंह बेचैन होते हुए बोला. झुमरी ने इशारे से रतन सिंह को खुद को पकड़ लेने की चुनौती दी. रतन सिंह उस की ओर दौड़ा, तो झुमरी ने भी दौड़ लगा दी. अगले पल हालत यह थी कि झुमरी किसी मस्त हिरनी की तरह भाग रही थी और रतन सिंह उसे पकड़ने के लिए उस के पीछे दौड़ रहा था. झुमरी अमराई से निकली, फिर बांस के झुरमुट की ओर भागी. वह उस गड्ढे की ओर भाग रही थी, जिसे उस ने कई दिनों की कड़ी मेनत से तैयार किया था. वह जैसे ही गड्ढे के नजदीक आई, एक लंबी छलांग भरी और गड्ढे की ओर पहुंच गई. झुमरी के हुस्न में पागल, गड्ढे से अनजान रतन सिंह अचानक गड्ढे में गिर गया. उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकली.

कुछ देर तक तो रतन सिंह कुछ समझ ही नहीं पाया कि क्या हो गया है. वह बौखलाया हुआ गड्ढे में गिरा इधरउधर झांक रहा था, पर जैसे ही उस के होशोहवास दुरुस्त हुए, वह जोरजोर से झुमरी को मदद के लिए पुकारने लगा. परंतु उधर से कोई मदद नहीं आई. झुमरी की ओर से निराश रतन सिंह खुद ही गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करने लगा. उस ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर गड्ढे के किनारे को पकड़ना चाहा, परंतु वह उस की पहुंच से दूर था. रतन सिंह ने उछल कर बाहर निकलने की 2-4 बार नाकाम कोशिश की. आखिरकार वह गड्ढे का छोर पकड़ने में कामयाब हो गया. उस ने अपने बदन को सिकोड़ कर अपना सिर ऊपर उठाया. उस का सिर थोड़ा ऊपर आया, तभी उस की नजर झुमरी पर पड़ी. उस के हाथों में कुदाल थी और उस की आंखों से नफरत की चिनगारियां फूट रही थीं. इस के पहले कि रतन सिंह कुछ समझता, झुमरी ने कुदाल का भरपूर वार उस के सिर पर किया.

रतन सिंह की दिल दहलाने वाली चीख से वह सुनसान इलाका दहल उठा. उस का सिर फट गया था और खून की धारा फूट पड़ी थी. गड्ढे का किनारा रतन सिंह के हाथ से छूट गया और वह गिर पड़ा था. गड्ढे में गिरते ही रतन सिंह ने अपना सिर थाम लिया. उस की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था और उस पर बेहोशी छाने लगी थी. उस के दिमाग में एक विचार बिजली की तरह कौंधा कि यह झुमरी का फैलाया हुआ जाल था, जिस में फंसा कर वह उसे मार डालना चाहती है. तभी रतन सिंह के सिर पर ढेर सारी मिट्टी आ गिरी. उस ने अपनी बंद होती आंखें उठा कर ऊपर की ओर देखा, तो झुमरी टोकरी लिए वहां खड़ी थी. अगले ही पल वह बेहोशी के अंधेरों में गुम होता चला गया. झुमरी ने मिट्टी से पूरा गड्ढा भर दिया, फिर उस पर पत्तियां डाल कर उठ खड़ी हुई. उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. आकाश में पूर्णिमा का चांद हंस रहा था. थोड़ी देर बाद झुमरी कंधे पर थैला लादे अपने घर को लौट रही थी.

मेरे पति सैक्स के दौरान हिंसक हो जाते हैं, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है. दरअसल, पति सैक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सैक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभी-कभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं. हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते. अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं. सिर्फ इतना ही कहा कि धीरेधीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब-

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सैक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सैक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सैक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सैक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है. हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सैक्स के दौरान सब भूल जाते हैं. आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी. ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है. सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें. बेहतर होगा कि किसी अच्छे सैक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

‘अल्फा’ की शूटिंग से पहले शर्वरी ने दिखाया अपनी फिटनेस का जलवा, वाश बोर्ड एब्स हुए वायरल!

बौलीवुड की नई और लोकप्रिय अभिनेत्री शर्वरी इस साल अपने शानदार प्रदर्शन के कारण सुर्खियों में हैं. मुंजा, महाराज और वेदा जैसी फिल्मों में उनकी दमदार अदाकारी ने लोगों का दिल जीत लिया है. अब, जैसे ही शर्वरी अपनी आगामी फिल्म अल्फा के एक और शेड्यूल के लिए तैयार हो रही हैं, उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने वॉश बोर्ड एब्स दिखाकर सभी को बड़ा फिटनेस मोटिवेशन दिया है!

शर्वरी ने अपने ग्लैमरस फिटनेस फोटोज को कैप्शन दिया, “इन माय फिट पूकी एरा.” यशराज फिल्म्स स्पाई यूनिवर्स की फिल्म अल्फा के तीसरे शेड्यूल की शुरुआत होने जा रही है, और शर्वरी अपने फिटनेस के चरम पर हैं. इस फिल्म में वह आलिया भट्ट के साथ नजर आएंगी, जिसे लेकर शरवरी बोहत उत्साहित है .

आलिया भट्ट और शर्वरी की अल्फा, यशराज फिल्म्स की पहली महिला स्पाई फिल्म है. यशराज फिल्म्स ने घोषणा की है कि उनकी यह बहुप्रतीक्षित एक्शन एंटरटेनर अल्फा, जो YRF स्पाई यूनिवर्स की पहली महिला प्रधान फिल्म है,इस फ़िल्म की शूटिंग जोरो शोरो से चल रही है . इस फिल्म का निर्माण आदित्य चोपड़ा कर रहे हैं.

बौलीवुड सुपरस्टार आलिया भट्ट फिल्म में मुख्य भूमिका निभाते नजर आएंगी, और उनके साथ उभरती हुई अभिनेत्री और YRF की होमग्रोन टैलेंट शर्वरी होंगी. दोनों इस बहुप्रतीक्षित स्पाईवर्स फिल्म में सुपर एजेंट की भूमिका में दिखाई देंगी, जिसे शिव रवैल निर्देशित कर रहे हैं.अल्फा एक्शन और मनोरंजन से भरपूर फ़िल्म है, क्योंकि आदित्य चोपड़ा इस फिल्म को बड़े परदे का भव्य अनुभव बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. इस फिल्म में शानदार दृश्य और रोमांचक एक्शन सीक्वेंस के साथ साथ कई अप्रत्याशित ट्विस्ट भी देखने को मिलेंगे.

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