चोरी की प्रजातियां और भारत रत्न

उस प्रदर्शनी में हर देश ने अपनी अपनी कारीगरी दिखाई थी. अमेरिका, जापान आदि तमाम देशों ने अपनेअपने उत्पाद सजाए हुए थे. एक जापानी खिलौने पर सारी दुनिया के लोगों की नजरें थीं जो इलैक्ट्रौनिक तकनीक से बनाया गया था. जापानी अपनी इस सफलता पर गौरवान्वित हो रहे थे कि तभी एक भारतीय ने उस स्टौल पर खड़े 2 जापानियों की नजर बचाते हुए उस पर एक टैग लगा दिया : ‘मेड इन इंडिया’. लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वे जापानी हैरत में पड़ गए कि यह सब एक पल में कैसे हो गया.

खैर, उन्होंने भारतीयों के दर्शन पर अध्ययन शुरू किया तो पाया कि जब यहां पहली बार मानव उत्पाद लौंच किया गया था, हमारे ग्रेट ग्रैंड अंकलों ने तभी से यह टैगिंग शुरू कर दी थी. नतीजा यह हुआ कि बहुत कम समय में यहां ढेरों जातियां बनीं जो आज फलफूल कर हजारोंलाखों में पहुंच चुकी हैं. हद तो यह है कि उन की देखादेखी चोरी और गबन जैसे अपराधों तक की भी तमाम जातियां, प्रजातियां उग आई हैं.

चोरी एक अपराध होते हुए भी ऊंची, नीची और सामान्य, तमाम जातियों में विभक्त हो चुकी है. कद्दू, लुटिया, भैंस की चोरियां गंवई मानी जाती हैं. जबकि बाइक, कार, चेन की चोरियां शहरी. मंदिर से प्रसाद की चोरी धार्मिक, अष्टधातु मूर्तियों की चोरी कलात्मक, मरघट पर अर्थियों के शेष बांसों की चोरी आध्यात्मिक मानी जाती है. कफनचोरी बुनकर जाति और पूरे ताबूत की चोरी एक वीआईपी जाति की मानी जाती है. जब कोई गारमैंट चोर कोई गारमैंट मय धारक के चुरा लाता है तो वह संवेदनशील चोरी होती है, जिसे कुछ लोग अपहरण कह कर पुकारते हैं. करचोरी अमीर जाति की मानी जाती है. नजरें चुराना बगला चोरी कहलाती है, रूपचोरी अत्यंत लोकप्रिय होती है. गुर्दाचोरी डाक्टर जाति की होती है. दिलचोरी हंस जाति की, पर मय दिलदार की चोरी श्रेष्ठतम मानी गई है. वह प्यार और शादी के कीर्तिमान तक स्थापित कर सकती है.

कामचोरी की जाति दरिद्र मानी गई है. इस के वाहक परजीवी (पैरासाइट्स) कहलाते हैं. यह सरकारी विभागों में वास करती है, पर इस की कमी दूसरी कर्मठ चोरियां पूरी करती रहती हैं. लिहाजा, सरकारें 60-65 दिनों की हड़तालों के बावजूद सुचारु रूप से चला करती हैं, इस के बावजूद तमाम काम जिस चोरी से चला करते हैं वह डिटैक्टिव चोरी कहलाती है. हाल में एक रिश्वत को चोरी का जामा पहनाने की भी कोशिश की गई है. यह चोरी किस प्रजाति की है, तय नहीं हो पाया है.

शब्दों, विचारों आदि की चोरी सर्वोच्च जाति की मानी गई है. कवि, शायर, लेखक और व्यंग्यकार इसी श्रेणी में आते हैं. चोरी में मिलावटखोरी तो सोने में सुहागे का काम करती है. मजे की बात तो यह है कि रचना की मौलिकता का शपथपत्र लिए वे लाखों लोग लाइन में लगे मिलते हैं जो माल एक, ब्रांड सौ, रैपर हजार और पैकिंग लाख वाली मसल में विश्वास करते हैं, पर इस के बावजूद कुछ लोग विशुद्ध चोरी के उपासक होते हैं. एक बड़े अंगरेजी अंतर्राष्ट्रीय दैनिक के सहसंपादक ने एक दशक पहले इंगलैंड के एक टैब्लौयड का एक आर्टिकल चोरी कर के बिना किसी मिलावट के हूबहू अपने पत्र में छपवा डाला था. अत: उन को वांछित प्रशस्तिपत्र के साथ जो ससम्मान विदाई दी गई थी, मैं आज तक नहीं भुला सका हूं. ऐसी चोरियां गुरूघंटालों के दिल में वास करती हैं. वैसे आजकल मिलावटी वाली ज्यादा प्रचलन में हैं जिन के पकड़े जाने की संभावनाएं न के बराबर होती हैं. उन पर तमाम इनामों की व्यवस्था अलग से हुआ करती है.

मुझे इस धंधे में पड़े लगभग 48 साल हो चुके हैं, पर कभी पकड़ा नहीं गया इसलिए अभी भी शाह ही कहलाता आ रहा हूं. हां, जब कभी इनाम की लालसा की तो दोस्त रूपी दुश्मनों ने और समझाया, हताश किया, ‘उस के लिए दारू, पैलगी, खुशामद और सैटिंग जैसी तमाम औपचारिकताएं तुम्हारे वश की बात    नहीं है.’

हां, कुछ दोस्तों ने यह दिलासा अवश्य दिलाया, ‘संभव है कि पिछले दिनों भारतरत्न पर मची छीछालेदर से आहत कुछ लोग संसद में एक ऐसा प्रस्ताव ले आएं कि हर वरिष्ठ नागरिक की उम्र को ही एक योग्यता मान कर एक भारतरत्न बांटा जाए तो उस दशा में तुम्हारा नंबर  जरूर लग सकता है.’  

– अमर कांत निगम

घर पर लंच सस्ता और अच्छा

दोस्तों के साथ मस्ती करना और लंच डिनर पर जाना भला किसे नहीं भाता, लेकिन यह शौक कई बार काफी महंगा साबित होता है, जिस से परेशानी तो होती ही है. क्यों न इस बार कुछ ऐसा करें कि दोस्तों के साथ लंच भी हो जाए और जेब पर कोई भार भी न पड़े, अगर अपने घर पर ही लंच प्लान किया जाए तो यह काफी फायदेमंद तो होगा ही साथ ही ऐंजौयमैंट भी कहीं ज्यादा होगा. आइए जानें कैसे.

सभी पोषक तत्त्व मिलते हैं

अगर आप बाहर एक पावभाजी भी खाने जाते हैं तो वह उसे बनाने में कई बार कई दिन पुरानी सब्जियां भी इस्तेमाल में ले लेते हैं, क्योंकि सब्जियों के मैश होने के बाद उन का पता नहीं चलता, वहीं अगर आप इसे घर पर बनाएं तो आप अच्छी क्वालिटी की मौसमी सब्जियों का ही इस्तेमाल करेंगे.

इस के अलावा उन्हें आप इस तरह पकाते हैं कि उन के सभी पोषक तत्त्व आप को मिलें, क्योंकि आप को उन्हें कम मात्रा में बनाना है और बनाने की इतनी जल्दी भी नहीं होती.

आप उन्हें अपने हिसाब से बनाते हैं लेकिन बाहर एकसाथ बहुत अधिक मात्रा में खाना बनता है इसलिए क्वालिटी के साथ समझौता हो ही जाता है. साथ ही घर में अच्छी और पौष्टिक सब्जियों का उपयोग किया जाता है. अच्छे घीतेल का प्रयोग किया जाता है.

आप की कुकिंग स्किल निखरती है

अगर आप को खाना बनाने का शौक है और किसी को पूरा खाना बना कर खिलाने का मौका कम ही मिलता है तो अपना यह शौक पूरा कर सकती हैं. जो भी डिश आप को अच्छी बनानी आती है या फिर जिसे ट्राई करने का मन था वह अब ट्राई करें. आप के द्वारा बनाए गए अच्छे खाने को खा कर सिर्फ आप के दोस्त ही नहीं बल्कि आप के परिवार वाले भी हैरान रह जाएंगे और आप का यह लंच उन के लिए भी किसी सरप्राइज से कम नहीं होगा.

ऐंजौयमैंट ज्यादा होता है

बाहर के मुकाबले घर में ऐंजौयमैंट ज्यादा होता है, क्योंकि बाहर तो आप को खाना खाते ही रैस्टोरैंट से उठ कर जाना पड़ता है, लेकिन घर में काफी अच्छा वक्त गुजारा जा सकता है और अपनी पसंद के तरहतरह के गेम्स खेल सकते हैं, जीतने वाले को छोटामोटा गिफ्ट भी दिया जा सकता है, घर में साथ में मूवी देख कर भी टाइम स्पैंड किया जा सकता है.

वैराइटी ज्यादा मिलती है

बाजार में आप 2-3 वैराइटी ही ले सकते हैं लेकिन घर पर कई तरह की वैराइटी कम कीमत में बनाई जा सकती है. आप चाहें तो मिक्स ऐंड मैच कर के भी ले सकते हैं जैसे कि बर्गर या पिज्जा के साथ छोलेभटूरे आदि भी रख सकते हैं. साथ में एक चायनीज डिश जैसे चाउमीन आदि भी रख सकते हैं. इस से सब को अपनी पसंद की वैराइटी मिल जाएगी.

कई लोगों की मदद मिलती है

अगर लंच पर कुछ लोग आ रहे हैं तो आप मेड की मदद भी ले सकती हैं और लंच वाले दिन से पहले ही सब्जी आदि काट कर, टमाटर ग्रेवी बना कर रख सकती हैं, मां की मदद भी खाना बनाने में ले सकती हैं, जो काम उन्हें पसंद है वह उन्हें और भाईबहनों को बताया जा सकता है, जैसे टेबल मैनेज करना, ड्राइंगरूम सही करना आदि. चाहें तो यह लंच पूल कर के भी कर सकते हैं, जिस में आने वाले मेहमान भी एकएक डिश बना कर लाएं और सब मिल कर साथ खाएं.

इंग्रीडिऐंट्स का पता होता है

कई बार कुछ लोगों को किसी खास चीज से एलर्जी होती है और उसे खाने पर उन की तबीयत बिगड़ने लगती है, उन के लिए वह खाना अच्छा नहीं रहता. बाहर के खाने में आप पता नहीं कर सकते कि किस खाने में क्या है, लेकिन घर में खाना बन रहा है तो दोस्त की पसंदनापसंद को ध्यान में रखा जा सकता है जैसे कि अगर किसी दोस्त को अदरक से एलर्जी है, तो अदरक न डाली जाए या फिर एक बाउल सब्जी निकाल कर दोबारा बना ली जाए. इस के अलावा जैसे अगर किसी दोस्त को शुगर है और आप टमाटो सूप बना रहे हैं तो उस का एक बाउल सूप अलग निकाल कर फिर चीनी मिक्स करें.

सफाई से बनता है

अगर घर पर खाना बना रहे हैं तो उसे बनाने में साफसफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. सब्जियों को अच्छी तरह धोया जाता है, आटे को छाना जाता है और पूरी सफाई के साथ खाना बनाया जाता है, लेकिन बाहर के खाने में साफसफाई का कितना ध्यान रखा जाता है इस बारे में आप पूरी तरह से श्योर नहीं हो सकते.

नई रैसिपी भी ट्राई कर सकती हैं

लंच में आप चाहें तो एक नई रैसिपी भी ट्राई कर सकती हैं. फिर चाहे वह रैसिपी कोई छोटा सा स्नैक्स ही क्यों न हो. इस से आप को खुद पर कौन्फिडैंस आएगा कि आप भी कुछ अच्छा बना सकते हैं. जैसे कि पनीर कुल्चा बना सकते हैं इस में आप को कुछ नहीं करना, बस, पनीर मैश कर मसाला मिलाना है और 2 कुलचों के बीच पनीर लगा कर सेंक लें. यह खाने में पिज्जा जैसा लगता है और बनाने में सैंडविच बनाने जितना आसान है. इस तरह आप ने नई डिश भी ट्राई कर ली.

सस्ता भी पड़ता है

अगर आप बाहर खाने जा रहे हैं, तो खाने की कीमत वैसे तो रैस्टोरैंट के स्टैंडर्ड के हिसाब से होती है, लेकिन फिर भी किसी रैस्टोरैंट में कीमत कितनी भी कम क्यों न हो वहां खाना घर के खाने से कई गुना महंगा ही पड़ेगा. एक दाल की कीमत ही 200 रुपए तक होती है. ऐसे में आप अगर रायता, सलाद, पापड़ आदि मांगने लगें तो हर चीज की कीमत देनी पड़ती है, जोकि घर में काफी सस्ता पड़ता है.                           

इन बातों का रखें ध्यान

–       उतने ही लोगों को बुलाएं जितने लोगों का अरेंजमैंट आप सही से कर पाएं.

–       खाने के साथसाथ कुछ गेम्स आदि भी रखें, ताकि बाहर जैसा ऐंजौयमैंट मिल सके.

–       अगर आप को लगे कि किसी हैल्पिंग हैंड की जरूरत है, तो पहले ही अपनी मेड या अन्य किसी से बात कर के रखें.

–       जो काम पहले दिन किए जा सकते हैं उन्हें पहले दिन कर लें जैसे आप अगर अपने दोस्तों को पिज्जा पार्टी दे रहे हैं तो पिज्जा के लिए सभी सब्जियां आदि पहले ही दिन चाप कर के रख लें, बाजार से कोल्डड्रिंक, चीज, चिप्स आदि जो भी सामान लाना है, पहले ही दिन ले आएं.

–       अगर लोग ज्यादा हैं तो बैठने का इंतजाम कैसे और कहां करना है, यह भी पहले ही सोच लें. जैसे कि अगर जगह कम है तो ड्राइंगरूम का सोफा आदि दीवारों के किनारे लगा दें और बीच में डाइगिंन टेबल की कुरसियां आदि डाल दें.

–       डाइनिंग टेबल को भी सही से पहले से ही सैट कर दें. वैसे अच्छा तो यही रहेगा कि आप वहां से बुफे सिस्टम लगा दें. सभी लोग वहां से प्लेट लगा कर अपनीअपनी जगह पर बैठ कर खाना खा लें. इस से आप का भी एकएक को परोसने का काम बचेगा, जिस को जो चाहिए खुद टेबल पर से ले लेगा. 

जेब पर भारी चटोरी जबान

13 वर्षीय सान्या बहुत चटोरी है, उसे अपने खानेपीने पर जरा भी कंट्रोल नहीं है. सुबह उठते ही उसे चिप्स, फ्रैंच फ्राइज, चौकलेट्स और कोल्डडिं्रक चाहिए. जहां उस की क्लास के और बच्चे घर से लंच ले कर आते हैं. वहीं वह लंच टाइम में स्कूल कैंटीन में पहुंच जाती है, क्योंकि उसे घर का सादा खाना बिलकुल नहीं भाता. उसे रोज कुछ नया, चटपटा और फ्राइड चाहिए. अपनी इसी चाहत की खातिर वह अपने जेबखर्च का एक बड़ा हिस्सा अपने खानेपीने पर खर्च कर देती है.

खाने की शौकीन और जबान की चटोरी सान्या जैसे किशोर खाने के लिए कभी ना नहीं कहते और उन की यही ओवरईटिंग और चटोरी जबान उन्हें मोटापे की ओर ले जाती है, जिस के चलते उन्हें कई दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. नतीजतन, वे अस्वस्थ रहने लगते हैं और उन्हें दवा और वजन कम करने के लिए जिम पर भी पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जिस से चटोरी जबान जेब पर और भी भारी पड़ती है.

ऐसी चटोरी जबान वालों को पता होता है कि शहर के किस रैस्टोरैंट में कौन सी चीज अच्छी मिलती है. कहां सभी वैराइटी के पकौड़े, मटरकुलचे या इटालियन फूड मिलता है. गरमागरम जलेबियां किस वक्त मिलती हैं और किस गली में कितने नंबर की दुकान पर खस्ता गोलगप्पे व चाट मिलती है. परांठे वाली गली में कब, कितने बजे आलू का, कब गोभी का परांठा बनता है और उस के साथ कौन सी चटनी या कौन सा अचार मिलता है?

अपनी चटोरी जबान के कारण ऐसे किशोर पूरे शहर की खाक छानने को भी तैयार रहते हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फलांफलां ईटिंग पौइंट घर से कितना दूर है, वहां जाने में कितने पैसे खर्च होंगे, उन्हें तो बस वह डिश खा कर अपनी चटोरी जबान को तृप्त करना होता है, फिर चाहे उन्हें इस का खमियाजा किसी भी रूप में क्यों न भुगतना पड़े.

जिन की चटोरी जबान होती है वे अपने खानेपीने पर जरा भी कंट्रोल नहीं रख पाते और जहां उन्होंने अपनी पसंद का खाना देखा, बिना कुछ सोचेसमझे खाने का और्डर दे देते हैं और उस पर टूट पड़ते हैं.

वे न तो उस खाने की क्वालिटी देखते हैं और न ही यह देखते हैं कि उस की कीमत बहुत ज्यादा तो नहीं, उस की क्वालिटी बेकार तो नहीं. कई बार फूड पौइंट्स में ऊंची दुकान फीके पकवान वाली बात भी होती है, लेकिन चटोरी जबान यह भला कहां देखती है.

शान की खातिर

तुगलकाबाद के किशोर अतुल ने अपने दोस्त रमेश से कहा, ‘‘अरे, तू ने कमला नगर के ईटिंग पौइंट का पास्ता और चिल्ली पोटैटो नहीं खाया, तो फिर कुछ नहीं खाया. थोड़ा महंगा है पर खा कर मजा आ जाता है. मैं तो हफ्ते में एक बार वहां जरूर जाता हूं.’’

अतुल की बात से रमेश को बड़ी हैरानी हुई. महज 100-200 की चीज खाने हेतु इतना किराया और समय वेस्ट कर देता है अतुल सिर्फ चटोरी जबान के कारण.

कुछ चटोरी जबान वाले किशोर तो सिर्फअपने दोस्तों पर अपना इम्प्रैशन जमाने के चक्कर में महंगे रैस्टोरैंट में जाते हैं और महंगी डिशेस और्डर करते हैं भले ही ऐसा करने में उन की जेब ही क्यों न खाली हो जाए, उन्हें कोईर् फर्क नहीं पड़ता.

भारत फास्ट फूड दुनिया के पहले देशों में से एक बनता जा रहा है. अब यहां भी कईर् ऐसे रेस्तरां हैं जहां सिर्फ फास्ट फूड ही मिलता है यानी हर मोड़ पर ऐसे रेस्तरां भरे पड़े हैं जो चटोरी जबान वाले किशोरों को अपनी ओर खींचते हैं और चटोरी जबान वाले किशोर अपनी जेब और सेहत दोनों की अनदेखी करते हुए ख्ंिचे चले जाते हैं.

जेब के साथ सेहत पर भी भारी

कुछ क्या सभी किशोरों में आदत होती है मूवी देखते हुए, म्यूजिक सुनते हुए, चिप्स खाना और कोल्डड्रिंक पीना. अपनी इस आदत के चलते वे अपनी पौकेट मनी का एक बड़ा हिस्सा तो खर्च कर ही देते हैं बदले में अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ करते हैं.

लंदन में एक शोध में पता चला है कि आकलू के चिप्स या फै्रंच फ्राइज खाने से व्यक्ति की बुद्धि घट जाती है और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. शोध में डाइटीशियन अन्ना पेत्रिना ने कहा, ‘‘जो लोग नियमित रूप से फास्ट फूड खाते हैं, उन के मस्तिष्क के फ्रांटल लौब पर जोकि निर्णय लेने की क्षमता, बुद्धि, आत्मसंयम और भावनाओं को नियंत्रित करता है, बुरा असर पड़ता है.’’

किशोरों में तो फास्ट फूड का क्रेज इतना बढ़ गया है कि वे जब देखो पिज्जा, बर्गर, पास्ता जैसे फास्ट फूड खाने के लिए तैयार रहते हैं और जहां तक फास्ट फूड खाने का सवाल है तो उस का मूल्य देशी खाने समोसे, कचौड़ी के मूल्य से कहीं अधिक होता है, जो जेब पर भारी पड़ने के साथ ही किशोरों के स्वास्थ्य पर भी भारी पड़ता है.

अगर आप की भी जबान चटोरी है और आप का उस पर काबू नहीं, तो अपनी जबान पर थोड़ा कंट्रोल कीजिए और अपनी मनपसंद चीज को प्रतिदिन न खा कर सप्ताह में एकाध बार खाएं. ऐसा करने से आप का खर्च भी बचेगा और आप की सेहत भी अच्छी रहेगी.                                        

एक एक्शन फिल्म करना चाहती हूं : अथिया शेट्टी

साल 2015 में प्रदर्शित फिल्म ‘हीरो’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाली अथिया शेट्टी, अभिनेता सुनील शेट्टी की बेटी हैं. फिल्मी माहौल में ही पली बढ़ी हुई अथिया को बचपन से ही अभिनय का शौक था. आईने के आगे दुपट्टा लेकर, आंखों में काजल डालकर वे करीना कपूर की तरह डांस किया करती थी.

अथिया एक स्पोर्ट्स पर्सन भी हैं. वे फुटबाल, बास्केटबॉल, बैडमिंटन, ट्रैक एंड फील्ड रनिंग जैसे कई खेल, खेलती हैं. अथिया अपने पिता की एक्शन फिल्मों से बहुत अधिक प्रभावित है. उन्हें अपनी पहली फिल्म की सफलता से आगे बढ़ने का हौसला मिला और अब वे आगे, और अच्छी फिल्में करना चाहती है.

स्वभाव से नम्र और हंसमुख अथिया की दूसरी फिल्म ‘मुबारका’ के प्रमोशन पर हमने उनसे मिलकर बातचीत की. पेश हैं इस खास बातचीत के कुछ अंश…

प्र. दूसरी फिल्म में इतनी देरी क्यों हुई? इसमें क्या एक्साइटमेंट लगी?

– मेरे हिसाब से पहली फिल्म आपको चुनती है, लेकिन इसके बाद दूसरी फिल्म आप खुद ही चुनते हैं और फिर जर्नी शुरू होती है. मेरे लिए सबसे अधिक जरुरी था, एक अच्छी फिल्म के लिए धैर्य रखना. इस दौरान मुझे काफी स्क्रिप्ट फीमेल ओरिएंटेड मिल रही थी, पर मुझे उसमें कुछ एक्साइटमेंट वाली बात नजर नहीं आ रही थी. मुझे एक अच्छी स्क्रिप्ट, एक अच्छे निर्देशक और एक अच्छा बैनर चाहिए था. मैं खुश हूं कि वह सब मुझे मिला.

‘मुबारका’ के दौरान जब नैरेशन शुरू हुआ, तो मेरी भूमिका और फिल्मी नाम बिंकल सुनकर मैं खुश हो गयी. इस फिल्म में मैं, एक सरदारनी की भूमिका निभा रही हूं. और बस इस तरह मुझे लगा कि ये फिल्म मुझे करनी है.

प्र. इस भूमिका से आप अपने आपको कितना रिलेट कर पाती हैं?

– मुझमें और इस भूमिका में काफी समानता है. मैं भी बहुत साधारण हूं, केयर फ्री हूं और छोटी-छोटी चीजो से मुझे खुशी मिलती है. जैसे कि रविवार को अगर मैं दादा-दादी के घर लंच करने जाती हूं तो, मुझे उसमें खुशी मिलती है. मैं भी मटेरियल से ज्यादा इमोशन्स पर विश्वास करती हूं. मैं दादा-दादी की पेम्पर्ड चाइल्ड हूं. जब मैं लन्दन में इस फिल्म की शूटिंग कर रही थी और मेरे दादाजी का स्वर्गवास हो गया था, तो मुझे बहुत धक्का लगा था, लेकिन खुशी इस बात से हुई थी कि उन्होंने मुझे काम करते हुए देखा और उनकी चाहत यही थी कि मैं हमेशा काम करूं.

प्र. परिवार की जिम्मेदारियों को आप कैसे शेयर करती है?

– मुझे बचपन से सब कुछ मिला है, मेरा बचपन बहुत ही अच्छा रहा है. दादा-दादी, माता-पिता से बहुत प्यार मिला है. अब मैं चाहती हूं कि वे लोग हमेशा खुश रहें, इसलिए उन्हें वो सब कुछ देने की कोशिश करती हूं.

जिम्मेदारियां ‘मैचुरिटी’ के साथ आती हैं और आप समझने लगते हो कि आपको, आपके परिवार ने क्या दिया है. ऐसे बहुत से बच्चों को मैं देखती हूं, वे बात को समझने की कोशिश नहीं करते, पर मुझे याद है कि मैंने अपने बचपन का बहुत सारा समय दादा-दादी के साथ बिताया है. उन्हें खुश रखूं, यही मेरी इच्छा रहती है.

प्र. पिता के ‘गुडविल’ को आप कैसे मेंटेन करती है?

– मैं हमेशा उसे बनाये रखने की कोशिश करती हूं, क्योंकि आपका स्वभाव आपके चेहरे, आँखों और पूरे व्यक्तित्व पर होता है. जो पर्दे पर दिखाई पड़ता है. अच्छी मानसिकता रखने वाला इंसान ही अच्छा परफोर्मेंस दे सकता है. जितना भी सफल आप हो जायें, लेकिन अगर आप सिंपल नहीं हैं तो, वो सफलता आपके पास नहीं रह सकती. मेरे लिए मेरी टीम सबसे ऊपर है, जिन्होंने मुझे इस लेवल पर लाकर खड़ा किया है.

प्र. पिता की किस बात को आप जीवन में उतारती है?

– उन्होंने हमेशा कहा है कि आप जो भी काम करें उसमें आत्मविश्वास रखें. आप क्या हैं और क्या कर सकती हैं, ये समझना बहुत जरुरी होता है. ये सही भी है. अगर आप खुद अपने काम से खुश नहीं है, तो दूसरे को खुशी नहीं दे पाएंगे.

प्र. आपकी पहली कमाई आपने किसे दी थी या उससे क्या खरीदा?

– मुझे याद आता है, जब मुझे पहला ‘चेक’ मिला था तो, मैंने अपने दादाजी को दिया था, क्योंकि बचपन से मैंने उनकी आधुनिक सोच को देखा था. उन्हें हर ऐसी लड़की पसंद है जो अपने पैरों पर खड़ी है या उसका अपना एक वजूद है. शादी करो या मत करों, लेकिन स्वावलंबी बनो.

उनके गुजरने के बाद भी ये महसूस हुआ कि वे मुझसे खुश हैं, क्योंकि मैं एक फिल्म के सेट पर हूं. मैं जब घर पर होती थी तो वे पूछा करते थे कि मैं काम क्यों नहीं कर रही हूं.

प्र. फिल्मों में अन्तरंग दृश्य करने में आप कितना सहज महसूस करती हैं?

– अभी तक तो मैंने कोई अन्तरंग दृश्य नहीं किया है, क्योंकि ‘हीरो’ फिल्म में ऐसे दृश्य नहीं थे. इस फिल्म में भी ऐसा कुछ नहीं है. मैं ऐसे दृश्य नहीं करुंगी, ऐसा मैं नहीं कह सकती, लेकिन अगर मैं कम्फर्टेबल नहीं हूं, तो शूट नहीं करुंगी. आगे क्या करुंगी, ये तो स्क्रिप्ट और चरित्र पर निर्भर करता है.

प्र. अभिनय के अलावा और क्या-क्या करना पसंद करती हैं?

– मुझे डांस बहुत पसंद है. इसके अलावा ट्रेवलिंग पसंद है. भारत में ताजमहल घूमने का शौक है.

प्र. आपका ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

– मुझे एक एक्शन फिल्म करनी है. मुझे लगता है कि मैं अपने पापा को कॉम्पिटिशन दे सकती हूं. मैं मार्शल आर्ट करती हूं. मैं एक एथलीट पर्सन भी हूं और अगर बायोपिक करना हो तो किसी स्पोर्ट्स पर्सन की बायोपिक करना चाहूंगी.

प्र. आपकी दादी और मां बहुत फैशनेबल हैं, आपने उनसे भी कुछ सीखा?

लोग मुझे ‘फैशनिस्ता’ कहते हैं, पर मैं हूं बहुत सिंपल. मैं अधिकतर इंडियन ड्रेसेज पहनती हूं और अपनी मां के परिधानों से काफी प्रभावित हूं. ट्रेंड और स्टाइल तो आता जाता रहता है, पर जरुरी होता है कपड़े को ठीक तरह से कैरी करना.

प्र. आप मानसून में खुद की देखभाल कैसे करती हैं?

किसी भी मौसम में, मैं पानी अधिक पीती हूं. सनब्लॉक क्रीम का प्रयोग करती हूं और सबसे जरुरी हमेशा खुश रहती हूं.

इन टीवी एक्ट्रेसों की कमाई जान हैरान रह जाएंगी आप

मशहूर टीवी एक्‍ट्रेस जेनिफर विंगेट हाल ही में ‘बेहद’ सीरियल के लिए अपने लुक को लेकर चर्चा में हैं. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि उनकी पॉपुलरिटी को देखते हुए सीरियल के निर्माताओं ने एक एपिसोड के लिए मिलने वाली उनकी फीस को 80 हजार से बढ़ाकर 1 लाख रुपए कर दी है. इसके साथ ही जेनिफर छोटे पर्दे की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली एक्ट्रेस की लिस्ट में शामिल हो गईं हैं. आज हम आपको सबसे ज्यादा कमाई करने वाली एक्ट्रेस के बारे में बताने जा रहे हैं.

दिव्यांका त्रिपाठी

‘ये है मोहब्बतें’ में इशिता का पॉपुलर किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस दिव्यांका त्रिपाठी एक एपिसोड के लिए 1 लाख रुपए फीस लेती हैं.

साक्षी तंवर

मशहूर टीवी एक्ट्रेस साक्षी तंवर अपने शो के एक एपिसोड के लिए 1.25 लाख रुपए फीस लेती है. साक्षी के सीरियल ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ और ‘कहानी घर-घर’ की सुपरहिट रहे हैं.

देवोलीना भट्टाचार्य

‘साथ निभाना साथिया’ में गोपी बहु का मशहूर किरदार निभाने वाली देवोलीना भट्टाचार्य को एक एपिसोड के लिए 90 हजार रुपए फीस मिलती है.

सृति झा

‘कुमकुम भाग्य’ प्रज्ञा का किरदार निभाने वाली सृति झा को एक एपिसोड के लिए 60 हजार रुपए फीस मिलती है.

हिना खान

हाल ही में ‘खतरों के खिलाड़ी’ सीजन 8 के जरिए छोटे पर्दे पर वापसी करने वाली एक्ट्रेस हिना खान भी 1 एपिसोड के लिए 1 लाख रुपए चार्ज करती हैं.

बॉलीवुड अभिनेत्रियों को इस बात से लगता है डर

डर तो सभी को लगता है फिर वो चाहे किसी जानवर से हो या किसी और चीज से. लेकिन जब बात हो बॉलीवु़ड अभिनेत्रियों की तो जाहिर है उनकी तरह उनके डर भी अजीब होंगे जो आपको हैरान भी कर देंगे और आपको मुस्कराने पर मजबूर भी कर देंगे. तो आइये जानते है बॉलीवुड हीरोइन के अजीबोगरीब डर के बारे में.

आलिया भट्ट

प्रसिद्ध फिल्म निर्माता महेश भट्ट की बेटी और बॉलीवु़ड अभिनेत्री आलिया भट्ट को अंधेरे से बहुत डर लगता है. और डर से खौफ भी ऐसा कि वो एक मिनट भी अंधेरे में नहीं रह पातीं.

कटरीना कैफ

बॉलीवुड की टॉप हीरोइनो में शामिल कटरीना कैफ का डर वास्तव में एक फोबिया के अंतर्गत आता है जो काफी अजीब है. कटरीना कैफ को टमाटर से डर लगता है, अब चाहे कुछ लोग इसे अजीब कहे लेकिन जो सच है वो तो है.

अनुष्का शर्मा

खुबसूरत अभिनेत्री अनुष्का शर्मा को बाइक राइडिंग से बहुत डर लगता है. हालांकि वो ‘जब तक है जान’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी हैं. इनके अलावा वह कई फिल्मो में बाइक पर सीन भी दे चुकी हैं.

दीपिका पादुकोण

दीपिका पादुकोण सांप से बहुत डरती हैं. वैसे बात तो सही है दुनियां में शायद ही कोई होगा जिसे जहरीले सांपो से डर न लगता हो.

प्रियंका चोपड़ा

बॉलीवुड से हॉलीवुड का सफर तय कर चुकी प्रियंका चोपड़ा को घोड़ों से डर लगता है.

बिपाशा बासु

बॉलीवुड की खूबसूरत हॉट एंड सेक्सी अभिनेत्री बिपाशा बासु को छिपकली से डर लगता है, वो भी इतना डर कि वो छिपकली को देख भी नहीं सकतीं.

करीना कपूर

अनुष्का शर्मा की तरह करीना कपूर भी बाइक राइडिंग से बहुत डरती हैं. लेकिन ऐसे अनेक फिल्मी दृश्य है जिसमे यह बाइक राइडिंग करते हुए दिखाई गयी हैं.

सोनम कपूर

बॉलीवुड की नीरजा सोनम कपूर को लिफ्ट से बहुत डर लगता है.

विद्या बालन

बॉलीवुड की टैलेंटेड हीरोइन विद्या बालन को बिल्ली से डर लगता है.

सेलीना जेटली

खुबसूरत सैलीना जेटली को तितली से लगता है डर.

फिल्मों से पहले म्यूजिक एलबम में नजर आए चुके हैं ये सितारे

आज बॉलीवुड में कई ऐसे सितारे हैं जिन्होंने अपनी करियर में किसी म्यूजिक एलबम में काम किया हो. उस समय इन सितारों को हम नहीं जानते थें लेकिन आज वही सितारे हस्ती बन गए हैं. आपने भी इन कलाकारों के शुरुआती दिनों में इन्हें किसी ना किसी म्यूजिक एलबम में देखा होगा.

मलाइका अरोड़ा

मलाइका अरोड़ा ने फिल्मों में आने से पहले कई म्यूजिक एलबम में काम किया है. लकी अरोड़ा और यस अरोड़ा के कई गानों में वो आई थीं.

दीपिका पादुकोण

‘मस्तानी’ दीपिका के चर्चे तो आज चाहे हॉलीवुड तक हो लेकिन कभी उन्होंने हिमेश की एक एलबम में काम किया था. गाने का नाम था ‘नाम है तेरा-तेरा’. यकीन नहीं आता तो खुद देख लें.

आयशा टाकिया

फाल्‍गुनी ने आयशा टाकिया को भी अपनी एक गाने के लिए कास्ट किया था. इस गाने का टाइटल था ‘चुनर उड़-उड़ जाए.’

बिपाशा बसु

बिपाशा ने तो सोनू निगम के साथ एक गाने में काम किया था. सोनू का उन दिनों भी जलवा था. इस एलबम का नाम ‘किस्मत’ था.

मिलिंद सोमन

मिलिंद सोनू निगम और अलिशा चिनॉय के कई गानों में नजर आए थें.

शाहिद कपूर

‘हैदर’ जैसी फिल्म कर चुके शाहिद का चेहरा बड़ा ही मासूम सा लगता था. शाहिद आर्यन्स बैंड के साथ ‘आंखों में तेरा ही चेहरा’ में देखे गए थें.

विद्या बालन

पलाश सेन के ‘कभी आना तू मेरी गली’ में तो विद्या से मोहब्बत हो गई थी.

सेलिना जेटली

बात उस दौर की है, जब दिलों पर कांटा लग रहा था. सेलिना का भी एक सॉन्ग आया था जिसे हेमंत कुमार ने गाया था. टाइटल था ‘जरा नजरों से कह दो.’

जॉन अब्राहम

जॉन भी मॉडलिंग की दुनिया से फिल्मी दुनिया में आए हैं. पंकज उदास के एक गाने में उन्होंने एक्टिंग की थी. इस गाने का टाइटल था ‘चुपके-चुपके.’

रिया सेन

रिया और फाल्‍गुनी पाठक का एक गाना आया था. ‘याद पिया की आने लगी’, साल 1998 की बात है. इस गाने में रिया बहुत खूबसूरत लग रही थीं.

अनुराग कश्यप ने किया नवाजुद्दीन सिद्दीकी के बारे में ये खुलासा

बॉलीवुड एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी यूं तो इस इंडस्ट्री में 90 के दशक से काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें पहचान मिली साल 2012 में आई फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वास्सेपुर’ से. आज नवाज की गिनती बॉलीवुड इंडस्ट्री के टॉप और बेहतरीन एक्टर्स में होती है. उन्होंने अपने जीवन में काफी स्ट्रगल किया है. आज की तारीख में नवाज चाहे तो किसी भी खूबसूरत हसीना को डेट कर सकते हैं.

लेकिन ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि अपने स्ट्रगलिंग दिनों में वो एक मिस इंडिया को भी डेट कर चुके हैं. ये सच है और इस बात का खुलासा किया है खुद अनुराग कश्यप ने.

हाल ही में नवाज और अनुराग कश्यप एक इवेंट में पहुंचे थे, जहां बातचित के दौरान उस इवेंट की होस्ट ने नवाज को बताया कि उन्हें अनुराग कश्यप से ये खबर मिली है कि वो पहले एक मिस इंडिया को डेट कर चुके हैं. इस बात को सुनते ही नवाज का चेहरा लाल हो गया और वे लड़कियों की तरह शर्माने लगे. उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन होस्ट आगे कुछ कहती इसके पहले ही अनुराग ने कह दिया कि हमें किसी का नाम नहीं लेना है.

अनुराग यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे खुलासा किया कि गैंग्स ऑफ वास्सेपुर की शूटिंग के पहले नवाज और मिस इंडिया का ब्रेकअप हो गया था. वैसे अनुराग ने ना केवल नवाज की एक्स गर्लफ्रेंड का खुलासा किया बल्कि ये भी राज भी खोल दिया की उनका एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर भी था. जी हां नवाज की शादी 25 की उम्र में यानी 1999 में ही हो गई थी. वो काम के चलते अपनी पत्नी से दूर रहा करते थे लेकिन अब कामयाब होने के बाद उन्होंने अपनी पत्नी को अपने पास बुला लिया है. यहां देखिये विडियो…

केरल की संस्कृति का अहम हिस्सा है ‘वल्लमकली’

दुनिया भर में भारत को अपनी संस्कृति, बदलते मौसम और प्रकृति के अद्भुत नजारों के लिए जाना जाता है. यहां अलग-अलग ऋतुओं के स्वागत में तीज-त्योहार मनाए जाते हैं. हमारे यहां जब सावन का महीना आता है तो बारिश में सराबोर यहां के लोग अपनी खुशी को पर्व के रूप में जाहिर करते हैं.

केरल की फेमस बोट रेस भी बारिश के मौसम में ही होती है. इस रेस को यहां ‘वल्लमकली’ कहते हैं जिसे देखने दुनियाभर से टूरिस्ट जुटते हैं.

नेहरू ट्रॉफी बोट रेस

केरल में अल्लपुझा के बैकवॉटर की पुन्नमड झील में होने वाली यह बोट रेस सबसे प्रसिद्ध है. ये रेस हर साल अगस्त के दूसरे शनिवार को होती है. इस आयोजन में चुंदन वेलोम (स्नेक बोट) की पारंपरिक दौड़ के अलावा पानी पर झांकियां भी होती हैं. इस कॉम्पिटीशन के नजारे वाकई में  अद्भुत होते हैं.

पय्यपड़ बोट रेस

अलप्पुझा में ही पय्यपड़ नदी में एक अन्य बोट रेस होती है. केरल में नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के बाद स्नेक बोट की सबसे बड़ी रेस यही है इस रेस की शुरुआत हरीपाद मंदिर और सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर में मूर्ति की स्थापना से हुई. कहते इस मूर्ति स्थापना के दौरान वहां ग्रामीणों को एक सपना आया, जिसके बाद वे कायमकुलम झील में एक चक्रवात तक पहुंचे, जहां उन्हें मूर्ति प्राप्त हुई. उसी समय से यहां बोट रेस की परंपरा चली आ रही है.

कुमारकोम बोट रेस

जिस दिन पय्यपड़ में बोट रेस होती है, उसी दिन प्रसिद्ध रिजॉर्ट कुमारकोम में भी श्री नारायण जयंती बोट रेस होती है. यह रेस केरल में होने वाली बाकी रेसों से अलग है. यह रेस महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के गांव में आने की याद में आयोजित की जाती है. बताया जाता है कि नारायण गुरु 1903 में नाव में बैठकर अल्लपुझा से कुमारकोम आए थें. उनके साथ कई नावों में लोग थे. इसलिए हर साल श्री नारायण गुरु की जयंती पर उनकी याद में यह बोट रेस होती है.

अरण्मुला वल्लमकली

केरल में यह बोट रेस अपनी प्राचीन परंपरा और भव्यता के लिए जानी जाती है. यह रेस कम और पारंपरिक रस्म ज्यादा है. अर्णामुला में पंबा नदी में होने वाला यह आयोजन दरअसल ओणम का हिस्सा है.

अगर आप भी इस सावन में कहीं घूमने का प्लान कर रहीं हैं तो केरल के इस बैकवॉटर रेस का लुत्फ उठाएं.

पोषक तत्वों से भरपूर हैं कच्चे केले

पके हुए केले के फायदों के बारे में तो आप जानती ही होंगी. पका हुआ केला जहां चाव से खाया जाता है वहीं कच्चे केले का इस्तेमाल सिर्फ सब्जी, कोफ्ता, केले का चिप्स बनाने में ही किया जाता है.

कच्चा केला पोटैशियम का खजाना होता है जो इम्यून सिस्टम को तो मजबूत बनाता है ही साथ ही ये शरीर को दिनभर एक्टि‍व भी बनाए रखता है. इसमें मौजूद विटामिन बी6, विटामिन सी कोशिकाओं को पोषण देने का काम करता है. कच्चे केले में सेहतमंद स्टार्च होता है और साथ ही एंटी-ऑक्सीडेंट्स भी. ऐसे में नियमित रूप से एक कच्चा केला खाना बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है.

वजन घटाने में मददगार

वजन घटाने की कोशि‍श करने वालों को हर रोज एक केला खाने की सलाह दी जाती है. इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर्स पाए जाते हैं जो अनावश्यक फैट सेल्स और अशुद्धियों को साफ करने में मददगार होते हैं.

कब्ज की समस्या में राहत

कच्चे केले में फाइबर और हेल्दी स्टार्च होते हैं. जोकि आंतों में किसी भी तरह की अशुद्ध‍ि को जमने नहीं देते. ऐसे में अगर आपको अक्सर कब्ज की समस्या रहती है तो कच्चा केला खाना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा.

भूख को शांत करने में

कच्चे केले में मौजूद फाइबर्स और दूसरे कई पोषक तत्व भूख को नियंत्रित करने का काम करते हैं. कच्चा केला खाने से समय-समय पर भूख नहीं लगती है और हम जंक फूड और दूसरी अनहेल्दी चीजें खाने से बच जाते हैं.

मधुमेह को कंट्रोल करने में मददगार

अगर आपको मधुमेह की शिकायत है और ये अपने शुरुआती रूप में है तो अभी से कच्चा केला खाना शुरू कर दें. ये डायबिटीज कंट्रोल करने की अचूक औषधि है.

पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में मददगार

कच्चे केले के नियमित सेवन से पाचन क्रिया बेहतर होती है. कच्चा केला खाने से पाचक रसों का स्त्रावण बेहतर तरीके से होता है.

कैंसर से बचाए

इसके अलावा कच्चा केला कई तरह के कैंसर से बचाव में भी सहायक है. कच्चे केले में मौजूद कैल्शियम हड्ड‍ियों को मजबूत बनाने में सहायक है और साथ ही ये मूड स्व‍िंग की समस्या में भी फायदेमंद है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें