बुढ़ापे पर भारी बच्चों की शिक्षा

मई जून में बच्चों की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आने के साथ ही मांबाप का आर्थिक मोरचे पर इम्तिहान शुरू हो जाता है. जुलाई से शिक्षासत्र शुरू होते ही अभिभावकों में ऐडमिशन दिलाने की भागदौड़ शुरू हो जाती है. बच्चे को किस कोर्स में प्रवेश दिलाया जाए? डिगरी या प्रोफैशनल कोर्स बेहतर रहेगा या फिर नौकरी की तैयारी कराई जाए? इस तरह के सवालों से बच्चों समेत मांबाप को दोचार होना पड़ता है.

शिक्षा के लिए आजकल सारा खेल अंकों का है. आगे उच्च अध्ययन के लिए बच्चों और अभिभावकों के सामने सब से बड़ा सवाल अंकों का प्रतिशत होता है. 10वीं और 12वीं की कक्षाओं में अंकों का बहुत महत्त्व है. इसी से बच्चे का भविष्य तय माना जा रहा है. नौकरी और अच्छा पद पाने के लिए उच्चशिक्षा का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है.

प्रतिस्पर्धा के इस दौर में महंगाई चरम पर है और मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों के भविष्य को ले कर की जाने वाली चिंता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. अभिभावकों को शिक्षा में हो रहे भेदभाव के साथसाथ बाजारीकरण की मार को भी झेलना पड़ रहा है. ऊपर से हमारी शिक्षा व्यवस्था में वर्णव्यवस्था भी एक खतरनाक पहलू है.

गहरी निराशा

सीबीएसई देश में शिक्षा का एक प्रतिष्ठित संस्थान माना जाता है पर राज्यस्तरीय बोर्ड्स की ओर देखें तो पता चलता है कि देश में 12वीं क्लास के ज्यादातर छात्र जिन स्कूलों में पढ़ रहे हैं वहां हालात ठीक नहीं है.

हाल ही बिहार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 12वीं के नतीजों ने राज्य में स्कूली शिक्षा पर गहराते संकट का एहसास कराया है. यहां पर कुल छात्रों में सिर्फ 34 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए. इस साल 13 लाख में से 8 लाख से ज्यादा फेल होना बताता है कि स्थिति बेहद खराब है. छात्रों के मांबाप गहरी निराशा में हैं.

देश में करीब 400 विश्वविद्यालय और लगभग 20 हजार उच्चशिक्षा संस्थान हैं. मोटेतौर पर इन संस्थानों में डेढ़ करोड़ से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. इन के अलावा हर साल डेढ़ से पौने 2 लाख छात्र विदेश पढ़ने चले जाते हैं.

हर साल स्कूलों से करीब 2 करोड़ बच्चे निकलते हैं. इन में सीबीएसई और राज्यों के शिक्षा बोर्ड्स के स्कूल शामिल हैं. इतनी बड़ी तादाद में निकलने वाले छात्रों के लिए आगे की पढ़ाई के लिए कालेजों में सीटें उपलब्ध नहीं होतीं, इसलिए प्रवेश का पैमाना कट औफ लिस्ट का बन गया. ऊंचे मार्क्स वालों को अच्छे कालेज मिल जाते हैं. प्रवेश नहीं मिलने वाले छात्र पत्राचार का रास्ता अपनाते हैं या फिर नौकरी, कामधंधे की तैयारी शुरू कर देते हैं.

सीबीएसई सब से महत्त्वपूर्ण बोर्ड माना जाता है. इस वर्ष सीबीएसई में 12वीं की परीक्षा में करीब साढे़ 9 लाख और 10वीं में 16 लाख से ज्यादा बच्चे बैठे थे. 12वीं का परीक्षा परिणाम 82 प्रतिशत रहा. इस में 63 हजार छात्रों ने 90 प्रतिशत अंक पाए. 10 हजार ने 95 प्रतिशत.

कुछ छात्रों में से करीब एकचौथाई को ही ऐडमिशन मिल पाता है. बाकी छात्रों के लिए प्रवेश मुश्किल होता है. 70 प्रतिशत से नीचे अंक लाने वालों की संख्या लाखों में है जो सब से अधिक है. इन्हें दरदर भटकना पड़ता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय की बात करें तो नामांकन की दृष्टि से यह दुनिया के सब से बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है. लगभग डेढ़ लाख छात्रों की क्षमता वाले इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत 77 कालेज और 88 विभाग हैं. देशभर के छात्र यहां प्रवेश के लिए लालायित रहते हैं पर प्रवेश केवल मैरिट वालों को ही मिल पाता है. यानी 70-75 प्रतिशत से कम अंक वालों के लिए प्रवेश नामुमकिन है.

सब से बड़ी समस्या कटऔफ लिस्ट में न आने वाले लगभग तीनचौथाई छात्रों और उन के अभिभावकों के सामने रहती है. उन्हें पत्राचार का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है या फिर नौकरी, कामधंधे की तैयारी शुरू करनी पड़ती है.

मांबाप बच्चों के भविष्य के लिए कुरबानी देने को तैयार हैं. जुलाई में शिक्षासत्र शुरू होते ही अभिभावकों में ऐडमिशन की भागदौड़ शुरू हो जाती है. कोचिंग संस्थानों की बन आती है. वे मनमाना शुल्क वसूल करने में जुट जाते हैं और बेतहाशा छात्रों को इकट्ठा कर लेते हैं. वहां सुविधाओं के आगे मुख्य पढ़ाईर् की बातें गौण हो जाती हैं.

ऐसे में मांबाप के सामने सवाल होता है कि क्या उन्हें अपना पेट काट कर बच्चों को पढ़ाना चाहिए? मध्यवर्गीय मांबाप को बच्चों की पढ़ाई पर कितना पैसा खर्च करना चाहिए? आज 10वीं, 12वीं कक्षा के बच्चे की पढ़ाई का प्राइवेट स्कूल में प्रतिमाह का खर्च लगभग 10 से 15 हजार रुपए है. इस में स्कूल फीस, स्कूलबस चार्ज, प्राइवेट ट्यूशन खर्च, प्रतिमाह कौपीकिताब, पैनपैंसिल, स्कूल के छोटेमोटे एक्सट्रा खर्च शामिल हैं.

मांबाप का इतना खर्च कर के अगर बच्चा 80-90 प्रतिशत से ऊपर मार्क्स लाता है, तब तो ठीक है वरना आज बच्चे की पढ़ाई का कोई अर्थ नहीं समझा जाता. यह विडंबना ही है कि गुजरात में बोर्ड की परीक्षा में 99.99 अंक लाने वाले छात्र वर्शिल शाह ने डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बनने के बजाय धर्र्म की रक्षा करना ज्यादा उचित समझा. उस ने संन्यास ग्रहण कर लिया.

बढ़ती बेरोजगारी

यह सच है कि शिक्षा के बावजूद बेरोजगारी देश के युवाओं को लील रही है. पिछले 15 सालों के दौरान 99,756 छात्रों ने आत्महत्या कर ली. ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के हैं. ये हालात बताते हैं कि देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी है. 12वीं पढ़ कर निकलने वाले छात्रों के अनुपात में कालेज उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए ऐडमिशन नहीं मिल पाता. छात्र और उन के मांबाप के सामने कितनी विकट मुश्किलें हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद बेरोजगारी की समस्या अधिक बुरे हालात पैदा कर रही है.

देश की शिक्षाव्यवस्था बदल गई है. आज के दौर में पढ़ाई तनावपूर्ण हो गई है. अब देश में शिक्षा चुनौतीपूर्ण, प्रतिस्पर्धात्मक हो चुकी है और परिणाम को ज्यादा महत्त्व दिया जाने लगा है. बच्चों को पढ़ानेलिखाने के लिए मांबाप पूरी कोशिश करते हैं. छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए दबाव रहता है. कई बार ये दबाव भाई, बहन, परिवार, शिक्षक, स्कूल और समाज के कारण होता है. इस तरह का दबाव बच्चे के अच्छे प्रदर्शन के लिए बाधक होता है.

जहां तक बच्चों का सवाल है, कुछ बच्चे शैक्षणिक तनाव का अच्छी तरह सामना कर लेते हैं पर कुछ नहीं कर पाते और इस का असर उन के व्यवहार पर पड़ता है.

असमर्थता को ले कर उदास छात्र तनाव से ग्रसित होने के कारण पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं या कम मार्क्स ले कर आते हैं. बदतर मामलों में तनाव से प्रभावित छात्र आत्महत्या का विचार भी मन में लाते हैं और बाद में आत्महत्या कर लेते हैं. इस उम्र में बच्चे नशे का शिकार भी हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मांबाप की अपेक्षा भी होती है कि बच्चे अच्छे मार्क्स ले कर आएं, टौप करें ताकि अच्छे कालेज में दाखिला मिल सके या अच्छी जौब लग सके.

दुख की बात है कि हम एक अंधी भेड़चाल की ओर बढ़ रहे हैं. कभी नहीं पढ़ते कि ब्रिटेन में 10वीं या 12वीं की परीक्षाओं में लड़कों या लड़कियों ने बाजी मार ली. कभी नहीं सुनते कि अमेरिका में बोर्ड का रिजल्ट आ रहा है. न ही यह सुनते हैं कि आस्ट्रेलिया में किसी छात्र ने 99.5 फीसदी मार्क्स हासिल किए हैं पर हमारे यहां मईजून के महीने में सारा घरपरिवार, रिश्तेदार बच्चों के परीक्षा परिणाम के लिए एक उत्सुकता, भय, उत्तेजना में जी रहे होते हैं. हर मांबाप, बोर्ड परीक्षा में बैठा बच्चा हर घड़ी तनाव वअसुरक्षा महसूस कर रहा होता है.

कर्ज की मजबूरी

मैरिट लिस्ट में आना अब हर मांबाप, बच्चों के लिए शिक्षा की अनिवार्य शर्त बन गई है. मांबाप बच्चों की पढ़ाईर् पर एक इन्वैस्टमैंट के रूप में पैसा खर्र्च कर रहे हैं. यह सोच कर कर्ज लेते हैं मानो फसल पकने के बाद फल मिलना शुरू हो जाएगा पर जब पढ़ाई का सुफल नहीं मिलता तो कर्ज मांबाप के लिए भयानक पीड़ादायक साबित होने लगता है.

मध्यवर्गीय छात्रों के लिए कठिन प्रतियोगिता का दौर है. इस प्रतियोगिता में वे ही छात्र खरे उतरते हैं जो असाधारण प्रतिभा वाले होते हैं. पर ऐसी प्रतिभाएं कम ही होती हैं. मध्यवर्ग में जो सामान्य छात्र हैं, उन के सामने तो भविष्य अंधकार के समान लगने लगता है. इस वर्ग के मांबाप अकसर अपने बच्चों की शैक्षिक उदासीनता यानी परीक्षा में प्राप्त अंकों से नाराज हो कर उन के साथ डांटडपट करने लगते हैं.

उधर निम्नवर्गीय छात्रों के मांबाप अधिक शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं. कामचलाऊ शिक्षा दिलाने के बाद अपने व्यवसाय में हाथ बंटाने के लिए लगा देते हैं.

एचएसबीसी के वैल्यू औफ एजुकेशन फाउंडेशन सर्वेक्षण के अनुसार, अपने बच्चों को विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए तीनचौथाई मांबाप कर्ज लेने के पक्ष में हैं. 41 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना सेवानिवृत्ति के बाद के लिए उन की बचत में योगदान करने से अधिक महत्त्वपूर्ण है.

एक सर्वे बताता है कि 71 प्रतिशत अभिभावक बच्चों की शिक्षा के लिए कर्ज लेने के पक्ष में हैं.

अब सवाल यह उठता है कि मांबाप को क्या करना चाहिए? मांबाप को देखना चाहिए कि वे अपने पेट काट कर बच्चों की पढ़ाई पर जो पैसा खर्च कर रहे हैं वह सही है या गलत. 10वीं और 12वीं कक्षा के बाद बच्चों को क्या करना चाहिए, इन कक्षाओं में बच्चों के मार्क्स कैसे हैं? 50 से 70 प्रतिशत, 70 से 90 प्रतिशत अंक और 90 प्रतिशत से ऊपर, आप का बच्चा इन में से किस वर्ग में आता है.

अगर 90 प्रतिशत से ऊपर अंक हैं तो उसे आगे पढ़ाने में फायदा है. 70 से 80 प्रतिशत अंक वालों पर आगे की पढ़ाई के लिए पैसा खर्च किया जा सकता है. मगर इन्हें निजी संस्थानों में प्रवेश मिलता है जहां खर्च ज्यादा है और बाद में नौकरियां मुश्किल से मिलती हैं. इसी वर्ग के बच्चे बिगड़ते भी हैं और अनापशनाप खर्च करते हैं.

तकनीकी दक्षता जरूरी

कर्ज ले कर पढ़ाना जोखिमभरा है पर यदि पैसा हो तो जोखिम लिया जा सकता है. अगर 70, 60 या इस से थोड़ा नीचे अंक हैं तो बच्चे को आगे पढ़ाने से कोई लाभ नहीं होगा पर शिक्षा दिलानी जरूरी होती है. यह दुविधाजनक घाटे का सौदा है.

इन छात्रों को सरकारी संस्थानों में प्रवेश मिल जाता है जहां फीस कम है. 36 से 50 प्रतिशत अंक वाले निम्न श्रेणी में गिने जाते हैं. इन बच्चों के मांबाप को चाहिए कि वे इन्हें अपने किसी पुश्तैनी व्यापार या किसी छोटी नौकरी में लगाने की तैयारी शुरू कर दें.

ऐसे बच्चों को कोई तकनीकी टे्रड सिखाया जा सकता है. कंप्यूटर, टाइपिंग सिखा कर सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में क्लर्क जैसी नौकरी के प्रयास किए जा सकते हैं. थोड़ी पूंजी अगर आप के पास है तो ऐसे बच्चों का छोटामोटा व्यापार कराया जा सकता है.

शिक्षा के लिए मांबाप पैसों का इंतजाम कर्ज या रिश्तेदारों से उधार ले कर या जमीनजायदाद बेच कर करते हैं. यह कर्ज बुढ़ापे में मांबाप को बहुत परेशान करता है. ऐसे में कम मार्क्स वाले बच्चों के लिए आगे की पढ़ाईर् पर कर्ज ले कर खर्च करना बुद्धिमानी नहीं है.

देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों में कम अंकों वाले छात्रों को मोटा पैसा ले कर भर लिया जाता है पर यहां गुणवत्ता के नाम पर पढ़ाई की बुरी दशा है. एक सर्वे में कहा गया है कि देशभर से निकलने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा इंजीनियर काम करने के काबिल नहीं होते. केवल इंजीनियर ही नहीं, आजकल दूसरे विषयों के ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट छात्रों के ज्ञान पर भी सवाल खड़े होते रहते हैं. प्रोफैशनलों की काबिलीयत भी संदेह के घेरे में है.

मांबाप को देखना होगा कि आप का बच्चा कहां है? किस स्तर पर है? मध्यवर्ग के छात्र को प्रत्येक स्थिति में आत्मनिर्भर बनाना होगा क्योंकि मांबाप अधिक दिनों तक उन का बोझ नहीं उठा सकते.

शिक्षा का पूरा तंत्र अब बदल रहा है. मांबाप अब 12वीं के बाद दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम यानी पत्राचार के माध्यम से भी बच्चों को शिक्षा दिला सकते हैं. दूरस्थ शिक्षा महंगी नहीं है. इस माध्यम से आसानी से किसी भी बड़े व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में बहुत कम फीस पर प्रवेश लिया जा सकता है. कई छोटे संस्थान भी किसी विशेष क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. इस तरह यह पढ़ाई मांबाप के बुढ़ापे पर भारी भी नहीं पड़ेगी.          

पश्चिम बनाम भारतीय शिक्षा प्रणाली

पूर्वी शिक्षा प्रणाली बेहतर है या पश्चिमी शिक्षा प्रणाली, यह एक सतत प्रश्न है. मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकती हूं कि शिक्षा का सार पश्चिम में पूर्व से बिलकुल अलग और व्यावहारिक है क्योंकि अगर ऐसा न होता तो 7 साल सिंगापुर में बिताने और अच्छी तरह से व्यवस्थित होने के बाद मैं सिर्फ अपने बच्चों की शिक्षा की वजह से आस्ट्रेलिया जाने को विवश न होती. आज एक दशक के बाद जब पीछे मुड़ कर देखती हूं तो मुझे अपने निर्णय पर पूर्णसंतुष्टि महसूस होती है.

पश्चिमी शिक्षा प्रणाली अच्छे नागरिक बनाने के लिए डिजाइन की गई है जबकि पूर्वी शिक्षा प्रणाली खासतौर से हमारी भारतीय प्रणाली भ्रष्ट और कूपमंडूक बनाने के लिए. मैं इस बात को इतने विश्वास के साथ इसलिए कह रही हूं क्योंकि मैं ने दोनों प्रणालियों को अनुभव किया है. निम्न कुछ बिंदुओं का अध्ययन करने से पूर्वी बनाम पश्चिमी शिक्षा प्रणाली की स्थिति का अंतर स्पष्ट हो जाएगा.

शिक्षा में व्यावहारिकता

कुछ दिनों पहले की ही बात है, मेरी बेटी मैडिकल ऐंट्रैंस एप्लीकेशन के लिए अपना पोर्टफोलियो तैयार कर रही थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मम्मी, प्लीज मेरी पर्सनल स्टेटमैंट (जो कि पोर्टफोलियो का हिस्सा था) की पू्रफरीडिंग कर दीजिए.’’ मैं ने उसे पढ़ा और काफी देर तक सोचती रही कि ये सब चीजें कितनी दूर की सोच कर करवाई जाती हैं. असल में बेटी ने उस स्टेटमैंट में अपने द्वारा अब तक किए मानवतावादी, सामुदायिक, स्वयंसेवी कार्यों का विवरण रिफ्रैंसेस के साथ लिखा था और इस के लिए उसे एंट्रेंस एप्लीकेशन पर कुछ अतिरिक्त अंक मिलने थे.

अब आप यही सोचेंगे कि इन सब कार्यों का मैडिकल ऐंट्रैंस से क्या संबंध, उस के लिए तो बस जूलौजी और कैमिस्ट्री टैस्ट होने चाहिए? ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि पश्चिमी शिक्षा प्रणाली में नैतिक गुणों की कद्र की जाती है. और फिर डाक्टरी के प्रोफैशन में तो नैतिकता अत्यंत ही आवश्यक तत्त्व है. इसलिए इस प्रोफैशन में जाने के लिए केवल मार्कशीट पर लिखे या प्रतियोगिता में अकादमिक विषयों में लाए गए अंकों के आधार पर निर्णय नहीं लिया जा सकता.

हमारे भारत देश में नैतिकता की कमी की पराकाष्ठा अपने चरम पर है तभी तो अकादमिक विषयों में सर्वोच्च स्थान पाने वाले डाक्टर भी अपने मरीजों के शरीर से अंग चुराने में नहीं हिचकिचाते. जाहिर है ऐसे लोग केवल पैसा कमाने के उद्देश्य से इस प्रोफैशन में आते हैं. जनसेवा या जनहित के लिए नहीं.

व्यक्तित्व विकास और पब्लिक स्पीकिंग के कोर्सेज भी सिर्फ एशियंस के लिए ही चलते हैं. क्योंकि पश्चिमी देशों में पैदा होते ही एक बच्चे को नेशन असेट यानी राष्ट्रीय संपत्ति माना जाता है और उस के पालनपोषण, शिक्षादीक्षा में उस की वैयक्तिकता को सर्वप्रमुखता दी जाती है.

दूसरी तरफ भारत में 40-50 वर्षीय पुत्र से भी उम्मीद की जाती है कि वह अपनी पत्नी को अगर कहीं बाहर ले कर जाए तो उस के लिए पहले अपने मातापिता से आज्ञा ले. अब ऐसी शिक्षा और ऐसे माहौल में व्यक्तित्व में निखार अर्जित करना तो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के समान ही होता है. वहीं, कठिन परिस्थितियों में डिसीजन मेकिंग, प्रौब्लम सौल्विंग जैसे हुनर वेस्टर्नर्स के व्यक्तित्व का हिस्सा सहज ही बन जाते हैं. इन्हें अर्जित करने के लिए उन्हें हम भारतीयों की तरह ‘डेल कार्निज’ जैसे कोर्सेज में प्रवेश नहीं लेना पड़ता.

प्रोग्राम फौर इंटरनैशनल स्टूडैंट असेसमैंट यानी पीआईएसए के आंकड़े बताते हैं कि पूर्वी देश जैसे सिंगापुर और चीन के बच्चे स्कूल और पीआईएसए में उच्च स्कोर तो लाते हैं मगर व्यावहारिक जीवन की समस्याएं सुलझाने के संदर्भ में चीन के बच्चों का स्कोर, टैस्ट लेने वाले सभी देशों के बच्चों के औसत स्कोर की तुलना में 51 अंक कम है जबकि अमेरिका के बच्चों का 10 अंक अधिक है.

शायद यही कारण है अमेरिका जैसे देशों की एयरलाइंस के पायलट्स का आपातकालीन हालात से जूझ कर सेफ लैंडिंग करने का सब से अच्छा रिकौर्ड है. कुछ एशियन एयरलाइंस जैसे अमीरात तथा सिंगापुर एयरलाइंस को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइंस होने का दरजा तो मिला हुआ है पर यह दरजा उन्हें यात्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं के आधार पर मिला है न कि आपातकालीन परिस्थितियों से बखूबी से निबटने के दृष्टिकोण की वजह से.

ईमानदार शिक्षक

गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु: गुरुदेवो महेश्वर:

गुरु:साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मैं श्री गुरवे नम:

एक वक्त था कि हमारी भारतीय संस्कृति में शिक्षकों का स्थान सर्वोपरि था किंतु क्या उपरोक्त पंक्तियां आज के परिवेश में भी लागू होती हैं. नहीं, बिल्कुल नहीं. परंतु क्यों नहीं? क्यों हमारे समाज में शिक्षक अपना सम्मान गंवा चुके हैं? इसे समझने की कोशिश करते हैं.

जब मेरे बच्चे कुछ बड़े हो गए तो मैं ने फिर से आगे पढ़ने का मन बनाया और यहां आस्ट्रेलिया में एक इंस्टिट्यूट में एक कोर्स में ऐडमिशन ले लिया. मैं ने पाया कि सबकुछ मनोबल बढ़ाने वाला था. अध्यापक हमारी समस्याओं को हल करने के लिए अपने लंचब्रैक का समय तक त्याग देते थे.

ऐसे में मुझे आगरा में अपनी स्कूलिंग और कालेज के दिन याद आ जाते जब वहां शिक्षक प्राइवेट ट्यूशन से पैसा कमाने में इतने व्यस्त थे कि कईकई दिनों तक स्कूल और कालेज की कक्षाओं में पढ़ाने तक न आते थे. अब ऐसे में गुरुब्रह्मा गुरुविष्णु: का दरजा तो अपनेआप ही खत्म हो जाना है.

पश्चिमी देशों में खासतौर से 5 मुख्य अंगरेजीभाषी देशों (अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, इंगलैंड) में एक ही क्लास में एकसाथ कम से कम 10 से 15 देशों के, विविध भाषाएं बोलने वाले, बिलकुल भिन्न परिप्रेक्ष्य के बच्चे पढ़ते हैं. इन हालात में शिक्षक पूरी क्लास के बच्चों को किसी स्टैंडर्ड तरीके से पढ़ा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर लेते हैं. वे हर बच्चे को उस की जरूरत और क्षमता के हिसाब से ध्यान दे कर उस के व्यक्तित्व में निखार लाते हैं.

पश्चिम में एक छात्र की असफलता के लिए जितना उस छात्र को जिम्मेदार माना जाता है उतना ही दोष उस के शिक्षक और शिक्षण संस्थान का भी माना जाता है. जबकि, पूर्व में असफलता का सारा दोष छात्र के ऊपर डाल दिया जाता है. पश्चिम में क्लास गु्रप डिस्कशन को पहली प्राथमिकता दी जाती है और छात्रों को ज्यादा से ज्यादा प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया जाता है वहीं पूर्व में प्राइवेट ट्यूशन और एकल स्टडी का बोलबाला है.

हमारे देश में जब बात निबंध लेखन की आती है तो आजादी के बाद से आज तक वही घिसेपिटे विषय जैसे कि दहेज प्रथा, मेरा प्रिय मित्र, सदाचार, बेरोजगारी, दीवालीहोली’ चलते आ रहे हैं. छात्र इन विषयों को शब्दश: किताबों से रट कर परीक्षा में लिख कर पास हो जाते हैं. ऐसे हालात में रचनात्मकता को बढ़ावा मिलने की गुंजाइश ही कहां बचती है.

पश्चिमी देशों में कवियों और लेखकों की जन्ममरण तिथियां रटना और उन की जीवनशैली परीक्षा में लिखने को नहीं दी जाती बल्कि उन की रचनाएं क्लास में पढ़ासमझा कर स्तरीय कविताएं, लेख लिखने का होमवर्क बच्चों को दिया जाता है ताकि आगामी पीढि़यों में भी शेक्सपियर, डब्लू बी यीट्स जैसे साहित्यकार और कवि समाज को मिलते रहें.

शिक्षा पर समानाधिकार

विश्वविद्यालयों में हर उम्र के लोग शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते हैं. ज्ञान प्राप्त करना उम्र की सीमा में नहीं बांधा जाता और लर्निंग को सहजता के साथ लाइफटाइम जर्नी माना जाता है. विश्वविद्यालयों की कक्षा में फिर शिक्षा के लिए आए अधेड़ छात्रों का नई पीढ़ी के छात्र और शिक्षक मजाक नहीं बनाते बल्कि अधिक सम्मान व सहयोग देते हैं.

मुझे याद आती है एक घटना जब अब से 25 साल पहले मैं आगरा विश्वविद्यालय में बीएससी तृतीय वर्ष में पढ़ रही थी, तभी एक ऐसी छात्रा ने हमारे साथ तृतीय वर्ष में प्रवेश लिया जिन्होंने द्विवर्षीय बीएससी डिगरी कुछ साल पहले पास की थी तथा अब उन की एमएससी करने की इच्छा थी. मगर क्योंकि तभी बीएससी, द्विवर्षीय कोर्स से त्रिवर्षीय में बदल चुका था, इसलिए उन्हें एमएससी करने के पहले बीएससी तृतीय वर्ष ब्रिज कोर्स के नाम से करना पड़ रहा था.

उन की उम्र हम से मात्र 3 साल ही अधिक थी. मगर इस के लिए क्लास में वे एलियन की तरह ट्रीट की जाती थीं. हदें तो तब पार होती थीं जब सब पीठ पीछे उन के लिए ‘बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम’ जैसे अपमानजनक शब्द प्रयोग करते थे. अब सोचने की बात है कि क्या एक उम्र के बाद विश्वविद्यालय जा कर पढ़ाई करना कोई जुर्म है?

राष्ट्र की संपत्ति युवा

दूसरे को आहत करना हम भारतीय अपना जन्मसिद्घ अधिकार मानते हैं. डाक्टरी और इंजीनियरिंग में प्रवेश न मिलने पर अभिभावक बच्चों को ऐसा महसूस कराते हैं कि आगे वे हाई पेड प्रोफैशन में नहीं जा पाते हैं तो उन का इस दुनिया में जीना पूरी तरह निरर्थक है और वे इस धरती पर एक बोझ मात्र हैं.

वहीं, पश्चिमी देशों के अभिभावक असफलता का सामना होने पर बच्चे से कहते हैं, ‘इट इज नौट एंड औफ द वर्ल्ड.’ हर बच्चे की अपनी खूबी होती है और पश्चिमी शिक्षा प्रणाली उन को उभार कर बच्चे के व्यक्तित्व को तराशने के सिद्घांत पर आधारित है. यही कारण है एशियन शिक्षा प्रणाली किताबी कीड़ों

को जन्म देती है जबकि पश्चिमी शिक्षा प्रणाली रचनात्मक, सृजनशील वैज्ञानिक, खिलाडि़यों, लेखकों आदि को.

पश्चिम में छोटे बच्चों के क्लासरूम पारिवारिक माहौल देने के लिए डिजाइन किए जाते हैं. बहुत छोटे बच्चों के क्लासरूम में हर बच्चे की एक फैमिली फोटो मंगा कर रखी जाती है. बच्चों को कक्षा के दौरान भी फिंगर फूड और फल खाने की अनुमति होती है. ऐसी चीजें खाने के लिए उन्हें लंचब्रैक तक इंतजार करने की जरूरत नहीं होती.

भारतीय शिक्षक और अभिभावक कुशल, बुद्घिमान बच्चों की सराहना करते हैं और उन्हें ही प्रगति के अधिक साधन उपलब्ध कराते हैं जबकि जीवन की वास्तविकता यह है कि मुरझाते, पीले पड़ते हुए पौधों को अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है.

कमजोर छात्रों पर ठीक से ध्यान देने के बजाय ‘बुद्घिहीन हैं ये तो, इन के भेजे में कुछ नहीं घुस सकता’ कह कर उस के आत्मविश्वास को खंडखंड कर दिया जाता है. वे जो कुछ अच्छा कर सकते हैं उसे भी करने की क्षमता खो बैठते हैं. गुरु व मातापिता के सम्मान को ले कर बड़ेबड़े प्रवचन दिए जाते हैं, शास्त्रों का हवाला दिया जाता है परंतु एक बच्चे के मनोविज्ञान तथा भावनाओं को समझने की कुछ खास आवश्यकता नहीं समझी जाती.

‘ये आईएएस बन जाएं तो हम समझेंगे कि हम ने जीवन में सबकुछ पा लिया’ कहने वाले मातापिता यह कभी नहीं समझना चाहते कि उन का बच्चा जीवन से क्या पाना चाहता है, या उस के क्या अरमान हैं? कला, संगीत, लेखन के प्रति झुकाव रखना वक्त की बरबादी माना जाता है जबकि पश्चिमी सभ्यता में इन सब कलाओं में प्रवीण होना गौरव की बात है. साथ ही, स्वस्थ मानसिक विकास के लिए इन्हें आवश्यक भी माना जाता है.

भारत में परीक्षाफल निकलने के बाद असफल छात्रों के घर से भाग जाने और आत्महत्या करने की घटनाएं दुर्लभ नहीं हैं. जिंदगी से भागना सिखा कर और बच्चों को अपनी इच्छाओं का गुलाम बना कर हम देश को एक स्वस्थ मानसिकता का नागरिक कैसे दे सकते हैं?

अभिभावकों, शिक्षकों और पूरे समाज को यह समझने की बहुत ही जरूरत है

कि हम अपने बच्चों को सफलता और असफलता दोनों को सहज भाव से अपनाने के लिए प्रशिक्षित करें क्योंकि ये दोनों ही जीवनरूपी सिक्के के दो पहलू ही हैं.

व्यावसायिक शिक्षा प्रणाली

कुछ सालों पहले जब मैं यहां आस्टे्रलिया में अकाउंटिंग की पढ़ाई कर रही थी तो मेरी पढ़ाई केवल अकाउंटिंग तक ही सीमित नहीं थी. इस कोर्स में एक यूनिट व्यावहारिक वर्कप्लेस ट्रेनिंग भी शामिल थी. इस यूनिट में हमें वर्कप्लेस पर काम में आने वाले सभी उपकरणों के प्रयोग के और लिखित व वर्बल कम्युनिकेशन के प्रभावी तरीके भी सिखाए गए.

इसी तरह से यहां बाल काटने की ट्रेनिंग में केवल कैंचीकंघे का प्रयोग करना नहीं सिखाया जाता, बल्कि बालों और सिर की त्वचा की संरचना के बारे में भी पढ़ाया जाता है ताकि हर व्यक्ति को उस की खास जरूरत के हिसाब से सेवा प्रदान की जा सके.

रोजगार और भेदभाव

पश्चिम में हर काम में व्यावसायिकता है. हेयर ड्रैसिंग, कारपैंटरी, प्लंबिंग सभी के लिए अच्छे संस्थानों द्वारा बाकायदा प्रोफैशनल ट्रेनिंग उपलब्ध है. इसीलिए ऐसे काम करने वालों का शोषण भी नहीं है, साथ ही, हर व्यक्ति को अपनी पसंद का रोजगार करने का अवसर मिलता है. हर काम का सम्मान है, काम के आधार पर कोई छोटाबड़ा भी नहीं होता.

बहरहाल, फर्क जगजाहिर है कि वेस्टर्नर नएनए आविष्कार करते हैं, दूसरे के बनाए सिद्घांतों  व फार्मूलों को रटने में उम्र नहीं बिताते.

समाज को हर व्यवसाय के लोगों की आवश्यकता पड़ती है और जब तक हर व्यवसाय में संलग्न नागरिकों का बराबर सम्मान नहीं होगा तब तक हम विकसित सभ्य समाज के मापदंडों पर खरे नहीं उतर सकते. हर काम को बराबर बनाने के लिए उस में व्यावसायिकता लानी होगी, इस के लिए न सिर्फ लोगों के माइंडसैट को बदलने की आवश्यकता है बल्कि शिक्षा प्रणाली को व्यावहारिक व तार्किक बना कर छात्रों की क्रिएटिविटी को तराशने में मददगार बनानी होगी.

– रीता कौशल

भारत में इन जगहों पर भारतीयों का जाना है मना

देश को आजाद हुए 70 साल होने वाले हैं लेकिन फिर भी भारत में कुछ ऐसी जगह अब भी हैं जहां भारतीयों का ही प्रवेश वर्जित है. आप विश्वास नहीं करोंगे लेकिन ये सच है कि भारत के इन स्थानों पर भारतीयों को ही जाने की अनुमति नहीं है.

कैसा लगेगा अगर आपको आपके घर में ही घुसने से मना कर दिया जाए? हम आपको भारत की 5 जगहों के बारे में बता रहे हैं, जहां पासपोर्ट दिखाकर सिर्फ विदेशियों को ही जाने की अनुमति है.

फ्री कसौल कैफे, कसौल

फ्री कसौल कैफे के इस नाम पर आप बिल्कुल भी मत जाइएगा. ये कैफे अपने नाम के बिल्कुल परे है. कसौल, जहां लोग शांत वातावरण का मजा लेने और अपनी थकान भरी दुनिया से दूर चिल करने के लिए जाते हैं, भारतीय और विदेशियों दोनो की मनपसंद जगह है. पर इन सबके बीच यहां फ्री कसौल नाम का एक कैफे भी है जो लोगों के बीच राष्ट्रीयता के हिसाब से भेदभाव करती है. यहां अंदर जाने से पहले आपको अपना पासपोर्ट दिखाना पड़ता है कि कहीं आप भारतीय तो नहीं.

उनो-इन होटल, बेंगलुरू

यह होटल बेंगलुरू में 2012 में केवल जापानी लोगों के लिए बनाया गया था. हालांकि यह शीघ्र ही बंद हो गया था. साल 2014 में जब यह लोकप्रिय होटलों में एक था, कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिसकी वजह से इसे भेदभाव और जातिवाद मामलों की वजह से बेंगलुरु सिटी कॉर्पोरेशन द्वारा बंद करवा दिया गया.

गोवा का “Foreigners Only” बीच

गोवा के कुछ बीच के मालिक सरेआम भारतीयों और विदेशियों के बीच भेदभाव करते हैं. वे इस बात को सही साबित करने के लिए तर्क देते हैं कि वे विदेशी यात्रि जो बीच के कपड़ों में वहां आराम करते हैं, उनकी वे कामुक भरी नजरों से रक्षा करते हैं.

पांडिचेरी के “Foreigners Only” बीच

गोवा के बाद पांडिचेरी ही एक ऐसी जगह है, जहां लोग समुद्री तट में छुट्टियों का मजा लेने के लिए आते हैं. यहां के प्राचीन समुद्री तट, जहां फ्रेंच और भारतीय वास्तुकला का मिश्रण आपको एक साथ देखने को मिलेगा भारतीयों और विदेशियों दोनों को ही लुभाते हैं. पर गोवा की तरह यहां पर भी कई बीच ऐसे हैं. जहां भारतीयों का जाना बिल्कुल ही वर्जित है.

चेन्नई में बसे कुछ लॉज

हाइलैंड नाम से मशहूर चेन्नई के ये लॉज उन लोगों को ही अंदर आने की अनुमति देते हैं जिनके पास विदेशी पासपोर्ट होता है मतलब जो विदेश के रहने वाले हैं बस वही इस लॉज में रह सकते हैं. यहां भारतीयों के प्रवेश का वर्जित होने वाला नियम सख्ती से लागू किया जाता है. पर अगर हां किसी भारतीय के पास अगर विदेशी पासपोर्ट है, तो वह इस लॉज में आ सकता है.

मेकअप की हैं शौकीन तो इन बातों का रखें ध्यान

आम तौर पर लड़कियों को मेकअप करने का शौक होता है लेकिन कुछ लोगों को मेकअप करने के सही तरीकों के बारे में बेसिक जानकारी भी नहीं होती. ऐसे में मेकअप करना न सिर्फ आपके लुक को खराब करता है बल्कि यह आपकी स्किन के लिए भी खतरनाक हो सकता है. इसलिए मेकअप करते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए.

मौसम और स्किन का ध्यान

मेकअप करने में मौसम का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. गर्मी-सर्दी, बरसात, इन मौसमों के हिसाब से ही मेकअप करना चाहिए. इसके अलावा आपकी स्किन के प्रकार को भी मेकअप के समय जरूर ध्यान में रखें. जिस मेकअप से आपकी स्किन को एलर्जी हो, इचिंग हो उसका इस्तेमाल न करें.

गर्मियों में मेकअप को बरकरार रखना काफी मुश्किल होता है ऐसे में बेहतर यह होता है कि आप लाइट मेकअप करें जिससे पसीना निकलने पर आपका मेकअप उतरता हुआ न दिखाई दे. सर्दियों में बहुत से लोगों की स्किन ड्राई हो जाती है. इसका ध्यान रखने के लिए आपको मास्चराइजर क्रीम, लोशन का इस्तेमाल करना चाहिए.

जगह के हिसाब से करें मेकअप

ऑफिस में कैसा हो आपका मेकअप

अगर आप ऑफिस जा रहीं हैं तो आपका मेकअप बहुत लाइट और तरोताजा दिखना चाहिए. इसके लिए आप हल्के फाउंडेशन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके अलावा आखों के मेकअप के लिए ब्लैक आई पेंसिल और मस्कारे का प्रयोग करें. वहीं पीच या ऑरेंज कलर की लिप्सटिक का यूज करें तो बेहतर है. ऑफिस के लिए मेकअप कम से कम करना ही बेहतर होता है.

पार्टी मेकअप

पार्टी मेकअप के लिए लिप्सटिक, आंखों की डीटेलिंग पर ध्यान देना जरूरी है. गर्मी के दिनों में शाम के वक्त पार्टी है तो लिक्विड या वॉटरप्रूफ फाउंडेशन लगाएं. इसके अलावा फेस पर कॉम्पैक लगाकर पाउडर ब्लशर लगाएं. इसके अलाव आंखों के लिए आईलाइनर ना लगाकर आईशैडो लगाना चाहिए वो भी क्रीमबेस्ड. वहीं पलकों को चमकाने के लिए कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल करें.

अन्य टिप्स

चेहरे की सफाई के लिए कॉटन के साथ माश्चराइजर का इस्तेमाल करें. फाउंडेशन के बाद चेहरे पर पाउडर लगाना न भूलें. गर्मियों में वाटर प्रूफ मेकअप ही करें. ज्यादा मेकअप हटाने के लिए ब्लॉटिंग पेपर साथ रखें. ऑयल फ्री फाउंडेशन का ही इस्तेमाल करें. आई मेकअप सादा ही करें.

ये हैं आपके लिए ऑनलाइन शॉपिंग के ठिकाने

अगर आपको स्मार्टफोन, टैबलट जैसा कोई गैजट खरीदना है, तो खुद को भारतीय ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स तक सीमित न रखें. अगर आप देश की सीमा से परे इसकी पड़ताल करती हैं, तो आपको सुपर डील हासिल हो सकती है. आज हम आपको कुछ ऐसी ही वेबसाइट्स के बारे में बता रहे हैं :

dx.com : अपने नाम (dealextreme) की ही तर्ज पर यह वेबसाइट आपको हर रोज कई डील ऑफर करती है. साथ ही यह वेबसाइट दुनिया भर में कहीं भी डिलिवरी चार्ज नहीं लेती है. वरायटी के मामले में भी यह काफी समृद्ध है. यह नेटवर्किंग प्रॉडक्ट्स, अक्सेसरीज, टूल्स, फ्लैशलाइट्स, खिलौने आदि प्रॉडक्ट्स बेचती है. लेकिन यह ध्यान रखें कि इनमें से ज्यादातर प्रॉडक्ट्स नामी ब्रैंड्स के नहीं होते हैं और आपका ऑर्डर पहुंचने में महीना भर लग सकता है.

tmart.com : इसका कैटलॉग डीएक्स की तरह ही है. हालांकि इसमें 90 दिनों की मनी-बैक गारंटी और दुनिया भर में फ्री डिलिवरी जैसी सुविधाएं भी है. यहां आपको कई प्रॉडक्ट्स काफी सस्ते में मिल जाएंगे. हर खरीदारी पर आप टीमार्ट पॉइंट्स (100 पॉइंट्स के बराबर 1 डॉलर) पाते हैं. ऑर्डर में इन पॉइंट्स को आप भुना सकते हैं. यहां भी ज्यादा प्रॉडक्ट्स वैसे ब्रैंड के होते हैं, जिनके बारे में लोगों को ज्यादा पता नहीं होता है.

ग्लोबल ईजी बाय (geb.ebay.in) : यह सर्विस ईबे इंडिया मुहैया कराती है. इसके जरिए आप उन प्रॉडक्ट्स के लिए ऑर्डर कर सकते हैं, जो कई कंपनियां ईबे ग्लोबल पर ऑफर करती हैं. इस सर्विस के तहत पहले लोकल अड्रेस पर सामान भेजा जाता है और वहां से फिर आपके यहां डिलिवरी होती है. यहां फायदा यह है कि कीमत रुपए में होती है और इसमें शिपिंग और कस्टमर चार्ज भी शामिल होते हैं और आपको ईबे इंडिया पर भुगतान करना है. कीमत सेलर पर निर्भर करती है. हालांकि अगर आप थोड़ी पड़ताल करें, तो आपको बेहतर डील हासिल हो सकती है.

amazon.com : अमेज़न डील के मामले में बेहतरीन वेबसाइट्स में से एक है. इसके पास अलग-अलग सेगमेंट्स से जुड़े कई प्रॉडक्ट्स हैं और यहां पर हमेशा डील की भरमार होती है. डील पेज के अलावा इस वेबसाइट के पास ‘वेयरहाउस डील’ नामक कैटिगरी भी है, जहां प्रॉडक्ट्स पर शानदार डिस्काउंट हासिल कर सकते हैं. ऑर्डर करने से पहले यह चेक करना न भूलें कि कोई प्रॉडक्ट भारत भेजा जा सकता है या नहीं.

लाइट इन द बॉक्स (lightinthebox.com) : इस ऑनलाइन शॉपिंग यूनिट के पास छोटे गैजट्स का बड़ा कलेक्शन है. इसमें सीसीटीवी और आईपी कैमरा, अलार्म सिस्टम, बेबी मॉनिटर, कार अक्सेसरीज, कंप्यूटर कंपोनेंट्स और अक्सेसरीज, होम ऑडियो/विडियो अक्सेसरीज, कैमरा फोन आदि प्रॉडक्ट्स शामिल हैं. साइट पर मौजूद सभी चीजों की कीमत साफ-साफ लिखी होती है और स्टैंडर्ड शिपिंग की कॉस्ट इसी में शामिल होती है. अगर आप जल्दी डिलिवरी चाहते हैं, तो इसके लिए आपको एक्सट्रा भुगतान करना पड़ेगा.

कैसी करती हैं आप लिक्विड मेकअप?

लिक्विड मेकअप का इस्तेमाल करते समय मौसम और त्वचा के मेकअप प्रॉडक्ट्स को सोखने की क्षमता का भी ध्यान रखना पड़ता है. थोड़े समय बाद ड्राई मेकअप से त्वचा बेजान और रुखी लगने लगती है. जबकि चेहरे पर लिक्विड मेकअप त्वचा को नमीयुक्त बनाए रखता है लेकिन अगर लिक्विड मेकअप कम हो जाए तो इससे त्‍वचा शुष्क लगती है. लिक्विड मेकअप करते समय महिलाओं को ब्रश की जगह अपनी ऊंगलियों का इस्तेमाल करना चाहिए.

आज हम आपको ऐसे 6 तरीकों के बारे में बता रहे हैं, जो आपको अपने चेहरे के अनुसार ही अपनानी चाहिए. गले और आंखों के नीचे मेकअप एप्लाई करने का तरीका अलग-अलग होता है. इसलिए लिक्विड मेकअप करते समय आपको पता होना चाहिए कि आपको किस तरह ऊंगलियों से उसे सैट करना है.

सर्कुनर मोशन, एरिया : गाल

चेहरे पर मेकअप करने का सबसे आसान तरीका है सर्कुलर मोशन में लगाने का. हालांकि आप पूरे चेहरे पर सर्कुलर मोशन में मेकअप नहीं कर सकती हैं. सर्कुलर मोशन में सिर्फ गालों पर ही मेकअप करना चाहिए. इससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और चेहरे की चमक बढ़ती है.

पैट-पैट-पैट, एरिया : चेहरा

मेकअप से पहले और चेहरे को क्लींज करने के बाद पैट-पैट जरूरी होता है. हल्के हाथों से चेहरे को थपथपाएं. ये तरीका आपको सिर्फ ऊंगलियों से अपनाना है और चेहरे के पतले हिस्से पर ही करना है. अगर आप जॉ बोन, माथे या गालों पर पैट-पैट करती हैं तो इससे आपको दर्द हो सकता है. इस तरीके से त्वचा और भी ज्यादा बेहतर दिखती है और उसकी चमक भी बढ़ती है. कम से कम 3 सेकेंड के लिए आपको अपने चेहरे पर पैटिंग करनी है.

ऊपरी तरफ, एरिया : गर्दन और हाथों पर

गर्दन और हाथों पर लिक्विड मेकअप करते समय हाथों को हमेशा ऊपर की तरफ चलाएं. इससे त्वचा टाइट रहती है. आप चित्र में भी देख सकती हैं कि किस तरह कॉलर बोन से ऊपर की तरफ हाथों से मेकअप को सैट करना है. अगर आप सोच रहीं हैं कि आपको गर्दन या हाथों पर मेकअप करने की क्या जरूरत है तो इसके पीछे ये कारण है कि अगर आप सिर्फ चेहरे पर मेकअप करती हैं तो आपकी गर्दन और बाहों का रंग अलग दिखता है. इसलिए जो हिस्सा आपका नज़र आ रहा है उस पर मेकअप करना जरूरी होता है.

जिगजैग मोशन, एरिया : माथे पर

माथे पर मेकअप करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है क्योंकि अगर आपने इस हिस्से पर गलत स्ट्रोक का इस्तेमाल किया तो इस वजह से उस हिस्से पर झुर्रियां या लकीरें पड़ सकती हैं. माथे पर लिक्विड मेकअप करते समय आपको जिगजैग मोशन का इस्तेउमाल करना चाहिए. इस मोशन में माथे पर मेकअप करने से वह लंबे समय तक टिका रहता है और इससे आपकी स्किन टाइप को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.

हॉरीजोंटल, एरिया : चिन/ठोड़ी

चेहरे का काफी छोटा हिस्सा होता है चिन जिस पर मेकअप करना काफी मुश्किल काम होता है. वहीं अगर आप चिन पर मेकअप नहीं करती हैं तो ये फर्क साफ दिखाई देता है. इसलिए चिन पर बाएं से दाएं और दाएं से बाईं ओर से कानों की तरफ ले जाकर मेकअप करें.

आर्क स्ट्रोक, एरिया : आंखें

आई मेकअप काफी मुश्किल होता है क्योंकि इसमें आपको कई चीज़ों का इस्तेमाल करना पड़ता है. आंखें काफी नाज़ुक होती हैं इसलिए आपको इन पर मेकअप के लिए ब्रश का ही इस्तेमाल करना चाहिए. अगर आप आंखों के आसपास और नीचे कंसीलर या बेस लगाना चाहती हैं तो आप इसके लिए अपनी ऊंगलियों का इस्तेमाल कर सकती हैं. अनामिका और मध्यमा अंगुली से वी गैप में आंखों पर मेकअप एप्लायई करें.

इस तरह चाय पीना है फायदेमंद

अगर आपने कभी ध्यान दिया हो तो आपको मालूम होगा कि उत्तर भारत के कई इलाकों में लोग चाय एक खास तरह के मिट्टी के बर्तन में पीते हैं, जिसे कुल्हड़ कहा जाता है. ये डिस्पोजल कप होते हैं, मतलब की चाय पीने के बाद लोग इसे फेंक देते हैं. इसका दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

आमतौर पर कुल्हड़ ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. लोगों का कहना है की इसमें चाय पीने का मजा ही अलग है और इसमें चाय पीने से उसमें मिट्टी की खुशबू जुड़ जाती है जो उसके फ्लेवर को और बढ़ा देती है.

आपको बता दें की कुल्हड़ में चाय पीना बाकी अन्य तरीकों की तुलना में काफी ज्यादा फायदेमंद है. कई शहरों में दुकानों पर प्लास्टिक, स्टील या फोम के कप इस्तेमाल किये जाते हैं जिससे कई तरह के नुकसान होते हैं.

फोम के कप से नुकसान : कई जगह आपने देखा होगा कि दुकानों पर या शादियों में लोग चाय के लिए फोम के कप का इस्तेमाल करते हैं. ये पॉलीस्टीरीन से बने होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदायक है. जब आप चाय इसमें डालते हैं तो इसके कुछ तत्व चाय में घुलकर पेट के अंदर चले जाते हैं जिससे आगे चलकर आपको कैंसर भी हो सकता है. फोम वाले कप में मौजूद स्टाइरीन से आपको थकान, फोकस में कमी, अनियमित हार्मोनल बदलाव के अलावा और भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए इन कप में कभी भी चाय ना पियें.

स्टील या कांच के गिलास से नुकसान : अगर आप रोड के किनारे बिकने वाले स्टील या कांच के गिलास में चाय पी रहे हैं तो जान लें की यह भी नुकसानदायक है. अगर इन कप को ठीक से साफ़ नहीं किया गया है तो इसमें मौजूद बैक्टीरिया आपके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. अधिकांश जगहों पर ऐसे दुकान वाले कप को साफ़ करने के लिए गंदे पानी का इस्तेमाल करते हैं जिस वजह से इनमें चाय पीने से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. इससे आपको डायरिया या फ़ूड पाजनिंग जैसी गंभीर बीमरियां हो सकती हैं. जबकि कुल्हड़ में चाय पीने से ऐसे किसी भी चीज का खतरा नहीं रहता है.

ईको फ्रेंडली होते हैं कुल्हड़ : प्लास्टिक या फोम के गिलास स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक हैं. जबकि कुल्हड़ पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं. इसे आप जैसे ही नष्ट करते हैं वे कुछ ही दिनों में मिट्टी में घुल जाता है.

अन्य फायदे : मिट्टी के बर्तनों का स्वभाव क्षारीय होता है जिस वजह से ये शरीर के एसिडिक स्वभाव में कमी लाते हैं. इसके अलावा in मिट्टी के कपों में और भी कई गुण है. इसलिए आप इनमें दूध, चाय या लस्सी कुछ भी पी सकते हैं. यकीन मानिए कुल्हड़ में चाय पीने से स्वाद और पौष्टिकता दोनों बढ़ जाती है.

हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट के बारे में ये बातें जानती हैं आप?

कुछ लड़कियों को वैक्सिंग से एलर्जी होती है, जिस वजह से उन्हें शेविंग ही करवानी पड़ती है. इसके अलावा कुछ लड़कियां शेविंग से होने वाले स्क्रैच से बचने के लिए वैक्सिंग करवाती हैं. अगर बात करें थ्रेडिंग की तो, अनचाहे बालों को हटाने के लिए अमूमन थ्रेडिंग करवाई जाती है.

पहले आपको ये सोचना जरूरी है कि इनमें से किस तरीके से आप हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट लेना चाहती हैं. इसके बाद इसे कितने समय के अंतराल में दोहराना है, इस बात का निर्णय लें. शरीर पर बालों की ग्रोथ इस बात पर भी निर्भर करती है कि आप कितने समय के अंतराल में हेयर रिमूवल करवाती हैं.

अगर आप बहुत जल्दी-जल्दी हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट लेती हैं तो इसका असर आपकी त्वचा पर भी पड़ेगा. वहीं कभी-कभी करने पर ये सिरदर्दी बन जाता है. आपकी इसी मुश्किल को सुलझाने के लिए आज हम आपको ऐसे पांच तरीकों के बारे में बता रहे हैं तो जिससे आप हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट के साथ-साथ अपनी त्वचा का भी ख्याल रख पाएंगीं.

खास दिन के लिए या मीटिंग के लिये

अधिकतर महिलाएं किसी खास मौके या मीटिंग पर ही हेयर रिमूवल करवाती हैं. जब एकसाथ कई सारे त्योहार या कार्यक्रम होते हैं तभी महिलाएं हेयर रिमूवल करवाने की सोचती हैं. वहीं जब उन्हें किसी महत्वपूर्ण कार्यक्रम में ढके हुए कपड़े पहनने होते हैं तो वो हेयर रिमूवल नहीं करवाती हैं. त्वचा को साफ और तरोताज़ा बनाए रखने के लिए हेयर रिमूवल एक प्रक्रिया है. इसलिए आप चाहे कुछ भी पहन रही हों, ये जरूरी है कि आप हर खास मौके या मीटिंग पर हेयर रिमूवल करवाती रहें.

बन जाए शर्मिंदगी का कारण

शरीर पर वापिस बाल कब आएंगें, ये कोई नहीं बता सकता. आमतौर पर ये हार्मोनल बदलाव और शारीरिक फिटनेस पर निर्भर करता है. बहुत ज्यादा बाल आने के पीछे हार्मोनल असंतुलन भी एक कारण हो सकता है. ऐसी परिस्थिति में आपको हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट समय पर करवाते रहना चाहिए. अगर आपके पास सैलून या पार्लर जाने का समय नहीं है तो आप घर पर ही शेविंग के ज़रिए अनचाहे बालों को हटा सकती हैं. हेसर रिमूवल प्लान को आप महीनों पहले नहीं बना सकती हैं. अचानक ही हेयर ग्रोथ ज्यादा आ जाती है और तभी आपको हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट ले लेना चाहिए.

नियमित अंतराल

जिन महिलाओं को अपनी लुक की ज्यादा चिंता होती है वो नियमित अंतराल पर हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट लेती हैं. अगर आपको भी पता है कि आपकी बॉडी को कब हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट की जरूरत होती है तो अपने ब्यूटी केयर प्लान में इसे भी समय पर ही करवा लें. हेयर रिमूवल महीने में एक बार या सप्ताह में दो बार करवाने की जरूरत पड़ती है. वैसे ये आपकी त्वचा और बाल आने की ग्रोथ पर निर्भर करता है.

सैलून प्रोफेशनल की सलाह पर

बालों के वापिस आने की ग्रोथ पूरी तरह से आपकी बॉडी और त्वचा से संबंधित होती है. इसलिए आप खुद ही इस बात का निर्णय लें कि आपको कब और कैसे हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट लेनी है. इसके लिए आप किसी सैलून प्रोफेशनल से भी सलाह ले सकती हैं. सैलून प्रोफेशनल्स को अलग-अलग त्वचा के बारे में पता होता है इसलिए आपको कब और किस तरीके से हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट लेनी है, ये वो अच्छी तरह से बता सकते हैं. लेकिन सही सैलून और प्रोफेशनल से ही सलाह लें, तभी बात बनेगी.

शरीर के किस हिस्से पर होगी ट्रीटमेंट

आप अपने शरीर के किस हिस्से पर हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट करवाना चाहती हैं, ये भी जानना बहुत जरूरी होता है. आइब्रो और चेहरे के अनचाहे बालों को हटाने की जरूरत बहुत जल्दी पड़ती है जबकि बिकिनी वैक्सिंग करवाने में समय का अंतराल कम होता है. मतलब ये है कि नाज़ुक अंगों पर बहुत ज्यादा जल्दी-जल्दी हेयर रिमूवल ट्रीटमेंट नहीं लेनी चाहिए.

घर बैठे काम करना चाहती हैं आप?

अगर आप इंटरनेट पर बैठकर स्माल बिजनेस आइडिया या फिर छोटा बिजनेस कैसे शुरु करें तो आपको तमाम साइट्स मिल जाएंगी जो छोटा बिजनेस शुरू करने के बारे में आपको जानकारी देंगी. लेकिन अब हम आपको 5 ऐसे बिजनेस आइडिया बताएंगे जिससे आप घर बैठे भी बिजनेस कर सकते हैं, ऑनलाइन भी बिजनेस कर सकते हैं और पार्ट टाइम भी बिजनेस कर सकते हैं. अगर आप भी ऑन लाइन बिजनेस शुरू करना चाह रहे हैं वह भी कम लागत में तो ये बिजनेस आइडिया आपके लिए फायदे का सौदा है.

एफिलिएटेड मार्केटिंग (संबद्ध व्यापार)

आजकल तमाम ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स हैं जिनकी पहुंच करोड़ों ग्राहकों तक है. इन ई-कॉमर्स वेब साइट्स के लिए सबसे जरूरी होती है प्रोडक्ट क्वालिटी और कस्टमर सटिफैक्शन. एफिलिएटेड मार्केटिंग में आप इन ई कॉमर्स वेबसाइट्स के प्रोडक्ट्स को अपने ब्लॉग या वेबसाइट्स के जरिए अच्छी रेटिंग देकर रेफर करते हैं तो ये ई-कॉमर्स वेबसाइट्स आपको उस प्रोडक्ट की हर सक्सेसफुल सेल पर अच्छा कमीशन देती है. उदाहरण के लिए फ्लिपकार्ट के साथ आप संबद्ध होने के लिए affiliate.flipkart.com पर जाना होगा वहां अपनी डिटेल्स देनी होगी इसके बाद आपको एक लिंक मिलेगा जिसे आप अपने फेसबुक पेज, ब्लॉग या फिर वेबसाइटस पर लिंक रेफर कर सकते हैं. इसके बाद आप कमीशन का लाभ उठा सकते हैं. यह प्रक्रिया आप फ्लिकार्ट के अलावा अन्य वेबसाइट्स पर भी ये सुविधा उपलब्ध है.

ई-कॉमर्स बिजनेस सेलर

इसके जरिए आप अपने प्रोडक्ट्स को फ्लिपकार्ट के जरिए बेच सकते हैं. अगर आप अपने प्रोडक्ट्स ऑनलाइन नहीं बेच पा रहे हैं तो इस तरीके से आप एक नामी वेबसाइट के साथ जुड़कर अपने बिजनेस को बढ़ा सकते हैं. इसके लिए आपको ऐसे प्रोडक्ट्स देखने होंगे जो ऑनलाइन उपलब्ध वहीं है, ऐसे प्रोडक्ट्स को स्माल क्वांटिटी में खरीद लीजिए फिर वैट नंबर लेकर इन प्रोडक्ट्स को किसी भी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर बेच सकते हैं. उदाहरण के तौर पर आप फ्लिपकार्ट मार्केटप्लेस पर इसे seller.flipkart.com पर बेच सकते हैं. यहां रजिस्टर करने के बाद अपने प्रोडक्ट्स बेच कर पैसा कमा सकते हैं.

ई-बुक्स राइटिंग

आज के दौर में पढ़ाई डिजिटल हो रही है. बच्चे लाइब्रेरी में किसी टॉपिक पर किताब तलाशने के बजाय ऑनलाइन उसी टॉपिक को सर्च करते हैं और अपने प्रॉब्लम सॉल्व करते हैं. अगर आप किसी विषय में पारंगत हैं तो आप उस विषय में ई-बुक्स राइटिंग के जरिए अपने नोट्स ऑनलाइन सेल कर सकते हैं. लोगों को नोट्स के विषय में बताने के लिए आप फ्री डेमो नोट्स दे सकते हैं साथ ही कुछ कठिन टॉपिक को मजेदार ढंग से बताते हुए वीडियो भी अपलोड कर सकते हैं. ई-बुक्स सेल करने के लिए आप blog.instamojo.com पर जाकर खुद को रजिस्टर कर लीजिए फिर अपने आर्टिकल अपलोड कर दीजिए. अगर आप लिखते हैं तो ये आपके लिए और भी अच्छा है, आप अपनी अच्छी कहानियों को ई-बुक्स के जरिए सेल कर सकते हैं. अमेजन के किंडल पर आपको अपने लेख बेचने का मौका मिल सकता है. इसके अलावा आप न्यूज एप न्यूजहंट/डेलीहंट के ई-बुक्स सेक्शन में अपनी कहानियां अलोड करके सेल कर सकते है.

सेलिंग योर स्किल्स

वक्त आ गया है कि आप अपने हुनर को पहचाने. अगर आप ग्राफिक्स डिजाइनिंग में पारंगत हैं या फिर आप अच्छा लिखते हैं या आप प्रजेंटेशन अच्छा देते हैं तो आप अपने इस हुनर से पैसा कम सकते हैं. www.freelancer.com के जरिए आप अपने स्किल्स से पैसा कमा सकते हैं. वेबसाइट पर अपना रजिस्ट्रेशन कराइए. ये एक ऑन लाइन वेबसाइट है जो आपको किसी काम के लिए टेंडर देती है. मान लीजिए कि वेबसाइट कोई लोगो बनाने का टेंडर दे रही है तो आपको बोली लगानी होगी. बोली जीतने के बाद आप लोगो बनाकर तय समय में देना होता है. इसी तरह वेबसाइट डिजाइन करके भी आप सेल कर सकते हैं. इसके बाद साइट आपसे आपके बैंक डिटेल्स की जानकारी लेगी भी पैसा आपके खाते में ट्रांसफर कर देगी.

एप बेस्ड कार कंपनी के साथ करें बिजनेस

अगर आपके पास 3-4 साल पुरानी कार अच्छी कंडीशन में है तो आप अपनी कार को एप बेस्ड कार कंपनी के साथ जोड़कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. आजकल बाजार में ओला, उबर जैसी कंपनी हैं. आपके पास अच्छी कंडीशन में एक कार और एक ड्राइवर होना चाहिए. उदाहण के लिए आप ओला कैब के साथ पार्टनरशिप करके अपनी कार को कैब सर्विस पर देना चाहते हैं तो आपको partners.olacabs.com पर क्लिक करना होगा. फिर अपना रजिस्ट्रेशन करना होगा. कार और ड्राइवर की डिटेल देनी होगी जिसके बाद कंपनी आपसे खुद संपर्क करके आपको पैसे आदि के बारे में बताएगी.

पुराने नक्शों से घर को दें नया लुक

कई बार बच्चों को पढ़ाने के लिए हम नक्शे खरीद लेते हैं, लेकिन कुछ समय बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो नक्शे भी इधर-उधर पड़े रहते हैं. अगर आपके पास भी पुराने नक्शे पड़े हुए हैं तो फिर आप उनका उपयोग कुछ अलग तरीके से कर सकती हैं.

कुर्सी पर चिपकाएं

अगर आपके पास लकड़ी की पुरानी कुर्सी है, जिसका रंग उतर गया है तो उसे भी नया लुक कुछ पुराने नक्शों की मदद से आसानी से दिया जा सकता है. बस इन नक्शों को कुर्सी पर चिपका दें और पुरानी कुर्सी को नया बनाएं.

बॉक्स सजाएं

आप लकड़ी या प्लास्टिक के साधारण डिब्बों या कार्टन में सामान भर कर रखती हैं तो उन्हें नया लुक देने के लिए उन पर नक्शे चिपका दें. पुराने डिब्बे नए से लगने लगेंगे और हर कोई आपकी रचनात्मकता की तारीफ करेगा.

सजाएं कैंडल वास

कैंडल वास के बाहर की ओर गोंद लगाएं और कोई भी छोटा नक्शा और कुछ पुराने पन्ने पूरी गोलाई में चिपका दें. जब वास के अंदर आप मोमबत्ती जलाएंगी तो नक्शा भी चमक उठेगा और रंग-बिरंगा प्रकाश बाहर आएगा.

बनाएं पेंटिंग

आपको पेंटिंग बनाने का शौक है और आप अपनी पेंटिंग्स में कुछ अलग करना चाहती हैं तो नक्शे पर पेंटिंग बनाएं. कोशिश करें कि आप कोई स्केच ही बनाएं, जिससे बैकग्राउंड में नक्शा दिखता रहे. पेंटिंग वाले इस नक्शे को फ्रेम करवाएं.

कॉस्टर से भी जानकारी

डाइनिंग टेबल पर कॉस्टर बहुत काम आते हैं. आप डाइनिंग टेबल पर खेल-खेल में बच्चों को अलग देशों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना चाहती हैं तो इन कास्टर्स की मदद लें. आपको करना केवल इतना सा होगा कि कॉस्टर्स पर विभिन्न देशों के नक्शे चिपका दें. बच्चे जब भी इनका इस्तेमाल करेंगे, देशों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेंगे. आपको भी अलग से एटलस देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

सजाएं दीवार

अगर आपके पास लकड़ी का कोई बड़ा सारा पुराना फ्रेम रखा हुआ है तो पहले उसे साफ करके उस पर वार्निश कर दें. वार्निश सूखने पर उसके पीछे की तरफ बड़ा-सा नक्शा चिपका दें. अब इस फ्रेम को लिविंग रूम की दीवार पर सजा दें.

चिपकाएं शेल्फ पर

आप अपनी किसी भी शेल्फ को नए तरीके से सजाना चाहती हैं तो इसका बहुत ही साधारण तरीका इन पर नक्शे चिपकाना है. बस नक्शों को शेल्फ के आकार का काटिए और चिपका दीजिए. नक्शों को हैंडल की जगह पर न लगाएं.

पार्टी हार्ट

पार्टी डेकोरेशन के लिए किसी मोटी शीट पर खूब सारे दिल बना लें. इन दिलों पर दोनों तरफ नक्शे काटकर चिपका दें. इन सभी दिलों को पतली डोरी की मदद से आपस में जोड़ दें. तैयार है आपकी पार्टी डेकोरेशन की अनूठी लड़.

सजाएं लैंप

लैंप को नए तरीके से डेकोरेट करना चाहती हैं? लैंप शेड पर पुराना नक्शा काटकर सफाई से पूरी गोलाई में चिपका दें. जब आप लैंप जलाएंगी तो दुनिया भर के देश भी चमक उठेंगे और लैंप को भी नया लुक मिल जाएगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें