वाकई इनके साथ लिव इन में रहते थें राजेश खन्ना?

राजेश खन्ना को गुजरे पूरे 5 सालों का समय हो चुका हैं. 18 जुलाई, साल 2012 को राजेश ने इस दुनिया को अलविदा कहा था. यूं तो राजेश खन्ना की वाइफ डिपंल कपाड़िया रही हैं, लेकिन डिपंल के अलावा भी उनकी लाइफ में अन्य महिलाओं का दखल रहता था.

इनमें से एक टीना मुनीम और दूसरी अनीता आडवाणी रही हैं. जब डिंपल और टीना ने उनका साथ छोड़ा दिया था, तो उनके अंतिम समय में उनका साथ दिया था अनीता ने. अनीता ने राजेश के जाने के बाद उनकी संपत्ति पर अपना हक भी जताया था, लेकिन उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ था. आज हम पुरानी कुछ खबरों और अनीता द्वारा दिए गए कुछ इंटरव्यूज की यादें आपके लिए लेकर आए हैं.

‘बिग बॉस 7’ कंटेस्टेंट रही है अनीता

रियलिटी शो बिग बॉस की कंटेस्टेंट अनीता आडवाणी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मैं बचपन से ही उनकी फैन थी. मैं जयपुर में अपनी स्कूलिंग कर रही थी और छुट्टियां बिताने मुंबई आई हुई थी. एक फैमिली फ्रेंड के साथ मैं महबूब स्टूडियो गई. हम जैसे ही वहां पहुंचे उनकी कार बस वहां से निकल ही रही थी और इसीलिए हमने भी उनके घर तक उनकी कार का पीछा किया. क्योंकि मेरे फैमिली फ्रेंड उनको जानते थे इसलिए हमें उनके घर में जाने की इजाजत मिल गई. हमें चाय दी गई. राजेश खन्ना ने खुद बैठकर हमसे बात की. उन्होंने मुझसे मेरा नंबर मांगा और कहा कि वह मुझसे संपर्क में रहेंगे. उन्होंने मुझे आकर फिल्म की शूटिंग देखने को कहा. मैं बहुत खुश थी.

इसके अलावा अनीता ने एक इंटरव्यू में ये भी बताया था कि ‘मुझे उनसे प्यार हो गया था. वे मुझे बहुत ज्यादा अटेंशन देते थे. जिस तरह वे मुझसे बोलते थे, मैं तो बस उनपर फिदा हो जाती थी.

डिप्रेशन में अनीता

अनीता ने एक बार मीडिया से बात करते हुए बताया था कि जयपुर वापस लौटने के बाद वे उनसे नहीं मिल पाईं. उन्होंने उन्हें कभी कॉल नहीं किया. कोई लड़ाई नहीं चल रही थी लेकिन कुछ ऐसा हुआ था जिससे वे काफी अपसेट थीं. वे दोंनो बस अलग हो गए. उनके वापस लौट आने के बाद राजेश ने कभी उनसे संपर्क नहीं किया. वो उनके लिए काफी डिप्रेशन भरा दौर था. वे काफी शांत और अकेली रहने लगी थी. उनके पेरेंट्स भी नहीं जानते थे कि उनकी लाइफ में क्या चल रहा था. केवल उनकी बड़ी बहन कादंबरी को ही, उनके औऱ राजेश की रिलेशनशिप की जानकरी थी. उन्होंने कभी शादी नहीं की. वो उनके लिए काफी बुरा वक्त था’.

राजा थे राजेश खन्ना

अनीता ने बताया, ‘अपनी जिंदगी में वे एकदम एक राजा की तरह रहा करते थे, बस वैसे ही चले भी गए. उनकी मुस्कान, लोगों के साथ बात करने का तरीका बहुत ही अलग हुआ करता था, जिनको वे चाहते थे एकदम से उनके काफी क्लोज हो जाते थे और वे नहीं चाहते थे कि उनके करीबी लोग दूर जाए. जिनको वे दूर रखते थे उनसे वे गेप बनाकर चलते थे’.

संपत्ति पर हक

राजेश खन्ना की पुण्यतिथि पर अना खास तरह की पूजा करवाती हैं और जरूरतमंदों को खाना खिलाती हैं. राजेश खन्ना के निधन के बाद उनकी संपत्ति में हिस्सा पाने के लिए लिव-इन पार्टनर रही अनीता आडवाणी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इसके लिए उन्होंने कोई भी हथकंडा अपनाने से गुरेज नहीं किया था. इसी क्रम में अनीता ने राजेश खन्ना और अपने संबंधों के बारे में भी कई खुलासे किए थे. अनीता ने कोर्ट में एक याचिका दायर कर राजेश खन्ना के बंगले ‘आशीर्वाद’ पर अपना हक जताया था और दस लाख रुपए मासिक गुजारा भत्ता की मांग की थी. उस वक्त अनीता ने दावा किया है कि ‘काका’ की कुल संपत्ति 500 करोड़ रुपए की है.

हम आपको बता देना चाहते है कि अनीता 33 सालों से राजेश खन्ना के साथ लिव-इन रिलेशन में थीं. राजेश खन्ना की इच्छा थी कि वो भी ‘आशीर्वाद’ में रहें जो कि उनका घर है. इतना ही नहीं साल 2001 में हुई एक पार्टी में राजेश खन्ना ने उनको सभी के सामने किस किया था.

ये हैं बॉलीवुड सितारों के सीक्रेट अफेयर्स

हिंदी सिनेमा में ऐसे कई सितारे हैं, जो अपनी लव स्टोरी को लेकर चर्चा में रहते हैं. कई स्टार्स तो ऐसे हैं जो शादीशुदा होते हुए भी, किसी और से भी गुपचुप शादी कर ली थी. हम आपको ये भी बता देना चाहते है कि इन गुपचुप शादियों का आजतक किसी को पता भी नहीं चला है, हालांकि अब धीरे धीरे सबको इन सारी बातों की जानकारी होने लगी है, पर फिर भी बहुत से सितारों की प्रेम कहानी ऐसी है जो आज तक आपको मालूम नहीं है.

आज हम यहां, ऐसे ही कुछ सितारों के बारे में बता रहे हैं, जो अपने सीक्रेट अफेयर्स को लेकर मीडिया में खूब सुर्खियां बटोर चुके हैं और आज भी उनकी ये कहानियां मनोरंजन का विषय बनी हुई हैं.

1. करीना कपूर और ऋतिक रोशन

‘कहो न प्यार है’ ऋतिक रोशन की डेब्यू फिल्म थी. इस फिल्म में अमीषा पटेल से पहले करीना कपूर काम कर रही थीं. करीना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म में एक जगह उनके शॉट को ज्यों का त्यों रखा गया है. कहा जाता है कि फिल्म के सेट पर ऋतिक और करीना की नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. कहा यह भी जाता है कि मां बबिता के कहने पर करीना ने यह फिल्म छोड़ दी थी.

2. मिथुन चक्रवर्ती और श्रीदेवी

मिथुन और श्रीदेवी भी कभी एक दूसरे को प्यार करते थे, लेकिन यह बात किसी को नहीं पता चली. फिल्म ‘जाग उठा इंसान’ के सेट पैर दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ीं थीं. उस वक़्त मिथुन योगिता बाली से शादी कर चुके थे. मिथुन और श्रीदेवी ने गुपचुप शादी कर ली थी लेकिन मिथुन अपने प्यार को सबके सामने स्वीकार करने से डरते रहे. ये सच जानकर जब मिथुन की पत्नी योगिता ने आत्महत्या की कोशिश की तो वो सब कुछ छोड़ के अपनी पत्नी के पास वापस आ गए. इसके कुछ समय बाद ही श्रीदेवी ने बोनी कपूर से शादी कर ली.

3. अक्षय कुमार और रवीना टंडन

इन दोनों के अफेयर के बारे में शायद ही कोई नहीं जानता होगा. 90 के दशक में रवीना टंडन बॉलीवुड इंडस्ट्री की टॉप एक्ट्रेस थीं. इसी दौरान वो खिलाड़ी अक्षय कुमार को दिल दे बैठीं. फिल्म मोहरा के वक़्त दोनों काफी करीब आ गए थे. रवीना तो इस रिश्ते के लिए सीरियस थीं, लेकिन अक्षय की छवि दिल फेंक आशिक की थी. अक्षय को हर दूसरी लड़की से प्यार हो जाता था. उस वक़्त उनका नाम रेखा से भी जुड़ा था. अक्षय की इस आदत की वजह से रवीना ने इस रिश्ते को ख़त्म करना ही बेहतर समझा.

4. शत्रुघ्न सिन्हा और रीना रॉय

बॉलीवुड में जिस समय रीना राय का करियर सातवे आसमान पर था, उस वक्त उनका अफेयर शत्रुघ्न सिन्हा के साथ चल रहा था. किसी काम के सिलसिले में जब रीना लंदन गई हुई थीं, तो शत्रुघ्न ने पूर्व मिस यंग इंडिया रही पूनम चंडीरामणि से शादी कर सबको चौंका दिया था. जब रीना को शादी की खबर लगी तो वो भड़क गईं और तुरंत वापस आकर उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा से इसका जवाब मांगा. शादी के कई सालों बाद तक भी वो रीना राय से मिलते रहे. एक इंटरव्यू में शत्रुघ्न ने कहा था कि रीना से उनका रिश्ता 7 सालों तक चला. इस अफेयर के बारे में शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम को भी पता था.

5. सुरैया और देव आनंद

फिल्म इंडस्ट्री में सुरैया उस समय अपने करियर के चरम पर थीं और देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में उस समय नए थे. इस लव स्टोरी की विलेन बनीं सुरैया की नानी, जिन्हें ये रिश्ता अलग-अलग धर्म के कारण कबूल नहीं था. सुरैया के लिए देव आनंद सब कुछ छोड़ने को तैयार थे, लेकिन अपने घरवालों के कारण सुरैया इस रिश्ते से पीछे हट गईं. रिश्ता टूटने के बाद देव आनंद ने उन्हें कायर तक कह दिया था.

उम्र के साथ बदलें अपनी फाइनैंशल प्लानिंग

आप में से बहुत से लोग हैं जो साल 1991 के बाद के दौर की पीढ़ी से जुड़े हैं, फाइनैंशल तौर पर अच्छी हालत में हैं, लेकिन फिर भी आप फाइनैंशल प्लानिंग को लेकर वे सुनिश्चित नहीं हैं. बहुत से लोगों ने समय के साथ संपत्ति बनाई है और अपनी क्षमताओं के मुताबिक इन्वेस्टिंग की दुनिया में आगे भी बढ़ी हैं. इसके लिए उन्हें दोस्तों और रिश्तेदारों से भी मदद मिली है. आपको आपके करियर के आगे बढ़ते हुए इस फेज में पर्सनल फाइनेंस के बारे में क्या जानना चाहिए?

1. मिडल ऐज वाली प्रोफेशनल्स को यह जानना चाहिए कि ह्यूमन ऐसेट पर रिटर्न के साथ जोखिम भी जुड़े होते हैं, जो उम्र के साथ बढ़ सकते हैं. रिटायरमेंट इस तरह का एक बड़ा जोखिम है, लेकिन इकनॉमिक साइकल्स के साथ नौकरी जाना, छंटनी और कम इंक्रिमेंट जैसे मुद्दे भी सामने आ सकते हैं. खिलाड़ी, फिल्म स्टार और मीडिया प्रोफेशनल्स के सामने ऐसी स्थिति आ सकती है कि युवा लोग उनकी जगह ले लें और उनकी वैल्यू कम हो जाए.

भविष्य की आमदनी के खराब अनुमान की वजह से गुजरे जमाने के कई फिल्म स्टार बुढ़ापे में पाई-पाई को तरस जाते हैं. कुछ प्रोफेशन समय बढ़ने के साथ अपनी साख के मुताबिक आपको आमदनी भी ज्यादा देते हैं, लेकिन कुछ अन्य उम्र बढ़ने पर आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. अगर आप 40 साल की हैं, तो भविष्य के 50 वर्षों के लिए अपनी आमदनी का हकीकत के करीब रहते हुए अनुमान लगाएं. हर किसी को आसानी से ऑल्टरनेट प्रोफेशन नहीं मिलता.

2. लंबे समय में महंगाई कितना नुकसान पहुंचा सकती है, इसे देखें. यह याद रखना चाहिए कि सुरक्षित माना जाने वाला बैंक डिपॉजिट आपको फिक्स्ड और फ्लैट इंटरेस्ट इनकम देता है, जबकि खर्च महंगाई की दर के साथ बढ़ते रहते हैं. इसके लिए इस तरह समझा जा सकता है कि अगर अनुमानित इनफ्लेशन रेट 7-8 फीसदी है, तो आपके खर्चे 9-10 वर्षों में दोगुने हो जाएंगे. इसका मतलब है कि नुकसान से बचने के लिए आपका कॉर्प्स हर 10 साल में दोगुना हो जाना चाहिए. इस समस्या से निपटने के केवल दो ही रास्ते हैं.

– जिन वर्षों में आपकी आमदनी खर्चों से ज्यादा है, तो जितना अधिक हो सके, बचत करें.

– बचत को ऐसी जगह इन्वेस्ट करें, जहां आपको कम से कम इनफ्लेशन रेट जितना रिटर्न मिले.

50 साल का होने पर जब आपके पास घर और कार मौजूद है और आप अपने करियर के पीक पर पहुंच गए हैं, तो आपको अपनी इनकम का 50 फीसदी बचाना चाहिए. अगर इनकम गिरती है और खर्च बढ़ जाते हैं, तो आप बाद में स्थिति ठीक होने पर ऐसा कर सकती हैं.

3. अपने ऐसेट्स को देखें और उन्हें भविष्य के इस्तेमाल के लिए ऐलोकेट करें. अगर आपके पास एक घर है, जिसमें आप रहती हैं और कुछ डिपॉजिट, शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स हैं, तो इन्हें अपनी जरूरतों के मुताबिक मैप करें. घर से आपका भविष्य में किराए पर खर्च बचेगा. अन्य ऐसेट्स आपके बच्चे की हायर एजुकेशन और शादी, आपके इंटरनैशनल ट्रैवल प्लान, रेग्युलर इनकम कम होने पर इन्वेस्टमेंट इनकम की जरूरत और अपने बच्चों के लिए ऐसेट्स छोड़ने के काम आएंगे.

अगर आप अपने परिवार के लिए एक बड़ा घर छोड़कर जाती हैं और कोई इनकम नहीं है तो आपने उन्हें सही सहारा नहीं दिया, भले ही आपने ऐसा करने की काफी कोशिश की हो. यह लिखें कि आपके पास कौन से ऐसेट्स हैं और उनका इस्तेमाल करने की आपकी क्या योजना है.

4. अपने इन्वेस्टमेंट को तीन हिस्सों में बांटें. कोर पोर्टफोलियो की जरूरत आपको अपनी जीवन के दौरान होगी और इसका एकमात्र मकसद आपकी जरूरतें पूरी करने का है. अगर इस पोर्टफोलियो में नुकसान होता है तो आपकी नींद उड़ जानी चाहिए. इनफ्लेशन के साथ अजस्टेड अपने खर्चों का अनुमान लगाने के बाद यह पक्का करें कि इस खर्च को पूरा करने वाले फंड इसी पोर्टफोलियो में रखे जाएं. आपका घर, गोल्ड, पीपीएफ, पीएफ, बैंक डिपॉजिट, सेविंग सर्टिफिकेट्स और प्रत्येक अन्य सुरक्षित ऐसेट इसमें होना चाहिए. अगर आपको ऐसी इनकम की जरूरत है, जो इनफ्लेशन के साथ बढ़े, तो यह कंपोनेंट हर 10 साल में दोगुना हो जाना चाहिए. यह सुरक्षित और इनकम जेनरेट करने वाला होने की वजह से वैल्यू में नहीं बढ़ेगा.

आपको अपने जीवन के दौरान इसमें इन्वेस्ट करना होगा. इसी वजह से आपको वेल्थ पोर्टफोलियो की जरूरत होती है. यह आपका रिस्की पोर्टफोलियो होता है. इसे उन ऐसेट्स में इन्वेस्ट करें, जिनकी वैल्यू समय के साथ बढ़े, लेकिन शॉर्ट टर्म में यह वोलेटाइल हो सकता है. शेयर्स, म्यूचुअल फंड्स और सेकंड प्रॉपर्टी इसमें शामिल हो सकती है. इस पोर्टफोलियो के बिना आपका कोर पोर्टफोलियो इनफ्लेशन से लड़ने में संघर्ष करता नजर आएगा.

अगर आपको पीपीएफ में 8 फीसदी रिटर्न 15 वर्ष के अवधि में मिल रहा है, तो इक्विटी कंपोनेंट से आपको अपना पैसा ज्यादा समय तक बरकरार रखने और केवल पीपीएफ पर निर्भर रहने की स्थिति से कम बचत करने में मदद मिलेगी. तीसरा आपका फैंसी पोर्टफोलियो है. इसमें कुछ ऐसी चीजें हो सकती हैं, जिनमें रिस्क ज्यादा है, जैसे इक्विटी, डेरिवेटिव और कमोडिटी ट्रेडिंग, प्राइवेट इक्विटी और आर्ट. इनमें लगाई जाने वाली रकम इस बात पर निर्भर करेगी कि आप अन्य दो कंपोनेंट के लिए कितनी रकम निकालते हैं.

5. अपने जीवन के प्रत्येक 10 वर्षों के लिए योजना बनाएं. 40 वर्ष का होने पर ऊपर बताई गई बातों पर ध्यान दें और यह समीक्षा करें कि आपके पास क्या है. 50 वर्ष का होने तक अपनी इनकम को मैप करें. यह देखें कि आप क्या बचा रहे हैं और ज्यादा बचत करें. अपने उधार को कम करें या खत्म कर दें. ऐसे ऐसेट्स बनाएं, जो कम से कम आपके मौजूदा खर्च को आपके 50 वर्ष का होने तक कवर करें. जो भी अतिरिक्त हो, उसे वेल्थ पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट करें. अगर आप 40 की उम्र में अच्छा कर रहे हैं तो आप पाएंगे कि आपके कोर ऐसेट्स नौकरी जाने की स्थिति में आपकी सुरक्षा करेंगे और आपके वेल्थ ऐसेट्स के पास वैल्यू में ग्रोथ के लिए काफी समय होगा.

जब आप 50 वर्ष के हो जाएं तो वेल्थ पोर्टफोलियो को और बढ़ाएं. 60 वर्ष के बाद से अपना लाइफस्टाइल बरकरार रखने के लिए वेल्थ से कोर पोर्टफोलियो में ट्रांसफर करते रहें. अगर इसके बाद भी अतिरिक्त पैसा बचता है, तो आप उससे मजे कर सकते हैं. 70 वर्ष का होने पर अपने वेल्थ पोर्टफोलियो का आकलन करें और जिसकी आपको जरूरत नहीं है, उसे किसी को दिया जा सकता है. 80 वर्ष तक आपके कोर एक्सपेंस घट जाएंगे और आप अपनी सभी वेल्थ को अपने कोर पोर्टफोलियो में ट्रांसफर कर अच्छा जीवन जीने में सक्षम होंगी.

करें ऐसा मेकअप जो कहे ‘डिफाइन योर आइज’

आपकी आंखे बहुत ही अनमोल है, इन्हें किसी भी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए. इसलिए इसके मेकअप से पहले इससे जुड़ी बातों का खास खयाल रखना बहुत जरूरी होता है. आंखों के मेकअप के लिए हर मौसम में बेज, गोल्डन और लाइलैक शेड्स बेस्ट होते हैं. इनके साथ टरक्वॉयज और फूशिया कलर आंखों को खास आकर्षण देता है. आइए जानें आंखों के मेकअप से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में…

1. न्यूट्रल शैडो को आइलिड की क्रीज पर यानी आइरिस के ऊपर लगाएं. अगर कलर ऐड करना चाहती हैं तो वनीला या लाइट कलर से एक स्ट्रोक दें. अच्छी तरह ब्लेंड करें.

2. दोबारा लिड पर लाइट कलर से स्ट्रोक दें. फिर थोडा डार्क कलर क्रीज लाइन पर लगाएं. अपर और लोअर लैश लाइन पर भी डार्क कलर से कवर दें.

3. ब्राउन आइलाइनर आंखों के भीतरी कोने से थोडी दूर से शुरू करते हुए बाहरी कोनों से थोडा बाहर तक लगाएं. ताकि आंखें बडी नजर आएं.

4. डिफाइनिंग मस्कारा लगाना न भूलें. इसका डबल कोट लगाएं. मस्कारा लगाने से पहले लैश को कर्ल जरूर कर लें.

5. आइ पेंसिल शार्पन करने से पहले फ्रीज कर लें ताकि वह टूटे नहीं.

6. फैट क्रेयॉन पेंसिल का इस्तेमाल करें, जो क्रीमी पाउडर्ड टेक्सचर वाली हो. ताकि फैलाने में आसान हो.

7. आंखों के चारों और लाइनर लगा लेने से यानी पूरी आंख पर लाइनर का इस्तेमाल करने से वे छोटी नजर आती हैं न कि बडी. तो लगाते समय इस बात का ध्यान रखें.

पिंक प्रिटी मेकअप

पिंक प्रिटी आई मेकअप करने के लिए आंखों में ब्लैक आई पेंसिल से आंखों को अच्छी तरह से हाईलाइट कर लें, फिर आईलिड पर शिमर वाला पिंक शेड लगाएं और पर्ल कलर को मिला के आईलिड के ऊपर वाले हिस्से में लगाएं. ऊपर और नीचे दोनों पलकों में गाढा मस्कारा लगाएं, साथ में शिमर वाली लिपस्टिक लगाएं.

पिकॉक टच आई मेकअप

आंखों को पिकॉक टच का लुक देने के लिए आप सबसे पहले मोटा और डार्क काजल और ब्लैक या ब्लू आईलाइनर लगाएं. फिर उसके बाद पर्ल और ग्रीन कलर के आईशैडो को आपस में मिलाकर आईलिड पर लगाएं. शैडो को लगाने की शुरूआत कान की तरफ वाले आंखों के कोने से करें और फिर उसे ब्लैंड करते हुए उसे दूसरे कोने तक ले जाएं. आईशैडो को आंखों के चारों तरफ लगाएं यानि काजल के नीचे भी हल्का सा लगाएं. अब इसके बाद ऊपर और नीचे की पलकों में ब्लैक और ग्रीन शेड का मस्कारा एक-एक करके लगाएं इस तरह के आई मेकअप के साथ ब्राउन कलर की लाइट शेड की लिपस्टिक ज्यादा अच्छी लगेगी.

स्मोकी आई लुक मेकअप

स्मोकी आईलुक देने के लिए आंखों में पहले ब्लैक कलर का काजल और आईलाइनर लगाकर आंखों को थोडा बढा आकार दें. फिर उसके बाद ब्लैक और ब्राउन आईशैडो को एक साथ मिलाकर आईलिड पर लगाएं. अब इसके बाद व्हाइट गोल्ड या कॉपर कलर से हाईलाइटिंग करें और ऊपर-नीचे की पलकों पर मस्कारा लगाएं. इसके साथ ऑरेंज शेड की लाइट लिपस्टिक का यूज करें.

क्या वजन कम करने का कमर पर कोई असर नहीं?

बढ़ते वजन से परेशान लोग इस पर काबू पाने के लिये जिम, एक्सरसाइज और विशेष प्रकार की डाइट को भी अपनाते हैं. इनमें से ज्यादातर तरीके कारगर साबित हो भी जाते हैं, लेकिन शायद आपको ये नहीं मालूम होगा कि कुछ खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल कर आसानी से फैट यानी चर्बी को कम कर सकती हैं.

अगर आप चाहती हैं कि आप भी फैशन के दौड़ में रहे तो ऐसे फलों का सेवन करें. जिससे आपको छरछरी काया पा सकती है. आपके साथ होता होगा कि आप अपनी चर्बी तो कम कर लेती है, लेकिन कमर जैसे कि तैसे ही बनी रहती है. जिसके कारण आपको कभी-कभी असंजस महसूस होता है.

रास्पबेरी

रास्पबेरी जो विटामिन सी से भरपूर होती है. इसका सेवन करने से कमर की चर्बी गायब हो जाएगी. इसमें अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है जो कि शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर देता है.

काले और सफेद सेम

इन सेम मे कम कैलोरी और अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है साथ ही इसमें वसा कम मात्रा में उपस्थित होता है. इसका सेवन करने से कमर की चर्बी आसानी से गायब हो जाएगी.

बिना मलाई का दूध

दूध में अधिक मात्रा में विटामिन होता है. जिसका सेवन करने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है. अगर आप चाहती हैं कि कमर पतली हो तो मलाई निकाले हुए दूध का सेवन करें. इस दूध का सेवन कुल वजन कम करने के लिए मदद करता है.

एस्परैगस

विटामिन सी और फोलेट से भरपूर होता है. अगर आप आकर्षक कमर पाना चाहती हैं तो इसका सेवन करें. इसमें शर्करा का स्तर बहुत ही कम होता है. जिससे आपकी कमर की चर्बी गायब हो जाएगी.

ये हैं बॉलीवुड की कुछ बेमेल जोड़ियां

किसी भी बॉलीवुड फिल्म में लीड एक्टर और एक्ट्रेस को कास्ट करने से पहले मेकर्स खूब सोच-विचार करते हैं, लेकिन बावजूद इसके कई बार ऐसा होता है कि फिल्म में कास्ट की जाने वाली लीड जोड़ी बहुत अजीब लगती हैं. तो आज हम आपको बताते हैं ऐसी ही कुछ फिल्मी जोड़ियों के बारे में जिनका नाम उनके बेमेल होने के चलते खूब चर्चा में रहा.

करीना कपूर-इमरान खान

बॉलीवुड के मिस्टर परफेक्शनिस्ट यानि आमिर खान के भांजे इरफान खान ने फिल्म “गोरी तेरे प्यार में” और “एक मैं और एक तू” में करीना कपूर के साथ काम किया था. इन दोनों की जोड़ी को बॉलीवुड की सबसे अजीब जोड़ियों में गिना जाता है क्योंकि करीना कपूर न सिर्फ इमरान से उम्र में काफी बड़ी हैं बल्कि वह लुक के मामले में भी इमरान से ज्यादा मैच्योर दिखती हैं.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी-बिपाशा बसु

2013 में आई फिल्म आत्मा में नवाजुद्दीन सिद्दीकी नजर आए हॉट एंड सेक्सी बिपाशा बसु के साथ. अब बिपाशा जहां अपने लुक्स के लिए मशहूर हैं वहीं नवाज अपने लुक्स से ज्यादा अपनी एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. ये जोड़ी भी फैन्स को कुछ खास जमी नहीं.

राम कपूर-सनी लियोन

एक्टर राम कपूर छोटे पर्दे पर दर्शकों की पसंद हैं, लेकिन जब वह फिल्म कुछ कुछ लोचा है में सनी लियोन के अपोजिट नजर आए तो इसने दर्शकों को कन्फ्यूज कर दिया. सनी लियोन जहां इतनी फिट और ग्लैमरस हैं वहीं उनके अपोजिट बेहद मोटे और अनफिट एक्टर को कास्ट करना दर्शकों की समझ से बाहर रहा.

आमिर खान-साक्षी तंवर

दंगल में इन दोनों की जोड़ी नजर आई. फिल्म में आमिर ने एक हरियाणवी पहलवान की भूमिका निभाई थी और साक्षी उनकी पत्नी के किरदार में थीं. हालांकि साक्षी का रोल फिल्म में सीमित था लेकिन फिर भी ज्यादातर लोग साक्षी को आमिर के साथ पचा नहीं पाए.

तो इसलिए बन रहा है सुशांत सिंह राजपूत का मजाक

आईफा अवॉर्ड्स 2017 में अभिनेता शाहिद कपूर और क्यूट आलिया भट्ट के जलवे खबरों में चल रहे हैं. इन दोनों को ही फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ है. यूं देखा जाए तो आईफा के रंग में पूरा बॉलीवुड रंगा हुआ था, पर इसी बीच सुशांत सिंह राजपूत ने एक ऐसा ट्वीट कर दिया जिससे वे ट्रोल का शिकार हो गए.

उन्होंने आईफा को लेकर ‘हाहाहा’ लिख कर अपने ट्वीटर अकाउंट पर ट्वीट किया है और सच मानें को ऐसा करके उन्होंने एक तरह से तंज कसा है. इतना करते ही, बस फिर आगे क्या था, देखते ही देखते लोगों ने उनका मजाक उड़ाना शुरु कर दिया.

बात तो यहां तक पहुंच गई थी कि किसी एक प्रशंसक ने तो अक्षय कुमार की एक फोटो तक समेंट में शेयर कर दी, जिस पर लिखा हुआ था कि ‘जली ना, तेरी जली ना?’.

इसके अलावा भी कई प्रशंसकों ने अजीब अजीब ट्वीट कर सुशांत का मजाक बनाया. इस सबके बीच कुछ लोग ऐशे भी थे जो सुशांत का साथ भी दे रहे थे और कई लोगों ने उन्हें आगे फिर और कोशिशें करते रहने की सलाह भी दी.

गौरतलब है कि इस 18वें इंटरनेशनल इंडियन फिल्म अकादमी (आईफा) अवार्ड में शाहिद कपूर और आलिया भट्ट के अलावा फिल्म ‘नीरजा’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, अनिरूद्ध रॉय चौधरी को उनकी फिल्म ‘पिंक’ के लिये सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, संगीतकार ए.आर. रहमान को बॉलीवुड में 25 साल पूरे होने पर, अनुपम खेर और शबाना आजमी को क्रमश: ‘एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ और ‘नीरजा’ के लिये सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया. इसके अलावा वरूण धवन को फिल्म ‘ढिशूम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य भूमिका का पुरस्कार तथा जिम सर्भ को फिल्म ‘नीरजा’ में नकारात्मक भूमिका के लिये सर्वश्रेष्ठ विलेन का पुरस्कार दिया गया.

‘आर के’ बैनर के लिए फिल्म निर्देशित करुंगा : रणबीर कपूर

अपनी बात को स्पष्ट और पुरजोर तरीके से रखने के लिए मशहूर अभिनेता रणबीर कपूर अपने किरदारों के साथ भी नित नए प्रयोग करते आए हैं. ‘‘सांवरिया’’ से लेकर अब तक अपने दस साल के करियर में रणबीर कपूर ने ‘वेकअप सिड’, ‘रॉकस्टार’, ‘बर्फी’, ‘यह जवानी है दीवानी’ जैसी कुछ बेहतरीन फिल्में की. लेकिन ‘बेशरम’, ‘रॉय’, ‘बॉम्बे वेलवेट’, ‘तमाशा’ जैसी असफल फिल्मों ने उनके करियर पर बहुत गलत असर डाला. अब रणबीर कपूर की अनुराग बसु निर्देशित फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ प्रदर्शित हुई है, जिसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है. मगर रणबीर कपूर को यकीन है कि इस फिल्म को धीरे धीरे सफलता मिल जाएगी. इस फिल्म में कटरीना कैफ के संग अभिनय करने के साथ ही उन्होंने अनुराग बसु के साथ इस फिल्म का निर्माण किया है.

बतौर अभिनेता स्टारडम हासिल करने पर रणबीर कपूर ने एक मुलाकात में हमसे दावा किया था कि वह अपने दादा जी स्व. राज कपूर के बैनर ‘‘आर के’’ को पुनर्जीवित करना चाहते हैं. मगर जब रणबीर कपूर ने ‘‘जग्गा जासूस’’ से फिल्म निर्माण में कदम रखा, तो वह यह बात भूल गएं. उसके बाद उनके करियर व निजी जीवन में काफी उथल पुथल हुई. ‘जग्गा जासूस’ को बनने में साढे़ तीन वर्ष का समय लग गया.

प्रस्तुत है हाल ही में उनसे हुई बातचीत के अंश.

आप अपने दादा जी के बैनर आर के फिल्मस को पुनः शुरू करना चाहते थे पर अचानक आपने नए बैनर के तहत फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ का निर्माण शुरू किया. क्या इसी वजह से इस फिल्म के निर्माण में साढ़े तीन वर्ष का समय लग गया और फिल्म बेहतर नहीं बन सकी?

ऐसा कुछ नहीं है. देखिए, जब हमने फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ का निर्माण शुरू किया, तो इसमें पचास प्रतिशत भागीदारी मेरी और पचास प्रतिशत भागीदारी अनुराग बसु की थी. यदि हम ‘आर के’ के बैनर तले फिल्म बनाते तो उसमें हम भागीदारी नहीं कर सकते थें. जब मैं फिल्म निर्देशित करूंगा, तो मैं चाहूंगा कि मैं वह फिल्म ‘आर के’ बैनर के लिए निर्देशित करुं. अनुराग बसु बहुत बेहतरीन निर्देशक हैं, ऐसे में यह बहुत ही ज्यादा न्यायसंगत था कि हम पचास प्रतिशत की भागीदारी के साथ यह फिल्म बनाते, जो कि हमने किया.

फिल्म के निर्माण में साढ़े तीन वर्ष लगने की वजह क्या रही, किस तरह की समस्याएं आयीं?

हमें खुद नहीं लगा था कि इतना समय लगेगा. लेकिन यह जिस तरह के जॉनर की फिल्म है, इसमें एडवेंचर भी है. यह बहुत मुश्कि जॉनर की फिल्म है. वैसे हम समय से काफी आगे चलकर काम कर रहे थें. अनुराग बसु इस फिल्म के साथ चार साल से जुड़े रहे. वह दिन भर काम करते रहे, जिससे बेहतरीन फिल्म बन सके पर कुछ समस्याएं ऐसी आती रहीं, जो हमारे वश में नहीं थी जिन पर हम अंकुश नहीं लगा सकते. कुछ चीजें होती रहती हैं. मेरी राय में दर्शक फिल्म देखते समय यह नहीं देखता या सोचता कि फिल्म कितने समय में बनी है. उसे तो एक अच्छी फिल्म की दरकार होती है. वह अच्छी फिल्म देखकर खुश होगी. हमें काफी दिक्कतें हुईं. एक वक्त ऐसा भी आया, जब हमें लगा कि इस फिल्म का निर्माण हमेशा के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए. मगर अनुराग बसु अपने विजन को लेकर जुड़े रहे कि उन्हें यही फिल्म बनानी है. अंततः उन्होंने यही फिल्म बनायी.

आपने अनुराग बसु के निर्देशन में पहले बर्फी की थी. अब जग्गा जासूसकी है. उनको लेकर अब आप क्या सोचते हैं?

अनुराग बसु की खास बात यह है कि वह अभी भी बच्चे हैं. उनके अंदर जो बच्चा है, वह अभी भी बहुत कुछ सीखना व नया करना चाहता है. एक निर्देशक के लिए यह बहुत जरुरी होता है कि वह हमेशा कुछ नया खोजते रहे. इसी के साथ वह बहुत अच्छे इंसान हैं. उन्हें सिनेमा के साथ साथ किरदारों और रिश्तों के बारे में बहुत अच्छी समझ है. हिंदी सिनेमा के मनोरंजन व हमारे देश के जो लोग हैं, उसके बारे में वह बहुत जानते हैं. मेरी राय में उन्होंने एक बार फिर बहुत अच्छी फिल्म बनायी है.

फिल्म ‘‘जग्गा जासूस’’ में पिता पुत्र के रिश्ते की कहानी है. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान आपको अपने पिता के साथ के रिश्ते कितने याद आ रहे थें. कोई ऐसा दृश्य है, जिसमें आपने अपनी निजी जिंदगी की कोई घटना डाली हो?

मेरे व मेरे पिता के बीच एक दीवार है, उम्र का अंतर है, बहुत प्यार है, इज्जत है. लेकिन टूटी फुटी व उसके पिता दो दोस्त हैं. ऐसा नहीं लगता कि उनके बीच उम्र का अंतर है. ऐसा लगता है कि दोनों हमउम्र हैं. उनके बीच बाप बेटे का रिश्ता दो दोस्तों जैसा है.

सिनेमा में आए बदलाव के साथ हीरो में क्या बदलाव आया?

बहुत बदल गया. पहले हीरो परदे पर हीरोगीरी करता था. आज का हीरो चरित्र निभाता है. उस दौर में हीरो, कहानी से बड़ा होता था. मगर अब कहानी, हीरो से बड़ी होती है. इसी के साथ अब हीरोईन का किरदार हीरो के किरदार के समकक्ष हो गया है. अब कहानियां सिर्फ हीरो के बारे में नहीं बल्कि रिशतों के बारे में बन रही है. अब कहानियां बहुत अलग हो गयी हैं. अब नए तरह के किरदार आ रहे हैं. यह बदलाव पूरी तरह से सकारात्मक है.

आप संजय दत्त की बायोपिक फिल्म कर रहे हैं?

जी हां! इस फिल्म को करने से पहले मैंने संजय दत्त को समझने की कोशिश की. मैंने उनकी चाल ढाल, उनके बात करने के अंदाज व लहजे आदि को अपनी फितरत में लाने की कोशिश की. यह आसान नहीं था. मेरी राय में हर फिल्म व हर किरदार नई चुनौतियों के साथ आता है. कलाकार के तौर पर हमारा यह काम है कि हम इसे बेहतर तरीके से अंजाम दें. संजय दत्त की बायोपिक फिल्म में मेरे तीन लुक हैं. इसके लिए मुझे कुणाल गिर ने मुझे ट्रेनिंग दी.

मगर काल्पनिक किरदार में आप अपनी कल्पना से उसे बना सकते हैं. पर रियल जिंदगी के किरदारों को निभाना?

देखिए, जब मैं संजय दत्त की बायोपिक कर रहा हूं, तो मुझे कोई समस्या नहीं हुई. संजय दत्त जो कंट्रोवर्सियल स्टार हैं, उन्होंने बड़ी ईमानदारी व सच्चाई के साथ अपनी पूरी कहानी दी है. उनको राजकुमार हिरानी व मुझ पर विश्वास था. मैंने अपनी तरफ से मेहनत व ईमानदारी के साथ उनकी कहानी को परदे पर उतारने की कोशिश की है. मैं बताना चाहता हूं कि यह इंसान ऐसा है, जिसने कुछ गलतियां की हैं, जिससे हम कुछ सीख सकते हैं.

फिल्मों की असफलता व निजी जिंदगी के रिश्ते जब टूटते हैं, उनको झेलते हुए खुद को मजबूत बनाना कितना कठिन रहा?

मेरी राय में जिंदगी जीना बहुत जरुरी होता है. जब आप असफलता से टकराते हैं, तभी आप बहुत कुछ सीखते हैं. जब रिश्ते टूटते हैं, तो वह आपको जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सिखाते हैं. आपका जो परिवार है, दोस्त है, वह ऐसे समय में आपकी मदद करते हैं. मगर सबसे ज्यादा आप खुद अपनी मदद करते हैं. इस तरह की चीजें आपको खुद को जानने व समझने में मदद करती हैं. असफलता से भी हम बहुत कुछ सीखते हैं. असफलता से हमें यह समझ में आता है कि हम इंसान के तौर पर कहां खड़े हैं. मेरी राय में हम सभी को सफलता के साथ ही असफलता को भी अपनाना चाहिए. जहां तक निजी रिश्तों का सवाल है, तो मैं सोचता हूं कि हमारा जो क्षेत्र है, यानी कि फिल्म उद्योग में हम अपने निजी जीवन के रिश्तों की कड़वाहट या मिठास को नहीं ला सकते. यहां हमें अपने काम और निजी रिश्तों को अलग रखना पड़ता है. पूरी तरह से प्रोफेशनल होना ही पड़ता है. काम व निजी जीवन के रिश्तों के बीच के अंतर को आपको बहुत अच्छी तरह से जानना चाहिए.

मगर निजी जीवन में टूटने वाले रिश्ते इंसान के दिमाग पर असर करते हैं. जिसका असर कैमरे के सामने पहुंचने पर तो होता ही है?

हम जिस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, वहां हमें अपने काम और निजी जिंदगी को बहुत अलग रखना पड़ता है. हम अपनी निजी जिंदगी के गम या सुख को कैमरे के सामने लेकर नहीं जा सकते. हमें तो उसी किरदार के साथ कैमरे के सामने पहुंचना होता है, जिसे हमें उस वक्त जीना होता है.

आप किशोर कुमार की बायोपिक फिल्म भी कर रहे हैं?

जी हां. पर अभी शूटिंग शुरू नहीं की है. हमें इसके लिए कई तरह की इजाजत चाहिए, जिसके लिए काम हो रहा है. मशहूर गायक स्व. किशोर कुमार भारतीय फिल्म उद्योग की ऐसी शख्सियत रहे हैं, जिन्हें मुझे नहीं लगता कि आज की पीढ़ी अच्छी तरह से जानती या पहचानती है. इसलिए उनकी जिंदगी को लोगों तक पहुंचना जरुरी है.

निर्देशन के इरादे हैं?

बिलकुल. फिल्म निर्देशन तो करना ही है और वह भी अपने दादा जी के बैनर के तहत. मगर जब तक मेरे हाथ कोई अच्छी कहानी नहीं लगेगी, तब तक नहीं करुंगा.

नच बलिए शो ने अलग किया इन प्यार करने वालों को

ये बात तो अभी खूब चर्चा में चल रही है कि इस बार डांस रियलिटी शो ‘नच बलिए-8’ का खिताब टीवी और असल जिंदगी में हाल फिलहाल ही शादी के बंधन में बंधे दिव्यांका त्रिपाठी और विवेक दहिया को मिला है. दिव्यांका त्रिपाठी को तो आप सब जानते ही होंगे वह अच्छी डांसर के साथ एक अच्छी एक्टर्स भी है और इनकी उतनी ही अच्छी जोड़ी ‘नच बलिए’ पर भी थी.

वैसे यहां हम आपको एक बात बता देना चाहते हैं कि नच बलिए की कुछ ऐसी जोडियों की भी एक लंबी लिस्ट है, जो कि ये शो के खत्म होते है टूट गईं. तो जानिए वे कौन सी जोड़ी हैं नच बलिए की जो अब साथ नही हैं.

करण पटेल और अमिता चंदेकर

करण पटेल ‘नच बलिए 3’ में गर्लफ्रेंड अमिता चांदेकर के साथ नजर आए थे. शो में लव-डवी मूमेंट से लाइमलाइट बटोरने वाले करण और अमिता का बाहर आने के बाद ब्रेकअप हो गया. वहीं सबसे शॉकिंग बात ये थी कि करण ने बाद में एक इंटरव्यू में अमिता को गर्लफ्रेंड तक माने से इंकार कर दिया था.

गौरव चोपड़ा और नारायणी शास्त्री

ये जोड़ी नच बलिए 2 के दौरान टेलीविजन पर नजर आई थी, पर कंटेस्टेंट गौरव चोपड़ा और नारायणी शास्त्री के रिलेशनशिप का भी यही हल हुआ. कुछ साल तक डेटिंग के बाद ये कपल हो गया इस ब्रेकअप की वजह गौरव का धोखा बताया गया. दरअसल गौरव, नारायणी की डेट करते वक्त की को-स्टार मौनी राय से नजदीकियां बढ़ गई थीं. ऐसे में इस कपल ने अलग हो जाना ही बेहतर समझा. हालांकि गौरव और नारायणी अब भी अच्छे दोस्त हैं.

सारा खान और प्रयास छाबरा

डांस रियलिटी शो ‘नच बलिए 6’ में सारा ने अपने बॉयफ्रेंड प्रयास के साथ पार्टिसिपेट किया था. शो में दोनों अपन नजदीकियों को लेकर काफी खुर्खियों में रहे, लेकिन शो से बाहर आने के बाद पर्सनल इश्यूज के चलते ये कपल अलग हो गया.

कुशाल टंडन और एलेना बोइवा

‘नच बलिए’ सीजन-5 में गर्लफ्रेंड एलेना के साथ नजर आए कुशाल टंडन का भी शो से एलिमिनेट होते ही ब्रेकअप हो गया था. एलेना के अलग होने के बाद कुशाल ने एक्ट्रेस गौहर खान को भी डेट किया, लेकिन कुछ टाइम ये कपल भी अलग हो गया.

जतिन शाह और प्रिया भाटिया

टीवी शो ‘सुर्यपुत्र कर्ण’ फेम प्रिया भाटिया ने शो नच बलिए 4 में पति जतिन शाह के साथ पार्टिसिपेट किया था. शो से बाहर आने के बाद इस कपल के बीच काफी अनबन बढ़ गई थी. ऐसे में इस कपल ने तलाक लेना ही बेहतर समझा.

कपिल निर्मल और अंजली अब्रोल

बतौर कपल शो में नजर आए कपिल और अंजली का शो से बाहर आने के तुरंत बाद ब्रेकअप हो गया था. ब्रेकअप पर कपल का कहना था. ‘हम एक दुसरे के लिए नहीं बने थे. इसलिए ये रिलेशनशिप खत्म करना ही सही डिसीजन था.

अमिता सेठी और विकास सेठी

अमिता और विकास ‘नच बलिए 3’ के पॉवर हाउस कंटेस्टेंट रहे. दोनों शो में फिनाले के बहुत करीब आकर एलिमिनेट हुए. हालांकि शो से बाहर आने के कुछ टाइम बाद ही इस कपल का डायवोर्स हो गया था.

राखी सावंत और अभिषेक अवस्थी

‘नच बलिए 3’ के कंटेस्टेंट राखी और अभिषेक का ब्रेकअप काफी सुर्खियों में रहा. शो से बाहर आने के बाद वेलेंटाइन डे के दिन किसी बात पर राखी ने बॉयफ्रेंड अभिषेक को मीडिया के सामने थप्पड़ जड़ दिया था. हालांकि बाद में राखी ने उन्हें माफ़ भी कर दिया. लेकिन इस घटना के बाद ये रिलेशन ज्यादा दिन तक नहीं चल सका और इस कपल का ब्रेकअप हो गया.

पूजा बेदी और हनीफ हिलाल

पूजा और हनीफ भी इसी लिस्ट का हिस्सा हैं. शो से बाहर आने के कुछ महीने बाद ही इस कपल का ब्रेकअप हो गया. बता दें, कपल ने लगभग 1 साल तक एक दुसरे को डेट किया था.

डेलनाज ईरानी और राजीव पॉल

डेलनाज पति राजीव के साथ ‘नच बलिए’ सीजन 1 में नजर आईं. दोनों ने अपनी केमेस्ट्री से सभी को काफी इम्प्रेस किया. हर कपल की तरह इनके रिश्ते में भी प्रॉब्लम्स आने लगीं. ऐसे में शादी के 14 साल ही ये कपल अलग हो गया. डेलनाज ने तलाक की वजह पति का एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर बताया, हालांकि राजीव ने इन खबरों को इंकार किया था.

श्वेता केसवाली और अलेक्स ओनील

श्वेता और अलेक्स ‘नच बलिए 3’ के उन कपल्स में शुमार हैं जो शो से बाहर आने के बाद ही शादी के बंधन में बंध गए. दोनों ने पहले 2006 में शादी की. फिर इस कपल ने अक्टूबर 2008 में कोर्ट, बुद्ध, हिन्दू और क्रिश्चन रीति-रिवाज को मिलाकर कुल 4 तरह से शादी की. लेकिन 2011 में ये कपल भी अलग हो गया.

कविता कौशिक और करण ग्रोवर

कविता कैशिक और करण ग्रोवर ‘नच बलिए’ सीजन 3 के फेमस कपल रहे. हालांकि ये दोनों भी शो के बाद साथ नहीं रहे. कुछ सालों की डेटिंग के बाद साल 2008 में ये कपल अलग हो गया.

रेशमी घोष और अमित गुप्ता

एक टीवी शो के सेट पर मिलने के बाद रेशमी और अमित ने एक-दुसरे को डेट करना शुरू किया था. जिसके बाद इस कपल ने ‘नच बलिए 4’ में पार्टिसिपेट किया. शो से निकलने के बाद दोनों के बीच काफी मिस अंडरस्टैंडिंग होने लगी और आखिकार 2 साल बाद इस कपल का भी ब्रेकअप हो गया.

बुढ़ापे पर भारी बच्चों की शिक्षा

मई जून में बच्चों की बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आने के साथ ही मांबाप का आर्थिक मोरचे पर इम्तिहान शुरू हो जाता है. जुलाई से शिक्षासत्र शुरू होते ही अभिभावकों में ऐडमिशन दिलाने की भागदौड़ शुरू हो जाती है. बच्चे को किस कोर्स में प्रवेश दिलाया जाए? डिगरी या प्रोफैशनल कोर्स बेहतर रहेगा या फिर नौकरी की तैयारी कराई जाए? इस तरह के सवालों से बच्चों समेत मांबाप को दोचार होना पड़ता है.

शिक्षा के लिए आजकल सारा खेल अंकों का है. आगे उच्च अध्ययन के लिए बच्चों और अभिभावकों के सामने सब से बड़ा सवाल अंकों का प्रतिशत होता है. 10वीं और 12वीं की कक्षाओं में अंकों का बहुत महत्त्व है. इसी से बच्चे का भविष्य तय माना जा रहा है. नौकरी और अच्छा पद पाने के लिए उच्चशिक्षा का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है.

प्रतिस्पर्धा के इस दौर में महंगाई चरम पर है और मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों के भविष्य को ले कर की जाने वाली चिंता से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. अभिभावकों को शिक्षा में हो रहे भेदभाव के साथसाथ बाजारीकरण की मार को भी झेलना पड़ रहा है. ऊपर से हमारी शिक्षा व्यवस्था में वर्णव्यवस्था भी एक खतरनाक पहलू है.

गहरी निराशा

सीबीएसई देश में शिक्षा का एक प्रतिष्ठित संस्थान माना जाता है पर राज्यस्तरीय बोर्ड्स की ओर देखें तो पता चलता है कि देश में 12वीं क्लास के ज्यादातर छात्र जिन स्कूलों में पढ़ रहे हैं वहां हालात ठीक नहीं है.

हाल ही बिहार माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के 12वीं के नतीजों ने राज्य में स्कूली शिक्षा पर गहराते संकट का एहसास कराया है. यहां पर कुल छात्रों में सिर्फ 34 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए. इस साल 13 लाख में से 8 लाख से ज्यादा फेल होना बताता है कि स्थिति बेहद खराब है. छात्रों के मांबाप गहरी निराशा में हैं.

देश में करीब 400 विश्वविद्यालय और लगभग 20 हजार उच्चशिक्षा संस्थान हैं. मोटेतौर पर इन संस्थानों में डेढ़ करोड़ से ज्यादा छात्र पढ़ाई कर रहे हैं. इन के अलावा हर साल डेढ़ से पौने 2 लाख छात्र विदेश पढ़ने चले जाते हैं.

हर साल स्कूलों से करीब 2 करोड़ बच्चे निकलते हैं. इन में सीबीएसई और राज्यों के शिक्षा बोर्ड्स के स्कूल शामिल हैं. इतनी बड़ी तादाद में निकलने वाले छात्रों के लिए आगे की पढ़ाई के लिए कालेजों में सीटें उपलब्ध नहीं होतीं, इसलिए प्रवेश का पैमाना कट औफ लिस्ट का बन गया. ऊंचे मार्क्स वालों को अच्छे कालेज मिल जाते हैं. प्रवेश नहीं मिलने वाले छात्र पत्राचार का रास्ता अपनाते हैं या फिर नौकरी, कामधंधे की तैयारी शुरू कर देते हैं.

सीबीएसई सब से महत्त्वपूर्ण बोर्ड माना जाता है. इस वर्ष सीबीएसई में 12वीं की परीक्षा में करीब साढे़ 9 लाख और 10वीं में 16 लाख से ज्यादा बच्चे बैठे थे. 12वीं का परीक्षा परिणाम 82 प्रतिशत रहा. इस में 63 हजार छात्रों ने 90 प्रतिशत अंक पाए. 10 हजार ने 95 प्रतिशत.

कुछ छात्रों में से करीब एकचौथाई को ही ऐडमिशन मिल पाता है. बाकी छात्रों के लिए प्रवेश मुश्किल होता है. 70 प्रतिशत से नीचे अंक लाने वालों की संख्या लाखों में है जो सब से अधिक है. इन्हें दरदर भटकना पड़ता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय की बात करें तो नामांकन की दृष्टि से यह दुनिया के सब से बड़े विश्वविद्यालयों में से एक है. लगभग डेढ़ लाख छात्रों की क्षमता वाले इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत 77 कालेज और 88 विभाग हैं. देशभर के छात्र यहां प्रवेश के लिए लालायित रहते हैं पर प्रवेश केवल मैरिट वालों को ही मिल पाता है. यानी 70-75 प्रतिशत से कम अंक वालों के लिए प्रवेश नामुमकिन है.

सब से बड़ी समस्या कटऔफ लिस्ट में न आने वाले लगभग तीनचौथाई छात्रों और उन के अभिभावकों के सामने रहती है. उन्हें पत्राचार का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है या फिर नौकरी, कामधंधे की तैयारी शुरू करनी पड़ती है.

मांबाप बच्चों के भविष्य के लिए कुरबानी देने को तैयार हैं. जुलाई में शिक्षासत्र शुरू होते ही अभिभावकों में ऐडमिशन की भागदौड़ शुरू हो जाती है. कोचिंग संस्थानों की बन आती है. वे मनमाना शुल्क वसूल करने में जुट जाते हैं और बेतहाशा छात्रों को इकट्ठा कर लेते हैं. वहां सुविधाओं के आगे मुख्य पढ़ाईर् की बातें गौण हो जाती हैं.

ऐसे में मांबाप के सामने सवाल होता है कि क्या उन्हें अपना पेट काट कर बच्चों को पढ़ाना चाहिए? मध्यवर्गीय मांबाप को बच्चों की पढ़ाई पर कितना पैसा खर्च करना चाहिए? आज 10वीं, 12वीं कक्षा के बच्चे की पढ़ाई का प्राइवेट स्कूल में प्रतिमाह का खर्च लगभग 10 से 15 हजार रुपए है. इस में स्कूल फीस, स्कूलबस चार्ज, प्राइवेट ट्यूशन खर्च, प्रतिमाह कौपीकिताब, पैनपैंसिल, स्कूल के छोटेमोटे एक्सट्रा खर्च शामिल हैं.

मांबाप का इतना खर्च कर के अगर बच्चा 80-90 प्रतिशत से ऊपर मार्क्स लाता है, तब तो ठीक है वरना आज बच्चे की पढ़ाई का कोई अर्थ नहीं समझा जाता. यह विडंबना ही है कि गुजरात में बोर्ड की परीक्षा में 99.99 अंक लाने वाले छात्र वर्शिल शाह ने डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस बनने के बजाय धर्र्म की रक्षा करना ज्यादा उचित समझा. उस ने संन्यास ग्रहण कर लिया.

बढ़ती बेरोजगारी

यह सच है कि शिक्षा के बावजूद बेरोजगारी देश के युवाओं को लील रही है. पिछले 15 सालों के दौरान 99,756 छात्रों ने आत्महत्या कर ली. ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के हैं. ये हालात बताते हैं कि देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी है. 12वीं पढ़ कर निकलने वाले छात्रों के अनुपात में कालेज उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे में छात्रों को आगे की पढ़ाई के लिए ऐडमिशन नहीं मिल पाता. छात्र और उन के मांबाप के सामने कितनी विकट मुश्किलें हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद बेरोजगारी की समस्या अधिक बुरे हालात पैदा कर रही है.

देश की शिक्षाव्यवस्था बदल गई है. आज के दौर में पढ़ाई तनावपूर्ण हो गई है. अब देश में शिक्षा चुनौतीपूर्ण, प्रतिस्पर्धात्मक हो चुकी है और परिणाम को ज्यादा महत्त्व दिया जाने लगा है. बच्चों को पढ़ानेलिखाने के लिए मांबाप पूरी कोशिश करते हैं. छात्रों पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए दबाव रहता है. कई बार ये दबाव भाई, बहन, परिवार, शिक्षक, स्कूल और समाज के कारण होता है. इस तरह का दबाव बच्चे के अच्छे प्रदर्शन के लिए बाधक होता है.

जहां तक बच्चों का सवाल है, कुछ बच्चे शैक्षणिक तनाव का अच्छी तरह सामना कर लेते हैं पर कुछ नहीं कर पाते और इस का असर उन के व्यवहार पर पड़ता है.

असमर्थता को ले कर उदास छात्र तनाव से ग्रसित होने के कारण पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं या कम मार्क्स ले कर आते हैं. बदतर मामलों में तनाव से प्रभावित छात्र आत्महत्या का विचार भी मन में लाते हैं और बाद में आत्महत्या कर लेते हैं. इस उम्र में बच्चे नशे का शिकार भी हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मांबाप की अपेक्षा भी होती है कि बच्चे अच्छे मार्क्स ले कर आएं, टौप करें ताकि अच्छे कालेज में दाखिला मिल सके या अच्छी जौब लग सके.

दुख की बात है कि हम एक अंधी भेड़चाल की ओर बढ़ रहे हैं. कभी नहीं पढ़ते कि ब्रिटेन में 10वीं या 12वीं की परीक्षाओं में लड़कों या लड़कियों ने बाजी मार ली. कभी नहीं सुनते कि अमेरिका में बोर्ड का रिजल्ट आ रहा है. न ही यह सुनते हैं कि आस्ट्रेलिया में किसी छात्र ने 99.5 फीसदी मार्क्स हासिल किए हैं पर हमारे यहां मईजून के महीने में सारा घरपरिवार, रिश्तेदार बच्चों के परीक्षा परिणाम के लिए एक उत्सुकता, भय, उत्तेजना में जी रहे होते हैं. हर मांबाप, बोर्ड परीक्षा में बैठा बच्चा हर घड़ी तनाव वअसुरक्षा महसूस कर रहा होता है.

कर्ज की मजबूरी

मैरिट लिस्ट में आना अब हर मांबाप, बच्चों के लिए शिक्षा की अनिवार्य शर्त बन गई है. मांबाप बच्चों की पढ़ाईर् पर एक इन्वैस्टमैंट के रूप में पैसा खर्र्च कर रहे हैं. यह सोच कर कर्ज लेते हैं मानो फसल पकने के बाद फल मिलना शुरू हो जाएगा पर जब पढ़ाई का सुफल नहीं मिलता तो कर्ज मांबाप के लिए भयानक पीड़ादायक साबित होने लगता है.

मध्यवर्गीय छात्रों के लिए कठिन प्रतियोगिता का दौर है. इस प्रतियोगिता में वे ही छात्र खरे उतरते हैं जो असाधारण प्रतिभा वाले होते हैं. पर ऐसी प्रतिभाएं कम ही होती हैं. मध्यवर्ग में जो सामान्य छात्र हैं, उन के सामने तो भविष्य अंधकार के समान लगने लगता है. इस वर्ग के मांबाप अकसर अपने बच्चों की शैक्षिक उदासीनता यानी परीक्षा में प्राप्त अंकों से नाराज हो कर उन के साथ डांटडपट करने लगते हैं.

उधर निम्नवर्गीय छात्रों के मांबाप अधिक शिक्षा के पक्ष में नहीं हैं. कामचलाऊ शिक्षा दिलाने के बाद अपने व्यवसाय में हाथ बंटाने के लिए लगा देते हैं.

एचएसबीसी के वैल्यू औफ एजुकेशन फाउंडेशन सर्वेक्षण के अनुसार, अपने बच्चों को विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा के लिए तीनचौथाई मांबाप कर्ज लेने के पक्ष में हैं. 41 प्रतिशत लोग मानते हैं कि अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च करना सेवानिवृत्ति के बाद के लिए उन की बचत में योगदान करने से अधिक महत्त्वपूर्ण है.

एक सर्वे बताता है कि 71 प्रतिशत अभिभावक बच्चों की शिक्षा के लिए कर्ज लेने के पक्ष में हैं.

अब सवाल यह उठता है कि मांबाप को क्या करना चाहिए? मांबाप को देखना चाहिए कि वे अपने पेट काट कर बच्चों की पढ़ाई पर जो पैसा खर्च कर रहे हैं वह सही है या गलत. 10वीं और 12वीं कक्षा के बाद बच्चों को क्या करना चाहिए, इन कक्षाओं में बच्चों के मार्क्स कैसे हैं? 50 से 70 प्रतिशत, 70 से 90 प्रतिशत अंक और 90 प्रतिशत से ऊपर, आप का बच्चा इन में से किस वर्ग में आता है.

अगर 90 प्रतिशत से ऊपर अंक हैं तो उसे आगे पढ़ाने में फायदा है. 70 से 80 प्रतिशत अंक वालों पर आगे की पढ़ाई के लिए पैसा खर्च किया जा सकता है. मगर इन्हें निजी संस्थानों में प्रवेश मिलता है जहां खर्च ज्यादा है और बाद में नौकरियां मुश्किल से मिलती हैं. इसी वर्ग के बच्चे बिगड़ते भी हैं और अनापशनाप खर्च करते हैं.

तकनीकी दक्षता जरूरी

कर्ज ले कर पढ़ाना जोखिमभरा है पर यदि पैसा हो तो जोखिम लिया जा सकता है. अगर 70, 60 या इस से थोड़ा नीचे अंक हैं तो बच्चे को आगे पढ़ाने से कोई लाभ नहीं होगा पर शिक्षा दिलानी जरूरी होती है. यह दुविधाजनक घाटे का सौदा है.

इन छात्रों को सरकारी संस्थानों में प्रवेश मिल जाता है जहां फीस कम है. 36 से 50 प्रतिशत अंक वाले निम्न श्रेणी में गिने जाते हैं. इन बच्चों के मांबाप को चाहिए कि वे इन्हें अपने किसी पुश्तैनी व्यापार या किसी छोटी नौकरी में लगाने की तैयारी शुरू कर दें.

ऐसे बच्चों को कोई तकनीकी टे्रड सिखाया जा सकता है. कंप्यूटर, टाइपिंग सिखा कर सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में क्लर्क जैसी नौकरी के प्रयास किए जा सकते हैं. थोड़ी पूंजी अगर आप के पास है तो ऐसे बच्चों का छोटामोटा व्यापार कराया जा सकता है.

शिक्षा के लिए मांबाप पैसों का इंतजाम कर्ज या रिश्तेदारों से उधार ले कर या जमीनजायदाद बेच कर करते हैं. यह कर्ज बुढ़ापे में मांबाप को बहुत परेशान करता है. ऐसे में कम मार्क्स वाले बच्चों के लिए आगे की पढ़ाईर् पर कर्ज ले कर खर्च करना बुद्धिमानी नहीं है.

देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों में कम अंकों वाले छात्रों को मोटा पैसा ले कर भर लिया जाता है पर यहां गुणवत्ता के नाम पर पढ़ाई की बुरी दशा है. एक सर्वे में कहा गया है कि देशभर से निकलने वाले 80 प्रतिशत से ज्यादा इंजीनियर काम करने के काबिल नहीं होते. केवल इंजीनियर ही नहीं, आजकल दूसरे विषयों के ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट छात्रों के ज्ञान पर भी सवाल खड़े होते रहते हैं. प्रोफैशनलों की काबिलीयत भी संदेह के घेरे में है.

मांबाप को देखना होगा कि आप का बच्चा कहां है? किस स्तर पर है? मध्यवर्ग के छात्र को प्रत्येक स्थिति में आत्मनिर्भर बनाना होगा क्योंकि मांबाप अधिक दिनों तक उन का बोझ नहीं उठा सकते.

शिक्षा का पूरा तंत्र अब बदल रहा है. मांबाप अब 12वीं के बाद दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रम यानी पत्राचार के माध्यम से भी बच्चों को शिक्षा दिला सकते हैं. दूरस्थ शिक्षा महंगी नहीं है. इस माध्यम से आसानी से किसी भी बड़े व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में बहुत कम फीस पर प्रवेश लिया जा सकता है. कई छोटे संस्थान भी किसी विशेष क्षेत्र में कौशल को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. इस तरह यह पढ़ाई मांबाप के बुढ़ापे पर भारी भी नहीं पड़ेगी.          

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