धीरे-धीरे दुनिया के सिर चढ़ रहा है ‘डेसपासीतो’, पर ये है क्या

साल 2012 में दक्षिण कोरिया के गायक साई (PSY) का गाना ‘Gangnam Style’ जैसे लोकप्रिय हुआ था और दुनियाभर में इस गाने के पीछे लोग पागल हो गए थे.

‘Despacito’ एक ऐसा ही स्पैनिश गाना है जिसके बोल लोगों को समझ नहीं आ रहे हैं लेकिन इसे जमकर सुना जा रहा है.

ये एक सामान्य रैप सॉन्ग है और इसे आप हनी सिंह या बादशाह के किसी गाने से कंपेयर कर सकते हैं और गाने के बोल का मतलब है, धीरे धीरे या Slowly.

लेकिन इस गाने के चर्चा में आने का कारण है इस गाने की जबर्दस्त वीडियोग्राफी जिसमे प्युर्तो रिको के मशहूर रैपर डैडी यैंकी और पॉप स्टार लुई फोंसी ने गायिकी का जलवा दिखाया है.

इस गाने के चर्चा में आने का कारण मशहूर पॉप सिंगर जस्टिन बीबर भी हैं क्योंकि इसके एक वर्जन में जस्टिन ने भी जुगलबंदी की है.

हालांकि एक लाइव परफॉर्मेंस के दौरान जस्टिन ये भूल गए थे कि इस गाने के बोल क्या हैं और इसके लिए उन्हें दर्शकों की हूटिंग का शिकार भी होना पड़ा था.

लेकिन जस्टिन बीबर ने इस गाने में हिस्सेदारी कर इस स्पैनिश गाने को एक नई ऑडियंस दे दी और गाना चार्टबस्टर बन गया.

जस्टिन बीबर के गाने का कोई वीडियो नहीं बनाया गया है लेकिन एक गाने के रुप में ये यूट्यूब पर उपलब्ध है और इस गाने को आप यहां सुन सकते हैं.

समझ से बाहर

अगर इस गाने को सुनने के बाद आप इसके एक भी शब्द को नहीं समझ पाए तो चिंता की बात नहीं है.

क्योंकि दुनियाभर में ऐसे कई लोग हैं जो इस गाने पर झूम रहे हैं बिना एक भी शब्द को समझे.

आपकी जानकारी के लिए हमने बता तो दिया ही है कि ये एक रोमांटिक गाना है जिसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका को ‘धीरे धीरे'(Despacito) प्यार करने के लिए कह रहा है.

 

लेकिन दुनिया भर में इस गाने को सुनने वाले इसे एक अलग तरह का मजाक बना चुके हैं और स्पैनिश न जानने वालों की डेस्पासीटो गाने की ये कोशिश आपको बेहद हसाएंगी.

जग्गा जासूस : कटरीना नहीं थी रणबीर की पसंद

रणबीर कपूर और कटरीना कैफ की फिल्म ‘जग्गा जासूस’ इन दिनों सुर्खियों में है. फिल्म की कहानी और रणबीर-कटरीना के ब्रेकअप के अलावा इसकी एक वजह ये है कि ये दोनों अलग होने के बाद पर्दे पर साथ नजर आ रहे हैं.

फिल्म ‘जग्गा जासूस’ 14 जुलाई को रिलीज होने जा रही है. रणबीर और कटरीना साथ मिलकर फिल्म का प्रचार कर रहे हैं. फिल्म ‘जग्गा जासूस’ जब शुरू हुई थी तब रणबीर और कटरीना एक रिश्‍ते में थे और लगभग सभी यह मान रहे थे कि इस फिल्‍म से पहली बार प्रोड्यूसर बन रहे रणबीर कपूर ने ही कटरीना को इस फिल्‍म में लेने का फैसला लिया होगा.

अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं तो ठहरिए, क्‍योंकि यह सच नहीं है. दरअसल यह खुलासा खुद रणबीर कपूर ने किया है कि इस फिल्‍म के लिए कटरीना कैफ उनकी नहीं बल्कि निर्देशक अनुराग बसु की पसंद थीं.

फिल्म प्रमोशन के दौरान जब रणबीर से पुछा गया कि इस फिल्‍म में कटरीना कैफ किसकी पसंद थीं तो रणबीर ने तुरंत कहा, ‘ये मेरी पसंद नहीं थीं. अनुराग दादा ने जग्गा जासूस के लिए कटरीना को चुना और ये उन्हीं की पसंद थीं. मैंने कभी भी किसी निर्माता या निर्देशक को ये नहीं कहा कि इस फिल्म में ये हीरोइन होनी चाहिए या कभी भी किसी निर्देशक पर अपनी पसंद और नापसंद को नहीं थोपा है.’

रणबीर कपूर ने कहा, ‘मेरा मानना है कि किसी भी निर्देशक का अपना एक विजन होता है और उस विजन के आधार पर ही वह किसी फिल्‍म के लिए कलाकार को देखता और चुनता है.’

‘जग्गा जासूस’ से पहले रणबीर और कटरीना ने फिल्म ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ और ‘राजनीति’ में साथ काम किया है. इन दोनों की यह फिल्‍में काफी सफल रही थीं और इन दोनों की केमिस्‍ट्री काफी पसंद की गई थी.

ढिंचक पूजा को बहू बनाना चाहता है ये पाकिस्तानी सिंगर

‘सेल्फी मैंने ले ली आज’, ‘स्वैग वाली टोपी’, ‘दारू-दारू’ और ‘दिलों का शूटर’ जैसे गानों से इंटरनेट पर धमाल मचा चुकी ढिंचैक पूजा की आवाज अब पाकिस्तान तक पहुंच चुकी है. बस अंतर यह है कि पूजा के गाने ‘सेल्फी मैंने ले ली आज’ को पाकिस्तान के एक युवक ने कुछ अपने अंदाज में पेश किया है.

पाकिस्तानी रैपर ने एक ढिंचैक पूजा को डेडीकेट करते हुए एक गाना रिलीज किया है. हनी किंग नाम से मशहूर इस रैपर का दिल ढिंचैक पूजा पर आ गया है. शायद यही वजह है कि गाने में वो अपनी मां से कह रहे हैं कि उन्हें ढिंचैक पूजा ही बहू के रूप में चाहिए.

वीडियो में ढिंचैक पूजा की तस्वीर भी दिखाई दे रही है. हनी किंग पूरे गाने में सिर्फ ढिंचैक पूजा की तारीफ करते दिख रहे हैं. गाने में वो बार-बार कह रह हैं कि उन्हें ढिंचैक पूजा से प्यार हो गया है और वो मां से कहते दिख रहे हैं कि मुझे बहू मिल गई है.

हालांकि इस युवक ने गाने को बहुत ही शानदार तरीके से पेश किया है, लेकिन इसके बावजूद इनका गाना इंटरनेट पर वायरल नहीं हुआ. बता दें, व्यूज के मामले में इस युवक का गाना पूजा के गानों के व्यूज के कहीं अगल बगल भी दिखाई नहीं दे रहा है.

मीठे में बनाएं अंजीर पुडिंग

सामग्री

4 सूखे अंजीर 3-4 घंटे पानी में भीगे हुए

150 ग्राम खोया

100 एमएल दूध

50 ग्राम चीनी पिसी हुई

1 छोटा चम्मच पिस्ता कटा हुआ

थोड़ी सी पुदीना पत्ती कटी हुई

1/2 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

4-5 बादाम कटे हुए

विधि

अंजीरों का मिक्सी में पेस्ट बना लें. अब दूध और मावे को कड़ाही में गरम कर के रबड़ी बनाएं. इस में चीनी और इलायची पाउडर अच्छी तरह मिलाएं और ठंडा कर लें.

फिर इसे अंजीर पेस्ट के साथ मिक्सी में ब्लैंड करें. मिश्रण को ठंडा करने के लिए 1 घंटा फ्रिज में रखें. फिर बाउल्स में निकाल बादाम, पिस्ते और पुदीनापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: वीणा गुप्ता

दिखावे की यारी जेब पर भारी

टीनएजर्स दिखावे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. खुद के स्टेटस के लिए ऐसे फ्रैंड्स बनाते हैं जो अमीर होते हैं ताकि ग्रुप में सब उन्हें भी पूछें. तभी तो रिंकू ने प्रिया, जो उस की बैस्ट फ्रैंड थी, की खातिर अपनी सारी पौकेटमनी उड़ा दी. यहां तक कि प्रिया पर अपना इंप्रैशन जमाने के लिए अपने बर्थडे गिफ्ट्स तक उसे दे दिए. भले ही पौकेट में पैसे नहीं थे, लेकिन प्रिया की खुशी के लिए दोस्तों से उधार मांग कर उसे महंगे रैस्टोरैंट में डिनर करवाया, मौल्स से शौपिंग करवाई, यहां तक कि उस के लिए अपना कैरियर तक चौपट कर दिया और प्रिया ने एक पल भी नहीं लगाया उस से दोस्ती तोड़ने में.

ऐसा रिंकू के साथ ही नहीं, बल्कि अधिकांश किशोरों के साथ होता है. वे दिमाग से नहीं बल्कि दिल से काम लेते हैं और बेवकूफ बन जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि दिखावे के चक्कर में न फंसें और ऐसे फ्रैंड्स बनाएं जो आप की तरह ही हों और शोऔफ के चक्कर में न पड़ते हों.

क्या क्या करते हैं दिखावे के लिए

घर की जगह बाहर पार्टी

फ्रैंड्स की देखादेखी कि पिछली बार उन्होंने अपने बर्थडे पर सभी फ्रैंड्स को मूवी दिखाने के साथसाथ महंगे होटल में लंच भी करवाया था तो इस बार हम भी पीछे क्यों रहें. हम इस बार अपना बर्थडे कुछ अलग अंदाज में सैलिब्रेट करेंगे, भले ही इस के लिए मम्मीपापा से लड़ाई करनी पड़े.

इस के लिए वे कई दिन पहले से तैयारी शुरू कर देते हैं और यहां तक कि कई बार तो पार्टी के लिए ड्रैसकोड तक रखते हैं ताकि उन की शान में कोई कमी न आने पाए. पार्टी एकदम धांसू करते हैं कि देखने वाले देखते रह जाएं. भले ही इस के लिए उन की पेरैंट्स से बोलचाल बंद हो जाए. बस, किसी भी कीमत पर उन की इमेज डाउन नहीं होनी चाहिए.

महंगे व ब्रैंडेड गिफ्ट्स

भले ही किसी छोटी शौप से गिफ्ट अच्छा व सस्ता मिल जाए, लेकिन वे ब्रैंडेड चीजें ही फ्रैंड्स को गिफ्ट देना पसंद करते हैं. उन की सोच यही होती है कि गिफ्ट पर ब्रैंड नेम होने से ही दोस्त पर इंप्रैशन पड़ेगा और उसे लगेगा कि देखो, मेरे स्पैशल दिन मेरे दोस्त ने कितना कीमती तोहफा दिया है और देखने वालों के बीच भी उस की खूब वाहवाही होगी. ऐसा करते वक्त वे एक बार भी यह नहीं सोचते कि ऐसा कर के सिर्फ उन की जेब ही ढीली होगी.

ब्रैंडेड कपड़े

जब फ्रैंड सर्किल हाईफाई हो तो लोकल मार्केट से कपड़े खरीदने का सवाल ही नहीं उठता, तभी तो उन का हमेशा ब्रैंडेड कपड़े खरीदने पर जोर रहता है ताकि जब भी फ्रैंड्स के बीच जाएं तो सब कहें, ‘वाउ क्या शर्ट पहनी है, वाट अ यूनीक शर्ट’ कहे बिना कोई रहे और साथ ही यह भी कहे कि राहुल के ब्रैंडेड कपड़ों का तो जवाब नहीं. इसी तारीफ की खातिर वे ब्रैंडेड कपड़े ही खरीदते हैं.

सोशल स्टेटस मैंटेन करने के लिए बार जाना

जब फ्रैंड्स अकसर ग्रुप में यह कहते मिलते हैं कि हम तो कल अपने कजिंस के साथ बार गए थे, ऐसा पहली बार नहीं बल्कि हम तो महीने में 2-3 बार चले ही जाते हैं तो यह सुन कर अकसर टीनएजर्स खुद का सोशल स्टेटस मैंटेन करने के लिए वहां जाना शुरू कर देते हैं, जिस के लिए भले ही उन्हें बाकी चीजों के साथ समझौता करना पड़े, क्योंकि वे अपने फ्रैंड्स से किसी भी कीमत पर यह सुनना पसंद नहीं करते कि यार, बार वगैरा नहीं जाते. यह बात उन की पर्सनैलिटी पर भी विपरीत प्रभाव डालती है.

झूठी शान की खातिर सब की हैल्प को तैयार

भले ही जेब में पैसे न हों, लेकिन फिर भी झूठी शान दिखाने के लिए वे सब की हैल्प करने को तैयार रहते हैं और मना करना नहीं जानते. यदि किसी फ्रैंड ने कहा कि यार, मेरा पर्स चोरी हो गया है और आज मुझे शौपिंग करना भी बहुत जरूरी है तो झट से उस की हैल्प के लिए अपनी ट्यूशन फी में से उसे पैसे दे देते हैं ताकि दोस्तों में शान बनी रहे. इस चक्कर में वे अपना ही नुकसान कर बैठते हैं.

आउटिंग का प्रोग्राम बनाना

फ्रैंड्स के कहने पर कि इस बार आउटिंग पर बाहर जाएंगे पौकेट अलाउ न करने के बावजूद हामी भर देते हैं और जब पेरैंट्स मना करते हैं तो सीधा सा जवाब देते हैं कि आप तो हमेशा पैसों की कमी का ही रोना रोते रहते हैं. ऐसे में जिद कर के अपना इंप्रैशन जमाने के लिए फ्रैंड्स के साथ आउटिंग पर जाने का प्रोग्राम बना लेते हैं.

दिखावे के नुकसान

लेनदेन के चक्कर में रिलेशन पर असर : दिखावे के चक्कर में जब आप दूसरों से लेनदेन कर अपने किसी फ्रैंड को इंप्रैस करने की कोशिश करते हैं तो इस से आप के संबंध मांगने वाले से बिगड़ने लगते हैं, क्योंकि 1-2 बार तो कोई भी खुशीखुशी पैसे दे देता है, लेकिन जब आप उसे आदत बना लेते हैं तो सामने वाला मना करने पर मजबूर हो जाता है जिस से रिश्तों में मनमुटाव आ जाता है.

खुद से ज्यादा दूसरों पर खर्च : हरदम ग्रुप में खुद को अमीर और ऐडवांस्ड दिखाने के लिए किसी ने कहा नहीं कि यार, आज तू पार्टी दे दे या आज तो हम राहुल से ही पार्टी लेंगे. उन की बात मान कर तुरंत अपनी पौकेट ढीली करने के लिए तैयार हो जाएं तो ऐसे में आप दिखावे के चक्कर में खुद से ज्यादा औरों पर खर्च कर बैठते हैं, जिस से अपने बारे में नहीं सोच पाते.

सामने वाले को संतुष्ट करने पर जोर : हरदम सामने वाले को संतुष्ट करने की कोशिश में खुद की पर्सनैलिटी को इंप्रूव करने के बारे में नहीं सोच पाते, जिस से धीरेधीरे हर काम बिगड़ने लगता है, जो भविष्य में आप के लिए घातक साबित होता है.

झूठ का सहारा : अपने दोस्तों को खुश करने के चक्कर में अपनी पूरी पौकेटमनी तो आप पहले ही लुटा बैठे हैं और अब फ्रैंड्स की ख्वाहिशें पूरी करने के लिए यदि आप को घर में झूठ भी बोलना पड़े या फिर पैसों के लिए पापा के पर्स से चोरी की नौबत तक आ जाए तो इस से आप दूसरों के चक्कर में खुद के लिए मुसीबत ही मोल लेते हैं.

लाइफ का मेन पार्ट इग्नोर : हरदम दिखावे में फंसे रहने के कारण आप लाइफ का मैन पार्ट यानी स्टडीज को इग्नोर कर देते हैं और जब समय आप के हाथ से निकलने लगता है तब पछताते हैं कि काश, उस समय कैरियर को संवारने पर ध्यान दिया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.

बेवकूफ बनाने के ज्यादा चांसेज : सब जानते हैं कि आप से एक बार कहने भर की देर है कि आप झट से किसी भी बात के लिए हामी भर देंगे, तो ऐसे में आप का कोई भी फ्रैंड आप को बड़ी आसानी से बेवकूफ बना देगा. जैसे बाहर जा कर कोई चीज खाने का मन उस का है और नाम आप का लगा कर उसे मंगा ले तो ऐसे में नुकसान हर हाल में आप का ही है.

परिवार से मनमुटाव : जब हम ज्यादा शोऔफ करने लगते हैं तो हमारी इच्छा भी ज्यादा बढ़ जाती है, जिसे पूरा करने के लिए हमारा दबाव हरदम पेरैंट्स पर ही रहता है, जिस से उन की नजरों में गिरने के साथसाथ हमारा उन से मनमुटाव भी हो जाता है.

ऐक्चुअल पर्सनैलिटी नहीं उभरती : हम जो होते हैं वह न दिखा कर खुद को बढ़चढ़ कर दिखाने की कोशिश करते हैं और इस चक्कर में अपने मन की भी नहीं कर पाते, जिस से हमारी ऐक्चुअल पर्सनैलिटी उभर नहीं पाती.

महंगे गैजेट्स का शौक : खुद को बाकी फ्रैंड्स में अलग दिखाने के लिए मार्केट में जो नया गैजेट आया नहीं कि उसे झट से खरीद डालते हैं ताकि फ्रैंड्स के बीच टशन बना रहे और इस चक्कर में खुद की पौकेट पर बोझ पड़ता है.

इंसर्ल्ट के डर से खरीदारी : भले ही आप को बिना ब्रैंड के कपड़े पसंद हों, लेकिन फिर भी फ्रैंड्स क्या सोचेंगे इस चक्कर में आप ब्रैंड्स की चीजें ही खरीदने पर जोर देते हैं, जिस पर लुटते सिर्फ आप ही हैं.

इस तरह दिखावे की यारी आप की जेब पर ही भारी पड़ती है.                     

 

ऐम्यूजमैंट पार्क में मस्ती नहीं सस्ती

विदेशी फिल्मों, टीवी शो और पर्यटन के लायक जगहों में आज ऐम्यूजमैंट पार्क सब से अधिक आकर्षण का केंद्र बन गया है और किशोरों को यह खूब भाने लगा है. बड़े शहरों की तर्ज पर अब छोटे शहरों में भी ऐम्यूजमैंट पार्क बनने लगे हैं. महंगा होने के कारण यहां आना भारी पड़ता है. कारोबारी मुकाबले के चलते कुछ ऐम्यूजमैंट पार्क अब सस्ते भी हो रहे हैं.

किशोरों के लिए ऐम्यूजमैंट पार्क सब से अधिक मस्ती का स्थान होता है. यहां उन्हें सब से अधिक पसंद आने वाली चीजों में झूले और तरहतरह के गेम्स होते हैं. ऐम्यूजमैंट पार्क एक तरह से ऐडवैंचर से भरा होता है. इस में तरहतरह की राइड्स होती हैं. कुछ इस तरह से होती हैं कि छोटेबड़े हर एक को पसंद आएं. राइड्स के साथ यहां तरहतरह के झूले भी होते हैं. इस तरह के पार्कों में कुछ क्षेत्र ऐसा होता है, जो आर्मी के ट्रेनिंग कैंप जैसा होता है. यहां आ कर लगता है कि किशोर जैसे किसी आर्मी ट्रेनिंग कैंप में आ गए हों.

ऐम्यूजमैंट पार्क को बेहतर बनाने के लिए यहां पर वाटर पार्क और टौय ट्रेन जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध होती हैं. खानेपीने की दुकानों के साथसाथ यहां म्यूजिक और डांस का भी भरपूर इंतजाम होता है.

ऐम्यूजमैंट पार्क की सब से खास बात है कि यह काफी बड़े क्षेत्र में फैला होता है जहां पर किशोर अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती करते हैं. बड़ेबड़े शहरों में तो ऐसे पार्क बहुत पहले से चल रहे हैं लेकिन अब छोटे शहरों में भी ऐम्यूजमैंट पार्क खुलने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ड्रीम वर्ल्ड ऐम्यूजमैंट पार्क आशियाना इलाके में करीब 6 एकड़ एरिया में बना है. इस में 22 राइड्स हैं. सितंबर 2016 में खुला यह पार्क लोगों को काफी पसंद आ रहा है. अब इस में एक छोटा वाटर पार्क भी है, जिस में बड़े और बच्चे सभी मौजमस्ती कर सकते हैं. ड्रीम वर्ल्ड ऐम्यूजमैंट पार्क के डायरैक्टर मनीष वर्मा का कहना है कि हम ने इस पार्क के रेट भी अन्य ऐम्यूजमैंट पार्कों से कम रखे हैं.

बड़े शहरों में महंगे हैं ऐम्यूजमैंट पार्क

बड़े शहरों में खुले ऐम्यूजमैंट पार्क बहुत महंगे होते हैं. इस कारण यहां जाना किशोरों की जेब पर भारी पड़ता है. सामान्यतौर पर ऐम्यूजमैंट पार्क में हर राइड का अलगअलग रेट होता है. यह 100 रुपए से ले कर 500 रुपए तक हो सकता है. यह जेब पर काफी भारी पड़ता है. किशोरों में ऐम्यूजमैंट पार्क बहुत फेमस हैं. दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ और चेन्नई जैसे बड़े शहरों में लोग घूमने जाते हैं तो ऐम्यूजमैंट पार्क जरूर जाते हैं.

ज्यादातर किशोरों को ऊंची राइड्स पसंद आती हैं. इस के अलावा आर्मी के ट्रेनिंग कैंप जैसी राइड्स भी उन्हें खूब भाती हैं. स्कूल की तरफ से किशोरों को कई बार ऐसे पार्क में ले जाया जाता है. इस का कारण यह होता है कि बच्चों को यहां बहुतकुछ सीखने को मिलता है. इसलिए बच्चे यहां आना पसंद करते हैं, लेकिन महंगा होने के कारण बच्चे यहां बारबार नहीं आ पाते. पैरेंट्स भी ऐम्यूजमैंट पार्क में बच्चों को कभीकभी ही ले जाते हैं.

अपने बच्चों के साथ ऐम्यूजमैंट पार्क जाने वाली देविका कहती हैं कि बच्चे ऐसे पार्क में जा कर हर खेलने वाली वस्तु का प्रयोग करना चाहते हैं. सभी पार्कों में सब के अलग रेट होते हैं. अच्छी बात यह है कि ऐम्यूजमैंट पार्क आ कर बच्चों को बहुतकुछ सीखनेसमझने को मिलता है.

हर सुविधा से युक्त ऐम्यूजमैंट पार्क

आमतौर पर हर पार्क कुछ ही सुविधाओं से लैस होता है लेकिन ऐम्यूजमैंट पार्क में हर तरह के फन को करने का मौका मिलता है. यहां झूले, राइड्स, ट्रेन और भी तरहतरह के ऐडवैंचर से भरपूर चीजें होती हैं. अब वाटर पार्क और कई जगहों पर चिडि़याघर भी इस का हिस्सा हो गए हैं.

ऐम्यूजमैंट पार्क में जाने के शौकीन विपुल अग्रवाल कहते हैं, ‘‘मुझे यहां आ कर अलग सा लगता है पर परेशानी की बात यह है कि यहां बारबार आना काफी खर्चीला साबित होता है. यहां हर सुविधा की अलग कीमत देनी पड़ती है. ज्यादातर पार्कों में ऐंट्री फीस कम होती है बाकी खर्चे ज्यादा होते हैं. ये बाकी खर्चे ही सब से अधिक जेब पर भारी पड़ते हैं.’’

ऐम्यूजमैंट पार्क प्रबंधन से जुड़े लोग कहते हैं कि ऐसे पार्कों में रखरखाव बहुत जरूरी होता है. यह महंगा होता है. इस के अलावा यहां पर नएनए किस्म के झूले लगे होते हैं. जो महंगे होते हैं. ऐसे में इन की फीस ज्यादा हो जाती है, लेकिन हर राइड्स की फीस अलग होने से लाभ यह होता है कि जो पसंद हो वही प्रयोग किया जाए.

उदाहरण के लिए जब वाटर पार्क में जाना होता है तो वहां ऐंट्री फीस में ही सबकुछ शामिल होता है. ऐसे में किसी का प्रयोग न भी करना हो तो पैसा देना ही पड़ता है. ऐम्यूजमैंट पार्क में जितना इस्तेमाल करो उतने का ही भुगतान करना पड़ता है. इस से जेब ज्यादा भार नहीं पड़ता.

ऐम्यूजमैंट पार्क में बच्चों के साथ बड़ों की भी ऐक्सरसाइज हो जाती है, जिस से आज के दौड़तेभागते शहरी जीवन में कुछ नया मिलता है. आमतौर पर बच्चे आज के खुले माहौल से दूर होते जा रहे हैं, जिस से उन्हें तरहतरह के रोग लग रहे हैं. ऐम्यूजमैंट पार्क बच्चों को वापस अपनी ओर मोड़ने में सफल हो रहे हैं, यही वजह है कि अब बच्चों को ये बहुत पसंद आने लगे हैं और किशोरों के आकर्षण का सब से बड़ा केंद्र बन गए हैं.                            

क्या है आईयूआई प्रेग्नेंसी?

मां बनना एक महिला के जीवन की सबसे बड़ी खुशी होती है. लेकिन कुछ महिलाओं को इस खुशी को पाने के लिए काफी कोशिश करनी पड़ती है. जिसके बाद उन्हें बेबी का सुख मिलता है. आईयूआई प्रेग्नेंसी भी इसी का एक हिस्सा है.

कुछ महिलाएं जो नॉर्मल तरीके से गर्भधारण नहीं कर सकती हैं, वे आईयूआई के जरिए यानि इंट्रायूटेरिन इनसेमीनेशन के जरिए गर्भधारण करती हैं. यह कृत्रिम प्रक्रिया गर्भधारण करने का एक तरीका है जो जल्दी गर्भधारण करने में मदद करता है, इसलिए अगर आप भी इस प्रक्रिया के जरिए गर्भधारण करना चाहती हैं या फिर कर रही हैं, तो आज हम आपको इसके कुछ लक्षणों के बारे में में बताएंगे जिनकी जानकारी रखना आपके लिए बेहद जरुरी है.

क्या है इंट्रायूटेरिन इनसेमीनेशन (आईयूआई)

आईयूआई, प्रेग्नेंट करने की एक तकनीक है. जिसके जरिए ओव्यूलेशन के समय गर्भ में पहले से तैयार शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है. इससे पहले गर्भधारण कर रही महिला को अंडे का उत्पादन करने और ओव्यूलेशन को उत्तेजित करने के लिए प्रजनन दवाइयों का सेवन करना होता है. जिससे गर्भ में भ्रूण बन सके.

आईयूआई प्रेग्नेंसी के लक्षण

अगर आप आईयूआई तकनीक के माध्यम से गर्भाधारण करने के बारे में सोंच रही हैं, तो इससे पहले आपको प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले लक्षणों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. जिससे आपको किसी भी तरह की कोई परेशानी ना हो.

इम्प्लान्टेश ब्लीडिंग

जब भ्रूण गर्भाशय की दीवारों को इम्प्लान्ट करता है तो इम्प्लान्टेशन ब्लीडिंग होती है. इस इम्प्लान्टेशन के कारण खून का स्राव होता है. जो मासिक धर्म से पहले की स्पॉटिंग की तरह लगता है. इस प्रक्रिया के दो हफ्ते बाद आपको रक्तस्राव का अनुभव होगा. लेकिन इससे आपको घबराने के जरुरत नहीं है क्योंकि यह पूरी तरह से सामान्य है. इस प्रक्रिया के जरिए आप गर्भवती होती है. गर्भधारण करने के 6 से 12 दिनों के बाद आपको इसी तरह के रक्तस्राव का अनुभव हो सकता है. और पेट में हल्की सी ऐंठन भी महसूस हो सकती है.

स्तनों की कोमलता

इस प्रक्रिया के जरिए गर्भधारण करने के बाद आपके स्तन संवेदनशील और कोमल हो जाते हैं. इस दौरान आपके स्तनों में थोड़ा दर्द भी महसूस होगा. अगर पीरियड्स गैप होने के बाद आप लगातार ऐसा महसूस कर रही हैं. तो आप अपने डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें और अपनी प्रेग्नेंसी की जांच कराए.

कमजोरी और थकान

कृत्रिम इनसेमीनेशन को दौरान आपको शरीर में कुछ अलग तरह से प्रतिक्रिया से गुजरना पड़ता है. जैसे आपको तनाव, थकान और कमजोरी महसूस होती है. ऐसा हार्मोनल बदलाव के कारण होता है. प्रोजेस्टेरोन के उच्च स्तर के कारण आपको पूरे समय लगता है कि आपको नींद आ रही है और आपको हर समय थकान महसूस होती है.

जी मिचलाना या घबराने की अनुभूति

एस्ट्रोजन हार्मोन के बढ़ते स्तर के कारण आपको जी मिचलाने का अनुभव होता है. आप दिन के किसी भी समय इसे महसूस कर सकती हैं. इस दौरान आपको अजीब गंध का एहसास हो सकता है. जिसके कारण आपको उल्टी भी आ सकती है.

मैं 19 साल की हूं. एक शादीशुदा युवक से मेरा संबंध था. अब एक लड़का मुझसे नजदीकियां बढ़ा रहा है. मैं क्या करूं.

सवाल

मैं 19 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. मैं एक युवक से प्यार करती थी. हमारा प्रेमसंबंध साल भर चला. फिर अचानक मुझे पता चला कि वह शादीशुदा है. सच्चाई जान कर मुझे बहुत दुख हुआ और मैं ने इस संबंध को समाप्त कर लिया, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से किसी के बीवीबच्चों की जिंदगी में अशांति फैले.

पर अब एक लड़का जिसे मैं सिर्फ अपना दोस्त मानती हूं और उस से कभीकभार हंसीमजाक कर लेती थी आजकल कुछ ज्यादा ही नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जो मुझे अच्छा नहीं लग रहा. मैं समझ नहीं पा रही हूं कि क्या करूं. क्या उस से बात करना छोड़ दूं?

जवाब

आप ने एक शादीशुदा व्यक्ति से प्रेमसंबंध तोड़ कर बहुत समझदारी का काम किया है. अपनी खुशी के लिए किसी और के सुखी दांपत्य में खलल डालना उचित नहीं है. रही आप के तथाकथित दोस्त की बात तो उसे स्पष्ट कर दें कि आप उसे सिर्फ दोस्त मानती हैं, इसलिए वह अपनी हद में रहे. एक बार दोटूक बात करेंगी और वह समझदार हुआ तो संभल जाएगा वरना आप उस से बात करना छोड़ सकती हैं.

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सैक्स को सुखदायक बनाने के खास टिप्स

सैक्सोलौजिस्ट डा. चंद्रकिशोर कुंदरा के मुताबिक, ‘प्रेमीप्रेमिका के बीच सैक्स संबंध स्थापित करने के लिए भौतिक, रासायनिक व मनोवैज्ञानिक कारक ही जिम्मेदार होते हैं. सैक्स ही एक ऐसी सरल क्रिया है जो प्रेमीप्रेमिका को एकसाथ एक ही समय में पूर्ण तृप्ति देती है.’ सैक्स की संपूर्णता प्रेमिका के बजाय प्रेमी पर निर्भर करती है, क्योंकि प्रेमी ही इस की पहल करता है. प्रेमिका सैक्स में केवल सहयोग ही नहीं करती बल्कि पूर्ण आनंद भी चाहती है. अकसर प्रेमीप्रेमिका सैक्स को सुखदायक मानते हैं, लेकिन कई बार सहवास ऐंजौय के साथसाथ कई समस्याओं को भी सामने लाता है. अनुभव के आधार पर इन को दूर कर प्रेमीप्रेमिका सैक्स का सुख उठाते हैं.

शरारती बनें

सैक्स को मानसिक व शारीरिक रूप से ऐंजौय करने के लिए प्रेमीप्रेमिका को शरारती बनना चाहिए. उत्साह, जोश, तनावमुक्त, हंसमुख, जिंदादिल, शरारती प्रेमीप्रेमिका ही सैक्स को संपूर्ण रूप से भोगते हैं.

आत्मविश्वास की कमी न हो

कई बार आत्मविश्वास की कमी हो जाती है. प्रेमी सैक्स के समय उतावलेपन के शिकार हो कर सैक्स के सुखदायक एहसास से वंचित रह जाते हैं.

सैक्स संबंध बनाते समय प्रेमीप्रेमिका के मन में यदि पौजिटिव सोच होगी, तभी दोनों पूर्ण रूप से संतुष्ट हो पाएंगे और सैक्स में कभी कमजोर नहीं पड़ेंगे.

पोर्न फिल्मों से प्रेरित न हों

प्रेमीप्रेमिका अकसर पोर्न फिल्में देख कर, किताबें पढ़ कर सैक्स में हर पल लिप्त रहने की कोशिश करते हैं. अत्यधिक मानसिक कामोत्तेजना की स्थिति में शीघ्रपतन व तनाव में कमी हो जाती है.

सैक्स में जल्दबाजी

कई बार सैक्स में प्रेमीप्रेमिका जल्दबाजी कर जाते हैं. शराब पी कर सैक्स करना चाहते हैं जोकि ठीक नहीं है. हमेशा मादक पदार्थों से दूर रहें. सैक्स के दौरान प्रेमिका ही मादकता का काम करती है.

बढ़ाएं शारीरिक आकर्षण

सहवास के लिए प्रेमी का शारीरिक आकर्षण, स्मार्टनैस, सैक्सी लुक, साफसफाई काफी महत्त्वपूर्ण है. पुरुषोचित्त गुण के साथसाथ गठीले बदन वाले चतुर सुरुचिपूर्ण वस्त्र, रसिक स्वभाव के प्रेमी ही सैक्स में सफल होते हैं.

रोमांटिक स्वभाव रखें

प्रेमिका सहवास के दौरान चाहती है कि उस का प्रेमी रोमांस व ताजगी द्वारा उसे कामोत्तेजित करे. अत: रोमांस की बातें कर सैक्स को सुखदायक बनाएं.

जब सैक्स का मौका मिले

प्रेमीप्रेमिका अकसर सैक्स के लिए मौके की तलाश में रहते हैं. जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे एकदूसरे में समाने के लिए बेताब हो जाते हैं, लेकिन इस दौरान कई बार ऐसे अचानक किसी का दरवाजा खटखटाना व फोन की घंटी बज जाती है. ऐसी बाधाओं को दूर कर सहवास को मानसिक व शारीरिक रूप से सुखदायक बनाएं.

अभिनय जगत के महानायक ने छोड़ दी एक्टिंग

अभिनेता डेनियल डे-लुइस को सबसे पहले दूरदर्शन पर हर साल आने वाली फिल्म ‘गांधी’ (1982) में देखा गया था. वो सीन जब साउथ अफ्रीका में मोहनदास गांधी एक गली से गुजर रहे होते हैं और सामने एक यंग लड़का खड़ा होता है, जो रंग भेद के चलते या निम्नतर चमड़ी वाले को वहां से गुजरने नहीं देगा. लेकिन गांधी भी दूसरा गाल आगे करने पर यकीन पैदा कर रहे हैं. अंत में लड़के की सख्त मां झल्लाकर उसे काम पर जाने का निर्देश देती है. टकराव टल जाता है.

इस फिल्म के आने के अगले ही साल गांधी का रोल निभाने वाले बेन किंग्सले ने बेस्ट एक्टर का ऑस्कर प्राप्त किया. अब ये बात तो लगभग सबको पता है, लेकिन इस फिल्म में सामने जो लड़का था, उसने भी आगे चलकर सिनेमा जगत में जो किया उसके सामने सब फीका पड़ गया.

उस लड़के का नाम था डेनियल डे-लुइस, जो आज अकेले ऐसे एक्टर हैं जिसने बेस्ट एक्टर कैटेगरी में तीन ऑस्कर जीते हुए हैं. तब से लेकर आज तक उन्होंने दुनिया भर में अपने प्रशंसकों को दीवाना बनाया हुआ था. कुछ समय पहले ही उन्होंने सबको शोक में डुबो दिया, ये कह कर कि अब वे एक्टिंग छोड़ रहे हैं. डेनियल डे-लुइस अब एक्टर के तौर पर काम नहीं करेंगे.

यानी डेनियल अभी जिस फिल्म पर काम कर रहे हैं वो उनकी आखिरी होगी. ‘फैंटम थ्रेड’ नाम की इस फिल्म के राइटर और डायरेक्टर हैं, पॉल थॉमस एंडरसन. पॉल थॉमस ने ही डेनियल की सबसे प्रतिष्ठित अदाकारी वाली फिल्म ‘देयर विल भी ब्लड’ लिखी और डायरेक्ट की थी. इसके लिए भी डेनियल को बेस्ट एक्टर का ऑस्कर मिला था. ‘फैंटम थ्रेड’ इस साल 25 दिसंबर को रिलीज होनी है.

फिल्म ‘देयर विल बी ब्लड’ के अलावा, साल 1989 में आई फिल्म ‘माई लेफ्ट फुट’ (1989) और साल 2012 में प्रदर्शित फिल्म ‘लिंकन’, जिसमें वे अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के ऐतिहासिक किरदार में थे, के लिए बेस्ट एक्टर का ऑस्कर अवार्ड मिला.

डेनियल इससे पहले भी वे दो फिल्मों के बीच पांच-पांच साल जितना लंबा अंतराल लेते रहे हैं. इससे पहले साल 1997 में रिलीज हुई ‘द बॉक्सर’ की तैयारी में वे इतना थक गए थे कि एक्टिंग से एक तरह का रिटायरमेंट ले लिया था. वे लकड़ी में नक्काशी का काम करने की हॉबी में चले गए. वे इटली गए तो वहां जूते बनाने का काम इतना पसंद आया कि वे वही करने लगे.

अलग किस्म की मेथड एक्टिंग की वजह से उनके बहुत से प्रशंसक, उन्हें एक्टिंग की दुनिया का स्रोत बोलते हैं.

डेनियल के बारे में बहुत सी बातें उन्हें, सबसे अलग और खास बनाती हैं. वे उन एक्टर्स में से हैं तो अपने हर किरदार में कायापलट कर लेते हैं. जैसे अब्राहम लिंकन का रोल करने के लिए उन्होंने तैयारी एक साल पहले शुरू कर दी थी. बताया जाता है कि उन्होंने लिंकन से जुड़ी 100 से ज्यादा किताबें पढ़ीं.

कुछ इसी तरह फिल्म ‘माई लेफ्ट फुट’ में उनका कैरेक्टर सिर्फ बायां पैर ही हिला सकता है, बाकी कोई हाथ-पैर नहीं. तो शूटिंग के दौरान जब सीन ओके हो जाता था और टेक्स के बीच ब्रेक होता था तो भी वे व्हीलचेयर पर ही बैठे रहते थे. हर समय वे उसी किरदार में सेलेब्रल पाल्सी से ग्रस्त बने रहते थे. सेट पर मौजूद लोगों को उनकी व्हीलचेयर पकड़कर उन्हें इधर उधर ले जाना पड़ता था. उन्हें कुर्सी समेत उठाकर मूव करना पड़ता था. इस दौरान लोगों की आंखों में घृणा का भाव भी उन्हें दिखता था और यही सब उन्हें चाहिए था. वे महसूस करना चाहते थे कि ऐसे विशेष लोगों को रोजा़ना कैसी जिल्लत झेलनी पड़ती है.

खबरों की मानें तो उन्होंने शुरुआती फिल्मों के बाद ही ये मन बना लिया था कि वे दृश्यों के बीच के खाली वक्त में भी अपने कैरेक्टर से बाहर नहीं निकलेंगे. उन्हें इस तरह से काम करना पसंद नहीं रहा. क्योंकि ऐसा करने से उस किरदार के भाव बार-बार गुम होते हैं और बिखर जाते हैं. वे शुरू से लेकर आखिर तक  संबंधित किरदार की शारीरिक और मानसिक स्थिति में रहना चाहते हैं.

चाहे उनकी तबीयत खराब ही क्यों न हो जाएं वे अपने किरदारों के लिए शारीरिक और मानसिक बदलावों की हदें पार कर जाते हैं. बीमार होकर भी वे अपना किरदार निकालकर लाते हैं. दुनिया में इन सिद्धांतों के साथ एक्टिंग करने वाले बहुत कम हैं. भारत में ‘दंगल’ के लिए आमिर ने जो किया या पंकज कपूर अपनी फिल्मों में जो करते हैं, वो सब इसी श्रेणी में आता है.

डेनियल अभी सिर्फ 60 बरस के हैं और स्वस्थ हैं लेकिन अभिनय न करने का फैसला लिया है. 14 साल की उम्र से एक्टिंग कर रहे डेनियल ने 46 साल तक 21 फिल्में की हैं.

फिलहाल हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड के अभिनेताओं, फिल्म आलोचकों और दुनिया भर के प्रशंसकों के लिए आश्चर्य की स्थिति है. उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि डेनियल ने एक्टिंग की दुनिया छोड़ दी है.

यहां देखिए उनके अभिनय की कुछ बेहतरीन झलकियां…

कड़कनाथ : महिला आजीविका का साधन

‘स्वास्थ्य समृद्धि का सुंदर साथ, काला कंचन भर दोनों हाथ’

हम बात कर रहें काले कड़कनाथ मुर्गे की, जो मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में विशेष तौर पर पाया जाता है. कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. गोविंद कुमार वर्मा बताते हैं, “कड़कनाथ के पालन से पालक तीन-चार महीने में अच्छी आमदनी कर सकता है. इन मुर्गों का पालन विशेष रूप से आदिवासी समाज की महिलाएं करती हैं. कड़कनाथ की बिक्री से परिवार का खर्चा आसानी से चल जाता है. तथा कड़कनाथ नस्ल का संरक्षण भी होता है. इससे महिलाओं में आत्मनिर्भरता आती है. सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनुदान की व्यवस्था भी की है.

 सरकारी अनुदान

सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु गरीब आदिवासी लोगों के लिए विशेष तौर पर महिलाओं को 80 प्रतिशत का अनुदान कर रही है. इस योजना के अंतर्गत बिना लिंग भेद के 28 दिवसीय 40 रंगीन चूजों की इकाई प्रदान की जाती है. इसके पालन के लिए 4,400 रुपए जिसके अंतर्गत औषधि, टीकाकरण एवं परिवहन की लागत के लिए अनुदान प्रदान किया जाता है.  

 कई बीमारियों से लड़ने में कारगर है कड़कनाथ मुर्गा

कड़कनाथ मुर्गे की मांग पूरे देश में होने लगी है. इसकी खासियत यह है कि इसका खून और मांस काले रंग का होता है. लेकिन, यह मुर्गा दरअसल अपने स्वाद और सेहतमंद गुणों के लिये अधिक मशहूर है. कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है. शोध के अनुसार, इसके मीट में सफ़ेद चिकन के मुकाबले “कोलेस्ट्रॉल” का स्तर कम होता है. अमीनो एसिड” का स्तर ज्यादा होता है.

एक किलोग्राम का मुर्गा 1000-1200 रुपए में बिक जाता है और अंडा भी 70-80 रुपए में बिकता है.

मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के पांसेमल गाँव के सचिन सितोले पिछले एक साल से कड़कनाथ मुर्गों का पालन रहे हैं. तीन-चार महीने में मुर्गा तैयार हो जाता है. सचिन बताते हैं, “कड़कनाथ मुर्गे की अच्छी मांग होती है. पिछले एक साल से इसकी शुरुआत की थी, अब तक चार बार इसे बेंच चुका हूं. इसमें ज्यादा खर्च भी नहीं लगता है.”

यह मुर्गा अपने स्वाद और सेहतमंद गुणों के लि‍ए मशहूर है. कड़कनाथ भारत का एकमात्र काले मांस वाला चिकन है. शोध के अनुसार, इसके मीट में सफेद चिकन के मुकाबले कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है और अमीनो एसिड का स्तर ज्यादा होता है. मूलरूप से कड़कनाथ मध्य प्रदेश के झबुआ जिले का मुर्गा है मगर अब पूरे देश में यह मि‍ल जाता है. महाराष्‍ट्र, आंध्रपेदश, तमि‍लनाडु सहि‍त कई राज्‍यों में गरीब लोगों की कमाई का जरिया बन गया है. कुछ जरूरी बातों का ध्‍यान रख इसे कहीं भी पाला जा सकता है. कड़कनाथ मुर्गे की मांग पूरे देश में डि‍पार्टमेंट ऑफ एनि‍मल हस्‍बेंड्री, महाराष्‍ट्र के मुताबि‍क, इसका रखरखाव अन्य  मुर्गों के मुकाबले आसान होता है.

सेहत के लिए मुफीद

मध्यप्रदेश के आदिवासी जिले झाबुआ का यह मुर्गा कोई आम मुर्गा नहीं है. आप इसे देसी वियाग्रा भी कह सकते हैं. विलुप्त हो रही इस दुलर्भ प्रजाति का मांस बहुत सी बीमारियों को जड़ से खत्म करता है. इसके सेवन से कैंसर, शुगर, मोटापा आदि बीमारियों में लाभ उठाया जा सकता है.

देश-विदेश में मांग

इसकी मांग अब देश के कोने-कोने में हो रही है. राजस्थान,  कर्नाटक,  हैदराबाद, उत्तर प्रदेश के लोग कड़कनाथ के चूजे लेना चाहते हैं. जानकारों की मानें तो कड़कनाथ की मांग देश की सीमा से बाहर पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी लगातार बढ़ती जा रही है. हालात यह है कि झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र स्थित हैचरी में कड़कनाथ के चूजे लेने के लिए आठ महीने बाद बारी आ रही है.

अहम बात यह है कि यह मुर्गे मध्य प्रदेश के उस इलाके में हैं जो आर्थिक रूप से गरीब आदिवासी लोग हैं.

सब कुछ काला

स्थानीय भाषा में कड़कनाथ को कालीमासी भी कहते हैं. क्योंकि इसका मांस, चोंच, जुबान, टांगे, चमड़ी आदि सब कुछ काला होता है. यह प्रोटीनयुक्त होता है और इसमें वसा नाममात्र रहता है. कहते हैं कि दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ बेहतरीन दवा है. इसके अलावा कड़कनाथ को सेक्स वर्धक भी माना जाता है. 

संपर्क समाज सेवी की कोशिश

हाल ही में झाबुआ की संपर्क समाज सेवी संस्था ने एक पहल की है. संस्था से जुड़े निलेश देसाई का कहना है कि उन्होंन पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर झाबुआ के पांच गांवों की महिलाओं को 50-50 रुपये में कड़कनाथ के चूजे दिए हैं. संस्था चाहती हैं कि मुर्गीपालन छोड़ रहे आदिवासी परिवार इसे दोबारा अपनाएं. देसाई के अनुसार बाजार में एक कड़कनाथ लगभग 1200 रूपये में बिकता है. यहां तक कि लोग झाबुआ विशेषतौर पर कड़कनाथ खाने के लिए आते हैं. इसके एक चूजे को बड़ा होने में छह महीने का समय लगता है, जिसपर हर महीने 50 रुपये के दाना-पानी खर्च आता है. इस प्रकार महिलाएं काफी मुनाफा कमा सकती हैं. देसाई के अनुसार इनकी कोशिश यह भी है कि यह महिलाएं मुर्गों की गिनती बढ़ाएं. देसाई इस बात से काफी खफा हैं कि सरकार कड़कनाथ को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर रही. जबकि इसकी मांग दूर-दूर तक है.

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