विकास पर हावी अंधविश्वास

तुलसीदास के अनुसार ‘भय बिनु होई न प्रीत’ यानी भय इनसान को कार्य करने के लिए उकसाने का सर्वोत्तम माध्यम है. मास्टरजी की छड़ी के भय से छात्र पढ़ने बैठ जाते हैं और पिता की डांट के भय से सही आचरण करने लगते हैं. कुछ सीमा तक भय कार्य उद्दीपक एवं प्रेरणा का काम करता है, जो इनसान की प्रगति में सहायक बनता है, मगर वहीं जब इसी भय की अधिकता हो जाती है या भय को स्वार्थसिद्धि का साधन बना कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है, तो यह अंधविश्वास का रूप ले लेता है, जो मानव के पतन का कारण बनता है, उस की प्रगति में बाधक बनता है.

हमारा भारतीय समाज इसी भय की अधिकता के कारण 21वीं सदी में भी 18वीं सदी की विचारधारा से ओतप्रोत है. जहां जापान, जरमनी, चीन जैसे देश निरंतर प्रगति कर महाशक्ति बन बैठे हैं, वहीं भारत धर्म, पूजापाठ और अंधविश्वास के चलते लगातार पीछे जा रहा है. भारत की जनता गरीबी के कारण तो किसान फसल खराब होने के कारण आत्महत्याएं कर

रहे हैं, वहीं तिरुमाला, शिरडी, पद्मनाभम और सिद्धि विनायक जैसे मंदिर और उन के पुजारी करोड़ोंअरबों में खेल रहे हैं.

भगवान का भय

यहां का शिक्षक, जो देश के भावी कर्णधारों को तराशता है, लगातार शिक्षाप्रद भाषण दे कर अपना गला दुखाता है उसे तनख्वाह के रूप में कुछ हजार रुपए मिलते हैं, वहीं जो पाखंडी बाबा गीता के कुछ श्लोक रट कर और बेढंगे नृत्य और गीत से जनता को बेवकूफ बनाता है उस के गैरेज में महंगी कारों का काफिला, अरबों की इमारतें और सुंदर सेविकाएं (न जाने किसकिस सेवा हेतु) उपलब्ध रहती हैं.

हमारे देश के इन धार्मिक लुटेरों ने पूजा और धर्म की असंख्य बंदूकों के बल पर अंधविश्वासी जनता को इस तरह भयभीत किया है कि वह बेचारी बिना बंदूक दिखाए ही केवल बंदूक के खौफ से ही (देवता नाराज हो जाएंगे, नकारात्मक शक्तियां उत्पात मचाएंगी, भूतप्रेत का साया, किसी भी चूक से शक्तियों का क्रोधित होना और दंडित करना इत्यादि) अपना सब कुछ इन्हें बिना किसी प्रश्न के सहज सौंप देती है. जनता को पूजापाठ और टोटकों में इस तरह उलझा दिया गया है कि उसे यह सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिलता कि ‘मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन’ की तर्ज पर ये पाखंडी उन की खूनपसीने की कमाई पर मौज उड़ा रहे हैं और इस के लिए ये ढोंगी कुछ भी कर सकते हैं.

सिर्फ पाखंड ही

आप को पशुओं का मूत्र पिलाया जा सकता है या उस के इस्तेमाल की सलाह दी जा सकती है और हम यह वैज्ञानिक तथ्य जानते हुए भी कि शरीर उन्हीं तत्त्वों को उत्सर्जित करता है, जो शरीर के लिए उपयोगी ही नहीं हैं, हम गौ माता की जय कह कर उस अपशिष्ट का प्रसाद लेने को तत्पर हो उठते हैं.

वास्तव में गाय की आंतों में कुछ विषैले जीवाणु होते हैं, जो मूत्र के साथ कुछ मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाते हैं. अगर हम इन अपशिष्टों का सेवन करते हैं, तो ये जीवाणु हमारे स्वास्थ्य पर कैसी कृपा करेंगे, यह आप खुद समझ सकते हैं.

इसी तरह पीलिया होने पर नीम की डालों को तेल में घुमा कर पीलिया झाड़ने वाले के पास कई पढ़ेलिखों की लाइन लगी मिल जाएगी, जबकि आप स्वयं बिना पीलिया के तेल में नीम की डालें घुमाएंगे तो तेल को पीला होता पाएंगे.

चेचक की बीमारी को देवी के गुस्से की अभिव्यक्ति मान उसे मनाने के लिए कर्मकांड और पूजाअर्चना में भी हजारों खर्च कर दिए जाते हैं. अंत में जब ज्यादा हालत बिगड़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं. अगर आप ईश्वर में और पूजापाठ में इतना ही यकीन रखते हैं, तो मैं उस यकीन की परीक्षा के लिए एक प्रयोग बताती हूं. आप पोटैशियम साइनाइड का एक इंजैक्शन लगा लो और फिर भगवान के गीत गागा कर उसे रक्षा के लिए बुलाओ या फिर अपनी खूनपसीने की कमाई जिन बाबाओं पर लुटाते आए हो उन की शरण में जाओ. अगर आप का विश्वास सच्चा है, तो फिर किस बात का डर? मुझे यकीन है आप ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि भगवान पर आप का विश्वास नहीं है. इन पाखंडियों पर भी नहीं है. आप तो बस नीलगायों की तरह एकदूसरे के पीछे भाग रहे हैं.

आप ने कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर धर्म की पट्टी बांध रखी है. आप को पता ही नहीं है कि आप किस दिशा में जा रहे हो और क्यों? आप तो बस चले जा रहे हो, क्योंकि आप के पूर्वज भी ऐसे ही चले थे. आप इसलिए चल रहे हो, क्योंकि कुछ ग्रंथों में ऐसा लिखा है, आप चल रहे हो, क्योंकि कुछ स्वार्थी और पैसे के भूखे पंडेपुजारियों ने आप के दिमाग की प्रोग्रामिंग ऐसी कर दी है कि शोषण झेल कर भी आप खुद को शोषित मानने के बजाय भक्त मानते हो.

यह कैसा अंधविश्वास

शाहरुख अंक ज्योतिष पर यकीन करते हैं. उन की अपनी सभी गाडि़यों के नंबर ‘555’ हैं. यहां तक कि अपनी आईपीएल टीम ‘कोलकाता नाइट राइडर्स’ की हार से परेशान हो कर उन्होंने उस की जर्सी का रंग भी ज्योतिष के कहने पर बदलवा कर बैगनी करवाया.

‘सत्यमेव जयते’ जैसे सामाजिक शो करने वाले आमिर खान दिसंबर महीने को बेहद शुभ मानते हैं. इसीलिए अपनी हर फिल्म वे दिसंबर में ही रिलीज करते हैं. दीपिका पादुकोण भी अपनी फिल्म के रिलीज से पहले मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर दर्शन करने जरूर जाती हैं. एकता कपूर अपने काम से जुड़े हर मामले में ज्योतिष की राय लेती हैं, फिर चाहे वह शूटिंग की तारीख हो, शूटिंग की जगह हो या फिर उन की उंगली की अंगूठी ही क्यों न हो?

अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने माना है कि वे अपनी आईपीएल टीम ‘राजस्थान रौयल्स’ के मैच के दौरान 2 घडि़यां पहनती हैं, जिस से उन की टीम को सफलता मिलती है. एक जमाने में करण जौहर की यह धारणा थी कि उन की फिल्में तभी सफल होंगी जब उन के नाम ‘क’ अक्षर से हों.

देश में ही नहीं विदेशों में भी अंधविश्वासियों की कमी नहीं है. औस्कर पुरस्कार विजेता अभिनेता मौर्गन फ्रीमैन की नातिन के प्रेमी ने अंधविश्वास के चक्कर में उस की चाकू से गोद कर हत्या कर दी. मार्क जुकरबर्ग और बराक ओबामा भारत के नीम करोरी बाबा के प्रशंसक हैं. अब क्या कहेंगे इन पढ़ेलिखे अंधविश्वासियों को?

इन सब अंधविश्वासों की जननी है पूजा. पूजा ही हमें अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसाने का प्रवेशद्वार है. हम सब से ज्यादा भयभीत पूजा करते वक्त ही होते हैं जैसेकि पूजा में हम ने नियम बनाया मंत्र जपने का. अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं है या व्यस्तता है तो हम नियम टूटने और प्रभु के नाराज होने के खौफ से मरतेगिरते भी उस नियम को पूरा करने में वक्त बरबाद करेंगे. मैं उन लोगों को जो हजारों माला जपते हैं, घंटों पूजापाठ में शरीर और वक्त की बरबादी करते हैं, यह सलाह देती हूं कि एक बार इस सब को छोड़ कर देखें. आप को खुद पता चलेगा कि आप का कितना भला ये पाखंड करते थे और अब छोड़ने के बाद कितना सुकून आप महसूस कर रहे हैं? एक बार कर के जरूर देखिएगा.

ओझाओं की पौबारह

आगरा के एक दुर्गा मंदिर इंद्रपुरी में कहा जाता है कि यहां के पुजारी को दुर्गाजी की सवारी आती है. यहां भक्तों में बड़े व्यवसाइयों के साथसाथ सरकारी मुलाजिम भी आते हैं. मंदसौर में आग के शोलों पर चलना, कोलकाता में नवरात्र के दौरान जीभ पर तलवार रखना, उन्नाव में एक संन्यासी की बातों में आ कर सोना निकलने के लालच में खुदाई करवाना, पद्मनाभ मंदिर में इतना सोना है कि भारत फिर से सोने की चिडि़या बन सकता है, लेकिन उस के छठे द्वार का भय दिखा सोने को उस मंदिर के कर्ताधर्ता पुजारियों ने अपनी मुट्ठी में कर रखा है. ईसाइयों का उंगली क्रौस करना और सांपों के काटने पर ओझा के पास मंत्र से जहर उतरवाने भागना उसी भय की प्रवृत्ति का परिचायक है.

बड़े नाम भी शामिल

80 के दशक में तांत्रिक चंद्रास्वामी के भक्तों की फेहरिस्त में अपने देश के कई बड़े नेताओं सहित विश्व की अन्य हस्तियां भी शामिल थीं. वहीं नैपोलियन काली बिल्लियों से बहुत डरते थे, जबकि विंस्टन चर्चिल काली बिल्लियों को शुभ मान कर छुआ करते थे. कैटरीना कैफ अपनी हर फिल्म के रिलीज से पहले सलीम चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाती हैं, सचिन तेंदुलकर सत्य साईं बाबा के निधन पर फूटफूट कर रोते हैं और मैच के वक्त उलटा पैड पहले पहनते थे. यह उन का प्रसिद्ध टोटका था. अमिताभ बच्चन अपनी बहू के मांगलिक दोष को उतरवाने के लिए पहले उन का विवाह किसी वृक्ष से करवाते हैं. अनिल अंबानी गोवर्धन महाराज पर टनों दूध चढ़ाते हैं, तो मुकेश अंबानी भी आए दिन परिवार और निकट मित्रों के साथ धार्मिक यात्रा करते रहते हैं.

इन हस्तियों को अकसर टोनेटोटके भी करते पाया जाता है जैसेकि अमिताभ बच्चन खुद स्वीकारते हैं कि जब वे क्रिकेट मैच देखते हैं, तो भारत हार जाता है, इसलिए वे वह क्रिकेट मैच जिस में भारत खेल रहा होता है उसे नहीं देखते. ऐसे ही कई खिलाड़ी मानसिक भ्रांतियों पर निर्भर हो जाते हैं जैसेकि वे अपनी योग्यता से नहीं, बल्कि बस में किसी निश्चित सीट पर बैठने से जीतते हैं या फिर वे दस्ताने उन के लिए भाग्यशाली हैं, जिन से उन्होंने गेंद को लपका था न कि उन की बढि़या नजर, सही जगह अथवा प्रशिक्षण जो उन्होंने लिया.

संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया, परंतु प्रेम कई बार किया था. उन्हें यह अंधविश्वास था कि उन के परिवार में बड़े बेटे के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है. इन के दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था. संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उस के 10 वर्ष का होने पर उन की मृत्यु हो गई. इस से बेहतर होता कि वे विवाह कर लेते, क्योंकि न करने पर भी मृत्यु ने उन का वरण कर लिया.

जिंदगी से मजाक

ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग लोहे की गरम सलाखों से दगवा कर कई बीमारियों का उपचार करा रहे हैं. वहीं बारहसिंघे के सींघों से लोगों के शरीर से रक्त निकाल कर ये बाबा नकारात्मक ऊर्जा को बाहर करने का दावा करते हैं.

हैरानी होती है कि जय गुरुदेव और कृपालु बाबा के मंदिरों में लोट लगाने वाले, निर्मल बाबा, आसाराम और सत्य साईं की जय बोलने वाले, राधे मां और रामरहीम के साथ अश्लीलता की हद तक झूमने वाले शिक्षित भक्त एक बार इन बाबाओं की पृष्ठभूमि और काले कारनामे जानने का प्रयास क्यों नहीं करते?

कुछ बाबाओं की बायोग्राफी पर एक नजर

निर्मलजीत सिंह नरूला, जो कई व्यापार करने के बाद भी नल्ले ही साबित हुए. उस नल्ले नरूला ने अंत में विश्वास के व्यापार की बाजी खेली और उस में निर्मल बाबा के नाम से छा गया. आसाराम जो बांझ औरतों की गोद भरने का चमत्कार दिखाता था, उस के आश्रम में गोद कैसे भरी जाती थी. यह आज पूरी दुनिया जानती है.

स्वामी नित्यानंद नित्य प्रतिदिन कितनी औरतों के साथ ध्यान योग करते थे यह दक्षिण की अभिनेत्री के साथ वीडियो में वायरल हो चुका है.

ये भी कुछ कम नहीं

63 साल का बाबा रामपाल अपने आश्रम में कई महिलाओं और बच्चों को कैद कर के रखता था. अपने आश्रम से कई गैरकानूनी कामों को अंजाम देने वाला रामपाल आज पुलिस की गिरफ्त में है. एक मामूली कर्मचारी से शुरुआत कर विश्व की टौप हस्तियों में एक तांत्रिक के रूप में विख्यात चंद्रास्वामी सब से ज्यादा तब चर्चा में आया जब उस के आश्रम पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी और वहां डीलर अदनान खागोशी के 11 मिलियन डौलर के औरिजिनल ड्राफ्ट मिले. चंदास्वामी की अभी हाल ही में मृत्यु हो गई है.

ओशो उन लोगों में शामिल थे, जिन से अमेरिका भी डरता था. अपने आश्रम में खुला व्यभिचार कराने और उसी को एकमात्र ईश्वर प्राप्ति का मार्ग मानने वाले ओशो पर अपने अमेरिकी आश्रम में समर्थकों की हत्या का प्लान रचने जैसे कई आरोप लगे.

कल्याण सिंह के करीबी भाजपा के सांसद रह चुके तांत्रिक साक्षी महाराज को कौन नहीं जानता? 27 मार्च, 2009 को साक्षी महाराज के आश्रम से एक 24 वर्षीय युवती लक्ष्मी का शव बरामद हुआ तो हड़कंप मच गया. साक्षी पर जमीन हथियाने और यौन उत्पीडन के आरोप समयसमय पर लगते रहे हैं. आश्रम के रूप में साक्षी के पास अच्छीखासी संपदा एकत्र है.

इन के लिए धंधा है धर्म

देश भर में 1 रुपए में शिक्षा देने का दावा करने वाले पायलट बाबा ने फ्रौड कर के करोड़ों रुपए कमाए. बाबा अपनी ऊंची पहुंच के कारण बचे हुए हैं. वृंदावन में एक बाबा भगवताचार्य राजेंद्र उर्फ पोर्न स्वामी को पकड़ा गया था. उस के बारे में खुलासा हुआ कि वह अश्लील फिल्में शूट करता है. उस के पास से कुछ ऐसी फिल्में भी बरामद हुईं, जिन में राजेंद्र विदेशी युवतियों के साथ स्वयं अप्राकृतिक यौनाचार करता दिखा. इतना ही नहीं राजेंद्र ने अपनी पत्नी की भी अश्लील सीडी बना कर बाजार में उतार दी थी. बाबा गुरमीत रामरहीम पर कभी आश्रम में रह रहे लोगों की नसबंदी कराने, तो कभी चरित्रहीनता के इलजाम लगते आए हैं. इन दिनों वह अपने रौकस्टार रूप के लिए मशहूर है.

विवादित संत स्वामी भीमानंद का नाम देश भर में बड़े लैवल का सैक्स रैकेट चलाने को ले कर सामने आया. 1997 में उसे लाजपत नगर से पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कुमार स्वामी बाबा मंत्रों से रोग सही करते हैं.

धर्म की दुकानदारी

दिवंगत सत्य साईं बाबा के भक्तों, वीआईपी भक्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी है. पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, वीएचपी के अशोक सिंघल और आरएसएस के सभी बड़े नेता उन के दरबार में जाते थे.

अगर ये लोग इतने ही चमत्कारी हैं, तो अपने लिए धन चमत्कारों से ही क्यों नहीं इकट्ठा करते हैं. लोगों से चढ़ावा क्यों लेते हैं? मंदिर बनवाने के बजाय अस्पताल और शिक्षा केंद्र क्यों नहीं बनवाते? जितने रुपए प्रेम मंदिर और जयगुरुदेव आश्रम के निर्माण में लगे अगर उतने रुपए से विश्वस्तरीय शिक्षा केंद्र और अस्पताल खोले जाते, तो जनता का कितना कल्याण होता? मगर इन्हें तो दुकान से आए पैसे दुकान में ही लगाने थे ताकि ज्यादा से ज्यादा ग्राहक कटें. ऐसी सोच एक पुजारी नहीं दुकानदारी में माहिर सयाना ही रख सकता है.

तंत्रमंत्र के नाम पर धोखा

अंधविश्वासों का दूसरा बड़ा वर्ग है मंत्रतंत्र. अकसर मुसलिम बाबा वशीकरण से विरोधी और उदासीन व्यक्ति को 24 घंटे में अपने वश में करने की गारंटी देते हैं, मगर व्यक्ति 24 घंटे इंतजार करता रह जाता है और बाबा दूसरा मुरगा फंसाने के लिए उड़न छू हो जाते हैं. जादूटोना, शकुन, मुहूर्त, मणि, ताबीज आदि इन्हीं धूर्तों के फैलाए अंधविश्वास हैं. ये लोग अदृश्य शक्तियों का भय दिखा कर और मनगढंत कहानियां जैसेकि पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थित है. वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएं हैं. भूकंप की अधिष्टात्री एक देवी है. रोगों की वजह प्रेतपिशाच हैं. औरतों के नंगा हो कर खेत जोतने और मेढकमेढकी का विवाह करवाने से पानी बरसवाने के लिए इंद्र देवता की मिन्नतें इत्यादि सुना कर लोगों से चढ़ावे और दान के रूप में उन की गाढ़ी कमाई लूटते आए हैं और लूटते रहेंगे.

किसी देश की उन्नति अंधविश्वासों के सहारे नहीं होती. उस के लिए कर्मठता की जरूरत होती है. अमीर देशों में भी अंधविश्वासी हैं पर वहां अंधविश्वास विरोधियों, तार्किकों, वैज्ञानिकों की संख्या भी काफी है, जो समाज को निरंतर आगे ले जाते रहते हैं. भारत में तो कणकण में दकियानूसीपन घुसा है और अब धर्म को देश की बराबरी दे कर अंधविश्वास विरोध को देशद्रोह का दर्जा देने की कोशिश की जा रही है. तमिलनाडु में अध्यादेश साबित करता है कि देश 70 साल में अढाई कोस ही चला है.

– सपना मांगलिक

सरकार की मंशा पर संदेह

सरकार चिकित्सा को सुलभ व सस्ता करने के लिए कानून बनाने जा रही है कि डाक्टर मरीजों को नुसखा या प्रिस्क्रिप्शन देते समय दवाओं के ब्रैंड नाम न लिख कर कैमिकल नाम लिखें ताकि मरीज वे दवाएं किसी भी कंपनी की खरीद सकें. ब्रैंडेड दवाइयां देने के चलन के कारण मैडिकल उद्योग में बहुत बेईमानी फैली हुई है और सरकार की सोच है कि इस से यह रुकेगी और इलाज सस्ता हो जाएगा.

आरोप है कि ब्रैंडेड दवाइयां बहुत महंगी होती हैं, क्योंकि दवा कंपनियां डाक्टरों को घूस दे कर उन्हें महंगी ब्रैंडेड दवाइयां लिखने को प्रेरित करती हैं. इस के लिए डाक्टरों को महंगे उपहार भी दिए जाते हैं, नकद कमीशन भी दिया जाता है और निशुल्क विदेश यात्राएं भी कराई जाती हैं.

इंडियन जर्नल औफ फार्माकोलौजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐंटी ऐलर्जी की दवा एलेरिड टैबलेट की 10 गोलियों का पत्ता 35 में बिकता है, तो अच्छी कंपनी के जैनेरिक नाम से यह 2.50 में थोक बाजार में मिल सकता है. महंगी दवाओं में यह अंतर और ज्यादा है और चाहे नए उपचार आ गए हों, देश की गरीब जनता को अभी भी बेइलाज मरना पड़ता है.

पर इस का हल फार्मा कंपनियों को निचोड़ना नहीं है. फार्मा कंपनियां बहुत ही प्रतियोगी वातावरण में काम करती हैं और एक ब्रैंडेड दवा के कई पर्याय मिलते हैं. कई बार कई कंपनियां मिल कर कार्टेल बना लेती हैं पर इस के बावजूद जमीनी हकीकत में उन्हें डिस्काउंट, उधारी, उपहारों पर निर्भर रहना ही पड़ता है. मोटा मुनाफा वे जरूर कमा रही हैं पर उस के पीछे दवा उद्योग का चरित्र है, लालच ही नहीं.

दवाओं को विकसित करने व उन्हें बीमारियों से बचाने योग्य बनाने में लाखों नहीं, अरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अगर संतोषजनक दवा बन भी जाए तो हर मरीज के लायक है या नहीं, यह पक्का नहीं होता. डाक्टरों को टे्रनिंग देने का भी काम मुश्किल होता है, क्योंकि डाक्टर तो सारे देश में फैले हैं. एक अच्छीभली दवा कब बेकार हो जाए या प्रतियोगी की बेहतर दवा आ जाए, इस का भरोसा नहीं होता.

यह जोखिम अंतत: तो मरीज को ही झेलना पड़ेगा. दवाओं को सस्ती करने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि दवा उद्योग उत्साह ही खो बैठे और दवाएं मिलना ही दूभर हो जाए और तब लोगों को मंदिरों, मसजिदों में दुआओं के सहारे इलाज खोजना पड़े.

सरकार का छिपा उद्देश्य कहीं यही तो नहीं कि जिस मंदिर के नाम पर वह सत्ता में आई, वे फलतेफूलते रहें?

टीवी के ये तकियाकलाम बन गए हैं जिंदगी का हिस्सा

टेलीविजन में ऐसे कई किरदार हैं, जो लीड एक्टर ना होते हुए भी सिर्फ अपने तकियाकलाम संवादों की वजह से मशहूर हो गये. इन तकियाकलामों का ऐसा असर हुआ कि अब ये तकीयाकलाम आम बोल-चाल का हिस्सा बन गये. किसी ना किसी स्थिति में ये तकियाकलाम फिट हो जाते हैं. पेश हैं ऐसे ही तकियाकलाम-

1. जब पकड़ी जाए आपकी चोरी: झूठ तो मैं बोलती नहीं

आपने खुद गौर किया होगा कि जब आपकी कोई चोरी पकड़ी जाती है तो आप सबसे अधिक बार यह बात दोहराते हैं कि आपने चोरी नहीं की, आप झूठ कभी नहीं बोलते. ऐसे में आपको ‘विदाई’ शो में आशिता धवन वाला वह डायलॉग जरूर याद आता होगा कि झूठ तो मैं बोलती नहीं.

2. एग्जाम में मिलें फुल मार्क्स: क्या बात, क्या बात… ठोको ताली

आपको जब भी एग्जाम में अच्छे नंबर मिलते हैं, या किसी अपने की कामयाबी के बारे में सुनते हैं तो आप उन्हें यही बोल बैठते हैं कि क्या बात, क्या बात. ठीक वैसे ही जैसे मिथुन चक्रवर्ती अच्छी परफॉर्मेंस को देखकर ‘डांस इंडिया डांस’ में कहा करते थे. और अब तो, सिद्धू जी का पॉप्यूलर तकियाकलाम ठोको ताली भी साथ देने आ गया है.

3. हो जाए कोई गड़बड़ी: अरा रा रा रा…

‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ शो को ऑफ एयर हुए काफी समय बीत चुका है, लेकिन आज भी अगर आपकी दिनचर्या में कोई गड़बड़ी हो जाए तो आप केतकी दवे के किरदार दक्षा चाची का अरा रा रा रा…बोलना नहीं भूलते होंगे.

4. जब पूरी तरह समझ में आये बात: सही पकड़े हैं

आप काफी देर से किसी को समझा कुछ रहे हैं और वह समझ नहीं पा रहे, मगर जब बात समझ में आ जाये तो जाहिर है, आप यही कह बैठेंगे कि सही पकड़े हैं. ‘भाभी जी घर पर हैं’ की अंगूरी भाभी का यह संवाद टीवी के सुपरहिट तकियाकलामों में से एक हैं. अंगूरी भाभी के किरदार को इस शो से काफी लोकप्रियता हासिल हुई.

5. अगर कोई हो नापसंद: कौन है ये आदमी

अगर आपको कोई नापसंद हो और आप उसको बेवजह झेलते जा रहे हैं, लेकिन कुछ देर के बाद जब पानी सिर से ऊपर हो जाये और आप उस आदमी को अपने सामने एक मिनट भी बर्दाश्त ना कर पाएं तो आप उस वक्त कपिल की बुआ की तरह ‘कौन है ये आदमी’ कहकर उन्हें भगाने की कोशिश कर सकते हैं.

6. बीवी ने बनाया हो पति की पसंद का मनपसंद खाना: सुपर से ऊपर

परफेक्ट बीवी जब अपने पति के लिए बिल्कुल उनकी ही पसंद का खाना बना दें तो ऐसे में पति खुश होकर शिल्पा शेट्टी का फेवरिट तकियाकलाम सुपर से भी ऊपर बार- बार दोहराते हैं और माधुरी दीक्षित का ‘झलक दिखलाजा’ वाला अंदाज परफेक्ट अगर पति की तरफ से पत्नी के खाने की लिए निकल जाए तो फिर क्या कहने.

गुलाब से दिखें गुलाबी

प्यार का प्रतीक माने जाने वाले गुलाब से न सिर्फ आप अपने प्रियतम को प्रपोज कर सकती हैं बल्कि आप इस से अपना रंगरूप भी निखार सकती हैं. इस संबंध में जानें एल्पस ब्यूटी क्लीनिक ऐंड एकैडमी की डायरैक्टर भारती तनेजा से

– गुलाब की पत्तियों को कुछ घंटे तक धूप में सुखा कर पानी में उबाल लें. जब पानी आधा रह जाए तब इसे छान कर एक बोतल में रख लें. इस प्राकृतिक टोनर को फ्रिज में रखें और दिन में 2 बार रूई की मदद से स्किन टोन करें.

– होंठों की रंगत को गुलाबी करने के लिए मलाई में गुलाब की पंखडियां मिलाएं और इस पेस्ट को लिप पैक की तरह अपने होंठों पर रात में सोने से पहले लगाएं. सुबह उठ कर लिप्स को पानी की मदद से साफ करें. इस पैक में शामिल मलाई से लिप्स पोषित होंगे तो वहीं गुलाब की लालिमा से खिल भी उठेंगे.

– गुलाब की पत्तियों का प्रयोग नहाने के पानी में भी किया जा सकता है. इस के लिए नहाने के पानी में रात भर गुलाब की पत्तियां डाल दें और सुबह इस से एरोमैटिक बाथ करें. ऐसा करने से पूरा दिन फ्रैशनैस बनी रहेगी और आप से भीनीभीनी खुशबू भी आती रहेगी. 

– पानी में गुलाब की पंखडि़यां डाल कर उस में अपने पैरों को डाल कर भिगो दें. इस से पैरों को न केवल आराम मिलता है बल्कि उन की सुंदरता में भी निखार आता है.

– आंखों को चमकदार बनाने और उन की थकान दूर करने के लिए आप रूई को गुलाबजल में भिगो कर उस का प्रयोग आंखों के ऊपर भी कर सकती हैं. यह आंखों की सूजन को कम करने में मदद करता है.

– गुलाब में मौजूद ऐंटीबैक्टीरियल गुण एक्ने को दूर करने में लाभदायक होते हैं. इन पत्तियों से त्वचा की जलन दूर होती है और रैडनैस भी कम होती है. इस की पत्तियों को पानी में भिगोएं और पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर सादे पानी से मुंह धो लें. बेहतर परिणाम के लिए ऐसा हफ्ते में 3 बार करें.

– ड्राई स्किन है तो गुलाब की पत्तियों को दूध में भिगो कर पेस्ट बनाएं. फिर इस में थोड़ा सा शहद मिला कर फेस पर लगाएं. कुछ देर बाद कुनकुने पानी से फेसवाश कर लें.

– गुलाब जल की खासीयत है कि इस का प्रयोग हर प्रकार की स्किन यहां तक कि सैंसेटिव स्किन पर भी किया जा सकता है.

मुझे अपने पति के साथ शारीरिक संबंध बनाना अच्छा नहीं लगता. बताएं मैं क्या करूं.

सवाल

मुझे अपने पति के साथ संबंध बनाना अच्छा नहीं लगता. फिर भी जब भी वे सहवास करते हैं तो मैं साथ देने की भरपूर कोशिश करती हूं. मेरी शादी में कतई दिलचस्पी नहीं है पर बेटी के पैदा होने के बाद साथ रहना पड़ रहा है. बताएं क्या करूं?

जवाब

आप ने पूरा खुलासा नहीं किया कि आप की उदासीनता की वजह क्या है. घर का वातावरण आप के मनमाफिक नहीं है या फिर पति आप को प्यार नहीं करते. सैक्स में रुचि कम ज्यादा होना आम बात है पर उस में आप की सोच सकारात्मक है कि इच्छा न होने पर भी आप पति को सहयोग देती हैं. आप को जीवन को भी इसी तरह सकारात्मक नजरिए से देखना चाहिए. कोई समस्या है तो पति के साथ मिलबैठ कर उस का समाधान निकालना चाहिए ताकि जीवन खुशहाल हो सके. आप के साथ अब आप की बेटी की खुशियां भी जुड़ी हैं. उसे भी आप तभी खुशियां दे सकेंगी जब स्वयं खुश रहेंगी. इस के लिए आप को स्वयं ही प्रत्यन करना होगा.

फिल्म रिव्यू : ट्यूबलाइट

बौलीवुड के कुछ फिल्मकार बड़े कलाकारों का साथ मिलते ही दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने या दर्शकों को एक बेहतरीन कहानी सुनाने की बनिस्बत अपने एजेंडे को फिल्म के माध्यम से पेश करने लग जाते हैं. परिणामतः फिल्म इतनी खराब बनती है कि दर्शक फिल्म को सिरे से नकार देता है. फिल्मकार की इस हरकत का खामियाजा फिल्म से जुड़े बडे़ स्टार को झेलना पड़ता है कि दर्शक ने इस स्टार की फिल्म को स्वीकार नहीं किया. ऐसे ही फिल्मकार हैं कबीर खान. कबीर खान की फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ उनके निहित एजेंडे वाली फिल्म है, जिसे वह बेहतर कहानी व मनोरंजन वाली फिल्म के रूप में नहीं बना सके. परिणामतः फिल्म के कलाकारों की अभिनय क्षमता, कैमरामैन का बेहतरीन काम, शाहरुख खान की मौजूदगी भी इस फिल्म को डूबने से नहीं बचा सकती.

यूं तो फिल्मकार के अनुसार ‘‘ट्यूबलाइट’’ एक बहुत बुरी तरह से असफल रही अंग्रेजी फिल्म ‘‘लिटिल ब्वाय’’का भारतीयकरण है. कबीर खान का दावा है कि उनकी फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ की वजह से ‘लिटिल ब्वाय’ कोलोग जानने लगे हैं. मगर फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ देखकर फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ के निर्माता सोच रहे होंगे कि काश उन्होंने अपनी फिल्म के अधिकार कबीर खान को न दिए होते. जिन्होंने फिल्म ‘लिटिल ब्वाॅय’ देखी है,उन्हे इस बात का अहसास हो जाता है कि ‘ट्यूबलाइट’ और ‘लिटिल ब्वाय’ दोनों ही फिल्में एजेंडे वाली हैं. फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ में बच्चे को बाइबल सिखाने का मसला है, तो कबीर खान ने अपनी फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ को इस एजेंडे के साथ बनाया है कि यदि चीन यानी किसी भी देश का निवासी तीन पीढ़ियों से भारतमें रह रहा है, तो वह हिंदुस्तानी ही होता है, उसके हिंदुस्तानी होने पर शक या सवाल नहीं उठाया जासकता.

फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ की कहानी सितंबर 1962 में उत्तर भारत के कुमायूं क्षेत्र के अंतर्गत जगतपुर नामक एक गांव की है, जहां लक्ष्मण (सलमान खान) को बचपन से ही ‘ट्यूबलाइट’ पुकारते हैं. क्योंकि वह थोड़ा मंद बुद्धि है. पर उसका छोटा भाई भरत (सोहेल खान) उसे कैप्टन मानता है. भरत की वजह से ही लोग ‘ट्यूबलाइट’ बुलाना बंद कर देते हैं. लक्ष्मण और भरत के माता पिता बचपन में ही गुजर चुके हैं. इनकी परवरिशबन्ने खां (ओम पुरी) ने अपने आश्रम में रखकर की है. भारत चीन सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना में नवयुवकों की भर्ती शुरू की जाती है. बन्ने खां की सलाह पर भरत आर्मी में भर्ती हो जाता है. लक्ष्मण भी आर्मी में जाना चाहता है. पर उसकी मंदबुद्धि के कारण उसका चयन नहीं हो पाता.

भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ जाता है. अब लक्ष्मण अपने भाई भरत को लेकर परेशान है. इसी बीच गांव में एक जादूगर (शाहरुख खान) आता है. जो कि लक्ष्मण को अपने शो का हिस्सा बनाकर साबित करता है कि यदि आप पूरे यकीन के साथ किसी काम को अंजाम दें, तो हो सकता है. लक्ष्मण दूर से अपने हाथों के इशारे से एक बोटल हिला देता है. अब इसमें जादूगर का क्या खेल रहा? यह बात सामने नहीं आती है. उसके बाद बन्ने खां भी लक्ष्मण को समझाते हैं कि यदि वह यकीन रखे, तो युद्ध जल्दी खत्म होगा और उसका भाई वापस आ जाएगा.

इसी बीच कलकत्ता से एकदम चीनी जैसी दिखती एक महिला ले लेलिन (जू जू) अपने बेटे गुओ (मातिन) के साथ जगतपुर गांव की सीमा के पास अपने घर में रहने आती है. चीन के साथ युद्ध छिड़ चुका है. इसलिए लक्ष्मण और गांव के दूसरे युवक ले लेलिन को चीनी समझकर उनके घर को जलाने की असफल कोशिश करते हैं. तब बन्ने खां लक्ष्मण को समझाते हैं कि यदि वह महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलते हुए चीनी से दोस्ती करेगा, तो उसका भाई जल्दी वापस आ जाएगा. लक्ष्मण की लेलिन व गुओ से दोस्ती हो जाती है. ले लेलिन भी लक्ष्मण से यकीन की बात करती है. इनकी दोस्ती गांव के दूसरे लोगों को पसंद नहीं आती. क्योंकि सभी उसे चीनी समझकर दुश्मन मानते हैं.

एक मुकाम आता है, जब पूरे गांव के बीच ले लेलिन कहती है कि,‘‘वह पूरे दिल से हिंदुस्तानी है. उसके हिंदुस्तानी होने पर सवाल उठाने का हक किसी को नहीं है.’ कई घटनाक्रम बदलते हैं. भूकंप आता है और लक्ष्मण को लगता है कि उसके यकीन से चट्टान हिली. इधर युद्ध बंद हो जाता है. ले लेलिन वापस कलकत्ता जाने की बात करती हैं. भरत मिल जाता है, जिसका सैनिक छावनी में इलाज चल रहा है.

सलमान खान एकदम नए अवतार में हैं. लेकिन मंदबुद्धि इंसान के पूरे मैनेरिजम को पकड़ने में वह असफल रहे हैं. वैसे भी इन स्टार कलाकारों का अपना मैनेरिज्म लोगों के सिर पर इस कदर चढ़कर बोलता है कि दिव्यांग किरदारों को निभाना इनके लिए आसान नहीं कहा जा सकता. स्व.ओम पुरी व बाल कलाकार मातिन रे तंगू ने बेहतरीन काम किया है. मगर ‘बजरंगी भाईजान’ जैसा करिश्मा इस बार बाल कलाकार व सलमान खान के बीच नहीं जम पाया. फिल्म में शाहरूख खान की छोटी सी भूमिका प्रभावित नहीं करती. बृजेंद्र काला, मो.जीशान अयूब व यशपाल शर्मा ने बेहतरीन काम किया है. सोहेल खान के हिस्से कुछ खास करने का है नहीं.

फिल्म की गति बहुत धीमी है. पटकथा की कमजोरी के चलते इंटरवल से पहले कहानी किसी अन्य मोड़ पर होती है, जबकि इंटरवल के बाद कहानी किसी अन्य मोड़ पर होती है. कमजोर पटकथा की वजह से पूरी कहानी बिखरी हुई नजर आती है. कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते फिल्म में यकीन करने का मुद्दा भी उभर नही पाता. फिल्म में इमोशनल पक्ष को उभारने के लिए पटकथा व निर्देशन के स्तर पर मेहनत नहीं की गयी. परिणामतः कई इमोशनल सीन भी दर्शकों को भावुक नहीं बना पाते. फिल्म अपने पड़ोसियों से प्यार करने की बात करती है, मगर यह मुद्दा भी उभर कर नही आता.

फिल्म में ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का संदेश देने का असफल प्रयास किया गया है. क्योंकि संदेश वाहक दूर नजर आता है. हर सीन इतना बनावटी लगता है कि यह संदेश ‘हिंदी चीनी बाय बाय’ में बदल जाता है. फिल्म में रंगभेद का मुद्दा भी है. उत्तरपूर्वी भारतीयों के साथ जिस तरह का भेदभाव होता है, उस हकीकत को सही अर्थों में पेश करने में ‘ट्यूबलाइट’ बुरी तरह से असफल रहती है. फिल्म के क्लायमेक्स में कोई रोचकता नहीं है. कबीर खान तो युद्ध दृश्यों को फिल्माने में महारत रखते हैं. उन्होंने डाक्यूमेंट्री फिल्मकार के रूप में कई युद्ध दृश्यों को चित्रित किया है, पर इस फिल्म में वह विफल रहे.

फिल्म का रेडियो वाला गाना प्रभावित करता है. कैमरामैन असीम मिश्रा तारीफ के हकदार हैं.

दो घंटे 16 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ का निर्माण ‘‘सलमान खान फिल्मस’’ के बैनर तले सलमा खान व सलमान खान ने किया है. लेखक व निर्देशक कबीर खान, संगीतकार प्रीतम, कैमरामैन असीम मिश्रा तथा कलाकार हैं- सलमान खान, सोहेल खान, स्व. ओम पुरी, बृजेंद्र काला, मो.जीशान अयूब, झू झू,बाल कलाकार मातिन रे तंगू, यशपाल षर्मा व मेहमान कलाकार शाहरुख खान.

नौकरी छोड़ने जा रही हैं तो ध्यान दें

कुछ ऐसे जरूरी कागजात होते हैं, जिन्‍हें सभी को नौकरी छोड़ने से पहले अपने पुराने इंप्‍लॉयर से जरूर ले लेने चाहिए. जिससे आपको टैक्‍स भरने में मुश्किल न आए.

ऐसी कई समस्‍याएं हैं जो नौकरी छोड़ने के बाद आपको हो सकती हैं और ये किसी एक के साथ ही नहीं, बल्‍कि हजारों लोगों के साथ होती हैं, जिन्‍होंने साल के बीच में ही जॉब छोड़ी है. यही ध्‍यान में रखते हुए आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन जरूरी कागजातों के बारे में जिन्‍हें आपको नौकरी छोड़ते वक्‍त जरूर ले लेने चाहिए. जिससे आपको टैक्‍स भरने में कोई मुश्किल न आए.

नौकरी छोड़ने से पहले जरूर ले लें फॉर्म 16

अक्‍सर हम जॉब छोड़ते समय हम एचआर के पास नो ड्यूज और एनओसी तो जमा करा देते हैं, लेकिन कुछ जरूरी कागजात नहीं लेते. इनमें ही सबसे अहम है फॉर्म 16. अक्‍सर हमें इंवेस्‍टमेंट प्रूफ और टैक्‍स भरते वक्‍त इस फॉर्म 16 की याद आती है. फॉर्म 16 नहीं होने की स्थिति में टैक्‍स की सही गणना करना मुश्किल होता है. ऐसे में जब भी जॉब छोड़ें अपने एचआर से मौजूदा साल के लिए फॉर्म 16 लेना न भूलें.

इंवेस्‍टमेंट प्रूफ

आपकी नई या पुरानी कंपनी का एचआर आपकी सैलरी में से टीडीएस की गणना आपके द्वारा किए गए इंवेस्‍टमेंट डिक्‍लेरेशन के आधार पर करता है. यह डिक्‍लेरेशन आपको हर साल की शुरूआत में करना होता है. अगर, आप अपने नए नियोक्‍ता के पास मिली सैलरी की जानकारी नहीं देती हैं तो नया नियोक्‍ता टैक्‍स की गणना बचे हुए महीने पर करता है. यह भी संभावना हो सकती है कि आपने इनकम टैक्‍स की धारा 80C के तहत अधिक निवेश किया है और नियोक्‍ता को कम बता रहे हैं. इससे बचने के लिए इनकम टैक्‍स फाइल करने से पहले अपने निवेश के कागजात से सही ब्‍योरा तैयार कर लें.

सैलरी स्लिप और पार्ट बी की जानकारी

अक्‍सर इंप्‍लॉयर हायर टैक्‍स ब्रेकेट से इंप्‍लॉई को राहत देने के लिए सैलरी पॉट बी में देते हैं. जॉब छोड़ते वक्‍त आपको अपने पार्ट बी का ठीक-ठीक उल्‍लेख करने वाली सैलरी स्लिप भी नए इंप्‍लॉयर को उपलब्‍ध करानी चाहिए. इसके अलावा कंपनी की ओर से मिले बोनस आदि की जानकारी से जुड़े कागजात भी साथ रखने चाहिए.

प्रोविडेंट फंड खाते का यूएएन नंबर

अक्‍सर लोग जॉब छोड़ते वक्‍त अपना प्रोविडेंट फंड खाते को यूं ही छोड़ देते हैं. और नई नौकरी के साथ नया खाता खुलवा लेते हैं. ईपीएफओ ने अब यूएएन नंबर के माध्‍यम से पुराने ईपीएफ अकाउंट को नए खाते में ट्रांसफर की सुविधा दी है. आप चाहें तो दोनों खातों को एक खाते में टांसफर कर सकते हैं. इसके अलावा आपके पास यह पैसा निकालने का ऑप्‍शन होता है. आप यह जान लें कि लागातार 5 साल तक सर्विस पूरा किए पैसा निकालना टैक्‍सेबल इनकम होता है. पीएफ का पैसा ट्रांसफर करने के लिए फॉर्म 10C और फॉर्म 19 भरें.

दोनों एचआर से मिली इनकम को करें वैरीफाई

टैक्‍स की गणना करने के लिए पुरानी कंपनी में X महीने में मिली सैलरी और नई कंपनी में Y महीने में मिली सैलरी को जोड़े. इसके बाद आपने 80C में निवेश की गई राशि को जोड़े. फिर दोनों नियोक्‍ता द्वारा काटे गए टैक्‍स को एक जगह मिलाएं. अब इनकम टैक्‍स की वेबसाइट जा कर टैक्‍स कलकुलेट करें. अगर, आप पर पिछला कोई बकाया टैक्‍स है तो इनकम टैक्‍स फाइल करने से पहले उसका भुगतान करें. इस तरह आप सही तरीके से अपना इनकम टैक्‍स फाइल कर सकती हैं.

जीवन की दौड़ में भाग नहीं सकते तो चलिए जरूर

जीवन की दौड़ अब लंबी चलने लगी है, औरतों के लिए भी. पहले जैसे ही बच्चे बड़े हुए और घर से ज्यादा घर से बाहर रहने लगें तो समझो मां बस एक चौकीदार की तरह घर में रहती है. यह कामकाजी और प्रसिद्घ कैरियर वालियों के साथ भी होता रहा है. अभिनेत्रियों को घरों में बंद हो कर रह जाना पड़ता था या फिर शादी कर के गुमनामी में जीवन गुजारने को मजबूर होना पड़ता है. अब दिन फिर रहे हैं.

श्रीदेवी ने फिल्म ‘इंग्लिश विंगलिश’ से नाम कमाया और अब उस की 300वीं फिल्म रिलीज होने वाली है. रानी मुखर्जी फिल्म ‘हिचकी’ में अभिनय कर रही हैं. काजोल तमिल फिल्म में धनुष के साथ काम कर रही हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन भी कई फिल्मों में प्रयास कर रही हैं.

असल में बच्चों के बड़े हो जाने के बाद मांओं के पास अपार अवसर होते हैं पर कुछ पारिवारिक दबाव, रीतिरिवाजों और खुद के ओढ़े आलस्यपन के कारण औरतें 40 की उम्र में घर में बैठ जाना चाहती हैं. जो काम कर रही होती हैं, वे भी नए प्रयोग छोड़ देती हैं और जहां है, जैसा है को स्वीकार कर लेती हैं. एक तरह से उन को जंग लग जाता है.

यह ठीक है कि हरेक के पास बहुत कुछ करने के न अवसर होते हैं न हुनर पर यदि आंखें खोल कर चला जाए और व्हाट्सऐप और किट्टी पार्टियों को छोड़ कर कुछ आगे की सोची जाए तो पुन: कैरियर बनाना संभव है. बच्चों को पैदा करना, बड़ा करना, उन के लिए सुरक्षित घर तैयार करना एक कैरियर है पर जब इस कैरियर में संतोष मिलना कम हो जाए तो समय और शक्ति बेकार करने की जगह कुछ नया करने को तैयार रहें. किट्टी पार्टियां, सत्संग, भजन मंडली और सोशल मीडिया क्रिएटिविटी को मारते हैं. ये औरतों के विकास व आत्मविश्वास में बाधक हैं.

यह सोचना गलत होगा कि अवसर नहीं हैं. अवसर हैं पर आमतौर पर थोड़े से पैसे वाली औरतें भी अपनी कीमत कुछ ज्यादा लगाने लगती हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें बाहर वह आदर, सम्मान, पैसा, संतोष, सुख मिले, जो घर में मिलता है. यह संभव नहीं है. जब तक बाजार आप की कीमत परखेगा नहीं, न के बराबर देगा पर बाजार का हिसाब है कि वह कुछ तो देगा ही.

घर की चौकीदार, किट्टी पार्टी की शान या भजन मंडली की सब से ज्यादा जोर से तालियां पीटने वाली बनने की जगह एक ग्रौसरी स्टोर में

4 घंटे की कैशियर की नौकरी ज्यादा लाभदायक होगी. इस तरह की सैकड़ों नौकरियां या अवसर बिखरे पड़े हैं पर इन में घर जैसा सुख नहीं, रौब नहीं, करा या न करा की गुंजाइश नहीं.

जीवन की दौड़ में भाग नहीं सकते तो चलिए तो सही. खाली न बैठें, यही सब से बड़ी आवश्यकता है.

प्रेम बड़ा न रिश्ता सब से बड़ा रुपया

भारतीय टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस जब अभिनेता संजय दत्त की पूर्व पत्नी रिया पिल्लै के साथ लिव इन पार्टनर के रूप में रह रहा होगा, तो उसे लगा होगा कि वह कोई ट्रौफी अपने से ज्यादा चमत्कारी पैसे वाले से छीन लाया है. उसे क्या पता था कि वह एक जंजाल में फंस रहा है. अब लगभग 8 साल से लिव इन पार्टनर रह रहे उन का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है जहां अदालत ने भी हाथ झाड़ से लिए हैं. दरअसल, 2014 में रिया ने पेस के खिलाफ डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट के तहत केस किया था.

रिया पिल्लै अब अलग होने के लिए 20 करोड़ और एक मकान मांग रही है. मजेदार बात यह है कि एक मकान वह संजय दत्त से भी तलाक के समय हथिया चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने चैंबर में बुला कर दोनों को समझानेबुझाने की कोशिश भी की पर बेकार, क्योंकि भूखी शेरनी को मालूम है कि उसे मनचाहा शिकार उस की शर्तों पर मिल जाएगा.

अदालतों में चल रहे हाई प्रोफाइल तलाक के मामलों में ज्यादातर में पत्नियां ही हावी होती हैं और उन का रुख होता है कि चाहे कुछ भी हो जाए उस पति को तो सबक सिखाना होगा जिस ने उस जैसी सुंदर, स्मार्ट औरत को छोड़ने की बात भी सोची. आखिर यों ही तो उस के बीसियों दीवाने नहीं हैं और दीवानों में अच्छीखासी हैसियत वाले भी हैं जो घर, पत्नी, धंधा छोड़ कर उस पर मंडराते रहते हैं और उसे साथ ले चलने में उन की गरदन शुतुरमुर्ग जैसी ऊंची हो जाती है. करिश्मा कपूर के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सुनंदा पुष्कर भी उसी श्रेणी में आती है.

सुंदर स्मार्ट होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे जहां चाहो भुना लो. यह एक जिम्मेदारी भी है अपने प्रति ही सही. ज्यादा अकड़ अकसर महंगी पड़ती है. जवानी अब ठीक है 4 दिन की नहीं होती या फिर साल भर तक चल जाती है पर उस के बाद जो तनाव व अकेलापन होता है वह शराब की बोतलों से दूर होता है. कितनी ही ट्रौफी पत्नियां अकसर अकेलेपन और निराशा की शिकार होती हैं. हां, जिन के बच्चे मां के प्रति अनुग्रहित होते हैं, वे जरूर आखिर तक अपने तेवर बनाए रख पाती हैं पर भारी कीमत देनी होती है.

पतिपत्नी संबंध में ऊंचनीच नहीं तो बराबरी तो है ही. सुंदरता के बल पर औरतें अपने को विशिष्ठ समझेंगी तो पछताएंगी. रिया पिल्लै की मांग चाहे कितनी तार्किक हो पर अगर सुप्रीम कोर्ट के जज भी उसे समझा न पाएं तो मान लें कि वह कुछ अति दंभी ही है. बेचारा लिएंडर पेस.

टीवी की दुनिया के टॉप ऐतिहासिक धारावाहिक

घर पर रखा टीवी आपको कई बार इडियट बॉक्स लगता होगा जो तरह-तरह की चीजें दिखाता हैं मगर वो जमाना गया जब इस पर सिर्फ एंटरटेनिंग शोज आते थे. अब टीवी को इडियट बॉक्स कहना बंद कर दीजिये क्यूंकि अब ये आपको इतिहास का ज्ञान भी देने लगा है.

रामायण और महाभारत से आगे बढ़कर अब टीवी पर कई ऐसे धारावाहिक आतें हैं जो आपको उन लोगों के बारें में बतातें हैं जिनके बारे में आपने सिर्फ पढ़ा होगा. टीवी के कुछ खास हिस्टोरिकल शोज.

पेशवा बाजीराव

शो पेशवा बाजीराव पंतप्रधान श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ बाळाजी भट्ट की जीवनी पर आधारित है जिसकी कहानी बड़े पर्दे पर रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण की फिल्म “बाजीराव मस्तानी” के जरिये लोगों के सामने आई. लेकिन, सोनी टीवी चैनल पर आ रहे इस शो में बाजीराव की कहानी उनके बचपन से दिखाई गई है और वो भी पूरी डिटेल के साथ. बाजीराव का किरदार निभा रहे चाइल्ड आर्टिस्ट रूद्र सोनी भी अपने अभिनय से सबका दिल जीत रहे हैं.

शेर-ए-पंजाब: महाराजा रणजीत सिंह

सिख साम्राज्य के लीडर महाराजा रणजीत सिंह की कहानी आप लाइफ ओके पर देख सकतें हैं. बता दें कि महज 12 साल की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह ने अपने पिता को खो दिया और इसके बाद उन्होंने अकेले पूरा राजपाट संभाला. छोटी सी उम्र में चेचक की बीमारी की वजह से उनकी एक आंख खराब हो चुकी थी. महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं. यही नहीं, यह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एकजुट करके रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया.

भारत के वीरपुत्र: महाराणा प्रताप

डेली सोप से हटकर इतिहास के कुछ पन्ने आपको टीवी पर दिखाने की इस लिस्ट में शामिल हैं महाराणा प्रताप की कहानी भी है. महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है. महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कई बार युद्ध में भी हराया. मई 2013 से दिसम्बर 2015 तक चले इस शो में महाराणा प्रताप सिंह का किरदार शरद मल्होत्रा ने निभाया था.

एक वीर स्त्री की कहानी: झांसी की रानी

सबसे मशहूर हिस्टोरिकल शो में से एक झांसी की रानी के बारे में तो आप जानते ही होंगे. लोगों ने इस शो को बहुत प्यार दिया. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्म से लेकर उनका झांसी की रानी बनने तक का सफर इस शो में बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया था. छोटी लक्ष्मीबाई का किरदार निभाया अलका गुप्ता ने और फिर इसे आगे बढाया कृतिका सेंगर ने. यह शो साल 2009 से 2013 तक चला.

जोधा-अकबर

एकता कपूर द्वारा प्रोड्यूस इस शो को हम कैसे भूल सकतें हैं. राजनीतिक फैसलों से जुड़े राजपूत जोधा बाई और मुगल साम्राज्य के राजा अकबर के रिश्ते की यह कहानी बेहतरीन थी. लोगों ने इस शो को बहुत पसंद किया था. हालांकि, जोधा परिधि शर्मा का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाने से इस शो बंद करना पड़ा मगर, इसके रिपीट एपिसोड्स को भी अच्छी खासी टी आर पी मिल रही है.

इन सभी के अलावा, चन्द्रगुप्त मौर्य, धरती का वीर योद्धा: पृथ्वीराज चौहान, रजिया सुलतान, वीर शिवाजी भी इन हिस्टोरिकल टीवी शोज का हिस्सा हैं.

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