फिल्म रिव्यू : ट्यूबलाइट

बौलीवुड के कुछ फिल्मकार बड़े कलाकारों का साथ मिलते ही दर्शकों को मनोरंजन प्रदान करने या दर्शकों को एक बेहतरीन कहानी सुनाने की बनिस्बत अपने एजेंडे को फिल्म के माध्यम से पेश करने लग जाते हैं. परिणामतः फिल्म इतनी खराब बनती है कि दर्शक फिल्म को सिरे से नकार देता है. फिल्मकार की इस हरकत का खामियाजा फिल्म से जुड़े बडे़ स्टार को झेलना पड़ता है कि दर्शक ने इस स्टार की फिल्म को स्वीकार नहीं किया. ऐसे ही फिल्मकार हैं कबीर खान. कबीर खान की फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ उनके निहित एजेंडे वाली फिल्म है, जिसे वह बेहतर कहानी व मनोरंजन वाली फिल्म के रूप में नहीं बना सके. परिणामतः फिल्म के कलाकारों की अभिनय क्षमता, कैमरामैन का बेहतरीन काम, शाहरुख खान की मौजूदगी भी इस फिल्म को डूबने से नहीं बचा सकती.

यूं तो फिल्मकार के अनुसार ‘‘ट्यूबलाइट’’ एक बहुत बुरी तरह से असफल रही अंग्रेजी फिल्म ‘‘लिटिल ब्वाय’’का भारतीयकरण है. कबीर खान का दावा है कि उनकी फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ की वजह से ‘लिटिल ब्वाय’ कोलोग जानने लगे हैं. मगर फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ देखकर फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ के निर्माता सोच रहे होंगे कि काश उन्होंने अपनी फिल्म के अधिकार कबीर खान को न दिए होते. जिन्होंने फिल्म ‘लिटिल ब्वाॅय’ देखी है,उन्हे इस बात का अहसास हो जाता है कि ‘ट्यूबलाइट’ और ‘लिटिल ब्वाय’ दोनों ही फिल्में एजेंडे वाली हैं. फिल्म ‘लिटिल ब्वाय’ में बच्चे को बाइबल सिखाने का मसला है, तो कबीर खान ने अपनी फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ को इस एजेंडे के साथ बनाया है कि यदि चीन यानी किसी भी देश का निवासी तीन पीढ़ियों से भारतमें रह रहा है, तो वह हिंदुस्तानी ही होता है, उसके हिंदुस्तानी होने पर शक या सवाल नहीं उठाया जासकता.

फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ की कहानी सितंबर 1962 में उत्तर भारत के कुमायूं क्षेत्र के अंतर्गत जगतपुर नामक एक गांव की है, जहां लक्ष्मण (सलमान खान) को बचपन से ही ‘ट्यूबलाइट’ पुकारते हैं. क्योंकि वह थोड़ा मंद बुद्धि है. पर उसका छोटा भाई भरत (सोहेल खान) उसे कैप्टन मानता है. भरत की वजह से ही लोग ‘ट्यूबलाइट’ बुलाना बंद कर देते हैं. लक्ष्मण और भरत के माता पिता बचपन में ही गुजर चुके हैं. इनकी परवरिशबन्ने खां (ओम पुरी) ने अपने आश्रम में रखकर की है. भारत चीन सीमा पर तनाव बढ़ने के बाद भारतीय सेना में नवयुवकों की भर्ती शुरू की जाती है. बन्ने खां की सलाह पर भरत आर्मी में भर्ती हो जाता है. लक्ष्मण भी आर्मी में जाना चाहता है. पर उसकी मंदबुद्धि के कारण उसका चयन नहीं हो पाता.

भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ जाता है. अब लक्ष्मण अपने भाई भरत को लेकर परेशान है. इसी बीच गांव में एक जादूगर (शाहरुख खान) आता है. जो कि लक्ष्मण को अपने शो का हिस्सा बनाकर साबित करता है कि यदि आप पूरे यकीन के साथ किसी काम को अंजाम दें, तो हो सकता है. लक्ष्मण दूर से अपने हाथों के इशारे से एक बोटल हिला देता है. अब इसमें जादूगर का क्या खेल रहा? यह बात सामने नहीं आती है. उसके बाद बन्ने खां भी लक्ष्मण को समझाते हैं कि यदि वह यकीन रखे, तो युद्ध जल्दी खत्म होगा और उसका भाई वापस आ जाएगा.

इसी बीच कलकत्ता से एकदम चीनी जैसी दिखती एक महिला ले लेलिन (जू जू) अपने बेटे गुओ (मातिन) के साथ जगतपुर गांव की सीमा के पास अपने घर में रहने आती है. चीन के साथ युद्ध छिड़ चुका है. इसलिए लक्ष्मण और गांव के दूसरे युवक ले लेलिन को चीनी समझकर उनके घर को जलाने की असफल कोशिश करते हैं. तब बन्ने खां लक्ष्मण को समझाते हैं कि यदि वह महात्मा गांधी के पदचिन्हों पर चलते हुए चीनी से दोस्ती करेगा, तो उसका भाई जल्दी वापस आ जाएगा. लक्ष्मण की लेलिन व गुओ से दोस्ती हो जाती है. ले लेलिन भी लक्ष्मण से यकीन की बात करती है. इनकी दोस्ती गांव के दूसरे लोगों को पसंद नहीं आती. क्योंकि सभी उसे चीनी समझकर दुश्मन मानते हैं.

एक मुकाम आता है, जब पूरे गांव के बीच ले लेलिन कहती है कि,‘‘वह पूरे दिल से हिंदुस्तानी है. उसके हिंदुस्तानी होने पर सवाल उठाने का हक किसी को नहीं है.’ कई घटनाक्रम बदलते हैं. भूकंप आता है और लक्ष्मण को लगता है कि उसके यकीन से चट्टान हिली. इधर युद्ध बंद हो जाता है. ले लेलिन वापस कलकत्ता जाने की बात करती हैं. भरत मिल जाता है, जिसका सैनिक छावनी में इलाज चल रहा है.

सलमान खान एकदम नए अवतार में हैं. लेकिन मंदबुद्धि इंसान के पूरे मैनेरिजम को पकड़ने में वह असफल रहे हैं. वैसे भी इन स्टार कलाकारों का अपना मैनेरिज्म लोगों के सिर पर इस कदर चढ़कर बोलता है कि दिव्यांग किरदारों को निभाना इनके लिए आसान नहीं कहा जा सकता. स्व.ओम पुरी व बाल कलाकार मातिन रे तंगू ने बेहतरीन काम किया है. मगर ‘बजरंगी भाईजान’ जैसा करिश्मा इस बार बाल कलाकार व सलमान खान के बीच नहीं जम पाया. फिल्म में शाहरूख खान की छोटी सी भूमिका प्रभावित नहीं करती. बृजेंद्र काला, मो.जीशान अयूब व यशपाल शर्मा ने बेहतरीन काम किया है. सोहेल खान के हिस्से कुछ खास करने का है नहीं.

फिल्म की गति बहुत धीमी है. पटकथा की कमजोरी के चलते इंटरवल से पहले कहानी किसी अन्य मोड़ पर होती है, जबकि इंटरवल के बाद कहानी किसी अन्य मोड़ पर होती है. कमजोर पटकथा की वजह से पूरी कहानी बिखरी हुई नजर आती है. कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते फिल्म में यकीन करने का मुद्दा भी उभर नही पाता. फिल्म में इमोशनल पक्ष को उभारने के लिए पटकथा व निर्देशन के स्तर पर मेहनत नहीं की गयी. परिणामतः कई इमोशनल सीन भी दर्शकों को भावुक नहीं बना पाते. फिल्म अपने पड़ोसियों से प्यार करने की बात करती है, मगर यह मुद्दा भी उभर कर नही आता.

फिल्म में ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ का संदेश देने का असफल प्रयास किया गया है. क्योंकि संदेश वाहक दूर नजर आता है. हर सीन इतना बनावटी लगता है कि यह संदेश ‘हिंदी चीनी बाय बाय’ में बदल जाता है. फिल्म में रंगभेद का मुद्दा भी है. उत्तरपूर्वी भारतीयों के साथ जिस तरह का भेदभाव होता है, उस हकीकत को सही अर्थों में पेश करने में ‘ट्यूबलाइट’ बुरी तरह से असफल रहती है. फिल्म के क्लायमेक्स में कोई रोचकता नहीं है. कबीर खान तो युद्ध दृश्यों को फिल्माने में महारत रखते हैं. उन्होंने डाक्यूमेंट्री फिल्मकार के रूप में कई युद्ध दृश्यों को चित्रित किया है, पर इस फिल्म में वह विफल रहे.

फिल्म का रेडियो वाला गाना प्रभावित करता है. कैमरामैन असीम मिश्रा तारीफ के हकदार हैं.

दो घंटे 16 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ का निर्माण ‘‘सलमान खान फिल्मस’’ के बैनर तले सलमा खान व सलमान खान ने किया है. लेखक व निर्देशक कबीर खान, संगीतकार प्रीतम, कैमरामैन असीम मिश्रा तथा कलाकार हैं- सलमान खान, सोहेल खान, स्व. ओम पुरी, बृजेंद्र काला, मो.जीशान अयूब, झू झू,बाल कलाकार मातिन रे तंगू, यशपाल षर्मा व मेहमान कलाकार शाहरुख खान.

नौकरी छोड़ने जा रही हैं तो ध्यान दें

कुछ ऐसे जरूरी कागजात होते हैं, जिन्‍हें सभी को नौकरी छोड़ने से पहले अपने पुराने इंप्‍लॉयर से जरूर ले लेने चाहिए. जिससे आपको टैक्‍स भरने में मुश्किल न आए.

ऐसी कई समस्‍याएं हैं जो नौकरी छोड़ने के बाद आपको हो सकती हैं और ये किसी एक के साथ ही नहीं, बल्‍कि हजारों लोगों के साथ होती हैं, जिन्‍होंने साल के बीच में ही जॉब छोड़ी है. यही ध्‍यान में रखते हुए आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन जरूरी कागजातों के बारे में जिन्‍हें आपको नौकरी छोड़ते वक्‍त जरूर ले लेने चाहिए. जिससे आपको टैक्‍स भरने में कोई मुश्किल न आए.

नौकरी छोड़ने से पहले जरूर ले लें फॉर्म 16

अक्‍सर हम जॉब छोड़ते समय हम एचआर के पास नो ड्यूज और एनओसी तो जमा करा देते हैं, लेकिन कुछ जरूरी कागजात नहीं लेते. इनमें ही सबसे अहम है फॉर्म 16. अक्‍सर हमें इंवेस्‍टमेंट प्रूफ और टैक्‍स भरते वक्‍त इस फॉर्म 16 की याद आती है. फॉर्म 16 नहीं होने की स्थिति में टैक्‍स की सही गणना करना मुश्किल होता है. ऐसे में जब भी जॉब छोड़ें अपने एचआर से मौजूदा साल के लिए फॉर्म 16 लेना न भूलें.

इंवेस्‍टमेंट प्रूफ

आपकी नई या पुरानी कंपनी का एचआर आपकी सैलरी में से टीडीएस की गणना आपके द्वारा किए गए इंवेस्‍टमेंट डिक्‍लेरेशन के आधार पर करता है. यह डिक्‍लेरेशन आपको हर साल की शुरूआत में करना होता है. अगर, आप अपने नए नियोक्‍ता के पास मिली सैलरी की जानकारी नहीं देती हैं तो नया नियोक्‍ता टैक्‍स की गणना बचे हुए महीने पर करता है. यह भी संभावना हो सकती है कि आपने इनकम टैक्‍स की धारा 80C के तहत अधिक निवेश किया है और नियोक्‍ता को कम बता रहे हैं. इससे बचने के लिए इनकम टैक्‍स फाइल करने से पहले अपने निवेश के कागजात से सही ब्‍योरा तैयार कर लें.

सैलरी स्लिप और पार्ट बी की जानकारी

अक्‍सर इंप्‍लॉयर हायर टैक्‍स ब्रेकेट से इंप्‍लॉई को राहत देने के लिए सैलरी पॉट बी में देते हैं. जॉब छोड़ते वक्‍त आपको अपने पार्ट बी का ठीक-ठीक उल्‍लेख करने वाली सैलरी स्लिप भी नए इंप्‍लॉयर को उपलब्‍ध करानी चाहिए. इसके अलावा कंपनी की ओर से मिले बोनस आदि की जानकारी से जुड़े कागजात भी साथ रखने चाहिए.

प्रोविडेंट फंड खाते का यूएएन नंबर

अक्‍सर लोग जॉब छोड़ते वक्‍त अपना प्रोविडेंट फंड खाते को यूं ही छोड़ देते हैं. और नई नौकरी के साथ नया खाता खुलवा लेते हैं. ईपीएफओ ने अब यूएएन नंबर के माध्‍यम से पुराने ईपीएफ अकाउंट को नए खाते में ट्रांसफर की सुविधा दी है. आप चाहें तो दोनों खातों को एक खाते में टांसफर कर सकते हैं. इसके अलावा आपके पास यह पैसा निकालने का ऑप्‍शन होता है. आप यह जान लें कि लागातार 5 साल तक सर्विस पूरा किए पैसा निकालना टैक्‍सेबल इनकम होता है. पीएफ का पैसा ट्रांसफर करने के लिए फॉर्म 10C और फॉर्म 19 भरें.

दोनों एचआर से मिली इनकम को करें वैरीफाई

टैक्‍स की गणना करने के लिए पुरानी कंपनी में X महीने में मिली सैलरी और नई कंपनी में Y महीने में मिली सैलरी को जोड़े. इसके बाद आपने 80C में निवेश की गई राशि को जोड़े. फिर दोनों नियोक्‍ता द्वारा काटे गए टैक्‍स को एक जगह मिलाएं. अब इनकम टैक्‍स की वेबसाइट जा कर टैक्‍स कलकुलेट करें. अगर, आप पर पिछला कोई बकाया टैक्‍स है तो इनकम टैक्‍स फाइल करने से पहले उसका भुगतान करें. इस तरह आप सही तरीके से अपना इनकम टैक्‍स फाइल कर सकती हैं.

जीवन की दौड़ में भाग नहीं सकते तो चलिए जरूर

जीवन की दौड़ अब लंबी चलने लगी है, औरतों के लिए भी. पहले जैसे ही बच्चे बड़े हुए और घर से ज्यादा घर से बाहर रहने लगें तो समझो मां बस एक चौकीदार की तरह घर में रहती है. यह कामकाजी और प्रसिद्घ कैरियर वालियों के साथ भी होता रहा है. अभिनेत्रियों को घरों में बंद हो कर रह जाना पड़ता था या फिर शादी कर के गुमनामी में जीवन गुजारने को मजबूर होना पड़ता है. अब दिन फिर रहे हैं.

श्रीदेवी ने फिल्म ‘इंग्लिश विंगलिश’ से नाम कमाया और अब उस की 300वीं फिल्म रिलीज होने वाली है. रानी मुखर्जी फिल्म ‘हिचकी’ में अभिनय कर रही हैं. काजोल तमिल फिल्म में धनुष के साथ काम कर रही हैं. ऐश्वर्या राय बच्चन भी कई फिल्मों में प्रयास कर रही हैं.

असल में बच्चों के बड़े हो जाने के बाद मांओं के पास अपार अवसर होते हैं पर कुछ पारिवारिक दबाव, रीतिरिवाजों और खुद के ओढ़े आलस्यपन के कारण औरतें 40 की उम्र में घर में बैठ जाना चाहती हैं. जो काम कर रही होती हैं, वे भी नए प्रयोग छोड़ देती हैं और जहां है, जैसा है को स्वीकार कर लेती हैं. एक तरह से उन को जंग लग जाता है.

यह ठीक है कि हरेक के पास बहुत कुछ करने के न अवसर होते हैं न हुनर पर यदि आंखें खोल कर चला जाए और व्हाट्सऐप और किट्टी पार्टियों को छोड़ कर कुछ आगे की सोची जाए तो पुन: कैरियर बनाना संभव है. बच्चों को पैदा करना, बड़ा करना, उन के लिए सुरक्षित घर तैयार करना एक कैरियर है पर जब इस कैरियर में संतोष मिलना कम हो जाए तो समय और शक्ति बेकार करने की जगह कुछ नया करने को तैयार रहें. किट्टी पार्टियां, सत्संग, भजन मंडली और सोशल मीडिया क्रिएटिविटी को मारते हैं. ये औरतों के विकास व आत्मविश्वास में बाधक हैं.

यह सोचना गलत होगा कि अवसर नहीं हैं. अवसर हैं पर आमतौर पर थोड़े से पैसे वाली औरतें भी अपनी कीमत कुछ ज्यादा लगाने लगती हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें बाहर वह आदर, सम्मान, पैसा, संतोष, सुख मिले, जो घर में मिलता है. यह संभव नहीं है. जब तक बाजार आप की कीमत परखेगा नहीं, न के बराबर देगा पर बाजार का हिसाब है कि वह कुछ तो देगा ही.

घर की चौकीदार, किट्टी पार्टी की शान या भजन मंडली की सब से ज्यादा जोर से तालियां पीटने वाली बनने की जगह एक ग्रौसरी स्टोर में

4 घंटे की कैशियर की नौकरी ज्यादा लाभदायक होगी. इस तरह की सैकड़ों नौकरियां या अवसर बिखरे पड़े हैं पर इन में घर जैसा सुख नहीं, रौब नहीं, करा या न करा की गुंजाइश नहीं.

जीवन की दौड़ में भाग नहीं सकते तो चलिए तो सही. खाली न बैठें, यही सब से बड़ी आवश्यकता है.

प्रेम बड़ा न रिश्ता सब से बड़ा रुपया

भारतीय टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस जब अभिनेता संजय दत्त की पूर्व पत्नी रिया पिल्लै के साथ लिव इन पार्टनर के रूप में रह रहा होगा, तो उसे लगा होगा कि वह कोई ट्रौफी अपने से ज्यादा चमत्कारी पैसे वाले से छीन लाया है. उसे क्या पता था कि वह एक जंजाल में फंस रहा है. अब लगभग 8 साल से लिव इन पार्टनर रह रहे उन का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है जहां अदालत ने भी हाथ झाड़ से लिए हैं. दरअसल, 2014 में रिया ने पेस के खिलाफ डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट के तहत केस किया था.

रिया पिल्लै अब अलग होने के लिए 20 करोड़ और एक मकान मांग रही है. मजेदार बात यह है कि एक मकान वह संजय दत्त से भी तलाक के समय हथिया चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने चैंबर में बुला कर दोनों को समझानेबुझाने की कोशिश भी की पर बेकार, क्योंकि भूखी शेरनी को मालूम है कि उसे मनचाहा शिकार उस की शर्तों पर मिल जाएगा.

अदालतों में चल रहे हाई प्रोफाइल तलाक के मामलों में ज्यादातर में पत्नियां ही हावी होती हैं और उन का रुख होता है कि चाहे कुछ भी हो जाए उस पति को तो सबक सिखाना होगा जिस ने उस जैसी सुंदर, स्मार्ट औरत को छोड़ने की बात भी सोची. आखिर यों ही तो उस के बीसियों दीवाने नहीं हैं और दीवानों में अच्छीखासी हैसियत वाले भी हैं जो घर, पत्नी, धंधा छोड़ कर उस पर मंडराते रहते हैं और उसे साथ ले चलने में उन की गरदन शुतुरमुर्ग जैसी ऊंची हो जाती है. करिश्मा कपूर के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सुनंदा पुष्कर भी उसी श्रेणी में आती है.

सुंदर स्मार्ट होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे जहां चाहो भुना लो. यह एक जिम्मेदारी भी है अपने प्रति ही सही. ज्यादा अकड़ अकसर महंगी पड़ती है. जवानी अब ठीक है 4 दिन की नहीं होती या फिर साल भर तक चल जाती है पर उस के बाद जो तनाव व अकेलापन होता है वह शराब की बोतलों से दूर होता है. कितनी ही ट्रौफी पत्नियां अकसर अकेलेपन और निराशा की शिकार होती हैं. हां, जिन के बच्चे मां के प्रति अनुग्रहित होते हैं, वे जरूर आखिर तक अपने तेवर बनाए रख पाती हैं पर भारी कीमत देनी होती है.

पतिपत्नी संबंध में ऊंचनीच नहीं तो बराबरी तो है ही. सुंदरता के बल पर औरतें अपने को विशिष्ठ समझेंगी तो पछताएंगी. रिया पिल्लै की मांग चाहे कितनी तार्किक हो पर अगर सुप्रीम कोर्ट के जज भी उसे समझा न पाएं तो मान लें कि वह कुछ अति दंभी ही है. बेचारा लिएंडर पेस.

टीवी की दुनिया के टॉप ऐतिहासिक धारावाहिक

घर पर रखा टीवी आपको कई बार इडियट बॉक्स लगता होगा जो तरह-तरह की चीजें दिखाता हैं मगर वो जमाना गया जब इस पर सिर्फ एंटरटेनिंग शोज आते थे. अब टीवी को इडियट बॉक्स कहना बंद कर दीजिये क्यूंकि अब ये आपको इतिहास का ज्ञान भी देने लगा है.

रामायण और महाभारत से आगे बढ़कर अब टीवी पर कई ऐसे धारावाहिक आतें हैं जो आपको उन लोगों के बारें में बतातें हैं जिनके बारे में आपने सिर्फ पढ़ा होगा. टीवी के कुछ खास हिस्टोरिकल शोज.

पेशवा बाजीराव

शो पेशवा बाजीराव पंतप्रधान श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ बाळाजी भट्ट की जीवनी पर आधारित है जिसकी कहानी बड़े पर्दे पर रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण की फिल्म “बाजीराव मस्तानी” के जरिये लोगों के सामने आई. लेकिन, सोनी टीवी चैनल पर आ रहे इस शो में बाजीराव की कहानी उनके बचपन से दिखाई गई है और वो भी पूरी डिटेल के साथ. बाजीराव का किरदार निभा रहे चाइल्ड आर्टिस्ट रूद्र सोनी भी अपने अभिनय से सबका दिल जीत रहे हैं.

शेर-ए-पंजाब: महाराजा रणजीत सिंह

सिख साम्राज्य के लीडर महाराजा रणजीत सिंह की कहानी आप लाइफ ओके पर देख सकतें हैं. बता दें कि महज 12 साल की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह ने अपने पिता को खो दिया और इसके बाद उन्होंने अकेले पूरा राजपाट संभाला. छोटी सी उम्र में चेचक की बीमारी की वजह से उनकी एक आंख खराब हो चुकी थी. महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं. यही नहीं, यह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एकजुट करके रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया.

भारत के वीरपुत्र: महाराणा प्रताप

डेली सोप से हटकर इतिहास के कुछ पन्ने आपको टीवी पर दिखाने की इस लिस्ट में शामिल हैं महाराणा प्रताप की कहानी भी है. महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे. उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है. महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कई बार युद्ध में भी हराया. मई 2013 से दिसम्बर 2015 तक चले इस शो में महाराणा प्रताप सिंह का किरदार शरद मल्होत्रा ने निभाया था.

एक वीर स्त्री की कहानी: झांसी की रानी

सबसे मशहूर हिस्टोरिकल शो में से एक झांसी की रानी के बारे में तो आप जानते ही होंगे. लोगों ने इस शो को बहुत प्यार दिया. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जन्म से लेकर उनका झांसी की रानी बनने तक का सफर इस शो में बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया था. छोटी लक्ष्मीबाई का किरदार निभाया अलका गुप्ता ने और फिर इसे आगे बढाया कृतिका सेंगर ने. यह शो साल 2009 से 2013 तक चला.

जोधा-अकबर

एकता कपूर द्वारा प्रोड्यूस इस शो को हम कैसे भूल सकतें हैं. राजनीतिक फैसलों से जुड़े राजपूत जोधा बाई और मुगल साम्राज्य के राजा अकबर के रिश्ते की यह कहानी बेहतरीन थी. लोगों ने इस शो को बहुत पसंद किया था. हालांकि, जोधा परिधि शर्मा का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाने से इस शो बंद करना पड़ा मगर, इसके रिपीट एपिसोड्स को भी अच्छी खासी टी आर पी मिल रही है.

इन सभी के अलावा, चन्द्रगुप्त मौर्य, धरती का वीर योद्धा: पृथ्वीराज चौहान, रजिया सुलतान, वीर शिवाजी भी इन हिस्टोरिकल टीवी शोज का हिस्सा हैं.

किसिंग सीन देने में कोई बुराई नहीं : पिया बाजपेयी

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली अभिनेत्री पिया बाजपेयी ने तमिल, तेलुगू और मलयालम फिल्मों से अपने कैरियर की शुरुआत की. उन का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ, लेकिन कैरियर की शुरुआत दिल्ली में हुई. बचपन से ही पिया अत्यंत चंचल स्वभाव की थीं. शुरू शुरू में उन के मातापिता नहीं चाहते थे कि वे फिल्मों में काम करें, पर उन के आत्मविश्वास को देख कर उन्होंने हां कही. आज उन के परिवार वाले उस की इस कामयाबी से खुश हैं. पिया की फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ में उन की भूमिका उन के स्वभाव से काफी मिलती जुलती है. उन से मिल कर बात करना रोचक था. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ के लिए हां करने की वजह क्या थी?

मुझे इस फिल्म की भूमिका बहुत अच्छी लगी. अधिकतर ऐसा होता है कि नरेशन कुछ होता है और ऐक्टिंग के बाद कुछ और हो जाता है, लेकिन इस में मैं ने जो सुना वही दिखाया जाएगा, ये अच्छी बात है.

इस फिल्म में आप की भूमिका क्या है. वह आप से कितना मेल खाती है?

मैं ने इस में एक छोटे शहर की दबंग लड़की की भूमिका निभाई है. जो मुझ से काफी मेल खाती है. मैं रियल में भी एक छोटे शहर इटावा से हूं, मुझे याद है कि बचपन में मैं टौमबौय जैसी थी. कोई लड़का अगर मुझे कुछ कह देता था, तो उसे पकड़ कर खूब मारती थी. मेरे पिताजी ने कहा था कि अगर लड़ाई हो तो मार के आना, खुद पिटाई खा कर नहीं.

पिताजी ने मुझे बेटे की तरह पाला है. मेरी बातचीत और चलने-फिरने का ढंग सब लड़कों की तरह था. मैंने बाइक और जीप चलाई है. त्योहारों में मेरे लिए हमेशा पैंटशर्ट ही आते थे.

फिल्मों में आने के बाद मैं ने लड़कियों वाली ड्रैस पहननी शुरू की. इसलिए जब मुझे इस तरह की ही भूमिका का औफर मिला तो मैं ने तुरंत हां कर दी. फिल्म में छोटे शहर के लोग जब बड़े शहरों में जाते हैं तो अपनेआप को वहां के माहौल में फिट बैठाने के लिए क्या-क्या करते हैं, जिसे देख कर दूसरों को लगता है कि यह चालाक लड़की है, लेकिन ऐसा होता नहीं है, अपने आपको स्मार्ट दिखाने के लिए वे ऐसा करती हैं.

इस फिल्म में भी मेरी भूमिका वैसी ही लड़की की है. इस की शूटिंग बनारस और धर्मशाला में हुई है.

क्या फिल्मों में आना इत्तफाक था?

मेरे जीवन में कुछ भी इत्तफाक नहीं था. मैं जब 7वीं कक्षा में थी, मुझे डांस का बहुत शौक था, पड़ोस में गाना बजता था और मैं डांस करना शुरू कर देती थी. इतना ही नहीं स्कूल, कालेज सभी जगह डांस कार्यक्रम में भाग लेती थी. मेरी इस रुचि को देख कर पापा ने एक दिन कहा था कि 12वीं पूरी होने के बाद वे मुझे ऐक्टिंग व डांसिंग का कोर्स करवा देंगे, लेकिन जब मैं 12वीं में आई तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन चिनगारी तो उन्होंने लगा ही दी थी.

मुझे लगा कि इटावा से निकल कर ही मेरी लाइफ बन सकती है, क्योंकि यह एक छोटा शहर है, यहां लाइफ नहीं बन सकती. वहां से निकल कर मैं दिल्ली आई. कंप्यूटर कोर्स किया, रिसैप्शनिस्ट की जौब की, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाई और इस तरह मैं धीरेधीरे मुंबई में सैट हो गई.

मुंबई में कितना संघर्ष किया?

मुंबई में मैंने पहले डबिंग आर्टिस्ट के रूप में काम किया, क्योंकि मेरी हिंदी अच्छी है. इस के बाद प्रिंट ऐड में काम शुरू कर दिया, जिस से मुझे कमर्शियल ऐड मिलने लगे. ऐसा करतेकरते मुझे हिंदी फिल्म ‘खोसला का घोंसला’ की रीमेक तमिल फिल्म में काम करने का मौका मिला. मेरी वह फिल्म हिट हो गई, फिर फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया.

करीब 12-13 दक्षिण भारतीय फिल्में करने के बाद मुझ में हिंदी फिल्म करने की इच्छा पैदा हुई, क्योंकि मैं जितनी फिल्में कर रही थी, भाषा समझ में न आने की वजह से मेरे मातापिता उस में भाग नहीं ले पा रहे थे. मुझे सब आधाअधूरा लग रहा था.

मैंने एक साल का ब्रेक लिया और मुंबई रुकी. उसी दौरान मुझे हिंदी फिल्म ‘लाल रंग’ मिली. उस के तुरंत बाद ‘मिर्जा जूलिएट’ मिल गई.

साउथ की और यहां की फिल्मों में क्या अंतर है?

सिर्फ भाषा का अंतर है. वहां भी लोग अच्छी और खराब फिल्में बनाते हैं.

आप के काम में परिवार ने किस तरह का सहयोग दिया?

परिवार वालों ने पहले कभी मुझे सहयोग नहीं दिया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मैं हीरोइन बनूं. उन्हें लग रहा था कि मैं एक सीधीसादी और छोटे शहर की लड़की हूं. लोग यहां मुझे बेवकूफ बना देंगे. समय बरबाद हो जाएगा, लाइफ सैटल नहीं हो पाएगी आदि चिंता उन्हें सता रही थी.

मेरे परिवार में सभी बहुत पढ़े-लिखे हैं ऐसे में ऐसी सोच वाजिब थी. फिर मुंबई की कहानियां उन्होंने अखबारों में काफी पढ़ी थीं. उन्होंने मेरा साथ देने से साफ मना कर दिया था, पर मुझे विश्वास था कि मैं सफल हो जाऊंगी, अत: मैं दिल्ली गई. आज उन्हें मुझ पर गर्व है, वे मेरी उपलब्धि से खुश हैं.

किसी नए शहर में अकेले रहना कितना मुश्किल था?

अगर आप अपनी जिम्मेदारी खुद लेते हैं, तो जंगल में भी रह सकते हैं. आप कहीं भी रहें हमेशा सतर्क रहना चाहिए. मुझे दिल्ली या मुंबई कहीं भी रहने में कोई समस्या नहीं आई.

फिल्मों में अंतरंग दृश्य करने में कितनी सहज रहती हैं?

मुझे अभी तक कोई भी इंटीमेट सीन करने में मुश्किल नहीं आई. फिल्म ‘लाल रंग’ में भी कुछ किसिंग सीन थे, इसमें भी हैं. दक्षिण की किसी भी फिल्म में मेरा कोईर् भी किसिंग सीन नहीं था, लेकिन मैं कैमरे पर अधिक फोकस्ड रहती हूं. अगर फिल्म की डिमांड है, तो उसे करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं.

मेरे लिए निर्देशक, कोऐक्टर खास माने रखते हैं, इसके अलावा मैं जो भी दृश्य करूं, वह ओरिजनल लगे, इस बात पर अधिक ध्यान देती हूं.

फिल्मों की पाबंदी के बारे में क्या सोचती हैं?

फिल्मों का सर्टिफिकेशन जरूरी है, फिल्म को देख कर उसके हिसाब से उसे सर्टिफाई कर देना चाहिए, न कि उस पर पाबंदी लगाई जाए. इस के बाद दर्शक हैं, जो फिल्म के  भविष्य को तय करते हैं. वैसे तो लोग यूट्यूब पर हर तरह की फिल्में देख लेते हैं. मेरे हिसाब से फिल्म जैसे बनी है, उस के हिसाब से सर्टिफिकेट दें. किसी की पसंद या नापसंद को आप डिक्टेट नहीं कर सकते.

समय मिले तो क्या करना पसंद करती हैं?

मैं बहुत बड़ी फिटनैस फ्रीक हूं. समय मिलने पर जिम जाती हूं जिस में मैं मार्शल आर्ट की एक कठिन विधा परकौर करती हूं. खानेपीने पर ध्यान देती हूं, किताबें पढ़ती हूं, फिल्में देखती हूं. मेरे फ्रैंड्स नहीं हैं. फिल्म की यूनिट के लोग ही मेरे फ्रैंड्स हैं. मुझे खाना बनाने का शौक है. सबकुछ बना लेती हूं. नौनवैज नहीं बनाती, क्योंकि मैं खाती नहीं हूं. मैंने खाना बनाना घर से बाहर निकल कर ही सीखा है. मैं चाय अच्छी बनाती हूं.

आप को कभी ‘कास्टिंग काउच’ का सामना करना पड़ा?

किसी भी क्षेत्र में चाहे वह हिंदी सिनेमा जगत हो या कोई कौरपोरेट वर्ल्ड हर जगह महिलाओं को किसी न किसी रूप में प्रताडि़त होना पड़ता है. इस के लिए वे खुद जिम्मेदार होती हैं.

जिस के पास पावर है वह उस का प्रयोग किसी न किसी रूप में करता है, लेकिन आप अगर खुद उन्हें बता देते हैं कि आप को अपनेआप पर भरोसा नहीं, आप एक रात में ऐक्ट्रैस बनना चाहती हैं, कुछ भी करने के लिए तैयार हैं, तो आप का यूज कौन नहीं करेगा? इस तरह की घटनाओं में दोनों का योगदान होता है. एक अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता.

कोई ड्रीम प्रोजैक्ट है?

मैं हमेशा एक अच्छी फिल्म करना चाहती हूं. अभी मैं अपनेआप को प्रूव कर रही हूं.

कुछ और दूसरी रीजनल फिल्में करने का शौक है?

मैं कोई भी अच्छी फिल्म, किसी भी भाषा में हो, करना पसंद करूंगी.

रिलेशनशिप पर आप की सोच क्या है? क्या आप को कभी किसी से प्यार हुआ?

रिलेशनशिप जल्दी टूटती है क्योंकि वह बनती भी जल्दी है. आजकल बनावटी चीजें बहुत हो रही हैं. ऐसे में मैं अपने काम पर अधिक ध्यान देती हूं. मेरा काम ही मेरा प्यार है.

कितनी फैशनेबल हैं?

मैं फैशनेबल बिलकुल नही हूं, जो मिले उसी को पहन लेती हूं.

तनाव होने पर क्या करती हैं?

तनाव होने पर दौड़ने चली जाती हूं.

शौपिंग मेनिया है?

मुझे जो पसंद आए उसे अवश्य खरीद लेती हूं, नहीं तो रात में उस के सपने आते हैं. वे कपड़े, जूते कुछ भी हो सकते हैं.

आप अपना आदर्श किसे मानती हैं?

मैं अपनी मां कांति बाजपेयी को अपना आदर्श मानती हूं.

यूथ जो इस क्षेत्र में आना चाहे उन्हें क्या मैसेज देना चाहेंगी?

यूथ के लिए मेरा मैसेज यही है कि आप जो भी सपने देखें, उन्हें ईमानदारी से फौलो करने की हिम्मत रखें. सभी स्टार बनने के लिए मुंबई आते हैं, पर वे सही ढंग से मेहनत नहीं करते और जब फेल हो जाते हैं, तो रोते हैं और सब को दोषी ठहराते हैं. मेरे हिसाब से सपने जितने अधिक बड़े होते हैं, मेहनत उतनी ही अधिक होती है. उसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.

डैंड्रफ पीछा नहीं छोड़ रहा तो अपनाएं ये तरीके

रसायनों से युक्त हेयर केयर उत्पादों का प्रयोग बालों के लिए नुकसानदायक होता है. ऐसी स्थिति में उन हेयर केयर उत्पादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जिन में रसायनों का प्रयोग किया जाता है. ऐसे में बालों के प्राकृतिक उपचार के लिए अरोमाथेरैपी सब से बेहतर विकल्प है.

बालों से जुड़ी सब से प्रमुख समस्या डैंड्रफ यानी रूसी की है. अत: सब से पहले यह जानना जरूरी है कि रूसी होती क्या है? कंधों पर जो व्हाइट स्कैल्प दिखते हैं वे दरअसल शैंपू से सही तरीके से बालों को न धोने पर होते हैं. इस का मतलब है कि असलियत में रूसी बैक्टीरियल इन्फैक्शन या जीवाणु संक्रमण का एक प्रकार है. इस के बढ़ने में थोड़ा समय लगता है और यह गरमी के मौसम में भी मौजूद रहती है. इस संक्रमण के उपचार में कम से कम 6 महीनों से 1 साल तक का वक्त लगता है. बाल धोने के लिए गरम पानी का प्रयोग करने से व्हाइट स्कैल्प की मात्रा बढ़ जाती है.

ऐसा माना जाता है कि शैंपू बालों के लिए अच्छा होता है जोकि सच नहीं है. शैंपू के बजाय साबुन ज्यादा अच्छा होता है, क्योंकि शैंपू की तुलना में यह बालों से जल्दी निकल जाता है. शैंपू विभिन्न रसायनों का संयोजन है. यदि आप शैंपू का इस्तेमाल करना चाहती हैं, तो ऐसे शैंपू का चुनाव करें, जो सल्फेट रहित डिटर्जैंट बेस हो और पैराबेन प्रिजर्वेटिव्स से भी मुक्त हो.

ध्यान दें

यदि आप शैंपू को अच्छी तरह नहीं धोती हैं, तो आप के बालों की चमक और खूबसूरती खत्म हो जाएगी. बालों को सही आकार में बनाए रखने के लिए तेल लगाना भी बहुत जरूरी है. इसके लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना अच्छा विकल्प है. लेकिन इस का प्रयोग गरमी के मौसम में ज्यादा अच्छा रहता है.

रूसी त्वचा के अंदर होती है, इसलिए बालों की देखभाल नियमित रूप से करें. अरोमाथेरैपी का प्रयोग करने से त्वचा के रोमछिद्रों पर प्रभाव पड़ता है. बालों की अच्छी सेहत के लिए इन टिप्स पर गौर फरमाना न भूलें :

– बालों पर तेल लगाना उन्हें मजबूती प्रदान करने और उन की क्वालिटी सुधारने का एक बेहतर तरीका है. लेकिन आप को सही तकनीक और सही समय की जानकारी होनी चाहिए. कई महिलाएं सुबह के समय बालों में तेल लगाना पसंद करती हैं. लेकिन यह सही नहीं है. सुबह के समय कभी भी तेल न लगाएं. यदि आप अपने बालों की क्वालिटी बेहतर बनाना चाहती हैं, बालों को लंबा करना चाहती हैं, उन्हें समय से पहले सफेद होने से रोकना और दोमुंहे बालों से छुटकारा पाना चाहती हैं, तो रात के समय बालों पर तेल लगाना उचित होता है. इसके लिए सुबह बालों को कुनकुने पानी से धो लें.

– तेल बालों की जड़ों में लगाना चाहिए, बालों पर नहीं.

– नारियल का तेल बालों से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान है. नारियल तेल का प्रयोग सिर पर तौलिया लपेट कर भाप के रूप में करना चाहिए. इसके लिए 15-20 मिनट का समय उपयुक्त होता है.

अरोमाथैरेपी का फौर्मूला

– 1 छोटा चम्मच बेस औयल में 2 बूंदें विटामिन ई औयल,1 बूंद टी ट्री औयल, 1 बूंद पचौली औयल और 1 बूंद तुलसी का तेल मिला लें. इस का प्रयोग आप के बालों की बनावट को बेहतर बनाने में मदद करेगा और साथ ही उन्हें मजबूत भी बनाएगा.

– आप चाहें तो बालों को भाप भी दे सकती हैं, लेकिन अगले दिन उन्हें धोना न भूलें.

– बालों की देखभाल में कंडीशनर की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह तौलिए से होने वाली क्षति से बालों को बचाता है, इसलिए जरूरत हो तो कंडीशनर का प्रयोग करें.

– ऐसे कंडीशनर का प्रयोग करें, जो अच्छी तरह से बालों से धुल कर निकल जाए. साथ ही जिस में प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग किया गया हो.

बालों की देखभाल के लिए टिप्स

– 1 चम्मच दही, 1 चम्मच आंवला, 1 चम्मच शिकाकाई, 1/2 चम्मच तुलसी, 1/2 चम्मच पुदीना और 1/2 चम्मच मेथी को अच्छी तरह मिला कर बालों में लगाएं.

– अंडे के सफेद भाग को शैंपू के साथ मिला कर बालों में लगा सकती हैं.

– सही अनुपात में भोजन करने से पर्याप्त विटामिन, खनिज और पोषक तत्त्व मिलते हैं, जिनसे शरीर और दिमाग मजबूत व तंदुरुस्त होता है. सही खाने से विभिन्न प्रकार के रोगों से बचने और सेहत को होने वाले नुकसान से बचाव होता है. साथ ही बालों की बनावट को बनाए रखने में भी मदद मिलती है. बालोंके लिए संतुलित भोजन जरूरी है.

– अंडे प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. इन में कई प्रकार के आवश्यक विटामिन व खनिज होते हैं. साथ ही थोड़ी मात्रा में कैलोरी भी होती है. स्वस्थ बालों के लिए अंडे का सफेद भाग खाएं. यह रूसी दूर करने और रुखे बालों से छुटकारा पाने में मदद करता है. इस में दोमुंहे बालों से लड़ने की भी क्षमता होती है.

– सप्ताह में 2 बार सलाद के साथ अंकुरित अनाज खाएं. सलाद में नमक और कैचअप नहीं होना चाहिए. सलाद लेने के डेढ़ घंटे बाद थोड़ी मात्रा में नीबू का रस और पुदीने की चटनी का सेवन करना काफी फायदेमंद होगा.

संक्रमण सताए तो करें ये उपाय

एलर्जी सुनने में भले ही कोई गंभीर मैडिकल एमरजैंसी न लगती हो लेकिन जब यह अपनी चरम अवस्था पर पहुंचती है तो जानलेवा हालात भी पैदा कर देती है. ऐसे में कैसे बचें एलर्जी से होने वाले स्वास्थ्य खतरों से, बता रहे हैं विशेषज्ञ…

एलर्जी एक लाइलाज बीमारी है. एलर्जी यानी शरीर द्वारा कुछ विशेष तत्त्वों, जिन्हें एलर्जन कहते हैं, के प्रति अतिसंवेदनशील प्रतिक्रिया है. जो लोग एलर्जी से पीडि़त हैं उनके लिए सब से बेहतर उपाय यही है कि वे उन कारकों (एलर्जन) से बचें, जिन से एलर्जी है. एलर्जन अपनेआप में हानिकारक नहीं होते हैं. कई लोगों को इन एलर्जन से कोई समस्या नहीं होती. लेकिन अतिसंवेदनशील लोगों में इन एलर्जन से कई लक्षण नजर आते हैं, जिन में से कई तो जानलेवा भी होते हैं.

अगर आप को एक चीज से एलर्जी है तो जरूरी नहीं है कि किसी अन्य को भी उसी चीज से एलर्जी हो. एलर्जी के कई कारक हैं. एलर्जी से पीडि़त व्यक्ति को अपने अनुभव के आधार पर यह खोजने की कोशिश करनी चाहिए कि उसे किस विशेष वस्तु का उपयोग करने से एलर्जी होती है.

जानवरों से एलर्जी

जानवरों की लार, मृत त्वचा, फर और यूरिन में जो प्रोटीन होता है वह एलर्जन कहलाता है. उस से कई लोगों में एलर्जिक रिऐक्शन या अस्थमा की समस्या बढ़ जाती है. इस के अलावा जानवरों के फर में पराग, धूल के कण और दूसरे एलर्जन भी भर जाते हैं, जिस से एलर्जी और गंभीररूप धारण कर लेती है.

एलर्जी से पीडि़त कुल लोगों में से 15-30 प्रतिशत लोगों को बिल्ली और कुत्ते जैसे पालतू जानवरों से एलर्जी होती है. अगर आप के घर में पालतू जानवर है और उसे कभी अपने पास भी नहीं आने देते, तब भी आप को एलर्जी हो सकती है.

आधुनिक शोधों से पता चला है कि जब जानवर खुद को चाटते हैं तो लार में मौजूद प्रोटीन भी फर से चिपक जाता है. और जब यह सूख जाता है तो हवा में उड़ता है. जानवरों से निकलने वाले एलर्जन कारपेट, कालीन और फर्नीचर में इकट्ठा हो जाते हैं और वहां वे 4 से 6 सप्ताह तक सक्रिय अवस्था में रहते हैं. इस के अलावा, ये एलर्जन पालतू जानवर को घर से निकालने के बाद भी कई महीनों तक हवा में मौजूद रहते हैं.

बिल्लियां, कुत्तों से ज्यादा एलर्जी करती हैं क्योंकि वे खुद को ज्यादा चाटती हैं और कुत्तों के मुकाबले लोग बिल्लियों को ज्यादा पकड़ते व प्यार करते हैं.

क्या हैं लक्षण

– पलकों और नाक की त्वचा का लाल हो जाना, सूजन आना और उस में खुजली होना.

– जिन लोगों को पहले से ही अस्थमा है, बिल्ली के संपर्क में आने पर उनमें अस्थमा के अटैक का खतरा 20-30 प्रतिशत बढ़ जाता है.

ऐसे बचें

– पालतू जानवर के सीधे संपर्क में आने पर अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से साफ कर लें.

– आप अपने पालतू जानवर से जितना भी प्यार करते हो, उन्हें अपने बैडरूम में न आने दें.

– पालतू कुत्ते और बिल्ली को नियमितरूप से नहलाएं. इस से उनके शरीर पर एलर्जन के पनपने की आशंका कम हो जाती है.

– पालतू जानवरों को हमेशा घर से बाहर बंद और खुले स्थानों पर रखें.

धूल से एलर्जी

भारत में सब से अधिक लोग धूल यानी डस्ट एलर्जी से पीडि़त हैं. एक अनुमान के अनुसार, एलर्जी के शिकार लोगों में से करीब 80 प्रतिशत लोगों को धूल से एलर्जी जरूर होती है. इसलिए इस के उपचार के लिए जरूरी है कि धूल से बचा जाए.

क्या हैं लक्षण

– आंखें लाल होना, उन में खुजली होना और पानी बहना.

– नाक बहना और उस में खुजली होना.

– सांस लेते हुए सूसू की आवाज आना.

– लगातार छींकना.

ऐसे बचें

– जिन लोगों को धूल से एलर्जी है, उन्हें उस जगह नहीं जाना चाहिए जहां निर्माण कार्य हो रहा हो.

– ऊनी कपड़ों को जाड़े के मौसम के खत्म होने पर अच्छी तरह से धो कर अलमारी में रख लिया जाए क्योंकि इन के छेदों में धूल भर जाती है.

– जिन लोगों को धूल से एलर्जी है वे सुबह और रात को सोने से पहले गुनगुने पानी से नहाएं ताकि धूल के कण निकल जाएं.

– वैक्यूम क्लीनर से सफाई करते समय हमेशा मास्क पहनें क्योंकि कारपेट और कालीन पर बहुत से धूल के कण इकट्ठे हो जाते हैं.

– कारपेट, कालीन, चटाइयां, बैडशीट्स, तकिए के गिलाफ आदि एलर्जी करने वाले कारकों के पनपने की जगहें हैं, इसलिए इन की सफाई का विशेष ध्यान रखें.

हेयरडाई से एलर्जी

हेयरडाई के साइड इफैक्ट्स के बावजूद इन का उपयोग पूरे संसार में किया जाता है. यह एलर्जी उन लोगों में ज्यादा आम होती है जिन की त्वचा अतिसंवेदनशील होती है. उनकी त्वचा उन रसायनों के प्रति संवेदनशीलता दिखाती है जो अधिकतर हेयरकलर्स में होते हैं. लेकिन फिर भी लोग हेयरडाई का इस्तेमाल करना बंद नहीं करते.

कई कंपनियां संवेदनशील त्वचा के लिए ऐसी डाई बना रही हैं, जिन में कम से कम रसायन हों. लेकिन कोई भी ऐसी डाई उपलब्ध नहीं है जिस में कोई भी रसायन मौजूद न हो. इस का परिणाम यह होता है कि जो लोग हेयरडाई

का उपयोग करते हैं, उन में एलर्जी के साथ ही त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

लक्षण पहचानें

– त्वचा में जलन, पलकों, कान के ऊपरी किनारे, चेहरे, गरदन, पीठ या छाती की त्वचा का लाल पड़ जाना, सूज जाना और उस में दर्द होना.

– ज्यादा गंभीर लक्षणों में चेहरे पर सूजन और खोपड़ी का लाल हो जाना, पलकों पर सूजन, सांस लेने में तकलीफ होना आदि.

– कई मामलों में स्किन पैच टैस्ट के बाद भी कई लोगों में एलर्जी के लक्षण दिखाई देते हैं.

सावधानी बरतें

99 प्रतिशत हेयरडाई में पीपीडी यानी पैराफेनाइलीन डायामीन या पीफिनाइलीन डायमीन होता है. यहां तक कि कई काली मेंहदी, लिपस्टिक और टैटू बनाने वाली स्याही में भी यह रसायन होता है.

स्वास्थ्य को होने वाले खतरों को देखते हुए कुछ यूरोपीय देशों में पीपीडी पर बैन लगा दिया गया है. लेकिन कोई भी हेयरडाई ऐसी नहीं होती जिस में हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं होता हो. जिन में पीपीडी नहीं होता, उन में पैराबेंस और प्रोप्लीन ग्लायकोल होता है. इसलिए इन के संभावित खतरों से बचने के लिए हेयरडाई का उपयोग करने से पहले पैच टैस्ट जरूर करें और यदि फिर भी एलर्जी के लक्षण नजर आएं, तो इस्तेमाल से बचें.

अन्य चीजों से एलर्जी

एंटीबायोटिक : 15 में से 1 व्यक्ति को एंटीबायोटिक से एलर्जी है विशेषरूप से पेनिसिलीन और सेफैलोस्पोरिन से. अधिकतर मामलों में एलर्जिक रिऐक्शन अधिक गंभीर नहीं होता है. त्वचा पर रैशेज पड़ जाते हैं जिन में खुजली होती है, कभी-कभी त्वचा पर मधुमक्खी जैसे छत्ते बन जाते हैं. कई लोगों को जी मचलाना, पेटदर्द, दस्त लगना, डायरिया की समस्या हो जाती है. एंटीबायोटिक से होने वाली एलर्जी से बहुत ही कम मामलों में लक्षण इतने गंभीर होते हैं कि पीडि़त व्यक्ति की मृत्यु हो जाए.

एनेस्थिसिया : बहुत ही कम मामलों में देखा जाता है कि एनेस्थिसिया के कारण एलर्जिक रिऐक्शन होता है. यह एलर्जी भी एनेस्थेटिक फैक्टर्स के अलावा दूसरे कारकों से होती है. न्युरोमस्क्युलर ब्लौकिंग एजेंट्स, प्राकृतिक रबर लेटेक्स और एंटीबायोटिक्स सर्जरी के दौरान गंभीर एलर्जिक रिऐक्शन के सब से सामान्य कारण हैं.

स्थायी उपचार नहीं

एलर्जी का स्थायी उपचार नहीं है. लेकिन जिन चीजों से आप को एलर्जी हो, उन कारकों से बचा जाए तो आप पूरी तरह सामान्य जीवन जी सकते हैं.

उदाहरण के लिए कुछ लोगों को पालतू जानवरों से एलर्जी होती है, फिर भी डाक्टर के सख्त निर्देश के बावजूद वे अपने पालतू जानवरों को अपने घर से बाहर नहीं करते. जिन्हें धूल से एलर्जी होती है, वे बिना अपनी नाक को ढक कर ही बाहर निकल जाते हैं. यही सब से प्रमुख कारण होता है कि लोगों की एलर्जी ठीक नहीं हो पाती.

एलर्जी की समस्या को लोग गंभीरता से नहीं लेते. ठीक समय पर दवाइयां नहीं लेते हैं, इस से भी समस्या बढ़ती जाती है.

जानलेवा एलर्जी

एलर्जी के लक्षण मामूली से ले कर गंभीर तक हो सकते हैं. इन्हें कई लोग हलके में ले लेते हैं. नतीजतन, बात हद से ज्यादा बढ़ जाती है और निदान मुश्किल हो जाता है. इसलिए किसी भी तरह की एलर्जी को अनदेखा न करें.

एलर्जी के लक्षण कभी-कभी जीवन के लिए खतरा भी हो सकते हैं जिसे एनाफाइलैक्सिस कहते हैं. एनाफाइलैक्सिस एक मैडिकल इमरजैंसी है जिस में तुरंत चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है.

(लेखक बीएलके सुपर स्पैशलिटी अस्पताल के इंटर्नल मैडिसिन विभाग के निदेशक हैं.)

मेरे जेठ ने एक दिन मुझसे संबंध बनाने को कहा तो मैं उन के आगे झुक गई. यह सिलसिला आज तक जारी है. अब मैं क्या करूं.

सवाल

मैं 2 बच्चों की मां हूं. मैं अपनी ही कमजोरी के कारण अपराधबोध महसूस करती हूं. कुछ वर्ष पूर्व हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. संयुक्त परिवार में रहने के कारण मेरे जेठ ने हमारी काफी मदद की. मैं उन के एहसान तले दब गई थी. एक दिन उन्होंने मुझे अपने इन्हीं एहसानों का वास्ता दे कर संबंध बनाने को कहा तो मैं उन के आगे झुक गई. यह सिलसिला आज तक जारी है. मेरी सास को इस की भनक लग गई है. उन्होंने मुझे समझाया कि यह गलत है. मैं तो समझ गई हूं और यह सब बंद करना चाहती हूं पर जेठ नहीं समझते. वे जान से मार देने की धमकी देते हैं. कहते हैं कि यदि मैं उन की बात नहीं मानूंगी तो वे मुझे सब में बदनाम कर देंगे. कृपया बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

आप को उसी समय (जब आप के जेठ ने यह मांग की) जेठ की नाजायज मांग को अस्वीकार कर देना चाहिए था. पर आप ने उन के आगे घुटने टेक दिए, जिस से उन की हिम्मत बढ़ गई और अब वे आप को ब्लैकमेल कर रहे हैं कि वे आप को जान से मार देंगे वगैरह वगैरह. वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे. रही आप को बदनाम करने की बात, तो यदि वे अवैध संबंधों की बात सार्वजनिक करेंगे तो उन की और पूरे परिवार की बदनामी होगी इसलिए वे किसी के सामने मुंह नहीं खोलेंगे. आप उन्हें कठोरता से मना कर दें, क्योंकि इस तरह का व्यभिचार गलत है.

बस अपनाएं ये दो उपाय और हो जाएगी आपकी तोंद कम

यदि आप अपनी तोंद से परेशान हैं और उसे शेप में लाने के लिए जी जान लगाकर कसरत करने में जुटे हैं तो जरा रुक कर एक बार यह भी सोच लीजिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि शरीर से अतिरिक्त वसा हटाने के जुगत में आप खुद को बीमार बना रहे हों. हर इंसान चाहता है कि वह शर्ट या टी-शर्ट से बाहर झांकती तोंद को कम कर फिट बन सके. और इसके लिए कई लोग रात दिन एक कर तरह-तरह के व्यायाम भी करते हैं. लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता कि इससे फायदा होने के बजाय उन्हें नुकसान तो नहीं हो रहा है.

जी हां फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि जो लोग वजन घटाने के लिए एक्सरसाइज रूटीन बनाए हुए हैं उन्हें सावधान होकर पहले यह तय करना चाहिए कि उनके लिए कौन सा व्यायाम और कितना व्यायाम बेहतर है. जो लोग बिना सोचे-समझे तमाम तरह के व्यायाम करते हैं, वे फायदे की जगह नुकसान उठा सकते हैं. आपको जानकर खुशी होगी की आपको अपनी तौंद को कम करने के लिए ढ़ेर सारी नहीं बल्कि दो एक्सरसाइज ही काफी हैं. लेकिन एक्सरसाइज के साथ-साथ डाइट और दिनचर्या का ध्यान रखना भी जरूरी होता है. तो चलिये जानें कौन सी हैं ये एक्सरसाइज और क्या है इन्हें करने का सही तरीका.

कैटल बॉल स्विंग

ग्रुप क्लासेज में आपको प्लियोमेट्रिक (एक तरह की कसरत जिसमें बहुत तेज गति होती है) करना सिखाया जाता होगा. इसमें वेट बांधकर टेबल को जंप करते रहना होता है. लेकिन स्टेप अप बेंच को जंप करके पार करना और उस दौरान डंबल या लाइट वेट को टखने से बांधना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे चोट लग सकती है.

हालांकि जंप करने से काफी कैलोरी खर्च होती है, लेकिन बात यह भी है कि वेट लेकर जंप करने से कोई टिश्यू या मसल खिंच सकती  है या फिर कहीं चोट भी लग सकती है. फिटनेस एक्सपर्ट बताते हैं कि यदि आप जंप करना चाहते हैं तो कैटल बॉल स्विंग करें. डंबल और बारबेल का उपयोग केवल रेजिस्टेंस ट्रेनिंग प्रोगाम में ही करना चाहिए, जहां आपके सभी मूवमेंट पर ट्रेनर की पेनी नजर होती है.

केटल बॉल एक्सरसाइज के लिए झुक कर (हाफ बेंड) खड़ा होना पड़ता है. इसके बाद दोनों पैरों में थोड़ा गैप बनाया जाता है और कैटल बॉल्स को दोनों हाथों में पकड़कर पैरों के बीच में होते हुए कंधों तक उठाकर स्विंग किया जाता है.

बोट स्टाइल

‘बोट’ यानी नाव के आकार में शरीर को स्ट्रेच करने की यह एक्सरसाइज पेट का फैट कम करने की एक बेहद कारगर और फायदेमंद एक्सरसाइज है. इसे करने के लिए जमीन पर बैठ जाएं, ऐसे में आपके दोनों पैर सीधे होने चाहिए. अब दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए सांस खींचें और झुकते हुए दोनों पंजों को हाथों से छुएं. इस दौरान कोशिश करें कि आपके कंधों से घुटने छू जाएं. इस एक्सरसाइज को रोज दिन में तीन बार करें. कुछ ही हफ्तों में आप अपने पेट की चर्बी में कमी होती हुई महसूस कर पाएंगे.

फैड डाइट न लें. वजन घटाने के लिए डिटॉक्स बेहतर उपाय नहीं है. तेजी से वजन घटाना कई बार खतरनाक साबित हो सकता है. फैड डाइट आपको मोटा होने से बचाता है लेकिन इसके साथ कई स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं और कई मामलों में तो  आप पहले से भी ज्यादा मोटे हो जाते हैं. पौष्टिक आहार समय से खाएं और भूख से थोड़ा कम ही खाएं.

वजन घटाने के लिए सबसे पहले डायटीशियन से संपर्क करके अपने अनुकूल डाइट प्लान बनवाएं ताकि आप हेल्दी तरीके से वजन घटा सकें और एक्सरसाइज का भी पूरा असर हो सके. वजन घटाने के लिए डाइट और एक्सरसाइज दोनों को साथ में लेकर ही बेहतर परिणाम पाये जा सकते हैं.

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