फैशन का पहनावा है हर उम्र की चाहत

एक जमाना था जब महिलाओं के सजनेसंवरने पर कोई पाबंदी नहीं होती थी. अपने सौंदर्य को बेहतरीन दिखाने के लिए वे अपने मन की करती थीं. पर फिर समय के साथ समाज उन से सब कुछ छीनता चला गया. उन की चाहतें चारदीवारी में दफन होने लगीं. मगर अब फिर जमाना एक सीमा तक बदल गया है और महिलाएं अपने मन की करने लगी हैं.

नई सोच के साथसाथ समाज को भी अपना नजरिया बदलने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. फैशन ने हर उम्र की दहलीज पर एक बड़ी क्रांति ला दी है. सड़ीगली मानसिकता के साथ 7 परदों में तन को ढक कर रखने की प्रथा को तोड़ने के लिए महिलाएं तत्पर हो गई हैं. कोई क्या सोचेगा, क्या कहेगा इन बातों की अब उन्हें परवाह नहीं है.

आज आकर्षक पहनावा आकर्षक व्यक्तित्व और आकर्षक सोच का पर्याय बन गया है. ‘जीवन मेरा, तनमन मेरा तो फिर इसे फैशन के बदलते मौसम के अनुसार क्यों न सजाऊं.’ आज हर महिला की जबान पर यही उद्गार है. धर्म, समाज, परिवार, मुल्लेमौलवी चाहे जितने फतवे जारी कर लें, कोई परवाह नहीं. आज के भागमभाग वाले दौर में कोई भला 9 गज की साड़ी क्यों पहनना चाहे? हलके फुलके कपड़ों में ही अनेकानेक जिम्मेदारियों को निभाया जा सकता है.

जब हर क्षेत्र में लड़कियों ने, महिलाओं ने अपना आकाश ढूंढ़ लिया है, अपने हिस्से की धूप तलाश कर ली है तो मन का पहनावा तो बहुत मामूली बात है. अवसर के अनुसार पहनावा पहनने में रोकटोक करने का कोई औचित्य नहीं है. जींस, टौप, स्कर्ट, छोटी फ्रौक, शर्ट में सजे तन न जाने उम्र के कितने साल चुरा कर मन को युवा होने की अनुभूति देते हैं.

घरबाहर की दोहरी जिम्मेदारियों को निभाने में पहनावे का बहुत महत्त्व रहता है. वाहन संचालन पर आधिपत्य रखने वाली लड़कियां हों या युवतियां, अधेड़ावस्था की हों या वृद्ध पहनावे को आधुनिकता के सांचे में ढालना ही पड़ता है. शादीविवाह और त्योहारों के मौसम में जरी, मोतियों और सितारों से सजी साडि़यां, लांचा, लहंगे के साथ भारी जेवरात पहनने के अंदाज गजब ढाने के साथ बड़े लुभावने भी लगते हैं. लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में इन्हें पहनना आसान नहीं है.

आज 60 क्या 70 से ज्यादा उम्र की भी भारतीय महिलाएं विदेशों में ही नहीं, बल्कि अपने देश में भी जींस, पैंट, स्कर्ट, टौप जैसी पोशाकों में नजर आती हैं, तो आंखों को बड़ा सुकून मिलता है. प्राचीन और आधुनिक फैशन की पोशाकों की सम्मिलित डिजाइनें नयनाभिराम होने के साथसाथ बजट के अंदर भी आती हैं.

एक से बढ़ कर एक डिजाइनर ड्रैसेज फैशन की दुनिया में शोहरत बटोर रही हैं. इन डिजाइनर कपड़ों के प्रचार के लिए फैशन परेडों का आयोजन भी किया जाता है. अब तो औनलाइन भी खूब बिक्री हो रही है. सब धड़ल्ले से खरीदारी कर रहे हैं.

फैशन पर लड़कियों एवं महिलाओं के विचार

24 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर दिव्या दत्ता कहती हैं कि सलवार कमीज से ज्यादा अच्छा उन्हें जींस, पैंट, फुल स्कर्ट, टौप, शर्ट पहनना लगता है. इन ड्रैसेज में चुस्तदुरुस्त स्मार्ट तो लगती ही हैं, हलकाफुलका होने के एहसास के साथ साथ हर वर्ग के साथ काम करने में भी सहजता महसूस होती है.

अनारकली पहनावे की दीवानी बैंक में कार्यरत 28 वर्षीय पूजा सभी आधुनिक परिधान पहनती हैं पर सलीके से. पहनावे के साथ वे स्थान और मिलने वालों को भी अहमियत देती हैं. भारी बदन की महिलाओं को तंग परिधानों के बजाय ढीलेढाले परिधानों में देखना पसंद करती हैं. वे कहती हैं कि फैशन के साथ शालीनता भी होनी चाहिए.

37 वर्षीय डैंटिस्ट सृजा ने भी दिव्या की ही बातें दोहराईं. पर उन्हें विशेष अवसरों पर पारंपरिक और आधुनिक फ्यूजन के परिधान बहुत भाते हैं. घरबाहर कैपरी पहनना उन्हें आरामदायक लगता है.

कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राएं रश्मि, सपना, मेघा, नमिता ने बताया कि उन्हें नए फैशन के कपड़े सुंदर, टिकाऊ होने के साथसाथ आरामदायक भी लगते हैं. कपड़ों का मैटीरियल इतना अच्छा होता है कि घर पर ही धो लेती हैं. ड्राई वाश की कोई जरूरत नहीं होती है. रखरखाव में भी कोई झंझट नहीं होता है. फिर आकर्षक डिजाइनर ड्रैसों की औनलाइन शौपिंग भी कर लेती हैं.

45 वर्षीय अंजू लाल खास मौके पर ही बनारसी डिजाइनर साड़ी पहनती हैं. उन्हें आधुनिक और पारंपरिक सलवारकमीज ही पहनना ज्यादा अच्छा लगता है.

पटना वूमंस कालेज में अंगरेजी की व्याख्याता, 50 वर्षीय स्तुति प्रसाद का कहना है कि उन्हें सलवारकमीज पहनना बहुत अच्छा लगता है. चूंकि वे एक व्याख्याता हैं, इसलिए पहनावे की शालीनता का ध्यान रखना पड़ता है.

60 वर्षीय गृहिणी सुनीता जब से लंदन आनेजाने लगी हैं हमेशा जींस, टौप, शर्ट ही पहनती हैं. आकर्षक साड़ी किसी विशेष अवसर पर ही पहनती हैं.

75 वर्षीय मीनाजी को रंगबिरंगा गाउन पहनना बहुत अच्छा लगता है. जब भी वे अमेरिका जाती हैं वहां के मौल्स से एक से बढ़ कर एक फैशन के परिधान खरीद लाती हैं.

वास्तव में अपनी मनपसंद के परिधानों के साथ जीने का अंदाज ही निराला होता है. मन सदा उत्साहउमंग से भरा रहता है. थकान, अवसाद जीवन में नहीं झांकते.

20 साल बाद साथ आएंगे रहमान और रवि उद्यावर

श्रीदेवी की 300 वीं फिल्म ‘‘मौम’’ के निर्देशक रवि उद्यावर इन दिनों काफी चर्चा बटोर रहे हैं. जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में गोल्ड मेडलिस्ट रवि उद्यावर ने 19 वर्ष की उम्र में एक अंग्रेजी अखबार में इलस्ट्रेशन बनाना शुरू किया था. पर जब वह फिल्म माध्यम से जुड़े तो संगीतकार ए आर रहमान का उन्हें साथ मिला.

जी हां, रवि उद्यावर ने अपने करियर की पहली कमर्शियल यानी कि एड फिल्म के रूप में ‘‘एयरटेल’’ की कमर्शियल निर्देशित की थी. इसे संगीत से संवारा था ए आर रहमान ने. इस एड को पूरे विश्व में कई पुरस्कार मिल गए. काफी चर्चा हुई और इस एड की वजह से ‘एयरटेल’ व्यवसाय में अग्रणी हो गया.

अब पूरे बीस वर्ष बाद रवि उद्यावर ने अपने करियर की पहली फीचर फिल्म निर्देशित की है, जो कि सात जुलाई को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘मौम’’ है. मजेदार बात यह है कि इस फिल्म के संगीतकार ए आर रहमान ही हैं. तो क्या रवि उद्यावर ने स्वयं अपनी इस फिल्म के साथ ए आर रहमान को संगीतकार के रूप में यह सोचकर जोड़ा कि ए आर रहमान उनके लिए लक्की साबित होंगे?

इस पर रवि कहते हैं, ‘‘मैं तो इसे समय का खेल मानता हूं. हकीकत में फिल्म ‘मौम’ के साथ संगीतकार के रूप में ए आर रहमान को जोड़ने का फैसला फिल्म के निर्माता बोनी कपूर का है. पर मुझे भी उनकी संगीत की धुनें काफी पसंद आयी.’’

प्रदूषण और एलर्जी…

प्रदूषण चाहे हवा का हो, पानी का हो या जमीन का, रोगों के पनपने का बड़ा कारण है. यह प्रकृति के नियमों में परिवर्तन करता है, प्रकृति के क्रियाकलाप में बाधा डालता है. प्रदूषण हवा, पानी, मिट्टी, रासायनिक पदार्थ, शोर या ऊर्जा किसी रूप में भी हो सकता है. इन सभी तत्त्वों का हमारे परिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर  पड़ता है जिस का प्रभाव मनुष्य के साथसाथ जानवरों और पेड़पौधों पर भी पड़ता है. चूंकि बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, इसलिए इन जहरीले तत्त्वों का असर उन पर सब से अधिक पड़ता है.

प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण. इन से कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां और एलर्जी भी होती है.

वायु प्रदूषण की मार

वायु प्रदूषण में सौलिड पार्टिकल्स और कई तरह की गैसें शामिल होती हैं. दरअसल, एयर पौल्युटैंट हमारे शरीर में रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (श्वास नली) और लंग्स (फेफड़ों) द्वारा प्रवेश करते हैं. इन्हें रक्तवाहिकाएं सोख लेती हैं, जो शरीर के अन्य अंगों तक प्रसारित हो जाते हैं.

वायु प्रदूषण कई रोगों का कारण बनता है जिस की शुरुआत एलर्जी के रूप में आंख, नाक, मुंह और गले में साधारण खुजली या एनर्जी लेवल के कम होने, सिरदर्द आदि से हो सकती है. इस से गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं.

रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज : किसी व्यक्ति में वायु प्रदूषण के चलते समस्या शुरू हो गई है तो उसे रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज अपनी चपेट में ले सकती हैं.

इन के अंतर्गत अस्थमा अटैक, क्रोनिक औब्सट्रैक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), लंग्स का कम काम करना, पल्मोनरी कैंसर, (एक खास तरह का लंग कैंसर मेसोथेलियोमा जिस का संबंध आमतौर पर एस्बेस्टोस की चपेट में आने से है आमतौर पर इस की चपेट में आने के 20-30 साल बाद यह नजर आता है), निमोनिया आदि बीमारियां आती हैं.

कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक : सैकंडहैंड स्मोक के बारे में देखा गया है कि यह हृदय रोग को बढ़ाता है. कार्बन मोनोऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड भी इस में सहयोग देते हैं. वायु प्रदूषण को हृदय रोग का एक प्रमुख कारण माना जाता है क्योंकि एयर पौल्युटैंट लंग्स में प्रवेश करते हैं और रक्तवाहिकाओं में घुल जाते हैं जो इंफ्लेमेशन का कारण बनते हैं और हृदय की गति को बढ़ाते हैं. ये अस्थमा और लंग्स व सांस की एलर्जी का कारण बनते हैं.

न्यूरो बिहेवियरल (शारीरिक और मानसिक) डिसऔर्डर : वायु में उपस्थित विषाक्त तत्त्व जैसे मरकरी आदि न्यूरोलौजिकल समस्याएं और विकास में बाधा का कारण बनते हैं.

लिवर और दूसरे तरह का कैंसर : कार्सिनोजेनिक वोलाटाइल कैमिकल में सांस लेने से लिवर की समस्या और कैंसर हो सकता है. यह भी वायु प्रदूषण के चलते ही होता है.

एक अध्ययन के मुताबिक, धुएं और विभिन्न कैमिकल्स के चलते होने वाले वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.

जल प्रदूषण के खतरे

जीवन के लिए जल जितना आवश्यक है उतना ही प्रदूषित जल हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित होता है. जल प्रदूषण से कई खतरनाक बीमारियां और एलर्जी होती हैं जो अकसर जानलेवा भी साबित होती हैं.

इंफेलाइटिस, पेट में मरोड़ और दर्द, उलटी, हेपेटाइटिस, रेस्पिरेटरी एलर्जी, लिवर का डैमेज होना आदि बीमारियां जल प्रदूषण के चलते हो सकती हैं. प्रदूषित जल में पाए जाने वाले कैमिकल्स के संपर्क की वजह से किडनी भी खराब हो सकती है.

दूषित जल के प्रयोग से कई प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है जिस में त्वचा में जलन, लाल चकत्ते पड़ना और फुंसियां होना आम बात है.

न्यूरोलौजिकल समस्याएं : पानी में आमतौर पर पैस्टिसाइड्स  (जैसे डीडीटी) जैसे कैमिकल्स की उपस्थिति के कारण नर्वस सिस्टम क्षतिग्रस्त हो सकता है.

प्रजनन संबंधी समस्या : प्रदूषित पानी के सेवन के चलते जिस्म के अंदरूनी तंत्र के क्षतिग्रस्त होने से लैंगिक विकास में बाधा, बांझपन, इम्यून फंक्शन का कमजोर होना, उर्वरता की क्षमता कम होना जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

जल प्रदूषण बढ़ने की वजह से मलेरिया का ब्रीडिंग ग्राउंड बन जाता है. यह मच्छरों द्वारा फैलता है. इसकी वजह से दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 10.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

जल प्रदूषण के कारण कुछ सामान्य रोग भी होते हैं जो ज्यादा गंभीर नहीं होते, जैसे समुद्र प्रदूषित पानी में नहाना जिस से कई प्रकार की एलर्जी हो सकती है, जैसे रैशैज, कान में दर्द, आंखों का लाल होना आदि.

मिट्टी के प्रदूषण

हैवी मैटल्स, पैस्टिसाइड्स, सौल्वैंट्स और दूसरे मानव निर्मित कैमिकल्स, लेड और तेल की गंदगी आदि कुछ सामान्य तत्त्व हैं जो मिट्टी को प्रदूषित करने में अपना योगदान देते हैं. मिट्टी का प्रदूषण मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को नष्ट कर देता है, उपयोगी सूक्ष्मजीवों को मार देता है और एक प्रकार से पैथोजैनिक सौइल इनवायरमैंट का निर्माण करता है.

मिट्टी प्रदूषण से होने वाले रोग प्रत्यक्षरूप से इस को प्रदूषित करने वाले तत्त्वों के संपर्क में आने से होते हैं, जैसे वायु में उत्पन्न तत्त्व में सांस लेना, फसलों पर ऐसे पानी का छिड़काव या ऐसी मिट्टी में फसल उगाना आदि. हालांकि मिट्टी प्रदूषण की चपेट में आना वायु और जल प्रदूषण की चपेट में आने जितना गंभीर नहीं होता. इसका खतरनाक असर बच्चों पर हो सकता है जो आमतौर पर जमीन पर खेलते हैं और इन जहरीले तत्त्वों के सीधे संपर्क में होते हैं.

प्रदूषित मिट्टी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, थकान के अलावा त्वचा पर रैशेज, आंखों में खुजली और बाद में इन की गंभीर स्थिति वाली एलर्जी भी हो सकती है.

मस्तिष्क को क्षति : जब बच्चे लेड से प्रभावित मिट्टी के संपर्क में आते हैं तो उन के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम में क्षति हो सकती है. इस से उन के मस्तिष्क और न्यूरोमस्क्यूलर विकास प्रभावित होते हैं.

किडनी और लिवर को क्षति : मिट्टी में लेड की मिलावट लोगों को किडनी डैमेज के खतरे में डालती है. ऐसी मिट्टी के संपर्क में आना जिस में मरकरी और साइक्लोडाइन्स का मिश्रण हो, तो वह कभी न ठीक होने वाले किडनी रोग का कारण बन सकता है.

मलेरिया : जिन  क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होती है और वहां पानी निकलने की ठीक से व्यवस्था नहीं होती तो वहां पानी के साथ मिट्टी मिल जाती है जिस से वहां के लोगों का प्रत्यक्षरूप से मलेरिया के संपर्क में आना सामान्य बात है. मलेरिया प्रोटोजोआ के कारण होता है जो मिट्टी में पैदा होता है. बरसात का पानी प्रोटोजोआ और मच्छरों को आगे बढ़ाने में मदद करता है जिस का परिणाम मलेरिया होता है.

ध्वनि प्रदूषण के साइड इफैक्ट्स

ध्वनि प्रदूषण मनुष्य को चिड़चिड़ा बना देता है. ध्वनि प्रदूषण का मनुष्य पर कई रूपों में प्रभाव पड़ता है.

दक्षता की कमी : कई तरह के शोधों के बाद यह बात साबित हुई है कि मनुष्य के काम करने की क्षमता शोर के कम होने से ज्यादा बढ़ती है. कारखानों का शोर अगर कम कर दिया जाए तो वहां के काम करने वालों की दक्षता को बढ़ाया जा सकता है. इस से यह साबित होता है कि मनुष्य के काम करने की दक्षता का संबंध शोर से है.

एकाग्रता में कमी : कार्य के बेहतर परिणाम के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है. तेज आवाज की वजह से ध्यान भंग होता है. बड़े शहरों में आमतौर पर दफ्तर मुख्य मार्गों पर स्थित होते हैं, ट्रैफिक का शोर या विभिन्न प्रकार के हौर्न्स की तेज आवाजें दफ्तर में काम करने वाले लोगों की एकाग्रता को भंग करती हैं.

थकान : ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग अपने काम में एकाग्रता नहीं ला पाते. परिणामस्वरूप उन्हें अपना काम पूरा करने में ज्यादा वक्त लगता है जिस की वजह से उन्हें थकान महसूस होती है.

गर्भपात : गर्भावस्था के दौरान शांत और सुकून देने वाला वातावरण आवश्यक होता है. अनावश्यक शोर किसी भी महिला को चिड़चिड़ा बना सकता है. कई बार शोर गर्भपात की भी वजह बनता है.

ब्लडप्रैशर : शोर व्यक्ति पर कई प्रकार से हमला करता है. यह व्यक्ति के मस्तिष्क की शांति पर हमला करता है. आधुनिक जीवनशैली के चलते पहले से तनाव में रह रहे व्यक्ति के शोर तनाव को बढ़ाने का काम करता है. तनाव की वजह से कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं, जैसे ब्लडप्रैशर, मानसिक रोग, डायबिटीज के अलावा दिल की बीमारी आदि. इसलिए तनाव से व्यक्ति को दूरी बना लेने में ही भलाई है.

अस्थायी या स्थायी बहरापन : मैकेनिक्स, लोकोमोटिव ड्राइवर्स, टैलीफोन औपरेटर्स आदि सभी को कानों में तेज ध्वनि सुननी पड़ती है. हम सभी लगातार शोर की चपेट में रहते हैं. 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि असुरक्षित होती है. तेज आवाज अस्थायी या स्थायी बहरेपन का कारण भी बन सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार कारकों में से एक ध्वनि प्रदूषण को माना जाता है. इस के अलावा ध्वनि प्रदूषण के कारण अनिद्रा और गंभीर चिड़चिड़ापन जैसे रोग भी होते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, हर प्रकार के संक्रामक रोग में से 80 प्रतिशत जल प्रदूषण के कारण होते हैं. जल प्रदूषण के कारण दुनियाभर में लगभग 2.5 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है.

प्रदूषण के जानलेवा आंकड़े

वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष 30 लाख लोगों की मौत होती है.

– 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि, ध्वनि प्रदूषण की खतरनाक श्रेणी में आती है.

– दुनिया में हर साल 2.5 करोड़ लाख लोगों की मौत के पीछे की वजह जल प्रदूषण है.

– लगातार ध्वनि प्रदूषण की चपेट में रहने से शरीर में स्ट्रैस हार्मोंस जैसे एड्रेनालाइन, नोराड्रेनालाइन और कार्टीसोल का स्तर बढ़ जाता है. स्ट्रैस, जैसा कि माना जाता है, हार्ट फेलियर, इम्यूनिटी समस्या, हाइपरटैंशन और स्ट्रोक का कारण बनता है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित, सरोज सुपरस्पैशलिटी अस्पताल के इंटरनल मैडिसिन विभाग के अध्यक्ष हैं)

मुझे एडवैंचर करने में बहुत मजा आता है : सिद्धार्थ मल्होत्रा

मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से फिल्मों में अपनी पहचान बनाई. दिल्ली के सिद्धार्थ मल्होत्रा को मौडलिंग के दौरान लगा कि कुछ अलग करने की आवश्यकता है और मुंबई आकर करण जौहर के साथ ‘माई नेम इज खान’ के लिए सहायक निर्देशक का काम किया.

इसके बाद करण जौहर ने उन्हें फिल्म का भी औफर दिया था. पहली फिल्म बतौर अभिनेता सफल होने के बाद उन्हें कई और फिल्मों में काम मिला, लेकिन इनमें कुछ सफल, तो कुछ असफल रहीं.

सिद्धार्थ लड़कियों के बीच अपने हैंडसम लुक के लिए काफी प्रसिद्ध हैं. पहली फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ में आलिया भट्ट के साथ काम करने के बाद उनकी दोस्ती आलिया से काफी बढ़ी है, वे दोनों कई बार किसी रेस्तरां या क्लब में साथसाथ भी देखे गए. इस बात को सिरे से नकारते हुए सिद्धार्थ कहते हैं कि आलिया सिर्फ उनकी दोस्त हैं, इस से अधिक कुछ नहीं. वे अत्यंत शांतप्रिय हैं और हर बात का सोच-समझ कर जवाब देते हैं. इस समय वे न्यूजीलैंड टूरिज्म के दूसरी बार ऐंबैसडर बने हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

ट्रैवल करना क्यों जरूरी है और आप को क्यों पसंद है?

यहां मेरा सिर्फ यह मकसद नहीं कि मैं केवल यात्रा को प्रमोट करूं, बल्कि मुझे यहां आना भी अच्छा लगता है. अगर आप घर से निकल कर कहीं घूमने जाते हैं, तो आप की सोच बढ़ती है. आप को अच्छा महसूस होता है, साथ ही आप को ऐनर्जी भी मिलती है, जो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के लिए बहुत आवश्यक है. ये अनुभव आप को खुद करने की जरूरत है, जो आप में एक आत्मविश्वास जगाते हैं. जो चीजें मैं ने न्यूजीलैंड में देखी हैं, वे अद्भुत हैं. यह सब तनाव को कम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है. हमारे यहां भी ऐसी सोच पैदा करने की आवश्यकता है. न्यूजीलैंड की संस्कृति भी बहुत अच्छी है, इस से आप प्रेरित होते हैं. मुझे एडवैंचर करने में बहुत मजा आता है.

इस के अलावा दिल्ली में इतना अधिक पर्यावरण प्रदूषण है कि वहां से निकल कर कहीं भी जाने पर मैं ताजगी महसूस करता हूं.

आप का फिल्मी सफर उतना सफल नहीं रहा, जितना होना चाहिए था, इस की वजह क्या रही?

मैं मुंबई से नहीं हूं, दिल्ली से आया हूं. ऐसे में एक विजन रख कर हमेशा चलने की जरूरत होती है. मेरा कोई गौडफादर यहां नहीं है जो मेरे हिसाब से फिल्में लिखी जाएं, जो मिला करता गया. अब मैं थोड़ा ध्यान रखता हूं कि फिल्में वही करूं जो मेरे लिए ठीक हों. लेकिन यह सोचने के बाद भी कुछ गलत हो जाता है. फिल्में नहीं चल पातीं. अभी तो मेरे काम की शुरुआत है कोशिश रहेगी कि आगे एक अच्छी फिल्म करूं.

संघर्ष का दौर खत्म हुआ है या नहीं?

अभी भी कुछ खास काम नहीं किया है, इसलिए संघर्ष का दौर अभी जारी है, क्योंकि मैं तसल्ली से बैठ कर सफलता को ऐंजौय नहीं कर सकता. रेस जारी है, जितनी सफलता मिली वह काफी है, लेकिन आगे और अधिक काम करना चाहता हूं.

किस बात से आप को डर लगता है?

डर इस बात से लगता है कि जो भी फिल्म करूं वह दर्शकों को पसंद आए ताकि वे मुझे देखने एक बार फिर हौल में जाएं. इस के लिए कुछ अलग करने की कोशिश हमेशा रहती है, जिसे ऐक्स फैक्टर कह सकते हैं. उस पर मैं अधिक ध्यान देता हूं.

कोई ड्रीम प्रोजैक्ट है?

ड्रीम प्रोजैक्ट है, मैं एक सुपर हीरो और नैगेटिव भूमिका निभाना चाहता हूं. अभी मैं एक मर्डर मिस्ट्री ‘इत्तफाक’ कर रहा हूं. उस में एक झलक सुपर हीरो की है पर पूरी तौर पर नहीं है. यह पुरानी फिल्म ‘इत्तफाक’ की रीमेक नहीं है.

मैंने पुरानी फिल्म नहीं देखी. मर्डर मिस्ट्री आजकल बहुत कम बन रही है इसलिए मैं इस फिल्म को करने में खुश हूं. निर्देशक जोया अख्तर, राजू हिरानी, इम्तियाज अली आदि सभी के साथ काम करना चाहता हूं.

फिटनैस पर कितना समय दे पाते हैं?

सप्ताह में 3 या 4 दिन वर्कआउट करता हूं, जिस में 45 मिनट से 1 घंटा तक समय दे पाता हूं, इस से कई बार रिकवरी भी नहीं हो पाती. अगर डांस की प्रैक्टिस करते हैं तो व्यायाम अपने-आप ही हो जाता है. मैं हमेशा शेप को बनाए रखने की कोशिश करता हूं.

क्या आप कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं?

ऐक्टिंग प्रोफैशन अपने-आप में अकेलेपन को लाता है, इसके लिए मैं अपने काम पर अधिक ध्यान देता हूं जिस में मैं अपने जोनर को बारबार बदलता रहता हूं. लवस्टोरी से ले कर ऐक्शन सब तरह की फिल्में करने की कोशिश करता हूं, उस से मुझे बहुत उत्साह मिलता है. इस के अलावा अगर समय मिलता है तो कुछ दोस्त जो इंडस्ट्री से नहीं हैं उन के साथ समय बिताता हूं. वे बहुत सहयोग देते हैं. काम के अलावा यात्रा करना व पंजाबी खाना बहुत पसंद है. वैसे भी मैं बहुत फूडी हूं इसलिए हर न्यू चीज ट्राई करना पसंद करता हूं.

आप कई बार आलिया भट्ट के साथ दिखे हैं, क्या कुछ बताना चाहते हैं?

किसी के साथ घूमना फिरना, इसमें कोई बुराई नहीं है और हम दोनों अच्छे दोस्त हैं.  लोग क्या कहते हैं इस की मैं परवा नहीं करता.

सोशल मीडिया में तस्वीरें डालते वक्त रहें सावधान

पिछले दिनों चेन्नई के एक स्कूल ने एक फरमान जारी किया कि जिस बच्चे का सोशल मीडिया पर अकाउंट होगा, उस का स्कूल में दाखिला नहीं होगा. स्कूल में दाखिला लेते समय दाखिले के फार्म पर इस बात की जानकारी देनी होगी. स्कूल ने बच्चों को सोशल नैटवर्किंग साइट पर प्रोफाइल न बनने की हिदायत दी है, साथ ही जब तक बच्चे स्कूल में हैं उन के प्रोफाइल बनाने पर भी रोक लगा दी गई है. दरअसल, इन दिनों किशोरवय बच्चों के बीच फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी सोशल साइट्स की लोकप्रियता में काफी वृद्धि दर्ज की गई है. लेकिन इन मीडिया मंचों पर 7-8 साल के बच्चों का यूजर प्रोफाइल मिलना और अधिक चौंकाने वाली बात है.

सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा मामले फोटो के दुरुपयोग के आते हैं, इसलिए अपनी निजी तस्वीरों को अपलोड ना ही करें तो बेहतर है. अगर कोई तस्वीर अपलोड करते भी हैं तो उसकी प्राइवेसी सेटिंग जरूरत के हिसाब से रखें. सोशल मीडिया पर सुरक्षा के विकल्प भी मौजूद होते हैं बस जरूरत है आपको जानकारी होने की.

सोशल मीडिया पर आजकल एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है इसमें एक लड़की अपने कपड़े बदलती हुई साफ देखी जा सकती है. इस वीडियो को स्पाई कैमरे के जरिए बनाया गया है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि लड़की किस तरह से अपने कपड़े बदल रही है किसी ने इस वीडियो को बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया.

आजकल हर कोई सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है और हर कोई इसमें अपना खासा समय व्यतीत करता है, पर कुछ शरारती तत्व इस तरह की हरकत करने से बाज नहीं आते, किसी शरारती तत्वों ने गर्ल्स हॉस्टल के बाथरूम में स्पाई कैमरा छुपा रखा था, जिससे उसने इस लड़की का पूरा वीडियो अपने कैमरे में कैद कर लिया.

अक्सर देखा जाता है सोशल मीडिया पर इस तरह के वीडियो कि अब बाढ़ सी आ गई है, फिर भी लोगों को यह समझना चाहिए कि इस प्रकार की हरकत सभ्य समाज में उचित नहीं. इस तरह की हरकत करके ना केवल वह इस लड़की का अपमान कर रहे हैं बल्कि समाज में भी गलत संदेश दे रहे हैं.

इस तरह की हरकतों को जल्द से जल्द बंद करने की जरूरत है नहीं तो यह समाज को दूषित करके एक अलग ही तरह का समाज बना देगी जहां पर हर कोई एक दूसरे को शक की नजर से नजर से देखेगा.

इन बॉलीवुड कपल्स ने ब्रेकअप के बाद नहीं किया साथ काम

रणबीर कपूर और कटरीना कैफ के प्यार की शुरुआत ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ के सेट पर हुई थी और अंत ‘जग्गा जासूस’ के सेट पर हुआ. दोनों के ब्रेकअप की चर्चा करीब एक साल से है. ब्रेकअप के बाद भी दोनों ने ‘जग्गा जासूस’ की शूटिंग जारी रखी और प्रमोशन में दोनों एक साथ कैमरे को पोज देते हैं. लेकिन ये दोनों की लास्ट मूवी है.

एक इंटरव्यू में जब कटरीना से पूछा गया कि क्या वो रणबीर के साथ काम करेंगी तो उन्होंने कहा, ये कभी नहीं होगा और रणबीर ने भी इसी तरफ इशारा किया है.

बता दें कि रणबीर और कटरीना पहले ऐसे कपल नहीं हैं, जिन्होंने ब्रेकअप के बाद एक-दूसरे के साथ काम नहीं करने का फैसला लिया. आइए जानते हैं, ऐसे दूसरे कपल्स के बारे में जिन्होंने ब्रेकअप के बाद कभी साथ काम नहीं किया.

सलमान खान-ऐश्वर्या राय बच्चन

दोनों का प्यार ‘हम दिल दे चुके सनम’ के सेट पर शुरू हुआ था. 2002 में ब्रेकअप के बाद ऐश्वर्या ने सलमान पर आरोप लगाया था कि सलमान अब तक उन्हें भुला नहीं पाए हैं और उन्हें परेशान कर रहे हैं. ऐश्वर्या ने ये भी कहा कि रिलेशलशिप के दौरान सलमान उन पर शक करते थें कि उनका दूसरों के साथ अफेयर है. ब्रेकअप के बाद दोनों ने एक-दूसरे के साथ कभी काम नहीं किया.

जॉन अब्राहम-बिपाशा बासु

9 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद 2012 में ब्रेकअप करके जॉन और बिपाशा ने सबको चौंका दिया था. बिपाशा ने इसका जिम्मेदार जॉन को ठहराया था तो वहीं जॉन के दोस्तों ने बिपाशा पर उंगली उठाई थी. 2007 में दोनों ‘दन दना दन गोल’ में नजर आए थे. उसके बाद से दोनों किसी फिल्म में साथ नजर नहीं आए.

शाहिद कपूर-प्रियंका चोपड़ा

दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया. दोनों के अफेयर की खबरें बहुत उड़ी लेकिन किसी ने मीडिया के सामने अपने रिश्ते को नहीं माना. हालांकि दोनों का रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चल पाया. दोनों 2012 में ‘तेरी मेरी कहानी’ में अंतिम बार नजर आए थें.

रानी मुखर्जी-अभिषेक बच्चन

दोनों ने अपने रिश्ते को कभी भी नहीं स्वीकारा लेकिन खबरें थी कि 2000 के दशक में दोनों एक-दूसरे को डेट कर रहे थे. साल 2007 में अभिषेक ने ऐश्वर्या से शादी कर ली. दोनों अंतिम बार ‘लागा चुनरी में दाग’ में नजर आए थे.

सोनाक्षी सिन्हा-अर्जुन कपूर

दोनों का अफेयर बॉलीवुड का ओपन सीक्रेट है. दोनों कुछ साल पहले रिश्ते में थे. एआईबी के दौरान अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह के रोस्ट ने दोनों की सच्चाई सामने ला दिया था. दोनों ने एक साथ ‘तेवर’ फिल्म की है, जो 2015 में आई थी.

जब महिलाएं लेती हैं रिटायरमेंट!

आपकी जिंदगी में भी वो एक समय आता है, जब अचानक से सबकुछ थम-सा जाता है. ना कहीं जाने की जल्दी और ना ही कहीं से घर लौटने की खुशी. ऐसा ही कुछ होता है, जब आप रिटायर्ड या सेवानिवृत होती हैं. जी हां, यहां हम बात कर रहे हैं, उन स्त्रियों की, जो एक लंबी अवधि की नौकरी के बाद रिटायर हो जाती हैं.

क्या है रिटायरमेंट ब्लूज?

जब आप काम करती हैं, तो अक्सर ही यह कहती हैं कि मैं तो इस काम से तंग आ गई हूं, पता नहीं कब इससे छुट्टी मिलेगी, पर क्या अब आपको ऐसा लगता है कि आपको यही छुट्टी चाहिए थी? कहीं रिटायरमेंट ने आपको अकेला तो नहीं कर दिया है? ऐसे कई सवाल आपके ज़ेहन में भी आते होंगे. तो आइए जानें, आपके रिटायरमेंट ब्लूज़ को. जब आप रिटायर होती हैं, तो अचानक आपको लगता है कि –

– आपकी पहचान खो गई है या आपके अस्तित्व को कोई ख़तरा है.

– अचानक आपको अपने ओहदे से जुड़े मान-सम्मान में कमी नज़र आने लगती है.

– जिस स्वतंत्रता को आप इतने सालों से पाना चाहती थीं, वह अचानक सज़ा लगने लगती है.

– अचानक आपको लगता है कि आपसे कोई बात नहीं करना चाहता और आपके साथ कोई खाना नहीं खाना चाहता.

– आप अपने आपको अकेली और अनुपयोगी पाती हैं.

अगर आप भी ऐसा ही महसूस कर रही हैं, तो चिंता की कोई बात नहीं है. हर रिटायर होती स्त्री ऐसी ही कशमकश में होती है. इसे ट्रांजिशन पीरियड कहा जाता है, मतलब आप इस समय अपने जीवन के बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही होती हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ स्त्रियां ही इससे गुजरती हैं, पुरुष भी इस कठिन समय का सामना करते हैं, पर यह समय स्त्रियों के लिए अधिक संवेदनशील इसलिए हो जाता है, क्योंकि उम्र का यह वही पड़ाव है, जिसमें वे मेनोपॉज़ से भी जूझ रही होती हैं. मानसिक और शारीरिक दोनों ही आक्षेपों में यह समय काफ़ी नाज़ुक और कठिन होता है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चाहे कोई स्त्री ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले या फिर अपनी सेवाएं पूरी करने के बाद रिटायर हो, ये तनाव सा दोनों ही जगहों पर देखने को मिलता है. इसका मतलब है, अचानक अकेलेपन का एहसास होना. ऐसा लगता है, जैसे अब किसी को आपकी जरूरत नहीं है. मेनोपॉज के समय वैसे ही हार्मोंस काफी डिस्टर्ब हो जाते हैं. इस अवस्था को डिप्रेशन तो नहीं कहा जा सकता, पर हां, यह डिप्रेशन के काफी करीब है.

इसके शुरुआती दिनों को ङ्गट्रांजिशन पीरियड कहते हैं. इस समय सबसे जरूरी है, समय के बहाव के साथ बहना. अपने साथ किसी तरह की जबर्दस्ती ना करें. खुद को समय दें. धीरे-धीरे आप खुद ही नई परिस्थिति में ढल जाएंगी.

रिटायरमेंट के लिए क्या है जरूरी?

जीवन के हर मोड़ पर प्लानिंग बहुत ज़रूरी है. आज जीवनशैली और सामाजिक संरचना में काफी बदलाव आए हैं, तो उस हिसाब से हमें भी अपनी सोच को बदलना होगा.

आज हो सकता है कि आपके रिटायरमेंट के बाद आपके बच्चे या नाती-पोते आपको समय ना दे पाएं, या फिर वे आपके साथ भी ना रह पाएं, तो उसमें उनको दोष ना दें, क्योंकि हो सकता है कि वाकई उनके पास समय का अभाव हो.

यह हमेशा ध्यान में रखें कि आप अपने जीवन में जो भी कदम उठाती हैं, वह आप सिर्फ अपने लिए उठा रही हैं, दूसरों के लिए अपने जीवन के निर्णय ना लें. तात्पर्य यह है कि अगर आप को अपनी नौकरी छोड़नी है, तो अपने लिए छोड़िए, यह मत कहिए कि आपने नौकरी बच्चों के लिए या फिर पति के लिए या फिर घर के लिए छोड़ी है, क्योंकि आपको ऐसा लगता है कि बच्चों को आपकी जरूरत है, पर हो सकता है कि ऐसा ना हो.

दूसरी मुख्य बात यह है कि हमेशा ध्यान रखें कि एक आत्मनिर्भर मां अपने बच्चों को भी आत्मनिर्भर ही बनाएगी, तो सेवानिवृत्ति के बाद यह सोचना कि बच्चे हर छोटी बात के लिए आप पर निर्भर होंगे, यह गलत है. बदलाव आपके जीवन में आया है, दूसरों के नहीं. बस खुद को समय दीजिए, अपनी सोच को सकारात्मक रखिए.

कैसे लड़ें रिटायरमेंट ब्लूज से?

रिटायरमेंट के कुछ समय पहले से खुद को उसके लिए तैयार करें.

– रिटायरमेंट को अपने जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत बनाएं. यह अंत नहीं है.

– कल बिताए हुए समय के लिए अपने आज को दांव पर ना लगाएं अर्थात् अपने अस्तित्व को अपने काम से जोड़कर ना रखें.

– ऑफिस के बाहर भी अपना सामाजिक सर्कल रखें. ऑफिस के अलावा भी अपने मित्र बनाएं.

– रिटायरमेंट के बाद भी अपने आपको किसी ना किसी काम में व्यस्त रखें, जैसे- बच्चों को पढ़ाना, संगीत या ऐसी ही किसी हॉबी में खुद का समय व्यतीत करना.

– अपने अकेलेपन के लिए किसी और को दोषी ना ठहराएं. इसकी जगह दूसरों की व्यस्तताओं को समझने का प्रयत्न करें.

– खुद को किसी एनजीओ या संस्था से जोड़ें. हमउम्र लोगों के साथ समय व्यतीत करें.

– अगर इन सबके बावजूद आपकी मानसिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ रहा है, तो एक बार किसी मनोवैज्ञानिक से मिलने में कोई बुराई नहीं है. आपका जीवन आपका अपना है. आपकी अहमियत, आपकी महत्ता किसी नौकरी से जुड़ी नहीं है, बल्कि आपकी सकारात्मक सोच से जुड़ी है, तो अपने पंखों को पूरा खोलिए, जो आज तक कई बंधनों से जकड़े थे और सकारात्मक सोच की हवा में अपने आसमान पर जी भरकर उड़ान भरिए.

क्या है पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज?

पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज यानी पीआईडी गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब्स और अंडाशय में होने वाला इन्फैक्शन होता है. कई बार यह इन्फैक्शन पैल्विक पेरिटोनियम तक पहुंच जाता है. पीआईडी का उचित इलाज कराना जरूरी है, क्योंकि इस के कारण महिलाओं में ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी या गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी अथवा पैल्विक में लगातार दर्द की शिकायत हो सकती है. आमतौर पर यह बैक्टीरियल इन्फैक्शन होता है, जिस के लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, वैजाइनल डिसचार्ज, असामान्य ब्लीडिंग, यौन संबंधों या यूरिनेशन के दौरान तेज दर्द महसूस होना शामिल है.

क्या हैं पीआईडी के प्रारंभिक कारण

जब बैक्टीरिया योनि या गर्भाशय ग्रीवा द्वारा महिलाओं के प्रजनन अंगों तक पहुंचते हैं, तो पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज का कारण बनते हैं. पीआईडी इन्फैक्शन के लिए कई प्रकार के बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं. अधिकांशतया यह इन्फैक्शन यौन संबंधों के दौरान होने वाले बैक्टीरियल इन्फैक्शन के कारण होता है. इस की शुरुआत क्लैमाइडिया और प्रमेह के रूप में होती है. एक से अधिक सैक्सुअल पार्टनर होने की स्थिति में भी पीआईडी होने का खतरा बढ़ जाता है. कई मामलों में क्षयरोग भी इस के होने का कारण बनता है. 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में इस के होने की आशंका अधिक रहती है, लेकिन कई बार मेनोपौज की अवस्था पार कर चुकी वृद्ध महिलाओं में भी यह समस्या देखी जाती है.

यह होती है परेशानी

पीआईडी के कारण कई बार प्रजनन अंग स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और फैलोपियन ट्यूब्स में भी जख्म हो सकता है. इस के कारण गर्भाशय तक अंडे पहुंचने में बाधा आती है. ऐसी स्थिति में स्पर्म अंडों तक नहीं पहुंच पाता या एग फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं, जिस की वजह से भू्रण का विकास गर्भाशय के बाहर ही होने लगता है. क्षतिग्रस्त होने और बारबार समस्या होने पर इन्फर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है. वहीं जब पीआईडी की समस्या टीबी के कारण होती है तो मरीज को ऐंडोमैट्रियल ट्यूबरक्लोसिस होने की आशंका रहती है और यह भी इन्फर्टिलिटी का कारण बनती है. यहां तक कि कई बार महिलाओं में पीआईडी के कारण मासिकस्राव के बंद होने की भी शिकायत हो जाती है.

पहचान और उपचार

पीआईडी को रोकना संभव है. भले ही पीआईडी की समस्या के कुछ लक्षण नजर आते हों, बावजूद इस के इस का पता लगाने के लिए किसी प्रकार की जांच प्रक्रिया मौजूद नहीं है. मरीज से बातचीत के जरीए और लक्षणों के आधार पर ही डाक्टर इस की पुष्टि करते हैं. डाक्टर को इस बात का पता लगाने की आवश्यकता हो सकती है कि किस प्रकार के बैक्टीरिया के कारण पीआईडी की समस्या हो रही है. इस के लिए क्लैमाइडिया की जांच की जाती है. फैलोपियन ट्यूब्स में इन्फैक्शन का पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जा सकता है. पीआईडी का इलाज ऐंटीबायोटिक्स द्वारा किया जाता है. मरीज को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है.

पीआईडी के बाद प्रैगनैंसी

जिन महिलाओं में पीआईडी के बाद प्रजनन अंग क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि सेहतमंद गर्भावस्था को बनाए रखा जा सके. पैल्विक इन्फैक्शन के कारण गर्भाशय के बाहर प्रैगनैंसी होने का खतरा 6-7 गुना तक बढ़ जाता है. इस खतरे को दूर करने और फैलोपियन ट्यूब्स में समस्या होने पर आईवीएफ थेरैपी कराने की सलाह दी जाती है, क्योंकि आईवीएफ के जरीए ट्यूब्स को पूरी तरह पार किया जा सकता है. फैलोपियन ट्यूब्स में किसी प्रकार का अवरोध होने की स्थिति में रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी ट्रीटमैंट की सलाह दी जाती है.

(डा. सागरिका अग्रवाल, इंदिरा हौस्पिटल, नई दिल्ली मेंं आईवीएफ ऐक्सपर्ट हैं.)

किताबों के हैं शौकीन तो जरूर जाएं इन कैफेज में

अगर आपको किताबें पढ़ने का शौक है तो आपको अपनी फेवरिट लाइब्रेरी या घर के टेरेस तक सीमित रहने की जरूरत नहीं है. अब आपके पास ढेरों ऑप्शन जहां आप क्रिएटिव सेटिंग, बेहतरीन ऐंबियंस और स्वादिष्ट खाने का लुत्फ उठाते हुए अपने इस शौक को पूरा कर सकती हैं.

इन दिनों देशभर में बुक कैफेज का चलन तेजी से बढ़ रहा है. एक नजर देश के कुछ ऐसे ही बेहतरीन बुक कैफेज पर.

चा-बार ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर

देशभर के कई शहरों में मौजूद है चा बार जहां आप चाय की चुस्की के साथ बेहतरीन किताबों का लुत्फ उठा सकती हैं. इस बुक कैफे में बुक रीडिंग सेशन, बुक लॉन्च और बुक साइनिंग जैसे कई इवेंट भी होते हैं.

कैफे स्टोरी, कोलकाता

इस कैफे का सेकंड फ्लोर पूरी तरह से किताबों से भरा पड़ा है लिहाजा अगर आप किताबी कीड़ें हैं तो यह जगह आपके लिए ही है. साथ ही इस कैफे में इटैलियन और कॉन्टिनेंटल खाने के साथ फ्री वाइ-फाइ भी मिलता है.

कैफे वॉन्डरलस्ट, गुरुग्राम

कैफे वॉन्डरलस्ट एक ट्रैवल कैफे है जहां ढेरों ट्रैवल बुक्स और मैग्जीन्स मौजूद हैं. यहां आकर आप अपनी अगली ट्रिप प्लैन कर सकती हैं. साथ ही आप यहां स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ उठाते हुए ट्रैवल अडवाइजर से बात भी कर सकती हैं.

कैफे बुकवर्म, लखनऊ

लखनऊ में यह कैफे महज 4 साल पहले 2013 में शुरू हुआ है. इस कैफे की खासियत यह है कि आप यहां एक अच्छे ऐंबियंस में बैठकर फ्री में किताबें पढ़ सकती हैं.

कॉफी कप, सिकंदराबाद

इस बुक कैफे में कॉफी टेबल बुक्स की लाइब्रेरी होने के साथ ही आप यहां से किताबें खरीद भी सकती हैं.

पगडंडी, पुणे

जैसा की नाम से पता चल रहा है इस कैफे में ऐसे लोगों को प्रमोट किया जाता है जिन्हें कम लोग जानते हैं. इस कैफे में नए और कम मशहूर लेखकों और पब्लिशर्स की किताबों को जगह दी जाती है. साथ में चाय और नाश्ता तो है ही.

लिटराटी, गोवा

अगर आप गोवा में बीच और चर्च देखकर थक चुके हैं और कुछ अलग देखना चाहते हैं तो आप इस कैफे में अपना टाइम बिता सकते हैं. इस बुक कैफे में नई और पुरानी हर तरह की किताबों के साथ अच्छा खाना भी मिलता है.

क्रिस्पी दम अरबी करी

सामग्री

10-12 पीस अरबी

2 मध्यम आकार के प्याज का पेस्ट

1 चम्मच अदरक लहसुन का पेस्ट

2 टमाटरों का पेस्ट

1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

1 चम्मच धनिया पाउडर

1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

1/2 छोटा चम्मच हरीमिर्चे का पेस्ट

2 चम्मच धनियापत्ती कटी

अरबी तलने और छौंक के लिए तेल

1 चम्मच दही

नमक स्वादानुसार

विधि

अरबी को उबाल छील कर हाथों से हलका सा दबा लें. फिर इस में हलदी पाउडर व नमक

मिला कर गरम तेल में तलें. अब एक कड़ाही में तेल गरम कर के अजवाइन, हींग भूनें.

फिर प्याज का पेस्ट, अदरक लहसुन का पेस्ट व हरीमिर्च पेस्ट भून लें. तैयार मिश्रण में टमाटर पेस्ट, धनिया पाउडर, लालमिर्च पाउडर मिला कर तेल छोड़ने तक भूनें.

अब अरबी के तले टुकड़े, गरम मसाला, नमक, पानी व दही मिला कर उबाल आने तक पकाएं. धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.

-व्यंजन सहयोग: ज्योति मोघे

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