फिल्में जिन्हें देख कर जवानी याद आ जाए

प्रेम की दीवानगी को निर्देशक ने फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में बखूबी दिखाया. सिनेमा हमआप से उतना ही जुड़ा है जितना जीवन के और रंग, आप को इस का एहसास हो या न हो लेकिन जब प्यार खिलता है तो सारी दुनिया खूबसूरत नजर आती है.

किशोरावस्था में हमें मुहब्बत और अचानक किसी के बहुत अच्छे लगने का एक अच्छा सा एहसास होने लगता है. इस एहसास की दुनिया में ही खो जाने का मन करता है. हम से कई गलतियां भी होती हैं, हमें प्यार की खुशी का भी पता चलता है, हमारा दिल टूटता है और किसी के नकारने का भी पता चलता है.

कुछ ऐसी फिल्में हैं जिन्हें देखने पर आप को किशोरावस्था की यादें ताजा हो जाएंगी, ऐसी यादें जो वक्त के साथ काम के बीच लगभग गायब हो गई थीं. राजकपूर की फिल्म ‘बौबी’ में अल्हड़ जोड़े की प्रेमकहानी जब भी परदे पर आती है तो उसे देख कर हम भी अपने अतीत की गहराइयों में गोते लगाने लगते हैं और जिंदगी के बीत गए पन्नों पर अपनी धुंधलाती प्रेमकहानी की तसवीर खोजने लगते हैं.

अल्हड़ प्रेम का सजीव चित्रण हिंदी सिनेमा में कई बार किया गया है. हंसतेखिलखिलाते झरने की तरह हिंदी सिनेमा सामाजिक यथार्थ और मानवीय रिश्तों के आवेग, तपिश, त्रासदी और छिछोरापन सब को अपने में समेटे निरंतर आगे बढ़ता रहा है.

इस प्रबल सिनेमाई झरने ने जन्म दिया है कर्णप्रिय गीतसंगीत को, कालजयी कथाओं व पात्रों की प्रेम में डूबी कहानियों को जो आज के अंधेरे मल्टीप्लैक्स की डिजिटल स्क्रीन पर आ कर कभी आप को आप की जिंदगी के खुशनुमा 17वें साल में ले जाती हैं, कभी लोरियां सुनाती हैं और कभी डरातीहंसाती हैं.

प्रेम का बदलता रूप

पहले की सिनेमाई प्रेमकहानियों में पारिवारिक मूल्यों की प्राथमिकता होती थी ताकि सामान्य दर्शक उसे आसानी से पचा सकें. कुछ फिल्मों की प्रेमकहानियां इतनी लोकप्रिय हुईं कि वे आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई हैं. ‘मोहब्बतें’, ‘दिल चाहता है’, ‘कयामत से कयामत तक’, ‘मैं ने प्यार किया’, ‘हम आप के हैं कौन’, ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ ऐसी ही फिल्में हैं. इन्हें देख कर हमें अपनी जवानी का एहसास होता है.

‘मसान’ और ‘सरबजीत’ जैसी फिल्मों से अपने अभिनय की वाहवाही पा चुकीं रिचा चड्ढा का कहना है, ‘‘फिल्मों में प्रेमकहानियों का होना फिल्मों की जान जैसा है. पहले के दौर में प्रेम का प्रदर्शन सिर्फ आंखों की भाषा में होता था. आज फिल्मों में प्रेमप्रदर्शन के माने बदल गए हैं, पर अंदाज वही है.’’

संगीत की पवन में पनपता प्रेम

प्यार की पींगें बढ़ाने में प्रेम से भरे हुए कर्णप्रिय संगीत की अहम भूमिका होती है. श्वेतश्याम से ले कर डौल्बी डिजिटल साउंड वाली शायद ही कोई ऐसी फिल्म बौलीवुड में आई हो जिस में प्रेमभरे संगीत की औक्सीजन न हो. हमारी फिल्मों का किस्सा भी ऐसा है जहां बिना तरानों के कोई फिल्म पूरी नहीं होती.

अगर नायक, नायिका को छेड़ता है तो गा उठता है, ‘अरे लाल दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता…’, अगर नायिका के रूपशृंगार की तारीफ करनी हो तो धीमे स्वर में ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो…’ गुनगुना उठता है. फिल्मों में संगीत का यह खुमार आज से 85 साल पहले बनी फिल्म ‘आलमआरा’ से शुरू हो गया था. तब से ले कर आज तक 8 दशकों के बीत जाने पर भी संगीत का सुरूर कम नहीं हुआ.

फिल्मों में बात अगर प्रेमकहानियों की की जाए तो रोमांटिक फिल्मों में संगीत हमेशा मधुर और ताजगीभरा रहा है. ‘मुझे कुछ कहना है’ (फिल्म बौबी) ‘हम बने तुम बने एक दूजे के लिए’, (फिल्म एकदूजे के लिए), ‘ऐ मेरे हमसफर’ (फिल्म कयामत से कयामत तक) ऐसे गीत हैं जिन्हें सुन कर आज भी हमारा दिल धड़कने लगता है.

‘काला चश्मा जंचता है…’ जैसे हिट गीत देने वाली सिंगर नेहा कक्कड़ का कहना है, ‘‘बिना प्रेमगीतों के तो बौलीवुड फिल्मों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है. गाने दर्शकों को खुद से जोड़ते हैं.’’

फिल्मों के शोमैन कहे जाने वाले राजकपूर की सभी फिल्मों में प्रेम में पगे हुए संगीत की मिठास हमेशा रहती थी. उन्हें संगीत की बहुत अच्छी समझ थी.

फिल्मों में टीनऐज रोमांस

रुपहले परदे पर टीनऐज रोमांस की शुरुआत तो बहुत पहले हो गई थी पर राजकपूर ने अपनी फिल्मों से इसे अच्छी तरह भुनाया. उन की फिल्मों में उन का नेहरू विचारधारा से प्रभावित होना साफ नजर आता था. अपनी अधिकांश फिल्मों के हीरो राजकपूर खुद रहते थे. ‘आग’, ‘श्री 420’, ‘आवारा’, ऐसी ही फिल्में थीं जो नरगिस के साथ उन्होंने कीं.

‘मेरा नाम जोकर’ उन की सर्वाधिक महत्त्वाकांक्षी फिल्म थी जोकि वर्ष 1970 में प्रदर्शित हुई और जिस के निर्माण में 6 वर्षों से भी अधिक समय लगा. ‘मेरा नाम जोकर’ बौक्स औफिस पर हिट फिल्म साबित नहीं हुई जिस से वे काफी मायूस हो गए थे. इस फिल्म को बनाने में उन्होंने काफी ज्यादा पैसा खर्च कर दिया था, जिससे आर के स्टूडियो घाटे में चला गया था.

काफी दिनों तक फिल्म निर्माण से दूर रहने के बाद उन्होंने किशोरावस्था रोमांस के सहारे एक फिल्म बनाने की सोची. उस समय की मशहूर कौमिक आर्ची को देख कर उन्होंने अल्हड़ हीरोइन और किशोर हीरो की कल्पना की. जिस के लिए अपने बेटे ऋषि कपूर और डिंपल कपाडि़या को चुना. राजकपूर का यह फार्मूला काम कर गया और फिल्म ‘बौबी’ ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की.

दिल सोलह साला बन जाए

फिल्मी दुनिया के पिटारे में ऐसी कई फिल्में पड़ी हैं जो अनमोल मोती के समान हैं. हर साल अपने साथ कामयाबी के उतारचढ़ाव ले कर आती हैं, जैसे इस बार ‘नीरजा’ से शुरू हुआ सफर आमिर खान की ‘दंगल’ पर जा कर खत्म हुआ. कुछ कामयाब फिल्में ऐसी हैं जिन्हें देख कर आज भी दिल झूम उठता है. बौलीवुड में कालेज और स्कूल की दोस्ती व रोमांस पर भी कई फिल्में बनी हैं. जिन्हें देख कर हमें अपने कालेज की कैंटीन और क्लास में पनपा पहला क्रश याद आ जाता है.

‘जो जीता वही सिकंदर’ स्कूल रोमांस पर बनी इस फिल्म ने आमिर खान को कई लड़कियों के दिलों की धड़कन बना दिया था. इस फिल्म का गाना ‘पहला नशा पहला खुमार…’ आज भी पहले क्रश की याद दिलाता है.

‘मोहब्बतें’ फिल्म बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाले 3 युवा लड़कों की प्रेमकहानी के बीच शाहरुख जैसे लवगुरु की प्रेमशिक्षा और रोबदार प्रिंसिपल की कैमिस्ट्री पर बनी. इस फिल्म के संवाद बहुत लोकप्रिय हुए थे. इन सब के अलावा ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’, ‘गिप्पी’, ‘तेरे संग’, ‘उड़ान’, ‘कुछकुछ होता है’, ‘3 इडियट’, ‘मैं हूं न’, ‘फुकरे’, ‘जाने तू या जाने न’, ‘2 स्टेट’ आदि कई फिल्में हैं जिन में स्कूल, कालेज की गलियों, क्लास, कैंटीन में पनपते प्रेम को दर्शाया गया है.                       

शराब पीकर बेहोश हुई लड़की के साथ तीन लड़कों ने किया…देखिए वीडियो

अभी हाल ही में लड़कियों के साथ कुछ ऐसी घटनायें हुई हैं, जिसे हमारा सभ्‍य समाज कभी भी सही नहीं मानता है. बता दें कि  अभी हाल ही में नए साल के सेलिब्रेशन के दौरान बेंगलुरु और दिल्ली से महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की जैसी घटनाएं सामने आईं थीं, जिसने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया गया था कि ऐसा कैसे हो गया. जहां पर पढ़े-लिखे लोग महिला सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बाते करते हैं.

इस वीडियो में दिखाया गया है कि लड़की ने छोटे कपड़े पहने हैं और तीन लड़कों के बीच में बिल्कुल अकेली है. वो लड़कों के साथ शराब पी रही है. साथ ही लड़की ने सिगरेट भी पी. यही नहीं वो लड़कों के साथ गाने पर थिरकी भी. आखिर वह बेहोश हो जाती है और फिर लड़कों ने उसके साथ कुछ ऐसा किया जो आपके लिए अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इसके लिये आपको यह वीडियो देखना पड़ेगा.

इस वी‌ड‌ियो को सिनेमॉन्क्ज नाम के चैनल ने ‘द ईजी गर्ल’ के नाम से अपलोड किया है.

आप भी देखिए ये वीडियो

फिल्म रिव्यू : फुल्लू

मासिक धर्म, उससे जुड़ी साफ सफाई और सामाजिक टैबू को दिखाने की कोशिश करती फिल्म ‘फुल्लू’ में निर्देशक अभिषेक सक्सेना कमजोर पटकथा की वजह से अपनी पकड़ से काफी दूर रहे. हालांकि ऐसी फिल्म को बड़े पर्दे पर मनोरंजन और संदेश के साथ दिखाना मुश्किल होता है. ये एक सामाजिक मुद्दा है जो 21वीं सदी में आज भी कई पढ़े-लिखे घरों से लेकर आम जन समाज में विद्यमान है. इसे कितना भी कोई कोशिश कर लें, इस सामाजिक टैबू से अपने आप को निकाल पाना मुश्किल है, क्योंकि जो भी व्यक्ति इस बारे में अपनी खुली विचार रखता है, उसे अभद्र और अश्लीलता की संज्ञा दी जाती है. फिल्म की कहानी कुछ अधूरी लगी.

फुल्लू का सपना ज्योंही पूरा होने वाला था कि फिल्म खत्म हो गयी. फिल्म में अभिनेता शरीब हाश्मी ने काफी अच्छा काम किया है, फुल्लू की भूमिका के लिए उन्होंने मेहनत किया है. अभिनेत्री ज्योति सेठी अपनी भूमिका के अनुसार ठीक जंची. फिल्म में जब-जब उनकी एंट्री हुई फिल्म अच्छी लगी.

कहानी

फुल्लू (शरीब हाश्मी) एक गांव का लड़का है, जो अपनी मां और बहन के साथ रहता है. वह कोई काम-काज नहीं करता, जिससे उसकी मां हमेशा परेशान रहती है और खुद गुदड़ी बेचकर गुजर-बसर करती है. फुल्लू केवल गांव की महिलाओं के लिए फिक्रमंद है और पास के शहर से उनके लिए जरुरत के सामान ला देता है. माहवारी के बारें में अंजान फुल्लू उनके लिए सैनेटरी पैड भी लाता है. जिसे हमेशा काली पन्नी में दुकानदार देता है. उसके इस तरह इधर-उधर घूमने और कुछ काम न करने की वजह से परेशान उसकी मां उसकी शादी ज्योति सेठी से करवा देती है.

शादी के बाद फुल्लू को जब मासिक धर्म के बारे में पता चलता है, तो वह शहर की डॉक्टरनी से इस ‘जनानी रोग’ और साफ सफाई न होने की वजह से होने वाली बीमारी का पता करता है. वह गांव में महिलाओं की सेहत के लिए गांव में खुद सैनिटरी पैड बनाने और सब महिलाओं को कम पैसे में बेचने की बात सोचता है. इस सोच से उसे कई प्रकार की समस्या आती है. इस तरह कहानी अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म के गाने कुछ खास नहीं हैं. कॉमेडी के नाम पर इस फिल्म में कुछ अधिक देखने को नहीं मिला. हालांकि इस फिल्म में एक अच्छा मेसेज है, जो हमारे समाज के लिए जरुरी है. इसलिए इसे एक बार देखा जा सकता है. इस फिल्म को टू एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

इन शोज का रिप्लेसमेंट कहीं नहीं है

सास-बहू, कॉमेडी, रिएलिटी शोज, आजकल हमें घर में रखे ईडियट बॉक्स में कितना कुछ देखने को मिलता है, अब तो आप अपने टीवी पर इंटरनेट भी चला सकते हैं. टीवी भी अब एडवांस हो गया है और तरह-तरह की चीजें दिखाता है, मगर आज भी हम कभी-कभी वो पुराने शोज ढूंढ़ते हैं, जिन्होंने एक जमाने में हमें खूब हंसाया था.

कलाकारों का वो ह्यूमर, कहानी पेश करने का अंदाज, पंच लाइंस सब कुछ कितना फ्रेश और मजेदार लगता था. कुछ टॉप शोज, जिन्हें हर कोई फिर से टीवी पर देखना चाहता है.

1. देख भाई देख

शेखर सुमन, फरीदा जलाल, नवीन निश्चल और ‘देख भाई देख’ शो का हर पात्र आपको अपने तरीके से मनोरंजित करता था. फैमिली कॉमेडी के साथ हर एपिसोड में कुछ नया और बेहतरीन सीखने को भी मिलता था. दीवान फैमिली के इस कॉमेडी शो की क्लिप्स लोग आज भी इंटरनेट पर ढूंढ़ते हैं.

2. ऑफिस-ऑफिस

पंकज कपूर के इस शो में सरकारी विभागों की कामचोरी को लाइट नोट पर दर्शाना गजब का था. हंसी-मजाक में रिश्वत, लापरवाही और आम जनता की परेशानियों को इतनी बेहतरीन तरीके से किसी ने पेश नहीं किया है.

3. हम पांच

5 बेटियां जो छोरों से कम नहीं थीं. फैमिली ड्रामा का एक और धारावाहिक, जिसका हर एक करेक्टर आपको आज भी याद होगा. स्वीटी, जो गाना गाते हुए गेट खोलती थी, काजल जो भाईगीरी में अव्वल थी, महिलाओं के प्रति मोर्चे के लिए हमेशा खड़े रहने वाली मनीषा भी सभी को याद है.

4. तू-तू, मैं-मैं

सास बहू के झगड़ों को आप आज भी देखते होंगे. लेकिन, वो दौर कुछ और था जब इस झगड़े को लोग ‘तू-तू, मैं-मैं’ कहते थे. रीमा लागू और सुप्रिया पिलगांवकर के सास-बहू के झगड़े ने तकरीबन 6 सालों तक लोगों को हंसाया.

5. श्रीमान-श्रीमती

ये शो तो, मानो खत्म ही नहीं होना चाहिए था. शेखर, दिलरुबा, कोकिला और प्रेमा शालिनी की मजेदार केमिस्ट्री आज के सीरियल्स में कहां.

आपने देखा ‘बद्री की दुल्हनिया’ पर ये वायरल डांस वीडियो

इसी साल रिलीज हुई वरुण धवन और आलिया भट्ट की फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के वैसे तो लगभग गाने काफी पॉपुलर हुए, लेकिन इसके टाइटल सॉन्ग को दर्शकों ने बेहद पसंद किया.

इसमें कोई शक नहीं कि ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ के टाइटल सॉन्ग ने खूब वाहवाही बटोरी है. इतना ही नहीं इस गाने का क्रेज इतना ज्‍यादा युवाओं में बढ़ गया कि कइयों ने तो इस गाने के डांस स्‍टेप को फॉलो करके अपने डांस का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया.

इन दिनों इंटरनेट पर ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ पर कुछ लड़कियों द्वारा किए डांस का वीडियो काफी वायरल हो रहा है

इसी क्रम में हम आज आपको एक ऐसा ही वीडियो दिखाने जा रहे हैं, जिसे कासा डे डांस (casa de dance) नाम के एक यू-ट्यूब चैनल ने अपलोड किया है. बता दें, इस वीडियो में कुल 6 लड़कियों ने जबरदस्त डांस किया है और यह वीडियो इंटरनेट पर काफी वायरल भी हो रही है.

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इन लड़कियों ने आलिया से भी दमदार परफॉर्मेंस किया है. इस वीडियो में परफॉर्म कर रही लड़कियों के डांस के मूव्‍स ऐसे हैं, जो आपका दिल जीत लेंगी.

ईद पर यहां रिलीज नहीं होगी ट्यूबलाइट

बॉलीवुड के दबंग सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट रिलीज के लिए तैयार है. 25 जून 2017 को फिल्म रिलीज होने जा रही है. लेकिन सलमान के पाकिस्तानी फैंस ईद के मौके पर रिलीज होने वाली उनकी फिल्म ट्यूबलाइट में उन्हें बड़े पर्दे पर नहीं देख पाएंगे.

दरअसल, बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म ट्यूबलाइट पाकिस्तान में ईद के मौके पर रिलीज नहीं होगी. पाकिस्तान के लोकल डिस्टीब्यूटर्स के कदम सलमान की फिल्म रिलीज करने में डगमगा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान में सलमान के बहुत सारे फैंस हैं. इस वजह से ये डर बना हुआ है कि इससे पाकिस्तान में सेम डेट पर रिलीज होने वाली फिल्मों की कमाई पर इसका गहरा असर पड़ेगा.

इंडियन फिल्म एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, हिराचंद डैंड के मुताबिक, पाकिस्तान के लोकल डिस्ट्रिब्यूटर सलमान की फिल्म रिलीज करने से कतरा रहे हैं, क्योंकि ईद के दिन ही पाकिस्तान में दो बड़ी फिल्में और रिलीज होने जा रही है. सलमान की फिल्म को रिलीज करके मेकर्स किसी भी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहते.

ए‍क सूत्र ने बताया कि ईद के मौके पर रिलीज होने जा रही दो फिल्में ‘यलगार’ और ‘शोर शराबा’ पर बड़ी रकम लगाई गई है. इन फिल्मों के यूएस, यूके और चीन में प्रीमियर शो भी निर्धारित किए गए हैं. ऐसे में सलमान की फिल्म रिलीज करना घाटे का सौदा होगा.

बता दें, सलमान हर बार की तरह इस बार भी अपने फैंस को ईद के मौके पर अपनी फिल्म रिलीज कर के ईद का तोहफा देने जा रहे हैं.

वहीं, उनके पाकिस्तानी फैंस तक उनकी फिल्म पहुंचेगी जरूर लेकिन वह ईद के बाद ही सलमान को बड़े पर्दे पर फिल्म ट्यूबलाइट के जरिए देख पाएंगे. इस फिल्म के टाइटल को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखा गया था.

इसके बाद सलमान खान और कबीर खान ने मिलकर फिल्म के टाइटल पर रौशनी डाली. सलमान और कबीर ने एक वीडियो जारी कर बताया कि फिल्म के अंदर क्या है. क्यों इसका टाइटल ट्यूबलाइट पड़ा. इस वीडियो में बताया गया है कि ‘ देर से जलती है, मगर जब जलती है तो फुल लाइट कर देती है.’

फिल्म की कहानी की अगर बात करें तो सलमान यानी लक्ष्मण सिंह और उनके भाई सोहेल खान यानी भरत के ईर्द-गिर्द घूमती है. लक्ष्मण मंद बुद्धि हैं, जिन्हें लोग ट्यूबलाइट बुलाते हैं. लक्ष्मण को सबसे अच्छी तरह उनके भाई ही समझते हैं. दोनों भाइयों में बहुत प्यार है. अचानक भारतीय सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है और भरत युद्ध के लिए चले जाते हैं. इस दौरान सोहेल दुश्मन के हाथों लग जाते हैं और वापस नहीं आ पाते हैं. लक्ष्मण ठानते हैं कि वो अपने भाई को जरूर वापस लाएंगे.

पृथ्वी का सौंदर्य ‘स्विट्जरलैंड’, हर दिल अजीज

संसार के सब से सुंदर देशों में स्विट्जरलैंड की गणना होती है. यह बात अकारण नहीं है. इसे नयनाभिराम बनाने में प्रकृति का सब से बड़ा हाथ है. बर्फ से लदी ऊंचीऊंची पर्वत चोटियां, अत्यंत स्वच्छ वातावरण, शीतल पवन, शुद्ध जल एवं बहुत ही सुंदर लोग. वातावरण की शुद्धता ही शायद वह महत्त्वपूर्ण कारक है कि यहां अत्यंत सूक्ष्म यंत्र एवं दवाओं का निर्माण होता है. स्विस मेड घडि़यों को भला कौन नहीं जानता.

राइन फौल्स

जरमनी के ब्लैक फौरेस्ट इलाके से प्रस्थान करने के बाद हम इस देश की सीमा में दाखिल हुए. पहला पड़ाव था राइन फौल्स के पास. यह स्थान पर्यटकों को काफी लुभाता है. इस की गिनती पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थलों में होती है. यहां करीब 80-90 फुट चौड़ाई वाली राइन नदी 30-40 फुट ऊंचाई से सीढ़ीनुमा चबूतरे पर हरहरा कर गिरती है. चारों तरफ जहां पानी का फेन ही फेन दिखाई पड़ता है वहीं कुछ दूर तक हवा में बादल सा भी बन जाता है. प्रपात के गिरने के स्थान से थोड़ी दूरी पर ही उद्वेलित जल शांत होने लगता है और कुछ नावें नदी की सतह पर दिखाई देने लगती हैं. कुछ ऐडवैंचर के शौकीन नाव से प्रपात का आनंद निकट से लेने के लिए उधर जाने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे.

टूरिस्टों की सुविधा हेतु वहां एक विशाल ठेला भी नजर आया जिस में हिंदुस्तानी समोसा, पावभाजी, वड़ा, चाय और कौफी मिल रहे थे. इन के अलावा कुछ यूरोपियन स्नैक्स भी उपलब्ध थे. उन के रेट्स की बात मत पूछिए. भारतीय मुद्रा के हिसाब से काफी महंगे थे. स्विट्जरलैंड के इस सुदूर कोने में इंडियन स्नैक्स बिकते देखना एक सुखद अनुभूति थी. उस से भी आश्चर्य यह देख कर हुआ कि उस अनजान स्थल पर मात्र वही एक दुकान थी जहां हलके नाश्तेपानी की व्यवस्था थी. क्या इसे मात्र संयोग कहा जाए. इस का कारण शायद यह है कि इन दिनों बड़ी संख्या में हिंदुस्तानी छुट्टियों में या वैसे भी, परिवार के साथ विदेश भ्रमण हेतु निकल रहे हैं. इस प्रकार के ठेले वाले हिंदुस्तानी लोगों की आवश्यकता के लिए बने हैं क्योंकि वे उन के स्वाद के मुताबिक चीजें उपलब्ध करा रहे हैं. इस अत्याधुनिक ठेले पर काम करने वाले भारतीय ही प्रतीत हो रहे थे.

रात होतेहोते हम स्विट्जरलैंड की राजधानी जूरिख स्थित होटल नोवोटेल पहुंचे जहां हमारे ठहरने की व्यवस्था कराई गई थी. दिनभर की बस यात्रा से थकान हो गई थी और शरीर आराम मांग रहा था. खुशी इसी बात की थी कि इस देश में हमारा 2 दिनों का प्रोग्राम था. स्विट्जरलैंड की यात्रा अधूरी ही रह जाएगी यदि माउंट टिटलिस न जाया जाए. यहां आने के लिए हमें एंगिलबर्ग नामक छोटे से कसबे में आना था, जहां के होटल आइडलवाइस में हमारे ठहरने का प्रबंध किया गया था. बताया गया कि इस जगह की पूरी आबादी लगभग 1 हजार है. पूरा कसबा, लगता है एक बड़े कटोरे में बसा है. चारों ओर ऊंचीऊंची और कहींकहीं बर्फ से लदी पहाडि़यां, घुमावदार सड़कें और साफसुथरी गलियां मन को बरबस मोह लेती थीं.

ऐसा प्रतीत होता था जैसे हमारे आने के कुछ ही समय पहले सड़कों पर किसी ने अच्छी तरह झाड़ू से साफसफाई की हो. इतनी स्वच्छता का मुख्य कारण था हवा में धूल कणों का सर्वथा अभाव. न गरमी पड़ती है, न हवा गरम होती है, न धूल उड़ती है, न गंदगी फैलती है. पहाड़ की ढलानों पर बसे छोटेछोटे कोनेदार रंगीन छतों वाले मकान बड़ेबड़े खिलौनों की तरह लगते थे. उन्हीं की तरह ढलानों एवं जमीन पर विभिन्न डिजाइनों में बने बड़ेबड़े होटल, हवा में लहराते रंगीन झंडों के कारण बड़े मनभावन लग रहे थे. शायद बहुत कम आबादी होने के कारण बाजार एवं गलियां अकसर लोगों से खालीखाली दिखीं.

ऊंचाई पर बने होटल में प्रवेश करने के लिए 2-2 स्टेज की लिफ्ट लगी है. दोनों स्टेजों पर एक सुरंग से पहुंचा जाता है. ऐसा लगा कि सुरंग वाला रास्ता सर्वसाधारण के लिए न हो कर केवल होटल में ठहरने वालों के लिए ही बना है क्योंकि जहां स्थानीय निवासी ऊंचीनीची घुमावदार सड़कों से हो कर, अपने घर में जाने के आदी थे. अपने भारत देश के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले भी इस प्रकार की जिंदगी से वाकिफ हैं. होटल के टेरेस से बड़ा दिलकश नजारा देखने को मिला. जिधर नजर घुमाइए, देखिए ऊंचे पहाड़. कुछ बर्फ की चादर ओढ़े, कुछ वैसे ही नंगे. ये पहाड़ शायद अल्पाइन रेंज का ही हिस्सा हैं. अब था कल का इंतजार. जब हम केबल कार से माउंट टिटलिस की सैर पर जाएंगे.

माउंट टिटलिस

हमारे होटल से मात्र डेढ़दो किलोमीटर पर ही वह स्थान था जहां से पहाड़ के ऊपर जाने के लिए केबल कार मिलती है. जमीन से ऊपर चोटी तक, थोड़ीथोड़ी दूर पर विशाल एवं मजबूत खंभे गड़े हैं. इन के बीच खिंचे मोटे रस्सों पर ही केबल कारें कुछकुछ समय के अंतराल पर आतीजाती रहती हैं. हरेक केबल कार में 6 आदमियों के बैठने की जगह है. एक ऊंचे प्लेटफौर्म से सभी कारें स्टार्ट होती हैं. धीरेधीरे सरकती कारों में सवारियों को लगभग दौड़ते हुए अपनी जगह लेनी होती है. वरना कारें आगे बढ़ जाएंगी. पता नहीं यहां कितनी कारें इस तरह की हैं. चाह कर भी ये नहीं गिनी जा सकतीं, क्योंकि इन की आवाजाही, अप और डाउन, दोनों लाइनों पर निरंतर लगी रहती है क्योंकि पहाड़ की चढ़ाई एकदम खड़ी है, इसलिए ये तिरछी हो कर ऊपर चढ़ती जाती हैं.

पहाड़ के अंतिम पौइंट पर जाने के लिए यात्रा 3 स्टेजों में संपन्न होती है. पहले स्टेज पर एक लंबाचौड़ा चबूतरा मिलता है. वहां किसी तकनीकी कारण से कारें एकडेढ़ मिनट के लिए रोक दी जाती हैं. जैसे ही हम दूसरे स्टेज पर आते हैं, पुरानी कार को छोड़ कर दूसरी, काफी बड़ी पिंजरानुमा कार में चढ़ जाना होता है. कम से कम 40-50 आदमी हड़बड़ा कर इस गोल पिंजरे में घुस गए. कार के केंद्र में एक गोलाकार सीट थी, जिस पर किसी प्रकार 8-10 लोग बैठ सके किसी लोकल ट्रेन की तरह. जैसे ही पिंजरे का गेट बंद हुआ, केबल कार तिरछी हो कर ऊपर की ओर चढ़ने लगी.

अब वह केवल चढ़ ही नहीं रही थी, बाएं से दाएं धीरेधीरे घूम भी रही थी. संसार में यही एक केबल कार है, जो रोटेट भी होती है. कार की छत पर चारों ओर विभिन्न भाषाओं में यात्रियों का इस केबल कार में स्वागत किया गया और सेवा का अवसर प्रदान करने के लिए उन का धन्यवाद ज्ञापन भी किया गया. 2 स्थानों पर हिंदी में भी यह संदेश लिखा हुआ मिला. अनजान जगह में हिंदी का प्रयोग देख कर गौरव एवंआनंद दोनों हुआ कि हमारी हिंदी यहां भी पहुंच गई है.

थोड़ी देर बाद केबल कार आखिरी मंजिल पर पहुंची. वहां चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिखाई पड़ती थी. कोहरे में जिस तरह का नीम अंधेरा चारों ओर छाया रहता है, कुछ वैसा ही दृश्य था वहां. कंपकंपाने वाली ठंडी हवा भी चल रही थी. बहुत लोगों ने अतिउत्साह में बर्फ की ऊंचाइयों पर चलना भी शुरू कर दिया था. कुछ लोग एकदूसरे पर बर्फ के गोले बना कर फेंक रहे थे. इसी मुद्रा में न जाने कितने कैमरे क्लिक हो रहे थे. इस अंतिम मंजिल पर सरकार की ओर से सुरक्षा की पूरी व्यवस्था थी ताकि किसी तरह का खतरा न हो. चारों ओर इस प्रकार से रेलिंग एवं जाल की व्यवस्था की गई थी कि मनोरंजन के लिए भागदौड़ के क्रम में कोई फिसल कर गिर न पड़े. खुले में बर्फ पर जाने के लिए सब को एक टैरेस से आगे जाना होता है.

टैरेस की सुंदरता बढ़ाने के लिए रंगबिरंगे दर्जनों झंडे हवा में लहराते रहते हैं. टैरेस के प्रारंभ में एक अत्यंत अनपेक्षित चीज देखने को मिली. वह थी हिंदी फिल्म ‘दिलवाले दुलहनियांले जाएंगे’ का एक 5-6 फुट का कटआउट, जिस में मशहूर अभिनेता शाहरुख खान और काजोल एक डांसिंग पोज में हमें देख रहे हैं, कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा था. देख कर अचरज और खुशी दोनों हुई. कटआउट के सामने से गुजरने वाले थोड़ी देर के लिए वहां रुकते, मुसकराते हुए निहारते और आगे बढ़ जाते. देखा, कुछ जापानी पर्यटक बारीबारी से शाहरुख के गले लग कर, काजोल के गले लग कर, अपनी तसवीरें खिंचवा रहे थे.

ऐसा ही देखने को मिला था लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम में, जहां माधुरी दीक्षित एवं ऐश्वर्या राय के मोम के पुतलों से गले लग कर विभिन्न पोजों में फोटो खिंचाने की होड़ मची हुई थी. पहाड़ के अंतिम स्टेज पर, जिस की ऊंचाई 3020 मीटर यानी 10 हजार फुट है, यात्रियों की सुविधा की सारी व्यवस्था की गई है. खानपान के स्टौलों के अतिरिक्त शौचालय भी बने थे. पहाड़ की चोटी पर करीब 1 घंटा बिताने के बाद वापसी यात्रा प्रारंभ हुई. सब से ज्यादा अचरज इसी बात का था कि झूलती हुई रस्सियों पर एकसाथ कई रोटेटिंग कारें, जिन में प्रत्येक में 40-50 यात्री भरे होते हैं, आतीजाती रहती हैं. ये रस्सियां कैसे इतना तनावभरा वजन बरदाश्त कर लेती हैं. यह भी किसी अचरज से कम नहीं था, आखिर किस धातु की बनी हैं ये. अगर कहीं इन में एक भी टूट जाए तो क्या होगा. सोच कर ही मन अशांत हो जाता था. परंतु इन्हें ऐसी तकनीक से बनाया गया है कि किसी दुर्घटना की आशंका ही नहीं.

लूजर्न लेक

पहाड़ से उतरने के बाद लूजर्न लेक में नौकाविहार करने को लूजर्न आए. यह लंबीचौड़ी झील बहुत खूबसूरत है. किनारे पर बहुत सी सफेद बतखें जल में तरहतरह के करतब कर रही थीं. नौकाविहार के लिए टूरिस्टों की भीड़ लगी थी. जैसे ही 1-2 मंजिला जहाज जेट्टी से स्टार्ट करता, पीछे लगे दूसरे जहाज में लोग बैठना शुरू कर देते थे. पर हमारे जहाज के छूटने में 40-50 मिनटों की देर थी क्योंकि सभी के छूटनेपहुंचने का टाइम फिक्स्ड था. इसी बीच, जेट्टी के नजदीक, सड़क किनारे लगी एक बैंच पर बैठ कर मैं शहर के चौक का नजारा लेने लगा. देखा कि यहां 3 तरह की ट्रामें चलती हैं.

एक तो कोलकाता की तरह, जिस में लोहे के पहिए लगे हैं और ऊपर बिजली से पावर मिल रहा है. दूसरा, जिसे पावर तो उपर से मिल रहा है पर टायर वाले पहिए लगे हैं. तीसरी तरह की वह, जिस में डीजल इंजन लगे थे. किसी ट्राम में 3-4 से ज्यादा बोगियां नहीं थीं. शहरी यातायात की समस्या के हल करने की दिशा में यह एक रोचक प्रयोग लगा. इसी प्रकार का आंशिक प्रयोग जरमनी के कोलोन शहर में देखने को मिला था पर वहां सिर्फ टायर से चलने वाली रेलगाडि़यां ही थीं.

इसी बीच, दूसरा जहाज तैयार हो गया था. कुछ यात्रियों के साथ मैं ऊपर वाले डैक पर बैठ गया. वहां से चारों तरफ का अच्छा नजारा देखने को मिलता है. वैसे निचले डैक का अपना ही मजा है. वहां से पानी की ऊपरनीचे होती लहरों को आदमी पास से देख सकता है. इस लंबीचौड़ी झील का पानी काफी साफ एवं ठंडा होने के साथ आसमानी नीला भी है. जल विहार के बाद थकेमांदे शाम को होटल लौटे क्योंकि अगले ही दिन आस्ट्रिया के लिए प्रस्थान करने का कार्यक्रम था. 

बर्फ के नीचे मेहमाननवाजी

माउंट टिटलिस की सुंदरता से अगर पर्यटक ज्यादा ही प्रभावित हो गए हों तो यहां रात में भी रुक सकते हैं. पर्यटकों के लिए इसी बर्फीली पहाड़ी पर इग्लू बनाए गए हैं जिस में स्पा से ले कर, मल्टीकुजीन डिशेज, हौट वाटर बाथ से ले कर सारी लक्जरी सुविधाएं उपलब्ध हैं. इन इग्लू में अंदर डबल बैडरूम से ले कर आधुनिक वाशरूम उपलब्ध हैं. रात्रि को यहां कैंपफावर भी आयोजित किया जाता है जहां मनोरंजन के सभी साधन उपलब्ध रहते हैं

– कृष्ण वल्लभ सिन्हा

इफ्तार में बनाएं सोया बोटी कबाब कोरमा

रमजान के मौके पर हम आपके लिए लाए हैं एक खास रेसिपी. यकीन मानिए, जिसे भी आप यह डिस परोसेंगी वह आपकी तारीफ किए बिना नहीं रह पाएगा.

सामग्री

100 ग्राम सोया चंक्स

1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

25 ग्राम अदरक का पेस्ट

25 ग्राम लहसुन का पेस्ट

2 प्याज बारीक कटी हुई

2 दालचीनी

10 ग्राम जीरा

3 चम्मच साबुत धनिया

2 चम्मच खसखस के बीज

1 चम्मच काली मिर्च पाउडर

30 ग्राम भुना हुआ बेसन

4-5 हरी इलायची

1 जायफल और जावित्री

200 ग्राम घी

100 ग्राम दही

1 चम्मच केवड़ा का पानी

नमक स्वादानुसार

विधि

सबसे पहले सोया चंक्स को गरम पानी में पांच मिनट के लिए भिगोकर रख दें और बाद में उसे दबाकर पानी निकाल लें. अब एक कटोरे में अदरक, लहसुन पेस्ट और नमक मिलाएं. फिर इसे सोया चंक्स पर अच्छी तरह से लगाएं और फिर इन्हें 5-6 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें. इसके बाद गर्म तवे पर खसखस के बीज को हल्का भूनकर पेस्ट बनाएं.

फिर जायफल और जीरे को भी अलग-अलग भून कर उसका भी पेस्ट बना लें. बाद में प्याज की महीन स्लाइस काटें और एक पैन में थोड़ा-सा घी गरम करें. अब इस गरम घी में प्याज को गोल्डन ब्राउन होने तक भूनें. फिर इस प्याज को पेस्ट बना लें.

अब उसी घी में मैरीनेट किए हुए सोया चंक्स को डालें और 2 मिनट तक के लिए भूनें. फिर उसमें मसालों के पेस्ट डालकर कुछ और मिनट भूनें.

ऊपर से प्याज का पेस्ट, नमक, फेंटी हुई दही और सोया चंक्स को मैरीनेट करने के लिए जो पेस्ट तैयार किया था, उसे डालें. इन सभी चीजों को 4:30 मिनट तक चलाते हुए पकाएं. फिर इसमें 1 कप पानी मिलाएं और 5 मिनट तक पकाएं.

भुने बेसन को आधे कप पानी में घोल लें और उसे पैन में डालकर 4:30 मिनट तक पकाएं. फिर केवड़े का पानी डालें और पैन को आंच से उतार लें. फिर गरमा-गरम सर्व करें.

हल्दी दे आपको चमकती दमकती त्वचा

किचन में मिलने वाली हल्दी न सिर्फ खाने का रंग और स्वाद बढ़ाती हैं इसके नियमित इस्तेमाल से आप अपने चेहरे की रंगत भी निखार सकती हैं. अक्सर आपने घरों के बड़े बुर्जगों को चेहरे पर कील मुंहासे होने पर हल्दी का लेप लगाने की सलाह देते देखा होगा.

आइए जानते हैं कैसे हल्दी का इस्तेमाल करके आप चेहरे को बेदाग बना सकती हैं.

मुहांसे

हल्दी का इस्तेमाल करने से चेहरा न सिर्फ बेदाग हो जाता है बल्कि ऐसा करने से चेहरे पर आने वाले अतिरिक्त तेल की मात्रा भी कम होती हैं.

पिम्पल

हल्दी का इस्तेमाल पिम्पल के निशान मिटाने के लिए भी किया जा सकता है. हल्दी का पाउडर पानी के साथ मिलाकर 20 मिनट तक लगाकर रखें. इसके बाद इस पैक को धो लें.

स्क्रबिंग

हल्दी वाला स्क्रब बनाने के लिए हल्दी में कुछ बूंदे पानी और नींबू के रस की मिलाए. अब इसे मुहांसे वाली जगह पर 15 मिनट तक लगा कर छोड़ दें. जब ये पेस्ट सूख जाए तो उसे पानी से धीरे-धीरे रगड़ कर साफ कर ले.

एजिंग इफेक्ट

हल्‍दी के पानी को नियमित रूप से पीने से आप अपनी बढ़ती उम्र को रोक सकीते हैं. इसमें मौजूद गुण फ्री रैडिकल्‍स से लड़ने में सहायता करते हैं. जिसकी वजह से शरीर पर उम्र का असर धीरे-धीरे पड़ता है.

कृष्णा के शो में अस्पताल खोलेंगे डॉ गुलाटी

लगभग दो महीने पहले फ्लाइट में शराब के नशे में अपने ही टीममेट्स के साथ झगड़े का खामियाजा कपिल शर्मा को अभी तक भुगतना पड़ रहा है. कपिल-सुनील की महाभारत थम ही नहीं रही है. अब सुनील ने कपिल के पुराने प्रतिद्वंदी कृष्णा अभिषेक के साथ जुड़ने का फैसला किया है.

गौरतलब है कि इस झगड़े के बाद कपिल शर्मा शो से कुछ समय पहले सुनील ग्रोवर, अली असगर और चंदन प्रभाकर अलग हो गए थें. अब इस लड़ाई में एक और बड़ा मोड़ और आने वाला है. खबर है कि कपिल के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी रहे कृष्णा अभिषेक को इस मौके का फायदा उठाने का मौका मिल रहा है.

खबरें हैं कि कृष्णा जल्द ही एक नया शो लाने वाले हैं और हैरत की बात यह है कि वह इस शो में सुनील ग्रोवर के साथ होंगे. चैनल कृष्णा और उनसे जुड़े बाकी सारे कलाकारों को एक नये शो कॉमेडी कंपनी में लाने की तैयारियों में जुटा हुआ है. कृष्णा ने भी अपनी तरफ से हां कह दिया है. ऐसे में जाहिर है यह कपिल के लिए बुरी खबर होगी क्योंकि कृष्णा और कपिल के बीच वर्चस्व की लड़ाई पुरानी है.  

हालांकि कपिल और सुनील की लड़ाई को लेकर कृष्णा ने कपिल का ही साथ दिया था और उनके पक्ष में ही अपनी राय रखी थी. लेकिन बात जब काम को लेकर आयी है तो जाहिर है इस बार वो अपना फायदा तो जरूर देखेंगे.

कपिल शर्मा के शो से अलग हो चुके अली असगर ने हाल ही में न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत के दौरान कहा कि रचनात्मक मतभदों की वजह से उन्होंने कपिल शर्मा के शो से किनारा कर लिया. अली के मुताबिक, उनका किरदार स्थिर हो रहा था, इसलिए उन्होंने इस कॉमेडी श्रृंखला को छोड़ दिया. 50 वर्षीय अभिनेता ‘द कपिल शर्मा शो’ में पुष्पा नानी का किरदार निभाते थे.

उन्होंने कहा, ‘यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. कई बार आप दोराहे पर आकर खड़े हो जाते हैं और आपको फैसला लेना पड़ता है. मैं शो को और स्टेज को बहुत मिस करता हूं. हमने एक टीम की तरह काम किया है. लेकिन एक वक्त पर मुझे लगा कि प्रफेशनली मैं एक हद पर पहुंच गया हूं. मैंने शो छोड़ने का फैसला इसलिए किया कि मेरे कैरेक्टर में वैरायटी नहीं बची थी जिसकी वजह से टीम और मेरे बीच क्रिएटिव अंतर आने शुरू हो गए थे. इसमें किसी सुधार का कोई स्कोप नहीं दिख रहा था.’

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