इन बॉलीवुड सितारों की फीस है 11 रुपये

बॉलीवुड सितारों की फिल्मों की कमाई और उनकी खुद की कमाई के बारे में हर कोई जानना चाहता है. हर किसी को ये फिल्म इंडस्ट्री जगमगाती सी हुई ही दिखाई देती है. वैसे तो हम अक्सर ऐसी खबरें पढ़ते रहते हैं कि फलां बॉलीवुड सितारे ने इस फिल्म के लिए इतनी फीस ली, लेकिन कभी-कभी ये सितारे अपने काम का कोई पैसा नहीं लेते हैं.

ऐसे कई सितारे हैं, जिन्होंने किसी खास वजह से फिल्म में काम करने के बदले निर्माता से कुछ भी नहीं लिया. इन सितारों में सदी के महानायक से लेकर किंग खान तक और कई दूसरे नाम भी शामिल है.

आज हम आपको ऐसे ही कुछ सितारों के बारे में बताने जा रहे हैं…

शाहिद कपूर

पिछले साल रिलीज़ हुई फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ में अपने बेहतरीन अभिनय का प्रदर्शन कर चुके शाहिद कपूर के लिए, साल 2014 में रिलीज हुई उनकी फिल्म ‘हैदर’ करियर का एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई.

इस फिल्म के लिए शाहिद कपूर को साल 2015 के फिल्म फेयर अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्टर के खिताब से नवाजा गया था. लेकिन शायद आपको नहीं पता होगा कि इसमें काम करने के लिए शाहिद ने एक भी रुपया नहीं लिया था. इतना ही नहीं, शाहिद कपूर बेहद खुश और अभिभूत थे, जब विशाल भारद्वाज ने उन्हें ‘हैदर’ में लीड रोल के लिए ऑफर दिया था.

कैटरीना कैफ

कैटरीना कैफ ने करन जौहर की फिल्म ‘अग्निपथ’ के फेमस आइटम नंबर ‘चिकनी चमेली’ के लिए कोई फीस नहीं ली थी. उन्होंने अपनी और करन की दोस्ती के कारण कोई भी पैसा नहीं लिया था. इस गाने के लिए कैटरीना ने बहुत मेहनत की थी, जो गाना देखने के बाद साफ दिखाई भी दे रहा था. हालांकि, करण जौहर ने उन्हें शूटिंग के बाद तोहफे में फरारी कार दी थी.

दीपिका पादुकोण

फिल्म ‘ओम शान्ति ओम’ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाली दीपिका पादुकोण ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों को अपना दीवाना बना दिया था. इस फिल्म में शाहरुख खान के साथ काम करने के लिए उन्होंने कोई पैसे नहीं लिए थे. उनका कहना था कि पहली ही फिल्म में शाहरुख़ के साथ काम करने का मौक़ा मिलना ही बहुत बड़ी बात है मेरे लिए, साथ ही फिल्म में वो किंग खान की सह कलाकार हैं, इतना ही उनके लिए काफी है.

शाहरुख खान

फिल्म ‘भूतनाथ रिटर्नस’ के लिए शाहरुख खान ने जितना भी काम किया था, वो फ़्री में किया था. शाहरुख इस फिल्म के पहले पार्ट का अहम हिस्सा थे. उन्होंने दूसरे पार्ट में अपने छोटे से रोल के लिए कोई पैसे नहीं लिए थे.

रानी मुखर्जी

करन जौहर रानी मुखर्जी के बेस्ट फ्रेंड हैं. करन की फिल्म कभी-ख़ुशी कभी गम में रानी मुखर्जी कई बार थोड़ी-थोड़ी सी देर के लिए कई बार नज़र आयीं थीं. फिल्म में उन्होंने शाहरुख़ खान के बचपन की दोस्त की भूमिका निभाई थी. मगर उन्होंने इस फिल्म के लिए करन जौहर से कोई पी नहीं लिए थे.

सोनम कपूर

फ्लाइंग सिख (Flying Sikh) कहे जाने वाले उर्फ़ मिल्खा सिंह के जीवन पर आधरित फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ बॉलीवुड की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. इस फिल्म में एक छोटी सी भूमिका में नजर आयीं थी सोनम कपूर. फिल्म में काम करने के लिए सोनम में मात्र 11 रुपये लिए थे.

फरहान अख्तर

निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में फरहान अख्तर ने अपने अभिनय का जबर्दस्त प्रदर्शन किया था और फिल्म के लिए उनको बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला था. इस फिल्म के लिए उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी, लेकिन फिल्म के लिए उन्होंने बतौर आशीर्वाद 11 रुपये ही लिए थे.

बलात्कार : कानून के साथ सोच भी बदले

सामूहिक बलात्कार नारी अस्मिता को तोड़ने के लिए होते हैं. स्त्री को भोग और दान समझने की प्रवृत्ति इस को बढ़ावा देने का काम करती है. ऐसे मामलों में समाज औरत को ही दोषी मानता है.

अहल्या से ले कर द्रौपदी तक तमाम उदाहरण धर्मग्रंथों में मौजूद हैं. वर्तमान समाज में फूलन देवी, बिलकीस बानो और निर्भया जैसे बहुत सारे ऐसे मामले हैं. इन तमाम घटनाओं के बाद भी समाज की सोच में बदलाव नहीं आता दिख रहा है. बलात्कार जैसे अपराध को कम करने के लिए सिर्फ सख्त कानून बनाने भर से काम नहीं चलेगा बल्कि समाज को अपनी सोच भी बदलनी होगी.

दिल्ली में निर्भया बलात्कार और हत्याकांड के मामले में अदालत का फैसला मील का पत्थर माना जा सकता है. निर्भया कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. यह ऐसा मामला था जिस ने अदालत से ले कर देश की संसद तक को जनता की पीड़ा को सुनने के लिए झकझोर कर रख दिया था. हजारों लोगों ने निर्भया को ले कर संसद का घेराव किया.

संसद ने जहां इस कांड के बाद नाबालिग अपराध को नए सिरे से परिभाषित किया वहीं निचली अदालत से ले कर ऊपरी अदालत तक हर जगह एकजैसा ही फैसला दिया गया.

निर्भया को ले कर केवल दिल्ली में ही धरनाप्रदर्शन नहीं हुए, पूरे देश में तमाम सामाजिक संस्थाओं ने जनता को आगे कर के निर्भया के दर्द का साझा किया. 2012 से हर 16 दिसंबर को निर्भया दिवस के रूप में याद किया जाता है.

5 वर्षों के बाद इस मामले में बड़ी अदालत का फैसला आया और अपराधियों को फांसी की सजा सुनाई गई. यह सच है कि न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है. अब बाकी समाज के सामने जिम्मेदारी निभाने का वक्त है. अदालत का यह फैसला तभी सफल होगा जब लोग इस से सबक लेंगे. बलात्कार केवल कानून से जुड़ा मसलाभर नहीं है. समाज का दायित्व सब से बड़ा है. सब से जरूरी है कि समाज से उस मानसिकता को खत्म किया जाए जिस के कारण बलात्कार जैसे कांड होते हैं. मात्र कानून से इस सामाजिक बुराई और अपराध की प्रवत्ति को खत्म नहीं किया जा सकता.

नहीं बदल रही धर्म की सोच

सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए सब से पहले उस से जुड़ी सोच को खत्म करने की जरूरत है. सामाजिक बुराई समाज से तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक उस से जुड़ी मानसिकता खत्म नहीं हो जाती. इस के लिए जरूरी है कि महिलाओं को बराबरी का हक दिया जाए. धर्म के नाम पर महिलाओं को जिस तरह से पीछे ढकेला जाता है, उस सोच को खत्म किया जाए.

हमारे देश में प्रगतिशील न्याय व्यवस्था तो है पर अभी भी धर्म का शिकंजा इतना मजबूती से गले में पड़ा है कि हमें इस से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है. हम खुद को प्रगतिशील कहते हैं पर हमारा समाज प्रगतिशील नहीं है. बलात्कार कई बार पुरुषवादी सत्ता को कायम रखने के लिए किया जाता है.

कबीलाई संस्कृति के दौर में बदला लेने के लिए औरत पर हमला किया जाता था. रामायण से ले कर महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथ इस बात के गवाह हैं. महाभारत में द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित करना ऐसी ही पुरुषवादी सत्ता की सोच थी जो विरोधियों से बदला लेने के लिए द्रौपदी को दांव पर लगा देती है. लड़ाई कौरव और पांडवों के बीच थी. पांडवों को अपमानित करने के लिए द्रौपदी को दांव पर लगाया गया.

रामायण में भी ऐसे कई उदाहरण हैं. राम को सबक सिखाने के लिए सीता का अपहरण और सूर्पणखा को सबक सिखाने के लिए उस की नाक को काटना पुरुषवादी सत्ता के ही उदाहरण हैं. नाक काटना औरत के लिए अपमान का द्योतक था. यह सिलसिला आधुनिक समाज में भी कायम है. ऐसी सोच बदलने की जरूरत है. बदला देने के लिए औरत का अपमान बंद होना चाहिए. औरत का अपमान बंद होने से अपराध में कमी आएगी.

आज अगर किसी को सबक सिखाना है तो उस की औरत को अपमानित किया जाता है. बड़े अपराधों की बात को दरकिनार भी कर दिया जाए तो हम रोज ऐसे काम करते हैं जो औरतों के लिए अपमान का कारण बनते हैं. लड़ाईझगड़े में ऐसी गालियों का प्रयोग करते हैं जो औरतों से जुड़ी होती हैं. गाली हम पुरुष को देते हैं पर वह होती महिलाओं के लिए है. महिलाओं को जिस तरह से रोजमर्रा की जिंदगी में अपमान सहन करना पड़ता है उसे कानून से नहीं, समाज में सुधार लाने से ही दूर किया जा सकता है.

हावी है पुरुषवादी सोच

सामूहिक बलात्कार की घटनाएं पुरुषवादी सोच को जाहिर करती हैं. ऐसे ज्यादातर मामले सबक सिखाने जैसी प्रवृत्ति को भी दिखाते हैं. गुजरात दंगों में बिलकीस बानो का मसला ऐसा ही बड़ा मसला था. जिस में गर्भवती बिलकीस बानो का बलात्कार होता है. उस के गर्भ में पल रहे बच्चे को पेट से निकाल कर पत्थर पर पटक कर मार दिया गया. उस के परिवार के साथ बलात्कार और हत्या जैसा अपराध किया गया.

ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं जहां पर सबक सिखाने के लिए औरतों के साथ ऐसे जघन्य अपराध होते हैं. जातीय हिंसा और भेदभाव की घटनाओं में ऐसे उदाहरण देखने को मिलते रहते हैं. उत्तर प्रदेश में कई साल पहले बेहमई कांड हुआ था. जहां फूलन देवी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. उस के बाद फूलन देवी दस्यू सरगना बनीं और अपने साथ हुए अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने सामूहिक नरसंहार किया.

फूलन देवी बाद में संसद की सदस्य भी बनीं. उन पर फिल्म से ले कर तमाम तरह की किताबें भी लिखी गईं. फूलन की ही तरह निर्भया मसले ने भी पूरे देश को झकझोर दिया. 1981 के फूलन देवी बलात्कार कांड से ले कर 2012 में निर्भया कांड तक एकजैसे ही हालात देखने को मिले. जिस से यह लगता है कि तमाम तरह के कानूनी झगड़ों और फैसलों के बाद भी समाज अपना दायित्व निभाने में सफल नहीं हो सका है.

गुजरात दंगों की बिलकीस बानो को भी देखें तो यही सामने आता है. इन प्रमुख तीनों घटनाओं की पृष्ठभूमि भले ही अलगअलग हो पर हालात एकजैसे ही थे. बलात्कार केवल नारी अस्मिता से जुड़ा है. पुरुष अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए इस तरह का कृत्य करते हैं.

बलात्कार में दोषी पुरुष होता है पर सजा अधिकतर औरत को ही मिलती है. गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या के साथ धोखा देने का काम इंद्र ने किया था लेकिन गौतम ऋषि ने सजा इंद्र के बजाय पत्नी अहल्या को दी, उस को पत्थर की शिला में बदल दिया.

औरतों को ही दोषी मानना

बलात्कार की शिकार औरतों के लिए समाज में मानसम्मान हासिल करना बहुत मुश्किल काम होता जा रहा है. लखनऊ की रहने वाली देविका (बदला नाम) के साथ उस के भाई और पिता ने बलात्कार किया. देविका ने इस की शिकायत उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से की. इस के बाद पिता और भाई को जेल हो गई. उस की मां और दूसरे भाई ने उसे सहयोग करने के बजाय घर से निकाल दिया. देविका एक शेल्टरहोम में रहने लगी. सरकार से मिली सहायताराशि से उस ने ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

देविका कहती है, ‘‘मुझे ब्यूटीपार्लर के लिए दुकान मिलनी मुश्किल थी. जब लोगों को पता चलता था कि मैं बलात्कार की शिकार हूं, लोगों का व्यवहार बदल जाता है. बड़ी मुश्किल से ब्यूटीपार्लर के लिए जगह मिली.’’

देविका 27 साल की है. वह अपनी शादी का घर बसाना चाहती है. इस के लिए उस ने कई बार प्रयास भी किया. जैसे ही लोगों को यह पता चलता है कि वह रेप विक्टिम है, लोग शादी करने से मुकर जाते हैं. ऐसे मसले एक नहीं, कई हैं. बात केवल बलात्कार की शिकार लड़कियों की ही नहीं है. अगर लड़की से छेड़छाड़ की बात शादी के समय पता चलती है तो लोग उस से भी बचना ही चाहते हैं. बलात्कार और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं औरतों के चरित्र से जोड़ कर देखी जाती हैं.

असल में ये आपराधिक घटनाएं हैं. इन को अपराध की घटनाओं के रूप में ही देखा जाए तो मसले आसानी से सुलझ सकते हैं. इस तरह की घटनाओं में न केवल लड़कियों की ही गलती मानी जाती है बल्कि उन से ही उम्मीद की जाती है कि वे अच्छे से कपड़े पहनें. ठीक तरह से रहें. देर रात घर से बाहर न निकलें.

कौमार्य का दबाव

समाज के दबाव के चलते कई बार मातापिता अपने बच्चों, खासकर लड़कियों, को टोकाटाकी करते हैं. जिसे वे अपने ऊपर दबाव मानती हैं. असल में मातापिता इस तरह की टोकाटाकी इसलिए करते हैं चूंकि लड़कियों के ऐसे शिकार होने से वे सामाजिक रूप से दबाव में आ जाते हैं. लड़की के लिए ऐसी घटनाएं लांछन की तरह होती हैं, जिसे समाज भूलता नहीं. ऐसे में लड़की का आने वाला जीवन प्रभावित हो जाता है.

आज के दौर में भी शादी से पहले लड़कों को इस बात की चिंता होती है कि उस की होने वाली पत्नी का कौमार्य सुरक्षित है या नहीं. अगर शादी के बाद सुहागरात में लड़के को यह पता चलता है कि उस की पत्नी का कौमार्य सुरक्षित नहीं है, सुहागरात में रक्तस्राव नहीं हुआ तो लड़की के चरित्र पर उंगली उठ जाती है. कई बार इस तरह की शंका से दांपत्य जीवन प्रभावित हो जाता है.

धर्म नारी के निजी मामलों में दखल करता है. जिस से सब से अधिक परेशानी का सामना महिलाओं को करना पड़ता है. महिलाओं के कपड़ों से ले कर रहनसहन और आचारविचार को तय करने का काम धर्म के ठेकेदार करते हैं. जिस से यह लगता है कि वह औरतों को अपने जाल में उलझा कर रखना चाहता है. बात केवल एक धर्म की ही नहीं है, हर धर्म में महिलाओं को हाशिए पर रखा जाता है. जबकि, यह दिखावा बारबार किया जाता है कि धर्म महिलाओं को इज्जत देता है.

असल में वह महिलाओं को बराबर का हक नहीं देता. धर्म के ठेकेदारों को यह लगता है कि अगर महिलाओं को बराबरी का हक मिल गया तो वे धर्म के आडंबर से बाहर हो जाएंगी, जिस से धर्म की उन की सत्ता खतरे में पड़ जाएगी.

तीन तलाक को ले कर केंद्र की भाजपा सरकार ने कदम उठा कर यह दिखाने की कोशिश की है कि इस से मुसलिम औरतों के हालात बदल जाएंगे. तीन तलाक की ही तरह से हिंदू और दूसरे समुदाय की महिलाओं के मुद्दे भी हैं जिन में तलाक लेना बहुत मुश्किल काम होता है. ऐसे में बहुत तरह के दांपत्य अपराध होते हैं.

कई बार तलाक चाहने वाली महिलाएं अपने पतियों पर ही गलत तरह से सैक्स करने या सैक्स के नाम पर परेशान करने जैसे आरोप लगा कर तलाक लेने की बात कहती हैं. अगर तलाक लेने की प्रक्रिया को सरल कर दिया जाए तो बहुत तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है. बहुत सारे दहेज के मुकदमों की वजह तलाक का जल्द न मिलना होता है.

एकदूसरे का सम्मान करें

दांपत्य में पत्नी को तमाम तरह के व्रत करने के लिए कहा जाता है, जिस के जरिए औरतों को सिखाया जाता है कि उन के लिए पति ही परमेश्वर है, उसे भगवान की तरह मानसम्मान देना चाहिए. असल में आज इस बात को समझाने की जरूरत है कि पतिपत्नी दोनों बराबर हैं. दोनों को एकदूसरे का मानसम्मान करना चाहिए. जब तक एकदूसरे का सम्मान नहीं होगा, दांपत्य में तनाव, झगड़े और अपराध खत्म नहीं होंगे.

शादी के पहले और शादी के बाद महिलाओं की आजादी का सम्मान जरूरी है. बलात्कार और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं एक दुर्घटना मात्र हैं. इन को ले कर महिलाओं के जीवन पर दबाव नहीं डालना चाहिए. ऐसी महिलाओं को जब सामान्य मान कर समाज में सही स्थान दिया जाएगा तभी सही मानो में निर्भया कांड के बाद आए फैसले से बदलाव हो सकेगा. कानून के साथ समाज को अपनी सोच बदलने की जरूरत है.      

इन का कहना है

बलात्कार केवल महिलाओं के शरीर पर ही अपना असर नहीं डालता, वह महिलाओं के दिमाग पर भी असर डालता है. महिला को लगता है कि अब उस के लिए समाज में कोई जगह नहीं बची है. उसे समाज गलत निगाहों से देखेगा. घरपरिवार के लोग भी यह नहीं मानते कि उस की गलती नहीं रही होगी. ऐसे में सब से जरूरी है कि कानून के साथ समाज भी पीडि़ता के साथ खड़ा हो. अभी यह देखा जाता है कि इस तरह की घटनाओं की शिकार महिलाओं को अलगथलग रह कर जीवन गुजारना पड़ता है. दूसरी ओर जहां भी वह अपनी बात रखने जाती है लोग उस को सौफ्ट टारगेट समझने की कोशिश करते हैं. जिस संवेदनशीलता की उम्मीद समाज से होनी चाहिए, पीडि़ता के साथ वह नहीं होती है.     

– अनुपमा सिंह, अनुपमा फाउंडेशन, लखनऊ

औरतों के प्रति होने वाले अपराध के मामलों में कानून में लगातार सुधार हुआ है. इस से अब यह उम्मीद जगी है कि कानून के पास आने पर औरतों को सही न्याय मिलेगा. यह सच है कि न्याय जितना जल्दी मिलना चाहिए, नहीं मिल रहा है. इस की कई वजहें हैं. विरोधी पक्ष न्याय व्यवस्था की खामी का लाभ उठा कर फैसले में देरी करवाता है. अभी भी अपराध के बाद होने वाली पुलिस की विवेचना बहुत वैज्ञानिक आधार पर नहीं होती. जिस से अपराधी को लाभ मिलता है. निर्भया कांड में दिल्ली पुलिस ने बहुत ही अच्छी तरह से विवेचना की है, जिस से अपराधियों को सही दंड मिल सका. इस तरह हर मामले में विवेचना शुरू हो जाए तो न्याय मिलने में समय नहीं लगेगा.    – श्वेता तिवारी, अधिवक्ता, लखनऊ

आमतौर पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को ले कर महिलाओं को ही दोषी ठहरा दिया जाता है, यह गलत है. फैशन, फिल्म, औरतों के कपड़े किसी भी तरह के महिला अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं. यह सोच धर्मवादी और पुरुषवादी सत्ता समझाने की कोशिश करती है. मीडिया भी कईर् बार ऐसी घटनाओं के लिए औरतों को ही दोष देता है. निर्भया कांड में भी यह तर्क दिया गया कि उसे रात में अकेले अपने दोस्त के साथ जाने की क्या जरूरत थी. इस तरह के तर्क देने से गलत संदेश जाता है. अपराधियों को अपने बचाव का मौका मिलता है. ऐसे मामलों में दोषियों का सामाजिक बहिष्कार होना जरूरी है.

– रिचा शर्मा, अभिनेत्री, मुंबई

आज के समय में केवल घर के बाहर ही नहीं, घर के अंदर भी महिलाओं के साथ ऐसे हादसे पेश आने लगे हैं जहां उन को शारीरिक व मानसिक रूप से शोषण का शिकार होना पड़ता है. हमारे पास ऐसे तमाम केस आए जिन में युवा विधवा औरतों के साथ घर में शारीरिक शोषण होता है. जब ये औरतें हालात के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करती है तो उन को तरहतरह से परेशान किया जाता है. एक घर में बड़े बेटे की पत्नी की मृत्यु के बाद छोटे बेटे की पत्नी के साथ दोनों भाइयों के संबंध रखने की शिकायत आई. मसला बड़े घर का था तो काफी प्रयास के बाद सुलह हो सकी. जिन औरतों के बच्चे नहीं होते, वे तो दूसरी शादी कर भी सकती हैं पर बच्चों के होने के बाद दूसरी शादी भी संभव नहीं रह जाती. ऐसे में समाज को अपनी सोच बदलनी चाहिए, तभी हालात में सुधार हो सकेगा. 

– अजय पटेल, समाजसेवी, वाराणसी

अभिनेता निभा चुके किसानों के किरदार जो हैं यादगार

बॉलीवुड फिल्मों में आज कलाकार दिलचस्प प्रोफेशनल बने नजर आते हैं. प्रेमिका के चेहरे को चांद-सा बताने वाला हिंदी सिनेमा का प्रेमी अब एस्ट्रोनॉट बनकर चांद पर उतरने की तैयारी कर रहा है. मगर, एक प्रोफेशन ऐसा है, जिसे हिंदी सिनेमा के दर्शक जरूर मिस करते होंगे. ये है किसान, जो अब सिनेमा के पर्दे पर नजर नहीं आता. हालांकि, एक वक्त सिनेमा का ऐसा भी था, जब बॉलीवुड के तमाम बड़े एक्टर्स पर्दे पर किसान बनकर आ चुके हैं.

करन-अर्जुन

‘करन-अर्जुन’ में सलमान और शाहरुख खान साथ नजर आए थे. राकेश रोशन निर्देशित फिल्म वैसे तो रिइनकार्नेशन ड्रामा थी, मगर सलमान और शाहरुख का पहले जन्म में प्रोफेशन खेती दिखाया गया था.

किसान

ट्यूबलाइट में सलमान और सोहेल खान साथ आ रहे हैं. सोहेल फिल्म में सोल्जर के रोल में हैं, मगर पर्दे पर किसान वो भी बन चुके हैं. सोहेल की फिल्म का टाइटल भी ‘किसान’ था, जिसे सोहेल ने प्रोड्यूस भी किया था. फिल्म में जैकी श्रॉफ उनके पिता और अरबाज भाई के किरदार में थे. ये फिल्म किसानों की आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आधारित थी.

लगान

फिल्म ‘दंगल’ में पहलवान का रोल निभाने वाले आमिर खान फिल्म “लगान” में किसान बने थे. आशुतोष गोवारिकर डायरेक्टिड ये फिल्म 2001 में आयी थी और काफी सक्सेसफुल रही. ब्रिटिश हुकूमत के दौर में सेट फिल्म की कहानी सूखे और लगान को केंद्र में रखकर दिखायी गयी थी. क्रिकेट भी फिल्म का अहम भाग था.

उपकार

1967 में आयी ‘उपकार’ में मनोज कुमार ने किसान का यादगार रोल निभाया था, जो बाद में भारत-पाक युद्ध के दौरान फौज ज्वाइन कर लेता है. ‘जय जवान-जय किसान’ के नारे से प्रेरित इस फिल्म को मनोज कुमार ने ही डायरेक्ट किया था.

मदर इंडिया

1957 में आई महबूब खान डायरेक्टिड ‘मदर इंडिया’ हिंदी सिनेमा की कल्ट क्लासिक फिल्मों में शामिल है. ऑस्कर अवॉर्ड तक पहुंची इस फिल्म में राज कुमार और नर्गिस किसान के रोल में थे, जबकि बेटों के किरदार में सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार ने निभाए थे. फिल्म में किसानों की गरीबी, भुखमरी और जमींदारों के जुल्म को दिखाया गया था.

दो बीघा जमीन

1953 में रिलीज हुई बिमल रॉय निर्देशित ‘दो बीघा जमीन’ देश के किसानों की हालत का दस्तावेज मानी जाती है. फिल्म सूखा, गरीबी, किसानों पर जमीदारों के जुल्म जैसे मुद्दों को एड्रेस करती है. फिल्म में बलराज साहनी ने किसान की यादगार भूमिका निभायी थी.

सफर में पैकिंग के लिए आसान टिप्स

अक्‍सर सफर पर जाने से पहले लोग पैकिंग को लेकर थोडा टेंशन में रहते हैं. ऐसे में हम बताते हैं पैकिंग की बेहद आसान टिप्‍स, जिनसे सफर का मजा होगा दोगुना.

चेक लिस्‍ट बनाना जरूरी

किसी भी सफर पर जानें से पहले एक चेक लिस्‍ट बनाना बेहद जरूरी होता है. जिसमें जिस जगह जा रहे हैं उस जगह के बारे में. इसके साथ ही वहां साथ ले जाने वाले सामान के बारे में लिखें. सफर में निकलने से पहले उस लिस्‍ट को जरूर चेक करें.

जगह के हिसाब से प्‍लान

सफर पर कहां जा रहे हैं और कितने लोग साथ जा रहे हैं. इसकी जानकारी बहुत मायने रखती है. जहां जा रहे हैं पहले वहां के मौसम के बारे में, यातायात के बारे में जानना जरूरी है. इसके बाद वहां पर ले जाने वाले सामान को इकट्ठा करें.

सामान रखने की जगह

सामान को पैक करने से पहले यह डिसाइड करना है कि किस बैग में कौन सा सामान रखना है. सामान बैग और उसमें बने पॉकेट के हिसाब से प्‍लान करना ज्‍यादा सही रहता है. इससे सामान रखने के साथ ही उसे निकालने में भी आराम रहता है.

कपड़ों का चयन करें

सफर हिल स्टेशन का है या बीच आदि का. इन दोनों ही जगहों के हिसाब से कपड़ों का चयन होना चाहिए. हिल स्टेशन आदि के सफर में गर्म कपड़े अवश्य रखें. वहीं बीच आदि पर जा रहे हैं तो फिर टी-शर्ट और शॉर्ट्स बैग में अवश्य होने चाहिए.

पेपर आइटम ऐसे रखें

पैकिंग करते समय टिकट पासपोर्ट, पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड और वीजा आदि को रखना न भूलें. इसके अलावा इन्‍हें रखने में जगह का चयन बेहद जरूरी है. जिससे कि ये कभी भी कहीं भी जरूरत पर आसानी से निकाले जा सकें.

हेल्थ किट रखना जरूरी

सफर में अक्‍सर वहां के वातावरण के मुताबिक लोगों को हल्की खांसी जुकाम व शरीर में दर्द जैसी समस्‍या होने लगती है. ऐसे में जरूरी नहीं कि हर जगह पर डॉक्‍टर या फिर दवा मिल सके. जिससे जरूरी है कि पैकिंग के समय मेडिकल किट जरूर रखें.

जूते-चप्‍पल कम रखें

पैकिंग करते समय सफर के हिसाब से जरूरत के हिसाब से जूते-चप्‍पल रखें. ब्रांडेड जूते-चप्‍पल लोकल की अपेक्षा अधिक मजबूत रहेंगे. एक से अधिक जोड़ी जूते रखने से बैग में ज्‍यादा जगह घेरते हैं क्‍योंकि वह बाकी सामानों से अलग रखे जाते हैं.

फ्रेशनेस से जुड़ा सामान

अक्‍सर देखने में आता है कि बहुत से लोग सफर के दौरान फ्रेशनेस से जुड़ा सामान भूल जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि मंजन, साबुन, तेल, कंघा आदि पहले से एक जगह पर रख लेना चाहिए. लंबे सफर में सेविंग किट रखना बिल्‍कुल न भूलें.

आपस में सब कनेक्‍टेड रहें

अगर पूरे परिवार या फिर कई दोस्‍तों संग सफर पर जा रहे हैं तो पैकिंग के दौरान सबसे कनेक्‍टेड जरूर रहें. कोशिश करें कि सबलोग मिलजुल कर सामान पैक करें. इससे एक ही इंसान दो आइटम पैक करने से बचेगा और सारा सामान भी साथ होगा.

इलेक्‍ट्रॉनिक सामान भी

आज के दौर में सफर के दौरान लैपटॉप, टैबलेट, फोन और कैमरा भी जरूरी सामानों में शामिल है. ऐसे में इन्‍हें चालू रखने के लिए इनके सेल और चार्जर रखना जरूरी होता है. वहीं पैकिंग के दौरान कोशिश करें कि पॉवर बैंक रखना न भूलें.

अगर ये कपड़े पहनती हैं, तो आपको हो सकता है नुकसान

अक्सर ऐसा कहा जाता है, कि किसी इंसान के पहनावे से उनके व्यक्तिव के बारे में पता चलता है. हर इंसान को अच्छे कपड़े पहनने का शौक होता है. सुन्दर सी जींस विद ब्रांडेड टी शर्ट आखिर किसको नहीं सुहाएगी.

लेकिन कभी-कभी फैशन के इस दौर में ट्रेंडिंग फैशन के चक्कर में कई बार हमें दर्द सहन करने के साथ-साथ असहज भी होना पड़ता है. ऐसा जरूरी नहीं है कि आपके ट्रेंडिंग कपड़े आपके शरीर के साथ भी फ्रेंडली हो. जिसकी वजह से आपको परेशानी उठानी पड़ती है.

आइए जानते है ऐसे ही कुछ कपड़ो के बारे में जो अनजाने में ही सही पर हर रोज आपको स्वास्थ्य समस्याओं की और धकेलते हैं.

1. हम सबको अक्सर डेनिम पहनना बहुत पसंद होता है. हमारे पास पड़ी डेनिम की कई जीन्स ऐसी होती है जिनमें खुद को एक दिन फिट देखने की हमारी तमन्ना हमें उन्हें फेंकने नहीं देती. हम खुद को परेशान करके उसी पुरानी जींस में खुद को फिट करने की कोशिश करते रहते है ताकि इस जीन्स में हम पतले लग सके. जींस के तंग कपड़े आपके पैरों को सुन्न कर देते हैं.

साथ ही आपकी कमर के आस-पास जकड़न जैसी स्थिति पैदा कर देता है. इतना ही नहीं, कई बार तो ऐसी स्थितियों में व्यक्ति कम्पार्टमेंट सिंड्रोम जैसी स्थिति को बढ़ावा दे देता है. इसमें शरीर के कई हिस्सों में सूजन आ जाती है.

2. टाइट स्कर्ट आजकल ट्रेंड में है. हालांकि ये दिखने में काफी खूबसूरत भी लगती है. लेकिन अपनी खूबसूरती के साथ-साथ असुविधा का कारण भी बनती है. ऐसी तंग स्कर्ट जो कमर पर बांधी जाती है,सांस लेने में समस्या पैदा कर सकती है.

3. ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट की मानें तो कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े और उनके रंग ऐसे होते है जो हमारे हार्मोन में ऐसी गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं. जिससे लोगों को कैंसर जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

4. अक्सर हम स्टाइलिश लुक के चक्कर में ऊंची एड़ी के जूते पहनने लगते हैं. इनमें आप पतली और लम्बी भी दिख सकती हैं. लेकिन ये हमारे स्वास्थ्य के लिए उतने ही हानिकारक है. ये आपकी पीठ, रीढ़ और घुटने पर कुप्रभाव डालती हैं.

घर के रंग-रोगन में हो कुछ खास

त्योहारों के समय घरों में रंग-रोगन का काम तो अधिकांश लोग कराते हैं और उसकी सुंदरता बढ़ाते हैं, यदि ये रंग आपकी मानसिक सेहत को सूट करते हुए हों तो कितना अच्छा हो. याद है आपको अपने बचपन का घर, वहां की नीली और सफेद दीवारें कैसे आज भी आपके दिलोदिमाग में बसी हैं. यादों के ऐसे ही रंगों से यदि घर की दीवारों को सजाया जाए तो उससे मानसिक सेहत बेहतर होती है. यदि यादों में बसा ऐसा कोई रंग नहीं हो तो फिर ऐसे रंगों का चुनाव करें, जो आपके मन को सुकून देने वाले हों.

जब लिविंग रूम की दीवारें करें स्वागत

रंगों के वॉर्म प्रकार के टोन जैसे लाल, पीला और नारंगी, मिट्टी के रंग के टोन जैसे भूरा लिविंग रूम के लिए बेहतर माने जाते हैं. क्योंकि ये रंग संवाद को प्रोत्साहित करने का काम करते हैं. ये लोगों को उस स्थान पर बैठकर बातें करने को प्रेरित करते हैं. ये रंग घर पर आने वाले लोगों को गर्मजोशी का अहसास कराते हैं और लोगों को जोड़ने का काम करते हैं.

बचपन का किचन

रंग विशेषज्ञों का कहना है कि किचन से हमारे बचपन की बहुत ही मीठी यादें जुड़ी होती हैं. यदि उन्हीं रंगों को दोबारा बड़े होने पर प्रयोग किया जाए तो उसका अर्थ और अधिक सार्थक होगा. मान लीजिए आप जब छोटी हों और आपके किचन की दीवारों का रंग नीला और सफेद हो तो ये दोनों ही रंग आपके परिवार के लिए बहुत अच्छे होंगे.

यदि रंगों को लेकर ऐसी कोई याद न हो तो फिर किचन के लिए लाल और पीले रंग सबसे सटीक होंगे. लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यदि आपका वजन अधिक है तो लाल रंग और अधिक खाने को प्रेरित करता है. यदि आप डाइटिंग कर रही हैं तो फिर लाल रंग आपके किचन के लिए ठीक नहीं.

डाइनिंग रूम के रंग कुछ खास

यदि आपके डाइनिंग रूम की दीवारों का रंग लाल है तो इससे लोगों तक यह बात पहुंचेगी कि आप एक बेहतर कुक होंगी. लाल रंग की दीवारें मेहमानों की भूख को बढ़ाती है और साथ ही बातचीत का माहौल भी बेहतर होता है.

कूल बेडरूम का कलर हो कूल

बेडरूम ऐसी जगह होती है जहां इंसान आराम करता है. कूल कलर्स जैसे- नीला, हरा और लैवेंडर कलर्स बेहतर विकल्प हो सकते हैं. इन रंगों में शांति प्रदान करने का गुण होता है.

बाथरूम के वॉर्म कलर्स

बाथरूम के लिए चुनें वॉर्म कलर्स सफेद और वॉर्म कलर्स बाथरूम के लिए हमेशा ही बेहतर विकल्प माने जाते रहे हैं. क्योंकि ये रंग स्वच्छता और शुद्धता का संदेश देते हुए प्रतीत होते हैं. कई लोगों को नीले, हरे और फिरोजी रंग बाथरूम के लिए बेहतर जान पड़ते हैं. ये रंग स्वच्छता और ताजगी का अहसास कराते हैं. यदि आप किसी खास रंग के कपड़े नहीं पहनते हैं तो उस रंग से कभी भी बाथरूम को पेंट न कराएं.

यदि घर में हो वर्कआउट रूम

आपने भी यदि वर्कआउट के लिए घर पर अलग से एक रूम बनवाया है तो फिर उस कमरे की दीवारों का रंग भी कुछ खास होना चाहिए. इस कमरे के लिए लाल और नारंगी रंग का प्रयोग करने से आपको सक्रिय बने रहने की प्रेरणा मिलती है वैसे नीला और हरा रंग भी बेहतर विकल्प हो सकते हैं. पीला-हरा और नीला-हरा बेहतर हो सकता है.

लिवर को जानें और रहें स्वस्थ

शरीर के सब से महत्त्वपूर्ण अंगों में शुमार होता है लिवर. यह शरीर का सब से बड़ा भीतरी अंग है जो स्वस्थ शरीर के अस्तित्व के लिए जरूरी कई रासायनिक क्रियाओं के लिए जिम्मेदार है. 

लिवर एक ग्रंथि भी है क्योंकि यह ऐसे रसायनों का स्राव भी करता है जिस का इस्तेमाल शरीर के अन्य अंग करते हैं. अपने अलग अलग तरह के कार्यों के कारण यह एक अंग और ग्रंथि दोनों में शुमार होता है. यह शरीर के सामान्य ढंग से काम करने के लिए जरूरी रसायनों का निर्माण करता है. यह शरीर में बनने वाले तत्त्वों को छोटेछोटे हिस्सों में तोड़ता है और जहरीले तत्त्वों को खत्म करता है. साथ ही, यह स्टोरेज यूनिट की तरह भी काम करता है.

हेप्टोसाइट्स (हेपट-लिवर+ साइट-सेल) शरीर में कई प्रकार के  प्रोटीन के  निर्माण के लिए जिम्मेदार होते हैं जिन की अलगअलग कार्यों के लिए जरूरत होती है. इन में ब्लड क्लौटिंग और एल्बुमिन शामिल हैं जिन की सर्कुलेशन सिस्टम  के भीतर फ्लुइड बनाए रखने के लिए जरूरत होती है. 

लिवर कोलैस्ट्रौल और ट्रिग्लीसेराइड्स बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण भी लिवर में होता है और यह अंग ग्लूकोज को ग्लूकोजेन में बदलने के लिए जिम्मेदार है जिन्हें लिवर में और मांसपेशियों की कोशिकाओं में स्टोर किया जा सकता है.

लिवर बाइल भी बनाता है जो खाना पचाने में मदद करते हैं. लिवर शरीर में उपापचयी प्रक्रिया के सहउत्पाद अमोनिया को यूरिया में बदल कर शरीर को जहरीले तत्त्वों से मुक्त करने में अहम भूमिका निभाता है जिसे किडनी द्वारा पेशाब मार्ग से शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह अल्कोहल समेत दवाओं को भी तोड़ता है और यह शरीर में इंसुलिन व दूसरे हार्मोंस को तोड़ने के लिए भी जिम्मेदार होता है.

लिवर की सामान्य बीमारियां

जीवनशैली और खानपान की आदतों में होने वाले बदलावों के कारण आज जिस अंग पर सब से अधिक प्रभाव पड़ा है वह है लिवर. लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों में विषाणु, नुकसानदायक भोजन और अल्कोहल का इस्तेमाल भी हो सकता है. हेपेटाइटिस ए, बी और सी जैसे विषाणु लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

आज अल्कोहालिक पेय का अत्यधिक कोलैस्ट्रौल वाले जंक फूड के साथ उपभोग किया जाना एक नित्य जीवनशैली सी बन गया है, यह भी लिवर की बीमारियों का एक प्रमुख कारण है. इस से बीएमआई यानी बौडी मास इंडैक्स का स्तर बढ़ जाता है जो टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ते जोखिम से संबंधित है और जो लिवर की गंभीर बीमारी से भी संबंधित है. अत्यधिक बीएमआई के बढ़ते जोखिम की वजह से जीवन के  बाद के हिस्से में गंभीर लिवर बीमारी होने का खतरा कम उम्र से ही बना रहता है. लगातार अधिक वजन बने रहने और मोटापे ने भी दुनियाभर में लिवर की बीमारियों को बढ़ाने में भूमिका निभाई है.

लिवर को नुकसान पहुंचाने वाला एक अन्य कारक मोटापा है. मोटापा आज के समय में दुनियाभर की समस्या है और विकासशील देशों में भी वयस्कों एवं बच्चों दोनों में मोटापे की समस्या की वजह से यह एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बन गया है. उपलब्ध अध्ययनों से मोटापे से विभिन्न प्रकार के कैंसर पैदा होने की जानकारी मिली है. खासतौर पर मोटापे और लिवर कैंसर के बीच मजबूत संबंध है. 

इस के अलावा नौन अल्कोहालिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) और अधिक गंभीर नौन अल्कोहालिक स्टियोहैपेटाइटिस (एनएएसएच) जैसी अन्य बीमारियों का भी खतरा है. एनएएसएच को लिवर के चरबीदार होने और जलन होने से पहचाना जाता है और माना जाता है कि इस से फाइब्रोसिस और सिरौसिस भी हो सकता है. सिरौसिस को लिवर कैंसर के जोखिम के कारण के तौर पर जाना जा सकता है. दरअसल, अधिक लोगों के मोटापे से पीडि़त होने की

वजह से यह हेपेटाइटिस विषाणु की वजह से होने वाले संक्रमण के मुकाबले हैप्टोसैल्यूलर कार्सिनोमा की अहम वजह हो सकता है.

अत्यधिक मात्रा में अल्कोहल का इस्तेमाल करने की वजह से लिवर को गंभीर नुकसान हो सकता है. जब कोई व्यक्ति अत्यधिक मात्रा में अल्कोहल का इस्तेमाल करता है तो लिवर के सामान्य कामकाज में बाधा पैदा होती है. जिस से शरीर में रासायनिक असंतुलन हो सकता है. लिवर की कोशिकाएं बरबाद हो सकती हैं.

लिवर कैंसर के लक्षण

लिवर कैंसर के लक्षण प्रत्येक व्यक्ति में अलगअलग होते हैं और इन में से कोई लक्षण दूसरे लक्षण की वजह से हो सकता है.

–       वजन में कमी.

–       बुखार आना.

–       पेट में सूजन.

–       उबकाई और उलटी होना.

–       भूख में कमी या थोड़ा खाना खाने के बाद ही पेट भरा महसूस होना.

–       सामान्य कमजोरी लगातार थकान बनी रहना.

–       दायीं तरफ पेट के ऊपरी हिस्से में या दाएं कंधे में होना वाला दर्द.

–       लिवर का बड़ा आकार (हैप्टोमीगली) पसलियों के नीचे दायीं तरफ एक बनावट की तरह महसूस होता है.

–       स्प्लीन का बड़ा आकार पसलियों के नीचे बायीं तरफ एक बनावट की तरह महसूस होता है.

–       पीलिया जो त्वचा व आंखों में पीलेपन के तौर पर दिखाई देता है. पीलिया तब होता है जब लिवर अच्छी तरह काम नहीं करता है.

चिकित्सकीय प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण के साथ गंभीररूप से खराब हो चुके लिवर वाले मरीज लिवर प्रत्यारोपण का विकल्प चुन सकते हैं. उन के लिए इस की आधारभूत प्रक्रिया को समझना जरूरी है.

देखभाल करने के लिहाज से लिवर सरल अंग है लेकिन उसे वह महत्त्व नहीं मिलता जिस का वह हकदार है. अपने विभिन्न प्रकार के कार्यों की वजह से इस पर विषाणुओं, जहरीले पदार्थों, खाने और पानी में मौजूद मिलावट व बीमारियों का असर पड़ता है. लेकिन यह परेशानी में होने के बाद भी शिकायत करने के लिहाज से सुस्त होता है क्योंकि यह शरीर का एक मजबूत और सख्त हिस्सा है. 

अकसर लिवर की समस्याओं से पीडि़त लोगों को किसी गड़बड़ी का पता नहीं चलता क्योंकि उन्हें कुछ या न के बराबर ही लक्षण देखने को मिलते हैं.  हालांकि लिवर की बीमारियों के उपचार का महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण तरीका उपलब्ध है लेकिन संपूर्ण सामाधन नहीं है. इसलिए लिवर को नुकसान से बचाने के लिए सेहतमंद जीवनशैली अपनानी बेहद महत्त्वपूर्ण है और लिवर की बीमारियां पैदा करने वाले विषाणुओं के खिलाफ जरूरी टीके लेने जरूरी हैं.

(डा. गौरदास चौधरी, लेखक गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक हैं.)

कौन कर रहा है देसी गर्ल को बार बार किस

प्रियंका चोपड़ा इन दिनों अपनी फिल्म ‘बेवॉच’ को लेकर काफी सुर्खियां बटोर रही हैं. उन्होंने बड़े जोर शोर से फिल्म का प्रमोशन भी किया. आपको याद हो अगर तो कुछ दिनों पहले प्रियंका चोपड़ा की बिकिनी में कुछ तस्वीरें सामने आई थीं. जो इंटरनेट पर खूब वायरल हुई. इन तस्वीरों में प्रियंका काफी हॉट भी लग रही थी.

हम आपको बता दें कि इन तस्वीरों के साथ-साथ, कुछ समय से प्रियंका के दो वीडियो भी वायरल हो रहे हैं. ये दोनों वीडियो प्रियंका के इंटरव्यू के हैं. दरअसल, इन दोनों ही इंटरव्यू के दौरान प्रियंका की हॉलीवुड फिल्म ‘बेवॉच’ के को-स्टार ड्वेन जॉनसन पीछे से आकर अचानक प्रियंका को किस कर देते हैं और ड्वेन जॉनसन ने दो बार, अलग-अलग इंटरव्यू में प्रियंका को किस किया है.

इस वीडियो में प्रियंका ‘बेवॉच’ को लेकर एक इंटरव्यू दे रही हैं. तभी पीछे से ड्वेन आते हैं और प्रियंका को किस कर देते हैं. हालांकि सामने लगे शीशे में प्रियंका ने उन्‍हें आते हुए देख लिया और वह समझ गईं और थोड़ी तैयार भी हो गईं. प्रियंका ने ड्वेन से कहा भी कि उन्‍होंने, उन्‍हें पीछे से आते हुए देख लिया था.

 

ड्वेन आए और उन्‍हें किस कर के तुरंत वहां से यह कहते हुए चले गए कि ‘प्रियंका अमेजिंग हैं और वह उनकी स्‍टार हैं.’ इतना ही नहीं, इसके बाद इंटरव्‍यू करने वाले ने जब प्रियंका से पूछा कि ड्वेन ने प्रीमियर पर भी ऐसा किया था, तो प्रियंका ने कहा, ‘शायद उन्‍हें मेरे बाल बहुत पसंद हैं.’

बता दें कि मियामी में भी कुछ ऐसा ही हुआ था जब प्रियंका चोपड़ा इस फिल्‍म के प्रीमियर के दौरान इंटरव्‍यू दे रही थीं और अचानक वहां से गुजरते हुए ड्वेन ने उन्‍हें किस कर लिया था. जब मियामी में ड्वेन ने प्रियंका को किस किया था तो वे कुछ नहीं कह पाई थीं.

ये बात तो शायद आप जानते हैं अगर नहीं तो हम आपको बता दें कि ‘बेवॉच’ 90 के दशक की इसी नाम की टीवी सीरीज पर आधारित फिल्‍म है. प्रियंका इस फिल्‍म में विक्‍टोरिया के किरदार में नजर आएंगी, जो एक विलेन है. प्रियंका चोपड़ा इसके अलावा अमेरिकन टीवी सीरीज ‘क्‍वांटिको’ के दूसरे सीजन में भी नजर आ चुकी हैं और अब तीसरे सीजन की तैयारी कर रही हैं. हाल ही में प्रियंका न्‍यूयॉक में आयोजित हुए मेट गाला 2017 में भी शिरकत कर चुकी हैं.

आपने देखी सनी लियोन की ये हॉट फोटोज

एमटीवी पर प्रसारित होने वाला रियलटी टीवी शो स्प्लिट्सविला बेहद ही पॉपुलर है जिसे यंगस्टर्स देखना काफी पसंद करते हैं. बॉलीवुड एक्ट्रेस सनी लियोन ने स्प्लिट्सविला सीजन 10 की शूटिंग शुरू कर दी है. सनी ने शूटिंग के दौरान की कई तस्वीरें अपने इंस्टाग्राम पर शेयर भी की हैं.

इन तस्वीरों में सनी के साथ उनके को होस्ट रणविजय सिंह भी नजर आ रहे हैं. बता दें कि सनी और रणविजय इस बार स्प्लिट्सविला सीजन 10 की शूटिंग नेशनल जिम कार्बेट पार्क में कर रहे हैं.

हर तस्वीर में सनी का अलग अंदाज दिखाई दे रहा है. सनी और रणविजय जिम कॉर्बेट की अलग-अलग लोकेशन्स पर शूट कर रहे हैं जिसकी वजह पूरी यूनिट को नेटवर्क की समस्या से भी जूझना पड़ रहा हैं. सनी स्प्लिट्सविला के नए सीजन को होस्ट करने को लेकर काफी एक्सा​इटेड हैं.

सनी पिछले काफी समय से स्प्लिट्सविला को होस्ट कर रही हैं और शायद उनकी वजह से भी इस शो की पॉपुलैरिटी और ज्यादा बढ़ी है.​ स्प्लिट्सविला सीजन 9 में काफी लव, फाइट और ड्रामा देखने को मिला था. कुछ दिनों पहले सनी ने लोगों से शाहकारी बनने की अपील की. एक विज्ञापन में सनी ढेर सारी लाल मिर्ची पर लेटी हुई नजर आईं. विज्ञापन के जरिए उन्होंने लोगों से शाकाहारी होने की अपील की.

 

 

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छुट्टियों में रोमांच के लिए करें इन 5 जगहों की सैर

आपको अडवेंचर पसंद है और हिस्ट्री में इंट्रेस्ट है तो इन जगहों पर घूमना आपको पसंद आएगा. ये हैं छुट्टियों में रोमांच भर देने वाले इंडिया के 5 हॉन्टेड प्लेस.

भानगढ़

राजस्थान के अलवर जिले में स्थित भानगढ़ फोर्टो को एशिया की सबसे खौफनाक जगहों में से एक माना जाता है. सूरज ढलने के साथ ही लोग इस किले के आस-पास भी नहीं भटकते.

दमस बीच

गुजरात का दमस बीच डुमस नाम से भी जाना जाता है. दिन में यहां सैलानी मस्ती करते हैं, लेकिन रात के वक्त लोकल लोग इस बीच की दिशा में देखते तक नहीं है. स्थानीय लोगों कहना है कि भूत-प्रेतों का बसेरा है. रात में यहां चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं.

अग्रसेन की बावली

दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास स्थित अग्रसेन की बावली के बारे में कहा जाता है कि एक बार यह बावली स्वत: काले पानी से भर गई थी. उस काले पानी में सम्मोहन शक्ति थी, जिस कारण कई लोगों ने उसमें कूदकर आत्महत्या कर ली. उसके बाद जब यह बावली सूखी तो फिर कभी नहीं भरी. अब केवल बरसात में ही यहां पानी भरता है.

शनिवारवाड़ा

महाराष्ट्र के पुणे में स्थित है शनिवारवाड़ा. इस किले से जुड़ा डर इसके इतिहास को याद दिलाता है. इस किले में मराठा साम्राज्य के पांचवे पेशवा नारायण राव की रात में हत्या की गई. खतरा भांपकर अपने चाचा के कक्ष की तरफ दौड़ते हुए राव ‘काका माल बचावा’ चाचा मुझे बचा लो चिल्ला रहे थे. इसी बीच उनकी हत्या कर दी गई. कहते हैं, नारायण राव की आत्मा आज भी इस किले में भटकती है. उनके आखिरी शब्द अभी रात को इस महल में गूंजते हैं.

डाउ हिल

पश्चिम बंगाल के कर्शियांग की डाउ हिल यहां हुई आत्महत्याओं के लिए जानी जाती है. इस जंगल में एक अजीब सी सिहरन होती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां आत्माएं दिखती हैं. सुनसान जंगल में लोगों के चलने की आहट महसूस होना आम बात है.

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