जैसे फिल्मों में होता है, हो रहा है हुबहु

वैसे दुनिया में तो हर वक्त अलग-अलग तरह की घटनाएं होती रहती हैं और कई बार ये घटनाएं कुछ ऐसे अजीबोगरीब संयोग में बदल जाती हैं, जिनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाते हैं.
ऐसी ही कुछ कहानियां है हमारे बॉलीवुड सितारों के जीवन में भी. हम और आप जैसे आम लोग ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड के ये मशहूर सिलेब्रिटीज का भी अजीबोगरीब संयोगों से सामना होता रहा है.

आइये हम आपको बताते हैं ऐसी ही घटनाएं, जो आपको चौंका देंगी. इनमें से कुछ सुखद संयोग हैं, तो कुछ भयानक त्रासदियों जैसी घटनाएं भी हैं, जो ये सितारे अपने जीवन में झेल चुके हैं…

सोनू सूद और सोनू निगम

अभिनेता सोनू सूद और गायक सोनू निगम. दोंनो ही सोनू का जन्मदिन एक ही दिन यानि कि 20 जुलाई को होता है.

फिरोज खान और विनोद खन्ना

बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता फिरोज खान और विनोद खन्ना अपनी दोस्ती के लिए बॉलीवुड में बहुत मशहूर थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि फिरोज के मरने के ठीक 8 सालों बाद उसी दिन विनोद खन्ना इस दुनिया से विदा हुए.

राज कुंद्रा और अक्षय कुमार

शिल्पा शेट्टी और अक्षय कुमार के अफेयर की कहानी तो पूरे बॉलीवुड और उनके हर एक फैन को पता है, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि शिल्पा के पति राज कुंद्रा और उनके एक्स अक्षय दोनों का जन्मदिन, एक साथ 9 सितंबर को होता है.

अनुराग बासु

बॉलीवुड के फेमस फिल्म निर्देशक अनुराग बासु के लिए ये संयोग उनके जीवन में बेहद दर्दनाक था. दरअसल, अपने करियर के शुरुआती दौर में अनुराग एक सीरियल के लिए डेथ सीन लिख रहे थे और इसी दौरान वो सोचते-सोचते ये कल्पना कर बैठे कि उनके पिता का देहांत हो गया है. दुर्भाग्य से सीन पूरा लिखने के कुछ समय बाद ही उनके पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

धर्मा प्रोडक्शन

धर्मा प्रोडक्शन ने एक ही नाम से दो फ़िल्में रिलीज़ की हैं. साल 1990 में फ़िल्म ‘अग्निपथ’ में अमिताभ बच्चन और डैनी मुख्य भूमिका में थे, वहीं साल 2012 में रिलीज हुई फिल्म ‘अग्निपथ’ में रितिक रोशन और संजय दत्त मुख्य भूमिका में नजर आए थे.

ऐसे ही दूसरी फिल्म है, दोस्ताना. 1980 में आई इस फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा मुख्य भूमिका में थे. इसके बाद साल 2008 में आई दोस्ताना में जॉन अब्राहम, अभिषेक बच्चन और प्रियंका चोपड़ा मुख्य भूमिका में थे.

शाहिद कपूर और राजकुमार राव

आपने गौर नहीं किया होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि राजकुमार राव ने ‘शाहिद’ नाम की फिल्म की है और वहीं शाहिद कपूर ने ‘आर. राजकुमार’ नाम की फिल्म में काम किया है.

शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन

शाहरुख के बंगले का नाम मन्नत है, तो वहीं बिग बी के बंगले का नाम जलसा है. पहले शाहरुख के बंगले का नाम जन्नत था, जबकि अमिताभ के बंगले का नाम मनसा.

गुजारा भत्ता कानून : अदालतों का बदलता नजरिया

भारतीय कानून व्यवस्था में महिलाओं के हितों को ध्यान में रख कर कई कानून अस्तित्व में आए हैं. इसी प्रकार की एक कानूनी व्यवस्था गुजारा भत्ता व भरणपोषण को ले कर भी है. लेकिन, अदालतें अब आत्मनिर्भर महिलाओं को गुजारा भत्ता देने से साफ इनकार करने लगी हैं. अदालतें  उन महिलाओं की गुजारे भत्ते की मांग को खारिज कर रही हैं जो पति से वसूली की मंशा रखते हुए तलाक से पहले अपनी नौकरी छोड़ देती हैं या सक्षम होते हुए भी कुछ काम नहीं करतीं.

बदलते माहौल में अदालतें अब पत्नी की योग्यता और कार्यक्षमता का आकलन करने के बाद ही उन्हें गुजारे भत्ते का हकदार ठहरा रही हैं. पत्नी को हर प्रकरण में गुजारा भत्ता मिल ही जाएगा, यह जरूरी नहीं. पेश हैं कुछ उदाहरण जिन्होंने इस मामले को नए मोड़ दिए हैं :

पति की कमाई पर मुफ्तखोरी : हाल ही में दिल्ली की एक अदालत ने घरेलू हिंसा के एक मामले में महिला को मिलने वाले 5,500 रुपए के मासिक अंतरिम भत्ते में इजाफा कर उसे 25,000 रुपए करने की मांग की याचिका को खारिज कर दिया और अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि महिला पढ़ीलिखी है. महिला के पास एमए, बीएड और एलएलबी जैसी डिगरियां हैं और वह खुद कमा सकती है, इसलिए उस से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वह घर पर आलसी की तरह बैठे और पति की कमाई पर मुफ्तखोरी करे.

अदालत ने कहा कि महिला ने गुजारा भत्ते में वृद्धि की मांग का न तो कारण बताया और न ही यह साबित किया कि उस के खर्च में वृद्धि कैसे हो गई.  अदालत का यह फैसला गुजाराभत्ता कानून के हो रहे दुरुपयोग के मद्देनजर  काफी अहम है.

पति भी गुजारे भत्ते का हकदार : भारत जैसे देश में जहां यह माना जाता है कि गुजारे भत्ते की हकदार पत्नी ही होती है, ऐसे में अगर पति से गुजारा भत्ते की मांग कर रही पत्नी को उलटा पति को  गुजारा भत्ता देने का अदालत से फरमान मिल जाए तो आप को हैरानी होगी. लेकिन, ऐसा हुआ है. महिलाओं के गुजारा भत्ता मांगने की इसी खराब आदत पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला को आदेश दिया है कि वह अपने पति को गुजारे भत्ते के रूप में हर महीने 20 हजार रुपए का भुगतान करे. अदालत ने महिला को यह भी निर्देश दिया कि वह पति को कार भी दे.

दरअसल, मामला कुछ ऐसा था कि पतिपत्नी के एक विवादित मुकदमे में पति ने वर्ष 2002 में अपनी पत्नी को अपनी संपत्ति की मालकिन बनाया था लेकिन पतिपत्नी के बीच बाद में झगड़े होने लगे जिस के चलते पत्नी ने अपने बच्चों के साथ मिल कर अपने पति को साल 2007 में उस के ही घर से बाहर निकाल दिया. जिस के बाद साल 2008 में पति ने कड़कड़डूमा कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की और साथ ही, हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता दिए जाने की गुहार लगाई.

याचिका में पति ने कहा कि उसे घर से निकाला गया और उसे गुजारे के लिए खर्चा तक नहीं दिया जा रहा. याचिका में कहा गया था कि पीडि़त की पत्नी की सालाना आमदनी एक करोड़ रुपए है और उस के पास 4 गाडि़यां भी हैं, दूसरी तरफ पति की कोई आमदनी नहीं है और वह सड़क पर आ चुका है.

जिस के बाद साल 2009 में निचली अदालत ने फैसला सुनाया कि हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत पतिपत्नी में से जो भी आर्थिक रूप से संपन्न है वह दूसरे को गुजारा भत्ता दे सकता है और चूंकि पत्नी आर्थिक रूप से संपन्न है, इसलिए वह हर महीने अपने पति को 20 हजार रुपए गुजारा भत्ता दे.

इस फैसले के बाद पत्नी हाईकोर्ट पहुंची थी लेकिन हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और पत्नी को निर्देश दिया कि वह अपने पति को हर महीने 20 हजार रुपए गुजारा भत्ता और साथ ही कार भी दे.

बराबर कमाई तो गुजारा भत्ता नहीं: पति के बराबर ही कमाने वाली महिला को पति से गुजारा भत्ता पाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. इस का उदाहरण पिछले दिनों एक मामले में देखने को मिला जिस में गुजारा भत्ता मांगने अदालत पहुंची पत्नी की अर्जी को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अनुराधा शुक्ला भारद्वाज ने खारिज कर दिया. कारण था पत्नी की पति के बराबर ही कमाई होना

अदालत ने कहा कि लैंगिक समानता के इस दौर में पति को महज मर्द होने के कारण कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है. दरअसल, इस मामले में पत्नी ने पति से आवास सुविधा मुहैया कराने की मांग की थी. अदालत ने कहा कि पत्नी को इस के लिए यह साबित करना होगा कि वह अपनी आर्थिक अक्षमता के कारण अपने लिए आवास का इंतजाम करने में लाचार है.

महिलाओं से आर्थिक सहयोग की उम्मीद : एक अन्य मामले में  महिला द्वारा अपने पति से गुजारा भत्ता मांगने पर कोर्ट ने महिला की मांग को खारिज कर दिया और कहा कि आज के समय में घर चलाने में महिलाओं से आर्थिक मदद की उम्मीद की जाती है, न कि बेकार बैठने की. महिला द्वारा की गई गुजारे भत्ते की मांग को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिला ने खुद यह स्वीकार किया है कि उस ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया है जिस का मतलब है कि उस के पास काम करने और कमाने का हुनर है, लेकिन इस के बावजूद वह काम करना नहीं चाहती.

इस मामले में मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट मोना टारडी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आज के जमाने में महिलाओं से भी उम्मीद है कि वे काम कर घर में आर्थिक रूप से सहयोग करेंगी.

पत्नी होना मुआवजे की वजह न बने: दिल्ली की  ही एक सत्र अदालत ने यह फैसला सुनाया कि अगर पत्नी अपने पति से ज्यादा पढ़ीलिखी है, तो तलाक की सूरत में केवल इस बिना पर उसे मुआवजा नहीं मिल सकता कि वह एक पत्नी है. इस मामले में एक महिला ने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ते की मांग को ले कर अदालत में मामला दाखिल किया था, लेकिन उस की दलील खारिज हो गई.

जिला व सत्र न्यायाधीश सुजाता कोहली की अदालत ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि महिला अपने पति से ज्यादा पढ़ीलिखी है, इसलिए  वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं है.

कोर्ट ने केस खारिज करते हुए कहा कि महिला कोर्ट को यह बताने में नाकाम रही कि वह ज्यादा पढ़ीलिखी है, लेकिन इस के बावजूद उस ने कभी नौकरी करने के बारे में क्यों नहीं सोचा. याचिकाकर्ता महिला दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट थी  और उस के पास लाइब्रेरी साइंस में डिप्लोमा भी था जबकि पति केवल 12वीं पास था.

पति की हैसियत का होगा आकलन: एडवोकेट अनुपमा गुप्ता बताती हैं, ‘‘वैवाहिक विवादों से संबंधित मामलों में कई कानूनी प्रावधान हैं, जिन के जरिए पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है. सीआरपीसी, हिंदू मैरिज ऐक्ट, हिंदू अडौप्शन ऐंड मेंटिनैंस ऐक्ट और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारा भत्ते की मांग की जा सकती है. अगर पतिपत्नी के बीच किसी बात को ले कर अनबन हो जाए और पत्नी अपने पति से अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता चाहे तो वह सीआरपीसी की धारा-125 के तहत गुजारे भत्ते की अर्जी दाखिल कर सकती है. लेकिन कई महिलाएं कानून का दुरुपयोग करते हुए अपने पति से भारी रकम वसूलती हैं.

‘‘कई बार प्रेमी के संपर्क में रहने के लिए विवाहित महिलाएं अपने मातापिता के घर जा कर बैठ जाती हैं और महिलाओं के लिए बने कानूनों, जैसे दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा और गुजारा भत्ता के कानूनों का पति पर दुरुपयोग करती है. कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए हाल ही में अदालत ने कई ऐसे फैसले दिए हैं जिन के अनुसार वे इस कानून का दुरुपयोग नहीं कर सकेंगी. हिंदू मैरिज ऐक्ट की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता तय होता है, जिसे तय करते वक्त पति व पत्नी की हैसियत देखी जाती है. अगर पत्नी की कमाई अच्छी हो और पति बेरोजगार हो तो गुजारा भत्ता पत्नी को भी देना पड़ सकता है. यानी पति या पत्नी जिस की भी माली हालत अच्छी नहीं है, उसे गुजारा भत्ता दिया जाता है. इस मामले में कानून में दोनों के प्रति एक ही नजरिया अपनाया गया है.’’

बिना कारण घर छोड़ेगी तो गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा : एक दूसरे प्रकरण में पत्नी ने शादी के डेढ़ साल बाद ही पति का घर छोड़ दिया था. पति ने उसे इस के लिए कभी नहीं उकसाया था. पति ने उसे घर वापस बुलाने के लिए नोटिस भी भेजा लेकिन जब पत्नी की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो पति ने फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों को ले कर याचिका दायर की.

इस बीच पत्नी ने गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर कर दी. फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका स्वीकार कर पत्नी की याचिका खारिज कर दी. न्यायाधीश ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यदि पत्नी ने बिना किसी ठोस कारण के पति का घर छोड़ा है तो उसे गुजारा भत्ता पाने का हक नहीं है.

महिला पेशेवर है तो गुजारा भत्ता नहीं : एक अन्य फैसले में भी दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामले में एक कामकाजी महिला को गुजारा भत्ता इस आधार पर देने से इनकार कर दिया कि महिला खुद एक पेशेवर है. वह बीते 13 साल से चार्टर्ड अकाउंटैंट के पेशे में है.

न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और प्रतिभा रानी की खंडपीठ के समक्ष महिला ने अपने व अपने 2 बच्चों के अच्छे जीवन के लिए पति से 3 लाख रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता दिए जाने की मांग की थी. निचली अदालत से निराशा हासिल होने पर महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सभी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि उसे नहीं लगता कि महिला की याचिका में दम है.

अदालत ने महिला की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिस में उस ने महज 7 हजार रुपए प्रतिमाह कमाने की बात कही थी. खंडपीठ ने कहा कि 7 हजार रुपए की राशि तो न्यूनतम आय के कानून से भी कम है. 13 साल तक चार्टर्ड अकाउंटैंट जैसे पेशे में रहने के बाद महज 7 हजार रुपए प्रतिमाह कमाने की दलील विश्वास योग्य नहीं है.

इस से पूर्व निचली अदालत ने महिला के पति को यह आदेश दिया था कि वह अपने 2 बच्चों के अच्छे जीवनयापन के लिए 22,900 रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता दे. महिला के पेशेवर होने के कारण उसे गुजारा भत्ता दिए जाने से अदालत ने इनकार कर दिया था.

दरअसल, भारतीय समाज का ढांचा ही कुछ ऐसा बना हुआ है कि महिलाओं को जीवन के हर पड़ाव पर पुरुषों पर आश्रित रहने की आदत डाल दी जाती है और इसी आदत की वजह से महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होते हुए भी पुरुषों पर निर्भर रहती हैं और उन से गुजारे के लिए मुआवजे की मांग करती हैं.

वैसे महिलाएं समानता की, बराबरी की मांग करती हैं, वे कहती हैं कि वे पुरुषों से किसी तरह से कम नहीं. मातापिता भी उन्हें बेटों के बराबर शिक्षा और सुविधाएं देते हैं तो फिर वे आत्मनिर्भर और पढ़ीलिखी होने के बावजूद पति से गुजारे भत्ते की मांग क्यों करती हैं? क्या सक्षम होते हुए भी सुविधा की मांग करना उन की बराबरी के अधिकार के आड़े नहीं आता?    

जैनरिक दवा जनता से दूर क्यों

हमारे देश में आबादी के मुकाबले डाक्टरों की कमी है, जरूरत के अनुसार अस्पताल नहीं हैं और दवाएं बेहद महंगी हैं. ऐसे में यदि मध्यवर्गीय या गरीब परिवार में एक व्यक्ति बीमार पड़ता है तो उस का इलाज कराने में पूरे परिवार की कमर टूट जाती है. इस की एक बड़ी वजह है डाक्टरों का फार्मा कंपनियों व टैस्ट लैब्स के बीच कायम गठजोड़, जो मरीज को ठीक करने के बजाय उस की आर्थिक तबाही में लगा रहता है.

डाक्टर मरीजों के इलाज में काम आने वाली सस्ती जैनरिक दवाएं लिख सकते हैं, पर कमीशन और फार्मा कंपनियों से मिलने वाले महंगे उपहारों व मोटे कमीशन के लालच में वे उन्हीं ब्रैंडों की दवाएं लिखते हैं. अकसर ऐसी ब्रैंडेड दवा सामान्य जैनरिक दवाओं की तुलना में कई गुना महंगी होती है.

पिछले दिनों  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समस्या की नब्ज पर उंगली रखते हुए कहा था कि उन की सरकार एक लीगल फ्रेमवर्क के तहत यह सुनिश्चित करेगी कि डाक्टर सिर्फ जैनरिक दवाएं ही लिखें जो सस्ती होने के कारण मरीजों पर बोझ नहीं बनती.

एक आकलन है कि ब्रैंडेड और जैनरिक दवाओं की कीमत में 90 प्रतिशत तक का अंतर होता है. जैनरिक दवाएं ब्रैंडेड दवाओं के मुकाबले कितनी सस्ती हो सकती हैं, इस का एक अंदाजा ब्लड कैंसर की दवा ग्लिवेक नामक ब्रैंडेड दवा की एक महीने की खुराक से लगाया जा सकता है.

ब्रैंडेड दवा की एक महीने की डोज की कीमत तकरीबन 1.14 लाख रुपए की होती है, जबकि इस की जैनरिक दवा का महीनेभर का खर्च करीब 11 हजार रुपए ही पड़ता है. ऐसा ही अंतर बहुत सी ब्रैंडेड और जैनरिक दवाओं की कीमतों

में है. आम लोग इस मामले में ज्यादा जानकारी नहीं रखते. लिहाजा डाक्टर्स व फार्मा कंपनियां महंगी ब्रैंडेड दवा का ही विकल्प सब के आगे रखती हैं ताकि मरीज किसी ब्रैंडेड दवा लेने को मजबूर हो.

ब्रैंडेड बनाम जैनरिक

आमतौर पर सभी एलोपैथिक दवाएं एक खास तरह का कैमिकल सौल्ट होती हैं. लंबे अरसे तक शोध और जीवोंइंसानों पर परीक्षण के बाद उन्हें अलगअलग बीमारियों के लिए पृथक कर के बनाया जाता है. दवाओं के शोध और निर्माण की सामान्य प्रक्रिया यह है कि कोई फार्मा कंपनी वर्षों के शोध के बाद किसी बीमारी की दवा का विकास करती है तो वह उस का पेटेंट कराती है.

पेटेंट कराने का अर्थ यह है कि कोई अन्य कंपनी उस की नकल नहीं कर सकती और न ही उसे बेच सकती है. ऐसी पेटेंटेड दवाएं ब्रैंडेड दवाएं कहलाती हैं. चूंकि इन दवाओं के शोध, निर्माण व क्लीनिकल ट्रायल पर काफी पैसा और समय खर्र्च होता है, इसलिए कंपनियां लागत और मुनाफा वसूलने के लिए ब्रैंडेड दवाओं को ऊंची कीमत पर बेचती हैं. लेकिन एक अवधि के बाद ब्रैंडेड दवाओं का पेटेंट खत्म हो जाता है.

हमारे देश में पेटेंट की यह अवधि 20 साल है. इस दौरान पेटेंटधारी कंपनी ही इन्हें बना कर बेच सकती है. 20 साल के बाद यह सौल्ट पेटेंट-फ्री हो जाता है. तब इसे जैनरिक कहा जाने लगता है. ऐसा होने पर दूसरी कंपनियां जरूरत के हिसाब से उन्हीं के समान नुस्खे (फौर्मुलेशन) वाली दवाएं बनाने लगती हैं. चूंकि ऐसी दवाओं पर नए सिरे से शोध और क्लीनिकल ट्रायल करने की जरूरत नहीं होती, इसलिए उन की लागत बढ़ने का कोई दबाव नहीं होता. उन्हें जो रजिस्टर्ड कंपनी चाहे, बना सकती है और बाजार में बेच सकती है. ऐसी दवाएं जैनरिक दवाएं कहलाती हैं और इन की कीमतें भी काफी कम होती हैं.

डाक्टरों का परहेज

मरीजों से बीमारी का इलाज कराते समय तमाम परहेज बरतने की सलाह देने वाले डाक्टर खुद भी एक चीज से परहेज करते हैं, यह है जैनरिक दवाएं लिखने का परहेज. इलाज के लिए दिए वाले परचे पर वे ज्यादातर ब्रैंडेड दवाएं लिखते हैं, न कि जैनरिक. उन का आग्रह यह भी रहता है कि रोगी के मर्ज से संबंधित जांचें (मैडिकल लैब टैस्ट) उन की सुझाई पैथलैब में कराईर् जाएं और जो दवाएं उन्होंने परचे में लिखी हैं, वे या तो उन्हीं के क्लीनिक या अस्पताल से जुड़े मैडिकल स्टोर से खरीदी जाएं या फिर उन के आसपास के ऐसे मैडिकल स्टोर से जहां से उन्हें नियमित कमीशन मिलता है.

आज डाक्टर परामर्श की ऊंची फीस भी लेते हैं. शहरों में तो यह फीस अकसर 500 रुपए से ले कर 1,500 रुपए तक होती है. इस कीमत में वे चाहें तो अपने पास से जैनरिक दवाएं मुफ्त दे सकते हैं, पर कमीशन के लालच में वे मरीजों को ब्रैंडेड दवाएं लेने को मजबूर करते हैं. अपनी बीमारी और जान की जरा सी भी फिक्र करने वाला मरीज इस मामले में डाक्टरों से कोई बहस नहीं कर पाता है.

यही नहीं, अगर कोई डाक्टर जैनरिक दवा लिख दे, तो मैडिकल स्टोर वाले वे दवाएं मरीजों को इसलिए नहीं देते क्योंकि उन पर उन्हें ज्यादा कमीशन नहीं मिलता. ऐसे में मरीज मजबूर हो कर महंगी दवा ही खरीदता है. पर ऐसा करना यानी डाक्टरों को कानूनन जैनरिक दवाएं लिखने को बाध्य करना और मैडिकल स्टोर्स पर जैनरिक दवा बेचना कानूनन जरूरी किया जा सकता था, पर अफसोस कि पिछली सरकारें यह काम नहीं कर पाईं.

यह सवाल अकसर उठाया जाता रहा है कि जब दूसरे देशों में डाक्टरों के लिए जैनरिक दवाएं लिखना कानूनन अनिवार्य है तो भारत में क्यों नहीं? हाल के अरसे में वर्ष 2013 में मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया ने भी डाक्टरों से जैनरिक दवाएं लिखने को कहा था और यह ताकीद की थी कि ब्रैंडेड दवा सिर्फ उसी केस में लिखी जानी चाहिए जब उस का जैनरिक विकल्प मौजूद न हो. इस बारे में संसद की एक स्थायी स्टैंडिंग कमेटी शांता कुमार की अध्यक्षता में बनाई गई थी, जिस ने सरकार से कहा था कि वह डाक्टरों के लिए केवल जैनरिक दवाएं लिखना अनिवार्य करे और इस के लिए जल्द से जल्द कानून बनाए. उस का यह भी कहना था कि देश में पहले से स्थापित दवा कंपनियों में एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) पर पूरी तरह पाबंदी लगाई जानी चाहिए.

आम आदमी की सेहत पर भारी

असल में, वाणिज्य विभाग की इस स्थायी संसदीय कमेटी ने दवा निर्माण (फार्मास्युटिकल) सैक्टर में एफडीआई के मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी, जिस में उस ने कहा था कि डाक्टरों के एक बड़े तबके का अलगअलग वजहों से जैनरिक दवाएं लिखने से परहेज करना आम आदमी की सेहत पर भारी पड़ रहा है.

कमेटी की रिपोर्ट में इस बात पर गहरी चिंता जताई गई थी कि हाल के वर्षों में बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों ने एक के बाद कई नामी भारतीय दवा कंपनियों का अधिग्रहण किया है, जिस का असर दवाओं की महंगाई के रूप में दिखाई पड़ रहा है. इसलिए जरूरी है कि देश में पहले से स्थापित फार्मा कंपनियों में विदेशी निवेश पर पूरी तरह से पाबंदी लगाई जानी चाहिए.

इस बारे में कमेटी के चेयरमैन शांता कुमार ने आंकड़े पेश करते हुए बताया था कि हाल के वर्षों में देश के फार्मा सैक्टर में 67 विदेशी निवेश हुए. इन में से ज्यादातर मामलों में भारतीय दवा कंपनियों को बाजार रेट से 8-9 गुना ज्यादा दाम पर खरीदा गया था. शांता कुमार ने तब कहा था कि देश के मरीजों को मिल रही सस्ती दवाओं के खिलाफ यह एक बहुत बड़ी साजिश है. इसी वजह से देश की जनता को दवाओं की भारी कीमत चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

रिपोर्ट में इस तथ्य की तरफ भी इशारा किया गया था कि विदेशी दवा कंपनियों की भारत में नई दवाएं खोजने में कोई दिलचस्पी नहीं होती. वे यहां महज ऐसी दवाएं बनाना चाहती हैं, जिन से उन्हें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा मिल सके. इस का सुबूत यह है कि जिस फार्मा सैक्टर में पिछले कुछ अरसे में 18,678 करोड़ रुपए का विदेशी निवेश हुआ, वहां रिसर्च के नाम पर महज 524 करोड़ रुपए रखे गए.

सवाल जैनरिक दवाओं की क्वालिटी का जैनरिक दवाओं के मामले में भारत की गिनती दुनिया के बेहतरीन देशों में होती है. फिलहाल, हमारा देश दुनिया का तीसरा सब से बड़ा उत्पादक देश बना हुआ है. यह हर साल 42 हजार करोड़ रुपए की जैनरिक दवाएं एक्सपोर्ट करता है.

जैनरिक दवाओं के मामले में भारत की प्रतिष्ठा इस से साबित होती है कि यूनिसेफ अपनी जरूरत की 50 फीसदी दवाएं भारत से खरीदता है. भारत कई अफ्रीकी देशों में सस्ती जैनरिक दवाइयां भेजता आ रहा है. इस से स्पष्ट है कि भारत में आम जनता के लिए सस्ती जैनरिक दवाइयां आसानी से बनाई व बेची जा सकती हैं.

चूंकि भारतीय दवा कानून के तहत प्रिस्क्राइब की जाने वाली दवाओं के विज्ञापन की इजाजत नहीं है, इसलिए फार्मा कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए मैडिकल रिप्रेजैंटेटिव का सहारा लेती हैं, जो डाक्टरों, मैडिकल स्टोर चलाने वालों को कमीशन व गिफ्ट का लालच दे कर बेहद महंगी ब्रैंडेड और ब्रैंडेड जैनरिक दवाओं की बिक्री करवाते हैं.

ऐसा कहने वाले विशेषज्ञों और डाक्टरों की कमी नहीं है जिन की राय में ब्रैंडेड दवाओं की गुणवत्ता भी अच्छी होती है. पर वे भी इस से इनकार नहीं करते हैं कि अगर कीमत को देखें, तो जैनरिक दवाओं से कराया जाने वाला इलाज किसी से कमतर नहीं होता. हालांकि ब्रैंडेड और जैनरिक की बहस में वे इतना अवश्य कहते हैं कि कहीं इस से फोकस दवा की गुणवत्ता के बजाय उस के मूल्य पर ही न चला जाए.

मुनाफे का द्वंद्व और जनऔषधि स्टोर

अगर सवाल मुनाफे का हो, तो कैमिस्ट यानी दवा बेचने वाला दुकानदार वही दवा बेचेगा, जिस में उसे ज्यादा मुनाफा हो. ऐसे में लोगों को जैनरिक दवाएं दिलाने का एक उपाय यह है कि सरकारी अस्पताल ये दवाएं अपने मरीजों को मुफ्त में दें, जैसे कि राजस्थान के हर सरकारी अस्पताल से मुफ्त दवाइयां दी जाती हैं. करीब 400-500 करोड़ रुपए की योजना के तहत मरीजों को दी जाने वाली ये सारी दवाएं जैनरिक होती हैं.

यही फार्मूला अगर देश के हर राज्य में लागू कर दिया जाए, तो ब्रैंडेड बनाम जैनरिक का आधे से ज्यादा मर्ज यों ही खत्म हो जाए. हालांकि जब तक ऐसा नहीं होता, डाक्टरों को इस के लिए बाध्य करना जरूरी है कि वे मरीजों के परचे पर दवाओं के ब्रैंड के बजाय उन के जैनरिक नाम ही लिखें.                        

दुष्चक्र दवा की महंगाई का

सरकार को भी इस का अंदाजा है कि कैंसर, दिल के रोगों, किडनी और लिवर आदि से जुड़ी जीवनरक्षक दवाओं को कैमिस्ट व डिस्ट्रीब्यूटर उन की लागत की 11 गुना ज्यादा कीमत पर बेचते हैं. लेकिन अफसोस कि उन पर नियंत्रण की कोई कोशिश सिरे नहीं चढ़ पाती है.

फार्मा कंपनियां क्रोसिन, डिस्प्रिन जैसी आम जैनरिक दवाओं की कीमतें नहीं बढ़ा पाती हैं क्योंकि इन में भारी प्रतिस्पर्धा है, लेकिन कैंसर, हार्ट, एचआईवी और किडनी, लिवर आदि बीमारियों के इलाज में काम आने वाली दवाओं को मनमानी कीमतों पर बेचा जाता है.

भारत सरकार के 2013 के आदेश के मुताबिक, 10 मिलीग्राम के डोक्सोरुबिसिन हाइड्रोक्लोराइड इंजैक्शन की कीमत 217 रुपए होनी चाहिए, लेकिन बिहार में एक फार्मा कंपनी का यह इंजैक्शन 9 हजार रुपए पर बिकता पाया गया. इसी तरह 50 मिलीग्राम का कैंसररोधी इंजैक्शन आईडौक्स 4,313 रुपए पर बेचा जा रहा था, जबकि इस की अधिकतम कीमत 1,085 रुपए होनी चाहिए.

जीवनरक्षक दवाएं 2 कारणों से महंगी हैं. एक तो उन्हें बनाने वाली फार्मा कंपनियां ही उन्हें महंगा बेचती हैं क्योंकि उन्हें उन पर पेटेंट हासिल है और वे एकाधिकार वाली स्थिति में हैं. दूसरे, कैमिस्ट और डिस्टीब्यूटर्स का गठजोड़ है जो अस्पतालों में डाक्टरों से मिलीभगत कर के उन्हीं कंपनियों की दवाओं को परचे पर लिखवाता है जो आम मैडिकल स्टोरों पर बेची जाती हैं.

फार्मा कंपनियों की मनमानी

फार्मा कंपनियां किस प्रकार दवाओं को महंगा कर रही हैं, इस की एक बड़ी मिसाल कुछ ही समय पहले एड्स, कैंसर व अन्य जीवाणुजनित बीमारियों की रोकथाम में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल होने वाली दवा डाराप्रिम के रूप में मिल चुकी है. साल 2015 में महीनेभर की इस दवा की खुराक की कीमत साढ़े 13 डौलर से रातोंरात 5 हजार प्रतिशत बढ़ा कर 750 डौलर कर दी गई. इस के लिए डाराप्रिम को बनाने व पूरी दुनिया में बेचने का अधिकार हासिल करने वाली अमेरिकी कंपनी ट्यूरिंग फार्मास्युटिकल ने इस के महंगे पेटेंट का हवाला दिया था. लेकिन जब पूरी दुनिया से इस पर दवा की कीमत घटाने का दबाव पड़ा, तो इस के अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि कीमत में 10 फीसदी तक की कमी कर दी जाएगी.

डाराप्रिम की तरह ही टीबी के उपचार की अहम दवा साइक्लोसेराइन की 30 गोलियों की कीमत भी चंद दिनों के भीतर 500 डौलर से बढ़ा कर 10,800 डौलर कर दी गई और लोग उसे खरीदने को मजबूर हुए.

दवाओं की कीमत बढ़ाने के लिए फार्मा कंपनियां 2 तर्क देती हैं. एक तो यह कि उन्हें चूंकि प्रमुख दवाओं के पेटेंट ऊंची कीमत के बदले में मिलते हैं, जिस की भरपाई वे इसी तरह कीमतें बढ़ा कर कर सकती हैं. दूसरे, नई दवाओं के विकास पर उन्हें आरऐंडडी यानी शोध व विकास पर भारी पूंजी लगानी लड़ती है. लेकिन ये सिर्फ बाहरी कारण हैं. सचाई यह है कि दवा कंपनियां इस के पीछे की असली वजहों को छिपाती हैं, जैसे यदि मामले में अमेरिका का उदाहरण लिया जाए, तो वहां की फार्मा कंपनियां अमेरिकी राजनीतिक सिस्टम में भारी पैसा इसी मकसद से झोंकती हैं कि उन की इच्छित पार्टी की सरकार के सत्ता में आने पर उन्हें मनमानी कीमतों पर दवाएं बेचने की छूट मिल जाएगी. कोई संदेह नहीं है कि दवा कंपनियां सारे खर्च की भरपाई आखिरकार आम मरीजों से ही करती हैं और उन्हें ऐसा करने की छूट सरकारें ही देती हैं.

उल्लेखनीय है कि फिलहाल दवा बेचने वाले थोक व खुदरा कैमिस्ट दवाओं की बिक्री पर तगड़ा मुनाफा कमाते हैं. मोटेतौर पर देश में 8 लाख खुदरा दवा विक्रेता हैं, जिन का सालाना कारोबार 80 हजार करोड़ रुपयों का है. फिलहाल जिन दवाओं की कीमत पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, उन की बिक्री पर उन की कमाई का न्यूनतम मार्जिन 30 फीसदी और इस से भी ज्यादा होता है, जिस में से 20 फीसदी मुनाफा तो अकेले रिटेलर का होता है. मूल्य निमंत्रण वाली दवाओं पर भी यह मुनाफा न्यूनतम 24 फीसदी होता है, जिस में 16 फीसदी मुनाफा रिटेलर का और 8 फीसदी मुनाफा होलसैलर कैमिस्ट का होता है.

प्यूर्टो रिको: मजा अमेरिका का, आनंद गोवा का

फ्लोरिडा, कैलिफोर्निया जैसे कुछ राज्यों को छोड़ कर अमेरिका के ज्यादातर राज्यों में सर्दी का मौसम भारतीयों के लिए असहनीय हो जाता है. ऐसे में अमेरिका के वंडर्स देख पाने के बजाय भारतीय टूरिस्ट गरम होटलों, कमरों, आर्ट गैलरियों में या फिर म्यूजियमों आदि में अपना समय व्यतीत करते हैं, क्योंकि सर्दी के मौसम में यहां हर घर, दुकान, मौल, गैलरी, म्यूजियम, भवन, औफिस अंदर से गरम रखा जाता है. सर्दी में जबतब बर्फ गिरती है. हिम, पाला, तुषार के इस मौसम के लिए आप को छाता, गरम कपड़े, कोट, दस्ताने, कैप तो चाहिए ही, शायद स्नो शूज भी खरीदने पड़ें.

ऐसे मौसम में आप की अमेरिकी यात्रा के सिलसिले में एक खास सुझाव यह है कि इस यात्रा के बीच समय निकाल 1 हफ्ते के लिए प्यूर्टो रिको हो आएं. अमेरिका के इस सहदेश की राजधानी सैन जुआन है. यहां जा कर आप को अमेरिका की कड़ाके की सर्दी से न केवल राहत मिलेगी, बल्कि सागर के मध्य बसे इस देश में आप को गोवा जैसा आनंद भी मिलेगा. नारियल, केले, पपीते के मनोहारी वृक्ष, गोवा जैसी गरमाहट, सुंदर चौपाटियां, सागर की मादक हवा, स्विमिंग पूल, भरपूर हरियाली आदि आप का मन मोह लेंगे. यहां के लोग भी हमीं जैसे हैं. अंगरेजी भाषा से यहां काम चल जाएगा, यह भी लाभ है.

नया जोश नई ऊर्जा

प्यूर्टो रिको देखने के बाद मन में पहला विचार यही आया कि वहां के आनंदकारी अनुभव गृहशोभा के पाठकों से शेयर करूं. खास बात यह है कि अगर आप ने अमेरिका का वीजा प्राप्त कर लिया है तो प्यूर्टो रिको को देखने से आप को कोई नहीं रोक सकता. जी हां, अमेरिकी वीजा व करेंसी ही चलते हैं वहां. दिलचस्प तथ्य यह भी है कि मेजर महानगरों न्यूयौर्क, अटलांटा, शिकागो, लास एंजिल्स, मियामी आदि से प्यूर्टो रिको की सीधी उड़ानें हैं जोकि आप को जल्दी सैन जुआन पहुंचा देंगी. इन सुविधाओं के अलावा यहां खानापीना, घूमना वगैरह भी अमेरिका के मुकाबले सस्ता है.

वहां जा कर अमेरिका की कड़ाके की सर्दी से 1 सप्ताह राहत पा जश्न मनाएं, फिर अमेरिका देखने पहुंचें, नए जोश, नई ऊर्जा के साथ. मैं परिवार संग अमेरिका गई तो मैं ने भी यही किया. जी हां, 6 दिन का वह सुंदर ट्रिप मुझे भूलता नहीं. तो आइए, आप को भी प्यूर्टो रिको घुमा लाऊं…

प्यूर्टो रिको में कायदाकानून अमेरिका का ही चलता है. अत: इसे अमेरिका का 51वां राज्य भी बोला जाता है, पर आप यहां महसूस करेंगे कि यह आजाद देश जैसा ही है. यहां की प्रमुख भाषा स्पैनिश है, यद्यपि अंगरेजी बोलसमझ लेने वाले पर्यटकों को कोई दिक्कत नहीं. यहां साइनबोर्ड स्पैनिश में हैं, फिर भी हर साल यहां 40-45 लाख टूरिस्ट आते हैं. हमें कुछ लोग ऐसे भी मिले जोकि पूरी सर्दी यहीं बिता कर बाद में अमेरिका जाते हैं.

विशाल और भव्य दृश्य

मैं अपने पति, बेटेबहू, पोतेपोती के संग न्यूयौर्क से निकली तो हम लोग 4 घंटों में ही सैन जुआन पहुंच गए. युनाइटेड की इस फ्लाइट में पानी और जूस तो मुफ्त सर्व हुआ, परंतु खाने का सामान खरीदना पड़ा. सैन जुआन में दुनिया के कई देशों से रोज फ्लाइटें आती हैं. अत: यह काफी बड़ा एअरपोर्ट है. खाने के स्थानीय व अमेरिकन जौइंट्स सभी एअरपोर्ट पर उपलब्ध हैं. यहां एअरपोर्ट पर थोड़ा खापी कर हम ने यहीं से किराए पर एक बड़ी कार ले ली, जिस ने 6 दिन का हम से 500 डौलर किराया लिया. इसे ड्राइव कर फिर अपने होटल विंढम पहुंचे, जहां 5 रातें ठहरने के लिए हम ने 3 कमरों का कोंडो किराए पर लिया. इस का टोटल किराया 1,500 डौलर था. कोंडो में बढि़या फर्नीचर, बरतन, फ्रिज, माइक्रोवेव जैसी सभी सुविधाएं थीं. थोड़ीबहुत खाद्यसामग्री हम बाजार से खरीद लाए. बाकी होटल से मंगाते थे.

2-3 घंटे आराम कर हम 4 बजे शहर देखने निकले. इस पहले दिन हमें पूरा माहौल खूब सुंदर दिखा मानो हम गोवा में हों. अलबत्ता गोवा के मुकाबले भीड़ व ट्रैफिक काफी कम था. खानेपीने और सामान खरीदने के लिए अमेरिकन रेस्तरां व दुकानों के साथसाथ स्थानीय रेस्तरां व दुकानें भी थीं. सड़क के किनारे हम ने केले, सेब, पपीते वगैरह भी खरीदे, न्यूयौर्क से आधे भाव में. फिर हम पहुंच गए पुराने सैन जुआन इलाके में एक सुंदर पुराना किला देखने.

1539 में इस किले का निर्माण स्पेनी लोगों ने शुरू किया था और जब पूरा बन गया तो इसे नाम दिया गया ‘कैस्टिलो सैन फैलिपे डेल मोरो.’ आज इस के अवशेष देखें तो भी मुंह से ये शब्द निकलेंगे कि विशाल, भव्य, रोमांचक. सागर से 140 फुट ऊंचा निर्मित यह किला पुराने सैन जुआन इलाके में है, जहां खूब रौनक है. असंख्य छोटीछोटी दुकानें हैं और हैं पुराने किस्म के सुंदर मकान. स्थानीय भोजन के अनेक रेस्तराओं में चुन कर एक में हम ने भोजन किया. रेस्तरां के बाहर स्ट्रीट डांसर व गायक टूरिस्टों के लिए परफौर्म कर रहे थे. लाइव डांस, म्यूजिक और पेट भर भोजन ने हमें करीबकरीब मदहोश कर दिया.

रोमांचक नजारे

एक और पुराना किला भी है सैन जुआन में जिस का नाम है ‘कैसिलो द सैन क्रिस्टोबल’ परंतु वह बंद हो चुका था. अत: देख नहीं पाए. पुराने सैन जुआन में हम ने एक ऐसी दुकान भी देखी जिस पर लिखा था, ‘आयुर्वेदिक मैडिसिन’ परंतु दुकान बंद थी. बहरहाल, हमारा पहला दिन संतुष्टि भरा गुजरा. रात को बढि़या नींद आई, मगर पंखा चला कर. लगा हम गोवा के किसी होटल में हैं अपनों के बीच. अगले दिन नाश्ता कर स्विमिंग कौस्ट्यूम में स्विमिंग पूल पहुंच गए. होटल के ग्राउंड फ्लोर पर 4 पूल्स हैं. इन में एक छोटे बच्चों के लिए है. बड़े बच्चों के लिए पूल में कूदने के लिए टेढ़ीमेढ़ी मजेदार स्लाइड्स हैं. घंटों जी भर के नहाए. बीचबीच में पास बने रेस्तरां में खातेपीते भी रहे.

बाद में होटल की दीवार से सटे सागर तट पर खूब घूमे. सागर जल एकदम स्वच्छ था. कहीं कोई गंदगी नहीं. सागर जल सूर्य की किरणों को पकड़ कभी सुनहरा, कभी हरा तो कभी नीला रंग इख्तियार कर लेता. 3-4 बजे कमरे में आ कर सो गए, फिर शाम को अनोखे अनुभव के लिए बायो बे गए. कहते हैं कि पूरी दुनिया में केवल 5 बायो बे स्थल हैं, जिन में से 3 प्यूर्टो रिको में हैं. इस नजरिए से प्यूर्टो रिको अनोखा है. हम ने इन में केवल एक ही बायो बे देखा और वह भी 2 किस्तों में, रात के वक्त. दूसरे और तीसरे दिन रात को 2-2 टिकट ही मिल पाए. रात 8 से 10 बजे के बीच देखे ये बायो बे वाकई रोमांचक थे.

अनोखा पर्यटक स्थल

सागर के कुछ ऐसे उथले अनोखे स्थल होते हैं जहां मैंग्रोट्ज के मध्य कुछ अद्भुत जीवाणु पनपते हैं, जो रात के समय जुगनुओं की तरह चमकते हैं. ये लाखोंकरोड़ों जीटाणु नीले, हरे प्रकाश से और ज्यादा चमकते हैं. इन्हीं स्थलों को बायो बे कहा जाता है, परंतु इन के पनपने के लिए खास कुदरती इकोलौजी चाहिए. इन स्थलों पर आप पैट्रोल, डीजल वाली मोटरबोट नहीं ले जा सकते, क्योंकि प्रदूषण इन जीवाणुओं को नष्ट कर देता है. इसीलिए हम लोग चप्पू चला कर साधारण बोटों से एक लीड बोट के पीछेपीछे बायो बे देखने गए. इस प्रकार की बोटिंग को कयाकिंग कहा जाता है. चढ़तेउतरते वक्त आप को कमर तक पानी में घुसना पड़ता है, परंतु प्रकृति की इस अद्भुत लीला का आनंद ही जुदा है. प्यूर्टो रिको की जो बायो बे हम ने देखी वह सैन जुआन में ही है. फ्जार्दो नामक स्थान पर बायो बे की बुकिंग बहुत पहले हो जाती है. अत: हमें वही टिकट मिल पाए थे जो कैंसल हुए थे. इसी कारण हम 2 किस्तों में गए थे.

2 अन्य बायो बे हैं- ला पार्गुयेरा और वियेक्स मैस्किटो बे. यद्यपि हम इन्हें देख नहीं पाए पर इन की भी तारीफ खूब सुनी. सैन जुआन में हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि टूरिस्टों की अधिकता के कारण इन बे स्थलों पर प्रदूषण बढ़ रहा है और जीवाणुओं की संख्या कम हो रही है. हो सकता है कि कुछ वर्षों में ही ये बायो बे खत्म हो जाएं. प्यूर्टो रिको में अमेरिकन मैक डोनाल्ड, सबवे, डंकिन डोनट्स वगैरह सभी हैं, पर हम ‘चिलीज’ में ज्यादा जाते रहे. यहां वैजिटेरियन फूड मिलता है. चायकौफी, दूध वगैरह का स्टाक तो कमरे में ही था, बाहर से लेने की जरूरत नहीं पड़ी. इस प्रकार 3 दिन आराम से गुजर गए. तीसरी रात भी जी भर कर सोए. होटल के कमरे में आप को अतिरिक्त सुविधाएं चाहिए हों तो पहले ही सूचित कर देना बेहतर रहता है. वैसे जब भी आप होटल स्टाफ से बात करेंगे, वे सेवा के लिए तत्पर दिखाई देंगे.

अद्भुत प्राकृतिक नजारे

चौथे दिन हम अमेजौन, इंडोनेशिया, कांगो आदि वर्षावनों को देखने गए. छातेवाते लिए और थोड़े सैंडविच वगैरह बांधे निकल पड़े रेन फौरैस्ट देखने. कुछ किलोमीटर ही हमारी कार चली होगी कि घने वृक्ष शुरू हो गए. अचानक एक सुंदर बड़ा झरना दिखा तो कार रोक उस का आनंद लिया. उसे ‘ला कोका’ फौल कहते हैं. आगे 1-2 किलोमीटर के बाद हम पहुंच गए ‘एल यंग’ रेन फौरैस्ट. वाह, क्या नजारा. अद्भुत वृक्षलताएं, स्थानीय तोते और कोकी मेढक (बहुत छोटा मेढक है यह मगर खास आवाज में चिल्लानाटर्राना खूब जानते हैं), अन्यान्य लिजर्ड, रंगबिरंगे वृक्ष. टूरिस्टों के लिए जंगल में कैनोपियां बनी हैं ताकि अचानक बारिश शुरू होने पर उन में शरण ले सकें.

एक कैनोपी में बैठ कर सैंडविचचाय का आनंद लिया, फिर थोड़ा और घूमे. वापस आने का मन नहीं था. बीचबीच में वर्षा होती रही. 3-4 बजे भारी मन से कोंडो लौटे. थोड़ा आराम किया, खायापिया और फिर शाम ‘चिलीज’ रेस्तरां के नाम की. यहां खूब भीड़ थी. पेट भर खाया फिर कोंडो लौट आए.

दुनिया में हरी, नीली, पिंक और सफेद बालू वाले अनेक बीच हैं. 5वें दिन हम जल्दी जगे, बिना नहाए निकल पड़े कुलेब्रा आइलैंड के लिए जहां सफेद बालू वाले कई बीच हैं. इस के लिए पहले हम ने एक फैरी ली, जिस ने हमें कुलेब्रा पहुंचाया. फिर एक जीप किराए पर ले कर हम कुलेब्रा के सर्वाधिक लोकप्रिय बीच फ्लेमेंको पहुंचे. यह बीच विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध बीचेज में शामिल है. यहां कोई पर्यटक सनबाथ, कोई स्नान, कोई कैंप आउट, कोई बोटिंग, कोई कयाकिंग तो कोई अन्य स्नोर्कलिंग में व्यस्त था. इस बीच को ‘बीच औफ व्हाइट सैंड्स ऐंड क्लियर ब्लू वाटर्स’ यों ही नहीं कहते. जल वाकई नीला व स्वच्छ था. हम ने भारत में इतना सुंदर, स्वच्छ, बढि़या बीच पहले नहीं देखा. यहां तक कि अमेरिका का ऐटलांटिक सिटी बीच भी इतना सुंदर नहीं. बहरहाल, कुल मिला कर लगा हम अपने प्रिय गोवा में हैं. शाम तक होटल वापस आ गए. फिर स्विमिंग पूल में घुस जलक्रीड़ा में मग्न हो गए.

नियमों का पालन जरूरी

स्विमिंग पूल्स के पास एक छोटा बगीचा भी है जहां 10 इगुआना पाली हुई हैं. टूरिस्ट उन्हें पत्ते खिला कर उन से दोस्ती करते हैं. इगुआना यहां की प्रसिद्ध लिजर्ड है जोकि बेबी मगरमच्छ जैसी लगती है. हम ने पहले इगुआना किसी भी म्यूजियम में नहीं देखी थीं. पूल्स से निकल हम इगुआना देखने चले गए पर खेलखेल में जब इगुआना ने हमारे पोते को काट लिया तो हम टैंशन में आ गए. पर गार्ड ने आश्वस्त किया कि कटे स्थान को साबुनपानी से धो निश्चिंत हो जाएं.

अगले दिन होटल से चैकआउट कर एअरपोर्ट के लिए निकल पड़े. फ्लाइट पकड़ न्यूयौर्क आ गए. नई ऊर्जा और नए ज्ञान के साथ लोग जिस रेसिज्म की बातें करते हैं वह हम ने न अमेरिका में महसूस की और न ही प्यूर्टो रिको में. हम तो यही कहेंगे कि वसुधा वाकई एक कुटुंब है. खूब पर्यटन कीजिए और कुटुंबीजनों से मिलते रहिए. हां, कोई ऐसा काम वहां न करें जिस कारण लज्जित होना पड़े खासकर कचरा तो कचरा डब्बे में ही डालें. स्थानीय नियमों का पालन करें और पर्यटन का पूरापूरा लुत्फ उठाएं.

ले रहीं हैं पर्सनल लोन?

ये बात तो आप भी समझती ही हैं कि पर्सनल लोन उसी समय लें जब आपको किसी काम के लिए तुरन्त धन की आवश्यकता हो. किसी भी व्यक्ति के समक्ष वित्तीय संकट कभी भी आ सकता है. तब ये जरुरी है कि इससे निपटने के लिए वे कैसे पूरी तरह से तैयार रहते हैं.

ऐसी परिस्थितियां तभी पैदा होती है जब आय के अनुपात में बचत कम होती है और खर्च बढ़ जाते हैं. अकस्मात खर्च के कई कारण होते हैं, जैसे – छुट्टीयां बिताने के लिए कहीं जाना, स्कूल और कॉलेज की फीस जमा कराना, वैवाहिक खर्च, घर के बढ़े हुए खर्च या उपभोक्त सामान की खरीद पर अनावश्यक खर्च आदि.

इन सभी खर्चों से वित्तीय संकट उपस्थित हो जाता है. यहां हम आपको कुछ ऐसी बाते बताने जा रहे हैं, जिन्हें आपको पर्सनल लोन लेते वक्त ध्यान में रखना जरूरी है…

लोन लेने से पहले सिबिल (CIBIL) स्कोर चेक करें

पर्सनल लोन के लिए आवेदन करने से पहले आपको सिबिल स्कोर को चेक कर लेना चाहिये. ऋण चुकाने की आपकी क्षमता के आधार पर ही पर्सनल लोन पर ब्याज की दर निर्धारित की जाती है, क्योंकि यदि आपके खर्च के अनुपात में बचत कम है तो ब्याज की दर बढ़ जाती है. यदि आपका क्रेडिट स्कोर ज्यादा है, तो बैंक आपसे अधिक ब्याज की दर वसूलता है. यदि आप लोन की र्इएमआर्इ नहीं चुका पाती हैं, तो आपकी ऋण चुकाने के संबंध में आपकी साख घट जाती है. CIBIL स्कोर चेक करने के लिए मासिक, छमाही और वार्षिक फीस लगती है.

प्रोसेसिंग फीस

बैंक आपके पर्सनल लोन के आवेदन पर कार्रवाई करने के लिए प्रोसेसिंग फीस लेता है, जिसको ले कर बैंकों में आपसी प्रतिस्पर्धा है. निजी बैंक सरकारी बैंको की तुलना में अधिक प्रोसेसिंग फिस लेते हैं.

पर्सनल लोन लेने से पहले जांच करें

त्यौहार या अन्य अवसर पर बैंक प्रोसेसिंग फीस नहीं लेते हैं. वे अपनी इस पालिसी के संबंध में बैंक विज्ञापन देते रहते हैं. आपको इस संबंध में पर्सनल लोन लेने के पहले जांच कर लेनी चाहिये.

जरुरत हो तभी लें पर्सनल लोन

आवश्यकता अनुसार ही लोन लें, क्योंकि अधिक लोन लेने पर आपकी इएमआर्इ और लोन चुकाने की अवधि बढ़ जाती है, जिससे ब्याज का भार अधिक वहन करना पड़ता है. वित्तीय क्षेत्र में यह बात कही जाती है कि पर्सनल लोन पर बैंक सर्वाधिक ब्याज वसूलते हैं . पर्सनल लोन सुरक्षित और असुरक्षित दोनों होता है, क्योंकि इसे लेने के लिए अपेक्षाकृत बहुत कम दस्तावेज जमा कराने रहते हैं. कर्इ बार बैंक व्यक्ति की बचत स्थिति को देखते हुए 24 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज वसूलते हैं. ब्याज की दर सभी बैंकों की एक जैसी नहीं रहती है.

ब्याज दर का निर्धारण

बैंक वार्षिक अवधि के आधार पर ब्याज की दर निर्धारित करता है, अत: समयावधि के पूर्व ही लोन जमा कराने पर बैंक चार्जेज लगाता है. यह भी सम्भावना रहती है कि पहले ब्याज अदा करने पर बैंक चार्जेंज नहीं लगाये, परन्तु बैंक लोन देने पर वार्षिक लागत कितनी आयेगी इसी का पूर्वानुमान लगाता है.

समय पर चुकाएं ईएमआई

पर्सनल लोन की ईएमआई को समय पर ही चुकाएं, यदि आप ऐसा नहीं करती हैं तो आपका क्रेडिट स्कोर खराब हो सकता है और भविष्य में फिर आपको लोन मिलने या क्रेडिट कार्ड लेने में परेशानी हो सकती है.

आम बढ़ाए बालों की खूबसूरती

बालों की समस्या से हर दूसरा व्यक्ति परेशान रहता है. उम्र के साथ बालों का घनापन कम होना या पतला हो जाना और झड़ना आम बात है. हालांकि ये समस्या केवल बढ़ती उम्र का परिणाम नहीं है बल्कि अन्हेल्दी डायट, लाइफस्टाइल और स्ट्रेस भी इसके मुख्य कारण हैं.

आपके इस समस्या क समाधान फलों का राजा आम के पास है. आम का हेयर पैक बालों के लिए के लिए कई तरह से फायदेमंद है. इसे आप शहद, एलोवेरा, दही या किसी अन्य चीज में मिला कर लगा सकती हैं. इसे लगाने से आपको महीने भर में ही परिवर्तन दिखना शुरू हो जायेगा.

बालों को दे पोषण

मैंगो हेयर पैक को बालों पर लगाने से, बालों को पोषण मिलता है, इसके साथ ही यह आपके बालों को घना और स्वस्थ बनता हैं. यही नहीं आम में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट की वजह से आपके बाल खूबसूरत और मजबूत होते हैं.

डैंड्रफ

डैंड्रफ एक ऐसी समस्या है जिसे आसानी से छुटकारा नहीं मिलता. लेकिन आम एक ऐसा फल है जिसमें एंटीसेप्टिक गुण पाए जाते हैं जिससे डैंड्रफ ठीक हो जाता है. आम को किसी अच्छे प्राकृतिक सामग्री के साथ मिलाएं और आपने बालों पर लगाएं. इससे बालों का डैंड्रफ जल्दी ठीक होगा.

बालों का विकास

अगर आपको लंबे बालों की चाह है तो अपने बालों पर मैंगो हेयर पैक लगाएं. इससे आपके बालों को मजबूती मिलेगी साथ ही आपके बाल लंबे और घने होने लगेंगे.

डल बालों को शाइन दे

डल या मुरझाये बालों से आपकी सुंदरता में कमी आती है. बालों की सुंदरता को बनाये रखने के लिए दुकान से खरीदे गए सीरम की बजाये मैंगो हेयर पैक लगाएं. आम में मौजूद विटामिन और पोषक तत्व आपके बालों की जड़ों को पोषण दें और इन्हें चमकदार बनाते हैं.

दो मुहे बालों से छुटकारा

अगर आपको दो मुहे बालों से छुटकारा पाना है तो महीने में एक बार मैंगो हेयर पैक लगाएं. इसमें मौजूद विटामिन से आपके दो मुंहे बाल ठीक होने लगेंगे. हर महीने बालों को कटवाने से अच्छा है कि आप इस हेयर पैक का इस्तेमाल करें.

बालों को पतला होने से बचाये

पतले बालों से आपकी खूबसूरती कम होने लगती है घने और लंबे बाल किसे नहीं अच्छे लगते हैं. बालों को घना बनाये रखने के लिए. इन पर हफ्ते में एक बार मैंगो हेयर पैक लगाएं. इससे आपके बेजान बालों को जान आएगी और आपकी खूबसूरती में भी.

बालों को सफेद होने से बचाये

आम में मौजूद विटामिन ए और सी से बालों का सफेद होना रुक जाता है. इसके लिए हफ्ते में एक बार पका हुआ आम अपने बालों पर लगाएं. इससे बालों की जड़ें मजबूत होंगी और बाल भी स्वस्थ होने लेंगें. यह बाजार में मिलने वाले हेयर कलर के ज्यादा सुरक्षित है.

इफ्तार स्पेशल : खजूर शेक

रमजान का महीना चल रहा है. ऐसे में फिट रहने के लिए आपको हेल्दी और टेस्टी डाइट लेना चाहिए. इसलिए आज हम आपको इफ्तार स्पेशल खजूर शेक की रेसिपी बताएगें. इसका स्वाद भी खूब बढ़िया होता है और इससे पेट भी काफी देर तक भरा रहता है.

सामग्री

खजूर

3-4 काजू

2 छोटी इलायची

2 कप दूध

विधि

सबसे पहले खजूर को अच्छी तरह धो लें. अब डंठल हटाकर खजूर के टुकड़ों को पतले टुकड़ों में काट लें. ग्राइंडर में खजूर के टुकड़े और दूध डालकर ग्रांइड कर लें.

अब इलायची को कूटकर पाउडर बना लें और ग्राइंडर में इलायची डालकर इसे फेंट लें. खजूर का शेक तैयार है. इसे ग्लास में डालकर सर्व करें.

अपनी बॉडी टाइप के अनुसार चुनें टॉप

ऑफिस की पार्टी में शानदार लुक देने वाला पेपलम टॉप हो या दोस्त की सगाई में सीपियों से कढ़ा हुआ ड्रेप्ड टॉप, इनके बिना तो जैसे आज आपके वॉर्डरोब की कल्पना भी नहीं की जा सकती. आजकल टॉप के जितने रूप प्रचलित हैं, उतने पहले कभी नहीं थे.

लेकिन आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर किस्म का टॉप हर किसी के लिए उपयुक्त नहीं होता. तो आपको भी इस बारे में भी विचार करना चाहिए क् आपके लिए कौन सा टॉप उपयुक्त है. एक अच्छे टॉप के चयन के लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप अपना बॉडी टाइप पहचानते हैं. आइए यहां जानते हैं कि किस बॉडी टाइप पर किस तरह का टॉप अच्छा लगता है…

एप्पल बॉडी शेप : अगर आपके शरीर का ऊपरी हिस्सा भारी-भरकम है तो आपका शरीर एप्पल शेप का है. आपको ऐसे टॉप पहनने चाहिए जो आपके शरीर के निचले हिस्से की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करे. आप पर घुटने तक लंबा ट्यूनिक टॉप अच्छा लगेगा. साथ ही आप जॉर्जट या शिफॉन से बने फ्रंट ओपन टॉप के साथ स्पैगिटी टॉप भी पहन सकती हैं.

पीयर बॉडी शेप : अगर आपके शरीर का निचला हिस्सा भारी-भरकम है, तो आपका शरीर पीयर शेप का है. आपको ऐसा टॉप पहनना चाहिए जिससे लोगों का ध्यान शरीर के ऊपरी हिस्से की तरफ केंद्रित हो. डीप नेक वाले चमकीले रंगों के टॉप के साथ पहना गया खूबसूरत नेकलेस यह काम बखूबी कर सकता है. ध्यान रहे कि कमर के नीचे वाले हिस्से में आप जो भी पहनें, वह गहरे रंग का हो. चौड़े स्ट्राइप्स वाले परिधान भी आप पर अच्छे लगेंगे. चमकदार बेल्ट पहनने से बचें. आप टैंक टॉप के साथ शोल्डर एंब्रॉयडरी वाली जैकेट भी पहन सकती हैं.

रेक्टैंग्युलर बॉडी शेप : अगर आपके शरीर में उभार नहीं हैं, तो आपका बॉडी टाइप रेक्टैंग्युलर है. आपको कव्र्स का आभास देने वाला टॉप पहनना चाहिए. ध्यान रहे कि आपका टॉप कमर वाले हिस्से में अच्छी फिटिंग का हो. सिल्क या साटन से बने वी-नेक टॉप भी आप पर बेहद खूबसूरत लगेंगे. इनके साथ चौड़े घेर वाली ट्राउजर पहनें. रफल्ड टॉप या स्लोगन वाला क्रॉप टॉप भी आप पर अच्छा लगेगा.

आवरग्लास बॉडी शेप : आप किसी भी फिटिंग, कट या प्रिंट का टॉप पहन सकती हैं. इसका रंग अपनी त्वचा की रंगत के हिसाब से चुनें. पेंसिल स्कर्ट के साथ फॉर्मल टॉप आप पर बहुत अच्छे लगेंगे. क्रॉप टॉप भी आपके शरीर के फीचर्स को उभारेगा.

शरीर के अनुरूप हों टॉप : बाजू हैं मोटे तो- बिना बाजू वाले टॉप पहनने से बचें, तीन-चौथाई बाजू या पूरी स्लीव वाले टॉप पहनें.

मजबूत हैं कंधे तो – ऐसा टॉप न पहनें जिसमें बाजू का फैब्रिक कंधों पर इकट्टा होता हो. हॉल्टरनेक, ट्यूब, बोट नेक टॉप आदि आप पर अच्छे लगेंगे.

गला छोटा है तो – चाइनीज कॉलर या हाइ नेक टॉप पहनें.

लंबाई कम हो तो – अधिक लंबाई वाला टॉप पहनने से बचें. हील्स के साथ कम या मध्यम लंबाई वाला टॉप पहनें.

वजन बहुत अधिक हो तो – आप पर गहरे रंगों के टॉप अच्छे लगेंगे. चौड़े स्ट्राइप्स वाला और स्किन फिट टॉप पहनने से बचें.

अवसर भी है अहम

कॉकटेल पार्टी में – गोल्डन, सिल्वर, ब्रिक रेड या वाइन जैसे रंगों वाला ड्रेप्ड या पेपलम टॉप पहनें.

कॉलेज में – फंकी ज्वेलरी के साथ स्मार्ट कैजुअल टॉप पहनें. जॉर्जट से बने और स्लोगन वाले टॉप भी अच्छे लगेंगे.

ऑफिस में – कॉलर वाले और बोटनेक टॉप ठीक रहेंगे. शर्ट स्टाइल टॉप भी पहनें.

परफेक्ट हो माप

अक्सर विभिन्न ब्रैंड्स और डिजाइनर्स के टॉप में साइज का फर्क होता है, इसलिए इसे खरीदने से पहले पहनकर जरूर देखें. अगर टॉप की ऑनलाइन खरीदारी कर रही हैं, तो ठीक से माप का अंदाजा लेने के बाद ही उसे खरीदें.

‘आउटसाइडर’ को अच्छी फिल्में मिलना मुश्किल है : कृति सेनन

फिल्म ‘हीरोपंती’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाली अभिनेत्री कृति सेनन ने तेलगू फिल्म से अभिनय शुरू किया था. बचपन से ही एक्टिंग के क्षेत्र में आने की इच्छा रखने वाली कृति एक मॉडल भी हैं, उनकी छरहरी काया और ऊंची कद काठी ही उन्हें इस ओर ले आई. हालांकि कृति ने अधिक फिल्में नहीं की है, पर वह फिल्मों का चयन करते वक्त उसकी कहानी और अपनी भूमिका पर खास ध्यान देती हैं.

हमेशा सकारात्मक सोच रखने वाली कृति की फिल्म ‘राब्ता’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंनें बहुत ही अलग भूमिका निभाई है, ये फिल्म उनके लिए एक चुनौती थी. उनसे बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

‘दिलवाले’ फिल्म की सफलता का फायदा आपको कितना मिल रहा है?

फिल्म बड़ी थी और फायदा से भी अधिक उस फिल्म में मुझे इतनी जल्दी बड़े कलाकार के साथ काम करने का मौका मिला. मैंने बचपन से काजोल और शाहरुख की फिल्में देखी हैं, मेरे लिए तो ये सपना ही था. दूसरी फिल्म में इतने बड़े बैनर में निर्देशक रोहित शेट्टी के साथ काम करना भी मेरे लिए बड़ी बात थी. मेरा अनुभव उस फिल्म में काम करने का एक परिवार की तरह था. लगता ही नहीं था कि मैं शूट कर रही हूं.

‘दिलवाले’ रिलीज से पहले मैंने केवल एक फिल्म ‘हीरोपंती’ की थी, जिसमें टाइगर श्रॉफ और मैं दोनों ही नए थें, ऐसे में हमारे दर्शकों की संख्या सीमित थी. दिलवाले फिल्म के बाद मुझे देखने वाले दर्शकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी है. फिल्मी बैकग्राउंड से नहीं होने पर आम जनता आपको जाने, आपके काम को जाने ये बहुत जरुरी है, जिसके बल पर आपको आगे काम मिलता है.

क्या किसी नए कलाकार का किसी बड़े व्यक्ति की सरनेम से जुड़े होने पर फायदा अधिक होता है?

भाई-भतीजावाद हर इंडस्ट्री में होता है. अगर मैं इसे ना बोलू तो मैं अंधी हूं. किसी व्यवसाय में हो या फिल्म इंडस्ट्री में ये तो चलता ही रहता है. जो बच्चे इंडस्ट्री में बड़े हुए है, उन्हें हर कोई जानता है. उन्हें अपनी इमेज क्रिएट नहीं करनी पड़ती. ऐसे में अगर कोई निर्देशक नयी फिल्म बनाता है, तो उसे सबसे पहले सामने वाला व्यक्ति ही नजर आता है. तीन-चार फिल्मों में उन्हें अवसर मिलता है और अगर वे उसमें सफल नहीं होते हैं तो वे आगे नहीं जा पाते. आसानी से फिल्मों में आने का अवसर तो ऐसे बच्चों को मिलता है पर बाद में प्रतिभा की जरुरत पड़ती है.

’राब्ता’ फिल्म की चुनौती क्या थी?

पिछले दोनों फिल्मों में मेरी भूमिका हल्की-फुल्की गर्लिश थी. उसमें भी मुझे मेहनत करनी पड़ी थी, लेकिन इसमें मेरी भूमिका मुझसे काफी अलग है, इसलिए अभिनय करने में मजा आया. इसमें मुझे दो अलग-अलग भूमिका में काम करने का अवसर मिला, जो बहुत चुनौतीपूर्ण था. इसमें जो अलग टाइम जोन को दिखाया गया है, उसकी कोई जानकारी मेरे पास नहीं थी. उसे समझना, मेकअप लेना और एक साथ काम करना आसान नहीं था. मैंने इस फिल्म के लिए मार्शल आर्ट और हॉर्स राइडिंग सीखा है.

आप फिल्मों को चुनते समय किस बात का ध्यान रखती हैं?

मैं जब भी स्क्रिप्ट पढ़ती हूं, तो उसे फील करना चाहती हूं. मैं एक दर्शक को अपने दिमाग में रखती हूं. अगर फिल्म मुझे पसंद आयेगी, तो दर्शकों को भी अवश्य आएगी. किसी भी प्रोजेक्ट को करने में तीन महीने देने पड़ते हैं, ऐसे में स्क्रिप्ट मजेदार होना जरुरी है. ताकि हर रोज जब मैं नींद से उठूं तो मेरे अंदर काम करने की उत्साह बनी रहे. इसके बाद मेरा चरित्र फिल्म में कितना प्रभावशाली है उसे देखती हूं. फिल्म करते-करते आपकी सोच बदलती रहती है. ऐसे में फिल्मों का सही चयन करना आसान होता है.

फिल्म प्रमोशन कितना जरुरी है?

फिल्मों का प्रमोशन जरुरी है लेकिन उसमें कई बार इतने अजीब लिख दिए जाते हैं, जिसे पढकर मैं खुद ताज्जुब हो जाती हूं कि ये कैसे लिखा गया है. पकाई हुई न्यूज मुझे कभी पसंद नहीं. फिल्म अगर सही बनी हो, तो दर्शकों को अच्छी लगेगी. सही तरह फिल्म का लिखा जाना और सही तरह से शूटिंग का होना बहुत जरुरी है. सही फिल्म न होने पर कितना भी प्रमोशन आप कर लें फिल्म नहीं चलेगी.

आपको और सुशांत को लेकर जो खबरें आ रही हैं, उसमें कितनी सच्चाई है?

उसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है. थोड़े समय बाद तो हम दोनों ऐसी कहानियों को देखकर मजे लेने लगे थें. हम काम के दौरान आपस में झगड़ते हैं, फिर मिल जाते हैं. इस तरह काम में एक उत्सुकता बनी रहती है. मुझे तो ऐसी खबरें पढ़कर ऐसा लग रहा था कि लिखने वाला मेरे साथ रहकर लिख रहा है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था. ऐसी मनगढ़ंत कहानी लिखने वाले की तारीफ करनी पड़ेगी.

सुशांत के साथ काम करने का अनुभव कैसा था?

वे एक अच्छे कलाकार हैं और उनके साथ काम करना आसान था. वे एक मेहनती कलाकार हैं और हर भूमिका की डिटेल में जाकर अभिनय करते हैं.

आपने कई लव स्टोरी वाली फिल्में की है, क्या किसी लव स्टोरी से आप खुद प्रेरित हैं? आज की पीढ़ी के लिए लव अलग है, क्या कहना चाहेंगी?

आजकल लव के मायने बदल चुके हैं. ऐसे में जब मैं किसी फ्रेंड की 11 साल की डेटिंग के बाद शादी को सुनती हूं, तो बहुत अच्छा लगता है. इसके अलावा जब कोई बुजुर्ग दम्पति जो हाथ में हाथ डाले किसी स्थान पर बैठे हुए होते हैं या एक दूसरे को सड़क पार करवा रहे होते हैं, तो मैं बहुत प्रभावित होती हूं, क्योंकि उम्र के उस पड़ाव में भी वे एक दूसरे के लिए होते हैं.

आजकल यूथ इतने व्यस्त और आत्मनिर्भर हैं कि उनके पास ठहराव की कमी है. ऐसे में वे प्यार और रिश्ते की गहराई को कम समझ पा रहे हैं. वे किसी भी रिश्ते से निकलने में घबराते नहीं. मेरे लिए किसी भी रश्ते में ठहराव और इमानदारी काफी मायने रखती है. समस्या है तो उसे मिलकर सुलझा लें और अगर नहीं सुलझता है तो उससे निकल जाना ही बेहतर होता है. पहले लोग रिश्ते में दुखी होकर भी उसे निभाना पसंद करते थें. मेरे हिसाब से लाइफ एक है और अगर किसी से आप नाखुश हैं, तो उससे निकलने में कोई बुराई नहीं है.

आपके यहां तक पहुंचने में परिवार का सहयोग कितना है?

मेरे परिवार ने बहुत ही सहयोग दिया है, क्योंकि मैं एक उच्च शिक्षित परिवार से हूं. मेरे पिता चार्टेड अकाउंटेंट हैं, मेरी मां लेक्चरर हैं और मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी. इसके बाद काम भी मिला, लेकिन मुझे करना नहीं था, क्योंकि मुझे मुंबई आना था. खासकर मध्यम वर्गीय परिवार में लड़कियों को कोई दूर, फिल्म इंडस्ट्री में भेजने से डरते हैं. ऐसे में उन्होंने मुझपर भरोसा किया, यहां आने दिया, ताकि मुझे कभी अपने ऊपर पछतावा न हो.

फैशन के जरिये एनिमल बचाओ का संदेश

फैशनेबल ड्रेस में लेदर और फर का प्रयोग बहुत पहले समय से हो रहा है जो एनिमल के लिये गंभीर खतरे की तरह होता है. पेटासंस्था ने फैशनेबल पोशाकों में एनिमल के लेदर और फर का प्रयोग न करने का संदेश देने के लिये तमाम तरह के उपाय किये. कभी न्यूड शो हुआ तो कभी बौडी पेंटिंग के जरीये इसका प्रचार किया गया.

अब पेटाफैशन डिजाइनिंग सीख रहे छात्रों के बीच जाकर उनको समझाने का प्रयास कर रहा है कि वह बिना लेदर और फर के ऐसी पोशाक बनायें जो लेदर और फर के शौकीन लोगों को पसंद आये. जेडी इंस्टीटयूट औफ फैशन टेक्नलॉजी के सालाना फोटोशूट 2017 एनुवल फैशन अवॉर्ड में ऐसी ही पोशाकें पेश की गई जो बिना किसी लेदर और फर के तैयार हुई थी.

इंस्टीटयूट के लखनऊ ब्रांच के डायरेक्टर संदीप गोला और शिप्रा आनंद ने अपनी देख रेख में छात्रों से ऐसे डिजाइन तैयार कराये जिससे आने वाले नये फैशन की शुरुआत करने का मौका मिला. इन खूबसूरत पोशाकों को मौडल हीना खान, विद्या श्री, निकिता डोबरीयाल, सेनाली वर्मा, मारिया और स्टैसी ने रैंप शो पर पहनें.

जजमेंट पैनल में डायरेक्टर आरसी दलाल और पेटा की मिस बेनजीर मौजूद थी. इन पोशाकों को देखकर लगा कि खूबसूरत पोशाकों के लिये लेदर और फर की जरूरत नहीं होती है.

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