16 साल बाद पर्दे पर लौट रही है ये एक्ट्रेस

साल 2001 में आई फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में  करीना कपूर के बचपन का किरदार निभाने वाली मालविका राज अब पूरी तरह से बदल चुकी हैं. लगभग 16 साल बाद मालविका तेलुगु फिल्म निर्देशक जयंत सी. परांज की फिल्म ‘जयदेव’ के साथ वापसी कर रही हैं. यह फिल्म 9 जून को रिलीज हो रही है.

फिल्म ‘जयदेव’ से मालविका के साथ घंटा रवि भी अपने करियर की शुरुआत कर रहे हैं. घंटा रवि आंध्र प्रदेश के मंत्री श्रीनिवासा राव के बेटे हैं. मालविका सोशल मीडिया पर खासा एक्टिव हैं. बदलते वक्त के साथ अभिनेत्री का अंदाज बिल्कुल बदल चुका है.

मालविका ने हाल ही में ‘यू एंड आई’ नाम की मैगजीन के जून माह के अंक के लिए फोटोशूट करवाया है, तस्वीर में वे बैकलेस दिख रही हैं. यह पहली बार है जब मालविका किसी मैगजीन के कवर पेज पर दिख रही हैं.

 

 

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Life is too short to wear boring clothes! 😉 #traildress #fashion #bythesea #jayadev

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इस मशहूर एक्ट्रेस ने एडल्ट फिल्म से शुरु किया था फिल्मी करियर

आज बॉलीवुड में बी-ग्रेड फिल्मों से आई कई ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो इंडस्ट्री में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी हैं. बात करें सनी लियोन की, तो वे आज के समय की उन एक्ट्रेसेस की लिस्ट में सबसे ऊपर हैं, जो इन फिल्मों से हिंदी सिनेमा में आई हैं.

इसी इंडस्ट्री में एक दौर था जब कोई एक्ट्रेस बिकिनी भी पहन लेती थी तो वो जबरदस्त सुर्खियों में आ जाती थी. उस दौर की इस सोच को चैलेंज किया था उस वक्त की एक मशहूर अभिनेत्री ने.

इस एक्ट्रेस ने एडल्ट फिल्म से इतना नाम कमाया कि लोग हैरान रह गए, वहीं जब इसके बाद उन्हें बॉलीवुड फिल्में मिलीं, तो इन फिल्मों में भी ये एक्ट्रेस वो कमाल कर गईं कि लोग आज भी उन्हें याद करते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि एडल्ट फिल्म में काम करने वाली इस एक्ट्रेस की उम्र उस समय महज 14 साल थी.

हम बात कर रहे हैं गुजरे दौर की मशहूर और हुनर से भरी अभिनेत्री नूतन की. शायद आप में से कुछ लोग ये बात पहले से ही जोनतोे होंगे और शायद नहीं भी. नूतन ने अपने करियर के शुरुआती दौर में एडल्ट फिल्मों में काम किया था. जिसको लेकर बाद उनकी काफी चर्चा भी हुई थी. इन फिल्मों के बाद नूतन ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में भी काफी नाम कमाया और हिंदी सिनेमा का एक बड़ा नाम साबित हुईं.

ये बात तो शायद आपको बताने वाली नहीं है कि एक्ट्रेस नूतन बेहतरीन टैलेंट की खान थीं और उन्हें हिंदी सिनेमा की सबसे उम्दा हीरोइनों में से एक माना जाता था.

सब बयां करती थीं आखें

नूतन एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिनकी आंखे ही सब कुछ बयां कर जाती थीं.

दी हैं कई हिट फिल्में

अपने करियर में नूतन ने एक से बढ़कर कई हिट फिल्में दीं और कई बड़े कलाकारों के साथ काम किया.

छोटी उम्र में शुरू किया काम

4 साल की उम्र में ही उन्होंने एक्टिंग की दुनिया में कदम रख दिया था. देख नहीं पाईं थी फिल्म इतनी कम उम्र में ही उन्होंने एक अडल्ट फिल्म में काम किया था. और इसी फिल्म को देखने से उन्हें रोक दिया गया था.

ये थी फिल्म

दरअसल नूतन ने 14 साल की उम्र में ही एक फिल्म की थी ‘नगीना’ जिसे सेंसर बोर्ड ने एडल्ट सर्टिफिकेट दिया था. सिर्फ एडल्ट फिल्म नहीं थी यूं तो ये फिल्म रोमांस और क्राइम सस्पेंस थ्रिलर थी लेकिन सेंसर बोर्ड को ये फिल्म अडल्ट कैटेगरी के लायक लगी.

इसलिए वे खुद ही नहीं देख पाईं अपनी फिल्म

उस समय की खबरों के अनुसार वॉचमैन को पता था कि ‘नगीना’ एक अडल्ट फिल्म है और इसीलिए उन्होंने 14 साल की नूतन को अंदर जाने से रोक दिया. नूतन ने वॉचमैन को समझाने की काफी कोशिश की. नूतन ने कहा भी कि वो ही उस फिल्म की हीरोइन हैं, लेकिन वॉचमैन था कि सुनने को तैयार ही नहीं था. बिना देखे वापस लौटीं लाख कोशिशों के बाद भी उसने नूतन को अंदर नहीं जाने दिया. थक-हारकर नूतन फिल्म देखे बिना ही वापस लौट गईं.

क्या प्रभास ने बदला अपना लुक!

एसएस राजामौली की सुपरहिट फिल्म ‘बाहुबली: द कन्क्लूजन’ में साउथ सुपरस्टार प्रभास ने बाहुबली का किरदार निभाया. ‘बाहुबली’ सीरीज की फिल्मों के लिए 5 साल समर्पित करने के बाद प्रभास अब फिल्म ‘साहो’ में नजर आएंगे. दक्षिण भारतीय निर्देशक सुजीत की फिल्म ‘साहो’ की शूटिंग प्रभास शुरू कर चुके हैं.

इसी बीच प्रभास की एक तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हुई है. इसे फैन्स प्रभास की नई फिल्म का लुक मान रहे हैं. प्रभास के फैन क्लब द्वारा शेयर की गई इस फोटो में वे क्लीन शेव लुक में दिखाई दे रहे हैं.

हालांकि, यह साफ नहीं है कि उनकी यह तस्वीर नई है या पुरानी. यह तस्वीर प्रभास के फैन पेजों से इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गई है. यह प्रभास का असली इंस्टाग्राम अकाउंट नहीं है. इसलिए इस तस्वीर की सत्यता पर थोड़ा संदेह है. इसमें कोई दोराय नहीं हैं कि तस्वीर में प्रभास ही दिख रहे हैं. लेकिन, क्या यह ‘साहो’ के लिए उनका नया लुक है? इसपर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं आई है.

साहो के ट्रेलर में प्रभास की मूछें हैं लेकिन इस तस्वीर में वह क्लीन शेव्ड हैं. इसलिए दोनों में तुलना करना कितना सही है, यह तो फिल्म की शूटिंग के बाद ही पता चल पाएगा.

‘बाहुबली’ की अपार सफलता के बाद अब प्रभास कुछ ही महीनों में सुजीत की ‘साहो’ के लिए शूट करेंगे. यह फिल्म अगले साल थिएटर में आएगी.

 

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ट्रेंड में हैं कॉटन के ये कुर्ते

कुर्तों में थोड़ा सा बदलाव ला इसे कंटेम्प्रेरी लुक दिया गया है. और जब से इन एथनिक वियर कुर्तों को मॉडर्न कंटेम्प्रेरी ट्विस्ट दिया गया है तब से यह ट्रेडिशनल आउटफिट महिलाओं और टीनएजर्स का पसंदीदा ड्रेस बन गया है.

इस गर्मी भी कुछ कुर्ते खासा ट्रेंड में हैं. इन ट्रेंडिंग कुर्तों को पहन कर आप स्टाइलिश दिख सकती हैं और अपनी खूबसूरती बढा सकती हैं. जानें इस सीजन के ट्रेंडिंग कुर्तों के बारे में.

लेयर्ड कुर्ते

लेयर्स इस वक्त का करेंट ट्रेंड है. इन कुर्तों का यूनीक पैटर्न ही इन्हें स्पेशल बनाता है. ये कुर्ते एक नहीं बल्कि दो पार्टस में होते हैं. हो सकता है कि दोनों में प्रिंट्स हों या सिर्फ अपर पार्ट में प्रिंट होगा. साथ ही अपर पार्ट में साइड स्लिट्स भी काफी हाई होती हैं या ये लूप्‍स से कनेक्टेड होते है. इनका दूसरा पैटर्न है, केप पैटर्न जहां अपर कुर्ता एक केप की तरह या लॉन्ग श्रग की तरह होता है.

रंगबिरंगे कुर्ते

क्योंकि सीजन गर्मी का है इसलिए व्हाइट, ऑफ व्हाइट तो बेसिकली इन हैं ही, लेकिन इसके अलावा ऑरेंज और ऑरेंज के लाइट शेड्स जैसे पीच एंड कोरल सबसे ज्यादा ट्रेंड में हैं. इसके अलावा यलो, मस्टर्ड, इंडिगो ब्लू, टील, सी ग्रीन जैसे कलर्स भी बेहद पॉपुलर हो रहे हैं. बोल्ड कलर्स ट्राई करने हों तो रेड, फूशिया और रॉयल ब्लू कलर्स को ट्राई किया जा सकता है.

प्‍लेन कुर्ते

सॉलिड यानि प्‍लेन कुर्ते एक सेफ और एवरग्रीन ऑप्‍शन होते हैं और इस बार भी मार्केट में आपको इनकी भरमार दिख जाएगी. इन्हें प्रिंटेड प्‍लाजो, प्रिंटेड लेगिंग्स, सिगरेट पैंट्स, क्रॉप्‍ड पैंट्स या कलेटोज के साथ पेयर किया जा सकता है. ऑफिस वियर के लिए ये एकदम परफेक्ट च्वॉइस होंगे.

चेक की बहार

प्रिंट्स की बात की जाए तो फ्लोरल प्रिंट्स तो गर्मियों में टॉप ट्रेंड होते हैं लेकिन इसके साथ इस बार चेक्स एंड स्टोरी प्रिंट्स भी फैशन में हैं. चेक्स में आपको बड़े, छोटे और डायग्नल चेक्स मिलेंगे. इंटरेस्टिंग बात ये है कि ये चेक्स फ्लोरल प्रिंट्स के साथ कॉम्बिनेशन में भी हो सकते हैं. कुछ पैटर्न में आपको बर्डस, ट्रीज जैसी प्रिंट स्टोरीज भी मिल जाएंगी.

एक उम्र से पहले ले लें ये आर्थिक फैसले

आने वाले कल की जरूरतों के लिए आपको आज से ही फाइनेंशियल प्लानिंग कर लेनी चाहिए. हर साल सैलरी में होने वाले इंक्रीमेंट के साथ ही अगर आप अपने बढ़ापे को खुशहाल बनाने के लिए सेविंग में भी इजाफा करती रहती हैं तो काम न कर पाने की सूरत में आपको आर्थिक रुप से किसी के भी सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं होगी.

तमाम वित्तीय सलाहकार ऐसा सुझाव देते हैं कि हर किसी सो 30 वर्ष का होने से पहले कम से कम ये 6 आर्थिक फैसले जरूर ले लेने चाहिए. हम आपको इन्हीं कुछ खास आर्थिक फैसलों के बारे में बता रहे हैं.

बुढ़ापे के लिए जुटाना शुरू कर दें पैसा : अगर आप चाहती हैं कि आपका बुढ़ापा बेहतर तरीके से बीते तो आपको 30 वर्ष की उम्र से पहले ही इसके लिए सेविंग की शुरुआत कर देनी चाहिए. जवानी की सेविंग बुढ़ापे का सहारा बनने में हमेशा मददगार होती है.

कंपाउंड इंटरेस्ट के नजरिए से देखें तो अगर आप 30 की उम्र से पहले ही सेविंग की शुरुआत कर देती हैं तो इससे साल दर साल मिलने वाले ब्याज में भी लगातार इजाफा होता रहता है. उदाहरण के तौर पर अगर आप हर महीने 2 हजार रुपए की भी बचत करती हैं तो आपके पास 60 वर्ष की उम्र तक ब्याज समेत अच्छी खासी रकम जमा हो जाती है.

घर खरीदने की भी बना लें योजना : अगर आप किसी पराए शहर में नौकरी करती हैं और वहां पर किराए के मकान में रह रही हैं तो आपको 30 वर्ष की आयु से पहले ही उस शहर में मकान लेने की योजना बना लेनी चाहिए या अगर आप जिंदगी भर किराए के मकान में ही रहना चाहती हैं तो यह भी सुनिश्चित कर लें क्योंकि दोनों ही सूरत में आप पर वित्तीय बोझ पड़ना तय है.

अगर आप खुद का मकान लेंगी तो आपको उसकी डाउन पेमेंट और हर महीने ईएमआई चुकानी होगी, वहीं किराए के मकान में भी हर साल आपको बढ़ा हुआ किराया देने के लिए तैयार रहना होगा. ऐसे में अगर इस सूरत से निपटने के लिए सेविंग की आदत डाल लेंगी तो आपके लिए बेहतर रहेगा.

जरूर लें इंश्योरेंस प्लान : नौकरीपेशा लोगों के लिए इंश्योरेंस प्लान लेना बेहद जरूरी होता है. बेहतर होगा कि 30 की उम्र से पहले आप कम से कम एक इंश्योरेंस प्लान अवश्य ले लें. इसके अपने अलग फायदे होते हैं. हालांकि आपको बीमा में पैसा लगाते समय हमेशा ख्याल रखना होगा कि बीमा एक खर्च है, निवेश कतई नहीं. हालांकि सिर्फ जीवन बीमा करवा लेना ही काफी नहीं है, इसीलिए जरूरी है कि आप मेडिकल इंश्योरेंस भी करवाएं. अगर आप ऐसा करवाती हैं तो किसी दुर्घटना की सूरत में आप पर अस्पताल एवं दवाइयों से जुड़े खर्चों का ज्यादा बोझ नहीं पड़ेगा.

आपातकालीन स्थिति के लिए जरूर जोड़ें पैसा :

आमतौर पर कुछ खर्चे अचानक से होते हैं. ये कुछ ऐसे खर्चे होते हैं जिन्हें आप चाहकर भी टाल नहीं पाती. मसलन किसी अचानक हुई बीमारी का इलाज और एक्सीडेंट होने की सूरत में अस्पताल में इलाज का खर्चा इत्यादि. ऐसी सूरतों से निपटने के लिए आपको अपने घर में एक आपातकालीन फंड बनाना चाहिए.

आप यह सुनिश्चित करें कि इस फंड को छूना नहीं है, इसका इस्तेमाल सिर्फ आपातकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए ही किया जाना है. आप अपनी सालाना या मासिक सैलरी में से कुछ हिस्सा नियमित तौर पर इसमें जमा कर एक बड़ी रकम इकट्ठा कर सकती हैं जो जरूरत पड़ने पर आपके ही काम आएगी.

तय करें कि आपको करना क्या है :

आप नौकरीपेशा हैं और आपका मन किसी एक जगह डटकर काम करने का नहीं करता है तो आपको खुद पर रिसर्च करने की जरूरत है. आप खुद को समय दें और तय करें कि आपको करना क्या है. आपको उसी जगह और वही नौकरी करनी चाहिए जो आपको खुशी दे सके. इसके साथ ही आप उसी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को निखारते हुए आगे बढ़ सकती हैं. ऐसा कर आप सेविंग के लिए खुद को तैयार भी कर पाएंगी.

बच्चों के बारे में भी सोचना शुरू कर दें :

अगर आप शादीशुदा हैं और सिंगल हैं या नहीं भी, और एक बच्चे की माता भी हैं, तो आपको 30 की उम्र से पहले ही बच्चे के पढ़ाई, उसके करियर और शादी से जुड़े खर्चों के लिए सेविंग की शुरुआत कर देनी चाहिए. अगर आप 30 की उम्र से पहले ही इस तरह की सेविंग समझदारी के साथ करना शुरू कर देती हैं तो आपको महंगी होती शिक्षा और तेजी से बढ़ती महंगाई के दौर में भी ज्यादा वित्तीय समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता है.

खाने से पहले लें थाई वेजिटेबल सूप का मजा

अगर खाने से पहले गरमा गरम थाई वेजिटेबल सूप पीने को मिल जाय तो मजा आ जाता है. गर्मा-गरम सूप थाई वेजीटेबल सूप घर पर बनाना बहुत ही आसान है तो आइये आज हम बताते हैं कि थाई वेजिटेबल सूप बनायें.

सामग्री

प्याज- 1 कप कटे हुए

गाजर- 2 कप कटे हुए

काली मिर्च- 6

चाय की पत्ती- 2 हरी

नमक स्वादानुसार

लो-फैट मक्खन- 2 टी-स्पून

बारीक कटा लहसुन- 1 टेबल-स्पून

बारीक कटी हरी मिर्च- 1 टी-स्पून

बारीक कटी हरी प्याज (सफेद भाग और पत्ते)- 1/4 कप

स्लाइस्ड और आधे उबले मशरूम – 1/2 कप

बारीक कटा हरा धनिया- 2 टेबल-स्पून

बारीक लंबी कटी पालक- 1/2कप

स्लाइस्ड और आधे उबले हुए बेबी कॉर्न- 1/2 कप

विधि

सभी सामग्री को 6 कप पानी के साथ एक गहरे नॉन-स्टिक पॅन में अच्छी तरह मिला लें. बीच-बीच में लगभग 20 मिनट या सबका स्वाद पानी में निकलने तक उबाल लें. छन्नी से छानकर एक तरफ रख दें.

अब एक गहरे नॉन-स्टिक पैन में मक्खन गरम करें, लहसुन, हरी मिर्च और हरी प्याज डालकर मध्यम आंच पर 1 मिनट तक भूनें. बची हुई सामग्री डालकर अच्छी तरह मिलायें और मध्यम आंच पर 2-3 मिनट तक भून लें. थाई वेजिटेबल स्टॉक डालकर अच्छी तरह मिलायें और बीच-बीच में हिलाते हुए उबाल लें. गरमा गरम परोसें.

क्या आप जानती हैं सेहत से भरपूर होते हैं कटहल के बीज

आम तौर पर कटहल की सब्जी और इससे बने पकवानों को लोग बेहद पसंद करते हैं और बेशक यह मजेदार भी होते हैं. जहां कटहल स्वाद के साथ- साथ सेहत से जुड़े भी कई फायदे देता है, वैसे ही इसके बीज भी बहुत खास होते हैं.

आइये हम आपको बताते हैं कि कटहल के बीज भी किस तरह से आपके लिए सेहत से भरपूर होते हैं. जानिए 5 फायदे –

1. कटहल के बीज डायट्री फाइबर से भरपूर होते हैं और इसमें कैलोरी भी कम होती है, अत: ये वजन कम करने में आपकी मदद दद करते हैं.

2. कटहल के बीज मैग्नीशियम, मैग्नीज जैसे तत्वों से भरपूर होते हैं जो हड्ड‍ियों में कैल्शियम अवशोषण में मददगार होते हैं. ये रक्त क थक्का जमने से रोककर रक्तसंचार में भी मदद करता है.

3. इसके बीजों में काफी मात्रा में स्टार्च पाया जाता है, जो आपके शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. यह ऊर्जा के लिए बेहतरीन स्त्रोत है जो कि स्वादिष्ट भी है, जो बढ़ती उम्र की गति धीमी करने के साथ्स ही आपको तनाव से भी दूर रखने में मददगार होते हैं.

4. कटहल के यह बीज एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते…जो बढ़ती उम्र की गति धीमी करने के साथ्स ही आपको तनाव से भी दूर रखने में मददगार होते हैं.

5. इसमें लिग्नेंस, आइसोफलेवोन्स, सैपनिन्स एवं अन्य लाभकारी फायइटोन्यूट्रीएन्स पाए जाते हैं, जो मानसिक व शारीरिक सेहत के लिए लाभकारी है.

गृहिणियों की अनदेखी क्यों

क्या गृहिणी होना एक सजा है? सब जानते हैं कि बदलते वक्त के साथ गृहिणी की भूमिका भी बदल गई है. लेकिन उस की जिम्मेदारियां कम न हो कर और बढ़ गई हैं. वैसे तो इस आधुनिक समय में घर के हर काम के लिए मशीनें मौजूद हैं, पर क्या मशीनें स्वयं कार्य कर लेती हैं? क्या गृहिणी की भागमभाग अब भी जारी नहीं है?

जिम्मेदारियां तो पहले भी थीं, लेकिन दायरा सीमित था. मगर आज दायरा असीमित है. आज महिला घर से ले कर बाहर तक की जिम्मेदारी के साथसाथ बच्चों की पढ़ाई से ले कर सब का भविष्य बनाने और भविष्य की बचत योजना तैयार करने में जुटी रहती है और वह भी पूरी एकाग्रता से.

गृहिणी की भागदौड़ सुबह से शुरू हो जाती है. फिर चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण. रात को सब के बाद अपने आराम की सोचती है. रोज पति, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों की देखरेख में इतनी व्यस्त रहती है कि खुद को हमेशा दोयम दर्जे पर ही रखती है. वह दूसरों की शर्तों, इच्छाओं और खुशियों के लिए जीने की इतनी आदी हो जाती है कि अगर किसी काम में जरा सी भी कमी रह जाए तो अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती है. लेकिन उस के बाद भी उसे ताने ही सुनने को मिलते हैं. उस के काम का श्रेय और सम्मान उस के हिस्से नहीं आता.

सम्मान की अपेक्षा

गृहिणी एक ऐसा सपोर्ट सिस्टम है, जो हर किसी को जीने का हौसला देता है. यह नहीं कि कामकाजी महिला कुछ नहीं. महिला चाहे घर में काम करे या बाहर, काम तो करती ही है. पर यहां बात उस महिला, उस गृहिणी की हो रही है, जिसे हमारा समाज बेकार समझता है. उस की न कोई छुट्टी, न कोई वेतन. सच कहें तो कोई गृहिणी वेतन चाहती भी नहीं. पर वह अपनों की जो सेवासहायता करती है उस के बदले सम्मान की अपेक्षा तो करती ही है और वह उस का मानवीय हक भी है.

एक राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक 40% ग्रामीण और 65% शहरी महिलाएं, जिन की उम्र 15 साल या उस से ज्यादा है, पूरी तरह से घरेलू कार्यों में लगी रहती हैं. और भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि आंकड़ों के हिसाब से 60 साल से ज्यादा की उम्र वाली एकचौथाई महिलाएं ऐसी हैं, जिन का सब से ज्यादा समय इस आयु में भी घरेलू कार्य करने में ही बीतता है.

वर्ल्ड इकौनोमिक फोरम की ग्लोबल जैंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ भारत में ही महिलाएं दिन भर में 350 मिनट अवैतनिक कार्य करने में बिताती हैं यानी इस काम के लिए उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता, जबकि पश्चिमी देशों में घर की जिम्मेदारियां केवल महिलाओं के हिस्से नहीं हैं.

अवसाद की शिकार

इसी वजह से वहां की महिलाओं के गृहिणी के रूप को भी श्रम और आर्थिक भागीदारी के पक्ष की वजह से महत्त्व दिया जाता है. हमारे यहां का रहनसहन और सामाजिक ढांचा कुछ इस तरह का है कि घर पर रहने वाली महिलाओं के हिस्से सुविधाएं कम हैं. सब से बड़ी बात तो यह है कि हमारे यहां घरेलू कार्य का जिम्मा पूरी तरह से महिलाओं पर ही होता है. पुरुषों का सहयोग नाममात्र का ही मिलता है. हमारे यहां घरेलू कामकाज में पुरुषों की भागीदारी रोजाना केवल कुछ मिनट की है जैसे एक कलाकार किसी भी कलाकृति को उकेरने के लिए कैनवास का सहारा लेता है, उसी तरह घर के सदस्यों के जीवन में रंग भरने की भूमिका गृहिणी ही निभाती है. भले ही कैनवास की तरह वह दिखे नहीं. शायद इसी कारण उस के इस रूप को हर जगह और हर हाल में अनदेखा करने की ही कोशिश की जाती है. कितनी आसानी से उस से कह दिया जाता है कि तुम दिन भर घर में करती ही क्या हो.

यह सब सुनतेसुनते वह सब के साथ हो कर भी अकेली हो जाती है और अवसाद व तनाव की शिकार हो जाती है. अपराधबोध से जुड़ा उस का यह भाव अधिकतर मामलों में बच्चों की परवरिश या परिवार की संभाल से ही जुड़ा होता है. इस के बावजूद उस के कार्यों का आकलन ठीक से नहीं किया जाता है.

सवाल वही है

वह चौबीस घंटे की और जिंदगी भर की मुफ्त की नौकर है, जिस की नकेल पति के हाथों में होती है. पति जैसा चाहे वैसा उस का इस्तेमाल करता है. चाहे वह शारीरिक रूप से हो, मानसिक रूप से हो या और किसी रूप में. हर तरह से उस की भावनाओं के साथ खेला जाता है. वह एक ही समय में घरेलू दासी और बंधुआ मजदूर दोनों तरह से यूज होती है. वह अपने पति और बच्चों की हर जरूरत पूरी करने के लिए मजबूरीवश सब कार्य करती है. यहां तक कि वह प्यार की खातिर काम करती है और प्यार करना भी एक काम बन गया है.

अब सवाल वही कि गृहिणी की आवाज कैसे नीतिनिर्धारकों तक पहुंचे? एक गृहिणी किस दिशा में कदम उठाए? कैसे आंदोलन करे? ऐसे किसी भी आंदोलन को राजनीतिक दिशा की जरूरत है. बहुत से एनजीओ व स्वयंसेवी संस्थाएं पूरे देश में मिलेंगी, जो गृहिणियों को अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में सलाह देने के लिए दफ्तर खोले बैठी हैं. लेकिन जब तक परिवार में स्त्रीपुरुष का बराबरी का समीकरण नहीं बदलेगा, पितृसत्ता व वर्गीय शोषण को हम उठा कर नहीं फेकेंगे, तब तक हम पेन किलर जैसी तत्कालीन राहत ही गृहिणी को देते रहेंगे.

अब दूसरा सवाल यह है कि गृहिणी का दुश्मन कौन है? क्या उस का पति ही पितृसत्ता का प्रतीक है? पितृसत्ता को कायम रखने के लिए राज्य व्यवस्था, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद की क्या भूमिका रही है? क्या इस राज्य व्यवस्था के साथ समझौता कर के इसी का हिस्सा बन कर व इसी सूत्र की आर्थिक सहायता ले कर गृहिणी का जीवन बेहतर बन सकेगा? क्या पुलिस, जज, मंत्री इत्यादि इस शोषणकारी व्यवस्था के अंग नहीं हैं?

सोचने वाली बात यह है कि जो महिलाएं घर में सारा दिन बच्चों के लिए और पति के लिए पिसती रहती हैं और भी बहुत से काम करती हैं उन्हें गैरकमाऊ की श्रेणी में रखना क्या सही है? जबकि आज की गृहिणी पुरुष के कंधे से कंधा मिला कर अपना सहयोग दे रही है.

21वीं सदी को न केवल यूनेस्को ने, बल्कि भारत सरकार, सभी बुद्धिजीवियों ने भी महिलाओं की शताब्दी बताया है.

श्रम का मोल नहीं

गृहिणी जो भी कार्य करती है उस का उसे फायदा मिलना चाहिए. उसे सांस लेने की आजादी, विचारों की आजादी यानी पूर्ण आजादी मिलनी चाहिए. वह सिर्फ बच्चा पैदा करने या पालने वाली मशीन नहीं है और न ही कोई रोबोट. सब से पहले वह एक इनसान है.

सहयोगियों को भावनात्मक सहयोग व देखभाल देना, दोस्ती, झुक जाना, दूसरों के आदेश पर रहना, उस के घावों पर मरहम लगाना, यौन रूप से इस्तेमाल होना, हर बिखरी चीज को संवारना, जिम्मेदारी का एहसास तथा त्याग, किफायती होना, महत्त्वाकांक्षी न होना, दूसरों की खातिर आत्मत्याग करना, सभी बातों को सहन कर लेना और मददगार होना, अपनेआप को पीछे हटा लेना, सक्रिय रूप से हर संकट का हल निकालना, एक सैनिक की तरह सहनशक्ति और अनुशासन रखना ये सब मिल कर गृहिणी की कार्यक्षमता बनाते हैं. इस तरह गृहिणी के श्रम का मोल नहीं है.

नैतिकता की आवश्यकता

ऐसा नहीं कि आज की गृहिणी जागरूक नहीं, बल्कि स्त्रीमुक्ति आंदोलन से गृहिणियों में जागरूकता आई, कानून बदले. भारतीय महिला चाहे वह गृहिणी हो या कामकाजी, अपने विकास के दौरान जहां वह बहुत ही सामाजिक, धार्मिक रूढियों, जड़ताओं, कुप्रथाओं और पाखंडों से मुक्त हुई है, वहीं दूसरी ओर उस के सामने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नई चुनौतियां भी उत्पन्न हुई हैं, जो परंपरागत कुरीतियों से अधिक घातक सिद्ध हो रही हैं. जैसे नए रूप में स्त्री देह व्यापार, कन्या भ्रूणहत्या, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, घरेलू हिंसा, कुपोषण, हिंसाअपराध, हत्या, विस्थापन, महिलाओं का वस्तुकरण, परिवार का बिखरना जैसी अनेक भयावह स्थितियां सामने खड़ी हैं. साथ ही, बहुत सी पुरानी परंपराएं, कुप्रथाएं भी आज तक कायम हैं, जो गृहिणी सशक्तीकरण में अवरोधक हैं. उन कुप्रथाओं का कारण भी स्वयं गृहिणी ही है. बहुत सी गृहिणियां बदलते परिवेश में खुद को नहीं बदलना चाहतीं और टकराव की स्थिति उत्पन्न कर देती हैं. गृहिणी अधिकार तो जानती है पर स्त्रीपुरुष आचार संहिता को घरघर में कैसे लाना, कैसे लागू करना है, यह सुचारु तरीके से नहीं हुआ. बीमारी का उपचार किया गया, लेकिन थेरैपी का तरीका सही दिशा में नहीं था ताकि बीमारी से छुटकारा मिल जाता.

यह तो वही बात हुई न कि जनगणमन अधिनायक जय हो यानी जन की बातें हुईं, गण में गृहिणी को सभाओं में लाया गया पर ‘मन’ रह गया. जबकि हम सब जानते हैं कि महिला (गृहिणी) ‘मन’ से जुड़ी है. गृहिणी आज भी अपने प्रति अत्याचार से डरती है. वह बलात्कार (चाहे शरीर का हो या मन का) से घबराती है. वह पहले के मुकाबले निर्भीक बनी है, परंतु अभी भी भीड़ से न डर के उस भीड़ में से कब कौन एकांत पा कर उस का शारीरिक शोषण कर दे, इस का डर रहता है उसे. आज नैतिकता की आवश्यकता है न कि उन स्प्रे और जैल की जो बलात्कारियों से लड़ने/बचने के लिए दिए जा रहे हैं. मानसिक उत्थान की कमी है.

बदलाव बेहद जरूरी

गृहिणियों की रुचि पितृसत्ता को सिर्फ सहयोग देने में नहीं है, उन का विश्वास समानता में है. समाज में कोई भी हाशिए पर नहीं होना चाहिए. प्रत्येक को केंद्र में होना चाहिए, प्रत्येक को समान नागरिक होना चाहिए. अभी बदलाव की लंबी लड़ाई बाकी है. बस कोशिश है इसे नई मंजिल की ओर ले जाने की.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण के साथ ही अमेरिका भर में महिलाओं ने जुलूस निकाल कर अपनी राजनीतिक हैसियत की ओर ध्यान दिलाया था, जिस की वजह से ट्रंप कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा पा रहे, जो महिलाओं के खिलाफ हो.

हौसले हों बुलंद तो हर मुश्किल को आसां बना देंगे, छोटी टहनियों की क्या बिसात, हम बरगद को हिला देंगे. वे और हैं जो बैठ जाते हैं थक कर मंजिल से पहले, हम बुलंद हौसलों के दम पर आसमां को झुका लेंगे.                

अपमानित आंकड़े

आप को यह जान कर बड़ा दुख होगा कि कुछ साल पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महिला के सड़क हादसे में मारे जाने पर उस के परिवार को पर्याप्त मुआवजा देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि गृहिणियों की हैसियत महज 1,250 प्रतिमाह आंकी गई थी.

उस आकलन के अनुसार, घर की नारी और भिखारी एक बराबर हैं. जनगणना में कुछ लोगों को गैरकमाऊ लोगों की श्रेणी में रखा गया था. इन में गृहिणियां, भिखारी, कैदी और वेश्याएं थीं. कितने अपमानित आंकड़े थे ये. इस से ज्यादा एक महिला, एक गृहिणी के लिए अपमानित बात भला और क्या हो सकती है?

तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि महिलाओं का नए सिरे से सम्मानजनक मूल्यांकन करें. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उस परिवार को मुआवजे की रकम 6 लाख दिलवाई और कहा कि गृहिणियों को भिखारी, कैदी और वेश्याओं की श्रेणी में रखना अपमानजनक है.

फिल्म में रोमांस होना बहुत जरुरी है : सलमान खान

सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही सलमान खान की फिल्मों में भी एक नया बदलाव नजर आता है. फिल्म ‘जय हो’ के बाद वह अपनी हर फिल्म में मनोरंजन के साथ कोई न कोई सामाजिक संदेश देते आ रहे हैं. इससे उनकी नई फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ भी अछूती नहीं है. ‘ट्यूबलाइट’ में इंसान के अपने यकीन की बात की गयी है. तो वहीं वह निजी जिंदगी में अपने एनजीओ ‘‘बीइंग ह्यूमन’ के तहत भी कई सामाजिक कार्य करते हुए गरीबों की मदद कर रहे हैं, मगर वह इन कामों को प्रचारित नहीं करते.

हाल ही में मुंबई के ‘‘ताज लैंड्स’’ होटल में हमने सलमान खान से एक्सक्लूसिव बातचीत की, जो कि इस प्रकार रही.

क्या आप स्टार कलाकार को फिल्म की सफलता की गारंटी मानते हैं?

जी नहीं. एक फिल्म की सफलता के लिए अच्छी कहानी और कहानी में इमोशन होना चाहिए. आप दर्शकों को ग्लैमर, एक्शन और मंहगी उड़ती हुई कारें दिखाकर मूर्ख नहीं बना सकते. इसलिए निर्माता के तौर पर जब मैं किसी फिल्म को बनाने का निर्णय लेता हूं तो मेरा सारा ध्यान उसकी कहानी पर होता है. मैं भी एक लेखक का बेटा हूं. फिल्म की कहानी अच्छी हो और फिल्म बकवास बनी हो तो भी चल जाती है, मगर फिल्म की कहानी बकवास हो और वह बहुत बेहतर ढंग से बनी हो, तो दो दिन में ही सिनेमा घर से बाहर हो जाती है. हमारी फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ में जबरदस्त इमोशन है.

ट्यूबलाइट आपके लिए दो भाईयों की कहानी है या युद्धबंदी को छुड़ाने की कहानी?

यह फिल्म दो भाईयों की प्रेम कहानी है. जिनको पता ही नहीं होता कि युद्ध में क्या होगा. यह दोनों भाई जगदलपुर नामक अपने छोटे से गांव में रहते हैं. जहां सब कुछ ठीक चल रहा है. पर इन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि कभी यह दोनों अलग हो जाएंगे. यह पूरा गांव नष्ट हो जाएगा. और बड़े भाई लक्ष्मण ट्यूबलाइट है, उससे अपने भाई से अलग होना झेला नहीं जाएगा. खबरे आएंगी कि जंग शुरू हो गयी है. कुछ वहां के मरे हैं, कुछ यहां के मरे हैं. इसके अलावा कोई खबर नहीं आती. तो फिल्म में ट्यूबलाइट की कहानी है कि वह अपने भाई के बिना जिंदगी जी पाएगा या नहीं. उसका अपना एक संघर्ष है.

अपने भाई को दिमाग का उपयोग कर किस तरह से वापस लाए, इसकी कहानी है. क्योंकि वह शारीरिक रूप से कुछ नहीं कर सकता. बंदूक उठा नहीं सकता. तो लक्ष्मण उर्फ ट्यूबलाइट कैसे अपने दिमाग व सच्चे दिल के बल पर अपने भाई को वापस लेकर आता है. चीन युद्ध के समय कोई युद्धबंदी नहीं हुआ था, बल्कि सीज फायर हुआ था और सभी को उनके अपने देश वापस भेज दिया गया था.

फिल्म में इस बात पर रोशनी डाली गयी होगी कि युद्ध शुरू होने पर उस गांव व वहां रहने वालों पर क्या बीतती है?

जी हां. ऐसा भी है. जो सैनिक युद्ध के मैदान पर गया हुआ है, उसके भाईयों, उसकी मां पर क्या बीतती है. जंग में गोली किसी को पड़ती है, तो उसे कुछ पता ही नहीं चलता. पर हकीकत में गोली तो पूरे खानदान और मां की छाती पर पड़ती है. गोली पड़ने के बाद उसके परिवार को पूरी जिंदगी झेलना पड़ता है. ऐसा महज हमारी तरफ ही नहीं बल्कि दूसरी तरफ भी होता है.

जय हो से लेकर अब तक आपकी हर फिल्म में कोई संदेश होता है. उस पर लोगों से किस तरह की प्रतिकियाएं मिलती हैं?

मेरी हर फिल्म में अंडर करंट संदेश होता है. जैसे कि एक संवाद है, ‘‘स्वागत नहीं करोगे हमारा..’’ स्वागत करना हमारा कल्चर यानी कि हमारी संस्कृति का हिस्सा है. तो हमने इसी तरह से हर फिल्म में छोटी छोटी बातें की हैं. हमने बड़े बड़े संदेश देने के बारे में कभी नहीं सोचा. हमने ‘दबंग 2’ में एलआईसी पॉलिसी की बात की थी. हमने एलआईसी का विज्ञापन नही लिया था, पर यह हर इंसान के लिए जरुरी है, तो वह संदेश दिया. हम तो हमारी तरफ से लोगों को कुछ देने का प्रयास कर रहे हैं.

फिल्म ट्यूबलाइट में किस बात को मुखरता के साथ पेश किया गया है?

यह फिल्म एक यकीन की बात करती है. हम लोग बहुत जल्दी छोटी छोटी बातों पर यकीन खो देते हैं. जब हम कहते हैं कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया, पर काम नही हुआ. मैं कहता हूं कि यदि काम नहीं हुआ, तो इसके मायने हैं कि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दिया.

आपने बच्चों के लिए एक फिल्म ‘‘चिल्लर पार्टी’’ बनायी थी, जिसे पुरस्कार भी मिला था. पर उसके बाद बच्चों के लिए कोई फिल्म नहीं बनायी?

मेरी कौन सी फिल्म ऐसी है, जिसमें हीरो भले ही बड़े हों, पर वह फिल्म बच्चों की नही है. ‘पार्टनर’ में बच्चा था. फिर‘बजरंगी भाईजान’ में बच्ची ही हीरो थी. ‘ट्यूबलाइट’ में बच्चा है, इसके बाद आने वाली फिल्म में बच्ची है. यह जरुरी नहीं है कि जब फिल्म में बच्चें हों तभी वह बच्चों की फिल्म होगी. बच्चे भी फिल्म में बच्चों की बजाय अपने हीरो को देखना चाहते हैं. मेरी राय में फिल्म ऐसी होनी चाहिए, जिसे बच्चे भी अपने माता पिता के साथ जाकर देख सकें और इंज्वॉय कर सकें.

आप एक्शन और कॉमेडी दोनों करते हैं. पर खुद किसमें ज्यादा इंज्वॉय करते हैं?

सच कहूं तो दोनो ही बहुत भारी पड़ जाते हैं. एक्शन में बहुत मेहनत लगती है और कॉमेडी में मैं इतना माहिर हूं नहीं, इसलिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ती है. यदि अच्छी कॉमिक टाइमिंग हमारी फिल्म इंडस्ट्री में किसी के पास है, तो वह गोविंदा के पास है. वह आउट स्टैंडिंग टैलेंटेड कलाकार हैं. बाकी तो अक्की यानी कि अक्षय कुमार भी अच्छी कॉमेडी कर लेता है.

मुझे टाइमिंग वगैरह पर थोड़ा ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. कभी कभी मेरी कॉमेडी पर लोगों को हंसी आ जाती है, कभी कभी गंभीर काम करता हूं, तो उस पर लोगों को हंसी आ जाती है. मेरे साथ तो ऐसा है कि हमने कॉमेडी कर ली, पर पता नहीं किस संवाद पर हंसेंगे या नहीं. सच में हमारे प्रशंसक व दर्शक ही तय करते हैं कि उन्हें क्या अच्छा लगता है, क्या नहीं. हम जैसे कलाकार समझ ही नहीं पाते.

कई बार हम कोई संवाद साधारण तौर पर बोल देते हैं, पर उस पर इतनी तालियां बजती है कि सोचना पड़ता है कि यह क्या हुआ? सच कह रहा हूं हमें पता ही नहीं चलता कि किस संवाद पर दर्शक किस तरह से प्रतिक्रिया देगा.

लंबे समय से आपने रोमांटिक फिल्में नहीं की?

चिंता न करें. दो रोमांटिक फिल्में कर रहा हूं पर अभी उनके नाम उजागर नहीं करना चाहता. वैसे हर फिल्म में रोमांस होता है. जब तक फिल्म में रोमांस न हो, वह फिल्म चलती नहीं है. ‘जय हो’ या ‘किक’ हो रोमांस था. ‘एक था टाइगर’ एक्शन फिल्म थी, पर उसमें भी रोमांस का तड़का था. ‘‘बजरंगी भाईजान’’ में भी रोमांस था. तो फिल्म में रोमांस होना बहुत जरुरी है.

लेकिन इन फिल्मों में रोमांस तो दोयम दर्जे पर रहा?

आपको ऐसा लगता है, मगर प्लॉट बहुत बड़ा है. बिना प्लॉट, कहानी व रोमांस के फिल्म नहीं चलती. आप शुद्ध रोमांस दिखा दो, कहानी न हो, तो वह फिल्म नहीं चलेगी.

पर क्या आज की तारीख में मैने प्यार किया जैसी फिल्में…?

वह एक सफल फिल्म थी. उसको तीस वर्ष हो गए. आज की तारीख में वैसा रोमांस करुंगा, तो लोग मजाक उड़ाएंगे.

तीस वर्ष में रोमांस में क्या बदलाव आया?

धीरे धीरे समाज में बदलाव आया और उसी के साथ रोमांस बदलता गया. अब फास्ट फूड का जमाना है.

आपने 2014 में कनाडा में डॉ कैबीफिल्म बनायी थी. अब कोई योजना है?

इस वक्त एक फिल्म कर रहा हूं.

कहीं पढ़ा कि आप पापा द ग्रेट का रीमेक करना चाहते हैं?

अरे नहीं. मजाक कर रहा था.

आपके नृत्य की भी लोग काफी तारीफ करते हैं?

मेरे नृत्य की तारीफ इसलिए होती है, क्योंकि मैं अलग तरह का नृत्य करता हूं. मेरे नृत्य की तारीफ वह लोग करते हैं, जो नृत्य नहीं कर पाते हैं. जब मैं करता हूं, तो वह लोग उठकर उतना तो कर ही लेते हैं, जितना मैं करता हूं. मेरे गाने पर बेताला से बेताला, बुजुर्ग से बुजुर्ग और बच्चे भी उतना नाच लेता है, जितना मैं नाचता हूं. 

फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ का रेडियो…गाना बहुत लोकप्रिय हो रहा है?

इस गाने पर नृत्य की कदम ताल यानी कि स्टेप्स बहुत साधारण हैं, इसलिए लोग उसकी तारीफ कर रहे हैं. लेकिन मुश्किल वाला नृत्य अब रेमो डिसूजा की फिल्म में आएगा, लेकिन उसमें भी ऐसा करेंगे कि मैं डांसर लगूंगा, लेकिन उसमें भी डांस वैसा ही होगा, जिसे लोग कर पाएं.

कुछ कलाकार आपको अपना मेंटर मानते हैं?

देखिए, जब तक उस लड़के व लड़की में प्रतिभा न हो, तब तक कोई उन्हें फिल्म नहीं देता. दूसरी बात हमें भी प्रतिभाओं की जरुरत है. यह उनका बड़प्पन है कि वह मुझे अपना मेंटर मानते हैं. मैंने यह बात सूरज से सीखा कि जरुरत दोनों तरफ से होती है.

आप बीइंग ह्यूमन के तहत कुछ सिनेमाघर खोलने वाले थें?

नहीं! मैं सिनेमाघर नहीं खोलने वाला था. हमारे देश में कम सिनेमाघर हैं, तो मैंने कहा था कि ज्यादा सिनेमा घर खुलने चाहिए. जहां गांवों में आबादी ज्यादा है, वहां अंतिम घर से पांच मिनट की दूरी पर एक सिनेमा घर होना चाहिए. जहां टिकट दर कम हो. जिससे लोग पायरेसी की तरफ न झुकें और परिवार के साथ फिल्म देख सकें. मेरे दिमाग में यह ख्याल उस वक्त आया था, जब हम लोग ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग मंडवा कर रहे थें. तब हमें ‘डॉली की डोली’ देखने के लिए ढाई घंटे दूर जाना पड़ा था.

सुशांत ने की इतनी मेहनत, अब सेंसर बोर्ड काट रही सीन

सुशांत सिंह राजपूत और कृति सेनन की अपकमिंग फिल्म ‘राब्ता’ इस शुक्रवार रिलीज होने वाली है. सुशांत ‘राब्‍ता’ को लेकर खासा सुर्खियों में बने हुए हैं. पिछले‍ दिनों ही फिल्‍म का ट्रेलर रिलीज हुआ था जिसके बाद से ही सुशांत के लुक की खूब तारीफ हो रही है.

सुशांत ने भी इस फिल्‍म के लिए खुद को फिट करने के लिए खूब तैयारी की थी. सुशांत ने अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर एक वर्कआउट वीडियो शेयर किया है जिसमें वे टफ ट्रेनिंग लेते नजर आ रहे हैं. दिनेश विजान के डायरेक्‍शन में बनी इस फिल्‍म में कृति सैनन भी मुख्‍य भूमिका में हैं.

 

 

आपको बताते चलें कि इस फिल्म के कई सीन्स पर सेंसर बोर्ड ने कट लगाए हैं. फिल्म में बहुत सी गालियों का इस्तेमाल किया गया है जो कि दिखाना संभव नहीं है. एक सूत्र के मुताबिक कुछ सीन्स में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जो बेहद अश्लील है.

सेंसर बोर्ड का मानना है कि एक सिंपल सी लव स्टोरी में ऐसी गालियों की कोई जरूरत ही नहीं है. उन्हें फिल्म में कृति और सुशांत का किस भी बहुत हॉट लगा है. सूत्र ने यह भी बताया कि सेंसर बोर्ड ने निर्माताओं से कहा कि अगर आप U/A सर्ट‍िफिकेट चाहते हैं तो इस फिल्म के सीन्स में बदलाव कीजिए वरना A सर्ट‍िफिकेट ही दिया जाएगा और इस मामले में किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

‘राब्‍ता’ में सुशांत और कृति के अलावा जिम सारभ भी नजर आयेंगे. जिम सारभ इससे पहले फिल्‍म ‘नीरजा’ में नजर आये थें. ‘नीरजा’ में जिम सारभ ने निगेटिव किरदार निभाया था जिसकी खूब चर्चा हुई थी. राब्‍ता में राजकुमार राव भी अपने किरदार से चौंकाने वाले हैं. फिल्‍म में उन्‍होंने 324 साल के वृद्ध का किरदार निभाया था.

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