सुशांत ने की इतनी मेहनत, अब सेंसर बोर्ड काट रही सीन

सुशांत सिंह राजपूत और कृति सेनन की अपकमिंग फिल्म ‘राब्ता’ इस शुक्रवार रिलीज होने वाली है. सुशांत ‘राब्‍ता’ को लेकर खासा सुर्खियों में बने हुए हैं. पिछले‍ दिनों ही फिल्‍म का ट्रेलर रिलीज हुआ था जिसके बाद से ही सुशांत के लुक की खूब तारीफ हो रही है.

सुशांत ने भी इस फिल्‍म के लिए खुद को फिट करने के लिए खूब तैयारी की थी. सुशांत ने अपने इंस्‍टाग्राम अकाउंट पर एक वर्कआउट वीडियो शेयर किया है जिसमें वे टफ ट्रेनिंग लेते नजर आ रहे हैं. दिनेश विजान के डायरेक्‍शन में बनी इस फिल्‍म में कृति सैनन भी मुख्‍य भूमिका में हैं.

 

 

आपको बताते चलें कि इस फिल्म के कई सीन्स पर सेंसर बोर्ड ने कट लगाए हैं. फिल्म में बहुत सी गालियों का इस्तेमाल किया गया है जो कि दिखाना संभव नहीं है. एक सूत्र के मुताबिक कुछ सीन्स में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जो बेहद अश्लील है.

सेंसर बोर्ड का मानना है कि एक सिंपल सी लव स्टोरी में ऐसी गालियों की कोई जरूरत ही नहीं है. उन्हें फिल्म में कृति और सुशांत का किस भी बहुत हॉट लगा है. सूत्र ने यह भी बताया कि सेंसर बोर्ड ने निर्माताओं से कहा कि अगर आप U/A सर्ट‍िफिकेट चाहते हैं तो इस फिल्म के सीन्स में बदलाव कीजिए वरना A सर्ट‍िफिकेट ही दिया जाएगा और इस मामले में किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाएगा.

‘राब्‍ता’ में सुशांत और कृति के अलावा जिम सारभ भी नजर आयेंगे. जिम सारभ इससे पहले फिल्‍म ‘नीरजा’ में नजर आये थें. ‘नीरजा’ में जिम सारभ ने निगेटिव किरदार निभाया था जिसकी खूब चर्चा हुई थी. राब्‍ता में राजकुमार राव भी अपने किरदार से चौंकाने वाले हैं. फिल्‍म में उन्‍होंने 324 साल के वृद्ध का किरदार निभाया था.

कहां हैं नब्बे के दशक के ये मशहूर गायक

90 के दशक में ऐसे कई सिंगर्स रहे हैं, जिन्होंने म्यूजिक वर्ल्ड को नए मुकाम पर पहुंचाया था. पॉप सिंगर अलीशा चिनॉय, बाबा सहगल, श्वेता शेट्टी, फाल्गुनी पाठक जैसे कई सिंगर्स ने बेहतरीन हिट्स दिए, लेकिन आज वो और उनकी आवाज दोनों ही लाइमलाइट से दूर हैं. लंबे समय से इन स्टार्स का कोई भी सॉन्ग सुनने को नहीं मिला है. चलिए हम आपको बताते हैं, ऐसे कौन-कौन से सिंगर्स हैं, जो बीते समय में काफी हिट रहे पर आज कहीं नजर नहीं आते.

1. अलीशा चिनॉय

अब 52 साल की हो चुकीं पॉप सिंगर अलीशा चिनॉय द्वारा साल 1995 में गाया गाना ‘मेड इन इंडिया’ बेहद पॉपुलर हुआ था. अलीशा के कई म्यूजिक एल्बम भी आए. उनका साल 2007 में आया ‘शट अप एंड किस मी’ भी खासा पसंद किया गया था. इसके अलावा अलीशा के ‘अलीशा मैडोना’ (1990), ‘आह अलीशा’ (2009) सहित कई एल्बम्स आए.

उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए. जिनमें साल 1987 में आई फिल्म ‘डांस डांस’ का ‘जूबी जूबी’, और ‘करते हैं हम प्यार मिस्टर इंडिया से.’ (फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’, 1987), ‘रात भर जाम से जाम टकराएगा.’ (फिल्म ‘त्रिदेव’, 1989), ‘रुक, रुक रुक अरे बाबा.’ (फिल्म ‘विजयपथ’, 1994), ‘कजरारे कजरारे तेरे.’ (फिल्म ‘बंटी और बबली’, 2005), ‘आज की रात.’ (फिल्म ‘डॉन’, 2006) सहित कई गाने शामिल हैं. उन्होंने आखिरी बार साल 2013 में आई फिल्म ‘कृष-3’ में गाना गाया था. कई हिट्स देने वाली अलीशा आज लाइमलाइट से दूर हैं.

2. फाल्गुनी पाठक

फाल्गुनी पाठक, जो कि अब 53 साल की हो चुकी हैं, उनका साल 1998 में आया सॉन्ग ‘याद पिया की आने लगी’ उस समय का सबसे पॉपुलर गाना था. फाल्गुनी ने कई एल्बम्स भी निकाले. फाल्गुनी के एल्बम ‘मैंने पायल है झनकाई.’ साल 1999, ‘मेरी चुनरियां उड़ उड़ जाए’ साल 2000, काफी फेसम रहे. उन्होंने साल 1997 में आई फिल्म ‘कोयला’ का ‘बंधन जुदा होते हैं’, ‘याद पिया की’ फिल्म ‘प्यार कोई खेल नहीं’, ‘कहां तेरी बांसुरी’ फिल्म ‘लीला’, जो कि साल 2002 में आई थी, सहित कई अन्य फिल्मों में भी गाने गाए हैं. लेकिन लंबे अरसे से उनका कोई गाना सुनने को नहीं मिला है. हालांकि, नवरात्रों में वे स्टेज शोज किया करती हैं.

3. रागेश्वरी

साल 2006 के बाद रागेश्वरी का कोई एल्बम सॉन्ग नहीं आया है. उन्होंने अपने करियर में कई गाने गाए हैं. उनके द्वारा निकाले गए एल्बम्स में साल 1997 का ‘दुनिया’, ‘प्यार का रंग’, साल 1998, ‘सच का साथ’, 1998, ‘सागारी गायन’ साल 2006 सहित अन्य कई एल्बम शामिल हैं.

हम आपको बता देना चाहते हैं कि रागेश्वरी ने कुछ फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने साल 2003 में रिलीज हुई फिल्म, ‘मुंबई से आया मेरा दोस्त’, 2002 में ‘तुम जियो हजारों साल’, ‘दिल कितना नादान है’, 1997, ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’, फिल्म ‘जिद’ और साल 1993 में आई फिल्म ‘आंखें’ में भी काम किया है.

4. बाबा सहगल

बीते संमय के सुपरहिट गाने ‘आजा मेरा गाड़ी में बैठ.’ को सहगल ने ही गाया है. उन्होंने कई म्यूजिक एल्बम भी निकाले. उन्होंने ‘दिलरुबा’ (1991), ‘ठंडा ठंडा पानी’ (1992), ‘मैं भी मैडोना’ (1993), ‘बाबा बचाओ ना’ (1993), ‘धक धक दिल इन कलकत्ता’ (1997), ‘बाबा की गड्डी’ (2009) सहित कई एल्बम निकाले. उन्होंने ‘दम दम मस्त कलंदर’ (फिल्म हम है बेमिसाल, 1994) गाना भी गाया. 1998 में उन्होंने फिल्म ‘मिस 420’ से एक्टिंग डेब्यू किया था. वे 2009 में आई फिल्म ‘माय फ्रेंड गणेशा-3’ में भी नजर आए. इसके बाद न तो उनका कोई गाना आया और न ही वे किसी फिल्म में नजर आए.

5. श्वेता शेट्टी

बहुत मशहूर गायक रहीं, साल 1998 में श्वेता शेट्टी का गाना ‘दीवाने दीवाने तो दीवाने हैं’ बेहद पॉपुलर हुआ था. उन्होंने ‘जॉनी जोकर’, ‘द न्यू एल्बम’ सहित कई एल्बम निकाले हैं. उन्होंने कुछ फिल्मों में भी गाने गाए हैं, जिनमें साल 1997 में आई फिल्म ‘जिद्दी’ का ‘काले काले बाल’, ‘पोस्टर लगवा दो बाजार में’, ‘दिल टोटे टोटे हो गया’, ‘मांगता है क्या’ सहित कई फिल्मों में गाने गाए हैं.

साल 2003 में आई फिल्म ‘जमीन’ में उन्होंने ‘दिल्ली की सर्दी.’ गाना गाया था, इसके बाद से उनका कोई गाना सुनने को नहीं मिला है.

अब बड़े नोट लेते समय हिचकिचाएं नहीं

नोटबंदी के बाद नकली नोटों के बढ़ते कारोबार के चलते अक्सर आप बड़े नोट लेते समय हिचकिचाती हैं कि कहीं चूना न लग जाए. आपकी इस दुविधा को खत्म करने के लिए आज हम आपको बता रहे है कुछ ऐसे सरल उपाय जिससे आप असली व नकली नोट की आसानी से पहचान कर सकेंगी.

1. वॉटर मार्क : सभी असली नोटों की लेफ्ट साइड पर महात्मा गांधी का हल्का शेडेड वॉटर मार्क होता है . जब आप नोट को तिरछा करेंगी तो इस वाटर मार्क में अलग-अलग दिशाओं में जाने वाली लाइनें दिखाई देंगी. इसके साथ ही अंकों में नोट का मूल्य भी लिखा होता है.

2. सिक्योरिटी थ्रेड : सिक्योरिटी थ्रेड असली नोटों को पहचानने का बहुत ही भरोसेमंद तरीका है. यह थ्रेड महात्मा गांधी की फोटो के लेफ्ट साइड में होता है, जिस पर भारत और आरबीआई लिखा होता है. ध्यान रहे कि 5 से 50 रुपये के नोटों के तार पर केवल भारत छपा होता है.

3. पहचान चिन्ह : 20 रुपये और इससे ज्यादा मूल्य के नोटों पर फ्लोरल प्रिंट के ठीक नीचे एक पहचान चिन्ह बना होता है. यह खास तरह का निशान होता है जो सभी नोटों में यह अलग आकार का होता है और वाटर मार्क के बाईं ओर दिखाई देता है. 20 रुपये में यह वर्टिकल रेक्टेंगल, 50 रुपए में चकोर, 100 रुपये में ट्राइएंगल, 500 रुपये में गोल और 1000 रुपये में डायमंड शेप में होता है.

4. रजिस्ट्रेशन : वॉटर मार्क के बिल्कुल लेफ्ट साइड में फ्लोरल प्रिंट होता है. नोट में बैक टू बैक दो फूल बने होते हैं. यह सामने से खाली और पीछे से भरा हुआ होता है. इस डिजाइन को रोशनी में रख कर देखा जा सकता है.

5. उभरा हुआ प्रिंट : 20 रुपये और उससे अधिक मूल्य के नोटों पर फ्लोरल प्रिंट, अशोक स्तंभ, पहचान चिन्ह, रिजर्व बैंक की गारंटी, मूल्य अदा करने का वचन, रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर, महात्म गांधी की तस्वीर और रिजर्व बैंक की सील उभरे प्रिंट में बने होते हैं.

6. ऑप्टिकल वैरिएबल इंक : 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों पर मूल्य रंग बदलने वाली इंक (ऑप्टिकल वैरिएबल इंक) से लिखा होता है. जब आप नोट को सीधा पकड़ती हैं तो हरा और इसे थोड़ा तिरछा करने पर यह हमें नीले रंग का दिखाई देता है.

अद्भुत है हुबली की उन्कल झील

कर्नाटक राज्य का प्रमुख शहर हुबली. इसे धारवाड़ के जुड़वां शहर के नाम से भी जाना जाता है. यह कर्नाटक के धारवाड़ जिले का प्रशासनिक मुख्यालय, उत्तरी कर्नाटक का वाणिज्यिक केंद्र भी है. राज्य की राजधानी बेंगलुरु के बाद यह राज्य का विकासशील औद्योगिक, आटोमोबाइल और शैक्षणिक केंद्र है.

ऐतिहासिक शहर हुबली की उत्पत्ति चालुक्यों के समय की है. यह पूर्व में रायरा हुबली या इलेया पुरावदा हल्ली और पुरबल्ली के नामों से जाना जाता रहा है. यह साउथ वैस्टर्न रेलवे का डिवीजन भी है. इसलिए इस नगर का महत्त्व कुछ ज्यादा ही है. हुबली कमर्शियल सिटी है, इसलिए इस शहर को छोटा मुंबई भी कहा जाता है.

यहां की 110 साल पुरानी उन्कल झील का आनंद लेने के लिए पर्यटकों को जरूर जाना चाहिए. यह अपने शांत और सुरम्य वातावरण के लिए लोकप्रिय है. 200 एकड़ के क्षेत्र में फैली यह झील पर्यटकों द्वारा हुबली का सब से ज्यादा घूमा जाने वाला आकर्षण है. मनोरंजक गतिविधियों के अलावा पर्यटक यहां पर शाम को सूर्यास्त का सुंदर दृश्य भी देख सकते हैं. इस स्थान का प्रमुख आकर्षण झील के बीच में स्थित स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा है. झील के आसपास हराभरा बगीचा देख कर पर्यटकों का मन प्रफुल्लित हो उठता है.

नौकायान के शौकीन लोगों को बोट में घूमने का मौका दिया जाता है. छोटी बोट में 4-5 लोग बैठ कर पैडल मारते हुए खुशी से आगे बढ़ते हैं. बड़ी बोट में बहुत सारे लोग एकसाथ बैठ कर खुशी से झूम उठते हैं. झील के किनारे पैदल जाना मन को खुशी से भर देता है. वहां बैठ कर झील के विहंगम दृश्य का नजारा ले सकते हैं. झील के चारों ओर आकर्षक रोशनी की व्यवस्था की गई है.

इंदिरा गांधी ग्लास हाउस

अगर आप हुबली जाएं तो इंदिरा गांधी ग्लास हाउस की प्रसिद्ध पुष्प प्रदर्शनी अवश्य देखने जाएं. यह ग्लास हाउस बेंगलुरु के लाल बाग गार्डन की तरह है. यहां स्केटिंग ग्राउंड के अलावा घास के हरेभरे मैदान हैं.

मारुति वाटर पार्क और वर्ल्ड पार्क

हुबली शहर में स्थित मारुति वाटर पार्क और वर्ल्ड पार्क पर्यटकों को आराम व मनोरंजन का बेहतर औप्शन देते हैं. ये पार्क करवार रोड पर ईएसआई अस्पताल के नजदीक हैं. यहां के वाटर गेम्स व राइड्स को बच्चे खासा पसंद करते हैं.

बूंद गार्डन

उन्कल झील को देखने आए पर्यटकों को जानेमाने बूंद गार्डन को देखने की सलाह दी जाती है. हुबली से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह बगीचा उन्कल झील का ही भाग है, जहां के शांत वातावरण में पर्यटक आनंदित हो सकते हैं.

कुल मिलाकर हुबली की उन्कल झील ही सैलानी का पसंदीदा ठौर इसलिए भी है क्योंकि वहां आ कर न सिर्फ शहरों की भागदौड़ भरी नीरस जिंदगी से ताजगी भरा बे्रक मिलता बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य के अद्भुत खजाने से रूबरू होने का मौका मिलता है. अगर अब तक आप ने पर्यटन का आगामी प्रोग्राम नहीं बनाया है तो निश्चित तौर पर उन्कल झील का प्लान बना लीजिए. 

कैसे जाएं

वायुमार्ग

प्रमुख भारतीय शहरों से जोड़ने वाला हुबली हवाई अड्डा यहां का सब से नजदीकी हवाई अड्डा है. यह शहर के केंद्र से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर है. 186 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोआ का डबोलिक हवाई अड्डा सब से नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है. यह हवाई अड्डा प्रमुख भारतीय शहरों के साथसाथ अंतर्राष्ट्रीय स्थानों से भी भलीभांति जुड़ा है. डबोलिक हवाई अड्डे से यहां पहुंचने के लिए कई मौसमी चार्टर्ड उड़ानें भी उपलब्ध रहती हैं.

रेलमार्ग

हुबली रेलवे स्टेशन यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है. यह मुख्य शहर से मात्र 4 किलोमीटर की दूरी पर है. बेंगलुरु और मैंग्लौर जैसे भारत के प्रमुख शहरों से हुबली भलीभांति जुड़ा है. यहां पहुंच कर यात्री टैक्सी ले कर मुख्य शहर तक पहुंच सकते हैं.

सड़कमार्ग

हुबली बस सेवाओं द्वारा मैंग्लौर, पुणे, मैसूर, बेंगलुरु, गोआ और मुंबई से भलीभांति जुड़ा है. प्राइवेट निजी बसों, वोल्वो बसों और एन डब्लू के आरटीसी (नौर्थवेस्ट कर्नाटक सड़क परिवहन निगम) की बसें इन स्थानों से हुबली के लिए नियमित रूप से चलती हैं.

वाई बी कडाकोल

मोटापा दूर भगाता है मशरूम

आज की बदलती जीवनशैली में हर कोई अपने मोटापे से परेशान है और मोटापा बढ़ने के साथ-साथ तमाम तरह की स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं शुरू होने लगती है. पेट की बढ़ी हुई चर्बी की वजह से आपको कई बार शर्मिंदा भी होना पड़ता है.

अगर आप भी ऐसी किसी परेशानी का सामना कर रही हैं तो और इन सारी परेशानियों से छुटकारा पाना चाहती हैं तो आपके लिए मशरूम फायदेमंद साबित हो सकता है. मशरूम का सेवन आपके बढ़ते मोटापे को घटाने के साथ-साथ कई बीमारियों को भी दूर भगाएगा.

मोटापा कम करता है मशरूम

विदेश की एक यूनिवर्सिटी में हुई एक नई रिसर्च के अनुसार मशरूम और उसका रस मोटापा कम करने में बेहद असरदायक है. इसका प्रयोग लगभग दो हजार साल पहले से किया जा रहा है.

वैज्ञानिकों द्वारा चूहों पर किए गए शोध इस बात की पुष्टि करते हैं कि कि मशरूम का रस मोटापा कम करने और मेटाबोलिक क्रियाओं के द्वारा फैट को जलाने के काम आता है. चीन में इसे लिंघजी और जापान में मेन्‍नानटेक कहते है. इसके रस में पाए जाने वाले न्‍यूट्रिएंट्स चूहों के बॉडी में पाया जाने वाला उन माइक्रोऑर्गेनिज्‍म को तोड़ देते हैं, जो कि वजन बढ़ाने में ज्‍यादा उत्‍तरदायी होते हैं.

आपके लिए मशरूम के अन्य लाभ

इस संबंध में की गई स्‍टडीज बताती हैं कि अतिरिक्‍त फैट लेने के बावजूद मशरूम आंतों के बैक्‍टीरिया को मारता है और मोटापा बढ़ाने वाले कारकों को नष्‍ट कर देता है. मशरूम लिवर डिजीज, टाइप टू डायबटीज और इंसुलिन रेसिसटेंस (प्रतिरोध) के लिए भी फायदेमंद है. आज के समय में काफी लोग मोटापे के शिकार हो रहे हैं ऐसे में मशरूम और उसका रस हमारे लिए अच्‍छा इलाज है.

मोटापा रोकना बड़ी चुनौती

जैसा हं बार बार आपसे कह रहे हैं कि मशरूम की मदद से, मोटापे के प्रसार को कम किया जा सकता है. खासकर ऐसे समय में ज्‍यादा महत्वपूर्ण है, वर्तमान में मोटापा लोगों के स्वास्थ्य के लिए ज्‍यादा खतरा है.

एक आंकड़े के मुताबिक दुनियाभर में 500 मिलियन लोग मोटे हैं और 1.4 अरब लोग मोटापे के शिकार हैं. यह एक वजन समस्‍या है. मोटापे को रोकना बहुत बड़ी चुनौती है.

अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनाना है : विवेक ओबेराय

2002 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘‘कंपनी’’ से अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले विवेक ओबेराय ने साथिया’, ‘ओमकारा’, ‘शूटआउट ऐट लोखंडवाला’, ‘युवा’, ‘मस्ती’ सहित कई फिल्में कर चुके हैं. उनके करियर पर गौर किया जाए, तो उन्होंने गैंगस्टर, लवर ब्वॉय के साथ कॉमेडी कर हर तरह के रंग अपने अभिनय से परदे पर दिखाए हैं. फिलहाल उनकी नई फिल्म ‘‘बैंक चोर’’ 16 जून को प्रदर्शित होने वाली है.

विवेक ओबेराय महज अभिनेता नहीं हैं. वह बिजनेसमैन व समाज सेवक भी हैं. वह ‘एंटी टोबैको’ के ब्रांड एम्बेसेडर भी हैं. वह भवन निर्माता भी हैं. उन्होंने हाल ही में सैनिकों के परिवारों को 25 फ्लैट उपहार में दिए हैं.

आप बहुत कम फिल्में करने लगे हैं?

जी हां. 2013 से पहले मैं हर साल कम से कम पांच फिल्में कर रहा था. यह वह वक्त था, जब मैं फिल्म की शूटिंग करता था और बीच बीच में बिजनेस व चैरिटी की मीटिंग करता था. बहुत तनाव हो रहा था. परिवार व अपने नवजात बेटे विवान को भी समय नहीं दे पा रहा था. इसलिए फिर निर्णय लिया कि हमें कैसे क्या करना है. समय के साथ इंसान को खुद विश्लेषण करना चाहिए कि हमें क्या चाहिए, कितना चाहिए. देखिए, इंसानी चाहत की कोई सीमा नहीं पर जरुरत तो तय कर सकते हैं. तब हमने तय किया कि हर साल कम मगर बेहतरीन फिल्में की जाएं.

फिल्म ‘‘बैंक चोर’’ को लेकर क्या कहेंगे?

‘‘वाय एफ’’ के बैनर तले बनी बेहतरीन ह्यूमर वाली फिल्म है, जिसमें मैं एक पुलिस अफसर अमजद खान के किरदार में हूं. फिल्म की कहानी के केंद्र में बैंक चोरी है. चंपक नामक मराठी युवक दो लड़कों लेकर बैंक के अंदर चोरी करने जाता है, क्योंकि उसे अपनी मां के इलाज के लिए पैसे की सख्त जरुरत है. यह लार्जर दैन लाइफ फिल्म है. पूरी तरह से मध्यम वर्गीय फिल्म है. एक अच्छी फिल्म और अपने दोस्त रितेश देशमुख के साथ काम करने का अवसर था, इसलिए मैंने की है. फिल्म बनी भी अच्छी है.

क्या आप मुद्दों पर आधारित गंभीर फिल्म में अभिनय करना पसंद करेंगे?

क्यों नहीं. यदि सशक्त फिल्म का ऑफर मिले तो जरुर करुंगा. मेरी राय में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक संदेश पहुंचाने और सामाजिक बदलाव लाने में सिनेमा की अहम भूमिका हो सकती है.

तो अब आप अपने बेटे को समय देते हैं?

2013 के बाद मैंने तय कर लिया कि शाम सात बजे तक घर पहुंच जाना है. फिर सुबह नौ बजे तक के लिए मोबाइल फोन बंद कर देता हूं. जब मैं शाम सात बजे घर पहुंचता हूं, तो मैं अपनी बेटी अमेया निर्वाणा व बेटे विवान दोनों को नहलाता हूं. उन्हें खाना खिलाता हूं. फिर हम छत पर जाते हैं. खुले आसमान के नीचे खड़े होकर उनके साथ चंदा मामा और सितारों से बातें करते हैं. उसके बाद उन्हें बिस्तर पर लिटाकर कहानी सुनाते हुए सुलाता भी हूं. मैं अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनाना चाहता हूं.

आपका बेटा विवान आपसे सवाल भी करता होगा?

जी हां. वह चार साल का हो गया है. नर्सरी में पढ़ने जाने लगा है. कई बार उसके सवालों के जवाब दे पाना मेरे लिए मुश्किल भी हो जाता है. अनोखे सवाल होते हैं. कई बार मुझे लगता है कि वह मुझे सिखा रहा है. एक दिन मैं उससे धरती के बारे में बात कर रहा था. शायद उसी दिन वह धरती के बारे में स्कूल से कुछ सीख कर आया था. तो उसने अंग्रेजी में कहा कि आप ‘मम्मा अर्थ’ की बात कर रहे हैं. मैने पूछा कि ‘मम्मा अर्थ’ क्या हुआ? तो उसने कहा, ‘जैसे मेरी मम्मा है. वह मुझे खाना देती है. पानी देती है. मैं उससे जो मांगता हूं, वह सब वह देती है. अर्थ हम सबको सब कुछ देती है, इसलिए वह हम सबकी मम्मा हो गयी.’’

उसकी बातें सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया. उसे प्रकृति से बहुत प्यार है. उसके दादाजी यानी कि मेरे पिता श्री सुरेश ओबेराय उससे पेड़ों के बारे में बातें करते हैं. हम मुंबई में जहां रह रहे हैं, वहां 1985 से रह रहे हैं. तो उस पूरी गली में मेरे पिता जी ने पेड़ लगाए हैं. वह अपने जन्मदिन व अपनी शादी की सालगिरह पर कम से कम एक पेड लगाते आ रहे हैं. कुछ पेड़ बीस व तीस वर्ष के हो गए हैं. वह सारे पेड़ इतने बड़े व घने हो गए हैं कि हमारे घर के सामने वाली पूरी गली में हरियाली ही नजर आती है. सड़क पर खड़े होकर आप सूर्य नहीं देख सकते. अब मेरे पिता जी वही काम अपने पोते व पोती से कराते रहते हैं. बीज बोना, पानी देना, पेड़ को सहलाना वगैरह.

आपने वृंदावन में अपनी मां के नाम लड़कियों के लिए जो स्कूल चला रखे हैं, उसकी प्रेरणा कहां से मिली थी?

करीबन आठ नौ वर्ष पहले मैं वृंदावन गया था. वहां पर मुझे पता चला कि देश के विभिन्न हिस्से से लड़कियों को लाकर बाल यौन शोषण के लिए बेचा जाता है. पहले मुझे लगा कि वृंदावन जैसी भगवान कृष्ण की नगरी में यह संभव नही है. यह तो देश की राजधानी दिल्ली से 150 किलोमीटर दूर है. पर जब उस बाजार में मैं गया तो सब कुछ अपनी आंखों से देखकर स्तब्ध रह गया.

दुःख तब ज्यादा हुआ, जब मैंने पाया कि वहां पर सबसे बड़ी उम्र की लड़की 13 साल की और सबसे छोटी पांच साल की है. मेरी समझ में नहीं आया कि आखिर इंसान इतना बड़ा जानवर या हैवान या हवशी हो गया है कि वह पांच साल की लड़की को भी नहीं छोड़ेगा. तब मैंने वहां के कुछ स्थानीय लोगों और श्रीकृष्ण आंदोलन से जुड़े लोगों को लेकर उस बाजार से लड़कियों को मुक्त कराने का काम शुरू किया.

हमने उन्हें रहना, भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा सब कुछ मुफ्त में देना शुरू किया. हमने कोशिश की कि मुक्त करायी गयी लड़कियों को उनके माता पिता तक पहुंचाया जाए. कुछ में सफलता मिली, पर ज्यादातर लोगों ने अपनी बेटियों को स्वीकार करने से साफ इंकार कर दिया. तब ऐसी लड़कियों के लिए हमने सर्व सुविधायुक्त आवासीय स्कूल शुरू किया. हमने आस पास के 14 गांवों का दौरा किया, तो पाया कि वहां पर तेरह चैदह साल की उम्र की लड़कियों की शादी 35 से 40 साल की उम्र के पुरूषों के संग पैसे लेकर करायी जा रही है. यानी कि लड़की के पिता सामने वाले से लड़की देने के नाम पर दहेज ले रहे थें. यह डरावनी तस्वीर देख व सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए. हमने इन लड़कियों को अपने स्कूल में शिक्षा देना शुरू किया. हमने उनके माता पिता बनकर उनकी देखभाल करना शुरू किया. हमने उनका मानसिक इलाज भी करवाया.

गांव के सरपंच वगैरह की मदद से लड़की के माता पिता पर दबाव डलवाया. अब इन चैदह गांवों में सौ प्रतिशत बाल विवाह बंद हो चुका है. हमने गांव के लोगों की मानसिकता को बदला. उन्होंने भी देखा कि उनकी बेटियां पढ़ रही हैं. कुछ हूनर सीख रही हैं. इन लड़कियों को भोजन, कपड़े, किताबें, कॉपी, कम्प्यूटर सब कुछ दे रहे हैं. इनमें से कुछ लड़कियों का अब करियर बन रहा है. कुछ आईटी का काम सीखकर अपनी दुकान खोल रही हैं. कुछ ने मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोली है. यह सब देखकर अब गांवों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले माता पिता भी खुश हैं. अब हम चौथा स्कूल गोवर्धन में खोलने जा रहे हैं.

कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद के लिए भी सहयोग दे रहे हैं?

यह काम हमने 15 वर्ष पहले शुरू किया था. उस वक्त हमने देखा था कि गांवों रहने वाले किसान अपने बच्चे की इस बीमारी का इलाज कराने के लिए अपनी खेती साहूकार के पास गिरवी रखकर तीन से चार प्रतिशत ब्याज पर पैसे ले रहे हैं और बेचारे बर्बाद हो रहे हैं. मैं ऐसे परिवारों से मुंबई में ‘टाटा मेमोरियल अस्पताल’ में मिला, तो मुझे लगा कि इनके लिए कुछ किया जाना चाहिए. तो हमने ‘टाटा मेमारियल कैंसर अस्पताल’ के साथ मिलकर एक मुहीम चलायी और अब तक हमने ढाई लाख बच्चों का इलाज करवाया है. मैं यह नहीं कह रहा कि यह सारा पैसा मैंने अपनी जेब से दिया है, बल्कि हमें इस नेक काम को करने में कई छोटे बड़े उद्योगपतियों और विदेशी संगठनों से भी मदद मिली है. हमने करीबन 40 पत्रकारों की मदद की है. गरीब इंसान को कैंसर है, तो हम उसकी भी मदद करते हैं. हम ज्यादा से ज्यादा मदद करते हैं.

आप यह सारा काम अपना एनजीओ बनाकर कर रहे हैं?

जी हां. हमारा एनजीओ है ‘‘वन फाउंडेशन’’ लेकिन हमने कोई ऑफिस नहीं बनाया है. वास्तव में जब हमने इसकी शुरूआत की, तो लोगों ने बताया कि हमें ऑफिस खोलना चाहिए, कुछ स्टाफ रखना होगा, जिन्हें सैलरी देनी होगी. फिर बिजली वगैरह का बिल भरना है. तो मैंने कहा कि हमें लोगों से दान के रूप में 100 रूपए मिलेंगें और हम उसमें से 70 रूपए ऑफिस पर खर्च करेंगे तो जरुरत मंद बच्चों तक क्या सिर्फ 30 रूपए पहुंचेंगे. इसलिए हमने पहले से ही मौजूद एनजीओ मसलन ‘कैंसर पेशेंट एसोसिएशन’ के साथ हाथ मिलाया और काम कर रहे हैं. मेरी संस्था का खर्च जीरो है. जब हम अपने एनजीओ की तरफ से प्रमोशनल इंवेंट करते हैं, तभी खर्च आता है.

इस तरह के काम को अपना कितना समय देते हैं?

समय बहुत देना पड़ता है. इसलिए हमने तय किया है कि कितना समय समाज सेवा के कार्यों को, कितना समय बिजनेस को और कितना समय फिल्मों में अभिनय करने के लिए देना है. कितना समय अपने परिवार केा दूंगा. यानी कि हर चीज के बीच समय का एक संतुलन बनाकर चल रहा हूं. चाणक्य नीति में बहुत सुंदर तरीके से लिखा है इंसान को जिंदगी में चार नियमों विवेक, विचार, नीति व वैराग्य का पालन करना चाहिए.

विवेक, जो कि हमें बताता है कि मेरी अपनी जिंदगी की जरुरत क्या है. विचार, विवेक ने जो कहा उसे विचार करना कि क्या यह सही है या नहीं. हमारी वास्तविक जरुरत कितनी है. सिर्फ बैंक में रकम के आगे जीरो बढ़ाने का कोई मतलब नहीं.

नीति के तहत हमें तय करना है कि हमें क्या चाहिए. आखिर हम घर के सामने दस गाड़ी क्यों खड़ी रखें. जिंदगी की सबसे बड़ी जरुरत है उसे साधारण बनाए रखना. जिंदगी को जटिल बनाने वाले काम न करें, ऐसे साधन जुटाएं, जो कि चिंता न बढ़ाएं. दस गाड़ी होने पर उतने ड्रायवर और उसी तरह की समस्याएं होगी. वार्डरोब में ज्यादा कपड़े क्यों रखें. बच्चों को भी यही सिखा रहा हूं.

देखिए, हकीकत में वैराग्य सन्यास नहीं है. वैराग्य तो बहुत उंचा दिमागी स्तर है, जिसमें आप अपनी जिंदगी के कार्यों में मगन या लीन हैं तो वह काम बेहतर होगा. यदि आप अभिनय कर रहे हैं, तो उसमें डूब जाएं. काम करते हुए इंज्वॉय करें.

आप अपने बिजनेस को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

सच यह है कि अभिनेता बनने से पहले मैं बिजनेस मैन बना था. 19 साल की उम्र में मैंने बिजनेस शुरू किया था. फिर कुछ समय बाद अपना शेयर बेचकर विदेश पढ़ाई करने चला गया. 2002 से अभिनय कर रहा हूं. 2009 में मैंने तकनीकी कंपनी में इंवेस्टमेंट किया. 2012 से भवन निर्माण के क्षेत्र में हूं. हमने ‘कर्म इंफ्रास्ट्रक्चर’ के तहत 19000 परिवारों को सस्ते मकान दिलाए. हम ‘रघुलीला इंफ्रास्ट्रक्चर’ से भी जुड़े हुए हैं.

सराहनीय प्रयोग

‘मूव ओवर लेडीज फौर पौट लक, नाऊ कम चीफ मिनिस्टर ऐंड हिज मिनिस्टर्स फौर पौट लक किट्टी.’ अब भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पौट लक मंत्रिमंडल बैठक बुलाई जिस में सभी मंत्री घर से खाना लाए और सब ने आपस में शेयर किया. बजाय जनता को सिखाने का काम करते रहने के मंत्रियों का जनता से सीखने का यह एक अच्छा मामला रहा है.

मंत्रियों को एकदूसरे का खाना कैसा लगा, यह तो नहीं बता सकते पर अगर महिलाओं से पूछें तो उन्हें रेस्तराओं और कैटररों के खाने से घरों के खाने में कहीं ज्यादा स्वाद आता है. एक घरवाली के हाथ का स्वाद ही कुछ और होता है पर हमारे यहां किचन को नीचा देखा जाने लगा है.

इस की एक वजह यह भी है कि किचन की बनावट ही कुछ गलत होती है और रखरखाव खराब रहता है. आजकल कई बिल्डर किचन को विशेष ढंग से सजाने लगे हैं कि वह अलग लगे ही नहीं और बड़े मकानों में भी आम घर की सी लगे ताकि खाना पकाने में बोरियत न हो.

भोपाल का मंत्रिमंडल प्रयोग बहुत अच्छा है और उसे बोर्डरूमों में भी ले जाना चाहिए ताकि गंभीर चर्चा के साथ खाने के स्वाद की भी  चर्चा हो सके. हां, यह संभव है कि वैसे बहुत ही सुलझे जने की बीवी या कुक अनगढ़ हो और कह डाले कि या तो अधपका ले जाओ या फिर किसी रेस्तरां से खरीद

कर ले जाओ. उस में मजा ही खत्म हो जाएगा.

सम्मिलित भोज सदियों से समाज को जोड़ने का काम करते रहे हैं. हां, विशिष्ट लोगों का अपना ग्रुप बन जाए जिस में वे औरों को न आने दें तो बात दूसरी. तब मुश्किल हो जाती है. सामूहिक भोज विभाजन की लकीर बन जाता है. रोटीबेटी का संबंध बनाने या न बनाने की गलत परंपरा वहीं से विकसित हुई है. यह समाज के हर हिस्से में फैली है.

सामूहिक भोज जिस में हरकोई अपने घर का खाना ला कर डाले वाकई आपसी प्रेम की निशानी होगा. हो सकता है पता न चले कि कौन क्या लाया पर यह एहसास कि सब उस के घर का खाना चख रहे हैं, अपनापन बढ़ाने में बड़ा कारगर होगा और हलवाई या कैटरर के खाने से कहीं ज्यादा पेट और दिल के लिए सुखद होगा.

यूं पाएं मुंहासों से छुटकारा

आने वाला मौनसून अपने साथ बहुत सी समस्याएं भी ले कर आता है. उन में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली समस्या है पसीना. पसीना कई बार पिंपल्स का कारण भी बनता है. क्या हैं इससे बचने के उपाय और क्या हैं इनके कारण, आइए जानते हैं :

कारण

1. जब चेहरे पर पसीना आता है तो वह चेहरे को चिपचिपा बना देता है, जिससे धूल के कण चेहरे पर चिपक जाते हैं और रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और घमौरियों की समस्या होने लगती है. इस के अलावा कई महिलाओं की स्किन बहुत ज्यादा सैंसिटिव होती है. ऐसे में जब चेहरे पर पसीने की वजह से धूल चिपकती है तो उस में खुजली और रैशेज जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

2. औयली स्कैल्प भी पिंपल्स का एक बड़ा कारण है. पसीने की वजह से औयली हुई स्कैल्प पिंपल्स को जन्म देती है.

3. पसीने की वजह से चेहरा तैलीय न लगे, इसलिए कई महिलाएं चेहरे पर पाउडर लगा लेती हैं. अगर आप भी ऐसा करती हैं तो फौरन सावधान हो जाएं, क्योंकि पाउडर का ज्यादा प्रयोग रोमछिद्रों को ब्लौक कर मुंहासों की समस्या को जन्म देता है.

उपाय

1. इस मौसम में जितना हो सके हलका मेकअप ही करें और सोने से पहले उसे साफ जरूर कर लें.

2. औयल मेकअप प्रोडक्ट का प्रयोग न करें.

3. क्ले मास्क का प्रयोग करें. इससे चेहरे पर पसीना कम आता है.

4. 2 बूंदें लैमन जूस की रोज वाटर में मिला कर चेहरे पर लगाएं. फिर 10 मिनट बाद चेहरे को धो लें. इस से पसीने की वजह से चेहरे पर जमा हुआ अतिरिक्त औयल साफ हो जाता है और अगर मुंहासे हुए हों तो वे भी जल्दी ठीक हो जाते हैं.

5. मस्टर्ड पाउडर में शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं व 15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इस से भी पसीने की समस्या कम होती है और पिंपल्स से भी राहत मिलती है.

6. बर्फ को सूती कपड़े या तौलिए में लपेट कर चेहरे पर 1-2 मिनट तक रब करें. इस से भी पिंपल्स और अतिरिक्त तेल से मुक्ति मिलेगी.

7. इस बारे में पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट डा. विवेक मेहता का कहना है कि बर्फ को अपनो चेहरे पर रब करते वक्त आंखों के आसपास इसका प्रयोग न करें. इस के अलावा कभी इसे 2 मिनट से ज्यादा देर तक भी न करें. सब से महत्त्वपूर्ण बात बर्फ को कभी स्किन पर सीधे अप्लाई न करें वरना फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है.

19 साल बाद खुला सलमान का ये राज

आखिरकार 19 साल बाद अभिनेता सलमान खान ने ये राज खोल ही दिया और सबको बता दिया कि वे साल 1998 में आई फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में पहली बार शर्टलेस क्यों हुए थे. ये बात तो सभी जानते हैं कि सुपरस्टार सलमान खान ने ही फिल्मों में शर्टलेस होने का ट्रेंड इजात किया है.

हाल ही में सलमान ने इतने सालों में पहली बार एक सिंगिंग रियलिटी शो के सेट पर शर्टलेस होने की वजह, सभी दर्शकों और अपने प्रशंसकों से साझा की.

19 साल पहले रिलीज हुई उस फिल्म के गाने ‘ओ ओ जाने जाना…’ में जब सलमान गिटार बजाते हुए शर्टलेस अवतार में दिखे, तो फैन्स को उनका यह लुक बेहद भाया. इसके बाद लगभग हर फिल्म में सलमान ने ऑडियंस की पसंद को ध्यान में रखते हुए शर्ट उतारी.

आपको जानकर हैरानी होगी कि उनके यूं पर्दे पर शर्ट उतारने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. हाल ही में सलमान खान, अपने निर्देशक भाई सोहेल खान के साथ एक मशहूर सिंगिंग रियलिटी शो ‘सा रे गा मा पा लिटिल चैम्प्स’ में पहुंचे. यहां उन्होंने सोहेल खान के डायरेक्शन में बनी सुपरहिट फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ से जुड़ी बहुत सी बातें शेयर की. सलमान ने बताया कि किसी ट्रेंड को सेट करने के लिए उन्होंने शर्ट नहीं उतारी थी बल्कि मजबूरी में उन्हें ऐसा करना पड़ा था.

सलमान बताते हैं कि इस गाने की शूटिंग मड आईलैंड में हो रही थी. डिजाइनर ने शूट के लिए सलमान को जो शर्ट दी, वह इतनी टाइट थी कि उसके बटन तक नहीं लग रहे थे, इसलिए डिजाइनर नयी शर्ट लेने गए. उन्हें वापस लौटने में लगभग 4 घंटे का वक्त लगने वाला था और वो समय मई का महीना था और सेट पर गर्मी बढ़ती ही जा रही थी.

अब ऐसे में सलमान ने फिल्म के डायरेक्टर और भाई सोहेल खान से कहा कि वे बिना शर्ट के ही शूटिंग करने को तैयार हैं. पहले सोहेल को उनकी बातों पर यकीन नहीं हुआ. सोहेल ने दोबारा उनसे पूछा कि क्या वे शर्टलेस होकर शूटिंग करेंगे? सलमान की हामी भरने के बाद उन्होंने गाना शूट किया.

कहना गलत नहीं होगा कि मजबूरी में आकर सलमान ने बिना शर्ट के शूटिंग की थी. फैन्स को उनका अंदाज इतना भाया कि ये सलमान खान का सबसे पॉपुलर ट्रेंड बन गया.

ये बात तो शायद लगभग सभी जानते हैं कि फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में सलमान खान की जोड़ी अभिनेत्री काजोल के साथ थी. फिल्म में अरबाज खान ने काजोल के भाई और बीते समय के मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र ने उनके चाचा का किरदार निभाया था.

इस समय सलमान फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ की शूटिंग और अपनी आने वाली फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ के प्रमोशन में व्यस्त हैं.

सुपर 30 के आनंद कुमार बनेंगे रितिक

बॉलीवुड का यह दौर बायोपिक फिल्मों का है. अक्षय कुमार तो एक के बाद एक बायोपिक साइन कर रहे हैं. अब इस फेहरिस्त में अभिनेता रितिक रोशन का नाम भी शामिल हो गया है.

बॉलीवुड डायरेक्टर विकास बहल ने अपनी अगली फिल्म ‘सुपर 30’ में मेन लीड के लिए एक्टर रितिक रोशन को कास्ट किया है जिसमें वो एक कॉमन मैन के रोल में नजर आएंगे. यह फिल्म बिहार के फेमस आनंद कुमार पर आधारित होगी.

आनंद कुमार बिहार की राजधानी पटना में ‘सुपर 30’ नाम से एक कोचिंग संस्थान चलाते हैं. वो आर्थिक तौर पर कमजोर बच्चों को जेईई के एग्जाम के लिए फ्री तैयार करते हैं. साल 2002 में शुरू हुआ ये संस्थान की सफलता के मामलों में अच्छे-अच्छे संस्थानों को टक्कर देता है. हर साल इस संस्थान के अधिकतर बच्चे आईआईटी के लिए सलेक्ट होते हैं. साल 2008 में तो इसके सभी बच्चों ने आईआईटी का एग्जाम क्रैक किया था.

सूत्रों के अनुसार यह फिल्म अक्षय कुमार को भी ऑफर हुई थी लेकिन आखिर में रितिक ही इस रोल के लिए फाइनल हुए.

अब यह देखना दिलचस्प होगा की पिछली सभी फिल्मों से बनी अपनी एक्शन हीरो वाली इमेज को रितिक इस फिल्म में बिना एक्शन और डांस से अपने फैंस के साथ कैसे कनेक्ट कर पाऐगें.

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