बच्चों की मासूमियत से खिलवाड़

कम उम्र में बच्चे लाखों रुपए हासिल कर मातापिता की कमाई का जरिया बन रहे हैं. टीवी और विज्ञापनों की चकाचौंध अभिभावकों की लालसा को इस कदर बढ़ा रही है कि इस के लिए वे अपने बच्चों की मासूमियत और उन के बचपन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. घंटों मेकअप और कैमरे की बड़ीबड़ी गरम लाइट्स के बीच थकाऊ शूटिंग बच्चों को किस कदर त्रस्त करती होगी, इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन, इन सब से बेखबर मातापिता अपने लाड़लों को इस दुनिया में धकेल रहे हैं.

कुछ समय पहले कानपुर में भारी बरसात के बीच दोढाई हजार बच्चों के साथ उन के मातापिता 3 दिनों तक के चक्कर लगाते एक औडिटोरियम में आते रहे ताकि साबुन बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन में उन बच्चे नजर आ जाएं. कंपनी को सिर्फ 5 बच्चे लेने थे. सभी बच्चे चौथी-पांचवीं के छात्र थे और ऐसा भी नहीं कि इन 4-5 दिनों के दौरान बच्चों के स्कूल बंद थे, या फिर बच्चों को मोटा मेहनताना मिलना था.

विज्ञापन में बच्चे का चेहरा नजर आ जाए, इस के लिए मांबाप इतने व्याकुल थे कि इन में से कई कामकाजी मातापिता ने 3 दिनों के लिए औफिस से छुट्टी ले रखी थी. वे ठीक उसी तरह काफीकुछ लुटाने को तैयार थे जैसे एक वक्त किसी स्कूल में दाखिला कराने के लिए मांबाप डोनेशन देने को तैयार रहते हैं.

30 लाख बच्चे कंपनियों में रजिस्टर्ड : महानगर और छोटे शहरों के मांबाप, जो अपने बच्चों को अत्याधुनिक स्कूलों में प्रवेश दिलाने के लिए हायतौबा करते हुए मुंहमांगा डोनेशन देने को तैयार रहते हैं अब वही अपने बच्चों का भविष्य स्कूलों की जगह विज्ञापन या मनोरंजन की दुनिया में रुपहले परदे पर चमक दिखाने से ले कर सड़क किनारे लगने वाले विज्ञापनबोर्ड पर अपने बच्चों को टांगने के लिए तैयार हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर नए उत्पाद के साथ औसतन देशभर में सौ बच्चे उस के विज्ञापन में लगते हैं. इस वक्त 2 सौ से ज्यादा कंपनियां विज्ञापनों के लिए देशभर में बच्चों को छांटने का काम इंटरनैट पर अपनी अलगअलग साइटों के जरिए कर रही हैं. इन 2 सौ कंपनियों ने 30 लाख बच्चों का पंजीकरण कर रखा है. वहीं, देश के अलगअलग हिस्सों में करीब 40 लाख से ज्यादा बच्चे टैलीविजन विज्ञापन से ले कर मनोरंजन की दुनिया में सीधी भागीदारी के लिए पढ़ाईलिखाई छोड़ कर भिड़े हुए हैं.

इन का बजट ढाई हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है. जबकि देश की सेना में देश का नागरिक शामिल हो, इस जज्बे को जगाने के लिए सरकार 10 करोड़ रुपए का विज्ञापन करने की सोच रही है. यानी, सेना में शामिल हों, यह बात भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर मौडलिंग करने वाले युवा ही देश को बताएंगे.

सवाल सिर्फ पढ़ाई के बदले मौडलिंग करने की ललक का नहीं है, बल्कि जिस तरह शिक्षा को बाजार में बदला गया और निजी कालेजों में नएनए कोर्सों की पढ़ाई हो रही है, उस में छात्रों को न तो कोई भविष्य नजर आ रहा है और न ही शिक्षण संस्थान भी शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए कोई खास मशक्कत कर रहे हैं. वे अपनेअपने संस्थानों को खूबसूरत तसवीरों और विज्ञापनों के जरिए उन्हीं छात्रों के विज्ञापनों के जरिए चमका रहे हैं, जो पढ़ाई और परीक्षा छोड़ कर मौडलिंग कर रहे हैं.

मातापिता की महत्त्वाकांक्षा : चिंता की बात यह है कि बच्चों से ज्यादा उन के मातापिता के सिर पर चकाचौंध, लोकप्रियता व ग्लैमर का भूत सवार है. वे किसी भी तरह अपने बच्चों को इन माध्यमों का हिस्सा बनाना चाहते हैं. होड़ इतनी ज्यादा है कि सिर्फ कुछ सैकंडों के लिए विज्ञापनों में अपने लाड़लों का चेहरा दिख जाने के बदले में मातापिता कई घंटों तक बच्चों को खेलनेखाने से महरूम रख देते हैं. तो क्या बच्चों का भविष्य अब काम पाने और पहचान बना कर नौकरी करने में ही जा सिमटा है या फिर शिक्षा हासिल करना इस दौर में बेमानी हो चुका है या शिक्षा के तौरतरीके मौजूदा दौर के लिए फिट नहीं हैं?

मांबाप तो हर उस रास्ते पर बच्चों को ले जाने के लिए तैयार हैं जिस रास्ते पर पढ़ाईलिखाई माने नहीं रखती है. असल में यह सवाल इसलिए कहीं ज्यादा बड़ा है क्योंकि सिर्फ छोटेछोटे बच्चे नहीं, बल्कि 10वीं और 12वीं के बच्चे, जिन के लिए शिक्षा के मद्देनजर कैरियर का सब से अहम पड़ाव परीक्षा में अच्छे नंबर लाना होता है, वह भी विज्ञापन या मनोरंजन की दुनिया में कदम रखने का कोई मौका छोड़ने को तैयार नहीं होते.

डराने वाली बात यह है कि परीक्षा छोड़ी जा सकती है, लेकिन मौडलिंग नहीं. भोपाल में 12वीं के 8 छात्र परीक्षा छोड़ कंप्यूटर साइंस और बिजनैस मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट की विज्ञापन फिल्म में 3 हफ्ते तक लगे रहे. यानी पढ़ाई के बदले पढ़ाई के संस्थान की गुणवत्ता बताने वाली विज्ञापन फिल्म के लिए परीक्षा छोड़ कर काम करने की ललक ज्यादा महत्त्व वाली हो चली है.

सही शिक्षा से दूर बच्चे : महज सपने नहीं, बल्कि स्कूली बच्चों के जीने के तरीके भी कैसे बदल रहे हैं, इस की झलक इस से भी मिल सकती है कि एक तरफ सीबीएसई की 10वीं व 12वीं की परीक्षाओं के लिए छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय सरकार से 3 करोड़ रुपए का बजट पास कराने के लिए जद्दोजेहद कर रहा है तो दूसरी तरफ स्कूली बच्चों की विज्ञापन फिल्म का हर बरस का बजट 2 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का हो चला है.

एक तरफ सरकार मौलिक अधिकार के तहत 14 बरस तक की उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराने के मिशन में जुटी है, तो दूसरी तरफ 14 बरस तक की उम्र के बच्चों के जरिए टीवी, मनोरंजन और रुपहले परदे की दुनिया हर बरस एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा मुनाफा बना रही है. जबकि मुफ्त शिक्षा देने का सरकारी बजट इस मुनाफे का 10 फीसदी भी नहीं है. यानी वैसी पढ़ाई यों भी बेमतलब सी है, जो इंटरनैट या गूगल से मिलने वाली जानकारी से आगे जा नहीं पा रही है.

वहीं, जब गूगल हर सूचना उपलब्ध कराने का सब से बेहतरीन साधन बन चुका है और शिक्षा का मतलब भी सिर्फ सूचना के तौर पर जानकारी हासिल करना भर बन कर रह गया है तो फिर देश में पढ़ाई का मतलब अक्षर ज्ञान से आगे जाता कहां है. ऐसे में देश की नई पीढ़ी किधर जा रही है, यह सोचने के लिए इंटरनैट, गूगल या विज्ञापन की जरूरत नहीं है. बस, बच्चों के दिमाग को पढ़ लीजिए या उन के मातापिता के नजरिए को समझ लीजिए, जान जाइएगा.

उम्र 6 माह, कमाई 17 लाख : मुंबई की विज्ञापन एजेंसी द क्रिएटिव ऐंड मोटिवेशनल कौर्नर के चीफ विजुअलाइजर अक्षय मोहिते के अनुसार, विज्ञापन मातापिता के लिए तिजोरी भरने जैसा है. क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि 6 माह से ले कर डेढ़ साल तक के बच्चे, जो न तो बोल पाते हैं और न ही जिन्हें लाइट, साउंड, ऐक्शन का मतलब पता है, अपने मातापिता को लाखों कमा कर दे रहे हैं.

आजकल टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों में 65 फीसदी विज्ञापनों को शामिल किया जाता है. मोहिते बताते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डायपर बनाने वाली एक कंपनी ने महज 17 सैंकंड के विज्ञापन के लिए 6 माह के बच्चे को 17 लाख रुपए की फीस दी.

कंगना ने क्यों दिखाया केतन मेहता को अंगूठा

अंततः कंगना रनौत और फिल्म ‘‘रानी लक्ष्मी बाई’’ के निर्देशक केतन मेहता की राहें अलग अलग हो गयीं. सर्वविदित है कि कंगना रनौत और केतन मेहता पिछले दो वर्ष से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बायोपिक फिल्म ‘‘रानी लक्ष्मी बाई’’ पर काम करते आ रहे हैं.

इस फिल्म के लिए केतन मेहता ने काफी शोध कार्य किया. उधर कंगना ने भी अपनी तरफ से लक्ष्मीबाई पर तमाम किताबें पढ़ डाली. पर ‘रंगून’ की असफलता के बाद कंगना रनौत झांसी की रान लक्ष्मी बाई की बायेापिक फिल्म कर तो रही हैं, मगर उन्होंने सारे समीकरण बदल डाले.

अब कंगना रनौत केतन मेहता के निर्देशन में फिल्म ‘‘रानी लक्ष्मीबाई’’ नहीं करेंगी. संभवतः अब यह फिल्म कभी नहीं बनेगी. पर कंगना ने अपने तीसवें जन्म दिन पर निर्देशक कृष की दक्षिण भारतीय भाषा के अलावा हिंदी में बनने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की बायोपिक फिल्म ‘‘मणिकर्णिका’’ के साथ खुद को जोड़ते हुए फिल्म के पोस्टर के लिए शूटिंग भी की.

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का शादी से पहले का नाम मणिकर्णिका था. उनके पिता उन्हें मनु कहकर बुलाते थे. इस फिल्म के लेखक विजयेंद्र प्रसाद हैं, जो कि ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘बाहुबली’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के लेखक हैं. विजयेंद्र प्रसाद मशहूर निर्देशक एस एस राजामौली के पिता भी हैं. इतना ही नहीं सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म ‘‘मणिकर्णिका’’ का निर्माण संजय लीला भंसाली करने वाले हैं.

मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर कंगना ने केतन मेहता को अंगूठा क्यों दिखाया? सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म ‘रंगून’ के असफल होने के बाद कंगना ने केतन मेहता के सामने शर्त रखी कि उन्हें फिल्म के लेखन व निर्देशन में भी नाम चाहिए. केतन मेहता कंगना का नाम सह लेखक के रूप में देने को तैयार थे, पर निर्देशन में केतन मेहता को किसी की भी दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं थी. इसी के चलते सारा मामला बिगड़ गया.

वास्तव में 2014 में अमरीका के नूयार्क स्कूल से फिल्म पटकथा लेखन का कोर्स करके आने के बाद से ही कंगना बार बार ऐलान करती रही हैं कि वह बहुत जल्द फिल्म पटकथा लेखन व निर्देशन में कदम रखने वाली हैं. सूत्र दावा करते हैं कि फिल्म ‘रंगून’ की पटकथा लेखन में कंगना का योगदान था. कुछ सूत्र दावा करते हैं कि फिल्म ‘रंगून’ के कुछ दृश्य विशाल भारद्वाज की बजाय कंगना ने निर्देशित किए थे. यह एक अलग बात है कि विशाल भारद्वाज ने इस बात से साफ इंकार किया था.

उधर ‘‘रंगून’’ का हश्र देखकर केतन मेहता ने कंगना रनौत को लेखन व निर्देशन में भागीदारी से साफ इंकार कर दिया, तो कंगना ने आनन फानन में कृष के संग हाथ मिला लिया. सूत्र बताते हैं कि संजय लीला भंसाली ने कंगना की फिल्म ‘मणिकर्णिका’ के निर्माण की जिम्मेदारी उठायी है, क्योंकि संजय लीला भंसाली खुद भी शाहरुख खान व कंगना रनौत को लेकर एक फिल्म का निर्देशन करने वाले हैं. वैसे शाहरुख खान कह चुके हैं कि वह कंगना के साथ फिल्म नहीं करेंगे. मगर बॉलीवुड में किस दिन क्या नए समीकरण बन जाए, कोई कह नहीं सकता.

इन बॉलीवुड स्टार्स के भाई-बहन हैं टीवी के स्टार्स

बॉलीवुड में अभी ऐसा समय चल रहा है कि सभी पुराने स्टार्स के बच्चे बॉलीवुड में आ रहे हैं, कुछ समय पहले तक कुछ अभिनेताओं के भाई-बहन ने भी बॉलवुड में खूब नाम कमाया. लेकिन कुछ स्टार्स के भाई-बहनों ने बड़े पर्दे को छोड़ कर छोटे पर्दे पर अपना हुनर दिखाया है.

अमृता राव-प्रीतिका राव

‘अब के बरस’ (2002) से डेब्यू करने वाली अमृता ने ‘इश्क विश्क’, ‘विवाह’, ‘मैं हूं न’, ‘जॉली एलएलबी’, ‘सत्याग्रह’ जैसी फिल्मों में काम किया. जहां अमृता कई पॉपुलर फिल्मों के जरिए दर्शकों की फेवरेट बनीं. वही, उनकी छोटी बहन प्रीतिका टीवी का चर्चित चेहरा हैं उन्होंने 2013 में पॉपुलर शो ‘बेइंतहा’ से डेब्यू किया था, जो खासा मशहूर हुआ. वैसे, इंडस्ट्री में ऐसे कई सेलेब्स हैं, जिनके भाई-बहन टीवी या बॉलीवुड में काम करते हैं.

अनुपम खेर- राजू खेर

400 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके अनुपम खेर के भाई राजू टीवी एक्टर और डायरेक्टर हैं. राजू ने ‘ये कहां आ गए हम’, ‘कहां से कहां तक’, ‘जाने भी दो यारों’, ‘तमन्ना’ जैसे कई टीवी शोज में काम किया है.

तुषार कपूर- एकता कपूर

2001 में फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ से डेब्यू करने वाले तुषार कपूर का नाम ‘गोलमाल’, ‘क्या कूल हैं हम’ जैसी फिल्में हैं. उनकी बहन एकता कपूर को टीवी इंडस्ट्री की क्वीन माना जाता है. एकता ने ‘ये हैं मोहब्बतें’, ‘कुमकुम भाग्य’, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’, ‘कहानी घर घर की’ जैसे कई टीवी शोज प्रोड्यूस किए हैं.

गौहर खान- निगार खान

गौहर खान ने 2009 में रिलीज रणबीर कपूर की फिल्म ‘रॉकेट सिंह: सेल्समेन ऑफ द ईयर’ से डेब्यू किया था. फिल्मों में आइटम नंबर के साथ वे कई टीवी रियलिटी शोज में भी हिस्सा ले चुकी हैं. वहीं, गौहर की बहन निगार खान ने टीवी सीरीज ‘लिपस्टिक’ से अपने करियर की शुरुआत की थी. वे ‘बिग बॉस -8’, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ जैसे कई टीवी शोज में नजर आई हैं.

शरमन जोशी- मानसी जोशी

रंग दे बसंती (2006), 3 इडियट्स (2009) जैसी कई पॉपुलर फिल्मों का हिस्सा रहे शरमन जोशी की बहन मानसी टीवी एक्ट्रेस हैं. मानसी ने ‘कुसुम’, ‘साया’ और ‘घरवाली-बाहरवाली’ जैसे टीवी शोज में काम किया है.

कृष्णा अभिषेक- आरती सिंह

कई टीवी शो होस्ट कर चुके कृष्णा अभिषेक ने “बोल बच्चन (2012)”, “एंटरटेनमेंट (2014)” जैसी कुछ फिल्मों में काम किया. इसी साल उनकी सोली फिल्म ‘फुलटू जुगाडू’ रिलीज होने वाली है. वहीं, कृष्णा की बहन आरती सिंह टीवी का जाना माना चेहरा हैं. आरती को धारावाहिक ‘परिचय’ में निभाए भाभी के किरदार के लिए जाना जाता है. उन्होंने टीवी शो “मायका” (2007-14) से डेब्यू किया था.

रोनित रॉय-रोहित रॉय

रोनित रॉय ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म “जान तेरे नाम” (1992) से की थी. वे ‘उड़ान’, ‘2 स्टेट्स’ जैसी फिल्मों के साथ ‘कसौटी जिंदगी की’, ‘कसम से’, ‘अदालत’ जैसे कई टीवी शोज में नजर आए हैं. रोनित के भाई रोहित रॉय पॉपुलर टीवी एक्टर हैं. हालांकि, उन्होंने कुछ फिल्मों में स्पेशल अपीयरेंस भी दी है.

आलोक नाथ- विनीता मलिक

‘हम आपके हैं कौन’, ‘हम साथ-साथ हैं’, ‘ताल’ समेत 50 से ज्यादा फिल्मों में आलोक नाथ ने काम किया है. वे फिल्मों के साथ-साथ टीवी की दुनिया में भी पॉपुलर रहे हैं. आलोक नाथ की बहन विनीता मलिक टीवी एक्ट्रेस हैं. इन दिनों वे स्टार प्लस के शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता हैं’ में दादी का किरदार निभा रही हैं.

अक्की के बॉक्सिंग पार्टनर को देख आप भी हो जाएंगे हैरान

फिटनेस को लेकर सजग रहने वाले ऐक्टर अक्षय कुमार अब एक नए तरीके से वर्कआउट कर रहे हैं. वह छोटे-छोटे कुत्तों (पग) के साथ बॉक्सिंग करते नजर आ रहे हैं.

अक्षय ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो क्लिप शेयर किया है, जिसमें वह चार कुत्तों के साथ बॉक्सिंग करते नजर आ रहे हैं. उन्होंने अपने फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा ‘आज का वर्कआउट : इन प्यारे नन्हें गून्स के साथ बॉक्सिंग’.

फिटनेस के मामले में अक्षय लंबे समय से युवाओं के लिए आदर्श रहे हैं, अभिनेता ने हमेशा कहा कि वह अनुशासित जीवनशैली का पालन करते हैं और जब एक्सरसाइज करने की बात आती है तो वह सरल तरीका अपनाते हैं.

फिल्मों की बात करें तो अक्षय की अगली फिल्म भूमि पेडनेकर के साथ ‘टॉयलेट : एक प्रेम कथा’ आने वाली है. इस समय वह ‘पैडमैन’ की शूटिंग कर रहे हैं, जिसमें सोनम कपूर और राधिका आप्टे भी नजर आने वाली हैं.

 

 

Follow your dreams, they know the way 🙂 #HappyWeekend

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लहसुन के फायदों से अनजान हैं आप

लहसुन, भारतीय खानों से लेकर विदेशी खानों की भी एक जरूरी सामग्री है. लसुन की सुगंध और स्वाद किसी भी खाने का टेस्ट बदल देते हैं. पर लसुन खाने से आपके स्वास्थ को कई तरह के फायदे होते हैं. कई लोगों को लहसुन की तीव्र गंध पसंद नहीं, पर लसुन आपके स्वास्थय के लिए बहुत फायदेमंद है.

बहुत सारे शोधों से लहसुन के बारे में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है. वैज्ञानिक शोध के अनुसार लहसुन हार्ट की बीमारी, स्ट्रोक, कैंसर और इंफेक्शन जैसी जानलेवा बिमारियों से निजात दिला सकता है.

लहसुन की कलियां आकार में छोटी हैं पर ये गुणों से भरपूर है-

1. लंबे-घने बाल

बालों के झड़ने की समस्या बहुत आम है. पर लहसुन खाने से आपके बाल लंबे और घने हो सकते हैं. लहसुन में ऐलीसिन पाया जाता है, यह कंपाउंड प्याज में भी पाया जाता है.

गर्म लहसुन सरसों के तेल के फायदों के बारे में तो आप जानते ही होंगे. आप इस तेल को अपने स्कैल्प के मसाज के लिए भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

2. पिंपल को कहें बाय-बाय

क्या आप पिंपल से परेशान हैं, बहुत कुछ ट्राई करने के बाद भी आपको पिंपल से छुटकारा नहीं मिल रहा, तो आप लहसुन आजमाकर देख सकती हैं. लहसुन के ऐंटीऑक्सीडेंट बैक्टीरिया का सफाया करते हैं. लहसुन की कली को पिंपल पर लगाएं और ठंडे पानी से धो लें. आपको कुछ दिनों में ही फर्क पता चल जाएगा.

3. सर्दी में दे आराम

सर्दी-खांसी के आम समस्या है. कुछ लोगों को तो यह समस्या बारहों महिने रहती है. लहसुन के ऐंटीऑक्सीडेंट्स आपको सर्दी में आराम दिलाएंगे. सर्दी होने पर आप गार्लिक टी का सेवन कर सकती हैं. इसे बनाना आसान है. हल्के गर्म पानी में लहसुन की कलियां डालें और उबालें. छान कर पी लें. स्वाद के लिए आप चाय में शहद और अदरक भी मिला सकती हैं.

4. बढ़ते वजन पर लगाएं लगाम

बढ़ते वजन और निकलते पेट से आजकल हर उम्र के लोग परेशान रहते हैं. पर जरा सा लहसुन आपके बढ़ते पेट को भी घटाने में मददगार है. लहसुन डालकर खाना बनाएं और आसानी से ऐक्सट्रा फैट घटाएं.

5. हाई ब्ल्ड प्रेशर को करे कन्ट्रोल

ब्ल्ड प्रेशर की समस्या आज लगभग हर घर में है. लहसुन हाई ब्ल्ड प्रेशर को भी कन्ट्रोल में रखता है. अगर आप भी स्ट्रेस और ब्ल्ड प्रेशर की समस्या से ग्रसित है तो आप भी लहसुन का सेवन जरूर करें.

6. कैंसर की रोकथाम

नियमत लहसुन का सेवन आपके शरीर में कैंसर सेल्स नहीं बनने देते. अच्छे और हेल्डी लाइफस्टाइल से आप कैंसर जैसे रोग से भी आसानी से बच सकते हैं.

7. डायबिटीज में असरदायक

डायबिटीज के रोगियों को ताउम्र अपने शुगर को कन्ट्रोल में रखना चाहिए. लहसुन ब्ल्ड शुगर लेवल को कन्ट्रोल में रखता है. लहसुन इंफेक्शन से लड़ने में भी मदद करता है. अगर आप या आपके घर में कोई डायबिटीज से पीड़ित हैं तो लहसुन का सेवन जरूर करें.

फिल्म रिव्यू : फिल्लौरी

बॉलीवुड की सबसे बड़ी बीमारी ‘अहम ब्रम्हास्मि’ की है. जिस फिल्म निर्देशक या निर्माता की पहली फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल होती है, वह उसी दिन से सोचने लगता है कि वह जो काम करता है, वही सही है. उसके बाद वह किसी की परवाह किए बगैर ‘‘अहम ब्रम्हास्मि’’ के अहम में चूर होकर अति घटिया फिल्में बनाता है.

हमें फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ देखकर बॉलीवुड की ‘अहम ब्रम्हास्मि’ की ही बीमारी याद आ गयी. इसी बीमारी का शिकार इस फिल्म की निर्माता अनुष्का शर्मा और उनके भाई कर्णेश शर्मा हैं. पहली फिल्म ‘‘एन एच 10’’ को मिली सफलता के बाद वह ‘‘फिल्लौरी’’ जैसी स्तरहीन व बोर करने वाली फिल्म बनाएंगी, इसकी कल्पना किसी ने नहीं की होगी. फिल्म के प्रदर्शन से कुछ दिन पहले हमसे बातचीत करते हुए अनुष्का शर्मा ने जितने बड़े दावे किए थे, वह सारे दावे फिल्म देखने के बाद खोखले साबित नजर आए. दो अलग अलग युगों की प्रेम कहानियों के  बीच सामंजस्य बैठाने में लेखक व निर्देशक असफल हैं. इसी के चलते दर्शक भी कहानी को ठीक से समझने से वंचित रह जाता है.

एक भूतनी की प्रेम कहानी को देश की आजादी से पहले 1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार के साथ जिस तरह से जोड़ा गया है, वह अविश्वसनीय के साथ साथ अति हास्यास्पद लगता है. काश हमारे फिल्मकार देश के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े इतिहास के साथ इस तरह के मजाक करने से बचे, तो कितना अच्छा हो.

फिल्म की कहानी शुरू होती है अपनी बचपन की दोस्त अनु (मेहरीन पीरजादा) के साथ शादी करने के लिए कनाडा से भारत वापस आने वाले कनन से. कनन भारत आ गया है, पर शादी व प्यार को लेकर वह अभी भी दुविधा में है. इसी बीच शादी के लिए कुंडली मिलान के दौरान पंडित बताते हैं कि कनन तो मंगली है. इसलिए उसे पहले पेड़ से शादी करनी पड़ेगी. अनमने मन से कनन को यह बात माननी पड़ती है. कनन की पेड़ से शादी हो जाती है. कनन पूरे परिवार के साथ घर वापस आता है.

उधर कनन के पिता ने पेड़ को काट देने का आदेश दे दिया है. घर पहुंचने पर एक भूतनी कनन के पीछे पड़ जाती है. पता चलता है कि यह भूतनी शशि (अनुष्का शर्मा) उसी पेड़ पर रहती थी, पर पेड़ कट गया, तो वह कहां जाए. वह कनन के पास क्यों आयी, यह भी वह नहीं जानती. मगर प्यार व शादी को लेकर कनन के मन में जो दुविधा है, उसे शशि अपनी कहानी बताते हुए दूर करने का प्रयास करती है. इसी के साथ अब कनन व अनु तथा शशि व रूप फिल्लौरी की प्रेम कहानी समानांतर चलती है. कनन व अनु की शादी वैषाखी के दिन ही होनी है.

शशि की प्रेम कहानी 98 साल पहले की है. पंजाब के फिल्लौरी गांव की रहने वाली शशि को उसके भाई ने बेटी की तरह पाला है जो कि आयुर्वेदिक दवाएं देते हैं. शशि को गांव के नकारा युवक रूप फिल्लौरी (दलजीत दोशांज) से प्यार हो गया है. रूप गीत लिखता व गाता है. धीरे धीरे शशि भी फिल्लौरी के नाम से गीत लिखकर अखबार में छपवाने लगती है. एक दिन इनकी प्रेम कहानी का पता शशि के भाई को चल जाता है. जब शशि, रूप के घर में होती है, तो शशि का भाई वहां जाकर दोनों की पिटाई करता है और शशि को लाकर घर में बंद कर समझाता है कि रूप उसके योग्य नहीं है. दो दिन बाद रूप, शशि के भाई से कहता है कि अब वह शशि के लायक बनने के लिए अमृतसर जा रहा है.

कुछ दिन बाद रूप वहां से शशि के नाम तीन सौ रूपए भेजता है. पत्र में लिखता है कि अमृतसर की संगीत कंपनी ने उसके गीतों का एलबम निकाला है. शशि के लिखे गीतों को रूप ने गाया है. एलबम पर दोनों का नाम है. इससे शशि का भाई खुश होकर उनकी शादी के लिए हामी भर देता है. रूप ने बैसाखी के पर्व पर वापस आने की बात लिखी है. बैसाखी के दिन शशि के घर शादी की तैयारियां हो चुकी है. शशि दुल्हन के वेष में है. तभी पता चलता है कि शशि तो रूप के बच्चे की मां बनने वाली है. पर शादी नहीं होती है. क्योंकि रूप वापस नहीं लौटता है. शशि का भाई सलाह देता है कि वह लाहौर जाकर गर्भपात करवा ले. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. परेशान शशि घर से भागती है और एक पेड़ के नीचे दम तोड़ देती है.

शशि की प्रेम कहानी सुनते सुनते अंत में भूतनी शशि के संवाद दोहराते हुए कनन, अनु से कहता है कि अब तक वह ख्यालों में था पर अनु ही उसकी सच्चाई है. और वह उससे शादी करने को तैयार है.

उसके बाद कनन व अनु, भूतनी शशि से पूछते है कि रूप के साथ शादी न होने की घटना कब की है. तो वह कहती है कि 98 साल पहले यानी कि 1919 की है. कनन को याद आता है कि उसी दिन जलियांवाला बाग कांड हुआ था. जब अंग्रेजों ने निहत्थे लोंगों पर गोलियां बरसाई थी. कनन अपने साथ गाड़ी में अनु व भूतनी शशि को बैठाकर जलियांवाला बाग, अमृतसर पहुंचता है. जहां शशि व रूप की आत्मा का मिलन हो जाता है.

फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी तो इसकी लेखक अन्विता दत्ता हैं, जिन्होंने अति घटिया कहानी व पटकथा लिखी है. शायद उन्हें पंजाबी शादियों के बारे में कुछ भी पता नहीं है. पूरी फिल्म में पंजाबी शादी का कोई माहौल नजर नहीं आता. लेखक के साथ ही अनुष्का शर्मा भी कमजोर कड़ी कही जाएंगी, क्योंकि कहानी व पटकथा का चयन तो अनुष्का शर्मा ने ही किया है. इंटरवल से पहले फिल्म ‘‘फिल्लारी’’ अंग्रेजी फिल्म ‘‘कॉर्प्स ब्राइड’’ की याद दिला जाती है. यानी कि मूल कथानक वहीं से प्रेरित है. इंटरवल के बाद इस फिल्म को देखना सबसे बड़ा सिर दर्द है.

फिल्म में अनुष्का शर्मा को ग्लैमरस नहीं दिखना था, इसलिए उन्होंने खूबसूरत अदाकारा मेहरीन कौर पीरजादा को भी ग्लैमरस नहीं दिखने दिया. पूरी फिल्म में वह रोती हुई नजर आती हैं. फिल्म में कहानी नहीं थी, इसलिए उन्होंने दृश्यों को इस तरह धीमी गति से खींचा कि फिल्म किसी तरह घिसट घिसट कर मंजिल पाती है. पूरी फिल्म सिर्फ बोर करती है.

दर्शक मन ही मन कहने लगता है-‘‘कहां फंसायो नाथ.’’ फिल्म को एडिट कर छोटा किए जाने की जरुरत है. आत्मा व इंसानों के बीच बातचीत की कल्पना करना अपने आप में अविष्वनीय होता है, पर लेखक व निर्देशक ने फिल्म के क्लायमेक्स के समय इसकी पराकाष्ठा भी पार कर डाली.

जहां तक फिल्म के गीत संगीत का सवाल है, तो यह पहले भी लोकप्रिय नहीं हुए हैं. फिल्म देखते समय भी गीत संगीत प्रभावहीन नजर आते हैं. फिल्म के वीएफएक्स की थोड़ी सी तारीफ की जा सकती है.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो दलजीत सिंह दोशांज ने बहुत निराश किया. इस फिल्म में अनुष्का शर्मा भी एक अदाकारा के रूप में नहीं उभरती हैं. दलजीत दोशांज हों या अनुष्का शर्मा, दोनों के चेहरे पर पर पूरी फिल्म में एक जैसे भाव ही नजर आता है. सूरज शर्मा ने दुविधा में फंसे युवक की मनः स्थिति को कुछ अर्थों में सही रूप में पेश किया है, मगर उनके किरदार को भी पटकथा की मदद नहीं मिली. मेहरीन कौर पीरजादा के लिए करने को कुछ था ही नहीं.

‘‘चक दे’’, ‘‘प्यार के साइड इफेक्ट्स’’, ‘‘हिम्मतवाला’’, ‘‘हाउसफुल’’ और ‘‘दोस्ताना’’ जैसी फिल्मों में बतौर सहायक रहे निर्देशक अंशाई लाल की स्वतंत्र निर्देशक के रूप में यह पहली फिल्म है. वह भी इस फिल्म की एक कमजोर कड़ी हैं. वैसे ज्यादातर असफल फिल्मों में सहायक रहे अंशाई से ज्यादा उम्मीद करनी भी नहीं चाहिए.

दो घंटे 17 मिनट की अवधि की ‘फॉक्स स्टार इंडिया’ के साथ मिलकर अनुष्का शर्मा की कंपनी ‘‘स्लेट फिल्मस’’ द्वारा निर्मित फिल्म ‘‘फिल्लौरी’’ के निर्देशक अंशाई लाल, लेखक व गीतकार अंविता दत्ता, संगीतकार जसलीन रोयल व शाश्वत सचदेव, पार्श्व संगीत समीर उद्दीन, तथा कलाकार हैं-अनुष्का शर्मा, दलजीत दोशांज, सूरज शर्मा, मेहरीन पीरजादा आदि.

एड्स रोगियों को बार-बार टीबी होने का खतरा

टीबी बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है जो हवा के जरिये एक इंसान से दूसरे में फैलती है और इसका बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में फैलता वहां के टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है. समय पर इलाज कराने से बैक्टीरिया को फैलने से रोका जा सकता है और टीबी से बचा जा सकता है. एचआईवी पॉजिटिव लोगों में बार-बार टीबी होने की संभावना अधिक होती है. एड्स रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उनका शरीर टीबी के बैक्टीरिया के वार को नहीं सह पाता है, जिस कारण वो टीबी से ग्रसित हो जाते हैं.

टीबी मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से होता है. यह बैक्टीरिया हवा के द्वारा श्वासनली में प्रवेश करता है. टीबी के फैलने के कई अन्य कारण भी हैं जैसे कि छिंकना, खांसना, खुले में थूकना. आम तौर पर यह बीमारी फेफड़ों से शुरू होती है. यह बैक्टीरिया फेफड़ों के टिश्यू को नष्ट कर देता है. सही वक्त पर इलाज कराने से टीबी से निजात पाया जा सकता है.

एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए टीबी ज्यादा खतरनाक है. अगर किसी एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को एक बार टीबी हो जाता है, तो ठीक होने के बाद भी बार बार टीबी होने का खतरा रहता है.

लगातार चेकउप करवाने के बाद ही टीबी के बैक्टीरिया का पता लगाया जा सकता है. एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों को टीबी होने पर उनके बचने की गुंजाइश भी कम हो जाती है. वैदिकग्राम के डॉक्टर दीपक कुमार का कहना है कि “टीबी फैलने वाली बीमारी है. इसके बैक्टीरिया को फैलने से रोकने के लिये साफ-सफाई का खासा ध्यान रखना चाहिए. इसके साथ ही हाइजिन का भी ख्याल रखना जरुरी है. हाइजिन का ख्याल ना रखने की वहज से ही निचले तबके के लोगों में इस बीमारी के होने का खतरा ज्यादा रहता है. एड्स रोगियों को टीबी से मिलते-जुलते किसी भी लक्षण के दिखने पर तुरंत जांच करानी चाहिये क्योंकि थोड़ी भी देर होने पर यह जानलेवा हो जाता है.” 

फिल्म रिव्यू : अनारकली ऑफ आरा

कम कपड़े पहनने वाली या नाच गाकर अपना गुजर बसर करने वाली औरत को चरित्रहीन मानने की सोच के खिलाफ व नारी उत्थान के मुद्दों को परदे पर मनोरंजन के साथ अति सशक्त तरीके से उकेरने में अविनाश दास की फिल्म ‘‘अनारकली ऑफ आरा’’ सफल रहती है. बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म गंभीर मुद्दों को बहुत बेहतर तरीके से उकेरती है.

फिल्म शुरू होती है एक आक्रेस्ट्रा के रंगारंग गीत संगीत के द्विअर्थी गाने के कार्यक्रम से, जिसमें गायिका व नृत्यांगना चमेली की बंदूक से गोली चलने से मौत हो जाती है. यह सारा दृश्य उस वक्त मंच पर मौजूद चमेली की बेटी अनारकली देखती रह जाती है. फिर चौदह साल बाद ‘‘रंगीला आर्केस्ट्रा’’ कंपनी में अनारकली (स्वरा भास्कर) की द्विअर्थी गीत गाने से कहानी शुरू होती है.

‘‘रंगीला आर्केस्ट्रा” कंपनी को रंगीला (पंकज त्रिपाठी) चलाते हैं. शादीशुदा होते हुए भी रंगीला मन ही मन अनारकली को चाहते हैं और मौके बेमौके वह अनारकली को छूने से बाज नहीं आते. इसी बीच अपने लिए देवदास बने लड़के अनवर (मयूर मोरे) को अनारकली अपने साथ रख लेती है. वह अच्छा तबला वादक है. एक बार जब पुलिस स्टेशन कें अंदर विजयादशमी के मौके पर आरा के दरोगा (विजय कुमार) के निमंत्रण पर रंगीला अपनी पार्टी लेकर आर्केस्ट्रा करने जाते हैं, तो वहां अनारकली के नृत्य व गायन कार्यक्रम के दौरान स्थानीय विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ठाकुर धर्मेंद्र (संजय मिश्रा) भी पहुंचते हैं. धर्मेंद्र की राज्य के मुख्यमंत्री से बड़ी निकटता है, इसका वह फायदा उठाते रहते हैं. दरोगा तो धर्मेंद्र की चमचागीरी में लगे रहते हैं.

धर्मेंद्र दारू पीकर मंच पर चढ़कर अनारकली के साथ चिपका चिपकी व अति अभद्र व्यवहार करते हैं. आर्केस्ट्रा का आनंद लेने आए शहर के लोग अनारकली के पक्ष में धर्मेंद्र के कृत्य का विरोध करते हैं, तो पुलिस उन पर लाठी चलाकर भगा देती है. रंगीला भी दूर से ही कहता रहता है कि ऐसा न करें. पर अनारकली निडरता का परिचय देती है और धर्मेंद्र को तमाचा जड़ देती है. दूसरे दिन दरोगा, धर्मेंद्र के घर जाकर बताते हैं कि उन्होंने सभी के कैमरे व मोबाइल से वह दृश्य हटवा दिए थे.

अब धर्मेंद्र, रंगीला के माध्यम से अनारकली को अपने खास आशियाने में बुलाते हैं. जहां दरोगा भी मौजूद है. उस वक्त भी अनारकली निडरता से धर्मेंद्र व दरोगा को दो टूक जवाब देती है. दूसरे दिन धर्मेंद्र के इशारे पर पुलिस अपने एक आदमी को अनारकली के घर के अंदर छिपाकर अनारकली को देह व्यापार के आरोप में गिरफ्तार करती है. रंगीला किसी तरह अनारकली की जमानत करवाता है. पुलिस स्टेशन से निकलकर अनारकली, धर्मेंद्र के घर उन्हें यह सच बताकर चल देती है कि उस दिन मंच पर अनारकली ने उन्हें तमाचा जड़ा था. तब धर्मेंद्र के गुंडे उसे पकड़ने के लिए जाते हैं, अनारकली भागती है. अनवर के साथ दिल्ली पहुंचती है.

दिल्ली में आरा के ही रहने वाले हीरामनी उनकी मदद करते हैं. जिसके चलते एक संगीत कंपनी से अनारकली के कई संगीत एलबम बाजार में आते हैं. एक संगीत एलबम देखकर आरा पुलिस दिल्ली पहुंचती है. अब अनारकली पर अनवर के अपहरण का मुकदमा दर्ज किया गया है. अब अनारकली की गिरफ्तारी होनी है, पर हीरामनी बताता है कि उसके पास धर्मेंद्र ने जो कृत्य किया था, उसका वीडियो मोबाइल पर है. उस वीडियो को देखकर अनारकली योजना बताती है और आरा पुलिस के सामने सरेंडर कर देती है.

अदालत में पेशी से पहले वहां मौजूद दरोगा के सामने ही वह धर्मेंद्र से सौदेबाजी करती है. धर्मेंद के इशारे पर पुलिस अनारकली पर लगाए गए आरोप वापस ले लेती है. उसके बाद धर्मेंद्र उसे अपने कॉलेज के कार्यक्रम में गाने के लिए बुलाते हैं. वहां पर पुलिस विभाग के एस पी व धर्मेंद्र की पत्नी व बेटी भी बैठी है. एक गीत गाने के बाद रोचक तरीके से अनारकली धर्मेंद्र को जली कटी सुनाती है और फिर परदे पर धर्मेंद्र के कृत्य का वीडियो चलने लगता है. धर्मेंद्र की पत्नी व बेटी शर्म से नजर झुकाकर वहां से चली जाती है. एस पी महोदय, मुख्यमंत्री को फोन पर जानकारी देते हैं कि मसला गंभीर है, कार्यवाही करनी पड़ेगी. अनारकली खुश है कि उसने धर्मेंद्र को उनकी औकात याद दिला दी.

फिल्म ‘‘अनारकली ऑफ आरा’’ में यह संदेश बहुत अच्छे ढंग से उभरकर आता है कि नाच गाकर अपनी जीविका चलाने वाली नारी चरित्रहीन नहीं हो सकती. इस तरह की नारी को यदि पुरुष प्रधान समाज के पुरुष अपनी जायदाद समझते हैं, तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल और अपराध है. किसी की यौन अवस्था या उसकी निजी जिंदगी के रिश्ते के दम पर उसके चरित्र पर लांक्षन लगाना गलत है. यह निर्देशक की खूबी है कि उन्होंने फिल्म में अनारकली को ‘दूध की धुली’ साबित करने का प्रयास नहीं किया है.

अनारकली कहती है कि निजी बैठक और सार्वजनिक मंच में अंतर होता है. फिल्म से यह बात भी उभरकर आती है कि हर नारी यौन संबंधों को लेकर एक रेखा खींचकर रखती है, उस रेखा को लांघने का हक किसी पुरूष को नहीं है. पर फिल्म के कुछ दृश्य हजम नहीं होते हैं. फिर भी पहली बार निर्देशक बने अविनाश दास बधाई के पात्र हैं. फिल्म का गीत संगीत भी कर्णप्रिय है. पर गीत के बोल में भोजपुरी भाषा का पुट हर वर्ग के दर्शकों को प्रभावित नहीं कर सकते. कुछ खामियों के चलते मल्टीप्लैक्स की वनिस्बत सिंगल थिएटर और खासकर उन सिनेमाघरों में इस फिल्म को ज्यादा पसंद किया जाएगा, जिनमें भोजपुरी फिल्में सफलता बटोरती हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो यह फिल्म स्वरा भास्कर के दमदार अभिनय के लिए हमेशा याद रखी जाएगी. फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ देखने के बाद कई अभिनेत्रियां अब अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगेंगी. अनारकली के किरदार में स्वरा भास्कर दर्शक को वह सब परोसती हैं, जो दर्शक को चाहिए. इस फिल्म से स्वरा भास्कर ने साबित कर दिखाया कि वह अपने कंधे पर पूरी फिल्म को लेकर चल सकती हैं.

कुछ दृश्यों में तो स्वरा भास्कर ने अपने अभिनय से संजय मिश्रा जैसे कलाकार की भी छुट्टी कर दी. इस फिल्म में वह प्रभावित नहीं कर पाते हैं. पंकज त्रिपाठी ने ठीक ठाक काम किया है. वास्तव में पटकथा के स्तर रंगीला का किरदार सशक्त नहीं है. अनवर के किरदार में मयूर मोरे ने भी अच्छी परफॉर्मेंस दी है.

एक घंटा तिरपन मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘अनारकली ऑफ आरा’’ का निर्माण कपूर तथा निर्देशन अविनाश दास ने किया है. फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-स्वरा भास्कर, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, विजय कुमार, मयूर मोरे, इश्तियाक खान, नितिन अरोड़ा.

बॉलीवुड के टॉप 10 फोटोग्राफर

हमारे बॉलीवुड हस्तियां जो भारत के लाखों प्रशंसकों और अनुयायियों के दिलों पर राज करती हैं, सफलता का एक हिस्सा सबसे प्रतिभाशाली फोटोग्राफरों की टीम को जाता है, जो दिन-रात काम करते हैं, अभिनेता को एक सेलिब्रिटी बना देता है.

ऐसे ही कुछ मशहूर फोटोग्राफर

डब्बु रत्नानी

आज भारत में, फैशन और बॉलीवुड फोटोग्राफी का पर्याय बन गए हैं डब्बु रत्नानी. भारतीय फैशन फोटोग्राफी में सेलिब्रिटी पोर्ट्रेट्स और अन्य फैशन फोटो के प्रमुख कौशल के रूप में डब्बु रत्नानी का अपना नाम बहुत मशहूर है. वह अपने वार्षिक कैलेंडर के लिए सबसे अच्छे फोटोग्राफर जाने जाते हैं. डब्बु ने 1999 में पहली बार अपना कैलेंडर प्रकाशित किया थी, यह भारत में एक बेहद उल्लेखनीय है कला थी. साल भर बॉलीवुड सितारे अपने कैलेंडर पर दिखाई देते हैं. हर साल डब्बु के कैलेंडर का प्रक्षेपण एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में किया जाता है. जिसमें शीर्ष हस्तिया मौजूद होती हैं. जिनमें से 24 प्रत्येक वर्ष के लिए है. वह कॉस्मोपॉलिटन, फिल्मफेयर, हाय ब्लिट्ज, ओक इंडिया, एले, वर्व, फेमिना, मैन और बेहतर होम और गार्डन जैसे सभी प्रमुख पत्रिकाओं के लिए कवर फोटोग्राफर होती हैं. डब्बु रत्नानी ने बॉलीवुड के सुपरस्टार के साथ ब्रांडों के विज्ञापन में भी काम किया है.

रोहन श्रेष्ठ

रोहन श्रेष्ठ भारतीय मूल के एक नेपाली मूल फोटोग्राफर हैं जो मुंबई और न्यूयॉर्क के बीच काम करते हैं. भारत के एक अग्रणी फोटोग्राफर राकेश श्रेष्ठ के पुत्र, उनकी तस्वीरों ने नारहित भारत, लफ्सेली, कॉस्मोपॉलिटन, एफएचएम, ग्राज़िया, वर्व और फिल्मफेयर सहित कई प्रमुख पत्रिकाओं का आवरण बनाया है. आज उद्योग में छोटे फोटोग्राफरों में से एक होने के कारण, उनकी रचनात्मकता की भावना और एक अंतर के साथ उनकी शूटिंग की शैली, जो आज रोहन को  लोकप्रिय बनाती है. वर्षों से, रोहन ने आज देश के कुछ अग्रणी पत्रिकाओं के साथ काम किया है. आर्किटेक्चरल डाइजेस्ट और कंडीनेट ट्रैवलर के लिए संपादकीय और कवर की कहानियां भी रोहन लिखते है.

तरुण खिवाल

तरुण खिवाल दिल्ली में स्थित एक प्रसिद्ध भारतीय फैशन और व्यावसायिक फोटोग्राफर हैं. भारतीय फैशन उद्योग में अग्रणी फोटोग्राफरों में से एक, उन्हें हासेलब्लाड फाउंडेशन द्वारा दिए गए 2005 के हासेलबैड मास्टर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था, इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाले अब तक के पहले और एकमात्र भारतीय फोटोग्राफर है. उनके अन्य पुरस्कारों में, लायक्रा एमटीवी स्टाइल अवार्ड और किंगफिशर फैशन फोटोग्राफर ऑफ द ईयर में “फैशन फोटोग्राफर ऑफ द ईयर अवार्ड” शामिल हैं. वर्षों से उनका स्टूडियो एक शिक्षण केंद्र और एक संस्था चला रहा है. उनके सहायकों ने खुद के लिए एक जगह बनाना शुरू किया है और आज भी वे अपने स्वयं के फोटोग्राफरों की स्थापना कर रहे हैं. कुछ वर्षों में, तरुण खिवाल ने रीबॉक, नेस्ले, नोकिया, पैनासोनिक, जिलेट, अमेरिकन एक्सप्रेस और होंडा जैसे ब्रांडों और एले, टैंक वोग, हार्पर बाजार, ग्राजिया जैसे पत्रिकाओं के साथ काम किया है.

विक्रम बावा

विक्रम बावा मुंबई में स्थित एक भारतीय फैशन, ऑटोमोबाइल और लैंडस्केप फोटोग्राफर है. 1990 के दशक के उत्तरार्ध में वे 3 डी फोटोग्राफी को बढ़ावा देने और प्रदर्शित करने वाले पहले भारतीय फोटोग्राफर थे. वह फैशन और विज्ञापन फोटोग्राफी में माहिर हैं, जिसमें आभूषणों, कारों से लेकर विमानों तक लेकर कई उत्पादों और ब्रांडों के लिए अभियान चलाया जाता है. विक्रम ने फेमिना, वर्व, हैलो!, ल’ऑस्टिलीएल, एले, हाय ब्लिट्ज, मैरी क्लेयर, स्टूफ सहित कई पत्रिकाओं के लिए काम किया है, जिनमें 300 से ज्यादा कवर्स शामिल हैं. विक्रम ने कोका-कोला, डोव, गोदरेज, लॉयरी, रीबॉक, स्कोडा इंडिया, सोनी इलेक्ट्रॉनिक्स, ताज होटल, कैटवॉक, किंगफिशर एयरलाइंस, सहारा एम्बे वैली, द लीला पैलेस, गोवा, एफएसपी लंदन आदि ब्रांड़ों को शामिल किया हैं. विक्रम बावा विभिन्न कला शो का एक हिस्सा रहे हैं. प्रियंकी आर्ट गैलरी, गैलरी आर्ट एंड सोल, जिंदल आर्ट फाउंडेशन और अलफाज मिलर कलेक्शन में उनका स्थायी संग्रह है.

सुरेश नटराजन

सुरेश नटराजन एक बहुत ही प्रसिद्ध भारतीय बॉलीवुड और फैशन फोटोग्राफ हैं, जिन्होंने उद्योग में जबरदस्त काम किया है. उनकी तस्वीरें बहुत हड़बड़ी और प्रेरणादायक होती हैं. सुरेश नटराजन केरल, दक्षिण भारत में पैदा हुए थे. वह मैकलेन हंटर टीवी, टोरंटो में टीवी प्रोडक्शन में एक वर्ष का प्रशिक्षण लेकर आए हैं. उन्होंने टोरंटो में Ryerson विश्वविद्यालय में फिल्म का अध्ययन किया है. सुरेश नटराजन ने भारत में अग्रणी निदेशक के साथ-साथ एक अंग्रेजी फीचर फिल्म में उत्पादन सह-समन्वयक के रूप में दो प्रमुख भारतीय फीचर फिल्म परियोजनाओं में एक सहायक निदेशक के रूप में काम किया.

आर बर्मन

आर बर्मन एक अन्य फैशन और भारतीय सेलिब्रेटी फोटोग्राफर हैं. उन्होंने प्रतिष्ठित ब्रूक्स इंस्टीट्यूट ऑफ फोटोग्राफी से स्नातक की पढ़ाई की है और न्यूयॉर्क और लॉस एंजिल्स में स्टीवन क्लेन और मार्क सेलगर जैसे प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय नामों के साथ फ्रीलान्स सहायक के रूप में बड़े पैमाने पर काम भी किया है. भारत में आर बर्मन ने वोग इंडिया के साथ बड़े पैमाने पर फोटोग्राफी की हैं. बर्मन ने देश के अधिकांश अग्रणी पत्रिकाओं और ब्रांडों के लिए फोटो खिंची हैं. बर्मन ने भारतीय सिनेमा में कुछ सबसे प्रसिद्ध चेहरों का भी फोटो लिया है.

अविनाश गोवारीकर

अविनाश गोवारीकर एक अग्रणी भारतीय फैशन, फिल्म और सेलिब्रिटी फोटोग्राफर हैं जो फोटोग्राफी के प्रति प्रतिबद्धता रखते हैं. अविनाश के कामकाज में अमिताभ बच्चन से अर्जुन कपूर, हेमा मालिनी से सोनाक्षी सिन्हा और उस्ताद जाकिर हुसैन से लेकर सचिन तेंदुलकर तक कई बड़ी हस्तीयां शामिल हैं.

अतुल कसबेकर

अतुल ब्लिंग! नामक सेलिब्रिटी प्रबंधन कंपनी के मालिक हैं. अतुल कसबेकर एक भारतीय फैशन फोटोग्राफर और बॉलीवुड फिल्म निर्माता हैं. वह अपने किंगफिशर कैलेंडर शूट के लिए जाने जाते हैं. 2007 में शुरू हुए मनोरंजन समाधान. ब्लिंग! ने अब तक कई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय ब्रांडों जैसे पेप्सिको, नेस्ले आईटीसी, एयरटेल, किंगफिशर, सैमसंग, पीएंडजी, सोनी, स्वारोवस्की, एलजी मोबाइल, ल ‘ओरियल, स्विच समूह जैसे कुछ लोगों के साथ काम किया है. दीपिका पादुकोण, फरहान अख्तर, अभय देओल, अभिषेक बच्चन सहित कई मशहूर हस्तियों के ब्लिंग के ग्राहक हैं. मनोरंजन समाधान अतुल किंगफिशर कैलेंडर पर अपने काम के लिए, लंदन में आयोजित प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य और पेय क्रिएटिव एक्सलंस अवार्ड्स (एफएबी अवॉर्ड्स) 2005 को जीतने वाले पहले भारतीय होने के गौरव की भांति रखते हैं. अतुल कासबेकर ने 2016 की बॉलीवुड फिल्म ‘नीरजा’ का निर्माण किया जिसमें सोनम कपूर ने अभिनय किया है.

जतिन कंम्पनी

जतिन कंम्पनी, भारत के बहुत लोकप्रिय फैशन और सेलिब्रिटी फोटोग्राफरों में से एक है, जतिन ने फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय काम के लिए कई पुरस्कार जीते हैं. उत्कृष्ट विज्ञापन अभियान, जिन्हें जतिन ने डी बीयर, वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल, मैरियट इनकॉर्पोरेटेड, आईटीसी, लॉरियल, मोटोरोला, बकार्डी, सेग्राम इंडिया, ईएसपीएन, पेप्सी, कैनन और सोनी जैसे ग्राहकों के लिए कुछ नाम दिया है. फैशन कुछ समय के लिए जतिन का दूसरा नाम रहा है, एले, मैरी क्लेयर, ल ‘ऑफीसील, जीक्यू, ग्राजिया, हैलो, ओक, पीपुल एंड वेर्व जैसे प्रकाशनों के लिए जतिन  ने कुछ आश्चर्यजनक तरीके तैयार किए गए थे. जतिन की नवीनतम परियोजना अपने नए ‘टैक्सी फैब्रिक’, ‘हम लिविंग’ के लिए विचार कर रहे हैं. “हम लिविंग” एक महानगरीय के अस्तित्व के बारे में बोलते हैं. ‘हम लिविंग’ मचान की कठोरता उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों की रूढ़िवादी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करती है. ‘टैक्सी फैब्रिक’ एक टैक्सी के समतुल्य पैटर्न बनाने के लिए दोहराई गई एक तस्वीर से बना डिजाइनों का चित्र है.

सुबी शमूएल

सुबी शमूएल भारत की अग्रणी फैशन और व्यावसायिक फोटोग्राफर में से एक है, उनका नाम भारत में अवधारणा फोटोग्राफी का पर्याय है. उनका काम कई प्रतिष्ठित ब्रांडों में फैला है और लगभग सभी प्रमुख पत्रिकाओं को कवर करता है. सुबी शमूएल कि एक आदमी, सुबी शमूएल फोटोग्राफी, उनकी अनोखी शैली, कल्पना और पूर्णता की खोज ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा के सबसे मान्यता प्राप्त और स्थापित फोटोग्राफर में से एक बनने के लिए प्रेरित किया है. सुबी शमूएल का नाम ग्लैमर और अवधारणा फोटोग्राफी का पर्याय है. वह फिल्म प्रचार, विज्ञापनों और प्रकाशन की दुनिया में सोचने के लिए एक नामी व्यक्ति हैं. उनके ग्राहकों में भारत में फिल्म उद्योग और प्रिंट मीडिया से संबंधित केवल कार्य शामिल हैं, बल्कि पूर्व और यूरोप के प्रतिनिधी भी सुबी शमूएल के काम में शामिल है. उनके कुछ बड़े कार्यों में कांटे के लिए प्रचार चित्र, देवदास में ऐश्वर्य राय आदि शामिल हैं.

सुनील ग्रोवर की जगह लेंगे कृष्णा अभिषेक!

कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर के बीच दोस्ती अब नहीं बची ये बात तो सभी को पता है. हाल में ही दोनों के बीच हुए विवाद से फैन्स शॉक्ड हो गए. लोग यही उम्मीद कर रहे हैं कि दोनों अपने बीच की सभी परेशानियों को खत्म कर दें और वापस साथ आ जाएं. सुनील के शो छोड़ने की बात ने तो फैन्स को और भी निराश कर दिया है.

एक तरफ लोग इस कंट्रोवर्सी में सुनील का साथ दे रहे है तो वहीँ एक ऐसा ऐक्टर कपिल को सपोर्ट कर रहा है जोकि अबतक उनके खिलाफ बोला करता था. और वो कोई और नहीं है बल्कि कृष्णा अभिषेक है. उन्हें लगता है कि चीजों को ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर बोला गया है, ये उती बड़ी बात नहीं है जितनी की दिखाई जा रही है.

कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर विवाद में लेटेस्ट खबर यह है कि द कपिल शर्मा शो में कप्पू के प्रतिद्वंदी कृष्णा अभिषेक डॉक्टर गुलाटी की जगह लेंगे. उन्हें भी सुनील के किरदार के लिए कंसीडर किया जा रहा है. जी हां आपने सही सुना. अब इसके बारे में हर कोई बात कर रहा है.

एक एंटरटेनमेंट पोर्टल को दिए इंटरव्यू में कृष्णा ने कहा कि मेरा कपिल के साथ कभी कोई इश्यू नहीं रहा है. कपिल मेरी बहुत इज्जत करता है और मैं कपिल की. हमारे बीच कुछ मामूली मसले जरूर रहे हैं लेकिन हमने एक दूसरे की बेइज्जती कभी नहीं की. मैंने कभी नहीं सुना की कपिल ने मेरी बेइज्जती की हो. वो निजी और प्रोफेशनल ममालों को कभी नहीं मिलाते. मुझे नहीं पता कि लोग इस बारे में इतनी बेकार बाते क्यों करते हैं.

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