ऐप का मेरे करियर से संबंध नहीं : नेहा शर्मा

बिहार के भागलपुर के एक राजनीतिज्ञ परिवार से संबंध रखने वाली अदाकारा नेहा शर्मा ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत दक्षिण भारत की तेलगू फिल्मों से की थी. दो सफल फिल्में करने के बाद उन्होंने इमरान हाशमी के साथ हिंदी फिल्म ‘‘क्रूक’’ से बॉलीवुड में कदम रखा. तब से सात वर्षों में अंदर वह बमुश्किल सात हिंदी फिल्मों में नजर आयीं. जबकि उन्हें हर बड़े बैनर व बड़े कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला.

इन दिनों वह अनिल कपूर व अर्जुन कपूर के साथ फिल्म ‘‘मुबारका’’ भी कर रही हैं. इसी बीच अब वह अपना ‘‘ऐप’’ भी लेकर आ गयी हैं. प्रस्तुत है नेहा शर्मा से हुई बातचीत के अंश

आपको अपना ऐप निकालने की जरूरत क्यों महसूस हुई?

मुझे जरूरत महसूस नहीं हुई, लेकिन ऐप बनाने वाली कंपनी ‘इस्कापेक्स’ ने मुझसे संपर्क किया. उन्होंने मुझे ऐप के बारे में विस्तृत जानकारी दी. तो मुझे एहसास हुआ कि ऐप होना कितना जरूरी है. क्योंकि इसमें बहुत कुछ है. मेरे फैन्स मेरे संपर्क में आने के लिए, मेरे बारे में जानकारी हासिल करने के लिए अलग अलग सोशल मीडिया यानी कि इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर वगैरह पर जाते हैं. इससे उनका काफी समय बर्बाद होता है. पर अब उन्हें मेरे बारे में किसी भी जानकारी को हासिल करने के लिए अलग अलग सोशल मीडिया पर जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. उन्हें सारी जानकारी मेरे ऐप से मिल जाएगी. इससे उनके समय में बचत होगी. उन्हें मेरे फोटो से लेकर हर तरह की जानकारी मेरे ऐप पर मिल जाएगी. यह एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय है. इसके अलावा हम ऐप के माध्यम से बहुत कुछ कर सकते हैं. जबकि सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफार्म पर यह सुविधाएं नहीं हैं.

आप किन सुविधाओं की बात कर रही हैं, जो कि दूसरे सोशल मीडिया पर नहीं हैं?

हम अपने ऐप पर रोचक वीडियो डाल सकते हैं. रोचक गेम डाल सकते हैं. हम अपने फैन के साथ कांटेंस्ट यानी कि प्रतियोगिताएं आयोजित कर सकते हैं. हम इस आधार पर उन्हें नंबर वन फैन या सुपर फैन बना सकते हैं. हम मजाकिया अंदाज में अपने फैन से ढेर सारी बातचीत कर सकते हैं. उनके संपर्क में रह सकते हैं. जब आप मेरे ऐप पर जाएंगे, तो आपको समझ में आएगा कि इसमें कितनी नयी नयी चीजें हैं. जो कि किसी दूसरे सोशल मीडिया पर नहीं मिलेंगी.

आप अपने संबंध में किस तरह की जानकारियां अपने ऐप में डालने वाली हैं?

मेरी कोशिश रहेगी कि मैं अपने ऐप में ज्यादा से ज्यादा चीजें डालूं. अपने संबंध में ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की कोशिश करूंगी. मैं अपने फैन को अपनी पसंद नापसंद के बारे में बताउंगी. देखिए, अब तक हम अकेले अपने बारे में सब कुछ नहीं फिल्मा पा रहे थे और ना ही हर चीज हम सोशल मीडिया पर पोस्ट कर पा रहे थे. लेकिन अब हमारे साथ एक पूरी टीम होगी, जो कि मेरे साथ काम करेगी. मुझसे संबंधित ज्यादा से ज्यादा कंटेंट तैयार करेगी और उसे ऐप में डालती रहेगी. इस ऐप में यह भी होगा कि मेरा पूरा दिन किस तरह से गुजरता है. हमारी टीम उसका वीडियो बनाकर ऐप में डालेगी.

आपके इस ऐप से आपके करियर को कितना फायदा होगा?

इस संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकती. क्योंकि ऐप तो मेरे और मेरे फैन्स के बीच संपर्क का सेतु है. ऐप का मेरे फिल्मों के चयन से कोई संबंध नहीं है. जबकि मेरा करियर मेरी फिल्मों के चयन पर निर्भर करता है. ऐप एक ऐसा माध्यम है, जहां हम अपने फैन से वन टू वन बात कर सकते हैं. उनकी बातों को सुनकर हम उनको जवाब भी दे सकते हैं. हम अपने फैन की राय जानकर अपने आप में सुधार या बदलाव ला सकते हैं. कहने का अर्थ यह है कि ऐप मेरे फैन्स के लिए है, जिससे वह मुझसे आसानी से सपंर्क कर सकें. ऐप का करियर से कोई संबंध नहीं है. करियर तो फिल्मों से जुड़ा मसला है, जो कि मेरी जिंदगी का एक अलग अध्याय है. इसलिए ऐप से मेरे करियर को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

सोशल मीडिया पर इस कदर व्यस्त रहती हैं, उससे आपके करियर को फायदा होता है?

मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. मैंने इस संबंध में रिसर्च नहीं किया है कि सोशल मीडिया से करियर को फायदा होता है या नहीं होता है. मैं बड़ी ईमानदारी से कह रही हूं कि मुझे नहीं पता कि सोशल मीडिया से करियर को क्या फायदा होता है. आज की तारीख में मैं आपके इस सवाल का जवाब नहीं दे पाउंगी. हां, मैं इतना जानती हूं कि यदि मुझे अपने फैन्स से बातचीत करनी है, तो वह फिल्मों के माध्यम से संभव नहीं है. सोशल मीडिया या ऐप ने यह सुविधा हमें दे दी है.

पर करियर में जहां पहुंचना है, उसके लिए..?

बात को बीच में ही काटकर नेहा शर्मा ने कहा, देखिए ऐप या सोशल मीडिया किसी को किसी मुकाम पर पहुंचाने का काम नहीं करती है. पर सोशल मीडिया पर हम फैन्स से बात करते हैं. मुझे अपनी हर फिल्म, हर गाने, फिल्म के हर ट्रेलर व हर विज्ञापन फिल्म को लेकर अपने फैन्स से उनकी बेबाक राय मिलती है. मैं यह सारी चीजें, अपनी फिल्मों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर डालती रहती हूं. आज की तारीख में मेरे सारे फैन्स इस तरह के सोशल मीडिया प्लेटफार्म को लेकर बहुत सजग हैं. वह मुझे तुरंत अपनी राय देते हैं. यह बहुत अच्छी बात है.

आपके अपने मोबाइल पर किसके ऐप हैं?

ईमानदारी की बात यही है कि जब तक इस्कापेक्स कंपनी मेरे पास आयी नहीं थी, तब तक मुझे ऐप के बारे में कुछ पता नही था. इसलिए मेरे मोबाइल पर कोई ऐप नहीं है.

इस कंपनी ने किन लोगों के ऐप लॉन्च किए हैं?

‘इस्कापेक्स’ ने पूरे विश्व में तमाम लोगों के ऐप लॉन्च किए हैं. भारत में भी तमाम कलाकारों के ऐप ला चुका है. सनी लियोनी, नरगिस फाकरी, सलमान खान, अक्षय कुमार, सोनम कपूर सहित बहुत सारे लोगों के ऐप ही कंपनी लेकर आयी है. मुझे पता नहीं था और जब पता चला, तो मैंने इससे जुड़ने के लिए हामी भरी.

आप आपने ऐप की तुलना बाजार में उपलब्ध दूसरे कलाकारों के ऐप से कैसे करेंगीं?

हर कलाकार की अपनी अलग शख्सियत व व्यक्तित्व होता है.हर कलाकार अपनी रूचि के अनुरूप या अपने फैंस का ख्याल रखते हुए ऐप में कंटेंट डालता है. मेरा ऐप एकदम मेरे जैसा ही है. मैं जो कुछ देखना चाहती हूं या अपने फैंस तक जो बात पहुंचाना चाहती हूं, वह दूसरे कलाकारों के मुकाबले बहुत अलग है. 

अपनी नई फिल्म ‘‘मुबारका’’ को लेकर क्या कहेंगी?

‘‘मुबारका’’ अनीस बजमी की अपनी क्लासिकल स्टाइल की कॉमेडी फिल्म है. जिसमें कई बड़े बड़े व ग्लैमरस कलाकार हैं. इसमें मेरा किरदार स्पेशल अपियरेंस वाला है.

कहानी : प्रेम गली अति संकरी

कबीर कहते हैं, ‘कबीरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं, सीस उतारे हाथि धरे, सो पैसे घर माहिं.’ उन सस्ते दिनों में भी आशिक और महबूबा के लिए प्रेम करना खांडे की धार पर चलने के समान था. आम लोग बेशक आशिकों को बेकार आदमी समझते होंगे, जो रातदिन महबूबा की याद में टाइम खोटा करते हैं. आशिकों को मालूम नहीं कि प्रेम करते ही सारा जमाना उन के खिलाफ हो जाता है.

गालिब कहते हैं, ‘इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के.’ जिगर मुरादाबादी ने कहा है, ‘इश्क जब तक न कर चुके रुसवा, आदमी काम का नहीं होता.’ अब कौन सही है और कौन गलत, जवानी की दहलीज पर पांव रखने वाले नवयुवक क्या समझें? ये सब उन पुराने जमाने के शायरों की मिलीजुली साजिश का नतीजा था कि लोग प्रेम से दूर भागने लगे थे. मीरा बोली, ‘जो मैं जानती प्रीत करे दुख होय, नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोई.’ फिर वही जमाना पलट आया है, जब बच्चों को इस नामुराद इश्क के कीड़े से दूर रहने की सलाह दी जाती है. तभी तो आज फिल्मों में गाने भी इस तरह के आ रहे हैं जैसे, ‘प्यार तू ने क्या किया’, ‘इस दिल ने किया है निकम्मा’, ‘कमबख्त इश्क है जो’.

एक कवि कहता है, ‘प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए.’ दो का अर्थ है 2 रकीब, जो एक ही महबूबा को एक ही समय में एकसाथ लाइन मारते हैं. कवि कहता है कि प्रेम नगर की गली बहुत तंग है. इसे एक समय में एक ही व्यक्ति पार कर सकता है. आशिक और महबूबा का गली में साथसाथ खड़े होना संभव नहीं बल्कि खतरे से खाली नहीं है, वर्जित भी है क्योंकि पड़ोसियों की सोच बहुत तंग है. लड़की के भाई जोरावर हैं और बाप पहलवान है.

इतनी सारी पाबंदियों के चलते दैहिक स्तर पर प्रेम का प्रदर्शन सूनी छत पर तो हो सकता है, गली में नहीं. तभी कवि जोर देता है कि प्रेम गली अति संकरी, इस में दो न समाए. लोगों का मानना है कि गलियां तो आनेजाने के लिए होती हैं. सभी लोग गलियों में ही प्रेम का इजहार करने लग जाएंगे तो आवकजावक यानी यातायात संबंधी बाधाएं उत्पन्न हो जाएंगी.

प्यार पाना या गवांना इतना उल्लासपूर्ण या त्रासद नहीं जितना प्रेम की राह में किसी अन्य का आ जाना, किसी का आना मजा किरकिरा तो करता ही है, उस के साथ प्यार किसी प्रतियोगिता से कम नहीं रह जाता और इस प्रतियोगिता में सारी बाजी पलटती हुई नजर आती है. सारी उर्दू शायरी रकीब के आसपास घूमती है. नायिका को हर समय यही डर सताता रहता है कि उस ने जो प्रेम का मायाजाल रचा है उस में कोई तीसरा आ कर टांग न अड़ाए.

असली जिंदगी में भी एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं. प्रेम में त्रिकोण का साहित्यिक व फिल्मी महत्त्व भी है. होता यों है कि नायकनायिका प्रेम की पींगे भर रहे होते हैं तभी जानेअनजाने कोई तीसरा आदमी कबाब में हड्डी की तरह पता नहीं कैसे और कहां से टपक पड़ता है. वैसे तो उस के होने से ही कथा में तनाव गहराता है मगर उस का होना जनता को गवारा नहीं लगता. प्रेमी को प्रेमिका से सहज भाव से प्रेम हो जाए, शादी हो जाए और फिर बच्चे हो जाएं तो सारा किस्सा ही अनरोमांटिक हो जाता है. कथा को आगे बढ़ाने के लिए कोई न कोई अवरोधक तो चाहिए ही न. बहुत कम कहानियां ऐसी होती हैं जिन में नायक व नायिका खुद एक दूसरे से उलझ जाते हैं. बात उन के अलगाव पर जा कर खत्म होती है मगर 90 फीसदी कहानियों में बाहरी दखल जरूरी है. इसी हस्तक्षेप के कारण कथा को गति मिलती है व कुछ रोचकता पैदा होती है.

प्रेम में रुकावट के लिए या तो किसी दूसरे आदमी या विलेन या क्रूर समाज की मौजूदगी होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में जितनी बाधाएं होंगी, तड़प उतनी ही गहरी होगी और प्रेम की अनुभूति उतनी ही तीव्र होगी.

प्रेम कथा का प्लाट गहराएगा. लैलामजनूं, हीररांझा, शीरीफरहाद या रोमियोजूलियट जैसी विश्व की महान कथाओं में समाज पूरी शिद्दत के साथ प्रेमियों की राह में दीवार बन कर खड़ा हो गया था. कहीं पारिवारिक रंजिश के चलते तो कहीं विलेन की चालों के कारण 2 लोग आपस में नहीं मिल पाए तो एक बड़ी प्रेम कहानी ने जन्म लिया, जो सदियों तक लोगों को रुलाती रहती है.

कुछ कहानियों में किसी तीसरे की मौजूदगी इस कदर अनिवार्य व स्वीकार्य होती है कि प्रेमी या प्रेमिका उस की खातिर खुद को मिटाने का फैसला कर बैठता है. प्यार में यह अनचाही व बेमतलब की कुरबानी हमारी फिल्मों में सफलतापूर्वक फिट होती है मगर असल जिंदगी में ऐसे त्यागी लोग ढूंढ़े नहीं मिलेंगे.

आदमी की प्रकृति है जलन करना. इस जलन से मुक्ति पाने की कोशिश वैसे ही है जैसे अपनी परछाईं से मुक्त होना. इस जलन का एक दूसरा रूप है जब हम रिश्तों के क्षेत्र में संयुक्त स्वामित्व चाहते हैं यानी जिस से हम प्यार करते हैं उसे कोई दूसरा चाहने लगे तो हमारी ईर्ष्या चरम पर होती है. साहिर लुधियानवी ने इस जलन को क्या खूब बयान किया है, ‘तुम अगर मुझ को न चाहो, तो कोई बात नहीं, तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी…’ इस मुश्किल को आसान बनाने के लिए हमारे फिल्मी निर्देशकों ने कहानी में एक नए तरह के मोड़ को लाने की कोशिश की. नायक या नायिका को किसी दूसरे आदमी के प्रेम की छाया से मुक्त करने के लिए सहानुभूति के कारक की मदद ली गई. नया या पुराना आशिक किसी हालत का शिकार दिखाया जाने लगा. कैंसर या लापता होना या उस की अचानक मौत दिखा कर नायिका के मन में चल रहे द्वंद्व का हल निकाला गया.

– जसविंदर शर्मा

यह कैसी राजभक्ति?

खुद को धर्म, जाति विशेष या संस्कृति का अघोषित ठेकेदार समझने वाले स्थानीय संगठनों द्वारा कानून अपने हाथ में लेने का कुछ समय से देश में चलन सा हो गया है. करणी सेना की करतूत कुछ इसी तरह की है.

राजपूत करणी सेना ने जयपुर में फिल्माई जा रही फिल्म ‘पद्मावती’ के सैट पर ऊधम मचाया और फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली से मारपीट की जबकि संजय लीला भंसाली के प्रोडक्शन हाउस ने करणी सेना को पत्र लिख कर स्पष्ट भी किया कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच सपने में रोमांस किए जाने जैसा कोईर् सीन नहीं है.

इस बारे में उन्होंने सितंबर 2016 में राजपूत सभा को एक पत्र लिखा था. पत्र में उन्होंने कहा था कि फिल्म ऐतिहासिक तौर पर पूरी तरह सटीक होगी. बावजूद इस के 27 जनवरी को जयपुर में फिल्म के सैट पर करणी सेना द्वारा हंगामा और मारपीट की गई, जिसे कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता. बाद में 29 जनवरी को लिखे गए पत्र में संजयलीला भंसाली ने यह रिक्वैस्ट की कि वे अपने शूट को आगे बढ़ाने जा रहे हैं और उन के प्रोडक्शन के खिलाफ कोई कदम न उठाया जाए. गौर करने की बात यह थी कि हमले से पहले कथित करणी सेना के सदस्यों ने तो फिल्म का कोई टीजर, ट्रेलर या लीक्ड सीन भी नहीं देखा था. फिर भी फिल्म के सैट पर तोड़फोड़ की गई, शूटिंग का सामान तोड़ा गया और संजय लीला भंसाली को चांटे मारे गए. करणी सेना के लोगों का कहना था कि फिल्म में रानी पद्मावती से जुड़े इतिहास से छेड़छाड़ की गई है.

बौलीवुड के कई जानेमाने और फिल्म निर्माताओं, अभिनेताओं ने भंसाली पर हुए हमले की निंदा की. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, ‘‘ये मूर्ख तत्त्व किसी भी हिंदू विचारधारा का प्रतिनिधित्व नहीं करते. दुनिया का कोईर् भी धर्म किसी को हिंसा करने या कानून को अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं देता. मुझे नहीं पता कि वे किस की राजभक्ति करते हैं और किस चीज का विरोध कर रहे हैं. क्या उन्होंने भंसाली की फिल्म पद्मावती देखी है? क्या उन्हें पता है उस में क्या है? वे उस चीज का विरोध कैसे कर सकते हैं, जो हुआ ही नहीं है?’’

निर्देशक अनुराग कश्यप ने भी संजय लीला भंसाली के साथ जयपुर में हुई घटना का कड़ा विरोध किया. सोशल मीडिया पर ट्रोल करने वालों पर अनुराग कश्यप ने फेसबुक पोस्ट करते हुए लिखा, ‘‘आप की यह भीड़ मुझे डरा नहीं सकती. मैं ने हमेशा सवाल करना सीखा है और मैं अपने सवाल करने के अधिकार का हमेशा इस्तेमाल करूंगा. मैं कई मुद्दों पर तब से आवाज उठा रहा हूं जब ये बिना चेहरे और आवाज के लोग सोशल मीडिया पर एक भीड़ बन कर नहीं होते थे. मुझे फर्क नहीं पड़ता आप क्या कहते या करते हैं. आप मुझ पर मौखिक या शारीरिक हमले कर सकते हैं. मैं हमेशा गलत विरोध में आवाज उठाऊंगा.

‘‘मैं ने हमेशा से सरकार चलाने वालों से सवाल किया है. जब मैं छात्र था, तब विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे. तब मुझे सिखाया गया था कि प्रधानमंत्री देश का प्रमुख होता है, जिस से आप सवाल पूछ, जवाब मांग सकते हैं और बहस कर सकते हैं. उस से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उसे आप ने चुना है और वह आप के भले के लिए काम करता है.’’

अनुराग कश्यप के बाद सैंसर बोर्ड यानी सीबीएफसी के अध्यक्ष पहलाज निहलानी की प्रतिक्रिया भी बहुत कुछ कहती है. पहलाज निहलानी ने कहा, ‘‘फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्मों के जरिए भारतीय पर्यटन को काफी बढ़ावा दिया है.’’ उन पर जयपुर में हुए हमले की निंदा करते हुए निहलानी ने कहा, ‘‘यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए झटका है.’’ उन्होंने इस हिंसा को शर्मनाक घटना बताते हुए

कहा, ‘‘संजय लीला भंसाली ने सिनेमा को दुनिया के हर कोने में पहुंचाया है. वे दुनियाभर में जीनियस के रूप में जाने जाते हैं और उन्होंने भारत के पर्यटन के लिए बहुत कुछ किया भी है.’’

भंसाली की अन्य फिल्मों ‘खामोशी : द म्यूजिकल’ और ‘गुजारिश’ की शूटिंग्स गोवा में की गई थी और उन फिल्मों ने गोवा के तटीय सौंदर्य का प्रचार किया था. ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘गोलियों की रासलीला-रामलीला’ से गुजरात की संस्कृति का प्रचार हुआ था तो ‘बाजीराव मस्तानी’ ने दुनियाभर में मराठा योद्धाओं की कहानी का प्रचारप्रसार किया. और अब ‘पद्मावती’ राजस्थान की समृद्ध संस्कृति और विरासत का एक नया अध्याय खोलने जा रही थी. लेकिन अब सवाल यह है कि क्या ये गुंडे तत्त्व भंसाली को राजस्थान में शूटिंग करने देंगे? क्या वे कभी वहां वापस जाएंगे? यह घटना राजस्थान पर्यटन के लिए बड़े घाटे का सबब बन सकती है.

राज्य सरकार की जिम्मेदारी

भंसाली को जयपुर में शूटिंग करने की अनुमति देने के बाद उन की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी, जो उस ने अच्छी तरह नहीं निभाई. जबकि मौरीशस और दक्षिण अफ्रीका में भारतीय फिल्मों को शूटिंग के लिए हर तरह की सुरक्षा व मदद उपलब्ध होती हैं. भारत में सहायता की बात तो दूर, शूट करने वाली टीम के सदस्यों और उपकरणों की सुरक्षा तक खतरे में होती है.

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक संजय लीला भंसाली पर फिल्म में राजपूत महारानी पद्मावती के प्रेम में पड़े दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित इतिहास से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया है.

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ के कारण इस किरदार के होने और न होने पर खूब बहस हो रही है. जहां कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पद्मावती एक साहित्यिक किरदार है वहीं कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि साहित्य इतिहास से बिलकुल अलहदा नहीं होता. कहते हैं कि 1540 ईसवी में शेरशाह का जमाना था और उसी वक्त मलिक मुहम्मद जायसी ने पद्मावत की रचना की थी. तब शेरशाह उत्तर भारत में अफगानों का एक बड़ा साम्राज्य स्थापित कर रहे थे.

बाबर के बाद हुमायूं को खदेड़ते हुए ईरान की सीमा तक पहुंच कर शेरशाह ने अपने साम्राज्य की स्थापना की थी. जायसी चिश्ती सूफी थे. चिश्तियों ने हिंदुस्तान के लोगों को जोड़ने का काम किया था. उन्होंने ऐसी जबान में बोलना और लिखना

शुरू किया था, जिसे आम लोग समझ सकते थे. जायसी ने पद्मावत ठेठ अवधि भाषा में लिखी थी. अवधि भाषा को उस जमाने के हिंदूमुसलमान दोनों समझते थे. कहते हैं कि पद्मावत में राजा रतनसेन और पद्मावती का जो प्रेमप्रसंग है, उसे जायसी ने सूफियों के तरीके से लिखा था.

प्रकृति के लिए सबकुछ निछावर कर देना सूफियों की आदत में शुमार रहा है. पद्मावत में इसी कोशिश की झलक मिलती है. जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईसवी में चित्तौड़ को जीता था और जायसी ने पद्मावत में खिलजी को खलनायक की तरह दिखाया. जायसी ने इस में अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य को दुनिया के रूप में दिखाया. वहीं रतनसेन और पद्मावती के बीच जो प्रेम है वह प्रकृति के लिए समर्पित है. दोनों एकदूसरे में मिल कर खत्म हो जाते हैं.

पद्मावत सूफियों के लिए प्रेमाख्यान है. इन्हीं प्रेमाख्यानों में एक ‘चंदायन’ है जिसे मुल्ला दाऊद ने लिखा था. इस के बाद ‘मधुमालती’ और ‘मृगावती’ जैसे आख्यान भी लिखे गए. इन सभी में पद्मावत की हैसियत सब से ज्यादा है. इस कहानी का जिक्र वाचिक परंपरा में रहा होगा.

भारतीय परंपराओं में जो कहानियां अस्तित्व में थीं, उन्हें सूफियों ने अपने अंदाज में और अपनी जरूरत के हिसाब से लिखा है. यह सही है कि पद्मावती किसी एक मुकम्मल ऐतिहासिक किरदार के रूप में नहीं है. हमें ऐसा कहीं नहीं मिलेगा कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और तब पद्मावती बचने की कोशिश कर रही थी.

पद्मावती की कहानी जायसी से शुरू जरूर होती है लेकिन इस के बाद रुकती नहीं है. पद्मावती का जिक्र 15वीं से ले कर 16वीं, 18वीं शताब्दी तक में भी मिलता है. अलाउद्दीन और पद्मावती को ले कर लोगों की अलगअलग व्याख्या रही है और इस तरह यह कहानी हमारे इतिहास का हिस्सा बन जाती है. फलस्वरूप, पद्मावती के फिल्मांकन के विरोध को जायज नहीं ठहराया जा सकता.

ऐसे धार्मिक कट्टर संगठनों की मनमरजी के आगे प्रशासन, पुलिस क्यों घुटने टेक देती है, यह समझ से परे है. अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरा बन कर मंडरा रहे करणी सेना जैसे असामाजिक तत्त्वों पर लगाम कसनी जरूरी है.

– आशा त्रिपाठी

फलफूल रही विरासत की राजनीति

भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में राजनीति अब पुश्तैनी पेशा बन गई है. जो भी राजनीति में एक बार सफल हो जाता है वह अपने बच्चों को अन्य व्यवसाय में भेजने के बजाय राजनीति में ही भेजना पंसद करता है. भारत में गांधी परिवार, सिंधिया परिवार, मुलायम परिवार, लालू यादव परिवार, हेमवती नंदन बहुगुणा परिवार, बाल ठाकरे परिवार, देवीलाल परिवार, बादल परिवार और करुणानिधि परिवार जैसे बहुत सारे उदाहरण भरे पड़े हैं.

विश्वस्तर पर देखें तो अमेरिका, श्रीलंका, क्यूबा, उत्तर कोरिया, सिंगापुर, बंगलादेश और पाकिस्तान तक तमाम देशों में राजनीति अब विरासत की बात हो गई है. इस के अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं.

भारत में नेहरू-गांधी परिवार की आलोचना कर राजनीति की शुरुआत करने वाले दल खुद भी परिवारवाद में डूब गए. भाजपा जैसे दल, जो परिवारवाद की आलोचना करते थे, अब वे भी परिवारवाद के शिकार हो गए हैं.

विदेशों में भी विरासत की सियासत बहुत पुरानी है. अमेरिका में बहुत पहले ही जस्टिन और एडम्स के परिवार राजनीति में एक के बाद एक कर के आगे बढ़े. इस के बाद वहां पर ही कैनेडी और क्लिंटन परिवार इस विरासत को आगे बढ़ाने में लग गए. ये परिवार तो ऐसे हैं जिन के लोग राजनीति में आगे बढ़े और सब से बड़े पदों पर बैठे नजर आते हैं.

अमेरिका में बहुत सारे ऐसे परिवार भी हैं जिन के बच्चे सीनेट तक पहुंचे हैं. अमेरिका का एक सर्वे बताता है कि एक सामान्य बच्चे के मुकाबले नेताओं के बच्चों में सीनेटर बनने की संभावना 6,000 गुना अधिक होती है. अमेरिका के अलावा दूसरे देशों में भी हालत वैसी ही है. यही वजह है कि नेताओं के बच्चे तेजी से इस दिशा में अपना कैरियर बनाने में लगे हैं. पाकिस्तान में नवाज शरीफ परिवार और भुट्टो परिवार लोकतंत्र के समर्थक जरूर रहे हैं पर वहां भी लोकतंत्र की आड़ में परिवारवाद खूब फलफूल रहा है.

भारत के पड़ोसी मुल्क बंगलादेश और श्रीलंका में भी विरासत की सियासत का रंग देखने को मिलता है. शेख हसीना और खालिदा जिया ने बंगलादेश में परिवारवाद को बढ़ावा दिया. श्रीलंका में भंडरनायके, रणतुंगा परिवार राजनीति की मुख्यधारा में हैं. पूरी दुनिया में ऐसे देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जहां लोकतंत्र में परिवारवाद पनप रहा है. इस की अपनी कुछ मूल वजहें भी हैं.

आज के समय में चुनाव लड़ना सरल नहीं है. एक बार जो नेता अपने को स्थापित कर लेता है वह ब्रैंड बन जाता है. उस के ब्रैंड के सहारे पूरा परिवार आगे बढ़ता है. ऐसे परिवार में पैदा होने वाले लोगों को जनता स्वत: राजा मान लेती है. उन के पास पैसा और चुनाव लड़ने की समझ होती है. इस के प्रभाव को ले कर पूरी दुनिया में अलगअलग तरह के विचार हैं. कुछ लोग इस को लोकतंत्र के लिए सही मानते हैं, कुछ लोग इस को खतरा मानते हैं. दोनों विचारधाराओं के बीच परिवारवाद पूरी तरह से आगे बढ़ रहा है.

परिवारवाद की नई पौधशाला

देश में नेहरूगांधी और मुलायम परिवार की परिपाटी अब हर नेता के लिए नजीर का काम कर रही है. उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार की सदस्य अपर्णा यादव और अनुराग यादव राजधानी लखनऊ से चुनाव मैदान में उतरे. मुलायम परिवार पहली बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपने मजबूत गढ़ से बाहर निकल कर चुनाव मैदान में उतरा पर हार का सामना करना पड़ा.

चुनाव दर चुनाव राजनीति में परिवारवाद बढ़ता जा रहा है. परिवारवाद की यह बीमारी किसी एक दल की बीमारी नहीं रह गई है. हर दल इस हमाम में एक ही हालत में है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में परिवारवाद के उदाहरण दिखे. सब से बड़ी बात यह है कि 30 साल से नीचे के करीब आधा दर्जन युवा परिवारवाद के सहारे चुनाव मैदान में रहे.

परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा के तमाम लोग चुनाव जीते. आजम खां-अब्दुल्ला खां, मुख्तार अंसारी-अब्बास अंसारी और स्वामी प्रसाद मौर्य-उत्कृष्ट मौर्य के रूप में 3 जोडि़यां ऐसी हैं जिन में पितापुत्र दोनों ने एकसाथ अलगअलग विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा. परिवारवाद के रूप में ज्यादातर नेताओं ने अपने बेटों को अपना उत्तराधिकारी बनाया है. जहां बेटे नहीं, वहां बेटियों को आगे लाया जा रहा है.

अब तक परिवारवाद के नाम पर भाईभतीजे ही चुनाव लड़ते थे. अब यह दायरा भी सिमटता जा रहा है. नेताओं को अब अपने परिवार के लोग नहीं, बल्कि करीबी लोग उत्तराधिकार के लिए चाहिए. इस में पत्नी, बेटा और बेटी सब से बड़ी चाहत बन गई हैं. पहले यह परेशानी ऊंची जातियों के लोगों में दिखती थी. अब दलित और पिछड़ी जातियों में भी यही बीमारी पनपने लगी है. बड़ी संख्या में दलित और पिछड़े नेता अपने लोगों को राजनीति में ला रहे हैं.

युवाओं ने संभाली कमान

रायबरेली जिले की रहने वाली अदिति सिंह ने अपने पिता अखिलेश सिंह की पारंपरिक सीट रायबरेली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. अदिति ने अमेरिका से एमबीए की डिगरी हासिल की है.

पिता की बीमारी के बाद वे उन की विरासत को संभालने का काम कर रही हैं. राजनीति में उतरने से पहले वे लंदन के एक फैशन हाउस में काम कर रही थीं. उन्होंने अपना जौब छोड़ कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली की सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा. अदिति रायबरेली जिले के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए काम करना चाहती हैं. जिस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव हारे उस चुनाव में अदिति ने जीत कर दिखा दिया कि युवाओं में कितना दम है.

अब्दुल्ला खान सपा के नेता आजम खान के बेटे हैं. वे रामपुर की स्वार-टांडा विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर विधायक बने. आजम खान रामपुर से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीत हासिल की. पितापुत्र की जोड़ी ने एकसाथ चुनाव मैदान में जीत हासिल की.

अब्दुल्ला के पास एमटेक की डिगरी है. 27 साल के अब्दुल्ला अपने पिता द्वारा बनाई गई जौहर यूनिवर्सिटी के सीईओ हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब चुनाव आयोग ने आजम के चुनावप्रचार करने पर बैन लगा दिया था तब अब्दुल्ला ने अकेले ही चुनावप्रचार किया था.

अब्बास अंसारी बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे हैं. वे नैशनल स्तर के शूटर हैं. घोसी विधानसभा सीट से वे चुनाव लड़े और हार गए.

प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर सीट से चुनाव मैदान में थे और जीत हासिल की. वे बलरामपुर से सांसद बृजभूषण के बेटे हैं. प्रतीक ने मेलबर्न से एमबीए किया है. वे रेसलर बनना चाहते थे, लेकिन घर का माहौल पौलीटिकल था. उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने पिता बृजभूषण के लिए प्रचार किया था.

नितिन अग्रवाल हरदोई से सपा के नेता नरेश अग्रवाल के बेटे हैं. 34 साल के नितिन ने 2004 में पुणे से एमबीए की डिगरी हासिल की. 2012 से वे राजनीति में सक्रिय हैं. 2012 में वे पहली बार विधायक बने. नितिन ने पुणे के सिंबोएसिस इंस्टिट्यूट से एमबीए किया है. अखिलेश सरकार में नितिन मंत्री रहे.

पंकज सिंह भाजपा के प्रमुख नेता व केंद्रीय गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे हैं. 30 साल के पंकज ने एमिटी यूनिवर्सिटी से एमबीए किया है. पंकज 2002 से राजनीति में सक्रिय हैं. पार्टी में वे अलगअलग पदों पर रहे हैं. पहली बार वे विधायक बने, उन्होंने नोएडा विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की.

भाजपा के दूसरे प्रमुख नेता उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह भी पहली बार चुनाव जीत कर विधायक बने. संदीप के पिता राजवीर सिंह एटा से सांसद हैं. संदीप ने लंदन की लीड्स बैकेट यूनिवर्सिटी से एमए किया है. वे अपने दादा कल्याण की पारंपरिक सीट से चुनाव लड़े. 26 साल के संदीप कल्याण सिंह की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में वे मंत्री बने.

तनुज पुनिया कांग्रेस के सांसद पी एल पुनिया के बेटे हैं. वे बाराबंकी की जैदपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और हार गए. तनुज ने आईआईटी रुड़की से कैमिकल इंजीनियरिंग की डिगरी हासिल की है. 32 साल के तनुज का सपना आईएएस बनने का था. लेकिन तनुज के पिता पी एल पुनिया चाहते थे कि वह राजनीति में आए, इस कारण वे राजनीति में आ गए.

उत्कृष्ट मौर्य ऊंचाहार सीट से चुनाव लड़े और हार गए. वे बसपा के नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे हैं जो अब भाजपा में हैं. 31 साल के उत्कृष्ट ने कानपुर के छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय से 2016 में बीए किया है.

सकते में कर्मठ कार्यकर्ता

जिस तरह से बड़ी संख्या में नेता अपने परिवार के लोगों को राजनीति में ला रहे हैं, वह कर्मठ कार्यकर्ताओं के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. अपने परिवार के लोगों को स्थापित करने के लिए नेताओं को अपनी विचारधारा को छोड़ने में भी कोई एतराज नहीं रह गया है. अब परिवार के लोगों को मनचाहा टिकट न मिलने से नेता अपने दल को छोड़ कर दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में दलबदल कोई मुद्दा नहीं रह गया. हर दल ने दूसरे दलों के लोगों को बखूबी टिकट दिया.

जनता के लिए भी दलबदल और परिवारवाद कोई मुद्दा नहीं रह गया. अभी भी चुनाव का मुख्य मुद्दा जाति और धर्म ही है. जनता को जातिधर्म में उलझा कर नेता राजनीति को कुछ परिवारों तक समेट कर रख देने के पक्ष में लामबंद हैं. बड़े नेता अपने परिवार के लोगों को संसद और विधानसभा ले जाने के प्रयास में रहते हैं, छोटे कार्यकर्ताओं के परिवार को पंचायत और पार्षद चुनावों में मौके दे कर उन की जबान को बंद कर दिया जाता है.

सफल है विरासत की राजनीति

असल में राजनीति अब पहले की तरह सरल नहीं रह गई है. यहां धनबल और बाहुबल दोनों जरूरी हो गया है. दूसरे कैरियर के मुकाबले यहां उतारचढ़ाव थोड़ा ज्यादा हो सकता है पर मुनाफा दूसरे कैरियर के मुकाबले बहुत ज्यादा है. नेता हार कर भी नेता बना रहता है. अगर कोई किसी घोटाले या अपराध में फंस भी जाए तो भी राजनीति नेताओं के बच्चों को मरने नहीं देती. उन को सहारा दे कर मुख्यधारा में ले आती है. नेताओं के बच्चों को छोटेमोटे पद हर दल की सरकार में मिल जाते हैं. पूरे देश की विधानसभाओं में ऐसी बहुत सारी कमेटियां बनी हैं जिन में ये सदस्य बन जाते हैं, बैंकों में चेयरमैन बन जाते हैं, सार्वजनिक उपक्रमों में चेयरमैन हो जाते हैं. हजारों रास्ते ऐसे हैं जहां मुख्यधारा से कम लाभ नहीं है.

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार की बात करें तो गांव के प्रधान से ले कर मुख्यमंत्री तक उन के परिवार के लोग कहीं न कहीं किसी न किसी पद पर बैठे हैं हालांकि मुख्यमंत्री पद अब इस परिवार के पास नहीं है. विरोधी दल के नेता भी नेताओं के परिवार पर मेहरबान होते हैं. क्योंकि उन का आपस में मिलनाजुलना होता है. उन की दुश्मनी केवल वोट मांगने के समय होती है. तमाम ऐसे नेता हैं जिन के काम विरोधी नेताओं के समय में भी असरदार तरीके से होते हैं.

राजनीति को सेवा की परिभाषा से अलग करने की जरूरत है. यह अब एक तरह का पेशा बन गया है. पार्टी चलाने के लिए पैसे की जरूरत उसी तरह से होती है जिस तरह से फैक्टरी चलाने के लिए होती है. यह भूल जाना चाहिए कि बिना पैसा लिए कोई जनता के लिए काम करेगा. केवल पार्टी की ही बात नहीं है, अगर कोई स्वयंसेवी संस्था भी चलाता है तो उस को भी संचालक से ले कर चपरासी तक का खर्च उठाना ही पड़ता है. पार्टियां भी अपने काम करने वालों को वेतन देती हैं. ऐसे में हर नेता को अच्छाखासा पैसा चाहिए. पार्टी के साथ कुछ पैसा नेता अपने व परिवार के लिए भी बचा कर रखना चाहता है, जिस से खराब समय में, जब वह सत्ता में न रहे, उस को भूखों न मरना पड़े.

पूरी दुनिया में राजनीति अब एक कैरियर की तरह हो गई है. यह सच है कि नेताओं के बच्चों के सफल होने की संभावना हजारगुना अधिक होती है पर कई बार मेहनत करने वाले और अवसर का लाभ उठाने वाले दूसरे लोग भी सफल हो जाते हैं.

यह कैरियर उसी तरह से मुश्किलभरा है जैसे एमबीए, डाक्टर या इंजीनियर बनना. इस में बुद्धि के साथ शरीर का बल भी ज्यादा चाहिए. सैकड़ों लोगों से मिलना, उन को याद रखना, उन की खुशी के लिए उन के जैसा व्यवहार करना सीखना सरल नहीं होता है. इस के अलावा झगड़े कराने से ले कर निबटाने की कला, वाकपटु होना, भाषण देना आना चाहिए. राजनीति नेता के परिवार के लोग करें या आम परिवारों के, ध्यान रखने वाली बात यह है कि समाज को सही दिशा देने का काम करें. सही नेता ही समाज को नई दिशा देते हैं, सही नेता ही सरकार को मनमानी करने से रोकते हैं, तो कभी वे सरकार भी चलाते हैं.

कसौली : पल पल बदलता है जहां मौसम

हिमाचल प्रदेश को खूबसूरत वादियों के लिए जाना जाता है. यहां हर मौसम में प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाया जा सकता है. लेकिन अगर आप भागदौड़भरी जिंदगी से ऊब कर थोड़े समय के लिए सस्ते में आबोहवा बदलना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत पर्यटन स्थल कसौली एक बेहतरीन विकल्प है.

समुद्रसतह से लगभग 1,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कसौली हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है जो अपनी खुशनुमा आबोहवा के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय है.

ब्रिटिशों द्वारा विकसित एक छोटा शहर, कसौली अभी भी अपना प्राचीन आकर्षण समेटे हुए है. 1857 में जब भारत की आजादी की पहली लड़ाई प्रारंभ हुई तब कसौली ने भी भारत के सैनिकों के बीच एक विद्रोह देखा. कसौली का प्रशासन सेना के हाथ में है और यह मूलतया सैनिक छावनी है.

खूबसूरत हिलस्टेशन कसौली चंडीगढ़ से शिमला जाने वाली सड़क की आधी दूरी पर स्थित है. धरमपुर कसौली का सब से नजदीकी रेलवेस्टेशन है जहां टौय ट्रेन द्वारा पहुंचा जा सकता है. फिर यहां से किसी भी बस द्वारा कसौली पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से करीब 3 घंटे में कालका से कसौली पहुंच सकते हैं. पूरा रास्ता चीड़ यानी देवदार के वृक्षों से आच्छादित है. इस क्षेत्र में वाहनों के आने का समय निश्चित है जिस के कारण पर्यटक स्वच्छंद रूप से वादियों का लुत्फ उठाते हैं.

यहां सर्वाधिक चहलपहल वाले स्थान अपर और लोअर माल हैं, जहां की दुकानों पर रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं और पर्यटकों के लिए सोविनियर बिकते हैं. लोअर मौल में अनेक रेस्तरां है, जहां स्थानीय फास्टफूड मिलता है.

पल पल बदलता मौसम 

मानसून के दिनों में वर्षा की बौछार पड़ते ही कसौली की हरियाली देखते ही बनती है. बारिश थमी नहीं कि चारों तरफ कुहासे का साम्राज्य हो जाता है और पर्यटक उस में घूमने निकल पड़ते हैं. यहां का मौसम पलपल अपना रंग बदलता है, कभी बादलों का समूह पलभर में ही धूप के नीचे छाकर बरस पड़ता है तो दूसरे ही पल मौसम साफ हो जाता है और तनमन को रोमांचित करने वाली खुशनुमा हवा बहने लगती है. कसौली का मौसम इतना सुहावना होता है कि कसौली पहुंचने से 2-3 किलोमीटर पहले से आप को कसौली में प्रवेश करने का एहसास हो जाएगा.

अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर महीने में यहां आने का बेहतरीन समय होता है. यहां के पेड़ पौधों पर इस मौसम का जो रंग चढ़ता है, उसे फूल पत्तों पर महसूस किया जा सकता है. बर्फ का आनंद उठाने की चाह रखने वाले पर्यटकों को यहां दिसंबर से फरवरी के बीच होने वाली ओस जैसी बर्फ की बारिश  भी खूब गुदगुदाती है.

मंकी पौइंट

मंकी पौइंट कसौली की सब से लोकप्रिय जगह और सर्वाधिक ऊंची चोटी है और यह कसौली से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान से सतलुज नदी, चंडीगढ़ और बर्फ से ढकी चूर चांदनी चोटी, जो हिमालय श्रेणी की सब से ऊंची चोटी है, का स्पष्ट दृश्य देखा जा सकता है. कसौली के सब से ऊंचे इस पौइंट पर पर्यटकों की खासी भीड़ रहती है. मंकी पौइंट का संपूर्ण क्षेत्र भारतीय वायुसेना के नियंत्रण में है. इस स्थान की सैर के लिए पर्यटकों को अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है.

इस परिसर में कैमरा ले जाने की अनुमति भी नहीं है. इस स्थान तक कार द्वारा या पैदल पहुंचा जा सकता है. मंकी पौइंट से प्रकृति की दूरदूर की अनुपम छटा दिखती है. पर्यटक सुबहशाम मंकी पौइंट तथा दूसरी ओर गिलबर्ट पहाड़ी पर टहलने निकलते हैं. इन दोनों जगहों पर पिकनिक मनाने वालों की हमेशा भीड़ लगी रहती है. 

मंकी पौइंट की ओर जाने वाला मुख्य रास्ता एयरफोर्स गार्ड स्टेशन से हो कर लोअर मौल तक जाता है, जिस के लिए व्यक्ति को पहले पंजीकरण कराना आवश्यक है. यहां सायं 5 बजे प्रवेश बंद हो जाता है.

कसौली में अंगरेजों द्वारा 1880 में स्थापित कसौली क्लब भी अपनेआप में एक देखने की जगह है. देश के नामचीन क्लबों में शामिल इस क्लब की सदस्यता के लिए 20 सालों की वेटिंग चलती है.

रचनात्मकता और स्वास्थ्य लाभ का ठिकाना

मनमोहक और स्वास्थयवर्धक वादियां कसौली को रचनात्मक लोगों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल बनाती हैं. इस जगह ने खुशवंत सिंह, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा और गुलशन नंदा जैसे नामचीन साहित्यकारों को भी साहित्य सृजन के लिए आकर्षित किया और इस जगह ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि खुशवंत सिंह के अलावा अनेक नामचीन हस्तियां यहां अपना आशियाना बनाने के लिए मजबूर हो गई. रचनात्मकता के अतिरिक्त लोग यहां स्वास्थ्य लाभ के लिए भी आते हैं. कसौली की अच्छी आबोहवा के कारण यहां पर क्षय रोगियों के लिए एक सैनेटोरियम  भी बनाया गया है. शायद यही वजह थी कि अंगरेजों ने इसे हिलस्टेशन के रूप में व्यवस्थित रूप से विकसित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

वजन घटाए हनी-ऑरेंज चिकन

चिकन, खाने में जितना स्‍वादिष्‍ट लगता है उतना ही वो हेल्‍दी और पौष्टिक भी होता है. चिकन प्रोटीन का सबसे बड़ा स्‍त्रोत होता है. चिकन खाने से मसल्‍स बनते हैं, स्‍ट्रेस कम होता है और सेहत के लिए सबसे अच्‍छा माना जाता है. ग्रिल्‍ड और बेक किया गया चिकन वजन घटाने के लिए जरुरी डायट में गिना जाता है. आज हम यहां आपको शहद और संतरे के जूस फ्लेवर में चिकन बनाने की विधि बता रहे हैं जो वजन घटाने में मददगार है.

सामग्री

2 बॉनलेस चिकन

15 एमएल तेल

कटे हुए हरे प्‍याज – 40 ग्राम

छिले हुए लहुसन के टुकड़े शहद – 45 ग्राम

60 मिलीलीटर फ्रेश ऑरेंज जूस

एक ऑरेंज

30 एमएल डार्क सोया सौस

कटी हुई सब्जियां

विधि

तेल को सॉस पैन में गर्म करें, और उसमें प्‍याज और लहसुन को फ्राय करें जब तक यह थोड़े नरम न हो जाएं. अब इसमें शहद मिलाएं और डार्क सोया सॉर्स, ऑरैंज सेगमेंट भी मिला दें. तब तक इसे अच्‍छे से मिलाते रहे जब तक शहद दिखना बंद न हो जाएं.

चिकन को अच्‍छे से बेक करें, जब चिकन बेक हो जाएं तब उसमें सारा मिश्रण डाल दें. अब इसे ऑवन में 190 डिग्री सेल्सियस पर 45 मिनट के लिए पकने के लिए छोड़ दें. इस बीच ऑरेंस जूस को चिकन में डाल दें. अब इसे गार्निश कर हरे धानिय और सब्‍जी के साथ गरमा गरम सर्व करें.

त्वचा की खूबसूरती बढ़ाए बैम्बू फेशियल

बांस को संसार के बेहतरीन व बहुमुखी वृक्ष का दर्जा दिया गया है. सुख, समृद्धि व शांति का द्योतक माने जाने वाले बांस का उपयोग अब सौंदर्य के क्षेत्र में भी किया जाने लगा है. बैंबू फेशियल थेरैपी के जरिए अब त्वचा को खूबसूरती दी जा रही है. साथ ही बैंबू मसाज से तनाव से भी छुटकारा दिलवाया जा रहा है. बांस में पाए जाने वाले तत्वों से न केवल त्वचा के विकार दूर होते हैं बल्कि इससे मानसिक सुकून भी मिलता है.

क्या है बैम्बू थेरैपी

त्वचा पर हल्के गर्म बांस से मालिश की जाती है. इससे त्वचा के टिशू सक्रीय होते हैं. इसके अलावा कोमल बांस को पीसकर इसकी मसाज से त्वचा के साथ-साथ दिल-दिमाग तरोताजा हो जाता है. इससे जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है उससे मानसिक सुकून आता है व त्वचा को आंतरिक खूबसूरती भी मिलती है.

कैसे होता है बैंबू फेशियल थेरैपी

विभिन्न साइज व लंबाई की बांस की लकड़ी को ऑर्गेनिक ट्रीटमेंट की प्रक्रिया से गुजारने के बाद इसे हल्का गर्म किया जाता है. इसे आवश्यकता के अनुसार चेहरे के अलग-अलग हिस्सों पर मसाज किया जाता है.

इसमें हाथों की उंगलियों की जगह बैंबू स्टिक से मसाज दी जाती है. बांस के कोमल हिस्सों से बनी क्रीम व स्क्रब द्वारा चेहरे पर मसाज की जाती है. प्रिया के मुताबिक मसाज का यह तरीका प्राचीन समय से अपनाया जा रहा है और अब सौंदर्य के क्षेत्र में नई तकनीक के साथ जुड़ कर क्रांति ला रहा है.

त्वचा चमकाए बैम्बू फेशियल

बैंबू फेशियल थेरैपी त्वचा पर चमक व गोरापन लाती है. बैंबू में पाए जाने वाले तत्वों के बाहरी प्रभावों से अधिक आंतरिक प्रभाव पड़ते हैं. इससे त्वचा में अलग ही कांति आती है. प्राचीन उपचार अब नया रूप लेकर आ रहे हैं व इनके आश्चर्यजनक परिणाम मिल रहे हैं. बांस में पाया जाने वाला सिलिका त्वचा को खूबसूरती को जरूरी तत्व कैल्शियम, मैगनीशियन व पोटेशियम को सोखने की क्षमता देता है. इसमें पाए जाने वाले एंटीआक्सीडेंट्स त्वचा को स्वस्थ व रिंकल फ्री रखते हैं व त्वचा की झाइयों आदि को दूर करते हैं.

कपिल शर्मा पर लगा चोरी का आरोप !

ऐसा लगता है सुनील ग्रोवर से झगड़े के बाद कपिल शर्मा के बुरे दिन शुरू हो गए हैं. हाल ही में स्टैंड-अप कॉमेडियन अबिजीत गांगुली ने कपिल पर चोरी का आरोप लगाया है.

अबिजीत ने अपने फेसबुक अकाउंट पर ए‍क नोट लिखते हुए कपिल के शो का एक वीडियो भी शेयर किया है. अबिजीत का कहना है कि यह एक्ट उनका है जिसे कपिल ने अपने शो पर इस्तेमाल किया है. इसी के साथ अबिजीत ने अपने वीडियो का लिंक भी अपनी पोस्ट में शेयर किया है.

उनका कहना है कि जब महिला क्रिकेट टीम मंच पर थी उस समय शो में कपिल के साथी कॉमेडियन कीकू शारदा ने एक चुटकुला सुनाया जिसमें उन्होंने कहा था कि जितने भी तेज बॉलर्स होते है, उनका एक बड़ा भाई होता है, और वो इसलिए फास्ट होते हैं क्योंकि बड़े भाई से बैटिंग लेने के लिए उसे आउट करना मुश्किल होता है.   

अबिजित  गांगुली ने बताया कि यह बात मुझे मेरे एक दोस्त से पता चली तो मैं चौंक गया. यह चुटकुला मैंने अपने एक शो में बोला था. जिसको 9 अप्रैल को यूट्यूब पर डाला था. इस घटना से बेहद परेशान हूं.

उन्होंने कहा कि हम छोटे कॉमेडियन हैं और रात दिन मेहनत करके चुटकले बनाते है और ऐसे ही कोई जोक लेकर टीवी पर सुना दे. तो इससे मेरे करियर पर गलत असर होगा. मैंने ने इस बारे में कपिल की टीम और सोनी को भी लिखा है लेकिन उनकी ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

पिछले हफ्ते ही कपिल के शो ने 100 एपिसोड पूरे किए हैं. हाल ही में जारी हुए प्रोमो में कपिल शर्मा ने कहा, ‘मैं उन सभी हस्तियों का आभारी हूं जो अलग-अलग बैकग्राउंड से हमारे शो में आए हैं. मैं अपनी टीम और उन लोगों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा जो अब मेरे साथ नहीं हैं.’

द कपिल शर्मा शो के 100 एपिसोड पूरे होने पर डॉ. मशहूर गुलाटी यानी सुनील ग्रोवर ने कपिल शर्मा को बधाई दी वहीं शो के दूसरे मेंबर्स ने भी उनके काम की सराहना की जो कभी कपिल शर्मा के शो का हिस्सा थे.

बता दें कि कपिल शर्मा का सुनील ग्रोवर के साथ हुए विवाद के बाद से शो की कास्ट कई लोगों ने कपि‍ल को अलविदा कह दिया है. इसके बाद कपिल के शो में दूसरे कॉमेडियन्स ने एंट्री की है लेकिन वो उतना कमाल नहीं दिखा पा रहे हैं.

इस एक्टर के लिए रवीना ने की थी सुसाइड की कोशिश

फिल्म ‘मातृ’ से बॉलीवुड में वापसी करनें वाली रवीना टंडन ने एक बार फिर अपने अभिनय की मिसाल दी है. फिल्म में मां के किरदार में नजर आने वाली रवीना टंडन असल जिंदगी में कई तरह के विवादो से गुजरी है. उन्हीं में से एक विवाद ऐसा भी था जिसने रवीना की जिंदगी को बदल कर रख दिया. बहुत कम लोग जानते है कि उस दौर में रवीना का नाम अजय देवगन के साथ जुड़ा था. इन दोनो के रिश्ते की चर्चाएं उन दिनों जोरो पर थी.

आपको बता दें कि इन दोनों की लवस्टोरी की शुरुआत फिल्म 1994 में आई फिल्म दिलवाले से हुई थी. लेकिन इन दोनों का प्यार ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया. कुछ समय बाद ही अजय का झुकाव करिश्मा कपूर की तरफ हो गया. इनके बीच बनी नजदीकियों की ही वजह थी कि अजय और रवीना दोनों के रिश्ते के बीच दूरियां आ गई.

यही नहीं इस विवाद के दौरान ये खबर भी सामने आई थी कि अजय का दूर जाना रवीना को गवारा नहीं हुआ और उनके गम में उन्होंने सुसाइड तक करनें की कोशिश की थी. एक इंटरव्यू के दौरान अजय ने कहा था कि रवीना को एक मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए. यहीं नही अजय ने उनके सुसाइड की खबरो को भी झूठा करार दिया था.

कब शुरू हुआ था अजय-रवीना का अफेयर

अजय और रवीना का अफेयर 1994 की सुपरहिट फिल्म ‘दिलवाले’ की शूटिंग के दौरान शुरू हुआ था. फिल्मफेयर मैगजीन के जुलाई 1994 के इश्यू में अजय ने रवीना पर जमकर भड़ास निकाली. उन्होंने इस इंटरव्यू के दौरान यह तक कह डाला की रवीना को एक मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए.

वह जन्म से झूठी है

इंटरव्यू में जब अजय से पूछा गया कि वे दोनों एक-दूसरे को माफ कर सबकुछ भूल क्यों नहीं जाते? जवाब में अजय ने कहा था, “भूल जाऊं. आप मजाक कर रहे हैं. सभी जानते हैं कि वह जन्म से झूठी है. इसलिए उसके छोटे-छोटे बयान मुझे ज्यादा अपसेट नहीं करते. लेकिन इस बार उसने लिमिट क्रॉस कर दी है. मेरी सलाह है कि उसे अपने आपको मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए और दिमाग की जांच करानी चाहिए. नहीं तो उन्हें मेंटल असायलम जाना पड़ेगा. मैं उनके साथ मनोचिकित्सक के पास जाने को तैयार हूं.”

इस दौरान जब अजय से पूछा गया कि वे रवीना की मदद क्यों करना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि वे उनकी दोस्त नहीं है, लेकिन इंसानियत के नाते वे उनके साथ जाने को तैयार हैं. उन्होंने रवीना पर तंज कसते हुए यह भी कहा था कि अगर वे रोड पर किसी आदमी को मरते देखें तो उसे अस्पताल तक जरूर लेकर जाएंगे.

नींद में बड़बड़ाने की है आदत!

कई लोगों को नींद में बड़बड़ाने की आदत होती है जिससे वो काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में उन लोगों को डॉक्टर के पास जाने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नजर नहीं आता लेकिन आप कुछ घरेलू नुस्खों से भी इस समस्या से निजात पा सकती हैं. तो देर किस बात की आइए जानते हैं कि आप घर पर कैसे इससे छुटकारा पा सकती हैं.

पूरी नींद

थकान की वजह से लोग रात को बड़-बड़ाने लगते हैं. इससे बचने के लिए पर्याप्त आराम बेहद जरूरी है. इसके लिए पूरी नींद लें और हो सके तो दिन में भी सोने की आदत डालें. लेकिन दिन के समय आधे घंटे से ज्यादा ना सोएं.

मेडिटेशन करें

नींद में बड़बड़ाने की आदत से निजात पाने के लिए आपको तनाव मुक्त रहना जरूरी है. इसलिए ऑफिस के तनाव को ऑफिस में ही छोड़कर आएं और मेडिटेशन जरूर करें. आप चाहें तो हल्का संगीत सुन सकते हैं या कोई ऐसा काम कर सकते हैं जिसे करके आपको खुशी महसूस होती हो.

शराब की लत छुराएं

अगर आप शराब के आदी हैं तो इस आदत को छोड़ना होगा. ज्यादातर लोग रात के समय में ही शराब पीते हैं और सोते समय बड़बड़ाने लगते हैं. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए आपको शराब छोड़नी होगी. अगर एकदम से नहीं छोड़ पा रहे हैं तो धीरे-धीरे इसे पीना कम कर दें.

चाय-कॉफी से परहेज

नींद में बोलने की समस्या से बचने के लिए रात को कैफीन वाली चीजों जैसे चाय-कॉफी के सेवन से दूर रहें. इन्हें पीने से नींद प्रभावित होती है और आप थकाहारा महसूस करते हैं.

अगर बहुत अधिक इस समस्या से परेशान हैं और ये सारे उपाय आजमाने के बाद भी फर्क नहीं पड़ रहा तो एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें