झूठी खबरें पाखंड का हिस्सा

आजकल दुनिया भर में खबरों पर एक घमासान सा शुरू हो गया है. महल्ले और पड़ोस की सी झूठी बातें अब गूगल, फेसबुक, व्हाट्सऐप, सोशल टैक्सटिंग के जरीए घंटे भर में पूरी दुनिया में फैल सकती हैं और महल्ले की अफवाह की तरह पता ही नहीं चलता कि भ्रामक या दहलाने वाले समाचार को सही माना या नहीं, क्योंकि यह कौन से पेड़ पर उगा पता ही नहीं होता.

सदियों से इस प्रकार का झूठ लोगों ने धर्मग्रंथों से गले से उतारा है और इस के सहारे अपनों को भी मारा और दूसरों को भी. बीच की सदियों में मुद्रित सुलभ सामग्री ने महल्ले की चटपटी बातों को फीका कर दिया था पर अब तो इन का अंधड़ आ गया है जो घंटे, 2 घंटे नहीं चलता, रातदिन चलता रहता है.

जिस तरह धर्मग्रंथों के झूठों ने लोगों की सदियों से जेबें ढीली कराई हैं उसी तरह आज झूठे समाचार, फेक न्यूज, से लोगों को बुरी तरह बरगलाया जा रहा है. चुनावों से पहले तो पार्टियां अब छद्म नामों से प्रचारकों की फौज को मैदान ए जंग में भेज देती हैं कि विरोधी के खिलाफ जी भर कर बोलो. चुन्नी चाची की ‘मैं ने तो सुना है भई तो कह दिया, क्या सच है क्या झूठ पता नहीं,’ की तर्ज पर अब कुछ भी कहीं भी कहा जा सकता है.

महिलाएं फेक न्यूज की ज्यादा शिकार हैं. हालांकि राजनीतिबाज ज्यादा रोते नजर आते हैं. महिलाओं को व्हाट्सऐप पर कोई फौर्मूला पढ़ने को दिया नहीं कि वे उसे अपनाने को दौड़ती हैं और दूसरों पर थोपने लगती हैं. खटाक से वह अपने सारे गु्रपों को फौरवर्ड कर दिया जाता है, अपनी मुहर के साथ मानो उन्होंने पुष्टि कर ली.

पढ़ीलिखी महिलाओं से भी इस तरह के फेक न्यूज पर बहस करो तो वे कन्नी काट जाती हैं कि उन्होंने तो बस फौरवर्ड किया था. इन दिनों भ्रामक जानकारी बुरी तरह फैलाई जा रही है. 100-200 मित्रों को ऊटपटांग संदेश भेजे जा रहे हैं, उपदेश दिए जा रहे हैं. धर्मांध इन में ज्यादा होते हैं. अत: कभी व्हाट्सऐप, फेसबुक पर शिवजी को प्रणाम किया जाता है, तो कभी साई बाबा के चमत्कार पर चरण छू लिए जाते हैं.

धर्म के पाखंड का हिस्सा बन गए व्हाट्सऐप और फेसबुक सब से ज्यादा अज्ञान और अतर्क के भंडार बन गए हैं. अमेरिका व यूरोप फेक न्यूज के पीछे पड़े हैं पर वहां भी उन्हें नेताओं की छवि के खराब होने की ज्यादा चिंता है, पीपिंग टौम्स को कंट्रोल करने की कम. व्हाट्सऐप और फेसबुक अब टैक्स्ट के साथ शौर्ट मूवीज भी दिखाने लगे हैं और भ्रामक घटनाओं को काटछांट कर परोसा जा रहा है और भुक्खड़ पंडों की तरह सत्य की लाश पर मृत्यु भोजों में उन्हें खूब खाया जा रहा है.

यह गलत प्रचार का ही नतीजा है कि दुनिया के कितने ही देशों में कट्टरपंथियों की सरकारें बन गई हैं और 100 साल के लोकतंत्र के बाद तानाशाहीतंत्र लौटने लगा है.

महिलाओं को तानाशाही में ज्यादा जुल्म सहने पड़ते हैं और इस की तसवीरें सीरिया, लीबिया, इराक के भागे रिफ्यूजी कैंपों में दिख जाएंगी. यह आप के पड़ोस में नहीं होगा इस की गारंटी नहीं है.

26 साल बाद इस फिल्म में साथ नजर आएंगे अमिताभ-ऋषि

अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की जोड़ी 26 साल बाद एक बार फिर बड़े पर्दे पर दिखाई देगी. फिल्म गुजराती राइटर-डायरेक्टर सौम्या जोशी के नाटक ‘102 नॉट आउट’ पर बन रही है. फिल्म में अमिताभ 102 साल के व्यक्ति के किरदार में हैं और ऋषि उनके 75 साल के बेटे बने हैं.

फिल्म की शूटिंग मुंबई में शुरू हो गई है. फिल्म को उमेश शुक्ला डायरेक्ट कर रहे हैं. उमेश ने बताया, ‘अमित जी और ऋषि जी 26 साल बाद साथ आ रहे हैं. दोनों पहली बार गुजराती किरदार में नजर आएंगे. मैं खुद गुजराती हूं इसलिए दोनों के लुक को लेकर मेरे दिमाग में कुछ चीजें थीं.’

उन्होंने बताया कि वे इस महीने के अंत तक फिल्म की शूटिंग मुंबई में होगी और फिर ब्रेक के बाद एक बार फिल्म की शूटिंग जुलाई में शुरू की जाएगी. उम्मीद की जा रही है कि फिल्म की शूटिंग जुलाई के अंत में पूरी कर ली जाएगी. यह फिल्म एक बाप-बेटी के बीच की लव स्टोरी है.

निर्देशक ने कहा, ‘मैं ऑरिजनल प्ले को प्रड्यूस किया है और इसकी यूनीक कहानी और ह्यूमर की वजह से मुझे लगता था कि इसपर फिल्म बन सकती है. सौम्या ने काफी शानदार ढंग से इस फिल्म की कहानी लिखी है.’ उन्होंने बताया कि ऐक्टर्स ने जान-बूझकर ऑरिजनल प्ले नहीं देखा है.

ये दोनों फिल्म में कुछ गुजराती लाइनें भी बोलते दिखेंगे. उमेश ने बताया, ‘वे लैंग्वेज के मामले में पहले से ही काफी अच्छे हैं और उन्हें गाइड करने के लिए सेट पर उन्हें लैंग्वेज सिखाने वाले टीचर भी होंगे. हम सब काफी मस्ती करने वाले हैं.’

उन्होंने यह भी कहा कि वह उनकी फिल्मों को देख-देख कर ही बड़े हुए हैं. उन्होंने बताया, ‘दोनों काम को लेकर समर्पित ऐक्टर हैं और काम करने का उनका अपना एक अलग अंदाज़ है. हमने पिछले महीने 3-4 दिनों के लिए एक वर्कशॉप रखा था और उसमें हमने काफी मजा किया.’

आपको बता दें कि साल 2015 में उमेश ने एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘ऑल इज वेल’ का निर्देशन किया, जिसमें ऋषि कपूर, सुप्रिया पाठक, अभिषेक बच्चन और असिन लीड किरदार में थे.

‘द कपिल शर्मा शो’ में होने वाली है इस कानपुरिया की एंट्री

कलर्स चैनल के मशहूर शो ‘द कपिल शर्मा शो’ के तीन अहम सदस्यों के कॉमेडी शो छोड़कर चले जाने के बाद से लगातार गिरती टीआरपी से शो के निर्माता काफी परेशान हैं.

कपिल-सुनील विवाद के बाद सबसे पहले शो में डॉ. मशहूर गुलाटी का किरदार निभाने वाले सुनील ग्रोवर और फिर बाद में चंदू चायवाले का किरदार निभाने वाले प्रभाकर और नानी के रुप में दिखाई देने वाले अली असगर शो छोड़कर जा चुके हैं.

उसके बाद से कॉमेडियन डॉ. संकेत भोसले और राजू श्रीवास्तव समेत कई नए कलाकारों को द कपिल शर्मा शो के परिवार में शामिल किया गया है ताकि खाली हुई जगह को भरा जा सके.

अब खबर है कि ‘कुमकुम भाग्य’ में प्रज्ञा की मां सरला का किरदार निभाने वाली सुप्रिया शुक्ला जल्द कपिल के शो में नजर आएंगी. इसके पहले सुप्रिया ‘साहब बीवी और बॉस’ में भी फनी किरदार में नजर आ चुकी हैं. सुप्रिया एक बेहतरीन अदाकारा हैं और दर्शक उन्हें द कपिल शर्मा शो में भी जरूर पसंद करेंगे.

एक अखबार से बातचीत में सुप्रिया ने कहा, ‘मैं इस शो के लिए थोड़ी नर्वस थी. हालांकि कपिल की टीम बहुत सपोर्टिव है. मैं अपनी भाषा में कानपुर का फ्लेवर लाऊंगी. मैंने शो के राइटर्स के साथ अपनी भाषा पर काफी मेहनत की है.’

रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रिया शुक्ला शो में उत्तर प्रदेश के कानपुर की उस महिला का किरदार निभाते हुए नजर आएंगी जो मुंबई में शिफ्ट हो जाती है.

‘द कपिल शर्मा शो’ कभी टीआरपी चार्ट में सबसे ऊपर हुआ करता था लेकिन कपिल-सुनील विवाद के बाद से शो की टीआरपी लगातार गिरती जा रही है. कपिल और उनकी टीम शो का पुराना मुकाम वापस लाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. पिछले दो हफ्तों से उनकी टीआरपी रैंकिंग में कुछ सुधार भी देखा जा सकता है.

बता दें कि दो महीने पहले ऑस्ट्रेलिया से लाइव शो करने के बाद प्लेन में कॉमेडियन सुनील ग्रोवर और कपिल शर्मा के बीच झगड़ा हो गया था. इस झगड़े के बाद से ही सुनील ग्रोवर ने द कपिल शर्मा शो छोड़ दिया. इस समय सुनील ग्रोवर लाइव इवेंट्स के जरिए लोगों को एंटरटेन कर रहे हैं.

बिग बी को रिप्लेस करेंगी ऐश्वर्या!

‘देवियों और सज्जनों’ सुनते ही सबसे पहले एक नाम जहन में आता है वो है सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का. साल 2000 में शुरू हुए शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को अमिताभ होस्ट करते हैं. लेकिन इस बार इस शो को नया होस्ट मिलने वाला है.

लेटेस्ट खबरों की मानें तो अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या राय बच्चन या माधुरी दीक्षित इस बार ‘केबीसी’ की होस्ट बन सकती हैं.

‘केबीसी’ का अंतिम सीजन 2014 में आया था और अब शो के मेकर्स फिर से नया सीजन लाना चाहते हैं, जो प्राइम टाइम पर प्रसारित होगा. इस बार मेकर्स फीमेल होस्ट चाहते हैं और इसीलिए ऐश्वर्या और माधुरी के नाम पर विचार किया जा रहा है.

लेकिन किसी के साथ कोई करार हुआ है या नहीं इस पर सोनी, केबीसी और बच्चन परिवार, किसी की भी तरफ से कोई सूचना नहीं दी गई है.

वैसे आपको बता दें कि ऐसा नहीं है कि केबीसी के सभी सीजन अमिताभ बच्चन ने ही होस्ट किए हैं. साल 2007 के सीजन 3 को शाहरुख खान ने होस्ट किया था, पर शाहरुख को लोगों ने कुछ खास पसंद नहीं किया.

केबीसी के निर्माता मशहूर क्विज कंडक्टर और टीवी प्रोड्यूसर सिद्धार्थ बासु हैं जो अमेरिकी क्विज शो ‘हू वॉन्टस टू बी ए मिलयेनेयर’ का भारतीय संस्करण लेकर आए.

माधुरी ने पहले ‘कहीं ना कहीं कोई है’ शो होस्ट भी किया है. उन्होंने ‘झलक दिखला जा’ के चार सीजन और ‘सो यू थिंक यू कैन डांस इंडिया शो’ को जज भी किया है. लेकिन ऐश्वर्या के पास टीवी का कोई एक्सपीरियंस नहीं है. अगर ऐश्वर्या को केबीसी होस्ट करने तका मौका मिलता है तो ये टीवी पर उनका डेब्यू होगा.

खाने की हैं शौकीन तो करें इन शहरों की सैर

भारत विविधताओं का देश है और हर राज्य का अपना अलग जायका है. ऐसे में अगर आप भी खाने की शौकीन हैं तो आप इन शहरों की यात्रा कर सकती हैं. हम आपको बता रहे हैं उन शहरों के बारे में जिनकी फेमस डिश आपके मुंह में पानी ले आएगी.

दिल्ली

दिलवालों की दिल्ली भी खाने-पीने के मामले में दुनियाभर में मशहूर है. पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक का इलाका तो खाने के शौकीनों का हब कहा जा सकता है. पराठे वाली गली के पराठे, दिल्ली के छोले भटूरे, छोले कुल्चे, राजमा चावल भी काफी फेमस हैं.

लखनऊ

नवाबों का शहर लखनऊ अपने अवधी खाने के लिए मशहूर है. यहां आपको लाजवाब बिरयानी, कबाब, गोलगप्पा और बेहद टेस्टी पराठा खाने को मिल जाएगा. मीठे के शौकीन हैं तो इस शहर में सर्दियों के मौसम में ओस से एक खास मिठाई तैयार की जाती है जिसे मल्लईओ या मक्खन मलाई कहते हैं. लखनऊ जाएं तो इसका लुत्फ उठाना न भूलें.

कोलकाता

यह शहर फुचका यानी गोलगप्पा और चिकन रोल्स के लिए फेमस है. कोलकाता जैसे रोल्स आपको भारत के दूसरे किसी शहर में नहीं मिलेंगे. इसके अलावा कोलकाता अपनी मिठाई रसगुल्ला और संदेश के लिए भी देश ही नहीं दुनियाभर में मशहूर है.

मुंबई

खाने की बात हो रही है और मुंबई का नंबर न आए यह कैसे हो सकता है. मराठा क्विजीन और पारसी क्विजीन के लिए फेमस है मुंबई. इसके साथ ही यहां बेहतरीन वड़ा पाव, नल्ली निहारी, बोटी कबाब और पानी पुरी मिलती है.

हैदराबाद

यह शहर सिर्फ चारमीनार के लिए ही फेमस नहीं है बल्कि यहां आपको भारत का बेहतरीन मुगलाई, टरकिश और ऐरबिक खाना मिलेगा. हैदराबाद वैसे भी अपनी बिरयानी के लिए दुनियाभर में मशहूर है. कच्चे गोश्त की बिरयानी, हैदराबादी बिरयानी, कराची बिस्किट. ये सब आपके मुंह में पानी ले आएंगे.

केवल डर से डरने की जरूरत है

क्या कभी आप ने बच्चों, किशोरों, वयस्कों और बुजुर्गों तक के गले में ताबीज, काले धागे और विभिन्न देवीदेवताओं की तसवीर वाले लौकेट पहने जाने के पीछे के मनोविज्ञान और धार्मिक पाखंडों के बारे में संजीदगी से सोचा है? साथ ही क्या कभी इस प्रकार की मानवीय फितरत को पढ़ने की कोशिश की है?

इस में कोई शक नहीं कि किसी धर्म विशेष और व्यक्तिगत आस्था को दर्शाने वाले ये प्रतीक चिह्न व्यक्ति के जीवन और उस की सोच के ढंग का आईना होते हैं, जिन में उस व्यक्ति का मन और मस्तिष्क साफसाफ परिलक्षित होता है, लेकिन इस से परे इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि सनातन से मानव जीवन को प्रभावित करते ये सभी धार्मिक पाखंड हमारे दिल में गहरे बैठे उस डर का परिणाम होते हैं जो वास्तविक जीवन में कोई वजूद नहीं रखते और जिन की प्रामाणिकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता.

धरती पर सभ्यता के आगाज से ही मानव कई प्रकार के भय से ग्रसित होता आ रहा है. ये मानवीय भय कई प्रकार के होते हैं, जैसे इंसान अंधेरे से डरता है, परीक्षा के परिणाम से उसे भय लगता है, रोग से भय, मृत्यु से भय, ऊंचाई से गिरने का भय, पराए तो पराए अपनों से भय, भूख और गरीबी से भय और न जाने किसकिस तरह के भय से इंसान ग्रसित नहीं होते हैं. कभीकभी तो इंसान को रोशनी से भी डर लगता है. सभी तरह के भय से बचने या मन को झूठी दिलासा देने के लिए धार्मिक पाखंड या अंधविश्वास एक छद्म रक्षाकवच का कार्य करता है और व्यक्ति खुद को आने वाले संकटों से महफूज महसूस करता है.

महान विचारक कार्ल मार्क्स ने कहा था कि धर्म जनता की अफीम होती है. सच पूछें तो यदि धर्म अफीम है तो धर्म से जुड़े विभिन्न पाखंड और दकियानूसी मान्यताएं एक नशे के रूप में काम करती हैं, जिस की रौ में इंसान जीवन की हर घटना को तर्क और विवेक की कसौटी पर नहीं तोल पाता और इस भंवर में अनियंत्रित रूप से फंसता जाता है.

अहम प्रश्न यह है कि आखिर धार्मिक पाखंडों और व्यक्तिगत आस्था के कवच के रूप में टोटकों और अंधविश्वासों के मकड़जाल से मुक्ति का रास्ता क्या है?

एक बात तो स्पष्ट है कि हमारी मानसिकता में गहराई तक जड़ें जमाए हुए इन अटूट अंधविश्वासों को एक झटके में नहीं तोड़ा जा सकता, लेकिन इन पर अनवरत प्रहार कर के इन की पकड़ को कमजोर करने में मदद मिल सकती है.

यह सत्य है कि पाखंडों और अन्य अंधविश्वासों की शुरुआत मन में बसे भय और अनिष्ट की आशंका के कारण होती है. लिहाजा, यह स्वाभाविक है कि हमें अपने दिल में बसे भय पर नियंत्रण की जरूरत है.

मन को करें नियंत्रित

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि भय ही वह ताकत है, जिस से हमें डर लगता है. डर की शुरुआत मन से होती है और सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति के मन में उथलपुथल कम होती है और भटकाव भी कम होता है.

संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति अस्थिर चित्त और कमजोर मनोदशा वाला होता है. वह अनहोनी की आशंका से हकलान हो जाता है और खुद को सुरक्षित महसूस करने के लिए घबराहट में किसी भी प्रकार के पाखंड और जादूटोने का शिकार हो जाता है.

पाखंड का यह रास्ता जीवन की क्षणिक पलायन की स्थिति है जिस से हमें बच कर रहने की जरूरत है.

मन की कमजोरी एक घातक स्थिति है और इस पर नियंत्रण रखना जरूरी है. इस के लिए हमें अपनी सोच में बदलाव लाने की जरूरत है, तभी हम अच्छा सोच कर आगे बढ़ पाएंगे.

नदी पर बने पुल के नीचे बहते पानी को क्या आप ने कभी गौर से देखा है? इस में निडर जीवन और मजबूत मन के अमूल्य दर्शन छिपे होते हैं. यह बहता पानी कभी भी लौट कर वापस अपनी जगह पर नहीं आता. यह हर समय नया होता है और हर समय अबाध गति से बहता रहता है, जिस से सीख लेने की जरूरत है.

इसी प्रकार जीवन में जो गुजर चुका है उस पर चिंता करने की जरूरत नहीं है. हमें पुल के नीचे बहने वाले पानी की तरह हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए. पुरानी घटनाओं के कटु अनुभवों से मन काफी मजबूत हो जाता है, फालतू बातों से मन विचलित नहीं होता.

प्रत्येक समस्या का समाधान है

यह माना जाता है कि जीवन में समस्याएं 2 तरह की होती हैं. एक प्रकार ऐसा होता है जिस का कोई समाधान नहीं होता. इसलिए ऐसी समस्याओं के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं होती.

दूसरी समस्याएं प्रकृति की होती हैं जिन का कोई न कोई समाधान जरूर होता है. लिहाजा, ऐसी समस्याओं के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है. इन समस्याओं से घिरने की दशा में इंसान को चिंतित और भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है.

जीवन को इस प्रकार जीने के सलीके को यदि अपना लिया जाए तो मानव किसी भी प्रकार के भय से ग्रस्त नहीं होता और न ही वह किसी भय के निवारण और समस्या के समाधान के लिए किसी पाखंड और टोटके के झूठे सहारे की तलाश करता है.

सब के अंदर छिपा है एक मोगली

भय के बारे में एक छोटी और रोचक कहानी है. एक गांव के लोग जंगल से भटक कर आए एक शेर के आतंक से काफी परेशान थे. बड़ेबड़े सूरमा भी उस शेर के पास जाने से डरते थे.

गांव का एक छोटा सा बालक संयोग से एक दिन उस शेर के पास जा कर बड़े इतमीनान से बैठा हुआ था. ग्रामीणों ने जब इस हैरतअंगेज घटना को देखा तो वे दहशत में आ गए. आननफानन में ग्रामीणों को उस बच्चे को शेर के पास से दूर हटाने में सफलता मिल गई.

जब वह बच्चा उस शेर के पास से लौट कर आया तो ग्रामीणों ने उसे बहुत डांटा, ‘‘बेवकूफ हो तुम… अकल घास चरने गई है तुम्हारी? शेर से डर नहीं लगता है तुम्हें? वह तुम्हें कच्चा खा जाता…’’

‘‘यह डर क्या होता है? मेरी मां ने तो इस बारे में आज तक मुझे कुछ नहीं बताया. फिर मैं यह कैसे जान पाऊंगा कि डर क्या होता है?’’ बच्चे ने बिना भय जवाब दिया.

सच में डर मन की अवस्था होता है. यह हमारी पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक संस्कारों से भी प्रभावित होता है. यदि हम अपने बच्चों को डराना बंद कर दें, उन्हें संकटों से लड़ना और जूझना सिखाएं, विकट परिस्थितियों में भी अपना धैर्य टूटने न देने की कला में प्रशिक्षित करें और मोगली जैसा साहसी और निडर बनाएं, तो कोई शक नहीं कि आने वाले दशकों में लगभग 8 बिलियन की आबादी की यह धरती कई प्रकार के धार्मिक पाखंडों और अंधविश्वासों के अंधेरे से स्वत: मुक्त हो जाएगी.

श्रीप्रकाश शर्मा 

टोटकों से नहीं मेहनत से बढ़ें

आज के दौर में ज्यादातर लोग खुद को मौडर्न और आजाद खयालों का बताते हैं, लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो परीक्षा के लिए कठिन मेहनत करने के बाद भी अच्छे अंक पाने के लिए टोटकों और ऐसे अंधविश्वासों पर भरोसा कर आगे बढ़ते हैं. आइए जानें कि टोटके कैसे होते हैं और किस तरह उन से हमारा भला नहीं बल्कि बुरा होता है :

कुछ विशेष टोटके हैं, परीक्षा से पहले घर से कुछ मीठा खा कर जाना, पैंसिल बौक्स में तुलसी का पत्ता रखना, लकी स्टोन या फिर गुडलक कड़ा पहनना, शुभ व्यक्ति को देख कर घर से निकलना, घर से ऐग्जामिनेशन हौल में पहुंचने तक किसी से भी बात न करना, किताब में मोर पंख रखना आदि.

ये भी हैं अजीब बेतुके गुडलक चार्म

गुडलक पैन : कुछ छात्रों को लगता है कि उन का वह पुराना पैन जिस से लिखने पर पिछली क्लास में अच्छे अंक आए थे, यदि वे उसे ले कर जाएंगे तो अच्छे अंक आएंगे, क्योंकि वह उन का गुडलक पैन है, लेकिन होता कुछ और ही है. अब समय काफी बदल गया है और कई अच्छी क्वालिटी के स्मूथ और जल्दी लिखने वाले पैन आ गए हैं, लेकिन उन के बीच इस पुराने पैन से लिखने की वजह से पेपर छूट भी सकता है इसलिए ऐसी किसी बेतुकी बात पर विश्वास करने के बजाय एक अच्छा, नया और स्मूथ पैन लें ताकि परीक्षा हौल में पैन की समस्या से जूझने के बजाय आप का ध्यान अपने प्रश्नपत्र  में दिए गए प्रश्नों का जवाब लिखने में हो.

मैना देखना गुडलक : कई लोगों का मानना है कि ऐग्जाम से पहले एकसाथ 2 मैना का दिखना शुभ होता है, इस से पेपर अच्छा जाता है. इसी वजह से छात्र पेपर से पहले पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय अपना समय मैना ढूंढ़ने में बरबाद करते हैं और पेपर खराब हो जाने पर उस की वजह समय बरबाद करना नहीं बल्कि मैना का न मिलना बताते हैं. अब उन्हें कौन समझाए कि पेपर और मैना का आपस में कोई संबंध नहीं बल्कि परीक्षा और मेहनत का संबंध है.

केले की जड़ : कई अंधविश्वासी लोगों का मत है कि केले की जड़ को ऐग्जामिनेशन हौल में ले जाने से ऐग्जाम में अंक अच्छे आते हैं. केले की जड़ को पैन में घिसने से भी अच्छे अंक मिलते हैं.  जबकि सच तो यह है कि कई बार जड़ को पैन में घिसने के चक्कर में ऐग्जामिनेशन हौल में टीचर की नजर में आ जाता है और उन्हें लगता है कि दाल में कुछ काला है और टीचर द्वारा जांचपड़ताल में उस का समय बरबाद होता है, साथ ही उसे शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है.

लकी कलर के कपड़े पहनना : कुछ छात्रों का विश्वास होता है कि अगर वे रैड कलर के कपड़े पहन कर पेपर देने जाएंगे तो उन्हें अच्छे मार्क्स मिलेंगे, इस वजह से वे भरी गरमी में भी लाल रंग के कपड़े पहन कर जाते हैं, जबकि इस से अच्छे अंकों का कोई लेनादेना है, यह सोचना बेवकूफी है.

गुडलक रूमाल :  हर पेपर में एक ही रंग का रूमाल रखना लकी माना जाता है और यदि किसी कारणवश रूमाल खो जाए तो पेपर खराब होने का सारा दोष रूमाल खोने को दिया जाता है, जबकि उस बात का इस से कुछ लेनादेना नहीं है.

दही खाना : ऐग्जाम देने निकलने से पहले दही खाना शुभ माना जाता है, लेकिन कई बार यदि छात्र का गला खराब हो उसे सर्दी आदि लगी हो और वह दही खा ले तो उस की यह तकलीफ और बढ़ जाती है, जिस से पेपर पर असर पड़ता है.

सफलता मेहनत करने से मिलेगी टोटकों से नहीं

परीक्षा में अंक पढ़ाई करने से मिलेंगे : कुछ छात्रों को गलतफहमी रहती है कि परीक्षा में उतने अंक पढ़ाई कर के जवाब लिखने से नहीं मिलेंगे जितने कि टोटके करने से मिल जाएंगे. अगर ऐसे लोग फेल हो जाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन के टोटकों में कुछ कमी थी इसलिए इस बार किसी अच्छे जानकार से पूछ कर कुछ करना पड़ेगा और अगर पास हो गए तो सारा क्रैडिट पढ़ाई के बजाय टोनेटोटकों को देते हैं.

लेकिन सच तो यह है कि कितनी भी पूजा कर लो, कितना भी शुभ और अशुभ का राग अलाप लो, यदि पढ़ाई नहीं की है तो कोई ताकत नहीं है जो परीक्षा में अच्छे अंक दिलवा दे, इसलिए इन बेकार की बातों को छोड़ कर अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाएंगे तो किसी टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी वैसे ही अच्छे अंक आ जाएंगे.

सारे चैप्टर याद करोगे तो नंबर अवश्य मिलेंगे :  छात्र इस बात को नहीं समझ पाते कि अगर उन्होंने पाठ याद नहीं किया और प्रश्नपत्र में आने वाला कोई सवाल नहीं पढ़ा है तो अंक कैसे मिलेंगे? अगर सिलेबस को अच्छी तरह पढ़ा है तो परीक्षा में प्रश्नों के जवाब भी आ जाएंगे, लेकिन अगर पढ़ा ही नहीं तो उस में कोई भी कुछ नहीं कर सकता.

क्लास में पढ़ाई पर ध्यान दें : कक्षा में टीचर द्वारा जो पढ़ाया जाता है अगर उस पर ध्यान दिया जाए तो पूरा सिलेबस जल्दी समझने और कवर करने में समय नहीं लगता. क्लास में टीचर द्वारा पढ़ाने के साथसाथ यदि खुद भी पढ़ा जाए तो पिछड़ने से बच सकते हैं, क्योंकि टीचर पूरे साल का सिलेबस, ऐग्जाम के हिसाब से ही पूरा करवाता है. अगर क्लास में टीचर के साथसाथ पढ़ा जाए तो आप अपनी प्रौब्लम टीचर से पूछ कर सौल्व कर सकते हैं और ऐग्जाम टाइम में बस आप को रिवीजन ही करना पड़ेगा, क्योंकि पढ़ तो आप पहले ही चुके होंगे.

नोट्स बनाएं : हर सब्जैक्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं के नोट्स बनाएं. ऐग्जाम के समय पूरे सिलेबस को बारबार रिवाइज करना कठिन होता है, इसलिए जब भी किसी पाठ को पढ़ें तो जरूरी चीजों के नोट्स बना लें ताकि बारबार पूरे पाठ को दोहराने की आवश्यकता न पड़े. वे नोट्स आप को ऐग्जाम के समय काफी काम आते हैं. जब समय कम होता है और रिवाइज बहुत सारा करना होता है, नोट्स आप के बेहतर रिजल्ट में मददगार साबित होते हैं.

पढ़ाई कल पर न टालें : कहते हैं न कल करे सो आज कर आज करे सो अब, पल में प्रलय आएगी फिर करेगा कब. यह बात पढ़ाई पर तो बिलकुल सही लागू होती है. आप किसी भी काम को टाल लें, लेकिन पढ़ाई को नहीं टाल सकते. अगर नियमित पढ़ाई करेंगे तो किसी फालतू टोटके की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और सफलता भी मिलेगी.

कठिन विषय पर अतिरिक्त ध्यान दें : जिस सब्जैक्ट में आप को जरा भी डाउट हो उस में टीचर से मदद ली जा सकती है. ऐक्स्ट्रा क्लास लेने के बारे में भी बात की जा सकती है या फिर कोई प्राइवेट ट्यूशन ले कर प्रौब्लम सौल्व की जा सकती है. यदि आप उस विषय की पढ़ाई अच्छी तरह करेंगे तो ऐग्जाम आतेआते उस में माहिर हो जाएंगे.  

इस लड़के के लिए राजकुमारी ने छोड़ दिया अपना राजपाठ, आखिर क्या है इस लड़के में खास

प्यार वो  होता है जिसके लिए कोई कुछ भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है, फिर चाहे पैसा हो या प्रॉपर्टी, लेकिन एक आम लड़के के प्यार में एक राजकुमारी को अपना राज पाठ छोड़ते हुए आपने सिर्फ कहानियों में ही सुना होगा, लेकिन आज ये किस्सा सच हो गया है.

जापान की सुंदरी को हुआ इश्क और एक साधारण दिखने वाले लड़के के लिए उसने अपना पूरा साम्राज्य ठुकरा दिया. इस सुंदरी का नाम ‘मेको’ है. 25 साल के अपने प्रेमी ‘की कोमुरो’ से शादी के बंधन में बंधने के लिए उसने आधिकारिक आज्ञा मांगी है.

हालांकि इस बंधन में बंधने के बाद उसे अपना राज्य छोड़ना पड़ेगा, क्योंकि ऐसा करना वहां की परंपरा के खिलाफ है. अब बात है कि ऐसा क्या खास है उस लड़के में जो एक राजकुमारी को अपना राज्य छोड़ना पड़ रहा है. 25 साल का ‘की’ और राजकुमारी दोनों जापान के एक रेस्टोरेंट में मिले थे.

राजकुमारी का दिल जीतने वाला 25 साल का ‘की कोमुरो’ राजकुमारी ‘मेको’ के ही कॉलेज से ग्रेजुएट है. कुछ समय पहले जब दोनों रेस्टोरेंट में मिले, तब उन दोनों का इश्क परवान चढ़ा. अब बात राजकुमारी के त्याग पर आ रुकी है, एक तरफ प्यार है दूसरी तरफ साम्राज्य.

हालांकि राजकुमारी मेको अपने साथी को घर वालों से मिलवा चुकी हैं और घर वाले इस शादी के लिए राजी ही हैं, लेकिन उनका राजशाही परिवार ये नहीं चाहता कि इस बात की खबर किसी को लगे.

फिल्म रिव्यू : हाफ गर्ल फ्रेंड

भाजपा समर्थक मशहूर उपन्यासकार चेतन भगत के कई उपन्यासों पर कई सफल फिल्में बन चुकी हैं, पर इसके यह मायने नहीं होते कि उनके हर उपन्यास पर एक अच्छी फिल्म का निर्माण किया जा सकता है. इस बार चेतन भगत के उपन्यास ‘हाफ गर्ल फ्रेंड’ पर बनी इसी नाम की यह फिल्म इस बात को साबित करती है कि हर कहानी को आप दृश्य श्रव्य माध्यम में नहीं बदल सकते. मजेदार बात यह है कि अपने हर उपन्यास पर बनी सफल फिल्मों से निर्माताओं को कमाई करते देख इस बार इस फिल्म का सह निर्माण कर चेतन भगत अपना हाथ जला बैठे हैं. अब उनकी समझ में आ जाएगा कि हर चमकने वाली पीले रंग की वस्तु सोना नहीं होती.

फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ यह साबित करती है कि हर किताब पर एक अच्छी फिल्म नहीं बनायी जा सकती. माना कि चेतन भगत के उपन्यास पर ही ‘काई पे चे’, ‘टू स्टेट्स’ व ‘थ्री ईडियट्स’ जैसी सफल फिल्में बनी हैं. पर निर्माण के क्षेत्र में उतरते हुए चेतन भगत यह कैसे भूल गए कि अतीत में भी उनके एक उपन्यास पर बनी फिल्म ‘हेलो’ का क्या हश्र हुआ था.

फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ की शुरुआत होती है माधव झा (अर्जुन कपूर) से अनबन के बाद रिया सोमानी (श्रद्धा कपूर) का टूटे दिल के साथ पटना छोड़ने से. उसके बाद माधव अतीत में खो जाता है, जब वह पहली बार दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज में रिया सोमानी से मिला था.

बिहार के बक्सर जिले के डुमराव गांव के रहने वाले माधव झा अंग्रेजी की पढ़ाई कर अपने गांव को सुधारने के लिए पहले पटना और फिर दिल्ली के सेंट स्टीफन कालेज पढ़ने पहुंचते हैं. उन्हे बास्केटबाल खिलाड़ी होने के चलते ही कालेज में प्रवेश मिला था. दिल्ली में रिया से मुलाकात होने पर दोनों की दोस्ती खिलाड़ी होने के कारण हो जाती है. रिया भी फुटबाल खिलाड़ी है. वैसे रिया अति अमीर परिवार से है और बड़ी गाड़ी में कालेज आती है. रिया को पहली बारिश में भीगते देख माधव उसे अपना दिल दे बैठता है. यानी कि एक अमीर लड़की और गरीब लड़के के रोमांस की शुरुआत. पता चलता है कि रिया सोमानी अपने घर पर हर दिन अपने पिता द्वारा अपनी मां को पिटते हुए देखती रहती है. इसलिए उसे भोला भाला माधव अच्छा लगता है. पर वह साफ कर देती है कि वह उसकी प्रेमिका नहीं हाफ गर्ल फ्रेंड है. और गिटार बजाती है. उसका सपना न्यूयार्क के क्लब में जैज सिंगर के रूप में काम करना है. उधर माधव अंग्रेजी नही आती की हीनग्रंथि से उबरने का प्रयास कर रहा है. माधव का दोस्त शैलेष (विक्रांत मैसे) उसकी मदद करता रहता है.

रिया व माधव का रिश्ता आगे बढ़ता है, मगर माधव की बेवकूफी के चलते दोनों के रिश्तों में दरार आ जाती है. रिया कहीं दूर चली जाती है. माधव वापस अपने गांव आकर गांव के अपने पारिवारिक स्कूल को विस्तार देने के अलावा लड़कियों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने का काम शुरू करता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. एक बार फिर माधव और रिया की मुलाकात न्यूयार्क में होती है.

फिल्म ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ की कमजोर कड़ी इसकी कहानी व पटकथा है. कहानी को जब आप किसी मकसद के अंदर पिरोने की कोशिश करते हैं, तो सब कुछ बिखर जाता है. कहानीकार व पटकथा लेखक ने इस फिल्म में अंग्रेजी व हिंदी भाषा के बीच के भेदभाव, महिला सशक्तिकरण, महिलाओं के साथ हिंसा, सेक्सुल अब्यूज, लड़कियों की शिक्षा सहित कई मुद्दों को फिल्म में पिरोन का प्रयास करते करते पूरी कहानी व फिल्म को तहस नहस कर दिया.

यह फिल्म न मुद्दों पर आधारित फिल्म रही और न ही प्रेम कहानी वाली फिल्म रही. फिल्म में रोमांस है ही नहीं. फिल्म के सभी किरदार बिखरे हुए नजर आते हैं. आखिर यह किरदार कहना क्या चाहते हैं, इसे फिल्मकार ठीक से बता ही नहीं पाता. इंटरवल से पहले की फिल्म और इंटरवल के बाद की फिल्म के बीच सामंजस्य ही नहीं बैठ पाता है. फिल्म का क्लायमेक्स बहुत घटिया है. इस फिल्म की मजेदार बात है कि दर्शक को लगता है कि फिल्म खत्म हो गई, पर पता चलता है कि अभी तक खत्म ही नहीं हुई. यह स्थिति भी पटकथा लेखक व निर्देशक की कमजोरी की ओर इशारा करती है. दर्शक सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या कई सफल फिल्म दे चुके निर्देशक मोहित सूरी ही इस फिल्म के निर्देशक हैं?

फिल्म में इमोशंस का घोर अभाव है, जिसके चलते दर्शक किरदारों के साथ जुड़ ही नहीं पाता. निर्देशकीय कमजोरी के चलते जब तक दर्शक रिया व माधव की प्रेम कहानी के साथ खुद को जोड़ पाता, तभी दोनों के बीच समस्याएं आती हैं और दोनों अलग हो जाते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो इस फिल्म में अर्जुन कपूर और श्रद्धा कपूर की केमिस्ट्री नहीं जमी. दोनों का अभिनय भी औसत दर्जे का ही रहा है. विक्रांत मैसे भी ठीक ठाक रहे. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता. फिल्म के संवाद बचकाने हैं.

दो घंटे 15 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ का निर्माण शोभा कपूर, एकता कपूर, मोहित सूरी व चेतन भगत तथा निर्देशन मोहित सूरी ने किया है. फिल्म की संवाद लेखक इशिता मोएत्रा, पटकथा लेखक तुषार हिरानंदानी, संगीतकार मिठुन, तनिष्क बागची, अमि मिश्रा, राहुल मिश्रा, कैमरामैन विष्णु राव व कलाकार हैं – अर्जुन कपूर, श्रद्धा कपूर, विकारंत मैसे, सीमा विश्वास व अन्य.

आपने देखा एआईबी और इरफान का ये फनी वीडियो

एआईबी और इरफान खान की जोड़ी एक बार फिर धमाल मचा रही है. इस बार एआईबी ने इरफान के मेम्स तैयार किए हैं. ये मेम्स तैयार करने के दौरान का एक मजेदार और मसालेदार वीडियो खूब वायरल हो रहा है.

वीडियो अपलोड करने के बाद से ही तेजी से इसके व्यूज बढ़ रहे हैं. एआईबी ने इन मेम्स के साथ जो वीडियो शेयर किया है उसमें इरफान खान अपनी फिल्म हिंदी मीडियम को प्रमोट करने के लिए एआईबी टीम के पास जाते हैं और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

बस फिर क्या था, एआईबी टीम उनके इस ‘कुछ भी’ का कुछ इस तरह इस्तेमाल करती है कि यह मजेदार बन जाता है. अपनी कुछ भी करने की बात कह कर इरफान मेम्स वीडियो के चक्कर में फंस जाते हैं.

इस वीडियो में जब इरफान एआईबी टीम से मिलते हैं और फिल्म हिंदी मीडियम को प्रमोट करने के लिए एक नया वीडियो बनाने की बात करते हैं, तो एआईबी टीम उनसे पूछती है कि आखि‍र क्या करना चाहते हैं वो, इस पर इरफान कहते हैं कि वे प्रमोशन के लिए कुछ भी करेंगे. एआईबी इरफान के साथ बनाता है एक मेम्स वीडियो, जो अपने आप में डिफ्रेंट तो है ही और मजेदार भी बहुत है.

इससे पहले भी इरफान एआईबी के साथ पार्टी वी‍डियो बना चुके हैं, जो काफी वायरल हुआ था.

यहां देखें वीडियो.

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