साड़ी गाउन देगा आपको ग्लैमरस लुक

अगर आप साड़ी पहनने की शौकीन हैं, लेकिन 6 गज की साड़ी पहनने और उसे मैनेज करने में असहज महसूस करती हैं, तो ट्राई करें ग्लैमरस साड़ी गाउन. साड़ी और गाउन के कौंबिनेशन से बना साड़ी गाउन काफी स्टाइलिश नजर आता है. इसे मैनेज करना भी बहुत आसान होता है. मगर साड़ी गाउन का चुनाव करते वक्त किन बातों का रखें ध्यान, यह जानते हैं फैशन डिजाइनर प्रीति सिंघल से:

क्यों पहनें साड़ी गाउन

ऐवरग्रीन और हमेशा फैशन में इन रहने वाले साड़ी गाउन को पहनना और मैनेज करना बहुत ही आसान है. चूंकि इस में प्लीट्स के साथ ही ब्लाउज और पल्लू भी अटैच्ड होता है, इसलिए इसे दूसरी ड्रैस की तरह आसानी से मिनटों में पहना जा सकता है और सब कुछ अटैच्ड होने की वजह से प्लीट्स या पल्लू खुलने का डर भी नहीं होता है और यह आसानी से बौडी पर सैट हो जाता है.

कैसे चुनें परफैक्ट साड़ी गाउन

साड़ी गाउन खरीदते वक्त मार्केट में आप को इस के पैटर्न, स्टाइल और फैब्रिक में कई तरह की वैराइटी देखने को मिलेगी. ऐसे में अगर अपने लिए परफैक्ट साड़ी गाउन खरीदना चाहती हैं, तो निम्न बातों को जरूर ध्यान में रखें

पैटर्न : मार्केट में साड़ी गाउन की बहुत वैराइटी उपलब्ध है. धोती, पैंट स्टाइल से ले

कर फिश कट, लहंगा से ले कर स्ट्रेट कट. ऐसे में साड़ी गाउन के पैटर्न का चुनाव अपनी पर्सनैलिटी को ध्यान में रख कर करें. ऐसा पैटर्न चुनें, जो आप की बौडी शेप पर सूट करे जैसे अगर आप की हाइट कम है, तो स्ट्रेट या फिश कट साड़ी गाउन खरीदें. इस से आप लंबी नजर आएंगी और अगर आप की हाइट ज्यादा है, तो फ्लेयर्ड साड़ी गाउन खरीद सकती हैं.

ब्लाउज : साड़ी गाउन के ब्लाउज में भी काफी पैटर्न होते हैं जैसे वन शोल्डर, औफशोल्डर, स्लीवलैस, हाफस्लीव, फुलस्लीव, थ्रीफोर्थ स्लीव ब्लाउज आदि. इस के साथ ही नैकलाइन में भी डिफरैंट वैराइटी देखने को मिलती है जैसे राउंड, स्क्वेयर, ओवल, तो पैक नैकलाइन. ऐसे में पर्सनैलिटी को सूट करने वाले ब्लाउज के हिसाब से ही साड़ी गाउन का चुनाव करें.

डिजाइन : सिंपल ऐंड सोबर से ले कर सीक्वैंस, शीयर और ऐंब्रौयडरी वर्क वाले साड़ी गाउन भी बाजार में आसानी से मिलते हैं. इन का चुनाव ओकेजन के अनुसार करें जैसे शादीब्याह के खास मौके के लिए सीक्वैंस, शीयर या फिर ऐंब्रौयडरी वाले हैवी वर्क का साड़ी गाउन खरीदें, तो डे पार्टी, गैटटुगैदर के लिए सिंपल और सोबर डिजाइन वाला साड़ी गाउन खरीदें.

कलर्स : लाइट से ले कर डार्क, ब्राइट से ले कर डल कलर्स में साड़ी गाउन के कई औप्शंस मिलेंगे. लेकिन चयन ऐसे शेड का करें, जो आप की स्किनटोन से सूट करे. अगर आप गोरी हैं, तो रैड, पिंक, गोल्ड, सिल्वर जैसे शेड्स का साड़ी गाउन खरीदें. अगर आप का रंग सांवला है, तो लाइट या पेस्टल शेड्स का साड़ी गाउन ट्राई करें. कुछ गाउन ड्यूअल शेड, कंट्रास्ट कलर्स व मल्टी शेड्स में भी बनाए जाते हैं. इन्हें भी ट्राई किया जा सकता है.

फैब्रिक : नैट से ले कर सिल्क, ब्रोकेट से ले कर जौर्जेट फैब्रिक में भी साड़ी गाउन उपलब्ध हैं. अलगअलग फैब्रिक में इन का लुक भी काफी डिफरैंट नजर आता है. ऐसे में फैब्रिक का चुनाव साड़ी गाउन के लुक और मौसम को ध्यान में रख कर किया जा सकता है. वैसे फ्लो वाले फैब्रिक से बना साड़ी गाउन सब से खूबसूरत नजर आता है. इस के साथ ही ब्लाउज के लिए ट्रांसपैरेंट फैब्रिक का सलैक्शन भी साड़ी गाउन को सैक्सी लुक देता है.

स्मार्ट आइडियाज : साड़ी गाउन में कंप्लीट लुक के लिए इन स्मार्ट आइडियाज को जरूर फौलो करें…

ज्वैलरी सलैक्शन : साड़ी गाउन के साथ हैवी ज्वैलरी पहनने की भूल न करें. इयररिंग्स, ब्रेसलेट और रिंग काफी है.

हेयरस्टाइल : परफैक्ट लुक के लिए बालों का हाई या लो बन बना लें. चाहें तो स्ट्रेटनिंग करवा कर बालों को खुला भी छोड़ सकती हैं.

मेकअप लुक : गौडी लुक से बचने के लिए डार्क शेड की लिपस्टिक लगाएं या फिर स्मोकी आई मेकअप करें. दोनों को हाईलाइट न करें.

ट्रैंडी फुटवियर : स्लिम लुक के लिए साड़ी गाउन के साथ हाईहील पैंसिल फुटवियर पहनें. सिंपल गाउन के साथ सोबर और हैवी गाउन के साथ ज्वैल्ड फुटवियर.

क्यूट क्लच : अपने लुक को कंप्लीट करने के लिए साड़ी गाउन से मैच करता क्लच कैरी करना न भूलें.

भय के भूत आशंका की लंका

यहां से वहां तक आशंकाएं ही आशंकाएं छाई हुई हैं. बिस्तर पर आंख खुलते ही यह हिम्मत नहीं होती कि लाइट जला कर देख लें कि कितना बजा है. लाइट जलाने पर उस की चकाचौंध के बाद नींद टूट जाती है, उधर डर समाया रहता है कि कहीं घूमने के लिए देर न हो जाए.

सुबह देर हो जाए तो ट्रैफिक बहुत बढ़ जाता है और डर लगा रहता है कि तेज गति से भागता हुआ कोई ट्रक या ट्रैक्टर रौंदता हुआ न निकल जाए. सुबहसुबह ट्रक डर के मारे तेज भाग रहे होते हैं कि शहर में प्रवेश की समय सीमा रहते बाहर निकल जाएं.

घूमने निकलते समय शंका बनी रहती है कि पता नहीं आज गुप्ताजी आएंगे कि नहीं, उन की कल की कही बात का आज जवाब देना है.

मौसम का भी पता नहीं रहता, कभी इस कदर गरम हो जाता है कि पसीना आने लगता है. शर्ट पूरी बांह की पहनूं या आधी बांह की ही रहने दूं.

पत्नी सोती रहती है इसलिए बाहर का ताला लगा कर जाता हूं. पर आशंका बनी रहती है कि इस बीच कोई आया न हो, या उसे ही बाहर निकलने का कोई काम आ जाए, लौटने में देर नहीं होनी चाहिए.

दूध वाले का भी जवाब नहीं, रोजरोज डराता रहता है, पानी तो उस में मिला ही हुआ रहता है किंतु पड़ोसी ने बताया था कि एक बार किसी को ज्यादा दूध चाहिए था सो उस ने बाकी के दूध में उतना ही पानी मिला कर आगे देने वालों की कमी पूरी कर ली थी. तय नहीं रहता कि आज कितना पतला दूध होगा. चलो, पतला तो ठीक है पर रोजरोज की खबरें, कहीं दूध में डिटर्जेंट मिले होने की, कहीं पाउडर मिले होेने की, ऐसा लगता है दूध नहीं जहर ले रहे हों. दूध का बरतन नहीं सुकरात द्वारा लिए अंतिम घूंट का प्याला हो.

अखबार वाले का भी कोई ठिकाना नहीं, कभी इस सिरे से बांटना शुरू करता है तो कभी उस सिरे से. सीधे एक घंटे का फर्क हो जाता है.

अखबार में भी क्या रखा है, वे सारे समाचार जो फ्रंट पेज पर आते हैं वे टीवी से सुन चुके होते हैं. बस, अंदर के पेज पर कुछ लोकल समाचार देखने होते हैं. अखबार की हर खबर डरावनी होती है, ज्यादातर दुर्घटना दूसरों के साथ घटित होती है पर जान हमारी निकलती रहती है.

मरने वालों का पेज पढ़ते हुए भी डर रहता है कि कहीं कोई अपना तो नहीं टपक गया कि पता ही नहीं चले और लोग इस बात का भरोसा भी न कर के कहें कि यह चंदा तो छोड़ो किसी को कंधा भी नहीं दे सकता. लखनऊ वाले चाचाजी भी आजकल के हैं, और यही हाल बूआसास का भी है. एकदम से भागना पड़ता है बिना रिजर्वेशन के. कई बार तो 4-6 घंटे की यात्रा खड़ेखड़े ही करनी पड़ी और सचमुच ऐसा कष्ट हुआ कि मन किया कि जो हादसा उन के साथ हुआ वह मेरे साथ क्यों नहीं हो गया, या कि ये बुजुर्ग शादी के मुहूर्त वाले सीजन में क्यों चले गए कि जब तत्काल में भी जगह नहीं मिलती. मिल भी जाए तो जो ऊपर से 150 रुपए लग जाते हैं जो फांस की तरह आंसते हैं और जान में अटक जाते हैं.

अखबार में पत्नी लाटरी का नंबर सब से पहले देखना चाहती है. सरकार ने लाटरी खत्म कर दी तो क्या हुआ ये अखबार वाले तो अपना अखबार इसी नाम से बेच पाते हैं. कोई 2 करोड़ की लाटरियां घोषित किए हुए है तो कोई 2 महीने का ग्राहक बनने पर गारंटी से प्लास्टिक की कुरसी दे रहा है. चित्र छाप कर बता रहा है उस के अखबार से मिलने वाली कुरसी दूसरे की ओर से मिलने वाली कुरसी की तुलना में ज्यादा मजबूत है. विज्ञापनों से भरा अखबार भी घरेलू इस्तेमाल की कमजोर चीजों के दम पर बिक रहा है और इसी बिकने के दम पर उसे विज्ञापन मिलते हैं, जिस में विज्ञापित जिंसों की मजबूती के दावे रहते हैं.

नाश्ते में चाय के साथ ब्रैडस्लाइस दी गई है तो उसे खाने से पहले डर कर सूंघता हूं कि कहीं बहुत दिन पुरानी तो नहीं. ब्रैड वाले से पचास बार कहा पर वह मानता ही नहीं और कहता है कि हमारे यहां तो रोज ताजी आती है और सप्लाई करने वाला सारी बासी ले जाता है. मैं कहता हूं कि कभी चैक कर के देख लो, कहीं ऐसा तो नहीं कि आप की बासी दूसरे को दे देता हो और दूसरे की बासी आप को टिका देता हो. व्यापारी अपनी कोई भी चीज बिना बिकी नहीं छोड़ता और अब तो उस की इज्जत भी अपवाद नहीं रही.

नगर निगम के नलों का भी कोई ठिकाना नहीं. आएं तो आएं और न आएं तो न आएं. डर कर पानी भर कर रखना पड़ता है और नल आने पर बासी पानी लुढ़का कर ताजा भरना होता है. पानी के बरबाद होने का दुख तो होता है किंतु क्या करें अगले दिन पानी नहीं आए तो वह और 2 दिन पुराना हो जाएगा. खबरें आती हैं कि कहींकहीं तो 6-7 दिन बाद आता है, मानो पानी नहीं इतवार हो गया है.

किसी भी दफ्तर में जाने पर डर लगता है, जाने बाबू कैसा व्यवहार करे? सारा काम नियम से होते हुए भी वह रोक सकता है, टाल सकता है या कोई खामी निकाल कर रिश्वत मांग सकता है. जान सूखती है. लाइन में लगने पर भय लगता है कि मेरा नंबर आने तक कहीं खिड़की बंद न हो जाए या बाबू चाय पीने या अति आवश्यक काम के बहाने सीट से न उठ जाए. मन करता है कि दफ्तर में कोई पहचान वाला निकल आए तो ठीक रहे, पर एक अकेले आदमी की कितनी पहचान हो सकती है कि जो हर दफ्तर तक फैली हो. बाबू का बौस भी ऐसे या वैसे बाबू का बाप निकल सकता है और जो खामियां बाबू ने निकालीं वह उस से भी ज्यादा निकाल सकता है जिसे बाद में बाबू भी नहीं इग्नोर कर सकता. ‘और जाओ बौस के पास,’ बाबू कह कर मुसकराएगा.

अखबार पढ़ते रहने के कारण सुंदर, चमकीली और बड़े आकार की सारी सब्जियां, फल और अनाज रासायनिक खाद व कीटनाशकों से प्रदूषित लगने लगते हैं और उन के जी एम बीज पौष्टिक कम व नुकसानदायक अधिक हो सकते हैं.

सब्जी वाला सब्जी के भाव आसमान पर बता कर कहता है कि सब इसी भाव में आ रही हैं हम क्या करें. अब हमें क्या पता कि इसी भाव में आ रही हैं या किस भाव में आ रही हैं. पता नहीं सच बोल रहा है या हमें मूर्ख बना रहा है.

मसालों में मिलावट हो सकती है. वैसे भी अब किस चीज में मिलावट नहीं हो सकती. अब क्या नहीं हो सकता. हम डर के मारे मरते रहते हैं और मिर्जा गालिब को दुहराते रहते हैं कि ‘नींद क्यों रात भर नहीं आती.

– वीरेंद्र जैन

राजनीति : युवाओं की दिलचस्पी कम

लोकसभा में  युवा सांसदों की बढ़ती तादाद ने राजनीति को एक संभावित कैरियर क्षेत्र बना दिया है. इस क्षेत्र में आने के लिए युवाओं को काफी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. उन्हें सही प्लेटफौर्म नहीं मिल पाता. यदि कहीं कोई आसार दिखते भी हैं तो वहां पहले से ही सीटें भरी हैं. वैसे तो इस के कई कारण हो सकते हैं, पर सब से बड़ा कारण है, वंशवाद, धनी और बाहुबली लोगों का वर्चस्व.

भारत दुनिया का सब से बड़ा लोकतांत्रिक देश है. प्रजातंत्र पर टिकी इस की राजनीति आज भी अपने स्वरूप को स्पष्ट नहीं कर पाई है. भारतीय राजनीति पर गौर करें तो पाएंगे कि इस का रास्ता बड़ा कठिन व टेढ़ामेढ़ा है, जो आम लोगों के लिए सुलभ नहीं है. यहां सिर्फ वही चल सकता है, जो धनी व बाहुबली हो, जो धांधलेबाजी व घोटाले करने में  माहिर हो. जो अपनी बात मनवाने के हथकंडे जानता हो, जो रातोंरात मालदार बनने का गुर जानता हो. फास्ट मनी की कला में माहिर हो.

युवा जहां हर क्षेत्र चाहे वह इंजीनियरिंग का हो, मैडिकल या फिर आईटी, हर जगह पूरे जोशखरोश के साथ दिखते हैं. वहीं फास्ट मनी कमाने वाले क्षेत्र राजनीति को नगण्य मानते हैं. एक आम युवा राजनीति में हिस्सेदार नहीं बनना चाहता है. वह राजनीति के पचड़े से कोसों दूर रहना चाहता है. दूसरी तरफ युवाओं में यह धारणा भी बनी है कि भारतीय राजनीति वंशवाद की जंजीरों में जकड़ी हुई है. भारतीय राजनीति में शुरू से ही वंशवाद का बोलबाला रहा है. युवा नेताओं की बात की जाए तो जो युवा आज राजनीति में हैं, उन की पृष्ठभूमि पहले से ही राजनीति से जुड़ी है.

उन की राजनीतिक पारिवारिक विरासत की जड़ें बहुत गहरी हैं. फिर चाहे वे जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुला हों, कांगे्रस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, कांगे्रस के दिवंगत नेता माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया, राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट, शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित, मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव, मिलिंद देवड़ा, कांग्रेस नेता व सिने स्टार सुनील दत्त की पुत्री प्रिया दत्त, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के महासचिव पी ए संगमा की पुत्री अगाथा संगमा, भाजपा की वरिष्ठ नेता व राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत सिंह, जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह हों, शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले या दिवंगत संजय गांधी के पुत्र वरुण गांधी, इन सभी युवा नेताओं को राजनीति विरासत में मिली है. ऐसे में हम अगर बात करें राजनीतिक कैरियर क्षेत्र की तो आम युवाओं को आज भी मशक्कत करनी पड़ती है. यदि देश की राजनीति सुचारु तरीके से पटरी पर लानी है तो युवाओं को देश की राजनीति में मुख्य भूमिका निभानी ही होगी.

भारत संभावनाओं का देश है. यहां हर कोई अपना भविष्य संवार सकता है. हम यह कह सकते हैं कि राजनीति और युवा एकदूसरे के पूरक हैं. राजनीति हमें शासन करने की शक्ति प्रदान करती है. राहुल गांधी अकेले नहीं और भी कई प्रतिभाशाली युवा हैं, जो लोक कल्याणकारी व देश के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य के तहत एक सुनहरे भविष्य व विकसित भारत की बात कर सकते हैं. 

आज भले ही राजनीति का लाभ कुछ परिवारों तक सिमटा हुआ है, पर फिर भी अगर एक साधारण युवा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े तो आम युवाओं के लिए भी रास्ता आसान हो जाएगा.

युवाओं में जोश तथा मौलिक सोच होती है. काम करने का जोश भी होता है, लेकिन एक आम युवा के लिए क्या राजनीति में कहीं कोई गुंजाइश है? अगर कोई युवा विकास और परिवर्तन की बात करेगा तो सत्तासीन नेता व प्रमुख राजनीतिक दल उसे ऐसा नहीं करने देंगे, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें खुद के लिए खतरा लगता है. अपने स्वार्थ के लिए ये नेता व दल किसी भी हद तक जा सकते हैं. इसलिए यही डर इन युवाओं को सता रहा है.

राजनीति में आगे बढ़ने के लिए युवाओं और महिलाओं को खुद ही अपने में जागृति लानी होगी. हमारे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा महिलाएं हैं. इन में मौलिक सोच तथा कुछ नया कर दिखाने का हुनर होता है. अगर ये जोशीले युवा राजनीति में नहीं आएंगे तो राजनीति का भविष्य उज्ज्वल नहीं होगा.

फिलहाल जो राजनीतिक परिदृश्य दिखाई दे रहा है, उस से ऐसा लगता है कि युवाओं का रुख राजनीति की तरफ कम ही हो रहा है. नीतियों व कार्यक्रमों को लोकलुभावन तो बनाया जा रहा है, लेकिन ये कहां कारगर साबित हो रहे हैं या होंगे, इस पर कुछ कहना जल्दबाजी होगी.

जिस देश की मुख्यधारा राजनीति हो, वहां की उदासीनता देश व राजनीति के लिए अच्छी नहीं है. आज देश को स्वस्थ राजनीति की आवश्यकता है, पर यह सबकुछ तभी संभव है जब हर किसी की सोच कुछ करने के लिए सकारात्मक हो. असंमजस की स्थिति बेहतर परिणाम नहीं देगी.

युवकों में बढ़ता बेहतर लुक का क्रेज

बेहतर लुक का क्रेज आज सिर्फ युवतियों में ही नहीं युवकों में भी पाया जाने लगा है बल्कि युवकों में यह बेहद तेजी से बढ़ रहा है. बेहतर लुक और खूबसूरत दिखने के ट्रैंड का एक मुख्य कारण है अधिक पैसा कमाने की चाह और बदलता लाइफस्टाइल. आज इस आपाधापी भरी जिंदगी में अधिक पैसा कमाने की चाह होना गलत नहीं बल्कि इस चाह को पूरा करने के लिए इस फैशन के दौर में यह जरूरी भी है कि युवा अपने लुक को ले कर लापरवाही न बरतें और खुद को स्मार्ट बनाएं.

आज युवक भी ऐसे प्रोडक्ट और मेकअप टिप्स की तलाश में रहते हैं, जिन से स्टाइलिश और खूबसूरत दिखें. जानिए ऐसे ही कुछ मेकअप टिप्स के बारे में :

मेकअप से पहले

युवकों को चाहिए कि वे मेकअप करने से पहले शेव जरूर कर लें. इस से उन्हें आकर्षक लुक मिलेगा. इस के बाद स्क्रब को हलके हाथों से त्वचा पर रगड़ते हुए कुनकुने पानी से चेहरा धो लें. शेविंग के कुछ समय बाद चेहरे को फेसवाश या स्क्रब से साफ करें, जिस से त्वचा में जलन महसूस न हो.

त्वचा में पीएच बैलेंस 

त्वचा में पीएच बैलेंस बनाए रखने के लिए अच्छी कंपनी का टोनर लगाएं. त्वचा को कोमल बनाए रखने के लिए मौइश्चराइजर लगाना न भूलें.

आंखों के नीचे काले घेरे 

कई बार युवकों की आंखों के नीचे काले घेरे हो जाते हैं, जिन्हें छिपाने के लिए वे कंसीलर का इस्तेमाल कर सकते हैं. चेहरे की झाइयों, दागधब्बों, मुहांसों को छिपाने के लिए आप फाउंडेशन लगा सकते हैं. पसीना आने पर मेकअप खराब न हो इसलिए वाटरपू्रफ फाउंडेशन लगाएं.

नैचुरल लुक, चमकदार त्वचा

नैचुरल लुक और चमकदार त्वचा के लिए टिंटेड मौइश्चराइजर युवकों के लिए सब से अच्छा विकल्प है. यह धूप से बचाने के साथ ही त्वचा को मुलायम भी रखता है. चमकदार होंठों को कोमल व चमकदार बनाए रखने के लिए लिप बाम जरूर लगाएं.

तैलीय त्वचा 

तैलीय त्वचा का तेल कम करने के लिए कौंपैक्ट पाउडर लगाएं. यह आप की त्वचा का रंग हलका करने के साथ ही पसीना, चिपचिपापन हटाता है, जिस से आप फ्रैश फील करते हैं.

आप मानें या न मानें लेकिन युवतियों को प्रभावित करने के लिए सिर्फ अच्छा लुक ही काफी नहीं है बल्कि अपनी त्वचा का खयाल रखना भी उतना ही जरूरी है. इस सीजन में जितना जरूरी युवतियों के लिए अपनी त्वचा की देखभाल है, युवकों के लिए भी उन की त्वचा की देखभाल उतनी ही जरूरी है. ऐसे में युवक लुक में जान डालने वाले इन उपायों पर जरूर गौर करें.

साबुन चुनते वक्त रखें ध्यान

आप को साबुन के चयन में युवतियों से अधिक समझदारी बरतनी होगी, क्योंकि आप का सामना धूप, औयल और प्रदूषण से अधिक होता है. ऐसे में बिना सोचेसमझे कोई भी साबुन इस्तेमाल करने के बजाय अपनी स्किन के अनुरूप साबुन का चुनाव करें. औयली स्किन के लिए फू्रट या जैल बेस साबुन और ड्राई स्किन के लिए क्रीम बेस साबुन अच्छा रहता है.

सनस्क्रीन लड़कियों के लिए नहीं

धूप में निकलना युवकों का अधिक होता है, तो धूप से बचाव की जरूरत युवकों की त्वचा को क्यों नहीं है? युवकों को धूप में निकलते वक्त सनस्क्रीन लोशन लगाना नहीं भूलना चाहिए. सामान्यत: एसपीएफ 30 युक्त सनस्क्रीन युवकों की त्वचा को धूप से बचाने के लिए बेहतर है.

बालों के लिए कंडीशनर

अकसर युवक बालों पर शैंपू लगाने के बाद कंडीशनर का इस्तेमाल जरूरी नहीं समझते, लेकिन बालों के लिए कंडीशनर की जरूरत युवकों को भी उतनी ही है, जितनी युवतियों को. इस से बालों की नमी बनी रहती है और बालों की चमक लंबे समय तक बरकरार रहती है.

मौइश्चराइजिंग

युवकों की त्वचा का सामना धूप और प्रदूषण से अधिक होता है इसलिए उन की त्वचा की नमी का खोना लाजिमी है. ऐसे में युवकों को चाहिए कि वे रोज सोने से पहले व नहाने के बाद हलके मौइश्चराइजर का इस्तेमाल जरूर करें.

मैंने खुद को हमेशा टीनएजर ही समझा है : सचिन पिलगांवकर

महज 4 साल की छोटी उम्र में मराठी फिल्म ‘हा माझा मार्ग एकला’ में बाल कलाकार के रूप में काम कर राष्ट्रपति पुरस्कार जीतने वाले अभिनेता सचिन पिलगांवकर ने मराठी और हिंदी फिल्मों के अलावा भोजपुरी फिल्मों में भी काम किया है.

हिंदी फिल्म ‘बालिका वधू’ उन की चर्चित फिल्म है, लेकिन जीवन का टर्निंग पौइंट उन की फिल्म ‘गीत गाता चल’ थी. इस फिल्म में उन की और सारिका की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया. फलस्वरूप ‘अंखियों के झरोखों से’ फिल्म बनी. फिल्म ‘नदिया के पार’ सचिन की सब से बड़ी हिट फिल्म थी. अभिनेत्री साधना सिंह के साथ उन की यह फिल्म सुपरडुपर हिट हुई. यही वजह थी कि राजश्री प्रोडक्शन वालों ने दोबारा उस फिल्म को 1994 में सलमान खान और माधुरी दीक्षित के साथ ‘हम आप के हैं कौन’ नाम से बनाया और एक बार फिर वह कामयाब रही.

अभिनय के साथसाथ सचिन ने मराठी और हिंदी फिल्मों के लिए निर्माता और निर्देशक का काम भी किया है. इतना ही नहीं, उन्होंने सिंगिंग और कौमेडी शो भी किए हैं. सचिन हर काम को चुनौती मानते हैं. उन के कामयाब फिल्मी सफर के साथसाथ उन का पारिवारिक जीवन भी बेहद सुखद है.

सचिन और सुप्रिया एक मराठी फिल्म के दौरान मिले, प्यार हुआ और फिर शादी कर ली. दोनों की एक बेटी श्रेया पिलगांवकार है, जो अभिनेत्री है. शांत और हंसमुख स्वभाव के सचिन से बात करना रोचक रहा. पेश हैं, कुछ अंश.

वैब सीरीज में काम करने की इच्छा कैसे पैदा हुई?

वैब सीरीज भविष्य की एक बहुत बड़ी मांग है. जब मैं ने पहली बार 8-10 साल पहले सुना था तो महसूस हुआ कि यह भी औडियो विजुअल माध्यम है. यह भी किसी कहानी को कह सकता है, लेकिन इस की तकनीक अलग है. मुझे हर बदलाव को अपनाने में खुशी मिलती है. यही वजह है कि मैं ने 1995 में सब से पहले टीवी को अपनाया था. उस समय सैटेलाइट टीवी एक नई बात थी.

वैब सीरीज को भी मैं ने उसी तरह से अपनाया है. इस में अच्छी बात यह रही कि सैक्स से जुड़ी जिन बातों को समाज और परिवार कहने से कतराता है और चोरीछिपे उस बारे में बातें करता है, उसे मैं ने सामने आ कर एक सीरीज के रूप में दिखाया. इसे व्यक्ति किसी भी फोन या लैपटौप पर किसी भी समय जब चाहे देख सकता है. उसे एक आजादी मिलती है.

वैब सीरीज को करने के बाद मुझे बहुत खुशी मिली. मैं मनोरंजन के क्षेत्र से हूं और कोई काम जिस में कोई मैसेज हो तो मैं उसे तुरंत हां कर देता हूं.

बचपन से ले कर अब तक के फिल्मी कैरियर को कैसे देखते हैं?

मैं इस कामयाबी को बहुत अधिक नहीं समझता. मैं तो अभी भी खुद को 18 वर्ष का ही समझता हूं. कभीकभार बचकानी हरकतें भी कर लेता हूं. मैं ने अपनेआप को हमेशा टीनएजर ही समझा है. इसीलिए किसी भी नई चीज को करने में उत्साह महसूस करता हूं.

मैं अपनेआप को कभी लीजेंड नहीं समझता और क्या अच्छा कर सकता हूं उस के बारे में सोचता हूं. यही वजह है कि मेरी यह लंबी पारी चल रही है. जब मैं 50 साल का हुआ था तब मैं ने एक जगह कहा था कि अब मुझे लगने लगा है कि मेरी जर्नी अब शुरू हुई है. इस की वजह यह है कि अब वही करना है, जिसे अब तक नहीं किया है. मेरे लिए, आप ने कितने साल इंडस्ट्री में गुजारे, इस से अधिक किया क्या, वह अधिक महत्त्व रखता है.

लोगों का मानना है कि सैक्स वैब सीरीज या सैक्स ऐजुकेशन से समाज और परिवार बिगड़ता है, महिलाओं पर अत्याचार बढ़ता है. इस बारे में आप की क्या राय है?

जहां भी किसी बात की पाबंदी होती है, वहां लोग उसे सब से अधिक करते हैं. जिस प्रदेश में शराब पर रोक है, वहां सब से अधिक शराब की बोतलें बेची और खरीदी जाती हैं. लोग अधिक पैसे दे कर कहीं न कहीं से खरीदते हैं. जहां पर पाबंदी नहीं, वहां चोरी का धंधा नहीं है. वैसे ही सैक्स ऐजुकेशन एक ऐसी चीज है, जिस की जानकारी सब को होनी चाहिए.

मैं जब 6 साल का था तब मेरे पिता ने मुझे सैक्स के बारे में बताया था. 13 साल की उम्र में उन्होंने फिर से मुझे अच्छी तरह समझाया. 13 साल की उम्र में मैं और अधिक समझ सकता हूं. इसलिए उस हिसाब से समझाया. मेरी बेटी को मेरी पत्नी ने समझाया. हम दोनों आज भी अपनी 26 साल की बेटी के साथ बैठ कर बहुत सारे मुद्दों पर चर्चा करते हैं. हमारे आसपास कई ऐसे पुरुष हैं, जो हर दिन अपनी पत्नी का रेप करते हैं. उन पत्नियों को पता नहीं होता कि सैक्स और रेप में अंतर क्या है.

इसलिए सैक्स ऐजुकेशन केवल बच्चों में ही जरूरी नहीं, बल्कि महिलाओं में भी ऐसी जागरूकता होनी चाहिए. यह एक टैबू है, जिसे महिलाएं सामने आ कर बताना नहीं चाहतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पति उन का भरणपोषण कर रहा है और वह कुछ भी करने का हक रखता है, जो गलत है.

आप सोशल मीडिया पर कितने ऐक्टिव हैं और क्या बच्चों पर इस का गलत असर पड़ता है?

मैं अधिक ऐक्टिव नहीं, केवल फेसबुक पर जुड़ा हूं, ट्विटर पर नहीं हूं, क्योंकि उस में हर दिन कुछ पोस्ट करना पड़ता है. मैं मुक्त परिवेश में रहना पसंद करता हूं. मैं अपनी मां, पत्नी और बेटी को भी स्पेस देता हूं. मैं किसी पर अपनी कोई बात नहीं थोपता और कोई मुझ पर अपनी बात थोपे उसे भी नापसंद करता हूं.

मेरे हिसाब से जो भी नई चीज आती है, उस का कुछ सही और कुछ गलत परिणाम होता है. उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता. मातापिता को नजर रखनी पड़ती है कि बच्चे सोशल मीडिया का गलत प्रयोग न करें.

इंडस्ट्री में इतने सालों तक काम करते हुए आप इंडस्ट्री में कितना बदलाव महसूस करते हैं?

मैं ने हर बदलाव को देखा है और फिर उसी के अनुसार आगे बढ़ने की कोशिश की है. अब फिल्म की कहानी और उस की तकनीक में बदलाव आया है. मैं ने हर कैमरे पर शूट किया है. ‘डेबरी’ नाम का कैमरा जिसे उठाने में 10 लोग लगते थे, उस कैमरे पर मैं ने बचपन में शूट किया. इस के बाद ‘मिचेल’, ‘मिचेल 2’, ‘एरी’ कैमरे के सारे वर्जन आए. इस तरह करतेकरते डिजिटल कैमरे का युग आ गया. मैं ने हर तरह के बदलाव को नजदीक से देखा है.

आप की फिटनैस का राज क्या है?

मैं खुद से बहुत प्यार करता हूं. मैं संयम की जिंदगी जीता हूं. खाना सब पसंद है, लेकिन उस में संयम बरतता हूं. 8 घंटे की नींद लेता हूं और हफ्ते में 5 दिन जम कर बैडमिंटन प्रोफैशनल तरीके से कोच के साथ खेलता हूं.

क्या अभी कुछ और मराठी फिल्मों का निर्देशन करने की इच्छा है?

मैं ने अभी तक हिंदी, मराठी और कन्नड़ कुल 21 फिल्मों का निर्देशन किया है. ‘कट्यार कालजात घुसली’ के बाद 2 मराठी फिल्मों ‘वारस’ और ‘जवानी जाने मन’ पर काम चल रहा है. कुछ नई कहानियां भी सुन रहा हूं. हिंदी फिल्मों में भी अभिनय करने की इच्छा है.

कभी टीवी पर नहीं आती हैं ये फिल्में

बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार का नाम बॉलीवुड के मोस्ट एंटरटेनिंग स्टार्स की लिस्ट में शामिल है. वैसे देखा जाए तो अक्षय कुमार की साल में तीन से चार फिल्में तो आ ही जाती हैं और रिलीज के दो से तीन महीने बाद ही टीवी पर उनका प्रीमियर भी हो जाता है.

लेकिन आपको ये बात शायद ही पता हो कि अक्षय की कुछ फिल्में ऐसी भी हैं जो कभी टीवी पर आई ही नहीं. आज हम अक्षय की ऐसी फिल्में बता रहे हैं जो कभी टीवी पर नहीं आई.

क्या है इसकी वजह

इन कुछ फिल्मों के टीवी पर न आने की वजह है, इनके प्रोड्यूसर सुनील दर्शन. आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने आज तक अपनी फिल्मों के सैटेलाइट अधिकार, टीवी चैनल्स को नहीं बेचे हैं.

साल 2010 में दिए एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था, ‘मैं नहीं जानता कि यह कितना सही है, लेकिन मेरा हमेशा से मानना है कि सिनेमा थिएटर्स के लिए ही बना होता है. बता दें कि साल 1988 में सुनील ने पहली फिल्म ‘इंतकाम’ प्रोड्यूस की थी, जिसमें सनी देओल और अनिल कपूर ने अहम किरदार निभाया था. सुनील को फिल्म इंडस्ट्री में 29 साल हो चुके हैं और अभी तक वे 12 फिल्में प्रोड्यूस कर चुके हैं, जिनमें से पांच फिल्में, उन्होंने अक्षय कुमार के साथ की हैं.

ये रहीं वो फिल्में

1. साल 1999 में आई फिल्म ‘जानवर’

सुनील दर्शन इस फिल्म के डायरेक्टर थे. इनके अलावा इस फिल्म की स्टारकास्ट में मुख्य थे, अक्षय कुमार, करिश्मा कपूर, शिल्पा शेट्टी, आशुतोष राणा और मोहनीश बहल.

2. एक रिश्ता : द बॉन्ड ऑफ लव, साल 2001

ये तो जाहिर सी बात है कि ये फिल्म कभी टीवी पर नहीं आई इसका मतलब इसे सुनील ने ही डायरेक्ट किया होगा. सुनाल के अलावा इस फिल्म की स्टारकास्ट में अक्षय कुमार के संग अमिताभ बच्चन, राखी, करिश्मा कपूर,जूही चावला और मोहनीश बहल भी शामिल थे.

3. साल 2002 की ‘हां मैंने भी प्यार किया है’

इस फिल्म के डायरेक्टर धर्मेश दर्शन थे और इसका प्रोडक्शन सुनील ने किया था. इस फिल्म में अक्षय कुमार और अभिषेक बच्चन के अलावा करिश्मा कपूर भी मुख्य भूमिका में थीं.

4. अंदाज

साल 2003 में आई इस फिल्म को डायरेक्टर, राज कंवर ने बनाया था. अक्षय कुमार की इस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा और लारा दत्ता ने भी काम किया था.

5. दोस्ती : फ्रेंड्स फॉरएवर​

अक्षय कुमार की ये फिल्म साल 2005 में प्रदर्शित की गई थी. इस फिल्म में अक्षय के अलावा  करीना कपूर, बॉबी देओल, लारा दत्ता और जूही चावला ने भी काम किया है. इस फिल्म के डायरेक्टर, और कोई नहीं  सुनील दर्शन ही थे.

प्रेग्नेंसी में जा रही हैं घूमने तो रखें इन बातों का ख्याल

घूमना सभी को अच्छा लगता है लेकिन घूमने जाने से पहले अगर कुछ जरूरी तैयारियां कर ली जाएं तो घूमने का मजा दोगुना हो जाता है. खासतौर पर तब जब आप प्रेग्नेंट हों. यह समय काफी नाजुक होता है. एक छोटी सी भी लापरवाही होने वाले बच्चे और मां के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.

ऐसे में अगर आप प्रेग्नेंट हैं या फिर कोई प्रेग्नेंट लेडी आपके साथ ट्रैवल करने वाली हैं तो इन बातों का ख्याल जरूर रखें.

डॉक्टर से सलाह के बाद ही बनाएं प्लान

ट्रिप प्लान करने से पहले सबसे जरूरी है कि आप अपने डॉक्टर से बात कर लें. हो सकता है कि आपको कोई ऐसी परेशानी होने का डर हो, जिसके चलते वह आपको न जाने की सलाह दे. अगर वह आपको जाने की सलाह दे देते हैं तो इसके साथ ही वह आपको पूरी यात्रा में किन बातों का, दवाओं का और खाने-पीने का ख्याल रखना है, बता देंगे. इससे आपकी यात्रा कहीं अधिक सुरक्षित हो जाएगी और इस तरह से आप ट्रिप का पूरा मजा भी ले पाएंगी.

तैयारी पक्की होनी चाहिए

आप प्रेग्नेंट हैं तो दूसरों की देखा-देखी कपड़े पहनने की गलती न करें. आपके लिए ढीले कपड़े ही अच्छे रहेंगे. जूते, चप्पल भी आरामदायक होने चाहिए. साथ ही ऐसे होने चाहिए जो जमीन पर पकड़ बनाकर चलें. अपनी दवाइयों का पैकेट हमेशा साथ रखें. एक छोटी डायरी भी रखें, जिसमें आपके डॉक्टर का नंबर और जहां आप गई हैं, वहां के किसी अच्छे अस्पताल का नंबर लिखा हो.

सही सीट की बुकिंग

आप जिस भी साधन से जा रही हों, यह जरूर ध्यान रखें कि आपकी सीट वॉशरूम के पास ही हो. बीच की सीट लेने से बेहतर होगा कि आप साइड की सीट पर ही बैठें.

हल्का-फुल्का खाना पास रखें

लंबे सफर पर जा रही हैं तो अपने पास खाने-पीने की चीजों का एक छोटा बैग जरूर रखें. इस दौरान लंबे समय तक भूखा रहना सही नहीं है.

किताबें और म्यूजिक

अपने पास कुछ ऐसा जरूर रखें जिससे समय काटना आसान हो. वरना बोर होने पर आपका मन खराब हो सकता है. किताबें और म्यूजिक सुनना इसका सबसे अच्छा साधन है.

इन एक्सेसरीज से ऑफिस में आप दिखेंगी बिल्कुल अलग

ऑफिस में एक जैसे कपड़े और एक्सेसरीज पहनने से आप बोर हो जाती होंगी. लेकिन ऑफिस में अपने लुक के साथ एक्सपेरिमेंट करना भी रिस्की रहता है.

ऑफिस में आपको थोड़ा हट कर दिखने के साथ-साथ क्लासी भी दिखना होगा. जानते हैं आप अपने ऑफिस के कपड़ों के साथ किन एक्सेसरीज का प्रयोग कर सकती हैं.

रिस्टवॉच

ऑफिस में रिस्टवॉच पहनने से आपको एक अलग ही लुक मिलता है. ये प्रोफेशनलिज्म भी दिखाता है. आजकल छोटी और बड़ी दोनों ही घड़ियां चलन में है.

ईयररिंग्स

छोटे ईयररिंग्स आपके ऑफिस लुक को और क्लासी बना देंगे. ऑफिस में बड़े ईयररिंग्स पहनने से बचें.

फुटवेयर

आप लेदर के फुटवेयर ट्राई कर सकती हैं. साथ ही स्नीकर्स और पंप भी आपके लुक को कॉम्पलीमेंट करेंगे. हील्स लेते समय ध्यान रखें कि चलने पर उसमें से आवाज ना आती हो.

बेल्ट

वो जमाना गया जब बेल्ट सिर्फ जींस में ही लगाया जाता था. लेदर के पतले बेल्ट आप वन पीस पर भी ट्राई कर सकती हैं.

क्लच

हैंडबैग तो अक्सर ही ऑफिस ले जाती होंगी. लेकिन अब क्लच ट्राई कर के देखिए.

इस बीमा के बारे में नहीं जानती होंगी आप

बीमा सिर्फ मकान, दुकान और इंसान का ही नहीं होता, बल्कि आपके घर की रसोई में रखे गैस सिलेंडर का भी बीमा होता हैं. यानि आप गैस सिलेंडर से हादसा होने पर बीमा क्लेम कर सकती हैं. साथ ही क्या आप जानती हैं कि गैस सिलेंडर की एक एक्सपायरी डेट भी होती है? जागरुकता की कमी के कारण अधिकांश लोग सिलेंडर बिना एक्सपायरी डेट जांचे खरीद लेते हैं.

आपको बता दें कि गैस सिलेंडर से हादसा होने पर उपभोक्ता को कंपनी की ओर से 50 लाख रुपए तक का बीमा मिलता है. बीमा के लिए चुकाया जाने वाला प्रीमियम आपकी ओर से भुगतान की जाने वाली राशि में सम्मिलित होता है. लेकिन जानकारी के अभाव में उपभोक्ता इसका लाभ नहीं उठा पाते.

रसोई में रखे सिलेंडर पर मिलता है 50 लाख का बीमा

आरटीआई में हुए खुलासे के तहत गैस कनेक्शन लेते ही उपभोक्ता का 10 से 25 लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा हो जाता है. इसके तहत गैस सिलेंडर से हादसा होने पर पीड़ित बीमा क्लेम कर सकता है. साथ ही, सामूहिक दुर्घटना होने पर 50 लाख रुपए तक देने का भी प्रावधान है. इसके लिए दुर्घटना होने के 24 घंटे के भीतर संबंधित एजेंसी और लोकल थाने को सूचना देनी होती है. साथ ही दुर्घटना में मृत्यु होने पर जरूरी प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने होते हैं. इसके बाद मामला क्षेत्रीय कार्यालय और फिर क्षेत्रीय कार्यालय बीमा कंपनी को सौंप दिया जाता है.

यह है गैस सिलेंडर की एक्सपायरी डेट जानने का तरीका

गैस सिलेंडर की पट्टी पर ए, बी, सी, डी और 12, 13, 15 लेटर और नंबर की सहायता से एक कोड लिखा होता है. गैस कंपनियां वर्ष के कुल 12 महीनों को चार हिस्सों में बांटकर सिलेंडरों का ग्रुप बनाती हैं. मसलन, ‘ए’ ग्रुप में जनवरी, फरवरी, मार्च और ‘बी’ ग्रुप में अप्रैल मई जून होते हैं. ऐसे ही ‘सी’ ग्रुप में जुलाई, अगस्त, सितंबर और ‘डी’ ग्रुप में अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर होते हैं.

एक्सपायरी या टेस्टिंग का महीना सिलेंडर पर लिखा कोड़ दर्शाता है. साथ ही आगे लिखा नंबर एक्सपायरी ईयर का होता है. मसलन, अगर आपके सिलेंडर पर ‘A-16’ लिखा है तो इसका मतलब है कि एक्सपायरी डेट मार्च, 2016 है. ऐसे ही, ‘सी-16’ का मतलब सितंबर, 2016 के बाद सिलेंडर का इस्तेमाल खतरनाक है.

एक्सपायरी डेट में भी रहती है हेर फेर की संभावना

एक अनुमान के मुताबिक तकरीबन पांच फीसदी सिलेंडर एक्सपायर्ड या एक्सपायरी डेट के करीब होते हैं. लोगों के बीच जागरुकता की कमी होने के कारण से ये बार बार रोटेट होते रहते हैं. सामान्य तौर पर एक्सपायरी डेट औसतन छह से आठ महीने एडवांस रखी जाती है. चूंकि एक्सपायरी डेट पेंट से प्रिंट की जाती है, इसलिए इसमें हेर-फेर की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. कई बार जंग लगे हुए सिलेंडर पर भी एक्सपायरी डेट डेढ़-दो साल आगे की होती है. इसपर एजेंसी वाले तर्क देते हैं कि यहां से वहां लाते ले जाते वक्त उठा-पटक से कुछ सिलेंडर पुराने दिखने लगते हैं.

एक्सपायर्ड सिलेंडर मिलने पर लें एक्शन

एक्सपायर्ड सिलेंडर मिलने पर उपभोक्ता एजेंसी को सूचना देकर सिलेंडर को रिप्लेस करवा सकता है. गैस एजेंसी के रिप्लेसमेंट से मना करने पर वह खाद्य या प्रशासनिक अधिकारी से शिकायत कर सकता है. इस सेवा में भी कमी दिखने पर उपभोक्ता फोरम में मामला दायर किया जा सकता है.

बीमा लेने के लिए पूरी करनी होती हैं ये शर्तें

शर्तों के तहत आपके घर में इस्तेमाल होने वाला गैस कनेक्शन वैध होना चाहिए. साथ ही आईएसआई मार्क वाले गैस चूल्हे का ही उपयोग होना चाहिए. गैस कनेक्शन में एजेंसी से मिली पाइप-रेग्युलेटर ही इस्तेमाल हो. गैस इस्तेमाल की जगह पर बिजली का खुला तार न हो. चूल्हे का स्थान, सिलेंडर रखने के स्थान से ऊंचा होना चाहिए.

अनुराग कश्यप ने दबंग सलमान से लिया बदला

बॉलीवुड में कुछ ही ऐसे लोग हैं जो सीधा सलमान खान से पंगा ले पाते हैं. देखा जाए तो यही लोग बॉलीवुड के असली दबंग हैं. बात कर रहें हैं अनुराग कश्यप और सलमान खान की. अनुराग कश्यप अपनी नई फिल्म ला रहे हैं जिसका नाम है मुक्काबाज़. लेकिन इससे भी ज़्यादा दिलचस्प है फिल्म का प्लॉट. फिल्म एक प्रेम कहानी है. यूपी के लड़के की प्रेम कहानी. वो यूपी का लड़का जो कि एक रेसलर है. बस इसी कारण से हमें अनुराग कश्यप और सलमान खान एक साथ याद आ गए. अब देखिए जो बात आगे हम कहेंगे वो है बेहद बेतुकी और बचकानी. पर भैया क्या किया जाए, सलमान में बात ही कुछ ऐसी है, उनके छींकने की खबर लिखेंगे तो भी आप पढ़ लेंगे. और फिर ये बात बेतुकी भले ही है पर किस्सा बड़ा मज़ेदार है. पहली बात तो ये कि अनुराग कश्यप का हीरो अगर रेसलर है तो ज़ाहिर सी बात है कि वो सुलतान से बेहतर होगा. यानि कि सुलतान का सिंहासन तो गया. वहीं दूसरी तरफ ये फिल्म 10 नवंबर को रिलीज़ हो रही.

अगर इसमें अनुराग कश्यप ने गैंग्स ऑफ वसेपुर वाला जलवा बिखेर दिया तो फिर एक महीने बाद आ रही टाईगर ज़िंदा है पर ग्रहण लगना तय है. लेकिन अनुराग और सलमान का दिलचस्प किस्सा यहीं खत्म नहीं होता. तेरे नाम फिल्म को लेकर सलमान खान ने अनुराग कशयप की एक बात दिल पर ले ली थी. और इसी वजह से सलमान खान ने इस फिल्म में इतनी जान लगा दी कि फिल्म ठीक ठाक बन गई. अब अनुराग कश्यप की वो बात भी बता दें. दरअसल अनुराग ने सलमान को साफ कहा था कि आप फिल्म के हीरो नहीं लग पाएंगे. जानिए तेरे नाम का ये पूरा मज़ेदार किस्सा – रीमेक फिल्म थी तेरे नाम तेरे नाम तमिल की एक फिल्म सेतु का रीमेक. इसके राइट्स रामगोपाल वर्मा ने खरीदे थे और मैं इसे लिख रहा था. फिल्म किसी और को डायरेक्ट करनी थी. उस समय फिल्म के हीरो संजय कपूर थे और सलमान खान नहीं. अचानक हुई सलमान की एंट्री इसके बाद प्रोजेक्ट में कई बदलाव होने लगे. स्क्रिप्ट कई जगह घूमने लगी औऱ नए प्रो़ड्यूसर फिल्म में आ गए. बाद में मुझे पता चला कि फिल्म का हीरो सलमान खान है और फिल्म को मुझे डायरेक्ट करने को कहा गया.

अब अनुराग कश्यप की मानें तो फिल्म का हीरो मथुरा, आगरा का था. अनुराग खुद यूपी के हैं तो सलमान को यूपी वाले लड़के के किरदार में अनुराग नहीं देख पा रहे थे. फिर भी वो कोशिश करना चाहते थे तो उन्होंने सलमान को छाती के बाल उगाने की सलाह दी. इस बात पर वो मुझे देखता रहा और मेरी पूरी बात उसने सुनी. पर कुछ बोला नहीं. अगले ही दिन अनुराग कश्यप को प्रोड्यूसर का फोन आया. अनुराग उमसे मिलने पहुंचे. तो उनकी तरफ एक कांच की बोतल उड़ते हुए आई. इसके बाद प्रोड्यूसर चीखा – साले तू सलमान को बाल उगाने को बोलेगा. अनुराग कश्यप की मानें तो उन्हें बिना बताए ही फिल्म से रिप्लेस कर दिया गया. इसके बाद फिल्म किसी औऱ डायरेक्टर ने बनाई और ताबड़तोड़ चली भी. सलमान के बारे में अनुराग कश्यप ने एकदम दो टूक बात कही कि हम दोनों ही एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं. मुझे नहीं लगता कि वो भी मुझे पसंद करते हैं. वो मेरी तरफ देखना भी पसंद ना करें.

अनुराग कश्यप के भाई अभिनव कश्यप ने दबंग बनाई लेकिन दबंग 2 को लेकर कुछ गड़बड़ हुई और अभिनव कश्यप ने दबंग 2 छोड़ दी. लेकिन अनुराग को बताया गया कि अभिनव को फिल्म से निकाला गया है जिस पर अनुराग ने भड़क कर कुछ ट्वीट कर डाले. अनुराग ने बताया कि उस दौरान सलमान फैन्स ने ट्विटर पर तमाशा बना दिया था. सब मेरी तरफ पत्थर फेंक रहे थे. बाद में मुझे पता चला कि अभिनव को निकाला नहीं गया है तो मैंने ट्वीट डिलीट कर दी. अनुराग कश्यप ने सलमान हों या कोई औऱ हर एक्टर के बारे में दो टूक बात कही है और यही कारण है कि बॉलीवुड के असली दबंग वही कहे जाते हैं. वैसे हम तो अभी भी सोच रहे हैं कि अगर तेरे नाम पर अनुराग कश्यप की मोहर होती तो फिल्म कैसी होती.

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