बोझ बनती इंजीनियरिंग की डिगरी

इंजीनियरिंग की जिस डिगरी को हासिल करना कभी नौकरी की गारंटी और पारिवारिक प्रतिष्ठा की बात मानी जाती थी, आज वह डिगरी छात्रों और अभिभावकों के लिए एक ऐसा बोझ बनती जा रही है जिसे न तो केवल घर पर रख सकते हैं और न ही फेंक सकते हैं.

 ऐसा क्यों है, इसे समझने के लिए इतना ही काफी है कि शिक्षा हमेशा से ही एक व्यवसाय रही है. फर्क इतना भर आया है कि बदलते वक्त के साथसाथ आश्रमों व गुरुकुलों की जगह चमचमाते कालेज और पढ़ाने वाले दाढ़ीधारी गुरुओं के स्थान पर टाईसूट वाले प्रोफैसर दिखने लगे हैं यानी बदलाव शिक्षा प्रणाली के ढांचे में हुआ है, उस का मूलभाव ज्यों का त्यों ही है.

इस बदलाव का जीताजागता प्रमाण इंजीनियरिंग की डिगरी है जिस की हालत अब ठीक वैसी ही है जैसी 70 के दशक में बीए की डिगरी की हुआ करती थी कि हासिल तो कर लो, पर नौकरी पाने के लिए एडि़यां रगड़ते रहो. अब औपचारिक डिगरियों का जमाना लद चुका है. यह दौर तकनीक का है, इसलिए अधिकांश युवा रोजगार की अधिकतम गारंटी देने वाली डिगरी चाहते हैं.

यों आए फर्क

बहुत ज्यादा समय नहीं हुआ है, अब से 20 साल पहले तक प्राइवेट सैक्टर में ही इंजीनियरिंग की डिगरी नौकरी की गारंटी होती थी. वह कंप्यूटर का दौर था जब देशभर में सौफ्टवेयर कंपनियां अपना कारोबार बढ़ाने के लिए पांव पसार रही थीं. उस वक्त जिन्होंने कंप्यूटर और उस से जुड़ी शाखाओं में डिगरी ले ली, उन्हें हाथोंहाथ या फिर डिगरी लेने के एकाधदो साल के भीतर अच्छी नौकरी मिली.

तकनीकी शिक्षा में क्रांति के लिए 90 का दशक बेहद अहम था जब अर्थशास्त्र की भाषा में कहें तो कंप्यूटर इंजीनियरों की मांग ज्यादा थी, आपूर्ति कम थी. चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार को भांप लिया था, इसलिए उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियरों को आकर्षक पैकेज देने शुरू कर दिए. शिक्षा और रोजगार को ले कर अवसाद में डूबा और भड़ास से भरा युवा गांवदेहातों से निकल कर उन शहरों की तरफ दौड़ पड़ा जहां पढ़ने को इंजीनियरिंग कालेज थे.

देखते ही देखते इंजीनियरिंग कालेज कुकुरमुत्तों की तरह खुलने लगे. यहां यह बात कोई खास माने नहीं रखती कि इन में से अधिकांश कालेज नेताओं, उद्योगपतियों और शिक्षा माफिया से संबंध रखते मगरमच्छों के थे. उन का होना भर ही छात्रों के लिए वरदान साबित हुआ.

बात यकीन से परे है कि एक वक्त इंजीनियरिंग कालेजों की तादाद 5 हजार का आंकड़ा छूने लगी थी और इन में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 20 लाख तक पहुंच गई थी. यह कहनेभर को एक सुखद और अकल्पनीय स्थिति थी. वजह, पुरानी अर्थशास्त्र वाली थ्योरी ही थी कि मांग घटने लगी और आपूर्ति बढ़ने लगी.

2005 के आसपास सौफ्टवेयर कंपनियों ने अपनी शर्तों यानी वेतन पर नौकरी देना शुरू कर दी. इस से भी छात्रों को कोई खास सरोकार या एतराज नहीं था क्योंकि वे बेराजेगारी के दंश और कलंक से बच रहे थे. लेकिन 5 वर्षों बाद ही 2010 में इंजीनियरिंग की डिगरी नौकरी की गारंटी नहीं रह गई थी.

दरअसल, इंजीनियरिंग कालेज संचालकों ने 15 वर्षों तक तगड़ी चांदी काटी. छात्र किसी भी शर्त और फीस पर इन में दाखिला चाहते थे. लेकिन इंजीनियरिंग कालेजों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से छात्रों को कोई फायदा नहीं हुआ. चमकतेदमकते और इश्तिहारों पर करोड़ों रुपए खर्च करने वाले कालेज डिगरियां बांटने के अड्डे बन कर रह गए.

इंजीनियरिंग कालेजों को मान्यता देने वाली एजेंसी अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआईसीटीई ने कालेजों को मान्यता देने में तो उदारता दिखाई पर इंजीनियरिंग शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी में वह गच्चा खा गई. कई दफा एआईसीटीई में गड़बड़झालों और घोटालों की बातें उजागर हुईं पर किसी का कुछ खास नहीं बिगड़ा.

इधर कालेजों की हालत मेले में लगी दुकानों की सी हो चली जो लागत वसूलने के लिए छात्रों को तरहतरह के प्रलोभन देने लगे थे कि उन के यहां ऐडमिशन लो तो फीस में इतना डिस्काउंट मिलेगा या होस्टल फ्री रहेगा. इस बाबत इश्तिहारों के अलावा दलालों की भी मदद ली गई.

देखते ही देखते हर घर में एक इंजीनियर हो गया, जिस पर किसी को गर्व नहीं हुआ. न तो बेटे या बेटी के इंजीनियर बनने पर किसी ने सत्यनारायण की कथा कराई और न ही महल्ले में मिठाई बांटी.

इंजीनियरिंग शिक्षा और उस की गुणवत्ता का ग्राफ जो गिरा तो अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. एआईसीटीई ने कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि जिस डिगरी को हासिल करने में कभी छात्रों को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी, वह कैसे बेहद आसानी से मिलने लगी है. इस अधिकार संपन्न एजेंसी के कर्ताधर्ताओं ने इस बाबत भी गंगाजी में डुबकी लगाई कि वह न कुछ देखेगी और न कुछ करेगी ही.

ऐसे गिरी गुणवत्ता

इंजीनियरिंग कालेजों की तालीम की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है, यह बात हर कोई समझ रहा है कि जब 2-4 दड़बेनुमा कालेजों में कालेज चलेंगे तो ऐसा होना लाजिमी है. अभिभावक भी समझने लगे कि उन की संतान दरअसल इंजीनियर नहीं, बल्कि एक टैक्निकल क्लर्क बन कर रह गई है. पर वे इस में कुछ करने की स्थिति में नहीं थे.

दिक्कत यह है कि पढ़ाई की गुणवत्ता में गिरावट का कोई तयशुदा पैमाना नहीं है. भोपाल की एक छात्रा आयुषी की मानें तो उस ने 12वीं की परीक्षा जैसेतैसे थर्ड डिवीजन में पास की थी. मम्मीपापा की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बने, इसलिए बन गई. शहर के ही एक छोटे कहे जाने वाले इंजीनियरिंग कालेज में उसे दाखिला मिल गया. 4 वर्षों बाद आयुषी कंप्यूटर इंजीनियर बन गई.

आयुषी जैसे लाखों इंजीनियर क्या पढ़ते हैं और क्या सीखते हैं, इस का खुलासा एक सर्वे में हुआ तो इस की जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने में आई. रोजगार पात्रता के आकलन से जुड़ी कंपनी एस्पायरिंग माइंड्स ने इसी साल अप्रैल में अपने एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाल कर सामने रख दिया कि भारत में 85 फीसदी इंजीनियर सौफ्टवेयर डैवलपमैंट के काबिल नहीं होते हैं.

एस्पायरिंग माइंड्स के इस दिलचस्प सर्वे में देश के 400 से ज्यादा कालेजों के 36 हजार छात्र शामिल किए गए थे. इन में से दोतिहाई तो सही कोड ही नहीं लिख पाए. हैरत की बात महज 1.4 फीसदी छात्रों का सही कोड लिख पाना रही. यह बात या परिणाम चिंताजनक इस लिहाज से भी है कि सौफ्टवेयर प्रोग्रामिंग के मामले में दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन भारत पिछड़ रहा है.

इन इंजीनियरों का निर्माण और उत्पादन कैसेकैसे हो रहा है, इसे साबित करने के लिए धड़ल्ले से बंद होते इंजीनियरिंग कालेज आंकड़ों की शक्ल में सामने हैं. दोटूक कहा जाए तो हाट लुट गई, तो दुकानदारों ने बोरियाबिस्तर समेटना शुरू कर दिया है.

बंद हो रहे कालेज

इसी साल फरवरी के महीने में चौंका देने वाली एक खबर मध्य प्रदेश से यह आई कि 82 इंजीनियरिंग कालेज जल्द बंद होने जा रहे हैं. जबकि 23 कालेज पहले ही बंद हो चुके थे.

मध्य प्रदेश के तकनीकी शिक्षा मंत्री दीपक जोशी की मानें तो अब छात्रों का रुझान इंजीनियरिंग के प्रति कम हो चला है, इसलिए ये कालेज बंद होने के कगार पर हैं. इन में 60 फीसदी सीटें खाली पड़ी हैं.

इस बात का दूसरा पहलू यह है कि दरअसल अब इंजीनियरिंग कालेज पहले सा मुनाफा नहीं दे रहे, इसलिए संचालक इन्हें बंद करना चाहते हैं. पर यह बात सच है कि अब छात्रों की रुचि इंजीनियरिंग से हट रही है. इस की कोई सौपचास नहीं, बल्कि इकलौती वजह यह है कि इंजीनियरिंग की डिगरी नौकरी की गारंटी नहीं रही और कैंपस प्लेसमैंट का सुनहरा दौर आ कर, गुजर चुका है.

न केवल भोपाल या मध्य प्रदेश, बल्कि देशभर के तमाम प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों में अयोग्य शिक्षक पढ़ा रहे हैं वह भी बेहद मामूली पगार पर. भोपाल के एक ऐसे ही प्राध्यापक अवनीश की मानें तो उन्हें बमुश्किल 18 हजार रुपए महीना तनख्वाह मिलती है. जिस कालेज से अवनीश ने एमटैक किया, उस के एक डाइरैक्टर के कहने पर उसी में पढ़ाने की नौकरी कर ली जो कब तक चलेगी, अवनीश जैसे लाखों प्राध्यापकों को इस का पता नहीं.

पिछले साल एक बड़े खुलासे में उत्तर प्रदेश के 600 इंजीनियरिंग कालेजों में लगभग 20 हजार शिक्षक फर्जी पाए गए थे. साफ है कि इंजीनियरिंग कालेजों की खुमारी अब उतर रही है जिन की इस तरह की पोलपट्टियां वक्तवक्त पर उजागर होती रही हैं.

दिक्कत यह है कि इंजीनियरिंग की डिगरी का कोई विकल्प नहीं है. प्रबंधन पाठ्यक्रमों की स्थिति ठीक है क्योंकि उन में दाखिला स्नातक होने के बाद मिलता है और उन के संस्थानों की संख्या भी नहीं बढ़ रही है. हालांकि 12वीं के बाद छात्र अभी भी इंजीनियरिंग की डिगरी को ही बेहतर मानते हैं और 5-6 हजार रुपए महीने की नौकरी मिले तो उस से भी परहेज नहीं कर रहे.

इंजीनियरिंग डिगरी की ऐसी दुर्दशा की कल्पना कभी किसी ने नहीं की थी पर वह हो रही है तो छात्रों के सिर पर बोझ भी बनती जा रही है जिन्हें बीए की डिगरी या बीकौम करने के बाद 5-6 हजार रुपए महीने की नौकरी भी नहीं मिलती.

युवाओं के लिहाज से बात वाकई हताशा की है. नई सरकार भी रोजगार के पैमाने पर खरी नहीं उतरी है और वित्त मंत्री अरुण जेटली मंदी को वैश्विक बताते पल्ला झाड़ लेते हैं. हर साल 3,364 इंजीनियरिंग कालेजों से अभी भी 8 लाख इंजीनियर निकल रहे हैं. कैंपस के बाहर आ कर क्या करेंगे, यह उन्हें भी नहीं मालूम जो अब कहनेभर को इंजीनियर हैं, ठीक वैसे ही जैसे लाखों एलएलबी पास वकील हैं.

और सुधार के नाम पर सरकार नौकरी न दे पाए, यह ज्यादा चिंता या चर्चा की बात नहीं. पर इंजीनियरिंग शिक्षा में सुधार हो, तो शायद उस की गुणवत्ता भी सुधरे और इंजीनियरों को नौकरी भी मिले.

ऐसा नहीं है कि एआईसीटीई को इन बातों की चिंता नहीं है पर कैसी है, यह बात भी कम दिलचस्प नहीं है. पहले तो उस ने धड़ल्ले से इंजीनियरिंग कालेज खुलने दिए और अब धीरेधीरे उन्हें बंद करने की पहल कर रही है. साल 2015-16 में देशभर में 125 और 2016-17 में 122 इंजीनियरिंग कालेज बंद हो चुके हैं.

कालेजों में एआईसीटीई अब सीटों की संख्या 16 लाख से घटा कर 10-11 लाख पर समेटने की दिशा में काम कर रही है और यह काम वह चरणबद्ध तरीके से करने की बात कह रही है. लेकिन यह हल नहीं है, न ही इस से विसंगतियां दूर होने वाली हैं.

यह एक तरह से फिर से इंजीनियरिंग कालेज संचालकों को फायदा पहुंचाने वाली बात है जो बगैर एआईसीटीई की अनुमति के अपने कालेज एकदम बंद भी नहीं कर सकते. मूल बात या परेशानी इंजीनियरिंग की डिगरी की साख वापस दिलाना है, इस तरफ कोई पहल, कहीं से नहीं हो रही.   

फिल्मों से प्रेरित हैं ये टीवी सीरियल्स

क्या आप जानती हैं कि छोटे पर्दे की कुछ प्रसिद्ध धारावाहिक बॉलीवुड की फिल्मों से प्रेरित हैं? शायद नहीं. इसलिए आज हम आपको उन टीवी सीरियल्स के बारे में बता रहे हैं, जो फिल्मों से इंस्पायर्ड हैं.

पेशवा बाजीराव

रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ (2015) ने दर्शकों का दिल जीत लिया. इस फिल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली हैं. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छी चली. शायद यही कारण है कि इस फिल्म से प्ररित हो कर सीरियल (पेशवा बाजीराव) भी बनाया जा चुका है. यह सीरियल सोनी टीवी पर प्रसारित किया जाता है. अब देखते हैं यह सीरियल दर्शकों को कितना पसंद आता है.

सपना बाबुल काबिदाई

शाहिद कपूर औ अमृता राव की फिल्म ‘विवाह’ 2006  में रिलीज हुई थी. यह एक पारिवारिक फिल्म थी. फिल्म के रिलीज के अगले साल ही ‘सपान बाबुल का… बिदाई’ नाम से सीरियल बनाया गया, जो ‘बिदाई’ नाम से काफी पॉपुलर हुआ.

नागिन

कलर्स टीवी पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘नागिन’ टीवी का पॉपुलर शो है. इस सीरियल के दो सीजन बनकर खत्म भी हो चुके हैं. अब तीसरे सीजन की तैयारियां जोरो पर है. बता दें, यह सीरियल श्रीदेवी की फिल्म ‘नगिना’ (1986) से इंस्पायर है.

परदेस में है मेरा दिल

‘जरा तस्वीर से निकलकर सामने आ मेरी महबूबा’, इस गाने से कुछ याद आया. दरअसल, सुभाष घाई के निर्देशन में बनी ‘परदेस’ (1997) में शाहरुख खान और महिमा चौधरी थें. दोनों की जोड़ी को दर्शकों ने खूब सराहा. फिल्म ने भी अच्छी कमाई की. साल 2016 में इस फिल्म से इंस्पायर होकर स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘परदेस में है मेरा दिल’ बनाया गया.

जोधा अकबर

रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय की फिल्म ‘जोधा अकबर’ तो आपको याद ही होगी. इसी फिल्म से प्रभावित होकर साल 2013 में फिल्म के सेम टू सेम टाइटल से सीरियल भी बनाया गया. इस सीरियल ने जी टीवी का टीआरपी बढ़ा दिया था.

जमाई राजा

फिल्म ‘जमाई राजा’ में अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित और हेमा मालिनी मुख्य भूमिका में थीं. फिल्म काफी पॉपुलर रही. यही कराण है कि इससे इंस्पापर होकर एक नहीं, दो सीरियल बनाए गए. पहला सारियल ‘झिल मिल सितारों का आंगन होगा’ 2012 में टेलीकास्ट हुआ और दूसरा ‘जमाई राजा’ के नाम से 2014 में.

क्या हुआ तेरा वादा

डेविड धवन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘बीवी नंबर 1’ में सलमान खान, करिश्मा कपूर और सुष्मिता सेन की नोक झोंक और प्यार दर्शकों को खूब रास आया. करीब दस साल बाद 2012 में ‘क्या हुआ तेरा वादा’ नाम से सीरियल टेलीकास्ट हुआ, जो इस फिल्म से इंस्पयार था.

लव यू जिंदगी

करीना कपूर खान और शाहीद कपूर की फिल्म ‘जब वी मेट’ बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में शुमार है. इस फिल्म से ही इंस्पायर होकर साल 2011 में एक सीरियल बनाया गया, इसका नाम ‘लव यू जिंदगी’ था. यह सीरियल स्टार प्सल पर प्रसारित होता था.

दो हंसो का जोड़ा

यश राज बैनर तले बनी ‘रब ने बना दी जोड़ी’ (2008) पॉपुलर एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा की डेब्यू फिल्म थी. इसमें किंग खान भी अहम भूमिका में थें. फिल्म का कॉन्सेप्ट दर्शकों को काफी पसंद आया था. इस पर 2010 में ‘दो हंसो का जोड़ा’ नाम से सीरियल भी बनाया गया था.

हनीमून से लौट बेटी ने मां को बताई बेडरूम की पूरी बात, देखें वीडियो

आज समय बदल रहा है और साथ ही बदल रही है लोगों की सोच. अब लोग कोई भी बात बेझिझक कहने में विश्वास रखते हैं भले ही वो बात फिर सेक्स से जुड़ी हुई क्यों न हो.

दरअसल ‘खाने में क्या है’ नाम से यूट्यूब पर अपलोड किए गए इस वीडियो में हनीमून से लौटी एक लड़की मां को बेडरूम की छोटी-छोटी बातों को खुलकर बताती है, लेकिन एक नए अंदाज में. वीडियो सोशल साइट पर वायरल रहा है.

लड़की किचन में कूकर की सीटी लगने, कड़ाही में मसाले भुनने के जरिए अपने सेक्स लाइफ के बारे में मां को समझाती है. बेटी मां को अपने ऑर्गेज्म के बारे में भी बताती है.

ब्लश की ओर से जारी इस वीडियो में बेटी मेड के सामने ही मां से खुलकर बात करती है. वह मां को यह भी समझाती है कि महिलाओं को कैसे अपनी पसंद की चीजें करनी चाहिए. इस वीडियो की स्क्रिप्ट आकंक्षा सेदा और राधिका आनंद ने लिखा है, जबकि डायरेक्ट भी आकंक्षा ने ही किया है.

देखें पूरा वीडियो.

अब सस्‍ता लोन लेकर आप भी शुरू कर सकती हैं अपना कारोबार

आजकल देश की महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार कई प्रयास कर रही है. जिसमें देश की सरकारी और निजी क्षेत्र की बैंक भी अहम भूमिका निभा रही हैं. जिससे कि महिलाएं भी कारोबार के क्षेत्र में बढ़चढ़ कर हिस्‍सा लें सके. इनमें महिला वैभव लक्ष्‍मी, सिंड महिला शक्ति, मुद्रा स्‍कीम जैसी तमाम स्‍कीमों पर सस्‍ती दरों पर लोन मिल रहा है. इन योजनाओं को वुमन स्‍पेशल स्‍कीम्‍स के नाम से भी जाना जाता है. ऐसे में आइए जानें महिलाओं के लिए खास 5 योजनओं के बारे में.

मुद्रा स्‍कीम : महिलाओं के हित में यह मुद्रा स्‍कीम काफी फायदेमंद है. इस योजना का लाभ किसी भी बैंक से लिया जा सकता है. सरकार ने यह योजना ऑर्गनाइज्‍ड सेक्टर में कारोबार करने वाली महिलाओं को देखते हुए बनाया है. जिसमें महिलाओं को 50 हजार रुपए से 10 लाख रुपए का लोन मुहैया आसानी से बिना गारंटर के मिल जाता है.

वैभव लक्ष्‍मी : वर्तमान में बैंकों की ओर से महि‍लाओं के लि‍ए स्‍पेशल स्‍कीम चलाई जा रही हैं. जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा महिलाओं को ध्यान में रखकर वैभव लक्ष्‍मी स्कीम चला रही है. इसमें महिला उद्यमी को लोन के लिए बैंक में अपनी प्रोजेक्‍ट रिपोर्ट जमा करनी होती है. जिससे की बैंक उसे आसानी से लोन मुहैया करा सके. इस दौरान महिला को एक गारंटर देना होता है. इस स्‍कीम के तहत महिलाएं घर का सामान भी लोन के जरिए खरीद सकती हैं.

वी शक्ति : महिला कारोबारियों को लोन मुहैया कराने में विजया बैंक भी शामिल है. यह भी वी शक्ति स्कीम चला रही है. इस स्कीम के तहत महिलाओं का विजया बैंक का अकाउंट होना जरूरी है. इसके बाद 18 साल या उससे अधिक आयु की महिलाएं आसानी से बैंक में लोन के लिए अप्‍लाई कर सकती हैं. इस स्‍कीम के तहत लोन लेकर महिलाएं टेलरिंग, कैटरिंग, कैंटीन, अचार व मसाला बनाने जैसी उत्‍पादन का करोबार शुरू कर सकती है.

सिंड महिला शक्ति : सिंडिकेट बैंक सिंड महिला शक्ति नाम से एक स्‍कीम चल रही है. इस स्‍कीम के तहत हर साल करीब 20 हजार महिला कारोबारियों को इस बैंक से लोन दिया जाता है. इसके तहत बैंक पांच करोड़ का लोन कम इंटरेस्ट रेट पर देता है. इतना ही नहीं महिला सशक्‍तिकरण को देखते हुए इस लोन के साथ ही बैंक क्रेडिट कार्ड की भी सुविधा देता है. यह लोन 7 से 10 साल के लिए लिया जा सकता है.

वुमन सेविंग : समाज में महिला उद्यमियों की संख्‍या में इजाफा करने के लिए एचडीएफसी बैंक भी अहम भूमिका निभा रही है. इतना ही नहीं यह बैंक महिला कस्‍टमर्स को ईजी शॉप एडवांटेज कार्ड के साथ ही यहां पर लॉकर की सुविधा दे रही है. इस दौरान अगर महिलाएं 200 रुपये की खरीददारी पर एक रुपए का कैश बैक का फायदा पाती हैं. इसके अलावा 150 रुपये की खरीददारी पर एक रिवॉर्ड प्वाइंट का लाभ मिलता है.

जीवंत और अनंत रंगों की धरोहर गुजरात

रोमांच, रहस्य, जीवंत रंगों और अनंत सुंदरता से भरी सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए गुजरात की धरती का विशिष्ट स्थान है. अहमदाबाद की खास पहचान जहां एक तरफ वहां के म्यूजियम, पुरानी हवेलियां, आधुनिक वास्तुशिल्प और मल्टीनैशनल संस्कृति है वहीं राज्य के समुद्रीतटों पर मन को लुभाते रिजौर्ट और ब्लू लगून के साथ गुजरात में देश के उम्दा बीच हैं. गुजरात की खूबसूरती के बारे में सुन कर अब जब आप ने इन छुट्टियों में गुजरात में कुछ दिन गुजारने का मन बना ही लिया है तो हम आप को यहां के किसी रिजौर्ट में रहने की सलाह देंगे जहां रह कर आप पर्यटन का पूरा आनंद ले सकेंगे.

अहमदाबाद का एक रिजौर्ट स्वप्न सृष्टि रिजौर्ट आप को अपनी छुट्टियां एंजौय करने का पूरा मौका देगा. ग्रामीण व शहरी जीवनशैली के मिश्रण से बना यह रिजौर्ट हर उम्र के लोगों के लिए परफैक्ट है. यहां बने वाटर पार्क में आप स्नोफौल व मिसीसिपी राइड का आनंद उठा सकते हैं. यह लंबी वाटर राइड है. ठहरने के लिए यहां आप को अपनी जरूरत व जेब के अनुसार एसी रूम्स, कच्चे झोंपड़ीनुमा घर, रौयल टैंट हाउस और अनूठे ट्रक हाउस मिल जाएंगे, जहां आप शहरी व ग्रामीण दोनों जीवनशैलियों का पूरा आनंद उठा सकते हैं. गुजरात के निम्न दर्शनीय स्थलों को देख कर आप अपनी छुट्टियों को सफल बना सकते हैं.

अहमदाबाद

अहमदाबाद का ऐतिहासिक महत्त्व इस शहर के महात्मा गांधी से जुड़े होने के कारण भी है. आश्रम रोड पर बने साबरमती आश्रम, जिसे महात्मा गांधी का घर भी कहा जाता है, को देखने जाएं. देश की आजादी की लड़ाई में विशेष महत्त्व रखने वाले इस आश्रम में गांधीजी से जुड़ी वस्तुओं को मूल स्थिति में रखा गया है.

झूलती मीनारें

अहमदाबाद के उत्तर में 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इन मीनारों की खासीयत यह है कि इन पर जरा सा दबाव पड़ते ही ये हिलने लगती हैं लेकिन आप की जानकारी के लिए बता दें कि आप को इन मीनारों को हिलाने की इजाजत नहीं है. मीनारों को आप दूर से ही देख सकते हैं.

नल सरोवर

यह सरोवर अपने दुर्लभ जीवनचक्र के लिए प्रसिद्ध है. अहमदाबाद से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नल सरोवर का वातावरण विशेष प्रकार की वनस्पतियों, जलपक्षियों, मछलियों, कीटपतंगों और जीवजंतुओं को शरण प्रदान करता है. यहां सर्दियों में कई तरह के देशीविदेशी पक्षियों का जमावड़ा रहता है.

गिर अभयारण्य

गुजरात आएं तो गिर अभयारण्य देखना न भूलें. अहमदाबाद से 395 किलोमीटर दूर स्थित यह अभयारण्य एशिया का एकमात्र अभयारण्य है जहां सिंहों को अपने प्राकृतिक आवास में देखा जा सकता है. इस अभयारण्य में स्तनधारी, सरीसृप व अन्य जीवजंतुओं व पशुपक्षियों की कई जातियां देखने को मिलती हैं.

जामनगर

अहमदाबाद से 302 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जामनगर वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों, किलों, महलों के लिए खासा प्रसिद्ध है. यहां आ कर पर्यटक विलिंगटन क्रिसैंट, लखोटा किला, धूपघड़ी, जामसाहब महल, लखोटा संग्रहालय, रणमाल झील देखने जा सकते हैं.

कच्छ

भारत के सब से बड़े जनपदों में से एक कच्छ एक बंजर भूभाग है. कोई इसे दलदली भूमि तो कोई मरुभूमि कहता है. 45,652 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैले कच्छ को देखने के लिए पर्यटकों को यहां के शहर भुज पहुंचना होगा. अगर पर्यटक कच्छ की असली खूबसूरती देखना चाहते हैं तो रण उत्सव के दौरान जाएं. लोकगीत व संगीत आयोजनों से सराबोर इस उत्सव में पर्यटकों को गुजराती शिल्पकला की बेहतरीन वस्तुएं देखने व उन्हें खरीदने का अवसर प्राप्त होता है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि कच्छ में ‘लगान’ व ‘रिफ्यूजी’ जैसी कई बहुचर्चित हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुई हैं. कच्छ की सांस्कृतिक रंगों की छटा बड़े परदे पर ऐसा जादू बिखेरती है कि दर्शक स्क्रीन पर से अपनी नजरें नहीं हटा पाते.

मांडवी

अरब सागर से केवल 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मांडवी की तटीय सुंदरता व संस्कृति बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. मांडवी जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा भुज 50 किलोमीटर और नजदीकी रेलवे स्टेशन गांधीधाम 95 किलोमीटर दूर है. मांडवी का एक खास आकर्षण विजय विलास पैलेस है. स्थापत्यकला के इस अद्भुत पैलेस का मुख्य आकर्षण यहां के सुंदर उद्यान और फौआरे हैं. यहां एक ओर जहां सागर की अथाह जलराशि दिखाई देती है वहीं दूसरी ओर सैकड़ों पवनचक्कियां कतार में खड़ी नजर आती हैं.

गुजरात के चटख रंग

रंगीन सांस्कृतिक धरोहरों को अपने में समेटे गुजरात की धरती पर त्योहारों के दौरान गरबा नृत्य की धूम देखने और पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने को मिलता है. पर्यटक गुजरात आने पर यहां की समृद्ध हस्तशिल्प कला के अनूठे नमूने वंशेज, ब्लौक प्रिंट व मिरर वर्क की रंगबिरंगी साडि़यों की शौपिंग कर सकते हैं. वे पाटन से पटोला की साडि़यां खरीद सकते हैं. पाटन जाने के लिए पर्यटकों को अहमदाबाद से 125 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. 

कैसे जाएं

अहमदाबाद में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के अतिरिक्त राज्य में 10 घरेलू हवाई अड्डे हैं. अधिकांश एअरलाइंस राज्य को भारत के अन्य हिस्सों से जोड़ती हैं. रेलमार्ग द्वारा भी गुजरात देश के मुख्य शहरों से जुड़ा है. वडोदरा जंक्शन गुजरात का सब से व्यस्त रेलवे स्टेशन है. इस के अलावा अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, भुज व भावनगर अन्य महत्त्वपूर्ण स्टेशन हैं. सड़कमार्ग से भी गुजरात देश के सभी मुख्य शहरों से राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा है. पर्यटक गुजरात राज्य परिवहन निगम और प्राइवेट औपरेटर्स द्वारा चलाई जाने वाली बसों से अहमदाबाद व गुजरात के मुख्य शहरों तक पहुंच सकते हैं.

फ्रीज द एग : जब चाहें बच्चा पाएं

कर्नाटक की रहने वाली 35 वर्षीया एक महिला, जो दोनों पैरों से पोलियो की शिकार थी, उस ने सरकारी सेवा में कार्यरत एक पुरुष से शादी की. वह मां बनना चाहती थी, लेकिन कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. ऐसे में किसी ने उसे पद्मश्री डा. कामिनी राव के बारे में बताया, जो फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट हैं. वहां जाने पर उसे आईवीएफ प्रौसेस से बच्चा मिला. लेकिन डा. कामिनी ने उस के अंडे को ले कर उस के पति के स्पर्म के साथ उसे डैवलप किया. उस की जांच की और उसी की बच्चेदानी में उसे रोपित कर दिया. 9 महीने के बाद उसे स्वस्थ बच्चा मिला. उस महिला की खुशी का ठिकाना नहीं था.

बैंगलुरु के मिलन फर्टिलिटी की फाउंडर डाइरैक्टर, डा. कामिनी राव भारत की पहली ऐसी महिला डाक्टर हैं, जिन्होंने ‘ऐसिस्टैड रिप्रौडक्शन ट्रीटमैंट’ के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें साल 2014 में पद्मश्री की उपाधि से भी नवाजा गया है. उन्होंने ही दक्षिण भारत में पहले ‘सीमन बैंक’ की स्थापना की थी.

27 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहीं

डा. कामिनी के अनुसार, कोई भी महिला बांझ नहीं होती. समाज में यह एक टैबू है, जिस से

कई महिलाओं को गुजरना पड़ता है. कई महिलाओं को पति या परिवार वाले बांझ समझ कर घर से निकाल देते हैं. उस महिला को अगर सही इलाज मिले तो उसे बच्चा हो सकता है.

इस क्षेत्र में आने की वजह पूछे जाने पर वे बताती हैं कि विदेश में कई महिलाएं आ कर कहती थीं कि मुझे भारत लौट जाना चाहिए, क्योंकि वहां महिलाओं को बच्चा न होने पर प्रताड़ना सहनी पड़ती है. बस यही वह पल था जब मैं ने विदेश छोड़ कर भारत आने का फैसला कर लिया. भारत आ कर मैं ने ‘फ्रीज द एग’ नामक एक मुहिम चलाई है, जिस के अंतर्गत महिलाएं कम उम्र में भी एग्स फ्रीज कर अपनी आजादी का फायदा उठा सकती हैं और जब चाहे बच्चा पा सकती हैं. दरअसल, ऐसा कर मैं हर घर में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहती हूं.

कई फायदे

डा. कामिनी कहती हैं, ‘‘आज की अधिकतर महिलाएं जो अपने कैरियर को ले कर जागरूक हैं, वे देरी से शादियां करती हैं और अब मां बनना चाहती हैं तो उन्हें आईवीएफ का सहारा लेना पड़ता है. जिस में उन्हें एग डोनर का सहारा लेना पड़ता है. इस पद्घति में अगर उन्होंने 20 से 30 की उम्र में एग्स को फ्रीज किया है, तो एग्स की क्वालिटी अच्छी होती है. ये एग्स काफी सालों तक जिंदा रखे जा सकते हैं. इस के बाद वे उन एग्स का प्रयोग कर स्वस्थ बच्चा पा सकती हैं.’’

भ्रूण तैयार करने की पद्घति आसान नहीं होती. जब भी कोई महिला बच्चा चाहे तब फ्रीज किए गए अंडे को लैब में सामान्य तापमान में ला कर उस में स्पर्म को मिला कर 3 से 5 दिन में भ्रूण तैयार किया जाता है. फिर उसे ‘फीटस’ में डाल दिया जाता है.

2 या 3 हफ्ते के बाद उस की प्रैगनैंसी टैस्ट की जाती है. इस काम के लिए ऐक्सपर्ट हाथों की जरूरत होती है ताकि एक बार में ही प्रैगनैंसी हो जाए.

डा. कामिनी राव बताती हैं कि एग फ्रीजिंग का मूल्य पहले 6 महीने का क्व30 हजार है जबकि सालाना क्व1,000 देने पड़ते हैं. लेकिन अगर किसी महिला ने 40 साल की उम्र में भी मां बनने का निर्णय लिया है, तो वह 25 साल की उम्र में फ्रीज किए गए अंडे से मां बनेगी. महिला की उम्र भले ही 40 हो लेकिन उस के एग की उम्र 25 होगी.

वरदान से कम नहीं

मुंबई के वर्ल्ड औफ वूमन की आईवीएफ ऐक्सपर्ट, डा. बंदिता सिन्हा कहती हैं कि ‘एग फ्रीजिंग’ की प्रौसेसकैरियर ओरिएंटेड और किसी बीमारी से पीडि़त महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं. लेकिन महिलाएं इस तकनीक को और अपने पैसे को बरबाद न करें. जरूरत के अनुसार ही इसे अपनाएं, क्योंकि यह कृत्रिम तरीका है.

नैचुरल गर्भधारण की पद्घति हमेशा से ही अच्छी होती है. इस प्रक्रिया में अंडे को निकाल कर फ्रीज करने के लिए इन्वैंसिव पद्घति का प्रयोग कर कम तापमान में सालों तक प्रिसर्व किया जाता है, जो आसान नहीं होता. यह अधिकतर हाई प्रोफाइल वर्किंग महिलाएं और हीरोइनें ही अधिक करती हैं, क्योंकि कैरियर की वजह से उन की शादियां देरी से होती हैं और वे जल्दी मां नहीं बन सकतीं, इसलिए उन का यह फैसला उन के लिए सही रहता है. लेकिन एग फ्रीजिंग के लिए भी महिलाओं को यह निर्णय जल्द से जल्द लेनी चाहिए, क्योंकि ‘यंग एडल्ट’ के एग्स की क्वालिटी अधिक अच्छी रहती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ इस की क्वालिटी घटती जाती है.

यह प्रौसेस अधिकतर बड़े शहरों में ही उपलब्ध है, क्योंकि इस के लिए उत्तम क्वालिटी की लैब और ऐक्सपर्ट की जरूरत होती है.

एग फ्रीजिंग से पहले निम्न जांच जरूरी हैं

फर्टिलिटी लेवल, जनरल हैल्थ, इन्फैक्शन टैस्ट, जैनेटिक कोई डिसऔर्डर है या नहीं, कंपलीट फैमिली ब्लड टैस्ट आदि किसी फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट से की जानी चाहिए.

इस तरह की आधुनिक तकनीक की सुविधा से किसी भी महिला के लिए आज मां बनना किसी भी उम्र में आसान हो गया है. लेकिन इस का प्रयोग समय रहते करना आवश्यक है ताकि मां बनने के बाद बच्चे की सही परवरिश की जा सके.

किसी ने नहीं सुनी बॉलीवुड की ये बातें

फिल्मे देखना तो सभी को पसंद होता है, आपको भी बेशक पसंद ही होगा. लेकिन कम ही लोग हैं जो फिल्में देखते तो हैं पर भारतीय सिनेमा के बारे में पूरी जानकरी रखते हैं. तो हम आज आपको बॉलीवुड से जुडी कुछ ऐसी ही खास बातें बताने जा रहे हैं, जिन्हें आपने शायद ही पहले कहीं पढ़ा होगा या सुना होगा.

सबसे ज्यादा फिल्मों का रिकार्ड

सिनेमा जगत  में बॉलीवुड ही एक ऐसा स्थान है, जहां विश्वभर में बनने वाली कुल फिल्मों में, सबसे अधिक फिल्मो का निर्माण होता है. इसका मतलब दुनिया में सबसे अधिक फिल्मों का निर्माण भारत में ही होता है.

फिल्मों से पहले टॉकीज में ही लैब असिस्टेंट

हम बात कर रहे हैं उश दौर के महानायक अशोक कुमार की. हम आपको बता देना चाहते हैं कि अशोक कुमार फिल्मो में आने से पहले बॉम्बे टॉकीज में लैब असिस्टेंट थे.

16 साल की उम्र में डेब्यू और शादी

हम आपको बता रहे हैं अभिनेत्री डिंपल कपाडिया के बारे में. डिंपल कपाडिया ने अपने करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में की थी और इसी उम्र में उन्होंने राजेश खन्ना से शादी की थी.

बॉलीवुड के नाम है सर्वाधिक अवार्डस का रिकार्ड

हिन्दी फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ को सबसे ज्यादा अवार्ड मिले हुए हैं. इस फिल्म को पूरे 92 मिल चुके हैं. इस फिल्म का ये रिकार्ड इसका नाम ‘Guinness Book of World Records’ में भी दर्ज है.

कल्की केकलां

क्या आप जानते हैं कि कल्की केकलां के परदादा ने पेरिस के एफिल टावर के निर्माण के लिए कार्य किया था उन्होंने स्टेच्यू ऑफ लिबरटी के लिए भी कार्य किया था.

दो इंटरवल वाली फिल्म

बॉलीवुड की फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ पहली ऐसी फिल्म थी जिसमे 2 इंटरवल हुए हैं.

तीन भाषाओं में एक फिल्म को फिल्माना

आपने फिल्मों की डबिंग होने के बारे में तो सुना होगा, पर आपको जानकर हैरानी होगी कि बॉलीवुड में ‘मुगले आजम’ एक ऐसी फिल्म थी, जिसे तीन भाषाओं में फिल्माया गया था. इसे हिंदी, इंग्लिश और तमिल भषाओं में फिल्माया गया था.

एन्ना रासकल्ला

जिसे अभिनेता रजनीकांत का सबसे फेमस समझा जाने वाला डायलॉग ‘एन्ना रासकल्ला’ है. पर हैरानी की बात ये है कि उन्होने कभी इसे कहा ही नहीं है.

13 साल की उम्र में मां का रोल

मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी ने केवल 13 साल की उम्र में, एक फिल्म में रजनीकांत की मां का किरदार निभाया था.

अनचाहे बालों से परेशान हैं तो ध्यान दें

आपके लिए तो ये रोज की एक आम समस्या है, जिसे शायद केवल आप ही समझ सकती हैं. बिग बौस हेयर सैलून ऐंड स्पा के हेयर स्टाइलिस्ट मिलन भाटिया के अनुसार प्राकृतिक तरीके से भी अनचाहे बालों को हटा सकती हैं :

– इसके लिए सबसे पहले चीनी, शहद और नीबू के रस को मिला कर थोड़ा गरम करें. जब यह मिश्रण गाढ़ा होने लगे तो थोड़ा सा पानी मिला दें. अब इस मिश्रण को ठंडा होने दें.

इतना होने के बाद जब यह हलका गरम रह जाए तो स्पैतुला की मदद से इस की एक पतली परत शरीर के उस हिस्से पर लगाएं जहां से बाल हटाने हैं. फिर उस हिस्से को कपड़े से कवर कर दबाएं. अब इसे हेयरग्रोथ की उलटी दिशा में खींचें. बाल निकल जाएंगे.

– 2 चम्मच कच्चे पपीते के पेस्ट में 1/2 चम्मच हलदी पाउडर मिलाएं. इस पेस्ट को 15-20 मिनट तक चेहरे पर लगा रहने दें. फिर हलके हाथों से स्क्रब करते हुए कुनकुने पानी से धो लें.

यह पूरी प्रक्रिया सप्ताह में 1 से 2 बार नियमित दोहराने से अनचाहे बालों से छुटकारा मिल जाएगा.

संजय की वो हरकत भूला उनके ही संग काम करेंगी श्रीदेवी!

श्रीदेवी ने अपने समय में बॉलीवुड में लगभग सभी बड़े सितारों के साथ काम किया है. लेकिन संजय दत्त के साथ उन्होंने केवल एक फिल्म की. श्रीदेवी ने कसम खाई थी कि वो संजय के साथ कभी काम नहीं करेंगी लेकिन लगता है अब उन्होंने अपनी कसम तोड़ने का फैसला कर लिया है.

श्रीदेवी की संजय दत्त के साथ ये तकरार सालों पुरानी है. वाकया है साल 1983 का जब श्रीदेवी ‘हिम्मतवाला’ की शूटिंग कर रही थीं. इस फिल्म में उनके साथ जितेंद्र हीरो थे. बाकी सभी की तरह संजय दत्त भी श्रीदेवी के फैन हुआ करते थे. इसलिए उनसे मिलने के चक्कर में वो इस फिल्म के सेट पर पहुंच गए.

संजय दत्त पर श्रीदेवी से मिलने का जूनून इस कदर सवार था की वो नशे की हालत में ही फिल्म सेट पर पहुंच गए. संजय श्रीदेवी को ढूंढने लगें और जब वो नहीं मिलीं तो उन्होंने ऐसा कदम उठाया जिसने श्रीदेवी को हिलाकर रख दिया.

संजय नशे में ही श्रीदेवी की वैनिटी वैन में जा घुसे. श्रीदेवी, संजय को इस हालत में अपनी वैन में देख कर घबरा गईं. उन्हें बिलकुल अंदाजा नहीं था कि कोई अचानक से उनकी वैन में यूं आ जाएगा.

इस घटना के बाद श्रीदेवी ने संजय दत्त के साथ कभी न काम करने की कसम खाई थी लेकिन मजबूरन उन्हें महेश भट्ट की फिल्म ‘गुमराह’ साइन करनी पड़ी. श्रीदेवी ने इस फिल्म से संजय को निकलवाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो उसमें सफल न हो पाईं. श्रीदेवी ने किसी तरह ये फिल्म पूरी की.

‘गुमराह’ जबरदस्त हिट रही बावजूद इसके श्रीदेवी ने कभी संजय के साथ दोबारा काम नहीं किया. मगर अब खबरों की मानें तो निर्देशक अभिषेक वर्मन ने अपनी अगली फिल्म के लिये संजय दत्त और श्रीदेवी को चुना है.

अब 25 साल बाद ये जोड़ी एक बार फिर दिख सकती है. फिलहाल निर्देशक से लेकर कलाकरों ने इस बात पर चुप्पी साध रखी है.

2 स्टेट्स जैसी फिल्म बना चुके अभिषेक अब अपने नए प्रोजेक्ट में संजय दत्त और श्रीदेवी के साथ-साथ वरुण धवन, आलिया भट्ट और सोनाक्षी सिन्हा को लेकर आने वाले हैं. फिलहाल वह फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं.

खबर है कि फिल्म की शूटिंग साल 2018 में शुरू होगी. फिलहाल संजय दत्त अपने लेटेस्ट प्रोजेक्ट भूमि में बिजी हैं. वहीं श्रीदेवी की फिल्म ‘मॉम’ हाल ही में रिलीज हुई है. यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा परफॉर्म कर रही है.

करण जौहर के पिता ही निर्माता थे संजय दत्त और श्रीदेवी स्टारर फिल्म “गुमराह” के और फिल्म का निर्देशन किया था महेश भट्ट ने जो आलिया भट्ट के पिता है.

इन बायोपिक फिल्‍मों का भी है बेसब्री से इंतजार

बॉलीवुड में इन दिनों बायोपिक बनाने का एक चलन शुरु हो गया है. सचिन तेंदुलकर की बायोपिक, महेन्‍द्र सिंह धोनी की बायोपिक मिल्‍खा सिंह की बायोपिक. जिन्‍हें दर्शकों ने खूब पसंद भी किया. महावीर सिंह फोगाट के जीवन पर बनी दंगल ने तो सफलता के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिये. ऐसे में हम आपको उन पांच बायोपिक के बारे में बताने जा रहे हैं जो साउथ के लोगों पर बनीं है और जल्‍द ही बड़े पर्दे पर नजर आने वाली हैं.

मरियप्‍पन थंगावेलू

रियो जे डिनेरियो में भारत को स्‍वर्ण पदक दिलवाने वाले परियप्‍पन थंगावेलू की बायोपिक जल्‍द ही बड़े पर्दे पर दर्शकों के बीच होगी. फिल्‍म का पहला पोस्‍टर खुद शाहरुख खान ने रिलीज किया है. मरियप्‍पन 21 साल के हाई जंपर हैं. मरियप्पन तामिलनाडु के रहने वाले हैं. मरियप्‍पन ने ओलंपिक में भारत को स्‍वर्ण पदक दिलवाया था.

जयललिता

तमिलनाडु की पूर्व दिवंगत मुख्‍यमंत्री जे जयललिता के जीवन पर जल्‍द ही बायोपिक बड़े पर्दे पर नजर आयेगी. जयललिता की बायोपिक में राम्‍या और त्रिशा मुख्‍य किरदार में नजर आ सकती हैं. यह फिल्‍म नेशनल अवार्ड विनिंग तुलुगू फिल्‍ममेकर दसारी नारायण राव जिन्‍हें अपनी शानदार फिल्‍मों के लिये जाना जाता है.

उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी

उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी एक क्रांतिकारी थें, जिन्‍होंने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. नरसिम्‍हा रेड्डी की बायोपिक में चिरंजीवी उनका किरदार निभायेंगे. उयालवाड़ा नरसिम्हा रेड्डी को भारत का पहला क्रांतिकारी भी कहा जाता है. 18 फरवरी 1847 में उन्‍हें फांसी पर लटका दिया गया था.

कमला दास

कमला दास एक महान मलयालम लेखिका थीं जिनपर जल्‍द ही बायोपिक बनने वाली है. फिल्‍म का नाम अमी है. फिल्‍म में कमला दास का रोल विद्या बालन निभा सकती है.

सावित्री

एक्‍ट्रेस सावित्रा का जन्‍म 4 जुलाई 1936 को हुआ था. 1950 में उन्‍होंने तमिल तेलुगू ड्रामा समरसम से अपनी करियर की शुरुआत की. उन्‍होंने कई फिल्‍मों में काम किया. सावित्री की बायोपिक में उनका किरदार कीर्ति सुरेश निभा सकती हैं. सवित्री साउथ फिल्‍मों की सुपरस्‍टार थीं.

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