फिल्मों में ये सीन करने से डरते हैं आमिर

बॉलीवुड में ऐसे कई सितारे हैं जो फिल्मों में अपनी शर्त पर ही काम करते हैं और उसके आगे वो किसी की नहीं सुनते. किसी सितारे का नो किस क्लॉज होता है तो किसी का कुछ. कई बार इन सितारों के आगे निर्माता-निर्देशक को झुकना पड़ता है और उनकी शर्तों को मानना भी पड़ता है.

इन्हीं सितारों में से एक सितारा आमिर खान भी हैं. आमिर दो दशक से भी ज्यादा लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री में हैं. बॉलीवुड में 100, 200 और 300 करोड़ क्लब की शुरूआत करने का श्रेय आमिर को ही जाता है. लेकिन एक चीज है जिससे आमिर को बहुत डर लगता है और झिझक होती है. वह कभी इस चीज को अपने फिल्म में नहीं करना चाहते हैं.

आमिर ने आज तक अपनी हर फिल्म में इस चीज से परहेज किया है. और जब भी वो कोई फिल्म साइन करते हैं तो इस बात का जरूर ख्याल रखते हैं कि अपनी शर्त फिल्म निर्देशक और निर्माता को पहले ही बता देते हैं.

दरअसल आमिर अपनी किसी भी फिल्म में लो एंगिल शॉट नहीं रखते और इस बारे में वो फिल्ममेकर को पहले ही बता देते हैं.

यहां तक कि उन्होंने निर्देशकों को खास हिदायत दे रखी है कि उन्हें कभी भी लो एंगिल में ना शूट किया जाए. हम आपको बता दें की लो एंगिल शॉट वो शॉट है जिसमें कैमरे के एक खास एंगिल के जरिए कलाकार को लंबा या ज्यादा प्रभावशाली दिखाया जाता है.

आमिर को लो एंगिल शॉट बिल्कुल भी पसंद नहीं है. अगर गौर किया जाए तो उनके अब तक के करियर में किसी भी फिल्म में आमिर का लो एंगिल शॉट देखने को नहीं मिलता.

ताज्जुब की बात है कि जिस एक्टर को फिल्म के लिए बोल्ड सीन से लेकर किस सीन करने में कोई एतराज नहीं उसे लो एंगिल शॉट से इस कदर झिझक होती है.

आपके लिए हैं ये बिजनेस आइडिया

आपके अगल-बगल ऐसी तमाम महिलाएं होती हैं जो अपने जीवन में एक तरफ जहां घर संभालती हैं तो दूसरी ओर अपना बिजनेस या ऑफिस का काम करती हैं. क्या आप भी अपना खुद का छोटा सा बिजनेस शुरु करना चाहती हैं, पर अन्य महिलाओं की तरह आपको भी ये समझ नहीं आता कि आप इसकी शुरुआत कैसे करेंगी.

यहां हम आपको बताएंगे कि महिलाएं अपने लिए छोटा बिजनेस कैसे शुरु कर सकती हैं? आप एक अच्छा आंत्रपेन्योर बन कर आसानी से घर से काम कर सकती हैं. इसकी शुरूआत बड़े कारोबार से नहीं बल्कि छोटे काम से भी की जा सकती है. नीचे हम आपको ऐसे ही कुछ विकल्पों के बारे में बता रहे हैं.

बुटीक

आमतौर पर भारतीय घरों में लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई का हुनर सिखाया जाता है. हालांकि शहर में बुटीकों की कमी नहीं है. लेकिन दूसरों से अलग दिखने के लिए आप आपकी बुटीक की ओर रुख कर सकती हैं.

ब्यूटी पार्लर

इस काम को शुरू करने के लिए इसे अच्छे से सीखना बहुत ज़रूरी है. यदि पैसों कि कमी के कारण आप पार्लर नहीं खोल सकती तो आप होम सर्विस दे सकती हैं. शादी के सीजन में पार्लर का काम करने वालों की अच्छी कमाई हो जाती है.

फिटनेस सेंटर, जैसे जिम या योग

यह काम बिना निवेश के नहीं खोला जा सकता. इस व्यस्त जीवन में फिट रहने के लिए जिम जाना, योग करना या कसरत करना बहुत अहम हो गया है. यदि आप स्वयं योग या एरोबिक्स ट्रेनर हैं तब क्लास संभालना आपके लिए आसान होगा. ड़ायट की जानकारी सही सलाह देने में काम आएगी.

कंसल्टेंसी

आपका तजुर्बा और आपके कॉन्टेक्टस आपको इस फील्ड में खड़ा कर सकते हैं. आज का सर्विस सेक्टर पहले से बहुत बदल गया है. हर सेक्टर की अपनी जरूरते और काम करने का ठंग है. यदि आप सही पद पर सही व्यक्ति का चुनाव करने में सक्षम है. तब आप इस कैरियर विकल्प के साथ आगे बढ़ सकती हैं.

ऑनलाइन व्यापार

इस विकल्प ने खरीद-बेच के कई द्वार खोल दिए हैं. यदि आप छोटा-मोटा व्यापार करती हैं तो ऑनलाइन उसे बड़ा बना सकता है. ऑनलाइन पर आप हस्तशिल्प वस्तुओं भी बेच सकते हैं. यदि आप फ्रीलान्सिंग के बारे में सोच रही हैं, तब लेखन, ग्राफिक डिजाइनिंग, लेखांकन, वर्चूअल असिस्टन्ट व अनुवादक का अनुभव आपके काम आ सकता है. इसके लिए आपको सही फ्रीलान्सिंग वेबसाइट या एजेंसी से संपर्क करना होगा.

रेस्टोरेंट

क्या मेहमाननवाजी के दौरान आपके खाने की तारीफ होती है? क्या लोग आपके खाने की रेसपी मांगते हैं? अगर आपके हाथों में ये जादू है तो आप एक रेस्तोरां या कैफे की मालकिन बन सकती हैं. अथवा बेकरी के उत्पादों को ऑर्डर पर बनाकर बेच सकती हैं.

क्रेच

बच्चों को स्त्रियों से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता. यदि आपको बच्चों के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता है. उनकी मासूम और प्यारी बातें आपके मन को खुश करती हैं. ऐसे में क्रेच घर की जिम्मेदारियों के साथ अन्य ज़रूरतों को पूरा करने का अच्छा तरीका है.

गिफ्ट शॉप

यह व्यापार बिना किसी अनुभव के शुरू किया जा सकता है. इस व्यापार की नीव हैं, आपकी दुकान की वस्तुएं. अपनी दुकान को अनोखी और सुंदर वस्तुओं से सजाएं ताकि इनकी खोज ग्राहकों को आपकी दुकान तक ले आए.

इंटीरियर डेकोरेशन शॉप

आज एक्सटीरियर से ज्यादा खर्चा घर के इंटीरियर पर किया जाता है. जिसकी वजह से मकान की लागत बढ़ जाती है. लैप से लेकर शो पीस तक की चीजें आपके घर के आकार को बदलने की क्षमता रखती हैं. इंटीरियर डिजाइनिंग की समझ और रियल एस्टेट कॉन्टेंक्टस आपके व्यापार को फायदेमंद बना सकते हैं.

पेट शॉप

पालतू जानवर को घर के सदस्य की तरह रखा जाता है. उसे एक नाम दिया जाता है. उसे साफ सुथरा रखने के अलावा उसकी जरूर से जुडी हर चीज़ को अहमियत दी जाती है. फिर चाहे ये चीज़ें उसका खाना हो या गले में बंधा पट्टा.

हॉलीवुड की पहली भारतीय अभिनेत्री ‘मर्ले ओबरॉन’

हाल ही में हुए “89वे एकेडमी अवार्डस : ऑस्कर 2017” में एक भारतीय कलाकार के रूप में ‘बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल’ के लिए नॉमिनेट होकर देव पटेल ने कारनामा कर दिखाया है. इससे पहले भी साल 1982 में अभिनेता बेन किंगस्ले जो कि असल में भारतीय मूल के कलाकार हैं, उन्होंने ऑस्कर जीतकर, भारतीयों का गौरव बढ़ाया था, पर बेन को लेकर ऑस्कर की बात यहीं खत्म नहीं हुई, साल 1991, 2000 और 2003 में वे ऑस्कर में नॉमिनेट हुए.

आप में से बहुत कम लोगों को ये बात मालूम होगी कि 30 के दशक में ऑस्कर में नॉमिनेट होने वाली भारतीय मूल की एक और अदाकारा थीं ‘मर्ले ओबरॉन’. साल 1911 में मुंबई में जन्मी मर्ले, अपने जन्म के 17 सालों के बाद साल 1928 में इंग्लैंड चली गईं. वहां उन्हें फिल्‍ममेकर अलेक्‍जेंडर कोर्डा की फ़िल्म ‘द प्राइवेट लाइफ ऑफ हेनरी 8’ में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला. बाद में कोर्डा और उन्होंने शादी भी कर ली.

मर्ले का वास्‍तविक नाम एस्‍टले थॉम्‍पसन था, जिसे फिल्म निर्देशक अलेक्‍जेंडर ने फिल्‍म में उन्हें शामिल करते समय बदल दिया था. और बस देखते ही देखते सिनेमा जगत में एस्‍टले, मर्ले के नाम से मशहूर हो गईं. उस समय की बातों पर ध्यान दें तो, मर्ले हॉलीवुड फिल्‍म में काम करने से पहले भी कोलकाता में किसी ड्रामेटिक सोसायटी में काम कर चुकी थीं.

अगर आप इतिहास उठाकर देखेगे तो, उन दिनों पश्‍चिम में रंगभेद का मुद्दा इतना ज्‍यादा प्रभावशाली था कि किसी भी दूसरे रंग के लोगों को फिल्मों में आने नहीं दिया जाता था और मर्ले को हॉलीवुड में बने रहने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़ा था. उस समय रंगभेद के चलते फिल्मों में मिक्स्ड रेस की किसी महिला का होना स्वीकार्य नहीं था. उस समय फैले नस्लवाद से ये तो स्पष्ट था कि मर्ले की एंग्लो-इंडियन पृष्ठभूमि, उनके एक स्टार बनने की राह में एक बहुत बड़ी बाधा थी. इसलिए सारी परिस्थितियों को सामने रखकर उन्होंने ‘तस्मानिया’ को अपने नए जन्मस्थान के रूप में चुन लिया था क्योंकि वो अमेरीका और यूरोप से बहुत दूर भी था और उस समय आमतौर पर वहां के लोगों को ब्रिटिश ही माना जाता था. बाद में उन्होंने कहानी में ये भी सम्मिलित किया कि उनके पिता के साथ हुए एक दुर्घटना के बाद वे तस्मानिया से बोम्बे चली आईं थीं और इसलिए वे भारत में रह रही थीं. कई बार मर्ले बिना मेकअप के कैमरे के सामने आने से साफ इन्कार कर दिया करती थीं. ब्रिटिश इंडियन होने के कारण वे अंग्रेजों जितनी गोरी नहीं दिखती थीं और इसलिए अपने करियर को लेकर वे कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थीं.

वैसे तो उनकी पहली फिल्म ‘द प्राइवेट लाइफ ऑफ हेनरी 8’ में भी उन्होंने बहुत प्रंशसा पायी थी, लेकिन इस फिल्म के बाद भी मर्ले ने कई बेहतरीन हॉलीवुड फिल्‍मों में काम किया. जिनमें से साल 1939 में रिलीज हुई फिल्म ‘वथरिंग हाइट्स’ और 1945 में आई ‘ए सांग टू रिमेंबर’ शामिल हैं, पर मर्ले ओबरॉन को साल 1935 में आई उनकी फिल्‍म ‘द डार्क एंगल’ के लिए ऑस्कर में सर्वश्रेष्‍ठ सहायक अभिनेत्री के तौर पर नामांकित किया गया था. हालांकि वे ये पुरस्‍कार जीत नहीं पायी थीं, पर बतौर पहली भारतीय अभिनेत्री, ऑस्कर में अपना स्थान बना पाने का खिताब उन्होंने अपने नाम कर लिया था.

नस्लीय रेखाओं को धुंधला कर देने के लिए ओबरॉन एकमात्र ही ऐसी अभिनेत्री थी जो उस युग में काम कर रही थी. हॉलीवुड के इतिहास में अभिनेत्री ओबरॉन शायद बदले हुए वंश का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है. मर्ले ओबरॉन 1973 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंटरवल’ में आखिरी बार नजर आई थीं. साल 1979 में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी.

पांच फिल्मों का मुरब्बा है फिल्म ‘राब्ता’

सैफ अली खान के साथ मिलकर ‘इलूमिनाटी’ प्रोडक्शन कंपनी के तहत ‘कॉकटेल’, ‘लव आज कल’, ‘गो गोवा गॉन’ सहित कई फिल्मों का निर्माण करने के बाद जब दिनेश वीजन ने सैफ अली खान का साथ छोड़कर खुद स्वतंत्र रूप से फिल्म निर्माण व निर्देशन के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया था, तब उम्मीद जगी थी कि वह कुछ बेहतर काम करेंगे.

लेकिन अफसोस की सैफ अली खान से अलग होते की दिनेश वीजन ने अपनी होम प्रोडक्शन कंपनी ‘मैडॉक फिल्मस’ के तहत जिस फिल्म ‘राब्ता’ का निर्माण व निर्देशन किया है, वह तो सारे चोरों को शर्मसार करने वाली है. दिनेश वीजन ने फिल्म ‘राब्ता’ का निर्माण टीसीरीज के भूषण कुमार के साथ मिलकर किया है जिसमें सुषांत सिंह राजपूत और कृति सैनन की मुख्य भूमिका है.

जब से फिल्म ‘राब्ता’ का ट्रेलर बाजार में आया है, तब से बॉलीवुड में चर्चाएं हैं कि दिनेश वीजन ने एक दो नहीं बल्कि पांच फिल्मों की कहानियों व दृश्यों को मिलाकर एक नई फिल्म ‘‘राब्ता’’ बना दी है.

फिल्म ‘‘राब्ता’’ के ट्रेलर को देखकर फिल्म की कहानी जो समझ में आती है, उसके अनुसार आधुनिक रोमांटिक कहानी के साथ बीते दौर के राजपरिवार की कहानी भी है. यह कहानी समझ में आते ही हर आम इंसान को अक्टूबर में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ की याद आ रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में भव्यता थी, जबकि ‘‘राब्ता’’ में भव्यता नहीं है.

तो वहीं कुछ लोगों का दावा है कि ‘‘राब्ता’’ का निर्माण तो दक्षिण भारत की बहुचर्चित फिल्म ‘‘मगधीरा’’ की कहानी चुराकर की गयी है. एस एस राजामौली निर्देशित फिल्म ‘मगधीरा’ की कहानी चार सौ वर्ष पुरानी है. इसमें राजकुमारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी नायक लेता है. बीच में विलेन आता है. प्यार व राजपाट दिन जाता है. सदियों बाद दोनों फिर मिलते हैं. दक्षिण में यह फिल्म तेलगू, तमिल व मलयालम में बन चुकी है.

इसके हिंदी रीमेक अधिकार साजिद नाडियावाला के पास है. मगर पिछले पांच वर्ष में कई कलाकार व कई निर्देशक आए व गए, पर फिल्म नहीं बन सकी. परिणामतः ‘राब्ता’ का ट्रेलर देखकर साजिद नाडियावाला भी अंचेभे में हैं.

कुछ लोग फिल्म ‘राब्ता’ का ट्रेलर देखकर इसे सतीश कौशिक और निर्देशक संजय कपूर के साथ अभिनय से सजी फिल्म ‘प्रेम’ की याद आ रही है. इस फिल्म में दो जन्मों की प्रेम कहानी थी. जबकि कुछ लोग इसे नब्बे के दशक की फिल्म ‘‘जानी दुश्मन’’ से चुराई गयी कहानी बता रहे हैं.

तो वहीं फिलम ‘राब्ता’ 8 के झरने के दृश्यों की तुलना एस एस राजामौली की फिल्म ‘‘बाहबुली’’ के झरनों के दृश्यों के साथ कर रहे हैं. यानी कि दिनेश वीजन इतने महान निर्देशक हैं कि उन्हें एक नहीं बल्कि पांच पांच फिल्मों की कहानी व उन फिल्मों के दृश्य तक अपनी नई फिल्म ‘‘राब्ता’’ के निर्माण के लिए चुराने पड़े.

अब बॉलीवुड के बिचौलिए दावा कर रहे हैं कि यदि दिनेश वीजन ने चोरी करने के साथ अपना दिमाग सही ढंग से नहीं लगाया होगा, तो यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पानी नहीं मांगेगी. खैर फिल्म के प्रदर्शन का तो इंतजार करना ही पड़ेगा.

पूजा बत्रा की पहली हॉलीवुड फिल्म के निर्माता मूलतः भारतीय

लंबे समय से खबर गर्म है कि मध्यप्रदेश के महू की रहने वाली अभिनेत्री पूजा बत्रा ने लॉस एंजिल्स में ‘‘कास्टिंग एंड फिल्म स्टूडियो’’ के मालिक सनी वछेर की हॉलीवुड फिल्म ‘‘वन अंडर सन’’ में एस्ट्रोनेट कैथरीन वोस का मुख्य किरदार निभाया है. पर अब पता चला है कि पूजा बत्रा की इस हॉलीवुड फिल्म के निर्माता अमरीकन नहीं बल्कि एक भारतीय और वह भी इंदौर निवासी सनी वछेर हैं, जो कि लंबे समय से लांस एंजिल्स में बसे हुए हैं. यह राज उस वक्त उजागर हुआ, जब पूजा बत्रा के साथ सनी वछेर भी इंदौर यानी कि भारत पहुंचे. वास्तव में पूजा बत्रा ने सनी को बताया कि वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए भारत जा रही हैं, तो सनी को अपनी मातृभूमि की याद आ गयी और वह भी पूजा बत्रा के साथ भारत आ गए. सनी का दावा है कि वह अपने बचपन की यादों को ताजा करने के लिए इंदौर आए हैं.

इंदौर में जन्मे और इंदौर के स्कूल में पढ़े लिखे सनी वछेर के पिता को जब अमरीका के कैलीफोर्निया शहर में नौकरी मिली, तो सनी वछेर भी अपने पिता के साथ अमरीका पहुंच गए. वहां पर उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की. फिर लघु व विज्ञापन फिल्में बनाना शुरू किया. अब सनी वछेर ने पहली बड़ी हॉलीवुड फीचर फिल्म ‘‘वन अंडर सन’’ का निर्माण किया है, जिसके निर्देशक द्वय विंसेंट टान और रियाना हार्टनी हैं. रंगभेद के खिलाफ बात करने वाली इस फिल्म में मुख्य भूमिका पूजा बत्रा ने निभायी है.

सूत्रों के अनुसार सनी वछेर के भारत आने के पीछे असली मकसद अपनी फिल्म के भारत में प्रदर्शन की संभावनाओं को तलाशना है. इसके अलावा अब वह भारत आकर फिल्म निर्माण करने की संभावना भी तलाश रहे हैं. यह एक अलग बात है कि इस बात को पूजा बत्रा या सनी वछेर अभी स्वीकार नहीं कर रहे हैं. पर सनी वछेर का मानना है कि वह बॉलीवुड फिल्म बनाने के बारे में सोच सकते हैं.

गर्भावस्था में फायदा करता है जीरे का पानी

जीरा कई बीमारियों का अंत करता है. जीरा खाने के स्वाद को तो बढ़़ाता ही है साथ ही यह गर्भवती महिलाओं के लिए भी यह बहुत फायदेमंद और स्वास्थवर्धक होता है. जीरे में एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन ‘सी’ और ‘ए’ की मात्रा भी अधिक होती है जो गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत ही लाभकारी होती हैं. हम आपको बता रहे हैं प्रेगनेंसी में जीरे वाले पानी को पीने के फायदे.

यहां सबसे पहले आपको ये जानना होगा कि जीरे वाले पानी को बनाने का सही तरीका क्या होता है, जिससे ये गर्वावस्था के दौरान आपको लाभ पहुंचा सके.

एक चम्मच जीरे को एक लीटर पानी में उबाल लें और जब ये ठंडा हो जाए तो इसे छानकर किसी बोतल या जार में भर कर फिर इसका इस्तेमाल करें.

आइये हम आपको बताते हैं गर्भावस्था में जीरे का पानी, पीने के क्या क्या फायदे हैं…

एनीमिया की समस्या से बचाता है

गर्भ के दौरान महिलाओं को अक्सर खून की कमी हो जाती है और उनका हीमोग्लोबिन भी कम हो जाता है. ऐसे में जीरे वाला पानी पीना उनके लिए फायदेमंद होता है. क्योंकि जीरे में उचित मात्रा में आयरन होता है.

मां और बच्चे, दोनो की सेहत का रखे ख्याल

जीरे का पानी पीने से गर्भवती मां और उनके बच्चे की सेहत के लिए अच्छा होता है. दोनो को स्वाद के साथ, ताकत भी दोता है. पानी की आवश्यकता को नियमित रूप से पूरा करते रहता है.

गैस खत्म करता है

जीरे का पानी पीने से गर्भवती महिलाओं के पेट में बनने वाली गैस और एसिडिटी खत्म हो जाती है. इससे उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता.

ब्लड प्रेशर का स्तर

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है. ऐसे में यदि आप जीरे का पानी का सेवन करती हैं तो आपका ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है और नियंत्रित भी रहता है.

शरीर की उर्जा के लिए

गर्भ के दौरान महिलाओं में उर्जा की कमी हो जाती है और कई बार जिसकी वजह से उनके सामान्य वजन का बढ़ना शुरु हो जाता है, तो कभी कभी किन्हीं महिलाओं को वजन अपने आप कम होने लगता है. जीरे वाला पानी पीने से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है और शरीर में उर्जा आती है.

खजुराहो पुकारे चले आओ

केवल एक किलोमीटर के दायरे में फैले खजुराहो के कसबे में खुद को ले कर कभी यह गलतफहमी हो जाना स्वाभाविक बात है कि हम विदेश के किसी देसी महल्ले में हैं. वजह, खजुराहो में देसी कम, विदेशी पर्यटक ज्यादा नजर आते हैं. मुंबई और दिल्ली के बाद सब से ज्यादा पर्यटक आगरा, बनारस और जयपुर से हो कर खजुराहो आते हैं. इसलिए भारत घूमने आए पर्यटकों की प्राथमिकता खजुराहो होती है तो बात कतई हैरत की नहीं है क्योंकि मैथुनरत मूर्तियां वह भी तरह तरह की मुद्राओं में, यहां के मंदिरों की दीवारों में उकेरी गई हैं जो जिज्ञासा के साथ साथ उत्तेजना भी पैदा करती हैं.

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के जिले छतरपुर का कसबा खजुराहो वाकई अद्भुत है. पिछड़ेपन का दर्द बयां करती खजुराहो की सुबह विदेशी सैलानियों के दर्शन से शुरू होती है. दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां से यहां पर्यटक न आते हो. जान कर हैरानी होती है कि कई पर्यटक तो यहां नियमित अंतराल से आते हैं और सालों साल यहीं रहना पसंद करते हैं.

अपनी हैसियत और बजट के मुताबिक, पर्यटकों को यहां 300 से ले कर 30,000 रुपए तक का कमरा होटलों में मिल जाता है. जाहिर है जो लंबे वक्त रुकते हैं, वे सस्ते होटल में ठहरते हैं, वह भी मासिक किराया दे कर.

इन विदेशी पर्यटकों के यहां रुकने का कोई तयशुदा मकसद नहीं होता है. चूंकि खजुराहो रहने और खानेपीने के मामले में सस्ता पड़ता है, इसलिए विदेशी पर्यटक यहां लंबे समय तक डेरा डाले रहते हैं. कई विदेशियों ने यहां के लोगों से शादियां तक की हैं जिन की आए दिन चर्चा होती रहती है. खजुराहो के मंदिर घूमने के बाद विदेशी जब नजदीक के गांव घूमते हैं तो उन्हें असली भारत के दर्शन होते हैं जहां अभाव, भूख और जीवनयापन का निचला स्तर है.

इसी अभाव ने पैदा कर दिए हैं थोक में गाइड, जो अपने आप को बड़े गर्व से लपका कहते हैं. ये लपके एयरपोर्ट से बसस्टैंड और रेलवे स्टेशन पर मंडराते दिख जाते हैं. 14-16 से ले कर 20-30 साल तक की उम्र के लपकों की चपलता और व्यावहारिकता देख आप दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो सकते हैं. टूरिस्ट के उतरते ही ये उस की राष्ट्रीयता सैकंडों में भांप जाते हैं और उसे ऐसे घेरते हैं कि पर्यटक इन का मुहताज हो कर रह जाता है.

इन अप्रशिक्षित गाइडों से कम से कम विदेशी तो कोई भेदभाव और ज्यादा मोलभाव नहीं करते, जो देखते ही देखते उन के दोस्त और लोकल गार्जियन बन जाते हैं. ये लपके तमाम विदेशी भाषाएं फर्राटे से बोलते हैं, फिर भले ही वे 8वीं पास भी न हों. सैकड़ों लपके विदेशी युवक या युवतियों से शादी कर विदेश में बस चुके हैं और हजारों ने खासा पैसा बना लिया है. लपके विदेशियों की हर स्तर पर जरूरत पूरी करते हैं और उन्हें अपनी बदहाली दिखा कर खासा पैसा भी ऐंठ लेते हैं.

ऐसी कई दिलचस्प हकीकतों से परे खजुराहो का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है जो यहां बने कई मंदिरों की दीवारों पर मैथुनरत मूर्तियों से सहज समझ आता है. इन मंदिरों की भीतरी और बाहरी दीवारों पर वात्स्यायन का कामसूत्र कुछ इस तरह चित्रित है कि यह तय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि सहवास की ये अकल्पनीय मुद्राएं कामोत्तेजना भड़का रही हैं या फिर उसे शांत कर रही हैं.

सहवास के चौरासी आसनों के दृश्य दीवारों पर दिखते हैं. इस के अलावा शृंगाररत नायिकाओं के सौंदर्य का वर्णनचित्रण तो अच्छेअच्छे लोग नहीं कर पाते क्योंकि वे इन्हें देखते भर हैं, समझने की कोशिश नहीं करते. वैसे भी सैक्स में जो समझने लायक जिज्ञासाएं होती हैं वे इन्हें देखनेभर से दूर हो जाती हैं.

यह बात जरूर हर किसी के मन में आती है कि ऐसा आखिर क्यों किया गया होगा? भारत धर्मप्रधान देश है जिस की संस्कृति में सैक्स और धार्मिक आस्थाएं ऐसी समानांतर रेखाएं हैं जो कहीं जा कर नहीं मिलतीं, लेकिन खजुराहो में मिलती हैं तो इस की कोई वजह भी होनी चाहिए.

9वीं से ले कर 11वीं सदी तक चंदेल शासकों द्वारा बनवाए गए ये मंदिर दरअसल एक खास मकसद से बनवाए गए थे. एक किस्सा यह प्रचलित है कि एक वक्त में बौद्ध और जैन धर्मों के बढ़ते प्रभाव के चलते यहां के युवा ब्रह्मचारी और संन्यासी बनने लगे थे, जिन का ध्यान और मन दुनियादारी में लगाने के लिए चंदेल शासकों ने इस तरह की मैथुनरत मूर्तियां बनवाईं.

एक किस्सा यह भी प्रचलित है कि चंदेल वंश का संस्थापक चंद्रवर्धन अवैध संतान था जिस से उसे काफी आलोचना व उपेक्षा मिलती रहती थी. सैक्स कोई गलत काम नहीं है, यह सलाह उसे अपनी मां से मिली थी. लिहाजा, इस का महत्त्व बताने के लिए उस ने ये मूर्तियां बनवाईं. यह सिलसिला चंदेल वंश के अस्तित्व तक कायम रहा और एक जिद या जनून में उन्होंने हजारों कारीगर बाहर से बुलवाए और विभिन्न शैलियों में मंदिर बनवाए. वास्तु और स्थापत्य के लिहाज से पुरातत्ववेत्ता आज भी इन की मिसाल देते हैं.

विदेशी पर्यटक जितनी दिलचस्पी इन वर्जनारहित चित्रों में लेते हैं, देशी पर्यटक उतना ही इन से हिचकते हैं. वे मंदिर के भीतर जा कर पूजापाठ तो करते हैं पर दीवारों को घंटों निहारते नहीं, बल्कि चोर निगाहों से देखते हैं मानो वहां सांप बिच्छू लटक रहे हों.

खजुराहो में देशी पर्यटकों के कम जाने की एक वजह यह भी है कि ये चित्र परिवार के साथ नहीं देखे जा सकते, हालांकि अब बड़ी तादाद में नवविवाहित यहां आने लगे हैं.

खजुराहो की रंगीन शाम

ऐसा भी नहीं है कि खजुराहो में सिवा मंदिरों और मूर्तियों के वक्त गुजारने को कुछ और न हो. सूरज ढलने के बाद मंदिर बंद हो जाते हैं तो पर्यटकों की चहलपहल सड़कों पर नजर आती है. यहां हर

तरह का अंतर्राष्ट्रीय खाना होटलों में मिलता है. यहां स्थित शिल्पग्राम में कोई न कोई सांस्कृतिक आयोजन होता रहता है और लाइट एवं साउंड शो होते हैं.

खजुराहो में वक्त गुजारने का अपना एक अलग मजा है. घूमने के लिए यहां साइकिल और मोटरसाइकिल किराए पर मिलती हैं. रात में सड़कों पर बैडमिंटन खेलते पर्यटकों को देख लगता है कि कैसे बुंदेलखंडी अनौपचारिकता और सहजता पर्यटकों को अपने रंग में रंग लेती है. उन्मुक्त घूमते विदेशी पर्यटकों, खासतौर से युवतियों को देख स्थानीय लोगों को हो न हो, पर दूसरे पर्यटकों को जरूर हैरत होती है.

गरमी के दिनों में यहां पारा 48.2 डिग्री तक पहुंच जाता है तो जाड़ों में 4 डिग्री तक उतर भी जाता है. लेकिन मौसम का एहसास यहां नहीं होता. वजह, जाहिर है ये मूर्तियां हैं, जो दुनियाभर के लोगों को खजुराहो खींच लाती हैं.

खजुराहो के मंदिरों में उत्कीर्ण कामकलायुक्त मूर्तियां पर्यटकों में अजीब सा कुतूहल पैदा करती हैं.

क्या आप भी हैं स्ट्रेच मार्क्स से परेशान!

स्ट्रेच मार्क्स यानी शरीर पर पड़ी लंबी और पतली लाइनें. यह स्ट्रेच मार्क्स पहले लाल रंग की दिखाई देते हैं लेकिन बाद में इनका रंग बदल जाता है. वैसे तो स्ट्रेच मार्क्स शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकते हैं लेकिन ज्यादातर स्ट्रेच मार्क्स अधिक चर्बी वाले भाग, पेट, ब्रेस्ट, बाजू के नीचे, पीठ पर, जांघों पर, कूल्हों पर दिखाई देते हैं.

किन वजहों से होते हैं ये स्ट्रेच मार्क्स

– प्रेग्नेंसी के दौरान स्ट्रेच मार्क्स

– यौवनावस्था के दौरान

– अचानक से वजन घटना

– जैनेटिक कारण

स्ट्रेच मार्क्स हटाने के घरेलू उपचार

आलू का रस

आलू को मोटे टूकड़ों में काटकर स्ट्रेच मार्क्स वाली जगह पर लगाएं. 5-10 मिनट तक इसे ऐसे ही रहने दें. फिर बाद में गुनगुने पानी से धो लें.

नींबू का रस

नींबू को दो भागों में काटकर इसे स्ट्रेच मार्क्स पर धीरे से रगड़े. 10 मिनट तक ऐसे ही रहने दे और फिर गूनगूने पानी से धो लें.

अंडे का सफेद भाग

अंडे के सफेद भाग को निकालें. इस भाग को स्ट्रेच मार्क्स पर लगाएं और 15 मिनट तक रहने दें. फिर पानी से धो लें.

एलोवेरा

एलोवेरा की बाहरी परत को उतार दे और उसकी जेल को स्ट्रेच मार्क्स पर लगाएं. 2-3 घंटे बाद इसे धो लें.

कोकोआ बटर क्रीम

सबसे पहले शिआ बटर और कोकोआ बटर को पिघला लें. फिर इसमें विटामिन ई ऑयल मिलाए. इस पेस्ट को ठंडा कर स्ट्रेच मार्क्स पर लगाएं.

बेदाग त्वचा के लिए ‘नींबू की चाय’

नींबू की चाय आपको कई रोगों से बचाती है. यह आपकी सेहत को ठीक बनाए रखने के साथ.साथ आपको चेहरे से जुड़ी हुई हर प्रकार की समस्याओं से भी निजात दिलवाती है. हम आपको बता रहे हैं कि नींबू की चाय से चेहरे को धोने से आपको क्या-क्या फायदे मिल सकते हैं.

इस चाय से चेहरा धोने से पहले हम आपको बता रहे हैं कि एक अच्छी नींबू की चाय बनाने का सही तरीका क्या है…

सबसे पहले पानी को गरम करके, इसमें स्वाद के अनुसार चाय की पत्ती डालकर इसे उबालें. थोडे समय के बाद नींबू का रस चाय में निचोड़ें और हो सके तो इसमें शहद या चीनी भी मिलाएं. ये बात जानकर आपको हंसी भी आ सकती है कि नींबू की चाय जितनी स्वादिस्ट होती है, आपके चेहरे पर इसके फायदे भी उतने ही अच्छे होते हैं.

जानिए नींबू की चाय से चेहरा धोने से क्या क्या फायदे होते हैं :

बेदाग त्वचा के लिए

नींबू की चाय से नियमित चेहरा धोने से आपकी त्वचा में मौजूद काले धब्बे आसानी से साफ हो जाते हैं. और कुछ दिनों बाद आपकी त्वचा एक दम बेदाग हो जाती है. आपके चेहरे पर चमक साफ दिखाई देने लगती है.

ऑयली त्वचा के लिए

यदि आपकी त्वचा से बहुत ज्यादा तेल निकलता हो और ये हमेशा तैलीय बनी रहती है तो आपको अपनी त्वचा को नींबू की चाय से धोना चाहिए. कुछ हफ्तों तक लगातार ऐसा करने के बाद आपको फर्क खुद ही नजर आने लगेगा.

चेहरे के दाने के लिए

आजकल देखा गया है कि कम उम्र में ही लोगों के चेहरे पर दाने होने लगते हैं, जिसकी वजह से चेहरा भद्दा दिखाई देने लगता है. लेकिन यदि आप रोज अपने चेहरे को नींबू की चाय से धोएंगे तो इससे आपके चेहरे के दाने अपने आप ही ठीक होने लगते हैं औऱ चेहरा साफ नजर आने लगता है.

मुलायम से चेहरे के लिए

अगर आप मुलायम और साफ त्वचा के साथ अपने चेहरे को देखना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हमेशा अपना चेहरा नींबू की चाय से ही धोना चाहिए.

जले कटे के निशानों पर

यदि आपके चेहरे पर जले कटे का निशान हो तो, ऐसे निशान भी नींबू की चाय की मदद से चेहरा धोने से साफ हो जाते हैं.

लोगों का विश्वास ही मेरी ताकत है : दीपिका पांडे

झारखंड के गोड्डा जिले को भारत सरकार ने 2006 में भारत के 250 सब से पिछड़े जिलों में घोषित किया था. यहां विकास की रूपरेखा बना कर काम करना आसान नहीं है और वह भी एक महिला के लिए. मगर दीपिका पांडे पूरे हौसले के साथ यह काम कर रही हैं.

सामान्य कदकाठी, मगर आत्मविश्वास से भरपूर दीपिका फिलहाल गोड्डा जिले में कांग्रेस की जिलाध्यक्ष हैं. इन के पति रत्नेश कुमार टाटा स्टील में हैं, जिन के साथ दीपिका ने इंटरकास्ट मैरिज की है. दीपिका की 2 बेटियां हैं. पेश हैं, उन से कुछ सवाल जवाब:

आप की स्ट्रैंथ क्या है?

मेरी लड़ाई में भीड़ नहीं होती, लोगों का विश्वास होता है और यही मेरी असली ताकत है.

मुख्य रूप से आप किस तरह के विकास कार्य कर रही हैं?

मैं संगठन के माध्यम से जनमुद्दों जैसे पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों पर काम कर रही हूं. इन के अलावा किसानों व युवाओं के सुरक्षित भविष्य को निश्चित करने वाली नीतियों को लागू कराने और उन से जुड़े आंदोलनों को मुकाम तक  पहुंचाने के प्रयास में भी लगी हूं. हाल ही में गोड्डा जिले के राजमहल प्रोजैक्ट, जो कोल माइनिंग से जुड़ा है, में हुए एक हादसे में 23 लोग मारे गए. उन के परिवारों को मुआवजा दिलाने के साथसाथ मैं ने घटना की जांच की मांग भी की. कोल माइनिंग क्षेत्र में करप्शन, सेफ्टी, आउटसोर्सिंग आदि मसलों को भी उठाया ताकि स्थानीय लोगों को न्याय मिल सके.

घर परिवार के साथ कैसे मैनेज करती हैं?

मेरा मनोबल पति की अनकंडीशनल सपोर्ट और कम उम्र के बावजूद मेरी परिस्थितियों को समझने व स्वीकारने वाली मेरी बेटियों के सहयोग से अपना काम मैनेज करना मेरे लिए कभी मुश्किल नहीं रहा.

इस मुकाम तक पहुंचने में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

यह ग्रामीण इलाका है. आमतौर पर लोग अपनी बात खुल कर नहीं रख पाते हैं. ऐसे में आप को उन्हें भरोसा दिलाना पड़ता है कि जब तक वे अपने लिए आवाज नहीं उठाएंगे, कोई उन के लिए नहीं लड़ सकता.

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