जैसा फेस वैसा हेयर कट

जहां आप का परफैक्ट हेयर कट आप की खूबसूरती को निखार सकता है वहीं बेतरतीब बिखरे बाल आप को आलसी महिलाओं की श्रेणी में ला सकते हैं. मगर हेयर कट करवाते समय यह ध्यान रखें कि कटिंग आप के चेहरे, गरदन, शोल्डर के आकार, बालों की बनावट तथा आप के व्यक्तित्व के अनुरूप हो.

चेहरे का आकार

परफैक्ट हेयर कट के लिए यह जानना जरूरी है कि आप के फेस की शेप क्या है ताकि आप जान सकें कि कौन सा हेयर कट आप की खूबसूरती निखार सकता है. इस के  लिए आप आईने के सामने खड़ी हो कर बालों को इकट्ठा कर के पोनीटेल कर लें. फिर चेहरे को आईने के पास ले जा कर स्कैचपैन की मदद से आईने पर अपने चेहरे के आसपास एक रूपरेखा बना लें. आप देखेंगी कि आप का प्रतिबिंब आप के चेहरे की शेप बता रहा है.

लंबे चेहरे के लिए

लंबे चेहरे पर छोटे व मीडियम आकार के बाल ज्यादा अच्छे लगते हैं, जिस में उन की फोरहैड पर लेयर हो, जो माथे को थोड़ा छोटा दिखाएं. बैंग के साथ शोल्डर लैंथ व चिन के पास लेयर के साथ हेयर कट ज्यादा चेहरे पर फबता है. इस के अलावा बेबी व कर्ली टैक्स्चर वाले स्टाइल स्ट्रेट बालों की जगह ज्यादा अच्छे लगते हैं.

ओवल फेस शेप

अगर आप का फेस ओवल शेप है, तो उस पर लगभग हर हेयर कट अच्छा लगता है. फिर चाहे आप शौर्ट, लौंग, लेयर या बौब कट करवाएं. बस आप को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि फेस कट ऐसा हो, जो आप के फेस के फीचर को हाईलाइट करे न कि कवर करे. रेजर, वर्टिकल लेयर और फैदरटच आदि बेहतर विकल्प हैं.

डायमंड फेस कट

डायमंड शेप उन की होती है, जिन का फोरहैड और जौ लाइन चीकबोंस की तुलना में कम उभार वाली होती है, इसलिए ऐसी फेस शेप वाली महिलाओं को हेयर कट ऐसा चुनना चाहिए जोकि उन की चीकबोंस को थोड़ा कवर करते हुए पूरे चेहरे की लंबाई को थोड़ा कम दिखाए. बालों को स्ट्रेट न रखते हुए थोड़ा सा उन में टैक्स्चर क्रिएट करें. मल्टीपल लेयर, फौक्स पिरामिड और बैंग विद मीडियम फैदर में से आप कोई सा भी कट चुन सकती हैं.

ट्राइऐंग्यूलर फेस कट

इस फेस कट वालों की जौ लाइन फोरहैड और चीकबोंस की तुलना में काफी उभरी होती है. लेयर वाले हेयर कट जौ लाइन को बैलेंस कर के खूबसूरत लुक देते हैं. लंबे बालों की तुलना में शौर्ट लैंथ हेयर कट इन महिलाओं को अपनी उम्र से कम व खूबसूरत दिखाता है, इसलिए वे ट्राई करें शौर्ट लेयर, जिगजैग क्रौस लेयर और सौफ्ट बेबी विद बैंग.

राउंड फेस कट

गोलाकार चेहरे वाली महिलाओं को हेयर कट ऐसा चुनना चाहिए, जो उन के चेहरे को थोड़ा लंबा दिखाए. राउंड फेस वाली महिलाएं चिन से नीचे वाले हेयर कट चुनें, जो उन के चेहरे को पतला व लंबा होने का आभास दें जैसे राउंड शेप हेयर कट, ब्लंट (शार्प), लेयर और पौट शेप कट.

हार्ट शेप फेस कट

हार्ट शेप फेस वाली महिलाओं पर कोई भी हेयर कट आसानी से नहीं फबता है, क्योंकि उन का फोरहैड काफी चौड़ा व चिन एरिया काफी नैरो होता है, इसलिए उन्हें हेयर कट ऐसा चुनना चाहिए, जो उन के फेस को प्रौपर बैलैंस कर सके. उन्हें फोरहैड पर बैंग्स व चिन एरिया के आसपास वौल्यूम की जरूरत होती है. उन के लिए स्टे्रटबौब विद फ्रिंज, वौल्यूम लेयर और बाउंसिंग वौल्यूम वेव आदि बेहतर औप्शन हैं.

स्क्वेयर शेप फेस कट

इन महिलाओं पर छोटे व लंबे दोनों टाइप के हेयर कट अच्छे लगते हैं. अगर आप के फेस की लंबाईचौड़ाई करीब बराबर है, तो आप का फेस स्क्वेयर शेप का है. आप के लिए ऐंगल बौब, ग्रैजुएट लेयर व वौल्यूमनाइज बौब बेहतर विकल्प हैं.

हेयर कट के प्रकार

हेयर कट 2 प्रकार के होते हैं- हौरिजैंटल और वर्टिकल. हौरिजैंटल में स्ट्रेट, यू, वी, ब्लंट व शार्प ब्लंट कट मुख्य रूप से आते हैं, तो वर्टिकल में स्टैप व बाय, लेयर कट. इस के अलावा फैदर्स, पौट शेप, इनवेटिव वौल्यूम लेयर, ग्रैजुएट लेयर, ऐंगल बौब आदि इन्हीं के नए रूप हैं.

हेयर कट की तकनीक

पार्टिंग

कटिंग को सुचारू रूप से करने के लिए सैक्शन में से जो भाग लिया जाता है उसे पार्टिंग कहते हैं.

ग्रैजुएटेड

इस में बालों को बाहरी तरफ कम से कम मीडियम ऐलिवेशन में काटा जाता है.

गाइड

बालों की कटिंग करते समय यह भाग ही बालों की लंबाई निर्धारित करता है. इसी गाइडलाइन को आधार बना कर कटिंग की जाती है.

सैक्शन

कटिंग से पहले बालों को अलगअलग सैक्शन में बांटा जाता है. कम ऐलिवेशन में बालों की कटिंग के लिए 4 सैक्शन व ज्यादा ऐलिवेशन में बालों की कटिंग के लिए उन्हें 5 सैक्शन में बांटा जाता है.

ऐलिवेशन

वह कोण (डिग्री) जिस पर बालों को सिर से उठा कर काटा जाता है. इस के अलावा नोचिंग, थिनिंग, पौइंट कट, टैंशन, वेट लाइन, स्लाइसिंग, फ्लाइंग, जिगजैग, टैक्स्चराइजिंग आदि तकनीकों से बालों में टैक्स्चर क्रिएट किया जाता है.

औल टाइम फेवरेट हेयर कट

पिक्सी कट

जिन महिलाओं को छोटे बाल पसंद हैं उन के लिए हौट ऐंड सैक्सी पिक्सी हेयर कट परफैक्ट है. ज्यादा फैबुलस लुक के लिए टैक्स्चराइजिंग हेयर स्पे्र कर के फ्लैट ब्रश की मदद से ब्लो ड्राई करें.

ब्लंड बैंग

अगर आप का फोरहैड काफी चौड़ा है, तो ट्राई करें ब्लंड बैंग. यह आप को गौर्जियस लुक देगा. कंप्लीट लुक के लिए स्ट्रेट टैक्स्चर का सहारा लें.

वोल्यूमाइजिंग वैब

वौल्यूमाइजिंग स्प्रे व ब्लो ड्रायर की मदद से बालों में लाइट वैब क्रिएट करें. चाहें तो ज्यादा ग्लैमरस व बोल्ड लुक के लिए बालों में हाईलाइटिंग भी करवा सकती हैं.

बाउंसिंग लेयर

अगर आप को बालों से खेलना पसंद है और आप के बाल लंबे हैं, तो वौल्यूम स्प्रे और टोंग की मदद से अपनी लेयर कट को कंप्लीट लुक दे कर पाएं लौंग बाउंसिंग वैब्स लेयर.

अल्ट्रा स्मूद स्ट्रेट

अगर आप को स्ट्रैट हेयर पसंद हैं, तो फ्रिंज कंट्रोल स्प्रे और स्ट्रेटनिंग मशीन की मदद से बालों को अल्ट्रा स्मूद स्ट्रेट लुक दें.

सैक्सी बेबी कर्ल

ब्लंड बैंग व मीडियम लैंथ के बालों को सैक्सी लुक देने के लिए हौट कर्ल रोड का इस्तेमाल करें और पाएं सैक्सी बेबी कर्ल लुक.

स्टाइलिश बौब

पीछे से बालों को शौर्ट कर के ग्रैजुएटेड बौब को दीजिए हौट लुक. बालों में और ज्यादा वौल्यूम ऐड करने के लिए छोटे ब्रश की मदद से ब्लो ड्राई कर के ज्यादा शाइनी और आकर्षक लुक के लिए हेयर ग्लौस स्प्रे करें.

कुछ जरूरी बातें

यदि हेयर कट आप के चेहरे के अनुरूप हो, तो वह आप की खूबसूरती को बहुत ज्यादा बढ़ा सकता है, इसलिए ध्यान रखें इन जरूरी बातों का:

1. कटिंग से पहले बालों में अच्छी तरह शैंपू करें ताकि ऐक्स्ट्रा औयल से बालों की कटिंग को नुकसान न हो.

2. हेयर कट के बाद बालों  को शाइनी और सौफ्ट बनाने के लिए हेयर सीरम का प्रयोग करें.

3. हेयर कट के बाद बालों को सैट करने के लिए ब्लो ड्रायर, टोंग, कर्लिंग रोड या स्ट्रेटनिंग मशीन का उपयोग करने से पहले हीट प्रोटैक्टर स्प्रे का इस्तेमाल करें. इस के प्रयोग से बाल गरमी सहने लायक हो कर नुकसान से बच जाएंगे.

4. हेयर कटिंग के तुरंत बाद हेयर कलर या अन्य कैमिकल ट्रीटमैंट न लें.

5. अगर हेयर कट के बाद बाल बेजान व फ्रिजी दिखते हैं, तो शाइन ब्लिस्टर्स का प्रयोग करें.

6. हेयर कट कोई भी हो उसे संवारने के लिए रैग्युलर बालों की हौट औयल से मसाज जरूर करें.

7. हेयर कटिंग के समय सिर की स्थिति एकसमान रखें ताकि परफैक्ट हेयर कट मिल सके.

8. प्रौपर ब्लड सर्कुलेशन के लिए बालों को कौंब करते समय पीछे के सारे बाल चेहरे पर ला कर बैककौंबिंग भी करें.

गुलाब से दिखें गुलाबी

प्यार का प्रतीक माने जाने वाले गुलाब से न सिर्फ आप अपने प्रियतम को प्रपोज कर सकती हैं बल्कि आप इस से अपना रंगरूप भी निखार सकती हैं. इस संबंध में जानें एल्पस ब्यूटी क्लीनिक ऐंड एकैडमी की डायरैक्टर भारती तनेजा से.

1. गुलाब की पत्तियों को कुछ घंटे तक धूप में सुखा कर पानी में उबाल लें. जब पानी आधा रह जाए तब इसे छान कर एक बोतल में रख लें. इस प्राकृतिक टोनर को फ्रिज में रखें और दिन में 2 बार रूई की मदद से स्किन टोन करें.

2. होंठों की रंगत को गुलाबी करने के लिए मलाई में गुलाब की पंखडियां मिलाएं और इस पेस्ट को लिप पैक की तरह अपने होंठों पर रात में सोने से पहले लगाएं. सुबह उठ कर लिप्स को पानी की मदद से साफ करें. इस पैक में शामिल मलाई से लिप्स पोषित होंगे तो वहीं गुलाब की लालिमा से खिल भी उठेंगे.

3. गुलाब की पत्तियों का प्रयोग नहाने के पानी में भी किया जा सकता है. इस के लिए नहाने के पानी में रात भर गुलाब की पत्तियां डाल दें और सुबह इस से एरोमैटिक बाथ करें. ऐसा करने से पूरा दिन फ्रैशनैस बनी रहेगी और आप से भीनीभीनी खुशबू भी आती रहेगी. 

4. पानी में गुलाब की पंखडि़यां डाल कर उस में अपने पैरों को डाल कर भिगो दें. इस से पैरों को न केवल आराम मिलता है बल्कि उन की सुंदरता में भी निखार आता है.

5. आंखों को चमकदार बनाने और उन की थकान दूर करने के लिए आप रूई को गुलाबजल में भिगो कर उस का प्रयोग आंखों के ऊपर भी कर सकती हैं. यह आंखों की सूजन को कम करने में मदद करता है.

6. गुलाब में मौजूद ऐंटीबैक्टीरियल गुण एक्ने को दूर करने में लाभदायक होते हैं. इन पत्तियों से त्वचा की जलन दूर होती है और रैडनैस भी कम होती है. इस की पत्तियों को पानी में भिगोएं और पेस्ट बना कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर सादे पानी से मुंह धो लें. बेहतर परिणाम के लिए ऐसा हफ्ते में 3 बार करें.

7. ड्राई स्किन है तो गुलाब की पत्तियों को दूध में भिगो कर पेस्ट बनाएं. फिर इस में थोड़ा सा शहद मिला कर फेस पर लगाएं. कुछ देर बाद कुनकुने पानी से फेसवाश कर लें.

8. गुलाब जल की खासीयत है कि इस का प्रयोग हर प्रकार की स्किन यहां तक कि सैंसेटिव स्किन पर भी किया जा सकता है.

सफल फिल्मों पर आधारित हैं ये टीवी सीरियल

‘बाहुबली द कनक्लूजन’ ने महज 8 दिन में 900 करोड़ रूपए की कमाई कर ली है. फिल्म की सक्सेस को देखते हुए प्रोड्यूसर शोबू यरलागड़ा ने बाहुबली की टीवी सीरिज लाने का ऐलान कर दिया है. शोबू की मानें तो वो फिल्म के दोनों पार्ट्स को लेकर 10 से 15 एपिसोड की टीवी सीरीज लाएंगे. इस सीरिज को हिन्दी में बनाया जाएगा बाद में इसे दूसरी भाषाओं में डब किया जाएगा. वैसे भले ही ‘बाहुबली’ पर टीवी सीरिज आने वाली है लेकिन पहले से ऐसे कई टीवी शोज हैं जो सक्सेसफुल फिल्मों पर बेस्ड हैं. टेलीविजन के ऐसे शोज जो फिल्मों से इंस्पायर हैं.

1. टीवी शो- जोधा अकबर

फिल्म- जोधा अकबर (2008)

ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय बच्चन स्टारर ‘जोधा अकबर’ पर साल 2013-2015 तक प्रसारित हुआ टीवी शो ‘जोधा अकबर’ बना है. ये टीवी सीरीज एकता कपूर ने बनाई, जिसे दो साल ऑडियंस ने खूब पसंद किया. शो में अकबर का रोल रजत टोकस ने और जोधा का रोल परिधि शर्मा ने प्ले किया था.

2. टीवी शो- पेशवा बाजीराव

फिल्म- बाजीराव मस्तानी(2015)

जनवरी 2017 से शुरु हुआ टीवी शो ‘पेशवा बाजीराव’ रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा स्टारर फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ पर बेस्ड हैं. शो में बाजीराव का रोल रुद्रा सोनी प्ले कर रहे हैं. वहीं लीड रोल में मनीष वाधवा, अनुजा साथे, पल्लवी जोशी हैं.

3. टीवी शो- नामकरण

फिल्म- जख्म(1998)

अजय देवगन, पूजा भट्ट और सोनाली बेन्द्रे स्टारर फिल्म ‘जख्स’ के कॉन्सेप्ट पर 2016 में टीवी सीरियल ‘नामकरण’ शुरु हुआ है. शो का कॉन्सेप्ट लिवइन रिलेशनशिप के बाद हुए बच्चे पर है. फिल्म को महेश भट्ट ने डायरेक्ट किया था साथ ही शो को भी वहीं लाए हैं.

4. टीवी शो- नागिन

फिल्म- नागिन(1986)

टीवी शो नागिन का कॉन्सेप्ट ऋषि कपूर और श्रीदेवी की फिल्म नागिना पर बेस्ड है. शो में लीड रोल मोनी रॉय प्ले कर रही है. फिल्म की ही तरह शो में मॉनी की शादी एक अमीर घर में हो जाती है और वो फिर अपने माता-पिता की मौत का बदला लेती है.

5. टीवी शो- बढ़ो बहू

फिल्म- दम लगा के हाइशा(2015)

आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर स्टारर फिल्म ‘दम लगा के हाइशा’ पर पिछले साल(2016) बढ़ो बहू शुरु हुआ है. शो का कॉन्सेप्ट एक मोटी लड़की है जो अपने लिए लाइफ पार्टनर में प्यार तलाशती है. शो में लीड रोल में प्रिंस नरूला और रयतशा राठौर प्ले कर रहे हैं.

6. टीवी शो- जमाई राजा

फिल्म- जमाई राजा(1990)

साल 2014 से शुरु हुए टीवी शो ‘जमाई राजा’ अनिल कपूर, हेमा मालिनी और माधुरी दीक्षित स्टारर फिल्म ‘जमाई राजा’ पर बेस्ड है. शो में रवि दुबे और निया शर्मा ने लीड रोल प्ले किया.

7. टीवी शो- परदेश में है मेरा दिल

फिल्म- परदेस (1997)

2016 में शुरु हुआ टीवी शो ‘परदेश में है मेरा’ शाहरुख खान और महिमा चौधरी की फिल्म ‘परदेश’ से इंस्पायर है. शो में लीड में रोल में अर्जुन बिजलानी और दृष्टि धामी हैं. शो का पूरा कॉन्सेप्ट फिल्म का है वहीं स्टोरी लाइन भी लगभग फिल्म से मिलती-जुलती है.

फिल्म रिव्यू : मेरी प्यारी बिंदू

रोमांटिक कॉमेडी फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ का अंत आम बॉलीवुड मसाला फिल्मों से एकदम अलग है, इसके अलावा इस फिल्म में कुछ भी नवीनता नहीं है. यह फिल्म बचपन की दोस्ती व एकतरफा प्यार की बात करती है.

फिल्म का नायक, जो कि लेखक और आधुनिक देवदास है, वह एक ही बात का रोना रोता रहता है कि ‘‘प्यार करना सब सिखाते हैं. पर प्यार को भुलाएं कैसे यह कोई नहीं सिखाता.’’

फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ की कहानी लेखक अभिमन्यू (आयुष्मान खुराना)के इर्द गिर्द घूमती है. अभिमन्यू मुंबई में प्रतिष्ठित लेखक है. उसके कई उपन्यास काफी चर्चा बटोर चुके हैं, पर उसे लेखक के तौर पर व सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह चाह रखता है. अब तक वह ‘चुड़ैल की चोली’ जैसे सी ग्रेड उपन्यास ही लिखता रहा है. पिछले दस वर्ष से वह कुछ भी अच्छा नही लिख पाया.

अब वह जिस उपन्यास को लिख रहा है, उससे प्रकाशक संतुष्ट नहीं है. इस बात को दस साल हो जाते हैं. इसलिए वह पुराने जमाने वाली प्रेम कहानी लिखना शुरू करता है. पर एक दिन उसके माता पिता उसे बहाने से कोलकाता घर पर बुलाते हैं. उनका मकसद अभिमन्यू की शादी करानी है, जो कि अपने पुराने प्यार को अब तक भूला नहीं है. लेकिन घर पर माता पिता द्वारा आयोजित पार्टी वगैरह से तंग आकर वह कोलकाता में ही होटल में रहने चला जाता है, जहां वह चैन से अपना नया उपन्यास लिख सके.

अभिमन्यू के इस उपन्यास की कड़ियां कहीं न कहीं उसकी अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी हुई हैं. अब कहानी अतीत व वर्तमान के बीच हिचकोले लेते हुए चलती रहती है. कहानी खुलती है कि कोलकाता में अभिमन्यू के मकान के पड़ोस वाले मकान में बिंदू रहती थी. दोनों बचपन के दोस्त हैं. उनकी यह दोस्ती काफी आगे बढ़ चुकी है. एक दिन एक कार दुर्घटना में बिंदू की मां की मौत हो जाती है, पर बिंदू के पिता बच जाते हैं. जबकि कार बिंदू के पिता ही चला रहे थे. इसी के चलते बिंदू अपने पिता को दोषी मानती है.

इधर बिंदू (परिणीति चोपड़ा) व अभिमन्यू (आयुष्मान खुराना) दिन भर साथ में घूमते रहते हैं. अभिमन्यू दिन भर का खर्च निकालने के लिए अपनी कार कुछ घंटों के लिए अपने दोस्तों को किराए पर देता रहता है. कार किराए पर लेकर उसके दोस्त अपनी प्रेमिका के साथ उसमें समय बिताते हैं. इस सच से अभिमन्यू के साथ साथ बिंदू भी वाकिफ है. अभिमन्यू, बिंदू से प्यार करता है, पर वह अपने दिल की बात बिंदू से कह नहीं पाता. जबकि बिंदू अपने हर नए रिश्ते के बारे में अभिमन्यू को बताती रहती है.

एक दिन कॉलेज में फुटबॉल मैच होता है. इस मैच के दौरान बिंदू, ध्रुव के खेल से प्रभावित होकर अभिमन्यू का साथ छोड़कर अभिमन्यू की ही कार में ध्रुव के साथ चली जाती है. कुछ समय बाद अभिमन्यू अपनी ही कार में ध्रुव व बिंदू को उन्हीं हालातों में देखता है, जिन हालातों में वह अपने दोस्तों को उनकी प्रेमिकाओं के साथ देख चुका है. अभिमन्यू समझ जाता है कि बिंदू और ध्रुव के बीच शारीरिक संबंध बन चुके हैं.

उसके बाद अभिमन्यू मुंबई चला आता है. कुछ दिन बाद अभिमन्यू केा पता चलता है कि बिंदू भी मुंबई गायक बनने आयी है. तो वह उसे अपने घर में रहने के लिए ले आता है. अभिमन्यू उसे सफल गायक बनाने के लिए सारे प्रयास करता है. अभिमन्यू व बिंदू का संगीत एलबम भी बाजार में आता है. एक दिन अभिमन्यू के माता पिता मुंबई पहुंच जाते हैं. तो उन्हें अभिमन्यू व बिंदू के प्यार में डूबे होने का एहसास होता है.

अभिमन्यू की मां बिंदू को बहू के रूप में स्वीकार करते हुए उसे उपहार देती है, इसी बात पर बिंदू कुछ अपशब्द कह देती है और मुंबई से आस्ट्रेलिया व पेरिस चली जाती है. अभिमन्यू बिंदू का पता लगा लेता है. अंत में जब अभिमन्यू की कोलकाता में पुनः बिंदू से मुलाकात होती है, तो पता चलता है कि बिंदू शादी कर चुकी है और उसकी एक बेटी भी है. वह अपनी जिंदगी में बहुत खुश है. तब अभिमन्यू एहसास करता है कि प्यार समय या जगह का मोहताज नहीं होता. बल्कि सही सुर के साथ सही इंसान के मिलने पर निर्भर करता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो परिणीति चोपड़ा व आयुष्मान खुराना के प्रशंसक बहुत ज्यादा खुश होने वाले नही हैं. लगता है दोनों अब अभिनय की बजाय सिंगल गाने बाजार में लाने पर ही ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. फिल्म में कहीं भी इन दोनों का अभिनय प्रभावित नहीं करता. वैसे कुछ दृश्यों में आयुष्मान खुराना ने अच्छा अभिनय किया है. मगर परिणीति चोपड़ा ने अपने आपको दोहराया है. परिणीति चोपड़ा के बिंदू के किरदार को देखकर यदि दर्शक को फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ की कंगना रनौत की याद आती है, तो यह लेखक व निर्देशक दोनों की ही कमजोरी है.

मगर लेखक के तौर पर आयुष्मान खुराना का किरदार अभिमन्यू रॉय पूरी फिल्म में पैजामा व कुर्ते में ही नजर आता हैं, जबकि ऐसा तो नहीं है. क्या निर्देशक के दिमाग में लेखक अभिमन्यू रॉय को जेनयू से जुड़ा हुआ बताना रहा है? इसके अलावा फिल्म 1980 से 2016 तक चलती है, मगर फिल्म का लेखक 2016 में भी कम्प्यूटर की बजाय टाइपराइटर पर ही काम करता है.

लेखक व निर्देशक दोनों ही अपनी अपनी जगह असफल रहे हैं. फिल्म में बेवजह कुछ अजीब से दृश्य डाले गए हैं. फिल्म के निर्देशक अक्षय रॉय फिल्मों के शौकीन नजर आते हैं, इसी वजह से कुछ नई व कुछ पुरानी फिल्मों के रिफ्रेंस बीच बीच में डाले गए हैं. कुछ पुरानी फिल्मों के गीत भी दस बीस मिनट के लिए आ जाते हैं. फिल्म में बेवजह जावेद व गुलजार सहित कई फिल्मी हस्तियों को घसीटा गया है. फिल्म के कई दृश्य जरुरत से ज्यादा बोर करते हैं और दर्शक सोचने लगता है कि फिल्म कब खत्म होगी.

फिल्म के कुछ दृश्य नब्बे के दशक की भी याद दिलाते हैं. मसलन-मुंबई आने का संघर्ष, बचपन की यादें, ऑडियो कैसेट, दोस्ती, स्कूल की परीक्षाओं में नकल, शोरगुल करने वाले पड़ोसी, मुंबई जैसे शहर में एक ही कमरे में एक साथ रहते रहते हो जाने वाली दोस्ती, रोमांटिक रिश्ते बनाना वगैरह. निर्देशक की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उसने दोस्ती को अच्छे ढंग से दिखाया है. फिल्म में यह बात उभर कर आती है कि दोस्त हमेशा दोस्त रहता है, फिर चाहे उसमें या परिस्थितियों में बदलाव क्यों न आ जाए.

फिल्म ‘‘मेरी प्यारी बिंदू’’ का निर्माण ‘‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले आदित्य चेापड़ा और मनीष शर्मा ने किया है. लेखक सुप्रतिम सेनगुप्ता, निर्देशक अक्षय रॉय, संगीतकार सचिन जिगर, कैमरामैन तुषार कांति रे तथा फिल्म के कलाकार हैं- आयुष्मान खुराना, परिणीति चोपड़ा, अपराजिता ऑड्डी, राजतभा दत्ता, अभिश मैथ्यू व अन्य.

फिल्म रिव्यू : सरकार 3

‘‘वंशवाद’’ ही सर्वश्रेष्ठ है. इस बात को रेखांकित करने वाली फिल्म का नाम है-‘‘सरकार 3’’. जो कि राम गोपाल वर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘सरकार’’ का यह तीसरा सिक्वअल है. फिल्म के शुरू होते ही निर्देशक ने सुभाष नागरे उर्फ सरकार को चीकू के पेड़ को पानी देते हुए दिखाया है. और यह सीन फिल्म में कई बार आता है. इसी से यह बात साफ हो जाती है कि सरकार नाटक कर रहे हैं, असल में तो वह अपने पोते शिवाजी नागरे उर्फ चीकू को तैयार कर रहे हैं.

कहानी के केंद्र में सुभाष नागरे उर्फ सरकार (अमिताभ बच्चन) ही हैं. इस वक्त वह कई दुश्मनों से घिरे हुए हैं. उनके धुर विरोधी माइकल वाल्या (जैकी श्राफ) और राजनीतिज्ञ गोविंद देशपांडे (मनोज बाजपेयी) एक उद्योगपति गांधी को आगे कर सुभाष नागरे का प्रभुत्व खत्म करना चाहते हैं. इनके साथ अनु करकरे (यामी गौतम) है. गांधी को लगता है कि अनु करकरे अपने पिता की मौत के लिए सुभाष नागरे को ही जिम्मेदार मानती है और वह अपने पिता की मौत का बदला उनसे लेना चाहती है. तो दूसरी तरफ सुभाष नागरे का अपना पोता शिवाजी नागरे उर्फ चीकू (अमित साध) है. राजनीतिक उठापटक भी तेज गति से चल रही है. इससे सुभाष  नागरे उर्फ सरकार को अपना प्रभुत्व डगमगाता नजर आ रहा है. पर वह डरते नहीं हैं. लोगों की नजर में एक दिन सुभाष नागरे अपनी बीमार पत्नी पुष्पा (सुप्रिया पाठक) के कहने पर पोते शिवाजी नागरे उर्फ चीकू को अपने साथ आकर रहने की इजाजत दे देते हैं. इससे सरकार के अति निकटतम सहयोगी गोकुल साटम (रोनित राय) को असुरक्षा सताने लगती है. गोकुल साटम के चलते नेता गोविंद देशपांडे मारे जाते हैं. उधर गोकुल साटम इसका आरोप चीकू पर लगाता है, तो दूसरी तरफ वह सरकार को खत्म करने में गांधी की मदद करने का आश्वासन दे देता है. इसकी भनक सरकार को लग जाती है. पर सरकार, गोकुल कीबात पर यकीन करने का नाटक कर चीकू को घर से बाहर कर देते हैं.

चीकू घर से बाहर निकलते ही सरकार के सभी विरोधियों को अपने साथ एकजुट करता है. और सारी सच्चाई जुटाकर अपने दादा यानी कि सरकार तक पहुंचाता रहता है. जिसकी भनक किसी को नहीं लगती है. एक दिन वह आता है जब सरकार खुद ही गोकुल की हत्या कर देते हैं और इसके लिए चीकू को दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि अब वह 35 साल बाद अपने हाथ से चीकू की हत्या करेंगे. पर जैसे ही माइकल वाल्या, सरकार के घर पहुंचते हैं. वैसे ही सरकार सारा सच बता देते हैं. उधर अनु खुद गांधी को गोली मार देती है. चीकू अपने दादा के घर वापस आ जाता है. अंत में सरकार कहते हैं कि राजनीति का खेल आसान नहीं है. राजनीति करने के लिए पहले इंसान को अपने घर की राजनीति को समझना व सीखना पड़ेगा. क्योंकि क्लेश सबसे बड़ादुश्मन है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म में यामी गौतम को जाया किया गया है. यामी के हिस्से करने के लिए कुछ है ही नहीं. सिर्फ बीच बीच में वह अपना खूबसूरत चेहरा दिखा जाती हैं, पर उस चेहरे पर भी कोई भाव नजर नहीं आते. अमित साध ने निराश किया है. फिल्म में अति महत्वपूर्ण किरदार निभाने का अवसर उन्हे मिला है, पर वह पूरी तरह से सफल नहीं रहे. यदि यह कहा जाए कि वह इस अवसर का लाभ नहीं उठा पाए, तो गलत नहीं होगा. कलाकार को इस तरह के मौके बार बार नहीं मिलते. पर अमित साध अपनी प्रतिभा को साबित करने में विफल नजर आते हैं. मनोज बाजपेयी ने छोटे से किरदार में भी जान डाल दी है. रोनित राय ने ठीक ठाक अभिनय किया है. अमिताभ बच्चन ने फिर साबित किया कि वह महान कलाकार हैं.                                

फिल्म ‘‘सरकार 3’’ की सबसे बड़ी कमजोरी इसका कहानी विहीन होना है. टीवी सीरियल की तरह कुछ घटनाक्रमों के बल पर पूरी फिल्म बनायी गयी है. फिल्म में न तो कोई रोमांच है और न ही कोई प्रेम कहानी है. फिल्म में कहानी का कोई ठोस प्लाट ही नहीं है. निर्देशक व लेखक पूरी तरह से कन्फ्यूज्ड नजर आते हैं. टीवी सीरियल की तरह किसी सीन में एक पात्र हावी हो जाता है, तो किसी सीन में दूसरा पात्र. इसी तरह फिल्म के खलनायक भी सीन के साथ बदलते रहते हैं. वास्तव में पटकथा की कमजोरी के चलते एक भी किरदार उभर नहीं पाता. हर किरदार को लंबे लंबे संवाद दे दिए गए हैं. फिल्म को बेवजह सीरियल की ही तरह लंबा खींचा गया है. एक भी सीन रोचक नहीं बन पाया. कई दृश्यों में दर्शक अपनी हंसी नहीं रोक पाता. क्योंकि उसकी समझ में नहीं आता कि आखिर हो क्या रहा है? कुल मिलाकर फिल्म ‘‘सरकार’’ देखने का अर्थ सरदर्द मोल लेना है.

‘सरकार’ के सिक्वअल ‘सरकार राज’ के बाद फिल्मकार राम गोपाल वर्मा कोई अच्छी फिल्म नहीं बना पाए. राम गोपाल वर्मा ने कैमरे के साथ प्रयोग करते हुए फिल्म को बिगाड़ने का ही काम किया है.

दो घंटे 20 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘सरकार 3’’ का निर्माण ‘ए बी कार्प लिमिटेड’, ‘वेव सिनेमा,अलुम्ब्रा इंटरटेनमेंट ने मिलकर किया है. फिल्म के निर्देशक राम गोपाल वर्मा, लेखक द्वय पी जय कुमार और राम कुमार सिंह, पटकथा लेखक राम गोपाल वर्मा, कहानी निलेश गिरकर और राम गोपाल वर्मा, संगीतकार रवि शंकर, कैमरामैन अमोल राठौड़ तथा कलाकार हैं – अमिताभ बच्चन, जैकी श्राफ, मनोज बाजपेयी, अमित साध, यामी गौतम, रोनित राय, रोहिणी हट्टंगड़ी, पराग त्यागी, शिव शर्मा व अन्य.

बस ये टिप्स आजमाइए और घर में पैसा बचाइये

परिवार के सभी सदस्य जब कमा रहे हों तो घर में आने वाली आमदनी का प्रभावी प्रबंधन काफी मुश्किल हो जाता है. कमाने वाले प्रत्येक सदस्य की अपनी अपनी प्राथमिकताएं पसंद नापसंद होती हैं. वे धन के इस्तेमाल का तरीका तय करने में भी अपनी भूमिका चाहते हैं. ऐसे में परिवार के मुखिया के लिए यह अहम हो जाता है कि घर में आने वाली कुल आमदनी का प्रभावी तरीके से प्रबंधन किस तरह किया जाए. यह तय करते वक्त काफी सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है.

सुझाव समझ जरूरी-

सबसे पहले तो प्रत्येक सदस्य को परिवार के वित्तीय हालात की साझा समझ होना जरूरी है. इसमें होम लोन का भुगतान, बच्चों की शिक्षा का खर्च, टेलीफोन व अन्य बिल और घर का खर्च शामिल है. परिवार की कुल आमदनी से परिवार के कुल मासिक खर्च का तालमेल होना जरूरी है.

वित्त प्रबंधन एक हाथ में-

आमतौर पर भारत में परिवार का मुखिया ही सारी जिम्मेदारी उठाता है. वैकल्पिक रूप से यह जिम्मेदारी उसे मिलती है जो सबसे अधिक कमाता है. किसी एक व्यक्ति को वित्तीय प्रबंधन का दायित्व सौंपने से वित्तीय योजना पर सुचारुरूप से अमल किया जा सकता है.

बड़े खर्च के लिए अलग कोष-

परिवार में कर्ज की किस्त, शिक्षा का खर्च, बीमा भुगतान आदि जैसे बढ़े खर्चों के लिए अलग से कोष की व्यवस्था करना जरूरी है. परिवार में सभी कमाने वाले सदस्यों के लिए इन खर्चों में बराबर का योगदान सुनिश्चित करना एक स्वस्थ प्रक्रिया होगी. इससे परिवार में आपसी सामंजस्य भी मजबूत होगा और संयुक्त परिवार के खर्चों के प्रति प्रत्येक सदस्य में जिम्मेदारी का भाव भी रहेगा.

प्राथमिकताएं समझ, बचत की कोशिश-

वित्त प्रबंधन कर रहे व्यक्ति के लिए सबसे जरूरी यह है कि वह परिवार के प्रत्येक सदस्य की प्राथमिकता को समझे. ये प्राथमिकताएं उसकी खर्च की जरूरतों से संबंधित होंगी. सभी सदस्यों को एक दूसरे की प्राथमिकताएं समझ में आने के बाद ही बचत की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा. हर सदस्य को न्यूनतम बचत का लक्ष्य तय करना चाहिए.

खर्च के नियमों का पालन-

जब खर्च की बात आती है तो साझा समझ काफी कारगर साबित हो सकती है. समझदारी से खर्च करना बेहतर वित्त प्रबंधन की पहली आवश्यकता है. किसी भी मद पर खर्च करने से पूर्व प्रत्येक खर्च के महत्व और प्राथमिकता पर विचार कर लेना चाहिए.

Serial Story: गुंडा (भाग-1)

तेज रफ्तार से आती बाइक को देख कर लोग तितरबितर हो गए.

‘‘अरे ओ, रुक जाओ. कैसे चला रहे हो गाड़ी? ऊपर चढ़े जा रहे हो, दिखता नहीं है क्या? थोड़े में बच गई, वरना आज तो रामप्यारी हो जाती.’’ हाथ नचाती जोरजोर से चिल्लाती लड़की को साथ चलने वाली लड़की ने हाथ पकड़ कर कुछ समझाना चाहा, मगर उस ने अपना हाथ छुड़ा लिया. बाइक वाला अचानक ब्रेक मार कर सर्र से पीछे मुड़ा और इन के सामने आ कर एक पैर जमीन पर रख कर रुक गया.

‘‘अरे, रामप्यारी मैडम, दूसरों को कुछ कहने से पहले जरा खुद को देखो. बीच सड़क पर ऐसे चल रही हो जैसे पियक्कड़ चलते हैं. यह आम रास्ता है, आप की खुद की जागीर नहीं.’’

‘‘हां, यह हमारी ही जागीर है. तुम कौन होते हो मना करने वाले, चोरी और सीना जोरी.’’

‘‘सही कहा मेरीरानी. तुम ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली. अच्छा, यह सब छोड़ो. यह तो बताओ कि तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? आज क्लास नहीं है, फिर क्यों सड़क नाप रही हो?’’

‘‘तुम्हें इस से क्या? मैं चाहे पढूं या सड़कें नापूं, मेरी मरजी. तुम्हें इस से क्या लेनादेना मिस्टर चंदूलाल?’’

‘‘ठीक है, समझ गया. लगता है बहुत दिन से शाहरुख खान की कोई फिल्म नहीं देखी. इसलिए आग उगल रही हो.’’

‘‘अरे जा, ऐसा कभी हो सकता है कि शाहरुख की फिल्म लगी हो और मैं न देखूं. अभी पिछले हफ्ते तो ‘माई नेम इज खान’ लगी थी और तुरंत मैं ने देख ली.’’

‘‘कैसी लगी? अच्छी है न?’’

‘‘अच्छी… महाबोर. उस की सारी फिल्में एक से एक हैं, मगर ये…’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ उस ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘बिलकुल थर्ड क्लास. नहीं देखती तो अच्छा था, अब पछता रही हूं.’’

‘‘ऐसा क्या?’’ उस की हंसी छिपाए नहीं छिप रही थी, मगर मेरी अपनी ही धुन में बोले जा रही थी.

‘‘और क्या? बिलकुल शाहरुख की पिक्चर नहीं लगी. इतनी बोर तो उस की कोई पिक्चर नहीं है.’’

‘‘समझा. लड़कियों की आंखों में आंखें डाल कर रोमांटिक डायलौग्स बोलता हुआ, नाचतागाता, उन के दिलों पर राज करते रोमांटिक हीरो की छवि इस फिल्म में नहीं है. शायद इसलिए यह तुम्हें पसंद नहीं आई,’’ वह हंसता हुआ बोला.

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‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई. यह मेरी सहेली नीरजा है. इस शहर और कालेज में नई आई है. मेरी ही कक्षा में है,’’ उस ने अपने साथ खड़ी लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘जी, हां. मेरे पापा बैंक में हैं. इसलिए 3-4 साल से ज्यादा हम एक जगह रह ही नहीं सकते.’’

‘‘अच्छा, मैं चलता हूं. मेरी क्लास है बाय,’’ कह कर वह चला गया.

‘‘बड़ी अच्छी लगी आप लोगों की चुहलबाजी, बिलकुल बच्चों जैसी. तकरार तो है ही साथ में अपनापन भी है,’’ नीरजा ने हंसते हुए कहा.

‘‘ठीक कहा तुम ने नीरजा. देखा नहीं, कितने हक से वह इसे मेरीरानी कह रहा था,’’ पता नहीं रूमा कब आ गई थी साथ चलते हुए बोली, ‘‘अच्छा, यह तो बता मेरीरानी की च…’’

‘‘बस, रूमा बहुत हुआ. सीधीसादी बात को गोलगोल घुमाना, उस में अपने मन से रंग भर कर रंगीला, चटकीला बनाना कोई तुझ से सीखे.’’ लाख कोशिश करने पर भी मेरी अपने गुस्से पर परदा नहीं डाल सकी.

‘‘इस में इतना भड़कने की क्या जरूरत है? क्या केवल वही मेरीरानी कह सकता है, हम नहीं.’’ उस के स्वर में व्यंग्य नहीं था. वह हंसते हुए चली गई.

‘‘क्या हुआ मेरी? रूमा तो मजाक कर रही थी. तुम बुरा क्यों मान गई?’’ नीरजा उसे समझाने के अंदाज में बोली.

‘‘तुम नहीं जानती नीरू कि रूमा कितनी खतरनाक है. तुम अभी नई हो. यहां सबकुछ इतना सीधा नहीं है जितना दिखता है. वास्तव में यह रूमा चंदू के पीछे पड़ी थी.’’

‘‘पड़ी क्या थी, वह तो अब भी उस की दीवानी है. चंदू हां करे तो वह उस के पैरों में बिछ जाए, मगर वह ऐसी लड़कियों को भाव ही नहीं देता, तो यह चिढ़ती है और उसे बदनाम करने की कोशिश करती है,’’ मेरी बोली.

‘‘यह तो लड़केलड़कियों में आम बात है. यहां से निकलते ही सब लोग पिछली बातें भूल कर अपनीअपनी जिंदगी जीते हैं, लेकिन तुम पर वह क्यों व्यंग्यबाण चला रही थी?’’ नीरजा ने कहा.

‘‘उस की आदत है. छोटी सी बात को ले कर भी उसे लोगों की खिंचाई करना अच्छा लगता है. वास्तव में चंदू मेरे स्कूल का सहपाठी है. हम दोनों साथ खेलतेकूदते और लड़तेझगड़ते बड़े हुए हैं. एक बात बताऊं? स्कूल में मेरा नाम मेरीरानी ही था. कालेज में मैं ने रानी हटा कर मेरी रखा.’’

‘‘अच्छा, यह बात है? मगर रानी क्यों हटा लिया? मेरीरानी अच्छा तो लग रहा है.’’

‘‘तुम तो मुझे बनाने लगी. यह नाम बंगालियों में अकसर सुनने में आता है, मगर मुझे बड़ा अटपटा लगता था, क्योंकि स्कूल में मुझे सब लोग मेरीरानी कह कर चिढ़ाया करते थे, खासकर लड़के. इसीलिए मैं ने अपने नाम से रानी हटा लिया, केवल चंदू जानता है, इसीलिए कभीकभी अकेले में छेड़ता है.’’

‘‘और उस का नाम चंदूलाल… आज के जमाने में…’’

‘‘अबे, नहीं. उस का नाम तो चंद्रभान है.’’

‘‘यानी चांद और सूरज साथसाथ.’’

‘‘अरे हां, सच है. मैं ने तो आज तक गौर ही नहीं किया. सब उसे बचपन में चंदू कह कर बुलाते थे. हम जब लड़ते थे तब वह गाता था, ‘मेरीरानी बड़ी सयानी…’ और मैं गाती ‘चंदूलाल चने की दाल…’’ दोनों सहेलियां हंस पड़ीं.

नीरजा ने कलाई पर बंधी घड़ी की ओर देखा और उछल पड़ी. 5 मिनट की देरी हो चुकी थी. ‘‘अरे, बाप रे, अंगरेजी की मैम तो बहुत स्ट्रिक्ट हैं. वे तो कक्षा में घुसने नहीं देंगी. मेरी, जल्दी चलो.’’ दोनों कक्षा की ओर भागीं. अभी मैडम क्लास में नहीं आई थीं. क्लास में काफी शोर हो रहा था. दोनों बैठ गईं.

पीछे बैठी शीतल ने ‘हाय’ किया, लेकिन जवाब देने से पहले ही मैडम आ गईं. पीरियड समाप्त होते ही मेरी फ्रैंच क्लास में चली गई.

नीरजा की अब कोई क्लास नहीं थी. इसीलिए वह किताबें समेट कर घर जाने के लिए निकल पड़ी. शीतल भी साथ चलते हुए बोली, ‘‘चलो, नीरजा कैंटीन में चाय पीते हैं.’’

‘‘नहीं शीतल, मुझे जाना होगा. मम्मी राह देखती होंगी, बाय,’’ कह कर वह निकल गई. इतने दिन में वह समझ गई थी कि शीतल की पढ़ाई में कम और कालेज में भीड़ इकट्ठी करने, पार्टियों और फिल्म देखने में ज्यादा रुचि थी. शायद वह किसी करोड़पति से शादी कर के ऐशोआराम की जिंदगी जीने के इंतजार में थी.

उस दिन तो नीरू का मूड ही खराब हो गया. आखिर उस के मुंह से निकल गया, ‘‘सर, कितने दिन से मैं इस किताब के लिए लाइब्रेरी के चक्कर लगा रही हूं. किस के पास है यह किताब?’’

‘‘बेटा, मुझे याद नहीं है कि किस के पास है, जरा 2 मिनट रुक जाओ. मैं देख कर बताता हूं.’’

‘‘सर, यह किताब मेरे पास है. कल लौटा दूंगा,’’ सामने से आवाज आई. नीरू ने पलट कर देखा तो कोई लड़का पास ही मेज पर बैठा कुछ पढ़ रहा था. उस ने इस की बातें सुन ली थीं.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. आप पढ़ने के बाद ही उसे वापस कीजिए. मैं सर से ले लूंगी,’’ नीरू ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘मैं ने पढ़ ली है. मैं वापस देने ही वाला था, पर जरा लापरवाही हो गई. आई एम सौरी. कल ला दूंगा. आप ले लीजिएगा.’’

इस प्रकार हुआ था उस का आनंद से परिचय. बाद में पता चला कि वह शीतल का भाई है. कितना अंतर था उन दोनों में. शीतल जहां एक चंचल तितली की तरह थी, वहीं वह चरित्रवान आदर्श व्यक्ति का स्वरूप.

ऐसे व्यक्ति के पास लड़कियां अपनेआप को बिलकुल सुरक्षित महसूस करती हैं. वह नीरू को भा गया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.

उस दिन क्लास खत्म होने के बाद जब नीरजा घर जाने के लिए निकली तो आकाश काले बादलों से ढका हुआ था.

4 बजे ही अंधेरा छा गया था. बूंदाबांदी शुरू हो गई थी. पता नहीं क्यों आज मेरी भी नहीं आई थी. हमेशा दोनों पैदल ही जाती हैं, क्योंकि दोनों के घर कालेज से ज्यादा दूर नहीं थे. वह जल्दीजल्दी घर की ओर जाने लगी. इतने में एक बाइक उस के पास आ कर रुकी.

‘‘बहुत तेज बरसात होने वाली है. आप को एतराज न हो तो मैं आप को घर छोड़ दूं?’’ यह चंदू की आवाज थी.

‘‘जी, नहीं. मैं चली जाऊंगी. घर पास में ही है,’’ वह दनदनाती हुई आगे बढ़ गई. अभी दो कदम भी नहीं  चली थी कि तेज बरसात हो गई.

‘अब क्या करूं?’ नीरजा सोचने लगी, ‘चंदू के साथ चली जाती तो अच्छा था. किताबें भीग रही हैं.’ चंदू के बारे में लोगों की विरोधाभासी बातें सुन कर वह अब तक अपनी कोई राय नहीं बना पाई थी. पीछे से जोरजोर से कार के हौर्न की आवाज सुन कर वह पलटी.

‘‘नीरू, जल्दी अंदर आ जाओ,’’ शीतल ने आवाज दी. कार का दरवाजा खुला और वह लपक कर कार में बैठ गई. उस ने देखा अंदर रूमा भी बैठी थी. कार आनंद चला रहा था.

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‘‘क्या कह रहा था हीरो,’’ रूमा ने हंसते हुए पूछा.

नीरू ने कहा, ‘‘यही कि आइए, तेज बरसात होने वाली है. आप भीग जाएंगी. मैं अपने खटारे पर आप को घर छोड़ दूंगा.’’

‘‘लड़कियां पटाना तो कोई इस से सीखे,’’ दोनों जोरजोर से हंस पड़ीं. सामने लगे आईने में आनंद की मंदमंद मुसकराहट भी नीरू देख रही थी.

‘‘देखो नीरू, इस भंवरे से दूर ही रहना. चंदू मवाली, गुंडा और आवारा है. तुम्हारी सहेली मेरी तो उस की हिमायती है. कभी उस की बातों में न आना,’’ रूमा ने बड़ी आत्मीयता जताते हुए कहा.

‘‘बरसात बढ़ रही है, हम ने आप का घर देख लिया है फिर कभी जरूर आएंगे,’’ कह कर आनंद ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

2 दिन बाद मेरी कालेज आई. बहुत कमजोर हो गई थी. उसे मलेरिया हो गया था. वह आ तो गई थी मगर बैठ नहीं पा रही थी. बड़ी मुश्किल से 2 पीरियड निकालने के बाद उस ने घर जाने का निश्चय कर लिया. नीरू उसे रिकशे में बैठाने साथ गई. कालेज के मुख्य फाटक पर पहुंचने से पहले ही नीरू ने देखा कि एक पेड़ के नीचे चंदू, रूमा और अन्य 2-3 लड़कियां जोरजोर से हंस रही थीं. इतने में रूमा ने अपने हाथ से चंदू के बाल बिखेर दिए और उस का हाथ पकड़ कर जब चंदू ने उसे रोकना चाहा तो रूमा ने दूसरे हाथ से चिकोटी काट ली और सब  हंसने लगे. नीरू ने सोचा, ‘अजीब लड़का है. कालेज में कृष्ण कन्हैया बना फिरता है. पढ़ता कब होगा.’

कालेज का युवा सम्मेलन कार्यक्रम बहुत अच्छा होता है. उस में तरहतरह के रंगारंग कार्यक्रम होते हैं. मेरी ने एक अंगरेजी नाटक में मुख्य भूमिका निभाई. शीतल, रूमा और कुछ अन्य लड़कियों ने मिल कर एक पश्चिमी नृत्य पेश किया. इसी कार्यक्रम में घोषणा की गई कि आनंद ने कालेज के पुस्तकालय के लिए 10 हजार रुपए का अनुदान दिया है.

पिछले वर्ष विभिन्न विभागों में प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त करने वालों को इनाम दिए गए. अंत में खेल विभाग का नंबर आया. सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और खेल सचिव के रूप में चंद्रभान शर्मा का नाम घोषित किया गया. जितनी तालियां उस के लिए बजीं उतनी तो शायद किसी और के लिए नहीं बजी थीं.

भीड़ को चीरते हुए चंद्रभान आगे आ रहा था. नीरू ने देखा, वह हमेशा की तरह बिंदास था. बाल बिखरे, कमीज कुछ अंदर, कुछ बाहर. हवा के झोंके की तरह चला आ रहा था वह.

एक अध्यापक ने उसे पकड़ा. उस की कमीज ठीक की, बाल संवारे और कहा, ‘‘तुम कहां रह गए थे? स्टेज के पीछे रहने को कहा गया था न? बाकी सारे इनाम के हकदार वही हैं.’’

‘‘जी, सर पीछे बैठा एक वृद्ध व्यक्ति बेहोश हो गया था. उसे अस्पताल पहुंचा कर आ रहा हूं,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘सर, यह हमारे कालेज का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और खेल सचिव है. हमें दोतिहाई पुरस्कार इसी की वजह से मिले हैं,’’ प्रिंसिपल साहब ने मुख्य अतिथि से परिचय कराते हुए कहा.

शीतल के बुलावे पर 3-4 बार नीरू को उस के घर जाना पड़ा. शीतल कालेज के चुनावों में सांस्कृतिक सचिव के पद के लिए चुनाव लड़ रही थी. वह यह कह कर नीरू को अपने घर ले जाती कि तेरे आइडियाज बहुत अच्छे हैं, तेरी प्लानिंग भी अच्छी है. चुनाव में जीतने के लिए तुम्हारी मदद की मुझे काफी जरूरत है.

नीरू किसी को भी ना नहीं कर सकती थी. मगर शीतल के नीरू को पटाने के और भी कारण थे, क्योंकि नीरू पढ़ने में अच्छी थी. वह चुनाव में व्यस्त होने के बहाने उस के नोट्स ले कर फोटोकौपी करवा लेती. दूसरा और जरूरी कारण यह था कि वह जानती थी कि आनंद की नीरू में रुचि है और आनंद ने ही उन दोनों की दोस्ती को प्रोत्साहित किया था.

पहली बार उन के घर को देख कर नीरू चकित रह गई. वे बहुत पैसे वाले लोग थे. सब के अलगअलग कमरे, अलगअलग गाडि़यां, अलग जीने के तरीके थे. किसी को दूसरे के बारे में पता नहीं, न ही वे एकदूसरे के जीवन में दखल देते थे. नीरू जब भी वहां जाती आनंद से अवश्य मिलती. वैसे भी आनंद का शालीन, संतुलित व्यवहार उसे भाने लगा था.

आजकल नीरू को शीतल के साथ चुनाव प्रचार के लिए कालेज के छात्रछात्राओं के घर जाना पड़ता था. दोनों कार से जाते, वापसी में शीतल उसे घर छोड़ देती. उस दिन शीतल की कार खराब हो गई थी इसलिए आनंद ने शीतल को एक घर के सामने छोड़ दिया.

‘‘यह किस का घर है?’’ नीरू ने पूछा.

‘‘मेघा का.’’

‘‘मेघा… हां, याद आया. परिचय तो नहीं है पर शायद आर्ट फैकल्टी में है.’’

‘‘हां, ठीक पहचाना. क्या करें, जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है,’’ कार लौक करते हुए शीतल ने कहा.

‘‘क्या?’’

‘‘कुछ नहीं. चलोचलो. आज हमें 3 घर निबटाने हैं.’’

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कार की आवाज सुन कर कोई बाहर आया. नीरू ने सोचा यही मेघा है, वह मुसकरा दी.

‘‘मेघा, यह नीरजा है, मेरी ही क्लास में है.’’

‘‘जानती हूं और मैं मेघा, जर्नलिज्म की छात्रा हूं. मैं आप को अकसर शीतल के साथ देखती हूं या पुस्तकालय में,’’ नीरू मुसकराते हुए सुन तो रही थी मगर उस का दिमाग तेजी से विचारों में उलझा हुआ था. इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. यह मेरी आंखों में बसी हुई है. कालेज में तो कई छात्र हैं उस लिहाज से नहीं. फिर… अचानक उसे याद आया, ‘‘हां, यह तो अकसर चंदू के स्कूटर पर नजर आती है.’’

‘‘आइए न अंदर,’’ उस के पीछे शीतल और नीरजा अंदर चल दीं. वहां एक प्रौढ़ा कुछ पढ़ रही थीं. मेघा ने अपनी मां से दोनों का परिचय कराया. उन्होंने बड़े प्यार से दोनों लड़कियों से बात की. थोड़ी देर बाद एक स्कूटर घर के आगे रुका, जिस से चंदू उतरा और घर के अंदर आ गया.

नीरजा देखती रह गई, ‘‘चंदू यहां…’’

‘‘नीरजा, यह मेरा भाई चंद्रभान है. मैं इन की छोटी बहन हूं, कोई मुझे जाने या न जाने इन्हें तो हर कोई जानता है.’’

‘‘शीतल आज तुम यहां… हमारा घर पवित्र हो गया. अरे, भई मेघा, इन लोगों को कुछ खिलायापिलाया या नहीं?’’

‘‘नहीं भैया, अभीअभी तो आए हैं,’’ इतने में मेघा की मां एक ट्रे ले कर आईं, जिस में पकौडे़ थे.

‘‘मां, मुझे बुला लेतीं. आप अब बैठिए, मैं चाय बना लूंगी.’’

‘‘ठीक है, ठीक है, पहले इन्हें खाने तो दे,’’ मां ने कहा.

मेघा ने उठ कर पकौड़ों की प्लेट शीतल के आगे बढ़ाई.

चंदू बोला, ‘‘लो शीतल, मां बहुत स्वादिष्ठ पकौड़े बनाती हैं. एक बार खाओगी तो बारबार मेरे घर आओगी, इन्हें खाने के लिए.’’

‘‘नहीं मेघा, पहले ही मेरा गला बहुत खराब है. ऐसावैसा कुछ खा लिया तो हालत और खराब हो जाएगी.’’

चंदू पकौड़ों की प्लेट ले कर खुद खाने लगा. ‘‘अरे भैया, नीरजा को दो,’’ मेघा ने टोका.

‘‘नहीं मेघा, क्यों उन्हें परेशान करती हो. जैसे ध्यानचंद वैसे मूसर चंद. मुझे अच्छे लगते हैं इसलिए मैं खा रहा हूं.’’

क्रमश:

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महिलाओं की शक्ति को कम न आंकें : शौना चौहान

22 साल की उम्र में पार्ले एग्रो कंपनी के बोर्ड में निदेशक के रूप में शामिल हुईं शौना चौहान फिलहाल इस की सीईओ हैं. कंपनी के संस्थापक प्रकाश चौहान की बड़ी बेटी होने के नाते शौना ने बिजनैस का कार्यभार संभाला और धीरेधीरे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कंपनी की मौजूदगी दोगुनी कर दी. स्वभाव से वर्कहोलिक और आत्मविश्वास से भरी शौना चौहान अपने बेटे जहान के लिए आदर्श मौम की भूमिका कैसे निभाती हैं, सहित और कईर् प्रश्नों के जवाब जानते हैं उन्हीं से:

भारत में उद्यमी महिलाओं की स्थिति के संबंध में क्या कहेंगी?

भारत में लोगों ने महिलाओं के बारे में गलतफहमियां पाल रखी हैं. जब आप किसी उद्यमी के बारे में बात करते हैं, तो ज्यादातर लोग किसी पुरुष के बारे में ही सोचते हैं, जबकि आज अनेक महिलाएं अपना खुद का बिजनैस चला रही हैं.

अनेक महिला उद्यमी व कार्यशील महिलाएं ऐसी हैं, जिन के पास अच्छी नौकरी व अच्छी इनकम है और उन का सम्मान भी है. यह महत्त्वपूर्ण नहीं है कि कोई महिला, फैमिली बिजनैस में आती है या नहीं, बल्कि माने यह रखता है कि महिलाओं में निवेश किया जाए और उन की क्षमताओं को कम कर के न आंका जाए. वास्तव में महिलाओं  के बारे में सोच बदलने की जरूरत है ताकि हम दूसरों के अनुसरण के लिए मिसाल कायम कर सकें. महिलाओं की शक्ति को कभी कम नहीं समझना चाहिए.

आप के लिए टाइम मैनेजमैंट का फंडा क्या है?

जीवन के  हर क्षेत्र में कामयाबी के लिए वक्त की कीमत समझना हर किसी के लिए बहुत जरूरी है. वक्त बरबाद करने वाले ही अपनी पहचान कायम नहीं कर पाते. कारगर योजना, लक्ष्य व उद्देश्य तय करना, समयसीमा निर्धारित करना, कार्यों की प्राथमिकता तय करना आदि कुछ बुनियादी नियम हैं, जो अपने समय को सही ढंग से मैनेज करने के लिए मैं अपनाती हूं.

हमारे कर्मचारियों को उन का टाइम सही मैनेज करने में मदद के लिए हम 8.30 बजे सुबह काम शुरू करते हैं और 5 बजे शाम बंद कर देते हैं  ताकि उन्हें काम व जीवन के  बीच सही तालमेल बनाए रखने में मदद मिलती रहे.

बच्चे के साथ कितना टाइम बिता पाती हैं?

स्कूल के बाद मेरा बेटा, जहान सीधा औफिस चला आता है, जहां वह खेलता है और मस्ती करता है. शाम के वक्त हम साथ होते हैं. वीकैंड उसी के लिए होता है. उस समय मेरे अंदर छिपा बचपन बाहर आ जाता है. हम हर बार कुछ न कुछ नया आजमाते हैं. हम स्विमिंग या दूसरी आउटडोर गतिविधियां करते हैं. कुछ खास वीकैंड्स पर हम शहर से बाहर सैर पर चले जाते हैं.

बच्चे के जीवन से जुड़े फैसले लेते वक्त किन बातों का खयाल रखती हैं?

मैं यह ध्यान रखती हूं कि सिद्धांतों व मूल्यों से कोई समझौता न हो. मेरे फैसले सही या गलत पर आधारित होते हैं. मैं बच्चे पर अपना फैसला थोपना पसंद नहीं करती वरन उसे वजह समझाती हूं और फैसला उसी पर छोड़ देती हूं.

पति की कितनी मदद मिलती है?

पति ने मेरे हर काम में हमेशा मेरी मदद की है. हम दोनों ही अपने काम को ले कर जनूनी हैं. हम समझते हैं कि अभी हमें अपने काम को प्राथमिकता देनी चाहिए और यही समझ हमें बैलेंस बनाने में मदद करती है. यदि मैं काम की व्यस्तता में कुछ भूल जाऊं या वे कुछ भूल जाएं तो हम इसे मैच्योर व समझदार वयस्कों की तरह सुलझाते हैं.

आप की जिंदगी का सब से खूबसूरत पल?

बचपन में डैड के साथ माथेरान में हौर्स राइडिंग के लिए जाना मेरी एक सब से यादगार मैमोरी है. माथेरान में एक ‘वन ट्री हिल’ जगह है. छुट्टियों के दौरान हर सुबह और शाम को हम अपने होटल से ‘वन ट्री हिल’ तक राइडिंग करते थे. अपने पिता के साथ उस जगह की कुदरती खूबसूरती के आनंद को मैं कभी नहीं भूल सकती.

मेरा कैनवास अभी खत्म नहीं हुआ है : काजोल

फिल्मी परिवार में पली-बढ़ी अभिनेत्री काजोल देवगन ने फिल्म ‘बेखुदी’ से अपने करियर की शुरुआत की थी, लेकिन उनकी सफल फिल्म ‘बाजीगर’ थी. बचपन से ही काजोल को कविताएं  लिखना और डरावने उपन्यास पढ़ना पसंद था. आज भी जब समय मिलता है तो वे किताबें पढ़ती हैं.

काजोल और शाहरुख खान की जोड़ी आज भी दर्शकों में लोकप्रिय है. वे स्पष्टभाषी हैं. इसी बात से अभिनेता अजय देवगन प्रभावित हुए और उन्हें अपना जीवनसाथी बना लिया. फिल्म जगत में बेहतरीन परफौर्मैंस के लिए वे पद्मश्री अवार्ड से भी सम्मानित की जा चुकी हैं. काजोल एक सफल अभिनेत्री, पत्नी और मां हैं. मां बनने के बाद उन्होंने अपने अभिनय की दूसरी पारी शुरू की. वे विज्ञापनों में भी देखी जाती हैं. पेश हैं, उन से हुए कुछ सवालजवाब:

दूसरी पारी की शुरुआत का श्रेय किसे देती हैं?

सब से पहले पति अजय देवगन को जिन्होंने मेरे हर काम में हमेशा मेरा साथ दिया. बेटी न्यासा के होने के बाद वे हमेशा कहते रहे कि मुझे काम शुरू कर देना चाहिए. इस के बाद मैं ने ‘फना’, ‘यू मी और हम’, ‘माई नेम इज खान’, ‘वी आर फैमिली’ आदि फिल्में कीं. लेकिन जब बेटा युग हुआ तो मैं ने फिर मदरहुड को अहमियत दी. युग के बाद मेरी बेटी ने मुझे फिर से फिल्मों में जाने की प्रेरणा दी.

क्या कभी लगा कि मां बनने से करियर प्रभावित हुआ?

नहीं, बचपन में मैं ने अपनी मां को हमेशा काम करते देखा है. मां ने हमेशा समझाया कि  काम करना जरूरी है. आजकल के बच्चे तो इतने प्रतिभावान हैं कि उन्हें अधिक समझाना नहीं पड़ता. मेरे बच्चे खुश होते हैं कि मैं काम कर रही हूं. जब मैं मां बनी, तो जिम्मेदारी अधिक बढ़ गई थी, इसलिए मैं ने थोड़े दिनों के लिए काम से बे्रक ले लिया था. मेरे लिए केवल बच्चों को जन्म देना ही काफी नहीं, बल्कि उन की परवरिश भी मेरी जिम्मेदारी है और मैं ने उसे पूरी तरह निभाया.

अपने इस सफर को कैसे देखती हैं?

मैं ने फिल्में भी बहुत की हैं. बच्चों को भी अच्छी तरह संभाला और खुद पर भी ध्यान दिया. अभी और बहुत सारे काम करने बाकी हैं. मेरा कैनवास अभी खत्म नहीं हुआ है.

बच्चों को कितनी आजादी देती हैं?

मैं बहुत स्ट्रौंग मदर हूं. उन्हें आजादी कम ही मिलती है. मैं हमेशा लाइफ की प्रायौरिटी समझाने की कोशिश करती हूं. अगर वे बचपन से इस बात को समझ लेंगे तो बड़ा होने पर उन्हें कोई समस्या नहीं आएगी. अपने बच्चों से हमेशा यही कहती हूं कि चाहे स्कूल की परीक्षा हो या लाइफ की कोई भी चुनौती, तब तक सामना करें जब तक उस में सफल नहीं हो जाते.

व्यस्त दिनचर्या में परिवार के लिए समय कैसे निकालती हैं?

समय हम सभी निकालते हैं. बच्चों की छुट्टियां होने पर समय के अनुसार घूमने निकल जाते हैं यानी उन की छुट्टियों के हिसाब से हौलिडे प्लानिंग करते हैं. हम ने साफ रेखा खींच ली है कि दीवाली, क्रिसमस की छुट्टियों में हम सब साथ रह कर ऐंजौय करेंगे. यह हमारे और हमारे बच्चों  सब के लिए बहुत जरूरी है.

आज की लड़कियां शादी करने और मां बनने से घबराती हैं. आप ने सब कुछ समय से कर लिया. ऐसे में उन्हें क्या मैसेज देना चाहती हैं?

आज बहुत सारी चौइसेज हैं. अगर आप को सही इनसान मिले, तो कभी यह न सोचें कि आप उसे मैनेज नहीं कर सकतीं. जहां चाह होती है वहीं राह मिल जाती है. जीवन का जो अगला पड़ाव है उसे किसी के लिए भी सैक्रिफाइस न करें, फिर चाहे वह करियर हो या पैसा. सही समय पर सही निर्णय न लेने से बाद में मुश्किलें आती हैं.

अपने सफर को बनाएं रॉयल

इंडिया टूरिज्म ने एक अच्छे और आरामदायक ट्रिप के लिए बहुत सारी सुविधाएं दी हैं. रॅायल ट्रेन उनमें से एक है. इंडियन रेलवे ने कुछ बहुत ही बेहतरीन रॅायल ट्रेन दिए हैं, जो आपको एक रॅायल फिलींग देगें. यह ट्रेने ज्यादातर इंडिया ट्रैवल को प्रोमोट करते हैं.

पैलेस ऑन विल्स

पैलेस ऑन विल्स की शुरूआत 1983 में हुई थी. यह इंडिया के बहुत पुराने रॅायल ट्रेनों में से एक है. इस ट्रेन को शुरूआत करने का खास उद्देश्य राजपूत वंश और राजस्थान को दर्शाना था. इस ट्रेन में लगभग 14 कोच बने हुए हैं, जो आपको रॅायल महसूस कराएगी. इस ट्रेन में आपको दो बहुत ही बेहतरीन रेस्ट्रॉन्ट मिलेंगे “द महाराजा” और “द महारानी” जो बिल्कुल राजस्थानी लुक देते हैं.

रूट : यह ट्रेन दिल्ली से शुरू होकर जयपुर, सवाई माधवगढ़, चित्तौरगढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुक और आगरा तक जाती है.

रॅायल राजस्थान ऑन विल्स

इंडियन रेलवे ने रॅायल राजस्थान ऑन विल्स टूरिस्ट के आराम के लिए बनाया है. इसे 2009 में शुरू किया गया था और यह बिल्कुल पैलेस ऑन विल्स जैसी है. स्वर्ण महल और शीश महल दो बेहतरीन डाइनिंग कार है.

रूट : यह ट्रेन दिल्ली से शुरू होकर जयपुर, सवई माधोपुर, चित्तौरगढ़, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, भरतपुर और आगरा तक जाती है.

द गोल्डन चैरिओट

द गोल्डन चैरिओट एक लक्जरी ट्रेन है जो साउथ इंडिया के कुछ जगहों को कवर करती है. पैलेस ऑन विल्स के सफलता के बाद इसकी शुरूआत की गई थी. इसमें लगभग 11 कोच है जो बहुत ही रॅायल लुक देती है. इस ट्रेन की देखभाल कर्नाटक स्टेट टूरिज्म और डेवलपमेंट द्वारा की जाती है. अक्टूबर-मार्च के बीच ये चलती है. इस ट्रेन की दो रूट हैं.

रूट 1: बैंगलोर, मैसूर, नागरहोले नेशनल पार्क, हसन, होसपेट, हम्पी, चेन्नई, बादामी और गोवा.

रूट 2: बैंगलोर, चेन्नई, पॅान्डीचेरी, थन्जावूर, मदूरई और कोची.

महाराजा एक्सप्रेस

महाराजा एक्सप्रेस की शुरूआत 2010 में हुई थी. यह सेंट्रल और नार्थ-वेस्ट इंडिया को कवर करती है. महाराजा एक्सप्रेस को अक्टूबर-अप्रैल तक ऑपरेट किया जाता है और इसका मेजर लोकेशन राजस्थान है.

रूट : यह ट्रेन दिल्ली या मुंबई से शुरू होती है और आगरा जरूर जाती है.

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