इस गर्मी क्रूज वैकेशन का लें मजा

छुट्टियां मनाने का नया तेजी से उभरता हुआ ट्रेंड है क्रूज वेकेशन. तो क्यों न आप भी इन छुट्टियों में जाएं क्रूज वेकेशन पर. छुट्टियां मनाने का यह फंडा आपको और आपकी फैमिली को खूब पसंद आएगा. लोगों के बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए इस समर के लिए कई ट्रैवल ग्रुप ने कम प्राइज में कई तरह की ट्रिप ऑर्गनाइज की हैं. तो जानिए कुछ ऐसे ही क्रूज ट्रिप के बारे में..

उभरता हुआ ट्रेंड

बच्चों की गर्मी छुट्टियां होते ही हर कोई प्लानिंग करने लगता है कि इस बार छुट्टियां मनाने कहां जाया जाए. ऐसे में आप सोच सकती हैं क्रूज वेकेशन के बारे में. वैसे, ट्रैवल कंपनियों की रिर्पोट के मुताबिक, इंडिया में जहां 2015 में क्रूज वेकेशन करने वालों की संख्या 4 फीसदी थी, वहीं 2016 में 7 फीसदी हो गई. इससे पहले 2010 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्रूज वेकेशन करने वाले मात्र 2 फीसदी लोग थे.

ऑफर बेशुमार

ट्रैवल कंपनियां क्रूज वेकेशन में कई तरह के ऑफर देने लगी हैं. इसमें आपको 10 से लेकर 60 हजार तक के पैकेज मिलेंगे, लेकिन इनमें ऑफर भी बेशुमार होंगे. इसमें पूरी फैमिली के लिए डिनर पैकेज या ग्रुप पार्टी का ऑप्शन आपको मिल सकता है.

कुछ पॉपुलर क्रूज ट्रिप

मुंबई से मालदीव

ट्रैवल ग्रुप कंपनी कोस्ता क्रोसियर मुंबई से मालदीव तक का टूर दे रही है. इसे आप ऑनलाइन भी बुकिंग करवा सकती हैं. मुंबई से मालदीव की 7 दिन की क्रूज ट्रिप 43 हजार रुपये में मिल रहा है. यानी एक दिन का खर्चा 6 हजार रुपए. इसमें आपका खाने पीने और टिकने के साथ दूसरी कई सुविधाएं भी आपको 6 हजार रुपये में मिलेंगी.

पिनांग से फुकेट

पिनांग से फुकेट का क्रूज ट्रिप 25 हजार रुपये है. यानी 8 हजार एक दिन का खर्च. इसमें आपको वो सभी सुविधाएं मिलेंगी, जो दूसरी ट्रिप में हैं.

मुंबई से ग्रीस

मुंबई से ग्रीस तक के क्रूज ट्रिप को अजामारा जर्नी के नाम से जाना जाता है. ये क्रूज मुबई से शुरू होकर ओमान, जॉर्डन, इजराइल, साइप्रस होते हुए ग्रीस पहुंचता है. ये क्रूज 18 दिन और 17 रात का है. इस क्रूज की टिकट एक से डेढ़ लाख है. इसमें रहने और खाने का खर्च भी शामिल है. इस शिप में कैसिनो, थिएटर, लाइब्रेरी, डिस्कोथेक, बॉलरूम, डाइनिंग ऑप्शन, वेजिटेरियन रेस्तरां, बार, स्पा, वेलनेस सेंटर, चार जकुजी, स्विमिंग पूल और जिम की सुविधा है.

फुकेट से क्वालालंपुर

यह 5 दिन की ट्रिप है, जिसके लिए आपका खर्चा होगा तकरीबन 40 हजार रुपये. यानी 8 हजार रुपये एक दिन का खर्च. इस शिप में कैसिनो, थिएटर, लाइब्रेरी, डिस्कोथेक, बॉलरूम, डाइनिंग ऑप्शन, वेजिटेरियन रेस्तरां, बार, स्पा, वेलनेस सेंटर, चार जकुजी, स्विमिंग पुल और जिम हैं.

..तो खूबसूरत दिखेंगे आपके नेल्स

खूबसूरती के लिए जितना समय हम अपने बाल और स्किन को देते हैं अगर उतना ही ध्यान अपने नाखूनों का भी रखे तो हमारे नाखून भी काफी खूबसूरत लगने लगेंगे. आप घर पर ही नाखूनों की बेहतर देखभाल कर नेल आर्ट के जरिए हाथों की खूबसूरती बढ़ा सकती हैं.

एक कोड में लगाएं नेल आर्ट

कोई भी इंसान दोनों हाथों पर नेलपेंट से कलाकारी नहीं दिखा सकता. ऐसे में नेल आर्ट टिप्स नेल डिजाइन के लिए परफेक्ट साबित हो सकते हैं. प्लास्टिक जिप्लॉक बैग पर अपना डिजाइन ड्रॉ करें और उसे सूखने दें. अब उसे निकाल दें और अपने नेल्स पर चिपका दें. अगर आप अपने नेल्स पर न्यूड कलर भी अप्लाई करती हैं तो इसका भी अपना अलग तरीका है.

कोई भी नेल पेंट एक कोट या फिर दो कोट में ही लगाना चाहिए. अगर आप उससे ज्यादा कोट लगाती हैं तो नेलपेंट की शाइनिंग चली जाती है. आप कुछ देर के लिए मार्बल्स नेल्स की डिजाइन पाना चाहती हैं तो प्लास्टिक रैप का इस्तेमाल करें. पहले नेल को किसी बेस कलर से पेंट करें और बाद में इसे सूखने के लिए छोड़ दें. इसके बाद डबल कोट नेलपॉलिश अप्लाई करें. अब किसी क्रम्बल प्लास्टिक पीस को नेल के उपर चिपकायें. जब प्लास्टिक रैप गीले नेल्स पर टच करता है तो नेल्स में मार्बल्स इफेक्ट आता है.

होममेड डॉटिंग टूल से खूबसूरत बनाएं नेल्स

पोल्का डॉट्स डिजाइन खासतौर पर गर्ल्स को खूब भाता है. इसे करते समय आप पेन्सिल के पिन का इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर स्मॉलर डॉट्स चाहती हैं तो टूथपिक का इस्तेमाल करें. इसके लिए पहले दो ओम्ब्र कलर आपको अपने नेल्स पर एप्लाई करना होगा जिसे बाद में हटाया भी जा सके. दो कलर को नेल्स के सेंटर में टूथपिक्स की मदद से मिक्स कर लें. इसके बाद मेकअप स्पॉन्ज को दो कलर में डुबोएं और इसे नेल्स पर अप्लाई करें.

नेल्स पर क्रिएट करें डायमंड और ट्रायंगल शेप

स्कॉच टेप नेल आर्ट कोई भी घर पर कर सकता है. इसमें हर एक नेल पर पैरामीटर सेट करने के लिए नेल के ऊपर डायमंड और ट्रायंगल शेप क्रिएट करें. इसके लिए पहले आपको अपने नेल पूरी तरह से ड्राय करने होंगे. एक बार आप इसे निकाल देंगी तो आप नेल के बेस कलर को खराब करने का रिस्क ले सकती हैं. इससे न सिर्फ आपके नेल्स खूबसूरत लगेंगे बल्कि आप इससे अपनी हाथों की खूबसूरती में भी चार चांद लगा सकती हैं.

बहुत जल्दी स्विच औफ और स्विच औन कर लेती हूं : पंकज भदौरिया

2010 में मास्टर शैफ सीजन 1 की विनर रहीं पंकज भदौरिया आज किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं.  ‘शैफ पंकज का जायका,’ ‘किफायती किचन,’ ‘3 कोर्स विद पंकज,’ ‘रसोई से पंकज भदौरिया के साथ’ जैसे कई टीवी शोज ने उन्हें घरघर में पहचान दिलाई है. उन की 2 कुकबुक ‘बार्बी : आई एम शैफ’ और ‘चिकन फ्रौम माई किचन’ दुनिया भर में काफी मशहूर रही हैं. 2 बच्चों की मां पंकज स्कूल टीचर से कैसे बनीं मास्टर शैफ, किस तरह उन्होंने परिवार को संभालते हुए कैरियर में ऊंची उड़ान भरी, चलिए, जानते हैं:

कुकिंग में दिलचस्पी कब से हुई?

मेरे पेरैंट्स को कुकिंग का बहुत शौक था. वे बहुत अच्छे होम कुक थे. लोगों को पार्टी में बुलाना और उन्हें अपने हाथों से तरहतरह की रैसिपीज बना कर खिलाना उन्हें अच्छा लगता था. उस वक्त मुझे भी लगता था कि अच्छा खाना बनाने से न सिर्फ अच्छा खाना खाने को मिलता है, बल्कि कइयों की तारीफ भी मिलती है. इसलिए मेरी रुचि भी कुकिंग में बढ़ने लगी. मैं 11 साल की उम्र से खाना बनाने लगी. मुझे शुरुआत से कुकिंग में ऐक्सपैरिमैंट करने का बहुत शौक था. इंटरनैशनल फूड जैसे चाइनीज, इटैलियन, थाई बनाना मुझे ज्यादा अच्छा लगता था. शादी के बाद पति भी खाने के शौकीन निकले, इसलिए कुकिंग और ऐक्सपैरिमैंट का सिलसिला जारी रहा.

बहुत छोटी उम्र में पेरैंट्स को खो दिया. ऐसे में आप के लिए कैरियर की डगर कितनी मुश्किल रही?

जब मैं 13 साल की थी तब मेरे पिता की मौत हो गई. 21 साल की उम्र में मैं ने अपनी मां को भी खो दिया. मेरी मां अकसर कहती थीं कि शिक्षा एक ऐसा गहना है, जिसे आप से कोई नहीं छीन सकता, इसलिए हमेशा पढ़ाई जारी रखना. चूंकि मेरी मां कम पढ़ीलिखी थीं, इसलिए पिता की मौत के बाद उन्हें अच्छी जौब नहीं मिल पाई, इसलिए भी वे मुझे हमेशा पढ़ने को कहती थीं. मैं ने अंगरेजी में एमए किया और फिर स्कूल में पढ़ाने लगी. फिर शादी हो गई. ससुराल वालों के साथ पार्टी में आने वाले भी मेरे खाने की बहुत तारीफ करने लगे, जिस से मुझे महसूस होता था कि शायद मैं कुछ खास बनाती हूं. उसी दौरान मैं ने टीवी पर मास्टर शैफ का विज्ञापन देखा. मैं ने टीचिंग छोड़ कर इस में भाग लिया और जीतने के बाद अपने पैशन को प्रोफैशन बना लिया.

घर संभालते हुए कैरियर में आगे जाना मुमकिन हो पाया?

जब मैं घर में रहती हूं तब बस घर में रहती हूं और जब बाहर जाती हूं, तो पूरी तरह से बाहर रहती हूं. मैं बहुत जल्दी स्विच औफ और स्विच औन कर लेती हूं. घर में मैं होम मोड पर होती हूं, बिलकुल एक सामान्य घरेलू महिला की तरह. खुद खाना बनाती हूं, सफाई करती हूं आदि. खाने को ले कर अपने बच्चों की सारी फरमाइशों को भी पूरा करती हूं. मैं अपनी प्रोफैशनल लाइफ को घर के दरवाजे के बाहर छोड़ कर आती हूं और जब औफिस जाती हूं, तो घर को घर में छोड़ आती हूं.

अपने दोनों बच्चों के साथ कैसा रिश्ता है?

19 साल की बेटी और 15 साल का बेटा दोनों मेरे सब से अच्छे फ्रैंड हैं. मेरे पेरैंट्स ने भी मुझे ऐसे ही बड़ा किया है. मेरी मां और मेरे पिता दोनों ही मेरे अच्छे फ्रैंड रहे हैं. हम बच्चों को अच्छा इनसान बनाने में यकीन रखते हैं. हम उन्हें मैंटली और फिजिकली तौर पर फिट रखते हैं. हम चारों मिल कर एकसाथ खेलतेकूदते भी हैं. हर तरह की मूवी देखते हैं, हर मुद्दे पर बात करते हैं.

मां बनने के बाद कैरियर को छोड़ने वाली महिलाओं को क्या सलाह देंगी?

औरत की जिंदगी में ऐसा पड़ाव आता है, जब उसे कैरियर और बच्चे के बीच किसी एक का चुनाव करना पड़ता है. शुक्र है मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, लेकिन जिन महिलाओं को बच्चों की परवरिश के लिए ऐसा फैसला लेना पड़ा है, मेरे अनुसार वे मिड ऐज में दोबारा काम शुरू कर सकती हैं किसी भी रूप में जैसे पार्टटाइम, वर्क फ्रौम होम आदि.    

खुद खुश होंगे तभी दूसरों को खुशी दे पाएंगे : प्रियंका खुराना

30 वर्षीय प्रियंका खुराना दिल्ली की पलीबढ़ी हैं. कोलकाता से एमबीए की पढ़ाई की है. फिलहाल जापान की कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव डायरैक्टर हैं. 2007 में शादी के बंधन में बंधने वाली प्रियंका 4 साल के बेटे की मां हैं. 2015 में मिसेज इंडिया का खिताब, तो 2016 में मिसेज अर्थ का खिताब अपने नाम किया.

अपने निजी जीवन की भूमिका को निभाते हुए प्रियंका ने किस तरह प्रोफैशनल लाइफ में भी सफलता पाई उन्हीं से जानते हैं:

ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेने का खयाल मन में कब आया?

जब मैं 16 साल की थी तब मौडल बनना चाहती थी. दिमाग में ब्यूटी कौंटैस्ट में हिस्सा लेने का भी खयाल था. लेकिन पढ़ाई में अच्छी थी, इसलिए पेरैंट्स ने भी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा. उस के बाद शादी हो गई तो यह खयाल मन से निकल गया. बेटे के जन्म के बाद फिर एक बार जेहन में मौडलिंग का खयाल आया, जिस की वजह मेरा भाई और बेटा था. दरअसल, मेरे भाई को अचानक फोटोग्राफी का शौक चढ़ा और वह फ्री की मौडल चाहता था, तो मैं बन गई. शुरुआत में लगा कि अब क्या ये सब करना सही होगा? इसी बीच मेरा ध्यान अपने बेटे पर गया. इतनी छोटी उम्र में भी हर चीज बड़ी उत्सुकता से करता, बिना उस का अंजाम जाने. तब मुझे लगा क्यों न एक बार मैं भी खुद को मौका दूं. अत: मैं ने कोशिश की तो सफलता मिल गई.

घर और औफिस के काम के साथ फैशन वर्ल्ड में अपनी इमेज को कैसे मैनेज करती हैं?

घर में पत्नी, बहू और मां की भूमिका, औफिस में ऐग्जीक्यूटिव डायरैक्टर और फैशन वर्ल्ड में बतौर मौडल अपनी भूमिका निभाना मेरे लिए बहुत मुश्किल काम नहीं है. जब आप के पास बहुत ज्यादा काम आता है तब आप के अंदर काम करने की क्षमता भी बढ़ जाती है. दूसरी बात मैं जो भी काम करती हूं शतप्रतिशत उसी पर ध्यान केंद्रित करती हूं.

बच्चे की परवरिश करते वक्त किस बात का विशेष ध्यान रखती हैं?

मुझे अपने बेटे को किसी चीज का सौल्यूशन नहीं बताना है, बल्कि उसे ऐसा काबिल बनाना है कि वह खुद सौल्यूशन ढूंढ़ सके. आज बच्चे का इंटैलीजैंट होने से ज्यादा जरूरी इमोशनली स्ट्रौंग होना और हर समस्या का समाधान खुद निकालना है.

अपनी मां की कौन सी खूबी अपने अंदर चाहती हैं?

मेरी मम्मी गणित की टीचर हैं, इसलिए वे सारा काम मैथेडिकल तरीके से करती हैं. वे काफी और्गेनाइज्ड हैं. उन के हर काम में प्रोसैस होता है. उस वक्त मुझे ये चीजें बकवास लगती थीं, लेकिन अब लगता है कि काश यह क्वालिटी मुझ में भी होती तो मेरे लिए इतने सारे कामों को मैनेज करना आसान हो जाता.

परिवार को क्वालिटी टाइम देने में यकीन रखती हैं या फिर क्वांटिटी टाइम में?

पूरा दिन काम में निकल जाता है, लेकिन जैसे ही शाम होती है मैं उसे परिवार के नाम कर देती हूं. शाम अपने बेटे के साथ बिताती हूं. शनिवार और रविवार को परिवार के साथ फिल्म देखना, घूमने जाना पसंद करती हूं.

जो महिलाएं मां बनने के बाद प्रोफैशन को अलविदा कह देती हैं उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगी?

हर इनसान यह बात अच्छी तरह जानता है कि उस के लिए क्या सही है. फिर भी मैं कहूंगी कि मां बनने के बाद पूरा 1 साल ईमानदारी से बच्चे को दें. उस के बाद अपने सपनों और ख्वाहिशों को भी पूरा करें. जरूरी नहीं कि आप उन्हें पूरा ही करें, उस राह पर चलें. ऐसा करने से आप को खुशी होगी.

अपनी सफलता के पीछे किसे देखती हैं?

सफलता उस बुके की तरह है, जो कई रंगबिरंगे फूलों से बनता है. मेरी सफलता के पीछे कई लोग हैं. उन में मेरा परिवार, पति, मेरा बेटा, ससुराल वाले, औफिस के लोग सभी हैं, जिन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट किया और आगे बढ़ने का मौका दिया.     

Serial Story: गुंडा (भाग-2)

पूर्वकथा :

मेरी की सभी सहेलियां और चंदू व आनंद कालेज की गतिविधियों में भाग लेते थे. आनंद जहां गंभीर और काफी अमीर था वहीं चंदू एक नरमदिल इंसान था. हर कार्य वह निस्वार्थ भाव से करता था जबकि आनंद अपना बुराभला देख कर ही काम करता था. नीरू आनंद की दीवानी हो गई थी लेकिन कालेज में घटी एक घटना ने उस की सोच ही बदल दी.

अब आगे…

कालेज चुनाव में शीतल जीत गई थी. जीत की पार्टी वह अपने सारे दोस्तों को कैंटीन में दे कर लौटी थी. नीरू के लिए विशेष निमंत्रण था. वैसे भी अब वह उन के घर  लगी थी, क्योंकि उन के साथ एक अनकहा सा रिश्ता बन गया था. आनंद का व्यवहार ऐसा होता जैसे उस का उस पर कोई हक हो.

शीतल भी ऐसा ही व्यवहार करती थी, क्योंकि वह समझ गई थी कि उस का भाई नीरू को बहुत पसंद करता है. तीनों कार की ओर जा ही रहे थे कि इतने में जोर की चीख सुनाई पड़ी. चारों ओर से सारे विद्यार्थी उस ओर दौड़ पड़े. माली का बेटा जो अकसर अपने पिता के साथ काम करने आया करता था जोरजोर से रो रहा था. कुदाल लग जाने से उस का पैर लहूलुहान हो गया था. घाव कुछ ज्यादा ही गहरा था. सभी लोग तरहतरह के सुझाव दे रहे थे. कोई आटो बुलाने जा रहा था, कोई प्रिंसिपल के कमरे की ओर दौड़ रहा था तो कोई कह रहा था कि डाक्टर को ही यहां बुला लो.

नीरू को लगा आनंद उसे अपनी कार से डाक्टर के पास ले जाएगा, मगर वह मौन खड़ा तमाशा देख रहा था. पता नहीं कहां से चंदू आया उस ने माली के सिर का साफा निकाला और बच्चे के पैर में बांध दिया. फिर 10-12 साल के बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो यार, कोई मेरे साथ. मेरी जेब से मेरी बाइक की चाबी निकाल कर गाड़ी चलाओ. मैं इसे ले कर पीछे बैठता हूं.’’ फाटक काफी दूर था अगर कोई आटो ले कर आता तो तब तक काफी खून बह जाता.

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इस के बाद शीतल के घर जा कर भी नीरू अनमनी सी ही रही. न उसे वहां पैस्ट्रीज अच्छी लगीं न कोल्डड्रिंक्स.

‘‘क्या हो गया नीरू तुम्हें, क्या तुम मेरी जीत से खुश नहीं हो?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है…’’

‘‘शायद माली के बेटे वाली घटना से विचलित है. दिल इतना कमजोर होगा तो कैसे चलेगा. यह तो उन के जीवन का भाग है,’’ आनंद हंसा.

उसे लगा वह उस की हिम्मत नहीं बंधा रहा है बल्कि हंसी उड़ा रहा है.

‘‘मैं तो उस घटना को वहीं भूल गई. नीरू तुम्हें सख्त होना पड़ेगा, नहीं तो तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगी,’’ शीतल ने कहा.

‘‘सख्त, यह तो संवेदनहीनता है. एक गरीब, निसहाय आदमी को भी बच्चा उतना ही प्यारा होता है जितना एक करोड़पति को. ऊपर से अस्पताल का खर्च. कैसे झेल पाएगा वह?’’ उस का हृदय भीग गया.

‘‘छोड़ो यार, तुम तो ऐसे डिस्टर्ब हो जैसे वह तुम्हारा अपना हो. यह सब तो चलता रहता है. ठीक है तुम्हारा मूड ठीक करने का उपाय मैं जानती हूं.’’

‘‘अच्छा शीतल, मुझे कुछ काम है. अभी आता हूं,’’ कह कर आनंद वहां से

चला गया.

‘‘सुनो नीरू, पापा बाहर गए हुए हैं. शायद 2-3 दिन में वापस आएंगे. उन के वापस आते ही भैया तुम्हारी बात चलाएंगे,’’ उस ने बड़ी अपेक्षा से नीरू की ओर देखा. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह स्वयं बोली, ‘‘अरे यार, मैं तो समझी थी कि तुम खुशी से उछल पड़ोगी. भैया को तो कोई पसंद ही नहीं आती थी. कितनी लकी हो तुम, जिस के पीछे लड़कियां लाइन लगाती हों, वे स्वयं तुम्हारे पीछे हैं.’’

नीरू का वहां और रुकने का मन नहीं हुआ. वह जाने को उठी, तो शीतल ने कहा, ‘‘अरे रुको, भैया पहुंचा देंगे. यहींकहीं गए हैं, आ जाएंगे.’’

‘‘नहीं शीतल, मुझे एक जगह और जाना है, अच्छा बाय.’’

‘‘मगर भैया…’’ शीतल पुकारती रह गई. उस रात उसे नींद नहीं आई. खून से लथपथ माली के बेटे का पांव, उस का आसुंओं से भीगा चेहरा और माली की दैन्य स्थिति उसे कचोट रही थी. बारबार एक ही सवाल उस के मन में उठ रहा था, ‘क्या आनंद की परिपक्वता, शालीनता, बड़प्पन केवल एक ढकोसला है? सब के सामने अपनेआप को कितना अच्छा दिखाता है. गाड़ी है, पैसा है, मगर दिल में…’ नीरू का मन खट्टा हो गया.

नीरू सुबह तैयार हो कर कालेज जाने को निकल तो पड़ी पर उस का जाने का मन न हुआ. मेरी ने तो कल ही कह दिया था कि अब कम से कम 4-5 दिन पढ़ाई नहीं होगी, इसलिए वह अपनी दीदी के यहां चली जाएगी. उस के मन में विचार आया कि क्यों न माली के बेटे को देख आऊं. माली का घर उस के कालेज के रास्ते में ही पड़ता था. छोटी सी झोंपड़ी थी उस की. वह सकुचाती हुई उस की झोंपड़ी में घुस गई.

माली शायद काम पर जा चुका था और लड़का एक पुरानी सी खाट पर गुदडि़यों में लिपटा पड़ा था. किसी की आहट सुन कर उस ने आंखें खोलीं. नीरू ने उसे अपना परिचय दिया और उस की खाट पर बैठ कर उस से बातें करने लगी. पहले तो वह बहुत सकुचाया पर बाद में नीरू से प्रोत्साहन और अपनेपन से खुल कर बातें करने लगा.

उस ने बताया कि उस की मां 4-5 घरों में बरतनचौका करती हैं, इसलिए इस समय वहीं गई हुई हैं. पौलीथिन बैग में से नीरू ने बड़ा सा फ्रूट ब्रैड और बिस्कुट का पैकेट निकाला और खोल कर उस के सामने रख दिया.

‘‘आप यह सब क्यों लाई हैं, अभी अम्मां आएंगी तो हम लोग खाना खा लेंगे.’’

‘‘मुझे पता है भैया, अभी थोड़ा खा लो. बाकी बाद में सब मिल कर खाना.’’

उस ने एक ब्रैड का पीस उस की ओर बढ़ाया, जिस तरह से उस ने उसे खाया उस से पता चल गया कि वह वास्तव में भूखा था. उस का मन भर आया. कितना आत्मसम्मान है इस बच्चे में. उसे 2 बिस्कुट खिला कर पानी पिलाया. फिर आने का वादा कर के वह बाहर निकल ही रही थी कि चंदू और मेघा ने अंदर प्रवेश किया. वे एकदूसरे को देख कर चौंके.

उन से 2 मिनट बातें कर के नीरू निकलने ही वाली थी कि मेघा ने कहा, ‘‘नीरूजी, 2 मिनट रुक जाइए. मंगल की मां आती ही होगी. उस से मिल कर हम भी चलते हैं.’’ दूसरा तो कोई काम था नहीं, वह रुक गई.

वे लोग अभी बातें ही कर रहे थे कि मंगल की मां और एक 9-10 साल की लड़की आ गई. मेघा ने बताया कि यह लड़की मंगल की छोटी बहन लक्ष्मी है. मेघा ने एक थैला उस स्त्री के हाथ में दिया और बोली, ‘‘खाना है, सब लोग खा लेना और हां, डब्बों की चिंता मत करो, हम बाद में ले जाएंगे.’’

वह महिला नहीं मानी और बोली, ‘‘नहीं बेटा, रुक जाओ, 2 मिनट का काम है,’’ कहती हुई उस ने फटाफट डब्बों को खाली किया. नीरू ने देखा सब के लिए खाने के साथसाथ मिठाई और समोसे भी थे.

‘‘इतना सारा खाना क्यों ले आए बेटा? रूखासूखा खाने वाले गरीब आदमी हैं हम,’’ उस की आंखें भर आईं. वह डब्बे धोने बाहर चली गई. मेघा को जैसे कुछ याद आया.

‘‘अरे भैया, दवाइयां…’’

‘‘हां, वे तो डिक्की में रह गईं. मैं ले आता हूं.’’

‘‘रुको, बहुत सारे पैकेट्स हैं. मुझे आना ही पड़ेगा.’’ दोनों बाहर चले गए.

दवाइयों के पैकेट के साथ जब वापस आए तो मेघा कह रही थी, ‘‘क्यों बताया आप ने?’’ वह कुछ नाराज लग रही थी.

‘‘नहीं बताता तो निवाला उस के गले से नहीं उतरता. अब जल्दी कर. ये दवाइयां कब, कैसे लेनी हैं, 2 बार अच्छे से समझा कर चल. मां राह देख रही होंगी.’’ नीरू को उन की बातें समझ में नहीं आईं.

दोनों ने अच्छी तरह से दवाइयों के बारे में समझाया और फिर से आने को कह कर बाहर निकल आए.

मेघा ने कहा, ‘‘नीरू एतराज न हो तो थोड़ी देर के लिए मेरे घर चलो, मुझे अच्छा लगेगा. चाहो तो मैं घर आ कर आंटी को बता दूंगी.’’

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‘‘तुम कभी भी मेरे घर आ सकती हो, मुझे भी अच्छा लगेगा. इस वक्त केवल मां की इजाजत के लिए आने की जरूरत नहीं है. मैं घर जा कर बताने ही वाली थी कि मैं कालेज नहीं गई थी. रास्ते में मन बदल गया था और मंगल के घर चली गई थी,’’ नीरू ने हंसते हुए कहा.

‘‘मेघा, तुम मां से कह देना कि मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूं. आधे घंटे में घर पहुंच जाऊंगा.’’ चंदू उछल कर गाड़ी में बैठ गया. मेघा नीरू के साथ आटो में बैठ गई.

नीरू को देख कर मेघा की मां बहुत खुश हुई, ‘‘अच्छा किया बेटा, जो अपनी सहेली को साथ ले आई, मंगल कैसा है?’’

‘‘ठीक हो रहा है मां, नीरू भी वहीं थी. हम लोग उस की मां और छोटी बहन से भी मिले.’’

‘‘नीरू बेटे, मुझे बहुत अच्छा लगा. इस के पिता के जाने के बाद इस ने अपना जन्मदिन मनाना ही छोड़ दिया. आज सालों बाद इस ने जन्मदिन पर कम से कम अपनी एक सहेली को तो बुलाया है. मैं तुम्हें यों ही नहीं जाने दूंगी.

‘‘मेघा बेटी, जरा आंटीजी को फोन कर के बता दे कि नीरू आज यहां तुम्हारे साथ खाना खाएगी, वे इस का इंतजार न करें.’’

‘‘नहीं आंटीजी, मुझे मीठा खिला दीजिए, मैं कालेज जाने के लिए घर से खाना खा कर निकली थी, मगर मैं कालेज न जा कर मंगल को देखने चली गई थी.’’

‘‘मेघा, तुम ने मुझे बताया ही नहीं कि आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ नीरू ने कहा.

‘‘इस में जन्मदिन वाली कोई बात नहीं है और कोई दिन होता तो भी मैं यही करती. मंगल के यहां हमारा मिलना एक सुखद संयोग है.’’

उस दिन मेघा के घर से लौटने के बाद नीरू का मन बिलकुल स्थिर और शांत हो गया था. उस ने सोचा, ‘कितना प्यारा घर है, शांत और सुकून देने वाला. कितना प्यार और अपनापन था वहां. उस की सारी बेचैनी दूर हो गई थी.’

इस के बाद उस का मेघा से मेलजोल बढ़ा. वे दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करती थीं. मेघा बहुत कम बोलती थी, मगर जो बोलती थी उस में सार, समझदारी, कोमलता, आर्द्रता आदि होती थी. वह बिना बोले दूसरों की बात समझ जाती थी और उसी के अनुसार काम करती थी. उस के पास आ कर लोगों का आत्मबल बढ़ता था.

धीरेधीरे नीरू को महसूस होने लगा कि उस घर में जब भी जाती है उसे एक शीतल, सुगंध छू जाती है. मन को सुकून मिलता है जैसे वहां स्नेह का मलयानिल बह रहा हो.

आनंद के साथ नीरू की सगाई तय हो गई. एक बार आनंद के कहने पर मेघा ने नीरू की मां को फोन किया कि वह आनंद की बहन है.

नीरू और आनंद एकदूसरे को पसंद करते हैं, पर दोनों इस बात को घर बताने में शरमाते हैं. वे लोग उस के घर आ कर रिश्ते की बात उस के मम्मीपापा से करें.

वह अपने भाई से बहुत प्यार करती है. इसलिए फोन कर रही है. यह बात वे किसी से न कहें, यहां तक कि नीरजा या आनंद से भी नहीं.

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें,’ ऐसा रईस और शहर में प्रतिष्ठित खानदान नीरजा को मिले, इस से बढ़ कर उन्हें क्या चाहिए था, वह भी बिना प्रयास के. उस की पढ़ाई भी अब समाप्त होने वाली है. बात आगे बढ़ी और तारीख भी पक्की हो गई. फिर तो आएदिन नीरू के लिए तोहफे आने लगे. कभी कपड़े, कभी सैंडल तो कभी सौंदर्य प्रसाधन.

एक बार नीरू ने आनंद से कहा, ‘‘आप लोग बातबेबात मुझे तोहफे क्यों भेजते हैं? मुझे बड़ा संकोच होता है. प्लीज…’’

‘‘इस बारे में तुम बहुत मत सोचा करो. ऐसे छोटेमोटे तोहफे देना हमारे लिए बहुत बड़ी बात नहीं है. धीरेधीरे तुम्हें आदत पड़ जाएगी,’’ आनंद ने कहा.

उस दिन उन के कालेज के सहपाठी अनुरूप का जन्मदिन था. वह भी शहर के बहुत बड़े उद्योगपति का बेटा था. नीरू अपने मित्रों के साथ शीतलपेय लेते हुए बातें कर रही थी कि पीछे से कंधे पर हाथ पड़ा. उस दबाव से उसे पीड़ा हुई. वह गुस्से से पलटी, सामने आनंद खड़ा था.

‘‘वन मिनट प्लीज,’’ उस के मित्रों से कह कर आनंद उसे हाथ पकड़ कर एक ओर ले गया.

‘‘क्या अजीब से कपड़े पहन लिए हैं तुम ने, इसीलिए तो तोहफे भेजता हूं कि कुछ ढंग का पहनो,’’ उस ने फुसफुसाते हुए कहा.

वह जानती थी कि सारी सहेलियों की नजरें उन्हीं पर टिकी हुई थीं. वह स्तब्ध रह गई. चेहरा लाल हो गया. तोहफों का यह अर्थ उस ने कभी नहीं लगाया था. उसे तो लगा था कि अपना प्यार जताने के लिए वह तोहफे देता है.

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उसे क्या पता था कि वह अपने साथ खड़े होने के लायक बनाने के लिए उसे तोहफे देता है. उस ने आंखों में आने को आतुर आंसुओं को रोका. उसे घिन आ रही थी अपनेआप पर कि इंसान को पहचानने में इतनी बड़ी गलती कैसे

हो गई?

वापस आने पर जीना ने कहा, ‘‘अरे वाह, सब के बीच रोमांस?’’

‘‘नहीं यार, वे लोग अपनी शादी के बाद की पार्टी का प्लान कर रहे थे.’’ यह रूमा थी.

‘‘ठीक कहा तू ने. आनंद कोई भी काम करता है तो सब देखते रह जाते हैं. भई, अपनी नीरू भी तो लकी है.’’ कौन थी ये जो उस के भाग्य की हंसी उड़ा रही थी.

आगे पढ़ें- मेरी ने उस का हाथ थामा….

बॉलीवुड के गाने पर नाची न्यूयॉर्क की ये दुल्हन

आपने किसी शादी में डांस करती दुल्हन का वीडियो बहुत देखा होगा. लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा ये वीडियो उन सबसे अलग है. इस वीडियो में दुल्हन अपनी शादी के रिसेप्शन में बॉलीवुड के कुछ ऐसे गानों पर डांस कर रही है जिसे देख हर किसी ने कहा वाह-वाह.. क्या बात हैं? 

फेसबुक पर वायरल हो रहा यह 3 मिनट 46 सेकेंड का यह वीडियो न्यूयॉर्क में रहने वाली पायल कडाकिया पुज्जी का है. पायल ने गोल्डन लहंगा पहन रखा है और वह हिट बॉलीवुड गीतों पर परफॉर्म कर रही हैं.

इस वीडियो में खास बात यह है कि इसमें जिन गीतों का चयन किया गया है, वह बड़ा ही खास है. शादी के टिपिकल गीतों की बजाय इसमें 90 के दशक के गीत ‘दिल दीवाना’ पर पायल डांस कर रही हैं. इसके अलावा इसमें उन्होंने ‘रब ने बना दी जोड़ी’ पर भी डांस किया है.

7 मई को फेसबुक पर पोस्ट किये गए इस वीडियो को अब तक 1 मिलियन से भी अधिक लोग देख चुके हैं. इसे फेसबुक पर ‘वेडिंग डांस ऐंड सॉन्ग्स’ पेज पर पोस्ट किया गया है. इस वीडियो पर कॉमेंट करने वालों में लगभग हर किसी ने डांस को सराहा है.

हालांकि, इसी वीडियो को 2016 दिसंबर में अमेरिकन फिटनेस स्टार्टअप, क्लासपास की फाउंडर पायल ने यू ट्यूब पर भी अपलोड किया था. वहां भी इसे 6 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है. जरा आप भी देखें यह वीडियो और बताएं कि कैसा लगा आपको पायल का डांस.

यहां देखें वीडियो.

मैं अपने हिसाब से फिल्में चुनती हूं : काजल अग्रवाल

फिल्म ‘क्यों, हो गया ना…’ से कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री काजल अग्रवाल मुंबई के एक व्यवसायी परिवार से है. काजल ने कभी सोचा भी नहीं था कि वह अभिनेत्री बनेगी.

जब वह 10वीं कक्षा में थी तो उसे ‘क्यों, हो गया ना…’ फिल्म में अभिनय का मौका मिला. फिल्म में उस की भूमिका छोटी थी. औफर मिलने की वजह यह थी कि वह उस फिल्म के कास्टिंग डायरैक्टर को जानती थी. उसे लास्ट मिनट में शूटिंग हेतु बुलाया गया था, क्योंकि और कोई उस भूमिका के लिए उन्हें नहीं मिल रहा था. वहां गई तो वह अमिताभ बच्चन से मिली और अपना अभिनय पूरा कर फिर पढ़ाई पर ध्यान देने लगी.

उस ने पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और एमबीए करना चाहती थी. पढ़ाई के दौरान उस ने एक कंपनी में इंटर्नशिप की, जहां एक फोटोग्राफर ने उस का फोटो खींचा और कई जगह भेज दिया. इस के बाद उसे औफर्स मिलने लगे और वह फिल्मों की ओर मुड़ी. उस ने हिंदी में कम तमिल और तेलुगू में करीब 46 फिल्में कीं. अत्यंत स्पष्टभाषी और सौम्य चेहरे की धनी काजल अग्रवाल ने अपनी हिंदी फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ के बारे में बताया.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश.

इस फिल्म में आप ने एक दृष्टिहीन युवती की भूमिका निभाई कितना मुश्किल था इसे निभाना?

मेरी आंखें इतनी बड़ी हैं कि इन में मेरा दृष्टिहीन युवती की भूमिका निभाना मुश्किल था, क्योंकि सबकुछ मुझे दिखता है. ऐसे में न देखने का अभिनय करना बहुत ही मुश्किल था, लेकिन मैं ने इसे निभाने के लिए काफी वर्कशौप किए, कई किताबें पढ़ीं, फिल्में देखीं. विजुअली इंपेयर्ड स्कूल में गई, वहां मैं ने देखा कि बच्चे दृष्टिहीन थे, पर वे लाचार नहीं थे. वे अपनी जिंदगी से खुश थे. यही भाव मुझे फिल्म में भी लाना था. ऐसे में मेरे लिए उन के अंदर की भावना को समझना आवश्यक था.

फिल्म में आप की क्या भूमिका है?

मैं ने इस फिल्म में एक चुलबुली और मासूम युवती का किरदार निभाया जो किसी वजह से अकेली रह जाती है. फिर उस की लाइफ में एक व्यक्ति आता है जिस से उसे प्यार हो जाता है. यह एक अत्यंत भावुक प्रेम कहानी है.

निर्देशक दीपक तिजोरी के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

दीपक तिजोरी निर्देशक के साथसाथ एक अभिनेता भी हैं, इसलिए किसी भी कठिन दृश्य को वे आसान बना देते हैं. उन के छोटेछोटे टिप्स अभिनय करने में मुझे मदद कर रहे थे.

फिल्म में कठिन दृश्य क्या था? आप को कितनी बार रीटेक देना पड़ा?

मैं दृष्टिहीन युवती हूं, लेकिन एक बार मुझ पर हमला होता है, उस समय मेरा लवर मुझे बचाता है. मेरी नौकरी चली जाती है. ऐसे में मेरा टूट जाना, तनाव, रोना आदि सब को एकसाथ दिखाना बहुत कठिन था. 2-3 टेक के बाद दृश्य ओके हो गए.

यह फिल्म आप को कैसे मिली?

मैं निर्देशक की पहली चौइस थी. उन्होंने शायद मुझे दक्षिण की फिल्मों में काम करते हुए देखा है. मैं ने तमिल व तेलुगू भाषा में 46 फिल्में की हैं. इस फिल्म के लिए निर्देशक को एक नाजुक और कमजोर दिखने वाली हीरोइन चाहिए थी. इसलिए उन्होंने मुझे औफर दिया. मुझे फिल्म की कहानी बहुत पसंद आई थी.

आप को हिंदी फिल्मों में काम कम मिला, इस की वजह क्या रही?

मैं ने हिंदी फिल्मों से कैरियर की शुरुआत की थी, पर दक्षिण में अच्छा औफर मिला और मैं वहां चली गई. वहां जाने के बाद यहां काम करना मुश्किल हो रहा था, क्योंकि हर फिल्म की कमिटमैंट होती है और हर फिल्म के निर्माण में 2-3 महीने लगते हैं. दोनों में बैलेंस बनाना मुश्किल होता है. तमिलतेलुगू हो या हिंदी, मैं अपने हिसाब से फिल्में चुनती हूं.

फिल्म में अंतरंग सीन हैं इन्हें करने में कितना सहज होती हैं?

अंतरंग सीन इस फिल्म में जरूरी हैं. एक ब्लाइंड लड़की किसी को छू कर ही अपने इमोशंस बता सकती है. यह दृश्य फिल्म को हौट या व्यवसाय की दृष्टि से नहीं फिल्माया गया है. इसलिए मैं ने उसे किया.

किसी फिल्म को चुनते वक्त किन बातों का खास ध्यान रखती हैं?

मैं स्टोरी और स्क्रिप्ट को ज्यादा महत्त्व देती हूं.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और साउथ की फिल्म इंडस्ट्री में क्या अंतर पाती हैं?

मुझे दोनों ही इंडस्ट्री अच्छी लगती हैं, क्योंकि मुझे हमेशा अच्छे लोगों का साथ मिला. आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भी काफी अनुशासित हो चुकी है. नई जनरेशन काम कर रही है साथ ही प्रोडक्शन वैल्यू को आज महत्त्व दिया जाने लगा है, ताकि समय पर फिल्में पूरी हों और प्रोडक्शन मूल्य न बढ़े. सब लोग आजकल प्रोफैशनल हो चुके हैं. निश्चित समय के बाद आज हर कोई फ्री हो कर घर जाना चाहता है.

आप का ‘ब्यूटी सीक्रेट’ क्या है?

मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में त्वचा का खास ध्यान रखना पड़ता है. धूप, धूल, और प्रदूषण से त्वचा बेजान हो जाती है. ऐसे में अधिक तरल पदार्थों का सेवन करना, हैल्दी डाइट लेना, त्वचा को हमेशा साफ रखना जरूरी है.

इस के अलावा मैं नियमित वर्कआउट करती हूं. मैं बैलेंस रख कर खाना खाती हूं और कोशिश करती हूं कि मेरी नींद कंप्लीट हो. साथ ही किसी बात को ज्यादा नहीं सोचती.

किसिंग सीन देने में बुराई नहीं : पिया बाजपेयी

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली अभिनेत्री पिया बाजपेयी ने तमिल, तेलुगू और मलयालम फिल्मों से अपने कैरियर की शुरुआत की. उन का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ, लेकिन कैरियर की शुरुआत दिल्ली में हुई. बचपन से ही पिया अत्यंत चंचल स्वभाव की थीं. शुरूशुरू में उन के माता पिता नहीं चाहते थे कि वे फिल्मों में काम करें, पर उन के आत्मविश्वास को देख कर उन्होंने हां कही. आज उन के परिवार वाले उस की इस कामयाबी से खुश हैं. पिया की फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ में उन की भूमिका उन के स्वभाव से काफी मिलतीजुलती है. उन से मिल कर बात करना रोचक था. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश:

फिल्म ‘मिर्जा जूलिएट’ के लिए हां करने की वजह क्या थी?

मुझे इस फिल्म की भूमिका बहुत अच्छी लगी. अधिकतर ऐसा होता है कि नरेशन कुछ होता है और ऐक्टिंग के बाद कुछ और हो जाता है, लेकिन इस में मैं ने जो सुना वही दिखाया जाएगा, ये अच्छी बात है.

इस फिल्म की भूमिका आप से कितना मेल खाती है?

मैं ने इस में एक छोटे शहर की दबंग लड़की की भूमिका निभाई है. जो मुझ से काफी मेल खाती है. मैं रियल में भी एक छोटे शहर इटावा से हूं, मुझे याद है कि बचपन में मैं टौमबौय जैसी थी. कोई लड़का अगर मुझे कुछ कह देता था, तो उसे पकड़ कर खूब मारती थी. मेरे पिताजी ने कहा था कि अगर लड़ाई हो तो मार के आना, खुद पिटाई खा कर नहीं.

पिताजी ने मुझे बेटे की तरह पाला है. मेरी बातचीत और चलनेफिरने का ढंग सब लड़कों की तरह था. मैं ने बाइक और जीप चलाई है. त्योहारों में मेरे लिए हमेशा पैंटशर्ट ही आते थे.

फिल्मों में आने के बाद मैं ने लड़कियों वाली ड्रैस पहननी शुरू की. इसलिए जब मुझे इस तरह की ही भूमिका का औफर मिला तो मैं ने तुरंत हां कर दी.

फिल्म में छोटे शहर के लोग जब बड़े शहरों में जाते हैं तो अपनेआप को वहां के माहौल में फिट बैठाने के लिए क्याक्या करते हैं, जिसे देख कर दूसरों को लगता है कि यह चालाक लड़की है, लेकिन ऐसा होता नहीं है, अपनेआप को स्मार्ट दिखाने के लिए वे ऐसा करती हैं. इस फिल्म में भी मेरी भूमिका वैसी ही लड़की की है. इस की शूटिंग बनारस और धर्मशाला में हुई है.

क्या फिल्मों में आना इत्तफाक था?

मेरे जीवन में कुछ भी इत्तफाक नहीं था. मैं जब 7वीं कक्षा में थी, मुझे डांस का बहुत शौक था, पड़ोस में गाना बजता था और मैं डांस करना शुरू कर देती थी. इतना ही नहीं स्कूल, कालेज सभी जगह डांस कार्यक्रम में भाग लेती थी. मेरी इस रुचि को देख कर पापा ने एक दिन कहा था कि 12वीं पूरी होने के बाद वे मुझे ऐक्ंिटग व डांसिंग का कोर्स करवा देंगे, लेकिन जब मैं 12वीं में आई तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन चिनगारी तो उन्होंने लगा ही दी थी.

मुझे लगा कि इटावा से निकल कर ही मेरी लाइफ बन सकती है, क्योंकि यह एक छोटा शहर है, यहां लाइफ नहीं बन सकती. वहां से निकल कर मैं दिल्ली आई. कंप्यूटर कोर्स किया, रिसैप्शनिस्ट की जौब की, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाई और इस तरह मैं धीरेधीरे मुंबई में सैट हो गई.

मुंबई में कितना संघर्ष किया?

मुंबई में मैं ने पहले डबिंग आर्टिस्ट के रूप में काम किया, क्योंकि मेरी हिंदी अच्छी है. इस के बाद प्रिंट ऐड में काम शुरू कर दिया, जिस से मुझे कमर्शियल ऐड मिलने लगे. ऐसा करतेकरते मुझे हिंदी फिल्म ‘खोसला का घोंसला’ की रीमेक तमिल फिल्म में काम करने का मौका मिला. मेरी वह फिल्म हिट हो गई, फिर फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया.

करीब 12-13 दक्षिण भारतीय फिल्में करने के बाद मुझ में हिंदी फिल्म करने की इच्छा पैदा हुई, क्योंकि मैं जितनी फिल्में कर रही थी, भाषा समझ में न आने की वजह से मेरे मातापिता उस में भाग नहीं ले पा रहे थे. मुझे सब आधाअधूरा लग रहा था.

मैं ने एक साल का ब्रेक लिया और मुंबई रुकी. उसी दौरान मुझे हिंदी फिल्म ‘लाल रंग’ मिली. उस के तुरंत बाद ‘मिर्जा जूलिएट’ मिल गई.

साउथ की और यहां की फिल्मों में क्या अंतर है?

सिर्फ भाषा का अंतर है. वहां भी लोग अच्छी और खराब फिल्में बनाते हैं.

आप के काम में परिवार ने किस तरह का सहयोग दिया?

परिवार वालों ने पहले कभी मुझे सहयोग नहीं दिया, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मैं हीरोइन बनूं. उन्हें लग रहा था कि मैं एक सीधीसादी और छोटे शहर की लड़की हूं. लोग यहां मुझे बेवकूफ बना देंगे. समय बरबाद हो जाएगा, लाइफ सैटल नहीं हो पाएगी आदि चिंता उन्हें सता रही थी.

मेरे परिवार में सभी बहुत पढ़ेलिखे हैं ऐसे में ऐसी सोच वाजिब थी. फिर मुंबई की कहानियां उन्होंने अखबारों में काफी पढ़ी थीं. उन्होंने मेरा साथ देने से साफ मना कर दिया था, पर मुझे विश्वास था कि मैं सफल हो जाऊंगी, अत: मैं दिल्ली गई. आज उन्हें मुझ पर गर्व है, वे मेरी उपलब्धि से खुश हैं.

किसी नए शहर में अकेले रहना कितना मुश्किल था?

अगर आप अपनी जिम्मेदारी खुद लेते हैं, तो जंगल में भी रह सकते हैं. आप कहीं भी रहें हमेशा सतर्क रहना चाहिए. मुझे दिल्ली या मुंबई कहीं भी रहने में कोई समस्या नहीं आई.

फिल्मों में अंतरंग दृश्य करने में कितनी सहज रहती हैं?

मुझे अभी तक कोई भी इंटीमेट सीन करने में मुश्किल नहीं आई. फिल्म ‘लाल रंग’ में भी कुछ किसिंग सीन थे, इस में भी हैं. दक्षिण की किसी भी फिल्म में मेरा कोईर् भी किसिंग सीन नहीं था, लेकिन मैं कैमरे पर अधिक फोकस्ड रहती हूं. अगर फिल्म की डिमांड है, तो उसे करने में मुझे कोई आपत्ति नहीं.

मेरे लिए निर्देशक, कोऐक्टर खास माने रखते हैं, इस के अलावा मैं जो भी दृश्य करूं, वह ओरिजनल लगे, इस बात पर अधिक ध्यान देती हूं.

फिल्मों की पाबंदी के बारे में क्या सोचती हैं?

फिल्मों का सर्टिफिकेशन जरूरी है, फिल्म को देख कर उस के हिसाब से उसे सर्टिफाई कर देना चाहिए, न कि उस पर पाबंदी लगाई जाए. इस के बाद दर्शक हैं, जो फिल्म के  भविष्य को तय करते हैं. वैसे तो लोग यूट्यूब पर हर तरह की फिल्में देख लेते हैं. मेरे हिसाब से फिल्म जैसे बनी है, उस के हिसाब से सर्टिफिकेट दें. किसी की पसंद या नापसंद को आप डिक्टेट नहीं कर सकते.

समय मिले तो क्या करना पसंद करती हैं?

मैं बहुत बड़ी फिटनैस फ्रीक हूं. समय मिलने पर जिम जाती हूं जिस में मैं मार्शल आर्ट की एक कठिन विधा परकौर करती हूं. खानेपीने पर ध्यान देती हूं, किताबें पढ़ती हूं, फिल्में देखती हूं. मेरे फ्रैंड्स नहीं हैं. फिल्म की यूनिट के लोग ही मेरे फ्रैंड्स हैं. मुझे खाना बनाने का शौक है. सबकुछ बना लेती हूं. नौनवैज नहीं बनाती, क्योंकि मैं खाती नहीं हूं. मैं ने खाना बनाना घर से बाहर निकल कर ही सीखा है. मैं चाय अच्छी बनाती हूं.

आप को कभी ‘कास्टिंग काउच’ का सामना करना पड़ा?

किसी भी क्षेत्र में चाहे वह हिंदी सिनेमा जगत हो या कोई कौरपोरेट वर्ल्ड हर जगह महिलाओं को किसी न किसी रूप में प्रताड़ित होना पड़ता है. इस के लिए वे खुद जिम्मेदार होती हैं.

जिस के पास पावर है वह उस का प्रयोग किसी न किसी रूप में करता है, लेकिन आप अगर खुद उन्हें बता देते हैं कि आप को अपनेआप पर भरोसा नहीं, आप एक रात में ऐक्ट्रैस बनना चाहती हैं, कुछ भी करने के लिए तैयार हैं, तो आप का यूज कौन नहीं करेगा? इस तरह की घटनाओं में दोनों का योगदान होता है. एक अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता.

कोई ड्रीम प्रोजैक्ट है?

मैं हमेशा एक अच्छी फिल्म करना चाहती हूं. अभी मैं अपनेआप को प्रूव कर रही हूं.

कुछ और दूसरी रीजनल फिल्में करने का शौक है?

मैं कोई भी अच्छी फिल्म, किसी भी भाषा में हो, करना पसंद करूंगी.

रिलेशनशिप पर आप की सोच क्या है? क्या आप को कभी किसी से प्यार हुआ?

रिलेशनशिप जल्दी टूटती है क्योंकि वह बनती भी जल्दी है. आजकल बनावटी चीजें बहुत हो रही हैं. ऐसे में मैं अपने काम पर अधिक ध्यान देती हूं. मेरा काम ही मेरा प्यार है.

कितनी फैशनेबल हैं?

मैं फैशनेबल बिलकुल नही हूं, जो मिले उसी को पहन लेती हूं.

तनाव होने पर क्या करती हैं?

तनाव होने पर दौड़ने चली जाती हूं.

शौपिंग मेनिया है?

मुझे जो पसंद आए उसे अवश्य खरीद लेती हूं, नहीं तो रात में उस के सपने आते हैं. वे कपड़े, जूते कुछ भी हो सकते हैं.

आप अपना आदर्श किसे मानती हैं?

मैं अपनी मां कांति बाजपेयी को अपना आदर्श मानती हूं.

यूथ जो इस क्षेत्र में आना चाहे उन्हें क्या मैसेज देना चाहेंगी?

यूथ के लिए मेरा मैसेज यही है कि आप जो भी सपने देखें, उन्हें ईमानदारी से फौलो करने की हिम्मत रखें. सभी स्टार बनने के लिए मुंबई आते हैं, पर वे सही ढंग से मेहनत नहीं करते और जब फेल हो जाते हैं, तो रोते हैं और सब को दोषी ठहराते हैं. मेरे हिसाब से सपने जितने अधिक बड़े होते हैं, मेहनत उतनी ही अधिक होती है. उस के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.

जायका जरा हट के : पंपकिन लक्सा

सामग्री

1 बड़ा चम्मच औलिव औयल

1 बड़ा चम्मच लहसुन बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच अदरक बारीक कटा

1 हरीमिर्च बारीक कटी

1/2 कप हरा प्याज छोटे टुकड़ों में कटा

2 कप पंपकिन छोटे क्यूब्स में कटा

2 कप वैजिटेबल स्टौक

5 मशरूम बड़े टुकड़ों में कटी

1/2 कप ब्रोकली

1/4 कप हौट सौस

1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

1/4 कप कोकोनट मिल्क

1/4 छोटा चम्मच चीनी

1 कप नूडल्स पकी

थोड़ी सी ड्राई रोस्ट मूंगफलियां

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

2 बड़े चम्मच अनारदाना

नमक स्वादानुसार

विधि

पैन में तेल गरम कर के लहसुन, अदरक व हरीमिर्चें सौते करें. अब इस में हरा प्याज डाल कर कुछ देर और सौते करें. फिर पंपकिन और नमक मिला कर धीमी आंच पर 2 मिनट तक भूनें. तैयार मिश्रण में वैजिटेबल स्टौक मिलाएं और ढक कर धीमी आंच पर कुछ देर तक पकाएं.

मिश्रण जब ठंडा हो जाए तो ब्लैंड कर के प्यूरी बना लें. प्यूरी को उबालने के लिए रख दें. जरूरत हो तो थोड़ा सा पानी मिला दें. अब इस में मशरूम और ब्रोकली मिला कर 10 मिनट तक पकाएं. आंच धीमी कर के कोकोनट मिल्क व कालीमिर्च पाउडर मिला दें.

10 मिनट तक पकने के बाद लक्सा तैयार है. सर्व करने के लिए एक बाउल में पहले नूडल्स रखें फिर गरमगरम तैयार मिश्रण डालें. मूंगफली, अनारदाना और धनियापत्ती से सजाएं.

-व्यंजन सहयोग: शैफ रनवीर बरार

बड़ा बच्चा हो हैप्पी नैपी बेबी के आने पर

दूसरे बच्चे का आगमन जहां अपने साथ ढेरों खुशियां लाता है वहीं कुछ जिम्मेदारियां भी साथ लाता है. पहले बच्चे को इस बात के लिए तैयार करना पड़ता है कि घर में नन्हे मेहमान के आने से उस की जिंदगी में क्या बदलाव होगा. माना कि छोटे भाई या बहन के आने से पहला बच्चा खुद को अकेला नहीं महसूस करेगा, लेकिन उस के साथ ही उसे अपना प्यार भी बांटना पड़ेगा, अपना समय बांटना पड़ेगा, उसे ज्यादा अटैंशन मिलेगी. इन्हीं सब बातों के लिए पहले बच्चे को तैयार करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है.

पेश हैं, कुछ अहम सुझाव जो आप को यह जिम्मेदारी बेहतर तरीके से निभाने में मददगार होंगे.

तैयारी की शुरुआत

कई बार छोटे बच्चे मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार नहीं होते कि अब तक पेरैंट्स का जो जरूरी अटैंशन उन्हें मिलता था उसे कोई और बांट ले. ऐसे में उसे इमोशनली डील करना पड़ता है, क्योंकि अगर उसे मानसिक रूप से तैयार नहीं किया गया तो उस के कोमल मन पर इस का गलत असर हो सकता है. उस का आना उसे अच्छा न लगे या हो सकता है स्थाई रूप से उस के मन में अपने पेरैंट्स और छोटे भाई या बहन के प्रति नाराजगी पनपने लगे. इसलिए जैसे ही आप को दूसरे बच्चे की आने की खुशखबरी मिले वैसे ही पहले बच्चे का रिश्ता उस से बनाने की शुरुआत कर दें ताकि उस के साथ उस का जुड़ाव हो, वह उस के आने से पहले उस से इमोशनली अटैच हो जाए और उस का स्वागत करे.

पहले बच्चे को दें ज्यादा अटैंशन

माना कि दूसरा यानी आने वाला बच्चा छोटा होगा और उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होगी, लेकिन दूसरे बच्चे के साथ पहले बच्चे की बौडिंग बने, इस के लिए पहले बच्चे को ज्यादा अटैंशन देनी होगी. एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज, फरीदाबाद की गाइनोकोलौजिस्ट डा. पूजा कुशल के अनुसार, ‘‘भले ही पहले व दूसरे बच्चे के बीच आयु का अंतर अधिक नहीं होता, फिर भी पहला बच्चा समझदार होता है. वह सभी बातों को इमोशनली फील करता है, इसलिए वह दूसरे बच्चे को अपना प्रतिद्वंद्वी न समझे और उस के साथ जुड़ सके, इस के लिए पहले बच्चे को ज्यादा अटैंशन दें. वैसे भी डिलिवरी के बाद व प्रैगनैंसी के दौरान पहला बच्चा हर बात को बहुत ध्यान से औब्जर्र्व करता है, इसलिए उसे हर समय अपने साथ रखें और दूसरे बच्चे की बात करते समय उसे पूरा अटैंशन दें.”

 ‘‘प्रैगनैंसी के दौरान जब दूसरे बच्चे के लिए शौपिंग करें तो पहले बच्चे से पूछें, उस की पसंद जानें और उस के अनुसार शौपिंग करें. इस से वह खुद को महत्त्वपूर्ण समझेगा ओर दूसरे बच्चे के प्रति उस के मन में ईर्ष्या का भाव नहीं पनपेगा, साथ ही आने वाले भाई या बहन के साथ जुड़ाव भी महसूस करेगा.’’

बच्चे के जन्म के बाद

छोटे बच्चे का डायपर बदलते समय, उसे नहलाते समय बड़े बच्चे की मदद लें. इस से वह हमेशा आप के व छोटे बच्चे के साथ रहेगा और अकेला महसूस नहीं करेगा, साथ ही उस में जिम्मेदार बड़ा भाई या बहन की भावना भी विकसित होगी.

आप चाहे कितनी ही व्यस्त क्यों न हों, बड़े बच्चे की ऐक्टिविटीज में पहले की तरह शामिल रहें.

अगर मां छोटे बच्चे की देखभाल में व्यस्त है तो पिता बड़े बच्चे की जिम्मेदारी ले. उसे पूरा अटैंशन दे. उस के साथ खेले, उसे बाहर घुमाने ले जाए.

छोटे बच्चे के आने के बाद बड़े बच्चे को उस से दूर न करें, बल्कि उसे अपने छोटे भाई या बहन को पास से देखने दें. अगर बड़ा बच्चा थोड़ा बड़ा है तो छोटे बच्चे को उस की गोद में दें. उस से कहें आप भी जब छोटे थे तो बिलकुल ऐसे ही थे. जब यह बड़ा हो जाएगा तो आप के साथ स्कूल जाएगा, आप के साथ खेलेगा. ऐसा करने से बड़े बच्चे के मन में अपने छोटे भाई या बहन के प्रति भावनात्मक रिश्ता पनपेगा.

कई बार जब घर के पहले बच्चे को दूसरे बच्चे के आने की खबर दी जाती है तो उसे समझ नहीं आता कि छोटे भाई या बहन की जरूरत क्या है और साथ ही उसे यह भी लगता है कि अब तक जो पूरे घर का अकेला लाडला या लाडली थी, सभी अपना पूरा ध्यान उसी पर देते थे, लेकिन दूसरे के आने से उस का प्यार बंट जाएगा. वह ऐसा न सोचे या उस के मन में ऐसे भाव न आएं, इस के लिए जरूरी है कि उसे समझाया जाए कि छोटा भाई या बहन होना जरूरी होता है, वह घर में आप का दोस्त, आप का साथी बनेगा.

आप के प्यार में कमी नहीं आएगी. आप उसे किताबों, वास्तविक उदाहरणों की सहायता से समझाएं कि देखो वे दोनों कैसे सभी काम एकसाथ करते हैं. आप का आने वाला छोटा भाई या बहन भी वैसा ही होगा और आप उस के साथ खूब मौजमस्ती करोगे. आप का अकेलापन दूर होगा.

इन तरीकों पर अमल करने से बड़े बच्चे के मन में आने वाले दूसरे बच्चे के प्रति प्रतिद्वंद्विता का भाव नहीं पनपेगा ओर वह उस का स्वागत तहेदिल से करेगा.

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