कुछ इस तरह करें कपड़ों की देखभाल

कपड़े आपके व्यक्तित्व को उभारने में अहम भूमिका निभाते हैं, इसलिए इन्हें लंबे समय तक सहेज कर रखने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है. सफेद कपड़ों को अलग से धोएं.

कपड़ों का बंटवारा

कपड़ों की अलमारी के हर भाग में रूटीन के हिसाब से इस्तेमाल में लाए जाने वाले कपड़े रखें, जैसे रोजाना पहने जाने वाले कपड़े अलग हिस्से में रखें, स्पोर्ट्सवेयर, शाम को पहने जाने वाले या पर्टी में पहने जाने वाले और रात को पहने जाने वाले कपड़े अलग हिस्से में रखें.

कपड़ों को लंबे समय तक बनाए बेहतर

कपड़ों को लंबे समय तक बेहतर स्थिति में बनाए रखने के लिए उन्हें फैब्रिक के हिसाब से धोएं. ऊनी और सिल्क के कपड़ों को सिर्फ ड्राई क्लीन कराएं और इन्हें उचित तापमान पर प्रेस करें.

कपड़ो को कैसे धोएं

सूती और लिनेन के कपड़ों को हाथ से धोकर छाया में सुखाना चाहिए. बुने हुए कपड़ों को सपाट सुखाना चाहिए. इन कपड़ों को टांगने से नेकलाइन के पास इनकी शेप बिगड़ सकती है.

सफेद कपड़े

सफेद कपड़ों को हमेशा अन्य रंग के कपड़ों से अलग धोएं, क्योंकि इन पर दूसरे रंग के कपड़े का रंग चढ़ जाने की संभावना रहती हैं.

कपड़ों का फैब्रिक

अच्छे फैब्रिक वाले कपड़े खरीदें, जिससे ये ज्यादा दिन तक टिके रहें. फैशन की चमक-दमक में कुछ भी न खरीद लें, क्योंकि ये ज्यादा दिन नहीं टिकते.

कपड़े हो सूती कवर में

चाहे साड़ी हो, लहंगा, दुपट्टा या ब्लाउज, इन कपड़ों को सफेद सूती कवर में सहेज कर रखें.

मेरे पिता ने यह फिल्म मेरे लिए नहीं लिखी : शिव दर्शन

मशहूर फिल्मकार सुनील दर्शन के बेटे शिव दर्शन अपने करियर की दूसरी फिल्म ‘एक हसीना थी एक दीवाना था’ को लेकर काफी उत्साहित हैं, जो कि 30 जून को सिनेमाघरों में पहुंच रही है. वैसे उनकी पहली फिल्म ‘कर ले प्यार कर ले’ तीन वर्ष पहले आयी थी और बॉक्स ऑफिस पर पानी भी नहीं मांगी थी.

शिव दर्शन ने अपनी पिछली फिल्म के समय की कमियों का विश्लेषण कर इस बार अपने पिता सुनील दर्शन के निर्देशन में ‘एक हसीना थी, एक दीवाना था’ में अभिनय किया है. वह खुद कहते हैं, ‘‘फिल्म की सफलता व असफलता दोनों के विश्लेषण काफी किए जाते हैं. हम जितना विश्लेषण करते हैं, उतनी ही ज्यादा कमियां नजर आती हैं. मुझे जो बात समझ में आयी, उस पर वर्कआउट किया और आगे बढ़ गया. पर इस बीच मेरे पास फिल्मों के जो ऑफर आ रहे थें, उनमें मुझे मेरा किरदार पसंद नहीं आ रहा था. तो कभी मुझे फिल्म से जुड़ी टीम समझ में नहीं आयी. इसलिए मैंने वे फिल्में नहीं की. एक फिल्म की असफलता के बाद मैं अपने करियर को बहुत सोच समझकर आगे ले जाना चाहता था.’’

शिव दर्शन बहुत ज्यादा सोच विचार करने में यकीन नहीं रखते हैं. वह कहते हैं, ‘‘मैं बहुत ज्यादा सोचता नही हूं. पटकथा पढ़ते समय मुझे लगा कि किरदार सही है, तो मैनें सोचा कि इसे करना चाहिए. इसके बाद निर्देशक ने मुझे जैसा समझाया वैसा मैंने किया. इस किरदार के लिए फिजीकली फिट होना जरूरी था, तो उसके लिए मैंने जिम वगैरह किया. देवधर शायराना अंदाज का इंसान है. इसके लिए मुझे अपनी जबान साफ करने के लिए उर्दू भाषा सीखनी पड़ी.’’

शिव दर्शन आगे कहते हैं, ‘‘मैं स्पष्ट कर दूं कि मेरे पिता ने यह फिल्म मेरे लिए नहीं लिखी. बल्कि किसी घटनाक्रम से प्रेरित होकर उन्होंने यह कहानी लिखी थी. मुझे पढ़ने के लिए दी. मुझे कहानी व किरदार पसंद आया. मुझे याद है कि उन्होंने 4 घंटे में पूरी पटकथा लिख डाली थी.’’

फिल्म में शिव दर्शन के साथ नई हीरोईन नताशा फर्नांडिश हैं. जबकि उनके पिता तमाम बड़े कलाकारों को निर्देशित कर चुके हैं? इस पर शिव दर्शन ने कहा, ‘‘इसका सही जवाब तो निर्देशक दे सकते हैं. मुझे लगता है कि निर्देशक ने प्रेम कहानी में नए चेहरे को पेश करने की बात सोची. मैंने तो अपने पिता यानी कि निर्देशक के वीजन के अनुसार काम किया है. उनका जो ट्रैक रिकॉर्ड है, उसके अनुसार उनकी फिल्मों में कंटेंट महत्वपूर्ण होता है. तभी तो उन्होंने लारा दत्ता, प्रियंका चोपड़ा, जुही चावला, करिश्मा कपूर, करीना कपूर सहित कई अभिनेत्रियों को अपनी फिल्मों में ब्रेक दिया. उन्हें कला की परख है. मैं उनके रचनात्मकता के क्षेत्र में दखलंदाजी नहीं करता.’’

फिल्म की सबसे बड़ी खासियत बताते हुए शिव दर्शन ने कहा, ‘‘इस फिल्म के गीतों को संगीत से संवारा हैं नदीम सैफी ने. फेरीटेल जैसी लोकेशन पर शूटिंग की है.’’

क्या करें जब आग लग जाए

यों तो सालभर देशभर में कहीं न कहीं से भयानक आग लगने की खबरें आती रहती हैं लेकिन गरमी के मौसम में आग लगने के हादसों की तादाद बढ़ जाती है. इस साल अप्रैल में आग लगने की 2 दर्जन बड़ी घटनाएं हुईं जिन में सब से ज्यादा दिल दहला देने वाला हादसा मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के हर्रई ब्लौक के गांव बारगी में हुआ.

22 अप्रैल की शाम 4 बजे चिलचिलाती धूप में बारगी गांव के सैकड़ों लोग राशन की दुकान के सामने लाइन में लगे थे. यह राशन की दुकान ठीक वैसी ही है, जैसी देशभर में होती हैं कि एकाधदो कमरे राशन की सहकारी दुकान चलाने वाला किराए पर ले लेता है. इन में बांटा जाने वाला अनाज और राशन के दूसरे आइटम ठूंसठूंस कर भरे रहते हैं. एक तरह से राशन की इन सस्ती दुकानों को छोटेमोटे गोदाम कहना ज्यादा बेहतर होगा.

बारगी में गांव वालों को बांटने के लिए कैरोसिन का तेल इस दिन आया था. यह खबर आग की तरह गांवभर में फैली तो देखते ही देखते तेल लेने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई. बाहर लाइन लगी तो दुकानदार भीतर अनाज बांटने लगा. चूंकि कैरोसिन चाहने वालों की तादाद ज्यादा थी, इसलिए दुकानदार ने दरवाजे पर कैरोसिन का ड्रम रख लिया. जिन्हें अनाज चाहिए था वे दुकान के भीतर रह गए और जिन्हें कैरोसिन चाहिए था वे बाहर लाइन में खड़े हो गए.

सैकड़ों लोगों को उन की मांग के मुताबिक कैरोसिन का तेल बांटने में देर लग रही थी. लाइन में लगे गांव वालों में से किसी ने आदतन बीड़ी सुलगा ली और पीने के बाद आदत के मुताबिक ही उस का ठूंठ फेंक दिया. इसी दौरान एक और गांव वाले ने बीड़ी सुलगा कर तीली फेंकी तो वह कैरोसिन के ड्रम के पास जा गिरी. कैरोसिन ने आग पकड़ी तो देखते ही देखते हाहाकार मच गया.

बचने के बजाय फंसे

कैरोसिन ने आग पकड़ी तो भगदड़ मच गई. बाहर लाइन में खड़े लोग तो खुले की तरफ जान बचाने के लिए भाग गए पर जो लोग अंदर कमरे में बंद थे, उन की हालत चूहेदानी में फंसे चूहे जैसी हो गई थी. आग अंदर तक फैली और अनाज के बारदानों तक जा पहुंची. अंदर फंसे लोगों में से किसी को नहीं सूझा कि क्या करे.

हरेक की हर मुमकिन कोशिश खुद की जान बचाने की थी. इस से हुआ उलटा, कि जरा से कमरे से भागादौड़ी के चलते इनेगिने लोग ही बाहर आ पाए और 13 लोग आग की भेंट चढ़ गए यानी जिंदा जल मरे.

मंजर यह था कि महज 5 मिनट में ही आग ने पूरी दुकान को अपनी गिरफ्त में ले लिया. भीतर वाले कमरे में रखा सामान और अनाज के बारदाने भी जलने लगे तो छोटा सा कमरा धुंए से भर गया. नतीजतन, वहां मौजूद लोगों का दम भी घुटने लगा. जान बचाने के लिए लोगों को कुछ नहीं सूझा तो वे बारदानों के ऊपर चढ़ गए पर वहां भी आग की लपटों ने उन का पीछा नहीं छोड़ा.

हादसे के गवाह रहे एक घायल मनोज कुमार मालवीय का कहना है कि उसे और दूसरे लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. बाहर निकलने के लिए एक ही दरवाजा था और लोग उस की तरफ भाग रहे थे. चूंकि कैरोसिन या खाने वाला तेल फर्श पर फैल गया था, इसलिए लोग उस पर से फिसलने लगे थे. इस आपाधापी और भागादौड़ी में कुल 4 लोग ही बाहर निकल पाए.

आग जब शबाब पर आई तो 200 लिटर से भरे ड्रमों में से भड़ामभड़ाम की आवाजें आने लगीं जिस से लोग और दहशत से भर उठे. देखते ही देखते सोसाइटी की दुकान का यह कमरा श्मशान घाट बन गया. बाहर खड़े चिल्लाते लोग बेबसी से मौत का यह मंजर देखते रहे, जिसे शायद ही वे जिंदगीभर भुला पाएं.

आग के इस हादसे की खबर भी आग की तरह फैली और जिलेभर से फायरब्रिगेड आईं. दुकान की दीवार तोड़ कर आग बुझाई गई पर जब तक जो होना था वह हो चुका था.

बच सकते थे

मनोज की बातों से जाहिर होता है कि घबराए लोगों ने वही गलती की जो आमतौर पर ऐसे हादसों के वक्त लोग करते हैं वह थी भगदड़ मचा कर पहले भागने की.

लोग चाहते थे तो एकएक कर बाहर निकल सकते थे पर हर एक को अपनी जान की पड़ी थी, इसलिए भीतर फंसे लोगों में से कोई नहीं बच सका. मरने वालों में 5 औरतें भी थीं.

साफ दिख रहा है कि लोग आग से कम, भगदड़ से ज्यादा मरे. हो यह रहा था कि लोग एकदूसरे को धकिया कर पहले बाहर निकलने के लिए दरवाजे की तरफ भाग रहे थे और आगेवाले पीछे वालों को धक्का दे रहे थे. इस गफलत में कोई बाहर नहीं निकल पाया और आग ने उन्हें बख्शा नहीं.

यह ठीक है कि हमारे देश में आग और दूसरी कुदरती आफतों से बचने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती है जो कि अब आग की बढ़ती घटनाओं को देख जरूरी लगने लगी है.

छिंदवाड़ा की आग के बाद हफ्तेभर में ही अकेले मध्य प्रदेश के ही भोपाल, इंदौर, मंडला और बैतूल में लगी आग से 6 लोग और मारे गए.

इंदौर में पटाखों की दुकान में आग लगी तो भोपाल में रिहायशी इलाके सोनागिरि की एक बिल्ंिडग को आग ने अपनी गिरफ्त में ले लिया. बैतूल और मंडला में खेतखलिहानों में आग लगी थी. यानी आग से कहीं कोई महफूज नहीं है, वह बंद और खुली दोनों जगहों में लग सकती है.

खुली जगहों मसलन, मैदान, खेत और खलिहान में आग से बचने के मौके ज्यादा होते हैं लेकिन बंद जगहों में समझदारी से ही अपनी जान बचाई जा सकती है.

ऐसे बचें हादसे से

जिस तेजी से आग लगने के हादसे बढ़ रहे हैं, उन से लगने लगा है कि लोगों को खुद अपना बचाव करना आना चाहिए जिस से ऐसे बुरे वक्त में वे अपनी और औरों की जान बचा पाएं. इस के लिए इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए-

– अगर यंत्र का इस्तेमाल करना न आता हो तो आसपास देखें कि शायद कोई ऐसी चीज मिल जाए जिस आग पर फेंक देने से उसे रोका जा सके. मसलन, रेत या पानी, ये चीजें अगर मिल जाएं तो इन्हें तुरंत तेजी से आग पर फेंकना चाहिए पर अगर आग बिजली के तारों या शौर्ट सर्किट की वजह से लगी दिखे तो उसे बुझाने के लिए पानी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इस से करंट लगने का डर बना रहता है.

– आजकल तकरीबन हर जगह आग बुझाने के अग्निशामक यंत्र रखे जाते हैं, पर अफसोस की बात यह है कि इन्हें चलाना हर कोई नहीं जानता. इसलिए नजदीकी फायर ब्रिगेड दफ्तर से इन्हें चलाने का तरीका सीखने में हर्ज नहीं, क्योंकि पता नहीं, कब कहां ऐसी नौबत आ जाए.

– आग में फंसने पर ऊपर के कपड़े उतार कर फेंक देना चाहिए क्योंकि ये जल्दी आग पकड़ते हैं. इन के जरिए ही शरीर जलता है और बचने का मौका नहीं मिल पाता.

– आग कहीं से भी उठती दिखे, तुरंत बिजली के खटकों और हो सके तो मेनस्विच को बंद कर देना चाहिए क्योंकि बिजली के तार जल्द आग पकड़ते हैं.

– आग कहीं भी, कैसे भी लगे, उस से धुआं जरूर फैलता है. इसलिए रूमाल, गमछा, दुपट्टा जो भी मिले, उस से मुंह ढक लेना चाहिए ताकि दम न घुटे.

– आग कपड़ों तक आ जाए तो जमीन पर लेट कर लुढ़कना चाहिए. इस से आग बुझने में मदद मिलती है. चादर, कंबल या दूसरा बड़ा कपड़ा मिल जाए तो उसे शरीर पर लपेट लेना चाहिए. फिल्मों में अकसर इसी तरह आग से जलते आदमी को बचाते हुए दिखाया जाता है.

– किसी बड़ी इमारत में आग लगे तो भागने के लिए लिफ्ट के बजाय सीढि़यों का इस्तेमाल करना चाहिए.

– आग जहां से उठती दिखे, उस के आसपास की चीजों को हटा देना चाहिए क्योंकि उन से आग को फैलने का मौका मिलता है.

छिंदवाड़ा के बारगी गांव के हादसे से एक बात साफ और उजागर यह हुई कि लोगों ने समझ खो दी थी. अगर पीछे वाले, आगे वाले लोगों को दरवाजे से बाहर निकल जाने देते तो उन्हें भी अपनी जान बचाने का मौका मिल सकता था. आगे वाले की तो जान बच ही जाती.

बीड़ी और जलती तीली फेंकने वाले तो गुनहगार हैं ही, लेकिन जब आग लग ही गई थी तो लोग सब्र का दामन न छोड़ते, समझ से काम लेते तो हादसा इतना भयानक नहीं होता.

जलने पर यह करें

– आग में थोड़ा जलें या ज्यादा, बेहतर यह होता है कि जब तक जलन कम न हो, तब तक आप जख्म पर ठंडे पानी का छोटा कपड़ा रखें.

– जहां आग लगी है वहां की खिड़कियां खोलने की कोशिश करनी चाहिए.

– जली हुई जगह पर चूना, हलदी या टूथपेस्ट न लगाएं, इस से घाव ठीक नहीं होता, उलटे डाक्टर को  घाव साफ करने में परेशानी पेश आती है.

– जली हुई जगह पर पानी डालने से जख्म गहरा नहीं हो पाता.

– तुरंत ऐंबुलैंस को फोन करें.

एहतियात जरूरी

आग अकसर लापरवाही से लगती और फैलती है. बागरी गांव में लोग जलती बीड़ी या तीली नहीं फेंकते तो एक बड़े हादसे और 13 मौतों से बच सकते थे. अगर ये एहतियात बरती जाएं तो आग लगने की घटनाओं को रोका जा सकता है-

– आग लगने के आधे से ज्यादा हादसे बिजली के तारों और शौर्ट सर्किट होने के चलते होते हैं. गरमी में बिजली की खपत ज्यादा होती है, इसलिए बिजली के तारों पर जोर ज्यादा पड़ता है और वे जलने लगते हैं. इसलिए बेहतर यह होता है कि घटिया किस्म के बिजली के तारों का इस्तेमाल न किया जाए, हमेशा ब्रैंडेड तार ही इस्तेमाल किए जाएं.

– झुग्गी-झोंपडि़यों और कच्चे मकानों में आमतौर पर सीधे खंबे से बिजली ले ली जाती है, यह बेहद जोखिम वाला काम है, इस से बचना चाहिए. मकान

चूंकि कच्चे होते हैं और उन में लकड़ी, घासफूस वगैरा का ज्यादा इस्तेमाल होता है, इसलिए बिजली के तारों से आग लगने का खतरा ज्यादा रहता है.

– हर दूसरेतीसरे साल में घर की बिजली फिटिंग की जांच कराते रहना चाहिए और खराब व गले तारों को हटवा देना चाहिए.

– आमतौर पर घरों में बिजली का एक ही मेनस्विच रखा जाता है जिस पर बिजली का सारा लोड पड़ता है. इस से उस के जलने का खतरा बना रहता है. इस से बचने के लिए 2 मेनस्विच लगवाने चाहिए.

– इलैक्ट्रिक और इलैक्ट्रौनिक आइटमों में जरा सी भी खराबी आ जाने पर उन की रिपेयरिंग करवानी चाहिए.

– एसी, फ्रिज, कंप्यूटर, टीवी, टुल्लू पंप और ओवन जैसे आइटमों

के लिए पावरस्विच लगवाना चाहिए. साधारण खटके से चलाने पर वे जल्द गरम होते हैं और आग लगने का खतरा बढ़ जाता है.

– रात को सोने से पहले गैस सिलैंडर की नौब बंद कर देनी चाहिए.

– घर में बेवजह की रद्दी व कचरा नहीं रखना चाहिए, ये आइटम जल्द आग पकड़ते हैं.

– खेतखलिहानों में सूखी घास, लकडि़यां आदि महफूज जगह पर रखनी चाहिए और नरवाई में आग नहीं लगानी चाहिए. गांवदेहातों में आजकल आग नरवाई लगाने से ज्यादा लग रही है, इसलिए इसे कानूनी जुर्म भी घोषित कर दिया गया है.

इन बातों पर अमल किया जाए तो आग से बचा जा सकता है. बेहतर तरीका यह है कि आग से बचाव पर ध्यान दिया जाए वरना आग लगने में देर नहीं लगती.

पिता और पुत्री के मजबूत रिश्ते की डोर बांधती बॉलीवुड की ये फिल्में

कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता, उनको सिर्फ महसूस किया जा सकता है. अगर आप उनके बारे में सोचते हैं तो आपको कोई चित्र नहीं दिखता बल्कि, उस शब्द के एहसास से मन के अन्दर भावनाओं का एक तूफान उमड़ पड़ता है. ऐसा ही एक शब्द है ‘पापा’.

हम बचपन में कई बार उनकी सख्ती की वजह से पापा से गुस्सा भी होते हैं, उन्हें गलत भी समझ लेते हैं, मगर जब भी कोई परेशानी सामने आती है तो, ‘पापा’ सुनते ही दिल में ख्याल आता है कि सब ठीक हो जाएगा. इस शब्द के साथ ही सुरक्षा की भावना जुड़ी होती है.

बॉलीवुड में रिश्तों की नाजुक डोर से बंधी फिल्में एक समय का हिट फार्मूला थीं. आज भी ऐसी फिल्में दर्शकों को इमोशनल कर देती हैं. आज हम आपको बताएंगे ऐसी ही कुछ फिल्में जिनमें एक पापा और बेटी के रिश्ते को खूबसूरती से दिखाया गया है.

1. पीकू

फिल्म पीकू की कहानी पिता-पुत्री के रिश्ते को खूबसूरती के साथ फिल्मी परदे पर दिखाती है. एक चिड़चिड़े, बूढ़े और बचकानी हरकतों वाले पिता (अमिताभ बच्चन) को उसकी बेटी (दीपिका पादुकोण) किस तरह संभालती है, इसी के इर्द-गिर्द इस फिल्म की कहानी रची गई है. कभी-कभी मॉडर्न बेटी बूढ़े पिता की हरकतों पर झल्लाती भी है, इसके बाद भी पिता की फ़िक्र के आगे बेटी को ऑफिस और दुनियादारी नहीं दिखती.

2. मैं ऐसा ही हूं

इस फिल्म में अजय देवगन ने एक ऐसे पिता का रोल निभाया, जो मानसिक रोगी हैं. वो अपनी बेटी की कानूनी कस्टडी के लिए कानूनी लड़ाई लड़ते हैं और ये साबित करते हैं कि वो अपनी बेटी की ज़िम्मेदारी उठाने वाले एक जिम्मेदार पिता हैं. फिल्म में बाप-बेटी के मासूम रिश्ते पर एक गाना भी है ‘पापा मेरे पापा’ जो आपको भावुक कर देगा.

3. चाची 420

ये फिल्म 1977 में आई थी. इसमें चाची का किरदार कमल हसन ने निभाया है. फिल्म में एक पिता अपनी बेटी का ध्यान रखने के लिए नौकरानी बन जाते हैं. बाप-बेटी के रिश्ते के साथ-साथ बेहतरीन कॉमेडी के लिए भी इस फिल्म को देखा जा सकता है.

4. डैडी

साल 1989 में आई ये फिल्म बाप-बेटी के रिश्ते की कहानी है. फिल्म में पूजा भट्ट और अनुपम खेर हैं और इसका निर्देशन, महेश भट्ट ने किया था. फिल्म में पूजा 17 साल की एक लड़की का किरदार निभाती हैं. फिल्म में जब सारा जमाना पिता के खिलाफ होता है तब बेटी सिर्फ इस विश्वास पर उसके साथ खड़ी होती है कि उसका पिता इंसान बुरा हो सकता है मगर पिता बुरा नहीं हो सकता. इस फिल्म की एक गजल ‘आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत न मांग’ आज भी मशहूर है.

5. पिता

साल 2002 में आई फिल्म ‘पिता’ में संजय दत्त मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म में दिखाया गया है कि एक पिता, जिसकी 9 साल की मासूम बच्ची को बुरी तरह पीटकर उसका रेप किया जाता है, किस तरह अपनी बेटी के लिए भ्रष्ट व्यवस्था और धूर्त लोगों से लड़ता है.

आम तौर पर पिता और पुत्री के रिश्ते पर बनी हर फिल्म में एक बात समान होती है कि पिता शुरुआत में भले नायक की भूमिका में हो या खलनायक की, मगर अंत में उसे अपने अपने बच्चों या बेटी का भरोसा और प्यार दोनों ही मिल जाते हैं.

सेल्फ लव की हिमायती हैं नताशा फर्नांडिस

सुनील दर्शन निर्देशित फिल्म ‘एक हसीना थी एक दीवाना था’ से अभिनय करियर की शुरुआत कर रही अभिनेत्री नताशा फर्नांडिस की निजी जिंदगी में प्यार के बड़े मायने हैं.

वह कहती हैं, ‘‘मेरे लिए प्यार बहुत मायने रखता है. निजी जिंदगी में मुझे पता है कि मुझे एक इंसान में क्या चाहिए. प्यार में मुझे न अपनी जिंदगी बर्बाद करनी है और न ही किसी और की.’’

प्यार की चर्चा करते हुए नताशा आगे कहती हैं, ‘‘दो तरह का प्यार होता है. एक ‘सेल्फ लव’ होता है. दूसरा वह प्यार होता है, जो हम हर किसी से करते हैं. मैं उपदेश नहीं देना चाहती.

मगर मेरा मानना है कि आज की तारीख में ‘सेल्फ लव’ बहुत मायने रखता है. जब हम खुद से प्यार करेंगे, तभी हम दूसरों के बीच प्यार बांट सकेंगे. हम अंदर से दुखी हों, तो हम किसी अन्य को खुशी या प्यार कैसे दे सकते हैं. मेरे लिए निजी जिंदगी में ‘सेल्फ लव’ बहुत जरुरी है.’’

बारिश में कैसा हो आहार?

वैसे तो हम सभी ये बात जानते हैं कि बारिश में किन छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखना चाहिए, फिर भी हम कई बार गलतियां कर बैठते हैं और बिमारियों के शिकार हो जाते हैं.
हम आज आपको कुछ ऐसी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें बताने जा रहे हैं जो आपको इस बारिष में स्वस्थ्य रहने में मदद करेंगी.

ये बात तो आप देखते ही होंगे कि बरसात आते ही या इन दिनों आपके स्वास्थ्य से लेकर रहन-सहन और आपके खानपान में भी बहुत परिवर्तन आता है और इसलिए इस मौसम में सतर्कता भी बेहद जरूरी होती है.

विशेष तौर पर इस मौसम में डाइट का सही चयन आपकी सेहत को बरकरार रख सकता है, इसलिए जानिए आहार संबंधी 8 जरुरी बातें…

1. अधिक से अधिक पानी पिएं

2. कोल्ड ड्रिंक्स पीने से बचें

3. हल्का और पौष्टिक खाना खाएं.

4. बहुत ठंडा तरल पदार्थ न पि‍एं.

5. भारी फल-सब्जियां जैसे पालक, मूली, प्याज, लहसुन आदि न खाएं.

6. इस मौसम में कम से कम मेवे खाएं.

7.  अपने खाने में फल, सलाद और जूस को शामिल करें.

8. बाहर के तले-भूने खाने से बचें.

उम्र को मात देती हौसलों की उड़ान

पंकज त्रिपाठी और पत्रलेखा अभिनीत शौर्ट फिल्म ‘एल’ (एल फौर लर्निंग) मात्र डेढ़ मिनट में महिला सशक्तीकरण पर वह प्रभावोत्पादक टिप्पणी कर जाती है जो अब तक ढेरों सरकारी योजनाएं और नेताओं के छद्म वादोंभरे भाषण नहीं कर पाए.

किस्सा कुछ यों है. मिडिल क्लास फैमिली को करीने से संभालती एक महिला को साइकिल चलानी नहीं आती. जब वह अपने पति से साइकिल चलाना सिखाने के लिए कहती तो वह उस का उपहास करते हुए कहता कि इस उम्र में यह क्या नया शौक चढ़ा है, लोग देखेंगे तो हंसेंगे. पति से मिले मीठे इनकार के बाद जब वह अपने बच्चे की साइकिल ले कर पार्क में खुद ही सीखने की कोशिश करते हुए लड़खड़ाती है तो उस के बेटे को अपने दोस्तों के सामने काफी शर्मिंदगी होती है.

घर आ कर वह अपनी मां से उस की साइकिल दोबारा न छूने की हिदायत देता है. घर में अपने पति और बेटे के हतोत्साहित करते इन रवैयों से वह हार नहीं मानती और अंत में घर का सारा काम निबटा कर दोनों को बताए बगैर वह अपने ही दम पर साइकिल सीखने निकल पड़ती है.

सतही तौर पर देखें तो लगता है कोई बड़ी बात नहीं है. साइकिल तो कोई भी चला सकता है. लेकिन साइकिल का इस्तेमाल यहां प्रतीकात्मक तरीके से हुआ है. सिर्फ साइकिल ही नहीं, आज की महिला जब भी कोई नया काम सीखना चाहती है या फिर किसी पुरानी कमतरी से उबरना चाहती है तो उसे समाज से प्रोत्साहन के बजाए उपहास और उलाहना ही मिलता है. समाज की बात क्या करें, खुद के परिवार में भाई, बहन, पिता या पति भी महिलाओं को घर पर बैठने की हिदायत दे कर उन्हें कुछ नया सीखने से दूर रखते हैं.

याद कीजिए, श्रीदेवी की फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश.’ इस फिल्म में संभ्रांत परिवार का किस्सा था. जहां घर में सब अंगरेजी बोल लेते हैं सिवा शशि गोडबोले के. उस की इस कमतरी पर पति और बच्चे तक उसे जलील करने का मौका नहीं छोड़ते. आखिर में उसे भी खुद ही पहल करनी पड़ती है. वह अपने दम पर बगैर अपनी उम्र की परवा किए इंग्लिश कोचिंग क्लास में न सिर्फ दाखिला लेती है बल्कि इंग्लिश सीख कर अपना खोया आत्मविश्वास भी हासिल करती है.

हौसला और हुनर उम्र के मुहताज नहीं

फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की शशि गोडबोले और ‘एल’ की मिडिल क्लास वाइफ जैसी न जाने कितनी महिलाएं हैं हमारे देश में जिन में कइयों को कार ड्राइविंग करनी है, कई पाइलट बन कर प्लेन उड़ाना चाहती हैं, कोई अंतरिक्ष में जाना चाहती है तो किसी को शूटर बना है. किसी का सपना है कि वह एवरेस्ट की चढ़ाई करे तो कोई शादी के बाद मौडलिंग करना चाहती है.

किसी को डांस का शौक है तो कोई सिंगर बनना चाहती है. किसी को दंगल में धोबीपछाड़ लगानी है तो कोई अपनी अधूरीछूटी पढ़ाई को पूरा कर के डाक्टर या टीचर बनना चाहती है. लेकिन सब अपने परिवार की जिम्मेदारियां निभाने में कहीं पीछे छूट गईं. लेकिन जब आज वे फिर से अपने अधूरे ख्वाबों के परवाजों को पंख देना चाहती हैं तो समाज और परिवार उन्हें उम्र का हवाला दे कर उड़ने से रोकता है. कहता है कि इस उम्र में अब काहे जगहंसाई करवाओगी. चुपचाप घर में बैठो और बच्चे पालो.

जिन के हौसलों में दम होता है वे इन अड़चनों को आसानी से पार करने के लिए उम्र और अपनों के हतोत्साहन को रौंदते हुए न सिर्फ अपने सपनों को पूरा करती हैं बल्कि समाज और महिलाओं को यह संदेश भी दे जाती हैं कि हौसला और हुनर उम्र के मुहताज नहीं होते.

इस देश में कई मिसालें हैं जब महिलाओं की उम्र जान कर उन्हें कमजोर अांकने की गलती की गई. उन्होंने अपने साहस, लगन और बहादुरी से नामुमकिन को मुमकिन कर दिखाया. उन्होंने साबित कर दिया कि अगर कुछ करने का जज्बा हो तो आप शिखर पर पहुंच सकते हैं. आइए मिलते हैं कुछ ऐसी ही महिलाओं से, जो प्रेरणा हैं हम सब के लिए.

101 साल की गोल्ड मैडलिस्ट धावक

24 अप्रैल को जब 101 वर्षीय एक महिला ने उम्र को मात देते हुए अमेरिकन मास्टर्स टूर्नामैंट में भारत की तरफ से गोल्ड मैडल जीता तो देखने वाले दांतों तले उंगली दबा कर रह गए. यह महिला कोई और नहीं, बल्कि भारतीय धावक मान कौर थीं जो 101 साल की उम्र में यह कारनामा कर दुनिया को बता रही हैं कि उम्र को बहाना बनाना छोड़ो और कर डालो जो भी हासिल करना है.

आश्चर्य की बात तो यह है कि मान कौर ने 93 वर्ष की उम्र से दौड़ना शुरू किया था. जिस उम्र में अधिकतर महिलाएं अपने बुढ़ापे का हवाला दे कर कभी नातीपोतों के साथ समय गुजारती हैं या फिर बिस्तर पर पड़ेपड़े मौत का इंतजार करती हैं, उस उम्र में मान कौर 100 मीटर की दौड़ पूरी करती हैं. पिछले साल भी उन्होंने इसी प्रतियोगिता में गोल्ड जीता था.

न्यूजीलैंड के औकलैंड शहर में आयोजित स्पर्धा में मान कौर ने 100 मीटर रेस में यह मैडल जीता है. मान ने अपने कैरियर में यह 17वां गोल्ड मैडल हासिल किया है. मान ने 1 मिनट 14 सैकंड्स में यह दूरी तय की, जो उसेन बोल्ट के 64.42 सैकंड के रिकौर्ड से कुछ सैकंड ही कम है. उसेन बोल्ट ने 2009 में 100 मीटर की रेस में यह रिकौर्ड कायम किया था. न्यूजीलैंड के मीडिया में ‘चंडीगढ़ का आश्चर्य’ कही जा रहीं मान कौर के लिए इस स्पर्धा में भाग लेना ही सब से बड़ा लक्ष्य था.

मान कौर कहती हैं कि उम्र की ढलान में अपने सपनों को दफन करना ठीक नहीं है. हम किसी भी उम्र में खेल सकते हैं. महिलाओं को खेलों में आना चाहिए, इस के लिए खानपान पर नियंत्रण रखना चाहिए. बढ़ती उम्र में चलतेफिरते रहने से बीमारियां दूर होती हैं. इस प्रतिस्पर्धा में मान की ऊर्जा अन्य प्रतिभागियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई. इस से पहले उन्होंने भाला फेंक और शौट पुट में भी मैडल जीते थे. दुनियाभर के मास्टर्स खेलों में मान कौर अब तक 20 मैडल अपने नाम कर चुकी हैं.

80 साल में निशानेबाजी

मान कौर अगर 101 साल की उम्र में ऐथलीट हो सकती हैं तो वहीं 80 साल की दादियां भी हैं जो इस उम्र में निशानेबाजी का हुनर दिखा रही हैं. बागपत के जोहड़ी गांव जाएंगे तो आप को स्थानीय लोगों से यहां की निशानेबाज दादियों के दिलचस्प किस्से सुनने को मिलेंगे.

इस गांव में 81 साल की चंद्रो तोमर और 76 साल की प्रकाशी तोमर ने उस वक्त निशाना साधना सीखा जब लोगों के हाथ कांपने लगते हैं, नजर कमजोर पड़ने लगती है. आज दोनों दुनियाभर में अपने इसी कारनामे की वजह से मशहूर हैं. निशानेबाज बनने की इन की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.

चंद्रो तोमर के मुताबिक, वे अपनी पोती सेफाली को वर्ष 2002 में निशाना लगाना सिखवाने गई थीं. पड़ोस में शूटिंग रेंज खुली थी. लड़के निशाना लगा रहे थे. तो उन्हें लगा कि इस में कौन सी बड़ी बात है. बस, फिर क्या था, उन्होंने भी बंदूक उठाई और मार दिया 10 मीटर के टारगेट पर. छर्रा सटीक निशाने पर लगा. सब लोग उन्हें ही देखने लगे. वहां के ट्रेनर भी यह देख कर ताज्जुब करते रहे.

कुछ दिनों बाद उन्होंने अपनी देवरानी प्रकाशी तोमर से भी निशानेबाजी सीखने के लिए कहा. एक से भले दो. अब दोनों जेठानीदेवरानी तड़के उठ कर पहले साफसफाई, खानापीना और चारासानी करतीं, फिर निकल पड़तीं बंदूक चलाने.

घर वालों ने खूब हंसी उड़ाई. बाहर वालों ने खूब मजाक बनाया. लेकिन उन्होंने सिर्फ अपने मन की सुनी और आज उन का परिवार और पूरा गांव उन पर गर्व करता है. अगर 80 साल की उम्र में ये दादियां निशानेबाज बन सकती हैं तो दुनिया की कोई भी औरत किसी भी उम्र में कुछ भी कर सकती है. हौसला है अगर, तो दुनिया का कोई काम नामुमकिन नहीं हो सकता है.

फिटनैस का हौआ

उम्र को मात दे कर किस तरह हौसलों का शिखर पार किया जाता है, इस के 2 बड़े उदाहरण हैं. एक तरफ तेलंगाना से बेहद आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से ताल्लुक रखती सिर्फ 13 साल की उम्र की मामलावत पूर्णा अपनी लगन से सब से कम उम्र की महिला पर्वतारोही बनने का गौरव हासिल करती है तो दूसरी तरफ प्रेमलता अग्रवाल हैं जो एवरेस्ट फतह करने वाली अब तक भारत की सब से उम्रदराज महिला हैं. उन्होंने उपलब्धि 48 साल की उम्र में हासिल की.

अब यह खिताब अपने नाम करने की कोशिश 52 साल की संगीता एस बहल कर रही हैं. पर्वतारोहण का शौक संगीता के लिए ज्यादा पुराना नहीं है. उन्होंने लगभग 47 साल की उम्र में पहली बार किलिमंजारो पर चढ़ाई की.

वे 2011 में संगीता किलिमंजारो, 2013 में एलब्रस, 2014 में विंसन, 2015 में अंकाकागुआ और कोसियुस्जको शिखर फतह कर चुकी हैं. 2015 में उत्तरी अमेरिका के डेनाली पर्वत पर वे दुर्घटना का शिकार हुईं. चढ़ाई के दौरान उन का घुटना टूट गया जिस के बाद सर्जन ने उन्हें पर्वतारोहण छोड़ने की सलाह दी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इसे एक चुनौती की तरह लिया. उन का घुटना दोबारा जोड़ा गया. कई महीनों तक फिजियोथेरैपी ली. और उन की हिम्मत देखिए, चोट लगने के 6 महीने से भी कम समय में वे अंकाकागुआ पर्वत पर थीं.

उन की जगह कोई और होता तो आसानी से हार मान जाता और अपनी चोट व फिटनैस का हवाला दे कर घर बैठ जाता लेकिन जिसे कुछ करने की बेचैनी और जनून होता है वह हार नहीं मानता बल्कि औरों के लिए मिसाल बन जाता है.

कई बार महिलाएं या पुरुष यह सोच कर अपने कैरियर या सपने को पूरा करने में सकुचाते हैं कि अब उम्र हो गई है या फिर शरीर साथ नहीं देता. कम ही ऐसे होते हैं जो बढ़ती उम्र और फिटनैस से जुड़ी चुनौतियों का मजबूती से सामना कर कामयाबी हासिल कर पाते हैं.

महू के गोल्फर मुकेश कुमार ऐसे ही अपवाद हैं. उन्होंने 51 साल की उम्र में एशियन टूर जीत कर किसी उम्रदराज खिलाड़ी द्वारा विश्वस्तरीय गोल्फ टूर्नामैंट जीतने का रिकौर्ड अपने नाम किया है. कुछ साल पहले तक मुकेश भीतर से इतने मजबूत नहीं थे. उन्हें लगता था कि युवा खिलाडि़यों की तरह लंबे हिट लगाना अब उन के बस की बात नहीं. लगातार प्रैक्टिस और उस से मिले आत्मविश्वास के बल पर मुकेश को यह सफलता मिली.

अक्षमता पर भारी दृढ़ इरादे

इरादा पक्का हो तो अक्षमता की हर खाई लांघी जा सकती है. यह कर दिखाया बहराइच की पुष्पा ने. दिव्यांग पुष्पा सिंह हाथों से अक्षम हैं लेकिन उन्होंने इसे कभी भी इस अक्षमता को अपने पैशन के आड़े नहीं आने दिया. वे अपने पैरों से लिखती हैं. जब वे पीसीएस लोअर की परीक्षा देने पहुंचीं तो उन की हिम्मत देख कर सभी हैरान रह गए. पुष्पा स्कूलटीचर हैं, लेकिन उन का सपना प्रशासनिक अधिकारी बनने का है. प्रशासनिक अधिकारी बन कर पुष्पा समाज में बदलाव लाना चाहती हैं.

अभिनेत्री सुधा चंद्रन ने भी तब हार नहीं मानी थी जब एक दुर्घटना में उन की एक टांग काटनी पड़ी थी. मशहूर नृत्यांगना के लिए पैरों की क्या अहमियत होती है, इसे सिर्फ एक डांसर ही समझ सकता है. सुधा की हिम्मत ही थी कि उन्होंने कृत्रिम पैर के साथ न सिर्फ अपने डांस और अभिनय के जनून को जिंदा रखा बल्कि फिल्म ‘नाचे मयूरी’ में नृत्य प्रतिभा से सब को सकते में डाल दिया.

पैरा ओलिंपिक प्रतियोगिताओं में देखिए, किस तरह से दिव्यांग खिलाड़ी अपनी लगन और प्रैक्टिस से दुनियाभर के खेलों में अपने देश का नाम रोशन कर रहे हैं.

शादी के बाद एक नई शुरुआत

कई बार महिलाओं के सपने इस बात पर दम तोड़ देते हैं कि अब वे मां बन गई हैं और शरीर में वह बात नहीं रही जो शादी से पहले होती है. जबकि यह तथ्य बिलकुल फुजूल है. हैल्थ एक्सपर्ट मानते हैं कि शादी के बाद या मां बनने के बाद एक औरत का शरीर कमजोर नहीं होता बल्कि और मजबूत हो जाता है.

उत्तर प्रदेश के मथुरा की ताइक्वांडो चैंपियन नेहा की कहानी उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा है जो शादी के बाद यह मान लेती हैं कि उन का कैरियर ही खत्म हो गया है. नेहा ने न सिर्फ शादी के बाद पढ़ाई की, बल्कि अपनी मेहनत के दम पर नैशनल ताइक्वांडो प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल भी हासिल किया. अगर नेहा शादी के बाद ताइक्वांडो चैंपियन हो सकती है तो कोई भी महिला शादी के बाद जो चाहे, वह कर सकती है.

दरअसल, शादी के बाद एक नई शुरुआत हो सकती है अपना हर वह हुनर आजमाने के लिए, जो शादी के पहले किन्हीं कारणों से अधूरा रह गया था. केरल की 70 वर्षीय दिलेर और जुझारू मीनाक्षी अम्मा को ही देख लीजिए. इस उम्र में औरतें अपने नातीपोतों के साथ घर पर अपना बुढ़ापा गुजारती हैं जबकि मीनाक्षी अम्मा मार्शल आर्ट कलारीपयटूट का निरंतर अभ्यास करती हैं.

कलारीपयटूट तलवारबाजी और लाठियों से खेला जाने वाला केरल का एक प्राचीन मार्शल आर्ट है. इस कला में वे इतनी पारंगत हैं कि अपने से आधी उम्र के मार्शल आर्ट योद्घाओं के छक्के छुड़ाने का दम रखती हैं.

वे कहती हैं, ‘‘आज जब लड़कियों के देररात घर से बाहर निकलने को सुरक्षित नहीं समझा जाता और इस पर सौ सवाल खड़े किए जाते हैं, कलारीपयटूट ने उन में इतना आत्मविश्वास पैदा कर दिया है कि उन्हें देररात भी घर से बाहर निकलने में किसी प्रकार की झिझक या डर महसूस नहीं होता.’’ उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है.

फैसला होने से पहले क्यों हार मानूं

उपरोक्त महिलाओं की उपलब्धिभरे आंकड़े और मिसालोंभरे प्रेरणादायक किस्से इस तथ्य को पुष्ट कर रहे हैं कि उत्साह, लगन, संकल्प बना रहे तो किसी भी उम्र या स्थिति में कोई भी हुनर सीखा और उस में निपुण हुआ जा सकता है. कुछ पाने की तमन्ना हो, सकारात्मक सोच हो तो हम अपने जीवन को सफल व सार्थक बना सकते हैं. फिर चाहे पति, पिता और बेटे सपोर्ट करें या उपहास करें, महिलाओं को जो करना है उन्हें करने से कोई नहीं रोक सकता.

उम्र को थामना किसी के भी वश में नहीं है, इसलिए बढ़ती उम्र का हवाला दे कर अपने सपनों को बीच राह में छोड़ना तार्किक नहीं है. इन तमाम महिलाओं की तरह अपनी हर अक्षमता, उम्रदराजी, हालात और मजबूरियों के पहाड़ों को पार कर के ही महिला सशक्तीकरण के नए आयाम रचे जा सकते हैं. और इस चुनौती में अगर घर, समाज, परिवार उपहास करता है, राह में कांटे बिछाता है तो बिना किसी के सहारे भी आप अकेली काफी हैं.

‘फैसला होने से पहले, मैं भला क्यों हार मानूं. जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूं…’ ये पंक्तियां इशारा करती हैं कि हमें लोग क्या कहेंगे और इस उम्र में हम क्या करेंगे, जैसे बहानों को पीछे छोड़ कर तब तक संघर्ष और मेहनत करो जब तक अपनी मंजिल न पा लो.                     

सफलता के उम्रदराज उदाहरण

– महात्मा गांधी 45 वर्ष की उम्र के बाद ही एक क्रांतिकारी नेता के रूप में उभर कर सामने आए थे.

– दादा भाई नौरोजी 61 वर्ष की उम्र में कांग्रेस के सभापति बने.

– यूनानी नाटककार साफाप्लाज ने 90 वर्ष की उम्र में अपना प्रसिद्घ नाटक औडीपस लिखा था.

– कवि मिल्टन 44 वर्ष की उम्र में अंधे हो गए थे. 50 वर्ष की उम्र में ‘पैराडाइज लास्ट’ लिखी.

– जरमन कवि गेटे ने अपनी प्रसिद्घ कृति ‘फास्ट’ 80 वर्ष की उम्र में लिखी थी.

– 92 वर्षीय अमेरिकी दार्शनिक जानडेवी ने 60 वर्ष की उम्र में दर्शन के क्षेत्र में प्रवेश किया.

– जौर्ज बर्नाड शा 93 वर्ष की अवस्था में भी खूब साहित्य लिखते थे.

– दार्शनिक वैनदित्तो क्रोचे 80 वर्ष की अवस्था में भी नियमित रूप से 10 घंटे काम करते थे.

– कांट को 74 वर्ष की अवस्था में उन की एक रचना के आधार पर दर्शन के क्षेत्र में प्रतिष्ठा मिली.

– विश्वविजय के अभियान पर निकलते समय सिकंदर की उम्र मात्र 20 वर्ष की थी

20 साल की हो गई हैं तो खरीदें ये बीमा पॉलिसी

क्‍या आपकी उम्र 20 साल है? सामान्‍य तौर पर इस उम्र में आप लाइफ इंश्‍योरेंस की अहमियत को नहीं समझती. जीवन बीमा उन आपात परिस्थितियों में काम आता है जब हमारे सामने बस एक प्रश्‍न रह जाता है कि अब क्‍या करें? लेकिन कुछ लोग सोचते हैं कि बीमा सिर्फ घर और वाहन की बीमा आवश्‍यकता होती है. जब आप छोटी उम्र में होती हैं तो बीमा का संभावित लाभ उतना बड़ा हो सकता है कि जितना आप सोच भी नहीं सकती हैं.

जब आप युवा अवस्‍था यानि कि 20 से 22 की उम्र में ही एलआईसी लेती हैं, तो आपको कई फायदे मिलते हैं यहां पर आपको हम उन फायदों के बारे में बताएंगे :

लोन पॉलिसी

यंग ऐज में लाइफ इंश्‍योरेंस की पॉलिसी लेने पर आपको पढ़ाई, निजी जीवन और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को कई रुप से सहायता प्रदान होती है. पॉलिसी ऋण के रूप में, आप अपने बीमा खाते से नकदी मूल्य के एक निश्चित राशि का एक हिस्सा प्राप्त कर सकती हैं. यह आपकी शादी, अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा या अपने स्वयं के छात्र ऋण का भुगतान करने के लिए उपयोगी हो सकता है. इसका लाभ उठाने से पहले विशेषज्ञ की राय अवश्‍य लें.

मिलती है सस्‍ती पॉलिसी

जब आप युवा अवस्‍था में लाइफ इंश्‍योरेंस पॉलिसी लेती हैं, तो इन पॉलसियों को खरीदना थोड़ा सस्‍ता पड़ जाता है. अगर आप किसी पर अपने खर्च के लिए निर्भर हैं तब तो यह पॉलिसी आपके लिए और भी ज्‍यादा जरुरी हैं. जब आप अकेले होती हैं, तो कवरेज की लागत बहुत कम होती है यहां तक ​​कि अगर आप अकेली हैं, तो भी घर में ऐसे कई लोग हैं जो कि आप पर आश्रित हैं. इसलिए यह सुनिश्चित करें कि आप उनका सही से ध्‍यान रख रही हैं या नहीं.

दीर्घकालिक लक्ष्य

ये हो सकता है कि आपने घर खरीदने, सेवानिवृत्ति की योजना या विश्व दौरे आदि जैसे सपना देखें हो. जीवन बीमा पॉलिसी आपको दीर्घकालिक के लिए निवेश करती है, इससे आपको अपने दीर्घकालिक लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

दूसरों की सहायता करना

इस उम्र में हो सकता है कि आपने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली हो और अब आप अपने माता-पिता और भाई-बहन की सहायता करना शुरू कर दिया हो. हो सकता है कि ऐसा कोई हो जिसे आप बहुत प्‍यार करती हैं और उसे आपकी जरुरत हो. तो आप आर्थिक रुप से उनकी मदद कर सकती हैं.

आप कम प्रीमियम के साथ जीवन बीमा पॉलिसी शुरू कर सकती हैं और साल दर साल नवीनीकृत कर सकती हैं. प्रीमियम हर साल बढ़ता जाता है.

टैक्‍स

टैक्स आप बीमा पॉलिसियों के साथ कर बचा सकती हैं. बीमा पॉलिसी पर आप जो प्रीमियम भुगतान करती हैं, वो धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये के अधिकतम कर लाभ के लिए पात्र है.

बालों को दुरुस्त बनाता है कंडीशनर

आज की जीवनशैली में आपके बालों को कई प्रकार की विपरीत स्थितियों से गुजरना पड़ता है. केमिकलयुक्त ब्यूटी प्रोडक्ट, तेज शैंपू, प्रदूषण, इमोशनल उतार-चढ़ाव, हारमोनल समस्याएं और मौसम की मार भी झेलनी पड़ती है . इसलिए ऐसे में आपको चाहिए एक भरोसेमंद कंडीशनर.

वास्तव में कंडीशनर का काम हमारे बालों को दुरुस्त करना और ऐसा बनाना है जिससे बाल आसानी से मैनेज किए जा सकें. कंडीशनर भिन्न प्रकार के आते हैं और इन्हें शैंपू करने के बाद आने वाली समस्याओं से बचाने के लिए लगाया जाता है .

बालों की नियमित देखभाल में कंडीशनर एक आवश्यक हिस्सा है . हर प्रकार के बालों के लिए कंडीशनिंग जरूरी है. बालों की कुदरती चमक, समय व स्थिति के साथ निस्तेज होती चली जाती है . यदि सही ढंग से बालों की कंडीशनिंग की जाए तो इनकी चमक वापस आ जाएगी. सही कंडीशनर से फाइबर्स, पोलिमर और प्रोटीन बालों को मिलता है.

अच्छा कंडीशनर बालों का सुरक्षा कवच होता है और इससे बाल रेशम से मुलायम हो जाते हैं और बालों की उलझनें आसानी से निकल जाती हैं. बहुत सी कंडीशनर क्रीम इसी प्रकार डिजाइन की जाती हैं, जिससे बालों में चमक आए और निखार भी. इसे लगाने से बालों में कंघी करने से पड़ने वाला जोर कम होता है, बालों का टूटना रुकता है, दोमुंहे बालों पर नियंत्रण रहता है.

बालों की कुदरती नमी को भी कंडीशनर बरकरार रखता है. इससे बालों का रूखापन भी दूर होता है.

कंडीशनर बालों में कैसे काम करता है

1. कोकोनट मिल्क और आलमंड आयल से बना कंडीशनर बालों के लिए सबसे अच्छा कंडीशनर होता है. अनेक प्रकार के विटामिन व पोषक तत्वों से भरपूर है. इनके अलावा इसमें हिना और आंवला के भी गुण मौजूद हैं. यह बाल के रेशे-रेशे पर अपनी सुरक्षा परत बना देता है, इससे आपके बालों को स्वाभाविक चमक तो मिलती ही है साथ ही बाल मुलायम, रेशमी और उलझनरहित बनते हैं. अब आप स्वतंत्र हैं अपने बालों को मनचाहा आकार देने के लिए.

2. यहां चिंता की कोई बात नहीं आपके बालों की अधिकांश समस्याएं प्राकृतिक गुणों से बने कंडीशनर से स्वतः दूर हो जाएंगी. साथ ही आपके बालों को मिलेगा सही पोषण भी . इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह इस्तेमाल में बेहद आसान है. बालों को किसी भी अच्छे शैंपू से धोएं फिर बालों को कंडीशनर करें.

3. बालों की नियमित सफाई का पूरा ध्यान रखें सप्ताह में दो बार अपने बालों को शैंपू करें. बालों की प्रकृति के अनुसार शैंपू तथा कंडीशनर का चुनाव करें. यह जरुरी नहीं कि जो कंडीशनर व शैंपू दूसरे को माफिक आ रहा है वह आपको भी सूट करे. क्वालिटी के मामले में समझौता कभी न करें.

इस वीकेंड करें सकलेशपुर की सैर

रोज-रोज ऑफिस की भागदौड़ और आये दिन टारगेट को पूरा करते हुए जिन्दगी एकदम से उलझ सी जाती है. ऐसा लगता है जैसे जिन्दगी घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के बीच में ही होकर रह गयी है. अगर आप के साथ भी ऐसा ही है तो आपको जरूरत है एक शांति सी जगह में वीकेंड बिताने की.

अगर आप इस बार अपनी छुट्टियों को थोड़ा रोमांचक बनाना चाहती हैं तो आपके लिए सकलेशपुर एक परफेक्ट हॉलिडे डेस्टिनेशन है.

सकलेशपुर, भारत में कॉफी और इलायची का एक बड़ा उत्पादक है. तो अब देर किस बात की आज ही टिकट बुक कराइए और निकल जाइए सकलेशपुर की यात्रा पर.

सकलेशपुर, पश्चिमी घाटों में बसा एक छोटा सा सुंदर हिल स्टेशन है जो ताजगी प्रदान करता है. यह शहर 949 मीटर की ऊंचाई पर है और बंगलुरु-मैसूर राजमार्ग के पास होने के कारण यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. हसन जि़ले का भाग, सकलेशपुर, भारत में काफी और इलायची का एक बड़ा उत्पादक है.

मंजराबाद का किला

सकलेशपुर आने पर राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर स्थित मंजराबाद का किला अवष्य देखना चाहिए. इस्लामिक वास्तुकला शैली और धनुषाकार प्रवेश द्वार को दर्शाता यह किला समुद्रतल से 3240 फीट ऊपर है. एक सुरक्षित स्थान बनाने के नजरिए से मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने इस किले को बनवाया था.

यह किला इसलिए उचित था क्योंकि यह उन सभी रास्तों को रोकता था जो पास के तटीय क्षेत्रों से सकलेशपुर के पीछे बने पठार तक पहुंचने के लिए प्रयोग किया जा सकता था.

टीपू सुल्तान के शासनकाल में यह किला गोला बारूद रखने और मंगलोर से उनकी ओर आने वाले अंग्रेजों पर नजर रखने के लिए उपयोग किया जाता था. मंजराबाद का किला एक छोटी पहाड़ी पर बना है और अन्य किलों के विपरीत केवल एक ही निर्माण स्तर पर आधारित है.

बिस्ले व्यू पॉइंट

बिस्ले व्यू पॉइंट या बिसल घाट बिस्ले गांव में एक दृश्य बिंदु है. इस बिंदु से आप तीन पर्वत श्रृंखलाओं का एक शानदार दृश्य देख सकते हैं- कुमारा पर्वता, पुष्पागिरि और डोडा बेटा. सकलेशपुर आने वाले पर्यटकों के लिए बिस्ले व्यू पॉइंट सबसे ज्यादा खास आकर्षणों में से है.

ग्रीन रूट ट्रैक

ग्रीन रूट ट्रैक एक रेलवे ट्रैक है जो कि सक्लेशपुर से कुके सुब्रमण्य मंदिर के बीच स्थापित है. यह ट्रैक सुंदर जंगलों, सुरंगों और झरनों से गुजरता है.

जेनुकल गुड्डा

जेनुकल गुड्डा या जेनुकलु गुड्डा सक्लेशपुर में छोटी पहाड़ियों में से एक है. यह पहाड़ी पर्यटकों के बीच ट्रैकिंग के लिए खासा लोकप्रिय है. इसकी चोटी से आप आसपास के खूबसूरत नजारों का आनन्द ले सकते हैं.

मंजेहल्ली

मंजेहल्ली एक मॉनसूनी झरना है. बारिश के मौसम में इस झरने के आसपास पर्यटकों का जमावड़ा देखा जा सकता है.

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