महिलाएं भी लें वित्तीय फैसलों में भाग

आज के समय पर ये बात कहना गलत नहीं होगा कि महिलाएं पुरूषों से ज्यादा मल्टी टास्किंग हैं और कामकाजी महिलाएं इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. अगर आप भी कामकाजी हैं तो ये बात तो आप बहुत अच्छी तरह समझती होंगी कि, महिलाएं घर और ऑफिस, कितनी अच्छी तरह से संभालती हैं. पर आज भी महिलाओं का सशक्तिकरण को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जिनमें लड़कियों को शिक्षित करना और महिलाओं का वित्तीय रूप से सशक्त होना.

ये बात तो सभी मानते हैं कि महिलाओं को वित्तीय रूप से मजबूत करने से समाज को बहुत फायदा होगा. अधिकतर देखा गया है कि ज्यादातर परिवारों के वित्तीय फैसले पुरूष ही करते हैं और जहां आवश्यक होता है वहां महिलाएं केवल दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करती हैं. कार खरीदने या घर खरीदने जैसे फायनेन्शियल फैसलों में महिलाएं पीछे क्यों रहती हैं. इसके लिए आपको थोड़ा सा प्रयास करना होगा..

धीरे-धीरे शुरूआत करें : क्या इसमें बदलाव लाया जा सकता है? क्यों नहीं. बिल्कुल बदलाव लाया जा सकता है. इसके लिए हमें निवेश और फाइनेंशियल प्लानिंग के कुछ बेसिक समझने होंगे.

छोटी-छोटी चीजों पर दें ध्यान : आप अपनी बैंक ब्रांच जाकर चेक, कैश डिपॉजिट करवा सकती हैं. अपनी पासबुक अपडेट करवा सकती हैं. आप घर के बिल ऑनलाइन पे कर सकती हैं. इसके अलावा आप ट्रेन, बस के टिकट बुक करवा सकती हैं. बेहतर होगा अगर आप अपने खर्च का पूरा हिसाब खुद रखेंगी.

इंश्योरेंस के बारे में जाने : जैसे-जैसे आप आगे बढ़ें, आपको इंश्योरेंस के बारे में जानना चाहिए. आप अपने परिवार के लिए लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस करवाएं. इसके अलावा आपका मकान, दुकान भी दूसरे खतरों से सुरक्षित रहें इसके लिए इंश्योरेंस करवाएं.

वित्तीय सलाहकार की सहायता लें : इसके लिए अगला कदम हैं वित्तीय सलाहकार की सहायता लें. अपने निवेश से संबंधित सवाल पूछें. वित्तीय सलाहकार से समझें कि महंगाई कैसे आपके निवेश पर असर डालती है. म्युचुअल फंड के रिटर्न कैसे महंगाई के मुकाबले ज्यादा होते हैं. अपने पोर्टफोलियो और लक्ष्य को समय-समय पर ट्रैक करना सीखें.

निवेश की शुरूआत जल्दी करें : याद रखें आप जितना जल्दी निवेश की शुरूआत करेंगे उतनी ही जल्दी अपने जीवन के विभिन्न लक्ष्यों को पा सकेंगी. अपनी रिटायरमेंट की रकम का भी इंतजाम कर सकेंगे.

नियमों की जानकारी रखने की कोशिश करें : आप इनकम टैक्स रिटर्न भरने में भी सहयोग कर सकती हैं. रिटर्न की प्रक्रिया समझने में कोई बुराई नहीं है. समय-समय पर ऐसे प्रोडक्ट्स और नियमों की जानकारी रखें जो आपके निवेश को प्रभावित करते हैं. जैसे कि रिजर्व बैंक का दरें बढ़ाना या घटाना.

ऐसा सब करने के लिए आपको शुरूआत में कुछ कठिनाई होगी. लेकिन आप जैसे-जैसे इसमें शामिल होने लगेंगी, आपको अच्छा लगने लगेगा और ये आपके लिए जरुरी भी है.

हिन्दी सिनेमा में यादगार नाम है ‘किदर शर्मा’

बॉलीवुड फिल्म निर्माता किदर शर्मा, का जन्म 12 अप्रैल को हुआ था. फिल्म निर्माता होने के साथ-साथ किदर एक स्क्रिप्ट राइटर, लीरिसिस्ट भी थे. 50 से ज्यादा हिन्दी फिल्में बनाने के साथ उन्होंने साल 1949 में आई फिल्म ‘नेकी और बदी’ में मुख्य किरदार निभाया था. किदर शर्मा का जन्म नरोवल, जो कि अब पाकिस्तान में हैं, के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था.

उस समय किदर, देवकी बोस की फिल्मों से काफी प्रेरित थे और उनकी ही फिल्मों से प्रेरित होकर उन्होंने बतौर पेंटर कलकत्ता की एक थियेटर कंपनी में काम करना शुरु कर दिया था. किदर के हुनर को देखते हुए देवकी बोस ने उन्हें लिरिक्स और कुछ डायलॉग्स लिखने की सलाह दी.

एक बीमारी के बाद 29 अप्रैल साल 1999 में, हिंदी के बड़े फिल्म निर्माता किदर शर्मा की मौत हो गई थी. विडंबना से, किदर को उनकी मौत के एक दिन बाद ही महाराष्ट्र सरकार द्वारा मुंबई के शाममखानंद हॉल में ‘राज कपूर पुरस्कार’ दिया जाना था. इसमें विडंबना ये थी कि, किदर शर्मा ही वे निर्माता थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए राज कपूर जैसे अभिनेता की खोज की थी. राज कपूर के अलावा उन्होंने मधुबाला, गीता बाली, भरत भूषण, मेहताब और माला सिन्हा जैसी अन्य सितारे भी हिन्दी सिनेमा को दिये थे.

किदर शर्मा ने नील कमल जैसी सुपर हिट फिल्म के अलावा देवदास, विद्यापति, चित्रलेखा, , सुहाग रात, जोगन, बावर नैन, पयाज नैन, जिंदगी, करोड़पति, अनाथा आश्रम, विशाखकन्या, मुमताज महल, भंवारा और भेगी पोल्केन जैसी कई हिट फिल्मों का निर्माण किया.

किदर शर्मा ने ‘पंछी’ नाम से कविताओं की एक पुस्तक भी प्रकाशित की थी, जिसकी एक प्रति गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ऑटोग्राफ्ड है. किदर की फिल्म ‘चित्रलेखा’ की सफलता के बाद, उस समय के काफी बड़े फिल्म निर्माता और साल 1927 की काफी चर्चित फिल्म ‘गनसुंदरी’ के डायरेक्टर चंदुलाल शाह ने साल 1941 में अपने लिए फिल्म बनाने के लिए किदर को बॉम्बे आमंत्रित किया.

किदर शर्मा ने चंदुलाल शाह के साथ, उस समय के कुछ सबसे बड़े सितारों के साथ फिल्मों का निर्देशन किया, जैसे फिल्म ‘अरमान’ में मोतीलाल और शमीम और विशाख्य और ‘गौरी’ में अभिनेता पृथ्वीराज कपूर. फिल्म ‘गौरी’ वही फिल्म है जिसमें किदर ने एक नये चेहरे मोनिका देसाई को मुख्य भूमिका में रखा था. इसी फिल्म में राज कपूर को सहायक निर्देशक के रूप में पहला ब्रेक मिला था.

ये कहना गलत नहीं होगा कि किदर द्वारा बनाई गई अधिकतर फिल्मों ने किसी न किसी बॉलीवुड हस्ती को ब्रेक दिया है. अगर इस बारे में और बात की जाए तो किदर की फिल्म ‘दुनिया एक सराय’ में मीना कुमारी को बाल कलाकार के रूप में अपना पहला ब्रेक मिला था.

यहीं बात खत्म नहीं होती, किदर ने रंजीत स्टूडियोज के लिए, दिलीप कुमार की भूमिका वाली और नर्गिस अभिनीत फिल्म ‘जोगन’ बनाई, जो एक सर्वकालिक क्लासिक फिल्म मानी जाती है और इसे आज भी याद किया जाता है. ये बात जानकर आपको हैरानी होगी कि किदर शर्मा ऐसे भारतीय फिल्म निर्देशक हैं जिन्हें साल 1945 में पहली मरतबा हॉलीवुड और यूनाइटेड किंगडम के लिए फिल्म प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना गया था.

50 के दशक में, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने शर्मा के गीतों को सुना, जिनसे प्रभावित होकर नेहरू ने, उन्हें बुलाया और ‘चिल्ड्रन्स फिल्म सोसायटी’ का निर्देशक बनने के लिए कहा. इस सोसायटी के लिए बनाई गई उनकी पहली फिल्म थी, ‘जलदीप’ जिसने वेनिस फिल्म फेस्टिवल पुरस्कार भी हासिल किया था.

एक उत्कृष्ट कवि के रूप में शर्मा ने कई शानदार गीतों को लिखा, जिन्हें उस वक्त के महान गायक के एल सैगल द्वारा गाया गया, इनमें ‘बालम आयो बसो मोरे मन में’, ‘मैं क्या जानू क्या जादू है’, ‘सो जा राजकुमारी’, ‘दुख के अब दिन बीते नहीं’ और ‘पंछी काहे होत उदास’ जैसे, यादगार गीत शामिल हैं.

एक गीत है जिसे मधुबाला ने एक बार अपने मरने से पहले उन्हें समर्पित करने के लिए किदर से कहा था, ‘राधा को न तरसा, श्याम पछताएगा’. हिन्दी सिनेमा में पटकथा लेखन और संवाद में किदर शर्मा की प्रतिभा सचमुच गहन सराहनीय है.

जब एक डायरेक्टर ने एक्ट्रेस को जड़ दिया थप्पड़

एक्ट्रेस तनुजा कौन नहीं जानता होगा. वह अपने जमाने की दिलकश अदाकाराओं में से एक थीं. तनुजा की मां शोभना समर्थ और बड़ी बहन नूतन हिंदी फिल्मों की बड़ी स्टार थीं. इसलिए तनुजा का भी हीरोइन बनना लाजमी था.

तनुजा ने अपने करियर की शुरुआत निर्देशक केदार शर्मा की फिल्म ‘हमारी याद आएगी’ से की थी. तनुजा को लगता था कि उनकी मां और बहन तो बड़ी स्टार हैं ही, इसलिए वो भी सुपरहिट हीरोइन बनेंगी. लेकिन तनुजा गलत निकलीं. पहली फिल्म में ही उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जो उन्होंने सोचा तक नहीं था.

बता दें कि तनुजा को 1960 में उनकी मां शोभना समर्थ ने फिल्म ‘छबीली’ में लॉन्च किया था. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान तनुजा इतने नखरे दिखाती थीं कि पूरी यूनिट उनसे परेशान रहती थी. यही काम उन्होंने केदार शर्मा की फिल्म में भी किया. तनुजा सेट पर हर समय हंसी-मजाक में व्यस्त रहती थीं. लेकिन केदार शर्मा को ये सब बिलकुल पसंद नहीं था.

सूत्रों की मानें तो फिल्म के एक सीन में तनुजा को रोना था लेकिन वो बार-बार हंस रही थीं. ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई बार हुआ. तनुजा अपने काम को बिलकुल भी संजीदगी से नहीं लेती थीं. तनुजा ने केदार शर्मा से कहा कि आज मेरा रोने का मूड नहीं है. इसी बात से नाराज होकर केदार शर्मा ने तनुजा को जोरदार तमाचा जड़ दिया.

ये देखकर पूरी टीम सन्न रह गई. तनुजा रोते हुए केदार शर्मा की शिकायत करने मां शोभना के पास पहुंची. जब तनुजा ने पूरी बात बताई तो मां ने उल्टा तनुजा को एक और थप्पड़ जड़ दिया. क्योंकि वो तनुजा के व्यवहार से अच्छी तरह वाकिफ थीं. अब तनुजा का रो-रोकर बुरा हाल था.

शोभना तनुजा को वापस सेट पर लेकर गईं और केदार शर्मा से कहा कि अब ये रो रही है. शूटिंग शुरू कर दीजिए. इसके बाद तनुजा ने पर्फेक्ट शॉट दिया.

बता दें कि केदार शर्मा उस समय के गुस्सैल निर्देशकों में से एक माने जाते थे. वो तनुजा से पहले कई सुपरस्टार को तमाचा जड़ चुके थे. खैर तनुजा को इस थप्पड़ ने ही बुलंदियों पर पहुंचाया.

नहीं चला इन सुपरहिट फिल्मों के सीक्वल का जादू

साल 2015 में आई बाहुबली फिल्म ने बहुत सी बड़ी बजट की फिल्मों को पीछे छोड़ दिया था. फिल्म की कामयाबी को देखते हुए फिल्म के निर्देशक और निर्माताओं ने बाहुबली-2 बनाने का भी फैसला किया था. अब कुछ कम दिन ही बचे हैं बाहुबली-2 पर्दे पर आने ही वाली है. इस फिल्म को लेकर दर्शकों में कुछ ज्यादा ही उत्साह है और ये उत्साह फिल्म के ट्रेलर रिलीज के समय ही देखने को मिल गया था.

लेकिन बॉलीवुड की सभी फिल्मों के सीक्वल से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है. लेकिन फिर भी निर्देशक फिल्मों पर दाव खेल ही लेते हैं. बॉलीवुड में ऐसी बहुत सी फिल्में हैं जिनके सीक्वल बुरी तरह फ्लॉप रहे हैं.

तुम बिन

2001 में बनी फिल्म तुम बिन को बहुत पसंद किया गया था इसका म्यूजिक और गाने भी बहुत हिट हुए थे लेकिन फिल्म का दूसरा भाग तुम बिन-2 को जब पर्दे पर लाया गया तो फिल्म 2001 जैसा जादू नहीं कर पाई.

आशिकी-2

राहुल रॉय और अनु अग्रवाल की फिल्म आशिकी ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. लेकिन फिल्म का दूसरा भाग वैसा जलवा नहीं चला पाया था. हालांकी फिल्म का म्यूजिक बहुत हिट हुआ था.

कृष 2 और 3

कोई मिल गया फिल्म को सभी ने खूब सराहा था लेकिन फिल्म के दोनों हा भाग फ्लॉप रहे. कृष फिल्म का म्यूजिक भी लोगों को कुछ खास पसंद नहीं आया था.

राज-2

राज फिल्म का अंदाजा बिपाशा बसु की कामयाबी से लगाया जा सकता है. बिपाशा रातों रात स्टार बन गई थी. लेकिन फिल्म का सीक्वल दर्शकों के सिर के ऊपर से निकल गया था.

डॉन-2

अमिताभ बच्चन की फिल्म डॉन में जो बात थी वो शाहरुख की डॉन में दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आयी. फिल्म हर तरह से बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही थी. फिल्म के गाने भी हिट नहीं हुए थे.

डेढ़ इश्किया

फिल्म इश्किया का सीक्वल दर्शकों पर फिल्म के पहले भाग जैसा जादू नहीं चला पाई. फिल्म में माधुरी और हुमा कुरैशी मिलकर भी विद्या बालन की कमी पूरी नहीं कर पाई.

ग्रेट ग्रैंड मस्ती

अडल्ट कॉमेडी साबित हुई फिल्म मस्ती का पार्ट-2 भी नहीं चल पाया. फिल्म की अडल्ट कॉमेडी ने फिल्म को बोझिल बना दिया. फिल्म अपने पहले पार्ट जैसा दर्शकों को मजा नहीं दे सकीं.

आखिर आज तक क्यूं कुंवारी हैं तब्बू!

तब्बू का नाम उन अभिनेत्रियों में शुमार है जो अपनी दमदार ऐक्टिंग के लिए जानी जाती हैं. वह उन अभिनेत्रियों में से हैं जिन्होंने शादी नहीं की. वो 45 साल की हो गई हैं लेकिन अब तक सिंगल हैं. आप जानती हैं इसकी वजह क्या है?

तब्बू बॉ़लीवुड का जाना पहचाना नाम तो हैं ही साथ ही उन्होंने अंग्रेजी, तेलेगु, तमिल, मलयालम, मराठी और बंगाली फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने अपने फिल्मी करियर में कई अवॉर्ड भी जीते. साल 2011 में उन्हें पद्म श्री अवॉर्ड से भी नवाजा गया. अपनी जिंदगी में उन्होंने लगभग सब कुछ हासिल किया लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की.

लोगों का मानना है कि तब्बू के शादी ना करने की वजह साउथ का सुपरस्टार है जिससे तब्बू बेपनाह प्यार करती थीं. जानें कौन है वो स्टार जिसकी वजह से तब्बू ने नहीं की शादी.

साउथ के सुपरस्टार नागार्जुन से तब्बू बहुत प्यार करती थीं. दोनों की मुलाकात उस समय हुई थी जब उन्होंने फिल्म में साथ काम किया था. इतना ही नहीं नागार्जुन भी तब्बू से प्यार करते थें. लगभग 15 साल तक दोनों का रिश्ता चला. दोनों की शादी नहीं हो सकी क्योंकि नागार्जुन पहले से शादीशुदा थे.

अमला अक्किनेनी नागार्जुन की दूसरी पत्नी थीं और वो तब्बू से तीसरी शादी नहीं कर सकते थे. लेकिन वो तब्बू को अपनी पत्नी की तरह ही मानते थें. कहा जाता है कि अपने घर के पास ही उन्होंने तब्बू को एक महंगा घर भी दिलवाया था.

नागार्जुन तब्बू से प्यार तो करते थे, लेकिन अपनी शादी भी नहीं तोड़ना चाहते थे, इसलिए वह तब्बू से शादी नहीं कर पाए और दोनों एक दूसरे से अलग हो गए.

तब्बू नागार्जुन से इतना प्यार करती थीं कि वह उनके प्यार में मुंबई छोड़कर हैदराबाद में ही बस गईं. सिर्फ इतना ही नहीं तब्बू का प्यार इतना गहरा और सच्चा था की नागार्जुन की याद में उनहोंने आज तक शादी नहीं की.

आपको बता दें कि नागार्जुन दो बार शादी कर चुके हैं. पहले उन्होंने लक्ष्मी रामानायणू से साल 1984 में शादी की थी लेकिन 1990 में उनका तलाक हो गया. इसके बाद उन्होंने अमला से 1992 में शादी की.

अपनी डायटिंग को भी बनाएं स्वादिष्ट

अमूमन ऐसा देखा जाता है कि डाइट पर रहने वाले लोग घी, तेल से तो दूरी बना ही लेते हैं, अपनी थाली को भी बड़ा बोरिंग बना देते हैं. न ज्यादा नमक, न चीनी. केवल सैलड और जूस. इस चक्कर में वो अपना फिटनेस प्लान ज्यादा दिनों तक फॉलो नहीं कर पाते, लेकिन हमारा मानना है कि एक हेल्दी डाइट स्वादिष्ट भी हो सकता है.

इन इंडीग्रेडिएंट्स की मदद से स्वादिष्ट भोजन तैयार किया किया जा सकता है :

1. पालक, मेथी और अन्य हरी पत्तेदार सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में आयरन पाया जाता है, आपका शरीर इन्हें अच्छे से पचा सकें इसलिए इन सब्जियों में आलू और टमाटर भी डाल दें, इससे सब्जियां स्वादिष्ट बनेंगी.

2. तिल स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होते हैं, सलाद या रोटी में मिलाकर या भोजन पर एक मुट्ठी तिल छिड़क लें, इससे भोजन का स्वाद बढ़ जाएगा. इससे आपका डाइटिंग प्लान भी बिगड़ेगा नहीं.

3. पत्ता गोभी एंटीऑक्सीडेंट, विटामिंस, फोलेट और फाइबर से भरपूर होने के साथ आयरन का भी प्रमुख स्रोत होता है, इसका सेवन सब्जी या सलाद के रूप में किया जा सकता है. यह आयरन की कमी को दूर करता है.

4. सूखे आडू या पीचेज रोजाना आपके शरीर के लिए आवश्यक नौ प्रतिशत आयरन की जरूरत को पूरा करते हैं, इसलिए इसका सेवन जरूर करें.

5. अन्य मेवों की तरह किशमिश भी आयरन से भरपूर होता है, इसे दही, सलाद, दलिया में मुट्ठी भर डालकर खाया जा सकता है.

6. क्या आप जानते हैं कि आलूबुखारा का जूस आयरन का महत्वपूर्ण स्रोत है. इसमें मौजूद विटामिन सी आपके शरीर को आसानी से आयरन अवशोषित करने में मदद करता है, इसलिए खाने के साथ एक गिलास आलूबुखारा जूस का सेवन करें.

7. सूखे एप्रीकोट या खुबानी, आयरन और अन्य पोषक तत्वों के बढ़िया स्रोत होते हैं, इन्हें कच्चा या पकाकर, डिब्बाबंद या सूखे के रूप में उपलब्ध होने पर भी खाया जा सकता है, इसका सेवन आपके शरीर के लिए बेहद लाभदायक होता है.

8. धूप में सुखाए गए टमाटर भी आयरन से भरपूर होते हैं, आप इसे आमलेट, पास्ता, सैंडविच या सलाद में डालकर खा सकते हैं.

9. कैल्शियम और आयरन हमारे शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने और शरीर में खून की कमी को रोकने में मददगार होते हैं.

घाटों और साड़ियों का शहर वाराणसी

देश में बहुत ऐसे शहर हैं जिन के नाम से साड़ियां मशहूर हैं. वाराणसी ऐसा ही शहर है. यहां की बनारसी साड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर हैं. हर तरह के बजट में ये साड़ियां मिलती हैं. साड़ियों के साथ ही साथ वाराणसी की पहचान गंगा के किनारे बने बहुत सारे घाट भी हैं.

सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं तो घाटों की शोभा देखते ही बनती है. वाराणसी की सुबह मशहूर है, इसलिए उत्तर प्रदेश में शामेअवध यानी लखनऊ के साथ साथ सुबहे बनारस भी मशहूर है.

अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं. यह शहर वरुणा और अस्सी नदियों के बीच बसा हुआ है, इसलिए इस को वाराणसेय कहा जाता था. जो बाद में वाराणसी हो गया. अस्सी और वरुणा नदियां तो अब यहां नहीं दिखतीं लेकिन इन की यादें यहां रहने वालों के दिलों में बसी हुई हैं.

वाराणसी भी कला, संस्कृति और शिक्षा का केंद्र है. संगीत इस शहर को विरासत में मिला हुआ है. शास्त्रीय संगीत के बड़े कलाकार यहीं के रहने वाले हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए विदेशों से भी छात्र आते हैं. पंडों पुजारियों का आतंक यहां भी कायम है. पर्यटकों को इन से बचने की जरूरत है.

बनारस की कचौड़ी गली

बनारस आएं और यहां की कचौड़ी गली न जाएं, यह हो नहीं सकता. कचौड़ी गली विश्वनाथ मंदिर और मणिकर्णिका घाट के बीच पड़ती है. काफी समय पहले यह वैसी ही थी जैसे दिल्ली में परांठे वाली गली है.

पहले यहां पर 40 से 50 कचौड़ी की दुकानें होती थीं. अब कचौड़ी गली में केवल 4 से 5 दुकानें ही बची हैं. यहां कचौड़ी के साथ साथ क्राफ्ट और बनारसी साड़ियों की दुकानें खुल गई हैं. इस के बाद भी कचौड़ी गली बहुत मशहूर है.

यहीं पास के गणपति गैस्ट हाउस के शंभूनाथ त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘देशी पर्यटक ही नहीं, विदेशी पर्यटक भी कचौड़ी गली के प्रशंसक हैं.’’ कत्थक आर्टिस्ट गुजंन शुक्ला कहते हैं, ‘‘कचौड़ी गली से जुड़ी कई और गलियां हैं. कुंज गली में बनारसी साड़ी के साथ कचौड़ी भी बिकती है. इस में राम भंडार, बाबूलाल और भरतशाह की कचौड़ी की दुकानें हैं.’’

अब कचौड़ी के साथ ही साथ यहां की आलू की टिक्की, पानी के बताशे और टमाटर चाट मशहूर हैं. कचौड़ी बनारस का सब से पंसद किया जाने वाला नाश्ता है. ऐसे में हर पर्यटक को यहां की कचौड़ी गली पसंद आती है.

 

खुदाई जारी है

प्रदेश ही नहीं, देशभर में इस समय खुदाई का कार्यक्रम तीव्रता से चल रहा है. उत्तर (उत्तराखंड), दक्षिण (गोआ, कर्नाटक), पश्चिम (गुजरात), मध्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश) से ले कर पूर्व (ओडिशा) तक देश का कोई कोना ऐसा नहीं होगा जहां खनन का यह महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम न चल रहा हो. कोई दल, कोई नेता इस विकासवादी कार्य में पीछे नहीं रहना चाहता.

सत्तापक्ष हो या विपक्ष, जिसे जहां मौका मिल रहा है, छैनीहथौड़ा ले कर इस पुण्य कार्य को कर रहा है. लगता है, सब ने देश की इंचइंच भूमि को खोदने का दृढ़ निश्चय कर लिया है. शायद सभी पार्टियों के नेता यह दर्शाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं कि भारत एक गरीब देश नहीं है, यहां की जमीन बहुमूल्य खनिज पदार्थों से भरी पड़ी है. खनन कार्य द्वारा हमारे नेता राष्ट्र को एक समृद्ध तथा धनी देश के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, स्थापित करना चाहते हैं. वे उस के माथे से गरीब (अविकसित) देश का ठप्पा हटाना चाहते हैं, उस की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहते हैं. राष्ट्र विकास के इस बड़े कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर अपनी सहभागिता निभाना चाहते हैं. इस कार्य के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं, किसी भी सीमा तक जा सकते हैं.

राष्ट्र की खुदाई के उन के इस कार्य में जो भी बाधक बने, वे उस का उचित इंतजाम कर देते हैं, सबक सिखा देते हैं. राष्ट्र की खुदाई के लिए वे कानूनों को धता बता सकते हैं, कानूनों को तोड़ सकते हैं कानून के रखवालों की हत्या तक करवा सकते हैं.

सभी ओर सभी स्तरों पर खुदाई का कार्य जारी है. सभी जोरशोर से इस कार्य में लगे हुए हैं. यदि कोई स्वयं खनन का कार्य नहीं कर रहा है तो वह दूसरों के खनन की, उन के कारनामों की खुदाई कर रहा है, गड़े मुरदे उखाड़ रहा है. विपक्ष, सत्तापक्ष के कारनामों को खोद निकालने और फिर उसे जनता को बताने की कोशिश कर रहा है. इन कारनामों के बहाने, वह सत्तापक्ष की जड़ें खोदना चाहता है, जिस से आने वाले चुनावों में उसे उखाड़ फेंका जा सके. सत्तापक्ष अपने कारनामों से देश की जड़ें खोद रहा है. अपनी जनकल्याणकारी (?) नीतियों से भ्रष्टाचार व महंगाई को बढ़ा रहा है.

वैसे ऐसा नहीं है कि सिर्फ सत्तापक्ष या उस से जुड़े हुए लोग ही खुदाई के इस पुनीत कार्य में लगे हुए हैं, कई विपक्षी विधायक भी खनन के माध्यम से विकास (स्वयं का) कार्य कर रहे हैं. यहां यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि बातबात में एकदूसरे की टांग खींचने वाले, एकदूसरे को निर्वस्त्र करने का कोई मौका न छोड़ने वाले इन दलों में खनन के मामले में गजब का एका है, एकजैसी सोच है. थोड़ाबहुत हल्ला मचाने के बाद भी कोई किसी के मामले में टांग नहीं फंसाना चाहता, ज्यादा शोरशराबा नहीं करना चाहता. इसीलिए तो सत्तापक्ष हो या विपक्ष, सभी के खनन संबंधी कार्य बदस्तूर जारी हैं.

कोई भी दूसरे के मामले को बहुत अधिक उछालना नहीं चाहता, क्योंकि उसे स्वयं भी पता है कि वह शीशे के घर में रह रहा है और शीशे के घरों में रहने वाले वैसे भी दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंकते. फिर मौसेरे भाई होने का रिश्ता भी तो एकदूसरे की टोपी उछालने में आड़े आता है.

हमारे नेता राष्ट्र को अपनी मातृभूति मानते हैं और मातृभूमि से उन का प्यार सभी को मालूम है. अपनी मां पर वे अपना पूर्ण अधिकार समझते हैं और अपने इसी अधिकार के चलते यदि वे अपनी मां से कुछ प्राप्त कर रहे हैं तो भला क्या गलत कर रहे हैं? अब यह अलग बात है कि इस के लिए उन्हें अपनी मां के सीने पर कुदाली चलवानी पड़े, उस का शरीर बुलडोजरों तथा क्रेशर मशीनों से रौंदना पड़े. उस के शरीर को छलनी करना पड़े, मां का दमन करना पड़े, उस का शोषण करना पड़े. अब कपूतों की खातिर मातापिता को कष्ट तो उठाने ही पड़ते हैं तो ऐसे में यदि आज के युग (कलियुग) में हमारे आधुनिक सपूत (माननीय) अपनी मां को थोड़ा सा कष्ट दे रहे हैं तो उस में इतना हल्ला क्यों, इतनी हायतौबा क्यों? वैसे भी आधुनिक आचारसंहिता में बेटों की खातिर कष्ट उठाना मातापिता का सिर्फ कर्तव्य भी नहीं, परम कर्तव्य ही है.

ऐसे में यदि ये बेटे अपनी मां से अपना अधिकार ले रहे हैं तो इस से दूसरों के पेट में भला क्यों दर्द होने लगा? दूसरे कौन होते हैं मांबेटों के बीच में आने वाले? रत्नगर्भा से रत्न (बहुमूल्य खनिज संपत्ति) प्राप्त करना बेटों का प्रथम अधिकार है. ऐसे में, वैसे भी दूसरों को बीच में नहीं पड़ना चाहिए.

आधुनिक युग में मातापिता को अपने कर्तव्यों का ध्यान होना चाहिए, उन्हें पता होना चाहिए कि स्वार्थों की खातिर उन के बेटे उन की जान भी ले सकते हैं जबकि बेटों की समृद्धि की खातिर अपना सर्वस्व देना मातापिता का परम कर्तव्य है (यहां यह याद रखें कि आज के युग में मातापिता के अधिकार कोई नहीं हैं, उन्हें सिर्फ अपने कर्तव्य पूरे करने हैं). अपने विधिसम्मत, इन्हीं अधिकारों का तो उपयोग कर रहे हैं ये माननीय.

ऐसे में यदि कोई इन का विरोध करता है तो यह उन के मूलभूत अधिकारों पर प्रहार है और यह किसी से छिपा नहीं है कि वे अपने अधिकारों के प्रति अत्यंत  सजग हैं. इसलिए प्रशासन चाहे कुछ भी कहे, फिलहाल तो संपूर्ण भारत में खुदाई कार्यक्रम जारी है.

कहता है जोकर सारा जमाना…

सरकस में जोकर तो आप ने खूब देखे होंगे जिन्हें सारा जमाना जोकर कहता है और उस की अजबगजब हरकतों पर ठहाके लगा कर हंसता है. वास्तव में जोकर होते ही बड़े मजेदार हैं, क्योंकि उन में अपने गमों को भीतर छिपा कर लोगों को हंसाने का टैलेंट होता है और लोग भी उन के नौटी चेहरे और हरकतों को देख कर अपने भीतर के दर्द को पलभर के लिए भूल जाते हैं, तभी तो जहां कहीं भी जोकर शो का आयोजन होता है, लोग हजारों की संख्या में उन्हें देखने के लिए उमड़ते हैं और कुछ पल के लिए उसी माहौल में रम जाते हैं.

यहां तक कि बहुत सी ऐसी फिल्में आईं जैसे ‘मेरा नाम जोकर’ जिस में जोकर के किरदार से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए और यहां से भी जोकर शो के प्रति क्रेज बढ़ा. आज तो आलम यह है कि देशविदेश में जोकर शो व इवैंट्स आयोजित होने लगे हैं और हों भी क्यों न, क्योंकि जब टैलेंट यूनीक है तो आयोजन भी खास होना चाहिए. ऐसा ही एक आयोजन होता है ब्रिटेन में जिस का नाम है, ‘क्लाउन डे.’

क्लाउन डे कैसे आया ट्रैंड में

करीब 4 हजार साल पहले प्राचीन चीन में शिन हुंग टि च्यू के शासन में मसखरी के लिए एक दिन तय किया गया, जिस में लोग खूब हंसीमजाक करते थे और यहीं से इस दिन की शुरुआत हुई. देखादेखी बाकी देशों ने भी इसे अपनाया, क्योंकि उन्हें इस दिन को सैलिबे्रट करने में ज्यादा मजा जो आता था.

जोकरों के अंदाज निराले

सिर्फ इक्कादुक्का जगह ही नहीं बल्कि दुनियाभर में क्लाउन फैस्टिवल का आयोजन किया जाता है जिस में जोकरों के अंदाज निराले होते हैं. वे फंकी कपड़ों के साथ, नाक पर लाल टमाटर की तरह छोटी बौल लगा कर, सब को हंसाने वाला मेकअप कर, पैरों में बड़ेबड़े जूते पहन कर कभी सड़कों पर अपनी फौज के साथ घूमते हैं तो कभी स्टेज पर गुदगुदाने वाली परफौर्मैंस से लोगों को ‘वाट अ टैलेंट यार’ कहने पर मजबूर कर देते हैं.

हर दर्शक उन की आखिरी परफौर्मैंस तक अपनी सीट पर जमा रहता है. इसी तरह का फैस्टिवल लंदन, ब्रिटेन, मैक्सिको, ब्राजील, नीदरलैंड्स, इटली व नौर्वे आदि देशों में भी आयोजित किया जाता है, जिस का कोई जवाब नहीं. देखने वाले उसे बस देखते ही रह जाते हैं.

वन डे नहीं, पूरा सप्ताह जोकरों के नाम

कभी वैलेंटाइन डे, कभी पिलो डे तो कभी टीचर्स डे. इस तरह के न जाने विश्वभर में कितने डे मनाए जाते हैं, लेकिन ये सिर्फ एक दिन मनाए जाते हैं, लेकिन क्लाउन डे तो सप्ताहभर मनाया जाता है जिस का आयोजन अगस्त फर्स्ट वीक में किया जाता है. हो भी क्यों न, क्योंकि जोकर्स सब को स्ट्रैस से बाहर निकालने का काम जो करते हैं और इस के लिए सिर्फ एक दिन ही काफी नहीं. तो हुए न दुनिया के लिए जोकर खास.

दिल में दर्द फिर भी हंसाने की कला

भले ही उन के दिल में दर्द क्यों न हो, लेकिन फिर भी उन के चेहरे पर हरदम मुसकान रहती है, यही तो कला होती है जोकर में. ऐसा ही फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ में हुआ. उस में जोकर का किरदार निभाने वाले राज कपूर के दिल में कितना दुख छिपा था यह सिर्फ वही जानता था, लेकिन इन सब के बावजूद वह अपने काम से पीछे नहीं हटा और अपनी परफौर्मैंस से सब को लोटपोट करता रहा.

ऐसा सिर्फ फिल्म में राज कपूर ने ही नहीं किया बल्कि सभी जोकर अपने काम की खातिर अपने दर्द को अपने तक सीमित रख कर सब को हंसाने का काम करते हैं और इनसान वही है, जो दूसरे को खुश रखने के लिए खुद का गम भुला दे.

जोकरों के प्रकार

व्हाइटफेस जोकर

इस जोकर के फैशियल फीचर्स को कलर्स से उभारने पर जोर दिया जाता है. इस के फेस पर व्हाइट बेस अप्लाई किया जाता है, जबकि बौडी के कुछ खास पार्ट्स को रैड और ब्लैक कलर से उभारा जाता है. ये या तो बहुत बड़े या फिर छोटे सूट पहनते हैं साथ ही बड़ेबड़े जूते और आमतौर पर टोपी पहने हुए होते हैं.

अगस्टे

अगस्टे जोकर के फेस पर पिंक टोन का मेकअप किया जाता है. इस में आंखों और मुंह को व्हाइट कलर से हाईलाइट किया जाता है, जबकि चिक्स व आईब्रोज के लिए रैड और ब्लैक कलर का इस्तेमाल किया जाता है और यहां तक कि विग का भी इस में इस्तेमाल किया जाता है.

करैक्टर क्लाउन

इस में व्हाइटफेस और अगस्टे दोनों का या फिर किसी एक का कौंबिनेशन होता है, क्योंकि इस में मुख्य फोकस करैक्टर पर होता है कि क्या बनाया जाना है और उसी पर ही कौस्ट्यूम्स भी निर्भर करते हैं.

हर किसी में नहीं जोकर बनने का दम

जब जोकरों पर कोई जोक डैडिकेट होता है या फिर वे रैस्टोरैंट्स के बाहर हमारे वैल्कम के लिए खड़े होते हैं तो उन्हें देख कर हम हंस उठते हैं और कभी उन के फंकी चेहरे का मजाक बनाते हैं तो कभी उन की हरकतों को देख कर उन के मुंह पर ही कह उठते हैं कि जोकर जो है तभी तो ऐसी ऊटपटांग हरकतें कर रहा है. ऐसा कहते वक्त हम एक बार भी यह नहीं सोचते कि  उन्हें यह सुन कर कितना बुरा लगता होगा.

कभी आप ने सोचा है कि यह भी हर किसी के बस में नहीं. अगर आप को ही कहा जाए कि किसी रोते हुए इनसान को हंसाना है तो आप भी यह नहीं कर पाएंगे जो जोकर मिनटों में कर देता है. इसलिए जो दम आप में नहीं, उस के लिए किसी पर हंसने का भी हक आप को नहीं.

भारत में बर्थडे या इवैंट पार्टीज तक सीमित

आज से कुछ साल पहले लोगों में सर्कस वगैरा के लिए काफी ऐक्साइटमैंट रहती थी और इस के लिए लोग शो शुरू होने से काफी पहले ही वहां जा कर बैठ जाते थे, लेकिन आज नहीं. आज टैक्नोलौजी ने युवाओं को इतना बिजी कर रखा है कि उन्हें सर्कस वगैरा देखने की फुरसत ही नहीं है. अब तो यहां ऐंटरटेनमैंट के लिए सिर्फ बर्थडे या फिर इवैंट पार्टीज में ही इन्हें बुलाया जाता है, जो इन के प्रति घटती रुचि को दर्शाता है जबकि आप को बता दें कि इस में लो कौस्ट पर ज्यादा ऐंटरटेनमैंट मिलता है. इसलिए जब भी आप के शहर में क्लाउन शो आयोजित हो तो मिस करने की भूल कभी न करें, क्योंकि ऐसे शोज आप को रीफ्रैश करने के साथसाथ नयापन देते हैं.

क्लाउन में भी कैरियर

जब भी कोई आप से पूछता है कि बड़े हो कर आप क्या बनोगे तो आप की जबान पर सिर्फ डाक्टर या इंजीनियर बनना ही रहता है. अरे भई, कौन मना कर रहा है डाक्टर, इंजीनियर बनने के लिए. अगर आप में हंसाने की कला है तो आप साइड में क्लाउन कालेज जौइन कर के खुद को मल्टीटास्किंग बनाइए. इस से आप का हुनर भी निखरेगा और लोग आप के कायल भी हो जाएंगे, क्योंकि यह कला है ही इतनी मस्त.

जोकर में खास क्या

जोकर बनने के लिए कलाबाजी करना, हवा में करतब दिखाना, घुड़सवारी, डांस, म्यूजिक वगैरा के साथसाथ जरूरी है कि आप का मेकअप ऐसा हो कि आप लोगों को हंसा सकें. सब से जरूरी यह है कि आप को बिना बोले संकेतों के आधार पर अभिनय करना आना चाहिए. साथ ही आप को यह भी ध्यान रखना है कि करतब दिखाते समय सावधानी भी बरतें वरना दुर्घटना घटित होने में देर नहीं लगेगी.

हर किसी की जबान पर इन का नाम

चार्ली चैप्लिन और मिस्टर बीन तो अपनी ऐक्ंिटग से लोगों की जबान पर हमेशा ही रहे हैं, लेकिन इन के साथ रोनाल्ड मैकडोनाल्ड भी खास है, जिन्हें आप मैक्डी के बाहर कुरसी पर आराम फरमाते देखते हैं.

असल में ये आप के वैलकम के लिए वहां बैठाए गए हैं, तो हुए न जोकर खास.

अगर आप भी लोगों को हंसाने, नाटक, कलाबाजी वगैरा का दमखम रखते हैं तो जोकर शो में खुद के टैलेंट को और निखारिए व लोगों में भी इन शोज के प्रति उत्साह पैदा कीजिए.

फैशन फॉर समर : चुने खास रंग

तो! गर्मियों का मौसम आ गया है. घरों में पंखे क्या कूसर और एसी तक चलने शुरू हो चुके हैं, सर्दियों के तमाम स्‍वेटर्स, जैकेट, शोल्‍स सब पैक होकर रखे जा चुके हैं और गर्मियों के कपड़ें, टॉप्‍स, हील्‍स निकल चुके हैं.

आमतौर पर गर्मियों में ठंडे रंग पहनना काफी मजेदार होता है, एक तो इनमें गर्मी नहीं लगती, दूसरा ये ठंडक का एहसास भी देते हैं. तो आब तक आपने भी इन ठंडे रंगों को अपने वार्डरोब में शामिल कर लिया होगा. इन सबके बीच कुछ कलर ऐसे होते हैं, जो गर्मियों में खासे पसंद किये जाते हैं. तो आइए जानते हैं गर्मियों में सर्दी का एहसास कराने वाले इन रंगों के बारे में…

ठंडक का एहसास है ग्रीन : ग्रीन कलर के कई शेड आपको मार्केट में मिल जाएंगे, लेकिन ग्रीन कलर का ये अंदाज वाकई काफी ठंडक देने वाला है. गर्मियों में ये कलर न सिर्फ आपको अपनी ड्रेसेज में बल्कि स्लीपर्स और पर्स में भी खूब देखने को मिलते हैं.

गर्मियों में पिंक का है हर कोई दिवाना : वैसो तो गर्मी हो या सर्दी, स्‍टाइलिश दिखने वालों को पिंक कलर जरूर पसंद होता है. और गर्मी के मौसम में तो ये न केवल आपको ठंडक देता है बल्कि स्‍टाइलिश लुक भी देता है.

ऑरेंज है जरा हट के : किसी दिन आपको ऐसा लगे कि आज आपका ऑउटफिट काफी बोरिंग हो रहा है. ऐसे में क्‍या किया जाना चाहिए कि इस तेज गर्मी के मौसम मे आप स्‍टाइलिश भी दिखें और स्‍मार्ट भी, साथ ही साथ आपको गर्मी भी महसूस न हो. इसके लिए आपको ऑरेंज कलर ट्राई करना चाहिए. ऑरेंज कलर के स्‍टाइलिश पर्स या स्‍लीपर्स लें. ऑरेंज पहनने का बाद देंखे कैसे लोगों की निगाहें आपकी ओर घूमती हैं.

कूल है ब्‍लू  : अगर आप इस गर्मी के मौसम में आप अपने आपको एक परफेक्‍ट बीच लुक देना चाहते हैं, तो ब्‍लू रंग के अलग-अलग शेड्स की हेट्स, शर्ट्स, स्‍लीपर्स ट्राई करें और देखें कैसे आपको ठंडा- ठंडा कूल-कूल फील होता है.

येल्‍लो है सबसे अलग : पीला रंग काफी सुकून और ठंडक देता है. इससे आपको देखने वाले लोगों को भी कूल-कूल महसूस होगा. ऐसे में इस रंग के स्‍कार्फ या फिर कॉटन की कुर्ती गर्मी के लिए एकदम परफेक्‍ट है.

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