कंगना ने तोड़ी हंसल और अपूर्व की जोड़ी!

वक्त के साथ सारे समीकरण बदलते रहते हैं. कल तक बॉलीवुड से कंगना के जुड़े कुछ लोग कंगना रनौत को फिल्मों से निकलवा रहे थे. पर अब सितारे चमक रहे हैं और अब कंगना रनौत अपने इशारे पर कुछ फिल्मकारों को नचा रही हैं. हालात ऐसे हो गए हैं कि जो फिल्मकार कंगना रनौत के इशारे पर नाचने के लिए तैयार नहीं होता, उसे कंगना सबक सिखाने में पीछे नहीं रहती.

वास्तव में अब कंगना रनौत को लगता है कि वह एक बेहतरीन अदाकारा के साथ साथ बेहतरीन लेखक व निर्देशक भी हैं. इसलिए वह दूसरे फिल्मकारों से लेखन व निर्देशन में भागीदारी चाहती हैं. जब कंगना की इस इच्छा को मानने से फिल्मकार केतन मेहता ने इंकार कर दिया, तो कंगना ने अंदर ही अंदर तैयारी कर केतन मेहता की अतिमहत्वाकांक्षी फिल्म ‘‘रानी लक्ष्मी बाई’’ (जिसमें वह मुख्य भूमिका निभाने वाली थीं) से खुद को अलग कर दक्षिण भारत के निर्देशक कृष के साथ उसी विषय पर फिल्म ‘‘मणिकर्णिका’’ की शुरूआत कर दी. और तो और कंगना इस फिल्म को जोर शोर से प्रचारित करने में भी लगी हुई हैं. ऐसे में भला हंसल मेहता कैसे कंगना से दुश्मनी मोल लेते. इसलिए कुछ दिन पहले ही हंसल मेहता ने घोषित कर दिया कि उनकी फिल्म ‘सिमरन’ की सह लेखक कंगना रनौत हैं.

उसके बाद यही बात हंसल मेहता ने ट्विटर पर भी लिख दी. यह बात फिल्म ‘सिमरन’ के लेखक अपूर्व असरानी को नागवार गुजरी. अपूर्व असरानी ने इसका विरोध करते हुए मीडिया में कह दिया कि ‘सिमरन’ के एकमात्र लेखक वही हैं. इस फिल्म के लेखन में कंगना रनौत का कोई योगदान नहीं है. अपूर्व असरानी के इस सच ने अपूर्व असरानी और फिल्म निर्देशक हंसल मेहता की 17 साल पुरानी जोड़ी को तोड़ दिया.

सूत्रों के अनुसार अपूर्व असरानी ने जैसे ही मीडिया कहा कि फिल्म ‘सिमरन’ के वही लेखक हैं, वैसे ही कंगना का गुस्सा चरम पर पहुंच गया. उसके बाद कंगना और हंसल मेहता के बीच क्या बात हुई, इसका खुलासा तो नहीं हो पाया. मगर हंसल मेहता व अपूर्व असरानी का सोलह वर्ष पुराना संबंध खत्म हो गया.

जबकि हंसल मेहता के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘‘दिल पे मत ले यार’’ का प्रोमो अपूर्व असरानी ने अभिनेता मनोज बाजपेयी के कहने पर बनाया था. उसके बाद अपूर्व असरानी लेखक व एडीटर के रूप में हंसल मेहता के साथ जुड़ गए. वह हंसल मेहता के साथ राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘शहीद’, अति चर्चित फिल्म ‘अलीगढ़’ से लेकर ‘सिमरन’ तक हर फिल्म के साथ जुड़े रहें.

बहरहाल,एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए हंसल मेहता से अलगाव की पुष्टि करने के साथ ही अपने मन की पीड़ा का जिक्र करते हुए कहा है, ‘‘हर दोस्ती और जोड़ी एक न एक दिन ऐसे मुकाम या यूं कहें कि ऐसी परिस्थिति में पहुंच ही जाती है, जहां प्यार खत्म होकर नफरत पैदा होने लगता है. ऐसे में यह जरुरी होता है कि प्यार खत्म होकर नफरत में बदले, उससे पहले ही उस संबंध को तोड़ दिया जाए. हंसल और मैं तमाम चुनौतियों के दौरान एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हुए जुड़े रहे. मगर अब चुनौतियों का स्थान इंसानी महत्वांकांक्षाओं ने ले लिया है. हंसल ने निर्देशन में नई उंचाइयां पा ली है. उनका नाम एक आयकान बन गया है, तो दूसरी तरफ कहानीकार के रूप में मुझे एक नयी राह मिल गयी है. अब मैं अपनी इस नई राह को फैलाना चाहता हूं’’

अपूर्व असरानी ने आगे कहा, ‘‘यूं तो अतीत में भी हमारे बीच बंद दरवाजों के अंदर बहस व झगड़े होते रहे हैं, पर तब यह झगड़े फिल्म की बेहतरी के लिए होते थें. इस बार ऐसा नहीं है. मैं जी हजूरी करने वाला इंसान नहीं हूं. मैं महज पैसे के लिए नहीं, बल्कि इमानदारी से फिल्म बनाने के लिए काम करता हूं. मैंने कई बार मजाक में हंसल से कहा था कि वह  कंगना को सह लेखक न कहें. क्या सेट पर कलाकार के रूप में कंगना हर सीन को इम्पू्रवाइज करके करती हैं, तो आप उसे सह निर्देशक कहेंगे.’’

गहनों के बजाए खरीदें सोने-चांदी के सिक्के

हमारे देश में कई मौकों और त्योहारों पर सोने और चांदी की खरीददारी शुभ मानी जाती है. कई खास मौको पर जमकर सोना खरीदा जाता है, लेकिन दुविधा यह रहती है कि ऐसे में सिक्के खरीदे जाएं या गहने.

खास मौको पर बाजार में उपलब्ध कई ऑफर्स भी आपको लुभाते हैं और गहनों के आकर्षक डिजाइन देखकर लगता है कि बस यही राइट चॉइस है. लेकिन यहां थोड़ा रुक कर सोचिए और अगर आप समझदारी दिखाएंगी तो पता लगेगा कि गहनों से ज्यादा सिक्के खरीदना बेहतर रहता है.

ये हैं वो कारण जो बताते हैं कि कैसे सोने और चांदी के सिक्के खरीदना फायदे का सौदा है –

मेंकिग चार्ज

जब भी सोने की ज्वैलरी खरीदती हैं तो उस पर मेकिंग चार्ज देना पड़ता है. लेकिन जब आप वही ज्वैलरी बेचने जाती हैं या एक्सचेंज करती हैं तो ये अमाउंट आपको वापस नहीं मिलता, इसलिए मेकिंग चार्ज के बोझ से बचना है तो सोने के सिक्के को ही प्रिफर करना उचित होता है. इस तरह आपको त्योहार पर ज्यादा खरीदारी के लिए और रकम भी मिल जाएगी.

कभी भी सिक्कों से बनवा लें ज्वैलरी

अगर आप सोने की ज्वैलरी को सोने के सिक्के, बिस्कुट या फिर और किसी डिजाइन में बदलवा रही हैं तो आपको इसके बदले मेंकिग चार्ज के बगैर केवल सोने की कीमत मिलेगी और आपको नए डिजाइन के बदले जो एडिशनल चार्ज देना होगा वो अलग. लेकिन अगर आपके पास सोने का सिक्का है तो आप बिना किसी नुकसान के इससे कभी भी ज्वैलरी बनवा सकती हैं.

निवेश का फायदेमंद सौदा

निवेश का मतलब ही है पैसे को प्रॉफिट कमाने के लिए लगाना. जब आप सोने की ज्वैलरी में निवेश करती हैं तो आपको उसे बेचने पर मेंकिग चार्ज का नुकसान होता है. लेकिन अगर आपने सोने का सिक्का खरीदकर निवेश किया है तो भविष्य में सोने की कीमत बढ़ने पर अगर आप उसे बेचती हैं तो आपको बिना किसी नुकसान उसी सिक्के की ज्यादा कीमत मिलती है.

सेफ्टी के लिहाज से भी फायदा

सोने की ज्वैलरी के चोरी होने का खतरा ज्यादा होता है, चाहे आप उसे पहनें या फिर रखे रहें. वहीं सोने के सिक्कों को एक बैग में रखना आसान और सेफ होता है. कई बार इन्हें आसानी से पहचाना भी नहीं जा पाता है, इस लिहात से भी ये अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं.

काला चश्मा तो आप भी पहनती हैं?

सनग्लासेज पहनना तो हमेशा से ट्रेंडी माना जाता है. हां, कुछ लोग क्लासी दिखने के लिए पहनते हैं, तो कुछ लोग अपनी आंखों को सुरक्षा देने के लिए. हालांकि इन्हें लेकर कुछ मिथ भी प्रचलित हैं लेकिन अगर आप अपने आंखों की सुरक्षा करने चाहती हैं तो आपका इन मिथ्स पर ध्यान ना देना ही उचित है.

महंगे शेड्स ही अच्छे होते हैं : शेड्स खरीदते वक्त कीमत देखने के अलावा आपको यह भी देखना चाहिए कि शेड्स UVA और UVB किरणों से आपकी आंखों को पूरी सुरक्षा दे रहे हैं या नहीं.

लेंस का रंग मायने रखता है : क्या आप जानते हैं कि आपके लेंस का रंग चाहे ग्रे हो, ब्लू हो या कुछ भी हो. रंग UV प्रोटेक्शन फैक्टर पर कोई असर नहीं डालता.

स्क्रेच सही हैं : नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है. अगर आपके शेड्स में स्क्रेच है तो आप देखने के लिए अपनी आंखों पर ज्यादा जोर देती हैं और ऐसा करने से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

साइज से फर्क नहीं पड़ता : अगर आपको लगता है कि साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता, तो आप गलत हैं. अगर हम एक्सपर्ट्स की माने तो, बड़े लेन्स वाले शेड्स अच्छे होते हैं क्योंकि वो रोशनी को आपकी आंखों में जाने नहीं देते.

सारे सनग्लासेज एंटी-ग्लेयर होते हैं : अगर आप ऐसा सोचती हैं तो कि सारे सनग्लासेज में एंजी-ग्लेयर होता है तो हम आपको बता देना चाहते हैं कि जिन चश्मों में पोलराइज्ड लेंस होता है, सिर्फ वे ही एंटी-ग्लेयर होते हैं.

लो-क्वालिटी के शेड्स भी ठीक होते हैं : ये बात बिल्कुल सही है कि हम सभी पैसे बचाना चाहती हैं, लेकिन जब बात सनग्लासेज की आती है, तो अच्छी क्वालिटी के शेड्स खरीदना ही सही और सुरक्षित होता है.

डार्क लेंस ज्यादा सुरक्षा करते हैं : एक बात अच्छी तरह समझ लें कि लेंस के कलर का आंखों की सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं होता.

रंगभेद पर बंटता समाज

दिल्ली के निकट नोएडा में अफ्रीकी बच्चों या अमेरिका में यूनाइटेड एअरलाइंस का एक चीनी मूल के यात्री को घसीट कर हवाईर्जहाज से उतारना रंगभेद की गहरी अंधेरी गुफाओं में रह रहे लोगों की असल सोच का प्रदर्शन करता है. भारत में थोड़े से गोरे रंग के लोगों को नौकरियों, शादियों, नेतागीरी में इतनी ज्यादा प्राथमिकता मिल जाती है कि गहरे रंग के प्रति हमारी सोच बेतुकी होती जाती है और सांवलों व कालों के प्रति नाराजगी साफ झलकने लगती है.

गोरा रंग न तो योग्यता का प्रतीक है न शराफत का और न ही कुशलता का. त्वचा का रंग मैलानिन की देन है, जिस का व्यक्ति के व्यवहार पर कोई असर नहीं पड़ता, पर सदियों से वर्ण यानी रंग का जंजाल हमारे सिर पर भी उसी तरह मंडरा रहा है जैसे अमेरिका, चीन, जापान आदि में. हर समाज में गोरों की पूछ होती है. अमेरिका में प्रसिद्ध गायक माइकल जैक्सन ने तो तरहतरह के उपाय कराए कि वह गोरा दिखे. इसी चक्कर में उस ने न जाने क्या लिया कि उस की असामयिक मौत हो गई.

भारत में इसी रंगभेद पर उन सितारों को ले कर विवाद चल रहा है, जो गोरे रंग की क्रीम के विज्ञापनों में नजर आते हैं. इस में इन सितारों या क्रीम उत्पादकों को नाहक घसीटा जा रहा है, क्योंकि बीमारी विज्ञापनों की देन नहीं, सामाजिक सोच की है.

गोरी लड़कियों को कुशल न होने पर भी सिरआंखों पर रखो और सांवलियों को दुत्कारो तो गोरा होने की कोशिश हरकोई करेगा ही. अगर मांग है, तो ही पूर्ति होगी. दोष समाज का है, आम औरतों का है, सासों का है, मांओं का है कि वे त्वचा का रंग देखती हैं और उसी आधार पर गुण तय कर लेती हैं. पुरुष इस मामले में उदार नहीं पर चूंकि उन का वास्ता बहुत तरह के लोगों से पड़ता है, उन्हें आदत पड़ जाती है कि लोगों को उन की आदत से पहचानें, त्वचा से नहीं.

अपना शरीर मनचाहा बनाने का हक भी हरेक के पास है. मोटा पतला होने की कोशिश करे, लंबी नाक वाली नाक की सर्जरी करवाए, छोटे स्तनों वाली बैग्स डलवाए, झुर्रियों वाली बोटोक्स के इंजैक्शन लगवाए, ये हक हैं लोगों के पास और इन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का हक भी है. रंगभेद को बढ़ावा दे रहे हैं इस के लिए युवतियों को उन उत्पादनों से बेखबर न करें जो रंग सुधारने की कोशिश करती हैं. सितारों या उत्पादकों को नाहक ब्यूटी और मेकअप से अपनेआप को सजाने के हक के विवाद में उलझा रहे हैं.

ये उलझाने वाले तो कल को कहेंगे कि बाल भी न बनवाए जाएं, झांइयों के लिए क्रीम न लगाएं, मर्द दाढ़ी न बनवाएं.

बाहुबली: राम्या नहीं थी राजामौली की पहली पसंद

‘बाहुबली 2’ को रिलीज हुए 13 दिन हो गए हैं लेकिन यह फिल्म अभी भी सुर्खियों में बनी हुई है. एस एस राजमौली की फिल्म ‘बाहुबली- द कन्क्लूजन’ सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी अपने नाम कई रिकॉर्ड कायम कर रही है. रिकॉर्ड्स के मामले में ये फिल्म रिलीज के पहले से ही स्पॉटलाइट में बनी हुई थी.

फिल्म ‘बाहुबली’ को न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रियता मिली है. फिल्म के सभी किरदार चाहे वो बाहुबली हों, कटप्पा हों या शिवगामी सभी को फैंस से बहुत प्यार मिला है.

बाहुबली और बाहुबली 2 में राम्या कृष्णन की बेहतरीन परफॉर्मेंस को देखकर यह सोचना भी काफी मुश्किल है कि कोई और एक्टर उनके किरदार को निभा सकता था. लेकिन आपको बताते चलें की राम्या इस किरदार के लिए निर्देशक की पहली पसंद नहीं थीं. जी हां आपने सही सुना. बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी फिल्म निर्माता की किरदार के लिए पहली पसंद थीं. हालांकि एक्ट्रेस ने इसमें काम नहीं किया जोकि अब भारतीय सिनेमा में इतिहास बन गई है.

खबरों की मानें तो श्रीदेवी शिवगामी के किरदार को निभाने में दिलचस्पी रखती थीं लेकिन उन्होंने शूटिंग करने से मना कर दिया क्योंकि फिल्म निर्माता उनकी पारिश्रमिक मांगों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थे.

दरअसल श्रीदेवी ने इस किरदार के लिए 6 करोड़ रुपए की मांग थी. जिसकी वजह से यह रोल राम्या की झोली में चला गया. इसके बाद श्रीदेवी ने विजय की पुली में काम किया. 2015 में आई इस फिल्म में उनका एक बुरी रानी के तौर पर निभाया गया किरदार हंसी का कारण बना. उसी साल बाहुबली भी रिलीज हुई और बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड बनाए.

बाहुबली और बाहुबली 2 को दर्शकों से काफी सारा प्यार मिला और इसका सबूत है कि फिल्म की कमाई ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. एक अंग्रेजी अखबार के रिपोर्ट के अनुसार बाहुबली के निर्माताओं ने राम्या कृष्णन को शिवगामी का किरदार निभाने के लिए 2.5 करोड़ रुपए दिए हैं. वो एक ऐसा किरदार हैं जिसने कहानी को बदल दिया था.

बाहुबली और बाहुबली 2 में उनकी परफॉर्मेंस को दर्शकों और मीडिया से काफी प्रशंसा मिली है. पिछले महीने चेन्नई में फिल्म की ऑडियो रिलीज के मौके पर निर्देशक को अफसोस हुआ कि उन्होंने पहले ही राम्या को किरदार के लिए अप्रोच क्यों नहीं किया. निर्देशक ने कहा, मुझे नहीं पता उस समय मेरे दिमाग में क्या चल रहा था जब शिवगामी के लिए मैंने दूसरी एक्ट्रेस को कंसीडर किया. मुझे इस पर शर्मिंदगी हो रही है.

इन मशहूर अभिनेताओं के घर जन्मे हैं ट्विन्स

कमबैक फिल्म ‘भूमि’ की शूटिंग में बिजी संजय दत्त और उनकी पत्नी मान्यता बी-टाउन के उन चुनिंदा कपल्स में शामिल हैं जो जुड़वां बच्चों के पेरेंट्स हैं. संजय ने 2008 में मान्यता से शादी की थी. इसके दो साल बाद 21 अक्टूबर, 2010 जोड़ी के जुड़वां बच्चों (बेटा शहरान और बेटी इकरा) का जन्म हुआ था. दोनों अब 6 साल के हो गए हैं. मान्यत संजय की तीसरी पत्नी हैं.

– संजय की पहली शादी 1987 में ऋचा शर्मा से हुई थी. 1988 में इनके घर बेटी त्रिशाला का जन्म हुआ.

– 1996 में ब्रेन ट्यूमर की वजह से ऋचा की डेथ हो गई थी और त्रिशाला की कस्टडी ऋचा के माता-पिता को सौंप दी गई थी.

– बता दें, त्रिशाला अब 29 साल की हो चुकी हैं. उन्होंने न्यूयॉर्क के जॉन जे कॉलेज ऑफ क्रिमिनल जस्टिस लॉ से ग्रेजुएशन किया है.

– 1998 में संजय दत्त ने सोशेलाइट रिया पिल्लाई से दूसरी शादी की. ये शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई और 2005 में इनका तलाक हो गया.

– उनकी तीसरी शादी मान्यता से 11 फरवरी, 2008 को हुई. मान्यता संजय से लगभग 19 साल छोटी हैं.

संजय दत्त के अलावा अभिनय जगत में ऐसे और भी जोड़े हैं जिनके घर जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया है.

सेलिना जेटली

सेलिना ने साल 2011 में लॉन्ग टाइम ब्वॉयफ्रेंड और ऑस्ट्रेलियन बिजनेसमैन पीटर हॉग से शादी की. उनके विराज और विस्टन नाम के दो जुड़वां बेटे हैं, जिनका जन्म 24 मार्च, 2012 को हुआ था. अपने बच्चों के 5वे बर्थडे के मौके पर सेलिना ने दोनों बेटों की फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट की थी.

बता दें, सेलिना ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत 2003 में फिरोज खान की फिल्म ‘जानशीं’ से की थी. इसके अलावा उन्होंने “सिलसिले (2005)”, “नो एंट्री (2005)”, “गोलमाल रिटर्न्स (2008)”, “पेइंग गेस्ट (2009)” सहित अन्य फिल्मों में भी एक्टिंग की है.

शत्रुघ्न सिन्हा

शत्रुघ्न सिन्हा और पूनम सिन्हा की शादी 1980 में हुई थी. इनके जुड़वां बेटों लव और कुश का जन्म 5 जून, 1983 को हुआ था. 34 साल के हो चुके कुश ने तो बॉलीवुड से दूरी बनाई है. वहीं, लव ने फिल्म “सदियों (2010)” से बी-टाउन में एंट्री ली, लेकिन असफल रहे. बता दें, सोनाक्षी सिन्हा लव-कुश की छोटी बहन हैं.

करणवीर बोहरा

‘कसौटी जिंदगी की’ फेम टीवी एक्टर करणवीर बोहरा दो जुड़वां बेटियों के पिता है. उनकी ट्विंस 6 महीने की हो चुकी हैं. हाल ही में दोनों बेटियों के साथ करण ने इंस्टाग्राम पर फोटो शेयर भी शेयर किया. बता दें, करन ने 2006 में उम्र से साढ़े तीन साल बड़ी गर्लफ्रेंड टीजे सिंधू से शादी की थी. टीजे मॉडल और वीजे हैं. इस जोड़ी की बेटियों का जन्म 19 अक्टूबर, 2016 को हुआ था.

हितेन तेजवानी और गौरी प्रधान

‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ फेम जोड़ी हितेन तेजवानी और गौरी प्रधान के घर 11 नवंबर, 2009 को जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ था. इनकी बेटी कात्या और बेटा निवान अब 7 साल के हो चुके हैं. गौरी-हितेन ने अप्रैल 2004 को शादी की थी.

बिल्कुल नये तरीके से पैसे कमाएं

अक्सर शादियों में कुछ ऐसे उपहार मिल जाते हैं जिनका बाद में कोई उपयोग नहीं होता है. साथ ही कई बार एक ही जैसे गिफ्ट दो-तीन लोगों से मिल जाते हैं. मसलन, शादी में सबसे अधिक डिनर सेट मिलते हैं. अब आप एक से ज्यादा डिनर सेट का क्या करेगीं?

घर में एक डिनर सेट तो इस्तेमाल होता है लेकिन बाकी सभी सेट यूं ही रख दिए जाते हैं. विदेशों में लोगों ने उपहारों से पैसा कमाने का एक नया तरीका खोज निकाला है. जिससे कमाई होने के साथ ही घर भी थोड़ा खाली बना रहता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन के नए जोड़े शादी में मिलने वाली दो-तिहाई सामानों को ऑनलाइन बेच देते हैं. घर में रखकर उन पर धूल जमाने से तो बेहतर यही होता है कि उन्हें ऑनलाइन बेच दिया जाए.

एक रिसर्च के अनुसार में प्रतिवर्ष शादियों में 25.4 मिलियन पाउंड की रकम वेडिंग प्रेजेंट देने में नुकसान कर दी जाती है. इस सामानों में सबसे अधिक आर्टवर्क, किचन के सामान, एक्सरसाइज इक्व‍िपमेंट शामिल होते हैं.

शादी में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले सामानों में गिफ्ट वाउचर, पैसा और पर्सनल वाउचर होते हैं. वैसे आज कल के जोड़े तो उपहार में हनीमून फंड या फिर पैसे की ही मांग करते हैं.

क्या आप जानते हैं कि इस तरह के सामान को बेचने के लिए 62 प्रतिशत जोड़े रीसेल वेबसाइट्स का इस्तेमाल करते हैं, 15 प्रतिशत उन्हीं उपहारों को दूसरों को उपहारस्वरूप देने का काम करते हैं. हालांकि कुछ ऐसे भी हैं जिनका ये कहना है कि पांच साल पहले शादी में मिला उनका तोहफा अब भी उनके घर में पैक रखा है.

ये है मोस्ट अनवॉन्टेड प्रेजेंन्ट्स की लिस्ट:

1. आर्ट वर्क्स.

2. कैंडल‍-स्टिक्स.

3. किचन गैजेट्स जो कि पूरी तरह अनवॉन्टेड होते हैं.

4. एक्सरसाइज के उपकरण.

5. एडवाइस बुक्स.

6. क्रिस्टल्स.

7. बेबी वियर.

8. पसंदीदा गानों का एक कैसेट.

9. घड़ी.

10. कार्ड.

राजनीति से नहीं जुड़ेंगी रवीना

जब से अभिनेत्री रवीना टंडन असहिष्णुता के मुद्दे पर भाजपा के समर्थन में तथा अपनी फिल्म ‘मातृ’ के प्रति सेंसर बोर्ड के कठोर रवैए के बावजूद बहुत सधे हुए शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया दी है, तब से बॉलीवुड में चर्चांएं गर्म हैं कि रवीना टंडन बहुत जल्द भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा बन राजनीति से जुड़ने वाली हैं.

हाल ही मैं रवीना टंडन से खास मुलाकात के दौरान जब हमने उनसे राजनीति से जुड़ने का सवाल किया, तो उन्होंने कहा कि नहीं!! मैं सिर्फ अच्छे लोगों का समर्थन करती हूं. बचपन में मेरे पिताजी सुनील दत्त के साथ काम करते थें. उन दिनों मैं राजीव गांधी की प्रशंसक थी. पर इसके यह मायने नहीं है कि मैं कांग्रेस या किसी खास दल की समर्थक हूं. सभी जानते हैं कि सुनील दत्त लोगों के लिए काम किया करते थें.

हां! असहिष्णुता के मसले पर मैंने भाजपा का साथ दिया. क्योंकि मेरा मानना है कि किसी भी इंसान को अपने देश को बदनाम करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. अपने देश के नागरिक होने के नाते मैंने कहा कि दूसरों के सामने अपने देश को शर्मिंदा ना करें. इसके लिए आपको मेरा लॉजिक समझना पड़ेगा. हिंदुस्तान एक ऐसा देश है, जिसने सभी को अपनाया है. फिर चाहे मुसलमान हो, पुर्तगीज हों, ब्रिटिश हों. हमने उन्हें अपनाया भी है और बार बार लूटे भी गए हैं. हमारा कोहीनूर लंदन में पड़ा हुआ है.

मुझे अपने देश से प्यार है. मैं देशभक्त हूं. जब राष्ट्रगीत बजता है, उस वक्त हम घर पर होते हैं, तब भी खड़े हो जाते हैं. मैं आज भी लता मंगेशकर का गाया गीत ‘ए मेरे वतन के लोगों..’ सुनती हूं, तो मेरी आंखों से आंसू बहने लगते हैं. जब वॉशिंगटन पोस्ट सहित कई विदेशी अखबारों में मैंने खबरें पढ़ी की भारत असहिशुष्ण देश है, तो मैंने अपने देश के उन लोगों का विरोध किया, जो देश को शर्मिंदा करने वाले बयान दे रहे थे. देखिए,जब आप दुनिया के सामने यह तस्वीर पेश करते हैं कि भारत में सड़कों पर किसी को भी मारा जा सकता है और लोग इस देश को छोड़कर जाना चाहते हैं, तो आप बताएं कौन विदेशी कंपनी हमारे देश में आकर व्यापार करना चाहेगी? कौन सी विदेशी कंपनी हमारे देश में इंवेस्ट करना चाहेगी?

मेरा कहना यह है कि यदि आपको किसी राजनैतिक पार्टी से तकलीफ है, तो आप उन पर दोशारोपण करिए. पूरे देश को बदनाम मत कीजिए. अमरीका में जितना रंग भेद है, उतना कहीं नहीं है. पर कभी किसी अमरीकन सिनेटर ने इस पर बात नहीं की. वहां कोई नहीं कहता कि अमरीका इनटॉलरेंट देश है. जबकि वहां सबसे ज्यादा घटना होती है. पर अनुष्का शंकर ने वाशिंगटन पोस्ट में भारत की बुराई की. मैं तो यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकती, जो करते हैं, उनका विरोध करूंगी.

वह आगे कहती हैं, ‘‘देखिए, जब हम अपने देश को शर्मसार करते हैं. अपने देश के खिलाफ बयानबाजी करते हैं. तो हमारे अपने देश के आर्थिक हालात बिगड़ते हैं, जिसका असर हम आम लोगों पर पड़ता है. उन पोलीटिकल लीडरों पर कोई असर नहीं होता,जो पैसा बनाकर बैठे हैं.मेरी राय में दो पॉलीटिकल पार्टी की आपसी दुश्मनी हो सकती है. किसी पॉलीटिकल पार्टी से आपको शिकायत हो सकती है,पर इसके लिए आप अपने देश को पूरे विश्व के सामने शर्मासार करें, यह गलत है. कम से कम मुझे बर्दाश्त नहीं.’’

…तो हो सकता है ब्रेस्ट कैंसर

कई अध्ययनों और रिपोर्ट्स के मुताबिक ब्रेस्ट कैंसर को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आतो रहे हैं. क्या आप जानते है कि ब्रेस्ट कैंसर होने की वजहों में अब हवा भी शुमार हो गई है. किसी महिला को ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी होगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करती है कि वह कैसी हवा में सांस ले रही है.

जिन इलाकों में उच्च स्तर का वायु प्रदूषण होता है, वहां की महिलाओं के स्तनों के ऊतकों का घनत्व ज्यादा हो सकता है और उसमें कैंसर पनपने की आशंका बढ़ जाती है.

अमेरिका की करीब 2,80,000 महिलाओं पर अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है. कहा गया है कि स्तनों का आकार ऊतकों का घनत्व बढ़ने से बड़ा हो जाता है और वसा की अधिकता से भी आकार बढ़ता जाता है, लेकिन अगर चर्बी बढ़ने से स्तन का आकार बढ़ा हो, तो उसमें कैंसर पनपने की आशंका नहीं रहती.

ये खतरा तब होता है जब ऊतकों का घनत्व बढ़ता है, जिसे मैमोग्राफी मापा जा सकता है.

फाइन पार्टिकल कन्सेंट्रेशन (पीएम 2.5) में एक इकाई की बढ़ोतरी से महिलाओं के स्तनों के ऊतकों का घनत्व बढ़ने की संभावना 4 फीसदी बढ़ जाती है. जिन महिलाओं के ज्यादा घनत्व वाले स्तन हैं और ऊतकों की 20 फीसदी तक उच्च सांद्रता, उन्होंने पीएम 2.5 से भी अधिक वायु प्रदूषण का सामना किया था. इसके विपरीत जिन महिलाओं के कम घनत्व वाले स्तन हैं, उन्होंने पीएम 2.5 की उच्च सांद्रता का 12 फीसदी कम सामना किया.

कई शोध निष्कर्षों से पता चलता है कि स्तन घनत्व की भौगोलिक विविधता की बातें शहरी और ग्रामीण इलाकों में वायु प्रदूषण की अलग-अलग स्थितियों पर आधारित हैं.

परंपरा और आधुनिकता का संगम ‘बिहार’

ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए बिहार न सिर्फ परंपरा और आधुनिकता की अनूठी तसवीर पेश करता है, बल्कि शिक्षा और ज्ञानविज्ञान की अंतर्राष्ट्रीय पहचान के लिए यह मशहूर भी है.

बिहार ऐसा प्रदेश है जो अपनी अलग पहचान रखता है. चंद्रगुप्त और अशोक के समय में मगध और इस की राजधानी पाटलिपुत्र का विश्व भर में नाम था. बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. जब तक झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था तब तक यहां खनिज संपदा की कोई कमी नहीं थी लेकिन झारखंड बनने पर खनिज संपदा से लबरेज इलाका वहां चला गया. इस तरह बिहार की आर्थिक संपन्नता को काफी नुकसान पहुंचा है.

पर्यटन व ऐतिहासिक दृष्टि से बिहार का आकर्षण आज भी कायम है. देशविदेश से अनेक सैलानी यहां के ऐतिहासिक स्थलों को देखने हर साल आते हैं. बिहार की राजधानी पटना का नाम पाटलिपुत्र और अजीमाबाद भी रहा है. यह शहर अपने सीने में कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है.

पटना के दर्शनीय स्थल

बुद्ध स्मृति पार्क

पटना रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही विशाल और चमचमाते स्तूप पर नजर टिक जाती है. वह इंटरनैशनल लेवल का बना नया पर्यटन स्थल बुद्ध स्मृति पार्क है. उस जगह पर पहले पटना सैंट्रल जेल हुआ करता था.

म्यूजियम

पार्क के भीतर बुद्ध म्यूजियम को बड़ी खूबसूरती से गुफानुमा बनाया गया है जिस में बुद्ध और बौद्ध से जुड़ी चीजें प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. इसे सिंगापुर के म्यूजियम की तर्ज पर विकसित किया गया है.

मैडिटेशन सैंटर

बौद्ध-कालीन इमारतों की याद दिलाता मैडिटेशन सैंटर बनाया गया है. यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित है. इस में कुल 5 ब्लाक और 60 कमरे हैं. सभी कमरों के सामने के हिस्सों में पारदर्शी शीशे लगाए गए हैं ताकि ध्यान लगाने वाले सामने बौद्ध स्तूप को देख कर ध्यान लगा सकें.

बांकीपुर जेल अवशेष

पार्क को बांकीपुर जेल की जमीन पर बनाया गया है. उस जेल को 1895 में बनाया गया था, जो शुरू में तो अनुमंडल जेल था पर बाद में 1907 में उसे जिला जेल बनाया गया. 1967 में उसे सैंट्रल जेल का दरजा दिया गया था. 1994 में जेल को वहां से हटा कर बेऊर इलाके में शिफ्ट कर दिया गया. उस जेल में देश के पहले राष्ट्रपति रहे डा. राजेंद्र प्रसाद समेत कई स्वतंत्रता सेनानी बंदी के रूप में रहे.

ईको पार्क

पटना के लोगों और पर्यटकों की तफरीह के लिए बना नयानवेला ईको पार्क पटना का नया नगीना है. पटना के बेली रोड पर पुनाईचक इलाके में साल 2011 के अक्तूबर महीने में ईको पार्क पर्यटकों के लिए खोला गया. इसे राजधानी वाटिका भी कहा जाता है. पार्क में बनी  झील में नौका विहार का आनंद लिया जा सकता है. इस में बच्चों के खेलने और मनोरंजन का खासा इंतजाम किया गया है, वहीं बड़ों के लिए आधुनिक मशीनों से लैस जिम भी बनाया गया है.

पटना म्यूजियम

पटना म्यूजियम देशविदेश के पर्यटकों को हमेशा ही लुभाता रहा है. पटना के लोग छुट्टी का दिन यहां बिताना पसंद करते हैं. पटना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर बने इस म्यूजियम ने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखा है. प्राकृतिक कक्ष में जीवजंतुओं के पुतलों को रखा गया है जबकि वास्तुकला कक्ष में खुदाई से मिली मूर्तियों को रखा गया है, जिस में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी की मूर्ति भी शामिल है.

संजय गांधी जैविक उद्यान

पटना का यह चिडि़याघर शहर वालों का पसंदीदा पिकनिक स्पौट है. रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर और एअरपोर्ट से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने चिडि़याघर में विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी और औषधीय पौधे हैं जो इस की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. चिल्ड्रैन रेलगाड़ी में सैर करने का लुत्फ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उठाते हैं. उद्यान में विकसित  झील में नौका विहार का भी आनंद लिया जा सकता है. सांपघर और मछलीघर भी पर्यटकों को लुभाते हैं.

कुम्हरार

प्राचीन पटना का भग्नावशेष यहीं मिला था. पटना जंक्शन से 5 किलोमीटर पूरब में पुरानी बाईपास रोड पर स्थित कुम्हरार प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है और यह पिकनिक स्पौट और लवर्स प्वाइंट के रूप में मशहूर हो चुका है.

गोलघर

गंगा नदी के किनारे बना गोलघर ऐतिहासिक और स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है. 1770 के भीषण अकाल के बाद साल 1786 में अंगरेजों ने इसे अनाज रखने के लिए बनाया था. 29 मीटर ऊंचे इस गोलाकार भवन के ऊपर चढ़ने के लिए 100 से ज्यादा सीढि़यां हैं. इस के शिखर से पटना शहर का नजारा लिया जा सकता है. इन सब के अलावा जलान म्यूजियम, अगमकुआं, मनेर का मकबरा, सदाकत आश्रम, बिहार विद्यापीठ, गांधी संग्रहालय, तख्त हरमंदिर, शहीद स्मारक, गांधी मैदान, तारामंडल आदि भी पटना के नामचीन पर्यटन स्थल हैं.

अन्य दर्शनीय स्थल

राजगीर

यह स्थान सड़क मार्ग से पटना से 102 किलो-मीटर की दूरी पर है और गया एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां वेणुवन, मनियार मठ, पिप्पल नामक पत्थर का महल है, जिसे पहरा देने का भवन या मचान भी कहते हैं. वैभारगिरी पहाड़ी के दक्षिण छोर पर सोनभद्र गुफा, जरासंध का बैठकखाना, स्वर्ण भंडार, बिंबिसार का कारागार, जीवक आम्रवन और पत्थरों की उम्दा कारीगिरी से बनाई गई सप्तपर्णी गुफा की कलात्मकता देखते ही बनती है.

पटना से 109 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में और नालंदा से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैनियों का महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थल है. पहाड़ पर बना विश्व शांति स्तूप स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूनों में से एक है. रोपवे के जरिए पर्यटक वहां आसानी से पहुंच सकते हैं.

रेलमार्ग से हावड़ा-पटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीक स्टेशन है. पटना के मीठापुर बस अड्डे से हरेक घंटे गया के लिए बस जाती है.

वैशाली

यहां कई ऐतिहासिक और कलात्मक इमारतें हैं. राजा विशाल का किला, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप समेत कई इमारतें अपने दिनों की गवाह बनी आज भी सीना ताने खड़ी हैं. वैशाली के कोल्हुआ गांव में स्थित अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग ‘भीमसेन की लाठी’ भी कहते हैं. स्तंभ के ऊपर घंटाघर है और उस के ऊपर उत्तर की ओर मुंह किए हुए समूचे सिंह की मूर्ति बनी हुई है. यह अशोक स्तंभ आज भी भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिह्न बना हुआ है. स्तंभ से 50 फुट की दूरी पर एक तालाब है जिस के पास गोलाकार बौद्ध स्तूप बना हुआ है, जिस के ऊपर के भवन में बुद्ध की मूर्ति है.

वैशाली सड़क मार्ग से पटना एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर और पटना रेलवे स्टेशन से 54 किलोमीटर की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और मुजफ्फरपुर है. गया एअरपोर्ट से वैशाली की दूरी 169 किलोमीटर है.

नालंदा

शिक्षा और ज्ञानविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में नालंदा मशहूर था. नालंदा महाविहार या महाविश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते थे. इस की स्थापना 5वीं सदी ईसापूर्व में कुमारगुप्त प्रथम ने की थी और हर्षवर्द्धन के शासन में यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हो गया था.

सम्राट अशोक ने यहां मठ की स्थापना की थी. जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने यहां काफी समय गुजारा और प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं हुआ था. इस में 10 हजार छात्रों के पढ़ने की व्यवस्था थी और उन्हें पढ़ाने के लिए 1,500 शिक्षक दिनरात लगे रहते थे. यहां बुद्धकाल की बनी हुई धातु, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं.

बोधगया

ईसा से 500 साल पहले बोधगया में ही गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया निरंजन नदी के किनारे बसा हुआ है. इस के आसपास कई तिब्बती मठ हैं. वटवृक्ष के नजदीक जापान, चीन, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड द्वारा बनाए गए विशाल बौद्ध स्तूप पर्यटकों को लुभाते हैं.

बिहार में सब से ज्यादा विदेशी पर्यटक बोधगया ही आते हैं. गया शहर में भी कई पर्यटन स्थल हैं. पटना से 94 किलोमीटर की दूरी पर गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. बराबर की गुफाओं में मौर्यकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.

बोधगया सड़कमार्ग से पटना एअरपोर्ट से 109 किलोमीटर की दूरी पर है. गया एअरपोर्ट से इस की दूरी 8 किलोमीटर है. दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग पर गया रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है.

सासाराम

सासाराम में शेरशाह सूरी और उन के पिता हसन खान सूरी का मकबरा है, जो भारत में पछान स्थापत्य कला का खूबसूरत नजारा पेश करता है. यहां विश्व प्रसिद्ध कैमूर की पहाडि़यां भी हैं.

दियारा

कहीं रेत पर दौड़ते भागते प्रेमी प्रेमिकाएं दुनिया भुलाए, कहीं किनारे बैठा प्रेमी जोड़ा कहीं पानी में छई छपा छई.. करते मुहब्बत के दीवाने, कहीं देहाती भोजन का लुत्फ उठाता परिवार. गंगा के दियारा इलाके में जमा हो कर लोग एकांत का आनंद लेने लगे तो सरकार का ध्यान उस ओर गया. अब दियारा इलाके को पर्यटन स्पौट के रूप में विकसित किया जा रहा है. गंगा पर्यटन के नाम से इस योजना को हकीकत के धरातल पर उतारने की कवायद शुरू हो चुकी है.

पटना और हाजीपुर के बीच गंगा नदी के 2 धाराओं में बंट जाने से गंगा के बीच करीब 4 वर्ग किलोमीटर का इलाका टापू की शक्ल ले चुका है. उस टापू पर युवा लड़के और लड़कियां मौजमस्ती करने की  नीयत से नाव के सहारे पहुंच जाते हैं और शाम ढलने से पहले वहां वापस चले जाते हैं. धीरे धीरे कुछ लोगों ने वहां अपने परिवार के साथ जाना शुरू किया. दियारा में रेत और पानी के बीच समुद्रतट जैसा नजारा और मजा मिलता है.

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