यह शोर तो बंद होना ही चाहिए

सुबह सुबह अजान से नींद खुल जाने पर गायक सोनू निगम ने ट्वीट कर हंगामा सा खड़ा कर दिया है. जहां बहुत से लोग इसे मुसलिमों के प्रति बढ़ते भेदभाव की शक्ल दे रहे हैं, वहीं दूसरे हर तरह के धार्मिक शोर को बंद कराने का अवसर ढूंढ़ने लगे हैं.

अजान, कीर्तन, जागरण, भजन आदि से आम आदमी को भरमाए रखने की धर्मों की पुरानी आदत है. वे नहीं चाहते कि उन के भक्त जो अज्ञानता, अंधविश्वासों, चमत्कारों की चाह में धर्म के नाम पर अपनी जेबें भी ढीली करते

रहते हैं और मरनेमारने को भी तैयार रहते हैं, बिदक जाएं. इसीलिए सुबहशाम मंदिरों में घंटियां बजाई जाती हैं, गुरुद्वारों से अरदास की आवाजें आती हैं और मसजिदों से अजान की.

सोनू निगम ने सही कहा है कि जब लाउडस्पीकर नहीं थे तब तक जो चाहे चीख कर कुछ भी कर ले, पर ईश्वर की नहीं आदमी की खोज लाउडस्पीकर का इस्तेमाल कर धर्म का प्रचार करना ऐन चुनावों से पहले सड़कों पर नेताओं को वोट देने की गुहार से भी बुरा है.

शांति का हक हरेक को है और यह जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है. किसी भी तरह का शोर चाहे किसी बरात का हो, शामियाने में बज रहे गाने हों या नेताजी का भाषण केवल उन तक पहुंचे जो उस परिधि में हैं जहां उन के भक्त या समर्थक हैं. बाहर जाने वाले शोर को तो बंद करना ही होगा.

सरकार ने पहले ही गाडि़यों में प्रैशर हौर्न लगाने पर प्रतिबंध लगा रखा है. काफी शहरों में लोगों ने अब आमतौर पर हौर्न बजाना बंद कर दिया है. मंत्रियों की गाडि़यों से सायरन तो बहुत पहले से बंद हो चुके हैं. स्कूलों तक को सामूहिक परेड के समय धीमी आवाज में ही लाउडस्पीकर चलाने की अनुमति है. पार्टी में आप इतने जोर से म्यूजिक बजाएं कि पड़ोसी हल्ला करें, तो आफत आ जाती है.

ऐसे में धर्म को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती. धर्म के नाम पर वैसे ही बहुत कुछ अनाचार होता है. कम से कम शांति की हत्या तो न की जाए. माना धर्मों को शांति तो क्या लोगों की हत्याओं पर शर्म नहीं आती पर अंधविश्वासी धर्म के बिचौलिए रात भर या सुबह सुबह तो जीतेजी न मारें.

बैंकों को भा नहीं रही यह पौलिसी

इंश्योरैंस कंपनी की रिवर्स मौर्टगेज की स्कीम का फायदा लेने के लिए एक 80 वर्षीय बुजुर्ग दरदर भटकता हुआ सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंचा. रिवर्स मौर्टगेज में इंश्योरैंस कंपनी एक संपत्ति पहले रख कर पौलिसी लेने वाले को हर माह कुछ न कुछ देती रहती है और संपत्ति कंपनी को पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद मिलती है.

यह पौलिसी वृद्ध अकेलों के लिए बहुत अच्छी है, जो अपना मकान किसे दे कर जाएं यह नहीं जानते और मकान में संपत्ति फंसी होने के कारण हाथ में पैसा भी नहीं रख पाते.

शायद यह पौलिसी बैंकों और इंश्योरैंस कंपनियों को भा नहीं रही, क्योंकि इस में पौलिसीधारक की मृत्यु के बाद बहुत से पेच खड़े हो जाते होंगे. ये बुजुर्ग जब सर्वोच्च न्यायाधीश के सामने उपस्थित हुए तो उन्होंने भी कुछ खास नहीं कहा. हां, इतना आश्चर्य अवश्य जताया कि वृद्ध वित्त मंत्री से कैसे मिल लिए जबकि वे सर्वोच्च न्यायाधीश होने के बावजूद वित्त मंत्री से मुलाकात नहीं कर पाते.

इस देश में दिक्कत यही है कि हर अफसर अपने अधिकारों का एक जाल बुन लेता है जिसे पार कर अधिकारी तक पहुंचना कठिन हो जाता है. औरतों को तो और ज्यादा तकलीफ होती है और हर सरकारी दफ्तर में बीसियों औरतें हवाइयां उड़े चेहरे लिए खड़ी दिख जाती हैं, जो फाइलों से घिरे बाबुओं को घेर नहीं पातीं. आज जब अकेली औरतों की संख्या बढ़ रही है, उन्हें खुद ही सरकारी दफ्तरों, बैंकों, अदालतों, जेलों, निजी दफ्तरों, बिजली दफ्तरों, कर अफसरों के पास जाना पड़ता है.

जैसे वृद्ध के साथ लिहाज नहीं किया जाता वैसे ही औरतों को भी बारबार न सुनना पड़ता है और बेटा या बेटी साथ न हो तो वे बहुत तकलीफ पाती हैं. आमतौर पर अब औरतों को किसी भी जगह प्राथमिकता कम ही मिलती है. पुरुष खार खाए रहते हैं कि जो भी थोड़ीबहुत छूट औरतों को औरत होने के नाते मिल जाती है वह अन्याय है.

पुरुषों के मन में यह भी कहीं दबे रहता है कि औरतों को घरों में रह कर अपने हाल पर संतुष्ट रहना चाहिए और यदि किसी जुल्म का सामना करना पड़ रहा है, तो पौराणिक कहानियों की तरह अहिल्या बन कर दंड भोगना चाहिए चाहे दोषी कोई भी हो. वे आज भी इसी मानसिकता में रहते हैं कि स्त्री तो पिता, पति या बेटे के संरक्षण में रहे वरना उस का जीना ही बेकार है.

जो लोग महान संस्कृति का ढोल पीटते रहते हैं उन्हें एहसास होना चाहिए कि हमारे यहां वृद्धों और औरतों के साथ इस तरह का व्यवहार होता है. हमारी संस्कृति

में वृद्ध वानप्रस्थ्य लेते हैं, औरतें सती होती हैं, आज भी यही हो रहा है, बस दंड का स्वरूप बदल गया है.

समधी समधिन नहीं, बनें प्यारे दोस्त

रमाकांतजी और उन की पत्नी खाना खा कर उठे ही थे कि  फोन घनघना उठा. फोन उन के इंदौर शहर में ही रहने वाले समधीजी का था. वे बड़े घबराए स्वर में कह रहे थे, ‘‘भाई साहब नमिता को पेट में बहुत दर्द हो रहा है. मैं अपोलो हौस्पिटल ले कर जा रहा हूं.’’

रमाकांतजी ने झट गाड़ी निकाली और सपत्नीक हौस्पिटल पहुंच गए. उन्हें देख कर उन के समधी गुप्ताजी की जान में जान आई.

‘‘नमिताजी को हर्निया का दर्द है. तुरंत औपरेशन करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने जब गुप्ताजी को बताया तो वे घबरा गए, परंतु समधी रमाकांत और उन की पत्नी ने उन्हें हिम्मत दी, तो वे थोड़ा संभले और फिर औपरेशन करवाने के लिए तुरंत तैयार हो गए. 3 दिन हौस्पिटल में रहने के दौरान रमाकांत दंपती ने नमिता की जीजान से सेवा की. 3 दिन बाद हौस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर घर आते समय रमाकांत ने गाड़ी अपने घर की ओर मोड़ दी.

नमिताजी ने जब समधी के घर जाने से मना किया तो रमाकांतजी की पत्नी बोलीं, ‘‘बहनजी, इसे समधियाना नहीं अपनी बेटी का घर कहिए. आप की बेटी और दामाद मुंबई में हैं. उन्हें आने में वक्त लगेगा. आप मेरी बहू की मां हैं, इसलिए जब तक आप ठीक नहीं हो जातीं आप और भाई साहब यहीं रहेंगे.’’

रमाकांत दंपती के अनुरोध पर गुप्ता दंपती कुछ न कह सके. 2 दिन बाद उन की बेटी और दामाद भी आ गए. फिर भी सभी एकसाथ एक ही घर में रहे. 15 दिन तक अपनी बेटी के ससुराल में सब के साथ रहने के बाद वे जबरदस्ती अपने घर गईं. परंतु इस दौरान समधी के यहां मिले प्यार, सम्मान और देखभाल की प्रशंसा करते गुप्ता दंपती आज भी नहीं थकते हैं.

सभी सम्मान के हकदार

भारतीय समाज पुरुषप्रधान है. अत: पुरातनकाल से ही लड़की के मातापिता को लड़के के मातापिता की अपेक्षा कमतर माना जाता रहा है, पर अब मान्यताएं बदल रही हैं. लड़कियों का पालनपोषण भी मातापिता लड़कों की ही तरह कर रहे हैं और आज बेटियां समाज में अनेक उच्च पदों पर आसीन हैं. अपने पति के बराबर और कई बार उस से भी अधिक वेतन पाने वाली लड़की किसी भी कीमत में अपने मातापिता को कमतर नहीं देखना चाहती.

आज अधिकतर दंपतियों की 1 या 2 संतानें होती हैं. बेटों की तरह आज बेटियां भी ताउम्र अपने मातापिता की जिम्मेदारी उठाना चाहती हैं. आत्मनिर्भर होने के बाद उन के लिए भी कुछ करना चाहती हैं. बेटी या बेटे के विवाह के समय हमें नए रिश्तेदार मिलते हैं, जो वास्तव में हमारे समान ही सम्मान के हकदार होते हैं. यह हमारा दायित्व है कि अहंकारी, नकचढ़े और स्वार्थी समधीसमधिन बनने के बजाय हम अपने इस नए रिश्ते को प्यार और मित्रतारूपी भाव से सींच कर प्रिय मित्र और सुलझे रिश्तेदार बनें. फिर देखिए कैसे यह रिश्ता आप के लिए खुशनुमा और बेशकीमती बनता है.

जिन परिवारों में बहू के मातापिता को उचित सम्मान प्राप्त नहीं होता, वहां बहू भी अपने सासससुर को समुचित मान नहीं दे पाती. रश्मि की मां जब भी अपनी बेटी से मिलने जाती हैं, तो उस की सास पूरे घर का काम छोड़ कर आराम करने लगती हैं या घूमने चल देती हैं. मांबेटी पूरा दिन घर के काम समाप्त करने में ही लगी रहती हैं. आचारव्यवहार में भी उस की सास यही जताती हैं कि मानो बेटी की मां हो कर रश्मि की मां ने कोई गुनाह किया है जबकि उन की बेटी रश्मि ही अपनी ससुराल का सारा काम संभालती है. इसलिए जब उस की ननदें अपने मायके आती हैं, तो रश्मि भी बीमार हो जाती है. वह भी घर का पूरा काम छोड़ कर बिस्तर पकड़ लेती है.

रश्मि कहती है, ‘‘जब मेरी मां को मेरे घर आ कर काम करना पड़ता है, तो फिर इन की बेटियां क्यों आराम से रहें?’’

आमतौर पर लड़के वाले स्वयं को लड़की के मातापिता से श्रेष्ठ समझते हैं, परंतु कई बार इस के उलट भी देखने में आता है. दीप्ति की बेटी की सास ग्रामीण परिवेश की कम पढ़ीलिखी महिला हैं. इसलिए जब पहली बार उन की समधिन अपनी बहू के मायके आईं, तो दीप्ति ने उन्हें हर बात में यह जताने की कोशिश की कि वे उन से अधिक स्टैंडर्ड, मौडर्न और शिक्षित हैं.

समधिन की पारखी नजरें सब समझ रही थीं, पर वे शांत रहीं. 2 दिन बाद जब वे जाने लगीं तो बोलीं, ‘‘बहनजी, मैं भले कम पढ़ीलिखी और गांव की हूं पर मैं ने अपने बेटे को इस लायक बनाया कि आप ने उसे अपनी बेटी दे कर दामाद के रूप में स्वीकार किया है.’’

दीप्ति खिसिया कर रह गईं. इस प्रकार का व्यवहार हमेशा के लिए मन में कटुता भर देता है और गाहेबगाहे आप की बेटी को ही इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. इसलिए आप की बेटी या बेटे के ससुराल वाले कैसे भी हों, हैं तो आप के दामाद या बहू के ही मातापिता, तो फिर उन के प्रति सदैव आदर का भाव रखें और संबंधों को सौहार्दपूर्ण बनाने की कोशिश करें.

जब भी आप के समधी घर आएं आप उन्हें वही मान दें, जो आप को उन के घर जाने पर मिलता है. कभी भी किसी भी अवसर पर उन्हें कमतर दिखाने की कोशिश न करें. सदैव याद रखें कि  बहू के मातापिता के प्रति किया गया आप का व्यवहार अपरोक्ष रूप से आप की बहू को प्रभावित करेगा.

मेरी सहेली कांता जब भी अपने लिए कुछ खरीदती हैं, तो अपनी समधिन के लिए भी खरीदती हैं. इस से बहू गरिमा के मन में अपनी सास के लिए इज्जत और अधिक बढ़ जाती है.

गरिमा कहती है, ‘‘मेरी सास मेरी मां के साथ बिलकुल वैसा ही व्यवहार करती हैं जैसा एक बड़ी बहन अपनी छोटी बहन के साथ करती है. उन के व्यवहार में कभी बड़प्पन या अहंकार नहीं झलकता. भला ऐसी सास को कौन प्यार नहीं करेगा.’’

उपहार लें तो दें भी

भारतीय समाज में अनेक रस्में और रिवाज ऐसे हैं, जिन में लड़की वाले को देना ही होता है. मसलन, विवाह बाद साल भर तक समस्त त्योहार चलाने की रस्म, गर्भावस्था के 7वें माह गोद भराई, संतानोत्पत्ति पर मुंडन संस्कार में वस्त्र व अन्य सामान आदि देने जैसी अनेक परंपराएं हैं. आप केवल लेने का भाव ही न रख कर उन के लिए भी उतना ही देने का भाव रखें. इस से कभी संबंधों में कटुता नहीं आ सकती.

अमिता के सासससुर बेहद सुलझे हुए हैं. जब उस के बेटे के मुंडन संस्कार में उस के मायके से ससुराल के हर व्यक्ति के लिए कपड़े और मिठाई आई, तो उस की सास ने भी उस के मायके के प्रत्येक सदस्य के लिए कपड़े और मिठाई भिजवाई, साथ ही यह भी कहा कि हमारे यहां भी तो नाती हुआ है. यह आप के लिए हमारी खुशी और प्यार है, जिसे आप को स्वीकारना ही होगा,’’ अमिता अपनी सास के इस कदम का गुणगान करते नहीं थकती.

मेरी सहेली अंजू जब अपने बेटेबहू के साथ सिंगापुर घूमने गईं, तो जबरदस्ती अपने समधीसमधिन को भी ले गईं. अपने सासससुर के साथसाथ अपने मातापिता को भी विदेश घुमा कर बहू कृतिका अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही थी.

अंजू कहती हैं, ‘‘समधियों के साथ रहने से हमें एक अच्छी कंपनी तो मिलती ही है, साथ ही बहू को भी अपने मातापिता के लिए कुछ कर पाने का संतोष रहता है. मेरे बेटे की तरह उस ने भी तो अपने मातापिता के लिए कुछ सपने बुने होंगे. मेरा बेटा यदि हमारे लिए करना चाहता है, तो बहू भी अपने मातापिता के लिए क्यों न करे. उस के मातापिता ने भी तो उसे बनाने में हमारी तरह ही पैसा और परिश्रम खर्च किया है. ऐसे में अपनी बहू की इच्छाओं का मान रखना हमारा प्रथम दायित्व बनता है.’’

आजकल पतिपत्नी दोनों कामकाजी होते हैं. ऐसे में सब से कठिन होता है बच्चों का पालनपोषण. गरिमा कहती है, ‘‘मेरे ससुर और पापा यानी 2 समधियों ने मिल कर इस समस्या का बेहतरीन हल निकाला. जब मेरी बेटी हुई तो मम्मीजी ने उसे क्रैच भेजने से साफ मना कर दिया कि मेरे होते हुए मेरी पोती नौकरों के भरोसे नहीं पलेगी. वे और पापाजी हमारे पास आ गए. जब उन्हें किसी काम से जाना होता था, तो उस अवधि में मेरे मम्मीपापा आ जाते थे. मेरी बेटी आज 5 साल की है पर दादीदादा, नानानानी के प्यार के तले उस ने जो परवरिश पाई है वह मैं कभी भी नहीं दे सकती थी. चारों ने मिल कर हमारी समस्या को चुटकियों में सुलझा दिया.’’

बेटी के मातापिता का भी यह दायित्व बनता है कि वे अपनी बेटी को पति के साथसाथ ससुराल के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलना सिखाएं. बेटी को कोई भी शिक्षा देते समय ध्यान रखें कि आप के घर में भी बहू है और वह भी किसी की बेटी है.

श्रुति जब अपनी बेटी के विवाह के बाद पहली बार अपनी समधिन से मिलीं तो बोलीं, ‘‘भाभीजी, आप शुरू से ही बच्चों के पास रहने जाती रहिएगा ताकि इन्हें आप के साथ रहने की आदत रहे. अकसर लोग शुरू में तो बच्चों के पास जाते नहीं और फिर जब भविष्य में उन के पास जा कर कुछ दिन रहना चाहते हैं, तो बच्चों को अकेले रहने की आदत हो चुकी होती है, फिर वे मातापिता को अपने साथ ऐडजस्ट नहीं कर पाते.’’

श्रुति की समधिन आज भी कहती हैं, ‘‘मैं ने ऐसी पहली मां देखीं जिन्होंने अपनी बेटी को इतनी अच्छी सीख दी.’’

आप को अपने समधी की विवशता को भी समझना चाहिए. जैसाकि श्रीप्रकाशजी के साथ हुआ. वे जब आगरा अपने कुछ दोस्तों के साथ घूमने गए, तो अपने बेटे की ससुराल भी पहुंच गए. ससुराल में बहू के वृद्ध मातापिता ही थे. उन से जो बन पड़ा उन्होंने किया, परंतु श्रीप्रकाशजी की अपेक्षाओं पर वे खरे नहीं उतर पाए. उन्होंने घर जा कर बहू के मातापिता को खूब भलाबुरा कहा, ‘‘मैं अपने 4 दोस्तों को बड़े शौक से ले कर गया था. न ढंग का नाश्ता, न खातिरदारी, बस चायबिस्कुट में टरका दिया.’’

जबकि वे अचानक बिना पूर्व सूचना के पहुंच गए थे. ऐसे में उन के समधीसमधिन यथासंभव जो कर सके किया. आप को अपने रिश्तेदारों की विवशता को समझना चाहिए. ऐसे में जब भी आप उन के घर जाएं अपने साथ ही नाश्ता आदि का इंतजाम कर के ले जाएं ताकि आप के जाने से परेशानी की जगह उन्हें मदद हो. आप को उन की इज्जत अपनी इज्जत समझनी चाहिए.         

ध्यान रखने योग्य बातें

– समधी चाहे दूर रहते हों या एक ही शहर में, कभी आप उन्हें बुलाएं और कभी आप उन के यहां जाएं. आपस में मिलतेजुलते रहने से प्रेम और सौहार्द बना रहता है.

– उन के आने पर उचित मानसम्मान और विनम्र व्यवहार करें ताकि वे दोबारा भी आने का साहस कर सकें.

– उन के आने पर बहू या दामाद की कमियों या बुराइयों का ही गुणगान न करें, बल्कि जितना हो सके उतनी तारीफ ही करें ताकि बच्चे के मातापिता आश्वस्त हो सकें.

– बहू के मातापिता के आने पर बहू को उन के साथ वक्त बिताने का अवसर दें. रीमा जब विदेश से अपने देवर की शादी में

1 सप्ताह के लिए आई, तो उस की सास ने उस के मातापिता को उस के कमरे में ही ठहराया ताकि वह अपने मातापिता के साथ वक्त बिता सके.

– जब भी आप जाएं अपने बजट के अनुसार छोटा मोटा तोहफा अवश्य ले जाएं.

– यदि आप के समधी अकेले रहते हैं, तो उन के काम में हाथ बंटाएं और भोजन आदि में अनावश्यक तीमारदारी न करवाएं.

– मिलने पर भूत में हुई किसी अप्रिय घटना का जिक्र कर के ताना न मारें और न ही विवाह में हुई भूलचूक को दोहराएं.

बरकरार रहेगी आपकी त्वचा की खूबसूरती

कभी गर्मी कभी बारिश, कभी तेज धूप से सामना तो कभी चिल्ड एसी. दिनभर में इतने बदलावों के बाद आपकी त्वचा प्यार भरी देखभाल चाहती है. और फिर आप भी तो अपनी खूबसूरती बरकरार रखना चाहती हैं.

आज हम आपको कुछ आसान टिप्स के बारे में बताएंगे जिनके जरिए आपकी त्वचा की दमक बरकरार रहेगी.

कम से कम मेकअप

जितना हो सके मेकअप का कम इस्तेमाल करें. गर्मियों में पीसना और धूल त्वचा पर बुरा असल डालते हैं ऐसे में ज्यादा मेकअप के प्रयोग से त्वचा को खासा नुकसान होता है.

स्किन एक्सफोलिएट

सिर्फ फेस नहीं पूरी बॉडी को एक्सफोलिएट करें. सुंदर त्वचा का बेसिक रूल है एक्सफोलिएट करना. इससे स्किन की डेड सेल्स हट जाती हैं. स्किन को एक्सफोलिएट करते वक्त एक्सफोलिएटर को क्लोकवाइज हल्के हाथों से अप्लाई करें. इसके लिए बॉडी स्क्रबर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. एक्सफोलिएट करने के बाद ताजे पानी से शॉवर लें. दमकती त्वचा के लिए सप्ताह में 3 बार ऐसा जरूर करें.

लोशन लगाएं

रात को सोने से पहले ऑइल फ्री लोशन लगाना न भूलें. सुबह नहाने के बाद तो यह मस्ट है ही. इसके लिए लाइट और जल्दी अब्जॉर्ब होने वाला लोशन इस्तेमाल करें. आप फ्रूटी लोशन ट्राय कर सकती हैं.

सनस्क्रीन लगाएं

यह तो आपको भूलना ही नहीं है. धूप में जाने से पहले अच्छी क्वालिटी का सनस्क्रीन अप्लाई करें. यह ध्यान रखें कि यह आपकी स्किन के हिसाब से होना चाहिए. मसलन, अगर आपकी स्किन ऑइली है तो भूलकर भी ऑइल बेस्ड सनस्क्रीन न लगाएं.

ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं

गर्मियों में पानी ही आपका बेस्टफ्रेंड होना चाहिए. अगर आप बॉडी की जरूरत के मुताबिक पानी पिएंगी तो आपको हेल्दी स्किन और हेल्दी बॉडी दोनों मिलेंगी. हर रोज कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पिएं.

पैरों की देखभाल

पेडीक्योर जरूर करें. पार्लर न जाना चाहें तो घर पर ही पेडीक्योर कर डेड स्किन हटा लें. यह सैंडल का सीजन है. तो खूबसूरत सैंडल में डल स्किन वाले पैर नहीं अच्छे लगेंगे. ऐसे में पैरों को स्क्रब और मॉइश्चराइज करती रहें.

सनग्लास

ये आपकी आंखों को ही आराम नहीं देते बल्कि तेज धूप में आपकी आंखों की नाजुक स्किन को झुलसने से भी बचाते हैं. साथ ही डार्क सर्कल की समस्या को दूर रखते हैं.

गर्मियों में बड़ी समस्या है आपकी जूती की दुर्गंध

गर्मियों का मौसम आते ही पसीने की परेशानी शुरू हो जाती है. इसके लिए आप डिओ से लेकर परफ्यूम तक हर चीज की मदद लेती हैं. पर इस गर्मी के मौसम की एक और बड़ी समस्या है जूते से आने वाली दुर्गंध. ऑफिस या घर में जूतों से पैर बाहर निकालते ही आपके आसपास के लोग नाक बंद करने लगते हैं. कई बार इसके चलते आपको शर्मिंदगी भी उठानी पड़ जाती है.

ये बात आपको शायद ही मालूम हो कि पैरों से आने वाली बदबू को ब्रोमिहाइड्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है. सबके तो नहीं पर आमतौर पर ये समस्या उन लोगों को होती है जिनके पैरों से पसीना सूख नहीं पाता है. आप सभी की त्वचा पर बैक्टीरिया तो रहते हैं और जब यह पसीना इन बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो पैरों से बदबू आने लग जाती है.

बाजार में पैरों की बदबू को दूर करने का कोई बहुत कारगर उपाय नहीं है लेकिन बहुत से ऐसे घरेलू उपाय है, जिन्हें आजमाकर आप इस समस्या को दूर कर सकती हैं…

1. बेकिंग सोडा

सोडियम कार्बोनेट को ही साधरण शब्दों में बेकिंग सोडा के नाम से जाना जाता है. पैरों से आने वाली बदबू को दूर करने का यह एक बेहद कारगर और आसान उपाय है. यह पसीने के pH लेवल को सामान्य रखता है और बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में कारगर होता है. इसका इस्तेमाल करने के लिए हल्के कुनकुने पानी में बेकिंग सोडा मिला लें और 15 से 20 मिनट तक पैर पानी में ही डुबोए रखें. कुछ हफ्तों तक ये प्रक्रिया दोहराने से आपको फायदा होगा.

2. लैवेंडर ऑयल

लैवेंडर ऑयल न केवल अच्छी खूशबू देता है बल्कि यह बैक्टीरिया को मारने में भी असरदार है. इस तेल में एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं जो पैरों की बदबू को दूर करने में बहुत फायदेमंद रहते हैं. इसके लिए सबसे पहले हल्के गर्म पानी में कुछ बूंदें लैवेंडर ऑयल की डालकर पैरों को उसमें कुछ देर के लिए डुबोकर रखें. दिन में कम से कम दो बार ऐसा करना फायदेमंद रहेगा.

3. फिटकरी

फिटकरी कसैली होती है और इसमें एंटी-सेप्ट‍िक गुण भी पाया जाता है. यह बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकती है. एक चम्मच फिटकरी पाउडर को, एक मग पानी में डालकर उससे पैर धोएं. कुछ दिनों में बदबू की समस्या दूर हो जाएगी.

4. रोड़ा नमक

रोड़ा नमक भी पैरों की इस समस्या को दूर करने में बहुत कारगर है. यह पसीने से होने वाले संक्रमण और बैटीरिया को दूर करने में मददगार होता है. इसका इस्तेमाल भी फिटकरी की ही तरह किया जा सकता है.

5. अदरक और सिरका

आप चाहें तो पानी में सामान्य सिरका मिलाकर उससे भी पैर धो सकते हैं या फिर अदरक के रस को पैर पर मलकर और बाद में कुनकुने पानी से पैर धो भी धो सकते हैं. ऐसे अच्छी तरह से पैर धोने से पैरों की बदबू चली जाती है.

6. पैर रखें साफ

सबसे आखिर में मगर सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जूते पहनने से पहले आप यह सुनिश्च‍ित कर लें कि आपके पैर साफ हों. क्योंकि ऐसा पाया गया कि गंदे पैर जूते पहनने से ज्यादा बदबू आती है.

कौन कहता है मां ममता की मूरत है?

कहते हैं कि हर मां ममता की मूरत होती है लेकिन ऐसा फिल्मों में भी हमेशा हो ये जरुरी नहीं और असल जिंदगी में भी ऐसा सच में हो, ये भी हर बार और सबके लिए जरुरी नहीं है. इन बातों को सही साबित करने के लिए हॉलीवुड फिल्मों की मांओं के ये किरदार काफी हैं.

आइये जानते हैं हॉलीवुड फिल्मों की उन मांओं के बारे में जिन्हें ममता की मूरत कहना तो दूर, मां कहना भी सही नहीं होगा.

पाइपर लॉरी

साल 1976 में आई हॉरर फिल्म ‘कैरी’ में उसकी मां पाइपर लॉरी का किरदार एक ऐसी मां की छवि को उजागर करता है जो अपने पागलपन के लिए अपनी बच्ची का इस्तेमाल करने से भी नहीं हिचकिचाती.

गोथैल

फैरी टेल फिल्म ‘टैंग्लड’ में रिपंजल की नकली मां का किरदार भी कुछ ऐसा ही था. ताउम्र जवां दिखने के लिए गोथैल नाम की चुड़ैल रिपंजल को कैद करके रखती है ताकि वह उसके जादुई बालों का जादू हमेशा अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती रहे.

चार्लीज थेरान

क्या होगा अगर आपको पता चले कि दुनिया खत्म होने वाली है. शायद आप हर पल अपनी फैमिली के साथ बिताना चाहेंगे. हॉलीवुड फिल्म ‘द रोड’ में चार्लीज थेरान ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया है जो इस मुसीबत के समय अपने बच्चे और पति को छोड़कर चली जाती है.

कैट ब्लैंचेट

सिंड्रेला परियों की कहानी में से एक ‘सिंड्रेला’ पर बनी फिल्म में कैट ब्लैंचेट ने सिंड्रेला की सौतेली मां का किरदार निभाया था. यह किरदार भी मां के ग्रे शेड को बयां करता है.

जेड

फिल्म हैंगओवर में जेड ने एक ऐसी मां का किरदार निभाया था जो अपने बेटे को तीन अंजान लोगों के पास इसलिए छोड़कर चली जाती है क्योंकि वह अपने काम में बहुत बिजी रहती है और अपने बच्चे को समय नहीं दे सकती या देना चाहती. क्या आप कभी ऐसा कर सकती हैं?

आपने देखा ‘3 इडियट्स’ के रीमेक का ट्रेलर

आठ साल पहले 2009 में बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान की फिल्म ‘3 इडियट्स’ ने अपनी रिलीज के साथ ही धुआंधार कमाई की और सफलता की एक नई कहानी लिखी. इसे भारत में ही नहीं दुनिया के दूसरे देशों में भी खूब सराहा गया था.

फिल्म ने कई मामलों में पुराने रिकॉर्ड को तोड़कर नए रिकॉर्ड बनाए. निर्देशक राजकुमार हिरानी की इस फिल्म ने दिलचस्प तरीके से भारत की शिक्षा व्यवस्था पर चोट करते हुए अपनी बात कही. फिल्म की कहानी इतनी रोचक थी जिससे दर्शकों ने खुद को जोड़ कर देखा.

राजकुमार हिरानी की यह फिल्म भारत की सफल फिल्मों में से एक है. इसकी सफलता और उसके फैन्स का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जल्द ही इसका रीमेक आने वाला है. वह भी भारत में नहीं बल्कि मैक्सिको में.

इस फिल्म के रीमेक का ट्रेलर भी बेहद पसंद किया जा रहा है. इस ट्रेलर को देखकर एक बार फिर आपके दिमाग में 3 इडियट्स की यादें ताजा हो जाएंगी. यह ट्रेलर काफी मनोरंजक है और इसमें हिंदी में बनी थ्री इडियट्स के काफी सीन देखना अपने आप में मजेदार अनुभव है.

इस रीमेक को मैक्सिकन निर्देशक कार्लोस बोलाडो ने बनाया है. फिल्म में अल्फांजो दोसाल, क्रिस्चियन वाज्क्वेज और जर्मन वाल्देज मुख्य भूमिकाओं में नजर आ रहे हैं. फिल्म में करीना कपूर वाला किरदार ऐक्ट्रेस मार्था हाइगारेडा ने निभाया है. मैक्सिकन में फिल्म का नाम ‘3 इडियोटास’ (3 idiotas) है.

मैक्सिकन में बनी इस फिल्म की झलक में वह सब कुछ है जो हिंदी भाषा में था. रैंचो का वायरस को यह समझाना कि वह पढ़ाते कैसे हैं, वायरस का रैंचो को घसीटते हुए क्लास में लेकर जाना, हॉस्टल में होने वाली मस्ती, तीन दोस्त और उनकी दिलचस्प हरकतें.

डिप्रेशन से बचने के लिए देखें फिल्‍म

3 इडियट्स पहली भारतीय फिल्म है जिसने चीन में 100 करोड़ का कारोबार किया था. चीन की कुछ यूनिवर्सिटी में डिप्रेशन से निपटने के लिए बॉलीवुड फिल्म 3 इडियट्स को देखने की भी सलाह दी जाती है.

मजा लीजिए इस ट्रेलर का-

अपनी शादी में कुछ ऐसे थे अभिनेत्रियों के अंदाज

बॉलीवुड एक्ट्रेस बिपाशा बसु ने शादी की पहली सालगिरह मनाई. बिपाशा ने एक्टर करन सिंह ग्रोवर से 30 अप्रैल, 2016 को शादी की थी. 2015 में फिल्म ‘अलोन’ में साथ काम करने के दौरान दोनों एक-दूसरे के करीब आए. एक साल की डेटिंग के बाद दोनों ने शादी करने के फैसला लिया. ये शादी करन की तीसरी तो बिपाशा की पहली शादी थी.

1. बिपाशा बसु-

बिपाशा बसु और करन सिंह ग्रोवर की शादी बंगाली रीति-रिवाज से हुई थी. बिपाशा ने सब्यसाची मुखर्जी का डिजाइनर लहंगा पहना था. वहीं, करन व्हाइट कलर के धोती-कुर्ते में नजर आए थे. ये बिपाशा की पहली और करन की तीसरी शादी थी. करन ने इससे पहले 2 दिसंबर, 2008 में टीवी एक्ट्रेस श्रद्धा निगम से शादी की थी. ये शादी 10 महीने ही चल पाई और दोनों में तलाक हो गया. इसके बाद उन्होंने एक्ट्रेस जेनिफर विंगेट से 9 अप्रैल, 2012 में शादी की थी. 2014 में जेनिफर ने खुद कहा था कि वे और करन अलग हो गए हैं.

2. ऐश्वर्या राय बच्चन-

ऐश्वर्या राय बच्चन और अभिषेक बच्चन (41 साल) की शादी को 10 साल पूरे हो गए हैं. दोनों की शादी 2007 में हुई थी. पहली मुलाकात 2000 में रिलीज फिल्म ‘ढाई अक्षर प्रेम के’ के सेट पर हुई थी. कहा जाता है कि फिल्म ‘गुरु’ (2007) के सेट पर अभिषेक ने ऐश्वर्या को प्रपोज किया था और ऐश ने तुरंत हां कर दिया था. ऐश ने शादी में डिजाइनर नीता लुल्ला द्वारा डिजाइन किया हुआ रेड और गोल्ड जरीवाला लहंगा पहना था. वहीं, अभिषेक ने अबू जानी और संदीप खोसला द्वारा डिजाइन की हुई व्हाइट कलर की शेरवानी पहनी थी. ऐश और अभिषेक की अब एक 6 साल की बेटी है आराध्या.

3. करीना कपूर-

करीना कपूर और सैफ अली खान की शादी को 5 साल हो गए हैं. दोनों की शादी 2012 में हुई थी. फिल्म ‘ओमकारा’ (2006) के बाद सैफ और करीना की नजदीकियां फिल्म ‘टशन’ (2008) की शूटिंग के दौरान बढ़ी. पांच साल की रिलेशनशिप के बाद दोनों (2012) शादी के बंधन में बंधे. शादी में करीना ने अपनी सास शर्मिला टैगोर का ट्रेडिशनल जोड़ा पहना था. वहीं, सैफ ने व्हाइट कलर का चूड़ीदार कुर्ता-पजामा पहना था. दोनों का 6 माह का एक बेटा है तैमूर.

4. शिल्पा शेट्टी-

शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा की शादी 2009 में हुई थी. दोनों की मुलाकात लंदन में हुई थी. लंदन में जहां शिल्पा रियलिटी शो बिग ब्रदर (2007) जीतने के बाद पॉपुलर हुईं, वहीं राज भी बिजनेस की दुनिया में फेमस थे. दोनों की मुलाकात शिल्पा के परफ्यूम ब्रांड एस-2 के प्रमोशन के दौरान हुई. राज ने शिल्पा के परफ्यूम ब्रांड को प्रमोट करने में मदद की. इसी दौरान दोनों ने डेटिंग करना शुरू किया और 2009 में शादी की. शादी में शिल्पा ने डिजाइनर तरुण तहिलियानी द्वारा डिजाइन किया हुआ रेड कलर का लहंगा पहना था. राज डिजाइनर शांतनु और निखिल द्वारा डिजाइन आउटफिट में नजर आए थे. दोनों की शादी को 8 साल हो गए हैं और उनका एक 5 साल का बेटा विआन है. बता दें कि शिल्पा की ये पहली और राज की दूसरी शादी थी. राज ने पहली शादी (2003) कविता से की थी.

5. काजोल-

काजोल और अजय देवगन ने 1999 में शादी की थी. दोनों की मुलाकात फिल्म ‘हलचल’ (1995) के सेट पर हुई थी. धीरे-धीरे दोनों में बातचीत शुरू हुई और फिर दोस्ती हो गई. दोस्ती प्यार में बदली और आखिरकार शादी. शादी देवगन हाउस में परंपरागत महाराष्ट्रियन स्टाइल में हुई थी. शादी में काजोल ने डिजाइनर मनीष मल्होत्रा का डिजाइन किया ग्रीन कलर का लहंगा पहना था. वहीं, अजय ने व्हाइट कलर की शेरवानी पहनी थी. दोनों की 14 साल की बेटी न्यासा और 7 साल का बेटा युग है.

6. प्रिति जिंटा-

प्रिति जिंटा ने यूएस की हाइड्रोइलेक्ट्रिसिटी पावर कंपनी NLine Energy में वाइस प्रेसिडेंट (फाइनेंशियल) जीन गुडइनफ से 2016 में शादी की. उनकी शादी लॉस एंजिलिस में एक प्राइवेट सेरेमनी में हुई थी. इसके बाद मुंबई में राजपुताना रीति-रिवाज से भी वेडिंग हुई. सूत्रों के मुताबिक, प्रिति ने करीब एक साल तक जीन गुडइनफ को डेट किया. दोनों की मुलाकात अमेरिका की एक ट्रिप पर हुई थी. शादी में प्रिति ने डिजाइनर मनीष मल्होत्रा द्वारा डिजाइन किया हुआ जोड़ा पहना था.

7. ट्विंकल खन्ना-

ट्विंकल की शादी अक्षय कुमार से 2001 को हुई थी. अक्षय ने शादी में व्हाइट शेरवानी और ट्विंकल ने साड़ी स्टाइल लहंगा पहना था. अक्षय ने गले में नोटों की माला भी पहनी थी. दोनों की पहली मुलाकात मुंबई में फिल्म फेयर मैगजीन की शूटिंग पर हुई. यहीं पर अक्षय ट्विंकल को अपना दिल दे बैठे थे. लेकिन दोनों का प्यार परवान चढ़ा फिल्म ‘इंटरनेशनल खिलाड़ी’ (1999) की शूटिंग के दौरान. दोनों का एक 14 साल का बेटा आरव और 5 साल की बेटी नितारा है.

8. दीया मिर्जा-

दीया मिर्जा और साहिल संघा की शादी 2014 में हुई थी. दीया और साहिल दोनों फिल्म इंडस्ट्री से ताल्लुक रखते हैं. दोनों की पहली मुलाकात 2009 में हुई थी, जब एक फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर साहिल, दीया मिर्जा के घर गए थे. इस छोटी सी मुलाकात के बाद दोनों का मिलना-जुलना शुरू हो गया. लंबे समय तक डेटिंग के बाद दोनों ने 2014 में शादी की. शादी में दीया ने डिजाइनर रितू कुमार का डिजाइनर हरे और गोल्‍डन रंग का लहंगा पहना था. वहीं, साहिल ने डिजाइनर राघवेंद्र राठौर की बनाई क्रीम कलर की शेरवानी पहनी थी.

9. जेनेलिया डिसूजा-

जेनेलिया डिसूजा और रितेश देशमुख की शादी 2012 में हुई थी. दोनों की मुलाकात हैदराबाद में फिल्म ‘तुझे मेरी कसम’ (2003) की शूटिंग के दौरान हुई थी. इसी दौरान जेनेलिया जब पहली बार रितेश से एयरपोर्ट पर मिलीं तो उन्हें इग्नोर करती रहीं. जेनेलिया को लगा पिता की तरह रितेश भी नेता ही होंगे. लेकिन जब वे उनसे मिलीं और उन्होंने अपने परिवार वालों के प्रति उनके दिल में सम्मान देखा तो वे बहुत प्रभावित हुईं. धीरे-धीरे ये दोस्ती प्यार में बदल गई. 2012 में दोनों ने शादी कर ली. शादी में जेनेलिया ने डिजाइनर नीता लुल्ला द्वारा डिजाइन किया रेड और गोल्डन कलर का लहंगा पहना था. वहीं, रितेश ने क्रीम कलर की शेरवानी पहनी थी. दोनों के दो बेटे रियान और राहिल हैं.

10. असिन-

असिन ने माइक्रोमैक्स के को-फाउंडर राहुल शर्मा से 2016 में शादी की. असिन और राहुल की लव स्टोरी के असली हीरो अक्षय कुमार हैं. असिन और राहुल सबसे पहले 2012 में मुंबई के एयरपोर्ट पर मिले थे. तब असिन एक टूर्नामेंट में अपनी फिल्म ‘हाउसफुल 2’ (2012) के प्रमोशन के लिए अक्षय कुमार के साथ जा रही थीं. वहीं, अक्षय कुमार ने ही इन दोनों की मुलाकात कराई थी. अक्षय और राहुल अच्छे फ्रेंड हैं. असिन को बाद में पता चला कि उस टूर्नामेंट के स्पॉन्सर राहुल शर्मा की कंपनी ही थी. एयरपोर्ट से शुरू हुई ये मुलाकात प्यार में बदल गई और फिर शादी. शादी में असिन ने डिजाइनर वेरा वंग की व्हाइट गाउन और सब्यसाची मुखर्जी का लहंगा पहना था.

11. उर्मिला मातोंडकर-

उर्मिला मातोंडकर ने कश्मीरी बिजनेसमैन और मॉडल मोहसीन अख्तर से 2016 में शादी की. शादी का फंक्शन काफी प्राइवेट था. वेडिंग में उर्मिला ने मनीष मल्होत्रा का डिजाइन किया गया रेड एंड गोल्ड बनारसी लहंगा पहना था. उस पर पिंक दुपट्टा लिया था. वहीं, मोहसीन ने क्रीम कलर की शेरवानी पहनी थी. बता दें कि शादी के बाद दोनों की फोटो सोशल मीडिया पर उर्मिला के फ्रेंड्स के जरिए सामने आई थी. तब कहीं जाकर पता चला था कि उर्मिला ने शादी कर ली है.

प्रभास ने 6000 प्रपोजल किए रिजेक्ट, देवसेना से करेंगे शादी!

बाहुबली की शानदार सफलता के बाद प्रभास अब ग्लोबल स्टार बन चुके हैं. ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि प्रभास की पर्सनल लाइफ कैसी है और वह शादी कब करेंगे. उनकी शादी से जुड़ी एक बात जानकर आपको हैरानी होगी. दरअसल बाहुबली फिल्म की वजह से प्रभास ने अभी तक शादी नहीं की है. वह अब तक 6000 शादी के रिश्ते ठुकरा चुके हैं.

रियल लाइफ में देवसेना से होगी प्रभास की शादी

बाहुबली 2 का एक सशक्त पहलू है बाहु और देवसेना की लव स्टोरी. पहली नजर में प्यार से लेकर देवसेना के लिए सिंहासन छोड़ने तक बाहुबली ने अपने प्यार का सबूत दिया.

दोनों के बीच कई इमोशनल और रोमांटिक सीन फिल्माए गए हैं. इनमें गजब की केमिस्ट्री दिख रही है. बता दें कि बाहुबली से पहले प्रभास और देवसेना यानी अनुष्का शेट्टी साथ में साउथ की कई हिट फिल्मों में काम कर चुके हैं. और दोनों में प्रेम संबंध भी रहे हैं.

प्रभास और अनुष्का की खास बॉन्डिंग

बाहुबली की प्रमोशन के दौरान भी अनुष्का शेट्टी और प्रभास की बॉन्डिंग अलग ही दिखी. अनुष्का शेट्टी भी अभी तक सिंगल हैं. और दोनों के ही परिवार उनके लिए मैच देख रहे हैं. अब बाहुबली की प्रमोशन के दौरान अनुष्का और प्रभास का एक दूसरे के लिए लगाव उनको कुछ तो समझना चाहिए.

अपनी खूबसूरती और हुनर के साथ अनुष्का किसी मामले में प्रभास से कम नहीं ठहरतीं. वहीं दोनों में से किसी के भी चेहरे पर बीते समय की कोई श‍किन नहीं थी. वहीं प्रभास ने भी अभी तक कि‍सी लड़की के लिए हां नहीं कहा है. वह 6000 लड़कियों को शादी के लिए रिजेक्ट कर चुके हैं.

अब ये दोनों अपनी जिंदगी को लेकर क्या फैसला करते हैं, इसका इंतजार रहेगा!

5 साल चला बाहुबली का शूट

प्रभास और बाहुबली के डायरेक्टर एस.एस. राजामौली की ये साथ में तीसरी फिल्म थी. 2005 में दोनों ने साथ ‘छत्रपति’ बनाई थी. प्रभास एक बार में एक ही फिल्म करना पसंद करते हैं और उनकी हर मूवी का शूट लगभग 600 दिन चलता है. चौंका देने वाली बात तो ये है कि बाहुबली का शूट तो 5 साल चला था.

एक दिन में 40 अंडे खाते थे प्रभास

बाहुबली के लिए प्रभास ने बहुत मेहनत की. उनके लिए इसका वर्कआउट शेड्यूल बहुत ही कठिन रहा. फिल्म के लिए प्रभास ने 22 किलो वजन बढ़ाया. इस दौरान वह एक दिन में 40 अंडे खाते थे.

ठुकराए कई ऑफर

बाहुबली के शूट के दौरान प्रभास 200 करोड़ की कीमत तक के ऑफर ठुकरा चुके हैं. ऐसा सिर्फ इसलिए कि फिल्म पर दूसरे का काम कोई असर न दिखे. शूट के दौरान उन्होंने कई बॉलीवुड फिल्में भी ठुकराईं.

किताबों से है गहरा लगाव

भले ही प्रभास अपने निजी जीवन में कितने ही मसरूफ हों पर वो किताबें पढ़ने के लिए वक्त निकाल ही लेते है. पढ़ने के साथ-साथ वे स्पोर्ट्स में भी प्रभास को बेहद रुचि है. जिम में वर्कआउट करना और घर में बने वॉलीबॉल कोर्ट में खेलना वह बेहद पसंद करते हैं ताकि उनके काम में सहजता हो. इससे उनको बाहुबली के लिए तैयारी करने में भी मदद मिली.

सुंदरता का खजाना सुंदरवन

गरमी की छुट्टियों में मेरी मानिए, प्राकृतिक रहस्यों से घिरे पश्चिम बंगाल के सुंदरवन को जरा करीब से देख आइए. दुनिया का सब से बड़ा मैनग्रोव का जंगल आप को यहीं मिलेगा. कहते हैं यहां का घना जंगल रोमांचित कर देता है क्योंकि रौयल बंगाल टाइगर आप को कहीं भी और कभी भी दिख सकता है. यह रोमांच सुंदरवन यात्रा के दौरान पूरे समय तक बना रहता है.

सुंदरवन की अपनी यात्रा को 2 भागों में बांट लें. एक तरफ सुंदरवन बायोस्फियर रिजर्व का भगवतपुर लोथियान द्वीप, बोनी कैंप, कलश कैंप और दूसरी तरफ सुंदरवन टाइगर रिजर्व का सजनेखाली, सुधन्यखाली, दोबांकी से ले कर बुड़ीरडाबरी तक. सुंदरवन का प्रवेशद्वार कोलकाता से 40 किलोमीटर की दूरी पर कैनिंग है. यहां से किराए पर लौंच ले कर घूमा जा सकता है.

सुंदरवन का मुख्य आकर्षण रौयल बंगाल टाइगर तो है ही, लेकिन इस के अलावा चीतल, हिरण, विभिन्न प्रजातियों के सांप और खूबसूरत पक्षियों का मेला है यहां. सुंदरवन के द्वीपों के बीच से छोटीछोटी और संकरी नदियों की धार भी यहां के आकर्षण हैं. यहां के लोग छोटी नाव के जरिए मछली और केकड़ा पकड़ने के लिए जाते हैं.

संकरी नदियों के पार कहीं कहीं विस्तृत मैदान हैं, जहां चीतल, हिरण विचरण करते हुए दिख जाएंगे. लेकिन इंसानी कदमों की आहट पाते ही वे चौकड़ी भर कर दूर निकल जाते हैं. इन हिरणों में बाघ का आतंक भी कुछ कम नहीं है. वैसे सुंदरवन में ये हिरण ही बाघों की खुराक हैं. खुराक में कमी होने पर बाघ रिहायशी बस्ती पर हमला करते हैं. इसीलिए हिरणों की संख्या पर वन विभाग की नजर कुछ ज्यादा ही होती है. वैसे, प्राकृतिक रूप से अपने बचाव के लिए प्रकृति ने हिरणों को तेज गति दे रखी है.

सुंदरवन के लोग केवल अपने ही नहीं, पर्यटकों की सुरक्षा के लिए भी उस जगह अंगोछा लटका देते हैं जहां बाघ का किसी इंसान पर हमला होता है. ऐसा इसलिए कि सुंदरवन के लोगों का मानना है जिस जगह पर बाघ किसी इंसान का शिकार करता है, वहां बाघ कम से कम एक साल तक बारबार लौट कर आता है. अंगोछा लटका कर सुंदरवन निवासी पर्यटकों और दूसरे लोगों को खतरे से आगाह करते हैं.

सुंदरी और मैनग्रोव

सुंदरवन में पर्यटन का सब से अच्छा समय है नवंबर से मार्च तक. यों तो हर मौसम में यह एक अलग रूप लेता है मगर इस की खूबसूरती बारिश के दिनों में अपने पूरे शबाब पर होती है. इसीलिए बारिश के मौसम में पर्यटन का पैकेज अलग होता है और कुछ टूर औपरेटर बारिश के दिनों में अपने पैकेज की घोषणा करते हैं. बहुत कम लोगों को पता है कि सुंदरवन का नाम यहां पाए जाने वाली सुंदरी पेड़ से ही पड़ा है.

गरमी के दिनों में चांदनी रात के दौरान सुंदरवन को देखना अपनी तरह का एक अलग अनुभव होता है. दरअसल, यहां आम दिनों में 2 बार ज्वारभाटा होता है. इस ज्वार और भाटे का अलग ही रूप होता है. मजेदार बात यह है कि ऐसे ज्वार के दिन जब सुंदरवन का बड़ा हिस्सा डूब जाता है, सारे वन्यजीव टापू में ऊंची जगह पर चले जाते हैं और भाटा होने पर खाने की खोज में वापस नीचे लौटते हैं. इसीलिए ज्वार के बाद भाटा के दौरान पर्यटक बड़ी तादाद में वन्यजीव देख पाते हैं.

दुनियाभर में सुंदरवन की ख्याति यहां के मैनग्रोव के कारण भी है. मैनग्रोव जंगल सुंदरवन की दलदली भूमि पर है. यहां के मैनग्रोव वाकई मुग्ध कर देते हैं. इन्हीं मैनग्रोव के कारण ही सुंदरवन यहां रौयल बंगाल टाइगर का ठिकाना बना. यह मैनग्रोव एक खास तरह की वनस्पति है, जो दलदली भूमि में पाई जाती है. इस की जड़ें जमीन के ऊपर नजर आती हैं, लेकिन जड़ों की अंतिम छोर पानी में पैठ बनाए होती हैं. इस से इसे नमी प्राप्त होती रहती है.

गाइड बगैर खतरा

सुंदरवन के इन जंगलों में टूर गाइड की बहुत जरूरत होती है. क्योंकि घने जंगल में भटक जाने का खतरा होता है. साथ ही, बगैर सावधान रहे, हो सकता है भूखे बाघ से सामना हो जाए. सुंदरवन के गांवों में अकसर ऐसे बाघों का हमला होता है. वहीं, जंगल से शहद इकट्ठा करने वाले, मछली और केकड़ा पकड़ने वालों की भी बाघ से अचानक टक्कर हो जाती है.

वैसे, सुंदरवन जाना हो तो कोलकाता में बहुत सारे टूर औपरेटर मिल जाएंगे, जो लांच में एक गाइड के साथ सुंदरवन घुमा कर दिखा देते हैं. बेहतर है कि राज्य सरकार के पर्यटन विभाग से फौरेस्ट बंगला बुक कर लिया जाए.

2 दिन व 1 रात के लिए प्रति व्यक्ति लगभग 4 हजार रुपए का खर्च पड़ता है. इस के अलावा राज्य पर्यटन विभाग का एक और भी पैकेज है 3 दिन 2 रात का, जिस का खर्च प्रतिव्यक्ति लगभग साढ़े 5 हजार रुपए आता है. सुंदरवन पर्यटन की शुरुआत डब्लूबीटीडीसी के दफ्तर से होती है.

उम्दा शहद

सुंदरवन में अगर खरीदारी करना चाहते हैं तो यहां के जंगलों में बहुत उम्दा शहद पाए जाते हैं. अगर शहद मिल जाए तो जरूर ले लें, क्योंकि यह ताजा और विशुद्ध शहद होता है.

मछली के कई व्यंजन

सुंदरवन में खाने की बात की जाए तो यह जगह विभिन्न किस्म की मछलियों के लिए जानी जाती है. मछली की तरहतरह की डिशेज आसानी से मिल जाती हैं-कोई माछ, चितल माछ, पाबदा माछ, भेटकी, हिलसा के अलावा चिगड़ी, जिसे आमतौर पर झींगा भी कहा जाता है.

यहां रेस्तरां में बंगाल की प्रसिद्ध डिशेज मिल जाएंगी-सरसों इलिश यानी सरसों हिलसा, दही हिलसा, हिलसा बिरयानी, मुड़ीघंटों दाल (मछली का सिर डाल कर दाल की एक विशेष रैसिपी), हिलसाकोचू साग (हिलसा और अरबी का साग), पाबदा माछेर झाल (पाबदा मछली की तीखी करी), हिलसा टौक (हिलसा मछली की खट्टा डिश), आलू भाजा, आलू पोस्ता (खसखस), पोस्तो चिंगड़ी (खसखस झींगा मछली की डिश), पोस्तो बड़ा (खसखस का पकौड़ा), टेंगड़ा माछेर झोल, बेगून भाजा, भेटकी मछली की फिश फ्राई और फिश कटलेट आदि. अपनी पसंद की कोई भी डिश चुन सकते हैं. इन के साथ उबले चावल, पापड़ और टमाटर खजूर की चटनी का मेल आप को भाएगा.

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