टांगें फैला कर बैठते युवक और सिकोड़ कर बैठती युवतियां

राजधानी दिल्ली के कामकाजी लोगों की लाइफलाइन बन चुकी मैट्रो में आप को एक बात देखने को मिलेगी, वह है युवक और युवतियों के बैठने के तरीके में अंतर. जहां युवक आराम से टांगें फैला कर सीट पर बैठते हैं, वहीं युवतियां टांगें सिकोड़ कर बैठती हैं. इस से एक सीट पर अगर 3 या 4 युवक बैठे हों तो एक यात्री की सीट अपनेआप कम हो जाती है.

युवकों और युवतियों के मैट्रो या अन्य सार्वजनिक वाहनों में सीटों पर बैठने के तरीके में अंतर का अध्ययन करने वाले इस शोध पर युवकों की ओर से यह तर्क दिया जाता है कि युवकों की कमर से नीचे की शारीरिक बनावट ऐसी होती है कि उन्हें टांगें सिकोड़ कर बैठने में परेशानी होती है, जिस कारण वे टांगें फैला कर बैठते हैं.

दूसरी ओर स्त्रीवादी विमर्शक इस तर्क को खारिज करते हुए कहते हैं कि अगर शारीरिक बनावट के आधार पर बैठने या चलने के तर्क को माना जाए तो युवतियों को अपनी कमर से ऊपर की शारीरिक बनावट के चलते हाथों को फैला कर चलना चाहिए, लेकिन वे ऐसा नहीं करतीं. वे अपने हाथों को पुरुषों के मुकाबले सिकोड़ कर ही चलती हैं.

इस व्यवहार की वजह समाज में युवकों का वर्चस्व है, जिस कारण वे मैट्रो या अन्य सार्वजनिक वाहनों में आराम फरमा कर बैठते हैं. इतना ही नहीं वे स्थितियों से सामंजस्य बैठा कर खुद को उन के अनुरूप ढालने के बजाय उन्हें अपने अनुकूल बना लेते हैं.

महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें व कोच 1 मार्च, 2013 से दिल्ली सरकार ने डीटीसी की बसों में एकचौथाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी हैं. ऐसा दिल्ली में महिलाओं के सफर को सुरक्षित व आरामदेह बनाने के लिए किया गया.

मैट्रो में भी एक कोच महिलाओं के लिए आरक्षित होता है, लेकिन इस के बावजूद युवक महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर न केवल बैठते हैं बल्कि सीट खाली भी नहीं करते हैं.

2 अक्तूबर, 2010 को डीएमआरसी ने महिलाओं के लिए मैट्रो में एक कोच आरक्षित किया था. इस के अलावा मैट्रो के हर कोच में महिलाओं के लिए 4 आरक्षित सीटें भी होती हैं. इसे 3 अक्तूबर, 2010 से दिल्ली में कौमनवैल्थ गेम्स शुरू होने से एक दिन पहले प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया था.

इस के लिए तर्क यह दिया गया था कि मैट्रो में महिला यात्रियों की संख्या कुल यात्रियों की संख्या के मुकाबले एकचौथाई होती है. इसी को ध्यान में रख कर डीटीसी ने भी बसों में महिलाओं के लिए एकचौथाई सीटें आरक्षित कीं.

आज मैट्रो के कोच 4 से बढ़ कर 6 व 8 हो चुके हैं और इन्हें 10 करने पर भी विचार किया जा रहा है, लेकिन अब भी मैट्रो में महिलाओं के लिए सिर्फ एक ही डब्बा आरक्षित है, जबकि यात्रियों की संख्या बढ़ने के साथ महिला यात्रियों की संख्या भी बढ़ी है.

बलात्कारी बहादुर नहीं

हाल ही में दिल्ली पुलिस की वार्षिक रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिस के अनुसार हर घंटे एक महिला अपराध का शिकार हो रही है. चाहे वह दुष्कर्म की घटना हो या फिर छेड़छाड़ का मामला. साथ ही यह भी खुलासा किया गया है कि महिलाओं से दुष्कर्म की करीब 97त्न घटनाओं में उन के जानकारों का ही हाथ होता है. वहीं ऐसी वारदातों में 3त्न अपरिचित आरोपी निकले.

हकीकत यह है कि दुष्कर्म या बलात्कार के ज्यादातर मामले लोकलाज के भय से या तो दबा दिए जाते हैं या उन की रिपोर्ट दर्ज नहीं होती, लेकिन दुष्कर्म के बाद जो मानसिक पीड़ा या त्रासदी महिला को झेलनी पड़ती है वह अकल्पनीय है.

सब से बड़ा सवाल यह है कि एक बलात्कारी किन मानसिक परिस्थितियों में इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देता है? क्या वह उस के बाद होने वाले परिणामों को भूल जाता है या फिर उन के बारे में सोचता ही नहीं.

दुष्कर्म या बलात्कार सब से घृणास्पद कुकृत्यों में शामिल है. ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देने के बाद कोई बहादुर नहीं बन जाता या फिर समाज उसे कोई बड़ा तमगा नहीं दे देता. इस के उलट सचाईर् सामने आने पर वह घृणा या दुराव का ही शिकार होता है. उस की सोशल आईडैंटिटी खतरे में पड़ जाती है और उसे सजा के साथसाथ रिजैक्शन भी भोगना पड़ता है.

हद तो तब होती है जब ये दुष्कर्मी सरेआम सीना ठोक कर ऐसे घूमते हैं मानो उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो. देश के सुदूर ग्रामीण आदिवासी इलाकों में उच्चजाति के लोगों द्वारा दलित आदिवासी महिलाओं की अस्मत लूटने और उन्हें जिंदा जलाए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रहती हैं पर पीड़ाजनक स्थिति तब होती है जब ऐसे लोग अपने कुकृत्यों का सरेआम ढिंढोरा पीटते हैं. पुलिस और कानून को धताबता कर ये अपनी जांबाजी में एक तमगा और जोड़ लेते हैं, पर यह विडंबना है कि हम आंख मूंदे इन बलात्कारियों का साथ देते हैं.

दुष्कर्मियों का कोई नैतिक बल नहीं होता. न ही कोई चारित्रिक संबल. असंतुलित भावनाओं के उन्माद में वे दुष्कर्म के दलदल में जा गिरते हैं पर एक सच यह भी है कि इस क्षणिक ज्वार के ठंडा पड़ते ही वे अपने पुराने स्वरूप में लौट आते हैं और ताउम्र पश्चात्ताप व ग्लानि की पीड़ा में अपनी बची जिंदगी गुजार देते हैं.

इस की सब से बड़ी बानगी दिल्ली में घटा निर्भया कांड है. बलात्कारियों ने क्षणिक आवेश में वह कर डाला जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. इस के बदले उन आरोपियों को मिला क्या? केवल सामाजिक बहिष्कार, अलगाव, घृणा और सजा.

सामाजिक बहिष्कार इन आरोपियों पर इस कदर हावी हुआ कि उन में से एक ने तो खुदखुशी कर ली. बाकी या तो सजा भुगत रहे हैं या अदालती ट्रायल के चक्कर काटते हुए भारी मानसिक तनाव व कुंठा से गुजर रहे हैं.

अपराध छोटा हो या बड़ा उसे कभी सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलती. दुष्कर्मियों के लिए तो समाज में कोई स्थान है ही नहीं. अपराध हमेशा कुंठा, पीड़ा व सजा ही दिलवाता है, सम्मान नहीं.

हमें चाहिए कि इन दुराचारियों को किसी भी स्तर पर बिलकुल न सराहें और न सहें. इन्हें बढ़ावा तभी मिलता है जब हम मौन साध लेते हैं. हमारी दहाड़ इन के हौसले पस्त करेगी. सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार से ये अलगथलग पडे़ंगे और इन का वहशीपन कमजोर पड़ेगा.

ऐसे प्रयास सिर्फ अपराधियों की तरफ से ही नहीं करने होंगे बल्कि हमें महिलाओं का पक्ष भी मजबूत करना होगा. दुष्कर्म की शिकार पीडि़ताओं के लिए स्वाभिमान कार्यक्रम चलाने होंगे. उन के भीतर के ग्लानि और कुंठा के भाव को स्नेह व प्रेम से निकालना होगा. उन्हें समाज व परिवार में दोबारा उचित स्थान दिलाने के लिए उन का मनोबल बढ़ाना होगा. तभी हम इन बलात्कारियों को मजबूत इरादों वाली महिलाओं से टक्कर दे सकेंगे.

बलात्कारियों का बहिष्कार और पीडि़ताओं की सम्मानजनक वापसी उन के होश ठिकाने लगाने का सब से बड़ा मूलमंत्र है.

स्वास्थ्य का आईना है त्वचा

खिला चेहरा और घने लहराते बाल जहां हमें खूबसूरत दिखाते हैं, वहीं त्वचा और बालों से संबंधित समस्याएं जैसे बाल झड़ने शुरू हो जाना, फटे होंठ, मुंहासे व झुर्रियां हमारी खूबसूरती में ग्रहण भी लगा देते हैं. मगर क्या आप जानती हैं कि ये हमें बहुत सी शारीरिक बीमारियों के भी संकेत देते हैं?

दरअसल, आप की त्वचा पर नजर आने वाली कोई भी समस्या यों ही नहीं होती उस का कोई न कोई कारण जरूर होता है, इसलिए उसे कभी नजरअंदाज न करें.

त्वचा

– अगर आप की त्वचा पर अचानक अलगअलग जगहों पर तिल नजर आने लगें तो उन्हें मेकअप कर के छिपाने की गलती न करें, क्योंकि यह स्किन कैंसर का लक्षण भी हो सकता है.

– डर्मावर्ल्ड स्किन क्लिनिक के डर्मैटोलौजिस्ट डा. रोहित बत्रा का कहना है कि कई ऐसे लोग होते हैं जो पूरी तरह केयर करने के बाद भी बारबार होंठों के फटने से परेशान होते हैं. ऐसा कई बार इन्फैक्शन और ऐलर्जी से होता है, साथ ही यह रोगप्रतिरोधक   क्षमता में आई कमी को भी दर्शाता है.

– वैसे तो उम्र के साथसाथ झुर्रियां आना एक सामान्य लक्षण है, लेकिन अगर आप की उम्र कम है और फिर भी आप को झुर्रियों की समस्या हो रही है, तो ऐसा औस्टियोपोरोसिस के कारण भी हो सकता है.

– आप की त्वचा अचानक बहुत अधिक रूखी लगने लगी है और उस पर सफेद रंग के धब्बे भी नजर आने लगे हैं तो यह डीहाइड्रेशन या फिर डायबिटीज की संभावना को दर्शाता है.

बाल

– अगर अचानक ही आप के बाल बहुत ज्यादा झड़ने लगें तो हो सकता है कि आप को थायराइड की समस्या हो. इसलिए इसे नजरअंदाज न करते हुए फौरन डाक्टर से संपर्क करें.

– अगर आप के बाल सिर के बीच से झड़ रहे हैं, तो ऐसा बहुत अधिक तनाव में रहने से भी होता है. कई बार इस का कारण दवा का रिएक्शन या फिर हारमोनल बदलाव भी हो सकता है.

– कई बार यह देखा जाता है कि कुछ लड़कियों को अचानक ही शरीर के अलगअलग हिस्सों पर बाल उग आते हैं, जिस का कारण पीसीओएस नाम की बीमारी भी हो सकती है, जो इन्फर्टिलिटी का कारण भी बनती है.

नाखून

– अगर आप के नाखूनों में पीलापन है या फिर उन की रंगत गुलाबी न हो कर सफेद सी है तो हो सकता है आप को ऐनीमिया यानी खून की कमी हो.

– अगर आप के नाखूनों पर लाल या भूरे रंग के धब्बे हैं, तो उन को हलके में न लें, क्योंकि इस का कारण रक्त संक्रमण या फिर ऐसा दिल से संबंधित बीमारियों के कारण भी हो सकता है.

– अगर आप के नाखून नीले रंग के नजर आते हैं तो इस का मतलब यह है कि आप की उंगलियों तक ब्लड ठीक से सर्कुलेट नहीं हो पा रहा है.                 

 (डा. विवेक मेहता, पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट)

टौप 9 समर फेस पैक

गरमी के मौसम में त्वचा को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. तेज धूप के संपर्क में आने से स्किन डैमेज, सन टैन, डार्क स्पौट्स और पिगमैंटेशन होने के साथसाथ प्री मैच्योर एजिंग साइन्स जैसे रिंकल्स, फाइन लाइंस चेहरे पर उभर आने का डर भी बढ़ जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि त्वचा को हाइड्रेट करें ताकि उस में नमी की कमी न हो और वह अंदर से स्वस्थ व बाहर से खूबसूरत नजर आए. समर सीजन में स्किन को हैल्दी डोज देने के लिए ये फेस पैक जरूर ट्राई करें:

खीरा फेस पैक

अगर फेस पैक के साथ ही स्क्रबिंग से चेहरे की डैड स्किन को भी हटाना चाहती हैं, तो चेहरे पर खीरे का फेस पैक लगाएं. खीरे के कुछ टुकड़ों को मिक्सर में दरदरा पीस लें. फिर उस में थोड़ी सी शक्कर मिला कर कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें. अब पूरे चेहरे पर लगाएं और सूख जाने पर रगड़ते हुए छुड़ाएं. इस से डैड स्किन की परत हट जाएगी.

दही फेस पैक

तपती धूप में त्वचा को ठंडक का एहसास दिलाने के लिए चेहरे पर दही का फेस पैक लगाएं. इस के लिए 1 बड़े चम्मच दही में 1 छोटा चम्मच चंदन पाउडर मिलाएं और तैयार फेस पैक को चेहरे पर अच्छी तरह लगाएं. 10 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इस से आप काफी फ्रैश फील करेंगी.

चंदन फेस पैक

चंदन की ठंडक गरमी में आप की त्वचा को काफी राहत दिला सकती है. इस के लिए आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. बस एक बाउल में 1 बड़ा चम्मच चंदन पाउडर थोड़ा सा गुलाबजल मिला कर लेप बना लें. तैयार लेप चेहरे और गले पर लगाएं. सूख जाने पर ठंडे पानी से धो लें.

पुदीना फेस पैक

जिस तरह छाछ, शरबत और जूस में मिले पुदीने से पेट की गरमी छूमंतर हो जाती है ठीक उसी तरह पुदीना फेस पैक धूप से तपती त्वचा को भी राहत दिलाता है. इस के लिए 1 बड़ा चम्मच पुदीनापत्ती को पीस कर उस में 2 छोटे चम्मच गुलाबजल मिलाएं और फिर चेहरे पर लगाएं. सूख जाने पर ठंडे पानी से धो लें. गोरे निखार के लिए इस में चुटकी भर हलदी पाउडर भी मिला सकती हैं.

मैंगो फेस पैक

आम को छील कर उस के पल्प का मिक्सर पेस्ट बना लें. अब इस में 1 छोटा चम्मच चंदन पाउडर, 1 छोटा चम्मच दही, 1/2 छोटा चम्मच शहद और चुटकी भर हलदी मिला कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएं. यह सूख जाए तो चेहरा ठंडे पानी से धो लें.

वाटरमैलन फेस पैक

गरमी के मौसम में शरीर में पानी की कमी को पूरा करने के लिए जिस तरह वाटरमैलन यानी तरबूज खाना फायदेमंद है, उसी तरह त्वचा की नमी को बरकरार रखने के लिए वाटरमैलन फेस पैक भी काफी असरदार है. फेस पैक बनाने के लिए वाटरमैलन के जूस में थोड़ा सा दही डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. तैयार लेप को चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट बाद चेहरा धो लें.

टोमैटो फेस पैक

अगर ज्यादा देर धूप में रहने से स्किन टैन हो गई है, तो टोमैटो फेस पैक लगाएं. इस के लिए 1 बड़े टमाटर के पल्प में 2 छोटे चम्मच शहद मिलाएं और फिर प्रभावित त्वचा पर लगाएं. 10-15 मिनट बाद जब यह सूख जाए तो ठंडे पानी से धो लें. इस से सन टैन से राहत मिलेगी और शहद की वजह से त्वचा में चमक भी आएगी.

कद्दू फेस पैक

कद्दू को कद्दूकस कर के इस में थोड़ा सा दही मिलाएं और पूरे चेहरे पर लगाएं. जब यह सूख जाए तो ठंडे पानी से धो लें. सन टैन को दूर करने के साथसाथ यह फेस पैक फाइन लाइंस, रिंकल्स को भी कम करता है. इस से ब्लैकआउट्स भी कम होते हैं और त्वचा मुलायम होती है.

नीबू फेस पैक

1 बड़े चम्मच नीबू के रस में थोड़ा सा शहद मिला कर कौटन बौल की सहायता से चेहरे और गले पर लगाएं. 20 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा व गला धो लें. इस से त्वचा में कसाव महसूस होगा और चेहरा ग्लो करेगा. सन टैन से नजात के लिए उस पर नीबू का छिलका भी रगड़ सकती हैं.

आस्था और विश्वास का नया नजरिया

समय के साथ हम सभी ने समाज की कई गलत व पुरानी मान्यताओं और सोच को पीछे छोड़ा है और नई सोच को अपनाया है लेकिन आज भी जब बारी आती है धार्मिक मान्यताओं की तो हम किसी तरह का समझौता करना पसंद नहीं करते. भले ही हम किसी के साथ कितना भी बुरा बर्ताव करें लेकिन भगवान को खुश करने में कोई कमी नहीं छोड़ते.

पर आस्था एक ऐसी लड़की है जो भगवान पर विश्वास को एक अलग नजरिए से देखती है, उस का मानना है कि दूसरों की सेवा ही भगवान की सेवा है. ‘एक आस्था ऐसी भी’ में आस्था की भूमिका टीना फिलिप निभा रही हैं,टीना ने चार्टर्ड अकाउंटेंसी के कैरियर को अपने ऐक्टिंग के जुनून के लिए छोड़ा है. पेश है बातचीत के कुछ अंश:

यह किस तरह का शो है?

एक आस्था ऐसी भी एक युवा लड़की की कहानी है जो भगवान के पूजापाठ के बजाय दिल से भलाई करने में विश्वास करती है. उसे लगता है कि पूजा करने के बजाय एकदूसरे के लिए ईमानदार, दयालु और मददगार होना अधिक महत्वपूर्ण है. वह जरूरतमंदों की मदद के लिए धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं का इस्तेमाल करती है लेकिन भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना.

टेलीविजन के अन्य धारावाहिकों से यह कैसे अलग है?

यह धारावाहिक हमारे देश में प्रचलित मौजूदा परिदृश्य से एकदम अलग हैं. जहां धार्मिक मान्यताओं को धार्मिक कार्यों के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं आस्था का किरदार निश्चित रूप से दर्शकों को मानवता के कल्याण के लिए प्रेरित करेगा.

धारावाहिक में अपरंपरागत किरदार की भूमिका निभाने पर कैसा महसूस कर रही हैं?

आस्था एक ऐसी लड़की है जिस का भगवान पर एक अलग विश्वास है और वह सभी के भगवान पर विश्वास का सम्मान करती है लेकिन वह मानवता की सेवा करने में निस्वार्थ भाव में विश्वास करती है. भगवान के प्रति अलग धारणा ही उसे सामान्य दुनिया में अपरंपरागत बनाती है. यह एक ऐसी भूमिका है जो काफी चुनौतीपूर्ण है, इस में व्यक्त करने के लिए काफी कुछ है. आस्था का किरदार मेरे बहुत करीब है, मैं भी आस्था की ही तरह सोचती हूं.

मानसी साल्वी और विवेक मशरन जैसे अनुभवी कलाकारों के साथ काम कर के कैसा लग रहा है?

मैं इस इंडस्ट्री में नई हूं, मुझे उन लोगों से काफी कुछ सीखने को मिल रहा है. मानसी साल्वी तो सेट पर मेरी मार्गदर्शक हैं. वह मेरी काफी मदद करती हैं, वह मुझे बताती हैं कि कैमरे के सामने कैसे रहना है, कैसे बोलना है और सब से अच्छी बात यह है कि वह हमेशा मदद के लिए तैयार रहती हैं.

आप का शो स्टार प्लस दोपहर में प्रसारित किया जा रहा है, आप कैसा महसूस कर रही हैं?

‘स्टार प्लस दोपहर’ में हर धारावाहिक प्रभावशाली किरदारों के साथ एक अलग कहानी ले कर आ रहा है. हमें बहुत खुशी हो रही है कि हम इस का हिस्सा हैं. मुझे लगता है कि अच्छी कहानी दर्शकों पर अपना प्रभाव अवश्य डालती है, हमारी कहानी भी कुछ अलग है.

तुलसीदास हाजिर हों

व्यवस्थाएं खंभे पर ही टिकी होती हैं जिन में एक खंभान्याय- पालिका का भी होता है जिसे नोचने की इजाजत किसी भी खिसियानी बिल्ली को नहीं होती. वैसे तो हर खंभा अपनेआप को दूसरे खंभों से ऊपर दिखा कर इमारत को बेडौल करने में लगा रहता है पर न्यायपालिका की बात ही कुछ और है.

सभ्यता का तकाजा होता है कि झूठ या झूठ जैसा बोला जाए तो हम खंभे को स्तंभ कहने लगें. देवभाषा के प्रयोग से संवाद की गरिमा बढ़ जाती है, जैसे नेकर वाले सुसंस्कृति गिरधर कविराय और कबीर की लाठी को दंड कहते हैं, झंडे को ध्वज कहते हैं और वरदी को गणवेश कहते हैं.

लोकतंत्र का जो उपरोक्त स्तंभ है वह 1969 के पहले पुरानी रियासतों में खुद जाया करता था. भूतपूर्व राजामहाराजाओं को विशेष अधिकार प्राप्त थे जिन में यह भी एक था कि पूर्व राजामहाराजाओं पर चले प्रकरणों की सुनवाई के लिए अदालतें उन के दरबार में खुद जाया करेंगी. कम्युनिस्टों से समर्थन लेने के चक्कर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को यह अधिकार खत्म करना पड़ा.

बहरहाल, यह स्तंभ साहित्यकारों को तो हमेशा ही अपने यहां बुलवा कर उन पर मुकदमे चलाता रहा है. ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार एक बार मिर्जा गालिब को जब बुलाया गया और अंगरेज मजिस्ट्रेट ने उन का नाम पढ़ते हुए कहा था कि असद उल्ला खां, कौम मुसलमान, तब गालिब ने उन्हें टोकते हुए कहा था कि आधा मुसलमान…

‘आधा कैसा?’ मजिस्ट्रेट ने आश्चर्य से पूछा.

‘आधा इसलिए क्योंकि शराब पी लेता हूं, सूअर नहीं खाता,’ वे बोले थे.

गालिब समेत बहुत सारे साहित्यिक लोगों पर मुकदमे चले हैं पर वे उन के समय में ही चले हैं. लेकिन इधर हिंदूवादी संगठनों के फैलाव के बाद तो मरने के बाद भी मुकदमा चल सकता है. कल मैं ने सपने में देखा कि रामानुजन के लेख को पाठ्यक्रम से हटाने पर मची हायतोबा के चक्कर में एक अदालत द्वारा गोस्वामी तुलसीदास को बुला लिया गया. अदालत ने पूछा, ‘तुम्हारा नाम?’

‘तुलसीदास,’ उन्होंने विनम्रता से कहा.

‘जात?’ फिर पूछा गया.

‘उस के लिए तो मैं ने पहले ही लिख दिया है कि :

‘धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ,

काहु की बेटी से बेटा न ब्याहवो, काहु की जात बिगार न सोऊ.

‘श्रीमान, जब मैं ने आम आदमी की भाषा में रामचरितमानस गं्रथ लिखा तब ब्राह्मणों ने कहा कि प्रभुचरित्र कहीं भाषा में लिखा जा सकता है, जिसे नीची जातियां भी बोलती हैं, वह तो देवभाषा में ही लिखा जा सकता है. सो, मैं ने अपने नाम के आगे से गोस्वामी हटा लिया.’

‘काम क्या करते हो?’ अदालत ने फिर पूछा.

‘मांग के खायवो, मजीत कौ सोयवो

 लैवो को एक न दैवे को दोऊ.’

तुलसीदास ने पूर्व में लिखी अपनी काव्य पंक्तियों से ही उत्तर दिया.

‘अच्छा, सचसच कहो कि तुम ने ही यह रामचरितमानस लिखा है?’ अदालत ने पूछा.

‘श्रीमानजी, मैं तो एक मामूली सा प्राणी हूं तथा मुझ से पहले और मेरे बाद सैकड़ों कवियों ने अपनेअपने ढंग से प्रभुचरित बखाना है. मेरे बाद के एक कवि मैथिलीशरण गुप्त ने तो सही कहा है कि :

‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,

कोई कवि बन जाए सरल संभाव्य है.

‘इन्होंने तो मेरी कथा में ढेरों बदलाव किए. अभी हाल ही में चित्रकूट के एक संत ने मेरी कृति में सैकड़ों दोष निकाल दिए तो मेरी कथा से कमानेखाने वाले उस के भी पीछे पिल पड़े, भले ही मुझे लगता रहा हो कि वे उतने गलत नहीं हैं,’ तुलसीदास ने कहा.

‘तो क्या तुम रामकथा को अपनी परिपूर्ण मौलिक कृति नहीं मानते हो?’

‘हुजूर, मैं तो पहले ही लिख चुका हूं कि :

नाना पुराण निगमागम तुलसी रघुनाथ गाथा.’

‘पर जो लोग विवाद पर उतारू हैं वे तो तुम्हारी ही कथा पर डटे हैं?’ अदालत ने संदेह से देखते हुए कहा.

‘क्या करें, उन का धंधा और राजनीति हमारी ही किताब से चलती है, वरना मेरा तो मानना है :

‘रामकथा के मिति जगना नहीं, अर्थात इस दुनिया में जितनी रामकथाएं हैं उन की गिनती नहीं की जा सकती.’

‘अच्छा तो यह बात है.’

‘हां हुजूर, रामायण सत कोटि अपारा, अर्थात रामायण तो सैकड़ोंकरोड़ों हैं, अपार हैं और जब अपार हैं तो उन की कथा में भी भेद होंगे?’

‘पहले तो किसी ने आपत्ति नहीं की?’ अदालत ने कहा.

‘पहले न विश्वविद्यालय की राजनीति थी और न ही चुनाव की राजनीति, सो ऋग्वेद में कहा गया था कि आ नो भद्रा क्रतवो यंतु विश्वत अर्थात अच्छे विचार पूरे विश्व से आने दो, तथा कालिदास ने कहा था कि :

पुराण मित्येव न साधु सर्वम

न चापि काव्यं नव मित्र सर्वम

संत: परीक्षान्य तरद भजंते

मूढ़: पर प्रत्येयनेय बुद्धि:

‘अब मैं जा सकता हूं?’

‘पर अभी तुम ने जो कहा है इस का अर्थ तो बताते जाओ?’ अदालत ने कहा.

‘इस का अर्थ है कि पुरानी होने से कोई चीज ठीक नहीं हो जाती और न ही नई होने से हर चीज खराब हो जाती है. संत परीक्षण कर के ही चुनाव करते हैं,’ इतना कह कर तुलसीदास अंतर्धान हो गए.

अदालत ने नौन बेलेबल वारंट जारी कर रखे हैं और स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम अब कंबोडिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, श्रीलंका का दौरा कर रही है ताकि तुलसीदास को भी खोज सकें और वहां की रामायणों को भी ताकि उन सब के रचयिताओं पर भजभजी इशारों पर मुकदमे चल सकें.

– वीरेंद्र जैन

जीवनसाथी में अच्छाइयां देखें या लुक्स

जब बारी जीवनसाथी चुनने की आती है तो हमारा ध्यान सारी अच्छाइयों को छोड़ कर लुक पर सब से ज़्यादा रहता है कि लड़की देखने में कैसी है, सुंदर है कि नहीं, गोरी है या सांवली है, पतली चलेगी पर मोटी नहीं होनी चाहिए. पर क्या किसी रिश्ते की शुरुआत के लिए लुक इतना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है?

इसी विचार पर स्टार प्लस एक नया धारावाहिक ‘ढाई किलो प्रेम’ पेश कर रहा है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करेगा कि क्या केवल खूबसूरती ही महत्त्वपूर्ण होती है? पेश है, दीपिका का किरदार निभा रही अंजलि आनंद और पीयूष का किरदार निभा रहे मेहरजान मज्दा से बातचीत के कुछ अंश-

इस धारावाहिक के बारे में कुछ बताइए?

यह धारावाहिक दो ऐसे लोगों की कहानी है जो दिखने में तो एक जैसे हैं लेकिन दोनों की चाहतें अलग-अलग हैं. इस में दीपिका एक आत्मनिर्भर लड़की है, जो जिन्दगी को खुल कर जीती है और पीयूष कम आत्मसम्मान वाला लड़का है जो समाज में अपनी खामियों को छुपाने के लिए एक खूबसूरत लड़की से शादी करना चाहता है. ये दोनों समाज के तय मापदंडों के अनुसार पर्फेक्ट नहीं हैं, लेकिन इन की अनूठी व अलग कहानी दर्शकों को पर्फेक्ट होने की परिभाषा पर सोचने पर मजबूर करेगी.

रियल लाइफ में और आप के किरदार में कितनी समानताएं हैं?

मेरे और दीपिका में कई सारी समानताएं हैं. दीपिका की तरह मैं भी आत्मविश्वासी हूं, भले ही मैं खूबसूरती के मापदंडों के अनुसार परिपूर्ण नहीं हूं लेकिन मैं खुद को वैसे ही प्यार करती हूं जैसा मैं हूं. मैं  खुद के शरीर में कुछ भी बदलना नहीं चाहता, मुझे नहीं लगता कि पतला होने से ही मेरे साथ कुछ अच्छा होगा. मेरे लिए शारीरिक बनावट से ज्यादा एक इंसान का व्यवहार व सोच मायने रखती है.

दीपिका कैसे लड़के से शादी करना चाहती है?

दीपिका एक ऐसे लड़के से शादी करना चाहती है जिस का दिल बड़ा हो, जो लोगों से प्यार करे, खूबसूरती को लेकर हमारे समाज की तरह आलोचना करने के बजाय वे जैसे हैं उन्हें उसी तरह से स्वीकार करे.

पीयूष के अनुसार आदर्श जीवनसाथी कैसी होनी चाहिए.

पीयूष के लिए जीवनसाथी दीपिका पादुकोण की तरह पतली व खूबसूरत होनी चाहिए. वह यह जानता है कि वह पर्फेक्ट नहीं है इसलिए वह एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता है जो उसकी कमियों को छुपा कर समाज में उसकी स्थिति ठीक कर सके. उसका मानना है कि शारीरिक रूप से परिपूर्ण होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे व्यक्ति को सामाजिक पहचान मिलती है, उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और लोग उस पर ध्यान देते हैं.

नए करिश्मे करने को तैयार ड्रोन

दिसंबर, 2016 के मध्य चीन ने फिलीपींस के नजदीक साउथ चाइना सागर के अंतर्राष्ट्रीय जल क्षेत्र से एक अमेरिकी ड्रोन को जब्त कर के दुनिया में सनसनी फैला दी. इस से अमेरिका के साथ चीन के रिश्तों में भी तल्खी आई. अमेरिका ने दावा किया कि पानी में चलने वाला ‘ओशियन ग्लाइडर’ नामक उस का ड्रोन (अनमैन्ड अंडरवाटर व्हीकल) वैज्ञानिक आंकड़े इकट्ठे कर रहा था. अमेरिका ने मिलिट्री ओशियनोग्राफी के तहत समुद्री पानी के खारेपन, तापमान और पानी में ध्वनि की गति से जुड़े डाटा को जमा करने वाले ड्रोन को पूरी तरह वैज्ञानिक कार्यों के लिए समर्पित बताया, लेकिन चीन ने इसे दक्षिणी चीन सागर में अमेरिका द्वारा कराई जा रही जासूसी का मामला बता कर ‘ओशियन ग्लाइडर’ जब्त कर लिया. हालांकि बाद में चीन ने बातचीत कर ड्रोन को लौटाने की बात कही, लेकिन अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने इसे चीन की दादागीरी बताते हुए कहा कि चीन ने ड्रोन की चोरी की है, इसलिए इसे अब वही रख ले.

अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ाने वाली इस घटना के केंद्र में वे ड्रोन हैं, जो इन दिनों दुनिया में इस वजह से चर्चा में हैं कि उन से कई तरह के काम लिए जा सकते हैं. वैसे तो अभी तक इन की चर्चा इसलिए ज्यादा थी कि कुछ कंपनियां इन की मदद से सामान की डिलीवरी कराने का सपना देख रही थीं, पर चीनअमेरिका के बीच छिड़े विवाद से यह तथ्य उजागर हुआ है कि अब ड्रोन कई वैज्ञानिक कार्यों और सैन्य उद्देश्यों के लिए भी इस्तेमाल होने लगे हैं. हालत यह है कि कई देशों में ड्रोन को एक विलेन के रूप में देखा जाने लगा है, जैसे कि अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में इन्हें मौत बरसाने वाली मशीन के रूप में देखा जाता है. असल में ये एक तरह के लड़ाकू ड्रोन हैं, जो हथियारों से लैस होते हैं.

हमलावर ड्रोन

दावा किया जाता है कि 18वीं सदी में औस्ट्रिया ने जब वेनिस पर बम से भरे गुब्बारों के जरिए हमला बोला था, तो उस में एक तरह से ड्रोन टैक्नोलौजी का ही इस्तेमाल किया गया था. प्रथम विश्वयुद्ध के समय भी इस तकनीक से दुश्मन सेनाओं पर कई हमले किए गए. आधुनिक ड्रोन के लड़ाकू चेहरे का खुलासा पहली बार बालकान युद्ध में हुआ और इस के फौरन बाद अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में इन्हें आसमानी हमलावरों की तरह ब्रिटेन और अमेरिकी सेनाएं अपने प्रयोग में लाईं. अमेरिका की सैन्य इकाई यूएस एयरफोर्स और खुफिया सीआईए के पास अपनेअपने सशस्त्र ड्रोन्स की सैन्य टुकडि़यां रही हैं.

अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान व इराक युद्ध में आरंभ में 36 ड्रोन्स तैनात किए थे, जिन की संख्या वर्ष 2011 में बढ़ा कर 50 कर दी गई थी. इसी तरह सीआईए ने पाकिस्तान और दूसरे देशों में आतंकवादियों को मारने के लिए ड्रोन आजमाए. इस तरह के ड्रोन हमलों की शुरुआत जौर्ज बुश के शासनकाल में की गई थी, जो बराक ओबामा के दौर में भी जारी रही.

इस मामले में ब्रिटेन भी अमेरिका से पीछे नहीं रहा. उस की सेना ने इराक और अफगानिस्तान में निगरानी रखने और हमला करने के लिए कई तरह के ड्रोन्स का इस्तेमाल किया. ब्रिटेन ने 2007 में जनरल एटौमिक्स से रीपर नामक 3 बेहद महंगे ड्रोन्स खरीदे थे. इन से पहली बार जून, 2008 में अफगानिस्तान में बड़ा हमला किया गया था. ब्रिटिश अखबार डेली टैलीग्राफ मार्च, 2009 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश ड्रोन्स की वजह से उस दौरान अफगानिस्तान में सशस्त्र हमलों की संख्या दसगुना तक बढ़ गई.

भारत में भी ‘लक्ष्य’ नामक सैन्य ड्रोन बनाया गया है जिस का प्रयोग भारतीय सेना हवाई हमलों के लिए करती है. इस के अलावा हमारे देश में रुस्तम, कपोथका, निशांत व औरा नाम से कई अन्य ड्रोन्स को विकसित किया जा रहा है.

ताकत सैन्य ड्रोन की

एक आम ड्रोन फिल्मों में दिखाए जाने वाले चारभुजीय खिलौने और छोटे विमान जैसा ही होता है, लेकिन किसी भी ड्रोन की बनावट इस बात पर ज्यादा निर्भर करती है कि उस का इस्तेमाल किस काम में हो रहा है. दुश्मन देश की सीमा या किसी दंगाग्रस्त इलाके की निगरानी वाले ड्रोन तो 4 या 8 भुजाओं के होते हैं और उन में बैटरी के अलावा वीडियो कैमरे व सैंसर भी लगे होते हैं.

सैन्य ड्रोन में कई और भी इंतजाम करने होते हैं जैसे ब्रिटेन द्वारा बनाए गए ड्रोन (यूएवी) प्रीडेटर में 3 किलोवाट की एक बैटरी होती है जो इसे स्टार्ट करने के लिए आरंभिक ऊर्जा देती है. अगले और पिछले हिस्से में रबड़ से बने फ्यूल टैंक होते हैं. ये टैंक अपने साथ करीब 600 पाउंड ईंधन ले जा सकते हैं. इंजन को ठंडा रखने वाले ऐंटीफ्रीज पदार्थ के साथ 7.6 लिटर मोटर औयल भी इस में होता है जो इस की मशीनों में चिकनाई बनाए रखता है. इन के अतिरिक्त 14 एंपियर की 2 आपातकालीन बैटरियां भी इस में होती हैं जो पावर ठप होने की दशा में ड्रोन को उड़ाए रखने में मदद देती हैं.

कुल मिला कर प्रिडेटर जैसे ड्रोन में 32 उपकरण होते हैं, जो संचालन करने के साथसाथ सूचनाएं बटोरने, चित्र लेने से ले कर हमला करने में सहयोग करते हैं, जैसे सिंथैटिक अपरचर राडार (सार) एंटीना, जीपीएस आधारित नेवीगेशन सिस्टम, सैटेलाइट कम्युनिकेशन ऐंटीना, वीडियो रिकौर्डर, नोज कैमरा, आइस डिटैक्टर, फ्लाइट सैंसर आदि.

प्रिडेटर इतना ताकतवर है कि यह अपने भीतर 378 लिटर तेल रखने के साथसाथ 204 किलोग्राम सामान ढो सकता है. यही नहीं, इतने इंतजाम के बल पर यह दुश्मन के इलाके में लगातार 24 घंटे तक निगरानी रख सकता है. हालांकि इस मामले में ब्रिटेन का ही एक अन्य ड्रोन जेफर विश्व कीर्तिमान बना चुका है. उस ने प्रिडेटर को काफी पीछे छोड़ते हुए 82 घंटे की लगातार उड़ान का रिकौर्ड बनाया है.

हर जगह चलेगा ड्रोन

अमेरिकी सेना ऐसा ड्रोन बना रही है, जो जरूरत पड़ने पर हवा में उड़ने के अलावा पानी में तैर सके और जमीन पर भी चल सके. इस तरह के ड्रोन को ‘ट्रांसफौर्मर्स’ ड्रोन कहा जाता है. सब से पहले इस की परिकल्पना टकेरा टौमी ने 1975 में पेश की थी.

अमेरिकी सेना ने कैलिफोर्निया की सैंडिया राष्ट्रीय प्रयोगशाला में ऐसे ड्रोन का आरंभिक संस्करण यानी प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है. इस प्रोजैक्ट के तहत उड़ने वाले ड्रोन में पंख के साथसाथ पैडल भी लगाए गए हैं. यह 30 फुट की ऊंचाई तक उड़ सकता है.

बारी इंटरनैट ड्रोन की

सोशल नैटवर्किंग कंपनी फेसबुक को ड्रोन में इंटरनैट के विस्तार का एक नया विकल्प दिख रहा है. फेसबुक दुनिया के 5 अरब लोगों को सौर ऊर्जा से चलने वाले अंगरेजी के वी (ङ्क) आकार के ड्रोन के जरिए इंटरनैट से जोड़ना चाहती है. एक छोटी कार जितना वजनी और बोइंग 767 विमान के एक पंख जितने आकार वाले इस ड्रोन से फेसबुक इंटरनैट के विस्तार के दूसरे नए तरीकों के मुकाबले ज्यादा तेजी से काम करने के बारे में योजना बना रही है.

समुद्र के नीचे बिछाए गए केबल्स की तुलना में बेहद ऊंचाई पर उड़ने वाले हीलियम के गुब्बारों और हाइस्पीड फाइबर नैटवर्क के मुकाबले ड्रोन्स ज्यादा बेहतर ढंग से इंटरनैट लोगों को दे सकते हैं. ऐसे ड्रोन्स बनाने के लिए फेसबुक ने एसेंटा नामक कंपनी से करार भी किया है.

करिश्मा बायोलौजिकल ड्रोन का

विज्ञान जगत ऐसे ड्रोन बनाने की दिशा में भी काम कर रहा है, जो दुर्घटनाग्रस्त होने पर पर्यावरण के लिए कोई खतरा पैदा न करें. कई बार बेहद दुर्गम इलाकों में दुर्घटनाग्रस्त होने वाले ड्रोन वातावरण में रासायनिक कचरे की समस्या उत्पन्न करते हैं. इसे देखते हुए अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के एमेस रिसर्च सैंटर (कैलिफोर्निया) ने माइसेलियम नामक पदार्थ से ड्रोन बनाए हैं, जो न बेहद हलके हैं बल्कि दुर्घटनाग्रस्त होने पर आसानी से पर्यावरण में घुलमिल भी जाते हैं. उल्लेखनीय है कि माइसेनियम नामक पदार्थ से दुनिया में समुद्र के पानी पर सर्फिंग करने वाली बोट्स और शराब की पेटियां बनाई जाती हैं. इन ड्रोन्स पर एक परत सेलुलोस और प्रोटीन की चढ़ाई जाती है, ताकि ये वाटरप्रूफ बन सकें.

सैन्य और वैज्ञानिक उद्देश्यों के अलावा भी ड्रोन्स अब कई काम आ रहे हैं. जैसे ट्रैफिक के संचालन, भीड़ के नियंत्रण और दंगाग्रस्त इलाकों की निगरानी करने में. पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में छठ पूजा और दिल्ली के ही त्रिलोकपुरी इलाके में सांप्रदायिक तनाव का माहौल बनने पर शरारती तत्त्वों पर नजर रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करने की खबरें आई थीं. दिल्ली में यों तो ड्रोन का पहली बार प्रयोग छठ पूजा के दौरान भीड़ की निगरानी के लिए किया गया, लेकिन जब (अक्तूबर-नवंबर, 2014 में) यहां के त्रिलोकपुरी में माहौल कुछ बिगड़ा तो पुलिस ने पूरे इलाके की निगरानी के लिए 4-5 ड्रोन आकाश में तैनात कर दिए. वे 2 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और करीब 2 किलोग्राम वजन के थे. इन मानवरहित ड्रोन्स ने अपने कैमरों से पूरे इलाके की नजदीक से छानबीन की और वे तसवीरें व  वीडियो पुलिस कंट्रोल रूम में हाथोंहाथ पहुंचाई. इस से पुलिस को शरारती तत्त्वों पर काबू पाने में काफी मदद मिली. दंगों के दौरान ड्रोन के  प्रयोग का अपने देश में यह पहला वाकेआ बना.

इस के बाद दिल्ली पुलिस ने ऐसे ड्रोन खरीदने की योजना भी बनाईर् है जो रात में देख सकने वाले नाइट विजन कैमरों और कुछ हथियारों (जैसे कि भीड़ नियंत्रित करने वाली रबड़ की गोलियां बरसाने वाली गन) से लैस हों. अफ्रीका में इसी तरह का पेपर बुलेट ड्रोन बनाया गया है जो भीड़ को नियंत्रित करने के काम आता है.

2 साल पहले (2015) में सरकार दिल्लीमुंबई सहित देश के 7 शहरों में आसमान से निगरानी रखने के लिए ड्रोन तैनात करने का प्रस्ताव दे चुकी है. प्रस्ताव के मुताबिक इन अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स (यूएवी) यानी ड्रोन्स का इस्तेमाल शहरों के ज्यादा ट्रैफिक और भीड़भाड़ वाले इलाकों पर नजर रखने के लिए किया जा सकेगा.

ऐंटी ड्रोन तकनीक

एक तरफ दुनिया में ड्रोन के विविध उपयोग बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ उन जगहों पर इन्हें नष्ट करने वाली तकनीक भी विकसित की जाने लगी है. जैसे अपने भूभाग पर ड्रोन हमलों के कारण अमेरिका से नाराज पाकिस्तान ने 2013 में स्वदेशी ऐंटी ड्रोन टैक्नोलौजी विकसित करने का दावा किया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और आर्मी चीफ परवेज कयानी की मौजूदगी में वहां की सेना (आर्मी एयर डिफैंस) ने बहावलपुर में इस तकनीक के इस्तेमाल से एक ड्रोन को सफलतापूर्वक मार गिराने का दावा किया था. तकनीक में ओरलिकन गन का इस्तेमाल कर के ड्रोन को मार गिराया था.

इसी तरह का एक सफल प्रयोग नवंबर, 2014 में चीन में भी किया गया, हालांकि यहां निशाने पर वे ड्रोन्स थे जिन के बारे में दावा है कि उन का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं. चीन में लेजर रक्षा उपकरणों से लैस इस तकनीक का विकास चाइना एकैडमी औफ इंजीनियरिंग फिजिक्स ने किया है और उस का दावा है कि इस तकनीक की मदद से आसमान में ड्रोन दिखाई देने के 5 सैकंड के अंदर लेजर से उसे नष्ट किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि सस्ता होने और इस्तेमाल में आसान होने के कारण आतंकवादी भी कहीं हमला करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर सकते हैं.                                 

फिलहाल ड्रोन से कुछ और काम भी लिए जा रहे हैं जो इस प्रकार हैं :

शिकारियों पर नजर : भारत के काजीरंगा नैशनल पार्क के सुरक्षा अधिकारियों ने 2013 में ऐलान किया था कि वे 480 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले संरक्षित वन पर नजर रखने के लिए कैमरे लगे ड्रोन का इस्तेमाल करेंगे. गैंडे़ के सींगों के बढ़ते अवैध बाजार की वजह से उन के शिकार की समस्या अब एशिया में ही नहीं बल्कि अफ्रीकी देशों में भी तेजी से बढ़ रही है.

खेल का सीधा प्रसारण : वर्ष 2012 में रूपर्ट मर्डोक की कंपनी फौक्स स्पोर्ट्स आस्ट्रेलिया ने एक क्रिकेट मैच के प्रसारण के लिए पहली बार एक कैमरायुक्त ड्रोन का इस्तेमाल किया था. वर्ष 2013 में एक रग्बी मैच में भी इस तरह का प्रयोग किया गया. दावा किया जा रहा है कि इन हवाईर्मशीनों के इस तरह के इस्तेमाल से भविष्य में लोगों को अपने मनपसंद खेल को उस ऐंगल से देखने का भी मौका मिलेगा, जिस से अभी तक वे महरूम थे.

खबरों पर नजर : अमेरिकी यूनिवर्सिटी औफ नेब्रास्का लिंकन ने ड्रोन जर्नलिज्म लैब तैयार की है. इस के अलावा यूनिवर्सिटी औफ मिसौरी ने ड्रोन जर्नलिज्म का कोर्स भी शुरू किया है. अमेरिकी एविएशन डिपार्टमैंट उन रिसर्चर्स को ड्रोन के इस्तेमाल की आसानी से मंजूरी देने लगा है, जो इस मशीन के अनूठे इस्तेमाल की दिशा में काम कर रहे हैं.

अंगूर भी बचाएंगे : फ्रांस के शहर बोर्डेक्स में वाइन बनाने वाली एक कंपनी ने अंगूरों को संक्रमण से बचाने के लिए कैमरे लगे ड्रोन का इस्तेमाल किया है. ये ड्रोन अपनी उड़ान के दौरान अंगूरों की बेलों की काफी करीब से तसवीरें खींचते हैं, जिस से पता लग जाता है कि कहीं फसलें सड़ने तो नहीं लगी हैं. इसी तरह जापान में कीटनाशकों के छिड़काव के लिए भी ड्रोन का इस्तेमाल हो रहा है.

तेल पाइपलाइनों पर नजर : पैट्रोलियम कंपनी बीपी ने कुछ समय पहले अलास्का में पैट्रोल से चलने वाले एक ड्रोन का परीक्षण किया था. सुदूर सुनसान इलाकों में फैली पाइपलाइनों में किसी किस्म की खराबी तो नहीं आई, यह पता लगाना आसान नहीं है. इस के अलावा, कड़कड़ाती ठंड और तेज हवाओं के मद्देनजर भी उन पर नजर नहीं रखी जा सकती है. इन स्थितियों में ड्रोन काफी काम आते हैं.

आपदा में भी इस्तेमाल : हैती में 2010 में आए भूकंप के बाद बचाव व राहत कार्य चलाने के लिए ड्रोन की मदद ली गई थी. इसी तरह 2013 में उत्तराखंड में विनाशकारी प्रलय के बाद ड्रोन की मदद से पहाड़ों, जंगलों और सुनसान जगहों पर फंसे लोगों की तलाश की गई थी. ये ड्रोन उन इलाकों में भी जाने में सक्षम थे, जहां हैलिकौप्टर्स को उड़ान भरने में दिक्कत का सामना करना पड़ा था.

– ए के सिंह

अवहेलना की शिकार युवतियां

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते…’ जैसे जुमले कह कर स्त्री को मानसम्मान का प्रतीक मानने वाले कट्टरपंथी देश में आज स्त्री की पूजा होती है रेप से, एकतरफा प्यार में कैंची द्वारा गोदगोद कर उस की हत्या से, निर्भया की तरह मौत के बाद भी इंसाफ न मिलने से या फिर गुरमेहर की तरह अभिव्यक्ति की आजादी का दमन कर गालियां व रेप की धमकी दे कर. इस के बाद खुद को जगत गुरु कहा जाता है.

ये तो चंद मामले हैं जो सर्वविदित हैं जबकि आएदिन सुर्खियों में ऐसे मामले आते हैं जिन का सीधा संबंध नारी से होता है लेकिन पुरुषवादी मानसिकता, कट्टरतावादी धर्म पर चलता समाज उस के छींटे भी नारी पर ही डालता है और कहा जाता है कि ये सब होने की वजह युवतियों का घर से निकलना, छोटे कपड़े पहनना, पुरुषों संग मेलजोल बढ़ाना है.

अगर ये सब बातें ही इन जघन्य अपराधों का कारण हैं तो छोटीछोटी बच्चियों के साथ बलात्कार के इतने सारे मामले क्यों प्रकाश में आते हैं? गांवों में जहां लड़कियां न तो पढ़ रही हैं और न छोटे कपड़े पहन रही हैं, वे क्यों वहां मर्दों की शिकार बनती हैं?

समाज में निरंतर बढ़ते अपराध का कारण भी हमारे धर्म की जड़ों में है जहां जन्म से ही लड़के के जन्म पर खुशी और लड़की होने पर शोक मनाया जाता है. बड़े होने पर दहेज हत्याएं, समाज में दकियानूसी सोच का उन्हें शिकार होना पड़ता है. इन्हीं कारणों के चलते एक और अपराध जन्म लेता है भ्रूण हत्या का.

अगर परीक्षण कर पता चला कि गर्भ में लड़की है तो उसे वहीं मार दिया जाता है. इतने साल बाद भी हम समाज की कुरीतियों को बदल नहीं पाए, दहेज प्रथा, बाल विवाह, लड़कियों को कम शिक्षा दिलाना आदि कुरीतियां आज भी समाज में व्याप्त हैं.

नारी को सदा धर्म में भोग की वस्तु माना गया और उसे पुरुष से कमतर आंका गया है. स्त्री निंदा में भी कसर नहीं छोड़ी गई, लेकिन जब हम समाज में यह भेदभाव देखते हैं तो भी आवाज नहीं उठाते, कारण यह भी है कि आवाज कैसे दबाई जाए सब को पता है.

निर्भया कांड को ही ले लीजिए. इस कांड के बाद पूरे देश में धरनाप्रदर्शन, कैंडिल मार्च हुए, नई समितियां गठित की गईं, नए कानून बने, फास्ट ट्रैक अदालतों का निर्माण हुआ, लेकिन बलात्कारियों के पता होने व पकड़े जाने पर भी क्या हम निर्भया को न्याय दिला पाए?

एक दूसरे मामले में कैंची से गोद कर एक सिरफिरा सरेराह युवती को मार देता है तो क्या हुआ? ताजा मामला गुरमेहर का है. आखिर उस का गुनाह क्या है? सिर्फ यही न कि उस ने अपने मन की बात कही? यही कि कट्टरपंथी एबीवीपी का विरोध किया? उस के खिलाफ उसे गालियां दी गईं और उसे अपमानित किया गया. रेप करवा देंगे जैसी धमकियां मिलीं, क्यों?

रेप, एसिड अटैक, दहेज हत्या जैसी बातों की शिकार युवतियां ही हो रही हैं. न्याय के इतने पैर पसारने, सिक्योरिटी की नई तकनीक, आत्मरक्षा के तरीकों और पुलिस की चौकस निगाह के बावजूद आज ये सब हो रहा है.

हाल ही में एक और मामला प्रकाश में आया है जिस में दिल्ली से सटे ग्रेटरनोएडा के लौयड कालेज के निदेशक ने युवतियों के क्लास में 20 मिनट देर से पहुंचने पर उन्हें गालियां दीं. यहां तक कि जूता उठा कर मारने के लिए उन के पीछे भी दौड़े. भले ही उन के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही की गई और अगले दिन उन का इस्तीफा ले कर तत्काल प्रभाव से उन्हें हटा दिया गया, लेकिन युवतियों का अपमान तो हुआ न.

गुरमेहर कौर का मामला

गुरमेहर कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा है और बहुत बोल्ड भी. रामजस कालेज में इतिहास विभाग ने 2 दिन का ‘कल्चरर औफ प्रोटैस्ट’ सैमिनार आयोजित किया था, जिस में पिछले साल विवादों में आए जेएनयू के छात्र उमर खालिद और छात्रसंघ के पूर्व सदस्य को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन एबीवीपी के विरोध के चलते कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. कार्यक्रम रद्द होते ही दोनों गुटों यानी एबीवीपी और आईसा में तनातनी हो गई, जिस में कईर् छात्र घायल हो गए.

ये सब गुरमेहर से देखा नहीं गया और उस ने इस हिंसा के विरोध में एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया, जिसे छात्रों का खूब समर्थन मिला, जिस से एबीवीपी बौखला गई. उसे लगा कि लड़की होते हुए उस ने हमारे खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की, जो उन के लिए खौफ पैदा करने वाली थी.

बदले में एबीवीपी ने साल भर पुराना मुद्दा उछाला और भारतपाकिस्तान शांति के प्रयास के लिए डाले गए गुरमेहर के एक वीडियो, जिस में गुरमेहर ने कहा था, ‘मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा’ को उभारा गया और गुरमेहर को राष्ट्रविरोधी करार दिया गया. उसे न केवल रेप जैसी धमकी मिली बल्कि भद्दी गालियों का भी सामना करना पड़ा.

गुरमेहर इस से डरी नहीं और उस ने कहा कि जो सच था मैं ने वही कहा, मैं एबीवीपी से नहीं डरती. भले ही मैं इस अभियान से अलग हो रही हूं लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मैं डर गई, बल्कि मैं किसी भी तरह की हिंसा नहीं चाहती.

विचारों की कैसी स्वतंत्रता

आज हर व्यक्ति को विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन यह कैसी स्वतंत्रता जहां अपनी बात रखने पर बवाल मच जाता है. यह सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुषों के साथ नहीं, क्योंकि जब समाज में पुरुष कुछ गलत कहें या करें तो उस मामले को दबा दिया जाता है, लेकिन अगर महिला कुछ कहे तो यह समाज को बरदाश्त नहीं होता बल्कि उसे शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने की धमकी दे कर चुप कराने की कोशिश की जाती है.

किसी भी महिला के लिए यह धमकी काफी डरावनी होती है, क्योंकि एक बार अगर उस का रेप हो जाए तो समाज उसे हेयदृष्टि से देखता है और यहां तक कि पढ़ीलिखी होने के बाद भी कोई उस से शादी करना पसंद नहीं करता, भले ही उस की कोई गलती न हो.

इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि महिलाओं को आज भी विचारों की स्वतंत्रता नहीं है और अगर कोई बोलने की जुर्रत करती भी है तो उसे भी गुरमेहर की तरह बिना किसी गलती के अपने घर वापस लौटना पड़ता है.

महिलाओं के हिस्से गालियां ही क्यों

बात चाहे बौयफ्रैंड की इच्छापूर्ति की हो या फिर घर में पति की बात मानने की, जहां भी महिला ने किसी बात को मनाने से इनकार किया तो उसे मांबहन की गालियां दे कर अपनी बात को मनवाने की कोशिश की जाती है और अगर फिर भी उस ने इनकार किया तो ब्लैकमेलिंग की धमकी दी जाती है आखिर ऐसा क्यों?

जब रिश्ता आपसी सहमति से बना हो तो उस में जबरदस्ती कैसी? क्या महिलाएं सिर्फ  भोग की वस्तु हैं जब चाहे उन्हें यूज करो और जब मन भर जाए तो निकाल कर फेंक दो? अपनी इस मानसिकता को जब तक पुरुष नहीं बदलेंगे तब तक समाज व देश का भला नहीं हो पाएगा और पलपल पर महिलाओं को अपमानित हो कर अपने पैदा होने पर ही पछताने पर मजबूर होना पड़ेगा.

आवाज को दबाने वाले दबंग

लाठीपत्थर बरसाने वाले, होहल्ला मचाने वाले ज्यादा दबंग हैं. उन में से ज्यादातर किसी धर्म के मानने वाले ही नहीं परम भक्त और उन के सेवक, दुकानदार हैं. वे धर्म के नाम पर रोब झाड़ते हैं और जबरन चंदा वसूली करते हैं. इन के सामने पुलिस भी नतमस्तक हो जाती है.

इन दबंगों को प्रशासन या सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त होता है. ये साफ कह देते हैं कि अगर बात बिगड़ती दिखी तो हम पैसों और पावर के दम पर सब संभाल लेंगे, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं. ऐसे में इन के हौसले तो और बुलंद होंगे ही.

पुरुष हमेशा प्रत्यक्षदर्शी ही क्यों

जब पुरुष समाज में खुद का अहम रोल मानते हैं और समझते हैं कि उन के बिना महिला का कोई वजूद नहीं तो अकसर ऐसा देखने में आता है कि जब भी कोई बदतमीजी या फिर रेप वगैरा की घटना होती है या फिर मुसीबत में होेने पर महिला हैल्प मांगती है तो पुरुष क्यों चुप्पी साध लेते हैं. तब क्यों नहीं मर्दानगी दिखाते?

दोषी घूमते हैं आजाद

आज माहौल ऐसा बन गया है कि जो निर्दोष है वह सजा भुगतता है, लोगों के घटिया कमैंट का शिकार होता है और जो वास्तव में दोषी है वह खुलेआम आजाद घूम कर और खौफ पैदा करता है.

असल में इस का दोष हमारी कानूनव्यवस्था में है, क्योंकि कभी रेप के आरोपी को नाबालिग के नाम पर छोटीमोटी सजा दे कर छोड़ दिया जाता है तो कभी दोषी मोटी रकम चढ़ा कर अफसरों का मुंह बंद करवा कर आजाद घूमता है.

फ्रीडम औफ स्पीच का समर्थन जरूरी

डीयू में जहां देशविदेश से छात्र पढ़ कर अपना कैरियर संवारते हैं, जहां न पढ़ाई में और न ही किसी और चीज में भेदभाव होता है तो फिर वहां जब महिलाएं सच के खिलाफ आवाज उठाती हैं तो उन का हमेशा विरोध क्यों होता है.

विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ही है कुछ अप्रिय कहने की स्वतंत्रता, तारीफ करनी हो तो किसी स्वतंत्रता की जरूरत ही नहीं. यह तो सऊदी अरब में भी कर सकते हैं और उत्तर कोरिया में भी, भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है अप्रिय सच बोलना, तथ्यों पर सही बेबाक समीक्षा करना. देशभक्ति के नाम पर धर्मभक्ति को थोपने की कोशिश की जा रही है

और हिंदू या इसलामी झंडे की जगह तिरंगा लहरा कर धर्मभक्ति को राष्ट्रभक्ति कहने की कोशिश भारत, इसलामी देशों और कम्युनिस्ट देशों में जम कर हो रही है.

महिलाओं को तो फ्रीडम औफ स्पीच का अधिकार है ही नहीं. आज भले ही गुरमेहर अभियान से पीछे हट गई है, लेकिन फिर भी उस ने अपनी आवाज बुलंद कर दुनिया को बहुत पावरफुल मैसेज दिया है कि अगर आप सही हैं तो डरें नहीं. अगर इस तरह हर किशोरी, युवती, महिला सोचेगी तो कोई भी नारीशक्ति को कमजोर नहीं कर पाएगा और न ही रेप, मारने जैसी धमकियां दे कर डरा पाएगा.

कुसूर किसी और का तो सजा मुझे क्यों

एक लड़की के साथ घटी दुर्घटना उसे किस तरह न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी कितना झकझोर देती है, इसका अंदाज़ा लगा पाना लगभग नामुमकिन है. लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि हादसा चाहे कितना भी दर्दनाक क्यों न हो, इससे उबरने का एक रास्ता कहीं न कहीं जरूर होता है.

 स्टार प्लस का नया धारावाहिक ‘क्या कुसूर है अमला का’ इसी तरह के गंभीर विषय पर आधारित है. पेश है धारावाहिक में अमला का मुख्य किरदार निभा रही पंखुड़ी अवस्थी से बातचीत-

‘क्या कुसूर है अमला का’ धारावाहिक के बारे में कुछ बताइए?

यह तुर्की धारावाहिक फातमागुल का हिंदी रूपातंरण है. इस धारावाहिक में एक गंभीर हादसे के मुद्दे को उठाया गया है. इसमें ज़िन्दगी के एक और भावनात्मक पहलू को दिखाया गया है कि जीवन में वह दौर कितना मुश्किल होता है जब आपको अपने प्यार को खोने के बाद भी सामान्य जीवन व्यतीत करना हो. यह जीवन में विश्वास, नई उम्मीद और प्यार की खोज की कहानी है.

यह तुर्की धारावाहिक का रूपातंरण है तो कैसे यह भारतीय समाज के संदर्भ में है?

डर व असुरक्षा की भावना से सिर्फ भारत की महिलाएं ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की महिलाएं घिरी हुई हैं और यह धारावाहिक भी इसी संदर्भ में है. ऐसे में जब बात हो प्रतिष्ठा, सहानुभूति,क्षमा, नफरत और उम्मीद से भरपूर परिस्थितियों का सामना करने की, तो भारतीय व तुर्की महिलाओं के हालात में कोई अंतर नहीं रह जाता.

हमें अपने किरदार के बारे में बताइए?

मैं इस धारावाहिक में खूबसूरत वादियों वाले कस्बे धर्मशाला की युवा लड़की अमला का किरदार निभा रही हूं, अमला एक ऐसी लड़की है जिसका दुनिया देखने का नज़रिया काफी बड़ा है और उसके सपने ज़िन्दगी के छोटे हसीन लम्हों में बसते हैं. वह मासूम है, भली है और लोगों में खुशी बांटने में विश्वास करती है.

यह धारावाहिक अमला के साथ हुए हादसे के बाद के उसके सफर पर आधारित है और यह बताता है कि हादसे ज़िन्दगी का अंत नहीं होते, बल्कि उम्मीद की एक किरण कहीं न कहीं हमेशा बरकरार रहती है.

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