लेक जेनेवा : बारबार देखो

जेनेवा झील का सम्मोहन मुझे बार बार वहां ले जाता रहा है. लंदन से स्विट्जरलैंड जाना वैसे भी अब पहले से बहुत आसान होता जा रहा है. इस बार जब मैं वहां पहुंची तो होटल की परिचारिका ने आर्द्र और धुंधले मौसम के लिए दुख प्रकट करते हुए मुझे कमरे की चाबी थमाई, तो मैं ने कहा कि मौसम की परवा नहीं. ऐसा कहना मेरी विनम्रता ही नहीं थी, बल्कि जेनेवा पहुंचने पर ऐसा मौसम मुझे सचमुच ही भाता था.

दूसरे दिन आसमान साफ था. चमचमाते सूर्यप्रकाश में स्विट्जरलैंड की सब से बड़ी झील बेहद खूबसूरत और आकर्षक तो लगती ही है, लेकिन जब पर्वत शिखरों से उतरी धुंध झील पर कलाबाजी दिखाने लगती है और वायु, जल पर ‘कोड़ा’ चलाने लगती है, तब यह उच्छृंखल जगह ट्रैवल एजेंटों द्वारा पर्यटकों के लिए तैयार किए गए ब्रोशरों में दिखने वाले चित्रों से भी अधिक कुतूहलजनक हो उठती है.

अंगरेज कवि बायरन और शेली इस विशाल झील में अचानक आए तूफान में डूबते डूबते बचे थे और तभी इस के बारे में कई कविताएं लिखी थीं. मुझे अब आभास हुआ कि ऐसे अवसर क्यों उन्हें काव्यरचना के लिए प्रेरित करते थे.

मैं पहली बार लगभग 36 वर्षों पहले स्विट्जरलैंड घूमने गई थी और तभी यह विशाल झील देखी थी. तब से अब तक कई बार वहां गई हूं और मौसम चाहे जैसा भी हो, यह झील देख कर सम्मोहित हो उठती हूं, निष्पंद हो उठती हूं.

लगभग 9 मील चौड़ी और 45 मील लंबी यह झील पश्चिमी यूरोप की सब से बड़ी झील है. पर मात्र इस की विशालता ही इसे इतना जीवंत नहीं बनाती, बल्कि चारों ओर हरीभरी पहाड़ियों से घिरी हिमाच्छादित चोटियां इसे ऐसी मोहकता प्रदान करती हैं.

यही कारण है कि स्विट्जरलैंड के प्राकृतिक दृश्यों के सब से बड़े चित्रकार हाडलर द्वारा इस झील का चित्रांकन स्तब्ध कर देता है. लेकिन वे भी इस के झंझावात तथा रहस्यमय सौंदर्य का सही चित्रण नहीं ही कर पाए.

लेक जेनेवा सैलानियों, विशेषकर अंगरेजों की पसंदीदा सैरगाह रही है. 1816 में ब्रिटिश पत्रकारों से बचने के लिए लौर्ड बायरन वहां आए थे. उन दिनों कामातुर ख्यात लोगों की आलोचना करने से संबद्ध कोई कानून नहीं था. वहां उन के साथ परसी बिशी शेली अपनी पत्नी और बच्चों से छिप कर अपनी किशोरी प्रियतमा मेरी गाडविन के साथ आ पहुंचे थे.

इन दोनों कवियों ने लेक जेनेवा के संबंध में ऐसी कविताएं लिखीं कि वह जगह अंगरेजों की प्रिय सैरगाह बन गई. उन की कविताओं की पुस्तकें लिए अंगरेज वहां आ पहुंचते थे. वहीं पर मेरी शेली ने 1816 में अपना विख्यात उपन्यास ‘फ्रेंकेस्टाइन’ लिखा था. यह उपन्यास पढ़ने में जितना रोचक है उतनी ही भयावह उस पर बनी फिल्में हैं.

जब मैं पहली बार वहां गई थी, तब वहां रुकना बहुत खर्चीला नहीं था. इसी कारण तब वहां अंगरेज भी भरे रहते थे. पर अब स्विस फ्रैंक महंगा हो जाने के कारण वहां अंगरेजों की चहलपहल कम हो गई है, पर नवधनाढ्य रूसी यहां गरमी की पूरी छुट्टियां बिताते हैं. फिर भी वहां आने पर इस बात की संतुष्टि हुई कि सप्ताहांत के 2 दिन भी थोड़े में गुजारना कठिन नहीं था.

हम जब पहली बार पूरे सप्ताह के लिए स्विट्जरलैंड गए थे तब हम ने लंदन में ही स्विस टूरिस्ट औफिस से 180 पौंड में 4 दिनों का पास खरीद लिया था. इस पास से हम चाहे जितनी बार बस, ट्रेन, बोट तथा ट्राम द्वारा सभी जगह तो घूम ही सकते थे, वहां के अधिकांश संग्रहालयों में भी बिना टिकट जा सकते थे. सुननेपढ़ने में यह उतना सस्ता तो नहीं लगेगा, पर इस पास से हमें सचमुच काफी बचत हुई.

इस बार स्विट्जरलैंड पहुंचने पर हम सब से पहले मौंट्रेक्स में बहुत ऊंचाई पर बने होटल यूरोटेल में रुके. वहां चारसितारा होटल जैसी सारी सुविधाएं थीं और यह जेनेवा एयरपोर्ट से मात्र 1 घंटे की दूरी पर है. यहां से फेरी टर्मिनल पैदल ही कुछ मिनटों में पहुंचा जा सकता था. इस प्रकार झील के चारों ओर नौकाभ्रमण के लिए यह एक सही जगह थी.

लेक जेनेवा का सब से शानदार आकर्षण है वहां का नावों का तंत्र. कुछ नावें तो पहले की पैडल मार कर चलाने वाली स्टीमर हैं जिन का अपना ही आनंद है, पर आधुनिक स्टीमर भी कम आनंददायी नहीं हैं. पर्यटकों में तो ये लोकप्रिय हैं ही, स्थानीय लोग भी इन्हें पसंद करते हैं.

झील दर्शन के लिए ये बेहद अच्छा और सस्ता साधन है, साथ ही झील के आरपार जाने के लिए सुविधाजनक भी क्योंकि ये छोटेछोटे घनी झाडि़यों वाले 30 से भी अधिक बंदरगाहों पर रुकती हैं.

झील में और उस के आसपास घूमने के बाद हम ने जेनेवा जाना तय किया. लोगों की धारणा है कि जेनेवा एक बहुत ही बोरिंग व्यापारिक शहर है, पर ऐसा केवल उन लोगों के लिए हो सकता है जो केवल व्यापार के सिलसिले में किसी मीटिंग में यहां आते हैं, होटल में ठहरते हैं और मीटिंग के बाद लौट जाते हैं.

जेनेवा दरअसल एक विश्व स्तर का शहर है जिस का इतिहास बहुत समृद्घ और विविधतायुक्त रहा है. वहां अच्छेअच्छे संग्रहालय हैं जिन में एक कला संग्रहालय भी है जिस में हाडलर के बनाए स्विट्जरलैंड संबंधी चित्रों का अच्छा संग्रह है. इन चित्रों को देखना हमें अंतरतम तक भिगो गया. उस के बाद हम पुराने शहर में कलादीर्घाओं और एंटिक वस्तुओं का आनंद लेते रहे.

अगले दिन हम न्योन के लिए चल पड़े जो रोमनकाल में महानगर था. आजकल यह बाजारों वाला मध्यवर्गीय शहर है, क्योंकि पास ही में स्थित बड़े शहर जेनेवा की वजह से इसे छोटा माना जाना स्वाभाविक है. वहां हर तरफ रोमन खंडहर हैं जिन्हें देखना भी एक अलग तरह का अनुभव था. वहां एक भव्य पुरातात्विक संग्रहालय भी है जहां एक से बढ़ कर एक अजूबी चीजें देखने को मिलीं. वहां टूरिस्ट औफिस से मिले एक ब्रोशर से हमें शहर घूमने और वहां के दर्शनीय स्थलों तक पहुंचने में बड़ी आसानी हुई.

न्योन के बाद हम लुसाने पहुंचे. वहां तक तो झील बड़ी नहीं लगी थी पर लुसाने के रास्ते में जेनेवा झील का वृहत्तर रूप दिखने लगा. झील के किनारे बसा लुसाने शहर स्विट्जरलैंड का सब से जीवंत शहर कहा जा सकता है. वहां बाहरी विद्यार्थियों की संख्या अधिक है जिस से वहां खूब चहलपहल बनी रहती है. गरमी के दिन थे, इसलिए वहां की संकरी सड़कें लोगों से भरी पड़ी थीं. सारा वातावरण भूमध्यसागरीय लग रहा था.

ऊपर पहाड़ी पर अलंकृत गिरजाघर से स्तब्ध करते आल्पस पर्वत और लहराती हुई झील को देख कर जो अनुभव हुआ, उसे लेखनी द्वारा बता पाना मुश्किल है. कुछ दृश्य ऐसे होते हैं जिन्हें केवल महसूस किया जा सकता है, न तो लेखनी उन का सही वर्णन कर पाती है और न ही तूलिका द्वारा उन्हें चित्रों में उतारा जा सकता है. शायद, इसे देख कर ही विक्टर ह्यूगो ने लिखा था- ‘मैं ने झील को छतों पर देखा, पहाड़ को झील के ऊपर, बादलों को पहाड़ के ऊपर और तारों को बादलों के ऊपर’. काश, मैं इस से अच्छा लिख पाता.

वेवे पहुंच कर पहले तो लगा कि वह बड़ा ही नीरस शहर है, जहां बहुत ही कम दर्शनीय स्थल हैं, पर कुछ समय बिताने के बाद वह मेरा पसंदीदा शहर बन गया. उपन्यासकार ग्राहम ग्रीन ने अपना घर यहीं बसाया था और चार्ली चैपलिन ने भी शहर के किनारे स्थित महल जैसे घरों में से एक में अपना अंतिम समय बिताया था जिसे अब एक सुंदर संग्रहालय का रूप दे दिया गया है. हम उस ‘होटल डू लेक’ में केवल कौफी पीने गए जहां अनीता बु्रकनर ने अपना इसी नाम का बुकरपुरस्कृत उपन्यास लिखा था.

आश्चर्यजनक रूप से धीरगंभीर मगर लावण्य से भरपूर वेवे के बाद हमें मौंट्रेक्स बड़ा ही बेतुका, गड्डमड्ड, फीका और आधुनिकता का मुलम्मा चढ़ा शहर लगा. पर इन खामियों के बावजूद मौंट्रेक्स में उस के स्वर्णकाल के कुछ अवशेष बचे हुए हैं. रूसी उपन्यासकार नोबोकोव यहीं मौंट्रेक्स पैलेस होटल में रहते थे. होटल के बाहर कुरसी पर बैठी उन की एक भव्य प्रतिमा है जिसे इस प्रकार बनाया गया है जैसे वे तुरंत कुरसी से लुढ़क जाएंगे.

तटक्षेत्र से लगभग आधा घंटा पैदल चल कर हम शैटे द चिलौन से रूबरू हुए. कहा जाता है कि यही वह किला है जिस ने बायरन को उस की चर्चित कविता ‘द प्रिजनर औफ चिलौन’ लिखने को प्रेरित किया था. सोचती हूं कि काश, बायरन की थोड़ी सी भी साहित्यिक प्रतिभा मुझ में भी समा जाती. कई बार लेक जेनेवा जाने पर भी अभी तक तो यह इच्छा पूरी नहीं हुई है, पर अभी भी प्रतीक्षा है.

लंबा नहीं चल पाया इन स्टार्स का रिश्ता

बॉलीवुड में कुछ कपल्स ऐसे हैं जिनकी शादी कुछ समय तक ही टिक पाई. ऐसे में जब उनके अलग होने की बात सामने आई तो उनके फैंस इससे काफी हैरान और निराश हुए. ऐसे सेलेब्रिटीज के बारे में जो शादी के कुछ ही साल बाद एक-दूसरे से अलग हो गए.

कल्कि कोचलीन और अनुराग कश्यप

बॉलीवुड डायरेक्टर अनुराग कश्यप और एक्ट्रेस कल्कि कोचलीन 2011 में शादी के बंधन में बंधे थे. लेकिन इनकी शादी सिर्फ दो साल ही चल पाई और 2013 में दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए. कहा जाता है कि अनुराग की हीरोइनों से नजदीकी बढ़ती जा रही थी जो कल्कि को पसंद नहीं थी.

मल्लिका शेरावत करन सिंह गिल

कहा जाता है कि मल्लिका शेरावत कभी इस बात को नहीं मानतीं कि वो शादी कर चुकी हैं. लेकिन उनकी कुछ तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि उन्होंने पायलट करन सिंह गिल से शादी रचाई थी. मल्लिका की ये शादी सिर्फ एक साल ही चल पाई.

करन सिंह ग्रोवर और श्रद्धा निगम

करन सिंह ग्रोवर की पहली शादी श्रद्धा निगम के साथ हुई थी जो सिर्फ दस महीने ही चल पाई. इसके बाद करन ने जेनिफर विंगेट से शादी की और ये शादी भी दो साल से ज्यादा नहीं टिक पाई. फिलहाल करन एक्ट्रेस बिपाशा बसु के साथ अपनी शादी-शुदा जिंदगी जी रहे हैं.

पुलकित सम्राट और श्वेता रोहिरा

पुलकित सम्राट और श्वेता रोहिरा एक दूसरे के साथ रिलेशनशिप में थे और 2014 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए. इसके बाद पुलकित और यामी गौतम के अफेयर की खबरें सामने आईं और 2015 में ही श्वेता और पुलकित एक दूसरे से अलग हो गए.

मनीषा कोइराला और सम्राट

मनीषा कोइराला ने नेपाली बिजनेस मैन सम्राट से 2010 में शादी की थी लेकिन ये शादी भी लंबे समय तक नहीं चल पाई और दो साल के बाद ही दोनों एक दूसरे से अलग हो गए.

आईलाइनर लगाने का सही तरीका जानती हैं आप!

आंखों में काजल लगाना हर लड़की को पसंद होता है. काजल के साथ ही अगर आईलाइनर से आंखों को टचअप दे दिया जाए तो चेहरे का लुक पूरी तरह से बदल जाता है और चेहरे पर निखार आ जाता है. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि लाइनर लगाने के बाद वह आंखों और हमारे चेहरे को सूट नहीं करता. ऐसा इसलिए होता है क्‍योंकि अधिकतर लड़कियों को पता ही नहीं होता कि आंखों में लाइनर आंखों की शेप के अनुसार लगाना चाहिए.

आइए जानें आंखों की शेप के अनुसार कैसा आईलाइनर आपको सूट करेगा..

बड़ी आंखें

अगर आपकी आंखें बड़ी-बड़ी हैं तो आप खुद को लकी फील करा सकती हैं क्‍योंकि आपको ज्‍यादा रूल फॉलो करने की जरूरत नहीं है. आप कैट आईलाइनर और विंग्‍ड स्‍टाइल दोनों को कभी भी बेहिचक लगा सकती हैं.

स्‍मॉल आईज

स्‍मॉल आईज हैं तो कभी भी अपनी आंखों की बॉटम लाइन पर डार्क लाइनर लगाने से बचें. लाइनर को टॉप लैश लाइन से पतली लाइन के साथ स्‍टार्ट करें और एंड पर आकर इसे हल्‍का मोटा कर दें.

उभरी हुई आंखें

ऐसे आंखों का आकार थोडा़ उभरा होता है और पलकों का साइज भी काफी बड़ा होता है. आप अपनी आंखों पर स्‍टार्टिंग लाइन से लेकर एंड कॉर्नर तक मोटा या पतला एक जैसा लाइनर लगा सकती हैं.

राउंड शेप्‍ड आई

राउंड शेप्‍ड आंखें बड़ी और चौड़ी होती हैं और ऐसी आंखों पर विंग्‍ड आईलाइनर बहुत अच्‍छा लगता है.

 बादाम के जैसी आंखें

अगर आपकी आंखों की बनावट बिल्‍कुल बादाम के आकार की जैसी है तो आप विंग्‍ड आईलाइनर स्‍टाइल को लगाएं और इसके एंड पर इसे फिल्‍क्‍स का अंदाज दें.

सेहत की खान है दालचीनी

क्या आपको पता है शहद और दालचीनी भी घरेलू नुस्खें में अहम भूमिका निभाते है. आइये आज हम आपको बताते हैं ‘दालचीनी’ के क्या हैं अनोखे फायदें.

1. सर्दी-खांसी में फायदेमंद

ये तो सुना होगा कि अगर खांसी हो तो शहद में अदरक मिलाकर खा लें लेकिन शहद के साथ पीसी हुई दालचीनी खा लें जुकाम में जल्द आराम मिलेगा साथ ही गर्म पानी में शहद और दालचीनी का पाउडर मिलाकर पीने से खांसी में काफी आराम मिलेगा.

2. पेट की बीमारी में मददगार

पेट से संबंधित बीमारी पेट दर्द, कब्ज और एसिडिटी में दालचीनी पाउडर लेने से आराम मिलेगा. साथ उल्टी-दस्त की समस्या में भी फायदा मिलेगा.

3. सिर दर्द में भी कारगर

अगर आपका सर ज्यादा दर्द करने लगे तो दालचीनी का पेस्ट माथे पर लगाने से आपको दर्द छुमंतर हो जाएगा.

4. किसी भी सूजन में है फायदेमंद

चोट लगने से कही सूजन हो जाए तो दालचीनी के तेल हल्के हाथों से मालिश करने से वह सूजन दूर हो सकती है.

5. मुंह की बदबू करें दूर

मुंह से बदबू आने की समस्या में दालचीनी को मुंह में रखकर चूसना से बदबू दूर हो जायेगी.

कोई बड़ी खरीदारी करने जा रही हैं तो खुद से पूछें ये सवाल

अपने परिवार के लिए तो कम पैसे में जरूरतों को पूरा करते हुए घर चलाना यकीनन आपके लिए एक बड़ी चुनौती होती है. यही वजह है कि किसी महीने अगर कुछ बड़ी और महंगी खरीदारी करनी होती है तो घर का बजट पटरी से उतर जाता है और पूरे महीने आपको एडजेस्ट करके चलना पड़ता है.

कोई बड़ी खरीदारी जरूरी भी हो और आप नहीं चाहती कि इसका घर खर्च पर ज्यादा असर पड़े या फिर भविष्य में इस सामान की वजह से आपको पछताना पड़े, तो अपनी और अपने पति की जेब धीली करने से पहले अपने आप से ये 5 सवाल जरूर पूछें.

1. क्या ये मेरे बजट में है?

दरअसल कई बार आप लालच, शौक या किसी से भहकावे में आकर बड़ी खरीदारी कर लेती हैं जिसकी वजह से पूरे महीने आपको अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का त्याग करना पड़ता है. इसलिए बेहतर है कि ऐसी खरीदारी से पहले अच्छी प्लानिंग करें अगर सामान बजट में हो तभी खरीदें वरना दो-तीन महीने में पैसे इकट्ठे करके सामान खरीदें.

2. क्या इस सामान की मुझे भविष्य में जरूरत पड़ेगी?

एक बात हमेशा ध्यान रखें कि जो सामान आप खरीदने जा रही हैं वो ‘वन टाइम यूज’ न हो. अगर भविष्य में भी आपको उसकी जरूरत पड़ने वाली हो तभी इसे खरीदने का फैसला करें. क्योंकि एक-दो बार की जरूरत के लिए तो आप किसी से मांगकर भी सामान अरेंज कर सकती हैं.

3. क्या ये चीज टिकाऊ हैं?

किसी भी चीज की गुणवत्ता बहुत महत्व रखती है. सामान की क्वालिटी को परखना भी एक कला है. कुछ लोग ज्यादे पैसे देकर भी अच्छी क्वालिटी के सामान नहीं खरीद पाते और ठग का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में अपने साथ उस सामान के जानकार को साथ ले जाएं या फिर खुद से समझदारी बरतें.

4. क्या ये इसका वाजिफ मूल्य है?

कई बार ऐसा होता है कि जो सामान आप खरीद कर लाती हैं वो दूसरी दुकान या वेबसाइट्स पर कम दाम में मिल रही होती है. ऐसे में कुछ भी बड़ा खरीदने से पहले आपको अच्छे से रिसर्च जरूर कर लेनी चाहिए. कई बार तो वेबसाइट्स पर मिल रहे डिस्काउंट्स ऑफर और कूपन से दाम पर काफी फर्क पड़ जाता है.

5. इसकी रिटर्न पॉलिसी क्या है?

सामान घर लाने की जल्दबाजी में उसकी रिर्टन पॉलिसी के बारे में जानकारी लेना न भूलें. इतना ही नहीं सामान की गारंटी और वारंटी के बारे में भी ढंग से पूछताछ कर लेनी चाहिए ताकि अगर सामान वारंटी पीरियड के अंदर खराब होता हैं तो फ्री में उसकी सर्विसिंग या एक्सचेंज कर सकें. कई ऐसे दुकानदार होते हैं जो चीजे वापस नहीं करते इसलिए इस सब का जायजा खरीदारी के वक्त ही ले लें.

खुल गया राणा दग्गुबती के जिंदगी का सबसे बड़ा राज

जब से बाहुबली-2 रिलीज हुई है तब से पूरे देश में हर ओर बस इसी फिल्म की चर्चा चल रही है. फिल्म से केवल एस.एस. राजामौली और बाहुबली की भूमिका निभाने वाले प्रभास को ही प्रसिद्धि नहीं मिली बल्कि भल्लाल देव की भूमिका निभाने वाले राणा दग्गुबाती के काम की भी लोग खूब तारीफ कर रहे हैं.

आपको बता दें कि पूरे देश में कभी भी किसी भी भाषा की फिल्म की रिलीज का दर्शकों को इतनी बेसब्री से इंतजार नहीं रहा, जितना ‘बाहुबली 2’ की रिलीज का था.

‘बाहुबली 2’ में अपने दमदार स्टंट से दर्शकों को अपना कायल बनाने वाले राणा दग्गुबाती ने असल जिंदगी में एक बहुत बड़ा राज सबसे छिपाया हुआ है. राज भी ऐसा जिसका जिक्र उन्होंने आज तक कभी किसी से नहीं किया. लेकिन अब ये राज सबके सामने खुल गया है.

हाल ही में ‘बाहुबली 2’ में भल्लाल देव का किरदार निभाने वाले राणा दग्गुबाती ने एक तेलुगु रियलिटी शो में बताया कि वो बचपन से ही अपनी एक आंख से नहीं देख सकते.

उन्होंने कहा कि अगर कभी वो अपनी बायीं आंख बंद कर लेते है तो उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता. जिन्दगी की इतनी बड़ी कमी के बावजूद राणा के हौंसले काफी बुलंद है.

दग्गुबाती कहते है कि उन्होंने अपनी इस कमी को ना तो कभी खुद महसूस किया और ना ही किसी और को महसूस होने दिया. वाकई राणा दग्गुबाती रील लाइफ में ही नहीं अपनी रीयल लाइफ के भी हीरो है.

गर्मी में उपचार से बेहतर है बचाव!

मई का महीना आ गया है और सूरज अपनी तीव्रता दिखाना शुरु कर चुका है. और इसलिए अब गर्मी में होने वाले आम रोग जैसे शरीर में डिहाइड्रेशन, चक्कर आना, घबराहट होना, उलटी-दस्त होना, सन बर्न, घमोरियां जैसी कई बिमारी हो सकती हैं.

बीमारियों के होने में प्रमुख कारण

– गर्मी के मोसम में खुले शरीर, नंगे सर, नंगे पाँव धूप में चलना.

– तेज गर्मी में घर से खाली पेट बाहर जाना.

– कूलर या AC से निकल कर तुरंत धूप में जाना.

– बाहर धूप से आकर तुरंत ठंडा पानी पीना और सीधे कूलर या AC में बैठ जाना.

– तेज मिर्च-मसाले, बहुत गर्म खाना, चाय, शराब इत्यादि का सेवन ज्यादा करना.

– सूती और ढीले कपड़ो की जगह सिंथेटिक और कसे हुए कपडे पहनना.

ये कुछ कारण हैं जो गर्मी से होने वाले रोगों को आसानी से और जल्दी से पैदा कर देते हैं.

आप कुछ छोटी-छोटी पर महत्त्वपूर्ण बातो का ध्यान रख कर, इन सबसे बचे रह कर, गर्मी का आनंद ले सकते हैं.

हम आपको बताने जा रहे हैं वचाव के कुछ तरीके

– गर्मी में मीठा, ठंडा और लिक्विड खानपान ही हितकर होता है.

– गर्मी में जब भी घर से निकले, कुछ खा कर और पानी पी कर ही.

– गर्मी में ज्यादा भारी, बसा युक्त भोजन न करें. गर्मी में भारी खाना पूरी तरह पचा पाना थोड़ा मुश्किल होता है और जरुरत से ज्यादा खाने या भारी खाना खाने से उलटी-दस्त की शिकायत भी हो सकती है

– गर्मी में सूती और हल्के रंग के कपड़े ही पहनने चाहिये.

– चेहरे और सर को रुमाल या साफी से ढक कर बाहर निकलना चाहिये.

– तेज गर्मी के मौसम में प्याज का सेवन तथा जेब में प्याज रखकर चलना चाहिये.

– बाजार की चीजों के बजाए घर की बनी ठंडी चीजो का सेवन करना चाहिये.

– लौकी, ककड़ी, खीरा, तोरे, पालक, पुदीना, नीबू, तरबूज आदि का सेवन अधिक करना चाहिये.

– रोजाना 2 से 3 लीटर ठण्डा पानी पीना चाहिए.

इन कुछ छोटी छोटी बातो का ध्यान रख कर गर्मी की गर्मी से आप स्वयं को बचा सकते हैं!

निजी जिंदगी में किसी की हाफ गर्लफ्रेंड रही हूं : श्रद्धा कपूर

शक्ति कपूर की बेटी व अभिनेत्री श्रद्धा कपूर निरंतर सफलता की ओर अग्रसर हैं. वैसे ‘रॉक ऑन 2’ और ‘ओ के जानू’ जैसी उनकी कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर दम तोड़ चुकी हैं, मगर इससे उनके करियर पर कोई असर नहीं हुआ. वह लगातार सफलता की ओर अग्रसर हैं.

इन दिनों वह चेतन भगत के उपन्यास ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ पर आधारित इसी नाम की फिल्म में दिल्ली की अमीर लड़की रिया सोमानी का किरदार निभाकर काफी उत्साहित हैं. हाल ही में श्रद्धा कपूर से ‘‘सरिता’’ पत्रिका ने बातचीत की तो श्रद्धा कपूर ने कबूला की निजी जिंदगी में वह भी किसी की हाफ गर्लफ्रेंड रही हैं.

‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ को कैसे परिभाषित करेंगी?

‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ को परिभाषित करते हुए श्रद्धा कपूर ने कहा, ‘‘मेरी नजर में इस संसार में हर इंसान कई बार हाफ गर्लफ्रेंड या हाफ ब्वायफ्रेंड होता है. वास्तव में हमारी जिंदगी में तमाम ऐसे रिश्ते होते हैं, जिन्हें हम कोई नाम नहीं दे सकते. फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ की ही तरह मेरा इस बात में यकीन है कि हमारी जिंदगी में एक वक्त वह भी आता है, जब कोई इंसान हमारे लिए दोस्त से बढ़कर होता है. लेकिन वह असल में प्रेमी नहीं होता है. वह दोस्त व प्रेमी के बीच कहीं होता है.’’

फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ की टैग लाइन है, ‘‘दोस्त से ज्यादा गर्लफ्रेंड से कम’’. निजी जीवन में इस तरह के रिश्तों को कैसे देखती हैं?

मेरी राय में इस तरह की चीजें आज कल बहुत होने लगी हैं. क्योंकि आज की पीढ़ी किसी भी रिश्ते को लेकर कमिटमेंट नहीं करना चाहती या फिर आधा कमिटमेंट करना चाहती है. मैं भी निजी जिंदगी में ऐसे रिश्ते में थी, जहां मैं किसी की हाफ गर्लफ्रेंड रही हूं. क्योंकि उस वक्त मैं भी अपनी तरफ से आश्वस्त नहीं थी कि मैं कितना कमिटमेंट कर सकती हूं या यूं कह सकते हैं कि तब वक्त ठीक नहीं था. सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता कि क्या वजहें थीं.

मेरी राय में आज की तारीख में इस तरह के अनुभव से ढेर सारे लोग गुजरते हैं. इसी के चलते हाफ गर्लफ्रेंड या हाफ ब्वॉयफ्रेंड की सिच्युएशन आ जाती है. इसके पीछे दूसरी वजहें भी हो सकती हैं. हो सकता है कि लड़का कमिटमेंट करना चाहता हो, पर उसके माता पिता इस रिश्ते के खिलाफ हों या लड़की के माता पिता खिलाफ हों या जाति व धर्म का मसला हो.

आप निजी जिंदगी के अपने रिश्ते को लेकर क्यों श्येर नहीं थी. किस तरह की समस्या थी?

मुझे पता नहीं था कि मुझे अपनी जिंदगी में क्या चाहिए. सच कहूं तो मैं अभी भी उसी को खोज रही हूं. फिल्मों में भी बहुत व्यस्त हूं.

क्या खुद को तलाशना आसान है?

मेरे ख्याल से खुद को तलाशना बहुत मुश्कि होता है. खुद को जानना आसान नहीं होता है. हम सभी इस गलतफहमी में रहते हैं कि हम अपने आपको बहुत अच्छी तरह से जानते व समझते हैं.

प्राकृतिक सौंदर्य की अनमोल धरोहर ओडिशा

भारत में कुछ पर्यटन स्थल ऐसे हैं जो अपनी संस्कृति और विरासत के मामले में अद्वितीय हैं. ओडिशा राज्य उन्हीं में से एक है. अपनी समृद्ध परंपरा एवं अपार प्राकृतिक संपदा से युक्त ओडिशा पर्यटन के लिहाज से महत्त्वपूर्ण प्रदेश है. इस राज्य में अनगिनत खूबसूरत नजारे व अनुभव सिमटे हुए हैं.

चिल्का झील

जगन्नाथपुरी से 165 किलो- मीटर दूर स्थित चिल्का झील का सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है. खारे पानी की सब से बड़ी यह झील बंगाल की खाड़ी में जा कर मिलती है. राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में फैली यह झील अपनी अवर्णनीय खूबसूरती एवं पक्षी जीवन के लिए विश्वप्रसिद्ध है. झील में कैस्पियन सागर, बैकल झील व अरब सागर से ले कर रूस, मंगोलिया व दक्षिणपूर्व एशिया, लद्दाख व हिमालय से पक्षी आते हैं. ये पक्षी 12 हजार किलोमीटर से भी अधिक का सफर तय कर चिल्का झील तक पहुंचते हैं. झील के एक ओर संकरा सा मुखद्वार है जहां से ज्वार के समय समुद्री जल इस में आ समाता है और तब सुंदर लैगून की रचना होती है.

चिल्का झील में महानदी की भार्गवी, दया कुसुमी, सालिया, कुशभद्रा जैसी धाराएं भी समाहित होती हैं. इन के चलते इस में मीठे जल का संगम होता है. इस मिश्रित जल में ऐसे कई गुण हैं जो यहां के जलीय पौधों व जीवजंतुओं को जीवनदान देते हैं. यहां पक्षियों की लगभग 158 प्रजातियां देखी जाती हैं. इन में 95 प्रकार के प्रवासी होते हैं जो यहां आ कर डेरा डालते हैं.

बत्तख, नन्हे, स्टिनर, सेंडरलिंग, के्रन, गोल्डन, प्लोवर, फ्लेमिंगो, स्टोर्क गल्स और ग्रे पेलिकन यहां पाए जाने वाले प्रमुख पक्षी हें. अक्तूबर- नवंबर माह से आने वाले पक्षी दिसंबरजनवरी में ऐसे दिखते हैं मानो पक्षियों की अलगअलग कालोनियां बसी हों.

अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है. 1973 में इस झील को वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी घोषित किया गया था. फिशिंग के शौकीन लोगों के लिए चिल्का झील एक फेवरेट स्पौट है. इस के पानी में मछलियों की 150 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. हो सकता है आप को इस के मुखद्वार पर डौल्फिन के दर्शन भी हो जाएं.

चिल्का झील ओडिशा की एक ऐसी सैरगाह है जिसे देखे बिना ओडिशा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती. सूर्य की स्थिति एवं झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर पहर में अलग रंग व रूप में नजर आती है.

झील की सैर

चिल्का झील की प्रचुर जलराशि के सौंदर्य को एक जगह से देखना संभव नहीं है क्योंकि नाशपाती के आकार की लगभग 1100 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली यह झील लगभग 70 किलोमीटर लंबी व 15 किलोमीटर चौड़ी है. इस की औसत गहराई 3 मीटर है. जहां झील के एक ओर नीला सागर है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजमार्ग व रेलवे लाइन से आगे हरीभरी पहाडि़यां हैं.

चिल्का भ्रमण के लिए पुरी व भुवनेश्वर से कंडक्टेड टूर भी चलते हैं. कटक, भुवनेश्वर, पुरी व बेरहमपुर से बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. पर्यटकों के ठहरने के लिए रंभा व बरकुल में ओडिशा पर्यटन विभाग के निवास होटल हैं.

हनीमूनर्स पैराडाइज

प्रकृति के वरदान को अपने में समेटे चिल्का झील को हनीमूनर्स पैराडाइज के नाम से भी जाना जाता है. चिल्का झील की सैंक्चुरी में लाखों अद्भुत पक्षियों को देखना हनीमून पर आए जोड़ों को लुभाता है. यहां नवविवाहित जोड़े नौका विहार के साथ फिशिंग का भी आनंद ले सकते हैं. चिल्का झील पर जलीय वनस्पतियों से बने छोटेछोटे द्वीपखंड चिल्का के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं. इन द्वीपों में कालीजय द्वीप, बर्ड आइलैंड, बे्रकफास्ट आइलैंड, हनीमून आइलैंड, परीकुंड तथा नालाबन प्रमुख हैं.

झील के तट पर हर वर्ष लगने वाला तारतारिणी मेला व बोट रेस भी पयर्टकों को खासी आकर्षित करती है. झील के चारों ओर स्थित पहाड़ों पर झुके बादलों का अभिनव रूप टापू पर स्थित पक्षियों के साथसाथ पर्यटकों का भी मन मोह लेता है.

नंदनकानन वन

पर्यटन के नजरिए से समृद्ध इस प्रदेश का नंदनकानन वन अपने प्राकृतिक सौंदर्य, लहलहाते हरित वन आवरण, फलफूलों तथा पशुपक्षियों की व्यापक किस्मों के लिए मेजबान का काम करता है. भुवनेश्वर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर लगभग 400 हैक्टेअर में फैले इस पार्क को ‘गार्डन औफ प्लेजर’ भी कहते हैं. इस वन में वनस्पतियों और जीवजंतुओं को कुदरती वातावरण में फलनेफूलने का मौका मिलता है.

अगर आप ज्यादा चलनाफिरना नहीं चाहते तो एरियल रोपवे और केबल कार द्वारा इस वन में घूमने का आनंद उठा सकते हैं. सफेद बाघों के अलावा शेर, तेंदुए, घडि़याल, काले चीते, रोजी पेलिकन, ग्रेपेलिकन, पाइपन, किंगकोबरा आदि जीवजंतु यहां के मुख्य आकर्षण हैं जो प्रकृति व वाइल्डलाइफ प्रेमियों को ताजगी व सुकून का एहसास देते हैं. किस्मकिस्म के स्वदेशी पौधों से भरा बोटैनिकल गार्डन भी नंदनकानन वन का एक अन्य मुख्य आकर्षण है.

नंदनकानन पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन व एअरपोर्ट भुवनेश्वर है. यहां से आप बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं. सड़क मार्ग द्वारा नंदनकानन वन ओडिशा के प्रमुख शहरों जैसे भुवनेश्वर, भवानीपटना, नवरंगपुर आदि से जुड़ा हुआ है.

नए आयाम देते तट

बालेश्वर तट

बालेश्वर का शांत समुद्र तट निश्चित रूप से देश के अनेक अति सुंदर समुद्र तटों में से एक है. विसर्पी लताओं तथा हवा से गूंजती आकाश बेलों से मुक्त रेतीले टीलों की हरियाली लहरों के खेल का अवलोकन करने में मग्न पर्यटकों के लिए एक अद्भुत क्षण का सृजन करती हैं.

चांदीपुर तट

चांदीपुर आकाश बेल के वृक्षों की संगीतमय गूंज तथा विसर्पी रेतीले टीलों से ढका हुआ है. यह एक शांत समुद्री तट है. निम्न ज्वार के समय समुद्र का जल लगभग 5 किलोमीटर पीछे हट जाता है तथा ऊंचे ज्वार के समय फिर तट रेखा तक पहुंच जाता है. यह समुद्री तट इस की उथली गहराइयों में चलने का अवसर देता है.

पुरी बीच

पुरी का बीच यानी समुद्र तट सैलानियों में अत्यंत लोकप्रिय है. सब से ज्यादा सैलानी इसी बीच पर आ कर मौजमस्ती करते हैं. उत्तर भारतीय निवासियों के लिए यहां यह एक नया अनुभव होता है क्योंकि बहुत से लोगों ने समुद्र तट पहली बार देखा होता है. तेज लहरों के बीच अगर आप तैराकी नहीं कर सकते तो तट के किनारे बैठ कर आती लहरों में भीगने का मजा ले सकते हैं.

तो खूब चढेगा मेंहदी का रंग

मेंहदी सोलह सोलह श्रृंगार में से एक है. हमारे देश में कोई भी खास मौका हो, हाथों में मेंहदी रचाए बिना श्रृंगार पूरा नहीं होता. और जब बात शादी की हो तब बिन मेंहदी सब फीका सा लगता है. किसी भी शादी में मेंहदी सिर्फ दुल्हन के हाथों पर नहीं बल्कि उसके सखी सहेली, रिश्तेदार सभी के हाथों पर रचाई जाती है. लेकिन मेंहदी तभी खूबसूरत लगती है, जब उसका रंग गहरा हो. मेहंदी का एक खास गहरा लाल रंग होता है जो हाथों पर बेहद खूबसूरत लगता है.

कई बार ऐसा होता है कि मेंहदी लगी तो बहुत अच्छी होती है लेकिन सही से न रचने के कारण खूबसूरत डिजाइन भी खिलकर नहीं आ पाता. ऐसे में आप इन उपायों को अपनाकर गहरी और खूबसूरत मेंहदी रचा सकती हैं. हालांकि पहले यह सुनिश्चित कर लें कि आपकी मेंहदी का घोल अच्छे से तैयार किया गया हो.

इन उपायों को अपनाने से गहरी रचेगी मेंहदी.

1. मेंहदी लगाने के बाद धैर्य रखना बहुत जरूरी है. कम से कम पांच से छह घंटे के लिए मेंहदी को हाथों पर रचे रहने दें. इससे मेंहदी का रंग गहरा चढ़ता है.

2. नींबू और चीनी के घोल के इस्तेमाल से भी मेंहदी का रंग गहरा चढ़ता है. दरअसल, इस घोल को लगाने से मेंहदी ज्यादा देर के लिए हाथों में चिपकी रहती है और इससे उसका रंग गहरा हो जाता है.

3. फ्राइंग पैन में लौंग की कुछ कलियों को डालकर हाथ पर उनका धुंआ लेना भी एक कारगर उपाय है. ऐसा करने से मेंहदी का रंग गहरा हो जाता है.

4. मेंहदी छुड़ाने के लिए पानी का इस्तेमाल न करें. हो सके तो 10 से 12 घंटों तक हाथों पर पानी के इस्तेमाल से बचें. साबुन के इस्तेमाल से दूर ही रहें तो बेहतर होगा.

5. मेंहदी छुड़ाने के बाद सरसों के तेल को हाथों पर मल लें.

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