जब चुनें समर इनरवियर्स

गरमी के मौसम में शरीर से टपकता पसीना परेशानी का सबब बन जाता है. यदि महिलाओं की बात की जाए तो उन्हें इस परेशानी से अधिक जूझना पड़ता है. इस की बड़ी वजह उन के इनरवियर्स होते हैं. जहां बौडी सपोर्ट के लिए इनरवियर्स जरूरी होते हैं वहीं फैशन के लिहाज से भी महिलाओं का अंडरगार्मैंट्स पहनना जरूरी होता है.

मगर गरमियों के मौसम में इनरवियर का कसाव त्वचा संबंधी रोग जैसे घमौरियां, रैशेज आदि उत्पन्न कर देता है. इन से बचने के लिए जरूरी है कि इस मौसम के लिए सही इनरवियर का चुनाव किया जाए. आइए, जानते हैं इस मौसम के लिए महिलाएं किस तरह के इनरवियर का चुनाव करें:

सही फैब्रिक का चुनाव : गरमी के मौसम में अंडरगार्मैंट्स के लिए सही फैब्रिक का चुनाव बेहद जरूरी है. कई महिलाएं जो इनरवियर सर्दियों में पहनती हैं वही गरमी के मौसम में भी पहनती हैं, जबकि दोनों मौसम में अलगअलग फैब्रिक के इनरवियर पहनने चाहिए. यदि सर्दी के मौसम में पहने जाने वाले नायलोन या सिंथैटिक फैब्रिक के इनरवियर्स को गरमी के मौसम में पहना जाए तो शरीर से अधिक पसीना निकलता है, जिस से घमौरियां होने का डर रहता है. इस मौसम में कौटन, लाइक्रा या नैट के अंडरगार्मैंट्स पहनने से त्वचा को भरपूर औक्सीजन मिलती रहती है.

पैडेड इनरवियर पहनने से बचें : आजकल महिलाओं में पैडेड इनरवियर का क्रेज बखूबी देखा जा सकता है, मगर यह गरमी के मौसम के लिहाज से त्वचा की सेहत के लिए बिलकुल सही नहीं होते. यदि पैडेड अंडरगार्मैंट पहनना भी पड़े, तो केवल कौटन से बना ही पहने.

न पहनें लेयर्ड अंडरगार्मैंट्स : कई बार महिलाएं जरूरत न होने पर भी एक के ऊपर दूसरा इनरवियर पहन लेती हैं. उदाहरण के तौर पर कई महिलाएं ब्रा के ऊपर स्पैगेटी पहन लेती हैं तो वहीं कुछ महिलाएं पैंटी के ऊपर शेपवियर पहन लेती हैं, जिस की वास्तव में जरूरत नहीं होती है. इस के 2 नुकसान हैं. पहला यह कि लेयर्ड अंडरगार्मैंट्स गरम मौसम में शरीर को और भी गरम करते हैं और दूसरा कि इन के कसाव से एक अजीब सी उलझन बनी रहती है.

स्ट्रैपी एवं सीमलैस पैटर्न : आजकल कई ब्रैंड स्ट्रैपी और सीमलैस अंडरगार्मैंट्स डिजाइन कर रहे हैं. इस तरह के इनरवियर्स गरमी के मौसम के लिए बहुत उपयुक्त होते हैं. इन की आरामदायक फिटिंग बौडी को सही शेप देती है और इन की स्ट्रैपी डिजाइन हवा को आसानी से त्वचा तक पहुंचने देती है.

ब्रा चुनते वक्त इन बातों का रखें ध्यान…

– इस मौसम में बिना अंडरवायर वाली ब्रा ही पहनें. टीशर्ट ब्रा इस मौसम के लिए सब से अच्छी साबित हो सकती है. यह सही फिटिंग के साथसाथ आरामदायक भी होती है. इसे किसी भी टौप के साथ पहना जा सकता है.

– गरमी के मौसम में डीप बैक कट ड्रैस के साथ बैकलैस ब्रा पहनी जा सकती है. महिलाओं को मिथ होता है कि बैकलैस ब्रा केवल एक बार ही पहनी जा सकती है, मगर ऐसा नहीं है. एक बैकलैस ब्रा को लगभग 50 बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

– छोटी ब्रैस्ट वाली महिलाएं पुशअप ब्रा पहन सकती हैं. इस ब्रा की खासीयत यह होती है कि जब जरूरत हो तो पैड्स लगाए जा सकते हैं और जरूरत न होने पर निकाले भी जा सकते हैं.

वर्चुअल नहीं ऐक्चुअल दुनिया में जीएं

दूरदर्शन पर 1990 में एक धारावाहिक प्रसारित होता था ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने.’ मुंगेरीलाल का किरदार निभाया था मशहूर ऐक्टर रघुबीर यादव ने. इस धारावाहिक को मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था और निर्देशक थे, प्रकाश झा. मुंगेरीलाल एक ऐसा पात्र था, जो बड़ेबड़े सपने देखता था लेकिन अफसोस कि उस के सपने साकार नहीं होते थे.

आज के किशोर भी मुंगेरीलाल की तरह ही काल्पनिक दुनिया में जीते हैं, वे दुनिया की हर नेमत पा लेना चाहते हैं. सपने देखने में कोई बुराई नहीं है पर केवल सपने देखने से ही कोई चीज प्राप्त नहीं हो जाती, उस के लिए अथक प्रयास भी करने पड़ते हैं, लेकिन इंटरनैट की खोखली दुनिया में जी रहे किशोर यह बात समझने को तैयार नहीं हैं.

राहुल 10वीं कक्षा का छात्र था. उस का सपना बड़े हो कर पायलट बनने का था, क्योंकि उस के पापा भी पायलट थे और वह उन की तरह ही बनना चाहता था. उस के पापा अकसर उस से कहते, ‘‘बेटा, पायलट बनने के लिए बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है, अच्छे अंकों से पास होना पड़ता है इसलिए जम कर पढ़ाई किया करो. हरदम मोबाइल पर चैटिंग या लैपटौप पर फेसबुक ही न चलाते रहा करो.’’

 ‘‘पापा, आप भी बस सवेरेसवेरे लैक्चर झाड़ने लग जाते हैं. मुझे सब पता है. अभी ऐग्जाम में काफी समय है, मैं समय पर पढ़ाई कर लूंगा,’’ हमेशा राहुल का यही जवाब होता. हार कर पापा ने राहुल को पढ़ाई के लिए टोकना बंद कर दिया. इस से वह और आजाद हो गया. दिनभर लैपटौप पर दोस्तों के साथ चैटिंग में लगा रहता. बाहर जाता तो मोबाइल पर ही समय बिताता. वार्षिक परीक्षा के लिए बस एक महीना ही बचा था. अब राहुल को पढ़ाई की चिंता सताने लगी, लेकिन जब वह पढ़ने बैठता तो उसे कुछ समझ न आता. व्हाट्सऐप पर आते मैसेज बारबार उस का ध्यान भटकाते. आखिर परीक्षा में वह बैठ तो गया पर रिजल्ट नकारात्मक रहा.

इसी प्रकार मोहित का बड़ा भाई अवनीश एक नामी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. मोहित भी अवनीश की तरह सौफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता था. अवनीश ने मोहित को समझाया कि किसी को देख कर उस जैसा प्रोफैशन चुनना ठीक नहीं, क्योंकि यह जरूरी नहीं कि अगर मैं सौफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में सफल हूं तो तुम भी सफल हो ही जाओ. इसलिए जिस क्षेत्र में तुम्हारा इंटरैस्ट है, उसी क्षेत्र में जाओ तो तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा.

मैं ने देखा है कि तुम बहुत अच्छी फोटोग्राफी करते हो. खासतौर से तुम्हारे खींचे पशुपक्षियों के फोटो देख कर कोई भी यह नहीं कह सकता कि तुम एक अच्छे वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर नहीं बन सकते. भले ही यह एक मुश्किल काम है. कैमरा ले कर जंगलों में भटकना पड़ता है पर एकएक फोटो की कीमत हजारों में होती है. इसलिए पढ़ाई के साथसाथ तुम फोटोग्राफी भी सीखते रहो तो अच्छा होगा.

जानते हो, सुधीर शिवराम पहले आईटी प्रोफैशनल थे, लेकिन उन की आईटी में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वे प्रगति नहीं कर पा रहे थे, लेकिन उन्हें वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का बहुत शौक था, इसलिए बाद में उन्होंने अपने इस शौक को कैरियर में बदल लिया और सफल हुए. आज वाइल्ड फोटोग्राफी में उन का नाम शिद्दत से लिया जाता है.

मोहित को समझ आ गया कि इंसान को वही काम करना चाहिए जिस में वह सफल हो सके.

मशहूर पार्श्व गायिका लता मंगेशकर पहले फोटोग्राफर बनना चाहती थीं. उन के पास एक से एक महंगे कैमरे थे, लेकिन एक बार उन्होंने एक फिल्म फोटोग्राफर को अपने खींचे कुछ फोटो दिखाए तो उस ने कुछ विपरीत टिप्पणी कर दी.

लता मंगेशकर को लगा कि वाकई उन के फोटो में वह बात नहीं है जो एक टौप फोटोग्राफर में होनी चाहिए. उस दिन के बाद लता ने कैमरे को हाथ नहीं लगाया और संगीत को अपना प्रोफैशन बना लिया. इस क्षेत्र में उन्होंने जितना नाम कमाया और शोहरत पाई उतनी शायद किसी गायक को नहीं मिली.

अगर लताजी या शिवराम सिर्फ काल्पनिक दुनिया में ही गोते लगाते रहते और वास्तविकता को नकार देते तो महज पछतावे के उन के हाथ कुछ न लगता. इसलिए किशोरों को चाहिए कि वे ऐक्चुअल जिंदगी में विश्वास रखें  और वर्चुअल यानी काल्पनिक दुनिया में न जीएं.

आज किशोर ही नहीं किशोरियां भी वर्चुअल वर्ल्ड में जीती हैं. कोई किशोरी यदि रूपरंग में अच्छी है तो वह अपने को किसी अभिनेत्री से कम नहीं आंकती और हीरोइन बनने के ख्वाब देखने लगती है. अनेक लड़कियां हर साल हीरोइन बनने मुंबई जाती हैं और दिनरात निर्मातानिर्देशकों के चक्कर काटती हैं. उन में से कुछ ही ऐसी होती हैं जिन को छोटामोटा रोल मिल पाता है.

श्वेता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. श्वेता को अपनी ब्यूटी पर बहुत नाज था. अकसर वह सहेलियों से कहती थी कि देखना एक दिन मैं बहुत बड़ी ऐक्ट्रैस बनूंगी. सहेलियां उसे बहुत समझातीं कि वह हीरोइन बनने का इरादा त्याग दे. खूबसूरत होने का अर्थ यह नहीं होता कि उसे फिल्मों में काम मिल ही जाए, पर श्वेता ने उन की एक न सुनी और ग्रैजुएशन में फर्स्ट डिवीजन लाने के बावजूद मम्मीपापा से जिद कर के मुंबई चली गई. मुंबई जा कर उस ने 5-6 महीने काम ढूंढ़ा, लेकिन उसे किसी निर्माता ने साइन नहीं किया, क्योंकि सुंदर होने के बावजूद उस का फेस फोटोजैनिक नहीं था. औडिशन में भी वह फेल हो जाती थी.

आखिरकार श्वेता वापस आ गई और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दी, जिस में वह सलैक्ट हो गई. आज वह एक नामी कंपनी में इलैक्ट्रौनिक इंजीनियर है. वह मानती है कि वर्चुअल दुनिया में जीते हुए उस ने पहले गलत फैसला लिया था, क्योंकि उसे ग्लैमर की दुनिया बहुत पसंद थी.

एक नहीं अनेक मामले ऐसे प्रकाश में आते रहते हैं जब किशोरकिशोरियां वर्चुअल वर्ल्ड की चकाचौंध में गलत फैसला ले लेते हैं. अत: किशोरों को चाहिए कि वे वर्चुअल के बजाय ऐक्चुअल दुनिया में जीएं ताकि अपनी मंजिल पा सकें.    

यहां दिए टिप्स फौलो कर के किशोरकिशोरियां अपने कैरियर के साथ ही सोशल लाइफ को भी बेहतर बना सकते हैं :

मेहनत से जी न चुराएं

परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, इस बात को हमेशा ध्यान में रखें. किशोर सपने तो बड़ेबड़े देखते हैं पर उन्हें साकार करने के लिए प्रयास नहीं करते, इसलिए सफल नहीं होते. जो आप कर सकते हैं उन पर ही ध्यान केंद्रित करें तो आप अपने टारगेट को अचीव कर सकते हैं.

कोई भी काम बड़ा या छोटा नहीं होता

इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. अकसर किशोर बहुत से काम करना पसंद नहीं करते. उन को वह काम छोटा लगता है. वे भूल जाते हैं कि भले ही वह काम उन की नजर में छोटा है, लेकिन अगर उसे पूरी लगन से किया जाए तो एक दिन वही काम बड़ा हो जाता है.

अंधविश्वास में न पड़ें

बहुत से किशोर अंधविश्वास में पड़ कर अपना भविष्य खराब कर लेते हैं. वे पढ़ाईलिखाई पर ध्यान न दे कर पूजापाठ पर यकीन करते हैं. इस के लिए कुछ हद तक पेरैंट्स भी दोषी होते हैं, जो बचपन से ही बच्चों के मन में ऐसी दकियानूसी धारणाएं भर देते हैं. इसलिए किशोरों को चाहिए कि वे काल्पनिक भगवान या अंधविश्वास पर यकीन न कर ऐक्चुअल जिंदगी जीएं, परिश्रम केसाथ पढ़ाई करें, सोशल मीडिया जैसी काल्पनिक दुनिया में विचरण न करें, तो वे आसानी से अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं.

गुरमेहर कौर : क्या है गुनाह

आखिरकार दिल्ली विश्वविद्यालय में मचे घमासान के चलते गुरमेहर कौर दिल्ली से बाहर चली गई. उस के परिवार का कहना है कि वह अब दिल्ली में नहीं है. गुरमेहर आइसा के पब्लिक प्रोटैस्ट मार्च से भी अलग हो गई है. 27 फरवरी को गुरमेहर ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल से मुलाकात की थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर कथित तौर पर छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों की ओर से दुष्कर्म की धमकी मिलने की शिकायत की थी.

दिल्ली पुलिस ने कारगिल युद्ध में शहीद की बेटी गुरमेहर की शिकायत पर आईटी ऐक्ट के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. पुलिस की साइबर सैल इस मामले की जांच कर रही है. उधर, एबीवीपी की ओर से भी पुलिस को एक आवेदन दिया गया है, जिस में कहा गया है कि उस का कोई सदस्य रेप की धमकी देने वालों में शामिल नहीं है. कुल मिला कर यही कह सकते हैं कि यह बेहद शर्मनाक प्रकरण है. एक युवती, जिस के पिता ने देश के लिए शहादत दी, के साथ इस प्रकार का व्यवहार न सिर्फ अशोभनीय और अनैतिक है बल्कि अत्यंत निंदनीय भी है. आखिरकार, यह समझ से परे है कि छात्रा गुरमेहर कौर का गुनाह क्या है, जो उसे इस तरह घटिया स्तर तक जा कर मानसिक रूप से उत्पीडि़त करने की कोशिश की गई है?

इस मामले पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने अपने बयान में कहा कि गुरमेहर पर कोई विवाद सही नहीं है. यह उन वामपंथियों की सोच है जो जवानों के शहीद होने पर जश्न मनाते हैं. उन्होंने कहा है कि भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान भी वामपंथियों ने चीन का समर्थन किया था. वे युवाओं को गुमराह करते हैं. गृह राज्यमंत्री को अपने ही देश के वामपंथी संगठनों को राष्ट्रविरोधी बताने में थोड़ा भी संकोच नहीं हुआ. इसे कितना जायज ठहराया जाए, यह कोर्टकचहरी का मामला है, पर सिर्फ इसलिए किसी छात्रा को रेप की धमकी दी जाए कि उस ने उस की विचारधारा का विरोध क्यों किया, तो यह मेरे खयाल से शर्मनाक है.

बता दें कि कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन मनदीप सिंह की बेटी ने दिल्ली के रामजस कालेज में हुई हिंसा के बाद आई एम नौट अफ्रेड औफ एबीवीपी अभियान शुरू किया था. यह वायरल हुआ और देशभर के छात्रों ने इस का समर्थन किया. दुनिया के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में अभिव्यक्ति की आजादी की बात कही जाती है. पर सवाल है कि क्या इसे ही अभिव्यक्ति की आजादी कहेंगे? जिस देश की भाजपा यानी नरेंद्र मोदी सरकार ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नामक अभियान चला रही है. उस भाजपा के आनुषंगिक संगठन एबीवीपी की कार्यशैली को किस श्रेणी में रखा जाए?

सवाल यह भी है कि आखिर उन्हें ये सब करने की छूट किस ने दी. बीते वर्ष का जेएनयू प्रकरण सब को याद है. जेएनयू के मुद्दे पर एबीवीपी व दिल्ली पुलिस गठजोड़ वाली पूरी फिल्म ही फ्लौप हो गई. अब रामजस कालेज मसले पर जेएनयू प्रकरण दोहराने की कोशिश हुई, लेकिन वह भी फ्लौप हो गया. जाहिर है कि गुरमेहर के प्रति एबीवीपी का जो रवैया सामने आया है, वह अपने फ्लौप अभियानों की कुंठा की वजह से है.

जानकार बताते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा गुरमेहर ने एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपना अभियान अब वापस ले लिया है. ऐसा कहा जा रहा है कि गुरमेहर ने एबीवीपी की ओर से कथित तौर पर धमकियां मिलने और भाजपा के नेताओं द्वारा ट्रोल किए जाने पर अभियान वापस लिया. गुरमेहर को उस के कालेज लेडी श्रीराम कालेज ने समर्थन देते हुए साहसपूर्ण कदम बताया.

इस बाबत गुरमेहर ने ट्वीट किया कि मैं अभियान से हट रहीं हूं. मुझे जो कहना था, वह मैं कह चुकी हूं. गुरमेहर ने कहा कि उसे काफी कुछ झेलना पड़ा. 20 साल की उम्र में मैं इतना ही बरदाश्त कर सकती हूं. अभियान वापस लेने के बाद डीयू की यह छात्रा अब एबीवीपी के सदस्यों के खिलाफ किसी गतिविधि में हिस्सा नहीं लेगी. मतलब यह कि गुरमेहर के साथ बदतमीजी करने की धमकी दे कर उसे डराया गया और एबीवीपी के खिलाफ अभियान में शामिल न होने के लिए दबाव डाला गया. किसी मसले पर लोगों में मतभेद हो सकता है, पर जिस तरह रामजस कालेज की घटना पर कुछ लोग प्रतिक्रिया दे रहे हैं, उसे किसी भी रूप में लोकतांत्रिक नहीं कह सकते. इस के बाद देशभर के विद्यार्थियों में रोष है.

एबीवीपी के छात्रों ने विरोध के लिए जिस तरह का हिंसक रास्ता चुना, उस की निंदा हो रही है. इसी क्रम में छात्रा गुरमेहर कौर ने फेसबुक पर एबीवीपी की निंदा की, जिसे ले कर निहायत अश्लील और धमकी भरे संदेश आने लगे. जब यह मामला गूंजने लगा तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा गया, ‘तानाशाही के खिलाफ हम अपने छात्रों के साथ हैं. गुस्से व असहिष्णुता में उठी हर आवाज के लिए एक गुरमेहर कौर होगी.’

उल्लेखनीय है कि गुरमेहर ने प्रतिक्रिया में कहा कि उसे खुद को देशभक्त साबित करने के लिए प्रमाण की जरूरत नहीं, क्योंकि उस के पिता देश की रक्षा करते हुए मारे गए. अब इस मामले ने पूरी तरह से राजनीतिक मोड़ ले लिया है. इस मुद्दे पर भाजपा सांसद प्रताप सिन्हा ने ट्विटर पर गुरमेहर और दाऊद की तसवीर पोस्ट करते हुए लिखा कि दाऊद ने अपने राष्ट्रविरोधी रवैए को सही ठहराने के लिए अपने पिता के नाम का इस्तेमाल नहीं किया.

तसवीर में गुरमेहर की तख्ती पर लिखे ‘पाकिस्तान ने नहीं, मेरे पिता को जंग ने मारा’ के जवाब में दाऊद के हाथ में थमाई तख्ती में लिखा, ‘मैं ने 1993 में लोगों को नहीं मारा, बमों ने मारा.’ क्रिकेटर विरेंद्र सहवाग ने ट्विटर पर हाथ में तख्ती लिए एक तसवीर पोस्ट की है, जिस पर लिखा था, मैं ने 2 तिहरे शतक नहीं बनाए, मेरे बैट ने बनाए. सहवाग के ट्वीट का अभिनेता रणदीप हुड्डा ने समर्थन किया.

जब आरोपप्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ तो कांग्रेसी विचारधारा के तहसीन पूनावाला ने सहवाग और हुड्डा के ट्वीट पर जम कर फटकार लगाई. तहसीन ने कहा कि ये सैलिब्रिटी एक लड़की की मर्यादा को नहीं समझ पा रहे हैं. यह राष्ट्रहित में नहीं है. इतना ही नहीं, रौबर्ट वाड्रा ने भी गुरमेहर कौर के साहस की तारीफ की. दिल्ली कांग्रेस आईटी सैल के संयोजक विशाल कुंद्रा ने राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए पूछा है, ‘आखिर गुरमेहर का गुनाह क्या है?’

दरअसल, रामजस कालेज में कथित तौर पर एबीवीपी छात्रों की हिंसा के बाद कैंपेन के लिए कौर ने एक तख्ती पकड़ी हुई तसवीर फेसबुक पर प्रोफाइल फोटो के तौर पर लगाई है. तख्ती पर लिखा है, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ती हूं. मैं एबीवीपी से नहीं डरती. हैशटैग स्टूडैंट्स अगेंस्ट एबीवीपी.

ये सबकुछ जिस भाषा में और जिस तरीके से हो रहा है, वह किसी जिम्मेदार समाज की निशानी नहीं है. पिछले कुछ वर्षों से छात्र राजनीति मुख्यधारा की राजनीति से संचालितपोषित होती आ रही है. परिणामस्वरूप कैंपस में वैचारिक असहिष्णुता का माहौल है. यही वजह है कि छात्र राजनीति में स्वस्थ परंपरा के विकास पर कम ध्यान दिया जा रहा है. मगर जब भी विद्यार्थियों में हिंसक भिड़ंत होती है तो मुख्यधारा के राजनीतिक दल अपने छात्र संगठनों के बचाव में उतर आते हैं.

पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह देशभक्ति के नाम पर एबीवीपी उग्र तेवर अख्तियार कर रही है और उस के बचाव में अलोकतांत्रिक ढंग से भाजपा और उस के समर्थक बयान दे रहे हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ. गुरमेहर के विरोध पर समाज, राजनीति खेल और सिनेमा के कुछ लोगों के मैदान में उतरने और भाषा की शालीनता का खयाल न रखने के मामले की हकीकत पर परदा नहीं डाला जा सकता, बेशक लोकतांत्रिक मर्यादा भंग हो रही है. शील, मर्यादा और अनुशासन का घोष करने वाली एबीवीपी ने परिसर में अभिव्यक्ति की आजादी को जगह न देते हुए हिंसक बरताव किया, उस पर कोई बात करने के बजाय उस का विरोध करने वाली छात्रा पर अश्लील टिप्पणियां करना कहां की नैतिकता है?

– राजीव रंजन तिवारी

बलात्कारी मानसिकता कैसे खत्म हो

16 दिसंबर, 2012 की रात दिल्ली में 23 वर्षीय पैरामैडिकल की छात्रा के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था, जिस के फलस्वरूप अधिकांश जनमानस आंदोलित हो उठा था. लेकिन उस के बाद भी मासूम बच्चियों से ले कर प्रौढ़ों तक कई सामूहिक बलात्कार की घटनाएं घटीं. इस बात पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है कि आखिर बलात्कारियों की संख्या क्यों बढ़ रही है? ऐसे कौन से कारण हैं जिन से कोई किशोर या प्रौढ़ अपनी मानमर्यादा व आचारविचार छोड़ कर दुष्कर्म जैसा कुकृत्य कर बैठता है? इस का मुख्य कारण केवल कामवासना है या महिलाओं के खिलाफ आक्रोश की अभिव्यक्ति?

खुलापन और आधुनिकता इस अंध यौन लिप्सा के सामने असहाय क्यों हैं? पहले किशोरकिशारियों के आपस में न मिल पाने को दोष दिया जाता था, तो अब कहा जा रहा है कि युवतियां बिंदास व उन्मुक्त हो रही हैं तथा युवाओं से अधिक घुलमिल रही हैं, जिस कारण वे कभी रेप तो कभी गैंगरेप या फिर कभी अपने ही किसी रिश्तेदार की शिकार हो जाती हैं.

नैशनल इलैक्शन वाच और एसोसिएशन फौर डैमोक्रेटिक रिफौर्म की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 साल में देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने 260 ऐसे उम्मीदवारों को अपनी पार्टियों से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए जिन पर दुष्कर्म व महिला उत्पीड़न जैसे संगीन आरोप थे. इन प्रमुख राजनीतिक दलों में कांग्रेस सब से आगे है, उस ने 26 बलात्कारियों को टिकट दिया है. इस के बाद भाजपा ने 24 को, बसपा ने 18 को और सपा ने 16 आरोपियों को टिकट दिया.

बढ़ती हताशा और हमारी सोच

केंद्र और राज्य सरकारों के पास वर्तमान युवापीढ़ी को शिक्षित करने के लिए न तो कोई योजना है और न ही सामाजिक संस्कार व रोजगार देने की कोई व्यवस्था. कुछ लोग आधुनिकता को कोस रहे हैं जोकि हकीकत से कोसों दूर है, क्योंकि बलात्कार अनादिकाल से अस्तित्व में है.

बदलती प्रवृत्ति

लिव इन रिलेशनशिप व समलैंगिकता को अपराधमुक्त किया जाना भी इस का एक कारण है. जो लोग यह सवाल उठाते हैं कि दबीढकी महिलाओं के साथ बलात्कार क्यों होते हैं, तो उन्हें सैक्स सर्वे पर गौर करना चाहिए, जिन में बताया जाता है कि कुछ पुरुषों को महिलाओं का उन्नत सीना आकर्षित करता है तो कुछ को उन के हिप्स आकर्षित करते हैं. यहां तक कि कुछ पुरुष तो किसी महिला की चाल पर ही फिदा हो जाते हैं.

परपीड़न की प्रवृत्ति भी एक कारण है. इस प्रवृत्ति के लोग, दूसरों को कष्ट पहुंचा कर खुद आनंदित होते हैं. अभी तक घटी सामूहिक दुष्कर्म की घटनाओं में इस प्रवृत्ति की स्पष्ट झलक मिलती है. नशे की बढ़ती प्रवृत्ति भी एक कारण है. नशे का आदी मानव अपना आपा खो बैठता है तथा उस की यौन उत्तेजना में बढ़ोतरी हो जाती है. वर्तमान में किशोर तो किशोर किशोरियां भी जाम से जाम टकरा रही हैं.

महिलाओं में बढ़ती जागरूकता

महिलाओं के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘जागोरी’ का कहना है कि चूंकि अब भारतीय महिलाओं में जागृति आ रही है और वे यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठा रही हैं इसलिए कुछ परंपरागत मर्द इसे पचा नहीं पा रहे हैं, इसलिए वे इन साहसी महिलाओं को सबक सिखाने के लिए बर्बर तरीके अपना रहे हैं.

भारत की निर्वाचित सरकारें केवल आर्थिक बदलाव लाना चाहती हैं. स्वतंत्रता के बाद हमारे देश में विदेशी पूंजी के साथ ही वहां की विकृत संस्कृति भी आ धमकी है, जिस के चलते हमारी दमित इच्छाएं सामने आने लगी हैं तथा हमारे मनोविकार भी बढ़ते चले जा रहे हैं. हम अपने परंपरागत नैतिक मूल्यों व समृद्ध संस्कृति को ले कर बहुत ही आत्ममुग्ध हैं, जबकि हमारी सांस्कृतिक परंपराएं अब केवल सांस्कृतिक समारोहों और साहित्य तक ही सीमित रह गई हैं, जोकि आज के इंटरनैट के युग में बहुत पिछड़ी मानी जाती हैं. जिस कारण आज का युवक गलत आचरण करने से भी नहीं हिचकता.

लचर कानून व्यवस्था व संसाधनों का अभाव

शासनप्रशासन की लचर कानून व्यवस्था, रात को प्रकाश का उचित प्रबंध न होना तथा बिजली की कमी, सार्वजनिक परिवहन का उचित प्रबंध न होना, सड़कों का उचित रखरखाव न होना, चिकित्सा सुविधाओं और शिक्षण संस्थाओं का अभाव भी इस के मुख्य कारण हैं.

शहरी गरीबों में बढ़ती हताशा और लंपटपन के कारण उन में असंवेदनशीलता भी बढ़ रही है, जिस कारण वे अपने जैसी ही किसी गरीब या कामकाजी युवती के साथ बलात्कार या दूसरी तरह की हिंसा करते वक्त शर्मशार नहीं होते.

वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. अरुणा ब्रूटा मानती हैं कि शहरों में जिस तरह से आर्थिक असमानता बढ़ रही है, उस से भी आम लोगों में कुंठा बढ़ रही है. शहरी पुरुष वर्ग ज्यादा आक्रामक और हिंसक हो गया है. सदियों से पुरुष महिलाओं का शोषण करता आया है. उन्हें भोग की वस्तु माना जाता है. पुरुषों के इस नजरिए के चलते भी महिलाओं से बलात्कार के मामले होते हैं.

अब युवतियां बड़ी संख्या में घरपरिवार से बाहर निकल कर कामकाजी दुनिया में अपनी पैठ मजबूत कर रही हैं. ऐसे में पहले से ही कुंठित युवाओं में युवतियों के प्रति जलन का भाव भी बढ़ रहा है. इसलिए वे मौका मिलते ही युवतियों को कमतर साबित करने की कोशिश करते हैं. कईर् बार इस की परिणति बलात्कार जैसे घिनौने अपराध के रूप में होती है.

मीडिया

हमारे देश का चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रौनिक, सभी जगह उत्तेजक दृश्य व अन्य सामग्री की कोई कमी नहीं है. विज्ञापन चाहे किसी भी वस्तु का हो, लेकिन उस में नारी की कामुक अदाएं व उस के अधिक से अधिक शरीर को दिखाने पर जोर रहता है. फुटपाथ पर अश्लील साहित्य व ब्लू फिल्मों की सीडी, डीवीडी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. बाकी कसर मोबाइल व इंटरनैट ने पूरी कर दी है. जहां प्रतिदिन हजारों नाबालिग अश्लील सामग्री का अवलोकन करते हैं.

भारतीय सिनेमा में बलात्कार के दृश्यों को बहुत ही ग्लैमराइज तरीके से तथा बढ़ाचढ़ा कर दिखाया जाता है. कुछ युवा इन फिल्मी दृश्यों से प्रेरणा ले कर बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

यौन शिक्षा का अभाव

यह एक शाश्वत सत्य है कि मानव जीवन की एक बुनियादी आवश्यकता है सैक्स. समाज ने इस के लिए विवाह के रूप में एक उचित व्यवस्था की है. विवाह के बाद स्त्री व पुरुष दोनों ही अपनी इस आवश्यकता की पूर्ति कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान में हमारे समाज में युवाओं के मुकाबले युवतियों की संख्या दिन पर दिन कम होती जा रही है. कुछ युवतियां व युवक शादी के बंधन में बंधना ही नहीं चाहते. वे शिक्षा व रोजगार में स्थायित्व पाने के फेर में भी अपनी सैक्स जैसी बुनियादी आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाते.

घटिया शिक्षा पद्धति की वजह से अल्प मानसिक विकास के कारण भी कई युवा ड्रग्स, शराब और ग्लैमर के नशे में बलात्कार को रोमांच का हिस्सा मान लेते हैं. असामान्य यौन प्रवृत्ति के युवक, युवतियों के विरुद्ध हिंसा करने लगते हैं.

बलात्कारी का व्यवहार

दिल्ली की स्वयंसेवी संस्था ‘स्वचेतन’ द्वारा पिछले 5 साल में जेल में बंद 242 बलात्कारियों का अध्ययन किया गया. ज्यादातर बलात्कारी पकड़े जाने से पूर्व बलात्कार कर चुके थे और इन सभी के मन में महिलाओं के प्रति गहरी नफरत थी. वे महिलाओं के प्रति अपमानजनक और अश्लील गालियों का प्रयोग करते थे तथा इन में अपने शिकार पर यौन फंतासियां आजमाने की कभी न मिटने वाली भूख थी.                     

आंकड़ों की जबानी

पिछले 40 वर्षों में दुष्कर्म की घटनाएं 873.3% बढ़ी हैं तथा पीडि़त महिलाओं में आधी से अधिक की उम्र 18 से 30 साल के बीच होती है. 1971 में दुष्कर्मियों को सजा देने की दर 41% थी वहीं 2014 में यह दर घट कर मात्र 24.7% रह गई.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2011 में महिलाओं के साथ हुए अपराधों का विवरण इस प्रकार है : बलात्कार 24,206, उत्पीड़न 42,968, यौन शोषण 8,570 तथा घरेलू हिंसा के 99,135 मामले प्रकाश में आए, जबकि केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 2009 से 2011 के बीच बलात्कार के 67 हजार से अधिक मामले दर्ज हुए. इन में से केवल 26% मामलों का ही निष्कर्ष निकल पाया.

वर्ष 2011 में बलात्कार की 26,206 घटनाएं हुईं, जिन में मात्र 26.4% को सजा हुई. छेड़छाड़ की 35,565 घटनाओं में से 25% को सजा हुई. शारीरिक शोषण के 42,968 मामलों में से केवल 27% को सजा हुई जबकि वर्ष 2011 में औरतों के साथ हर 26वें मिनट में छेड़छाड़, हर 34वें मिनट में बलात्कार, हर 42वें मिनट में अपहरण और हर 93वें मिनट में औरत की हत्या की गई. 2011 में औरत विरोधी अपराधों में 2010 के मुकाबले 20% की वृद्धि हुई है.

समाधान

नारी को वह सम्मान देना होगा जिस की वह हकदार है और यह तभी होगा जब हम युवाओं के मन में यह कूटकूट कर भर दें कि एक आदर्श समाज निर्माण के लिए महिलाओं का सम्मान करना अति आवश्यक है. इस के लिए स्कूलों में नैतिक शिक्षा को लागू करना होगा. इस के लिए यह भी आवश्यक है कि उन्हें अच्छा साहित्य पढ़ने को मिले.

– टीवी चैनलों पर अच्छे कार्यक्रम दिखाए जाएं जिस से युवाओं की नकारात्मक सोच में बदलाव हो.

– खेलकूद से भी बुरी प्रवृत्तियों का शमन किया जा सकता है. इस के बाद भी अगर कोई बलात्कार करता है तो बलात्कारी का अंगोच्छेद कर देना या रासायनिक विधि से उसे हमेशा के लिए नपुंसक बना देना चाहिए. शोहरत व दौलत के बल पर जो लोग कानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं उन्हें हर हाल में रोकना होगा. राजनीति में बढ़ती चरित्रहीनता व अपराधीकरण को रोकना होगा.

– बलात्कारी मनोवृत्ति के फैलाव को रोकने के लिए नैतिक शिक्षा का विस्तार व सामाजिक मूल्यों का विकास अति आवश्यक है. सामाजिक मूल्यों के विकास में लोक संस्कृति, इतिहास तथा साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, इसलिए इन को बढ़ावा देना भी जरूरी है.

– डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर है पपीता

क्या आप जानते हैं कि पपीते में फाइबर, विटामिन सी और एंटी-ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होता है जो आपकी रक्त-शिराओं में कोलेस्ट्रोल के थक्के नहीं बनने देता. कोलेस्ट्रोल के थक्के दिल का दौरा पड़ने और उच्च रक्तचाप समेत कई अन्य ह्रदय रोगों का कारण बन सकते हैं.

जिन लोगों का लक्ष्य अपना वजन कम करना है उन्हें अपने दैनिक आहार में पपीते को जरूर शामिल करना चाहिए क्योंकि इसमें कैलोरी बहुत कम होती है. एक और जहां पपीते में मौजूद फायबर आपको तारो-ताजा महसूस करवाता है वहीं आपकी आंत की सारी मूवमेंट्स को ठीक रखता है, जिसके फलस्वरूप वजन घटाना आसान हो जाता है.

आपका शरीर में प्रतिरोधक तंत्र आपको बीमार कर देने वाले कई संक्रमणों के विरुद्ध ढाल का काम करता है. केवल एक पपीते में इतना विटामिन सी होता है जो आपके प्रतिदिन की विटामिन सी की आवश्यकता का 200 प्रतिशत होता है. ज़ाहिर तौर पर ये आपके प्रतिरोधक तंत्र को मज़बूत करता है.

गठिया वास्तव में एक ऐसी बीमारी है जो शरीर को बेहद दुर्बल तो करती ही है साथ ही आपकी जीवनशैली को बुरी तरह प्रभावित भी करती है. पपीते खाना आपकी हड्डियों के लिए बेहद लाभकारी हो सकता है, इनमें विटामिन-सी के साथ-साथ सूजन-रोधी गुण होते हैं जो गठिया के कई रूपों से शरीर को दूर रखता है. एक अध्ययन के अनुसार विटामिन-सी युक्त भोजन न लेने वाले लोगों में गठिया का खतरा विटामिन-सी का सेवन करने वालों के मुकाबले तीन गुना होता है.

अभिनेत्री सुचित्रा सेन के जन्मदिन पर खास…

6 अप्रैल 1931 को जन्म लेने वाली, बीते समय की एक शानदार अभिनेत्री, सुचित्रा सेन को उनके रिटायरमेंट के बाद, अत्यधिक लोकप्रियता होने और एक विशाल प्रशंसक वर्ग होने के बावजूद कभी किसी सार्वजनिक समारोह में या दर्शको के बीच नहीं देखा गया.

आज उनके जन्मदिन पर आइये जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें, जो आप में से बहुत कम लोग जानते होंगे…

1. सुचित्रा सेन एकमात्र ऐसी अदाकारा थीं, जिन्होंने केवल नई दिल्ली तक की यात्रा से बचने के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया था.

2. सुचित्रा सेन, पहली भारतीय बंगाली अभिनेत्री थीं जिन्होंने साल 1963 में अंतरराष्ट्रीय ‘मास्को फिल्म समारोह’ में फिल्म ‘सात पाके बांधा’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त किया था.

3. सुचित्रा सेन ने उस समय के प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत रे की उनके साथ काम करने की पेशकश को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि सुचित्रा एक पेशेवर अभिनेत्री थीं और वे अपने सफल करियर के लिए जिम्मेदार निर्देशकों को चोट नहीं पहुंचाना चाहती थीं.

4. सुचित्रा सेन ने बंगाली फिल्म उद्योग में खुद के लिए एक स्थान बनाया और फिर बाद में बॉलीवुड में भी खुद को एक सफल अभिनेत्री के तौर पर स्थापित किया. सुचित्रा सेन ने देवदास, आंधी और ममता जैसी कई यादगार फिल्मों में काम किया है.

5. सुचित्रा को अपने व्यक्तिगत जीवन में भी एक स्वतंत्र और मजबूत महिला के रूप में देखा जाता था. ये बात तो आप जानते ही होंगे कि सुचित्रा सेन अभिनेत्री मून मून सेन की मां और आज के समय की अभिनेत्रियों रीमा और राइमा सेन की दादी थीं.

6. सुचित्रा सेन ने बॉलीवुड में अपनी पहली या डेब्यू फिल्म ‘देवदास’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त हुआ.

7. साल 1975 में बनी सुचित्रा सेन की फिल्म ‘आंधी’ पर गुजरात राज्य में रिलीज होने के बाद, 20 सप्ताह के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसे बाद में साल 1977 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद एक सरकारी राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल पर प्रसारित किया गया.

8. अभिनेत्री सुचित्रा सेन को साल 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार के सर्वोच्च पुरस्कार ‘बंगा विभूषण’ से सम्मानित किया गया था.

9. सुचित्रा सेन एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने फिल्मों से सेवानिवृत्ति के बाद अपना ज्यादातर समय रामकृष्ण मिशन में बिताया.

10. उस समय सुचित्रा सेन की जोड़ी, अभिनेता उत्तम कुमार के साथ बंगाली फिल्म उद्योग की सबसे बड़ी हिट जोड़ी थी. इन्होंने करीब 30 फिल्मों में एक साथ काम किया.

11.  सुचित्रा सेन का जन्म पाबना जिले में हुआ था, जो कि अब बांग्लादेश में है.

12. बंगाली फिल्मों में सुचित्रा सेन की पहली फिल्म थी, शेश कोथा जो कभी रिलीज ही नहीं की गई थी.

कोलकाता में साल 2014 में दिल का दौरा पड़ने की वजह से सुचित्रा सेन का निधन हो गया था. भारतीय फिल्मी जगत में इतने शानदार प्रदर्शनों और मनोरंजन के लिए दिवंगत अभिनेत्री को हम सभी, हमारा गहरा आभार व्यक्त करते हैं.

आईपीएल में ग्लैमर का तड़का लगाती हैं ये एंकर्स

आईपीएल 10 का आगाज होने वाला है और इस बार टूर्नामेंट में खिलाड़ियों के चौके-छक्कों के साथ ग्लैमर का तड़का भी लगेगा. मैदान में बॉलीवुड स्टार्स से लेकर कई ग्लैमरस महिलाएं मौजूद होंगी, जिसमें आईपीएल फीमेल एंकर भी शामिल है. पिछले 9 सीजन में अलग-अलग एंकर्स ने अपनी एंकरिंग के साथ-साथ अपनी खूबसूरती से लोगों का दिल जीता है. इससे पहले बहुत सी खूबसूरत महिलाओं ने ये टूर्नामेंट होस्ट किया है.

मंदिरा बेदी

मंदिरा बेदी का नाम किसी भी परिचय का मोहताज नहीं है. पूर्व टेलीविजन स्टार और भारत की पहली महिला क्रिकेट एंकर मंदिरा बेदी ने आईपीएल के दूसरे सीजन में एंकरिंग की थी. मंदिरा अपनी टीवी सीरीज “शांति” से मशहूर हुई थी. उसके बाद बेदी कई फिल्मों और टीवी सीरियल में आ चुकी हैं. इसके अलावा बेदी ने 2003 और 2007 आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप, 2004 और 2006 चैंपियंस ट्रॉफी में भी एंकरिंग की थी.

पल्लवी शारदा

पल्लवी शारदा अभिनेत्री के साथ-साथ भारतनाट्यम की डांसर भी है. पल्लवी ने मीडिया एंड कम्यूनिकेशन की पढ़ाई के साथ-साथ कानून की पढ़ाई भी की है. ऑस्ट्रेलिया में भारतीय परिवार में जन्मी पल्लवी बॉलीवुड फिल्म “माय नेम इस खान” में दिखाई दी थी.

शिबानी दांडेकर

बॉलीवुड ब्यूटी ने अमेरिकी टेलीविजन में एंकर के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी. शिबानी कई टीवी सीरीज में एंकरिंग कर चुकी है, जिसमें कई भारतीय सीरीज भी शामिल हैं.

शोनाली नगरानी

दिल्ली की मॉडल, अभिनेत्री और टीवी प्रजेंटर 2003 में फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल रह चुकी हैं और 2003 में फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल की फर्स्ट रनर-अप रही थी. इसी के साथ शोनाली कई बॉलीवुड फिल्में “रब न बना दी जोड़ी”, “दिल बोले हडिप्पा” में दिखाई दे चुकी है.

करिश्मा कोटक

लंदन में जन्मी टीवी प्रजेंटर करिश्मा मॉडल, अभिनेत्री भी हैं. आईपीएल 6 में अपनी एंकरिंग से लोगों का दिल जीतने वाली करिश्मा पहले शिक्षिका बनना चाहती थी. करिश्मा ने मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की थी और किंगफिशर के कैलेंडर में भी दिखाई दी थी.

रोशेल मारिया रॉव

रोशेल रॉव ने आईपीएल के छठे सीजन में एकरिंग की थी और 2012 में फेमिना मिस इंडिया इंटरनेशनल का खिताब जीत चुकी है और मॉडल भी हैं. रॉशेल हाल ही में आए बिग-बॉस सीजन-10 में भी दिखाई दी और इन्होंने भारतीय टीवी शो भी होस्ट किए हैं.

लेखा वॉशिंगटन

लेखा दक्षिण भारत की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक है और लेखा ने आईपीएल के पहले सीजन में एंकरिंग की थी. तेलुगु, तमिल और कन्नड़ भाषा की कई फिल्म कर चुकी लेखा बॉलीवुड फिल्म “मटरू की बिजली का मंडोला” में दिखाई दी थी.

ईसा गुहा

ईसा भारतीय मूल की इंग्लैंड क्रिकेटर है और उन्होंने आईपीएल में एंकरिंग भी की थी. ईसा ने 2009 में इंग्लैंड के साथ महिला वर्ल्ड कप जीता था और ईसा ने साल 2002 में टेस्ट डेब्यू किया था.

अर्चना विजय

अर्चना विजय ने आईपीएल के चौथे सीजन में एंकरिंग की थी. मॉडल और टीवी प्रजेंटर अर्चना इस टूर्नामेंट की सबसे प्रसिद्ध एंकर में से एक है. अर्चना ने “टूवर डायरी फॉर एक्स्ट्रा कवर”, “क्रिकेट मसाला मार के” जैसे कई क्रिकेट शो भी होस्ट किए हैं.

क्या है भविष्य निधि ?

सर्विस सेक्टर के तबके के बहुत से लोगों के लिए सेवानिवृत्ति या रिटायरमेंट के बाद सिर्फ भविष्य निधि या प्रॉविडेंट फंड ही सहारा रह जाता है. इसका मूल कारण है पेंशन जो कि सिर्फ कुछ लोगों को ही मिलती है. ऐसी असमानता के बाद भविष्य निधि या पीएफ का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. पीएफ ऐसे लोगों के भी काम आता है  जो किसी बिजनेस से जुड़े हैं या जिनके पास स्वरोजगार के साधन हैं. सरकार ने ऐसे नियम बनाए हैं जिसके बदौलत कोई भी व्यक्ति अपने भविष्य के लिए बचत कर सकता है.

समस्या है जानकारी के अभाव की. कई नौकरीपेशा लोगों को पता ही नहीं होता की पीएफ क्या है या इसके क्या फायदे हैं. आज हम आपको पीएफ के बारे में कुछ जानकारी देंगे, जिससे आपको इसके बारे में थोड़ी सी जानकारी मिले.

प्रॉविडेंट फंड या भविष्य निधि तीन तरह के होते हैं: ईपीएफ यानी इंप्लॉई प्रॉविडेंट फंड, पीपीएफ यानी पब्लिक प्रॉविडेंट फंड और जीपीएफ यानी जनरल प्रॉविडेंट फंड.

ईपीएफ (इंप्लॉई प्रोविडेंट फंड)

कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा और उनके भविष्य की सुरक्षा के लिए भारतीय संसद ने 1952 में कर्मचारी भविष्य निधि ऐक्ट को पारित किया था. जम्मू कश्मीर के अलावा पूरे देश में यह ऐक्ट लागू कर दिया गया था. 20 या इससे अधिक कार्यरत कर्मचारियों वाले सभी संगठनों को भविष्य निधि खाता रखना जरूरी है.

कब नहीं खुलता ईपीएफ खाता ?

इन दो कारणों से नहीं कटता आपका पीएफ

– अगर आपकी कंपनी में 20 से कम कर्मचारी है तो पीएफ कटना जरूरी नहीं है.

– अगर किसी कंपनी में 20 से ज्यादा कर्मचारी हैं और सभी कर्मचारियों की बेसिक सैलरी और डायरेक्ट अलाउंस 15 हजार रुपये से अधिक है और इन सबने फार्म 11 भरकर ईपीएफ से बाहर रहने का फैसला किया है तो ऐसे में पीएफ की कटौती नहीं होगी. 

आपकी सैलरी से कितनी होगी कटौती

पीएफ अकाउंट में आपकी सैलरी का भी कुछ हिस्सा भी डाला जाता है. आपकी सैलरी का कम से कम 12 प्रतिशत हिस्सा आपके पीएफ अकाउंट में डाला जाता है. जितना हिस्सा आपकी सैलरी से कटता है उतना ही हिस्सा आपकी कंपनी भी आपके अकाउंट में डालती है. अगर नियोक्ता अपना हिस्सा जमा करने में देर करता है तो उसे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को 17 से 37 प्रतिशत सालाना ब्याज चुकाना पड़ता है.

पीपीएफ (पब्लिक प्रॉविडेंट फंड)

1968 में केन्द्र ने पीपीएफ की शुरुआत की थी. अगर कोई भी व्यक्ति इसमें निवेश करता है तो उसे आयकर कानून के तहत पीपीएफ में निवेश करने से आयकर छूट भी मिलती है. पीपीएफ में निवेश करने के लिए आपके पास नौकरी होना जरूरी है. अगर आप कंसल्टेंट, दुकानदार, फ्रीलांसर आदि हैं तो भी आप पीपीएफ अकाउंट खुला सकते हैं. नाबालिग भी पीपीएफ अकाउंट खुलवा सकते हैं. पीपीएफ अकाउंट किसी भी बैंक या पोस्ट ऑफिस में खुलावाया जा सकता है. पर सभी बैंक ब्रांच में पीपीएफ की सुविधा नहीं होती है. इसके अलावा, चुनिंदा पोस्ट ऑफिस ही पीपीएफ खाता खुलवाते हैं. एसबीआई और सहयोगी बैंकों के अलावा ज्यादातर राष्ट्रीयकृत बैंकों की वेबसाइट में फार्म डाउनलोड कर खाता खुलवाया जा सकता है.

जीपीएफ (जनरल प्रॉविडेंट फंड)

यह सुविधा केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए है. कोई भी अस्थायी केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी जिसने लगातार 1 साल की सेवा पूरी कर ली है और स्थायी सरकारी कर्मचारी जीपीएफ में पैसा जमा करवा सकते हैं.

ऐसे करें अपने नाखूनों की देखभाल

पानी सोखने से नाखून जहां फूलते या फैलते है, वहीं पानी के सूख जाने पर वे सिकुड़ने या फटने लगते है इसलिए बार-बार पानी लगने से नाखूनों के खराब होने का भय बना रहता है.

क्या आप जानते हैं कि पानी जब नाखून के अंदर-बाहर आता-जाता है तो आपके नाखून कमजोर पड़ने लगते हैं और टूटने लगते है. दूसरी ओर जैसे-जैसे नाखून मोटा होता जाता है और उसकी वृद्धि धीमी पड़ने लगती है और फिर यह समस्या और बढ़ती जाती है. मौसम की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

आइए हम आपको कुछ ऐसे नुस्खों के बारे में बताते हैं जो आपके नाखूनों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखते हैं-

1. दस्ताने पहनें : घर में बर्तनों या कपड़ों की धुलाई या सफाई करते समय या पानी के उपयोग वाला कोई भी काम करते समय आपको हमेशा रबड़ के दस्ताने जरूर पहन कर रखने चाहिए. खासतौर से तब जरूर पहनें जब आप किसी कड़े डिटर्जेट का इस्तेमाल करती हों.

2. मॉइस्चराइजर लगाएं : आप जितनी बार हाथ धोती हैं, उतनी बार मॉइस्चराइजर लगाना न भूलें. नाखूनों और कोनों पर किसी भी कोल्ड क्रीम से मसाज करें और लगाने के बाद, इसे थोड़ी देर के लिए छोड़ दें और फिर गीली रुई से अपने हाथ पोंछ लें.

3. छोटे नाखून रखें : अगर आप सुंदर और अच्छे नाखून चाहती हैं तो उन्हे नियमित रूप से काटती रहे. काटते समय ध्यान रखें कि उनका मूल आकार नष्ट न हो. यानी नाखून अगर चौकोर आकार के है तो उन्हे नुकीला और नुकीले है तो उन्हें चौकोर न बनाएं.

4. हमेशा स्नान के बाद ही नाखून काटें : आपको नाखून तब काटना चाहिए जब वे नम और मुलायम हों. ऐसा आमतौर पर स्नान के बाद ही होता है. सूखे नाखून काटते समय अक्सर टूटने या फटने का डर होता है.

5. मॉइस्चराइजर लगाएं : हर रोज सोने से पहले हाथों और नाखूनों के आसपास मॉइस्चराइजर लगाने से नाखून स्वस्थ और मजबूत बने रहते हैं.

मैडलधारियों के सपने

कुछ महीने पहले बड़े शोरशराबे के बाद ओलिंपिक खेल खत्म हुए. किसी भी ओलिंपिक में जीते मैडलों के राष्ट्रीय रिकौर्ड को तोड़ कर हमारे 6 सूरमा भी मैडल जीत लाए. क्या हुआ यदि ये कांसे और चांदी के बीच ही रह गए. ‘आगे सोना भी आएगा’ यह कहना है कुश्तीबाज सुशील कुमार या मुक्केबाज मैरी कौम का.

इधर मैडल मिले उधर इनामों की बारिश. उधर विदेश में ओलिंपिक में खेले इधर स्वदेश में करोड़ों में खेलने लगे. पदोन्नति तो ऐसे मिलने लगी जैसे बस मैडल के इंतजार में ही रुकी पड़ी थी.

विजय कुमार ने तो ओलिंपिक में ही घोषणा कर दी कि प्रमोशन नहीं मिला तो सेना की नौकरी छोड़ दूंगा. सरकारें भी बेचारी क्या करें. रूल्सरैगुलेशन, सीनियरिटी, सर्विस रिकौर्ड, कैडर मैनेजमैंट सब दरकिनार. कोई सूबेदार मेजर हो गया तो कोई पुलिस कप्तान बनने की तैयारी में है. अब यहां दुनिया की डिगरी बटोरी. टैक्निकल कोर्सों में बमुश्किल ऐडमिशन फिर सैमैस्टरट्राइस्टर सिस्टमों की रगड़ाई. अगर प्राइवेट सैक्टर में ही किसी प्रकार घुस लिए तो सरकारी सेवक (चपरासी को आदर से आजकल सेवक कहा जाता है) से भी कम वेतन में सुबह से शाम तक की रगड़ाई.

इन की खुशी से रश्क करते व अपने दकियानूसी बाप, जिस ने ‘जो खेलोगेकूदोगे होगे खराब’ की घुट्टी पिलापिला कर पढ़ाई में पेर दिया, को कोसतेकोसते आंख लग गई. पर हमारे ये मैडलधारी तो सपनों में भी आ धमके और कहीं कोई नया गुल खिलाते दिखे तो कहीं कोई नया राज खुलता दिखा.

सपने में देखता हूं कि हिंदुस्तान व पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया है. फ्रंट पर हमारे सूबेदार मेजर साहब कुमुक के साथ मौजूद हैं. दुश्मन है कि गोलीबारी करता बढ़ा आ रहा है पर सूबेदार मेजर साहब की बंदूक/पिस्तौल खामोश. सिपाही ललकार रहे हैं-साहब, गोली चलाओ, हमें भी चलाने दो. पर साहब कैसे चला दें. 25 मीटर शूटिंग के एक्सपर्ट जो हैं. 25 मीटर तक तो आने दो वरना निशाना नहीं चूक जाएगा, फाउल नहीं हो जाएगा.

सपने में पाया कि पुलिस कप्तान साहब को एक खूंखार क्रिमिनल का इंटरोगेशन करने व उस से अपराध कुबूलवाने का जिम्मा सौंपा गया है. पुलिस की भाषा में इसे अपराधी को ‘कर्रा’ करना कहा जाता है. डंडा है, रस्सी है, करैंट लगाने के लिए वायरलैस सिस्टम के पिन निकाल कर रखे गए हैं. ‘एअरोप्लेन’ बनाने की तैयारी में

2 कुरसियां पासपास लगा कर बीच में धुरी की तरह डंडा फंसा दिया गया है. पर हो कुछ नहीं रहा. किसी चीज का इंतजार है. पता चला है कि साहब ने 2 जोड़ा बौक्ंिसग ग्लव्ज मंगाए हैं. ‘कर्रा’ करना तो है मगर ओलिंपिक स्टाइल में.

सुशील कुमारजी से राज पूछ रहा हूं. गोल्ड जीत सकते थे. सिल्वर पे ही क्यों रुक गए. उन्होंने कान में चुपकेचुपके राज बताया, अरे यार, कोई भी मैडल जीतो, करोड़ों रुपयों की बारिश होने लगती है. इनामों की बस दोएक साल रेलपेल रहती है. फिर जो एक बार गोल्ड जीत जाता है, अगले ओलिंपिक में उसे ठेंगा ही हाथ लगता है, अभिनव बिंद्रा को देख लो. मैं ने तो पूरे 12-13 साल की योजना बना रखी है. पहले कांसा भुनाया, फिर चांदी काटी अब की सोने में तुलूंगा.

मैं ने सपने में ही अपना ऐक्सपर्ट कमैंट सुना दिया, जब साले ने ऊपर उठाया था तो उस का सिर तुम्हारे दोनों पैरों के बीच में था. पेट वैसे ही खराब था. जरा सा प्रयास करते और कोई ‘स्वाभाविक शारीरिक क्रिया’ हो जाती तो क्लोरोफार्म से भी बढ़ कर कुछ असर होता और कमबख्त बेहोश तो हो ही जाता.

पहलवानजी मुझे घूरते रह गए और मेरा सपना अगले चैनल पर जा लगा.

हमारे एक पहलवानजी कुश्ती प्रतियोगिता से तो बाहर हो गए थे पर दूसरे के डिफौल्ट के चलते इन को सेमीफाइनल में जगह मिल गई. कुश्ती के सेमीफाइनल में कोई भी हारेजीते, दोनों को कांस्य पदक मिल ही जाता है. इसलिए कांस्य पदक पा गए. यानी दूसरे ने डिफौल्ट किया और मौका इन को मिल गया. सपने में देखता हूं, कुश्ती का मैदान छोड़ वे राजनीतिक क्षेत्र में घुसने का प्रोग्राम बना रहे हैं. क्योंकि यही एक ऐसा क्षेत्र है जहां एक गलत आदमी को हटाने के लिए जनता ‘बाई डिफौल्ट’ दूसरे गलत आदमी को कुरसी पर बैठा देती है.

2 बच्चों की मां ने भी मुक्के चलाचला कर दोनों बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर लिया. डाक्टरी पढ़ाओ या इंजीनियरिंग. डोनेशन सीट पक्की है. सपने में देखता हूं कि उन की चेन झपट कर बदमाश भाग रहा है. उन की पहुंच में है पर मुक्का नहीं चल रहा है. अरे, एकएक मुक्का कईकई लाख का बैठ रहा है. पूरे टूर्नामैंट में 70 मुक्के चलाए और कई करोड़ हाथ में आए. अब, लाखों की कीमत का मुक्का 10-20 हजार रुपए की चेन के लिए खर्च करना कहां की अक्लमंदी है?

‘फिसल पड़े तो हरगंगे’ मुहावरा सुना होगा. सार्थक हो गया हमारी बैडमिंटन चैंपियन पर. यहां फर्क सिर्फ इतना है कि फिसल कोई दूसरा पड़ा और ‘हरगंगे’ इन का हो गया. ‘हरगंगे’ का मतलब है तर जाना. फिसल पड़ी इन की प्रतिद्वंद्वी. इन्होेंने इतना पसीना चुआ दिया था कोर्ट में कि कोर्ट बदलने के बाद इन की प्रतिद्वंद्वी, जो इन पर बराबर भारी पड़ रही थी और एक सैट जीत कर दूसरे में भी आगे थी, फिसल पड़ी और हमारी चैंपियन का हो गया ‘हरगंगे’. इनाम, सम्मान और ऊपर से एक बीएमडब्ल्यू कार भी. अब ये बराबर ‘हरहर गंगे’ का जाप करती रहती हैं.

अभी कुछ और चैनल बदलता इस से पहले किसी ने जोर से हिलाया, हड़बड़ा कर आंख खुल गई. देखा कि पत्नी महोदया हिलाहिला कर उठाने का प्रयास कर रही थीं. अरे, उठो नहीं तो फिर लेट हो जाओगे. ‘लेट लतीफी’ पर मैडल मिलता होता तो तुम्हीं को मिलता.

– आर के श्रीवास्तव

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