एक से ज्यादा के साथ रहा है इन स्टार्स का रिश्ता

बिपाशा ने एक साल पहले 30 अप्रैल, 2016 को एक्टर करन सिंह ग्रोवर से शादी की थी. इनके अफेयर की चर्चा तब से शुरू हुई थी, जब दोनों फिल्म ‘अलोन’ (2015) की शूटिंग कर रहे थे. वैसे, बिपाशा फिल्मों के साथ ही अपने लव लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में रही हैं. वे बॉलीवुड की एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जिनका स्टेटस कभी सिंगल नहीं रहा. इंडस्ट्री में आने के साथ ही उनका नाम किसी न किसी से जुड़ा रहा. वैसे बिपाशा ही नहीं ऐसे कई स्टार्स हैं, जिनका नाम भी किसी न किसी से जुड़ा रहा है.

1. बिपाशा बसु

बिपाशा को 1996 में एक होटल में सुपर मॉडल रही मेहर जेसिया ने देखा और उन्हें मॉडलिंग की फील्ड में आने का ऑफर दिया. इसी साल बिपाशा ने गोदरेज सिंथोल सुपरमॉडल कॉन्टेस्ट जीता. इसके बाद वे डीनो मोरिया के साथ कमर्शियल ऐड में नजर आईं. इसी बीच दोनों में दोस्ती बढ़ी और अफेयर हुआ. दोनों ने फिल्म ‘राज’ (2002) में साथ काम किया. दोनों का अफेयर 6 साल चला और ब्रेकअप हो गया.

इसके बाद फिल्म ‘जिस्म’ (2003) की शूटिंग के दौरान बिपाशा और जॉन अब्राहम की नजदीकियां बढ़ी. दोनों के बीच 10 साल तक अफेयर चला और लिव-इन में भी रहे. जॉन से ब्रेकअप के बाद 2014 में बिपाशा ने हरमन बावेजा के साथ अपने रिलेशनशिप को कन्फर्म किया. ये अफेयर भी कुछ महीने ही चला. बिपाशा का नाम उनकी फिल्म ‘जोड़ी ब्रेकर्स’ के को-स्टार आर. माधवन से भी जुड़ा. 2015 में बिपाशा ने करन सिंह ग्रोवर को डेट करना शुरू किया और फिर दोनों ने 2016 में शादी कर ली.

2. सलमान खान

सलमान एक ऐसे स्टार हैं, जिनका अफेयर कई अभिनेत्रियों के साथ रहा. संगीता बिजलानी, सोमी अली, ऐश्वर्या राय से लेकर कैटरीना कैफ तक के साथ सलमान के अफेयर के किस्से सुनने को मिले. 1980 के दौरान सलमान और संगीता बिजलानी के बीच अफेयर शुरू हुआ. ये वो दौर था जब संगीता ने मिस इंडिया का खिताब जीता था. लंबे समय तक दोनों के बीच अफेयर चला. बात शादी तक आ गई थी, लेकिन दोनों में ब्रेकअप हो गया.

इसके बाद 1993 में सलमान ने सोमी अली को डेट करना शुरू किया. लेकिन सलमान के रवैए के कारण सोमी उनसे अलग हो गई. सलमान और ऐश्वर्या राय का अफेयर 1999 से शुरू हुआ और दोनों 2002 में अलग हो गए. इसी बीच फिल्म ‘लकी’ (2005) की को-स्टार स्नेहा उल्लाल के साथ भी उनका नाम जुड़ा. 2005 में आई फिल्म ‘मैंने प्यार क्यूं किया’ की शूटिंग के दौरान सलमान और कैटरीना कैफ के अफेयर के चर्चे खूब उड़े.

सलमान, कैटरीना को लेकर बहुत ज्यादा सीरियस थे. लेकिन 2010 में दोनों का ब्रेकअप हो गया. दोनों ने ‘पार्टनर’ (2007), ‘हैलो’ (2008), ‘एक था टाइगर’ (2012) में साथ काम किया.

3. अक्षय कुमार

अक्षय कुमार के अफेयर मॉडल, एक्ट्रेस पूजा बत्रा, शिल्पा शेट्टी से लेकर रेखा तक से रहे हैं. रवीना टंडन और शिल्पा शेट्टी के साथ उनके अफेयर की खबरें तो इतनी ज्यादा पॉपुलर थीं कि सुनने वालों को लगने लगा था कि अक्षय शायद इन्हीं में से किसी से शादी कर लेंगे, लेकिन आखिर में उन्होंने ट्विंकल खन्ना का हाथ थामा. सबसे पहले उनका अफेयर मॉडल पूजा बत्रा के साथ रहा.

90 के दौर में अक्षय और पूजा के बीच अफेयर शुरू हुआ, ये वो वक्त था जब अक्षय ने फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू नहीं किया था. इस दौरान पूजा की गिनती सुपर मॉडल्स में की जाती थी. 1991 में अक्षय को फिल्म ‘सौगंध’ ऑफर हुई. फिल्म में डेब्यू करने के साथ ही उन्होंने पूजा का साथ छोड़ दिया.

1992 में आई फिल्म ‘खिलाड़ी’ के साथ अक्षय का नाम उनकी को-स्टार रही आयशा जुल्का के जुड़ा. दोनों ने ‘दिल की बाजी’ (1993), ‘वक्त हमारा है’ (1993), ‘जय किशन’ (1994) में साथ काम किया. 1994 में आईं फिल्म ‘मोहरा’ के साथ ही अक्षय और रवीना टंडन का अफेयर शुरू हुआ. तीन साल की रिलेशनशिप के बाद दोनों का रिश्ता खत्म हो गया.

‘खिलाड़ी’ सीरिज की फिल्म ‘खिलाड़ियों के खिलाड़ी’ (1996) में रेखा के साथ काम करने को दौरान ये अफवाह भी उड़ी कि दोनों में अफेयर हैं. 1994 की फिल्म ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ की शूटिंग के दौरान अक्षय और फिल्म की एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के बीच नजदीकियां बढ़ी. शिल्पा, अक्षय के साथ अपनी रिलेशनशिप को लेकर काफी सीरियस थी. लेकिन जब उन्हें पता चला कि अक्षय उनके अलावा ट्विंकल खन्ना को भी डेट कर रहे हैं तो उनका दिल टूट गया और उन्होंने अक्षय से दूरी बना ली.

4. ऐशवर्या राय बच्चन

1997 में बॉलीवुड में डेब्यू करने के दो साल (1999) बाद ही ऐश का नाम सलमान खान के साथ जुड़ गया था. दोनों ने फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ (1999) में साथ काम किया. 2002 तक चले इस अफेयर का अंत विवादों से हुआ. इसके बाद विवेक, ऐश्वर्या के दोस्त और ब्वॉयफ्रेंड बनकर सामने आए. हालांकि, ऐश ने इस मामले में हमेशा चुप्पी साधे रखी. कुछ समय बाद ये रिश्ता भी खत्म हो गया। दोनों ने फिल्म ‘क्यों हो गया ना’ में साथ काम किया. इसके बाद ऐश की जिंदगी में आए अभिषेक बच्चन, जो अब उनके पति हैं.

5. करीना कपूर

पटौदी खानदान की बेगम बन चुकीं करीना कपूर का नाम भी बहुत से अभिनेताओं से जुड़ चुका है. सबसे पहले तो करीना कपूर का अफेयर ऋतिक रोशन के साथ हुआ था. ये तब हुआ, जब करीना, ऋतिक के साथ ‘कहो ना प्यार है’ (2000) की शूटिंग कर रही थीं. हालांकि, बाद में वे इस फिल्म से हट गई थीं. इसके बाद करीना का नाम फरदीन खान से जुड़ा.

शाहिद कपूर से तो उनका अफेयर खासा चर्चित रहा. 2004 में आई फिल्म ‘फिदा’ की शूटिंग के दौरान दोनों नजदीक आए. दोनों के अफेयर के चर्चे मीडिया में भी खूब आए. दोनों ने फिल्म ’36 चाइना डाउन’ (2006), ‘चुप-चुप के’ (2006), ‘जब वी मेट’ (2007), ‘मिलेंगे-मिलेंगे’ (2013) में साथ काम किया. 2007 में फिल्म ‘जब वी मेट’ की शूटिंग के दौरान दोनों में ब्रेकअप हो गया. इसके बाद करीना के पार्टनर बने सैफ अली खान, जिनके साथ करीना ने कई महीने डेटिंग की. इसके बाद दोनों ने शादी कर ली.

6. दीपिका पादुकोण

दीपिका पादुकोण ऐसी एक्ट्रेस हैं जिनके अफेयर्स भी लगातार सुर्खियों में रहे. दीपिका ने 2005 में लैक्मे फैशन वीक में रैम्पवॉक कर डेब्यू किया था. मॉडलिंग के दिनों में उनका अफेयर निहार पंड्या के साथ रहा. 2008 में फिल्म ‘बचना ऐ हसीनों की’ शूटिंग के दौरान दीपिका और रणबीर कपूर पास आए. लेकिन, दीपिका के अनुसार, मीडिया के दखल के कारण ये रिश्ता टूट गया.

दोनों ने ‘ये जवानी है दीवानी’ (2013), ‘तमाशा’ (2015) में साथ काम किया. 2011 में इंडियन प्रीमियर लीग के दौरान वे बिजनेसमैन विजय माल्या के बेटे सिद्धार्थ के साथ भी नजर आईं. किसिंग करते हुए दोनों की फोटो भी मीडिया में चर्चा का विषय रही. फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ (2015) में साथ काम करने के दौरान दीपिका और रणवीर सिंह के अफेयर के चर्चे रहे.

7. लारा दत्ता

1995 में मॉडलिंग के दिनों में लारा दत्ता और केली दोरजी की दोस्ती हुई और फिर अफेयर. दोनों दस साल तक लिव-इन में भी रहे. 10 साल का अफेयर आखिरकार खत्म हो गया. इसके बाद लारा और डिनो मोरिया के बीच भी अफेयर की बात सामने आई, लेकिन लारा ने इसे कभी खुलकर स्वीकार नहीं किया. लारा ने डीनो से हमेशा अपना दोस्त ही माना. फिर लारा का अफेयर टेनिस चैम्पियन महेश भूपति से शुरू हुआ. दोनों ने 2010 में सगाई की और 2011 में शादी.

8. दिलीप कुमार

दिलीप कुमार का अफेयर भी कई एक्ट्रेसेस से रहा. उनका नाम सबसे पहले कामिनी कौशल से जुड़ा. दिलीप, कामिनी से मोहब्बत करते थे, लेकिन कामिनी ने उनकी मोहब्बत ठुकरा कर किसी और से शादी कर ली. ये दौर 1948 का था.

दिलीप और कामिनी ने फिल्म ‘शहीद’ (1948), ‘नदिया के पार’ (1948), ‘शबनम’ (1949), ‘आरजू’ (1950) में साथ काम किया. फिर दिलीप कुमार का अफेयर मधुबाला के साथ हुआ. दोनों का अफेयर फिल्म ‘तराना’ (1951) की शूटिंग के दौरान शुरू हुआ.

इसके बाद दोनों ने ‘सगदिल’ (1952), ‘अमर’ (1954), ‘मुगल-ए-आजम’ (1960) में साथ काम किया. फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ के दौरान दोनों का प्यार परवाज चढ़ चुका था. लेकिन दोनों के परिवार को ये रिश्ता मंजूर नहीं था और आखिरकार दोनों को अलग होना पड़ा. दिलीप का नाम वैजंयतीमाला के साथ भी जुड़ा. हालांकि, वैजयंती ने कभी दिलीप से अफेयर की बात स्वीकार नहीं की. आखिर में दिलीप ने सायरा बानो से शादी की.

बिहार को लेकर मेरी सोच बदल चुकी है : अर्जुन कपूर

‘‘यशराज फिल्मस’’ की फिल्म ‘‘इश्कजादे’’ से करियर शुरू करने वाले अर्जुन कपूर अब तक आठ नौ फिल्में कर चुके हैं. वह हर बार अलग निर्देशक व अलग हीरोईन के साथ ही नजर आते हैं. मगर प्रसिद्ध उपन्यासकार चेतन भगत के साथ उनका जुड़ाव हो चुका है. चेतन भगत के उपन्यास ‘‘टू स्टेट्स’’ पर बनी फिल्म में अभिनय करने के बाद अब अर्जुन कपूर अब चेतन भगत के ही उपन्यास ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ पर बनी इसी नाम की फिल्म में श्रद्धा कपूर के साथ नजर आएंगे. मोहित सूरी निर्देशित यह फिल्म 19 मई को प्रदर्शित होगी.

आपके अनुसार फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ क्या है?

चेतन भगत के उपन्यास पर आधारित यह फिल्म यूं तो एक प्रेम कहानी वाली फिल्म है. मगर इसमें भाषा का टकराव भी है. इस टकराव ने इंसानो को कई तरीकों से जकड़ कर रखा हुआ है. इमोशन के माध्यम से वह निकल कर चर्चा शुरू हो, तो बहुत अच्छी बात होगी. इस तरह का कंफलिक्ट अब तक सिनेमा में आया नहीं है. जबकि कम से कम भारत में तो यह कंफलिक्ट सदियों से चला आ रहा है.

क्या ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ में इस कंफलिक्ट की वजहों पर भी बात की गयी है?

सच कहूं तो इस फिल्म की पटकथा को पढ़ने से पहले मैंने भाषा के मुद्दे पर कभी भी गंभीरता से नहीं सोचा था. मेरी परवरिश बड़े शहर में, बड़े व अमीर घर में हुई है. हमारा उठना बैठना एक तरीके से हुआ. हम अपने घर में अंग्रेजी ज्यादा और हिंदी कम बोलते हैं. मैं अपने आपको खुश किस्मम समझता हूं कि मेरी हिंदी अच्छी है और यह मेरे घर के माहौल के चलते ही संभव हो पाया.

कलाकार बनने के बाद तो मैंने यह तय कर लिया कि हिंदी अच्छी होनी ही चाहिए. इसलिए मैं ज्यादा से ज्यादा हिंदी भाषा में बात करता हूं. हिंदी पत्र पत्रिकाएं पढ़ता हूं. टीवी पर हिंदी समाचार वाले चैनल देखता हूं. पर ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि भाषा की वजह से लोगों की जिंदगी में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस फिल्म में अभिनय करने के बाद मुझे एहसास हुआ कि हमारे देश के दो हिस्से हैं- एक ‘भारत’ और एक ‘इंडिया’. भाषा की वजह से कुछ बंटवारा हो जाता है.

इस फिल्म में अभिनय करने के बाद आपकी सोच में क्या बदलाव आया?

मेरी सोच यह बदली कि बिहार को लेकर हमारे दिमाग में कुछ चीजें भरी हुई हैं, जो कि गलत है. मैं तो मुंबई में रहता हूं, बिहार के गांवों में क्या होता है, वह मुझे पता नहीं. उनकी कठिनाईयों की मैं चाहकर भी अंदाजा नहीं लगा सकता. अब बिहार को लेकर मेरी थॉट प्रोसेस काफी बदल चुका है.

बिहार को जिस समस्या ने जकड़ कर रखा है, उसे मैं कुछ हद तक समझ पाया हूं. बिहार में समझदारों की कमी नहीं है, मगर भाषा की वजह से लोग उन्हें महत्व नही देते. वहां पर हिंदी में पढ़ाई ज्यादा होती है. जबकि आप नालंदा विश्वविद्यालय से लेकर देखें, तो बिहार की शिक्षा उच्च स्तर की है. वहां शिक्षा की समस्या नहीं है. देखिए ज्यादातर आईएएस वहां से निकलते हैं.

मैं कुछ हद तक वहां की समस्या समझ पाया हूं, पर उसका हल मेरी समझ में नहीं आ रहा. पर यह समझा कि बिहार की जो ईमेज बनी है, वह क्यों बनी है, जिसे तोड़ना बहुत जरुरी है. कई बार हम सिनेमा के माध्यम से जो किरदार देखते हैं, हम उन्हें ही सच मानने लगते हैं, मुझे लगता है कि हमारी फिल्म के बाद वह सोच की धारा बदलेगी.

मुझे तो यह भी याद नहीं कि किस फिल्म में बिहार के गांव के पात्र को फिल्म का मुख्य किरदार बनाया है. जबकि हमारी फिल्म का किरदार बिहार के गांव का है. दूसरी बात मैं समझ पाया कि भाषा से कितना कुछ बदल जाता है. वह कुछ कहना चाहता है, पर उसके दिमाग में भय बैठा दिया गया है कि अंग्रेजी में बात नहीं करोगे, तो तुम्हें कोई गंभीरता से नहीं लेगा. इसी तरह रिश्ते में समस्याएं आती हैं.

कई बार होता है कि लड़के व लड़की के बीच कोई इक्वेशन है, मगर भाषाएं अलग होने की वजह से वह दोनों सही तरह से अपनी बात सामने वाले से कह नहीं पाते. भाषा एक बाधा बन जाती है. जबकि प्यार में भाषा की बाधा नहीं आनी चाहिए.

क्या बॉलीवुड में भाषा की समस्या नहीं है?

अब बॉलीवुड में देवनागरी में पटकथा लिखी जाने लगी है. रोमन में लिखी जाने लगी है. मैं हमेशा मानता हूं कि पटकथा चाहे हिंदी में हो या अंग्रेजी में हो या रोमन में, मगर उसका उच्चारण सही होना चाहिए. अंग्रेजी के चक्कर में हमारी हिंदी की स्पष्टता कम होती जा रही है. कैमरे के पीछे आज की नयी पीढ़ी अंग्रेजी में ही बात करती है. अंग्रेजी में ही चर्चा करते हैं. सोशल मीडिया भी अंग्रेजी में काम करता है. दुर्भाग्यवश हमारा उठना बैठना अंग्रेजी माहौल में ही होता है. इस तरह कहीं न कहीं हम सभी पर पष्चिमी प्रभाव है. लेकिन हम कैमरे के सामने शुद्ध हिंदी बोलना जरुरी मानते हैं.

लेकिन कैमरे के पीछे जब आप अंग्रेजी अंग्रेजी करते रहते हैं. तो उसका प्रभाव कैमरे के सामने जाने पर नहीं पड़ता?

मैं ऐसा नहीं होने देता. अन्यथा आप लोग पकड़ लेते. आपसे पहले कैमरा पकड़ लेता. मेरी पूरी कोशिश रहती है कि कैमरे के सामने साफ जबान में बात करुं. कोई कलाकार मातृभाषा या हिंदी बोलने में सहज है या नहीं, यह फिल्म देखते देखते साफ साफ पता चल जाता है. यदि कैमरे के सामने पष्चिमी प्रभाव का असर किसी कलाकार पर पड़ता है, तो गलत है. मैंने अपने उपर कभी भी पष्चिमी प्रभाव को हावी नहीं होने दिया.

आपको चेतन भगत के लेखन में क्या खास पसंद आया?

मैं कहना चाहूंगा कि चेतन भगत जो किरदार या कहानी लिखते हैं, उसमें आवाम की रिलेटीबिलिटी होती है. लोग उनकी किताब के किरदारों व कहानी के साथ रिलेट करते हैं. खासकर मध्यमवर्गीय युवा पीढ़ी. मैं उनकी कोई भी कहानी संक्षेप में आपको सुनाउं, तो आप यह जरुर कहेंगें कि ऐसा कुछ मेरे साथ हुआ है अथवा मेरे किसी मित्र या मेरे एक पड़ोसी ने ऐसा कुछ वाक्या सुनाया था. उनकी कहानियों में रिश्तों को लेकर अपनापन होता है, जिससे लोग खुद ब खुद उसके साथ जुड़ जाते हैं. मैं तो पढ़कर समझ सकता हूं कि इन किरदारों के साथ क्या बीती और कलाकार काम तो इसीलिए करता है कि वह खुद किरदार के साथ कनेक्ट कर सके. जब कलाकार को ऐसी सामग्री मिल जाती है, तो यह उसके लिए सोने पे सुहागा हो जाता है. ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ में ऐसा ही कुछ रहा, जिससे मेरा जुड़ाव हो गया.

चेतन भगत से आपकी क्या क्या बातें हुई?

मैंने पहली बार चेतन भगत के उपन्यास ‘टू स्टेट्स’ पर बनी फिल्म में अभिनय किया था. उस वक्त उनसे हमारी एक दो बार बात हुई थी. पर अब जब मैंने उनके दूसरे उपन्यास ‘हाफ गर्लफ्रेंड’ पर यह फिल्म की है, तो उनके साथ मेरी बहुत चर्चा हुई. क्योंकि वह इस फिल्म के निर्माता भी हैं.

चेतन की आदत है कि वह आपके साथ बैठेंगे, तो आपको कुरेंदेगे और आपके संबंध में सब कुछ जानना चाहते हैं. क्योंकि वह हमारे या आपकी जिंदगी से प्रेरणा लेकर कहानी या किरदार लिखते हैं. वह जिसके साथ भी बैठते हैं, सभी के साथ बात करते हैं. वह हर किसी को परखने की कोशिश करते हैं. हर किसी की जिंदगी में घुसने की कोशिश करते हैं. फिर वह उसे अपनी अपनी कहानी का हिस्सा बनाते हैं. वह इमोशन के साथ लोगों से जुड़ी हुई कहानियों को मिश्रित कर किरदार व कहानियां गढ़ते हैं.

शिक्षा की हर जगह व हर किसी को जरूरत है. उन्होंने शिक्षा और प्यार दोनों की मिलावट बहुत अच्छे ढंग से की है. इस कहानी में उन्होंने हर बच्चे की इस कमजोरी को पकड़ा है कि हर बच्चे के लिए अच्छे कॉलेज में पढ़ने जाना महत्व रखता है. फिर कॉलेज में प्यार के चक्कर भी चलते हैं. उसमें लड़का हो या लड़की दोनों बर्बाद भी होते हैं. फिर चाहे वह तीन माह के लिए हो या तीन साल के लिए. पर इस तरह के पड़ाव आते हैं. उन्होंने इन दोनों चीजों का जो मिश्रण किया है, वह काबिले तारीफ है. चेतन भगत ने सिनेमा का जो असली दर्शक हैं यानी कि मध्यमवर्गीय युवा पीढ़ी को बहुत बारीकी से समझ गए हैं.

फिल्म ‘‘हाफ गर्लफ्रेंड’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

मैंने बक्सर, बिहार के रहने वाले युवक माधव झा का किरदार निभाया है. जो कि समझदार, ईमानदार, मेहनती और संजीदा इंसान है. उसने अपने गांव का विकास करने का तोड़ निकाल लिया है. उसे पता है कि उसकी अंग्रेजी कमजोर है, इसलिए वह राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर पर बास्केटबॉल खेलता है, जिसके चलते स्पोर्ट्स कोटा में वह दिल्ली के किसी अच्छे विश्वविद्यालय में एडमीशन पा ले, जिससे वह ऐसी पढ़ाई पढ़ सके, जिसकी मदद से वह अपने गांव का भला कर सके. वह सोसियोलॉजी पढ़ना चाहता है. अब दिल्ली पहुंचने पर जाने अनजाने रिया सोमानी के साथ उसका रिश्ता कायम हो जाता है. उसके बाद माधव झा की जिंदगी की यात्रा है. फिल्म देखेंगे तो समझ में आएगा कि माधव झा की हाफ गर्ल फ्रेंड कौन और क्यों है.

आपके निजी जीवन की हाफ गर्लफ्रेंड कौन है?

यह ऐसा रिश्ता होता है जिसमें भावनाएं नहीं जुड़ी होती हैं. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान तीन माह या साल भर के लिए इस तरह के कुछ रिश्ते बनते हैं. पर तब हम अभिनय करियर को संवारने में लगे हुए हैं.

भुलाए न भूले चिखलदरा की सैर

स्कूल के अध्यापकों की इच्छा थी कि दूसरे अध्यापकों व विद्यार्थियों के साथ किसी पर्वतीय स्थल पर घूमने जाएं. वे पर्यटन पर चलने के लिए दूसरे अध्यापकों को तैयार करने लगे, लेकिन ज्यादातर के पास न चलने के कई बहाने थे- ‘मेरा साला आने वाला है, वह नहीं आया तो चलूंगा,’ ‘नाम लिख लो लेकिन पक्का नहीं है’, ‘2 के बजाय 1 दिन का टूर रख लो’ वगैरावगैरा.

अध्यापक असद अली सब को समझाने और तैयारियों में लगे रहे. आखिरकार, यात्रा पर रवाना होने का दिन आया. महाराष्ट्र के विदर्भ में सतपुड़ा पहाड़ी शृंखला के मशहूर स्थल चिखलदरा की सैर के लिए हम 12 अध्यापकों को ले कर मिनी बस बारसी टाकली से निकल पड़ी.

सफर के शुरुआती भाग में सभी बातें बहुत करते हैं, शोर होता रहता है. तब सभी के पास बोलने के लिए बहुत कुछ होता है. अकोट आने तक ऐसी ही स्थिति रही. कुछ देर बाद पर्वत दिखाई देने लगे, ठंडी हवाओं के झोंके लगने लगे. जो लोग पहली बार आ रहे थे, खुश हो गए कि प्रवास पहले चरण में ही रोचक होने लगा है.

सूर्यनाला जाने वाली सड़क पर मुड़ते ही पहली बार घना जंगल, ऊंचेऊंचे पेड़, गहरी वादियां, खतरनाक मोड़, आसपास और दूरनजदीक बहुत ऊंचेऊंचे पर्वत दिखाई देने लगे. लहलहाते हुए जंगल का नजारा पूरे शबाब पर है. लगता है जंगल अपनी उम्र के 16वें साल में है. जो लोग पहली बार इस तरफ आते हैं, हर्ष और भय दोनों का आनंद उठाते हैं.

हम बेलकुंड के खूबसूरत रैस्टहाउस के लिए ऊपर की ओर जा रहे हैं. सड़क के दायीं ओर एक खूबसूरत नदी नजर आई जो हमारे साथसाथ चलने लगी. हम जितना आगे बढ़ते, नदी उतनी नीचे चली जाती. 1-2 जगह यह नजारा इतना खूबसूरत है कि गाड़ी रोकी गई. हर तरफ खामोशी है. हम भी खामोश हुए और 100 फुट ऊंचे जिस पर्वत के कंधों पर खड़े हैं, उसी के कदमों को देखने लगे.

नीचे बहने वाली नदी की आवाज सुनाई दे रही है. आवाज बहुत दूर से आ रही है, कमजोर है. साफ सुनने के लिए सब लोग ध्यान से नदी की ओर देखने लगे जैसे आवाज सुनने की नहीं, देखने की चीज है. आगे का रास्ता भागते सांप की भांति लहरदार हो गया. हम कभी आगे कभी पीछे, कभी लैफ्ट कभी राइट, हिचकोले खातेखाते परेशान हो गए. हड्डियां और अंतडि़यां ढीली हो गईं. डेढ़ घंटे तक बैठेबैठे अकड़ गए.

जब बेलकुंड का रैस्टहाउस आया और बस से उतरने की घोषणा हुई तो सारे शिक्षक फुरती व उल्लास से गाड़ी से बाहर कूदने लगे, जैसे स्कूल में छुट्टी की घंटी बजी हो. यह रैस्टहाउस 1891 में अंगरेजों ने बनाया था. इस की देखभाल के लिए सरकार की ओर से एक व्यक्ति दिखाई देता है जो बगल के सर्वेंट र्क्वाटर में रहता है. वह यहां आने वालों को खामोशी से देखता रहता है, रैस्टहाउस की सीढि़यों पर बैठा रहता है. सैलानियों के एकजैसे प्रश्नों के उत्तर उचाट मन से देता है.

हमारे साथ के अध्यापक उस से प्रश्न कर रहे हैं और मैं 40-50 फुट ऊंचे वृक्ष के पैरों में बैठा उस चौकीदार को देख कर सोच रहा हूं कि शाम के वक्त जब सारे मुसाफिर चले जाते होंगे, पहाड़ों की पहाड़ जैसी रात गुजारने के लिए यह यहां अकेला पड़ जाता होगा. तब इस को यह रहस्यमय जंगल, यह सन्नाटा कैसा लगता होगा. वह क्या सोचता होगा.

रात में कौनकौन से अवलोकनों और अनुभवों से गुजरता होगा. जिस प्रकार यह इमारत अपने अंदर बीते जमानों के अनगिनत रहस्य छिपाए हुए है, इस व्यक्ति के पास भी कितनी घटनाएं और कौनकौन सी सच्ची व मनोरंजक कहानियों के रहस्य होंगे. यह किस को सुनाता होगा. लोगों को यहां आते हुए और फिर वापस होते देख कर इस को कैसा लगता होगा. मैं जब भी यहां आया, ऐसा लगा यह इमारत और चौकीदार कुछ कहना चाहते हैं लेकिन पूछो तो बताते ही नहीं.

चिखलदरा की सैर करने वाले इस रास्ते को कम ही अपनाते हैं. दिनभर में 10-15 गाडि़यां इस जगह आती होंगी. यही इस चौकीदार के मनोरंजन का सामान है. हर दिन, गुजरे दिन से अलग, हर गाड़ी के लोग गुजरी हुई गाड़ी के लोगों से भिन्न. यदि यह लेखक हुआ तो इस के पास कितनी कहानियां हैं लिखने के लिए.

घना जंगल, काली रात

सूरज डूबते ही पत्तों ने अपना रंग बदलना शुरू कर दिया. आसमान ने रंग दिखाने शुरू कर दिए. पहले नारंगी हुआ, फिर लाल, फिर जामुनी और बाद में बहुत गहरा नीला हो गया. बादल पतले हो कर उड़ रहे हैं. आसमान कभी बादलों से ढक जाता, कभी साफ दिखाई देता. पत्तों ने सूरज के इश्क में सुबह से हरे और धानी रंगों का शृंगार कर रखा था. अब उन्होंने अपना शृंगार उतारना शुरू कर दिया.

गहरे हरे हुए, फिर काले हो गए और जब उन को यकीन हो गया कि सूरज अगली सुबह तक उन के हुस्न को निहारने नहीं आएगा तो उन्होंने देखने वालों की नजरों से भी परदा कर लिया और अंधेरे को ओढ़ लिया. नदियों और झरनों ने चमकना व उछलनाकूदना बंद कर दिया. हर तरफ एक रहस्यमय खामोशी है. शोर है तो सिर्फ गाड़ी के दौड़ने का.

गाड़ी के क्रमबद्ध झटकों से एक साथी की तबीयत खराब हुई. गाड़ी रुकवाई गई. एकएक कर के सब लोग उतर पड़े. कोई बिल्ली की भांति अंगड़ाइयां ले रहा है, 2-3 लोग उत्तर में, 2-3 दक्षिण में टहलते हुए निकल गए हैं.

रात, जंगल, मीलों तक आदम न आदमजात. और हम सड़क पर खड़े हुए. एक खुशबू है, बेनाम, अनजानी. लेकिन खास जंगल की खुशबू. कुछ आवाजें हैं बहुत दूर से आती हुई. किस की हैं? परिंदे, दरिंदे या कुछ और. और यहां  पर वृक्ष कितने ऊंचे हैं. इन की डालियां कैसी भयंकर लग रही हैं. क्या उन पर कोई बैठा है? अगर वह हमला कर दे?

इस जंगल में और कौनकौन से प्राणी हैं जो नजर नहीं आते. यह जंगल इतना रहस्यमय क्यों लग रहा है? यहां ज्यादा रुकना ठीक नहीं. हमारे साथी कहां चले गए? सब गाड़ी में बैठ गए अपनी जगहें बदल कर. सचिन अच्छा ड्राइवर सिद्ध हुआ. उस ने गति और बढ़ा दी है. आखिर सेमाडो आ ही गया. रात के 8 बजे हैं. लेकिन इस जगह ऐसा लग रहा है जैसे आधी रात.

एक जागता स्वप्न

एक बड़े होटल के सामने गाड़ी रोकी गई. सब लोग उतर कर खुले आसमान के नीचे रखी कुरसियों की ओर जाने लगे. मैं ने उन के चलने पर ध्यान दिया, फिर खुद के चलने पर. मुझे लगा जैसे मैं चिकनगुनिया का रोगी हूं. सारी रगें और हड्डियां ऐंठ गई हैं. और मैं केकड़े की तरह चल रहा हूं. उन दिनों चिकनगुनिया का दौर आया था. उस समय आसपास के स्थानों से लोग कारों और आटोरिकशों में भर कर आते और दवाखानों के सामने उतरते थे. तब यही लगता था केंकड़े उतर रहे हैं. हम इन कुरसियों में ढेर हो गए. फिर धीरेधीरे किसी ने पानी पिया, मुंहहाथ धोया. चाय की चुसकियां लेने लगे. पता चला यहां की रबड़ी बहुत मशहूर है. सब ने रबड़ी का सेवन किया.

इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो पता चला, यह तो बहुत खूबसूरत स्थान है. ऊंचे पर्वतों के कदमों को छूती हुई एक खूबसूरत बलखाती सड़क चली गई है. बसें, कारें और ट्रक थोड़ीथोड़ी देर से गुजर रहे हैं. उन की लाल बत्तियां माहौल को खुशनुमा बना रही हैं.

सैलानियों की गाडि़यां खड़ी हुई हैं. कोई सड़क पार कर के उस तरफ कुछ खरीद रहा है. इधर चाय की प्यालियों से भाप निकल रही है. सर्दी बहुत बढ़ गई है. हम अपने गरम कपड़े और शालें निकाल रहे हैं. होटल में लकडि़यों की बड़ी भट्ठी जल रही है. खुले आसमान के नीचे अलाव जल रहे हैं. हवाएं तूफानी रफ्तार से चलने लगी हैं. कमीज और पतलून गुब्बारे हुए जाते हैं. बालों की लटेें माथे पर गुदगुदी करने लगी हैं.

आसमान पर तारे आज बहुत ज्यादा नजर आ रहे हैं. आसमान भी वह नहीं लगता जिसे हम रोजाना बिजली की रोशनी से भरे अपने इलाके में देखते हैं. आज वह दीवाना कर देने की हद तक खूबसूरत लग रहा है. कुल मिला कर यह खुली आंखों से दिखता स्वप्न मालूम होता है. दिन के नजारे अपनी जगह और रात की असीम सुंदरता अपनी जगह. दिन मेहनती नटखट लड़का है तो रात सुंदर, शांत लड़की है.

इधर हम 4-5 साथी सड़क पर पैदल निकल गए हैं. सब यही बातें कर रहे हैं, अच्छा हुआ हम लेट हो गए वरना इतनी खूबसूरत रात देखने को न मिलती.

असद अली मुझे तलाश करते हुए तेजी से आ रहे हैं. सेमाडो हम ने रात साढ़े 8 बजे छोड़ दिया. रात 10 बजे के आसपास हम ने चिखलदरा में प्रवेश किया. गाड़ी किसी निवासस्थान की खोज में होटलों, बाजारों से हो कर गुजरी. बाहर की भागती रोशनियों को अंदर बैठे लोग आंखें मलते हुए देखने लगे.

वह खौफनाक रात

थोड़ी तलाश के बाद एक अच्छा होस्टल मिल गया. हर पलंग पर एक सूटकेस खुला हुआ है. कोई कपड़े बदल रहा है, कोई ब्रश कर रहा है. कोई दवाएं खा रहा है. कुछ लोग कोने में अलगथलग खामोशी से लेट गए हैं.

शब्बर और नाजिम इस अंधेरे में भी रोड पर चहलकदमी कर रहे हैं. चलने का अंदाज ऐसा है मानो स्कूल में पीरिएड औफ है और ये स्कूल ग्राउंड से होते हुए कैंटीन की ओर जा रहे हैं.

खाने के बाद ज्यादातर लोग सो गए लेकिन आरिफ की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं. सो गया सारा जमाना, नींद क्यों आती नहीं. नाइट ड्यूटी वाले चौहान की जम्हाइयों से परेशान हो कर आरिफ कौरिडोर में निकल आए. वहां हवा सचमुच सीटियां बजाती गुजर रही है. रात के अंधेरे, खामोशी और कहींकहीं बिजली के बल्ब से निकलने वाली रोशनी के टुकड़ों ने माहौल को अजूबा और मदहोश कर देने वाला बना दिया है. जिस का दिल चाहे इस से खुश हो वरना भयभीत करने के लिए काफी है. सीटियां बजाती हवा हमारी फिल्मों में खौफनाक माहौल को जाहिर करती है, जैसे कुछ होने वाला है लेकिन पता नहीं क्या.

आरिफ कौरिडोर में घूम रहे हैं, रात का डेढ़ बजा है. उन को धुआं दिखाई दिया, इस कड़कड़ाती ठंड में किसी ने अलाव जलाया होगा. पता करने वहां की कैंटीन तक आए. कोई नहीं. उन्होंने ध्यान से देखा, सफेद धुआं किसी अलाव का नहीं, बहुत सारा है.

उस ने पूरे होस्टल को घेर लिया है और बढ़ता जा रहा है. वे कल रात एक डरावनी फिल्म देख रहे थे जिस में किसी के आने से पहले ऐसा ही धुआं चारों ओर फैल जाता है. कड़ाके की सर्दी में डर के मारे उन को पसीना महसूस हुआ. वे फुरती से कमरे के अंदर आ गए और दरवाजा मजबूती से बंद कर लिया.

यादगार सवेरा

मूसलाधार बारिश में मकानों की छतों और पथरीले फर्श पर आमतौर पर सफेद धुआं सा दिखाई देता है. चिखलदरा में ऐसा धुआं या पानी से भरे बादल धरती पर उड़ते फिरते हैं. पूरा इलाका धुएं की लपेट में होता है. यह दृश्य सूरज निकलने से पहले दर्शनीय होता है. चिखलदरा के लोग इसे धुंयारी कहते हैं. आज सुबह साढ़े 5 बजे के आसपास कुछ लोग जागे तो आंखों के सामने इसी धुंयारी के नजारे थे हर तरफ.

सर्दी की तीव्रता स्वेटर और शाल से कम न हो रही थी, इसलिए रात को जिन कंबलों को ओढ़ कर सोए थे उन्हें भी लपेट कर हम लोग होस्टल के पूर्व में एक पौइंट पर चले आए हैं. सर्दी असहनीय है, कमरे से बाहर निकलने नहीं देती जबकि दिलफरेब दृश्यों की लज्जत, कमरे में ठहरने नहीं देती. हर कोई प्रशंसा किए जा रहा है. दांत किटकिटाते हैं. आवाजें कांपती हैं लेकिन किसी से चुप रहा नहीं जाता.

इस धुएं को देख कर आरिफ मुसकराने लगे. कहा, ‘यही धुंध थी वह जिसे मैं रात कुछ और समझ बैठा था. सारे होस्टल में कंबल चक्कर लगा रहे हैं. कोई ब्रश कर रहा है. 2-3 कंबल हंसते हुए खड़े हैं. एक कंबल सर्दी से थरथर कांप रहा है. 2 कंबल चाय के लिए कैंटीन वाले को जगा रहे हैं.

सुबह होते ही चहलपहल हो गई. गाड़ी में सोए कंबल यानी ड्राइवर को जगाया गया कि भैया उठो, एक पौइंट देख कर आना है. सूरज के चढ़ आने के बाद उस जगह का मजा न रहेगा. इसी रूप में लोग गाड़ी में सवार हो कर गाविलगढ़ किले से जरा पहले उतर गए, जहां सड़क की सीधी तरफ एक मैदान सा नजर आता है. उस के किनारे पहुंचने पर गहरी घाटी नजर आती है, जिस में गहरे हरे रंग का घना जंगल, दूर बहुत नीचे बहती हुई नदी, एक गांव दिखाई देता है. हवा इतनी ताकत से चलती है कि हर वक्त खुद के उड़ जाने का डर लगा रहता है.

हम बादलों के बीच घिरे जीवनभर के यादगार वक्तों में से एक वक्त गुजार रहे हैं. वे बादल, जिन को हम अपने इलाके में आकाश में उड़ते हुए देखते हैं, यहां हमारे पैरों में उड़ रहे हैं. हर कोई खुशी के मारे कुछ न कुछ बोल रहा है. इसी सिलसिले में मुतज्जिर ने वकार और नासिर को एक हिलती दीवार पर बिठा कर हिलने से मना कर रखा है. खुशियों से तमतमाते चेहरे लिए होस्टल पहुंचे.

कल के सफर में कुछ कठिनाइयों के कारण सोने से पहले बिस्तर पर पड़ेपड़े किसी ने सोचा होगा — अब किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा. अब की बार घर पहुंच जाऊं, बस. इस के बाद इन के साथ प्रवास करने से कान पकड़ता हूं. लेकिन सवेरे से अब तक सिर्फ डेढ़ घंटे प्रकृति के नजारे देख कर सभी फिर से यहां आने के प्रोग्राम बुन रहे हैं, खामोश खड़े हुए असद अली से कह रहे हैं, ‘क्यों भई, क्या खयाल है. अगले महीने आते हैं न फिर चिखलदरा.’

– शकील एजाज

आपके दिल के लिए खतरनाक हैं सफेद बाल

क्या आप जानते हैं कि जिन लोगों के बाल उम्र से पहले ही सफेद होने लगते हैं, उन्हें हृदय रोग का खतरा हो सकता है.

बालों का असमय सफेद होना हृदय रोग की ओर संकेत करता है. वास्तविक उम्र कम होने के बावजूद बालों में सफेदी व्यक्ति की जैविक उम्र को बयां करती है और यह हृदय रोग की चेतावनी का संकेत हो सकता है.

आपकी धमनियों के अंदर की वसा सामग्री से एथेरोस्केलेरोसिस का निर्माण होता है और आपके बालों का सफेद होना, इन दोनों में कई समानताएं हैं. दोनों का कारण बिगड़ा हुआ डीएनए, ऑक्सीडेटिव तनाव, सूजन, हार्मोन में बदलाव और कार्यात्मक कोशिकाओं का खिंचाव है.

एथेरोस्केलेरोसिस और बालों की सफेदी एक जैसी जैविक प्रक्रियाओं से होती हैं और उम्र बढ़ने के साथ ही दोनों में ही बढ़ोतरी होती है. इससे ही संबंधित एक शोध स्पेन के मालागा में इसी साल 6 से 8 अप्रैल तक यूरोपीयन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव कार्डियोलॉजी (ईएपीसी) की सालाना कांग्रेस यूरोप्रिवेंट 2017 में प्रस्तुत किया गया था.

अगर आपके बाल भी सफेद हो रहे हैं और ये प्रक्रिया तेज गति से चल रही है, तो हम आपको यही सलाह देना चाहते हैं कि आपको जल्द से जल्द अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए.

दीवानगी नोफोन की

हमारे देश में मोबाइल फोन आए लगभग 20 साल से अधिक समय हो गया है. इन 2 दशकों की सब से बड़ी उपलब्धि यह रही है कि आज देश में 1 अरब से ज्यादा मोबाइल ग्राहक है. पिछले कुछ वर्षों से नया मोबाइल फोन और कनैक्शन लेने वालों की रफ्तार हर महीने 1 करोड़ की दर से बढ़ रही है. हो सकता है कि कुछ समय बाद यह दावा किया जाए कि सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाले इस मुल्क में इतने ही मोबाइल कनैक्शन हों.

अमीरीगरीबी का ज्यादा फर्क किए बगैर देश में लगभग हर व्यक्ति को सूचना पाने की सुविधा के अलावा एक नई पहचान देने वाली इस क्रांति की शुरुआत जिस अंदाज में हुई थी, उस में यह बताना मुश्किल था कि सिर्फ 20-22 साल में एक रिकशाचालक या कोई मजदूर पीसीओ बूथ के खुलनेबंद होने की चिंता से बेफिक्र हो कर जब चाहे गांवदेहात में अपने परिवार वालों से बात कर सकेगा और अपने दूसरे कई काम भी निबटा सकेगा. भारत जैसा ही हाल चीन का भी है, जहां वर्ष 2012 में ही 1 अरब मोबाइल फोन उपभोक्ता हो गए थे. दुनिया में फिलहाल यही 2 देश हैं जहां 1 अरब से ज्यादा मोबाइलधारक हैं.

इधर एक ओर जब भारतचीन में मोबाइल फोन को ले कर ऐसी होड़ मची हुई है, तो दूसरी तरफ दुनिया में एक नया ट्रैंड उभर रहा है जिस में लोग स्मार्टफोन के नशे से छुटकारा पाना चाहते हैं. इस की शुरुआत एक कनाडाई कंपनी ने ‘नोफोनएयर’ नामक गैजेट बना कर की है, जिस के बारे में दावा किया जा रहा है कि उस की मदद से लोग स्मार्टफोन पर अपनी निर्भरता कम कर पाएंगे और ऐसी जिंदगी जी पाएंगे, जिस में स्मार्टफोन की जरूरत महसूस नहीं होगी.

हालांकि भारतचीन जैसे देशों में लोग अभी इस बारे में सोच नहीं पा रहे हैं कि एक दिन दुनिया में ऐसा भी आ सकता है जब लोग स्मार्टफोन के बिना खुद को ज्यादा सुखी महसूस करेंगे. अभी ज्यादातर लोगों का मानना है कि स्मार्टफोन के बिना रह पाना असंभव है. इधर, जिस तरह से सरकार मोबाइल बैंकिंग पर जोर दे रही है उस में तो एक अच्छे स्मार्टफोन का होना जरूरी लगता है.

जापान समेत कई यूरोपीय देशों में अब भी लोग स्मार्टफोन को एक बुरी लत के रूप में देखते हैं और इस से छुटकारा पाना चाहते हैं, लेकिन लोगों का मानना है कि अब शायद स्मार्टफोन के बिना जिंदा रह पाना मुमकिन नहीं है, क्योंकि इसी के जरिए कई तरह के काम हो रहे हैं और दुनियाभर के लोग एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. इसलिए जब कुछ लोगों को यह जरूरत महसूस हुई कि कैसे वे स्मार्टफोन के जंजाल से बाहर निकलें, तो सब से पहले इस धारणा को तोड़ने की कोशिश शुरू की गई कि स्मार्टफोन के बिना जिंदगी नामुमकिन है.

करिश्मा ‘नोफोनएयर’ का

वैसे तो स्मार्टफोन की लत से छुटकारा पाने के कई उपाय बताए जाते हैं, लेकिन इस का एक नया तरीका कनाडा के 2 वकीलों स्टीवन पल्वर और डैनियल लेविन ने निकाला है. उन्होंने अक्तूबर, 2016 में कनाडा में एक ऐसी बैठक बुलाई जिस में लोगों को बिना स्मार्टफोन के आने को कहा गया. उन्होंने देखा कि मीटिंग में आने वाले 100 से ज्यादा लोगों के बीच ऐसा अनोखा संपर्क बना जिस की आशा ही नहीं थी. इस से उन्होंने नतीजा निकाला कि अगर ऐप्स के जंजाल से हमें छुटकारा मिल जाए तो हम ज्यादा क्रिएटिव, शिष्टाचारी होने के साथ सही माने में लोगों से जुड़ सकते हैं. यह सिर्फ एक उदाहरण है. दुनिया के कई देशों में स्मार्टफोन की लत से पीछा छुड़ाने के लिए लोग तरहतरह के प्रयोग कर रहे हैं. इस का एक नमूना कनाडा में आयोजित फायरसाइड कौन्फरैंस में 2 उ-मियों क्रिस शेल्डन और वैन गूल्ड ने पेश किया. एक टैक्नोलौजी कौन्फरैंस में इन्होंने ‘नोफोनएयर’ नाम से एक छोटी सी डिवाइस लौंच की, जो देखने में तो एक स्मार्टफोन की तरह ही है पर इस में हैडफौन जैक, औपरेटिंग सिस्टम, स्क्रीन, प्रोसैसर, बैटरी, स्टोरेज और ब्लूटूथ जैसी कोई चीज नहीं है. इस में सिर्फ हवा है.

इस डिवाइस को लौंच करते हुए शेल्डन ने कहा, ‘‘यह दिखने में तो स्मार्टफोन है लेकिन स्मार्टफोन की तरह काम नहीं कर सकता. आप फोन से दूर रह कर ही सही मानों में दूसरे लोगों से जुड़ सकते हैं.’’

शेल्डन और गूल्ड ने आगे कहा कि इस वक्त जब दुनिया में लाखों लोग आईफोन और इसी तरह के आधुनिक स्मार्टफोनों के पीछे भाग रहे हैं, नोफोनएयर एक नई लहर की तरह सामने आ सकता है. यह नकली फोन उन के लिए है जो असली स्मार्टफोन से चिपके रहते हैं, पर उस की लत से छुटकारा पाना चाहते हैं.

नोफोनएयर की मांग तेजी से बढ़ रही है, यह इस से साबित होता है कि हौलीवुड के सुपरस्टार कायने वेस्ट ने ट्वीट किया कि मैं अपने फोन से छुटकारा चाहता हूं, शायद यही सोच कर नोफोनएयर बनाया गया है. इस ट्वीट के जवाब में गायिका केटी पैरी ने लिखा, ‘दुनिया से संवाद बढ़ाने के लिए बेहतर है कि फोन से खुद को अलग कर लो.’ उल्लेखनीय यह है कि लौंचिंग के कुछ समय बाद ही 10 डौलर (650 रुपए) की कीमत वाले नोफोनएयर के 10 हजार सैट दुनिया में बिक चुके थे.      

कैसे बचें स्मार्टफोन की लत से

नोफोनएयर असल में हमें स्मार्टफोन की लत से बचाने का एक तरीका मात्र है पर सचाई यह है कि दुनिया में इस समय ऐसे कई तौरतरीकों की खोजबीन हो रही है, जिस से लोगों को फोन की जरूरत महसूस न हो. इस बारे में ब्रिटेन की एक संस्था औफकौम्स का कहना है कि स्मार्टफोन एडिक्शन (लत) एक महामारी के स्तर पर पहुंच गया है. एक सर्वे में 37% लोगों ने स्वीकार किया कि वे अपने स्मार्टफोन से खुद को अलग नहीं कर पाते हैं. सर्वे में आधे लोगों को मानना था कि वे स्मार्टफोन का इस्तेमाल सोशल मीडिया के जरिए लोगों से संपर्क साधने में करते हैं. एकचौथाई का मत था कि वे खाना खाते समय भी फोन का प्रयोग करते हैं और 20% अपने बाथरूम तक में स्मार्टफोन अपने साथ ले जाते हैं.

दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो हर मिनट में अपना फोन चैक करते रहते हैं कि कहीं कोई नया मैसेज, फोटो और वीडियो तो उन के फोन पर तो नहीं आया है, ऐसे में उन तरीकों की भी चर्चा होने लगी है जिन से लोग स्मार्टफोन की लत से बच सकते हैं. प्रस्तुत हैं सुझाव :

– ऐसे स्मार्टफोन खरीदने से बचें, जिन में अनगिनत फीचर्स हों. अपनी जरूरत के मुताबिक सीमित फीचर वाले फोन खरीदें.

–   हर नया ऐप डाउनलोड न करें. इस से न सिर्फ फोन की स्पीड कम होती है, बल्कि नएनए ऐप हमारा ध्यान भी भटकाते हैं. 5 या 10 से अधिक ऐप फोन में नहीं होने चाहिए.

–   अगर आप को हर दूसरे मिनट पर फोन चैक करने की आदत है तो घर में अपना फोन खुद से दूर दूसरे कमरे में रखें.

–   यदि किसी से बात करते समय कोई अननोन कौल फोन पर आ रही है तो उस वक्त उस पर ध्यान न दें. बात खत्म करने पर कौलबैक कर जानकारी लें कि वह कौल आप के लिए जरूरी है या नहीं. इस से हम फोन को खुद पर हावी होने से बचा सकते हैं.

चूंकि तकनीक बड़ी तेजी से बदल रही है, इसलिए कंपनियां भी नएनए फीचर वाले स्मार्टफोन बाजार में ले कर आती हैं. ऐसे में बहुत से लोग नया फोन खरीद लेते हैं, जबकि उन का पुराना फोन काम कर रहा होता है. इस आदत से खुद को बचाएं, क्योंकि यह हमारा पैसा फुजूल में खर्च कराती है और हमारा ध्यान भी भटकाती है.

धार्मिक ढकोसलों का शिकार न बनें

घर में बच्चे के जन्म लेते ही मातापिता उसे बुरी नजर से बचाने के लिए तरहतरह के पूजापाठ व टोनेटोटके करवाते हैं. बच्चा डरे नहीं इसलिए उस के तकिए के नीचे लोहे की कोई चीज चाकू वगैरा रखते हैं, उस के गले में बाबाओं द्वारा सिद्ध किए ताबीज व धागे बांधने से भी गुरेज नहीं करते.

बालपन में तो बच्चे को इन की समझ नहीं होती, लेकिन जैसेजैसे वह बड़ा होता है उस के दिमाग में इन चीजों को बैठाने की कोशिश की जाती है और उस पर इतना अधिक दबाव डाला जाता है कि उसे लगने लगता है कि अगर मैं मेहनत नहीं भी करूंगा तब भी पास हो जाऊंगा, लेकिन अगर मैं ने मूर्ति के आगे हाथ नहीं जोड़े या मां के बताए टोटके नहीं किए तो अवश्य फेल हो जाऊंगा और वह कर्म से ज्यादा ढकोसलों में विश्वास करने लगता है जो उस का कैरियर टौनिक नहीं बल्कि उसे दिग्भ्रमित कर देते हैं.

यदि आप के पेरैंट्स भी आप को जबरदस्ती धार्मिक ढकोसलों में फंसाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें बताएं कि कर्म करने से फल मिलता है न कि घंटों धार्मिक पाखंडों में उलझ कर अपना समय बरबाद करने से.

जब रखें बर्थडे पर जागरण का प्रस्ताव

यदि पेरैंट्स कहें कि हम ने मन्नत मांग रखी थी कि जब तुम 15 साल के हो जाओगे तो तुम्हारे बर्थडे पर जागरण करवाएंगे इसलिए इस बार नो पार्टी विद फ्रैंड्स ओनली जागरण, तो आप उन्हें समझाएं कि मन्नतवन्नत कुछ नहीं होती, ये सब मन का वहम है. जागरण पार्टी वाले भी सिर्फ संगीत की धुन पर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं. वे खुद भी बजाय भगवान के, पैसे को अहमियत देते हैं, बातबात पर पैसा चढ़ाने को कहते हैं, इस से तो दोस्तों के साथ ऐंजौय करना ज्यादा अच्छा है. अत: इस बार मैं बर्थडे पर धमाल वाली पार्टी करूंगा. 

ऐसी चीज का क्या फायदा जिस में मैं मन से ही न बैठ पाऊं और अंदर ही अंदर किलसता रहूं. अगर मैं आप की तरह धार्मिक पाखंडों में फंसा रहा तो कभी न लाइफ ऐंजौय कर पाऊंगा और न ही गोल अचीव कर पाऊंगा, इसलिए मैं तो आप को भी यही सलाह दूंगा कि इन चक्करों में फंसने से अच्छा है कि जी लो अपनी जिंदगी.

परीक्षा के लिए उपवास

हम ने पंडितजी से पूछा है कि इस समय तुम पर शनि का प्रभाव है और इसी दौरान तुम्हारी परीक्षाएं भी हैं, ऐसे में तुम्हें ग्रह प्रभाव के कारण मेहनत का फल कम मिलेगा लेकिन यदि तुम पंडित द्वारा बताया उपवास करोगे तो तुम्हें अधिक सफलता मिलेगी.

एक तो सिर पर ऐग्जाम का प्रैशर और ऊपर से घर वालों का उपवास रखने की जिद, अंदर ही अंदर आप को खाए जा रही है. ऐसे में आप साफसाफ इनकार कर दें कि मैं व्रत वगैरा नहीं रखूंगा. आप के कहने का मतलब यदि ग्रह सही चल रहे हैं तो मैं किताबें न भी पढ़ूं तब भी फर्स्ट डिवीजन से पास हो जाऊंगा. मौमडैड प्लीज इन ऊटपटांग बातों में न फंसें. ये सब पंडितों के अपने जाल में फंसाने के बहाने हैं. यदि मुझे कभी व्रत रखना होगा तो मैं अपने पेट को आराम देने के लिए रखूंगा, जिस से चटोरी जबान पर भी एक दिन के लिए लगाम लगेगी.

वास्तुदोष के चक्कर में पढ़ाई का स्थान बदलना

हर बार तुम्हारे इतने कम मार्क्स आ रहे हैं जबकि तुम रातभर पढ़ाई करते हो. ऐसा अगर एक बार होता तो मुझे ज्यादा चिंता नहीं होती, लेकिन ऐसा पिछले साल से लगातार हो रहा है इसलिए मैं ने इस संबंध में अपनी फ्रैंड से बात की तो उस ने वास्तुदोष के बारे में बताया और उसी के कहने पर मैं ने जानेमाने पंडित से बात भी कर ली है. उन्होंने घर का जायजा लेने के बाद बताया है कि आप का घर वास्तुदोष से प्र्रभावित है जिस वजह से तुम्हारे मार्क्स कम आ रहे हैं. इस के लिए तुम्हारा पढ़ाई का स्थान बदलना जरूरी है.

ऐसे में मां को समझाएं कि कम मार्क्स वास्तुदोष के कारण नहीं बल्कि पढ़ाई में मन लगाने के बजाय कंप्यूटर पर वक्त जाया करने के कारण आ रहे हैं और ऐसे में आप जबरदस्ती मेरी पढ़ाई की जगह बदल देंगे तो मैं बेमन से पढ़ूंगा, इस से न तो आप का और न ही मेरा कोई फायदा होगा. इसलिए मैं तो अपनी पढ़ाई की जगह किसी भी कीमत पर बदलने को तैयार नहीं हूं.

टोटके सफलता के साथी नहीं

धर्म के ठेकेदारों ने अंधविश्वास के नाम पर लूट मचा रखी है. अपनी दुकानदारी के तहत वे श्रीयंत्र, घोड़े की नाल, ग्रहनक्षत्रों, दशाओं के आधार पर जहां अंधी लूट मचाते हैं वहीं विदेशी टोटके जैसे लाफिंग बुद्धा, रिंगिंग बैल आदि तक को बेचने के लिए अंधविश्वास का पल्ला पकड़ने से भी गुरेज नहीं करते. इस में नुकसान हर हाल में बेवकूफ बनने वालों का ही होता है.

पेरैंट्स बच्चों का हमेशा शुभ चाहने के लिए टीवी पर विज्ञापन देख प्रभावित हो जाते हैं और फिर बच्चों के मन में इन चीजों को ला कर शुभअशुभ का पाखंड पैदा करते हैं कि अगर कछुए, मछली वगैरा को देखोगे तो शुभ होगा.

ऐसे में आप उन से पूछें कि इस का मतलब तो यही हुआ कि पढ़ो नहीं बल्कि ऐग्जाम देने जाते समय इन के आगे नतमस्तक हो जाओ. ऐसी बातें सुन कर भला किस का दिल करेगा मेहनत करने का और फिर जब नंबर कम आएंगे तो सारा आरोप इन पर लगा दोगो. अरे, जब सिखाओगे गलत तो परिणाम तो गड़बड़ निकलेंगे ही. हो सकता है आप की बातें उन्हें समझ आ जाएं और आगे से वे भी इन चक्करों में पड़ना छोड़ दें.

जबरदस्ती धार्मिक किताबें पढ़ने का दबाव

अकसर देखने में आता है कि घर में उन्हीं सब चीजों को करने की कोशिश की जाती है जिन्हें हमारे बड़ेबुजुर्ग सदियों से करते आ रहे हैं. जैसे धार्मिक किताबें पढ़ना. इन को पढ़ने का महत्त्व भले ही किसी को न पता हो, लेकिन ये जरूर पता होता है कि सुबह नहाधो कर ये धार्मिक किताबें अवश्य पढ़नी हैं ताकि मन व बुद्धि सही रहे. यही सीख पेरैंट्स अपने बच्चों को भी देते हैं. यदि आप के पेरैंट्स भी आप पर इस तरह की धार्मिक पुस्तकें पढ़ने का दबाव डालते हैं तो उन्हें समझाएं कि ऐसी भक्ति का क्या फायदा जिस में व्यक्ति मन लगा कर न बैठे. इस से उन्हें एहसास होगा कि आप बिलकुल सही कह रहे हैं. आगे से वे भी आप की बात सुन कर धर्म से ज्यादा कर्म करने में विश्वास करने लगेंगे.

धार्मिक सिद्धपीठों पर जाने की जिद

यदि घर में काफी समय से अशांति का माहौल है तो अकसर पेरैंट्स मन की शांति व अच्छा हो इस के लिए धार्मिक स्थलों पर जाने का प्रोग्राम बनाते हैं. उन का मकसद होता है कि सिद्धपीठ में हमें साक्षात भगवान के दर्शन होंगे जो हमारे हर दुख को हर लेंगे, जबकि ऐसा कुछ नहीं है. वहां तो धर्म के धंधेबाज यजमानों को लूटने के लिए बैठे रहते हैं.

ऐसे में आप मातापिता को समझाएं कि यदि आप लोग रिलैक्स होने के लिए कहीं जाना चाहते हैं तो ऐसी जगह जाएं जहां प्राकृतिक नजारे मन को तरोताजा कर दें, क्योंकि प्रौब्लम तो एफर्ट से ही दूर होगी न कि सिद्ध पीठ के दर्शन करने से.

नजर के धागेताबीज बांधने का नाटक

जल्दीजल्दी बीमार होना या फिर खाना छोड़ने पर इसे नजर लगी मान कर हाथ या गले में काला धागा बांध देने जैसे टोटके आज भी अधिकांश पेरैंट्स करते हैं, जो अंधविश्वास के सिवा कुछ नहीं हैं.

अरे, जब बच्चे हैल्दी खाना नहीं खाएंगे तो बीमार ही पड़ेंगे. ऐसे में काले धागे क्या मैजिक दिखा पाएंगे. इसलिए इन फुजूल के चक्करों में न पड़ कर सही तरफ ध्यान केंद्रित कर मुझे भविष्य उज्ज्वल बनाने दें.

खास ब्राइडल लुक के लिए हैं नथ के ये डिजाइन

दुल्हन बनने की तैयारी कर रहीं हैं और कपड़ों के साथ ही ज्वैलरी डिजाइन्स को चुनना आपके लिए बहुत बड़ी मुसीबत का काम बन गया है तो चलिए हम आपकी थोड़ी सी मदद कर देते हैं.

आपके दुल्हन ज्वैलरी का सबसे खास हिस्सा होता है, आपके नाक की नथ. ब्राइडल नथ के कई सारे डिजाइन आपको मार्केट में मिल जाएंगे. ये लगभग सभी रंग में आपको बाजार में मिल जाएंगे. आप अपने लंहगे के साथ मैच करके कई अलग-अलग तरह की नथ अपने लंहगे के साथ पहन सकती हैं

आइए हमारे साथ जानिए नथ के सबसे लेटेस्ट डिजाइन्स के बारे में

1. बंगाली स्‍टाइल : अगर आप बंगाली हैं तो या नहीं भी हैं तब भी हल्‍के क्रॉफ्टवर्क वाले और चैन से जुड़ी हुई नथ आप पर बहुत जचेगी.

2. रिंग वाली नथ : अगर आप शादी में बहुत ही सिम्‍पल सी नथ पहनना चाहती हैं तो रिंग वाली नथ ट्राई कर सकती हैं.

3. जड़ाऊ नथ : अधिकतर राजस्थानी और मारवाड़ी दुल्हनों में इस नथ को पहनने का रिवाज है. जड़ी हुई नथ शादी के दिन बेहद खास लुक देती है. अगर आप इसे जड़ाऊ लंहगे के साथ पहनेंगी तो ये एक दम अलग और बेहद खूबसूरत लुक देगा.

4. मल्‍टीपल चेन वाली नथ : ऐसी नथ खासकर सॉउथ इंडियन कल्चर में ज्यादा देखी जा सकती हैं. लेकिन अगर आप ज्वैलरी डिजाइन के साथ एक्सपेरिमेंट करना चाहती हैं तो तीन चैन वाली नथ को पहनकर देखिए यह आपके चेहरे का लुक ही बदल देगी. इसके साथ हैवी मांगटीका भी बहुत अच्‍छा लगता है.

5. ब्रांज नथ : राजस्‍थान का ही एक और लुक है इस नथ का ये खास डिजाइन. इसे प्योर गोल्‍ड से बनाया जाता है जो हल्‍का सा डल लुक देता है.

6. हूप नथ : बड़ी सी नथ पहनने से अच्‍छा है कि आप छोटी सी ही नोज रिंग पहनें. यह पहनने और कैरी करने में आसान रहती है. हाल में दृष्टि धामी ने इस नथ को अपनी शादी में पहना था.

फिल्म रिव्यू : मंटोस्तान

साहित्यिक कृतियों को सेल्यूलाइड के परदे पर उतारते समय फिल्मकार किस तरह उसकी हत्या कर देते हैं,इसका जीता जागता नमूना है राहत काजमी की फिल्म ‘‘मंटोस्तान’’. देश के बंटवारे की पृष्ठभूमि पर सआदत हसन मंटो लिखित चार रोंगटे खड़े कर देने वाली विवादास्पद कहानियों ‘‘ठंडा गोश्त’’, ‘‘खोल दो’’, ‘‘आखिरी सैल्यूट’’ और ‘‘असाइनमेंट’’ को मिलाकर फिल्मकार राहत काजमी ने फिल्म ‘‘मंटोस्तान’’ की पटकथा लिखी है. लेकिन जिन्होंने सआदत हसन मंटों व उनकी कहानियों को पढ़ा है, उन्हें पूरी फिल्म देखने के बाद अहसास होता है कि  साहित्यिक कृतियों के साथ पूरा न्याय करने में फिल्मकार विफल रहा है.

फिल्म की कहानियां उन रातों के बारे में है, जो कि हमेशा सिसकियों में ही लिपटी रहती हैं. फिल्म की शुरुआत देश के बंटवारे और पं.जवाहर लाल नेहरू की आवाज के अलावा हिंदुओं द्वारा मुस्लिमों और मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं की मारकाट के दृश्यों के साथ होती है. कहानी पंजाब में है, इसलिए सिख और मुस्लिम ही आमने सामने हैं. बहू बेटियों की इज्जत सरेआम लूटी जा रही है. चारों तरफ डर का माहौल है. लोग अपने घरों से निकलने से डर रहे हैं. पर ईश्वर सिंह (सोएब निकस शाह) जैसे लोग विपत्ति में घिरे लोगों के घर के अंदर घुसकर उनकी हत्या कर उनके गहने व जेवर लूट रहा है. तो उसकी पत्नी कुलवंत कौर (सोनल सहगल) ऐसे जेवर पहनकर खुशहोती है, पर जब उसका पति उसे धोखा देकर एक लाश के साथ संभोग करता है, तो इस सच को जानकर वह अपने पति की हत्या कर देती है.

एक कहानी उस मुस्लिम जज (वीरेंद्र सक्सेना) की है, जिसे भरोसा है कि उनका सिख दोस्त उनके घर जरुर ईदी देने आएगा. ईदी देने के लिए जज के दोस्त का बेटा आता है, पर वह अपने सिख साथियों से इस परिवार की रक्षा करने में असमर्थ नजर आता है. उधर सीमा पर भारत पाकिस्तान की सेना डटी हुई है. इनके बीच बातचीत हो रही है कि यह क्या हो गया. तभी पता चलता है कि भारतीय सैनिक राम सिंह का दोस्त जुल्फार (राहत काजमी) पाकिस्तानी सैनिक है. दोनों के बीच बातचीत होती है. बातचीत में ही गोली चल जाती है और अनजाने में राम सिंह मारा जाता है. चौथी कहानी एक मुस्लिम पिता (रघुवीर यादव) की है, जिनकी बेटी के साथ वही सिख बलात्कार करते हैं, जिन्होंने उसे ढूंढ़ कर लाने का वादा किया था.

फिल्मकार ने चारों कहानियों को फिल्म में एक दूसरे के समानांतर चलाया है, इससे दर्शक फिल्म के साथ जुड़ नहीं पाता है और चारों कहानियों का प्रभाव नहीं पड़ता. पटकथा लेखक की कमजोरी के चलते कहानियों का सही ढंग से फिल्म में रूपांतरण नहीं हो सका. फिल्म में विभाजन की त्रासदी व दर्द, तात्कालिक घटनाओं से उपजे विषाद व भय उभर नही पाता है. यह पटकथा लेखक और निर्देशक की कमजोरी का नतीजा है. अन्यथा मंटों की कहानियां पढ़ते समय यह सब इंसान को झकझोर देता है. पाठक के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. पर यह सब पाठ्य का दृश्य श्राव्य माध्यम में अनुवाद करते समय खो गया. फिल्म जब क्लायमेक्स में पहुंचती है, तो तकनीक और शब्दों की ताकत दोनों ही निर्देशक की पहुंच से दूर हो चुके होते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म में लगभग सभी नौसीखिए कलाकार हैं. जिनसे इस तरह की कहानी के पात्रों के साथ न्याय किए जाने की उम्मीद करना ही बेकार है. फिल्म में वीरेंद्र सक्सेना ने ठीक ठाक अभिनय किया है. रघुबीर यादव भी अपने किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाएं. सोनल सहगल और सोएब शाह ने निराश ही किया है. फिल्म में एक मृत शरीर यानी कि लाश के साथ संभोग करने का अहसास होने पर जिस तरह की क्रिया व प्रतिक्रिया तथा भाव ईश्वर सिंह के चेहरे पर आने चाहिए थे, उसे सोएब शाह बिलकुल नहीं ला पाए. कुछ लोकेशन अच्छी हैं. कैमरामैन के काम को भी सराहा नहीं जा सकता.

128 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मंटोस्तान’’ का निर्माण ‘‘राहत काजमी फिल्मस’’, ‘‘तारिक खान प्रोडक्शन’’ और आदित्य प्रताप सिंह इंटरटेनमेंट ने मिलकर किया है. लेखक व निर्देशक राहत काजमी हैं. फिल्म के कलाकार हैं-रघुवीर यादव, वीरेंद्र सक्सेना, सोनल सहगल, सोएब निकस शाह, रैन बसानेट, राहत काजमी व अन्य.

कुछ इंजीनियर तो कुछ मैट्रिक पास अभिनेता

जरूरी नहीं है कि फिल्मों में नाम कमाने के लिए ज्यादा पढ़ाई की जरूरत है, साउथ फिल्म इंडस्ट्री के बहुत से अभिनेता ऐसे भी है, जिन्होंने बड़ी-बड़ी डिग्रीयां हासिल की हैं तो कुछ अभिनेताओं ने सिर्फ मैट्रिक तक की ही पढ़ाई की है.

प्रभास

शिक्षा- “बीटेक” (श्री चैतन्य कॉलेज हैदराबाद)

साउथ के स्टार प्रभास (37 साल) इन दिनों हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘बाहुबली-2’ के कारण चर्चा में हैं. इस फिल्म में प्रभास द्वारा निभाए गए रोल ने उन्हें वर्ल्डवाइल्ड फेमस कर दिया है. रियल लाइफ में प्रभास प्रोफेशनल इंजीनियर हैं. प्रभास ने श्री चैतन्य कॉलेज, हैदराबाद से बीटेक किया है. बता दें कि वे तेलुगु सिनेमा के फेमस स्टार हैं. उन्होंने 2002 में फिल्म ‘ईश्वर’ से अपना एक्टिंग करियर शुरू किया था. इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘वर्षम’ (2004), ‘छत्रपति’ ( 2005), ‘चक्रम’ (2005), ‘बिल्ला’ (2009), ‘डार्लिंग’ (2010), ‘मिस्टर परफेक्ट’ (2011), ‘मिर्ची’ (2013) में अभिनय किया है. वे 2014 में आई बॉलीवुड फिल्म ‘एक्शन जैक्सन’ में आइटम नंबर में भी नजर आए हैं.

रजनीकांत

शिक्षा- ग्रेजुएट (मद्रास फिल्म इंस्टीट्यूट)

रजनीकांत(66 साल) ने 1975 में फिल्म ‘रेयर मेलोडीज’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘अवल ओरु तुडर कते’ (1974), ‘अनठुलेनी कथा’ (1976), ‘छिलाकाम्मा चेप्पिनडी’ (1977), ‘खिलाड़ी किट्टू’ (1978), ‘भैरवी’ (1978), ‘ठिल्लू मुल्लू’ (1981) सहित कई फिल्मों में काम किया. उन्होंने बॉलीवुड फिल्म ‘अंधा कानून’ (1983), ‘गिरफ्तार’ (1985), ‘फूल बने अंगारे’ (1991), ‘फरिश्ते’ (1991), ‘तमाचा’ (1988) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है.

धनुष

शिक्षा- मैट्रिक (सेंट जॉन मैट्रिक हायर सेकंटरी स्कूल)

धनुष(33 साल) ने 2002 में आई फिल्म ‘थुल्लुवधो ल्लामई’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘तिरुडा तिरुडी’ (2003), ‘देवाथायई कन्देन’ (2004), ‘पोल्लाधवन’ (2007), ‘मरयां’ (2013), ‘नैयांदी’ (2013) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है. वे 2013 में आई बॉलीवुड फिल्म ‘रांझणा’ और 2015 की ‘शमिताभ’ में भी नजर आए हैं.

सूर्या

शिक्षा- बीकॉम (लोयलो कॉलेज, चेन्नई)

सूर्या(41 साल) ने 1997 में आई फिल्म ‘नेररुक्कू नेर’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘काका काका’ (2003), ‘गजनी’ (2005), ‘वेल’ (2007), ‘अयन’ (2009), ‘सिंघम’ (2010), ‘सिंघम’ 2 (2013) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है.

अल्लु अर्जुन

शिक्षा- बीबीए (एमएसआर कॉलेज, हैदराबाद)

अर्जुन(34 साल) ने 2003 में आई फिल्म ‘गंगोत्री’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘आर्या’ (2004), ‘बन्नी’ (2005), ‘हैप्पी’ (2006), ‘देसमुदुरु’ (2007), ‘आर्य 2’ (2009), ‘वारुदु’ (2010), ‘बद्रीनाथ’ (2011), ‘सराइनोडु’ (2016) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है.

पृथ्वीराज 

शिक्षा- आईटी में बैचलर डिग्री (तस्मानिया यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया)

पृथ्वीराज(34 साल) ने 2002 में आई फिल्म ‘नन्दनम’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘अकाले’ (2004), ‘वर्गम’ (2006), ‘वास्तवम’ (2006), ‘थिरककथा’ (2008) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है. उन्होंने बॉलीवुड फिल्म ‘अइय्या’ (2012), ‘औरंगजेब’ (2013), ‘नाम शबाना’ (2017) में काम किया है.

नागा चैतन्य

शिक्षा- बीकॉम (ट्रीनिटी कॉलेज, लंदन)

चैतन्य(30 साल) ने 2009 में आई फिल्म ‘जोश’ से डेब्यू किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘ये माया चेसावे’ (2010), ‘बेजवादा’ (2011), ‘तडाखा’ (2013), ‘ऑटोनगर सूर्या’ (2014), ‘प्रेमम’ (2016), ‘सहासेम स्वासागा सागिपो’ (2016) सहित अन्य फिल्मों में काम किया है.

दिगंत

शिक्षा- बीकॉम (बेंगलुरु)

दिगंत(33 साल) ने 2006 में फिल्म ‘मिस कैलिफोर्निया’ से किया था. इसके अलावा उन्होंने ‘गालीपाटा’ (2008), ‘पंचरंगी’ (2010), ‘लाइफेउ इष्टेन’ (2011), ‘परिजता’ (2012) सहित अन्य फिल्मों में अभिनय किया है.

बाहुबली 2 नहीं तोड़ पाई शाहरुख का यह रिकॉर्ड

‘बाहुबली 2’ को रिलीज को एक सप्ताह होने को है. लेकिन यह फिल्म अभी भी सुर्खियों में बनी हुई है. रिकॉर्ड्स के मामले में ये फिल्म रिलीज के पहले से ही स्पॉटलाइट में बनी हुई थी. 28 अप्रैल को रिलीज हुई इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए लेकिन इसके बावजूद ये फिल्म शाहरुख खान की इस फिल्म का रिकॉर्ड तोड़ने में नाकाम रही.

24 अक्टूबर 2014 को रिलीज हुई शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की ‘हैप्पी न्यू ईयर’ की पहले दिन का कमाई ‘बाहुबली 2’ नहीं पार कर पाई.

इस फिल्म की पहले दिन की कमाई 44.97 करोड़ थी जबकि ‘बाहुबली 2’ की पहले दिन की कमाई 41 करोड़ रही. इसके साथ ही ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का पूरा कलेक्शन 203 करोड़ था. अभी तक का ‘बाहुबली 2’ का कलेक्शन 600 करोड़ बताया जा रहा है.

एस एस राजमौली की फिल्म बाहुबली- द कन्क्लूजन सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी अपने नाम कई रिकॉर्ड कायम की है. आपको बता दें ‘बाहुबली 2’ ना सिर्फ घरेलू बॉक्स ऑफिस पर कमाई के मामले में सबको मात दे रही है बल्कि ये फिल्म यूनाइटेड स्टेट्स के बॉक्स ऑफिस पर भी तीसरे नंबर पर रही. इस फिल्म ने अब शाहरुख खान और संजय लीला भंसाली के ओवरसीज कलेक्शन को भी पीछे छोड़ दिया है.

ट्रेड सर्किल से मिली जानकारी के अनुसार देश के बाहर से बाहुबली 2 को ओपनिंग वीकेंड में 20. 4 मिलियन अमरीकी डॉलर यानि करीब 131 करोड़ 14 लाख रूपये की कमाई हुई है. जो सारी भारतीय भाषाओं सहित किसी इंडियन फिल्म की सबसे बड़ी कमाई है. इससे पहले शाहरुख खान की रोहित शेट्टी डायरेक्टेड चेन्नई एक्सप्रेस ने 17. 4 मिलियन अमरीकी डॉलर और फरहा खान डायरेक्टेड हैप्पी न्यू ईयर ने 16. 4 मिलियन डॉलर का ओपनिंग वीकेंड कलेक्शन किया था.

संजय लीला भंसाली की बाजीराव मस्तानी को 15 मिलियन डॉलर, सलमान की प्रेम रतन धन पायो को 14. 6 मिलियन डॉलर और शाहरुख़ खान की रईस को 13. 5 मिलियन डॉलर की कमाई हुई थी. बाहुबली नाइंथ आल टाइम वीकेंड ग्रॉसर भी है.

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