ये है विदेशी गाने का क्लासिकल तड़का

इन दिनों विदेशी सिंगर ‘एड शीरेन’ का गाना ‘शेप ऑफ यू’ काफी चर्चा में है. भारत में अब तक कई लोग इस गाने पर अपने डांस का जलवा भी दिखा चुके हैं. बॉलीवुड के सितारो से लेकर स्टूडेंट्स तक सभी अपने-अपने अंदाज में इस गाने पर अच्छा खासा परफॉर्मेंस दे रहे हैं.

आईआईटी रुड़की के चार लड़कों के इस गाने पर डांस के बाद अब पांच लड़कियों का डांस काफी फेमस हो रहा है. ‘एड शीरेन’ के गाने ‘शेप ऑफ यू’ पर अब तक कई तरह के डांस हो चुके हैं. वैसे अब तक इस गाने पर ज्यादातर हॉट और रोमांटिक परफॉर्मेंस ही हुई है. लेकिन भारत की इन पांच लड़िकयों ने इस गाने पर क्लासिकल डांस कर इसे एक नई ऊंचाई दे दी है.

इन लड़कियों ने इस विदेशी गाने पर अपने क्लासिकल डांस का ऐसा तड़का लगाया है कि जिसने भी इस गाने को देखा है वो इन सभी का फैन बन गया है. बता दें कि ये क्लासिकल डांस उड़ीसा का क्लासिकल डांस ओडिसी है, जो बहुत ही प्रसिद्ध नृत्य माना जाता है. इस डांस को सुन्दर पोषाक पहनकर खूबसूरत लोकेशन पर शूट किया गया है. इस वीडियो को देखकर आपका मन भी थिरकने को मजबूर हो जाएगा.

आईआईटी रुड़की के स्टूडेंट्स से लेकर देश कनाडा के ‘मेरीटाइम ग्रुप’ ने इस गाने पर अपने अलग अंदाज में डांस वीडियो बनाया और लोगों ने पसंद भी किया. बॉलीवुड सितारे भी इस गाने पर अपना हुनर दिखा चुके हैं. दिशा पटानी ने अपने डांस कोरियोग्राफर के साथ और सुष्मिता सेन ने अपनी बेटी के साथ इस गाने पर डांस किया है.

 

आरामदायक नींद के लिए सही पोजीशन

उपयुक्त तरीके से सोना उस अवस्था को माना जाता है जिसमें सबसे अधिक आरामदायक स्थिति में आनंद से नींद ली जा सके. यहां आज हम कुछ ऐसे बेहतरीन पोजीशन या स्थिति के बारे में बताने जा रहे हैं जो न केवल आपको सही मुद्रा में नींद लेने के बारे में जानकारी देता है, बल्कि इन अवस्था में शरीर को आराम भी मिलता है और साथ ही आप पूरे दिन ऊर्जावान भी महसूस करते हैं.

आप किस स्थिति में नींद लेते हैं इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि इस बात का असर जरूर पड़ता है कि, आपके सिर की स्थिति सही होनी चाहिए.

इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गर्दन को सीधा रखने के लिए जगह मिले और सही तरीके से आराम या सहारा मिले. गर्दन मुड़ी हुई या ज्यादा तनी होने की वजह से नींद में सांस लेने में समस्या हो सकती है और साथ ही इसकी वजह से गर्दन में दर्द भी महसूस हो सकता है.

सोते समय बैक पोजीशन या पीठ की स्थिति (Back position) सबसे अच्छी मानी जाती है. पीठ के बल सोना या लेटना नींद की सबसे बेहतर स्थितियों में से एक है. इस अवस्था में आपका सिर, गर्दन, रीढ़ की हड्डी और शरीर तटस्थ और आराम की मुद्रा में रहते हैं. सोने की यह स्थिति बाकी सभी स्थितियों की अपेक्षा सबसे बेहतर है.

पीठ के बल सोने के फायदे-

– गर्दन के दर्द से राहत

– कमर दर्द से बचाव

– झुर्रियां कम होती हैं

– शरीर सुडौल एवं शरीर के अंग स्वस्थ रहते हैं

इसके अलावा पीठ के बल सोने पर आपकी काया सुडौल बनी रहती है, इसकी वजह से आपके शरीर के निचले अंगों का दर्द भी खत्म हो जाता है. अगर आपको कमर में दर्द महसूस होता हो या सुबह उठने पर कमार्य पैरों में अकड़न सी रहती हो तो सोते वक्त पैरों के नीचे एक टाकिया रख लें. इससे आपका शरीर संतुलित होता है और किसी प्रकार का दर्द नहीं होता.

करवट लेकर सोना

करवट लेकर सोना सम्पूर्ण सेहत के लिए फायदेमंद होता है इसकी वजह से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है. गर्भावस्था के दौरान जब महिलाएं बाईं ओर करवट लेकर सोती हैं तो इससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है. बाईं ओर करवट लेकर सोने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है जो दिल की सुरक्षा के लिए बहुत लाभकारी है. हालांकि एक तरफ करवट लेकर सोने से चेहरे में झुर्रियां पड़ने का खतरा रहता है, अगर आप एक तरफ करवट लेकर सोते हैं तो आपको अपने पैरों के बीच में तकिया रखना चाहिए, यह शरीर को समतल बनाता है और नितंबों को भी सपोर्ट मिलता है. यह पोजीशन शरीर को आरामदायक मुद्रा में सोने के लिए प्रेरित करता है. इस दौरान करवट बदलते रहें.

पेट के बल सोना

स्वस्थ रहने के लिए पेट के बल सोने की आदत का त्याग करना उचित होता है. पेट के बल सोने को नींद का एक गलत तरीका माना जाता है क्योंकि इस पोजीशन में शरीर को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता. इसकी वजह से पैर या गर्दन में दर्द व अकड़न, रीड की हड्डी में दर्द आदि समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. अगर आप पेट के बल सन अहि चाहते हैं तो तकिये को सिर की बजाए नितंब के नीचे रखकर सोएं. पेट के बल सोना, शरीर में अम्लीयता को बढ़ा सकता है.

तेज धूप में करें अपने बालों की देखभाल

गर्मियों के मौसम में जिस तरह तेज धूप से त्वचा को बचाने की जरूरत है, उसी तरह बालों की देखभाल भी जरूरी है. धूप में बाल सफेद हो जाते हैं जिसके लिए लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं लेकिन अगर आप इन सब से बचना चाहते हैं तो हमारे द्वारा बताए गए ये टिप्स आपके काम के हो सकते हैं…

1. रात में बालों पर लीव-इन कंडीशनर लगाकर सोएं. जब सुबह उठेंगे तो आपको बाल सुलझे हुए और मुलायम मिलेंगे.

2. अपने बालों के लिए प्लास्टिक की कंघी की बजाय ब्रश का इस्तेमाल करें. दरअसल, प्लास्टिक की कंघी से बालों में घर्षण उतपन्न होता है, इससे बाल सेट होने की जगह रूखे और बिखरे हो जाते हैं.

3. रूखे बालों से निजात पाने के लिए सीरम का इस्तेमाल करें. इससे बालों में नई चमक भी जाती है और ये आपके उलझे बालों को सुलझाने में भी मदद करता है.

4. कई बार आप फैशन के चलते अपने बाल खुले रखती हैं जिससे बाल जल्दी उलझ जाते हैं. इस समस्या से निजात पाने के लिए रात में बाल बांधकर रखें और अपने बालों को धोने से पहले तेल जरूर लगाएं.

चाईल्ड एक्टर्स, उम्र छोटी और कमाई मोटी

बॉलीवुड मूवीज में हीरो-हिरोइन के अलावा चाईल्ड एक्टर्स भी होते हैं. आजकल इनकी डिमांड बढ़ती ही जा रही है. जिस हिसाब से इनकी डिमांड बढ़ रही है उसी हिसाब से इनकी फीस में भी इजाफा हो रहा है.

आप नहीं जानते होंगे की ये बाल कलाकार अभिनेताओं से कम फीस नहीं लेते हैं. कुछ ऐसे बाल कलाकार जो कस उम्र में ही मोटी कमाई करते है.

हर्षाली मल्‍होत्रा
‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान खान के साथ काम करने के बाद मुन्नी यानि हर्षाली मल्‍होत्रा रातों-रात स्‍टार चाइल्‍ड एक्‍टर बन गई हैं. इस फिल्‍म के लिए उन्‍हें 2 लाख रुपये मिले. सिर्फ सात साल की उम्र में लाखों रुपये कमाना कोई आसान काम नहीं.

दर्शिल कुमार
‘ब्रदर्स’ और ‘प्रेम रतन धन पायो’ जैसी बड़ी फिल्‍मों में दर्शिल कुमार नजर आ चुके हैं. उसके बाद दर्शिल वरुण के साथ फिल्म “ढ़िसुम” में नजर आए थे. उस समय खबर मिली थी कि इस फिल्‍म के लिए दर्शिल ने छह दिनों तक शूटिंग की और इसके लिए उन्‍हें 30000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से दिए गए थे.

हर्ष मायर

फिल्‍म ‘आई एम कलाम’ के लिए हर्ष मायर को वाह-वाही के साथ-साथ काफी पैसे भी मिले. हर्ष को इस फिल्‍म की 21 दिन की शूटिंग के लिए 1 लाख रुपये मिलने थे. पांच साल की उम्र में सिर्फ 21 दिनों में एक लाख रुपये की कमाई बुरी नहीं है.

सारा अर्जुन
एक्‍टर राज अर्जुन की बेटी सारा अर्जुन के जलवे किसी स्‍टार से कम नहीं हैं. वह ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन की फिल्‍म ‘जज्‍बा’ में नजर आई थी. उसके बाद वह इरफान खान के साथ एक हॉलीवुड फिल्‍म की शूटिंग में बिजी थी.

दिया
जॉन अब्राहम की फिल्‍म ‘रॉकी हैंडसम’ में नजर आईं बच्ची दिया थी. इससे पहले वो ‘किक’ और ‘पिज्‍जा’ जैसी फिल्‍मों में नजर आ चुकी हैं. ‘रॉकी हैंडसम’ के लिए दिया को प्रतिदिन 25000 हजार रुपये मिले. फिल्‍म की शूटिंग 31 दिनों तक चली. अब आप जोड़ लीजिए कितनी महंगी चाइल्‍ड एक्‍ट्रेस हैं दिया. टीवी एड के लिए तो दिया और भी ज्‍यादा चार्ज करती हैं. एक एड के लिए 50 से 60 हजार रुपये लेती हैं दिया.

ट्राई करें राइस ऐप्पल सलाद

राइस तो आपके डेली डायट का हिस्सा है. पर वही कूकर वाले चावल या कढ़ाई वाली फ्राइड राइस रोज रोज खाना बोरिंग हो जाता है. घर पर बनाएं राइस ऐप्पल सलाद, और राइस के टेस्ट में लाएं अलग ट्विस्ट

सामग्री

– 3 कप बासमती चावल पके

– 1 लाल सेब कटा

– 1 हरा सेब कटा

– 1 छोटा चम्मच भुना जीरा

– 1/2 छोटा चम्मच चिली फ्लैक्स

– 3 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी

– 2 बड़े चम्मच नीबू का रस

– 3 बड़े चम्मच औलिव औयल

– नमक व कालीमिर्च स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में सारी सामग्री को चावलों के साथ मिला कर टौस करें और सर्व करें.

 

– व्यंजन सहयोग : शैफ एम. रहमान

 

उत्तरी ध्रुव के अद्भुत दृश्य

गरमियों में पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में बसे आइसलैंड, नौर्वे, ग्रीनलैंड, स्वीडन, फिनलैंड, रूस इत्यादि देशों में रात के 12 बजे भी सूर्य अपनी चमक बिखेरता नजर आता है. इसलिए इन देशों को अर्द्धरात्रि के सूर्य वाले देश भी कहा जाता है.

चूंकि पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी है और इसी झुकाव के साथ जब वह गरमियों में अपनी धुरी पर चक्कर लगाते समय सूर्य की परिक्रमा करती है तब पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा दिनरात सूर्य के सामने ही रहता है जिस से रात 12 बजे भी वहां सूर्य अस्त नहीं होता जबकि सर्दियों में इस के विपरीत होता है. जब पृथ्वी इसी झुकाव के साथ सूर्य से दूसरी ओर अपनी धुरी पर चक्कर लगाते हुए पहुंच जाती है तब पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा दिनरात सूर्य के सामने नहीं रहता, जिस से सर्दियों में उत्तरी गोलार्ध में बसे इन देशों में 6 महीने रात रहती है. इस तरह उत्तरी ध्रुव में वर्ष में एक बार ही सूर्य उगता है और एक बार ही डूबता है. दक्षिणी गोलार्ध में इसी समय ठीक इस के विपरीत होता है.

प्रकृति के इस अद्भुत खेल को देखने की मेरी इच्छा बचपन से ही रही है. कैसा लगता होगा जब रात के 12 बजे भी सूर्य आसमान पर अपनी रोशनी बिखेरे रखता है? मुझे उत्तरी ध्रुव के आखिरी छोर पर बसे इन देशों में जाने का अवसर तो नहीं मिल पाया, लेकिन अभी हाल ही में, गरमियों के मौसम मईजून में मुझे बालटिक समुद्र के किनारे बसे यूरोप के एक देश लिथुआनिआ जाने का अवसर मिला. चूंकि यह देश भी उत्तरी गोलार्ध के अंतर्गत आता है अत: मुझे यहां भी अर्द्धरात्रि के सूर्य के दृश्य के साथसाथ अन्य कईर् अद्भुत दृश्य देखने को मिले. शाम साढ़े 9-10 बजे यहां सूर्य ऐसी धूप ऐसे बिखेर रहा था जैसे भारत में दोपहर 2 ढाई बजे तेज धूप निकली होती है.

एशिया से आने वाले पर्यटक इस चमकती धूप के कारण समय का सही अंदाजा लगाने में उस समय असफल हो जाते हैं, जब उन्हें रात के 10 बजे के बाद यहां के बाजार, रैस्टोरैंट इत्यादि बंद मिलते हैं. इस देश में आबादी बहुत कम होने के कारण शहर से बाहर निकलते ही बड़ेबड़े खेतखलिहान देखने को मिलते हैं. गांवों में तो दूरदूर तक इक्कादुक्का घर ही दिखाई देते हैं.

यहां खुले आसमान का आकार उलटी टोकरी के समान गोलाई लिए दिखाई देता है. आसमान धरती के बहुत नजदीक लगता है. दूर, धरती से छूते आसमान के किनारों का यह अद्भुत दृश्य उस समय और भी रोमांचक हो जाता है जब वर्षा के बादलों की काली घटाएं हवा के झोंकों के साथ उमड़तीघुमड़ती एकसाथ आती हैं. तब ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी के किनारों से ही शरारती बादल अठखेलियां करते, पृथ्वी पर ही लोटपोट हो कर उड़ते हुए आ रहे हों.

रात के समय जब आकाश साफ होता है उस समय चांदसितारे इतने चमकीले और नजदीक दिखाई देते हैं जैसे हम उन्हें किसी ऊंची बिल्डिंग की छत से उछल कर आसानी से अपने हाथों से पकड़ सकते हैं.

इस देश में एक अद्भुत दृश्य जो हमें देखने को मिला वह था रात के साढ़े 11 बजे, जब सूर्यास्त हो रहा था तब आधा आसमान अंधेरे की कालिमा से घिरा हुआ था और सामने की ओर अस्त होता सूर्य अपनी लालिमा आसमान पर बिखेरे हुए था.

यही नहीं सुबह 3 बजे से सूर्य फिर से दस्तक देने निकल पड़ा. रात को जिस दिशा में सूर्य अस्त होता दिखाई दिया था, सुबह वहीं कुछ दूरी पर फिर से सूर्य निकल आया.

वास्तव में पृथ्वी की गोलाई उत्तरी गोलार्ध में कम हो जाने के कारण ही ऐसा दृश्य उत्पन्न होता है. लिथुआनिया के एक बड़े शहर क्लाइपेडा से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर एक छोर ऐसा है जहां अगस्त में अद्भुत रंगबिरंगी नार्थन लाइट्स का मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है.

सूर्य से आने वाली गरम हवाएं जब अंतरिक्ष में बिखरे अरबों कणों के साथ घुलमिल कर आगे बढ़ती हैं तब यह दृश्य बनता है. पृथ्वी के चुंबकीय तत्त्व अंतरिक्ष के टुकड़ों, कणों को खुद से दूर फेंकते हैं, लेकिन उत्तरी ध्रुव के पास कुछ जगहों पर ये चुंबकीय क्षेत्र काम नहीं करते, जिस से यह अद्भुत दृश्य बनता है.

– सुरेश चौहान

फिल्म रिव्यू : पूर्णा

25 मई 2014 को 13 वर्षीय लड़की पूर्णा मालावात ने एवरेस्ट की उंची चोटी पर पहुंचकर एवरेस्ट पर चढ़ने वाली सबसे कम उम्र की लड़की बन गयी थी. उसी लड़की की कहानी को सिनेमा के परदे पर राहुल बोस लेकर आए हैं. कम बजट में बनी यह फिल्म कुछ कमियों के बावजूद देखने लायक व प्रेरणा दायक फिल्म है. पहाड़ों की चढ़ाई में रूचि न रखने वाले भले ही इसका ज्यादा आनंद न ले सकें, मगर एक 13 वर्षीय लड़की की कहानी उन्हे अंत तक बांधकर रखती है.

फिल्म ‘पूर्णा’ की कहानी आंध्र प्रदेश के एक गांव की लड़की पूर्णा मालावत(अदिति इनामदार)की कहानी है. घर के आर्थिक हालात बहुत खराब हैं. वह सरकारी स्कूल की फीस भी नहीं दे सकती. पूर्णा के साथ उसकी चचेरी बहन प्रिया(एस मारिया) भी पढ़ती है. एक दिन प्रिया को पता चलता है कि एक स्कूल ऐसा भी है, जहां रहकर पढ़ाई करनी होती है और वहां पर फीस नहीं लगती. इसके अलावा वहां पर भरपेट व अच्छा भोजन भी मिलता है. प्रिया व पूर्णा योजना बनाकर घर से भागने की तैयारी करती हैं. मगर प्रिया का खड़ूस पिता उन्हे पकड़ लेता है.प्रि या की कम उम्र में ही शादी हो जाती है.

इधर पूर्णा के पिता अपने भाई के मुकाबले कम कठोर हैं. उनके पास पूर्णा की शादी के लिए उस वक्त पैसे नहीं थे, इसलिए वह दो तीन साल तक पढ़ने के लिए पूर्णा को सरकारी बोर्डिंग स्कूल में भेज देते हैं. बोर्डिंग स्कूल का घटिया खाना देखकर पूर्णा गुस्साती है और बोर्डिंग स्कूल छोड़कर भागती है. उधर अमरीका से पढ़ाई करके डॉ. आर.एस. प्रवीण कुमार(राहुल बोस)लौटे हैं, जो कि मुख्यमंत्री(हर्षवर्धन) व अन्य अफसरों के साथ बैठकर बातें कर रहे हैं. मुख्यमंत्री प्रवीण को पुलिस विभाग में भेजना चाहते हैं, पर वे स्कूल के निरीक्षण अधिकारी बनना चाहता है.

खैर, मुख्यमंत्री उन्हें स्कूल का निरीक्षण अधिकारी बना देते हैं. पद संभालते ही प्रवीण कुमार को पूर्णा के भागने की खबर मिलती है. मजबूरन अपनी सहायक के साथ वह संबंधित स्कूल की तरफ रवाना होते हैं. रास्ते में एक जगह रोती हुई पूर्णा पर नजर पड़ती है. प्रवीण कुमार उससे बात कर उसे समझाकर वापस बोर्डिंग स्कूल लेकर आते हैं. वहां के प्राचार्य व अन्य शिक्षक बड़ी बड़ी बातें हांकते हैं.

प्रवीण बोर्डिंग में बच्चों को परोसे जाने वाले खाने का निरक्षण करने के लिए है, वहां खाने पहुंच जाते हैं और पहला कौर मुंह में लेते ही हैरान रह जाते हैं. फिर वह कैंटीन के ठेकेदार व कुछ शिक्षकों को निकाल देते हैं. आंदोलन होता है. एक शिक्षक मुख्यमंत्री से शिकायत की बात करता है, प्रवीण कुमार स्वयं मुख्यमंत्री को फोन लगाकर उसके हाथ में फोन पकड़ा देते हैं.

उसके बाद धीरे धीरे चीजें सुधरने लगती हैं. इधर एक माह की स्कूल में छुट्टी होने पर कुछ बच्चे पर्वतारोहण के प्रशिक्षण के लिए जा रहे होते हैं, तो पूर्णा अपनी बहन प्रिया से बात करने के बाद उन्हीं बच्चों के साथ चली जाती है. साथ में उसका दोस्त आनंद (मनोज कुमार)भी है. उसकी मेहनत देखकर वहां के अफसर खुश हो जाते हैं.

चार बच्चों के साथ पूर्णा को प्रशिक्षण के लिए देहरादून भेजा जाता है. अंत में आर्मी के लोग उसे व आनंद को एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रशिक्षण देते हैं. अब जब एवरेस्ट पर चढ़ने का अवसर आता है, तो एक महिला अफसर मीना गुप्ता(हीबा शाह) विरोध कर देती है. तब फिर प्रवीण कुमार मुख्यमंत्री की मदद लेते हैं. अंततः आनंद व पूर्णा को पर्वतारोही के रूप में एवरेस्ट पर चढ़ने का अवसर मिल जाता है. कई कठिनाईयों के बावजूद वह दोनों सफलता पाते हैं.

बायोपिक फिल्म ‘पूर्णा’ देखते समय एक भावुक व प्रेरक कहानी का आनंद मिलता है. लेखक प्रशांत पांडे व श्रेया देव वर्मा तथा निर्देशक राहुल बोस ने एक छोटी लड़की के जिंदगी में आगे बढ़ने या उम्मीदों के टूटने पर नम होती आंखों के साथ जो मानवीय भावनाएं होती हैं, उन्हे बहुत बेहतरीन तरीके से परदे पर उकेरा है. एक बेहतरीन व सटीक पटकथा, बेहतरीन निर्देशन, कैमरामैन सुभ्रांशु की बेहतरीन फोटोग्राफी, 13 वर्षीय लड़की अदिति इनामदार की बेहतरीन पर्फमेंस के चलते फिल्म बेहतर बन गयी है.

फिल्म का गीत संगीत भी फिल्म को उत्कृष्ट बनाने में मदद करता है. फिल्म में बाल विवाह, सरकारी तंत्र के काम करने के तरीके, सिस्टम की कमियों के साथ ही इस बात को भी उजागर किया गया है कि जब सिस्टम ठीक से काम करता है तो कई प्रतिभाओं को विकसित होने का मौका मिलता है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो फिल्म देखते समय इस बात का एहसास ही नहीं होता कि अदिति इनामदार की यह पहली फिल्म है. उन्होंने जबरदस्त प्रतिभा का परिचय दिया है और अपने किरदार पूर्णा को सार्थक किया है. इसके अलावा राहुल बोस सहित सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है. फिल्म में कुछ कमियां हैं, इसके बावजूद यह फिल्म हर इंसान को न सिर्फ देखना चाहिए, बल्कि अपने बच्चों को भी दिखाना चाहिए.

1 घंटा 45 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘पूर्णा’ का निर्माण अमित पटनी और राहुल बोस ने किया है .लेखक प्रशांत पांडे व श्रेया देव वर्मा, संगीतकार सलीम सुलेमान, कैमरामैन सुभ्राशु, निर्देशक राहुल बोस तथा कलाकार हैं- अदिति इनामदार, राहुल बोस, हीबा शाह व अन्य.

अपना काम स्वयं करें

अच्छी आदतें हमारे व्यक्तित्व को निखारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. अच्छी आदतों से हमारे लाइफस्टाइल में लगातार निखार आता है. कैसी भी परिस्थितियां हों, अच्छी आदतों के कारण बुरे से बुरे समय में भी आप के अंदर एक आत्मविश्वास रहता है, जिस से जीवन के रास्ते खुद सहज होते चले जाते हैं.

इन्हीं अच्छी आदतों में से एक है अपना काम स्वयं करने की आदत यानी परिश्रम और मेहनत से कभी भी पीछे न हटना. हर व्यक्ति चाहे किशोर ही क्यों न हों, में यह आदत वरदान है. किशोरावस्था से ही यदि अपना काम स्वयं करने की आदत खुद में विकसित कर लें, तो हर क्षेत्र में सफलता की उम्मीद रहेगी.

अपना हाथ मजबूत करें

इंसान अपने हाथों से अपनी मेहनत, अपनी कर्मठता द्वारा सफलता के शिखर को छू सकता है. हाथ पर हाथ रखे बैठे रहने से आलसी व्यक्ति अपना जीवन बेकार कर लेता है. इसलिए बच्चों को अपने हाथों को हमेशा मजबूत बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए. किशोर जो भी काम करें, उस

में दूसरे व्यक्ति की भूमिका कम से कम हो. किसी भी काम को छोटा या बड़ा न समझें. अपनी क्षमता को देखते हुए जो भी बन पड़े अपने काम को करते रहना चाहिए. धीरेधीरे काम की आदत में निखार और निपुणता का विकास होता चला जाएगा.

घर से करें शुरुआत

कहा जाता है कि घर बच्चों की प्रथम पाठशाला है. घर में बहुत से काम होते हैं, जिन में अपनी मांबहन या बड़ों की मदद से काम करने की शुरुआत की जा सकती है. अपने काम खुद करने की आदत डालें.

सुबह उठने के बाद अपना बिस्तर ठीक करना, चादर आदि तह बना कर रखना, बिखरे सामान निश्चित जगह पर रखना, नहाते समय बाथरूम में बहता साबुन का पानी साफ करना, जमा पानी को वाइपर द्वारा निकालना, अपना गीला तौलिया धूप में सुखाना, जूते पौलिश करना आदि बहुत से ऐसे छोटेमोटे काम हैं जिन्हें किशोर खुद करने की आदत डालें.

इस से जहां किशोरों में आत्मनिर्भरता विकसित होती है वहीं वे हर किसी के दुलारे भी बनते हैं. भविष्य में किसी कारणवश घर से दूर रहना पड़े तो भी ज्यादा असुविधा नहीं होती.

नौकर हैं तो खुद काम क्यों करें

बहुत से घरों में काम करने के लिए नौकर या मेड रखे होते हैं. ऐसे में यह सोच पनपना स्वाभाविक है कि किशोर काम क्यों करें? इस प्रसंग में एक प्रेरक कहानी प्रस्तुत है, ‘बेहद अमीर खलीफा हजरत (मुहम्मद साहब के साथी) के घर रात के समय किसी जरूरी काम से एक सज्जन आए, उस समय सभी नौकर सोने जा चुके थे.

‘खलीफा ने उन के सभी कागजों को ध्यान से पढ़ना शुरू किया ही था कि लैंप में तेल खत्म हो गया और वे तेल लेने के लिए उठे. तभी मेहमान ने हैरानी से कहा कि आप नौकर को क्यों नहीं उठा देते. आप को क्या पता कि तेल कहां रखा होगा.

‘खलीफा ने कहा कि नौकर भी तो इंसान ही हैं. उन्हें भी आराम और छुट्टी की जरूरत होती है, उन के साथ भी मैं छोटेमोटे काम करता रहता हूं ताकि उन की अनुपस्थिति में मुझे कोई परेशानी न हो.’

अकसर देखा गया है कि मेड या नौकर के छुट्टी पर जाते ही घर में काम को ले कर अफरातफरी मच जाती है इसलिए मेड के साथ भी छोटेमोटे काम कराते रहें. नौकर या मेड के होने पर काम की आदत होने से थोड़ीबहुत असुविधा तो होगी पर काम भारी बोझ नहीं लगेगा.

एक और बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि वक्त हमेशा एकसमान नहीं रहता, इसलिए मेड या नौकरों पर निर्भरता एक हद तक रखनी चाहिए. अपने हाथों पर भरोसा रखें और मेहनत से काम करने की आदत डालें.

अगर आप ऐसा करेंगे तो जीवन में कैसा भी बदलाव आए, आप को कोई चिंता या भय नहीं सताएगा. मेड के न आने पर भी परिजनों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. साथ ही घर में कितने भी सदस्य हों सभी काम समय रहते पूरे हो जाएंगे.

रसोई में करें छोटेमोटे काम

जब भी समय मिले रसोई में किसी बड़े के साथ मिल कर छोटेमोटे काम करते रहना चाहिए. रसोई में आजकल बहुत से सहायक यंत्र आ गए हैं जैसे, मिक्सी फूडप्रोसैसर, माइक्रोवेव, ओवन आदि जिन की मदद से खाना बनाना बहुत आसान हो गया है. किशोर मां के साथ किचन में चाय बनाना, सब्जी काटना, बाजार से लाया गया सामान डब्बों में डालना या सुनिश्चित स्थान पर रखना, डाइनिंगटेबल पर बरतन, मैट लगाना, पानी रखना, मेहमानों के आने पर पानी देना, खाना सर्व करना आदि बड़े आराम से कर सकते हैं. काम करते रहने से आप में एक सैल्फ कौन्फिडैंस डैवलप होगा. आप को पता होगा कि किचन में कौन सी चीज कहां रखी है. इस से अकेले रहने पर आराम से अपने लायक भोजन का इंतजाम कर सकेंगे.

अपना काम खुद करने के फायदे

अपना काम स्वयं करने के बहुत से फायदे हैं. मेहनत और काम का अभ्यास होने से आप को भविष्य में आराम हो सकता है कभी भी नुकसान नहीं होगा. आज के दौर में अकसर घर से दूर जौब या पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है. ऐसे में आप को घर से दूर बाहर अकेले होस्टल में, किराए पर या बतौर पीजी में रहना पड़ सकता है.

अगर आप को किचन या घरेलू कामों की समझ होगी तो अपना इंतजाम अच्छे से कर पाएंगे. रोजरोज बाहर का खाना बहुत महंगा भी पड़ता है और उस के हाइजैनिक होने की भी गारंटी नहीं होती.

अन्य फायदे

सेहतमंद लंबी उम्र : काम करने से शरीर मजबूत बनाता है. इम्यूनिटी बढ़ती है और सेहत ठीक रहती है. एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ दिमाग का विकास होता है. एकाग्रता भी बढ़ती है और आप अपनी पढ़ाई आराम से कर सकते हैं.

कार्य कुशलता : किसी भी काम के निरंतर करते रहने से आप उस के अभ्यस्त हो जाते हैं. यह कार्यकुशलता जीवन में हमेशा आप को लाभ पहुंचाएगी.

मजबूत रिश्ते : सेहतमंद और कुशाग्रबुद्धि का बच्चा समाज में हर रिश्ते को सफलता से जीता है. उस का सामाजिक दायरा हमेशा बड़ा रहता है.

दिनचर्या में सुधार : अपने काम को नियम और सुचारु रूप से करने से आलसभरी दिनचर्या में बदलाव आता है. जो काम धीरेधीरे पूरे दिन घसीट कर किया जाता था वह समय पर पूरा हो जाता है. इस से पढ़ाईर् या कुछ भी करने के लिए समय की काफी बचत हो जाती है.

नई सोच और संतोष : काम की आदत के विकास से आत्मनिर्भरता का गुण विकसित होता है. काम की सफलता के बाद एक उत्साह और संतोष का भाव जागता है, जिस से जीवन में उन्नति के नए मार्ग खुलते हैं.

सुंदरता में निखार : काम करने से शरीर ऐक्टिव रहता है. चेहरे पर आत्मविश्वास झलकता है. पसीना निकालने से शरीर का जमा फैट निकल जाता है.

अंत में हम कह सकते हैं कि एक सुनहरे भविष्य के लिए मेहनत और काम करने का जज्बा होना बेहद जरूरी है. एक एवरेज स्टूडैंट अपनी मेहनत से आलसी व कुशाग्रबुद्धि छात्र से ज्यादा आगे निकल जाता है. जिंदगी जीना ही सिर्फ हमारा मकसद नहीं होना चाहिए बल्कि किसी लक्ष्य को प्राप्त करना, जीवन को भरपूर जीना और खुश रहना हमारा मकसद होना चाहिए.

फिल्म रिव्यू : नाम शबाना

फिल्म ‘नाम शबाना’ एक्शन स्पाई थ्रिलर फिल्म है, जिसे शिवम् पाण्डेय ने निर्देशित किया है. इस प्रकार की फिल्म पहले भी आ चुकी है, और इसमें अधिकतर फिल्मों में अक्षय ने ही अभिनय किया है. पर यहां सबसे अलग बात यह है कि इस फिल्म में तापसी पन्नू ने एक्शन किया है.

फिल्म को देखकर लगता है लेखक और निर्देशक इस फिल्म को बनाते समय थोड़ी दुविधा में थे. तापसी पर पूरी तरह से विश्वास न होने की वजह से ‘स्टार फैक्टर’ अक्षय कुमार को लिया गया, जो पूरी फिल्म के दौरान कहानी को सपोर्ट करती हुई दिखे. हालांकि अक्षय की एंट्री फिल्म में काफी देर से हुई. फिल्म के शुरुआत में लग रहा था कि फिल्म मनोज वाजपेयी और तापसी पन्नू के कंधों पर है और कहानीकार ने तापसी पन्नू को ही ध्यान में रखकर ही पूरी कहानी लिखी है. लेकिन अक्षय के पर्दे पर आने के बाद कहानी में थोड़ी दम आया.

तापसी ने अपनी भूमिका को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत की है. पर लचर पटकथा की वजह से उनका अभिनय बहुत अधिक उभर कर नहीं आ पाया. शुरु में फिल्म की रफ्तार बहुत धीमी थी, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ठीक लगी. मनोज बाजपेयी इसमें कुछ खास नहीं कर पाए हैं.

कहानी

शबाना (तापसी पन्नू) एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की है, जो अपनी मां के साथ रहती है. उसका अतीत काफी दर्दनाक है. वह कूडो चैम्पियन है और उस क्षेत्र में नाम कमाना चाहती है. वह एक साहसी लड़की है और किसी को भी सबक सिखाने से पीछे नहीं हटती. उसका एक लॉयल बॉयफ्रेंड है. लेकिन एक दिन जब वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ उसका बर्थडे मनाकर बाइक के पीछे बैठकर घर लौट रही थी, तो रास्ते में कुछ  मनचले लड़कों ने उसके साथ छेड़खानी की और शबाना उन लड़कों से लड़ पड़ी.

इसी झगड़े में उसके बॉयफ्रेंड का मर्डर उसकी आंखों के सामने हो जाता है. परेशान और दुखी शबाना उन लड़कों को सबक सिखाना चाहती है. इसी बीच मनोज वाजपेयी (भारत की एक सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख) को एक फुर्तीले और जाबांज एजेंट की तलाश है, क्योंकि उन्हें टोनी (पृथ्वीराज सुकुमारन)को मारना है. टोनी देश में आर्मस की सप्लाई करता है, पर उसे कोई भी पकड़ नहीं पाया है.

शबाना के सारे साहसी कारनामो को मनोज बाजपेयी कैमरे में कैद करते हैं और एक दिन उससे खुश होकर वह एक डील करते हैं ,जिसमें दोनों को फायदा हो. शबाना राजी हो जाती है और अपना बदला लेकर खतरनाक मिशन पर निकल पड़ती है, जिसमें उसका साथ देता है, एजेंट अजय सिंह राजपूत(अक्षय कुमार). इस प्रकार काफी जद्दोजहद के बाद कहानी अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म में गानों का अधिक महत्व नहीं दिखाई पड़ा, कोई भी गाना ऐसा नहीं था जो, गुनगुनाया जा सके. फिल्म जरुरत से अधिक लम्बी है. पटकथा को और अधिक काट-छांट करने की जरुरत थी. अगर आप एक्शन फिल्म पसंद करते हैं तो ये एक बार देखने लायक है. इसे टू एंड हाफ स्टार दिया जा सकता है.

                                                   

हैप्पी बर्थडे नागेश कुकुनूर

‘हाय…आई एम नागेश कुकुनूर…नाम तो सुना ही होगा?’ जी नहीं, इसकी कोई गैरंटी नहीं कि आपने नागेश कुकुनूर का नाम सुना ही होगा. हैरतअंगेज बात तो है पर यह हकीकत है. नागेश कोई राहुल तो नहीं, जिनका नाम आपने सुना होगा, और आप अंदर ही अंदर वैसा बनना चाह रहे होंगे या राहुल जैसा कोई प्रेमी ढूंढ रहे होंगे. खैर… नागेश के बारे में ये कहना गलत नहीं होगा, कि वे कोई खास(क्योंकि अधिकतर लोगों के लिए खास वहीं हैं, जो पर्दे पर दिखते हैं) न होकर भी बहुत खास हैं.

आज अचानक नागेश के बारे में बात करने की वजह है. वैसे भी बिना वजह बातें की नहीं की जाती. अब कोई तथाकथित सुपरस्टार छींक भी दे तो खबर बन जाती है, पर कुछ ऐसे पर्दे के पीछे के सुपरस्टार हैं जिन्हें दो-तीन मौकों पर ही खास तौर से याद किया जाता है. पहला, अगर उन्होंने कोई अवार्ड जीता हो, दूसरा अगर उनका जन्मदिन हो और तीसरा अगर वे कुछ सरफिरों का शिकार हुए हों. पर नागेश को किसी धर्म और संस्कृति को बचाने वाली झुंड का शिकार नहीं होना पड़ा है और आज नागेश का जन्मदिन है.

नागेश कुकुनूर नायडु या नागेश कुकुनूर पैरेलल सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हैद्राबाद ब्लूज(1998), रॉकफॉर्ड(1999), इकबाल(2005), डोर(2006), आशायें(2010), लक्ष्मी(2014), धनक(2016) जैसी फिल्में बनाईं हैं. अब शायद आपको याद आ गया होगा कि नागेश कौन हैं, क्योंकि आपने उनकी कई फिल्में देखी हैं.

नागेश आज एक विशेष दर्शक वर्ग के बीच लोकप्रिय निर्माता-निर्देशक हैं. नाच-गाने वाली बॉलीवुड की फिल्मों से उनकी फिल्में काफी अलग हैं. शायद इसलिए लैला-शिला को पसंद करने वाले इनकी फिल्मों तक नहीं पहुंच पाते. पर नागेश उन विषयों पर बात करते हैं, जो हमारे समाज का हिस्सा हैं. ‘धनक’ के छोटू और परी भारत में लगभग हर घर में पाए जाते हैं. भाई-बहन का प्यार तो हर घर में दिखता ही है. पर अंधे भाई की आंखें बनी बहन को इतने अच्छे से चित्रित करना… यह सिर्फ नागेश का ही कमाल हो सकता है. 

जानिए नागेश से जुड़ी कुछ खास बातें-

1. केमिकल इंजीनियरिंग

नागेश ने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. फिल्मी दुनिया में आने से पहले वे अमेरिका में एक इंवायरन्मेंटल कन्सलटेंट के रूप में काम करते थे. अपने इंजीनियरिंग करियर से कमाए पैसों से ही उन्होंने अपनी फिल्म हैद्राबाद ब्लूज बनाई थी. इस फिल्म को सिर्फ 17 दिनों में शूट किया गया था. यह बहुत ही कम बजट की फिल्म थी. इस फिल्म की स्क्रिप्ट को उन्होंने अमेरिका के भारतीयों से प्रेरित होकर लिखा था.

2. बचपन से ही था फिल्मों से लगाव

नागेश को बचपन से ही फिल्में देखना का शौक था. वे अकसर तेलुगु, हिन्दी, अंग्रेजी फिल्में देखते थे. शायद उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें आगे जाकर क्या करना है.

3. असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर किया काम

नागेश ने कुछ दिनों के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में भी काम किया था. नागेश कुकुनूर ने ‘वीर हनुमान’ के सेट पर बतौर सह-निर्देश काम किया था. गौरतलब है कि उन्हें कुछ दिनों में ही पता चल गया था कि वे इस काम के लिए नहीं बने हैं.

4. कमर्शियल फिल्मों में भी आजमाई किस्मत

नागेश ने आर्ट फिल्मों में अलग तरह का कन्टेंट डालकर बेहतरीन फिल्में बनाई हैं. पर उन्होंने कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया है. ‘तस्वीर 8X10’ उनकी कमर्शियल फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार ने अभिनय किया था. गौरतलब है कि इस फिल्म ने उतनी शौहरत नहीं कमाई.

5. एसआईसी(SIC) बैनर तले बनाते हैं फिल्में

कुकुनूर एसआईसी के बैनर तले फिल्में बनाते हैं. पर बहुत कम ही लोग एसआईसी का असल मतलब जानते हैं. आमतौर पर प्रोडक्शन हाउस के मालिक अपने या अपनों के नाम तले फिल्में बनाते हैं, पर कुकुनूर की SIC का फुल फॉर्म है Stability is Curse. यह अपनेआप में ही बहुत कुछ कह देता है. जिन्दगी में कभी भी किसी को रुकना नहीं चाहिए, आगे बढ़ते रहना चाहिए.

6. अपनी फिल्मों में करते हैं अभिनय

नागेश अपनी फिल्मों में अभिनय भी करते हैं. ये रोल सिर्फ अभिनय का शौक पूरा करने के लिए नहीं किए गए हैं, बल्कि ये रोल फिल्म पर एक अलग छाप छोड़ती दिखाई देती है. जैसे- रॉकफॉर्ड में उन्होंने एक शिक्षक का रोल अदा किया था, वहीं लक्ष्मी में उन्होंने एक दलाल का किरदार निभाया था.

7. बहुत ही कम दिनों में पूरी करते हैं फिल्में

ये नागेश की ही खासियत है कि वे बहुत ही कम दिनों में ही बेहतरीन फिल्म शूट कर लेते हैं. उन्होंने धनक को चाइल्ड आर्टिस्ट्स के साथ सिर्फ 33 दिनों में ही पूरा कर लिया था.

8. जब पार्टी में पसंद कर ली अपने फिल्म की प्रोटेगोनिस्ट

नागेश की फिल्म लक्ष्मी में मोनाली ठाकुर ने बॉलीवुड में डिब्यु किया. एक इंटरव्यू के दौरान कुकुनूर ने बताया था कि उन्होंने एक पार्टी के दौरान मोनाली को देखा था और उन्हें मोनाली के चेहरे पर लक्ष्मी दिखाई दी.

गौरतलब है कि मोनाली ने 14 वर्ष की एक लड़की का किरदार निभाया था जिसे जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है.

समाज की हकीकत दिखाने वाली फिल्में बनाने के लिए हम नागेश के शुक्रगुजार हैं. समाज की हकीकत को इतने सरल तरीके से पेश करना आसान नहीं है. नागेश कुकुनूर को हमारी पूरी टीम की तरफ से जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

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