हैप्पी बर्थडे नागेश कुकुनूर

‘हाय…आई एम नागेश कुकुनूर…नाम तो सुना ही होगा?’ जी नहीं, इसकी कोई गैरंटी नहीं कि आपने नागेश कुकुनूर का नाम सुना ही होगा. हैरतअंगेज बात तो है पर यह हकीकत है. नागेश कोई राहुल तो नहीं, जिनका नाम आपने सुना होगा, और आप अंदर ही अंदर वैसा बनना चाह रहे होंगे या राहुल जैसा कोई प्रेमी ढूंढ रहे होंगे. खैर… नागेश के बारे में ये कहना गलत नहीं होगा, कि वे कोई खास(क्योंकि अधिकतर लोगों के लिए खास वहीं हैं, जो पर्दे पर दिखते हैं) न होकर भी बहुत खास हैं.

आज अचानक नागेश के बारे में बात करने की वजह है. वैसे भी बिना वजह बातें की नहीं की जाती. अब कोई तथाकथित सुपरस्टार छींक भी दे तो खबर बन जाती है, पर कुछ ऐसे पर्दे के पीछे के सुपरस्टार हैं जिन्हें दो-तीन मौकों पर ही खास तौर से याद किया जाता है. पहला, अगर उन्होंने कोई अवार्ड जीता हो, दूसरा अगर उनका जन्मदिन हो और तीसरा अगर वे कुछ सरफिरों का शिकार हुए हों. पर नागेश को किसी धर्म और संस्कृति को बचाने वाली झुंड का शिकार नहीं होना पड़ा है और आज नागेश का जन्मदिन है.

नागेश कुकुनूर नायडु या नागेश कुकुनूर पैरेलल सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने हैद्राबाद ब्लूज(1998), रॉकफॉर्ड(1999), इकबाल(2005), डोर(2006), आशायें(2010), लक्ष्मी(2014), धनक(2016) जैसी फिल्में बनाईं हैं. अब शायद आपको याद आ गया होगा कि नागेश कौन हैं, क्योंकि आपने उनकी कई फिल्में देखी हैं.

नागेश आज एक विशेष दर्शक वर्ग के बीच लोकप्रिय निर्माता-निर्देशक हैं. नाच-गाने वाली बॉलीवुड की फिल्मों से उनकी फिल्में काफी अलग हैं. शायद इसलिए लैला-शिला को पसंद करने वाले इनकी फिल्मों तक नहीं पहुंच पाते. पर नागेश उन विषयों पर बात करते हैं, जो हमारे समाज का हिस्सा हैं. ‘धनक’ के छोटू और परी भारत में लगभग हर घर में पाए जाते हैं. भाई-बहन का प्यार तो हर घर में दिखता ही है. पर अंधे भाई की आंखें बनी बहन को इतने अच्छे से चित्रित करना… यह सिर्फ नागेश का ही कमाल हो सकता है. 

जानिए नागेश से जुड़ी कुछ खास बातें-

1. केमिकल इंजीनियरिंग

नागेश ने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. फिल्मी दुनिया में आने से पहले वे अमेरिका में एक इंवायरन्मेंटल कन्सलटेंट के रूप में काम करते थे. अपने इंजीनियरिंग करियर से कमाए पैसों से ही उन्होंने अपनी फिल्म हैद्राबाद ब्लूज बनाई थी. इस फिल्म को सिर्फ 17 दिनों में शूट किया गया था. यह बहुत ही कम बजट की फिल्म थी. इस फिल्म की स्क्रिप्ट को उन्होंने अमेरिका के भारतीयों से प्रेरित होकर लिखा था.

2. बचपन से ही था फिल्मों से लगाव

नागेश को बचपन से ही फिल्में देखना का शौक था. वे अकसर तेलुगु, हिन्दी, अंग्रेजी फिल्में देखते थे. शायद उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें आगे जाकर क्या करना है.

3. असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर किया काम

नागेश ने कुछ दिनों के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में भी काम किया था. नागेश कुकुनूर ने ‘वीर हनुमान’ के सेट पर बतौर सह-निर्देश काम किया था. गौरतलब है कि उन्हें कुछ दिनों में ही पता चल गया था कि वे इस काम के लिए नहीं बने हैं.

4. कमर्शियल फिल्मों में भी आजमाई किस्मत

नागेश ने आर्ट फिल्मों में अलग तरह का कन्टेंट डालकर बेहतरीन फिल्में बनाई हैं. पर उन्होंने कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया है. ‘तस्वीर 8X10’ उनकी कमर्शियल फिल्म है, जिसमें अक्षय कुमार ने अभिनय किया था. गौरतलब है कि इस फिल्म ने उतनी शौहरत नहीं कमाई.

5. एसआईसी(SIC) बैनर तले बनाते हैं फिल्में

कुकुनूर एसआईसी के बैनर तले फिल्में बनाते हैं. पर बहुत कम ही लोग एसआईसी का असल मतलब जानते हैं. आमतौर पर प्रोडक्शन हाउस के मालिक अपने या अपनों के नाम तले फिल्में बनाते हैं, पर कुकुनूर की SIC का फुल फॉर्म है Stability is Curse. यह अपनेआप में ही बहुत कुछ कह देता है. जिन्दगी में कभी भी किसी को रुकना नहीं चाहिए, आगे बढ़ते रहना चाहिए.

6. अपनी फिल्मों में करते हैं अभिनय

नागेश अपनी फिल्मों में अभिनय भी करते हैं. ये रोल सिर्फ अभिनय का शौक पूरा करने के लिए नहीं किए गए हैं, बल्कि ये रोल फिल्म पर एक अलग छाप छोड़ती दिखाई देती है. जैसे- रॉकफॉर्ड में उन्होंने एक शिक्षक का रोल अदा किया था, वहीं लक्ष्मी में उन्होंने एक दलाल का किरदार निभाया था.

7. बहुत ही कम दिनों में पूरी करते हैं फिल्में

ये नागेश की ही खासियत है कि वे बहुत ही कम दिनों में ही बेहतरीन फिल्म शूट कर लेते हैं. उन्होंने धनक को चाइल्ड आर्टिस्ट्स के साथ सिर्फ 33 दिनों में ही पूरा कर लिया था.

8. जब पार्टी में पसंद कर ली अपने फिल्म की प्रोटेगोनिस्ट

नागेश की फिल्म लक्ष्मी में मोनाली ठाकुर ने बॉलीवुड में डिब्यु किया. एक इंटरव्यू के दौरान कुकुनूर ने बताया था कि उन्होंने एक पार्टी के दौरान मोनाली को देखा था और उन्हें मोनाली के चेहरे पर लक्ष्मी दिखाई दी.

गौरतलब है कि मोनाली ने 14 वर्ष की एक लड़की का किरदार निभाया था जिसे जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है.

समाज की हकीकत दिखाने वाली फिल्में बनाने के लिए हम नागेश के शुक्रगुजार हैं. समाज की हकीकत को इतने सरल तरीके से पेश करना आसान नहीं है. नागेश कुकुनूर को हमारी पूरी टीम की तरफ से जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं.

क्यों खास होगी फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है’

इस साल आने वाली और सुपरस्टार सलमान खान और अभिनेत्री कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’, जो कि साल की सबसे ज्यादा प्रतीक्षित फिल्मों में से एक है. इन दोनों कलाकारों ने फिल्म ‘एक था टाइगर’ में एक साथ काम किया था, जो कि एक ब्लॉकबस्टर हिट फिल्म थी.

तो इस नयी फिल्म के बारे में हम आपके लिए यहां कुछ महत्वपूर्ण बातें लेकर आए हैं. जानिए क्या खास है, फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में!

1. फिल्म में है सलमान खान की अद्वितीय भूमिका

यह सुनने में आ रहा है कि अभिनेता सलमान खान इस फिल्म में एक बहुत अलग भूमिका निभाने वाले हैं. यह भूमिका होगी, 70 वर्षीय व्यक्ति की. क्या सलमान वाकई ये विशेष भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं, अगर हां तो दर्शकों के लिए यह एक चौंकाने वाली जानकारी है!

2. सलमान और कैटरीना 5 सालों बाद एकसाथ नजर आएंगे

ये बात ध्यान देने योग्य है कि सलमान खान और कैटरीना कैफ 5 सालों के बाद एक साथ पर्दे पर आ रहे हैं. लंबे समय तक इस जोड़ी को केवल याद किया गया है. कैटरीना कैफ का अब सलमान के साथ काम करना निश्चित रूप से फिल्म के लिए बहुत सी सुर्खियां बटोरेगा.

3. फिल्म एक था टाइगर की सिक्वल फिल्म

फिल्म ‘टाइगर जिन्दा है’ साल 2012 में आई फिल्म एक था टाइगर का सीक्वल है. यकीनन लोगों को इससे भी उतनी ही उम्मीदें हैं.

4. निर्देशक अली अब्बास जफर ने थामी बागडोर

फिल्म ‘सुल्तान’ और अन्य हिट फिल्मों से प्रसिद्धि पाने वाले निर्देशक अली अब्बास जफर, आखिरकार सलमान को निर्देशित करने जा रहे हैं. फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ का पहला हिस्सा यानि कि फिल्म ‘एक था टाइगर’ निर्देशक कबीर खान द्वारा निर्देशित की गई थी, लेकिन इस बार, अली अब्बास जफर इस फिल्म के निर्देशन के प्रभारी होंगे.

4. फिल्म की कहानी

फिल्म ‘एक था टाइगर’ में हमने जो कुछ भी देखा था, इस फिल्म की कहानी उससे बहुत भिन्न होगी. खबरों के अनुसार, इस सीक्वल फिल्म में, सलमान खान के वर्तमान जीवन और पिछले समय को दिखाया जाएगा. वहीं दूसरी तरफ कैटरीना कैफ, दर्शकों को पुन: पाकिस्तानी एजेंट की भूमिका में नजर आएंगी.

5. शूटिंग ऑस्ट्रिया में

इस फिल्म में भी आप कई अलग-अलग और बहुत खूबसूरत जगहों को देखेंगे. फिलहाल फिल्म के निर्माता शूटिंग के लिए सही जगह खोजने में व्यस्त हैं. सूत्रों के मुलाबिक “इस फिल्म की शूटिंग मार्च से ऑस्ट्रिया में शुरू होगी.”

6. हॉलीवुड के एक्शन हीरो टॉम स्ट्रथर्स करेंगे फिल्म में सलमान की मदद

फिल्मों से जुड़ी खबरों की माने तो हॉलीवुड के एक्शन डायरेक्टर टॉम स्ट्रथर्स, जिन्होंने द डार्क नाइट राइज और एक्स मेन जैसी फिल्मों पर काम किया है, वे टाइगर जिंदा है की टीम के साथ काम करेंगे. इस फिल्म में उनका स्पर्श निश्चित रूप से फिल्म में होने वाले एक्शन अनुक्रमों को बढ़ाएगा.

7. दो बड़ी फिल्मों की हो सकती है भिड़ंत

इस क्रिसमस यानि कि माह दिसम्बर 2017 अंत में दो बड़े निर्देशकों की फिल्मों ‘टाइगर जिंदा है’ और ‘दत्त बायोपिक’ के बीच संघर्ष देखा जा सकता है और यदि ये संघर्ष आखिरकार हो ही जाए, तो यह पहली बार होगा जब कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर साल 2010 में आई फिल्म दबंग के बाद से रिलीज की तारीख पर सलमान खान से आमने सामने होगा.

गर्मियों में ध्यान से करें कपड़ों का चुनाव

गर्मी का मौसम ही एक ऐसा वक्त है जब आप खुद को आकर्षक परिधानों के साथ पेश कर, अपनी पर्सनैलिटी का आकर्षण बढ़ा सकती हैं.

कई मशहूर फैशन डिजाइनर्स और सौंदर्य विशेषज्ञों के मुताबिक

1. गर्मियों में शॉर्ट्स पहनना आपको आकर्षक बनाता है और डेनिम शॉर्ट्स को तो गर्मी के मौसम का प्रतीक भी माना जाता है. लेकिन हां इसे पहनने के कुछ ही घंटों बाद यह आपको भारी लगने लगता है. इसलिए हम आप चाहें तो पसीने और चिपचिप से बचने के लिए सूती शॉर्ट पहने जा सकते है.

2. कभी कभी वीकेंड में बाहर खाना खाने जाने और शाम को आउटिंग पर जाने के लिहाज से मैक्सी ड्रेसेज या लंबी पोशाकें काफी चलन में हैं. लेकिन कई बार इनके लंबे होने की वजह से आप इनमें फंस भी सकती हैं, जो यकीनन एक असहज स्थिति होगी तो इसके लिए आपको चाहिए कि लंबी स्लिट की मैक्सी वाले पोशाकों का चुनाव करें.

3. गर्मी के मौसम में आपको पहनने के लिए चौड़े और हवादार टॉप्स का चुनाव करना चाहिए. ये गर्मी में आपको काफी आराम देते हैं. गर्मी में चुस्त और टाइट कपड़ों के बजाय चौड़े और हवादार पैंट पहनें. इससे आपको गर्मी नहीं लगती और चलने में भी आसानी होती है.

4. अपने पेशेवर कार्यो और ऑफिस जाने के लिए जब आप परिधानों को चुनाव करते हैं तो हल्के रंगों के कपड़ों का चुनाव करें. ऐसे में आपके लिए बटनदार कमीज जैसे क्लासिक टॉप और सूती कुर्तियां का इस्तेमाल करना भी बेहतर होगा.

ये सितारे नहीं देख पाए अपनी आखिरी फिल्म

जिंदगी कब साथ छोड़ जाए ये कहना बहुत मुश्किल है. अभी बॉलीवुड के दमदार अभिनेता ओम पुरी के निधन ने सबको हैरत में डाल दिया था.  लेकिन वे अपने किरदार को आखिरी बार पर्दे पर नहीं देख पाएं. हालांकि वो अकेले ऐसे सितारे नहीं हैं, इससे पहले भी कई बड़े सितारे अपनी आखिरी फिल्म पुरी तो कर गए लेकिन उसे देख नहीं पाए.

1. राजेश खन्ना
एक वक्त था जब बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की हिंदी सिनेमा में तूती बोलती थी, लेकिन एक ऐसा वक्त भी आया जब उनके पास फिल्में नहीं थी. 2011 में उनकी दो फिल्में ‘जानलेवा ब्लैकब्लड’ और ‘रियासत’ की शूटिंग तो पूरी हो गई थी, लेकिन उसके बाद उन्हें कैंसर हो गया और उनका देहांत हो गया. निधन के 2 साल बाद उनकी फिल्म ‘रियासत’ रिलीज हुई थी.

2. शम्मी कपूर
बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन एक्टर्स में से एक शम्मी कपूर ने अपने पोते की फिल्म ‘रॉकस्टार’ में एक छोटा सा रोल किया था. लेकिन इस फिल्म की शूटिंग खत्म करके कुछ दिन बाद ही उनकी मृत्यु हो गई और वो खुद को आखिरी बार पर्दे पर नहीं देख पाए. ये फिल्म बेहद हिट रही थी.

3. अमरीश पुरी
बॉलीवुड के मशहूर विलेन अमरीश पुरी भी अपनी आखिरी फिल्म नहीं देख पाए थे. उनकी फिल्म ‘कच्ची सड़क’ की शूटिंग पूरी हो गई थी लेकिन 2005 में उनका देहांत हो गया और फिल्म सितम्बर 2006 में रिलीज हुई थी.

4. दिव्या भारती
महज 19 साल की उम्र में दिव्या भारती का निधन हो गया था. उनकी मौत ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को हिला कर रख दिया था. उनकी मौत के 9 महीने बाद रिलीज हुई फिल्म ‘शतरंज’ उनकी आखिरी फिल्म थी जो सुपरहिट साबित हुई थी.

5. संजीव कुमार
संजीव कुमार एक मल्टी-टैलेंटेड एक्टर थे. उन्होंने 47 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनकी मौत के बाद उनकी 10 फिल्में रोक दी गई थी, जिसमें उन्हें काम करना था. फिल्म ‘प्रोफेसर की पड़ोसन’ संजीव की मौत के बाद रिलीज की गई थी.

6. फारूक शेख
अपनी कमाल की एक्टिंग के लिए पहचाने जाने वाले एक्टर फारूक शेख का निधन दिसम्बर 2013 में हुआ. इसके एक साल बाद उनकी आखिरी फिल्म ‘यंगिस्तान’ रिलीज हुई थी. इससे पहले वह ‘ये जवानी है दीवानी’ में रनबीर कपूर के पिता के रोल में दिखे थे

7. ओम पुरी
ओम, सलमान के साथ फिल्म ‘ट्यूब्लाइट’ के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब वो अपने किरदार को पर्दे पर नहीं देख पाएंगे. इससे पहले उन्होंने सलमान के साथ फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ में काम किया था. इसके अलावा ओम पुरी ने करण जौहर की फिल्म ‘द गाजी अटैक’ में भी अपनी कला का आखिरी बार प्रदर्शन किया था.

कमतर नहीं लड़कियां

अमूमन समाज में लड़कियों को लड़कों से कमतर आंका जाता है. शारीरिक सामर्थ्य ही नहीं अन्य कामों में भी यही समझा जाता है कि जो लड़के कर सकते हैं वह लड़कियां नहीं कर सकतीं, जबकि इस के कई उदाहरण मिल जाएंगे जिन में लड़कियों ने खुद को लड़कों से बेहतर साबित किया है. पिछले वर्ष संपन्न हुए रियो ओलिंपिक और रियो पैरालिंपिक खेलों में खिलाडि़यों की इतनी बड़ी फौज में से सिर्फ  लड़कियों ने ही देश की झोली में मैडल डाल कर देश का नाम रोशन किया. यही नहीं अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियां लड़कों से न केवल कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं बल्कि आगे हैं. हमेशा देश में 10वीं और 12वीं कक्षा के रिजल्ट में लड़कियां ही पहले पायदान पर रहती हैं.

चाहे आईएएस बनने की होड़ हो, विमान या लड़ाकू जहाज उड़ाने की या फिर मैट्रो चलाने की, लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. इस के बावजूद लड़कियों को लड़कों से कमतर आंकना समाज की भूल है.

कुछ धार्मिक पाखंडों, सामाजिक कुरीतियों और परंपराओं ने भी लड़कियों को लड़कों से कमतर मानने की भूल की है. इसी के चलते भ्रूण हत्या तक हो रही है. आज जरूरत है इस दकियानूसी विचार को झुठलाने व खुद को साबित करने की, जिस का सब से सरल उपाय है पढ़लिख कर काबिल बनना.

आप को बता दें कि घर में सब्जी बनाने से ले कर देश चलाने तक में लड़कियां व महिलाएं आगे हैं और उन्होंने यहां खुद को साबित कर दिखा भी दिया है कि हम किसी से कम नहीं हैं.

देशदुनिया में किनकिन जगहों पर नाम कमाया

पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में टौप

जीवन में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा और परिवार का साथ मिले, तो कोई भी ऐसा कार्य नहीं जिसे कर पाना असंभव हो. इस का जीताजागता उदाहरण है टीना डाबी, जिस ने महज 22 वर्ष की उम्र में पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा में टौप किया.

इस का श्रेय टीना ने अपनी मम्मी को दिया. साथ ही अपनी मेहनत व लगन को भी टीना ने इस जीत की वजह बताया है, जिस का परिणाम यह हुआ कि वे अपना गोल अचीव करने के लिए जीजान से जुट गईं. यहां तक कि उन की मम्मी ने टीना के लिए सरकारी नौकरी तक छोड़ दी.

राजनीति विज्ञान की छात्रा टीना ने न सिर्फ लेडी श्रीराम कालेज दिल्ली से गै्रजुएशन की बल्कि स्टूडैंट औफ द ईयर भी बनीं और यूपीएससी की परीक्षा में टौप कर अपनी पहचान बनाई.

2016 की 12वीं की टौपर बनी सुकृति गुप्ता

कोई भी कार्य करने के लिए व्यक्ति के अंदर दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है. यही इच्छाशक्ति इंसान को ऊंचाई तक पहुंचा देती है. इसी के बल पर दिल्ली के अशोक विहार स्थित मोंटफोर्ट स्कूल में पढ़ने वाली सुकृति गुप्ता ने 2016 में 500 में से 497 अंक प्राप्त कर 12वीं में पूरे देश में टौप कर दिखा दिया कि अब लड़कियां सिर्फ घर की चारदीवारी तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि वे खुद को लड़कों से बेहतर साबित कर रही हैं. इतना ही नहीं, सुकृति अब अपने पेरैंट्स की तरह इंजीनियर बन कर देश के लिए कुछ करना चाहती है. ऐसा करने में सिर्फ सुकृति गुप्ता ही नहीं बल्कि अन्य कई लड़कियां भी प्रयासरत हैं.

सब से युवा प्रतिभागी बनी मास्टर शैफ इंडिया

लड़कियां अब सिर्फ घर की रसोईर् संभालने तक ही सीमित नहीं रहतीं, बल्कि वे अपने इस हुनर को किसी प्लेटफौर्म के जरिए दुनिया के सामने ला कर नाम भी कमाती हैं.

इस शो में विजेताओं के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, जिन्हें कुकरी स्किल्स, टैस्ट, इनोवेशन और डिशेज प्रैजेंट करने के आधार पर विजेता घोषित किया जाता है. सीजन 5 में कीर्ति के साथ आखिरी दौड़ में आशिमा अरोड़ा, दिनेश पटेल और मिरवान विनायक थे, जिन्हें पछाड़ कर उन्होंने साबित कर दिया कि लड़कियां किसी से कम नहीं हैं. कीर्ति अब तक के सभी सीजन्स में विनर बनने वाली सब से युवा प्रतिभागी हैं.

ओलिंपिक 2016 में लड़कियों ने लहराया परचम

रियो ओलिंपिक में लड़कियों ने ही देश की लाज बचाई. हरियाणा की साक्षी मलिक ने कुश्ती में कांस्य पदक जीत कर दिखा दिया कि  चाहे आप के लक्ष्य के रास्ते में कितने ही विरोधी खड़े हों और आप के पास साधन भी सीमित हों, लेकिन यदि लगन, सच्ची निष्ठा और मेहनत हो तो हर बाधा खुद ब खुद दूर हो जाती है.

साक्षी ने परिवार में दादाजी की सपोर्ट से मात्र 12 वर्ष की उम्र में रोहतक से प्रशिक्षण लिया और आज उन का संघर्ष और मेहनत जीत के रूप में सामने है.

वहीं पी वी सिंधु ने ओलिंपिक में बैडमिंटन चैंपियनशिप में रजत पदक जीत कर बता दिया कि बचपन में वह जो सपना देखती थी उसे उस ने आज पूरा कर के दिखा दिया. 2009 में 13 वर्ष की छोटी सी उम्र में सिंधु ने जूनियर एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था.

आप को बता दें कि जिमनास्टिक जैसे खेल में जिस में भारत अभी तक अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करा पाया था, त्रिपुरा की 22 वर्षीय दीपा कर्माकर ने 2016 के ओलिंपिक में क्वालिफाई कर सब को चौंका दिया.

दिव्यांग ने जीता पैरालिंपिक

जहां हम हलकी सी चोट लगने पर हिम्मत हार जाते हैं, वहीं दीपा मलिक ने रियो पैरालिंपिक में शौटपुट में पैरालाइसिस की शिकार होने के बावजूद सिल्वर मैडल जीत कर देश का मान बढ़ाया. वे इस खेल में सिल्वर मैडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

उन्होंने साबित कर दिया कि जब तक हम खुद को लाचार मानते रहेंगे तब तक कभी जीत नहीं पाएंगे, लेकिन जिस दिन हम ने सोच लिया कि हमारे हौसले के आगे हमारी दिव्यांगता भी आड़े नहीं आ सकती, उस दिन हम असंभव को भी संभव कर सकते हैं.

दिव्यांगता के बावजूद एवरेस्ट पर फतेह

अरुणिमा सिन्हा जिन्होंने एक ट्रेन लूट में अपना पैर गंवा दिया था, लेकिन फिर भी उन के जज्बे की दाद देनी होगी कि वे दुनिया की सब से ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर फतेह कर पहली दिव्यांग महिला बनीं.

चाय वाली उपमा बनी बिजनैस वूमन औफ द ईयर

26 साल की उपमा विरदी को आस्ट्रेलिया में बिजनैस वूमन औफ द ईयर अवार्ड भारतीय चाय की पहचान आस्ट्रेलिया में कराने के कारण मिला. वहां के लोग कौफी ज्यादा पीते हैं, लेकिन उपमा ने उन्हें अपनी मसाला चाय का ऐसा चसका लगाया कि अब वे उन के फैन हो गए हैं.

उपमा जो मूल रूप से चंडीगढ़ की हैं, ने किसी काम को छोटा नहीं समझा, तभी तो पेशे से वकील होने के बावजूद वे खाली समय में चाय बना कर लोगों को सर्व करती थीं, अब तो बड़ेबड़े इवैंट्स में उन्हें बुला कर उन से मसाला चाय बनाना सीखा जाता है. आज वे पूरी दुनिया में चाय वाली के नाम से मशहूर हो गई हैं.

देश की पहली महिला फाइटर पायलट

भारतीय वायुसेना में पहली बार 3 महिला लड़ाकू पायलटों की नियुक्ति हुई, जिस में अवनि चतुर्वेदी मध्य प्रदेश से, भावना कंठ बिहार से और मोहना सिंह राजस्थान से हैं.

उपरोक्त के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पहली महिला आईपीएस किरण बेदी, राजनेत्री सुषमा स्वराज और कई अन्य मिसाल हैं इस बात की कि लड़कियां लड़कों वाला हर काम कर सकती हैं और कहीं भी लड़कों से कमतर नहीं हैं.

लड़कियां भी सीखें इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर का काम

अंजलि की ग्रैजुएशन की परीक्षा चल रही थी. एक दिन वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी कि अचानक बिजली गुल हो गई. उस ने इनवर्टर औन किया तो भी घर में बिजली नहीं आई, जबकि पड़ोस के घरों में बिजली थी. उस समय रात के 10 बज रहे थे. किसी इलैक्ट्रीशियन को बुलाना भी संभव नहीं था. अंजलि ने जैसेतैसे मोमबत्ती की रोशनी में परीक्षा की तैयारी की और दूसरे दिन परीक्षा दे पाई.

परीक्षा के बाद अंजलि ने अपनी मां से कहा कि मुझे भी बिजली का काम सीखना है ताकि ऐसी स्थिति आने पर छोटेमोटे फौल्ट खुद ठीक कर पाऊं.

अंजलि की मां ने कहा कि तुम लड़की हो कर बिजली का काम कैसे सीख पाओगी, लेकिन अंजलि ने कहा कि मां आज तमाम लड़कियां इलैक्ट्रिक और इलैक्ट्रौनिक्स में आईटीआई, पौलिटैक्निक व इंजीनियरिंग की डिग्रियां ले रही हैं. सभी डिग्रियों में यही सारी चीजें सिखाई जाती हैं तो मैं क्यों नहीं सीख सकती.

अंजलि की मां ने उस के पापा से कह कर अंजलि को बिजली का काम सीखने की इच्छा से अवगत करा दिया.

अंजलि के पापा को पहले तो यह बात बड़ी अजीब लगी, लेकिन जब उन्होंने रात में मेनस्विच का फ्यूज उड़ जाने की वजह से परीक्षा की तैयारी में बाधा आने के बारे में सुना तो उन्हें भी लगा कि अंजलि भले ही उन की इकलौती लड़की है, लेकिन उसे बिजली का काम सिखाने में हर्ज नहीं. यह छोटीमोटी समस्याओं से नजात दिलाने में कारगर साबित होगा.

उन्होंने अपने नजदीकी इलैक्ट्रीशियन से अंजलि को बिजली का काम सिखाने के लिए राजी कर लिया. उस ने 2 महीने की छुट्टियों में इलैक्ट्रीशियन से बिजली के छोटेमोटे काम सीख लिए.

इस के बाद घर में जब भी बिजली का छोटामोटा फौल्ट होता या कोई औैर समस्या होती तो बिना इलैक्ट्रीशियन को बुलाए उसे वह खुद ठीक कर लेती.

अंजलि ने जो निर्णय लिया वह काबिलेतारीफ था. उस ने न केवल लड़कियों पर लगे इस आक्षेप को दूर किया कि लड़कियां बिजली का काम नहीं सीख या कर सकतीं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कोई भी काम सीखना कठिन नहीं है.

अकसर घरों में बिजली की जो समस्याएं देखी जाती हैं उन में मेन स्विच का फ्यूज का उड़ जाना, तार में शौर्टसर्किट होना, विद्युत उपकरणों का फ्यूज हो जाना, पंखे का रैग्यूलेटर खराब होना, ट्यूबलाइट का स्टार्टर खराब होना, प्रैस आदि में छोटेमोटे फौल्ट होना आम बात होती है. इस के लिए हम इलैक्ट्रीशियन के पास जाते हैं तो वह मनमाफिक पैसे की मांग करता है, जबकि काम कुछ भी नहीं होता. ऐसे में अगर घर के किशोर थोड़ी हिम्मत करें तो बात बन सकती है.

बिजली के अलावा जो चीज महत्त्वपूर्ण है, वह है वाटर सप्लाई, जिस के माध्यम से घर के अलगअलग हिस्सों में न केवल पानी पहुंचाया जाता है बल्कि सीवर, शौचालय, आरओ सिस्टम इत्यादि महत्त्वपूर्ण चीजें भी इन्हीं से जुड़ी होती हैं. ऐसे में अगर अचानक पानी के पाइप में कहीं लीकेज हो जाए तो उस दिन नहानेधोने से ले कर शौच जाने व पीने के पानी तक की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है.

अचानक आई इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए प्लंबर के पास भागने के बजाय अगर थोड़ाबहुत काम सीख लिया जाए तो समस्या का समाधान घर पर ही सस्ते में हो सकता है.

खाली समय में सीखें काम

इलैक्ट्रिक व प्लंबरिंग से जुड़ी छोटीमोटी परेशानियों से नजात पाने के लिए अगर अपने खाली समय का उपयोग किया जाए और किसी ऐक्सपर्ट इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर के साथ काम सीखा जाए तो यह फायदेमंद साबित हो सकता है. प्लंबर का काम करने वाले लोगों को अकसर काम के दौरान सहायक की जरूरत होती है, जो उन के कार्यों  में सहयोग करते रहते हैं. इन लोगों से संपर्क कर प्लंबरिंग व इलैक्ट्रिक का काम सीखा जा सकता है.

बिजली मिस्तरी संजय रावत का कहना है कि अकसर घरों में बिजली की वायरिंग, बिजली के उपकरणों की फिटिंग के दौरान ऐक्सपर्ट के रूप में अकेले काम नहीं किया जा सकता है. इसलिए हमें सहायक की आवश्यकता होती है. बिजली मरम्मत के कार्यों की जानकारी न होने के बावजूद इन्हें अच्छीखासी राशि का भुगतान भी करना पड़ता है. अकसर हमारे साथ सीखने वाले लोग कुछ ही दिन में इलैक्ट्रिक का काम करतेकरते ऐक्सपर्ट बन जाते हैं और कमाई भी करने लगते हैं.

इसी तरह प्लंबरिंग से जुड़े फौल्ट जैसे छोटेमोटे कार्यों को किसी प्लंबर का सहायक बन कर सीखा जा सकता है और इस से जहां घर की छोटीमोटी समस्या सुलझती है वहीं आप आसपास काम कर कमाई भी कर सकते हैं. बिजली मिस्तरी या प्लंबर 400-500 रुपए तक ले लेता है जबकि इन छोटेमोटे कार्यों के बारे में खुद जानकारी रखी जाए तो अनावश्यक पैसे के खर्च से बचा जा सकता है.

कोई भी सीख सकता है काम

यह जरूरी नहीं कि बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े मरम्मत के कार्य करने की क्षमता सिर्फ लड़कों में ही होती है, बल्कि लड़कियां भी इस तरह के कार्य आसानी से कर सकती हैं. बिजली मरम्मत का कार्य सीखने वाली लड़की नाजमीन का कहना है कि वह इलैक्ट्रिक ट्रेड से आईटीआई का कोर्स कर रही है. जब उस ने इस कोर्स को करने का निर्णय लिया तो उस के घर वालों ने उस का विरोध किया, लेकिन नाजमीन ने सब को विश्वास में ले कर इस कोर्स में दाखिला लिया. वह आईटीआई के अंतिम वर्ष में है. वह न केवल बिजली के खंभों पर चढ़ कर बिजली मरम्मत का कार्य कर लेती है बल्कि घरों में वायरिंग व छोटेबड़े फौल्ट दूर करने में भी निपुण है.

लड़कियां इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर से तो काम सीख ही सकती हैं इस के अलावा सरकारी संस्थान कम समय के बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं जहां से न केवल निशुल्क ट्रेनिंग ली जा सकती है बल्कि इस के लिए सरकारी छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है.

भारत सरकार व राज्य सरकार कारीगरों से जुड़ी ट्रेनिंग स्थानीय लैवल पर उपलब्ध करा रही है. भारत सरकार द्वारा कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, नैशनल स्किल डैवलपमैंट कौरपोरेशन सहित तमाम विभागों व मंत्रालयों द्वारा एनजीओ व ट्रेनिंग देने वाली कंपनियों के माध्यम से प्रशिक्षित किए जाने का काम किया जा रहा है, जो न केवल निशुल्क होता है बल्कि टे्रनिंग पूरी होने के बाद इस का प्रमाणपत्र वजीफा भी दिया जाता है. ऐसे में ट्रेनिंग के इच्छुक लड़केलड़कियां इलैक्ट्रीशियन व प्लंबरिंग का काम सीखने के लिए इन से संपर्क कर सकते हैं.                                 

घर में रखें टूलबौक्स

बिजली या प्लंबरिंग से जुड़े कार्य या मरम्मत के लिए तमाम तरह के उपकरणों या टूल्स की जरूरत पड़ती है. इन टूल्स के बिना कोई भी ऐक्सपर्ट मरम्मत का कार्य नहीं कर सकता इसलिए अगर आप ने इलैक्ट्रीशियन या प्लंबरिंग का काम सीख लिया है तो इस के साथ रिपेयर के लिए काम आने वाले आवश्यक टूल्स भी घर पर रखना न भूलें.

बिजली मरम्मत में काम आने वाले प्रमुख टूल्स

बिजली उपकरणों की मरम्मत करने के लिए सब से जरूरी टूल के रूप में ग्लव्स का इस्तेमाल होता है. ये उन चीजों से बने होते हैं जिन में अगर गलती से बिजली का नंगा तार छू जाए तो झटका लगने की आशंका नहीं होती. इस के अलावा बोर्ड, स्विच या बिजली के उपकरणों के पेच कसने के लिए अलगअलग साइज के स्क्रूड्राइवर सैट की जरूरत पड़ती है.

बिजली मरम्मत में काम आने वाला एक महत्त्वपूर्ण टूल प्लायर होता है जिस के द्वारा तारों को आपस में जोड़ने, ऐंठने का काम किया जाता है. वहीं नोज प्लायर के द्वारा दबाने व चैनल लौक  के द्वारा भी लौक किए जाने का काम किया जाता है. बिजली के अन्य कुछ टूल्स जिन का महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है, उन में वायर कटर, टैस्टर, अलगअलग साइज के रिंच, निडिलनोज प्लायर, स्ट्रिपर, रेजर चाकू, रोटो स्प्रिट, पाइप रीमर इलैक्ट्रिक लेबल, अर्थ मैग्नेट टेप, वोल्टेज डिटैक्टर, सीटरौकसा, मैग्नेटिक नट ड्राइवर, इंसूलेटेड स्कू्रड्राइवर सैट, स्क्रूहोल्डरसैट, नाकआउट सैट, टोन जनरेटर, टैगआउट किट, ड्रिल बिट्स, लैड हैड, लैंप, सहित जरूरत पर आने वाले तमाम टूल्स का उपयोग किया जाता है.

आप के घर में जिस तरह के वायर या वायरिंग का उपयोग किया गया है इस के लिए जरूरी टूल्स को अपने घर पर जरूर रखना चाहिए जिस से अचानक आने वाले किसी फौल्ट से निबटा जा सके.

प्लंबरिंग के काम में आने वाले जरूरी उपकरण

प्लंबरिंग में अकसर जो पाइप ब्लौकेज, लीकेज या टूटफूट की समस्या देखी गईर् है, इस के हिसाब से इन की मरम्मत के लिए जिन महत्त्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत पड़ सकती है उन में एडजस्टेबल रिंच, टेफलान टेप, पाइप कटर, पाइप लुब्रिकैंट्स और ब्रश, वैसिन रिंच हैं. इन में पाइप कटर द्वारा आवश्यकता पड़ने पर पाइप को काट कर जोड़ने, टेप के माध्यम से नापने का काम किया जा सकता है. इस के अलावा भी तमाम तरह के टूल्स की जरूरत पड़ सकती है, जिस में इनसाइड और आउटसाइड पाइप रीमर, इलैक्ट्रिक ड्रिल, घर में लगी टोंटियों के साइज की दूसरी टोंटियां इत्यादि हैं.     

एसआईपी के बारे में जानती हैं आप

एसआईपी आपको एक म्युचुअल फंड में एक साथ 5,000 रूपये के निवेश की बजाय 500 रूपये के 10 बंटे हुये निवेश की सुविधा देता है. ये आपको एक बार में भारी पैसा निवेश करने की जगह म्यूचुअल फंड में कम अवधि का (मासिक या त्रैमासिक) निवेश करने की आजादी देता है. इससे आप अपनी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को प्रभावित किये बिना म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. एसआईपी कैसे काम करता है ये बेहतर समझने के लिये आपको Rupee cost averaging और धन के जुङते रहने की शक्ति (power of compounding) को समझना जरूरी है.

एसआईपी एक औसत आदमी की पहुंच के अंदर म्यूचुअल फंड निवेश को ले आया है क्योंकि यह उन तंग बजट लोगों को भी निवेश करने योग्य बनाता है जो एक बार में बड़ा निवेश करने के बजाय 500 या 1,000 रूपये नियमित रूप से निवेश कर सकते हैं.

एसआईपी के माध्यम से छोटी छोटी बचत करना शायद पहली बार में आकर्षक न लगे लेकिन ये निवेशकों में बचत की आदत डालता है और बढ़ते वर्षों में इससे आपको अच्छा-खासा प्रतिलाभ (रिटर्न) मिलेता है. 1,000 रुपये महीने का एक एसआईपी का धन 9% की दर से 10 वर्षों में बढकर 6.69 लाख रूपये, 30 साल में 17.38 लाख रूपये और 40 साल में 44.20 लाख तक हो सकता है.

यही नही धनी लोगों को भी ये गलत समय और गलत जगह पर निवेश करने की आशंका से बचाता है. हांलाकि एसआईपी का असली फायदा निचले स्तर पर निवेश करने से मिलता है.

एसआईपी के बहुत सारे लाभ हैं

1. अनुशासित निवेश

अपने धन कोष को सुरक्षित बनाये रखने के मुख्य नियम हैं- लगातार निवेश करना, अपने निवेशों पर ध्यान केन्द्रित रखना और अपने निवेश के तरीके में अनुशासन बनाये रखना. हर महीने कुछ राशि अलग निकालने से आपकी मासिक आमदनी पर अधिक अन्तर नही पड़ेगा. आपके लिये भी बड़े निवेश हेतु इकट्ठा पैसा निकालने से बेहतर होगा कि हर महीने कुछ रुपये बचाये जायें.

2. रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of Compounding)

निवेश गुरु सुझाव देते हैं कि किसी भी व्यक्ति को हमेशा जल्दी निवेश शुरु करना चाहिये. इसका एक मुख्य कारण है चक्रवृद्धि ब्याज मिलने का लाभ. चलिये इसे एक उदाहरण से समझते हैं. प्रसून(अ) 30 साल की उम्र से 1,000 रूपये हर साल बचाना शुरू करता है, वहीं प्रसूव (ब) भी इतना ही धन बचाता है लेकिन 35 साल की आयु से. जब 60 साल की उम्र में दोनों अपना निवेश किया हुआ पैसा प्राप्त करते हैं तो (अ) का फंड 12.23 लाख होता है और (ब) का केवल 7.89 लाख. इस उदाहरण में हम 8% की दर से रिटर्न मिलना मान सकते हैं. तो ये साफ है कि शुरु में 50,000 रूपये निवेश का फर्क आखिरी फंड पर 4 लाख से ज्यादा का प्रभाव डालता है. ये रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of compounding) के कारण होता है. जितना लंबा समय आप निवेश करेंगे उतना ज्यादा आपको रिटर्न मिलेगा.

अब मान लीजिये कि (अ) हर साल 10,000 निवेश करने की बजाय 35 वर्ष की उम्र से हर 5 साल बाद 50,000 निवेश करता है इस स्थिति में उसकी निवेश किया धन उतना ही रहेगा (जो कि 3 लाख है) लेकिन उसे 60 साल की उम्र में 10.43 लाख का फंड (कोष) मिलता है. इससे पता चलता है कि देर से निवेश करने में समान धन डालने पर भी व्यक्ति शुरू में मिलने वाले चक्रवृद्धि ब्याज के फायदे को खो देता है.

3. रुपये की कीमत का औसत (Rupee Cost Averaging)

ये मुख्य रूप से शेयरों में निवेश के लिये उपयोगी है. जब आप एक फंड में लगातार धन का निवेश करते हैं तो रुपये की कम कीमत के समय में आप शेयर की ज्यादा यूनिट खरीदते हैं. इस प्रकार समय के साथ आपकी प्रति शेयर या (प्रति यूनिट) औसत कीमत कम होती जाती है. यह रुपये की औसत लागत की नीति होती है जो एक लंबी अवधि के समझदार निवेश के लिये बनाई गयी है. ये सुविधा अस्थिर बाजार में निवेश के खतरे को कम करती है और बाजार के उतार चढ़ाव भरे सफर में आपको सहज बनाये रखती है.

जो लोग एसआईपी के माध्यम से निवेश करते हैं वे बाजार के उतार के समय को भी उतनी ही अच्छी तरह संभाल सकते हैं जैसे वो बाजार के चढ़ाव के समय को. एसआईपी के द्वारा आप के निवेश की औसत लागत कम होती है, तब भी जब आप बाजार के ऊंचे या नीचे सभी प्रकार के दौर से गुजरते हैं.

4. सुविधाजनक

ये निवेश का बहुत ही आसान तरीका है. आपको केवल पूरे भरे हुये नामांकन फॉर्म के साथ चेक जमा करना होगा जिससे म्यूचु्अल फंड में आपके द्वारा कही गयी तारीख पर चेक जमा हो जायेगा और अपके खाते में शेयर यूनिट आ जायेंगी .

5. अन्य लाभ

इसमें कैपिटल गेन पर लगने वाला टैक्स (जहां भी लागू होता है) निवेश करने के समय पर निर्भर होता है.

होठों की ही नहीं, घर की भी देखभाल करे वैसलीन

सर्दियों में रूखे होठों पर चमक लाने का काम आप वैसलीन पर छोड़ देती हैं. सिर्फ होठ ही क्यों, फटी एड़ियां भी वैसलीन से सॉफ्ट हो जाती हैं. पर क्या आप जानती हैं कि आप अपने घर के छोटे-मोटे काम भी वैसलीन की मदद से आसानी से कर सकती हैं.

1. पेंटिंग

अगर आप आने वाले कुछ दिनों में घर के किसी हिस्से को पेंट करने की सोच रही हैं तो वैसलीन आपकी सहायता कर सकता है. पर अगर आप खिड़कियों या दरवाजों के आस-पास पेंट करने का मन बना रही है तो एक समस्या से आपको जूझना ही पड़ेगा. पेंटिंग करते समय अनचाहे जगहों पर भी पेंट लग ही जाता है. आपकी इस समस्या का समाधान वैसलीन से हो सकता है. जिन जगहों को आप पेंट से बचाना चाहती हैं उन पर वैसलीन लगा दें. पेंटिंग के बाद और एक गिले रैग से उन जगहों को पोंछ दें. वैसलीन लगे जगहों पर पेंट नहीं चढ़ेगा.

2. डेकोरेशन

जैसा की आपको बताया गया है कि वैसलीन पर पेंट नहीं ठहरता. इसलिए वैसलीन की मदद से आप कोई भी आर्ट या डिजाइन बना सकते हैं. एक ब्रश पर वैसलीन लगाएं और जिस जगह को आप पेंट करने वाली हैं उस जगह पर अपने मन की डिजाइन बना लें. अब इसके ऊपर पेंट कर दें. जहां पर वैसलीन की परत थी वहां पेंट नहीं चढ़ेगा और एक बढ़िया सा डिजाइन भी बन जाएगा.

3. अपने लेदर के सामान चमकाएं

लेदर की चमक को बनाए रखने के लिए वैसलीन बहुत कारगर उपाय है. बूट, हैंडबैग, ग्लव्स, लेदर के फर्नीचर की भी खोई चमक लौटाने का काम आप वैसलीन पर छोड़ सकती हैं.

4. ग्लु को रखें फ्रेश वैसलीन से

ग्लु एक बार इस्तेमाल करने के बाद सूखने लगता है. सुखा ग्लु डब्बे को कई बार सील कर देता है. पर ग्लु के डब्बे पर हल्का सा वैसलीन लगा दें. यह ग्लु को सूखने से रोकेगा.

5. चरचराते दरवाजा को करे ठीक

कई बार दरवाजे और खिड़कियों से चरचराने की आवाजें आनी लगती है. इस आवाज से कई बार चिढ़चिढ़ाहट भी होती है. दरवाजें और खिड़कियों के कोनों पर वैसलीन लगाने से चरचारहट नहीं होगी.

6. औजारों को जंग से बचाएं

घर में इस्तेमाल होने वाले औजारों को लंबे समय तक छोड़ देने से उनमें जंग लगने लगती है. पर औजारो को जंग लगने से वैसलीन से बचाया जा सकता है. औजारों को स्टोर में रखने से पहले उन पर वैसलीन की एक परत लगा दें, इससे आपके औजार लंबे समय तक जंग से बचे रहेंगे.

7. लकड़ी के फर्नीचर पर बने चाय या पानी के दाग

अगर आपके कीमती लकड़ी पर भी चाय या कॉफी कप के रिंग्स बन गए हैं, तो वैसलीन उसे भी ठीक कर सकता है. फर्नीचर पर बने चाय के दाग पर वैसलीन की एक परत लगाकर 24 घंटों के लिए छोड़ दें. सुखे कपड़े से पोछ लें. इससे दाग भी चले जाएंगे और फर्नीचर पॉलीश भी हो जाएगा.

8. चींटियों की रोकथाम

वैसलीन से आप चींटियों की रोकथाम भी कर सकती हैं. दरवाजों की चौखट पर, खिड़कियों पर और घर में चींटियों के घुसने के हर संभावित जगह पर वैसलीन की एक परत लगा दें. जब चींटियां उसमें फंस जाएं तो पूरी परत को हटा दें.

रेगिस्तान में बसा खूबसूरत शहर दुबई

हमेशा से ही दुबई घूमने की इच्छा थी, ऐसे में वहां जाने का मौका ‘दुबई टूरिज्म’ से मिलना किसी सपने से कम नहीं था और हो भी क्यों न? संयुक्त अरब अमिरात में बसा एक ऐसा शहर जिसे पर्यटन के हिसाब से विकसित किया गया है, यहां की अधिकारिक भाषा अरबी है,पर उर्दू, फारसी, हिंदी, मलयालम, बंगला, तमिल, चीनी आदि कई भाषाएं बोली जाती हैं. अंग्रेजी यहां की सामान्य भाषा है. यही वजह है कि यहां हर वर्ग और समुदाय के लोग खुले दिल से विचरण कर सकते है. अपना व्यवसाय कर सकते हैं.

अगर विश्व पटल पर देखें, तो ज्यादातर मुस्लिम देशों में धर्म को अधिक महत्व दिया जाता है, लोगों का विकास हो या न हो इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. पर सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि यहां हर काम में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिली. रात हो या दिन महिलाएं गाड़ी चलाने और घूमने के लिए आजाद हैं. यहां की नाईट लाइफ काफी अच्छी है, ग्लैमर पसंद महिलाएं काम के बाद वेस्टर्न पोशाक में पब और रेस्तरां में जाती हैं और ऐन्जॉय करती हैं. यहां धर्म को परे रखकर विकास पर अधिक ध्यान दिया गया है और यही दुबई की खासियत है. हालांकि दुबई का विकास तेल बेचकर हुआ है. पर इस बात की तारीफ करनी होगी कि उस पैसे का उपयोग इस मरुस्थल के विकास और यहां के लोगों की उन्नति के लिए किया गया प्रयास है. तभी तो सारे देश के लोग यहां आना पसंद करते हैं. यहां सभी धर्म और समुदाय के लोग मिलकर रहते हैं. दक्षिण एशियाई देशों के लिए ये शहर कमाई का खास केंद्र है.

मरुस्थल में ऐसे आधुनिक विकास की कल्पना तो शायद ही की जा सकती है. करीब तीन घंटे की हवाई यात्रा के बाद जब दुबई पहुंची, तो रात को पूरा शहर मानो रौशनी में नहाया हुआ था. जहां नजर पड़ती, बड़ी-बड़ी गगनचुंबी कांच की इमारतें और उससे निकलती रौशनी जिससे पूरा शहर जगमगा रहा था. इसकी वजह पूछने पर पता चला कि दुबई अरेबियन रेगिस्तान के भीतर है, इसलिए यहां बारिश कम होती है और यहां का मौसम गर्म और शुष्क रहता है. यहां बहुत गर्मी पड़ती है.

गर्मी के मौसम में यहां का दिन का तापमान 40 से 49 डीग्री तक पहुंच जाता है, जबकि रात का तापमान 30 डिग्री तक रहता है. हमेशा धूल भरी आंधी चलने की वजह से यहां के दफ्तर और घरों में ‘एसी’ का खूब प्रयोग होता है, इसलिए अधिकतर इमारतें कांच की बनी होती है. सर्दी का मौसम बहुत कम है आजकल विज्ञान की सहायता से कुछ पेड़ पौधों को लगाने की वजह से बारिश यहां भी हो जाया करती है. बारिश का मजा यहां के लोग खूब उठाते हैं और लॉन्ग ड्राइव पर निकल कर किसी मॉल या पार्क में घूमने चले जाते हैं.

दुबई एअरपोर्ट से आगे बढ़ते ही सुंदर साफ सुथरी सड़कें से गुजरते हुए करीब आधे घंटे में हम होटल रोव डाउनटाउन पहुंचे. यह दुबई मॉल के एकदम करीब था. होटल में घुसते ही स्माइली वाले कूकीज से हमारा स्वागत किया गया. अगली सुबह ट्रिप शुरू होने वाला था इसलिए हम खाना खाकर जल्दी सो गए. सुबह बारिश की फुहार से दिन शुरू हुआ, मरुस्थल में बारिश की कल्पना मेरी समझ से परे थी. करीब एक घंटे की रास्ता गाड़ी से तयकर हम ‘मिरेकल गार्डन’ यानि फूलों का एक सुंदर सा बगीचा पहुंचे. दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में फूलों का बगीचा किसी आश्चर्य से कम नहीं था.

रंग-बिरंगे फूलों से बनी आकृतियां देखते ही बनती थी. यहां आने वाले पर्यटक चाहे वो वयस्क हो या बच्चे सभी इसका आनंद उठा रहे थे. वहां से निकलकर हम बटरफ्लाई गार्डन पहुंचे जहां तितलियों को जंगल जैसा माहौल बनाकर रखा जाता है. सैकड़ों की संख्या में तितलियां आस-पास मंडराती हुई सहज ही दिखाई पड़ती थी.

करीब 2 घंटे गार्डन में बिताने के बाद हम बढ़ चले अगले डेस्टिनेशन ‘आई एम जी वर्ल्डस ऑफ एडवेंचर’ की ओर. 5 मिलियन वर्ग फुट में बना यह विश्व का सबसे बड़ा थीम पार्क है. अपने आप में अनोखे इस पार्क में 20 से भी ज्यादा राइड्स थे. यहां कार्टून नेटवर्क के कई कार्टून जैसे पॉवर पफ गर्ल्स, स्पाइडरमैन, बेनटेन, कैप्टेन अमेरिका, आयरन मैन, हल्क आदि के आकर्षक राइड्स भी थे.

इसके अलावा विलुप्त हो चुके डायनासोर का मूवमेंट चौकाने वाला था. बच्चों और वयस्कों के लिए ये स्थान खास आकर्षण का केंद्र था. सिर्फ 4 घंटे में पूरे पार्क का आनंद उठाया जा सकता है. इसके अलावा वहां शौपिंग और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था थी. इसके अलावा दुबई की एक और खास बात है कि यहां पर्यटक हर तरह के वेज और नॉन-वेज फूड का लुत्फ उठा सकते हैं.

वहां से हम दुबई मॉल गए, जो दुनियभर में काफी मश्हूर है. यह मॉल विश्व की सबसे ऊंची इमारतों में शामिल बुर्ज खलीफा का हिस्सा है. इस मॉल में आइसस्केटिंग, एक्वेरियम, दुकानें, फूड कोर्ट आदि प्रमुख घूमने की जगह है. यहां हर जगह जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है, अगर आपका बजट कम है तो आप बाहर से भी एक्वरियम देख सकते हैं. हर साल करीब 92 मिलियन लोग यहां घूमने आते हैं. हालांकि वहां की सैर अनोखी थी पर हम चलते-चलते थक गए थे, पर वहां से लौटने की इच्छा नहीं हो रही थी.

शाम हो चुकी थी और हमें भूख भी लग रही थी इसलिए हमने वापस कैपन्ना नुओवा होटल का रूख किया. समुद्री तट पर स्थापित ये होटल इटालियन और कॉन्टिनेंटल फूड के लिए फेमस है. यहां बहुत सारे कपल्स हनीमून मनाने आते हैं. समुद्री तट की ठंडी हवा में कॉन्टिनेंटल फूड खाने का अलग ही मजा था. इसके बाद होटल लौटना था और अगले दिन की तैयारी करनी थी. अगले दिन हमें थी दुबई की सबसे आकर्षक और खुबसूरत डेस्टिनेशन ‘अटलांटिस द पाम’ जाना था.

‘अटलांटिस द पाम’ खजूर के पत्ते के आकर की रेगिस्तान में समुद्र के ऊपर बनाई गई अदभुत आकृति है. यह हवाई यात्रा के दौरान भी दिखाई देती है. यहां की सुरक्षा बहुत कड़ी थी, ताकि सैलानियों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करनी पड़े. यहां डॉलफिन बे, एक्वेरियम वाटर पार्क, द लॉस्ट चैम्बर्स एक्वेरियम, सी लायन पॉइंट खास है. यहां पूरे क्षेत्र में 250 प्रजाति की 65 हजार मछलियां हैं जिन्हें समुद्री वातावरण में रखा गया है.

यहां से आगे बढ़ने पर हमें बॉलीवुड पार्क मिला जहां बॉलीवुड के अधिकतर कलाकार अपने फिल्म के प्रमोशन के लिए आते हैं. यहां पर हर दिवार पर बॉलीवुड फिल्मों के पोस्टर और शाम को बॉलीवुड फिल्मों पर होने वाली लाइट एंड साउंड शो की झलक आकर्षक थी. इसके अलावा बच्चों के लिए खास लिगो लैंड और ग्रीन प्लेनेट आदि भी आकर्षक थे.

दुबई में घूमना महंगा है लेकिन अगर आप ऑनलाइन सर्च करेंगे तो छुट्टियों के मौसम में कई सस्ते और आकर्षक ऑप्शन भी आपको मिल जाएंगे है. इतना ही नहीं यहां कई ‘सी बिचेस’ ऐसे भी है जहां आप घूम सकते हैं और वहां की साफ सुथरे परिवेश का आनंद उठा सकते हैं. दुबई की सैर यादगार रही.

सुंदर पिचाई : दिग्गज सीईओ

देश में तेजी से बढ़ती डिजिटलीकरण की प्रक्रिया उन लोगों के उल्लेख के बगैर अधूरी है जिन्होंने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई है. इन्हीं में से एक नाम है पी सुंदरराजन का जिन्हें प्यार से सुंदर पिचाई कहा जाता है. इस समय वे इंटरनैट कंपनी गूगल के सीईओ हैं. बेशक आज सुंदर पिचाई कैरियर की बेहतरीन ऊंचाई पर हैं पर उन के जीवन की कहानी किसी ऐसे पढ़ेलिखे किशोर से अलग नहीं है जिस की आंखों में परिवार, समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक सपना होता है.

जनवरी, 2017 में जब वे भारत दौरे पर थे तो उस दौरान वे आईआईटी खड़गपुर भी गए थे, जहां कभी उन्होंने पढ़ाई की थी. वहां के छात्रों से उन्होंने कई अनुभव साझा किए और अपनी कालेज लाइफ के दिलचस्प किस्से उन्हें बताए. उन्होंने बताया कि एक समय था जब उन के घर में न टीवी था, न कार और न ही टैलीफोन.

तकनीक से उन का परिचय पहली बार 1984 में लैंडलाइन फोन से हुआ था, जो उन के घर पर लगाया गया था. तब सुंदर महज 12 साल के थे लेकिन उस टैलीफोन की बदौलत उन्हें दर्जनों लोगों के टैलीफोन नंबर मुंहजबानी याद हो गए थे. इस से उन्हें तकनीक को ले कर अपने लगाव का भी पता चला था. हालांकि इस में उन के पिता का भी योगदान है जो चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) स्थित एक ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे.

सुंदर का परिवार 2 कमरे के मकान में रहता था और उस में सुंदर की पढ़ाई के लिए अलग से कोई कमरा नहीं था. वे ड्राइंगरूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे, पर इन अभावों के बावजूद सुंदर सिर्फ 17 साल की उम्र में आईआईटी की परीक्षा पास कर आईआईटी, खड़गपुर में दाखिला पाने में सफल रहे. वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) पूरी करने के दौरान हर बैच में सुंदर टौपर रहे.

1993 में फाइनल परीक्षा में अपने बैच में टौप करने के साथ ही उन्होंने सिल्वर मैडल हासिल किया. उस के बाद स्कौलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए वे 1995 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए.

स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गैस्ट रहते हुए पैसे बचाने के लिए उन्होंने कई पुरानी चीजें इस्तेमाल कीं, लेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं किया. स्टैनफोर्ड में सुंदर पीएचडी करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो न सका. इसी बीच उन्होंने अमेरिका की सिलीकौन वैली में सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी अप्लाइड मैटीरियल में बतौर इंजीनियर और प्रोडक्ट मैनेजर  काम शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें यह नौकरी पसंद नहीं आई, इसलिए उसे बीच में छोड़ कर व्हार्टन स्कूल औफ द यूनिवर्सिटी औफ पेंसिलवेनिया एमबीए करने चले गए. व्हार्टन में पिचाई को साइबर स्कौलर और पामर स्कौलर उपाधियों से सम्मानित किया गया. एमबीए करते ही वे मैंकिजी ऐंड कंपनी में प्रबंध सलाहकार चुन लिए गए.

सफर गूगल का

सुंदर 1 अप्रैल, 2004 को गूगल में आए. यहां उन का पहला प्रोजैक्ट प्रोडक्ट मैनेजमैंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बना कर दूसरे ब्राउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था. इस के बाद उन्होंने गूगल गीयर, गूगल पैक जैसे उत्पाद बनाए.

गूगल टूलबार पर काम करते हुए ही सुंदर को यह आइडिया आया था कि गूगल का अपना ब्राउजर होना चाहिए. ब्राउजर असल में इंटरनैट चलाने वाले माध्यम होते हैं जैसे इंटरनैट ऐक्सप्लोरर, फायर फौक्स, मोजिला आदि. हालांकि उस समय गूगल के सीईओ एरिक श्मिट को यह आइडिया पसंद नहीं आया, क्योंकि उन्हें यह एक महंगा काम लगा. लेकिन बाद में सुंदर ने गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज और सरगेई ब्रिन को गूगल का अपना वैब ब्राउजर बनाने के लिए राजी कर लिया.

वर्ष 2008 में गूगल क्रोम के नाम से यह ब्राउजर बन कर दुनिया के सामने आया और इंटरनैट की दुनिया में छा गया. आज सब से ज्यादा इसी का इस्तेमाल होता है.

सुंदर के इस योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2008 में पहले वाइस प्रैसिडैंट बनाया गया, उस के बाद 2012 में वे सीनियर वाइस प्रैसिडैंट (क्रोम और ऐप्स) बनाए गए. वर्ष 2013 में पिचाईर् को गूगल में ऐंड्रौयड शाखा का मुखिया बनाया गया, जबकि 2014 में उन्हें प्रोडैक्ट चीफ घोषित किया गया.

वर्ष 2015 में जब गूगल ने एक और कंपनी अल्फाबेट बनाई तो कामकाज के बढ़ते दायरे को संभालने के लिए 10 अगस्त को सुंदर पिचाई कंपनी के सीआईओ बना दिए गए. गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसौफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था, लेकिन बाद में उन की जगह सत्य नडेला को चुना गया. बीच में ट्विटर ने भी उन को अपने पाले में करने का प्रयास किया था, लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 मिलियन डौलर का बोनस दे कर उन को कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया.

नहीं भूलेंगे वे दिन

खुद पिचाई को अपनी किशोरावस्था और जवानी के दिनों की यादें सम्मोहित करती हैं. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों से उन का नाता कभी नहीं टूटता और वे जबतब इंटरनैट के जरिए उन से अपने जीवन और कैरियर की बातें साझा करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि चेन्नई में स्कूली पढ़ाई के दौरान उन्हें क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था. हाईस्कूल क्रिकेट टीम में कप्तानी करते हुए सुंदर ने तमिलनाडु राज्य का क्षेत्रीय टूरनामैंट जीता था.

अपनी तेज याद्दाश्त के कारण भी पिचाई जाने जाते हैं. करीबी लोग उन से 1984 के दौर से भूले हुए टैलीफोन नंबर पूछते हैं, जो बता कर सुंदर उन्हें अचंभित कर देते हैं.

हां, मैं ने भी बंक मारा

आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को सुंदर अपने कालेज जीवन की कई ऐसी बातें भी बता चुके हैं जिन के बारे में सुन कर विश्वास नहीं होता. जैसे, एक बार उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया कि छात्र जीवन में उन्होंने कई बार कालेज की कक्षाओं से बंक मारा. अकसर सुबह की क्लास में से वे गायब हो जाते थे.

सुंदर कहते हैं कि कालेज में पढ़ाई के दौरान ऐसा करना सही लगता था, लेकिन जीवन में कुछ बनना है. इस ध्येय को सामने रखते हुए उन्होंने मेहनत में कोई कमी नहीं आने दी. सुंदर को हिंदी नहीं आती थी, लेकिन स्कूल में हिंदी के बारे में जो कुछ सीखा था, उस से काम चलाने की कोशिश की, जिस में एकाध बार कुछ गड़बड़ी भी हो गई. जैसे, कालेज में अगर साथी छात्र मजे में एकदूसरे को बुलाने के लिए ‘अबे…’ कह कर गाली देते थे, तो सुंदर को लगता था कि यह एक तरह का संबोधन है.

एक बार खुद सुंदर ने इस का इस्तेमाल किया. एक बार कालेज मेस में अपने जानकार को जाते हुए देखा, तो उसे बुलाने के लिए आवाज लगाई ‘अबे…’ बाद में उन्हें पता चला कि यह तो गाली है. इस से वहां बैठे लोग बुरा मान गए और कुछ देर के लिए मैस बंद कर दिया गया.

कालेज मेस में खाने को ले कर सुंदर से जो मजेदार सवालजवाब किए जाते थे, उन में से खुद सुंदर को एक काफी पसंद आता था. यारदोस्त वहां अकसर सुंदर से पूछते थे. ‘बताओ, यह दाल है या सांबर,’ सुंदर कभी इस का सही उत्तर नहीं दे पाते थे.

आसान नहीं था गर्लफ्रैंड से मिलना

सुंदर पिचाई अपनी पत्नी यानी अंजलि से आईआईटी खड़गपुर में ही मिले थे. अंजलि वहीं की छात्रा थीं, पर अंजलि से मिलना आसान नहीं था. तब घर पर कंप्यूटर नहीं था और स्मार्टफोन भी नहीं होते थे. अंजलि आईआईटी के गर्ल्स होस्टल में रहती थी, लेकिन उस से मिलने के लिए होस्टल में जा कर वहां तैनात कर्मचारी से मिन्नतें करनी पड़ती थीं.

वह कर्मचारी तेज आवाज में पुकारता था, ‘अंजलि, आप से मिलने सुंदर आया है.’

यह आवाज सुन कर हरकोई जान जाता था कि कौन किस से मिलने आया है. उस समय इस से बड़ी झिझक होती थी. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को यह किस्सा सुनाते हुए सुंदर ने कहा था कि आज के मोबाइल युग में किसी से दिल की बात कहना कितना आसान हो गया है.

जीवन और कैरियर में सफलता को ले कर भी सुंदर पिचाई का नजरिया बहुत स्पष्ट है. उन का कहना है कि हो सकता है आप कभीकभी फेल भी हो जाएं, पर इस से घबराना नहीं चाहिए. इस के लिए वे खुद गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज का विचार सामने रखते हैं, जो कहा करते हैं कि आप को बड़े काम करने का लक्ष्य रखना चाहिए. ऐसे में यदि आप कभी नाकाम भी हो गए, तो आप कुछ ढंग का सृजित कर पाएंगे जिस से आप काफी कुछ सीखेंगे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें