लड़कियां भी सीखें इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर का काम

अंजलि की ग्रैजुएशन की परीक्षा चल रही थी. एक दिन वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी कि अचानक बिजली गुल हो गई. उस ने इनवर्टर औन किया तो भी घर में बिजली नहीं आई, जबकि पड़ोस के घरों में बिजली थी. उस समय रात के 10 बज रहे थे. किसी इलैक्ट्रीशियन को बुलाना भी संभव नहीं था. अंजलि ने जैसेतैसे मोमबत्ती की रोशनी में परीक्षा की तैयारी की और दूसरे दिन परीक्षा दे पाई.

परीक्षा के बाद अंजलि ने अपनी मां से कहा कि मुझे भी बिजली का काम सीखना है ताकि ऐसी स्थिति आने पर छोटेमोटे फौल्ट खुद ठीक कर पाऊं.

अंजलि की मां ने कहा कि तुम लड़की हो कर बिजली का काम कैसे सीख पाओगी, लेकिन अंजलि ने कहा कि मां आज तमाम लड़कियां इलैक्ट्रिक और इलैक्ट्रौनिक्स में आईटीआई, पौलिटैक्निक व इंजीनियरिंग की डिग्रियां ले रही हैं. सभी डिग्रियों में यही सारी चीजें सिखाई जाती हैं तो मैं क्यों नहीं सीख सकती.

अंजलि की मां ने उस के पापा से कह कर अंजलि को बिजली का काम सीखने की इच्छा से अवगत करा दिया.

अंजलि के पापा को पहले तो यह बात बड़ी अजीब लगी, लेकिन जब उन्होंने रात में मेनस्विच का फ्यूज उड़ जाने की वजह से परीक्षा की तैयारी में बाधा आने के बारे में सुना तो उन्हें भी लगा कि अंजलि भले ही उन की इकलौती लड़की है, लेकिन उसे बिजली का काम सिखाने में हर्ज नहीं. यह छोटीमोटी समस्याओं से नजात दिलाने में कारगर साबित होगा.

उन्होंने अपने नजदीकी इलैक्ट्रीशियन से अंजलि को बिजली का काम सिखाने के लिए राजी कर लिया. उस ने 2 महीने की छुट्टियों में इलैक्ट्रीशियन से बिजली के छोटेमोटे काम सीख लिए.

इस के बाद घर में जब भी बिजली का छोटामोटा फौल्ट होता या कोई औैर समस्या होती तो बिना इलैक्ट्रीशियन को बुलाए उसे वह खुद ठीक कर लेती.

अंजलि ने जो निर्णय लिया वह काबिलेतारीफ था. उस ने न केवल लड़कियों पर लगे इस आक्षेप को दूर किया कि लड़कियां बिजली का काम नहीं सीख या कर सकतीं बल्कि यह भी साबित कर दिया कि कोई भी काम सीखना कठिन नहीं है.

अकसर घरों में बिजली की जो समस्याएं देखी जाती हैं उन में मेन स्विच का फ्यूज का उड़ जाना, तार में शौर्टसर्किट होना, विद्युत उपकरणों का फ्यूज हो जाना, पंखे का रैग्यूलेटर खराब होना, ट्यूबलाइट का स्टार्टर खराब होना, प्रैस आदि में छोटेमोटे फौल्ट होना आम बात होती है. इस के लिए हम इलैक्ट्रीशियन के पास जाते हैं तो वह मनमाफिक पैसे की मांग करता है, जबकि काम कुछ भी नहीं होता. ऐसे में अगर घर के किशोर थोड़ी हिम्मत करें तो बात बन सकती है.

बिजली के अलावा जो चीज महत्त्वपूर्ण है, वह है वाटर सप्लाई, जिस के माध्यम से घर के अलगअलग हिस्सों में न केवल पानी पहुंचाया जाता है बल्कि सीवर, शौचालय, आरओ सिस्टम इत्यादि महत्त्वपूर्ण चीजें भी इन्हीं से जुड़ी होती हैं. ऐसे में अगर अचानक पानी के पाइप में कहीं लीकेज हो जाए तो उस दिन नहानेधोने से ले कर शौच जाने व पीने के पानी तक की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है.

अचानक आई इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए प्लंबर के पास भागने के बजाय अगर थोड़ाबहुत काम सीख लिया जाए तो समस्या का समाधान घर पर ही सस्ते में हो सकता है.

खाली समय में सीखें काम

इलैक्ट्रिक व प्लंबरिंग से जुड़ी छोटीमोटी परेशानियों से नजात पाने के लिए अगर अपने खाली समय का उपयोग किया जाए और किसी ऐक्सपर्ट इलैक्ट्रीशियन या प्लंबर के साथ काम सीखा जाए तो यह फायदेमंद साबित हो सकता है. प्लंबर का काम करने वाले लोगों को अकसर काम के दौरान सहायक की जरूरत होती है, जो उन के कार्यों  में सहयोग करते रहते हैं. इन लोगों से संपर्क कर प्लंबरिंग व इलैक्ट्रिक का काम सीखा जा सकता है.

बिजली मिस्तरी संजय रावत का कहना है कि अकसर घरों में बिजली की वायरिंग, बिजली के उपकरणों की फिटिंग के दौरान ऐक्सपर्ट के रूप में अकेले काम नहीं किया जा सकता है. इसलिए हमें सहायक की आवश्यकता होती है. बिजली मरम्मत के कार्यों की जानकारी न होने के बावजूद इन्हें अच्छीखासी राशि का भुगतान भी करना पड़ता है. अकसर हमारे साथ सीखने वाले लोग कुछ ही दिन में इलैक्ट्रिक का काम करतेकरते ऐक्सपर्ट बन जाते हैं और कमाई भी करने लगते हैं.

इसी तरह प्लंबरिंग से जुड़े फौल्ट जैसे छोटेमोटे कार्यों को किसी प्लंबर का सहायक बन कर सीखा जा सकता है और इस से जहां घर की छोटीमोटी समस्या सुलझती है वहीं आप आसपास काम कर कमाई भी कर सकते हैं. बिजली मिस्तरी या प्लंबर 400-500 रुपए तक ले लेता है जबकि इन छोटेमोटे कार्यों के बारे में खुद जानकारी रखी जाए तो अनावश्यक पैसे के खर्च से बचा जा सकता है.

कोई भी सीख सकता है काम

यह जरूरी नहीं कि बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े मरम्मत के कार्य करने की क्षमता सिर्फ लड़कों में ही होती है, बल्कि लड़कियां भी इस तरह के कार्य आसानी से कर सकती हैं. बिजली मरम्मत का कार्य सीखने वाली लड़की नाजमीन का कहना है कि वह इलैक्ट्रिक ट्रेड से आईटीआई का कोर्स कर रही है. जब उस ने इस कोर्स को करने का निर्णय लिया तो उस के घर वालों ने उस का विरोध किया, लेकिन नाजमीन ने सब को विश्वास में ले कर इस कोर्स में दाखिला लिया. वह आईटीआई के अंतिम वर्ष में है. वह न केवल बिजली के खंभों पर चढ़ कर बिजली मरम्मत का कार्य कर लेती है बल्कि घरों में वायरिंग व छोटेबड़े फौल्ट दूर करने में भी निपुण है.

लड़कियां इलैक्ट्रीशियन, प्लंबर से तो काम सीख ही सकती हैं इस के अलावा सरकारी संस्थान कम समय के बिजली व प्लंबरिंग से जुड़े ट्रेनिंग कार्यक्रम आयोजित करते हैं जहां से न केवल निशुल्क ट्रेनिंग ली जा सकती है बल्कि इस के लिए सरकारी छात्रवृत्ति भी प्रदान की जाती है.

भारत सरकार व राज्य सरकार कारीगरों से जुड़ी ट्रेनिंग स्थानीय लैवल पर उपलब्ध करा रही है. भारत सरकार द्वारा कौशल विकास व उद्यमिता मंत्रालय, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, नैशनल स्किल डैवलपमैंट कौरपोरेशन सहित तमाम विभागों व मंत्रालयों द्वारा एनजीओ व ट्रेनिंग देने वाली कंपनियों के माध्यम से प्रशिक्षित किए जाने का काम किया जा रहा है, जो न केवल निशुल्क होता है बल्कि टे्रनिंग पूरी होने के बाद इस का प्रमाणपत्र वजीफा भी दिया जाता है. ऐसे में ट्रेनिंग के इच्छुक लड़केलड़कियां इलैक्ट्रीशियन व प्लंबरिंग का काम सीखने के लिए इन से संपर्क कर सकते हैं.                                 

घर में रखें टूलबौक्स

बिजली या प्लंबरिंग से जुड़े कार्य या मरम्मत के लिए तमाम तरह के उपकरणों या टूल्स की जरूरत पड़ती है. इन टूल्स के बिना कोई भी ऐक्सपर्ट मरम्मत का कार्य नहीं कर सकता इसलिए अगर आप ने इलैक्ट्रीशियन या प्लंबरिंग का काम सीख लिया है तो इस के साथ रिपेयर के लिए काम आने वाले आवश्यक टूल्स भी घर पर रखना न भूलें.

बिजली मरम्मत में काम आने वाले प्रमुख टूल्स

बिजली उपकरणों की मरम्मत करने के लिए सब से जरूरी टूल के रूप में ग्लव्स का इस्तेमाल होता है. ये उन चीजों से बने होते हैं जिन में अगर गलती से बिजली का नंगा तार छू जाए तो झटका लगने की आशंका नहीं होती. इस के अलावा बोर्ड, स्विच या बिजली के उपकरणों के पेच कसने के लिए अलगअलग साइज के स्क्रूड्राइवर सैट की जरूरत पड़ती है.

बिजली मरम्मत में काम आने वाला एक महत्त्वपूर्ण टूल प्लायर होता है जिस के द्वारा तारों को आपस में जोड़ने, ऐंठने का काम किया जाता है. वहीं नोज प्लायर के द्वारा दबाने व चैनल लौक  के द्वारा भी लौक किए जाने का काम किया जाता है. बिजली के अन्य कुछ टूल्स जिन का महत्त्वपूर्ण उपयोग होता है, उन में वायर कटर, टैस्टर, अलगअलग साइज के रिंच, निडिलनोज प्लायर, स्ट्रिपर, रेजर चाकू, रोटो स्प्रिट, पाइप रीमर इलैक्ट्रिक लेबल, अर्थ मैग्नेट टेप, वोल्टेज डिटैक्टर, सीटरौकसा, मैग्नेटिक नट ड्राइवर, इंसूलेटेड स्कू्रड्राइवर सैट, स्क्रूहोल्डरसैट, नाकआउट सैट, टोन जनरेटर, टैगआउट किट, ड्रिल बिट्स, लैड हैड, लैंप, सहित जरूरत पर आने वाले तमाम टूल्स का उपयोग किया जाता है.

आप के घर में जिस तरह के वायर या वायरिंग का उपयोग किया गया है इस के लिए जरूरी टूल्स को अपने घर पर जरूर रखना चाहिए जिस से अचानक आने वाले किसी फौल्ट से निबटा जा सके.

प्लंबरिंग के काम में आने वाले जरूरी उपकरण

प्लंबरिंग में अकसर जो पाइप ब्लौकेज, लीकेज या टूटफूट की समस्या देखी गईर् है, इस के हिसाब से इन की मरम्मत के लिए जिन महत्त्वपूर्ण उपकरणों की जरूरत पड़ सकती है उन में एडजस्टेबल रिंच, टेफलान टेप, पाइप कटर, पाइप लुब्रिकैंट्स और ब्रश, वैसिन रिंच हैं. इन में पाइप कटर द्वारा आवश्यकता पड़ने पर पाइप को काट कर जोड़ने, टेप के माध्यम से नापने का काम किया जा सकता है. इस के अलावा भी तमाम तरह के टूल्स की जरूरत पड़ सकती है, जिस में इनसाइड और आउटसाइड पाइप रीमर, इलैक्ट्रिक ड्रिल, घर में लगी टोंटियों के साइज की दूसरी टोंटियां इत्यादि हैं.     

एसआईपी के बारे में जानती हैं आप

एसआईपी आपको एक म्युचुअल फंड में एक साथ 5,000 रूपये के निवेश की बजाय 500 रूपये के 10 बंटे हुये निवेश की सुविधा देता है. ये आपको एक बार में भारी पैसा निवेश करने की जगह म्यूचुअल फंड में कम अवधि का (मासिक या त्रैमासिक) निवेश करने की आजादी देता है. इससे आप अपनी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को प्रभावित किये बिना म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. एसआईपी कैसे काम करता है ये बेहतर समझने के लिये आपको Rupee cost averaging और धन के जुङते रहने की शक्ति (power of compounding) को समझना जरूरी है.

एसआईपी एक औसत आदमी की पहुंच के अंदर म्यूचुअल फंड निवेश को ले आया है क्योंकि यह उन तंग बजट लोगों को भी निवेश करने योग्य बनाता है जो एक बार में बड़ा निवेश करने के बजाय 500 या 1,000 रूपये नियमित रूप से निवेश कर सकते हैं.

एसआईपी के माध्यम से छोटी छोटी बचत करना शायद पहली बार में आकर्षक न लगे लेकिन ये निवेशकों में बचत की आदत डालता है और बढ़ते वर्षों में इससे आपको अच्छा-खासा प्रतिलाभ (रिटर्न) मिलेता है. 1,000 रुपये महीने का एक एसआईपी का धन 9% की दर से 10 वर्षों में बढकर 6.69 लाख रूपये, 30 साल में 17.38 लाख रूपये और 40 साल में 44.20 लाख तक हो सकता है.

यही नही धनी लोगों को भी ये गलत समय और गलत जगह पर निवेश करने की आशंका से बचाता है. हांलाकि एसआईपी का असली फायदा निचले स्तर पर निवेश करने से मिलता है.

एसआईपी के बहुत सारे लाभ हैं

1. अनुशासित निवेश

अपने धन कोष को सुरक्षित बनाये रखने के मुख्य नियम हैं- लगातार निवेश करना, अपने निवेशों पर ध्यान केन्द्रित रखना और अपने निवेश के तरीके में अनुशासन बनाये रखना. हर महीने कुछ राशि अलग निकालने से आपकी मासिक आमदनी पर अधिक अन्तर नही पड़ेगा. आपके लिये भी बड़े निवेश हेतु इकट्ठा पैसा निकालने से बेहतर होगा कि हर महीने कुछ रुपये बचाये जायें.

2. रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of Compounding)

निवेश गुरु सुझाव देते हैं कि किसी भी व्यक्ति को हमेशा जल्दी निवेश शुरु करना चाहिये. इसका एक मुख्य कारण है चक्रवृद्धि ब्याज मिलने का लाभ. चलिये इसे एक उदाहरण से समझते हैं. प्रसून(अ) 30 साल की उम्र से 1,000 रूपये हर साल बचाना शुरू करता है, वहीं प्रसूव (ब) भी इतना ही धन बचाता है लेकिन 35 साल की आयु से. जब 60 साल की उम्र में दोनों अपना निवेश किया हुआ पैसा प्राप्त करते हैं तो (अ) का फंड 12.23 लाख होता है और (ब) का केवल 7.89 लाख. इस उदाहरण में हम 8% की दर से रिटर्न मिलना मान सकते हैं. तो ये साफ है कि शुरु में 50,000 रूपये निवेश का फर्क आखिरी फंड पर 4 लाख से ज्यादा का प्रभाव डालता है. ये रुपये के जुड़ते रहने की शक्ति (Power of compounding) के कारण होता है. जितना लंबा समय आप निवेश करेंगे उतना ज्यादा आपको रिटर्न मिलेगा.

अब मान लीजिये कि (अ) हर साल 10,000 निवेश करने की बजाय 35 वर्ष की उम्र से हर 5 साल बाद 50,000 निवेश करता है इस स्थिति में उसकी निवेश किया धन उतना ही रहेगा (जो कि 3 लाख है) लेकिन उसे 60 साल की उम्र में 10.43 लाख का फंड (कोष) मिलता है. इससे पता चलता है कि देर से निवेश करने में समान धन डालने पर भी व्यक्ति शुरू में मिलने वाले चक्रवृद्धि ब्याज के फायदे को खो देता है.

3. रुपये की कीमत का औसत (Rupee Cost Averaging)

ये मुख्य रूप से शेयरों में निवेश के लिये उपयोगी है. जब आप एक फंड में लगातार धन का निवेश करते हैं तो रुपये की कम कीमत के समय में आप शेयर की ज्यादा यूनिट खरीदते हैं. इस प्रकार समय के साथ आपकी प्रति शेयर या (प्रति यूनिट) औसत कीमत कम होती जाती है. यह रुपये की औसत लागत की नीति होती है जो एक लंबी अवधि के समझदार निवेश के लिये बनाई गयी है. ये सुविधा अस्थिर बाजार में निवेश के खतरे को कम करती है और बाजार के उतार चढ़ाव भरे सफर में आपको सहज बनाये रखती है.

जो लोग एसआईपी के माध्यम से निवेश करते हैं वे बाजार के उतार के समय को भी उतनी ही अच्छी तरह संभाल सकते हैं जैसे वो बाजार के चढ़ाव के समय को. एसआईपी के द्वारा आप के निवेश की औसत लागत कम होती है, तब भी जब आप बाजार के ऊंचे या नीचे सभी प्रकार के दौर से गुजरते हैं.

4. सुविधाजनक

ये निवेश का बहुत ही आसान तरीका है. आपको केवल पूरे भरे हुये नामांकन फॉर्म के साथ चेक जमा करना होगा जिससे म्यूचु्अल फंड में आपके द्वारा कही गयी तारीख पर चेक जमा हो जायेगा और अपके खाते में शेयर यूनिट आ जायेंगी .

5. अन्य लाभ

इसमें कैपिटल गेन पर लगने वाला टैक्स (जहां भी लागू होता है) निवेश करने के समय पर निर्भर होता है.

होठों की ही नहीं, घर की भी देखभाल करे वैसलीन

सर्दियों में रूखे होठों पर चमक लाने का काम आप वैसलीन पर छोड़ देती हैं. सिर्फ होठ ही क्यों, फटी एड़ियां भी वैसलीन से सॉफ्ट हो जाती हैं. पर क्या आप जानती हैं कि आप अपने घर के छोटे-मोटे काम भी वैसलीन की मदद से आसानी से कर सकती हैं.

1. पेंटिंग

अगर आप आने वाले कुछ दिनों में घर के किसी हिस्से को पेंट करने की सोच रही हैं तो वैसलीन आपकी सहायता कर सकता है. पर अगर आप खिड़कियों या दरवाजों के आस-पास पेंट करने का मन बना रही है तो एक समस्या से आपको जूझना ही पड़ेगा. पेंटिंग करते समय अनचाहे जगहों पर भी पेंट लग ही जाता है. आपकी इस समस्या का समाधान वैसलीन से हो सकता है. जिन जगहों को आप पेंट से बचाना चाहती हैं उन पर वैसलीन लगा दें. पेंटिंग के बाद और एक गिले रैग से उन जगहों को पोंछ दें. वैसलीन लगे जगहों पर पेंट नहीं चढ़ेगा.

2. डेकोरेशन

जैसा की आपको बताया गया है कि वैसलीन पर पेंट नहीं ठहरता. इसलिए वैसलीन की मदद से आप कोई भी आर्ट या डिजाइन बना सकते हैं. एक ब्रश पर वैसलीन लगाएं और जिस जगह को आप पेंट करने वाली हैं उस जगह पर अपने मन की डिजाइन बना लें. अब इसके ऊपर पेंट कर दें. जहां पर वैसलीन की परत थी वहां पेंट नहीं चढ़ेगा और एक बढ़िया सा डिजाइन भी बन जाएगा.

3. अपने लेदर के सामान चमकाएं

लेदर की चमक को बनाए रखने के लिए वैसलीन बहुत कारगर उपाय है. बूट, हैंडबैग, ग्लव्स, लेदर के फर्नीचर की भी खोई चमक लौटाने का काम आप वैसलीन पर छोड़ सकती हैं.

4. ग्लु को रखें फ्रेश वैसलीन से

ग्लु एक बार इस्तेमाल करने के बाद सूखने लगता है. सुखा ग्लु डब्बे को कई बार सील कर देता है. पर ग्लु के डब्बे पर हल्का सा वैसलीन लगा दें. यह ग्लु को सूखने से रोकेगा.

5. चरचराते दरवाजा को करे ठीक

कई बार दरवाजे और खिड़कियों से चरचराने की आवाजें आनी लगती है. इस आवाज से कई बार चिढ़चिढ़ाहट भी होती है. दरवाजें और खिड़कियों के कोनों पर वैसलीन लगाने से चरचारहट नहीं होगी.

6. औजारों को जंग से बचाएं

घर में इस्तेमाल होने वाले औजारों को लंबे समय तक छोड़ देने से उनमें जंग लगने लगती है. पर औजारो को जंग लगने से वैसलीन से बचाया जा सकता है. औजारों को स्टोर में रखने से पहले उन पर वैसलीन की एक परत लगा दें, इससे आपके औजार लंबे समय तक जंग से बचे रहेंगे.

7. लकड़ी के फर्नीचर पर बने चाय या पानी के दाग

अगर आपके कीमती लकड़ी पर भी चाय या कॉफी कप के रिंग्स बन गए हैं, तो वैसलीन उसे भी ठीक कर सकता है. फर्नीचर पर बने चाय के दाग पर वैसलीन की एक परत लगाकर 24 घंटों के लिए छोड़ दें. सुखे कपड़े से पोछ लें. इससे दाग भी चले जाएंगे और फर्नीचर पॉलीश भी हो जाएगा.

8. चींटियों की रोकथाम

वैसलीन से आप चींटियों की रोकथाम भी कर सकती हैं. दरवाजों की चौखट पर, खिड़कियों पर और घर में चींटियों के घुसने के हर संभावित जगह पर वैसलीन की एक परत लगा दें. जब चींटियां उसमें फंस जाएं तो पूरी परत को हटा दें.

रेगिस्तान में बसा खूबसूरत शहर दुबई

हमेशा से ही दुबई घूमने की इच्छा थी, ऐसे में वहां जाने का मौका ‘दुबई टूरिज्म’ से मिलना किसी सपने से कम नहीं था और हो भी क्यों न? संयुक्त अरब अमिरात में बसा एक ऐसा शहर जिसे पर्यटन के हिसाब से विकसित किया गया है, यहां की अधिकारिक भाषा अरबी है,पर उर्दू, फारसी, हिंदी, मलयालम, बंगला, तमिल, चीनी आदि कई भाषाएं बोली जाती हैं. अंग्रेजी यहां की सामान्य भाषा है. यही वजह है कि यहां हर वर्ग और समुदाय के लोग खुले दिल से विचरण कर सकते है. अपना व्यवसाय कर सकते हैं.

अगर विश्व पटल पर देखें, तो ज्यादातर मुस्लिम देशों में धर्म को अधिक महत्व दिया जाता है, लोगों का विकास हो या न हो इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. पर सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि यहां हर काम में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिली. रात हो या दिन महिलाएं गाड़ी चलाने और घूमने के लिए आजाद हैं. यहां की नाईट लाइफ काफी अच्छी है, ग्लैमर पसंद महिलाएं काम के बाद वेस्टर्न पोशाक में पब और रेस्तरां में जाती हैं और ऐन्जॉय करती हैं. यहां धर्म को परे रखकर विकास पर अधिक ध्यान दिया गया है और यही दुबई की खासियत है. हालांकि दुबई का विकास तेल बेचकर हुआ है. पर इस बात की तारीफ करनी होगी कि उस पैसे का उपयोग इस मरुस्थल के विकास और यहां के लोगों की उन्नति के लिए किया गया प्रयास है. तभी तो सारे देश के लोग यहां आना पसंद करते हैं. यहां सभी धर्म और समुदाय के लोग मिलकर रहते हैं. दक्षिण एशियाई देशों के लिए ये शहर कमाई का खास केंद्र है.

मरुस्थल में ऐसे आधुनिक विकास की कल्पना तो शायद ही की जा सकती है. करीब तीन घंटे की हवाई यात्रा के बाद जब दुबई पहुंची, तो रात को पूरा शहर मानो रौशनी में नहाया हुआ था. जहां नजर पड़ती, बड़ी-बड़ी गगनचुंबी कांच की इमारतें और उससे निकलती रौशनी जिससे पूरा शहर जगमगा रहा था. इसकी वजह पूछने पर पता चला कि दुबई अरेबियन रेगिस्तान के भीतर है, इसलिए यहां बारिश कम होती है और यहां का मौसम गर्म और शुष्क रहता है. यहां बहुत गर्मी पड़ती है.

गर्मी के मौसम में यहां का दिन का तापमान 40 से 49 डीग्री तक पहुंच जाता है, जबकि रात का तापमान 30 डिग्री तक रहता है. हमेशा धूल भरी आंधी चलने की वजह से यहां के दफ्तर और घरों में ‘एसी’ का खूब प्रयोग होता है, इसलिए अधिकतर इमारतें कांच की बनी होती है. सर्दी का मौसम बहुत कम है आजकल विज्ञान की सहायता से कुछ पेड़ पौधों को लगाने की वजह से बारिश यहां भी हो जाया करती है. बारिश का मजा यहां के लोग खूब उठाते हैं और लॉन्ग ड्राइव पर निकल कर किसी मॉल या पार्क में घूमने चले जाते हैं.

दुबई एअरपोर्ट से आगे बढ़ते ही सुंदर साफ सुथरी सड़कें से गुजरते हुए करीब आधे घंटे में हम होटल रोव डाउनटाउन पहुंचे. यह दुबई मॉल के एकदम करीब था. होटल में घुसते ही स्माइली वाले कूकीज से हमारा स्वागत किया गया. अगली सुबह ट्रिप शुरू होने वाला था इसलिए हम खाना खाकर जल्दी सो गए. सुबह बारिश की फुहार से दिन शुरू हुआ, मरुस्थल में बारिश की कल्पना मेरी समझ से परे थी. करीब एक घंटे की रास्ता गाड़ी से तयकर हम ‘मिरेकल गार्डन’ यानि फूलों का एक सुंदर सा बगीचा पहुंचे. दूर-दूर तक फैले रेगिस्तान में फूलों का बगीचा किसी आश्चर्य से कम नहीं था.

रंग-बिरंगे फूलों से बनी आकृतियां देखते ही बनती थी. यहां आने वाले पर्यटक चाहे वो वयस्क हो या बच्चे सभी इसका आनंद उठा रहे थे. वहां से निकलकर हम बटरफ्लाई गार्डन पहुंचे जहां तितलियों को जंगल जैसा माहौल बनाकर रखा जाता है. सैकड़ों की संख्या में तितलियां आस-पास मंडराती हुई सहज ही दिखाई पड़ती थी.

करीब 2 घंटे गार्डन में बिताने के बाद हम बढ़ चले अगले डेस्टिनेशन ‘आई एम जी वर्ल्डस ऑफ एडवेंचर’ की ओर. 5 मिलियन वर्ग फुट में बना यह विश्व का सबसे बड़ा थीम पार्क है. अपने आप में अनोखे इस पार्क में 20 से भी ज्यादा राइड्स थे. यहां कार्टून नेटवर्क के कई कार्टून जैसे पॉवर पफ गर्ल्स, स्पाइडरमैन, बेनटेन, कैप्टेन अमेरिका, आयरन मैन, हल्क आदि के आकर्षक राइड्स भी थे.

इसके अलावा विलुप्त हो चुके डायनासोर का मूवमेंट चौकाने वाला था. बच्चों और वयस्कों के लिए ये स्थान खास आकर्षण का केंद्र था. सिर्फ 4 घंटे में पूरे पार्क का आनंद उठाया जा सकता है. इसके अलावा वहां शौपिंग और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था थी. इसके अलावा दुबई की एक और खास बात है कि यहां पर्यटक हर तरह के वेज और नॉन-वेज फूड का लुत्फ उठा सकते हैं.

वहां से हम दुबई मॉल गए, जो दुनियभर में काफी मश्हूर है. यह मॉल विश्व की सबसे ऊंची इमारतों में शामिल बुर्ज खलीफा का हिस्सा है. इस मॉल में आइसस्केटिंग, एक्वेरियम, दुकानें, फूड कोर्ट आदि प्रमुख घूमने की जगह है. यहां हर जगह जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है, अगर आपका बजट कम है तो आप बाहर से भी एक्वरियम देख सकते हैं. हर साल करीब 92 मिलियन लोग यहां घूमने आते हैं. हालांकि वहां की सैर अनोखी थी पर हम चलते-चलते थक गए थे, पर वहां से लौटने की इच्छा नहीं हो रही थी.

शाम हो चुकी थी और हमें भूख भी लग रही थी इसलिए हमने वापस कैपन्ना नुओवा होटल का रूख किया. समुद्री तट पर स्थापित ये होटल इटालियन और कॉन्टिनेंटल फूड के लिए फेमस है. यहां बहुत सारे कपल्स हनीमून मनाने आते हैं. समुद्री तट की ठंडी हवा में कॉन्टिनेंटल फूड खाने का अलग ही मजा था. इसके बाद होटल लौटना था और अगले दिन की तैयारी करनी थी. अगले दिन हमें थी दुबई की सबसे आकर्षक और खुबसूरत डेस्टिनेशन ‘अटलांटिस द पाम’ जाना था.

‘अटलांटिस द पाम’ खजूर के पत्ते के आकर की रेगिस्तान में समुद्र के ऊपर बनाई गई अदभुत आकृति है. यह हवाई यात्रा के दौरान भी दिखाई देती है. यहां की सुरक्षा बहुत कड़ी थी, ताकि सैलानियों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करनी पड़े. यहां डॉलफिन बे, एक्वेरियम वाटर पार्क, द लॉस्ट चैम्बर्स एक्वेरियम, सी लायन पॉइंट खास है. यहां पूरे क्षेत्र में 250 प्रजाति की 65 हजार मछलियां हैं जिन्हें समुद्री वातावरण में रखा गया है.

यहां से आगे बढ़ने पर हमें बॉलीवुड पार्क मिला जहां बॉलीवुड के अधिकतर कलाकार अपने फिल्म के प्रमोशन के लिए आते हैं. यहां पर हर दिवार पर बॉलीवुड फिल्मों के पोस्टर और शाम को बॉलीवुड फिल्मों पर होने वाली लाइट एंड साउंड शो की झलक आकर्षक थी. इसके अलावा बच्चों के लिए खास लिगो लैंड और ग्रीन प्लेनेट आदि भी आकर्षक थे.

दुबई में घूमना महंगा है लेकिन अगर आप ऑनलाइन सर्च करेंगे तो छुट्टियों के मौसम में कई सस्ते और आकर्षक ऑप्शन भी आपको मिल जाएंगे है. इतना ही नहीं यहां कई ‘सी बिचेस’ ऐसे भी है जहां आप घूम सकते हैं और वहां की साफ सुथरे परिवेश का आनंद उठा सकते हैं. दुबई की सैर यादगार रही.

सुंदर पिचाई : दिग्गज सीईओ

देश में तेजी से बढ़ती डिजिटलीकरण की प्रक्रिया उन लोगों के उल्लेख के बगैर अधूरी है जिन्होंने देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में भारत के डिजिटल चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई है. इन्हीं में से एक नाम है पी सुंदरराजन का जिन्हें प्यार से सुंदर पिचाई कहा जाता है. इस समय वे इंटरनैट कंपनी गूगल के सीईओ हैं. बेशक आज सुंदर पिचाई कैरियर की बेहतरीन ऊंचाई पर हैं पर उन के जीवन की कहानी किसी ऐसे पढ़ेलिखे किशोर से अलग नहीं है जिस की आंखों में परिवार, समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक सपना होता है.

जनवरी, 2017 में जब वे भारत दौरे पर थे तो उस दौरान वे आईआईटी खड़गपुर भी गए थे, जहां कभी उन्होंने पढ़ाई की थी. वहां के छात्रों से उन्होंने कई अनुभव साझा किए और अपनी कालेज लाइफ के दिलचस्प किस्से उन्हें बताए. उन्होंने बताया कि एक समय था जब उन के घर में न टीवी था, न कार और न ही टैलीफोन.

तकनीक से उन का परिचय पहली बार 1984 में लैंडलाइन फोन से हुआ था, जो उन के घर पर लगाया गया था. तब सुंदर महज 12 साल के थे लेकिन उस टैलीफोन की बदौलत उन्हें दर्जनों लोगों के टैलीफोन नंबर मुंहजबानी याद हो गए थे. इस से उन्हें तकनीक को ले कर अपने लगाव का भी पता चला था. हालांकि इस में उन के पिता का भी योगदान है जो चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) स्थित एक ब्रिटिश कंपनी जीईसी में इंजीनियर थे.

सुंदर का परिवार 2 कमरे के मकान में रहता था और उस में सुंदर की पढ़ाई के लिए अलग से कोई कमरा नहीं था. वे ड्राइंगरूम के फर्श पर अपने छोटे भाई के साथ सोते थे, पर इन अभावों के बावजूद सुंदर सिर्फ 17 साल की उम्र में आईआईटी की परीक्षा पास कर आईआईटी, खड़गपुर में दाखिला पाने में सफल रहे. वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई (1989-93) पूरी करने के दौरान हर बैच में सुंदर टौपर रहे.

1993 में फाइनल परीक्षा में अपने बैच में टौप करने के साथ ही उन्होंने सिल्वर मैडल हासिल किया. उस के बाद स्कौलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए वे 1995 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए.

स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गैस्ट रहते हुए पैसे बचाने के लिए उन्होंने कई पुरानी चीजें इस्तेमाल कीं, लेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं किया. स्टैनफोर्ड में सुंदर पीएचडी करना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो न सका. इसी बीच उन्होंने अमेरिका की सिलीकौन वैली में सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी अप्लाइड मैटीरियल में बतौर इंजीनियर और प्रोडक्ट मैनेजर  काम शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें यह नौकरी पसंद नहीं आई, इसलिए उसे बीच में छोड़ कर व्हार्टन स्कूल औफ द यूनिवर्सिटी औफ पेंसिलवेनिया एमबीए करने चले गए. व्हार्टन में पिचाई को साइबर स्कौलर और पामर स्कौलर उपाधियों से सम्मानित किया गया. एमबीए करते ही वे मैंकिजी ऐंड कंपनी में प्रबंध सलाहकार चुन लिए गए.

सफर गूगल का

सुंदर 1 अप्रैल, 2004 को गूगल में आए. यहां उन का पहला प्रोजैक्ट प्रोडक्ट मैनेजमैंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बना कर दूसरे ब्राउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था. इस के बाद उन्होंने गूगल गीयर, गूगल पैक जैसे उत्पाद बनाए.

गूगल टूलबार पर काम करते हुए ही सुंदर को यह आइडिया आया था कि गूगल का अपना ब्राउजर होना चाहिए. ब्राउजर असल में इंटरनैट चलाने वाले माध्यम होते हैं जैसे इंटरनैट ऐक्सप्लोरर, फायर फौक्स, मोजिला आदि. हालांकि उस समय गूगल के सीईओ एरिक श्मिट को यह आइडिया पसंद नहीं आया, क्योंकि उन्हें यह एक महंगा काम लगा. लेकिन बाद में सुंदर ने गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज और सरगेई ब्रिन को गूगल का अपना वैब ब्राउजर बनाने के लिए राजी कर लिया.

वर्ष 2008 में गूगल क्रोम के नाम से यह ब्राउजर बन कर दुनिया के सामने आया और इंटरनैट की दुनिया में छा गया. आज सब से ज्यादा इसी का इस्तेमाल होता है.

सुंदर के इस योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2008 में पहले वाइस प्रैसिडैंट बनाया गया, उस के बाद 2012 में वे सीनियर वाइस प्रैसिडैंट (क्रोम और ऐप्स) बनाए गए. वर्ष 2013 में पिचाईर् को गूगल में ऐंड्रौयड शाखा का मुखिया बनाया गया, जबकि 2014 में उन्हें प्रोडैक्ट चीफ घोषित किया गया.

वर्ष 2015 में जब गूगल ने एक और कंपनी अल्फाबेट बनाई तो कामकाज के बढ़ते दायरे को संभालने के लिए 10 अगस्त को सुंदर पिचाई कंपनी के सीआईओ बना दिए गए. गूगल का सीईओ बनने से पहले माइक्रोसौफ्ट के सीआईओ बनने की रेस में भी पिचाई का नाम शामिल था, लेकिन बाद में उन की जगह सत्य नडेला को चुना गया. बीच में ट्विटर ने भी उन को अपने पाले में करने का प्रयास किया था, लेकिन जानकारों के मुताबिक, गूगल ने 10 से 50 मिलियन डौलर का बोनस दे कर उन को कंपनी में बने रहने पर सहमत कर लिया.

नहीं भूलेंगे वे दिन

खुद पिचाई को अपनी किशोरावस्था और जवानी के दिनों की यादें सम्मोहित करती हैं. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों से उन का नाता कभी नहीं टूटता और वे जबतब इंटरनैट के जरिए उन से अपने जीवन और कैरियर की बातें साझा करते रहते हैं. उन्होंने बताया कि चेन्नई में स्कूली पढ़ाई के दौरान उन्हें क्रिकेट खेलना बहुत अच्छा लगता था. हाईस्कूल क्रिकेट टीम में कप्तानी करते हुए सुंदर ने तमिलनाडु राज्य का क्षेत्रीय टूरनामैंट जीता था.

अपनी तेज याद्दाश्त के कारण भी पिचाई जाने जाते हैं. करीबी लोग उन से 1984 के दौर से भूले हुए टैलीफोन नंबर पूछते हैं, जो बता कर सुंदर उन्हें अचंभित कर देते हैं.

हां, मैं ने भी बंक मारा

आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को सुंदर अपने कालेज जीवन की कई ऐसी बातें भी बता चुके हैं जिन के बारे में सुन कर विश्वास नहीं होता. जैसे, एक बार उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया कि छात्र जीवन में उन्होंने कई बार कालेज की कक्षाओं से बंक मारा. अकसर सुबह की क्लास में से वे गायब हो जाते थे.

सुंदर कहते हैं कि कालेज में पढ़ाई के दौरान ऐसा करना सही लगता था, लेकिन जीवन में कुछ बनना है. इस ध्येय को सामने रखते हुए उन्होंने मेहनत में कोई कमी नहीं आने दी. सुंदर को हिंदी नहीं आती थी, लेकिन स्कूल में हिंदी के बारे में जो कुछ सीखा था, उस से काम चलाने की कोशिश की, जिस में एकाध बार कुछ गड़बड़ी भी हो गई. जैसे, कालेज में अगर साथी छात्र मजे में एकदूसरे को बुलाने के लिए ‘अबे…’ कह कर गाली देते थे, तो सुंदर को लगता था कि यह एक तरह का संबोधन है.

एक बार खुद सुंदर ने इस का इस्तेमाल किया. एक बार कालेज मेस में अपने जानकार को जाते हुए देखा, तो उसे बुलाने के लिए आवाज लगाई ‘अबे…’ बाद में उन्हें पता चला कि यह तो गाली है. इस से वहां बैठे लोग बुरा मान गए और कुछ देर के लिए मैस बंद कर दिया गया.

कालेज मेस में खाने को ले कर सुंदर से जो मजेदार सवालजवाब किए जाते थे, उन में से खुद सुंदर को एक काफी पसंद आता था. यारदोस्त वहां अकसर सुंदर से पूछते थे. ‘बताओ, यह दाल है या सांबर,’ सुंदर कभी इस का सही उत्तर नहीं दे पाते थे.

आसान नहीं था गर्लफ्रैंड से मिलना

सुंदर पिचाई अपनी पत्नी यानी अंजलि से आईआईटी खड़गपुर में ही मिले थे. अंजलि वहीं की छात्रा थीं, पर अंजलि से मिलना आसान नहीं था. तब घर पर कंप्यूटर नहीं था और स्मार्टफोन भी नहीं होते थे. अंजलि आईआईटी के गर्ल्स होस्टल में रहती थी, लेकिन उस से मिलने के लिए होस्टल में जा कर वहां तैनात कर्मचारी से मिन्नतें करनी पड़ती थीं.

वह कर्मचारी तेज आवाज में पुकारता था, ‘अंजलि, आप से मिलने सुंदर आया है.’

यह आवाज सुन कर हरकोई जान जाता था कि कौन किस से मिलने आया है. उस समय इस से बड़ी झिझक होती थी. आईआईटी खड़गपुर के छात्रों को यह किस्सा सुनाते हुए सुंदर ने कहा था कि आज के मोबाइल युग में किसी से दिल की बात कहना कितना आसान हो गया है.

जीवन और कैरियर में सफलता को ले कर भी सुंदर पिचाई का नजरिया बहुत स्पष्ट है. उन का कहना है कि हो सकता है आप कभीकभी फेल भी हो जाएं, पर इस से घबराना नहीं चाहिए. इस के लिए वे खुद गूगल के सहसंस्थापक लैरी पेज का विचार सामने रखते हैं, जो कहा करते हैं कि आप को बड़े काम करने का लक्ष्य रखना चाहिए. ऐसे में यदि आप कभी नाकाम भी हो गए, तो आप कुछ ढंग का सृजित कर पाएंगे जिस से आप काफी कुछ सीखेंगे.

तोलें, फिर बोलें

वाणी एक माध्यम है जो विचारों का आदानप्रदान करने में सहायक है परंतु कभी-कभार यह भी हो जाता है :

रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगे सरग पाताल,

आपु तो कहि भीतर रही जूती सहत कपाल.

यानी उच्चारण कितना हो, ज्यादा क्या है और कम क्या? जितना हम साबित कर सकें या जिस को निभा पाएं उतना ही कहें. शब्दों को यहांवहां कहना ठीक होगा या नहीं. यह बात विचारणीय है, क्योंकि आज के दौर में जनमानस में एक बात गहरे बैठ गई है :

जो इधरउधर की बकता है,

वही तो उत्तम से उत्तम वक्ता है.

सही बात, सही समय पर कहना, सही व्यक्ति से कहना और सही वक्त पर कहना, यही वे खास बिंदु हैं जिन पर अमल कर के वाक कला को विकसित व पल्लवित किया जा सकता है अन्यथा समाज से तिरस्कृत होने में देर नहीं लगती. यह भी सच है कि जिसे अपने भावों को सही तरीके से व्यक्त करना नहीं आता वह किसी काम का नहीं रह जाता.

गूंगे के गुड़ वाली बात भी बहुत महत्त्व रखती है कि अगर अच्छी बात भी सब से नहीं बांटी तो एक अच्छा अनुभव अनसुना, अनसमझा व अनबूझा ही रह जाएगा. यह भी गलत ही होगा. एक बड़ी खूबसूरत कहावत भी तो है न:

जबान शीरीं, मुल्क गीरीं,

जबान टेढ़ी, मुल्क बांका.

यानी कायदे से बोलना इतना फायदेमंद है कि सभी वश में हो जाते हैं. महाभारत की कथाओं में शिशुपाल का प्रसंग भी तो हमें यही समझाता है न कि शिशुपाल के वश में उस के शब्द थे ही नहीं. सहने की भी एक सीमा होती है, आखिरकार इस कड़वी वाणी और अंडबंड शब्दावली के चलते ही शिशुपाल को जान से हाथ धोना पड़ा. कहने का तात्पर्य यह है कि बोलना किसी कला से कम नहीं है. बात को रुई सा मुलायम और कोमल ही रहने देना चाहिए. रूखापन लाने से सभी का नुकसान होता है :

बातहि हाथ पाइए,

बातहि हाथी पांव.

जो बात करने की कला जानता है वह सबकुछ पा लेता है, जो यह कला नहीं जानता वह गलत बोलने के फलस्वरूप दंडित भी हो जाता है. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि मूर्ख ही होगा वह व्यक्ति जो बोलने से पहले तोलता न हो.

बॉक्स ऑफिस पर अक्षय व शाहरुख की भिड़ंत

कुछ दिन पहले जब शाहरुख खान के खास मित्र करण जौहर ने सलमान खान के साथ मिलकर एक फिल्म के निर्माण की घोषणा की थी और उस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के लिए अक्षय कुमार को अनुबंधित किया, तो लगा था कि फिल्म उद्योग में समीकरण तेजी से बदल चुके हैं. मगर अब एक नई कहानी उभर कर आयी है, जो कि समझ से परे है.

जी हां! अब अक्षय कुमार ने बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान को टक्कर देने का मन बना लिया है. इम्तियाज अली निर्देशित फिल्म ‘‘द रिंग’’, जिसका नाम बदल सकता है, 11 अगस्त 2017 को प्रदर्शित होने वाली है. इस फिल्म में शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा की जोड़ी है. मगर अब अक्षय कुमार ने ऐलान किया है कि उनकी फिल्म ‘‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’’ को वह 11 अगस्त 2017 को ही प्रदर्शित करेंगे यानी कि अब बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख खान और अक्षय कुमार की टक्कर होगी. अक्षय कुमार के इस ऐलान के बाद लोगों को शाहरुख खान की ‘रईस’ और रितिक रोशन की फिल्म ‘काबिल’ के टकराव की याद सताने लगी है.

बहरहाल, अक्षय कुमार और शाहरुख खान के बॉक्स ऑफिस पर टकराने की वजहें पता नहीं चल रही है. मगर लोग आश्चर्य चकित जरुर हैं. लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि अब कौन सा नया समीकरण बन रहा है.

वैसे अक्षय कुमार और शाहरुख खान की फिल्में 2004 में बॉक्स ऑफिस पर टकरा चुकी हैं. 2004 में यश चोपड़ा निर्देशित फिल्म ‘वीरजारा’ जिसमें शाहरुख खान थे, के साथ ही अब्बास मस्तान निर्देशित फिल्म ‘एतराज’, जिसमें अक्षय कुमार थे, एक ही दिन प्रदर्शित हुई थी. उस वक्त ‘वीरजारा’ ने 19 करोड़ और ‘एतराज’ ने सात करोड़ कमाए थे. लेकिन 2004 से 2017 के बीच बहुत कुछ बदल चुका है.

फिलहाल बॉक्स ऑफिस के हालात अक्षय कुमार के पक्ष में नजर आ रहे हैं. लोग कहने लगे हैं कि अक्षय कुमार जिस पर हाथ रख देते हैं, वह सोना बन जाता है. अक्षय कुमार की छोटे बजट की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा खासा धन कमाया है. 2016 में अक्षय कुमार ने कई सफल फिल्में दी.

अब 2017 में भी ‘नाम शबाना’ व ‘ट्वायलेट एक प्रेम कथा’ सहित उनकी कई बेहतरीन फिल्में आने वाली हैं. जबकि शाहरुख खान की कई फिल्में लगातार असफल होकर उन्हे हाशिए पर ढकेल चुकी हैं. मगर 2016 में उनकी फिल्म ‘‘रईस’’ से उन्हें थोड़ी सी राहत मिली.

ऐसे में अब यदि अक्षय कुमार और शाहरुख खान की फिल्में 11 अगस्त को आपस में टकराएंगी, तो कितना-कितना नुकसान होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी. मगर जिस तरह के हालात अभी हैं, उनसे तो लगता है कि अक्षय कुमार ने किसी खुन्नस के ही चलते शाहरुख खान को झटका देने के मकसद से ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ को 11 अगस्त को प्रदर्शित करने का ऐलान किया है. 11 अगस्त को समय है, देखना पड़ेगा कि इस बीच दोनों में से कोई पीछे हटता है या…

शोएब के डोले शोले पर फिदा दीपिका

अभिनेत्री दीपिका कक्कड़ अपने साथी शोएब इब्राहिम के डोले शोले की तारीफ करने का कोई मौका चूक नहीं रही थी. दीपिका ने कहा कि शोएब के डोले देख कर सोचिए कि डांस के दौरान कैसे मैंने उसे लिट किया होगा. दीपिका ने कहा कि हम दोनो ही ट्रेन्ड डांसर नहीं है. डांस शो ‘नच बलियें‘ में काम करने के लिये हम तैयार हो गये क्योकि इस बार की थीम बहुत खास थी. ‘रोमांस वाला डांस‘ दिखाना किसी चुनौती से कम नहीं है. हमारे लिये अच्छा यह है कि हमें बहुत दिन बाद एक साथ काम करने का मौका मिला रहा है. स्टार प्लस के डांस शो ‘नच बलिए‘ की बातचीत करते दीपिका खुल कर हंस रही थी शोएब के साथ मस्ती का कोई मौका चूक नहीं रही थीं, वहीं शोएब उनका साथ दे रहे थे.

दीपिका की पहचान टीवी सीरियल देवी, अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो और ससुराल सिमर का से बनी. दीपिका की सबसे पहचान ससुराल सिमर का की ‘सिमर’ को जाता है. अब दीपिका अपने साथी शोएब के साथ ‘नच बलिए’ में है. वे पहली बार रियल्टी शो कर रही हैं. दीपिका का कहना है कि मुझे एक्टिंग बहुत पंसद है और मैं टीवी सीरियल से खुश हॅू. अपने और शोएब के रिश्तों को लेकर वे कहती हैं हम एक दूसरे के साथ पूरी ईमानदारी से है. यही हमारे रिश्ते की मजबूती है.

‘नच बलिये‘ के सीजन 8 में 10 सेलेबे्रेटी जोडियां आ रही है. इनमें दिव्यांका-विवेक, भारती सिह-हर्ष, सनाया-माहित, प्रीतम-अमनजीत, सिद्वार्थ-तप्ती, उत्कर्षा-मनोज, सोनम-एबीगैंल, अश्क- ब्रेण्ट गॉबल, मोनालिसा अंतरा-विक्रांत सिंह और दीपिका – शोएब हैं. सोनाक्षी सिन्हा, टेरेंस लेविस और मोहित सूरी इस शो के जज हैं. दीपिका कहती हैं कि शो में दर्शको को डांस और रोमांस दोनो देखने को मिलेगा.

फ्लॉप बॉलीवुड एक्टर्स जो बन गए सफल निर्देशक!

वो कहते हैं न कि अगर एक दरवाजा बंद होता है तो सौ खुल भी जाते हैं, बिल्कुल सही कहते हैं. हम बॉलीवुड के ऐसे ही कलाकारों की बात कर रहे हैं. कई बार अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री चल नहीं पाते तब उसके बाद भी उनके पास विकल्प की कमी नहीं होती है.

अक्सर वे प्रोडक्शन में चले जाते हैं और कई बार डायरेक्शन या निर्देशन भी ऐसे कलाकारों के लिए एक विकल्प बनकर उभरता है. ऐसे कई सितारे भी हैं बॉलीवुड में, जिन्होंने एक्टिंग करियर ना चल पाने के बाद डायरेक्शन में हाथ आजमाया और सफल हो गए.

ऐसे ही कुछ चुनिंदा नामों को हम आपके लिए लेकर आये हैं:

पूजा भट्ट : 15 से ज्यादा हिन्दी फिल्मों और कुछ तमिल और तैलुगु फिल्मों में काम करने के बाद, अभिनेत्री पूजा भट्ट ने अभिनय से दूरी बनाकर निर्देशन की ओर रुख कर लिया. अभिनेत्री होकर कुछ खास हुनर न दिखा सकने वाली पूजा, एक निर्देशक के तौर पर काफी सफल रहीं.

जुगल हंसराज : मोहब्बते जैसी सफल फिल्म में अभिनय करने वाले अभिनेता जुगल हंसराज बचपन से अभिनय के क्षेत्र मं कान कर रहे थे. अपने फिल्मी करियर में सफलता न पाकर, जुगल ने निर्देशन के क्षेत्र में हाथ आजनाने के बारे में सोचा.

निर्देशन करियर में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धी है कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (एनीमेशन) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (2008) प्राप्त हुआ है.

अरबाज खान : पेशे से तो अभिनेता ही कहे जाने वाले अरबाज खान ने अब अभिनय के साथ-साथ प्रोडक्शन और निर्देशन की तरफ भी रुख किया है. बतौर निर्देशक अरबाज खान ने दबंग जैसी सफल फिल्में दी हैं.

आशुतोष गोवारिकर : बतौर अभिनेता आशुतोष ने टेलीवीजन जगत के कई शोज और कई फिल्मों में काम किया है. एक निर्देशक के तौर पर वे लगान जैसी कई सफल फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं.

सुभाष घई : साल 1969 में आई सुपर हिट फिल्म अराधना में बतौर सहायक अभिनेता काम करने वाले सुभाष घई अभिनय कुछ खास नहीं कर सके और उन्होंने भी निर्देशन का रास्ता पकड़ लिया और काफी सफलता भी पाई.

अभिषेक कपूर : काई पो चे फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला है. अभिषेक को साल 1996 में आई फिल्म ‘उफ्फ ये मोहब्बत’ के लिए बतौर अभिनेता याद किया जाता है.

राकेश रोशन : 25 से भी ज्यादा फिल्मों में बतौर अभिनेता अभिनय करने वाला राकेश रोशन, अपनी अभिनय की राह छोड़ कर निर्देशन की राह में आगे बढ़ गए और निर्देशन करते हुए उन्होंने कई सफल फिल्में दी हैं.

स्वाद नहीं सेहत भी बनाते हैं मसाले

भारत को तो हमेशा से ही मसालों का देश कहा जाता है. यहां खाने में बहुतायत से प्रयोग होने वाले मसाले जैसे कि काली मिर्च, धनिया, लौंग, दालचीनी, गरम मसाला महज हमारे खाने को सुगंधित और लजीज ही नहीं बनाते बल्कि ये हमार सेहत को भी दुरुस्त रखते हैं.
आज हम आपको बताएंगे कि स्वाद के साथ-साथ खाने को जायकेदार बनाने वाले मसाले किस तरह आपको सेहतमंद बनाते हैं. जानिए मसालों के फायदे के बारे में..

मसाले बेहतर क्यों हैं? 
क्या आप ये बात जानते हैं कि प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए मसाले केवल खाने को ही स्वादिष्ट नहीं बनाते बल्कि स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं. अगर हम लाल मिर्च को छोड़ दें, तो बाकी सभी मसालों में एंटी-आक्सीडेंट्स और कैंसररोधी तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं.

इन मसालों के ये हैं बड़े-बड़े गुण..
इलायची : भारत समेत दुनिया भर में, खाने में इलायची का इस्तेमाल किया जाता है. इलायची में पाया जाने वाला तेल आपके पाचन को बेहतर बनाए रखने में मददगार होता है.

दालचीनी : खाने में मसाले के अलावा दालचीनी का उपयोग टूथपेस्ट, माउथवाश और च्वुइंगम में भी होता है. दालचीनी में पाए जाने वाले यूजेनॉल और सिनेमेल्डीहाइड किसी दर्द निवारक की तरह काम करते हैं. दालचीनी शरीर में खून के बहाव और थक्का जमने की प्रक्रिया को ठीक रखती है और आपके शरीर से जलन को दूर करती है. इसके अलावा दालचीनी का खास उपयोग डायबिटीज के मरीजों के लिए किया जाता है, क्योंकि मधुमेह के इलाज में भी दालचीनी कारगर है.

हल्दी : खाने में मसाले की तरह डाली जाने वाली हल्दी हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है. हल्दी सर्दी जुकाम दूर करती है. इसमें कैंसर प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं. हल्दी आपके शरीर के खून को साफ करती है और आपको भरपूर ऊर्जा प्रदान करती है.

लौंग : आमतौर पर खाने को सुगंधित बनाने के लिए लौंग का इस्तेमाल होता है. ये तो आप जानते ही हैं कि दांत का दर्द दूर करने में लौंग के तेल को एक अच्छा इलाज माना जाता है. इसके अलावा लौंग में पाया जाने वाला यूजेनाल जलन व आर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) के दर्द से निजात दिलाता है.

जीरा : दाल बघारने या चावल फ्राई करने में इस्तेमाल होने वाला जीरा पाचन ठीक रखने के साथ-साथ सूजन दूर करने में भी मददगार साबित होता है. आपके शरीर से अशुद्ध खून साफ रखने में भी जीरा अहम भूमिका निभाता है.

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