कसौली : पल पल बदलता है जहां मौसम

हिमाचल प्रदेश को खूबसूरत वादियों के लिए जाना जाता है. यहां हर मौसम में प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठाया जा सकता है. लेकिन अगर आप भागदौड़भरी जिंदगी से ऊब कर थोड़े समय के लिए सस्ते में आबोहवा बदलना चाहते हैं तो हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत पर्यटन स्थल कसौली एक बेहतरीन विकल्प है.

समुद्रसतह से लगभग 1,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कसौली हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले में स्थित एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है जो अपनी खुशनुमा आबोहवा के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय है.

ब्रिटिशों द्वारा विकसित एक छोटा शहर, कसौली अभी भी अपना प्राचीन आकर्षण समेटे हुए है. 1857 में जब भारत की आजादी की पहली लड़ाई प्रारंभ हुई तब कसौली ने भी भारत के सैनिकों के बीच एक विद्रोह देखा. कसौली का प्रशासन सेना के हाथ में है और यह मूलतया सैनिक छावनी है.

खूबसूरत हिलस्टेशन कसौली चंडीगढ़ से शिमला जाने वाली सड़क की आधी दूरी पर स्थित है. धरमपुर कसौली का सब से नजदीकी रेलवेस्टेशन है जहां टौय ट्रेन द्वारा पहुंचा जा सकता है. फिर यहां से किसी भी बस द्वारा कसौली पहुंचा जा सकता है. सड़क मार्ग से करीब 3 घंटे में कालका से कसौली पहुंच सकते हैं. पूरा रास्ता चीड़ यानी देवदार के वृक्षों से आच्छादित है. इस क्षेत्र में वाहनों के आने का समय निश्चित है जिस के कारण पर्यटक स्वच्छंद रूप से वादियों का लुत्फ उठाते हैं.

यहां सर्वाधिक चहलपहल वाले स्थान अपर और लोअर माल हैं, जहां की दुकानों पर रोजमर्रा के इस्तेमाल की वस्तुएं और पर्यटकों के लिए सोविनियर बिकते हैं. लोअर मौल में अनेक रेस्तरां है, जहां स्थानीय फास्टफूड मिलता है.

पल पल बदलता मौसम 

मानसून के दिनों में वर्षा की बौछार पड़ते ही कसौली की हरियाली देखते ही बनती है. बारिश थमी नहीं कि चारों तरफ कुहासे का साम्राज्य हो जाता है और पर्यटक उस में घूमने निकल पड़ते हैं. यहां का मौसम पलपल अपना रंग बदलता है, कभी बादलों का समूह पलभर में ही धूप के नीचे छाकर बरस पड़ता है तो दूसरे ही पल मौसम साफ हो जाता है और तनमन को रोमांचित करने वाली खुशनुमा हवा बहने लगती है. कसौली का मौसम इतना सुहावना होता है कि कसौली पहुंचने से 2-3 किलोमीटर पहले से आप को कसौली में प्रवेश करने का एहसास हो जाएगा.

अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर महीने में यहां आने का बेहतरीन समय होता है. यहां के पेड़ पौधों पर इस मौसम का जो रंग चढ़ता है, उसे फूल पत्तों पर महसूस किया जा सकता है. बर्फ का आनंद उठाने की चाह रखने वाले पर्यटकों को यहां दिसंबर से फरवरी के बीच होने वाली ओस जैसी बर्फ की बारिश  भी खूब गुदगुदाती है.

मंकी पौइंट

मंकी पौइंट कसौली की सब से लोकप्रिय जगह और सर्वाधिक ऊंची चोटी है और यह कसौली से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस स्थान से सतलुज नदी, चंडीगढ़ और बर्फ से ढकी चूर चांदनी चोटी, जो हिमालय श्रेणी की सब से ऊंची चोटी है, का स्पष्ट दृश्य देखा जा सकता है. कसौली के सब से ऊंचे इस पौइंट पर पर्यटकों की खासी भीड़ रहती है. मंकी पौइंट का संपूर्ण क्षेत्र भारतीय वायुसेना के नियंत्रण में है. इस स्थान की सैर के लिए पर्यटकों को अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है.

इस परिसर में कैमरा ले जाने की अनुमति भी नहीं है. इस स्थान तक कार द्वारा या पैदल पहुंचा जा सकता है. मंकी पौइंट से प्रकृति की दूरदूर की अनुपम छटा दिखती है. पर्यटक सुबहशाम मंकी पौइंट तथा दूसरी ओर गिलबर्ट पहाड़ी पर टहलने निकलते हैं. इन दोनों जगहों पर पिकनिक मनाने वालों की हमेशा भीड़ लगी रहती है. 

मंकी पौइंट की ओर जाने वाला मुख्य रास्ता एयरफोर्स गार्ड स्टेशन से हो कर लोअर मौल तक जाता है, जिस के लिए व्यक्ति को पहले पंजीकरण कराना आवश्यक है. यहां सायं 5 बजे प्रवेश बंद हो जाता है.

कसौली में अंगरेजों द्वारा 1880 में स्थापित कसौली क्लब भी अपनेआप में एक देखने की जगह है. देश के नामचीन क्लबों में शामिल इस क्लब की सदस्यता के लिए 20 सालों की वेटिंग चलती है.

रचनात्मकता और स्वास्थ्य लाभ का ठिकाना

मनमोहक और स्वास्थयवर्धक वादियां कसौली को रचनात्मक लोगों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल बनाती हैं. इस जगह ने खुशवंत सिंह, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा और गुलशन नंदा जैसे नामचीन साहित्यकारों को भी साहित्य सृजन के लिए आकर्षित किया और इस जगह ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि खुशवंत सिंह के अलावा अनेक नामचीन हस्तियां यहां अपना आशियाना बनाने के लिए मजबूर हो गई. रचनात्मकता के अतिरिक्त लोग यहां स्वास्थ्य लाभ के लिए भी आते हैं. कसौली की अच्छी आबोहवा के कारण यहां पर क्षय रोगियों के लिए एक सैनेटोरियम  भी बनाया गया है. शायद यही वजह थी कि अंगरेजों ने इसे हिलस्टेशन के रूप में व्यवस्थित रूप से विकसित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

वजन घटाए हनी-ऑरेंज चिकन

चिकन, खाने में जितना स्‍वादिष्‍ट लगता है उतना ही वो हेल्‍दी और पौष्टिक भी होता है. चिकन प्रोटीन का सबसे बड़ा स्‍त्रोत होता है. चिकन खाने से मसल्‍स बनते हैं, स्‍ट्रेस कम होता है और सेहत के लिए सबसे अच्‍छा माना जाता है. ग्रिल्‍ड और बेक किया गया चिकन वजन घटाने के लिए जरुरी डायट में गिना जाता है. आज हम यहां आपको शहद और संतरे के जूस फ्लेवर में चिकन बनाने की विधि बता रहे हैं जो वजन घटाने में मददगार है.

सामग्री

2 बॉनलेस चिकन

15 एमएल तेल

कटे हुए हरे प्‍याज – 40 ग्राम

छिले हुए लहुसन के टुकड़े शहद – 45 ग्राम

60 मिलीलीटर फ्रेश ऑरेंज जूस

एक ऑरेंज

30 एमएल डार्क सोया सौस

कटी हुई सब्जियां

विधि

तेल को सॉस पैन में गर्म करें, और उसमें प्‍याज और लहसुन को फ्राय करें जब तक यह थोड़े नरम न हो जाएं. अब इसमें शहद मिलाएं और डार्क सोया सॉर्स, ऑरैंज सेगमेंट भी मिला दें. तब तक इसे अच्‍छे से मिलाते रहे जब तक शहद दिखना बंद न हो जाएं.

चिकन को अच्‍छे से बेक करें, जब चिकन बेक हो जाएं तब उसमें सारा मिश्रण डाल दें. अब इसे ऑवन में 190 डिग्री सेल्सियस पर 45 मिनट के लिए पकने के लिए छोड़ दें. इस बीच ऑरेंस जूस को चिकन में डाल दें. अब इसे गार्निश कर हरे धानिय और सब्‍जी के साथ गरमा गरम सर्व करें.

त्वचा की खूबसूरती बढ़ाए बैम्बू फेशियल

बांस को संसार के बेहतरीन व बहुमुखी वृक्ष का दर्जा दिया गया है. सुख, समृद्धि व शांति का द्योतक माने जाने वाले बांस का उपयोग अब सौंदर्य के क्षेत्र में भी किया जाने लगा है. बैंबू फेशियल थेरैपी के जरिए अब त्वचा को खूबसूरती दी जा रही है. साथ ही बैंबू मसाज से तनाव से भी छुटकारा दिलवाया जा रहा है. बांस में पाए जाने वाले तत्वों से न केवल त्वचा के विकार दूर होते हैं बल्कि इससे मानसिक सुकून भी मिलता है.

क्या है बैम्बू थेरैपी

त्वचा पर हल्के गर्म बांस से मालिश की जाती है. इससे त्वचा के टिशू सक्रीय होते हैं. इसके अलावा कोमल बांस को पीसकर इसकी मसाज से त्वचा के साथ-साथ दिल-दिमाग तरोताजा हो जाता है. इससे जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है उससे मानसिक सुकून आता है व त्वचा को आंतरिक खूबसूरती भी मिलती है.

कैसे होता है बैंबू फेशियल थेरैपी

विभिन्न साइज व लंबाई की बांस की लकड़ी को ऑर्गेनिक ट्रीटमेंट की प्रक्रिया से गुजारने के बाद इसे हल्का गर्म किया जाता है. इसे आवश्यकता के अनुसार चेहरे के अलग-अलग हिस्सों पर मसाज किया जाता है.

इसमें हाथों की उंगलियों की जगह बैंबू स्टिक से मसाज दी जाती है. बांस के कोमल हिस्सों से बनी क्रीम व स्क्रब द्वारा चेहरे पर मसाज की जाती है. प्रिया के मुताबिक मसाज का यह तरीका प्राचीन समय से अपनाया जा रहा है और अब सौंदर्य के क्षेत्र में नई तकनीक के साथ जुड़ कर क्रांति ला रहा है.

त्वचा चमकाए बैम्बू फेशियल

बैंबू फेशियल थेरैपी त्वचा पर चमक व गोरापन लाती है. बैंबू में पाए जाने वाले तत्वों के बाहरी प्रभावों से अधिक आंतरिक प्रभाव पड़ते हैं. इससे त्वचा में अलग ही कांति आती है. प्राचीन उपचार अब नया रूप लेकर आ रहे हैं व इनके आश्चर्यजनक परिणाम मिल रहे हैं. बांस में पाया जाने वाला सिलिका त्वचा को खूबसूरती को जरूरी तत्व कैल्शियम, मैगनीशियन व पोटेशियम को सोखने की क्षमता देता है. इसमें पाए जाने वाले एंटीआक्सीडेंट्स त्वचा को स्वस्थ व रिंकल फ्री रखते हैं व त्वचा की झाइयों आदि को दूर करते हैं.

कपिल शर्मा पर लगा चोरी का आरोप !

ऐसा लगता है सुनील ग्रोवर से झगड़े के बाद कपिल शर्मा के बुरे दिन शुरू हो गए हैं. हाल ही में स्टैंड-अप कॉमेडियन अबिजीत गांगुली ने कपिल पर चोरी का आरोप लगाया है.

अबिजीत ने अपने फेसबुक अकाउंट पर ए‍क नोट लिखते हुए कपिल के शो का एक वीडियो भी शेयर किया है. अबिजीत का कहना है कि यह एक्ट उनका है जिसे कपिल ने अपने शो पर इस्तेमाल किया है. इसी के साथ अबिजीत ने अपने वीडियो का लिंक भी अपनी पोस्ट में शेयर किया है.

उनका कहना है कि जब महिला क्रिकेट टीम मंच पर थी उस समय शो में कपिल के साथी कॉमेडियन कीकू शारदा ने एक चुटकुला सुनाया जिसमें उन्होंने कहा था कि जितने भी तेज बॉलर्स होते है, उनका एक बड़ा भाई होता है, और वो इसलिए फास्ट होते हैं क्योंकि बड़े भाई से बैटिंग लेने के लिए उसे आउट करना मुश्किल होता है.   

अबिजित  गांगुली ने बताया कि यह बात मुझे मेरे एक दोस्त से पता चली तो मैं चौंक गया. यह चुटकुला मैंने अपने एक शो में बोला था. जिसको 9 अप्रैल को यूट्यूब पर डाला था. इस घटना से बेहद परेशान हूं.

उन्होंने कहा कि हम छोटे कॉमेडियन हैं और रात दिन मेहनत करके चुटकले बनाते है और ऐसे ही कोई जोक लेकर टीवी पर सुना दे. तो इससे मेरे करियर पर गलत असर होगा. मैंने ने इस बारे में कपिल की टीम और सोनी को भी लिखा है लेकिन उनकी ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

पिछले हफ्ते ही कपिल के शो ने 100 एपिसोड पूरे किए हैं. हाल ही में जारी हुए प्रोमो में कपिल शर्मा ने कहा, ‘मैं उन सभी हस्तियों का आभारी हूं जो अलग-अलग बैकग्राउंड से हमारे शो में आए हैं. मैं अपनी टीम और उन लोगों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा जो अब मेरे साथ नहीं हैं.’

द कपिल शर्मा शो के 100 एपिसोड पूरे होने पर डॉ. मशहूर गुलाटी यानी सुनील ग्रोवर ने कपिल शर्मा को बधाई दी वहीं शो के दूसरे मेंबर्स ने भी उनके काम की सराहना की जो कभी कपिल शर्मा के शो का हिस्सा थे.

बता दें कि कपिल शर्मा का सुनील ग्रोवर के साथ हुए विवाद के बाद से शो की कास्ट कई लोगों ने कपि‍ल को अलविदा कह दिया है. इसके बाद कपिल के शो में दूसरे कॉमेडियन्स ने एंट्री की है लेकिन वो उतना कमाल नहीं दिखा पा रहे हैं.

इस एक्टर के लिए रवीना ने की थी सुसाइड की कोशिश

फिल्म ‘मातृ’ से बॉलीवुड में वापसी करनें वाली रवीना टंडन ने एक बार फिर अपने अभिनय की मिसाल दी है. फिल्म में मां के किरदार में नजर आने वाली रवीना टंडन असल जिंदगी में कई तरह के विवादो से गुजरी है. उन्हीं में से एक विवाद ऐसा भी था जिसने रवीना की जिंदगी को बदल कर रख दिया. बहुत कम लोग जानते है कि उस दौर में रवीना का नाम अजय देवगन के साथ जुड़ा था. इन दोनो के रिश्ते की चर्चाएं उन दिनों जोरो पर थी.

आपको बता दें कि इन दोनों की लवस्टोरी की शुरुआत फिल्म 1994 में आई फिल्म दिलवाले से हुई थी. लेकिन इन दोनों का प्यार ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया. कुछ समय बाद ही अजय का झुकाव करिश्मा कपूर की तरफ हो गया. इनके बीच बनी नजदीकियों की ही वजह थी कि अजय और रवीना दोनों के रिश्ते के बीच दूरियां आ गई.

यही नहीं इस विवाद के दौरान ये खबर भी सामने आई थी कि अजय का दूर जाना रवीना को गवारा नहीं हुआ और उनके गम में उन्होंने सुसाइड तक करनें की कोशिश की थी. एक इंटरव्यू के दौरान अजय ने कहा था कि रवीना को एक मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए. यहीं नही अजय ने उनके सुसाइड की खबरो को भी झूठा करार दिया था.

कब शुरू हुआ था अजय-रवीना का अफेयर

अजय और रवीना का अफेयर 1994 की सुपरहिट फिल्म ‘दिलवाले’ की शूटिंग के दौरान शुरू हुआ था. फिल्मफेयर मैगजीन के जुलाई 1994 के इश्यू में अजय ने रवीना पर जमकर भड़ास निकाली. उन्होंने इस इंटरव्यू के दौरान यह तक कह डाला की रवीना को एक मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए.

वह जन्म से झूठी है

इंटरव्यू में जब अजय से पूछा गया कि वे दोनों एक-दूसरे को माफ कर सबकुछ भूल क्यों नहीं जाते? जवाब में अजय ने कहा था, “भूल जाऊं. आप मजाक कर रहे हैं. सभी जानते हैं कि वह जन्म से झूठी है. इसलिए उसके छोटे-छोटे बयान मुझे ज्यादा अपसेट नहीं करते. लेकिन इस बार उसने लिमिट क्रॉस कर दी है. मेरी सलाह है कि उसे अपने आपको मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए और दिमाग की जांच करानी चाहिए. नहीं तो उन्हें मेंटल असायलम जाना पड़ेगा. मैं उनके साथ मनोचिकित्सक के पास जाने को तैयार हूं.”

इस दौरान जब अजय से पूछा गया कि वे रवीना की मदद क्यों करना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि वे उनकी दोस्त नहीं है, लेकिन इंसानियत के नाते वे उनके साथ जाने को तैयार हैं. उन्होंने रवीना पर तंज कसते हुए यह भी कहा था कि अगर वे रोड पर किसी आदमी को मरते देखें तो उसे अस्पताल तक जरूर लेकर जाएंगे.

नींद में बड़बड़ाने की है आदत!

कई लोगों को नींद में बड़बड़ाने की आदत होती है जिससे वो काफी परेशान रहते हैं. ऐसे में उन लोगों को डॉक्टर के पास जाने के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नजर नहीं आता लेकिन आप कुछ घरेलू नुस्खों से भी इस समस्या से निजात पा सकती हैं. तो देर किस बात की आइए जानते हैं कि आप घर पर कैसे इससे छुटकारा पा सकती हैं.

पूरी नींद

थकान की वजह से लोग रात को बड़-बड़ाने लगते हैं. इससे बचने के लिए पर्याप्त आराम बेहद जरूरी है. इसके लिए पूरी नींद लें और हो सके तो दिन में भी सोने की आदत डालें. लेकिन दिन के समय आधे घंटे से ज्यादा ना सोएं.

मेडिटेशन करें

नींद में बड़बड़ाने की आदत से निजात पाने के लिए आपको तनाव मुक्त रहना जरूरी है. इसलिए ऑफिस के तनाव को ऑफिस में ही छोड़कर आएं और मेडिटेशन जरूर करें. आप चाहें तो हल्का संगीत सुन सकते हैं या कोई ऐसा काम कर सकते हैं जिसे करके आपको खुशी महसूस होती हो.

शराब की लत छुराएं

अगर आप शराब के आदी हैं तो इस आदत को छोड़ना होगा. ज्यादातर लोग रात के समय में ही शराब पीते हैं और सोते समय बड़बड़ाने लगते हैं. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए आपको शराब छोड़नी होगी. अगर एकदम से नहीं छोड़ पा रहे हैं तो धीरे-धीरे इसे पीना कम कर दें.

चाय-कॉफी से परहेज

नींद में बोलने की समस्या से बचने के लिए रात को कैफीन वाली चीजों जैसे चाय-कॉफी के सेवन से दूर रहें. इन्हें पीने से नींद प्रभावित होती है और आप थकाहारा महसूस करते हैं.

अगर बहुत अधिक इस समस्या से परेशान हैं और ये सारे उपाय आजमाने के बाद भी फर्क नहीं पड़ रहा तो एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें.

क्या फिल्म ‘तकदुम’ बनेगी?

बॉलीवुड में चर्चा गर्म है कि फिल्मकार होमी अडजानिया की फिल्म ‘‘तकदुम’’ हमेशा के लिए बंद कर दी गयी. वास्तव में गत वर्ष होमी अडजानिया ने परिणीति चोपड़ा और सुशांत सिंह राजपूत को एक साथ लेकर फिल्म ‘तकदुम’ की घोषणा की थी. इस फिल्म की शूटिंग गत वर्ष ही अक्टूबर माह में शुरू होने वाली थी.

मगर कुछ दिन बाद खबर आयी कि होमी अडजानिया की फिल्म ‘‘तकदुम’’ तो पूरी तरह से करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ की नकल है. उसके बाद इस फिल्म के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया. इस बीच सुशांत सिंह राजपूत भी दूसरी फिल्मों में व्यस्त होते चले गए. परिणामतः पिछले कुछ दिनों से बॉलीवुड में आम चर्चा हो रही है कि होमी अडजानिया ने अपनी फिल्म ‘‘तकदुम’’ को हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया.

लेकिन अब होमी अडजानिया ने चुप्पी तोड़ी है. होमी अडजानिया का दावा है कि उन्होंने ‘तकदुम’ का निर्माण हमेशा के लिए बंद नहीं किया है, मगर कुछ समय के लिए टाल दिया है. इतना ही नहीं होमी अडजानिया यह तो मानते हैं कि फिल्म के कथानक में कुछ गड़बड़ी के चलते ऐसा हुआ, पर वह यह स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि उनकी फिल्म की कहानी और करण जोहर की फिल्म ‘‘ऐ दिल है मुश्किल’’ की कहानी एक समान लग रही थी.

अब होमी अडजानिया ने कहा है कि ‘‘हमारी फिल्म ‘तकदुम’ की कहानी व पटकथा अंग्रेजी में लिखी गयी थी. जब इसका हिंदी अनुवाद किया गया, तो हमें लगा कि कि कहानी केा जबरन मुंबई में बसाने की कोशिश की गयी हो. यह बात हमारे गले नहीं उतरी. मैंने अपनी तरफ से इसकी कमियों को दूर करने कोशिश की. पर बात जमी नहीं. तो अब इसे हम पुनः लिखवा रहे हैं. जब कहानी व पटकथा का पुनः लेखन पूरा हो जाएगा, उसके बाद हम इस फिल्म का निर्माण करेगें. तब तक के लिए निर्माण कार्य स्थगित किया है.’’

सिर्फ ताजमहल ही नहीं प्रेम का प्रतीक

जीवनसाथी के प्रति प्रेम को संसार में चिरस्मरणीय बनाए रखने के लिए खूबसूरत महल, ऊंचे ऊंचे, बडे़ बड़े शानदार किले, आलीशान मकबरों आदि का बनाना नई बात नहीं है. इस का ज्वलंत उदाहरण ‘महलों का ताज’, भारत के आगरा में बना अद्वितीय प्रेम का प्रतीक, ताजमहल, अपनी सुंदरता, भव्यता एवं आकर्षण के कारण विश्व के ‘सात वंडर्स’ में एक है.

आगरा का ताजमहल अकेला ही एक ऐसे प्रेम का प्रतीक है जिस का कोई मुकाबला नहीं है. भारत के मुगल बादशाह शाहजहां की पत्नी मुमताज की मृत्यु के बाद शाहजहां ने अपने सच्चे प्यार को अमर करने के लिए दुनिया का सब से सुंदर और सर्वश्रेष्ठ महल बनाने की ठान ली थी और इस तरह एक अत्यंत सुंदर, आलीशान महल बन गया जिसे उस की अद्वितीय सुंदरता एवं भव्यता के कारण ताजमहल का नाम दिया है.

यहां हम विश्व के कुछ और शानदार ताजमहलों की बात करेंगे. प्रेम के प्रतीक कई प्रकार के होते हैं. आगरा के ताजमहल को देखने के बाद ऐसे ही अमर प्रेम के और प्रतीकों को देखने का मुझे अवसर मिला.

बोल्ट कैसल

कनाडा में 1,000 आईलैंड्स पर बोल्ट कैसल महल को जौर्ज बोल्ट ने अपनी प्रिय पत्नी लुईस की याद में बनवाया था. 1851 में जन्मा जौर्ज बोल्ट, अमेरिका का एक अरबपति था. बोल्ट अपनी पत्नी लुईस, जिसे वह ‘ब्यूटीफुल प्रिंसैस’ कह कर पुकारता था, को बहुत प्यार करता था. बोल्ट ने 1,000 आइलैंड्स पर लुईस की याद में एक चिरस्मरर्णीय महल बनाने का निश्चय किया. 1900 में इस प्रेम के प्रतीक का बनना शुरू हुआ. शायद उस ने आगरा के ताजमहल का नाम नहीं सुना था.

उस ने उस समय के मशहूर एवं महंगे से महंगे आर्किटैक्ट व करीगरों को इस महत्त्वपूर्ण कार्य में लगाया. बोल्ट ने निश्चय किया कि वैलेंटाइन डे और लुईस के जन्मदिन के अवसर पर उसे इस अपार प्रेम के उपहार को भेंट करेगा. अपने जन्मदिन के ठीक 1 महीने पहले बोल्ट को अकेला छोड़ 42 वर्षीया लुईस अचानक इस संसार को छोड़ कर चली गई. 1904 में बोल्ट कैसल बनाने का काम लुईस की अचानक मृत्यु के कारण बंद कर दिया गया. आज यह 1977 से एक टूरिस्ट केंद्र के रूप में जाना जाता है.

अत्यंत आधुनिक साजसज्जा एवं विश्व के विभिन्न भागों से लाई गई कलाकृतियों से सजा यह कैसल दुनिया के किसी राजमहल से कम नहीं है.

माउसोलस का मकबरा

पति पत्नी के अमरप्रेम के प्रतीक की एक निशानी हमें 377 बीसी में बने माउसोलस के मकबरे के रूप में मिलती है. इस प्यार की यादगार के पीछे की कहानी थोड़ी अलग है. यहां पर महल या मकबरा पति न बनवा कर पत्नी अपने पति के मरने के बाद उस की याद में बनाती है. जिस की अमरप्रेम को निशानी के रूप में दुनिया के उस समय के सब से शानदार मकबरों में गिनती होती है. माउसोलस अपनी रानी अर्टमीसिया के साथ हैलीकारनासस और उस के आसपास के क्षेत्रों में 24 साल तक राज करता रहा. अर्टमीसिया और माउसोलस आपस में इतना प्यार करते थे कि माउसोलस कभी भी अर्टमीसिया के बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकता था.

सन 353 बीसी में माउसोलस की अचानक मृत्यु हो गई. रानी अर्टमीसिया ने अपने पति की याद में दुनिया का सब से बड़ा और शानदार बहुमूल्य मकबरा बनाने का निश्चय किया. कई वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद 125 फुट ऊंचा तीनमंजिला मकबरा बन कर तैयार हुआ.

यह मकबरा अपनी सुंदरता, विशालता तथा अद्वितीय शिल्पकला की कृति के कारण विश्व का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक मकबरा गिना जाने लगा. अपनी सजावट एवं इस में लगी अति सुंदर मूर्तियों के कारण इस की ख्याति में कई गुना वृद्धि हुई. अर्टमीसिया द्वारा अपने पति राजा माउसोलस के प्रति अमरप्रेम के प्रतीक के रूप में बनाए गए इस मकबरे को एंशिएंट वर्ल्ड के सातवें आश्चर्य में गौरवपूर्ण स्थान मिला.

माउसोलस की मृत्यु के 2 वर्ष भी नहीं बीते थे कि अर्टमीसिया की मृत्यु हो गई. पतिपत्नी दोनों के पार्थिव शरीर इसी मकबरे में दफन हैं. अमरप्रेम की निशानी भारत के ताजमहल की तरह दोनों प्रेमियों के शरीर अपने बनाए इस शानदार मकबरे के नीचे शांत पड़े हैं.

हुमायूं का मकबरा

दिल्ली में बने हुमायूं के मकबरे की शानोशौकत ताजमहल से कम नहीं है. मुगल बादशाह हुमायूं की मृत्यु के बाद उस की विधवा हमीदा बानो बेगम ने अपने पति की याद में 1565 में दिल्ली में मथुरा रोड के पास एक आलीशान एवं भव्य मकबरा बनाया. इसे देखने से आप को किसी राजा के आलीशान महल की याद आती है.

यह मुगल साम्राज्य की अद्वितीय वास्तुकला तथा शिल्कला को भारत में फैलाने वाला प्रथम स्मारक है. जिस में पर्शियन निर्माणशैली की छवि दिखती है जो चारों तरफ सुंदर, हरेभरे बगीचों और क्यारियों से घिरा है. यह मकबरा भारतीय उपमहाद्वीप में मुगलों द्वारा बना प्रथम औद्योगिक मकबरा है जो आगे चल कर मुगलों के अनेक स्मारकों को बनाने में प्रेरणा बना. ताजमहल उस में से एक है. 15 लाख रुपयों में बनने वाले हुमायूं के इस मकबरे को ‘ताजमहल का दादा’ भी कहते हैं. दिल्ली का यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है.

हैंगिंग गार्डेंस

हैंगिंग गार्डेंस को बने 2,500 वर्ष से अधिक समय बीच चुका है किंतु अपने समय में बने स्मारकों में यह अपनी खूबसूरती और इस के बनने के पीछे जुड़ी कहानी के कारण इसे ताजमहल की श्रेणी में गिना जाता है.

बेबीलोन का हैंगिंग गार्डेंस ‘सैवन वंडर्स औफ एंशिएंट वर्ल्ड’ में गिना जाता है. बेबीलोन के बादशाह ने इसे 605 बीसी में अपनी प्रिय पत्नी एमिटिस को खुश रखने के लिए बनवाया था. यह प्यार कुछ गहरा, कुछ अनोखा और कुछ दिल की गहराइयों को छूने वाला था. इतिहास में इस तरह के अनोखे प्यार का दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता. विवाह के पहले एमिटिस हरेभरे मैदान, ऊंचेऊंचे पहाड़, झरने आदि, जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर थे, में रहती थी. शादी के बाद मैसोपोटामिया में राजा का महल और उस के आसपास के नीरस स्पौट्स, जो प्राकृतिक सौंदर्य से दूर थे, उसे रास नहीं आते थे. राजा ने अपने दिल की मल्लिका, सौंदर्य सामाज्ञी तथा गुणों की खान एमिटिस की उदासी दूर करने के लिए और उसे प्रसन्न रखने के लिए उसी तरह के पहाड़, हरेभरे जंगल, हरियाली, बागबगीचे आदि बनाने की योजना बनाई जो अंतिमरूप में हैंगिंग गार्डेंस के रूप में सामने आई.

एक कृत्रिम पहाड़ पर बने बड़ेबड़े खोखले खंभों के ऊपर छत, खंभों के अंदर भरी मिट्टी से निकलते पेड़पौधों और छतों को जोड़ती सुंदर कीमती संगमरमर की सीढि़यां, उस पर हरेभरे बगीचे, क्यारियां, पौधे आदि का यह एक मायावी संसार था. जगहजगह ऊंचेऊंचे फौआरे, वाटर फौल्स, विभिन्न प्रकार के रंगों के कई तरह के पुष्पों से सुसज्जित गमलों की सीढि़यों पर लगी कतारें प्राकृतिक सौंदर्य की कमी को सिर्फ पूरा ही नहीं किया बल्कि एक नई अनूठी, झूलती हुई अविश्वसनीय रचना ने एमिटिस के प्रति उस के प्रेम की निशानी को अमर बना दिया.

पति द्वारा पत्नी के प्यार में बनाया यह सुंदर, आकर्षक स्मारक किसी ताजमहल से कम न था. मगर समय के थपेड़ों ने इसे आज एक खंडहर के रूप में परिवर्तित कर दिया है.

इस प्रकार, विश्व के कई कोनों में कई ताजमहल बने, टूटे और इतिहास के पन्नों में गुम हो गए. पर शाहजहां द्वारा मुमताज के प्रति अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में आगरा में बनाया गया ताजमहल आज भी सुंदर एवं कलाकृति के सर्वश्रेष्ठ नमूने के रूप में लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.

इस का चिरयौवन सदियों तक लोगों को अपने मोह में बांध कर रखता रहेगा. विश्व के अनेक देशों के राष्ट्रपति, राजनेता, राजा, महाराजा, प्रिंस आदि विश्व की इस बेजोड़ कलाकृति की एक झलक पाने के लिए अनयास ही यहां खिंचे चले आते हैं.

सावधान : सुरक्षित नहीं बच्चे

देशभर में जिस समस्या को ले कर आएदिन चर्चा होती रहती है और चिंता जताई जाती है उसे ले कर भोपाल के अभिभावक लंबे वक्त तक दहशत से उबर पाएंगे, ऐसा लग नहीं रहा. मार्च के महीने में एक के बाद एक 3 बड़े हादसे हुए जिन में मासूम बच्चियों को पुरुषों ने अपनी हवस का शिकार बनाया. ऐसे में शहर में हाहाकार मचना स्वाभाविक था.

हालत यह थी कि मांएं अपनी बच्चियों को बारबार बेवजह अपने सीने से भींच रही थीं तो पिता उन्हें सख्ती से पकड़े थे. समानता बस इतनी थी कि मांबाप देनों किसी पर भरोसा नहीं कर रहे थे. चिडि़यों की तरह चहकने वाली बच्चियों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्यों मम्मीपापा एकाएक इतना लाड़प्यार जताते उन की निगरानी कर रहे हैं.

समस्या देशव्यापी है. कहीं कोई चिडि़या किसी गिद्ध का शिकार बनती है तो स्वभाविक तौर पर सभी का ध्यान सब से पहले अपनी बच्ची पर जाता है और लोग तरहतरह की आशंकाओं से घिर जाते हैं. बच्चियों के प्रति दुष्कर्म एक ऐसा अपराध है जिस से बचने का कोई तरीका कारगर नहीं होता है.

कैसे सुलझेगी और क्या है समस्या, इसे समझने के लिए भोपाल के हालिया मामलों पर गौर करना जरूरी है कि वे किन हालात में और कैसे हुए.

किडजी स्कूल

भोपाल के कोलार इलाके का प्रतिष्ठित स्कूल है किडजी. किडजी में अपने बच्चों को दाखिला दिला कर मांबाप उन के भविष्य और सुरक्षा के प्रति निश्ंिचत हो जाते हैं.

उस प्ले स्कूल की संचालिका हेमनी सिंह हैं. एक छोटी बच्ची के मांबाप ने उस का नर्सरी में 8 फरवरी को ही ऐडमिशन कराया था. इस बच्ची का बदला नाम परी है. परी जब स्कूल यूनिफौर्म पहन पहली दफा स्कूल गई तो मांबाप दोनों ने उसे लाड़ से निहारा.

पर परी पर बुरी नजर लग गई थी हेमनी सिंह के पति अनुतोष प्रताप सिंह की, जो खुद एक ऐसी ही छोटी बच्ची का पिता है. 24 फरवरी को परी के पिता ने कोलार थाने में अनुतोष के खिलाफ परी के साथ दुष्कर्म किए जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई. परी के भविष्य, मांबाप की प्रतिष्ठा और कानूनी निर्देशों के चलते यहां पूरा विवरण नहीं दिया जा सकता पर परी के पिता की मानें तो परी दर्द होने की शिकायत कर रही थी.

परी एक पढ़ेलिखे और खुद को सभ्य समाज का नुमाइंदा व हिस्सा कहने वाले की हैवानियत का शिकार हुई है.

अनुतोष प्रताप सिंह ने अपने रसूख और पहुंच के दम पर मामले को रफादफा करने और करवाने की कोशिश की.

उस के एक आईपीएस अधिकारी से पारिवारिक संबंध हैं, इसलिए पुलिस ने फौरन कोई कार्यवाही नहीं की. उलटे, थाने में उसे राजकीय अतिथियों जैसा ट्रीटमैंट दिया.

इस कांड पर हल्ला मचा और अखबारबाजी हुई, तब कहीं जा कर पुलिस हरकत में आई. उसे ससम्मान हिरासत में लिया गया. शुरुआत में पुलिस यह कह कर आरोपी को बचाने की कोशिश करती रही कि जांच चल रही है, मैडिकल परीक्षण हो गया है, सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं लेकिन चूंकि आरोप साबित नहीं हुआ है, इसलिए आरोपी की गिरफ्तारी नहीं की गई है.

जब परी की मैडिकल जांच में दुष्कर्म की आधिकारिक पुष्टि हुई तो 28 फरवरी को पहली दफा पुलिस ने इस वहशी को यौनशोषण का आरोपी माना और उसे कोलार क्षेत्र के गिरधर परिसर स्थित किडजी प्ले स्कूल से गिरफ्तार किया.

परी के नाना ने मीडिया को बताया कि उन की नातिन के गुनहगार को महज इसलिए गिरफ्तार नहीं किया गया

क्योंकि वह कोलार थाना प्रभारी गौरव सिंह बुंदेला का अच्छा दोस्त है. दबाव बढ़ता देख पुलिस विभाग को इस थाना प्रभारी को लाइन अटैच करना पड़ा.

आरोपी को अदालत में संदेह का लाभ मिले, इस बात के भी पूरे इंतजाम पुलिस वालों ने किए. मसलन, एफआईआर में आरोपी की पहचान व्हाट्सऐप के जरिए करवाई गई. 3 साल की एक बच्ची मुमकिन है घबराहट या डर के चलते पहचान में गड़बड़ा जाए और दुष्कर्मी को कानूनी शिकंजे से बचने का मौका मिल जाए, इस के लिए पुलिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी जिसे ले कर पुलिस विभाग और सरकार आम लोगों के निशाने पर हैं.

अवधपुरी स्कूल

भोपाल के ही अवधपुरी इलाके के एक सरकारी स्कूल का 56 वर्षीय शिक्षक मोहन सिंह पिछले 4 महीनों से एक 11 वर्षीय छात्रा बबली (बदला नाम) का शारीरिक शोषण कर रहा था. इस का खुलासा 15 मार्च को हुआ.

बकौल बबली, उस के सर (मोहन सिंह) उसे बुलाते थे, फिर कान उमेठते थे और पीठ पर मारते थे. बबली ने यह बात मां को बताई थी पर उन्होंने यह कहते उस की बात पर ध्यान नहीं दिया कि वह पढ़ाई से जी चुराती होगी, इसलिए सर ऐसा करते हैं. बबली की मां मोहन सिंह के यहां नौकरानी थी, इसलिए उस ने कोई बात उन से नहीं की.

एक दिन सर ने बबली को अपने कमरे में झाड़ू लगाने के लिए बुलाया तो वह हैरान हुई कि जब इस काम के लिए मां हैं तो सर उसे क्यों बुला रहे हैं. वह तो पहले से ही उन्हें ले कर दहशत में थी. चूंकि मजबूरी थी, इसलिए वह डरतेडरते मोहन सिंह के कमरे में गई. पर साथ में एक सहेली को भी ले गई. लेकिन मोहन सिंह ने उस सहेली को भगा दिया.

सहेली चली गई तो मोहन सिंह ने अपना वहशी रंग दिखाते हुए कमरा अंदर से बंद कर लिया और जबरदस्ती बबली के कपड़े उतार दिए. इस के पहले वह अपने कपड़े उतार चुका था. इस के बाद उस ने बबली को अपनी तरफ खींच लिया. इसी दौरान किसी ने दरवाजा खटखटाया तो मोहन सिंह ने बबली को धमकी दी कि किसी को कुछ बताया तो स्कूल से निकाल दूंगा. डरीसहमी बबली खामोश रही क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी.

मां ने बात नहीं सुनी तो बबली ने बूआ को सारी बात बताई. उन्होंने भाभी को समझाया तो दोनों बबली को ले कर मोहन सिंह के घर गईं जो भांप चुका था कि पोल खुल चुकी है, इसलिए इन्हें देखते ही भाग गया.

जब मामला उजागर हुआ तो पुलिस ने मोहन सिंह के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 376 और 342 के तहत मामला दर्ज कर लिया. 5 बच्चों के पिता मोहन सिंह की बड़ी बेटी की उम्र 30 साल है. अवधपुरी के प्राइमरी स्कूल में 15 बच्चियां पढ़ती हैं और 10 लड़के हैं. मोहन सिंह स्कूल का सर्वेसर्वा था. यह स्कूल 2 साल पहले शुरू हुआ है जिस में पढ़ने वाले छात्र गरीब घरों के हैं. बबली के पिता की मौत हो चुकी है और 7 भाईबहनों में यह छठे नंबर की है.

मोहन सिंह का मैडिकल देररात हुआ जबकि बबली और उस की मां, बूआ दोपहर साढ़े 4 बजे से देररात तक अवधपुरी थाने में भूखीप्यासी बैठी रहीं.

यानी पुलिस ने इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखाई तो उस की मंशा पर सवालिया निशान लगना स्वभाविक है. दूसरी कक्षा में पढ़ रही छात्रा के साथ उस का शिक्षक अश्लील हरकतें करता था और दुष्कर्म भी किया, यह बात भी संवेदनशील पुलिस की निगाह में कतई नहीं थी.

शातिर दुष्कर्मी

15 मार्च के दिन एक और मासूम बच्ची, नाम आफिया, उम्र 6 वर्ष, ने फांसीं लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली. आफिया की 3 बड़ी बहनों के मुताबिक, हादसे की शाम मम्मी सब्जी लेने बाजार गई थीं तब उस ने ऊपर कमरे में जा कर फांसी लगा ली.

भोपाल के लालघाटी इलाके के नजदीक के गांव बरेला निवासी अफजल खान मंगलवारा इलाके में चिकन शौप चलते हैं. घर में उन की पत्नी और 4 बेटियां रहती हैं.

एक 6 साल की बच्ची फांसी लगा कर जान दे सकती है, यह बात किसी के गले उतरने वाली नहीं थी. मौके पर पुलिस पहुंची तो कमरे में बहुत से कपड़े बिखरे पड़े थे. लोगों का यह शक सच निकला कि परी और बबली की तरह आफिया भी दुष्कर्म की शिकार हुई है और जुर्म छिपाने की गरज से उस की हत्या कर दी गई है.

शौर्ट पीएम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट में जख्म हैं और उस के साथ प्राकृतिक व अप्राकृतिक कृत्य हुआ है. जाहिर है उस की मौत को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश की गई थी जबकि 6 साल की बच्ची फांसी के फंदे की उतनी मजबूत गांठ नहीं लगा सकती जितनी की लगी हुई थी और दरवाजा खोल कर खुदकुशी नहीं करती.

आफिया के मामले में भी पुलिस की कार्यप्रणाली लापरवाहीभरी और शक के दायरे में रही. 15 मार्च को पुलिस की तरफ से कहा गया कि संभवतया उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ है क्योंकि उस के प्राइवेट पार्ट पर कोई जख्म नहीं था.

4 दिनों में रिपोर्ट बदल गई तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि मासूमों के असुरक्षित होने की बहुत सी वजहों में से एक, पुलिस की भूमिका भी है. 22 मार्च को पुलिस वालों ने साबित भी कर दिखाया कि इस अबोध ने खुदकुशी की थी. उस की हत्या नहीं की गई थी. और न ही किसी तरह का दुष्कर्म उस के साथ हुआ था.

इन तीनों मामलों से उजागर यह भी हुआ कि लड़कियां कहीं सुरक्षित नहीं हैं, किसी ब्रैंडेड स्कूल में भी नहीं, न ही सरकारी स्कूल में और उस जगह भी जो सुरक्षा की गारंटी माना जाता है यानी घर में.

अबोध लड़कियां मुजरिमों के लिए सौफ्ट टारगेट होती हैं और हैरत की बात है कि अधिकांश दुष्कर्मी अधेड़ होते हैं और बच्ची अकसर इन के नजदीक होती हैं. इन्हें जरूरत एक अदद मौके की होती है जिस के लिए वे किसी इमारत को ज्यादा महफूज मानते हैं. खुले पार्क, सुनसान या फिर हाइवे पर बच्चियों के साथ दुष्कर्म के हादसे अपेक्षाकृत कम होते हैं.

एकांत इस तरह के हादसों में एक बड़ा फैक्टर है तो जाहिर है भेडि़ए की तरह घात लगाए ये दुष्कर्मी काफी पहले अपने दिमाग में बलात्कार का नक्शा खींच चुके होते हैं.

जब भी एकांत मिलता है तब वे अपनी हवस पूरी कर डालते हैं. साफ यह भी दिख रहा है कि अबोध लड़कियों के दुष्कर्मियों को किसी श्रेणी में रखा जा सकता. वे सूटेडबूटेड सभ्य से ले कर गंवारजाहिल कहे और माने जाने वाले तक होते हैं. कुत्सित मानसिकता के स्तर पर इन में कोई फर्क नहीं किया जा सकता.

क्या करें

भोपाल के हादसों से स्पष्ट हुआ कि मांबाप ने सावधानियां भी रखीं और लापरवाहियां भी की. परी और बबली के उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अगर बच्ची किसी शिक्षक या दूसरे पुरुष के बाबत शिकायत कर रही है तो उसे किसी भी शर्त पर अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए.

भोपाल में मार्च के पूरे महीने इन मामलों की चर्चा रही पर कोई हल नहीं निकला. सारी बहस पुलिस की कार्यप्रणाली और दुष्कर्मियों की मानसिकता के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई.

एक गृहिणी वंदना रवे की मानें तो वे 2 बेटियों की मां हैं और इन हादसों के बाद से व्यथित हैं. पर उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा.

क्या सरकार सभी बच्चियों की हिफाजत की गारंटी ले सकती है, इस सवाल का जवाब भी शीशे की तरह साफ है कि नहीं ले सकती. इस मसले पर सरकार के भरोसे रहना व्यावहारिक नहीं है.

एक व्यवसायी रितु कालरा का कहना है कि बलात्कारियों को तुरंत फांसी पर चढ़ाया जाना जरूरी है जिस से दूसरे लोगों में खौफ पैदा हो और वे दुष्कृत्य करने से डरें.

लेखिका विनीता राहुरकर इस बात से सहमति जताते कानूनी सख्ती पर जोर देती यूएई की मिसाल देती हैं कि वहां इस तरह के मामले न के बराबर होते हैं जबकि हमारे देश क्या, शहर में ही, यह आएदिन की बात हो चली है. कुछ महिलाओं ने पौर्न साइट्स के बढ़ते चलन को इस की वजह माना तो कइयों ने पुरुषों के कामुक स्वभाव को इस के लिए जिम्मेदार ठहराया.

एक कठिनाई यह है कि अब एकल परिवारों के चलते कामकाजी मांबाप हमेशा चौबीसों घंटे बच्चों से चिपके नहीं रह सकते. इसी बात का फायदा दुष्कर्मी उठाते हैं. उन में और घात लगाए बैठे हिंसक शिकारियों में वाकई कोई फर्क नहीं होता, इसलिए रितु और विनीता की बात में दम है.

अगर अनुतोष प्रताप सिंह को अपराध साबित होने के 72 घंटों के अंदर फांसी दे दी गई होती तो

क्या मोहन सिंह की हिम्मत बबली के  साथ दुष्कर्म करने की होती. हालांकि निर्णायक तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता पर संभावना इस बात की ज्यादा है कि हां, वह हिचकता.

3 साल की परी को क्यों अदालत ला कर बयान देना पड़े, यह बात भी विचारणीय है कि दुष्कर्म के ऐसे मामलों में मां के बयान ही काफी हों.

क्या यह सभ्य समाज की निशानी है कि 3 साल की एक मासूम बच्ची, जो दुष्कर्म जैसे घृणित अपराध का शिकार हुई, को ही मुजरिमों की तरह अदालत में जाना पड़ा जहां वह दीनदुनिया से बेखबर, कागज की नाव से खेलते प्रतीकात्मक तौर पर यह बताती रही कि औरत की जिंदगी तो दुनिया में आने के बाद से ही कागज की नाव सरीखी होती है. पुरुष की कुत्सित मानसिकता का जरा सा प्रवाह ही उसे डुबो देने के लिए काफी है.

अपराधी को अपनी बात कहने, बचाव करने या सफाई का मौका ही न देना मुमकिन है कानूनन और मानव अधिकारों के तहत ज्यादती लगे पर यह हर्ज की बात नहीं. एकाध बेगुनाह फांसी चढ़ भी जाए तो बात ‘कोई बात नहीं’ की तर्ज पर हुई मानी जानी चाहिए. बजाय इस के कि बच्ची का बलात्कार होने के बाद ‘ऐसा तो होता रहता है’ कह कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली जाए. एक मासूम के प्रति यह विचार नहीं रखना चाहिए कि वह किसी बदले, प्रतिशोध या किसी तरह के लालच के लिए पुरुष को फंसाने की बात सोच पाएगी.

कमजोरी, धर्म और महिलाएं

लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं, इस का सीधा सा मतलब यह शाश्वत सत्य है कि औरतें शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर हैं. भोपाल की महिलाएं मानने को तैयार नहीं और देश की अधिसंख्य महिलाएं भी इस बात से सहमत नहीं होंगी कि महिलाओं के प्रति असम्मान और अपमान की शाश्वत मानसिकता में धर्म का बड़ा हाथ है. औरतों को तरहतरह से बेइज्जत करने के मर्द के डीएनए धर्म की देन हैं.

धर्म कहता है, स्त्री भोग्या है, पांव की जूती है, शूद्र है. फिर यही धर्म नारीपूजा का ढोंग करने लगता है. उसे देवी बताने लगता है. बात छोटी बच्चियों की करें तो नवरात्र के दिनों में घरघर में उन का पूजन होता है. उन्हें हलवापूरी खिलाया जाता है और उपहार व नकदी भी दी जाती है.

यह विरोधाभास देख लगता है कि बलि का बकरा तैयार किया जा रहा है. भोपाल के दुष्कर्म के मामलों के संदर्भ में यही धर्मशोषित महिलाएं चाहती हैं कि कृपया धर्म को बीच में न घसीटें, क्योंकि यह आस्था का विषय है.

पारिवारिक, सामजिक, प्रशासनिक और राजनीतिक वजहों से परे महिलाओं को अपनी दुर्दशा को धर्म के मद्देनजर भी देखना होगा, तभी बच्चियों की सुरक्षा को ले कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है.

आस्था की दुहाई देने वाली महिलाएं खुद दोयम दरजे की जिंदगी जी रही हैं तो क्या खाक  वे बच्चियों की सुरक्षा पर ठोस कुछ बोल पाएंगी. असल दोष पुरुष की मानसिकता का है जो कानून या राजनीति से नहीं, बल्कि धर्म से होते हुए समाज में आई है.

लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था और अब तकनीक होने के चलते कोख में ही उन की कब्र बना दी जाती है. इन बातों की धर्म के मद्देनजर खूब आलोचना हुई कि लोग लड़का इसलिए चाहते हैं कि वह तारता है. अब बारी यह सोचने की है कि अब कहीं ऐसा इसलिए तो नहीं किया जा रहा कि मांबाप में यह डर बैठ गया हो कि जब वे बच्ची को सुरक्षित नहीं रख सकते तो उसे दुनिया में क्यों लाएं.

औरतें शिक्षित तो हुई हैं पर पर्याप्त जागरूक नहीं हो पाई हैं. अपने अधिकारों की उन की लड़ाई 8 मार्च के दिन ही शबाब पर होती है. वह भी शोपीस जैसी ही. न तो वे स्वाभिमानी हो पाई हैं और न ही आत्मनिर्भर हो गई हैं.

भोपाल के हादसों को ले कर कोई धरनाप्रदर्शन नहीं हुआ. खुद को मुख्यधारा में मानने वाली महिलाएं क्लबों और किटी पार्टी में व्यस्त रहीं. ऐसे में इन से क्या उम्मीद की जाए, सिवा इस के कि उन्हें इस समस्या से कोई सरोकार नहीं.

बच्चियां इस सांचे में इस लिहाज से फिट बैठती हैं कि उन्हें हिफाजत देने वाला पुरुष खुद बागड़ बन कर खेत को खा रहा है और कानून के नाम पर हायहाय मचाई जाती है जो आंशिक तौर पर सच भी है. पुरुष की सामंती और उद्दंड मानसिकता का धर्म के आगे नतमस्तक होना, मासूम बच्चियों को वासना की खाई में ढकेलने जैसी ही बात है.

कैसे हो हिफाजत

क्या मासूमों को हवस के इन शिकारियों से बचाया जा सकता है, यह सवाल बेहद गंभीर है जिस का जवाब यह निकलता है कि नहीं, आप कुछ भी कर लें, पूरे तौर पर बच्चियों को इन से बचाया नहीं जा सकता.

यह निष्कर्ष जाहिर है बेहद निराशाजनक है. पर ऐसे हादसों की संख्या कम की जा सकती है, इस के लिए इन टिप्स को ध्यान में रखना चाहिए :

–       बच्ची को अकेला कभी न छोड़ें.

–       किसी परिचित या अपरिचित पर कतई भरोसा न करें.

–       स्कूल में वक्तवक्त पर जा कर बच्ची की निगरानी करें.

–       बच्ची भयभीत या गुमसुम दिखे तो तुरंत उसे भरोसे में ले कर प्यार से उसे टटोलने की कोशिश करें कि माजरा क्या है. ऐसी हालत में उस के प्राइवेट पार्ट देखे जाना भी हर्ज की बात नहीं.

–       चाचा ने भतीजी से या मामा ने किया भांजी का बलात्कार, जैसी हिला देने वाली खबरें अब बेहद आम हैं. जिन के चलते नजदीकी रिश्तेदारों पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है कि कहीं उन की निगाह बच्ची पर तो नहीं. उन की बौडी लैंग्वेज और हरकतें देख अंदाजा लगाया जा सकता है कि कहीं इस तरह का कोई कीड़ा उन के दिमाग में तो नहीं कुलबुला रहा.

–       उसे अकेला न खेलने दें, निगरानी करते रहें, अंधेरा होने के बाद घर से बाहर न जाने दें, जैसी सावधानियों के साथ अहम बात यह है कि स्कूल में उस की 6-8 घंटे की जिंदगी है. इसलिए स्कूल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, यह जरूर सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वहां महिला कर्मचारियों की संख्या ज्यादा हो और इमारत में हर जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हों.

–       स्कूल बस के कंडक्टर और ड्राइवरों की इस लिहाज से निगरानी करते रहना चाहिए कि इन्हें लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स से छेड़छाड़ करने का पूरा मौका मिलता है. अब जरूरत महसूस होने लगी है कि लड़कियां जिस वाहन में जाएं उस में एक महिला कर्मचारी की नियुक्ति अनिवार्य हो.

–       लड़की को अगर होस्टल या झूलाघर में छोड़ना पड़े, तो उस की सतत निगरानी जरूरी है. बीते दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था जिस में होस्टल या अनाथाश्रम में एक महिला एक छोटी बच्ची को जानवरों की तरह पीट रही थी. यह किस देश की घटना है, वीडियो से स्पष्ट नहीं है पर महिला बेहद व्याभिचारी भी है, यह भी दिखता है कि परपीड़न में उसे सुख मिलता है.

फर्जीवाड़ा डौट कौम

हम भारतीय हर माने में देश को अमेरिका बनाना चाहते हैं, पर यह नहीं देखते कि अमेरिका ने किस तरह अपनी एक टौप की ऐनर्जी कंपनी ‘एनरौन’ के खातों में घपला पाए जाने पर न सिर्फ कंपनी के मालिक को पकड़ कर जेल में डाल दिया, बल्कि इस की नीलामी से मिले पैसे धोखाधड़ी के शिकार निवेशकों में बांट दिए. अमेरिका ही नहीं, इंडस्ट्री के बल पर चल रहे दक्षिण कोरिया में दुनिया की 35वीं अर्थव्यवस्था के बराबर ताकत रखने वाली इलैक्ट्रौनिक्स कंपनी सैमसंग के मालिक ली जी योंग के साथ इस साल की शुरुआत में ऐसी रगड़ाई की खबरें आई थीं कि उन के बारे में हमारे देश में कल्पना तक नहीं की सकती.

यहां के उद्योपतियों के साथ वैसा बरताव होने पर कई राजनीतिक दल ही उन का पक्ष ले कर हंगामा करने सड़कों पर उतर आए. यहां तो हाल यह है कि विजय माल्या जैसा फ्रौड व्यक्ति बैंक अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर करोड़ों रुपए ले कर विदेश भाग गया और उस से हुए नुकसान की भरपाई के लिए देश पर नोटबंदी थोप दी गई. इसी तरह वोडाफोन ने भारत में 12 अरब डौलर लगा कर हचिंसन को खरीद लिया, लेकिन टैक्स के रूप में एक पैसा तक सरकारी खजाने में जमा नहीं किया. ताजा उदाहरण साल की शुरुआत में पकड़ में आए साइबर ठगी मामले में महज 3 लोगों ने मिल कर नोएडा में चिटफंड कंपनी के रूप में 37 अरब का औनलाइन फर्जीवाड़ा कर डाला और सरकार को इस फर्जीवाड़े की खबर तक न हुई. यदि धोखाधड़ी के शिकार कुछ लोगों ने शिकायतें दर्ज न कराई होतीं, तो शायद यह घोटाला खरबों की रकम डकारने के बाद भी न रुकता. ध्यान रहे कि शारदा घोटाले में 17.4 लाख लोगों से 20 हजार करोड़ रुपए, रोज वैली में 60 हजार करोड़ और सहारा मामले में 36 हजार करोड़ रुपए की धोखाधड़ी की गई थी, कोई शक नहीं कि सोशल ट्रेड के नाम पर ठगी का यह सिलसिला 3,700 करोड़ रुपए के पार जा कर कहीं थमता, अगर कुछ लोगों ने इस की शिकायत न की होती.

वैसे तो इंटरनैट के प्रचारप्रसार का दौर शुरू होने के बाद लगातार यह कहा जाता रहा है कि भविष्य की सब से बड़ी चुनौती आपराधिक साइबर गतिविधियां ही होंगी, जिन से इंटरनैट के माध्यम से संचालित होने वाली इन आपराधिक और आतंकी गतिविधियों को कोई व्यक्ति या संगठन देशदुनिया और समाज को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करे. अभी तक देश में इस तरीके से कई गैरकानूनी काम हुए हैं, जैसे औनलाइन ठगी, बैंकिंग नैटवर्क में सेंध, लोगों खासकर महिलाओं को उन के गलत प्रोफाइल बना कर परेशान करना.

सोशल नैटवर्किंग के जरिए एक किस्म की पोंजी स्कीम (चिटफंड कंपनी जैसी योजना) चलाने का यह पहला बड़ा मामला है जो नोएडा में पकड़ में आया. नोएडा लाइक स्कैम नामक इस साइबर घोटाले का खुलासा यूपी एसटीएफ ने फरवरी के आरंभ में यह कहते हुए किया कि देशभर के करीब साढ़े 6 लाख लोगों से सोशल ट्रेड के नाम पर एक कंपनी ने 3,700 करोड़ रुपए ठग लिए हैं.

इस फर्जीवाड़े में 3 लोगों को गिरफ्तार करते हुए एसटीएफ ने दावा किया था कि एब्लेज इंफो सौल्यूशंस नाम की कंपनी नोएडा से अपना औफिस संचालित कर रही थी. यह कंपनी सोशल ट्रेड डौट बिज के नाम पर निवेशकों से मल्टी लैवल मार्केटिंग के जरिए डिजिटल मार्केटिंग के लिए पैसा ले रही थी, जिस में कंपनी के केनरा बैंक खाते में जमा 524 करोड़ रुपए सीज किए गए. कंपनी पर पड़े छापे में एसटीएफ को साढ़े 6 लाख लोगों के फोन नंबर डाटाबेस में मिले, जबकि 9 लाख लोगों के पहचानपत्र बरामद किए गए.

एसटीएफ ने कंपनी पर छापा मार कर कंपनी के निदेशक अनुभव मित्तल, सीईओ श्रीधर प्रसाद और तकनीकी प्रमुख महेश को गिरफ्तार किया. अनुभव मित्तल पुत्र सुनील मित्तल हापुड़ जनपद के पिलखुवा का

रहने वाला है, जबकि कंपनी का सीईओ श्रीधर पुत्र पीएस रमया मूलरूप से विशाखापट्टनम निवासी है और फिलहाल नोएडा के 53बी, सैक्टर-53 में रह रहा था. एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार तीसरा अभियुक्त कंपनी का टैक्निकल हैड महेश दयाल पुत्र गोपाल मथुरा जनपद के थाना बरसाना क्षेत्र स्थित कमई गांव का रहने वाला है. इस मामले में केनरा बैंक के एक मैनेजर की गिरफ्तारी हुई.

फर्जीवाड़े को कैसे दिया अंजाम

यों तो कंपनी ने दावा किया कि उस ने अपने निवेशकों से मिले अधिकतर पैसे निवेशकों को लौटा दिए थे पर जिस तरह से कंपनी के खातों में सैकड़ों करोड़ रुपए मिले, उस से साफ है कि कंपनी कुछ और रकम जमा होने के बाद यहां से रफूचक्कर हो जाती और इस में फंसे लाखों लोग हाथ मलते हुए रह जाते.

हालांकि निवेशकों से पैसा लेने की इस कंपनी की स्कीम शारदा, सहारा और रोज वैली जैसी पोंजी स्कीमों से काफी अलग थी. कंपनी की स्कीम लेने वालों को तयशुदा रकम देने पर एक विशेष आईडी के जरिए सोशल ट्रेड डौट बिज पोर्टल से जोड़ा जाता था और उन्हें अपनी आईडी पर दिखने वाले विज्ञापनों को फेसबुक और ट्विटर की तरह रोजाना ‘लाइक’ यानी क्लिक करना पड़ता था, जिस के बदले प्रति लाइक रकम देने का वादा था. ‘घर बैठे कुछ वैबसाइट लिंक्स पर क्लिक करें और बदले में अच्छे पैसे कमाएं’, इस स्लोगन के साथ कंपनी ने कुछ ही समय में लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ लिया था. आईडी यानी सदस्यता हासिल करने के लिए कंपनी सोशल ट्रेड डौट बिज पोर्टल से जोड़ने के नाम पर 5,750 रुपए, 11,500 रुपए, 28,750 रुपए तथा 57,500 रुपए सदस्यता के तौर पर लेती थी. आईडी मिलने पर जब सदस्य पोर्टल पर मिलने वाले लिंक को लाइक करता था, तो उसे एक लाइक पर कंपनी सदस्य के खाते में 5 रुपए के हिसाब से पेमैंट करती थी. यही नहीं, अन्य पोंजी स्कीमों की तरह इस योजना में भी हर सदस्य को 21 दिन में अपने साथ 2 और लोगों को जोड़ना होता था, जिस के बाद सदस्य को पोर्टल पर रोजाना मिलने वाले लिंक दोगुने हो जाते थे.

सदस्यों को शुरुआत में रोजाना पेमैंट दी जाती थी, लेकिन बाद में उसे साप्ताहिक कर दिया जाता था. इस के अलावा सदस्यों को प्रमोशनल इनकम के रूप में भी कुछ रकम देने का झांसा दिया जाता था.

हालांकि कंपनी दावा करती थी कि वह विभिन्न कंपनियों के विज्ञापनों को लाइक कराने के बदले ज्यादा रकम पाती थी, जिस में से अपना हिस्सा काट कर वह बाकी सदस्यों में बांट देती थी, पर सचाई यह है कि यह कंपनी खुद ही इस तरह के फर्जी विज्ञापन डिजाइन कर के पोर्टल पर डालती थी और नए सदस्यों से हासिल रकम का कुछ हिस्सा पुराने सदस्यों को वापस करती थी.

कंपनी की मनशा फर्जीवाड़े की ही थी, इस का खुलासा इस बात से होता है कि सरकारी जांच एजेंसियों की पकड़ से बचने के लिए यह कंपनी कुछ समय से लगातार नाम बदल रही थी.

कंपनी में लोगों का भरोसा तेजी से बढ़ने के पीछे की वजह यह थी कि असल में मामूली रकम लगाने के बाद इस में कोई विशेष दिमागी काम तो करना ही नहीं था. बस, घर बैठे मोबाइल या कंप्यूटर पर दिखने वाले लिंक्स पर क्लिक करने के मोह ने दिल्लीएनसीआर से ले कर विदेशों में बैठे लोगों को भी आकर्षित किया.

यही नहीं, जब नवंबर, 2016 में कंपनी के एक समारोह में बौलीवुड अभिनेत्री सन्नी लियोनी और अमीषा पटेल जैसी अभिनेत्रियां शामिल हुईं तो लोगों का भरोसा और पुख्ता हो गया. यही वजह है कि इस के झांसे में आए लोगों ने एक नही कई अकाउंट खोल रखे थे और कुछ ने तो क्लिक की मेहनत करवाने के लिए भी 300-400 रुपए रोजाना दे कर लड़के तक रख लिए थे. सब से आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस कंपनी का फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद भी लोग इस के समर्थन में मुहिम चलाते रहे.

आंखों में धूल झोंकने की नीयत

यह कंपनी कैसे लोगों की आंखों में धूल झोंक रही थी, इस का खुलासा इस बात से हुआ कि पोर्टल पर विज्ञापनों के जिन लिंक्स के खुलने का दावा किया जाता था, खुद क्रिएट करती थी, जबकि कंपनी का दावा था कि लिंक उसे विज्ञापनदाता कंपनियां भेजती हैं.

शुरुआती जांच में ही नोएडा पुलिस ने साफ कर दिया कि इस में विज्ञापनदाता कोई थर्ड पार्टी नहीं थी. कंपनी के पोर्टल पर दिखने वाले सभी लिंक फर्जी होते थे जो लाइक के बाद कंपनी के सर्वर में डंप कर दिए जाते थे. कंपनी सिर्फ पैसा बनाने के लिए मल्टी लैवल मार्केटिंग के जरिए अपनी जेब भर रही थी.

खास बात यह है कि देश में इस तरह की मल्टी लैवल मार्केटिंग पर मनी सर्कुलेशन ऐक्ट, 1978 के तहत प्रतिबंध लगा है, लेकिन बावजूद इस के न तो ऐसी फ्रौड कंपनियों पर कोई प्रतिबंध है और न ही उन से धोखा खाने वालों का सिलसिला रुक रहा है. सोशल ट्रेड बिज से पहले स्पीक एशिया और क्यू नैट जैसी कंपनियां इसी तरह मल्टी लैवल मार्केटिंग के नाम पर लोगों को चूना लगा चुकी हैं.

व्यक्तिगत लालच एक वजह

इंटरनैट और सोशल मीडिया पर ठगी के दर्जनों तरीके हैं जिन के जरिए लोगों को फंसाया जाता है और उन से रकम ऐंठी जाती है. लौटरी का झांसा देना, किसी दूसरे मुल्क में वसीयत में छोड़ी गई संपत्ति आप के नाम ट्रांसफर करने के बदले फीस मांगना, विदेश से आए तोहफे की ड्यूटी चुका उसे आप तक पहुंचाना, क्रैडिट व एटीएम कार्ड की हैंकिंग जैसी अनगिनत वारदातें तकरीबन रोज होती हैं और एक किस्सा बंद होते ही साइबर ठगी का कोई दूसरा नया उदाहरण हमारे सामने उपस्थित हो जाता है.

ऐसे हादसे साबित करते हैं कि इंटरनैट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में सजगता का सारा मामला एकतरफा है. लोग इंटरनैट का इस्तेमाल करना तो सीख गए हैं, पर उस के विभिन्न मंचों पर क्याक्या सावधानियां बरतें, इस का उन्हें कोई आइडिया ही नहीं है. सरकार भी कानून पर कानून तो बनाती है, पर उस के पहरुओं की नींद तब टूटती है. जब अरबों का घोटाला हो चुका होता है और लाखों लोग अपनी पूंजी गंवा चुके होते हैं. 

वैसे साइबर ठगी की इस बड़ी घटना की 2 अहम वजह हैं. एक तो यह कि सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में भारत खुद को अगुआ मानता रहा है, उस के आईटी ऐक्सपर्ट दुनियाभर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं और अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थापित सिलीकौन वैली की स्थापना तक में भारतीय आईटी विशेषज्ञों की भूमिका मानी जाती है.

साइबर खतरों को भांपते हुए सरकार 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति जारी कर चुकी है, जिस में देश के साइबर सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर की रक्षा के लिए प्रमुख रणनीतियों को अपनाने की बात कही गई थी. इन नीतियों के तहत देश में चौबीसों घंटे काम करने वाले एक नैशनल क्रिटिकल इन्फौर्मेशन प्रोटैक्शन सैंटर (एनसीईआईपीसी) की स्थापना शामिल है, जो देश में महत्त्वपूर्ण इन्फौर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर की सुरक्षा के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में काम कर सके.

सवाल है कि क्या इन उपायों को अमल में लाने में कोई देरी या चूक हुई है अथवा यह हमारे सूचना प्रौद्योगिकी तंत्र की कमजोर कडि़यों का नतीजा है कि एक ओर हैकर जब चाहे सरकारी प्रतिष्ठानों की वैबसाइट्स ठप कर रहे हैं और दूसरी ओर साइबर आतंकी भी अपनी गतिविधियां चलाने में सफल हो रहे हैं?

जो सरकार और पुलिस ठगी की बड़ी घटना के बाद संदिग्ध लोगों की धरपकड़ से ले कर उन के नैटवर्क का पता लगाने में मुस्तैद नजर आती है, वह किसी कंपनी के कामकाज शुरू करने से पहले यह पड़ताल क्यों नहीं करती कि आखिर वह किस तरह का काम कर रही है? क्या कंपनी ऐक्ट उसे ऐसी जानकारियां लेने से रोकता है या फिर सरकार का काम सिर्फ कागजी खानापूर्ति मात्र है?

सवाल कमाई के ऐसे आसान तरीके खोजने और उस में अपनी पूंजी फंस कर सिर पीटने वाली युवापीढ़ी से भी है, जो वैसे तो बेरोजगारी का रोना रोती है, लेकिन आसान काम के बदले बड़ी रकम के लालच में फंस जाती है. युवा यह क्यों नहीं सोचते कि किसी जरिए से उस के पास थोड़ेबहुत पैसे आते हैं, तो वह उन का इस्तेमाल ऐसे गैरकानूनी कामों में करती है जो आगे चल कर मुसीबत करते हैं. ऐसे लोगों के दिमाग में यह बात क्यों नहीं आती कि मात्र एक क्लिक के बदले कोई भी कंपनी 5-7 रुपए क्यों दे रही है, जबकि उस से किसी किस्म की आर्थिक सेवा का सर्जन नहीं हो रहा है?      

निवेश से पहले की सावधानियां

यदि आम लोग किसी भी वित्तीय योजना अथवा निवेश कराने वाली कंपनी में पैसा लगाने से पहले कुछ सावधानियां बरतें, तो ठगे जाने से बच सकते हैं :

–       कंपनी के कामकाज पर नजर डालें कि क्या वे जमा कराई गई रकम या ली गई फीस के बदले कोई विश्वसनीय सेवा कर रही हैं या कोई व्यवसाय कर रही हैं.

–       कंपनी के उच्चाधिकारियों के बारे में पूरी तरह से जांचपड़ताल करें. यह देखें कि उन का प्रोफैशनल अनुभव क्या है? क्या पहले उन्होंने इस तरह की कंपनियों या चिटफंड कंपनियों का संचालन किया है?

–       कंपनियों के उच्चाधिकारियों की राजनीतिक नहीं, वित्तीय पोजिशन देखी जाए. यह पता करने की कोशिश हो कि कंपनी की कुल परिसंपत्तियां क्या हैं. यदि कंपनी के उच्चाधिकारी किसी प्रकार की धोखाधड़ी कर के भागते हैं तो क्या उन की परिसंपत्ति बेच कर निवेशकों का पैसा लौटाया जा सकता है?

–       निवेश पर रिटर्न की दर की तुलना मार्केट रेट से की जानी चाहिए. यह जरूर देखा जाए कि अन्य वित्तीय कंपनियां क्या रिटर्न दे रही हैं.

–       बाजार विशेषज्ञों की राय अवश्य ली जानी चाहिए और शुरुआत में छोटी रकम का ही निवेश करना चाहिए. 

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