‘सेठजी’ के लिए तैयार होने में 1-2 घंटे लगते हैं

जब हम किसी हीरो-हीरोइन को बना ठना देखते हैं तो लगता है कि हमें भी उसके जैसा दिखने के लिये वैसी ही ड्रेस पहननी चाहिये. असल में हीरो-हीरोइन अपनी जरूरतों के हिसाब से ड्रेस, ज्वेलरी पहनते हैं और मेकअप करते हैं. सही मायनों में वह अपने को रिलैक्स फील करने के लिये कैजुअल ड्रेस ही पसंद करते है.

जीटीवी के टीवी शो सेठजीमें देवी का किरदार निभा रही प्राची ठक्कर कहती हैं, यह शो महाराष्ट्र के एक गांव की पृष्ठभूमि पर बना है. इसमें हैवी साड़ी, हैवी ज्वेलरी के साथ शुद्ध मराठी तानाबाना होता है. इस किरदार के गेटअप में आने में मुझे एक से दो घंटे का वक्त लग जाता है. अगर कोई ऐपीसोड फेसिटवल का होता है तो यह समय और भी अधिक लग जाता है.

सेठजीमें अपने किरदार के विषय में प्राची ठक्कर कहती हैं मेरा किरदार पहले के किरदारों से पूरी तरह से अलग है. ग्रे शेड लिये हुये निगेटिव जैसा किरदार है. पूरी तरह से ड्रामा से भरपूर है. मेरे पहले के शो रोने धोने वाले रहे हैं. यह कॉमेडी से भरपूर शो है. यह अलग टाइप का कैरेक्टर है. मुझे पूरी उम्मीद है कि दर्शक मुझे पसंद करेंगे. मेरा महाराष्ट्रियन लुक लोगों को खूब पसंद आ रहा है. मुम्बई की रहने वाली प्राची ठक्कर ने इसके पहले कसौटी जिदंगी’, ‘कागज की कश्ती’, ‘तू कहे अगर’, ‘हवनऔर नीली छतरी वालेजैसे कई सीरियलों में काम कर चुकी हैं.

प्राची ने शादी के बाद ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रखा. वह अपने परिवार के जरूरतों को देखते हुये अभी भी समय समय पर ब्रेक लेती रहती है. प्राची के पति पंकित ठक्कर टीवी एक्टर हैं. एक पार्टी में प्राची को एकता कपूर ने देखा और उनको कसौटी जिदंगी में राखी का रोल ऑफर किया. इसके बाद प्राची को कई शो मिलने लगे.

जब वह पहली बार गर्भवती हुई तो टीवी की दुनिया से ब्रेक लिया. बच्चे की देखभाल करने के बाद वह समय निकालकर कुछ विज्ञापन फिल्मों और शूटिंग में काम करती रही. उसमें समय कम लगता है.

प्राची कहती हैं करियर के साथ परिवार भी बहुत जरूरी है. ऐसे में जरूरत के हिसाब से समय को मैनेज करने का प्रयास करती हूं. यही मेरी प्राथमिकता है. देवी के किरदार में मुझे जिस तरह की टेंपल ज्वेलरी पहनने को दी गई है वह मुझे बहुत पसंद है. मुझे अपना यह किरदारी ग्रे, फनी और लाउड लगता है. इसलिये बहुत पसंद है.

हलके बालों के लिए हेयरस्टाइल

अधिकांश युवतियां हलके बाल होने के कारण बालों को खुला रखने या किसी प्रकार का हेयरस्टाइल बनाने में हिचकिचाती हैं, वे समझ नहीं पातीं कि उन पर कौन सा हेयरस्टाइल सूट करेगा, जिस से स्कैल्प नजर न आए, क्योंकि हलके बालों के साथ यह दिक्कत आती है कि अगर पार्टिशन किया जाए या सैक्शन निकाला जाए तो स्कैल्प नजर आने लगता है.

ऐसे ही हलके बालों को खूबसूरत लुक देने के लिए हेयरस्टाइलिस्ट पूनम चुघ बता रही हैं कुछ खास हेयरस्टाइल जो आप को डिफरैंट व स्टाइलिश लुक देंगे:

यंगस्टर पार्टी हेयरस्टाइल

सब से पहले इयर टू इयर पार्टिशन करें, फिर पीछे के बालों को ले कर पोनीटेल बना लें. अब पोनी के बीच में राउंड डोनट लगाएं और पिन से अच्छी तरह फिक्स करें ताकि डोनट हिले नहीं. इस के बाद डोनट पर बालों को फैला दें और ऊपर से रबड़ बैंड लगा दें. अब आप इस में से थोड़े से बाल ले कर ट्विस्ट करें, राउंड सर्कल में ऐसे ही करें. अंत में पिन से अच्छी तरह फिक्स करें ताकि बाल निकलें नहीं.

इस के बाद आगे के दोनों भागों से बाल ले कर अच्छी तरह कंघी करें. फिर साइड के बालों को 2 भागों में बांटें और ट्विस्ट ऐंड टर्न कर बन के पास पिन करें. अब सैंटर के बालों से छोटेछोटे सैक्शन ले कर ट्विस्ट करें और बन के पास पिन करें. अंत में ऐक्सैसरीज से डैकोरेट करना न भूलें.

फ्लावर हेयरस्टाइल

इयर टू इयर पार्टिशन करने के बाद पीछे के बालों को ले कर साइड पोनीटेल बना लें. अब आगे के बालों से छोटेछोटे सैक्शन ले कर बैक कौंबिंग करें. बैक कौंबिंग के बाद ऊपर से बालों को क्लीन कर के रबड़ लगा लें. रबड़ लगाने के बाद एल शेप में पिन लगाएं ताकि पफ खराब न हो.

अब पफ के नीचे के बालों को ले कर चोटी बनाएं और एक साइड से लूज कर लें. फिर अंदर की साइड जहां लूप नहीं निकाला गया है उस साइड से रोल कर के पिन्स अच्छी तरह से लगाएं.

इस के बाद साइड पोनीटेल में हेयर ऐक्सटैंशन लगाएं. अगर ऐक्सटैंशन कलरफुल हो तो हेयरस्टाइल अट्रैक्टिव लगता है इसलिए कोशिश करें ऐक्सटैंशन कलरफुल हो. अब पोनीटेल को 2 भागों में बांटें. एक सैक्शन ले कर चोटी बनाएं. फिर एक साइड से हलका हलका लूज कर लें और अंदर की तरफ मोड़ कर पिन लगाएं. फिर दूसरे सैक्शन में भी ऐसा ही करें. अंत में खूबसूरत ऐक्सैसरीज से फिनिशिंग दें.             

फौरमल हेयरस्टाइल

इयर टू इयर पार्टिशन करने के बाद आगे के बालों में हेयर रोलर लगाएं और हेयर स्प्रे कर थोड़ी देर के लिए छोड़ दें. अब साइड के छोटे छोटे बालों को ट्विस्ट कर के रबड़ बैंड लगा लें.

इस के बाद सारे बालों को ले कर पोनीटेल बना लें. अब पोनी से छोटेछोटे सैक्शन ले कर बैक कौंबिंग करें. बैक कौंबिंग हो जाने के बाद साइड से रोल कर के पिन्स लगा लें. अब हलकाहलका खींच लें और साइड में ला कर पिन लगाएं. अंत में आगे के बालों से हेयर रोलर निकाल कर साइड पार्टिशन करें.

नौट लूप हेयरस्टाइल

इयर टू इयर पार्टिशन के बाद डोनट को सी शेप में काट लें. अब फ्रंट के बालों को सी शेप डोनट में रैप कर के पीछे पिन लगा लें. अब दोनों साइड छोड़े गए बालों को भी रैप कर लें. इस के बाद पीछे के बालों में पोनी कर के डोनट लगाएं, डोनट को पिन से फिक्स करें फिर नौट लूप बनाएं और डोनट पर फिक्स करें.

क्रिम्प पफ हेयरस्टाइल

कुछ नया करना चाहती हैं तो आगे के सैक्शन में क्रिम्पिंग मशीन से क्रिम्प करें. क्रिम्प करने के बाद यह न सोचें कि काम खत्म हो गया बल्कि एकदम हलके हाथों से बैक कौंबिंग कर के पफ बना लें. अब पीछे के बालों को ले कर पोनीटेल बनाएं और पोनी में डोनट लगाएं फिर पिन से अच्छी तरह से सैट करें. फिर डोनट के पास से बाल ले कर ट्विस्ट ऐंड टर्न करें फिर रोल कर के डोनट के ऊपर लगाएं. पूरे बालों में इसी तरह से करें और हां, अंत में ऐक्सैसरीज लगाना न भूलें.

कुछ जरूरी टिप्स

आगे के हलके बालों में बैक कौंबिंग छोटेछोटे सैक्शन ले कर करें, इस से पफ सही से बनता है.

हलके बालों में कभी भी हैवी ऐक्सैसरीज न लगाएं, क्योंकि यह बालों में टिकती नहीं है.

जब भी हेयरस्टाइल बनाएं तो बाल अच्छी तरह से वाश करें ताकि हेयरस्टाइल में नीटनैस नजर आए.

हेयरस्टाइल में क्लिप का इस्तेमाल कम से कम करें.

ऐक्टिंग के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं : दिशा परमार

छोटी सी उम्र में दिल्ली से मुंबई जैसे महानगर में कदम रखने वाली दिशा को बंधी बंधाई परिपाटी पर चलना पसंद नहीं. उन्हें बचपन से ही सजनेसंवरने का शौक था. इसीलिए उन्होंने ऐक्टिंग को अपना कैरियर बनाया.

स्लिमट्रिम दिशा की सादगी उन के कपड़ों और मेकअप से साफ झलकती है. हैवी मेकअप से परहेज करने वाली दिल्ली की दिशा पर ऐक्टिंग का ऐसा जनून सवार हुआ कि 16 साल में ही पढ़ाई को अलविदा कह ऐक्टिंग से नाता जोड़ लिया.

दिल्ली की गलियों में शौपिंग करने और दही भल्ले खाने के मजे को दिशा मुंबई आने पर बहुत मिस करती हैं. शो ‘प्यार का दर्द है मीठा मीठा, प्यारा प्यारा’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली दिशा से उन के नए शो ‘कोई अपना सा’ के इवैंट पर मुलाकात के दौरान कुछ सवाल जवाब हुए.

कम उम्र में ऐक्टिंग की शुरुआत से बीच में पढ़ाई छोड़ने का कोई असर पड़ा?

मैं जब 12वीं कक्षा में थी तभी मुझे पहला शो मिल गया. तब मुझे पढ़ाई और ऐक्टिंग में से एक को चुनना पड़ा, क्योंकि दोनों एक साथ नहीं हो सकते थे. लेकिन मैं मानती हूं कि ऐक्टिंग के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं है. हमारी इंडस्ट्री में कई ऐसे सितारे हैं, जो कम पढ़े लिखे होने के बावजूद आज बुलंदियों पर हैं. आमिर खान को ही देख लीजिए. वे 12वीं कक्षा पास हैं पर फिल्म इंडस्ट्री में टौप पर हैं. ऐक्टिंग पढ़ाने वाली चीज नहीं है और न ही इसे कोई सिखा सकता है. यह तो सैल्फ ग्रूमिंग से ही आती है.

तो जो एनएसडी और एफटीआईआई से आते हैं वे कौन होते हैं?

मैं आप की बात मानती हूं कि एनएसडी में अभिनय की बारीकियों को सिखाया जाता होगा, लेकिन आप ही बताएं कि कितने लोग हैं, जो एनएसडी और एफटीआईआई से निकल कर फिल्मों में हैं. इन की संख्या बहुत कम है. ज्यादातर को मौका नहीं मिलता. हालांकि मैं उन्हें अपने से बहुत अच्छा कलाकार मानती हूं. लेकिन उस कला का क्या फायदा जिसे दिखाने का मौका ही आप को न मिले.

थिएटर के मुकाबले टीवी में काम करना कितना आसान है?

मुझे थिएटर का ज्यादा ऐक्सपीरिएंस नहीं है, क्योंकि मैं ने बचपन में ही स्कूल थिएटर में भाग लिया था. मुझे नौन स्टौप बोलने से बड़ा डर लगता है. सैकड़ों की भीड़ में बिना कट के बोलना बहुत ही कठिन काम है. लेकिन टीवी में भी काम करना उतना आसान नहीं है. हफ्ते में रोज 12 से 14 घंटे बिना रुके शूटिंग करना कोई आसान काम नहीं. हम लोग एक दिन में 12 सीन तक शूट करते हैं, क्योंकि डेली सोप की शूटिंग रोज होती है. इस में तो हमें यह भी मालूम नहीं होता कि अगले दिन कहानी में क्या बदलाव आने वाला है.

डेली सोप में किसी तरह की तैयारी करने का या रोल पर खास वर्क करने का समय नहीं मिलता है, क्योंकि शौट से 15 मिनट पहले ही स्क्रिप्ट हाथ में दी जाती है. तभी पता चल पाता है कि क्या करना है. लेकिन फिल्मों में ऐसी मारामारी नहीं है. वहां एक दिन में एक ही सीन शूट हो पाता है.

रिश्तों में कितना विश्वास रखती हैं?

हर शख्स का किसी न किसी से रिश्ता जरूर है. मैं व्यक्तिगत जीवन में रिश्तों को बहुत महत्त्व देती हूं. मैं आज भी अपना कोई भी काम मम्मी पापा से पूछे बिना नहीं करती. फिर हमारा शो भी रिश्तों के ताने बाने पर आधारित है, जिस में मेरा जाह्नवी का कैरेक्टर भी बहुत कुछ मेरी निजी जिंदगी के करीब है. मैं भी जाह्नवी की तरह भूत, भविष्य में विश्वास नहीं करती. बिंदास हूं, कमजोर नहीं और न ही जीवन की कठिनाइयों में आंसू बहाती हूं.

पंखुड़ी से जाह्नवी किस तरह अलग है?

दोनों में जमीन आसमान का अंतर है. ‘प्यार का दर्द है’ की पंखुड़ी तो बिलकुल ही बात नहीं करती थी. हमेशा गुमसुम सी खयालों में खोई रहती थी पर जाह्नवी ठीक इस के विपरीत है. वह कभी चुप नहीं बैठती. हमेशा फिल्मों का कोई न कोई डायलौग सुनाती रहती है. हां, जो दोनों में समानता है वह है फैमिली को प्यार करना. मैं निजी जिंदगी में पंखुड़ी के ज्यादा करीब हूं, क्योंकि मैं बहुत सीधीसादी सिंपल गर्ल हूं. मुझे ज्यादा शो औफ करना और बोलना पसंद नहीं है. शुरू में तो बहुत ही कम बात करती थी. अब जब सैट पर जाने लगी हूं, तो बोलने भी लगी हूं.

पहले शो के बाद 3 साल तक कहां गायब रहीं?

यह 3 साल का ब्रेक मैं ने कुछ प्लान करने के लिए ही लिया था पर वह प्लानिंग फेल हो गई, इसलिए वापस टीवी में आ गई. इस के पहले मेरे पास ‘गुलाम’ और ‘एक था राजा एक थी रानी’ के भी प्रस्ताव आए थे, लेकिन फाइनली मैं उन का हिस्सा न बन सकी. लेकिन मैं जैसी कहानी चाहती थी वैसी जब मुझे इस शो की लगी, तो मैं ने तुरंत हां कर दी.

आप अपने होने वाले जीवनसाथी में क्या देखेंगी?

अभी तो ऐसा कुछ नहीं सोचा है. हां, अगर कोई मिलता है तो मैं चाहूंगी कि वह तमीज वाला जरूर हो. वह सच्चा हो, दूसरों की इज्जत करने वाला हो, क्योंकि मुझे घर में बचपन से यही सिखाया गया है कि अगर इज्जत दोगे तो इज्जत मिलेगी और यही मैं अपने पार्टनर में चाहती हूं.

कोई फिल्म मिलती है तो किस तरह का रोल करने की तमन्ना है?

मैं फिल्म ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ में सिमरन वाला रोल करना चाहती हूं. जब यह फिल्म आई थी तब मैं बहुत छोटी थी, लेकिन तब से ले कर अब तक मैं इसे कई बार देख चुकी हूं. काजोल और शाहरुख की मैं बहुत बड़ी फैन हूं.

खाली समय में क्या करती हैं?

मुझे शौपिंग करना बहुत पसंद है. जब भी मौका मिलता है, तो शौपिंग करने निकल जाती हूं. मैं फैशन ट्रैंड पर नजर रखती हूं और अपडेट रहती हूं. ट्रैंड में रहना ही मेरा स्टाइल मंत्र है. कुछ भी मैं नहीं पहन सकती. मैं ऐसे कपड़े पहनती हूं जिन में सहज महसूस कर सकूं. हैवी मेकअप मुझे बिलकुल पसंद नहीं है. अपना ज्यादा समय अपने साथी कलाकारों के साथ बिताती हूं, इसलिए कि वे सभी मेरे दोस्त हैं.

प्रकृति प्रेमियों को लुभाता मांडू

चांदनी रात में दूर दूर तक पहाडि़यों और ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों को देखने का आनंद अगर कहीं देखने में आता है तो वह जगह मांडू है. प्रकृतिप्रेमियों को मांडू हमेशा से ही आमंत्रित करता रहा है. अद्भुत शांति के लिए मशहूर मांडू में आ कर लगता है कि शहरों की व्यस्त भागादौड़ी और आपाधापी भरी जिंदगी के मुकाबले एक ऐतिहासिक प्रेम कहानी को गुंजते इस स्थल की बात ही निराली है.

एक रोचक किस्सा

रूपमती अपने नाम के मुताबिक असाधारण रूप से सुंदर थी. वह एक किसान की बेटी थी. मुगल शासक बाज बहादुर उस के सौंदर्य पर ही नहीं मरमिटा था, बल्कि रूपमती गाती भी बहुत अच्छा थी. धर्म की परवा न करते उस ने रूपमती से शादी की थी. रूपमती के सौंदर्य और गायन के चर्चे जब अकबर तक पहुंचे तो उस ने बाज बहादुर को संदेश पहुंचाया कि रूपमती को उस के पास दिल्ली भिजवा दिया जाए. इस पर पतिधर्म निभाते बाज बहादुर ने जवाब यह दिया कि वे अपनी रानी को मांडू भिजवा दें.

इस बात पर तिलमिलाए अकबर ने मांडू पर हमला कर दिया और बाज बहादुर को बंदी बना लिया. वह रूपमती तक पहुंच पाता, इस के पहले ही रूपमती ने हीरा खा कर अपनी जान दे दी थी. इस प्यार और त्याग को अकबर ने समझा तो वह बहुत पछताया और बाज बहादुर को आजाद कर दिया. पर बाज बहादुर रूपमती को इतना चाहता था कि उस ने रूपमती की कब्र पर सिर फोड़ फोड़ कर जान दे दी थी. कहा यह भी जाता है कि अकबर का सेनापति आदम खां भी रूपमती पर जान देता था.

मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्थित मांडू तक पहुंचना थोड़ा तकलीफदेह काम है. हालांकि यह तकलीफ मांडू में दाखिल होने के साथ ही खत्म हो जाती है जब यहां की हरियाली और रमणीयता से पर्यटक रूबरू होते हैं.

मांडू की हर इमारत की एक दास्तान है, उस का शिल्प है, इतिहास है और अंजान चुंबकीय खिंचाव है जो बरबस ही पर्यटकों को एहसास कराता है कि वे अगर यहां न आते तो एक यादगार अनुभव से वंचित रह जाते. आदिवासी बाहुल्य जिले धार के इस कसबे की आबोहवा भी पर्यटकों को ताजगी व स्फूर्ति से भर देती है.

जब पर्यटक यहां घूमना शुरू करते हैं तो औसतन हर आधा किलोमीटर पर इमारत में चस्पां एक कहानी उन का इंतजार कर रही होती है. नर्मदा किनारे बसे इस पर्यटन स्थल का सब से बड़ा आकर्षण बाज बहादुर शाह का महल है जिस का निर्माण 15वीं ईसवी में एक मुगल शासक नासिर शाह ने करवाया था. लाल पत्थरों से निर्मित इस महल का भीतरी उत्तरी भाग संगमरमर से बना है. ऐसे ही एक संगमरमरी झरोखे से बाज बहादुर जंगलों को देखता था.

मांडू के वैभव का एक दूसरा उदाहरण रूपमती महल है. नासिर शाह द्वारा ही बनवाए इस महल की छत से हरियाली और धुंध का दृश्य पर्यटकों का मन मोह लेता है. ऐसा कहा जाता है कि रानी रूपमती प्रतिदिन इस महल की छत से नर्मदा नदी का दर्शन कर के ही अन्नजल ग्रहण करती थी. बाज बहादुर और रूपमती के प्रेम का साक्षी यह महल 3 मंजिला है और संकरा है जिस की छत तक पहुंचने के लिए झुक कर चढ़ना पड़ता है. बारिश के दिनों में जब नर्मदा नदी उफान पर होती है तब यहां का दृश्य काफी मनोरम हो जाता है. चारों तरफ से धुआं सा उठता दिखता है.

मांडू के महल और इमारत देखने के लिए एक दिन काफी नहीं, हालांकि अधिकांश पर्यटक दिनभर में मांडू घूम लेते हैं क्योंकि वे इंदौर में ठहरते हैं. पर रात में मांडू देखने का लुत्फ कुछ और है, खास कर चांदनी रात में.

हिंडोला महल, होशंगशाह का मकबरा, अशरफी महल, जहाज महल, रेवा कुंड, तवेली महल और दाई का महल जैसी दर्जनों इमारतें मांडू की शान बढ़ाती हैं.

मांडू छोटा सा कसबा है जिस में रात 8 बजे के बाद चहलपहल खत्म सी हो जाती है. इसलिए घूमने के लिए सुबह जल्द उठ कर जाना बेहतर होता है. किराए की साइकिल से मांडू घूमना किफायत का काम है. यहां स्थानीय वाहन कम ही मिलते हैं और दूरदराज की इमारतों तक जाने से चालक कतराते हैं.

एक मुसलिम शासक बाज बहादुर और हिंदू रानी रूपमती की प्रणय गाथा को उकेरता मांडू वाकई रोमांटिक स्थल भी है जिस पर फिल्म भी बन चुकी है. भ्रमण के दौरान आदिवासी जीवन की सरलता और सहजता भी समझ आती है. आदिवासियों द्वारा निर्मित कई छोटी वस्तुएं यहां मिलती हैं. महेश्वर की मशहूर साडि़यां भी यहीं मिलती हैं.

रुकें ओंकारेश्वर में

इंदौर से मांडू आते वक्त रास्ते में ओंकारेश्वर रुक कर जरूर घूमना चाहिए जहां नर्मदा नदी पूरे वेग से बहती है. ओंकारेश्वर की प्राकृतिक छटा भी दर्शनीय है. कईर् फिल्मों की शूटिंग यहां हो चुकी है और अभी भी अकसर होती रहती है. मांडू से जब पर्यटक वापस लौटते हैं तो उन के साथ अटूट स्मृतियां होती हैं, जेहन में यहां की हरियाली, अद्भुत शांति, झूमते पेड़ और शानदार भव्य इमारतें होती हैं.

इंदौर से मांडू सड़क के रास्ते आना उपयुक्त रहता है. अब पर्यटक वर्षा ऋतु में भी यहां आने लगे हैं क्योंकि उस वक्त यहां की खूबसूरती और लहलहाते जंगल की खूबसूरती शबाब पर होती है. बारिश में ओंकारेश्वर का नजारा निराला होता है.

सोनाक्षी ने ‘नूर’ को बॉक्स ऑफिस पर डुबाया !

बॉलीवुड में हर शुक्रवार कलाकार की तकदीर बदलती है. यूं तो हमने इस फिल्म की समीक्षा में ‘नूर’ द्वारा बॉक्स ऑफिस पर लागत वसूल करने पर संषय व्यक्त किया था, लेकिन सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म ‘नूर’ की तो बॉक्स ऑफिस पर हमारी सोच से भी ज्यादा बुरे हालात हैं. हमने समीक्षा में लिखा था कि सोनाक्षी सिन्हा पत्रकार के किरदार में फिट नहीं बैठी. उनकी परफॉर्मेंस बहुत गड़बड़ है. और अब ‘नूर’ के प्रदर्शन के बाद बॉलीवुड में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या वास्तव में सोनाक्षी सिन्हा में अभिनय के गुण नहीं हैं?

बॉलीवुड में जो चर्चाएं हो रही हैं, उसके ठोस वजहें हैं. सोनाक्षी सिन्हा पिछले तीन वर्षों से लगातार असफल फिल्में देती आ रही हैं. उनकी पिछली बुरी तरह असफल हुई फिल्म ‘‘अकीरा’’ ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर पांच करोड़ कमा लिए थे, मगर ‘नूर’ तो पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर महज एक करोड़ 54 लाख ही कमा सकी. दूसरे दिन यानी कि शनिवार व छुट्टी के दिन भी यह फिल्म महज एक करोड़ 89 लाख ही कमा सकी. सोनाक्षी सिन्हा को अपने अभिनय करियर को लेकर नए सिरे से सोचने की जरुरत है.

पूरे देश में 1450 स्क्रीन्स/सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘‘नूर’’ को दर्शक नहीं मिल रहे हैं. शुक्रवार की सुबह इस फिल्म को देखने के लिए पूरे देश में महज दस प्रतिशत दर्शक ही थिएटरों में मौजूद रहें. मुंबई व उससे सटे भायंदर उपनगर के कुछ सिनेमाघरों में सुबह के शो में ‘नूर’ देखने लिए महज पांच प्रतिशत दर्शक ही मौजूद रहे. तीसरे दिन रविवार को शाम तक जो खबरें मिली, उसके अनुसार रविवार की छुट्टी के बावजूद फिल्म की कमाई में गिरावट आ गयी.

बॉलीवुड से जुड़े सूत्र तो सवाल कर रहे हैं कि क्या दो दिन के अंदर हुई तीन करोड़ तेंतालिस लाख रूपए की कमाई से 1450 स्क्रीन्स का खर्च निकल पाएगा? लागत की बात तो बाद में आएगी. ‘नूर’ के इतने बुरे हालात तब हैं, जबकि इस फिल्म के साथ एक भी ऐसी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई है, जो कि ‘नूर’ को टक्कर दे सकती हो. यदि ‘नूर’ के सामने कोई अच्छी फिल्म प्रदर्शित हुई होती, तो शायद ‘नूर’ के लिए मुसीबतें बढ़ जाती. यही वजह है कि ‘नूर’ की असफलता के लिए लोग पूरी तरह से सोनाक्षी सिन्हा को ही दोषी मान रहे हैं. तो वहीं आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो चुका है.

सूत्रों के अनुसार फिल्म के निर्माता सोनाक्षी सिन्हा को दोषी ठहराते हुए आरोप लगा रहे हैं कि सोनाक्षी ने ‘‘नूर’’ को ठीक से प्रमोट करने की बजाय टीवी के रियालिटी शो को जज करने में व्यस्त रहीं. जबकि सोनाक्षी के नजदीक सूत्र फिल्म की असफलता का सारा ठीकरा फिल्म की पीआर टीम पर थोप रहे हैं. तो कुछ लोग सोनाक्षी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार यदि फिल्म ‘‘नूर’’ को अच्छे ढंग से प्रमोट कर दर्शकों के मन में इस फिल्म को लेकर उत्सुकता पैदा की गयी होती, तो कम से कम सुबह के शो में अच्छे दर्शक मिल जाते. और फिर अच्छी फिल्म न होने पर दूसरे शो में दर्शक गिरते, मगर फिल्म का सही प्रचार न होने की वजह से सुबह के शो में दर्शक नहीं पहुंचे.

एक तरफ जहां आरोप प्रत्यारोप का सिलसला चल पड़ा है, तो दूसरी तरफ सोनाक्षी सिन्हा के पिता शत्रुघ्न सिन्हा ने पिता का फर्ज निभाते हुए सोनाक्षी सिन्हा का बचाव करने की जिम्मेदारी संभाल ली है. शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बेटी सोनाक्षी सिन्हा के अभिनय तथा फिल्म ‘नूर’ की तारीफ में कसीदें पढ़ते हुए कहा है, ‘‘इस फिल्म से उसने साबित कर दिखाया कि वह उस काम को भी बेहतर ढंग से अंजाम दे सकती है, जिसे एक उत्कृष्ट कलाकार होते हुए भी मैं नहीं कर पाया था. मैं उसकी हर फिल्म नहीं देखता. मगर मैंने यह फिल्म देखी है और आज मैं एक पिता नहीं, बल्कि एक कलाकार की हैसियत यह कह रहा हूं कि वह बेहतरीन अदाकारा है. उसने बहुत कठिन हिस्से को भी आसानी से निभाया है. इस फिल्म में उसने बहुत कठिन किरदार निभाया है. ‘लुटेरा’ के बाद अब सोनाक्षी ने अति बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है.’’

एक पिता होने के नाते शत्रुघ्न सिन को अपनी बेटी का हौसला हाफजाई करनी चाहिए. मगर हमें याद आ रहा है कि फिल्म ‘लुटेरा’ भी बॉक्स ऑफिस पर असफल थी और इस फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावणे हमसे बात करते हुए इस बात को स्वीकार कर चुके हैं. सिर्फ शत्रुघ्न सिन्हा ही नहीं अब तो संगीतकार शेखर राजवानी भी सोनाक्षी सिन्हा की परफॉर्मेंस की तारीफ करने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं.

इसके बाद भला सोनाक्षी सिन्हा कहां चुप रहने वाली थी. उन्होंने ट्विटर पर शायरी करते हुए लोगों को जवाब देना शुरू कर दिया है. खैर, ‘नूर’ के बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह मात खाने के बाद जिस तरह से बॉलीवुड का एक तबका धीरे धीरे सोनाक्षी सिन्हा के अभिनय के कसीदें पढ़ते हुए सामने आ रहा है, उससे किसी को भी आश्चर्य नहीं हो रहा है. क्योंकि बॉलीवुड की शख्सियतों की पुरानी फितरत है कि लोगों को चने के झाड़ पर चढ़ाते रहो.

अब सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि आम दर्शक फिल्म ‘नूर’ देखकर अपना निर्णय डंके की चोट पर सुना रहे हैं कि उसे फिल्म ‘नूर’ और सोनाक्षी सिन्हा पसंद नही आयी.

यह आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला धीरे धीरे क्या रूप लेता है, देखना रोचक होगा. साथ ही यह भी देखने लायक होगा कि सोनाक्षी सिन्हा की तारीफ में कसीदें पढ़ने के लिए कौन कौन सामने आता है.

इसरो नासा से कम नहीं

रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें तकनीक के मामले में भारतचीन जैसे पूरब के देशों से तगड़ी चुनौती मिलेगी. चुनौती भी ऐसी कि वे इस संबंध में अपने भविष्य के बारे में सोचने को मजबूर हो जाएं.

इधर, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 15 फरवरी, 2017 को अपने प्रक्षेपणयान पीएसएलवी-सी37 से भारतीय कार्टोसैट-2 सीरीज के उपग्रह के अलावा स्वयं के 2 अन्य, अमेरिका के 96, इजरायल, कजाखस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात का एकएक यानी कुल मिला कर 104 नैनोसैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े, तो यह खुद उस के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के संदर्भ में भी एक नया रिकौर्ड था. एक मुख्य, 2 छोटे और 101 नन्हे (नैनो) सैटेलाइटों की यह एक किस्म की बरात थी, जिस से जलने वालों की दुनिया में कमी नहीं है. निश्चय ही इसरो की सफलता देश का सिर गर्व से ऊंचा करती है पर यह मामला अब बाजार का ज्यादा है, जिस में सेंध नहीं लगने देने का इंतजाम अगर हम ने कर लिया, तो जमीन पर रोजगार से ले कर शोध के आसमान तक हमारा वर्चस्व कायम होने में देर नहीं लगेगी.

चीन, रूस व अमेरिका को  चुनौती

एक वक्त था, जब हमारे देश को अपने उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए सोबियत रौकेटों और निजी कंपनी ‘आर्यनस्पेस’ पर निर्भर रहना पड़ता था. इनसैट श्रेणी के उपग्रह भारत ने इसी तरह भारी खर्च कर के प्रक्षेपित किए हैं और इस में लाखों डौलर की रकम खर्च की है, पर आज यह नजारा पूरी तरह बदल गया है, आज इसरो खुद दुनिया भर (करीब 21 देशों) के उपग्रह अपने सब से भरोसेमंद रौकेटों से अंतरिक्ष में भेज रहा है और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आर्यनस्पेस अब इसरो की व्यापारिक सहयोगी कंपनी बन गई है.

इसरो को मिली इस शानदार उपलब्धि के पीछे 2 अहम कारण हैं. पहला यह कि सैटेलाइट लौंचिंग के लिए इसरो अपने स्पेस मिशन दुनिया में सब से कम लागत में पूरे कर रहा है. इस का एक बड़ा उदाहरण वर्ष 2014 में तब मिला था, जब भारत का मार्स मिशन मंगल तक पहुंचा था. इस पर इसरो ने सिर्फ 73 अरब डौलर खर्च किए थे, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मार्स मिशन में 671 अरब डौलर का खर्च आया था.

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात स्पेस अभियानों में इसरो की सफलता की दर है. अमेरिका, रूस और यहां तक कि चीन की स्पेस एजेंसियों द्वारा प्रक्षेपित अंतरिक्ष अभियानों की असफलताएं कहीं ज्यादा हैं. सफलता की दर और अभियान की कीमत आज के अंतरिक्ष बाजार में ये 2 महत्त्वपूर्ण कारण बन गए हैं जिस में इसरो कामयाबी के बल पर अपनी साख बनाता जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि पड़ोसी देश चीन भी भारत की तुलना में अपने स्पेस मिशनों पर ढाईगुना ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है, हालांकि सैटेलाइट्स की लौंचिंग के मामले में उस की क्षमता भी भारत से चारगुना ज्यादा है. इस के बावजूद इसरो चीन के साथसाथ रूस और अमेरिका की स्पेस एजेंसियों के लिए चुनौती बन गया है. अमेरिका के लिए इसरो कैसे चुनौती बना है, इस की मिसाल इस से मिलती है कि पीएसएलवी-सी37 द्वारा इस बार जो 101 विदेशी नैनो सैटेलाइट सफलता से छोड़े गए, उन में से 96 अमेरिका के हैं. इन में भी 88 सैटेलाइट एक ही अमेरिकी कंपनी ‘प्लेनेट लैब’ के हैं. यह कंपनी धरती की छवियां लेने और उन्हें वर्गीकृत कर के बेचने का काम करती है. जाहिर है कि उस के पास अमेरिकी कंपनियों समेत कई विकल्प रहे होंगे, लेकिन मुनाफे के लिए व्यवसाय कर रही एक कंपनी ने इसरो पर भरोसा किया, यही इसरो की काबिलीयत दर्शाता है.

घबराई विदेशी एजेंसियां    

सचाई यह है कि इसरो की सफलता से अब अमेरिकी और ब्रिटिश स्पेस कंपनियां घबराने लगी हैं. अमेरिका के निजी अंतरिक्ष उद्योग के कारोबारियों और अधिकारियों ने पिछले साल इसरो के कम लागत वाले प्रक्षेपणयानों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलने की बात एक सार्वजनिक चिंता के रूप में सामने रखी थी और कहा था कि इस से अमेरिकी अंतरिक्ष कंपनियों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. यह चिंता जताने वालों के मुखिया ‘स्पेस फाउंडेशन’ के सीईओ इलियट होलोकाउई पुलहम ने कहा था कि असली मुद्दा बाजार का है. उन का कहना था कि जिस तरह भारत सरकार इसरो के प्रक्षेपणयानों के लिए सब्सिडी देती है, वह इतनी नहीं होनी चाहिए कि उस से इस स्पेस बाजार में मौजूद अन्य कंपनियों के वजूद पर ही खतरा मंडराने लगे.

अमेरिका की तरह भारत के महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों से कई ब्रिटिश सांसद भी नाराज बताए जाते हैं. इस संबंध में ब्रिटिश मीडिया में छपी खबरों में कहा गया है कि भारत को ब्रिटेन की ओर से अरबों रुपए की सहायता राशि मिलती है, जिस का उपयोग इसरो लंबी दूरी की मिसाइलों और स्पेस कार्यक्रमों में करता है. ये बातें स्पष्ट करती हैं कि इसरो की सफलता अमेरिकाब्रिटेन जैसे देशों के पेट में मरोड़ पैदा कर रही है.

बढ़ रही कमाई

इसरो के अंतरिक्ष अभियानों की भारत में ही यह कहते हुए पहले काफी आलोचना हुई है कि उसे चंद्रमा या मंगल जैसे मिशन चलाने से पहले देश की गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का इलाज करना चाहिए. आलोचना का आधार यह होता था कि चूंकि इन अभियानों में देश के करदाताओं से ली गई भारी रकम खर्च होती है जो असल में देश के विकास कार्यक्रमों में लगनी चाहिए थी, पर इसरो ने अपने स्पेस मिशनों से साबित किया है कि वह अब खुद कमाई करने वाला संगठन बन गया है.

हाल के आंकड़ों के अनुसार, इसरो की व्यापारिक इकाई ‘एंट्रिक्स कौरपोरेशन’ का विदेश व्यापार इस वित्त वर्ष (2015-2016) में 204.9त्न बड़ा है. एशियन साइंटिस्ट मैगजीन में पिछले साल प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पिछले 3-4 वर्ष में ही विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी से प्रक्षेपित कर के इसरो ने 54 लाख डौलर की कमाई की है. हाल के 104 सैटेलाइट्स की लौंचिंग से मिले पैसों से इस कमाई में और इजाफा हुआ है, क्योंकि माना जा रहा है कि सिर्फ इसी अभियान से इसरो को 100 करोड़ रुपए विदेशी एजेंसियों से मिले हैं. हालांकि इस आंकड़े की पुष्टि इसरो ने नहीं की है.

इसरो या इस की सहयोगी संस्था एंट्रिक्स द्वारा विदेशी उपग्रहों की लौंचिंग की कीमत का सरकार ने भी कभी खुलासा नहीं किया, लेकिन माना जाता है कि यह शुल्क विदेशी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले 60त्न तक कम होता है. अनुमान है कि नासा एक उपग्रह को लौंच करने के लिए अमूमन 25 हजार डौलर प्रति किलोग्राम के हिसाब से शुल्क लेता रहा है. कम शुल्क लेने के बावजूद पीएसएलवी से अब तक स्पेस में भेजे गए देशीविदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के जरिए एंट्रिक्स कौरपोरेशन कंपनी लिमिटेड एक लाभदायक प्रतिष्ठान में बदल चुका है.

अनुमान है कि विदेशी सैटेलाइट लौंच कर के एंट्रिक्स कौरपोरेशन 750 करोड़ रुपए से ज्यादा की विदेशी मुद्रा कमा चुका है. उल्लेखनीय है कि आज दुनिया में पीएसएलवी को टक्कर देने वाला दूसरा रौकेट (वेगा) सिर्फ यूरोपीय स्पेस एजेंसी के पास है, लेकिन उस से उपग्रहों की लौंचिंग की कीमत इसरो के मुकाबले कई गुना अधिक है. प्रतिस्पर्धी कीमत पर सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण ही वह कारण है कि पीएसएलवी दुनिया के पसंदीदा रौकेटों में बदल गया है और आज ज्यादा से ज्यादा देश अपने सैटेलाइट इसरो की मदद से स्पेस में भेजने के इच्छुक हैं.

यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि अब पूरी दुनिया में मौसम की भविष्यवाणी, दूरसंचार और टैलीविजन प्रसारण का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और चूंकि ये सारी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, लिहाजा ऐसे संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.

दखल की शुरुआत

जहां तक भारतीय रौकेटों से विदेशी उपग्रहों की लौंचिंग का प्रश्न है, तो इस की शुरुआत डेढ़ दशक पहले 26 मई, 1999 को पीएसएलवी-सी2 से भारतीय उपग्रह ओशन सैट2 के साथ कोरियाई उपग्रह किट सैट3 और जरमनी के उपग्रह टब सैट को सफलतापूर्वक उन की कक्षा में स्थापित करने के साथ हुई थी, पर इस उड़ान में चूंकि एक भारतीय उपग्रह भी शामिल था, इसलिए इसे इसरो की पहली कामयाब व्यावसायिक उड़ान नहीं माना जाता. इस के बजाय पीएसएलवी-सी10 के 21 जनवरी, 2008 के प्रक्षेपण को इस मानक पर सफल करार दिया जाता है, क्योंकि उस से भेजा गया एकमात्र सैटेलाइट (इजरायल का पोलरिस) विदेशी था.                                             

10 नायाब कैरियर

इंजीनियरिंग, मैडिकल और सिविल सर्विसेज में कैरियर ट्रैडिशनल कैरियर के रूप में शुमार होता है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ अब इन परंपरागत कैरियर्स की चमक फीकी पड़ने लगी है. ऐसे में रोजगार की प्रकृति में भी काफी बड़े परिवर्तन हो रहे हैं. आने वाले दशकों में सूचना प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व प्रगति और तकनीक के निरंतर बदलते स्वरूप के मद्देनजर कैरियर और रोजगार के विकल्पों की प्रकृति में भी परिवर्तन की संभावनाएं हैं. प्रस्तुत हैं, इसी क्षेत्र में 10 नायाब कैरियर औप्शंस का ब्योरा :

1. ऐप डैवलपर एवं प्रोग्रामर

आज ऐंड्रौयड फोन की लौंचिंग ने मोबाइल तथा नैटवर्किंग की दुनिया में क्रांति ला दी है. इस के परिणामस्वरूप हजारों ऐप्स आ रहे हैं. लेटैस्ट ऐप्स की तकनीक ने इस क्षेत्र के ऐक्सपर्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसरों का सृजन किया है. एक रिसर्च के अनुसार आज 16 हजार से अधिक मोबाइल ऐप्स इस्तेमाल में हैं. अत: आने वाले वर्षों में ऐप प्रोग्रामर और डैवलपर के रूप में नए रोजगार के कई विकल्प खुलेंगे.

2. सोशल मीडिया मैनेजर

सोशल मीडिया कम्युनिकेशन तथा बिजनैस का एक महत्त्वपूर्ण प्लेटफौर्म है. सोशल मीडिया के रूप में फेसबुक से ले कर ब्लौगिंग, ट्विटर और व्हाट्सऐप सोशल और फेमिलियल कनैक्शन के एक महत्त्वपूर्ण माध्यम के अतिरिक्त बिजनैस, गुड्स और सर्विसेज की पब्लिसिटी का भी बड़ा माध्यम साबित हो रहा है. वर्तमान में हर छोटीबड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट्स के बेहतर प्रैजेंटेशन के लिए सोशल मीडिया मैनेजर का यूज कर रही है. इस दिशा में कंप्यूटर साइंस में प्रोफैशनल क्वालिफिकेशंस और ऐक्सपीरियंस वाले ऐक्सपर्ट्स के लिए रोजगार के बेहतर विकल्प खुल रहे हैं.

3. मिलेनियम जनरेशन ऐक्सपर्ट

मिलेनियम जनरेशन का सामान्य अर्थ जनसंख्या के उस हिस्से से है, जो 1980 के दशक के बाद डिजिटल टैक्नोलौजी और मास मीडिया के मध्य पलीबढ़ी पीढ़ी है. यह पीढ़ी जनरेशन वाई के नाम से जानी जाती है. लेकिन मिलेनियम जनरेशन ऐक्सपर्ट से आशय उन ऐक्सपर्ट्स और प्रोफैशनल्स से है जो कंपनी के लाभ में वृद्धि और परफौर्मैंस में बेहतरी के लिए एक कंसल्टैंट और गाइड का काम करते हैं.

इन ऐक्सपर्ट्स का मुख्य कार्य कंपनी के मैनेजिंग बोर्ड को वर्कर्स के काम करने के ढंग, व्यवहार और इमोशनल लैवल के बारे में गाइड करना होता है ताकि श्रमिकों के साथ उन की समझदारी के लैवल पर ही व्यवहार किया जा सके और कंपनी के प्रोडक्शन और प्रौफिट में निरंतर वृद्धि हो.

4. क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस प्रोवाइडर

क्लाउड कंप्यूटिंग बिजनैस के क्षेत्र में बड़ीबड़ी कौर्पोरेट कंपनियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण डाटा रिसोर्स प्रोवाइडर के रूप में काम कर रहा है. यह एक ऐसी नैटवर्किंग सेवा है जिस से सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षमताएं सेवा के रूप में उपलब्ध कराई जाती हैं.

आईबीएम ने भारत में क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस के विकास में 100 करोड़ डौलर का निवेश कर 200 रिसर्चरस की सेवा ली है. वर्तमान में आईबीएम के छोटेबड़े लगभग 1 हजार से अधिक कमर्शियल क्लाइंट्स हैं जिन्हें वे उत्पाद और सेवा उपलब्ध की जा रही हैं जिन की वे मांग करते है. इसे इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी का आउटसोर्सिंग भी कहते हैं.

अब अधिकांश कंपनियां अपनी सेल तथा टर्नओवर बढ़ाने के लिए डाटा बेस मैनेजर, इंजीनियर और स्ट्रैटेजिस्ट की अधिक संख्या में मांग करने लगे हैं, जिस के फलस्वरूप इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं.

5. मार्केट रिसर्च डाटा माइनर

व्यापार में रिसर्च और डाटा विश्लेषण के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता, खासकर आज जबकि पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज के रूप में तबदील हो चुकी है और हम ने अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व के देशों के लिए खोल दिया है. जब हम रिटेल तथा थोक मार्केटिंग के डाटा और उपभोक्ताओं के व्यवहार से संबंधित फैर्क्ट्स और फिगर्स का विश्लेषण करते हैं तो हमें इस से कईर् लाभ प्राप्त होते हैं. पहले तो हमें अपनी प्रोडक्शन कौस्ट को कम करने तथा अपने प्रौफिट को अधिकतम करने में मदद मिलती है. आने वाले वर्षों में डाटा में इच्छुक उम्मीदवारों के लिए इस क्षेत्र में रोजगार के कई औप्शंस उपलब्ध हैं.

6. यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइनर

किसी वैबसाइट, वैब ऐप्लिकेशन या फिर डैस्कटौप सौफ्टवेयर की सफलता यूजर्स के फीडबैक मसलन, क्या वह विशेष वैबसाइट उस यूजर की आवश्यकता को पूरा कर पाती है, क्या वह वैबसाइट यूज करने में आसान है, क्या उस वैबसाइट से कस्टमर्स को क्वालिटी इनफौर्मेशन मिल पाती है, इत्यादि पर निर्भर करता है और इसी के आधार पर यह भी निर्भर करता है कि कोईर् व्यक्ति उस वैबसाइट का रैगुलर यूजर बना रहेगा कि नहीं.

एक यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइन प्रोफैशनल हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि एक यूजर किसी विशेष वैबसाइट का रैगुलर यूजर बना रहे और उसे गुणवत्तापूर्ण सेवा प्राप्त होती रहे. जो प्रोफैशनल इस प्रकार के यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइन (यूऐक्स) पर काम करते हैं वे यूजर की फीलिंग्स का अवलोकन कर उन का मूल्यांकन करते हैं. इस प्रकार वैबसाइट, ऐप्लिकेशन या सौफ्टवेयर को यूजर के यूटैलिटी लैवल को संतुष्ट करने के लायक बनाया जाता है. इस क्षेत्र में जौब औप्शंस बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं. इस क्षेत्र के उम्मीदवार में प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के साथसाथ फोटोशौप पर भी काम करने की योग्यता होनी चाहिए.

7. सस्टेनेबिलिटी प्रोफैशनल

विश्व के देशों के तेजी से बढ़ते ग्रोथ रेट के कारण दुनिया में पर्यावरण संतुलन हमारे लिए चिंता का विषय बन चुका है. वायुमंडल में कार्बन एमिशन की अत्यधिक मात्रा के कारण ग्लोबल वार्मिंग और अनियमित जलवायु परिस्थिति की समस्याएं हमारे लिए ज्वलंत प्रश्न हैं और इन पर नियंत्रण के लिए आने वाले निकट वर्षों में पर्यावरण वैज्ञानिकों की बड़े पैमाने पर नियुक्ति की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. पर्यावरण संकट विश्व संकट है और इस के फलस्वरूप व्यावसायिक कंपनियां पर्यावरण विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों की नियुक्ति कर रही हैं. इस क्षेत्र में एनवायरनमैंट साइंटिस्ट और बिजनैस मैनेजर के लिए जौब प्रौस्पैक्टस की संख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि होने की अपार संभावनाएं हैं.

8. नैनोटैक्नोलौजिस्ट

क्या आप ने कभी महसूस किया है कि आज से एक दशक के पूर्व टैलीविजन का आकार कितना बड़ा होता था? डैस्कटौप, घड़ी, कैमरा और अन्य विभिन्न इलैक्ट्रौनिक उपकरण भी बड़े आकार के होते थे. किंतु सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान सोफिस्टिकेटिड युग में वैज्ञानिक इनोवेशन के कारण इन उपकरणों और अन्य गैजेट्स के साइज में आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन हुआ है. ये सभी उपकरण समय के साथ साइज में छोटे होते जा रहे हैं. यह सभी इनोवेशन नैनोटैक्नोलौजी कहलाते हैं.

तकनीकी परिवर्तन की इस परिस्थिति में इस प्रकार के इलैक्ट्रौनिक उपकरणों की रिपेयरिंग के लिए वैसे तकनीकी ऐक्सपर्ट्स की जरूरत होगी जिन्हें नैनो तकनीशियन कहते हैं. इस जौब के लिए कैंडिडेट्स को और्गैनिक कैमिस्ट्री के साथ मौलिक्यूलर बायोलौजी और माइक्रोफैब्रिकेशन में डिग्री की आवश्यकता होती है और आने वाले वर्षों में इस में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

9. वेस्ट मैनेजमैंट कंसल्टैंट

फास्ट वैज्ञानिक ऐडवांसमैंट तथा तकनीकी इनोवेशंस के साइड इफैक्ट्स के रूप में इलैक्ट्रौनिक गार्बेज, जिसे ‘ईवेस्ट’ भी कहते हैं, एक गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है.

इस ईकचरे को यदि उचित ढंग से नष्ट न किया जाए तो इन में मौजूद खतरनाक रसायन स्वास्थ्य के लिए काफी घातक साबित हो सकते हैं. इस के उचित और फास्ट डिस्पोजल के लिए बायोलौजी और कैमिस्ट्री ग्रुप के सब्जैक्ट्स वाले हाई क्वालिफाइड युवाओं की आवश्यकता होती है. गार्बेज डिस्पोजल मैनेजमैंट में डिग्री होल्डर्स के लिए यह क्षेत्र अच्छे जौब का गोल्डन पासपोर्ट माना जाता है.

10. चीफ लिसनिंग औफिसर

कहते हैं कि लिसनिंग इज लर्निंग अर्थात सुनना सीखना है, लेकिन जब आप किसी कंपनी के चीफ लिसनिंग औफिसर होते हैं और आप उस कंपनी के उपभोक्ताओं की प्रतिक्रियाओं को सावधानीपूर्वक सुनते हैं तो आप न केवल उस कंपनी को लाभ कमाने के योग्य बनाते हैं बल्कि आप भी प्रशंसा और पुरस्कार के भागी बनते हैं. चीफ लिसनिंग औफिसर की जिम्मेदारी सोशल मीडिया मैनेजर जैसी ही होती है.

यद्यपि चीफ लिसनिंग औफिसर का जौब बिलकुल नया है, लेकिन इन की जिम्मेदारी की संवेदनशीलता और अहमियत को नजर में रखते हुए यह उम्मीद करना अप्रासंगिक नहीं है कि आने वाले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में जौब की संभावनाएं बड़ी तेजी से बढ़ने वाली हैं. 

श्रीप्रकाश शर्मा                                        

कपिल महान कॉमेडियन हैं : सुनील

सुनील ग्रोवर ने भले ही ‘द कपिल शर्मा शो’ के लिए शूटिंग बंद कर दी हो लेकिन उन्होंने लाइव शो के दौरान डॉक्टर मशहूर गुलाटी और रिंकू भाभी का किरदार निभाना जारी रखा है. दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में सुनील ग्रोवर का कॉमेडी सुपरहिट रहा था. अब सुनील, दुबई में हैं जहां शेख राशिद स्टेडियम में कॉमेडी क्लिनिक नाम से उनका शो आने वाला है.

फ्लाइट में हुई झड़प के बाद से भले ही कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर के बीच बातचीत बंद हो लेकिन सुनील ने कपिल की तारीफ करना बंद नहीं किया है. दुबई में मीडिया से बात करते हुए सुनील ग्रोवर ने कपिल शर्मा की तारीफ की और उन्हें महान कॉमेडियन बताया. सुनील की यह तारीफ कपिल शर्मा के साथ ही उनके फैंस के लिए भी हैरान करने वाली घटना है.

मेलबर्न से मुंबई आ रही फ्लाइट में कपिल शर्मा ने सुनील ग्रोवर के साथ हाथापाई की थी जिसके बाद से सुनील ने ‘द कपिल शर्मा शो’ की शूटिंग बंद कर दी है. सुनील के साथ ही चंदन प्रभाकर और अली असगर भी कपिल के शो के लिए शूटिंग नहीं कर रहे हैं.

कपिल के शो से किनारे करने के बाद से सुनील ग्रोवर सिर्फ लाइव शो कर रहे हैं. हाल ही में वह आईपीएल में सनी लियोन के साथ देखे गए थे.

माफिया क्वीन बनने चलीं दीपिका

बॉलीवुड में दस साल बिताने के बाद दीपिका पादुकोण अब माफिया डॉन बनने के लिए तैयार हो रही हैं. इस अनाम फिल्म को विशाल भारद्वाज बना रहे हैं. फिल्म में दीपिका के साथ होंगे इरफान खान. आपको बता दें की इससे पहले दोनों ने फिल्म पीकू में एक साथ काम किया है.

इस फिल्म को विशाल के सहायक रहे हनी त्रेहन डायरेक्ट करेंगे. विशाल के साथ प्रेरणा अरोरा और अर्जुन एन कपूर फिल्म को प्रोड्यूस कर रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि विशाल की इस फिल्म में दीपिका माफिया क्वीन राहिमा खान का किरदार निभा रही हैं, जो सपना दीदी के नाम से मशहूर है.

इरफान, फिल्म में स्थानीय गैंगस्टर के किरदार में हैं, जो सपना दीदी का आशिक है और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के सफाए के मिशन में उसकी मदद करता है, और उसे प्यार भी करता है. फिल्म की कहानी एस हुसैन जैदी की किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई से ली गई है, जिसके एक चैप्टर के राइट्स विशाल ने खरीदे हैं.

फिल्म की कहानी अस्सी के दशक में सेट की गई है. प्रोड्यूसर्स के मुताबिक, सपना दीदी ने अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए शरजाह में एक क्रिकेट मैच के दौरान दाऊद को खत्म करने की योजना बनाई थी. दुर्भाग्य से डॉन की इस साजिश की भनक लग गई और पहले ही सपना दीदी की हत्या करवा दी. 

फिल्म की शूटिंग इस साल के अंत तक शुरू हो जाएगी. दीपिका इस वक्त संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती की शूटिंग में व्यस्त हैं.

सिक्सटीन से सिक्सटी तक

उम्रभी कमबख्त क्या चीज है? कब मैं 16 से 60 की हो गई पता ही नहीं चला. क्या बताऊं? वह भी क्या जमाना था, जब मैं सड़क पर निकलती थी, तो लोग बस देखते ही रह जाते थे. अरे क्या बताऊं, कैसेकैसे कमैंट्स सुनने को मिलते थे, ‘‘हायहाय जरा एक नजर इधर भी देख लो’’, ‘‘कमर तो बस छटांक भर ऐसी कि बल खा जाए.’’ और तो और कुछ कहते, ‘‘छम्मक छल्लो कहां चली.’’

जब तक मैं उन लोगों की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी, वे देखते ही रहते थे. अरे, यह तो कुछ नहीं. मैं शीशे के आगे खड़ी घंटों खुद को निहारती रहती और साथ ही अपने पर बलिहारी जाती.

घर से बाहर निकलते ही कमैंट सुनने को मिलता कि अरे, पूरे इलाके में इस के जैसी नहीं मिलेगी. भई चर्चे थे मेरे. लेकिन अफसोस, कब ये सब अम्मां, आंटी, दादी व नानी में तबदील हो गया, पता ही नहीं चला. कभी सोचती हूं, तो बड़ी हंसी आती है. गुस्सा तो तब आता है जब मेरी उम्र से कुछ ही छोटे आंटी और अम्मां कह कर पुकारते हैं.

उस दिन को नहीं भूलती जब सड़क पर एक लड़का साइकिल चलाते हुए कह कर

निकल गया, ‘‘हाय सिक्सटी, जरा साइड हो जा वरना फिर मत कहना बुढि़या को मार कर चल दिया.’’

उस की आवाज सुन कर ऐसा लगा जैसे कह रहा हो कि हाय सिक्सटीन. लेकिन उस के कहे शब्द ‘बुढि़या को मार कर चल दिया’ ने पूरा कलेजा छलनी कर दिया. पूरा सिर घूम गया.

‘हाय रे, कब मैं 16 से 60 में तबदील हो गई,’ मैं सोच ही रही थी कि तभी एक सड़क चलती लड़की ने पूछा, ‘‘अम्मां, क्या हुआ?

बीच सड़क क्या सोच रही हो? अरे देखो, उधर नाला है.’’

उफ, क्या कहती उसे. अभी तो मैं कुंआरी हूं, पर सिर्फ, ‘‘कुछ नहीं बेटा’’ कहा और आगे बढ़ गई. शायद अपनी किस्मत में शादी थी ही नहीं. अपने को किसी परी से कम नहीं समझा और जो भी रिश्ता आया नखरों में पसंद नहीं किया. कभी, ‘‘अरे मां, वह लड़का काला है,’’ तो कभी, ‘‘उफ यह तो ठिगना है.’’

 ‘‘अरे नहीं वह दिल को नहीं भाया, उस में सलीका नहीं.’’

कभीकभी तो इतराते हुए कहती, ‘‘अरे तेरी राजकुमारी को तो कोई राजकुमार ही ले कर जाएगा.’’

तब मां कहतीं, ‘‘लल्ली, जोडि़यां तो ऊपर से बन कर आती हैं. उस ने तय कर रखा है… एक दिन जरूर लेने आएगा.’’

मैं बस मुसकरा देती.

नखरे तो अब भी वही हैं. अभी भी शीशा देखने में कोई कसर नहीं छोड़ती. अभी

भी सजधज वैसी ही है. भई, स्वीट सिक्सटीन जो थी.

काश, मां की बात मान ली होती. बेचारी मेरी शादी का अरमान लिए दुनिया से चल दीं.

 ‘‘यह कुंआरी बुढि़या,’’ मैं नहीं लोग कहते हैं, ‘‘अपने बच्चों की दादीनानी होती.’’

और हां बच्चे कहते, ‘‘अरे अम्मां, आप तो अभी भी स्वीट सिक्सटीन हो.’’

– मधु गोयल

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