सोनाक्षी ने ‘नूर’ को बॉक्स ऑफिस पर डुबाया !

बॉलीवुड में हर शुक्रवार कलाकार की तकदीर बदलती है. यूं तो हमने इस फिल्म की समीक्षा में ‘नूर’ द्वारा बॉक्स ऑफिस पर लागत वसूल करने पर संषय व्यक्त किया था, लेकिन सोनाक्षी सिन्हा की फिल्म ‘नूर’ की तो बॉक्स ऑफिस पर हमारी सोच से भी ज्यादा बुरे हालात हैं. हमने समीक्षा में लिखा था कि सोनाक्षी सिन्हा पत्रकार के किरदार में फिट नहीं बैठी. उनकी परफॉर्मेंस बहुत गड़बड़ है. और अब ‘नूर’ के प्रदर्शन के बाद बॉलीवुड में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या वास्तव में सोनाक्षी सिन्हा में अभिनय के गुण नहीं हैं?

बॉलीवुड में जो चर्चाएं हो रही हैं, उसके ठोस वजहें हैं. सोनाक्षी सिन्हा पिछले तीन वर्षों से लगातार असफल फिल्में देती आ रही हैं. उनकी पिछली बुरी तरह असफल हुई फिल्म ‘‘अकीरा’’ ने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर पांच करोड़ कमा लिए थे, मगर ‘नूर’ तो पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर महज एक करोड़ 54 लाख ही कमा सकी. दूसरे दिन यानी कि शनिवार व छुट्टी के दिन भी यह फिल्म महज एक करोड़ 89 लाख ही कमा सकी. सोनाक्षी सिन्हा को अपने अभिनय करियर को लेकर नए सिरे से सोचने की जरुरत है.

पूरे देश में 1450 स्क्रीन्स/सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘‘नूर’’ को दर्शक नहीं मिल रहे हैं. शुक्रवार की सुबह इस फिल्म को देखने के लिए पूरे देश में महज दस प्रतिशत दर्शक ही थिएटरों में मौजूद रहें. मुंबई व उससे सटे भायंदर उपनगर के कुछ सिनेमाघरों में सुबह के शो में ‘नूर’ देखने लिए महज पांच प्रतिशत दर्शक ही मौजूद रहे. तीसरे दिन रविवार को शाम तक जो खबरें मिली, उसके अनुसार रविवार की छुट्टी के बावजूद फिल्म की कमाई में गिरावट आ गयी.

बॉलीवुड से जुड़े सूत्र तो सवाल कर रहे हैं कि क्या दो दिन के अंदर हुई तीन करोड़ तेंतालिस लाख रूपए की कमाई से 1450 स्क्रीन्स का खर्च निकल पाएगा? लागत की बात तो बाद में आएगी. ‘नूर’ के इतने बुरे हालात तब हैं, जबकि इस फिल्म के साथ एक भी ऐसी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई है, जो कि ‘नूर’ को टक्कर दे सकती हो. यदि ‘नूर’ के सामने कोई अच्छी फिल्म प्रदर्शित हुई होती, तो शायद ‘नूर’ के लिए मुसीबतें बढ़ जाती. यही वजह है कि ‘नूर’ की असफलता के लिए लोग पूरी तरह से सोनाक्षी सिन्हा को ही दोषी मान रहे हैं. तो वहीं आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो चुका है.

सूत्रों के अनुसार फिल्म के निर्माता सोनाक्षी सिन्हा को दोषी ठहराते हुए आरोप लगा रहे हैं कि सोनाक्षी ने ‘‘नूर’’ को ठीक से प्रमोट करने की बजाय टीवी के रियालिटी शो को जज करने में व्यस्त रहीं. जबकि सोनाक्षी के नजदीक सूत्र फिल्म की असफलता का सारा ठीकरा फिल्म की पीआर टीम पर थोप रहे हैं. तो कुछ लोग सोनाक्षी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार यदि फिल्म ‘‘नूर’’ को अच्छे ढंग से प्रमोट कर दर्शकों के मन में इस फिल्म को लेकर उत्सुकता पैदा की गयी होती, तो कम से कम सुबह के शो में अच्छे दर्शक मिल जाते. और फिर अच्छी फिल्म न होने पर दूसरे शो में दर्शक गिरते, मगर फिल्म का सही प्रचार न होने की वजह से सुबह के शो में दर्शक नहीं पहुंचे.

एक तरफ जहां आरोप प्रत्यारोप का सिलसला चल पड़ा है, तो दूसरी तरफ सोनाक्षी सिन्हा के पिता शत्रुघ्न सिन्हा ने पिता का फर्ज निभाते हुए सोनाक्षी सिन्हा का बचाव करने की जिम्मेदारी संभाल ली है. शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी बेटी सोनाक्षी सिन्हा के अभिनय तथा फिल्म ‘नूर’ की तारीफ में कसीदें पढ़ते हुए कहा है, ‘‘इस फिल्म से उसने साबित कर दिखाया कि वह उस काम को भी बेहतर ढंग से अंजाम दे सकती है, जिसे एक उत्कृष्ट कलाकार होते हुए भी मैं नहीं कर पाया था. मैं उसकी हर फिल्म नहीं देखता. मगर मैंने यह फिल्म देखी है और आज मैं एक पिता नहीं, बल्कि एक कलाकार की हैसियत यह कह रहा हूं कि वह बेहतरीन अदाकारा है. उसने बहुत कठिन हिस्से को भी आसानी से निभाया है. इस फिल्म में उसने बहुत कठिन किरदार निभाया है. ‘लुटेरा’ के बाद अब सोनाक्षी ने अति बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है.’’

एक पिता होने के नाते शत्रुघ्न सिन को अपनी बेटी का हौसला हाफजाई करनी चाहिए. मगर हमें याद आ रहा है कि फिल्म ‘लुटेरा’ भी बॉक्स ऑफिस पर असफल थी और इस फिल्म के निर्देशक विक्रमादित्य मोटावणे हमसे बात करते हुए इस बात को स्वीकार कर चुके हैं. सिर्फ शत्रुघ्न सिन्हा ही नहीं अब तो संगीतकार शेखर राजवानी भी सोनाक्षी सिन्हा की परफॉर्मेंस की तारीफ करने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं.

इसके बाद भला सोनाक्षी सिन्हा कहां चुप रहने वाली थी. उन्होंने ट्विटर पर शायरी करते हुए लोगों को जवाब देना शुरू कर दिया है. खैर, ‘नूर’ के बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह मात खाने के बाद जिस तरह से बॉलीवुड का एक तबका धीरे धीरे सोनाक्षी सिन्हा के अभिनय के कसीदें पढ़ते हुए सामने आ रहा है, उससे किसी को भी आश्चर्य नहीं हो रहा है. क्योंकि बॉलीवुड की शख्सियतों की पुरानी फितरत है कि लोगों को चने के झाड़ पर चढ़ाते रहो.

अब सबसे बड़ा कटु सत्य यह है कि आम दर्शक फिल्म ‘नूर’ देखकर अपना निर्णय डंके की चोट पर सुना रहे हैं कि उसे फिल्म ‘नूर’ और सोनाक्षी सिन्हा पसंद नही आयी.

यह आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला धीरे धीरे क्या रूप लेता है, देखना रोचक होगा. साथ ही यह भी देखने लायक होगा कि सोनाक्षी सिन्हा की तारीफ में कसीदें पढ़ने के लिए कौन कौन सामने आता है.

इसरो नासा से कम नहीं

रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें तकनीक के मामले में भारतचीन जैसे पूरब के देशों से तगड़ी चुनौती मिलेगी. चुनौती भी ऐसी कि वे इस संबंध में अपने भविष्य के बारे में सोचने को मजबूर हो जाएं.

इधर, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 15 फरवरी, 2017 को अपने प्रक्षेपणयान पीएसएलवी-सी37 से भारतीय कार्टोसैट-2 सीरीज के उपग्रह के अलावा स्वयं के 2 अन्य, अमेरिका के 96, इजरायल, कजाखस्तान, नीदरलैंड्स, स्विट्जरलैंड और संयुक्त अरब अमीरात का एकएक यानी कुल मिला कर 104 नैनोसैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़े, तो यह खुद उस के लिए ही नहीं, पूरी दुनिया के संदर्भ में भी एक नया रिकौर्ड था. एक मुख्य, 2 छोटे और 101 नन्हे (नैनो) सैटेलाइटों की यह एक किस्म की बरात थी, जिस से जलने वालों की दुनिया में कमी नहीं है. निश्चय ही इसरो की सफलता देश का सिर गर्व से ऊंचा करती है पर यह मामला अब बाजार का ज्यादा है, जिस में सेंध नहीं लगने देने का इंतजाम अगर हम ने कर लिया, तो जमीन पर रोजगार से ले कर शोध के आसमान तक हमारा वर्चस्व कायम होने में देर नहीं लगेगी.

चीन, रूस व अमेरिका को  चुनौती

एक वक्त था, जब हमारे देश को अपने उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए सोबियत रौकेटों और निजी कंपनी ‘आर्यनस्पेस’ पर निर्भर रहना पड़ता था. इनसैट श्रेणी के उपग्रह भारत ने इसी तरह भारी खर्च कर के प्रक्षेपित किए हैं और इस में लाखों डौलर की रकम खर्च की है, पर आज यह नजारा पूरी तरह बदल गया है, आज इसरो खुद दुनिया भर (करीब 21 देशों) के उपग्रह अपने सब से भरोसेमंद रौकेटों से अंतरिक्ष में भेज रहा है और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आर्यनस्पेस अब इसरो की व्यापारिक सहयोगी कंपनी बन गई है.

इसरो को मिली इस शानदार उपलब्धि के पीछे 2 अहम कारण हैं. पहला यह कि सैटेलाइट लौंचिंग के लिए इसरो अपने स्पेस मिशन दुनिया में सब से कम लागत में पूरे कर रहा है. इस का एक बड़ा उदाहरण वर्ष 2014 में तब मिला था, जब भारत का मार्स मिशन मंगल तक पहुंचा था. इस पर इसरो ने सिर्फ 73 अरब डौलर खर्च किए थे, जबकि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मार्स मिशन में 671 अरब डौलर का खर्च आया था.

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात स्पेस अभियानों में इसरो की सफलता की दर है. अमेरिका, रूस और यहां तक कि चीन की स्पेस एजेंसियों द्वारा प्रक्षेपित अंतरिक्ष अभियानों की असफलताएं कहीं ज्यादा हैं. सफलता की दर और अभियान की कीमत आज के अंतरिक्ष बाजार में ये 2 महत्त्वपूर्ण कारण बन गए हैं जिस में इसरो कामयाबी के बल पर अपनी साख बनाता जा रहा है.

उल्लेखनीय है कि पड़ोसी देश चीन भी भारत की तुलना में अपने स्पेस मिशनों पर ढाईगुना ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है, हालांकि सैटेलाइट्स की लौंचिंग के मामले में उस की क्षमता भी भारत से चारगुना ज्यादा है. इस के बावजूद इसरो चीन के साथसाथ रूस और अमेरिका की स्पेस एजेंसियों के लिए चुनौती बन गया है. अमेरिका के लिए इसरो कैसे चुनौती बना है, इस की मिसाल इस से मिलती है कि पीएसएलवी-सी37 द्वारा इस बार जो 101 विदेशी नैनो सैटेलाइट सफलता से छोड़े गए, उन में से 96 अमेरिका के हैं. इन में भी 88 सैटेलाइट एक ही अमेरिकी कंपनी ‘प्लेनेट लैब’ के हैं. यह कंपनी धरती की छवियां लेने और उन्हें वर्गीकृत कर के बेचने का काम करती है. जाहिर है कि उस के पास अमेरिकी कंपनियों समेत कई विकल्प रहे होंगे, लेकिन मुनाफे के लिए व्यवसाय कर रही एक कंपनी ने इसरो पर भरोसा किया, यही इसरो की काबिलीयत दर्शाता है.

घबराई विदेशी एजेंसियां    

सचाई यह है कि इसरो की सफलता से अब अमेरिकी और ब्रिटिश स्पेस कंपनियां घबराने लगी हैं. अमेरिका के निजी अंतरिक्ष उद्योग के कारोबारियों और अधिकारियों ने पिछले साल इसरो के कम लागत वाले प्रक्षेपणयानों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिलने की बात एक सार्वजनिक चिंता के रूप में सामने रखी थी और कहा था कि इस से अमेरिकी अंतरिक्ष कंपनियों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है. यह चिंता जताने वालों के मुखिया ‘स्पेस फाउंडेशन’ के सीईओ इलियट होलोकाउई पुलहम ने कहा था कि असली मुद्दा बाजार का है. उन का कहना था कि जिस तरह भारत सरकार इसरो के प्रक्षेपणयानों के लिए सब्सिडी देती है, वह इतनी नहीं होनी चाहिए कि उस से इस स्पेस बाजार में मौजूद अन्य कंपनियों के वजूद पर ही खतरा मंडराने लगे.

अमेरिका की तरह भारत के महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रमों से कई ब्रिटिश सांसद भी नाराज बताए जाते हैं. इस संबंध में ब्रिटिश मीडिया में छपी खबरों में कहा गया है कि भारत को ब्रिटेन की ओर से अरबों रुपए की सहायता राशि मिलती है, जिस का उपयोग इसरो लंबी दूरी की मिसाइलों और स्पेस कार्यक्रमों में करता है. ये बातें स्पष्ट करती हैं कि इसरो की सफलता अमेरिकाब्रिटेन जैसे देशों के पेट में मरोड़ पैदा कर रही है.

बढ़ रही कमाई

इसरो के अंतरिक्ष अभियानों की भारत में ही यह कहते हुए पहले काफी आलोचना हुई है कि उसे चंद्रमा या मंगल जैसे मिशन चलाने से पहले देश की गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का इलाज करना चाहिए. आलोचना का आधार यह होता था कि चूंकि इन अभियानों में देश के करदाताओं से ली गई भारी रकम खर्च होती है जो असल में देश के विकास कार्यक्रमों में लगनी चाहिए थी, पर इसरो ने अपने स्पेस मिशनों से साबित किया है कि वह अब खुद कमाई करने वाला संगठन बन गया है.

हाल के आंकड़ों के अनुसार, इसरो की व्यापारिक इकाई ‘एंट्रिक्स कौरपोरेशन’ का विदेश व्यापार इस वित्त वर्ष (2015-2016) में 204.9त्न बड़ा है. एशियन साइंटिस्ट मैगजीन में पिछले साल प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पिछले 3-4 वर्ष में ही विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी से प्रक्षेपित कर के इसरो ने 54 लाख डौलर की कमाई की है. हाल के 104 सैटेलाइट्स की लौंचिंग से मिले पैसों से इस कमाई में और इजाफा हुआ है, क्योंकि माना जा रहा है कि सिर्फ इसी अभियान से इसरो को 100 करोड़ रुपए विदेशी एजेंसियों से मिले हैं. हालांकि इस आंकड़े की पुष्टि इसरो ने नहीं की है.

इसरो या इस की सहयोगी संस्था एंट्रिक्स द्वारा विदेशी उपग्रहों की लौंचिंग की कीमत का सरकार ने भी कभी खुलासा नहीं किया, लेकिन माना जाता है कि यह शुल्क विदेशी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले 60त्न तक कम होता है. अनुमान है कि नासा एक उपग्रह को लौंच करने के लिए अमूमन 25 हजार डौलर प्रति किलोग्राम के हिसाब से शुल्क लेता रहा है. कम शुल्क लेने के बावजूद पीएसएलवी से अब तक स्पेस में भेजे गए देशीविदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के जरिए एंट्रिक्स कौरपोरेशन कंपनी लिमिटेड एक लाभदायक प्रतिष्ठान में बदल चुका है.

अनुमान है कि विदेशी सैटेलाइट लौंच कर के एंट्रिक्स कौरपोरेशन 750 करोड़ रुपए से ज्यादा की विदेशी मुद्रा कमा चुका है. उल्लेखनीय है कि आज दुनिया में पीएसएलवी को टक्कर देने वाला दूसरा रौकेट (वेगा) सिर्फ यूरोपीय स्पेस एजेंसी के पास है, लेकिन उस से उपग्रहों की लौंचिंग की कीमत इसरो के मुकाबले कई गुना अधिक है. प्रतिस्पर्धी कीमत पर सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण ही वह कारण है कि पीएसएलवी दुनिया के पसंदीदा रौकेटों में बदल गया है और आज ज्यादा से ज्यादा देश अपने सैटेलाइट इसरो की मदद से स्पेस में भेजने के इच्छुक हैं.

यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि अब पूरी दुनिया में मौसम की भविष्यवाणी, दूरसंचार और टैलीविजन प्रसारण का क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और चूंकि ये सारी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, लिहाजा ऐसे संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.

दखल की शुरुआत

जहां तक भारतीय रौकेटों से विदेशी उपग्रहों की लौंचिंग का प्रश्न है, तो इस की शुरुआत डेढ़ दशक पहले 26 मई, 1999 को पीएसएलवी-सी2 से भारतीय उपग्रह ओशन सैट2 के साथ कोरियाई उपग्रह किट सैट3 और जरमनी के उपग्रह टब सैट को सफलतापूर्वक उन की कक्षा में स्थापित करने के साथ हुई थी, पर इस उड़ान में चूंकि एक भारतीय उपग्रह भी शामिल था, इसलिए इसे इसरो की पहली कामयाब व्यावसायिक उड़ान नहीं माना जाता. इस के बजाय पीएसएलवी-सी10 के 21 जनवरी, 2008 के प्रक्षेपण को इस मानक पर सफल करार दिया जाता है, क्योंकि उस से भेजा गया एकमात्र सैटेलाइट (इजरायल का पोलरिस) विदेशी था.                                             

10 नायाब कैरियर

इंजीनियरिंग, मैडिकल और सिविल सर्विसेज में कैरियर ट्रैडिशनल कैरियर के रूप में शुमार होता है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ अब इन परंपरागत कैरियर्स की चमक फीकी पड़ने लगी है. ऐसे में रोजगार की प्रकृति में भी काफी बड़े परिवर्तन हो रहे हैं. आने वाले दशकों में सूचना प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व प्रगति और तकनीक के निरंतर बदलते स्वरूप के मद्देनजर कैरियर और रोजगार के विकल्पों की प्रकृति में भी परिवर्तन की संभावनाएं हैं. प्रस्तुत हैं, इसी क्षेत्र में 10 नायाब कैरियर औप्शंस का ब्योरा :

1. ऐप डैवलपर एवं प्रोग्रामर

आज ऐंड्रौयड फोन की लौंचिंग ने मोबाइल तथा नैटवर्किंग की दुनिया में क्रांति ला दी है. इस के परिणामस्वरूप हजारों ऐप्स आ रहे हैं. लेटैस्ट ऐप्स की तकनीक ने इस क्षेत्र के ऐक्सपर्ट्स के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के नए अवसरों का सृजन किया है. एक रिसर्च के अनुसार आज 16 हजार से अधिक मोबाइल ऐप्स इस्तेमाल में हैं. अत: आने वाले वर्षों में ऐप प्रोग्रामर और डैवलपर के रूप में नए रोजगार के कई विकल्प खुलेंगे.

2. सोशल मीडिया मैनेजर

सोशल मीडिया कम्युनिकेशन तथा बिजनैस का एक महत्त्वपूर्ण प्लेटफौर्म है. सोशल मीडिया के रूप में फेसबुक से ले कर ब्लौगिंग, ट्विटर और व्हाट्सऐप सोशल और फेमिलियल कनैक्शन के एक महत्त्वपूर्ण माध्यम के अतिरिक्त बिजनैस, गुड्स और सर्विसेज की पब्लिसिटी का भी बड़ा माध्यम साबित हो रहा है. वर्तमान में हर छोटीबड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट्स के बेहतर प्रैजेंटेशन के लिए सोशल मीडिया मैनेजर का यूज कर रही है. इस दिशा में कंप्यूटर साइंस में प्रोफैशनल क्वालिफिकेशंस और ऐक्सपीरियंस वाले ऐक्सपर्ट्स के लिए रोजगार के बेहतर विकल्प खुल रहे हैं.

3. मिलेनियम जनरेशन ऐक्सपर्ट

मिलेनियम जनरेशन का सामान्य अर्थ जनसंख्या के उस हिस्से से है, जो 1980 के दशक के बाद डिजिटल टैक्नोलौजी और मास मीडिया के मध्य पलीबढ़ी पीढ़ी है. यह पीढ़ी जनरेशन वाई के नाम से जानी जाती है. लेकिन मिलेनियम जनरेशन ऐक्सपर्ट से आशय उन ऐक्सपर्ट्स और प्रोफैशनल्स से है जो कंपनी के लाभ में वृद्धि और परफौर्मैंस में बेहतरी के लिए एक कंसल्टैंट और गाइड का काम करते हैं.

इन ऐक्सपर्ट्स का मुख्य कार्य कंपनी के मैनेजिंग बोर्ड को वर्कर्स के काम करने के ढंग, व्यवहार और इमोशनल लैवल के बारे में गाइड करना होता है ताकि श्रमिकों के साथ उन की समझदारी के लैवल पर ही व्यवहार किया जा सके और कंपनी के प्रोडक्शन और प्रौफिट में निरंतर वृद्धि हो.

4. क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस प्रोवाइडर

क्लाउड कंप्यूटिंग बिजनैस के क्षेत्र में बड़ीबड़ी कौर्पोरेट कंपनियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण डाटा रिसोर्स प्रोवाइडर के रूप में काम कर रहा है. यह एक ऐसी नैटवर्किंग सेवा है जिस से सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षमताएं सेवा के रूप में उपलब्ध कराई जाती हैं.

आईबीएम ने भारत में क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विस के विकास में 100 करोड़ डौलर का निवेश कर 200 रिसर्चरस की सेवा ली है. वर्तमान में आईबीएम के छोटेबड़े लगभग 1 हजार से अधिक कमर्शियल क्लाइंट्स हैं जिन्हें वे उत्पाद और सेवा उपलब्ध की जा रही हैं जिन की वे मांग करते है. इसे इनफौर्मेशन टैक्नोलौजी का आउटसोर्सिंग भी कहते हैं.

अब अधिकांश कंपनियां अपनी सेल तथा टर्नओवर बढ़ाने के लिए डाटा बेस मैनेजर, इंजीनियर और स्ट्रैटेजिस्ट की अधिक संख्या में मांग करने लगे हैं, जिस के फलस्वरूप इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर उपलब्ध हो रहे हैं.

5. मार्केट रिसर्च डाटा माइनर

व्यापार में रिसर्च और डाटा विश्लेषण के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता, खासकर आज जबकि पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज के रूप में तबदील हो चुकी है और हम ने अपनी अर्थव्यवस्था को विश्व के देशों के लिए खोल दिया है. जब हम रिटेल तथा थोक मार्केटिंग के डाटा और उपभोक्ताओं के व्यवहार से संबंधित फैर्क्ट्स और फिगर्स का विश्लेषण करते हैं तो हमें इस से कईर् लाभ प्राप्त होते हैं. पहले तो हमें अपनी प्रोडक्शन कौस्ट को कम करने तथा अपने प्रौफिट को अधिकतम करने में मदद मिलती है. आने वाले वर्षों में डाटा में इच्छुक उम्मीदवारों के लिए इस क्षेत्र में रोजगार के कई औप्शंस उपलब्ध हैं.

6. यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइनर

किसी वैबसाइट, वैब ऐप्लिकेशन या फिर डैस्कटौप सौफ्टवेयर की सफलता यूजर्स के फीडबैक मसलन, क्या वह विशेष वैबसाइट उस यूजर की आवश्यकता को पूरा कर पाती है, क्या वह वैबसाइट यूज करने में आसान है, क्या उस वैबसाइट से कस्टमर्स को क्वालिटी इनफौर्मेशन मिल पाती है, इत्यादि पर निर्भर करता है और इसी के आधार पर यह भी निर्भर करता है कि कोईर् व्यक्ति उस वैबसाइट का रैगुलर यूजर बना रहेगा कि नहीं.

एक यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइन प्रोफैशनल हमेशा इस बात की कोशिश करता है कि एक यूजर किसी विशेष वैबसाइट का रैगुलर यूजर बना रहे और उसे गुणवत्तापूर्ण सेवा प्राप्त होती रहे. जो प्रोफैशनल इस प्रकार के यूजर ऐक्सपीरियंस डिजाइन (यूऐक्स) पर काम करते हैं वे यूजर की फीलिंग्स का अवलोकन कर उन का मूल्यांकन करते हैं. इस प्रकार वैबसाइट, ऐप्लिकेशन या सौफ्टवेयर को यूजर के यूटैलिटी लैवल को संतुष्ट करने के लायक बनाया जाता है. इस क्षेत्र में जौब औप्शंस बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं. इस क्षेत्र के उम्मीदवार में प्रोग्रामिंग लैंग्वेज के साथसाथ फोटोशौप पर भी काम करने की योग्यता होनी चाहिए.

7. सस्टेनेबिलिटी प्रोफैशनल

विश्व के देशों के तेजी से बढ़ते ग्रोथ रेट के कारण दुनिया में पर्यावरण संतुलन हमारे लिए चिंता का विषय बन चुका है. वायुमंडल में कार्बन एमिशन की अत्यधिक मात्रा के कारण ग्लोबल वार्मिंग और अनियमित जलवायु परिस्थिति की समस्याएं हमारे लिए ज्वलंत प्रश्न हैं और इन पर नियंत्रण के लिए आने वाले निकट वर्षों में पर्यावरण वैज्ञानिकों की बड़े पैमाने पर नियुक्ति की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. पर्यावरण संकट विश्व संकट है और इस के फलस्वरूप व्यावसायिक कंपनियां पर्यावरण विशेषज्ञ और वैज्ञानिकों की नियुक्ति कर रही हैं. इस क्षेत्र में एनवायरनमैंट साइंटिस्ट और बिजनैस मैनेजर के लिए जौब प्रौस्पैक्टस की संख्या में बड़ी तेजी से वृद्धि होने की अपार संभावनाएं हैं.

8. नैनोटैक्नोलौजिस्ट

क्या आप ने कभी महसूस किया है कि आज से एक दशक के पूर्व टैलीविजन का आकार कितना बड़ा होता था? डैस्कटौप, घड़ी, कैमरा और अन्य विभिन्न इलैक्ट्रौनिक उपकरण भी बड़े आकार के होते थे. किंतु सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान सोफिस्टिकेटिड युग में वैज्ञानिक इनोवेशन के कारण इन उपकरणों और अन्य गैजेट्स के साइज में आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन हुआ है. ये सभी उपकरण समय के साथ साइज में छोटे होते जा रहे हैं. यह सभी इनोवेशन नैनोटैक्नोलौजी कहलाते हैं.

तकनीकी परिवर्तन की इस परिस्थिति में इस प्रकार के इलैक्ट्रौनिक उपकरणों की रिपेयरिंग के लिए वैसे तकनीकी ऐक्सपर्ट्स की जरूरत होगी जिन्हें नैनो तकनीशियन कहते हैं. इस जौब के लिए कैंडिडेट्स को और्गैनिक कैमिस्ट्री के साथ मौलिक्यूलर बायोलौजी और माइक्रोफैब्रिकेशन में डिग्री की आवश्यकता होती है और आने वाले वर्षों में इस में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

9. वेस्ट मैनेजमैंट कंसल्टैंट

फास्ट वैज्ञानिक ऐडवांसमैंट तथा तकनीकी इनोवेशंस के साइड इफैक्ट्स के रूप में इलैक्ट्रौनिक गार्बेज, जिसे ‘ईवेस्ट’ भी कहते हैं, एक गंभीर समस्या का रूप लेता जा रहा है.

इस ईकचरे को यदि उचित ढंग से नष्ट न किया जाए तो इन में मौजूद खतरनाक रसायन स्वास्थ्य के लिए काफी घातक साबित हो सकते हैं. इस के उचित और फास्ट डिस्पोजल के लिए बायोलौजी और कैमिस्ट्री ग्रुप के सब्जैक्ट्स वाले हाई क्वालिफाइड युवाओं की आवश्यकता होती है. गार्बेज डिस्पोजल मैनेजमैंट में डिग्री होल्डर्स के लिए यह क्षेत्र अच्छे जौब का गोल्डन पासपोर्ट माना जाता है.

10. चीफ लिसनिंग औफिसर

कहते हैं कि लिसनिंग इज लर्निंग अर्थात सुनना सीखना है, लेकिन जब आप किसी कंपनी के चीफ लिसनिंग औफिसर होते हैं और आप उस कंपनी के उपभोक्ताओं की प्रतिक्रियाओं को सावधानीपूर्वक सुनते हैं तो आप न केवल उस कंपनी को लाभ कमाने के योग्य बनाते हैं बल्कि आप भी प्रशंसा और पुरस्कार के भागी बनते हैं. चीफ लिसनिंग औफिसर की जिम्मेदारी सोशल मीडिया मैनेजर जैसी ही होती है.

यद्यपि चीफ लिसनिंग औफिसर का जौब बिलकुल नया है, लेकिन इन की जिम्मेदारी की संवेदनशीलता और अहमियत को नजर में रखते हुए यह उम्मीद करना अप्रासंगिक नहीं है कि आने वाले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में जौब की संभावनाएं बड़ी तेजी से बढ़ने वाली हैं. 

श्रीप्रकाश शर्मा                                        

कपिल महान कॉमेडियन हैं : सुनील

सुनील ग्रोवर ने भले ही ‘द कपिल शर्मा शो’ के लिए शूटिंग बंद कर दी हो लेकिन उन्होंने लाइव शो के दौरान डॉक्टर मशहूर गुलाटी और रिंकू भाभी का किरदार निभाना जारी रखा है. दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में सुनील ग्रोवर का कॉमेडी सुपरहिट रहा था. अब सुनील, दुबई में हैं जहां शेख राशिद स्टेडियम में कॉमेडी क्लिनिक नाम से उनका शो आने वाला है.

फ्लाइट में हुई झड़प के बाद से भले ही कपिल शर्मा और सुनील ग्रोवर के बीच बातचीत बंद हो लेकिन सुनील ने कपिल की तारीफ करना बंद नहीं किया है. दुबई में मीडिया से बात करते हुए सुनील ग्रोवर ने कपिल शर्मा की तारीफ की और उन्हें महान कॉमेडियन बताया. सुनील की यह तारीफ कपिल शर्मा के साथ ही उनके फैंस के लिए भी हैरान करने वाली घटना है.

मेलबर्न से मुंबई आ रही फ्लाइट में कपिल शर्मा ने सुनील ग्रोवर के साथ हाथापाई की थी जिसके बाद से सुनील ने ‘द कपिल शर्मा शो’ की शूटिंग बंद कर दी है. सुनील के साथ ही चंदन प्रभाकर और अली असगर भी कपिल के शो के लिए शूटिंग नहीं कर रहे हैं.

कपिल के शो से किनारे करने के बाद से सुनील ग्रोवर सिर्फ लाइव शो कर रहे हैं. हाल ही में वह आईपीएल में सनी लियोन के साथ देखे गए थे.

माफिया क्वीन बनने चलीं दीपिका

बॉलीवुड में दस साल बिताने के बाद दीपिका पादुकोण अब माफिया डॉन बनने के लिए तैयार हो रही हैं. इस अनाम फिल्म को विशाल भारद्वाज बना रहे हैं. फिल्म में दीपिका के साथ होंगे इरफान खान. आपको बता दें की इससे पहले दोनों ने फिल्म पीकू में एक साथ काम किया है.

इस फिल्म को विशाल के सहायक रहे हनी त्रेहन डायरेक्ट करेंगे. विशाल के साथ प्रेरणा अरोरा और अर्जुन एन कपूर फिल्म को प्रोड्यूस कर रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि विशाल की इस फिल्म में दीपिका माफिया क्वीन राहिमा खान का किरदार निभा रही हैं, जो सपना दीदी के नाम से मशहूर है.

इरफान, फिल्म में स्थानीय गैंगस्टर के किरदार में हैं, जो सपना दीदी का आशिक है और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के सफाए के मिशन में उसकी मदद करता है, और उसे प्यार भी करता है. फिल्म की कहानी एस हुसैन जैदी की किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई से ली गई है, जिसके एक चैप्टर के राइट्स विशाल ने खरीदे हैं.

फिल्म की कहानी अस्सी के दशक में सेट की गई है. प्रोड्यूसर्स के मुताबिक, सपना दीदी ने अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए शरजाह में एक क्रिकेट मैच के दौरान दाऊद को खत्म करने की योजना बनाई थी. दुर्भाग्य से डॉन की इस साजिश की भनक लग गई और पहले ही सपना दीदी की हत्या करवा दी. 

फिल्म की शूटिंग इस साल के अंत तक शुरू हो जाएगी. दीपिका इस वक्त संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती की शूटिंग में व्यस्त हैं.

सिक्सटीन से सिक्सटी तक

उम्रभी कमबख्त क्या चीज है? कब मैं 16 से 60 की हो गई पता ही नहीं चला. क्या बताऊं? वह भी क्या जमाना था, जब मैं सड़क पर निकलती थी, तो लोग बस देखते ही रह जाते थे. अरे क्या बताऊं, कैसेकैसे कमैंट्स सुनने को मिलते थे, ‘‘हायहाय जरा एक नजर इधर भी देख लो’’, ‘‘कमर तो बस छटांक भर ऐसी कि बल खा जाए.’’ और तो और कुछ कहते, ‘‘छम्मक छल्लो कहां चली.’’

जब तक मैं उन लोगों की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी, वे देखते ही रहते थे. अरे, यह तो कुछ नहीं. मैं शीशे के आगे खड़ी घंटों खुद को निहारती रहती और साथ ही अपने पर बलिहारी जाती.

घर से बाहर निकलते ही कमैंट सुनने को मिलता कि अरे, पूरे इलाके में इस के जैसी नहीं मिलेगी. भई चर्चे थे मेरे. लेकिन अफसोस, कब ये सब अम्मां, आंटी, दादी व नानी में तबदील हो गया, पता ही नहीं चला. कभी सोचती हूं, तो बड़ी हंसी आती है. गुस्सा तो तब आता है जब मेरी उम्र से कुछ ही छोटे आंटी और अम्मां कह कर पुकारते हैं.

उस दिन को नहीं भूलती जब सड़क पर एक लड़का साइकिल चलाते हुए कह कर

निकल गया, ‘‘हाय सिक्सटी, जरा साइड हो जा वरना फिर मत कहना बुढि़या को मार कर चल दिया.’’

उस की आवाज सुन कर ऐसा लगा जैसे कह रहा हो कि हाय सिक्सटीन. लेकिन उस के कहे शब्द ‘बुढि़या को मार कर चल दिया’ ने पूरा कलेजा छलनी कर दिया. पूरा सिर घूम गया.

‘हाय रे, कब मैं 16 से 60 में तबदील हो गई,’ मैं सोच ही रही थी कि तभी एक सड़क चलती लड़की ने पूछा, ‘‘अम्मां, क्या हुआ?

बीच सड़क क्या सोच रही हो? अरे देखो, उधर नाला है.’’

उफ, क्या कहती उसे. अभी तो मैं कुंआरी हूं, पर सिर्फ, ‘‘कुछ नहीं बेटा’’ कहा और आगे बढ़ गई. शायद अपनी किस्मत में शादी थी ही नहीं. अपने को किसी परी से कम नहीं समझा और जो भी रिश्ता आया नखरों में पसंद नहीं किया. कभी, ‘‘अरे मां, वह लड़का काला है,’’ तो कभी, ‘‘उफ यह तो ठिगना है.’’

 ‘‘अरे नहीं वह दिल को नहीं भाया, उस में सलीका नहीं.’’

कभीकभी तो इतराते हुए कहती, ‘‘अरे तेरी राजकुमारी को तो कोई राजकुमार ही ले कर जाएगा.’’

तब मां कहतीं, ‘‘लल्ली, जोडि़यां तो ऊपर से बन कर आती हैं. उस ने तय कर रखा है… एक दिन जरूर लेने आएगा.’’

मैं बस मुसकरा देती.

नखरे तो अब भी वही हैं. अभी भी शीशा देखने में कोई कसर नहीं छोड़ती. अभी

भी सजधज वैसी ही है. भई, स्वीट सिक्सटीन जो थी.

काश, मां की बात मान ली होती. बेचारी मेरी शादी का अरमान लिए दुनिया से चल दीं.

 ‘‘यह कुंआरी बुढि़या,’’ मैं नहीं लोग कहते हैं, ‘‘अपने बच्चों की दादीनानी होती.’’

और हां बच्चे कहते, ‘‘अरे अम्मां, आप तो अभी भी स्वीट सिक्सटीन हो.’’

– मधु गोयल

17 की उम्र में कुछ ऐसी दिखती थी दिशा पटानी

फिल्म ‘एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी’ से अपने करियर की शुरूआत करने वाली एक्ट्रेस दिशा पटानी अकसर अपने हॉट और बोल्ड अदाओं से सुर्खियों में छायी रहती हैं. लेकिन इस बार दिशा के कुछ फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं वो भी पुराने.

जी हां, दरअसल यह फोटो उनके किसी हालिया फोटोशूट के नहीं बल्कि काफी पुराने फोटोशूट के हैं. खबरों की मानें तो दिशा का यह फोटोशूट तब का है जब वह सिर्फ 17 साल की थीं. दिशा पटानी के फैनक्‍लब ने यह पुराने फोटो शेयर किए हैं और इनका दावा है कि यह दिशा पटानी का सबसे पहला फोटोशूट है. दिशा को इन फोटो में पहचानना शायद आपके लिए थोड़ा मुश्किल भरा हो सकता है कि क्‍योंकि 24 सला की एक्‍ट्रेस इनमें काफी अलग दिखाई दे रही हैं.

दिशा ने 2015 में तेलगु फिल्‍म ‘लोफर’ से अपनी फिल्‍मी सफर की शुरुआत की है. जिसके अगले ही साल वह सुशांत सिहं राजपूत के साथ, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी पर बनी फिल्‍म ‘एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी’ में नजर आईं. दिशा ने धोनी की पहली गर्लफ्रेंड प्रियंका झा का किरदार निभाया था जिसकी मौत एक रोड एक्सिडेंट में हो गई थी. हाल ही में दिशा जैकी चैन अभिनीत फिल्‍म ‘कुंग फू योगा’ में भी नजर आई थीं.

 

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अकेली महिला यात्रियों के लिए ऐप

यदि आप किसी ऐसे स्थान पर खो जाएं जहां आप वापसी का रास्ता न तलाश सकें, तो भी आप अपनी आनंददायक यात्रा को एक साहसिक एवं उत्साहजनक यात्रा में तबदील कर सकती हैं. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि आप केपास स्मार्टफोन उपलब्ध हो, जो आप से भी ज्यादा स्मार्ट है. यह स्मार्टफोन सब कुछ जानता है. इसीलिए यह आप की यात्रा का साथी हो सकता है.

कुछ क्लिक में ही लोग एक छोटी पिन से ले कर विमान तक खरीद सकते हैं, वहीं वे देश के किसी भी कोने तक अपनी यात्रा की योजना भी बना सकते हैं. जब अगली बार आप यात्रा पर निकलने की योजना बनाएं तो आप को किसी स्काउट की मदद लेने की जरूरत नहीं है. यहां आप के लिए एक संपूर्ण ट्रैवल गाइड के बारे में बताया जा रहा है, जिस की मदद से आप अपनी यात्रा के अनुभव को खास बना सकती हैं :

गूगल ऐप: क्या आप कहीं जा रही हैं? मैप के साथ जाएं. आप रियल टाइम जीपीएस नैवीगेशन, ट्रैफिक, ट्रांजिट और लाखों जगहों के बारे में जानकारी के लिए इस ऐप पर निर्भर कर सकती हैं. यह ऐप आप को सही समय पर जानकारी से अपडेट होने में मदद करेगा. रियल टाइम, नैवीगेशन, ईटीए के साथ यात्रा को आसान बनाएं. इस से आप के समय की भी बचत होगी और साथ ही यह आप को सही दिशा भी बताएगा. इस ऐप्लिकेशन की मदद से यात्रा के स्थानों को तलाशें. इस के साथसाथ आप समीक्षाओं, रेटिंग और फूड एवं इंटीरियर के फोटो के जरीए श्रेष्ठ स्थानों के बारे में निर्णय ले सकते हैं. अपनी यात्रा के अच्छे और खराब अनुभव को साझा करें ताकि दूसरों को भी यात्रा के लिए अच्छे स्थान तलाशने में मदद मिले. आप जिन स्थानों पर बारबार जाना चाहते हों, उन्हें आप सेव भी कर सकते हैं और किसी कंप्यूटर या डिवाइस से बाद में उन्हें तुरंत तलाश सकती हैं.

ट्रैवलयारी: ट्रैवलयारी एक ऐसा औनलाइन बस बुकिंग प्लेटफौर्म है, जो बस टिकटिंग प्रक्रियाओं को आप के लिए आसान एवं सुगम बनाता है. ट्रैवलयारी ऐंड्रौयड ऐप प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में सक्षम है, क्योंकि मैंटीज का कस्टमर रिजर्वेशन सिस्टम (सीआरएस) भारत में 55% से अधिक बस सेवा प्रदाताओं के इन्वैंट्री प्रबंधन को मजबूत बनाने वाला एक प्रमुख प्रौद्योगिकी प्लेटफौर्म है. आकर्षक ग्राहक सेवा, आसान पहुंच, सीट की गारंटी और खासकर ट्रैवलयारी पर 100% लाइव बस टिकट इन्वैंट्री की उपलब्धता ने इस उद्योग में बड़े बदलाव का आगाज किया है और इस से कंपनी को स्वयं के लिए एक खास पहचान बनाने में मदद मिली है. इस एक ऐप के जरीए आप बस, होटल, टूअर पैकेज, आसान भुगतान और अन्य गतिविधियों पर विचार कर सकते हैं.

ओयो रूम्स: ओयो ऐप के साथ होटल में कमरे की तलाश आसान और आनंददायक है. इस ऐप को भारत के सब से बड़े ब्रैंडेड होटलों के नैटवर्क द्वारा विकसित किया गया है और यह आप को कुछ ही समय में होटल का कमरा बुक करने में सक्षम बनाता है. इस ऐप पर सूचीबद्ध भारत के 150 शहरों के 50 हजार से अधिक कमरों में से आप अपनी पसंद के कमरे का चयन कर सकते हैं. यह ऐप आप को कमरा बुक करने, खानापीना और्डर करने, कैब की व्यवस्था और अपने ठहरने के लिए भुगतान करने आदि में सक्षम बनाता है. ये सभी सुविधाएं आप की स्क्रीन पर उपलब्ध होती हैं, साथ ही ठहरने के लिए बेमिसाल सौदों और किफायती आवास सुविधा के साथ घर से बाहर ठहरना इस से आसान पहले कभी नहीं रहा है. इस ऐप पर आप किफायती कीमत पर एसी, टीवी, वाईफाई, स्वच्छ एवं साफसुथरे कमरे जैसी सभी सुविधाओं के साथ ठहरने का शानदार अनुभव हासिल कर सकते हैं.

जुगनू: जुगनू आप को 40 से अधिक शहरों में एक किफायती, तेज और सुविधाजनक यात्रा में मददगार है. अपने शहर में सस्ते किराए पर सुविधाजनक और सुरक्षित सवारी का फायदा भी इस ऐप से आप को मिल सकता है. आप को महज एक बटन दबाने की जरूरत होगी और जुगनू चालक कुछ ही मिनटों में आप की पिकअप लोकेशन पर पहुंच जाएगा.

जोमाटो: भोजन ऐसी चीज है, जिस पर यात्री सब से पहले ध्यान देता है. उस के बाद ही अपने ट्रिप को अंतिम रूप देता है. जब आप किसी नई जगह जा रहे हों, तो आप को मार्गदर्शन के लिए एक विशेषज्ञ की जरूरत होती है. जोमाटो ये सभी जरूरतें पूरी करता है. यह खानपान के लिए रेस्तराओं की तलाश के लिहाज से श्रेष्ठ ऐप है. रैस्टोरैंट मेनू, फोटो, यूजर रिव्यू और रेटिंग के जरीए यह निर्णय ले सकते हैं कि आप खाने के लिए कहां जाना चाहते हैं.

राजनीति का शिकार होते छात्र

देश के उज्ज्वल भविष्य की पौध तैयार करने वाले शिक्षण संस्थान आज राजनीतिक प्रोपेगेंडे का अड्डा बनते जा रहे हैं और छात्र इस राजनीति का शिकार हो रहे हैं.

लोकतंत्र में जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, अपनी बात कहने का पूरा हक होता है वहीं आज अपनी बात कह कर फंस जाने का कारण बनता जा रहा है, जिस से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार छिनता प्रतीत होता है, जिस का असर छात्रों पर पड़ रहा है.

छात्र विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने के मकसद से आते हैं, लेकिन यहां धर्म के तथाकथित धंधेबाज अपना धंधा चमकाने के लिए उन का गलत इस्तेमाल करते हैं और विरोध करने पर उन के साथ दुराचार किया जाता है, जिस में सैंडविच बने छात्र पढ़ाई तो भूल ही जाते हैं.

देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्रों को न केवल राजनीतिक दलों के झंडाबरदार अपने विचारों को अपनाने पर मजबूर करते हैं बल्कि उन के आदेश न मानने पर उन्हें भारीभरकम विरोध और गालीगलौज तक सहना पड़ता है, जिस से प्रभावित हो कर वे पढ़ाई कर देश के विकास में योगदान देने की बात सोचना छोड़ अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं.

पिछले वर्ष दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो कुछ घटित हुआ वह किसी से छिपा नहीं है. वहां कन्हैया कुमार को नायक बना राजनीति की रोटियां सेंकी गईं. देश विरोधी नारे लगाए गए. फिर कन्हैया को गिरफ्तार किया गया और उस पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया.

कन्हैया औल इंडिया स्टूडैंट फैडरेशन का अध्यक्ष और वामपंथी विचारधारा का समर्थक था. इस तरह वह भगवा खेमे का विरोधी भी हुआ. सो एबीवीपी जोकि आरएसएस का एक अंग है, को उन के विरोध का मौका मिल गया.

उधर वामपंथी भी खुल कर कन्हैया के समर्थन में उतर आए और एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया. इस सब का संबंध रोहित वेमुला से जुड़ा जो आत्महत्या कर चुका था.

ताजा उदाहरण दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा गुरमेहर कौर का है, जो ‘पोस्टकार्ड्स फौर पीस’  नामक चैरिटेबल संस्था की एंबैसेडर भी है. गुरमेहर कौर तब खबरों में आई जब रामजस कालेज में हुई हिंसा के खिलाफ उस ने ‘स्टूडैंट्स अगेंस्ट एबीवीपी’ नामक कैंपेन की शुरुआत की. विदित हो, रामजस कालेज में कल्चर औफ प्रोटैस्ट सैमिनार में हिंसा हुई थी. उस समय वहां जेएनयू के छात्र उमर खालिद और शेहला राशिद भी आमंत्रित थे, जिस पर एबीवीपी बिफर उठी.

गुरमेहर ने एबीवीपी का विरोध कर न केवल साफ कर दिया बल्कि यह भी कहा कि वह एबीवीपी से नहीं डरती. हालांकि एबीवीपी के सरमाएदारों की आलोचना तो सब ने की मगर अकेली लड़की द्वारा जवाब देने पर एबीवीपी में जो खौफ पैदा हुआ उस का बदला लेने व अपना दबदबा कायम रखने के लिए गुरमेहर के कैंपेन की बात को तो नजरअंदाज कर दिया. मगर खुद को सच्चा साबित करने के लिए गुरमेहर द्वारा अप्रैल, 2016 में यूट्यूब पर डाले गए एक वीडियो को सामने ले आए.

दरअसल, गुरमेहर ने उस समय यह वीडियो किसी और संदर्भ में डाला था, लेकिन गुरमेहर ने सोशल मीडिया पर एबीवीपी के खिलाफ अभियान चलाया तो एबीवीपी ने इस वीडियो का सहारा लिया.

पिछले साल, 2016 में भारतपाकिस्तान शांति को ले कर सोशल मीडिया पर गुरमेहर ने यह वीडियो डाला था, जिस में उस का कहना था, ‘पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा बल्कि युद्ध ने मारा है.’ विदित हो गुरमेहर कौर के पिता कैप्टन मंदीप सिंह 1999 के भारतपाक के बीच हुए कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

फरवरी, 2017 में गुरमेहर ने सोशल मीडिया पर एक मैसेज पोस्ट किया जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रसंघों की हिंसक बातों के विरोध में था. गुरमेहर की मां का भी कहना था कि उस के वीडियो के असली मैसेज को समझें. गुरमेहर का कहना सिर्फ इतना है कि युद्ध हमेशा विनाश का कारण होता है, लेकिन उस के मैसेज का गलत मतलब निकाल उसे विवाद का रूप दे दिया गया.

कट्टरपंथियों की छत्रछाया में पलबढ़ रही एबीवीपी ने जब जेएनयू के छात्रों को नहीं बख्शा तो इसे कैसे छोड़ते, सो विवादस्वरूप गुरमेहर को कई तरह से प्रताडि़त किया गया. उसे भद्दी गालियां दी गईं. उसे रेप की धमकी दी गई, तिस पर अब एबीवीपी यह डिमांड कर रही है कि वामपंथ से जुड़ी संस्थाओं पर पाबंदी लगाई जाए, जबकि पुलिस द्वारा भी स्पष्ट किया गया है कि एबीवीपी समर्थकों द्वारा कई छात्रों को उस दौरान पीटा गया था.

दरअसल, हमारी शिक्षा प्रणाली को शुरू से ही धर्म से जोड़ दिया जाता है, जिस से बचपन से ही मन में धर्म भर जाता है. मदरसों में पढ़ने वाले जेहाद का पाठ पढ़ते हैं, तो सनातन धर्म के स्कूलों में पढ़ने वाले मूर्ति पूजा. वहीं आर्य समाज के स्कूल मूर्ति पूजा की निंदा करते नहीं थकते. इस बीच, पढ़ाई कहीं खो जाती है और छात्र धर्म, जाति आदि पर बंटते दिखते हैं. ऐसे में बड़े होने पर वे इन शिक्षण संस्थानों में पहुंच कर देशद्रोह के नारे न लगाएं तो क्या करें.

कट्टरवाद, भगवाकरण और धर्म के दुकानदारों की राजनीति के सरमाएदार एबीवीपी जैसे संगठनों से लबरेज शिक्षण संस्थानों के छावनी में बदलने पर क्या पढ़ाई का माहौल रहता है? नहीं, बल्कि सिर्फ राजनीति ही चर्चा में रहती है जिस का शिकार हो रोहित वेमुला जैसे छात्र आत्महत्या करते हैं. कन्हैया जैसे जेल जाते हैं और गुरमेहर जैसे हर सचाई का साथ छोड़ गालियां खा कर शहर छोड़ने पर मजबूर होते हैं. ऐसे में छात्र उज्ज्वल भविष्य की नींव रखने के बजाय देशद्रोही का तमगा पहने इन संस्थानों से निकलते हैं.

क्या याद हैं आपको 90 के दशक के ये अभिनेता

90 के दशक की फिल्मों के कई एक्टर लंबे समय से फिल्मों में नजर नहीं आए. फिर चाहे बात चंद्रचूड़ सिंह की हो, राहुल रॉय या फरदीन खान की. इन एक्टर्स के लुक में भी अब काफी बदलाव आ चुका है. उस दौर के कुछ ऐसे ही स्टार्स जो काफी वक्त से पर्दे पर नजर नहीं आए.

1. चंद्रचूड़ सिंह

डेब्यू मूवी – तेरे मेरे सपने (1996)

1996 में ‘माचिस’ फिल्म से पॉपुलर हुए एक्टर चंद्रचूड़ सिंह को इसी फिल्म के लिए बेस्ट मेल डेब्यू फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. चंद्रचूड़ अमिताभ बच्चन और सुनील दत्त को अपना आदर्श मानते हैं. चंद्रचूड़ सिंह की आखिरी फिल्म “द रिलक्टलेंट फंडामेंटलिस्ट” जो 2014 में आई थी.

चंद्रचूड़ सिंह की हिंदी फिल्मों की बात करें तो 2013 में आई ‘जिला गाजियाबाद’ उनकी लास्ट फिल्म है. इसमें उन्होंने बैंडी अंकल का रोल प्ले किया है. इसके अलावा ‘बेताबी’, ‘जोश’, ‘क्या कहना’, ‘दिल क्या करे’, ‘सिलसिला प्यार का’, ‘दाग द फायर’, ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया’, ‘तेरे मेरे सपने’, ‘सरहद पार’, ‘चार दिन की चांदनी’, ‘जिला गाजियाबाद’, जैसी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं.

2. फरदीन खान

डेब्यू मूवी – प्रेम अगन (1998)

फरदीन मशहूर फिल्म एक्टर-डायरेक्टर फिरोज खान के बेटे हैं. अपने 12 साल के बॉलीवुड करियर में उन्होंने ‘जंगल’, ‘प्यार तूने क्या किया’, ‘फिदा’, ‘देव’ नो एंट्री, ‘हे बेबी’ और ‘ऑल द बेस्ट’ जैसी फिल्मों में काम किया है. हालांकि उनका करियर कुछ खास नहीं रहा. फरदी की आखिरी फिल्म साल 2010 में ‘दूल्हा मिल गया’ आई थी

3. राहुल रॉय

डेब्यू मूवी – आशिकी (1990)

लास्ट मूवी – 2B or not to B (2015)

1990 की सुपरहिट फिल्म ‘आशिकी’ से पॉपुलर हुए राहुल रॉय इस फिल्म के बाद खास सफल नहीं रहे. हालांकि 2007 में वो बिग-बॉस सीजन-1 के विनर रहे. राहुल ने कई मूवीज में काम किया है. इनमें ‘सपने साजन के’, ‘पहला नशा’, ‘गुमराह’, ‘भूकंप’, ‘हंसते-खेलते’, ‘नसीब’, ‘अचानक फिर कभी’, ‘नॉटी ब्वॉय’ और ‘क्राइम पार्टनर’ जैसी फिल्में हैं. उन्होंने सी-ग्रेड फिल्म ‘Her Story’ में भी काम किया है. राहुल रॉय की आखिरी फिल्म “2B or not to B” (2015) रही.

4. मामिक सिंह

डेब्यू मूवी – जो जीता वही सिकंदर (1992)

लास्ट मूवी – शापित (2010)

मामिक सिंह को फिल्मों के साथ ही टीवी पर काम करने के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने 1995 में टीवी सीरिज ‘चंद्रकांता’ में काम किया. इसके बाद ‘युग’, ‘श्श्श कोई है’ और ‘शाका लाका बूम बूम’ में भी नजर आए. मामिक 2011 में टीवी सीरियल ‘कहानी चंद्रकांता की’ में भी काम कर चुके हैं. इसके साथ ही वो टीवी शो ‘सावधान इंडिया’ के दो एपिसोड में नेगेटिव रोल में नजर आए हैं. मामिक की आखिरी फिल्म “शापित” थी जो 2010 में आई थी.

5. हिमांशु मलिक

डेब्यू मूवी – कामसूत्र : अ टेल ऑफ लव (1996)

लास्ट मूवी – यमला पगला दीवाना (2011)

हिमांशु ने करियर की शुरुआत नुसरत फतेह अली खान के म्यूजिक वीडियो ‘आफरीन’ से की. इसमें उनके साथ लीजा रे भी थीं. इसके बाद वो सोनू निगम के एलबम ‘दीवाना’ में गुल पनाग के साथ नजर आए. हिमांशु ने 2001 में आई सुपरहिट फिल्म ‘तुम बिन’ के अलावा ‘ख्वाहिश’, ‘एलओसी कारगिल’, ‘रक्त’, ‘रोग’, ‘रेन’, ‘कोई आप सा’ और ‘मल्लिका’ जैसी फिल्मों में काम किया. हिमांशु की 2011 में आखिरी फिल्म ‘यमला पगला दीवाना’ थी.

6. अपूर्व अग्निहोत्री

डेब्यू मूवी – परदेस (1997)

अपूर्व को टीवी शो ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने 2004 में शिल्पा सखलानी से शादी की. अपूर्व ने ‘प्यार कोई खेल नहीं’, ‘क्रोध’, ‘हम हो गए आपके’, ‘कसूर’, ‘प्यार दीवाना होता है’, ‘धुंध’ और ‘लकीर’ जैसी फिल्मों में काम किया. इसके अलावा उन्होंने कई टीवी शोज भी किए. इनमें ‘पति पत्नी और वो’, ‘आसमान से आगे’, ‘एक हजारों में मेरी बहना है’ और ‘सौभाग्यलक्ष्मी’ प्रमुख हैं. “लकीर” अपूर्व की आखिरी फिल्म थी.

7. मुकुल देव

डेब्यू मूवी – दस्तक (1996)

मुकुल ने करियर की शुरुआत सीरियल ‘मुमकिन’ से 1996 में की. इसके अलावा उन्होंने दूरदर्शन के शो ‘एक से बढ़कर एक’ में भी काम किया. मुकुल ने हिंदी के अलावा तेलुगु, पंजाबी और बंगाली फिल्मों में भी काम किया है. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘भाग जॉनी’, ‘जाल’, ‘जय हो’, ‘राजकुमार’, ‘सन ऑफ सरदार’, ‘चार दिन की चांदनी’, ‘यमला पगला दिवाना’, ‘एक खिलाड़ी एक हसीना’, ‘कहीं दिया जले कहीं जिया’ और ‘मेरे दो अनमोल रतन’ जैसी फिल्मों में काम किया.

8. सुधांशु पांडेय

डेब्यू मूवी – खिलाड़ी 420 (2000)

मॉडल और एक्टर सुधांशु ने करियर की शुरुआत फैशन मॉडलिंग से की. सुधांशु ने फिल्म ‘खिलाड़ी 420’ के अलावा ‘दिशाएं’, ‘ये मेरी लाइफ है’, ‘यकीन’, ‘मनोरंजन’, ‘उन्स’, ‘हमराही’, ‘सिंह इज किंग’, ‘मर्डर 2’ और ‘सिंघम’ जैसी फिल्मों में काम किया. सुधांशु अक्षय और रजनीकांत स्टारर मूवी 2.0 में भी नजर आएंगे. इसके अलावा वो ‘चक्रवर्तिन अशोक सम्राट’, ‘तमन्ना और भारतवर्ष’ जैसी टीवी सीरिज में भी काम कर चुके हैं. सुधांशु की आखिरी फिल्म 2015 में ‘सियासत’ आई थी.

9. विकास भल्ला

डेब्यू मूवी – सौदा (1995)

विकास एक्टर के साथ ही प्रोड्यूसर और सिंगर भी हैं. विकास ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग ली है. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘ताकत’, ‘जियो शान से’, ‘साजिश’, ‘शिकार’, ‘प्यार में ट्विस्ट’, ‘अनकही’, ‘मैरीगोल्ड’, ‘चांस पे डांस’ और ‘जय हो’ जैसी फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा वो ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’, ‘संजोग से बनी संगिनी’, ‘तुम बिन जाऊं कहां’ और ‘फियर फैक्टर’ जैसे टीवी शोज में भी नजर आ चुके हैं. विकास की लास्ट मूवी 2015 में रिलीज हुई फिल्म ‘चूड़ियां’ थी.

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