अकेली महिला यात्रियों के लिए ऐप

यदि आप किसी ऐसे स्थान पर खो जाएं जहां आप वापसी का रास्ता न तलाश सकें, तो भी आप अपनी आनंददायक यात्रा को एक साहसिक एवं उत्साहजनक यात्रा में तबदील कर सकती हैं. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि आप केपास स्मार्टफोन उपलब्ध हो, जो आप से भी ज्यादा स्मार्ट है. यह स्मार्टफोन सब कुछ जानता है. इसीलिए यह आप की यात्रा का साथी हो सकता है.

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गूगल ऐप: क्या आप कहीं जा रही हैं? मैप के साथ जाएं. आप रियल टाइम जीपीएस नैवीगेशन, ट्रैफिक, ट्रांजिट और लाखों जगहों के बारे में जानकारी के लिए इस ऐप पर निर्भर कर सकती हैं. यह ऐप आप को सही समय पर जानकारी से अपडेट होने में मदद करेगा. रियल टाइम, नैवीगेशन, ईटीए के साथ यात्रा को आसान बनाएं. इस से आप के समय की भी बचत होगी और साथ ही यह आप को सही दिशा भी बताएगा. इस ऐप्लिकेशन की मदद से यात्रा के स्थानों को तलाशें. इस के साथसाथ आप समीक्षाओं, रेटिंग और फूड एवं इंटीरियर के फोटो के जरीए श्रेष्ठ स्थानों के बारे में निर्णय ले सकते हैं. अपनी यात्रा के अच्छे और खराब अनुभव को साझा करें ताकि दूसरों को भी यात्रा के लिए अच्छे स्थान तलाशने में मदद मिले. आप जिन स्थानों पर बारबार जाना चाहते हों, उन्हें आप सेव भी कर सकते हैं और किसी कंप्यूटर या डिवाइस से बाद में उन्हें तुरंत तलाश सकती हैं.

ट्रैवलयारी: ट्रैवलयारी एक ऐसा औनलाइन बस बुकिंग प्लेटफौर्म है, जो बस टिकटिंग प्रक्रियाओं को आप के लिए आसान एवं सुगम बनाता है. ट्रैवलयारी ऐंड्रौयड ऐप प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में सक्षम है, क्योंकि मैंटीज का कस्टमर रिजर्वेशन सिस्टम (सीआरएस) भारत में 55% से अधिक बस सेवा प्रदाताओं के इन्वैंट्री प्रबंधन को मजबूत बनाने वाला एक प्रमुख प्रौद्योगिकी प्लेटफौर्म है. आकर्षक ग्राहक सेवा, आसान पहुंच, सीट की गारंटी और खासकर ट्रैवलयारी पर 100% लाइव बस टिकट इन्वैंट्री की उपलब्धता ने इस उद्योग में बड़े बदलाव का आगाज किया है और इस से कंपनी को स्वयं के लिए एक खास पहचान बनाने में मदद मिली है. इस एक ऐप के जरीए आप बस, होटल, टूअर पैकेज, आसान भुगतान और अन्य गतिविधियों पर विचार कर सकते हैं.

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जुगनू: जुगनू आप को 40 से अधिक शहरों में एक किफायती, तेज और सुविधाजनक यात्रा में मददगार है. अपने शहर में सस्ते किराए पर सुविधाजनक और सुरक्षित सवारी का फायदा भी इस ऐप से आप को मिल सकता है. आप को महज एक बटन दबाने की जरूरत होगी और जुगनू चालक कुछ ही मिनटों में आप की पिकअप लोकेशन पर पहुंच जाएगा.

जोमाटो: भोजन ऐसी चीज है, जिस पर यात्री सब से पहले ध्यान देता है. उस के बाद ही अपने ट्रिप को अंतिम रूप देता है. जब आप किसी नई जगह जा रहे हों, तो आप को मार्गदर्शन के लिए एक विशेषज्ञ की जरूरत होती है. जोमाटो ये सभी जरूरतें पूरी करता है. यह खानपान के लिए रेस्तराओं की तलाश के लिहाज से श्रेष्ठ ऐप है. रैस्टोरैंट मेनू, फोटो, यूजर रिव्यू और रेटिंग के जरीए यह निर्णय ले सकते हैं कि आप खाने के लिए कहां जाना चाहते हैं.

राजनीति का शिकार होते छात्र

देश के उज्ज्वल भविष्य की पौध तैयार करने वाले शिक्षण संस्थान आज राजनीतिक प्रोपेगेंडे का अड्डा बनते जा रहे हैं और छात्र इस राजनीति का शिकार हो रहे हैं.

लोकतंत्र में जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, अपनी बात कहने का पूरा हक होता है वहीं आज अपनी बात कह कर फंस जाने का कारण बनता जा रहा है, जिस से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार छिनता प्रतीत होता है, जिस का असर छात्रों पर पड़ रहा है.

छात्र विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने के मकसद से आते हैं, लेकिन यहां धर्म के तथाकथित धंधेबाज अपना धंधा चमकाने के लिए उन का गलत इस्तेमाल करते हैं और विरोध करने पर उन के साथ दुराचार किया जाता है, जिस में सैंडविच बने छात्र पढ़ाई तो भूल ही जाते हैं.

देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्रों को न केवल राजनीतिक दलों के झंडाबरदार अपने विचारों को अपनाने पर मजबूर करते हैं बल्कि उन के आदेश न मानने पर उन्हें भारीभरकम विरोध और गालीगलौज तक सहना पड़ता है, जिस से प्रभावित हो कर वे पढ़ाई कर देश के विकास में योगदान देने की बात सोचना छोड़ अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं.

पिछले वर्ष दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जो कुछ घटित हुआ वह किसी से छिपा नहीं है. वहां कन्हैया कुमार को नायक बना राजनीति की रोटियां सेंकी गईं. देश विरोधी नारे लगाए गए. फिर कन्हैया को गिरफ्तार किया गया और उस पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया गया.

कन्हैया औल इंडिया स्टूडैंट फैडरेशन का अध्यक्ष और वामपंथी विचारधारा का समर्थक था. इस तरह वह भगवा खेमे का विरोधी भी हुआ. सो एबीवीपी जोकि आरएसएस का एक अंग है, को उन के विरोध का मौका मिल गया.

उधर वामपंथी भी खुल कर कन्हैया के समर्थन में उतर आए और एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया. इस सब का संबंध रोहित वेमुला से जुड़ा जो आत्महत्या कर चुका था.

ताजा उदाहरण दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कालेज की छात्रा गुरमेहर कौर का है, जो ‘पोस्टकार्ड्स फौर पीस’  नामक चैरिटेबल संस्था की एंबैसेडर भी है. गुरमेहर कौर तब खबरों में आई जब रामजस कालेज में हुई हिंसा के खिलाफ उस ने ‘स्टूडैंट्स अगेंस्ट एबीवीपी’ नामक कैंपेन की शुरुआत की. विदित हो, रामजस कालेज में कल्चर औफ प्रोटैस्ट सैमिनार में हिंसा हुई थी. उस समय वहां जेएनयू के छात्र उमर खालिद और शेहला राशिद भी आमंत्रित थे, जिस पर एबीवीपी बिफर उठी.

गुरमेहर ने एबीवीपी का विरोध कर न केवल साफ कर दिया बल्कि यह भी कहा कि वह एबीवीपी से नहीं डरती. हालांकि एबीवीपी के सरमाएदारों की आलोचना तो सब ने की मगर अकेली लड़की द्वारा जवाब देने पर एबीवीपी में जो खौफ पैदा हुआ उस का बदला लेने व अपना दबदबा कायम रखने के लिए गुरमेहर के कैंपेन की बात को तो नजरअंदाज कर दिया. मगर खुद को सच्चा साबित करने के लिए गुरमेहर द्वारा अप्रैल, 2016 में यूट्यूब पर डाले गए एक वीडियो को सामने ले आए.

दरअसल, गुरमेहर ने उस समय यह वीडियो किसी और संदर्भ में डाला था, लेकिन गुरमेहर ने सोशल मीडिया पर एबीवीपी के खिलाफ अभियान चलाया तो एबीवीपी ने इस वीडियो का सहारा लिया.

पिछले साल, 2016 में भारतपाकिस्तान शांति को ले कर सोशल मीडिया पर गुरमेहर ने यह वीडियो डाला था, जिस में उस का कहना था, ‘पाकिस्तान ने मेरे पिता को नहीं मारा बल्कि युद्ध ने मारा है.’ विदित हो गुरमेहर कौर के पिता कैप्टन मंदीप सिंह 1999 के भारतपाक के बीच हुए कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

फरवरी, 2017 में गुरमेहर ने सोशल मीडिया पर एक मैसेज पोस्ट किया जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रसंघों की हिंसक बातों के विरोध में था. गुरमेहर की मां का भी कहना था कि उस के वीडियो के असली मैसेज को समझें. गुरमेहर का कहना सिर्फ इतना है कि युद्ध हमेशा विनाश का कारण होता है, लेकिन उस के मैसेज का गलत मतलब निकाल उसे विवाद का रूप दे दिया गया.

कट्टरपंथियों की छत्रछाया में पलबढ़ रही एबीवीपी ने जब जेएनयू के छात्रों को नहीं बख्शा तो इसे कैसे छोड़ते, सो विवादस्वरूप गुरमेहर को कई तरह से प्रताडि़त किया गया. उसे भद्दी गालियां दी गईं. उसे रेप की धमकी दी गई, तिस पर अब एबीवीपी यह डिमांड कर रही है कि वामपंथ से जुड़ी संस्थाओं पर पाबंदी लगाई जाए, जबकि पुलिस द्वारा भी स्पष्ट किया गया है कि एबीवीपी समर्थकों द्वारा कई छात्रों को उस दौरान पीटा गया था.

दरअसल, हमारी शिक्षा प्रणाली को शुरू से ही धर्म से जोड़ दिया जाता है, जिस से बचपन से ही मन में धर्म भर जाता है. मदरसों में पढ़ने वाले जेहाद का पाठ पढ़ते हैं, तो सनातन धर्म के स्कूलों में पढ़ने वाले मूर्ति पूजा. वहीं आर्य समाज के स्कूल मूर्ति पूजा की निंदा करते नहीं थकते. इस बीच, पढ़ाई कहीं खो जाती है और छात्र धर्म, जाति आदि पर बंटते दिखते हैं. ऐसे में बड़े होने पर वे इन शिक्षण संस्थानों में पहुंच कर देशद्रोह के नारे न लगाएं तो क्या करें.

कट्टरवाद, भगवाकरण और धर्म के दुकानदारों की राजनीति के सरमाएदार एबीवीपी जैसे संगठनों से लबरेज शिक्षण संस्थानों के छावनी में बदलने पर क्या पढ़ाई का माहौल रहता है? नहीं, बल्कि सिर्फ राजनीति ही चर्चा में रहती है जिस का शिकार हो रोहित वेमुला जैसे छात्र आत्महत्या करते हैं. कन्हैया जैसे जेल जाते हैं और गुरमेहर जैसे हर सचाई का साथ छोड़ गालियां खा कर शहर छोड़ने पर मजबूर होते हैं. ऐसे में छात्र उज्ज्वल भविष्य की नींव रखने के बजाय देशद्रोही का तमगा पहने इन संस्थानों से निकलते हैं.

क्या याद हैं आपको 90 के दशक के ये अभिनेता

90 के दशक की फिल्मों के कई एक्टर लंबे समय से फिल्मों में नजर नहीं आए. फिर चाहे बात चंद्रचूड़ सिंह की हो, राहुल रॉय या फरदीन खान की. इन एक्टर्स के लुक में भी अब काफी बदलाव आ चुका है. उस दौर के कुछ ऐसे ही स्टार्स जो काफी वक्त से पर्दे पर नजर नहीं आए.

1. चंद्रचूड़ सिंह

डेब्यू मूवी – तेरे मेरे सपने (1996)

1996 में ‘माचिस’ फिल्म से पॉपुलर हुए एक्टर चंद्रचूड़ सिंह को इसी फिल्म के लिए बेस्ट मेल डेब्यू फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. चंद्रचूड़ अमिताभ बच्चन और सुनील दत्त को अपना आदर्श मानते हैं. चंद्रचूड़ सिंह की आखिरी फिल्म “द रिलक्टलेंट फंडामेंटलिस्ट” जो 2014 में आई थी.

चंद्रचूड़ सिंह की हिंदी फिल्मों की बात करें तो 2013 में आई ‘जिला गाजियाबाद’ उनकी लास्ट फिल्म है. इसमें उन्होंने बैंडी अंकल का रोल प्ले किया है. इसके अलावा ‘बेताबी’, ‘जोश’, ‘क्या कहना’, ‘दिल क्या करे’, ‘सिलसिला प्यार का’, ‘दाग द फायर’, ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपया’, ‘तेरे मेरे सपने’, ‘सरहद पार’, ‘चार दिन की चांदनी’, ‘जिला गाजियाबाद’, जैसी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं.

2. फरदीन खान

डेब्यू मूवी – प्रेम अगन (1998)

फरदीन मशहूर फिल्म एक्टर-डायरेक्टर फिरोज खान के बेटे हैं. अपने 12 साल के बॉलीवुड करियर में उन्होंने ‘जंगल’, ‘प्यार तूने क्या किया’, ‘फिदा’, ‘देव’ नो एंट्री, ‘हे बेबी’ और ‘ऑल द बेस्ट’ जैसी फिल्मों में काम किया है. हालांकि उनका करियर कुछ खास नहीं रहा. फरदी की आखिरी फिल्म साल 2010 में ‘दूल्हा मिल गया’ आई थी

3. राहुल रॉय

डेब्यू मूवी – आशिकी (1990)

लास्ट मूवी – 2B or not to B (2015)

1990 की सुपरहिट फिल्म ‘आशिकी’ से पॉपुलर हुए राहुल रॉय इस फिल्म के बाद खास सफल नहीं रहे. हालांकि 2007 में वो बिग-बॉस सीजन-1 के विनर रहे. राहुल ने कई मूवीज में काम किया है. इनमें ‘सपने साजन के’, ‘पहला नशा’, ‘गुमराह’, ‘भूकंप’, ‘हंसते-खेलते’, ‘नसीब’, ‘अचानक फिर कभी’, ‘नॉटी ब्वॉय’ और ‘क्राइम पार्टनर’ जैसी फिल्में हैं. उन्होंने सी-ग्रेड फिल्म ‘Her Story’ में भी काम किया है. राहुल रॉय की आखिरी फिल्म “2B or not to B” (2015) रही.

4. मामिक सिंह

डेब्यू मूवी – जो जीता वही सिकंदर (1992)

लास्ट मूवी – शापित (2010)

मामिक सिंह को फिल्मों के साथ ही टीवी पर काम करने के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने 1995 में टीवी सीरिज ‘चंद्रकांता’ में काम किया. इसके बाद ‘युग’, ‘श्श्श कोई है’ और ‘शाका लाका बूम बूम’ में भी नजर आए. मामिक 2011 में टीवी सीरियल ‘कहानी चंद्रकांता की’ में भी काम कर चुके हैं. इसके साथ ही वो टीवी शो ‘सावधान इंडिया’ के दो एपिसोड में नेगेटिव रोल में नजर आए हैं. मामिक की आखिरी फिल्म “शापित” थी जो 2010 में आई थी.

5. हिमांशु मलिक

डेब्यू मूवी – कामसूत्र : अ टेल ऑफ लव (1996)

लास्ट मूवी – यमला पगला दीवाना (2011)

हिमांशु ने करियर की शुरुआत नुसरत फतेह अली खान के म्यूजिक वीडियो ‘आफरीन’ से की. इसमें उनके साथ लीजा रे भी थीं. इसके बाद वो सोनू निगम के एलबम ‘दीवाना’ में गुल पनाग के साथ नजर आए. हिमांशु ने 2001 में आई सुपरहिट फिल्म ‘तुम बिन’ के अलावा ‘ख्वाहिश’, ‘एलओसी कारगिल’, ‘रक्त’, ‘रोग’, ‘रेन’, ‘कोई आप सा’ और ‘मल्लिका’ जैसी फिल्मों में काम किया. हिमांशु की 2011 में आखिरी फिल्म ‘यमला पगला दीवाना’ थी.

6. अपूर्व अग्निहोत्री

डेब्यू मूवी – परदेस (1997)

अपूर्व को टीवी शो ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’ के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने 2004 में शिल्पा सखलानी से शादी की. अपूर्व ने ‘प्यार कोई खेल नहीं’, ‘क्रोध’, ‘हम हो गए आपके’, ‘कसूर’, ‘प्यार दीवाना होता है’, ‘धुंध’ और ‘लकीर’ जैसी फिल्मों में काम किया. इसके अलावा उन्होंने कई टीवी शोज भी किए. इनमें ‘पति पत्नी और वो’, ‘आसमान से आगे’, ‘एक हजारों में मेरी बहना है’ और ‘सौभाग्यलक्ष्मी’ प्रमुख हैं. “लकीर” अपूर्व की आखिरी फिल्म थी.

7. मुकुल देव

डेब्यू मूवी – दस्तक (1996)

मुकुल ने करियर की शुरुआत सीरियल ‘मुमकिन’ से 1996 में की. इसके अलावा उन्होंने दूरदर्शन के शो ‘एक से बढ़कर एक’ में भी काम किया. मुकुल ने हिंदी के अलावा तेलुगु, पंजाबी और बंगाली फिल्मों में भी काम किया है. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘भाग जॉनी’, ‘जाल’, ‘जय हो’, ‘राजकुमार’, ‘सन ऑफ सरदार’, ‘चार दिन की चांदनी’, ‘यमला पगला दिवाना’, ‘एक खिलाड़ी एक हसीना’, ‘कहीं दिया जले कहीं जिया’ और ‘मेरे दो अनमोल रतन’ जैसी फिल्मों में काम किया.

8. सुधांशु पांडेय

डेब्यू मूवी – खिलाड़ी 420 (2000)

मॉडल और एक्टर सुधांशु ने करियर की शुरुआत फैशन मॉडलिंग से की. सुधांशु ने फिल्म ‘खिलाड़ी 420’ के अलावा ‘दिशाएं’, ‘ये मेरी लाइफ है’, ‘यकीन’, ‘मनोरंजन’, ‘उन्स’, ‘हमराही’, ‘सिंह इज किंग’, ‘मर्डर 2’ और ‘सिंघम’ जैसी फिल्मों में काम किया. सुधांशु अक्षय और रजनीकांत स्टारर मूवी 2.0 में भी नजर आएंगे. इसके अलावा वो ‘चक्रवर्तिन अशोक सम्राट’, ‘तमन्ना और भारतवर्ष’ जैसी टीवी सीरिज में भी काम कर चुके हैं. सुधांशु की आखिरी फिल्म 2015 में ‘सियासत’ आई थी.

9. विकास भल्ला

डेब्यू मूवी – सौदा (1995)

विकास एक्टर के साथ ही प्रोड्यूसर और सिंगर भी हैं. विकास ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से हिंदुस्तानी क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग ली है. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘ताकत’, ‘जियो शान से’, ‘साजिश’, ‘शिकार’, ‘प्यार में ट्विस्ट’, ‘अनकही’, ‘मैरीगोल्ड’, ‘चांस पे डांस’ और ‘जय हो’ जैसी फिल्मों में काम किया है. इसके अलावा वो ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’, ‘संजोग से बनी संगिनी’, ‘तुम बिन जाऊं कहां’ और ‘फियर फैक्टर’ जैसे टीवी शोज में भी नजर आ चुके हैं. विकास की लास्ट मूवी 2015 में रिलीज हुई फिल्म ‘चूड़ियां’ थी.

नैनीताल है बेमिसाल

घूमनेफिरने और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाने के लिहाज से नैनीताल हमेशा से ही पर्यटकों की पहली पसंद रहा है. ऊंचे पहाड़ों के साथ ही नैनीताल में कई झीलें भी हैं और इसलिए उसे झीलों का शहर भी कहा जाता है. उत्तराखंड राज्य की राजधानी देहरादून से नजदीक होने के कारण इस जगह का काफी शहरीकरण हो चुका है. सैलानियों का जमघट नैनीताल को कभी शोरगुल से आजाद नहीं होने देता.

झीलों के इस शहर को पूरा घूमने के लिए मात्र 3 घंटे का समय ही काफी है. इस के लिए 300-500 रुपए में एक किराए की गाड़ी बुक कर के नैनीताल के प्रमुख पर्यटक स्थलों पर जाया जा सकता है, जिन में टिफिन टौप, केव गार्डन, स्नो व्यू, तिब्बती मार्केट, माल रोड और चाइना पीक मुख्य हैं. यदि शौपिंग का मूड है तो नैनीताल का माल रोड, तिब्बत बाजार और बड़ा बाजार, उचित स्थान हैं. यहां से लकड़ी के बने सजावटी सामान सस्ते दामों में खरीदे जा सकते हैं, साथ ही खूबसूरत मोमबत्तियां भी यहां वाजिब दामों में मिल जाएंगी. खाने पीने के लिए भी ये तीनों स्थान काफी अच्छे हैं. उत्तराखंड की प्रमुख बाल मिठाई भी नैनीताल के बड़ा बाजार से आसानी से खरीदी जा सकती है.

भव्य राज भवन

शौपिंग और खानपान के बाद यदि कुछ अलग देखने की ललक है और इतिहास में रुचि रखते हैं तो नैनीताल के राज भवन की ट्रिप मजेदार हो सकती है. वैसे तो इस शहर में अंगरेजी शैली की कई इमारतें हैं मगर विक्टोरियल गौथिक शैली में बने यहां के राज भवन की खूबसूरती की कोई मिसाल नहीं.

वर्ष 1897 में गवर्नर एंथोनी पैट्रिक मैक्डोनल द्वारा बनवाई गई इस इमारत का ढांचा मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस का निर्माण करने वाले ब्रिटिश आर्किटैक्ट फैड्रिक विलियम स्टीवैंस ने तैयार किया था.

19वीं सदी की बेमिसाल इमारतों में सब से प्रचलित इस इमारत को लंदन के बकिंघम पैलेस की तर्ज पर बनाया गया था. बाहरी बनावट के साथ ही इस भवन के अंदर की सजावट भी बहुत खूबसूरत है. इस की खूबसूरती का सब से रोचक हिस्सा 10वीं सदी के सब से प्रसिद्ध सुलताना डाकू, जिसे भारत का रौबिनहुड भी कहा गया है, द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार हैं, जिन्हें भवन की दीवारों पर सुसज्जित किया गया है.

बाकी लकड़ी की खूबसूरत नक्काशी से सजी भवन की छतें और ब्रिटिशकाल के एंटीक फर्नीचर भी इस भवन की शोभा में चारचांद लगाते हैं. इमारत से बाहर निकलने पर 160 एकड़ भूमि में फैले घने जंगल और उस के बीचोंबीच 50 एकड़ जमीन पर बने 18 होल्स वाली गोल्फ फील्ड भी काफी आकर्षित करती है. इस गोल्फ फील्ड को भारत की सब से ऊंची गोल्फ फील्ड होने का खिताब भी प्राप्त है. बस,

इस इमारत को देखने के साथ ही नैनीताल की सैर यादगार बन जाएगी.

भुवाली जाना मत भूलें

आप को असली प्राकृतिक खूबसूरती का आनंद लेना है तो नैनीताल से लगभग 11 किलोमीटर दूर पहाड़ों की तलहटी में 1,680 मीटर की ऊंचाई में बसी कुमायूं मंडल की शानदार नगरी भुवाली जाना मत भूलें. सेब, आलूबुखारा, खुबानी और काफल जैसे फलों के खूबसूरत बागों के लिए प्रसिद्ध भुवाली बेहद शांत और सुंदर नगर है.

यह जगह फलों की मंडी के लिए जानी जाती है. यहां दूरदूर से लोग फलों की खरीदारी के लिए आते हैं. सब से अच्छी बात है कि यहां आने वाले सैलानियों के लिए रहने की अच्छी व्यवस्था है. अच्छे रिजौर्ट्स और होटलों के साथ नगर के स्थानीय निवासियों ने घर पर ही पेइंगगैस्ट की भी सुविधा दे रखी है.

भुवाली की सब से खास बात है कि यहां नैनीताल या अन्य हिलस्टेशनों की तरह सैलानियों की भीड़ नहीं होती. ज्यादातर यहां वही सैलानी आते हैं जिन्हें इस जगह के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी होती है या फिर नैनीताल में जब रहने के लिए होटल नहीं मिलता तो लोग भुवाली की ओर रुख करते हैं. यहां रहने के साथ ही खानेपीने का इंतजाम भी काफी अच्छा है. यहां सड़कों के किनारे छोटेछोटे ढाबों में काफी स्वादिष्ठ भोजन मिलता है और यह हैल्थ फ्रैंडली होने के साथ ही पौकेट फ्रैंडली भी है.

चाय के बागान

नैनीताल ओर भुवाली के बीच मात्र 1,000 लोगों की जनसंख्या वाला गांव श्यामखेत भी बेहद आकर्षक दिखता है. इस के आकर्षण की बड़ी वजह यहां के हरेभरे चाय के बागान हैं. सीढ़ीनुमा आकार के इन खेतों पर औद्योगिक चाय की पैदावार होती है, जो सभी प्रकार के कृत्रिम रासायनिक अवशेषों से मुक्त होती है. दिलचस्प बात तो यह है कि यहां की चाय विदेशों तक जाती है. चाय के शौकीन लोग सस्ते दामों में यहां से चाय खरीद सकते हैं.

बस, इसी के साथ कुमायूं मंडल के इन 3 खूबसूरत नगरों की सैर 3 दिनों में ही पूरी हो जाती है. यदि आप कम समय और कम बजट में प्राकृतिक खूबसूरती और शांत वातावरण का आनंद उठाना चाहते हैं, तो इन 3 स्थलों की यात्रा आप के लिए एक अच्छी ट्रिप साबित हो सकती है.

अच्छी सेहत के लिए पास्ता सलाद

जो लोग यह सोचते हैं कि पास्ता खाना सेहत के लिए खतरनाक होता है, उन्हें यह डिश जरूर पसंद आएगी. इस सलाद की खास बात यह है कि यह हेल्दी होने के साथ ही स्वाद से भी भरपूर है.

सामग्री

200 ग्राम पास्ता

1 कप ब्रॉकली

2 चुटकी नमक

लहसुन की 2 कूटी हुई कलियां

2 चम्मच ऑलिव ऑयल

एक मुट्ठी बेसिल

2 छोटे कटे टमाटर

काली मिर्च पाउडर

2 चम्मच सिरका

4 लेट्यूस के पत्ते

1 चम्मच ऑरेगेनो

विधि

पास्ता सलाद बनाने के लिए सबसे पहले पास्ता को 10 से 15 मिनट के लिए उबाल लें. पास्ता जब पक जाए तो उसके पानी को गिरा दें और रनिंग वॉटर में अच्छी तरह धो लें.

सर्विंग बाउल में पास्ता, लेट्यूस के पत्ते, ब्रॉकली, टमाटर, लहसुन को अच्छी तरह बिछा लें. इसके ऊपर नींबू का रस, सिरका और ऑलिव ऑयल डालें. इसके पर नमक, काली मिर्च पाउडर और ऑरेगेनो डालें. इन सभी चीजों को एकसार मिला लें.

इस समर ट्रेंड में है शर्ट ड्रेस

गर्मी के मौसम में हम सब आरामदेह कपड़े पहनना चाहते हैं. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि ऐसे कपड़े स्टाइलिश कहां होते हैं? तो हम आपको बता दें कि  आरामदेह कपड़े भी स्टाइलिश होते हैं. बस आपको फैशन ट्रेंड्स पर अपनी नजर रखनी होगी.

एक ऐसा ही फैशन ट्रेंड है, शर्ट ड्रेस. वैसे तो आप इसे हर मौसम में पहनकर स्टाइलिश लुक पा सकती हैं, पर खासतौर से गर्मी के मौसम में यह आपको काफी कूल लुक देगा. इस ड्रेस की खास बात यह है कि यह बहुत महंगा नहीं है और आप इसे किसी भी औपचारिक या अनौपचारिक मौकों पर पहनकर शान से चल सकती हैं.

किसी भी मौके पर शर्ट ड्रेस पहनने से पहले आपको सोचना नहीं होगा. आप इसे ऑफिस, पार्टी या कहीं घूमने जाने में भी पहन सकती हैं. हल्के रंग के शर्ट ड्रेस इस सीजन खूब चलन में हैं. शर्ट ड्रेस के साथ सनग्लास, सैंडल और रिस्ट वॉच जैसी एक्सेसरीज जरूर पहनें. अभी बिना बटन के चेक्स वाले शर्ट ड्रेस ट्रेंड में हैं. इसे पहनने के लिए आपको किसी खास हेयरस्टाइल या मेकअप की जरूरत नहीं पड़ेगी. शर्ट ड्रेस को और प्रभावी बनाने में हमारे ये टिप्स आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

चुनें ढीली शर्ट ड्रेस

कभी भी टाइट फिटिंग वाली शर्ट ड्रेस पहनने की गलती न करें. अपने लिए ढीली-ढाली शर्ट ड्रेस चुनें. यह आप पर न केवल खूबसूरत लगेगी बल्कि आपको आराम भी महसूस होगा. ढीली शर्ट ड्रेस का यह मतलब नहीं है कि आप अपने साइज से बड़ी ड्रेस या बेहद ढीली शर्ट ड्रेस खरीद लें. मुख्य रूप से आपको अपने लिए ऐसी शर्ट ड्रेस लेनी है, जिसमें अतिरिक्त आराम देने वाले कट हों ताकि आपको चलने-फिरने में आसानी हो.

दूसरी ड्रेस की भी ले सकती हैं मदद

शर्ट ड्रेस को ज्यादा स्टाइलिश बनाने के लिए आप इस पर दूसरे ड्रेस की परत भी चढ़ा सकती हैं. इसके ऊपर कोई भी श्रग डाल सकती हैं या आप इसके साथ किसी दूसरे आउटफिट का खुले बटन वाला टॉप भी पहन सकती हैं.

पूरे घेर वाली शर्ट ड्रेस लें

आजकल शर्ट ड्रेस बहुत-सी कट्स के साथ आ रही हैं, जिससे कि यह पहनने पर ऊंची-नीची सी दिखती हैं. अगर आपके शरीर का निचला हिस्सा भारी है तो यह शर्ट ड्रेस आपकी जांघों के पास चिपक सकती है. इस परेशानी से बचने के लिए लोवर या टाइट्स पहनें, जिससे आपका निचला हिस्सा अजीब ना लगे.

बेल्ट का करें इस्तेमाल

आजकल बिना किसी शेप वाली शर्ट ड्रेस भी ट्रेंड में है, लेकिन यह आपके खूबसूरत फिगर को कहीं छिपा देती है. इस समस्या से उबरने के लिए आपको केवल एक ट्रेंडी-सा बेल्ट या फिर प्यारी-सी फैब्रिक टाई कमर के पास बांधनी होगी. अपने लुक को और निखारने के लिए आप अलग-अलग तरह की टाई और बेल्ट का इस्तेमाल कर सकती हैं.

फैशनेबल एक्सेसरीज

अपनी साधारण और प्लेन शर्ट ड्रेस में नई जान डालने के लिए इसे कुछ फैशनेबल एक्सेसरीज के साथ पहनें. अगर आप अपनी शर्ट ड्रेस को ज्यादा आकर्षक बनाना चाहती हैं तो इसके साथ स्टेटमेंट नेकलेस या एक शानदार घड़ी पहनें. अलग लुक पाने के लिए आप इसके साथ मेटैलिक सैंडिल या फिर जूते भी पहन सकती हैं.

शर्ट ड्रेस की लंबाई के हिसाब से चुनें हील्स

ड्रेस की लंबाई जितनी कम हो, हील की लंबाई भी उसी हिसाब से कम होनी चाहिए. फैशन के इस नियम को हमेशा याद रखें. अगर आप शर्ट ड्रेस में आधुनिक और प्रभावशाली दिखना चाहती हैं तो इसके साथ हाई हील्स पहन सकती हैं, लेकिन शर्ट ड्रेस की लंबाई कम हो तो हाई हील से बचें, वर्ना यह आपका पूरा लुक खराब कर देगी. कम लंबाई वाली शर्ट ड्रेस के साथ फ्लैट फुटवियर पहनकर आप बहुत स्टाइलिश दिख सकती हैं.

फिल्म रिव्यू : नूर

पाकिस्तानी लेखिका सबा सय्यद के उपन्यास ‘कराची आर यू किलिंग’ पर बनी फिल्म ‘नूर’ अति कमजोर कहानी वाली फिल्म है. मगर फिल्म देखकर एहसास होता है कि लेखक ने पत्रकार, न्यूजरूम, संपादक की बहुत गलत कल्पना की है. यह अति कमजोर कथानक पर बनी निराश करने वाली फिल्म है.

फिल्म ‘‘नूर’’ की कहानी मुंबई की 28 वर्षीय पत्रकार नूरा रॉय चौधरी (सोनाक्षी सिन्हा) की है, जिसे सभी नूर कह कर बुलाते हैं. उनकी मां बचपन में ही गुजर गयी थीं. वह अपने पिता (एम के रैना) के साथ रहती हैं. उनके पिता ने घर में एक बिल्ली पाल रखी है और वह अक्सर बिल्ली के साथ ही समय बिताते हैं. यह बात नूर को पसंद नहीं आती.

उधर नूर की जिंदगी में दो दोस्त जारा पटेल (शिवानी दांडेकर) और शाद सहगल (कानन गिल)हैं. शाद का लंदन में अपना रेस्टारेंट है, पर वह अक्सर मुंबई में ही बना रहता है. नूर का बॉस शेखर दास (मनीष चौधरी) अपनी पत्नी लवलीन के पिता के चैनल के लिए खबरें व वीडियो इंटरव्यू आदि इकट्ठा करके देते हैं. नूर हमेशा इंसानी जिंदगी की सच्चाई को उकेरने वाली कहानियों पर काम करना पसंद करती है. पर शेखर दास उसे बार बार फिल्म जगत में दौड़ाते हैं.

जब शेखर दास नूर को सनी लियोनी का इंटरव्यू करने के लिए भेजते हैं, तो उसे गुस्सा आता है. नूर हमेशा बहुत बड़ी पत्रकार बनकर सीएनएन के लिए काम करने व एक अच्छे प्रेमी व पति की चाहत को लेकर सोचती रहती है. इसी बीच एक दिन नूर की मुलाकात सीएनएन में कार्यरत पत्रकार और फोटोग्राफर अयान मुखर्जी (पूरब कोहली) से होती है. नूर, अयान के करीब होने के प्रयास में लग जाती है.

अचानक एक दिन नूर को अपने घर में काम करने वाली मालती से पता चलता है कि कपाड़िया ट्रस्ट के डॉक्टर दिलीप शिंदे ने मालती के भाई विलास को नौकरी देने का लालच देकर उसकी किडनी निकाल ली. नूर को लगता है कि वह इसे ब्रेकिंग न्यूज के तहत देकर रातों रात बहुत बड़ी पत्रकार बन जाएगी. और सीएनएन में उसकी नौकरी पक्की हो जाएगी. मालती के मना करने के बावजूद नूर उसकी सुरक्षा की जिमेदारी लेते हुए मालती और उसके भाई विलास के इंटरव्यू की वीडियो रिकॉर्डिंग करती है. इस वीडियो रिकॉर्डिंग को देखकर शेखर दास कहते हैं कि इसका प्रसारण करना है या नहीं, इसका निर्णय दो दिन बाद करेंगे. पर नूर को जल्दी है.

उसे लगता है कि शेखर दास जानबूझकर अपनी पत्नी लवलीन के इशारे पर उसकी प्रतिभा को दबाने का काम कर रहे हैं. वह गुस्से में अयान से मिलकर सारी बात बताती है. अयान उस पर प्यार लुटाता है. नूर,अयान के साथ उसके होटल के कमरे में पहुंचती है. जब सुबह होती है, तो होटल कमरे के बिस्तर पर अयान व नूर के हालात देखकर समझा जा सकता है कि रात में दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन चुके हैं. दोनों पूरी रात जगे हैं. अयान उससे कहता है कि वह रात की खुमारी उतारे, तब तक वह बाहर किसी से मिलकर वापस आता है.

शाम को जब सीएनएन पर नूर की विलास तांबे वाली स्टोरी अयान के नाम से चलती है, तो जारा नूर को फोन करती है. सच जानकर नूर को एहसास होता है कि वह ठगी गयी. वह तुरंत शेखर दास के पास पहुंचती है. शेखर दास उससे कहते हैं कि ‘‘अयान मुखर्जी तो ठग है. पत्रकारिता में ऐसा कई बार होता है. नूर, तुम बुद्धिमान हो, तुम्हें खबर पकड़ना आता है. मगर हर खबर पर रिसर्च करना जरुरी होता है. जो कि तुमने इस खबर में नहीं किया. डॉ शिंदे बहुत बड़े इंसान हैं. एक पत्रकार के साथ उसकी अपनी जिम्मेदारी को भूल गयी. तुमने खुद को बड़ा बनाने के चक्कर में यह नहीं सोचा कि मालती व विलास का क्या होगा. किसी भी सच्चाई को यूं ही नहीं दिया जाता. खबर को चार दिन बाद लोग भूल जाएंगे…’’

नूर मालती के घर जाती है, तो पता चलता है कि उसके घर पर ताला है. बाद में पता चलता है कि मालती और उसके भाई विलास को अगवा कर लिया गया है. नूर के पिता को धमकियां मिलती है. अब नूर को गलती का एहसास होता है. वह शा के साथ लंदन चली जाती है. कुछ दिन बाद पता चलता है कि विलास मारा गया. डॉ. शिंदे बरी हो गए. फिर नूर वापस आती है. लवलीन, नूर से कहती है कि उसने उसके पति शेखर पर विश्वास नहीं किया तथा चोट पहुंचाई है. फिर नूर रिसर्च करके फेसबुक पर रिपोर्ट लिखती है. जिसमें किडनी चोरी के पूरे जाल का पर्दाभास करने के साथ ही मुंबई शहर की कमजोरियों व कमियों को गिनाती है. रातो रात वह स्टार बन जाती है. डां शिंदे के खिलाफ गवाही देने के लिए सैकड़ो लोग आ जाते हैं. डॉ शिंदे गिरफ्तार हो जाते हैं. शाद, नूर के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है.

फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी अति धीमी गति से आगे बढ़ना और कमजोर कथानक है. फिल्म पत्रकार की कहानी कहती है, मगर फिल्म में पत्रकार, उसकी जिंदगी और उसके आस पास का ताना बाना ठीक से नहीं उकेरा गया. क्या एक चैनल के दफ्तर में बॉस यानी कि संपादक के अलावा महज नूर ही काम करती है? फिल्म की पटकथा में कसावट की बहुत ज्यादा जरुरत है. फिल्म के कुछ संवाद काफी हार्ड हीटिंग हैं. पटकथा लेखक ने नूर को एक आपदा के रूप में ही चित्रित किया है. पूरी फिल्म अवास्तविक लगती है. लेखक ने ‘न्यूज रूम’, संपादक व पत्रकार की जो कल्पना की है, वह भी गलत तथा अवास्तविक है.

गीत संगीत ठीक ठाक है. लोकेशन बेहतर है. यह फिल्म अपनी लागत वसूल कर पाएगी, इसमे संशय है. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो एक बार फिर सोनाक्षी सिन्हा ने निराश ही किया है. पत्रकार के किरदार में वह पूरी तरह से विफल हैं. पूरी फिल्म में वह पत्रकार कम जोकर ही ज्यादा नजर आयी. शायद उन्हें इस बात का एहसास हो रहा था, इसीलिए नूर खुद को कई बार जोकर ही कहती है. वैसे भी जो इंसान खुद को जोकर कहेगा या समझेगा, वह पत्रकार हो ही नहीं सकता. इसके अलावा कानन गिल, मनीष चौधरी, स्मिता तांबे, शिवानी दांडेकर ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है.

एक घंटे 54 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘नूर’’ का निर्माण टीसीरीज और विक्रम मल्होत्रा  ने मिलकर किया है. फिल्म के निर्देशक सुनहिल सिप्पी, संगीतकार अमाल मलिक तथा कलाकार हैं- सोनाक्षी सिन्हा, शिवानी दांडेकर, कानन गिल, मनीष चौधरी, पूरब कोहली, स्मिता तांबे व अन्य.

‘किसी शर्त पर बाहुबली 3 नहीं करूंगा’

भारतीय सिनेमा को अलग मुकाम पर ले जाती है फिल्म बाहुबली और बाहुबली- द कनक्लूजन. 450 करोड़ी इस फिल्म में जितनी मेहनत की गई है शायद ही किसी और फिल्म में की गई होगी.

बाहुबली स्टार प्रभास ने हाल ही में कहा था कि बाहुबली खत्म होने के बाद सबसे पहले वह अपने बाल कटवाएंगे. और अब जो उनहोंने कहा है उसे सुन कर आप जरूर ही अचम्भित हो उठेंगे. उन्होंने कहा है कि ये फिल्म चाहे कितनी भी खास है लेकिन वह दोबारा ऐसा कोई किरदार नहीं करेंगे.

प्रभास ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि बाहुबली जैसी फिल्में आपका बहुत सारा वक्त और टैलेंट मांगती है. और अब मैं अपने करियर में दोबारा ऐसी कोई फिल्म नहीं करना चाहूंगा. बाहुबली 3 के बारे में पूछने पर भी प्रभास का जवाब था कि बाहुबली जैसा मैं कुछ नहीं करना चाहूंगा. बाहुबली के लिए उन्होंने अपने जीवन के 4.5 साल दे दिए हैं.

प्रभास का कहना है कि राजामौली के साथ काम करना एक अनुभव है. ये पूछने पर कि क्या वो अपने डायरेक्टर से डरते हैं, प्रभास का जवाब था कि उनके साथ ऐसा संबंध बन चुका है कि अब मैं घबराता हूं, डरता नहीं. मैं घबराता हूं कि वो किसी चीज को लेकर ज्यादा परेशान तो नहीं हो रहे. मैं हमेशा सेट पर कोशिश करता था कि पूरी तैयारी से जाऊं जिसे राजामौली को कोई दिक्कत ना हो और मैं बिना उन्हें परेशान किए, ज्यादा सवाल जवाब किए बिना बस जल्दी से एक अच्छा सा शॉट उन्हें दे दूं.

सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी फिल्म

फिल्म अप्रैल 2017 में रिलीज हो रही है और फिल्म के लिए तैयारियां धुंआधार तरीके से चल रही है. माना जा रहा है कि ये पहली भारतीय फिल्म होगी जो कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी. बाहुबली को दो पार्ट में बनाया गया है. फिल्म दो भाषाओं मे बनाई गयी थी तेलुगू और तमिल, जिसके बाद इसे मलयालम, हिंदी और फ्रेंच में डब किया गया.

प्रभास ने सीखी रॉक क्लाइंबिंग

बाहुबली के लिए प्रभास ने पहाड़ पर चढ़ना सीखा. उन्होंने फिल्म में कई सीन्स में पहाड़ की चढ़ाई की है. या यूं कहिए पूरी फिल्म में वो पहाड़ पर ही चढ़े हैं. वहीं किरदार में परफेक्ट नजर आने के लिए राणा दुग्गाबाती ने अपने 88 किलो वजन को बढ़ाकर 120 किलो किया. हैदराबाद स्थित रामोजी फिल्मसिटी का करीब 100 एकड़ के हिस्से में बाहुबली का सेट बनाया गया था.

50000 फिट का पोस्टर

बाहुबली फिल्म का सबसे बड़ा पोस्टर 50000 फिट का था, जिसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ट रिकॉर्ड्स में दर्ज कराया गया. राजामौली ने बाहुबली का ट्रेलर बड़े लेवल पर रिलीज किया. ये पहली फिल्म थी जिसका ट्रेलर डॉल्बी एटमॉस में रिलीज किया गया था.

बाहुबली का म्यूजियम

बाहुबली एक पहली ऐसी फिल्म है जिसका एक म्यूजियम तैयार किया गया है. फिल्म से जुड़ी हर एक चीज रखी जाएगी एक्टर्स की कॉस्ट्यूम से लेकर उनके हथियारों तक.

मेरा रास्ता बहुत कठिन है : अलंकृता श्रीवास्तव

विवादित फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव दिल्ली की हैं. उन्हें बचपन से ही फिल्मों का शौक था. उनके इस शौक को बल दिया, उनके माता-पिता ने, जिन्होंने हर काम में उन्हें आजादी दी. पढाई पूरी कर वह मुंबई आईं और पिछले 13 वर्षों से यहां अकेले रह रही हैं.

स्पष्ट भाषी और साहसी अलंकृता की फिल्म को ‘सेन्सर बोर्ड’ की ‘सर्टिफिकेशन’ का इंतजार है. इस फिल्म के निर्माता प्रकाश झा हैं. ‘सर्टिफिकेशन’ न मिलने की वजह से परेशान निर्माता, निर्देशक ने कानून का दरवाजा खटखटाया है. यह फिल्म ट्रिपल तलाक और महिलाओं की आजादी को छिनने वालों पर एक तमाचा है जिसे सेन्सर बोर्ड किसी भी हालत में रिलीज नहीं करना चाहती. इस विषय पर बातचीत हुई, पेश है अंश.

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

दिल्ली में मैंने अपनी प्रारम्भिक पढाई पूरी कर पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की. फिर मैं फिल्म ‘गंगाजल’ के लिए ट्रेनी बनकर मुंबई आई. मैंने प्रकाश झा को उस फिल्म के लिए एसिस्ट किया. पहली फिल्म से मैंने बहुत कुछ सीखा.

इसके बाद चीफ एसिस्टेंट बनी और जयप्रकाश, अपहरण आदि फिल्में की. इसके बाद मैंने कुछ छोटी फिल्में अकेले की और फिर ‘राजनीति’ फिल्म में असोसिएट निर्देशक बन गयी. इस तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी. इसके बाद मैंने ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ की विषय पर काम करना शुरू किया. इसे लिखने में थोड़ा समय लगा. प्रकाश झा ने इसे एक बार में पसंद किया. 2014 से मैंने इस फिल्म को करना शुरू किया है फिल्म तो बन गयी है, लेकिन रिलीज नहीं हो पा रही है.  

आपने इस विषय को ही क्यों चुना? क्या कोई अनुभव जो आपके जीवन से जुड़ी हुई है?

मैं एक भारतीय महिला हूं. मुझे भी कुछ न कुछ बंदिशों का सामना करना पड़ता है, मुझे वह आजादी नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए. उस आजादी की चाहत बहुत स्ट्रोंग है और लगता है कि मैं खुलकर जी नहीं रही हूं. हालांकि मेरा परिवार मुझे पूरी आजादी देता है. उन्होंने कभी किसी काम से नहीं रोका.

मैं सालों से मुंबई में अकेली रहती हूं. कभी उन्होंने ये नहीं कहा कि शादी कर लो. ऐसे में जिन्हें इतनी अजादी नहीं है, समाज उन्हें हर काम करने से मना करता है, वे कैसे जीती होंगी?

मैं उन महिलाओं की दुनिया में जाकर उसे महसूस करना चाहती थी और उनके अंदर जो आजादी की चाहत होती है, उसे ही दिखाने की कोशिश की है. ये फिल्म किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं है, बल्कि सभी महिलाओं के लिए है.

12 साल की उम्र में मुझे सेक्सुअल हैरेस्मैंट का सामना करना पड़ा था. मैं दिल्ली के एक पार्क में सैर करने गयी थी, दो लोग मेरे पास आये, मुझे पकड़ना चाहा और मैं चिल्लाई और भाग खड़ी हुई. तब मुझे लगा कि अब मैं वुमन बन चुकी हूं और आस-पास कुछ गलत है, मैं आजाद घूम नहीं सकती.

मैंने अपने आप को तो बचा लिया, पर मेरी मासूमियत खो चुकी थी. इससे पहले मुझे कभी ऐसा अनुभव नहीं था. मैंने अपनी पढाई देहरादून के एक ऐसे स्कूल में की थी जहां लड़के और लड़कियों को समान समझा जाता था. परिवार में भी वही माहौल था. लेकिन इस घटना के बाद मैं सतर्क हो चुकी थी.

इसका शीर्षक ऐसा क्यों है? क्या ये किसी खास समुदाय से सम्बन्ध रखती है?

ये शीर्षक सांकेतिक है, जिसमें दिखाया गया है कि आप महिला को दबाने की कितनी भी कोशिश करें, उनके अंदर जो चाहत है वह कभी नहीं मरती. उनके जो सपने है उन्हें दबाया नहीं जा सकता. ये केवल एक समुदाय नहीं, सभी समुदाय की महिलाओं को लेकर बनाया गया है.

असल में हमारे समाज में जो महिलाओं के लिए जो भूमिका निर्धारित की गयी है, जिसमें वह केवल एक बेटी, पत्नी, मां या सास बनकर ही खुश है, ये पुरुषों की गलत सोच है. उसमें वे खुश नहीं, वे उससे निकल कर निश्चय ही कुछ और चाहती है.

उन्हें अपने लाइफ के किसी निर्णय को लेने की चाहत, अपने शरीर की चाहत जो उनकी अपनी है, ऐसे किसी भी बात को दबाया नहीं जा सकता. उसे ही दिखाने की कोशिश की गयी है. पुरुष प्रधान समाज में किसी महिला को अपने मन के भाव कहने का हक नहीं होता. पहले महिलाओं को जानकारी कम थी, अब सभी लोग इस नए माहौल में जीना चाहते हैं.

इस फिल्म को विदेशों में इतने अवॉर्ड मिल रहे हैं, यहां क्या समस्या है?

‘सेन्सर बोर्ड’ ने खुद ही कह दिया है कि ये ‘लेडी ओरिएंटेड’ फिल्म है. उनके हिसाब से पुरुष प्रधान मानसिकता में इस फिल्म की कोई अहमियत नहीं है. सेंसर बोर्ड जो सर्टिफाई करते हैं, उनका रवैया अशिक्षित लोगों के जैसा है. आज के समय से हिसाब से वे बात नहीं करते. वे इसे एक राजनीति का रूप देते हैं.

फिल्मों में सेक्स तो बहुत होते हैं, लेकिन वे सभी पुरुषों को संतुष्ट करने के हिसाब से होता है. जैसे कि आइटम सॉन्ग, डबल मीनिंग जोक्स या संवाद. लेकिन एक महिला अगर कहानी अपने नजरिये से कहना चाहे तो उसे दिखाने की इजाजत नहीं देते, क्योंकि ये सब उन पुरुषों को ‘अनकम्फर्टेबल’ बनाता है और वे सर्टिफिकेशन करने से घबराते हैं. अभी तो फिल्म कोर्ट में गयी है और मैं कोशिश कर रही हूं कि ये ‘पास’ हो जाय.

क्या महिला निर्देशक को पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में काम करना मुश्किल होता है?

कठिन अवश्य है और अगर विषय अलग हो तो और भी अधिक मुश्किल होती है. मुझे पता है कि मेरा रास्ता भी कठिन है, पर मैंने इसे खुद चुना है, जो भी कहानी मुझे प्रेरित करेगी, मैं उसे अवश्य करुंगी, अंत तक लडूंगी. मुझे अपनी बात कहनी ही है.

ऐसे में महिलाएं आजाद है, कहना गलत होगा क्या? कौन अधिक जिम्मेदार है, परिवार समाज या धर्म?

सौ प्रतिशत, महिलाएं आजाद नहीं हैं. ज्योंही वे आगे बढ़ना चाहती हैं, लोग उन्हें दबा देते है. हर देश, हर समुदाय में महिलाएं अलग-अलग ढंग से प्रताड़ित की जाती हैं. जिम्मेदार सभी हैं, लेकिन परिवार सबसे पहले आता है. माता-पिता अपने बेटी को पहले समझें. इसके अलावा हर एक महिला दूसरी महिला को किसी न किसी रूप में घर में या बाहर में सहयोग करें ये जरुरी है.

रियल लाइफ में आप कैसी हैं?

मैं किताबें खूब पढ़ती हूं. जिसमें महिला लेखिका खास होती हैं, इसके अलावा दोस्तों के साथ रहना पसंद करती हूं.

गृहशोभा के पाठकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि आप अपनी इच्छाओं को दबाएं नहीं, बल्कि खुलकर कहें. किसी भी प्रताड़ना का मुकाबला करें. इसमें दूसरी महिलाएं भी उनका साथ दें.

टेलीविजन जगत की सबसे हॉट अभिनेत्रियां

साल 2016 में आई सबसे सेक्सी एशियन विमिन की लिस्ट में टीवी ऐक्ट्रेस निया शर्मा ने तीसरा स्थान हासिल किया था. कटरीना कैफ समेत कई बॉलिवुड अभिनेत्रियां इस लिस्ट में निया शर्मा से पीछे थीं. निया की ही तरह कई और टीवी अभिनेत्रियां हैं जो ऑन स्क्रीन भले ही बेहद सिंपल किरदार निभा रही हों लेकिन ऑफ स्क्रीन बेहद सेक्सी हैं जिसका प्रमाण मिलता है उनके सोशल मीडिया अकाउंट से. टीवी की इन हॉट और सेक्सी ऐक्ट्रेसेज पर डालते हैं एक नजर.

करिश्मा शर्मा

स्टार प्लस के शो ये है मोहब्बतें में नेगेटिव किरदार निभा चुकीं करिश्मा शर्मा इन दिनों टीवी की सबसे सेक्सी ऐक्ट्रेस बनती जा रही हैं. करिश्मा के इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की गई बेहद सेक्सी और सेन्शुअस तस्वीरें इस बात का दावा भी कर रही हैं.

करिश्मा तन्ना

करिश्मा शर्मा के बाद बात करिश्मा तन्ना की जो बिग बॉस 8 में आने के बाद से टीवी की सबसे पॉप्युलर अभिनेत्री बन गई हैं. करिश्मा अब बॉलिवुड में एंट्री की तैयारी कर रही हैं. दरअसल, करिश्मा संजय दत्त की बायॉपिक में नजर आएंगी जिसमें रणबीर कपूर, संजय दत्त की भूमिका निभा रहे हैं.

शमा सिकंदर

शमा सिकंदर, विक्रम भट्ट की इरॉटिक वेब सीरीज ‘माया’ में अपने बोल्ड अवतार से लाइमलाइट में आयीं. हालांकि इस वेब सीरीज से पहले टीवी पर शमा, बाल वीर और ये मेरी लाइफ है जैसे सीरियल्स में सिंपल किरदार निभा चुकी हैं.

रूबीना दिलैक

टीवी पर सीरियल छोटी बहू से अपने करियर की शुरुआत करने वाली रूबीना इन दिनों कलर्स पर आने वाले शो शक्ति अस्तित्व के अहसास की में किन्नर का किरदार निभा रही हैं. वैसे तो वह शो में ज्यादातर वक्त साड़ी में नजर आती हैं लेकिन निजी जिंदगी में रूबीना किसी दीवा से कम नहीं हैं.

रोशनी चोपड़ा

एक बच्चे के जन्म के बाद भी रोशनी चोपड़ा का सेक्सी अवतार नहीं बदला है. कई टीवी शोज में अदाकारी कर चुकीं रोशनी खुद भी एक फैशन डिजाइनर हैं.

मॉनी रॉय

कलर्स चैनल के सीरियल नागिन में लीड किरदार निभाने वाली टीवी ऐक्ट्रेस मॉनी रॉय भी अपने हॉट और सेक्सी अवतार के लिए जानी जाती हैं. मॉनी भी सोशल मीडिया पर काफी ऐक्टिव हैं और अपनी सेक्सी तस्वीरें पोस्ट करती रहती हैं.

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